12 सितम्बर, बुधवार
रणवीर ने सुबह आठ बजे वेदपाल को फोन किया । वेदपाल ने बताया कि वह कोई साढ़े नौ बजे तक संत नगर पहुँच जाएगा । रणवीर ने असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर दिनेश को तैयार होने के लिए कहा और असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर रोशन को अनिकेत के घर जाकर लल्लन का बयान एक बार फिर लेने के लिए कहा ।
जब वह संतनगर पहुँचा तो वेदपाल को वहाँ अपना इंतजार करते पाया । संजय के घर के गेट को खोला गया और सभी कमरों को वेदपाल की टीम फिंगरप्रिंटस के लिए बारीकी से खँगालने लगी ।
“लगता है, तेरे हाथ खाली ही हैं रणवीर ! तेरा मुजरिम हाथ नहीं आया अभी तक ।” वेदपाल ने रणवीर को खींचा ।
“बस कुछ ही दूरी पर है । आखिर किस्मत कब तक उसका साथ देगी । आ जाएगा पकड़ में जल्दी ही । मुझे पूरी उम्मीद है । अब तुम यहाँ से फिंगरप्रिंट्स उठा के पता लगाओ कि मोहित गेरा हाल ही में यहाँ था या नहीं ।”
“पर इससे फायदा क्या होगा रणवीर ? अब वह यहाँ है तो नहीं ! प्रिंट्स तो पहले के भी हो सकते हैं ।”
“हाँ, मुझे पता है कि कोई ज्यादा फायदा नहीं है । पर अगर उसके फिंगरप्रिंट्स हमें यहाँ मिलते हैं तो हम कोर्ट में उसके और संजय बंसल के बीच संबंध आसानी से स्थापित कर सकेंगे । ये भी हो सकता है कि गौरव और अनिकेत के प्रिंट भी यहाँ पर मिले । इससे इस बात को मजबूती से स्थापित किया जा सकता है कि उन लोगों की एक पूरी जुंडली थी जो स्याह और सफ़ेद में बराबर की भागीदार थी ।”
“चलो, जैसा तुम कहो । हमें तो जो तुम कहो उसी अनुसार चलना है !”
“नहीं, वेदपाल ! यहाँ की तलाशी बड़ी बारीकी से करो । मुझे लगता है, ये उन सबकी ऐशगाह थी । क्या पता कुछ और भी... ।” तभी रणवीर का मोबाइल वाइब्रेट करने लगा । लाइन पर साइबर सेल से लोकेश था ।
“हाँ, लोकेश ! जो मोबाइल लिस्ट मैंने तुम्हें कल भेजी थी, उन सबकी संत नगर में एक्टिव लोकेशन की रिपोर्ट मुझे जल्दी चाहिए । मैं तुम्हें मोहित गेरा और उसके भाई के फोन नंबर भी टेक्स्ट कर रहा हूँ । उन्हें भी तुम सर्विलान्स पर लगा दो । जब भी और जहाँ भी ये नंबर एक्टिवेट हों, तुरंत हमें फोन करना ।”
“जी सर, आप भेज दें ! मैं तुरंत कार्यवाही करता हूँ । कल जो आपने लिस्ट भेजी थी, उनकी रिपोर्ट तो मैं आपकी मेल पर भेज चुका हूँ, आप चेक कर लें ।” इतना कहकर लाइन कट हो गई ।
रणवीर ने तुरंत दिनेश को बुलाया ।
“दिनेश, इसमें लोकेश ने कुछ मोबाइल नंबर्स की इस एरिया में एक्टिविटी रिपोर्ट भेजी है ! कृष्ण थाने में ही है । तुम उससे वह पहले की रिपोर्ट, जो दुर्गा कॉलोनी के एरिया की है, निकलवाओ । उन नंबरों से इस रिपोर्ट का मिलान करके देखो और कन्फ़र्म करो कि कौन-कौन से नंबर दोनों जगह एक साथ एक्टिव रहे हैं । अगर ऐसे नंबर मिलते हैं तो उनके मालिकों से इन पाँचों लड़कों के सम्बन्धों की जानकारी लो । उनके नंबरों का कॉल रिकॉर्ड भी निकलवाना पड़ेगा । कृष्ण से वह सारे नंबर और नाम मैसेज में मेरे फोन पर मँगवा लो । और हाँ, एक बात और । दोनों भाइयों के नंबर लोकेश को भेज दो, जिससे हमें कुछ पता चले कि वह दोनों हाल ही में इस एरिया में कब पाये गए थे ।” इतना कहकर रणवीर ने अपना फोन दिनेश को दे दिया । दिनेश, रणवीर के फोन पर व्यस्त हो गया ।
तभी एक आल्टो कार धूल उड़ाते हुए वहाँ पर पहुँची । ड्रग इंस्पेक्टर नरेश मल्होत्रा ‘वेलकेयर’ कंपनी के एरिया डिस्ट्रीबूटर पुनीत खन्ना के साथ वहाँ पर पहुँचा था । रणवीर ने कदम सिंह के साथ दोनों को उस कमरे में भेज दिया जहाँ पर दवाइयों की पूरी खेप रखी थी ।
तभी वेदपाल, रणवीर को ऊपर के कमरों से आवाज लगाता हुआ बोला, “रणवीर, हमें फिंगरप्रिंट के साथ-साथ कुछ और भी मिला है । आओ, तुम्हें दिखाऊँ ।”
अब क्या मिला ?” रणवीर, दिनेश को मोबाइल पर व्यस्त छोड़ सीढ़ियाँ चढ़ते हुए बोला ।
नरेश और पुनीत ने वहाँ पर पड़ी दवाइयों की ड्रग सेंपलिंग करनी शुरू कर दी थी । पुनीत सब दवाइयों के सैम्प्ल्स के बैच नंबर नोट कर रहा था । पूरे जखीरे को देखते हुए उन्हें वहाँ काफी समय लगने वाला था ।
“देखो, यहाँ कमरे में आओ ।” वेदपाल की आवाज उस कमरे में से आई जहाँ दवाइयाँ भरी पड़ी थी । रणवीर उस कमरे में पहुँचा, “ये मैग्नीफ़ाइंग ग्लास हाथ में लेकर यहाँ देखो । इस अलमारी को खिसकाने के बाद, इस कोने में और उधर सामने के कॉर्नर पर भी कुछ भूरे रंग के निशान देख रहे हो ।”
“हाँ, देख रहा हूँ । ये गहरे भूरे रंग का धब्बा... कहीं ये खून के निशान तो नहीं ?”
“बिल्कुल, ठीक कहा तुमने । हालांकि साफ करने वालों ने फर्श साफ करने की कोशिश तो की होगी, पर कमरे के कोने साफ होने से रह गए । क्या कहते हो, कलेक्ट करें इसे ?”
“सही कह रहे हो तुम । इस दुनिया में सच्चाई को अब ये अंधेरे कोने ही मयस्सर हैं । लेकिन ये ब्लड सैम्पल अब क्या काम आएगा ? लेकिन इससे डीएनए टेस्ट तो हो ही सकता है ?”
“डीएनए टेस्ट तो हो जाएगा पर इसका इस केस में क्या सम्बंध निकलेगा ?”
“तुम कलेक्ट तो कर लो ? अगर जरूरत होगी तो देख लेंगे ?”
तभी दिनेश, रणवीर का फोन लेकर ऊपर आ गया । रोशन वर्मा लाइन पर था । वेदपाल को काम करता हुआ छोड़ रणवीर वहाँ से बाहर आ गया ।
उसके फोन अटेण्ड करने पर रोशन वर्मा बोला, “जनाब, मैंने यहाँ लल्लन से पूछताछ की है ! पहले तो वह हरामखोर अपने पहले वाले बयान पर अटका रहा । जब मैंने थोड़ी हूल दी तो तब कहीं जाकर उसने अपना मुँह खोला कि चार सितंबर की रात को, जब वह लोग गोदाम बंद करके जा रहे थे, तभी उन्होंने दो आदमियों को अनिकेत के घर से जाते हुए देखा था । जो खास बात उसने बताई वह ये है कि उन दोनों में से एक आदमी पूरी तरह से टुन्न था और दूसरे से संभाले नहीं संभल रहा था ।”
“टाइम क्या बताया उसने ?”
“कोई दस बजे के आसपास का बताया है और जो आदमी दूसरे को सहारा देकर ले जा रहा था, उसने उसी तरह की हुड वाली जाकेट पहन रखी थी जैसी मोहित ने हॉस्पिटल में पहन रखी थी ।”
“विक्की ने भी तो कुछ ऐसा ही हुलिया बताया था, लेकिन उनके जुड़वा भाई होने के चक्कर में हम उसे रोहित समझ बैठे थे ।”
“जी सर ! ये पट्ठा लल्लन आज कहता है कि उस दिन तो हमने इसकी तरफ ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया था ।”
“हाँ । पर उस वक्त हमें मौका-ए-वारदात पर हुई किसी भी मूवमेंट्स का कोई आइडिया भी नहीं था । तुम वहीं रुको और स्केच आर्टिस्ट अगर आ सकता हो तो उसे वहीं बुलाकर स्केच बनवाने की कोशिश करो । तब तक मैं वहाँ पहुँचता हूँ । एक बात और, विक्की के बनवाए स्केच की पिक भी थाने से मँगवा लो । अगर हो सके तो विक्की को भी वहीं बुला लो ।”
“यस सर !” इतना कहकर फोन की लाइन कट गई ।
“सर, मेरी कृष्ण से अभी बात हुई है ! उसके बताए अनुसार जो फोन नंबर यहाँ पर एक्टिव रहा है, वह सिम मोहित गेरा के नाम से रजिस्टर्ड है । वह नंबर यहाँ 10 सितम्बर और 11 सितम्बर को शाम पाँच बजे तक एक्टिव रहा और अब इनएक्टिव है ।”
“इसका मतलब यह है कि वह हमारे हाथ में आता-आता रह गया । चलो, ये तो फिंगरप्रिंट और इस रिकॉर्ड से स्थापित हो ही जाएगा कि वह यहाँ पर रुका हो सकता था ।”
“पर सर, इससे ये कन्फ़र्म तो नहीं किया जा सकता कि जो आदमी यहाँ रुका था, वह आदमी मोहित ही था !” दिनेश ने रणवीर के सामने सवाल खड़ा किया ।
“हाँ, कन्फ़र्म नहीं किया जा सकता ! पर उसके खिलाफ हमारे पास फिंगरप्रिंट और मोबाइल रिकॉर्ड की सर्कमस्टेंसियल एविडेन्स तो है ही । हमारे आने के तीन घंटे पहले तक उसका फोन इस घर में एक्टिव था, इसका मतलब तो यही है कि वह यहाँ पर मौजूद था । हो सकता है, इन दो दिनों में वह यहाँ किसी की निगाहों में आया हो । अनिल को यहाँ बुलाकर उसे इस इलाके में मोहित के बारे में पूछताछ में लगा दो । उसके साथ रवि को भी हेल्प के लिए छोड़ देना ।”
इतने में वेदपाल अपनी टीम के साथ नीचे आ गया और उसने फिंगरप्रिंट की रिपोर्ट शाम तक देने का वादा किया । नरेश मल्होत्रा और पुनीत खुराना अभी ड्रग सैंपलिंग में लगे हुए थे । तब तक अनिल वहाँ पहुँच चुका था ।
“अनिल, अभी यहाँ नरेश का काम बाकी है । जब उनका काम हो जाए तो ये मकान फिर से सील कर देना । उसके बाद तुमने यहाँ पर उन चारों या पाँचों लड़कों के बारे में पड़ताल करनी है और इस बात पर खास ध्यान देना है कि क्या किसी ने 10 या 11 सितंबर को मोहित को यहाँ पर देखा है ।”
“जी जनाब !” अनिल ने पूरी मुस्तैदी से जवाब दिया ।
“वेद, तेरा स्निफर डॉग स्क्वाड कहाँ है ? यहाँ बुला उसे ।”
“क्यों ? यहाँ उसकी अब क्या जरूरत है ? कोई ऐसा हादसा तो यहाँ हुआ नहीं तो किसलिए ?”
“महक फार्महाउस भूल गया ! वहाँ पर ड्रग्स का जखीरा मिला था ! क्या पता यहाँ भी किसी और मकान में इसी तरह का भंडार छुपा रखा हो जो उन लोगों ने बेनामी या ढके-छिपे तौर पर ले रखा हो ।”
“ठीक है । मैं फोन करके बुलाता हूँ ।”
“फिर तो तब तक मैं एक बार दुर्गा कॉलोनी होकर आता हूँ । वहाँ रोशन मेरा इंतजार कर रहा है । तब तक दिनेश और अनिल यहाँ हैं और ड्रग सैंपलिंग भी चल ही रही है ।”
“ओके ।” इतना कहकर तेजपाल अपने फोन पर डॉग स्क्वाड को बुलाने के आदेश देने में उलझ गया । रणवीर सिर्फ ड्राइवर को साथ लेकर चल पड़ा । अब उनकी मंजिल दुर्गा कॉलोनी का मकान नंबर 32/11 था ।
वहाँ पहुँचकर देखा तो रोशन ने लल्लन के बयान की तहरीर पहले ही तैयार कर रखी थी । स्केच आर्टिस्ट तो वहाँ नहीं आ पाया था क्योंकि समय की कमी थी; लेकिन विक्की के बयान के आधार पर तैयार स्केच रोशन ने मोबाइल पर लल्लन को दिखाया था । उसे देखकर उसने तसदीक की थी, जो आदमी उसने देखा था, वह वही था । इंस्पेक्टर रणवीर के सामने भी उसने वही बयान दोहरा दिया ।
इंस्पेक्टर रणवीर ने अपने मोबाइल पर उसे मोहित गेरा की फोटो दिखाई । उसने उसे तुरंत उस आदमी के रूप में पहचाना जो अपने कंधे का सहारा देकर दूसरे आदमी को ले जा रहा था ।
“लल्लन, तूने उन दोनों को कितने बजे यहाँ से जाते देखा था ?”
“साब, जब हम इहाँ से गोदाम को ताला लगा के जाई रहे थे तबहि हम उनको जाते देखा । हम पूछे भी कि का हुआ भाई ? हम सहारा दें क्या ? लेकिन वह बोला कि आज थोड़ी ज्यादा हो गई है, इसलिए ये हाल हुआ है, तो हम भी हँस कर टाल दिये ।”
“फिर यहाँ से कैसे गए वो ?”
“इहाँ से तो पैदल ही गए रहे । आगे जाके कोई कार-वार हो तो कह नहीं सकते । उनसे बात करके हम एक बार अंदर आ गए थे तो हमने देखा भी नहीं ।”
“जब वह लोग यहाँ से गए थे तो उस दूसरे आदमी की हालत कैसी थी ? क्या वह अपने पैरों पर चल रहा था ?”
“नहीं साहब ! ऐसा लग रहा था जैसे वह पूरा का पूरा टुन्न हो नशे में । वह दूसरा आदमी जिसका फोटो आप हमका दिखाई रहे... मोहित करके ... वही उस आदमी को सहारा देकर पूरा का पूरा संभाले रहे ।”
“ये बात तू हमें आज बता रहा है हरामखोर ! उस दिन नहीं बता सकता था । उस दिन तेरे मुँह में दही जम गया था ?”
“साहब, माफ करी हमका ! पुलिस को देख के बहुत ही डर लगता है तो हम उस वक्त डर गए थे, माई बाप !”
“आज भी कौन-सा अपने आप बोला है ! इसे बुलवाना पड़ा ।” रोशन वर्मा खिजा हुआ बोला ।
“ठीक है । इसके बयान पर दस्तखत करवाओ, जिसमें ये मोहित वर्मा के यहाँ होने की तसदीक करता है ।”
रोशन वर्मा ने लल्लन के दस्तखत, जो उसने टूटे-फूटे अक्षरों में किए, उसके बयान पर लिए और उसके स्थायी पते की तसदीक के लिए उसको अपने आधार कार्ड इत्यादि लेकर उसे शाम को थाने में पहुँचकर मुंशी के सामने एक बार फिर अपना बयान लिखवाने और दर्ज करवाने की ताकीद की ।
इसके बाद रणवीर, रोशन को साथ लेकर ‘मिलन’ ढाबे पर पहुँचा । ‘मिलन ढाबा’ एक छोटा-मोटा रेस्टोरेन्ट टाइप का टू इन वन ढाबा था और इस वक्त वहाँ पर कॉलेज स्टूडेंट्स की भीड़ जमा थी ।
ढाबे का मालिक वजीर सिंह नाम का एक शख्स था, जो वजीरे के नाम से अपने ग्राहकों द्वारा बुलाया जाता था । रणवीर और रोशन को देख उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई दीं । उनके रेस्टोरेंट में कदम रखते ही वह काउंटर पर एकदम खीसें निपोरता हुआ खड़ा हो गया ।
“आओ जी, बाउ जी ! आओ जी ! आज हमारे... ।”
“इस ढाबे के मालिक तुम्हीं हो ?” रणवीर ने पूछा ।
“आहो जी ! मालिक केढ़े सर जी, बस कम्म चल जाँदा हैगा जी ! तुस्सी बैठो जी !”
“तुमसे कुछ पूछताछ करनी है । कोई ऐसी जगह है जहाँ ये शोर-शराबा न हो और आराम से बैठकर बात हो सके ।”
“आहो जी ! ऊपर फैमिली कैबिन बने होए हैं जी ! की होया जनाब ? कादी (कैसी) पूछताछ करनी हेगी मेरे नाल ?”
“चलो, ऊपर बैठकर बात करते हैं ।”
“ओए छोटे ! ऊपर कैबिन दे अंदर कपड़ा मार जल्दी ।” इसके साथ ही इशारे से उसने नाश्ते के लिए भी अपने कारिंदे को इशारा किया । वजीर उनकी अगुवाई करता हुआ उन्हें ऊपर के कैबिन में ले गया ।
कैबिन में बैठते ही रणवीर ने प्रश्न दागा, “वजीरे, रात को कितने बजे तक ढाबा चलता है तुम्हारा ?”
“बाऊ जी ! ए तां गाहकी उत्ते... मेरा मतलब जब तक ग्राहक होते हैं । आम तौर पर ग्यारह बजे तक हम बंद कर देते हैं जी !”
“खाने की होम डिलीवरी भी करवाते हो तुम ?”
“साहब जी, ग्राहक खुद ही यहाँ दुकान से पैकिंग करवा के ले जाते हैं । हमारी होम डिलीवरी जैसी खुद की कोई सर्विस नहीं है, बाउ जी !”
तभी एक वेटर कॉफी और पकोड़े लेकर आ गया । वजीर के इशारे के हिसाब से नाश्ता तुरंत हाजिर था ।
“बड़ी क्विक सर्विस है, वजीरे !” रोशन कुछ खुश होते हुए बोला ।
“बाऊ जी, इसी सर्विस और स्वाद के दम पर तो हम मार्केट में टिके हुए हैं जी ! तुस्सी कॉफी लेना शुरू करो जी ! ए ठंडे हो जाण गे ।”
“तुम्हारी खाने की होम डिलीवरी की सर्विस नहीं है तो विक्की नाम का लड़के से तुम्हारे ढाबे का क्या संबंध है ?” रणवीर बातों का सूत्र फिर अपने हाथ में लेता हुआ बोला ।
“विक्की ! ओह, वह कंपनी वाला लड़का !”
“क्या नाम है उस कंपनी का ?”
“जी ‘सिज़्लर’ नाम है बाउ जी ! मुझे तो इसका मतलब ही नहीं याद रहन्दा । वह तो उनका अलग सिस्टम है, बाउजी ! हमने तो अपना ढाबा उनके साथ रजिस्टर करवा रखा है । आजकल कुछ लोग-बाग ऑनलाइन के चक्कर में वहाँ खाने की बुकिंग करवा देते हैं और उनका आदमी हमारे पास आकर बुक किए ऑर्डर की होम डिलीवरी कर देता है ।”
“फिर तुम अपने पास इन सारे ऑर्डर का रिकॉर्ड कैसे रखते हो ?”
“वह ऑनलाइन पेमेंट का रिकॉर्ड और ऑर्डर की आइटम की लिस्ट का मैसेज हमारे पास आता है और हम लोग टाइम के हिसाब से पैकिंग कर उनके कारिंदे को दे देते हैं ।”
“तुम्हारे ढाबे से किस दिन, क्या-क्या ऑर्डर किया गया और ग्राहकों के नाम-पते का रिकॉर्ड तो जरूर रखते होगे ?”
“वो तो रखना पड़ता है, बाउजी ! पूरे महीने की हमारी डिलीवरी और पेमेंट का मिलान करने के लिए हम सारा हिसाब रखते हैं । काउंटर पर सारा हिसाब मिल जाएगा ।”
“हमें तीन और चार सितंबर को तुम्हारे यहाँ से डिलीवर हुए ऑर्डर का रिकॉर्ड और उन ग्राहकों के एड्रेस और टेलीफ़ोन नंबर चाहिए ।”
“ठीक है, जनाब ! मैं कहता हूँ लड़कों को । आप इतने में कॉफी लीजिये न, ठंडी हो रही है ।” वजीर उठकर नीचे के काउंटर पर चला गया ।
“जनाब, वह सब तो विक्की ने पहले ही हमें दिए हुए हैं !” रोशन ने रणवीर को ध्यान दिलाया ।
“अच्छा है, इस बात की दोहरी तसदीक हो जाएगी । जो बात विक्की ने हमें बताई है, उसकी तसदीक तो ये लोग कर ही चुके हैं । चलो, कुछ ले लो जल्दी से । वहाँ वेदपाल भी मेरा इंतजार करता होगा ।” रणवीर कॉफी की चुस्कियाँ लेने लगा ।
जब वजीर वापिस आया तो उसके पास सितंबर के महीने तक का पूरा रिकॉर्ड था । रणवीर ने उससे वह रिकॉर्ड ले लिया और उसे देखने लगा । चार तारीख के ऑर्डर लिस्ट में तकरीबन 15 घरों में ऑर्डर सप्लाई किया गया था । तभी रणवीर का फोन वाइब्रेट होने लगा ।
वेदपाल लाइन पर था । उसकी कॉल सुनकर वह तुरंत खड़ा हो गया और सारी चीजें समेटकर उसने रोशन को चलने का इशारा किया । वह लोग वापिस संत नगर पहुँचे । वेदपाल तब तक डॉग स्क्वाड को बुला चुका था और उनकी कार्यवाही शुरू हो चुकी थी । आसपास के लोग जिज्ञासा की वजह से वहाँ इकट्ठे हो गए थे । रणवीर ने तुरंत उन सबको वहाँ से हटाने के लिए दिनेश और अनिल को कहा । स्निफर डॉग अपना काम शुरू कर चुके थे । वेदपाल और रणवीर की साँसें उनके पीछे-पीछे दौड़ते हुए फूलने लगी थी । जिस तरह से वह बस्ती में घूम रहे थे, उससे लगता नहीं था कि आज उन्हें कोई सफलता मिलने वाली थी ।
अचानक एक स्निफर डॉग ‘जॉनी’ भोंकता हुआ बड़ी तेजी से संजय बंसल के घर के सामने से निकालने वाली एक गली में भागने लगा । उसकी चैन थामे आदमी को बड़ी मुश्किल से उसे काबू में रख उसके साथ दौड़ना पड़ा । कुछ पाँच सौ मीटर दौड़ने के बाद वह एक मेनहोल के ढक्कन के पास चक्कर काटने लगा ।
दूसरा स्निफर डॉग ‘रॉकी’ भी वहाँ पहुँचकर ‘जॉनी’ के सुर में सुर मिलाने लगा । जैसे ही मेनहोल का ढक्कन हटाया गया, बड़ी तेज दुर्गंध चारों तरफ फैल गई ।
“यहाँ वह सामान तो मिलने से रहा जो तू ढूँढ़ रहा है, रणवीर ! हाँ, अगर कोई गड़ा मुर्दा अगर तूने उखाड़ना है तो देख ले !”
“अब इतना तमाशा इन गलियों में कर लिया, तो थोड़ा और सही । रोशन, इस गटर में तलाशी का इंतजाम करो !”
“जी जनाब !” इसके बाद रोशन अपने फोन में उलझ गया ।
कोई दो घंटे की भारी मशक्कत के बाद एक औरत की क्षत-विक्षत लाश उस मेनहोल से बरामद हुई । इंसानी जिस्म के नाम पर सिर्फ हड्डियों का ढांचा रह गया था । उस बदन पर ऐसी कोई साबुत चीज नहीं थी जिससे पुलिस को कोई सुराग मिल सके । बड़ी मुश्किल से उस लाश को वहाँ से निकालकर और उसका पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए हॉस्पिटल भेज दिया गया ।
तेजपाल अपना काम खत्म कर अपनी टीम के साथ वापिस रवाना हो गया । इसी दौरान वरुण अपने कैमरामैन साथी नवीन के साथ धूल उड़ाता हुआ वहाँ पर आ पहुँचा ।
“नमस्ते, बड़े दारोगा जी ! आप भी कोई दिन खाली नहीं जाने देते । आज भी लगता है यहाँ कोई मिल गया ।”
“हाँ, मिल ही गया, या शायद गई । लगता है, मिलने को बुलाया है तुझे ।”
“राम-राम, दारोगा जी ! मेरा तो फिर भी दिल मजबूत है पर नवीन तो उसके दर्शन बर्दाश्त नहीं कर पाएगा । पर जो मिली है, उसका पिछले केस से कोई रिश्ता हो सकता है, बड़े दारोगा जी ?”
“नहीं, अभी कोई रिश्ता नहीं है । ये सब तो जाँच-पड़ताल करने के बाद ही पता चलेगा कि उसका किससे रिश्ता है ! अब ये कैमरा बंद कर, नहीं तो... ।”
“जी, यही तो मेरी रोजी-रोटी है, बड़े दरोगा जी ! आप इसे ही बंद करवा रहे हो । ऊपर वाला आपको हर रोज बरकत दे ।”
“क्या बकता है ! लोगों के मरने में तुझे बरकत नजर आती है ।”
“अरे रे रे ! वह सही भावना के साथ शब्द गलत निकल गए । बरकत नहीं, वह सफलता कहना चाहता था । आपकी सफलता में ही हमारी बरकत है । रोजी रोटी चलती... ।”
“ठीक है, वरुण ! इसके बारे में डिटेल्स कल पोस्टमार्टम के बाद पता चलेंगी । कल पता करना ।”
“ओके, बड़े दारोगा जी ! कल डॉक्टर नवनीत से... सॉरी... आपसे पता कर लूँगा ।”
“हम्म । चलो चलें रोशन ! बाकी लोगों को भी वापिस चलने के लिए कह दो ।”
“बड़े दारोगा जी ! वैसे तो शायद आपको पता ही होगा, फिर भी एक बात मैं आपको बता देता हूँ ।”
“क्या ?”
“एसपी प्रभात जोशी का आज ट्रान्सफर हो गया है । उनकी जगह एसपी ब्रिज लाल सिंह यहाँ के नए एसपी होंगे । लगता है बड़े दरोगा जी, बड़े लोगों को उनकी नारकॉटिक्स की रेड पसंद नहीं आई ।”
एक ठंडी आह भरकर रणवीर ने रोशन वर्मा और दिनेश की तरफ देखा ।
“ये सरकारी मसले हैं, वरुण ! यूँ ही चलते रहते हैं ।” रणवीर अपनी पीसीआर वैन में सवार होते हुए निर्विकार भाव से बोला और गाड़ी मंथर गति से थाने की तरफ दौड़ चली ।
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