विकास ने अपनी इतनी लंबी दिलजली कुछ इस विचित्र ढंग से उछल-उछलकर और विशेष लहजे में सुनाई कि टुम्बकटू को बड़ा आनंद आया। उसे क्या पता था कि सामने खड़ा हुआ यह तेरह वर्षीय शैतान शातिरों के शातिर अलफांसे का चेला है। जहां एक ओर विकास टुम्बकटू को विजय जैसी हरकतों में उलझा रहा था, वहीं उस शैतान के नन्हे-से मस्तिष्क में अपने गुरु अलफांसे के

द्वारा सिखाए गए अनेकों दांवों में से एक दांव कुलबुला रहा था, अत: टुम्बकटू को विकास ने इस लंबी दिलजली के साथ-साथ अपनी विचित्र हरकतों में उलझाकर रेशम की डोरी में एक ऐसा खौफनाक फंदा बना लिया था, जिसकी चपेट में आया व्यक्ति उसके गुरु अलफांसे के कथनानुसार पानी नहीं मांगता। इस दिलजली के मध्य वह खतरनाक शैतान रेशम की डोरी को फंदे की शक्ल दे चुका था।


"बहुत खूब विकास!" टुम्बकटू प्रशंसा के स्वर में बोला-- "बहुत खूब-----वास्तव में तुमने अपने झकझकिए अंकल को भी मात कर दिया।"


."अरे...!" विकास अचानक टुम्बकटू के पीछे देखकर उछल पड़ा-----"झकझकिए अंकल, आप यहां कैसे?"


और वास्तव में यह पल टुम्बकटू और विकास की फुर्ती का भयानक फल था।


एक ओर छलावा था तो दूसरी ओर शैतान। दोनों ही शातिर ----- मौत को भी कंपकंपा देने वाले!


टुम्बकटू अगर भयानक छलावा था तो विकास खौफनाक शैतान!


दोनों ने ही अपने-अपने कार्य भयानक तेजी और दक्षता के साथ किए थे। दोनों में से कोई भी कम न था। टुम्बकटू अगर मौत था तो विकास यमराज! सब कुछ पलक झपकते ही हो गया। सिर्फ इतनी देर में दृश्य परिवर्तित हो गया ----- जितनी देर में एक बार पलक झपकती है। दृश्य में जो परिवर्तन आया-----वह इतना आश्चर्यजनक था कि विश्वास नहीं आता था।


हुआ यूं कि जैसे ही विकास टुम्बकटू के पीछे देखकर ऐसे चीखा, मानो पीछे विजय हो। वैसे ही वह भयानक छलावा इतनी तेजी के साथ पीछे घूमा कि नजर भी न आया, किंतु पीछे रिक्त स्थान देखकर उसके मस्तिष्क में खतरे की घंटियां घनघनाई और


वह पहले से भी कहीं अधिक फुर्ती के साथ विकास की और घूमा परंतु!


परंतु तब तक शातिरों के शातिर अलफांसे का यह तेरह वर्षीय खतरनाक चेला अपना जौहर दिखा चुका था। उसने पहले ही सब कुछ सोच-समझकर उसके पीछे देखकर वाक्य कहा था। जैसे ही टुम्बकटू दूसरी ओर घूमा, इधर इस भयानक शैतान ने अपनी रेशम की डोरी का वह फंदा इस प्रकार फेंका कि फंदा एक वृक्ष की लंबी डाल के ऊपर से होता हुआ... तब तक टुम्बकटू पीछे भी न देखकर पलट पड़ा था.... बस उसी पल उस खतरनाक छलावे की पतली शुतुरमुर्गी गरदन में इस खौफनाक शैतान द्वारा फेंका गया फंदा जा गिरा।


इससे पूर्व कि टुम्बकटू स्वयं को संभाल सके-----विकास ने अपनी पूर्ण भयानकता और फुर्ती का परिचय दिया।


ज्यों ही फंदा टुम्बकटू की गरदन में जाकर फंसा, त्यों ही विकास ने न सिर्फ अपने हाथ में मौजूद रेशम की डोरी के दूसरे सिरे को तीव्र झटका दिया, बल्कि वह डोरी को संभालकर विपरीत दिशा में दौड़ लिया।


परिणामस्वरूप टुम्बकटू के जिस्म को एक तीव्र झटका लगा, सब कुछ क्योंकि अत्यधिक तेजी के साथ हुआ था, इसलिए वह कुछ समझ न सका और रेशम की मजबूत डोरी ने सिर्फ उसके गले को जकड़ लिया, बल्कि उसका जिस्म डोरी के साथ ही एक झटके के साथ ऊपर वृक्ष की डाल की ओर बढ़ा।


पलक झपकते ही दृश्य में जो परिवर्तन आया ----वह इस प्रकार था ।


टुम्बकटू हवा में लटका हुआ था। रेशम की डोरी का वह फंदा उसके गले में पड़ा था और डोरी वृक्ष के डाल से होती हुई विकास के हाथ में थी।


टुम्बकटू ने अपने हाथ डोरी की ओर बढ़ाए


- इससे पूर्व कि वह डोरी को तोड़ता, उस खतरनाक शैतान ने एक अन्य भयानक हरकत कर दिखाई।


टुम्बकटू का हल्का-फुल्का-सा जिस्म फिर तने की ओर उठा, उसने फिर डोरी की तरफ हाथ बढ़ाए, किंतु उससे पूर्व ही एक अन्य तीव्र झटका लगा और वह फिर धड़ाम से जंगल की धरती पर जा गिरा।


विकास ने उसे फिर खींचा और फिर पटक दिया ! फिर खींचा और फिर पटक दिया। क्रम तब तक चलता रहा, जब तक कि स्वयं विकास न थक गया। कुछ देर बाद विकास तो सिर्फ थका ही, टुम्बकटू की तो हड्डियों का दिवाला निकल गया था।


फिर एक बार विकास ने टुम्बकटू को इतने नीचे लटकाया कि छोड़कर फुर्ती के साथ उसने टुम्बकटू के दोनों हाथों को भी डोरी की लपेट में ले लिया, इस बीच टुम्बकटू विकास के सिर पर चपत मारना चाहता था, परंतु ऐसा लगता था, जैसे इस भयानक शैतान पर इस समय खून सवार था।


कई स्थानों पर चोट लगने के कारण टुम्बकटू छलावे जैसी फुर्ती न दिखा सका था, जबकि तेरह वर्षीय शैतान अपनी पूर्ण शैतानियत पर था। तभी तो टुम्बकटू का चपत खाली गया, क्योंकि विकास नीचे बैठ गया। अब विकास ने टुम्बकटू के दोनों हाथ भी डोरी से बांध दिए थे। बांधने के बाद वह उछलकर शरारत के साथ बोला।


"प्यारे लंबू अंकल... यह डोरी कार वाले ने शायद सामान बांधने के लिए डिक्की में रख रखी थी, लेकिन इसका क्या किया जाए कि यह आपकी मौत बन गई!"


टुम्बकटू को विकास ने रेशम की डोरी में कुछ इस प्रकार कस दिया था कि वह इस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं था। परंतु फिर भी टुम्बकटू के होंठों पर वही चिरस्थायी मुस्कान थी। वह संयत स्वर में बोला।


-----"प्यारे विकास बेटे... चांद पर मैं अपराधी जगत का बादशाह कहलाता हूं और यह भी दावे से कह सकता हूं कि धरती का कोई भी मानव मेरे चैलेंज को पराजित नहीं कर सकता, किंतु तुम्हें देखकर ऐसा लगता है कि तुम पहले ऐसे व्यक्ति हो, जो धरती का नाम ऊंचा कर सकते हो। आज तक टुम्बकटू को इस प्रकार कोई बेबस नहीं कर सका है।"


. ----- " मैंने आपकी यह स्थिति सिर्फ एक दिलजली सुनाने के लिए की है।" विकास के मस्तिष्क का शरारती कीड़ा कुलबुला रहा था।


सुनकर टुम्बकटू मुस्कराया और बोला।


-----"वास्तव में तुम आदमी हो विकास... मैं उसे ही आदमी समझता हूं जो भयानक हो, खतरनाक हो, मस्तिष्क रखता हो और साथ ही प्रत्येक स्थिति में स्वयं को संयत रखकर हंसता रहे और हसाता रहे। सच मानना, तुम पहले ऐसे व्यक्ति हो, जिसने मुझे इस बात के लिए संतुष्ट किया कि वास्तव में धरती पर टुम्बकटू से टकराने के लिए कम-से-कम एक हस्ती तो है ही।"


ऐसा लगता था, जैसे टुम्बकटू को अपनी स्थिति का कोई विशेष क्षोभ न हो।


."लंबू अंकल, आप तो भाषण देने लगे।" विकास ने कहा।


-----"अब तुम मुझे लेकर कैसे जाओगे?" टुम्बकटू मुस्कराकर बोला ।


-"यही तो सोच रहा हूं लंबू अंकल!" विकास सोचता हुआ बोला----- "अगर मैंने तुम्हें यहां से उतारा तो तुम्हारा एक ही चपत मुझे खुदागंज की सैर करा देगा, अब यही सोच रहा हूं कि आपको झकझकिए अंकल के पास कैसे ले जाया जाए?"


." ये तुम्हारा सोचने का विषय है।'' टुम्बकटू मुस्कराकर बोला।


." वो तो मैं सोच ही रहा हूं।" विकास वास्तव में सोचता हुआ बोला।


." अच्छा मेरी जेब से एक सिगरेट निकालकर मेरे होंठों से तो लगा दो।" टुम्बकटू विकास ही ओर देखता हुआ बोला।


"छी...अंकल!" विकास बुरा-सा मुंह बनाकर बोला।


-" आपको हमारे सामने सिगरेट का नाम लेते शर्म नहीं आती?"


"बहुत चालाक हो!"


'जी हां... मेरे गुरु ने कहा था कि कैद में आए दुश्मन की कभी कोई इच्छा पूरी मत करना।"


"कौन है तुम्हारा गुरु?"


." अलफांसे दी ग्रेट "


"कहां है?"


----- "उनका न घर है ना ठिकाना, दैत्य की भांति कहीं भी प्रकट हो जाते हैं।"


-"खैर, उससे भी कहीं अवश्य मुलाकात होगी।"


"होगी क्यों नहीं!" विकास ने कहा और अत्यंत मजबूती के साथ उसने टुम्बकटू को इस प्रकार बांधा कि किसी भी स्थिति में वह खुल नहीं सकता था। टुम्बकटू को डोरी से बांधकर उसने डाल पर लटका दिया और बोला ।


."अच्छा लंबू अंकल... अब आपकी यात्रा का सामान जुटाता हूं।"


कहकर विकास उधर ही लौटने लगा, जिधर से वे आए थे, परंतु जाता-जाता वह बोला ----- "देखो अंकल! यही लटके रहना, वरना मैं आपको कभी भी दिलजली नहीं सुनाऊंगा।"


-"तुम्हारी दिलजली बड़ी महंगी पड़ी बेटे !'' टुम्बकटू वहीं लटका-लटका मुस्कराकर बोला, किंतु विकास जा चुका था।


टुम्बकटू पेड़ पर लटका तेरह वर्षीय उस शैतान…..यानी विकास के विषय में सोचता रहा.. .उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि विकास का अगला कदम क्या होगा?


टुम्बकटू की प्रत्येक हरकत विजय के लिए आश्चर्य बनती जा रही थी। उसकी कोठी पर उससे जो बातें हुई थीं ----- वे एकदम नवीन और आश्चर्यजनक थीं। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि चांद के इस अपराधी को किस प्रकार वश में करे। टुम्बकटू वास्तव में छलावा था। पता नहीं कौन-से पल वह कहां हो? और अंत में वह जिस ढंग से नाली के माध्यम से कमरे से बाहर निकल गया था, वह एकदम अविश्वसनीय था। किंतु विजय को इसलिए विश्वास करना पड़ रहा था, क्योंकि यह सब उसी के सामने हुआ था।


उसने टुम्बकटू के विषय में बहुत सोचा। ब्लैक ब्वॉय से भी उस पर विचार-विमर्श किया - किंतु समझ में नहीं आया कि इस विचित्र नमूने का किया क्या जाए? 


जब टुम्बकटू उसकी कोठी से गायब हुआ और जब वह और रघुनाथ उसे खोजने का प्रयास कर रहे थे तो उन्हें झाड़ियों में पड़ी एक साइकिल मिली थी, जिसे रघुनाथ तुरंत पहचान गया था कि वह विकास की साइकिल है।


रघुनाथ के मुंह से यह वाक्य निकला था और विजय के मस्तिष्क में खतरे की घंटियां घनघनाने लगी थी। उसे विश्वास हो गया कि यह शैतान लड़का इस केस में भी कूद पड़ा है। वह विकास की शैतानियत और बुद्धि से भली-भांति परिचित था, किंतु फिर भी विकास था तो एक बालक ही। उसे पूर्ण विश्वास था कि विकास टुम्बकटू के चक्कर में पड़ चुका है और यही बात विजय के मस्तिष्क में एक कांटे की भांति चुभ रही थी। उसे भय था कि कहीं विकास किसी परेशानी में न फंस जाए। किंतु उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस खतरनाक लड़के को कहां खोजा जाए?


इन्हीं परेशानियों में उलझा वह अपनी कार में बैठा निरुद्देश्य राजनगर के चक्कर लगा रहा था। जब वह बोर हो गया तो उसने अपना रुख आशा की कोठी की ओर कर दिया। अब वह अपना कुछ मनोरजंन करना चाहता था।


जब वह आशा के पास उसके फ्लैट पर पहुंचा तो वह आराम से बिस्तर पर पड़ी एक जासूसी उपन्यास पढ़ रही थी । विजय अपने ही ढंग से बिना किसी सूचना के अंदर प्रविष्ट होता हुआ चीखा!


"हैलो, आशा डार्लिंग!'


आशा एकदम चौंक पड़ी। वह अस्त-व्यस्त-सी अपने बिस्तर पर लेटी थी। अचानक विजय का बेहूदा वाक्य सुनकर वह एकदम खड़ी हो गई। उपन्यास बिस्तर पर ही पड़ा रह गया और वह स्वयं संभलकर बोली ।


-"विजय, तुम्हें तमीज कब आएगी?"


"जब खरीदकर लाएंगे।" विजय आराम से बिस्तर पर बैठता हुआ बोला ।


."किसी के कमरे में प्रविष्ट होने से पूर्व उसकी इजाजत ले लेनी चाहिए।" आशा प्रत्युत्तर में तुनककर बोली ।


जबकि वास्तविकता ये थी कि विजय को यहां देखकर उसे अपार हर्ष की अनुभूति हुई थी क्योंकि वह दिल ही दिल में विजय से प्यार करती थी !


"हाए!" विजय निहायत ही बदतमीजी के साथ एक हाथ अपनी छाती पर मारकर बोला--"यानी कि हमें अपनी मिस गोगियापाशा के कमरे में आने के लिए इजाजत लेनी होगी।"


"अच्छा, बोर मत करो।" आशा बोली---- "लाओ, वह उपन्यास मुझे दो।"


."अरे मिस..." और विजय अभी कुछ कहने ही जा रहा था कि एकाएक बुरी तरह चौंक पड़ा। उसके गले में लटके

लॉकिट की सुई रह-रहकर उसके गले में चुभ रही थी। वह इसका मतलब साफ जानता था कि कोई उससे संबंध स्थापित करना चाहता है ----- किंतु उसकी समझ में नहीं आया कि इस समय कौन हो सकता है? परंतु उसने लॉकेट ट्रांसमीटर ऑन किया और बोला-----"हैलो.. .हैलो ।"


"आलू... आलू... अंकल... आलू।" दूसरी ओर से विकास बोला।


. "कौन विकास!'' विजय चौंकता हुआ बोला-----"अबे मियां दिलजले, ये आलू... आलू क्या कर रहे हो ? शब्द हैलो होता है। "


-----''मैं बोई कैरिया था अंकल, ओवर।" दूसरी ओर से विकास शरारत के साथ बोला।


"अबे, तुम कहां हो? ओवर ।" विजय ने प्रश्न किया । आशा गंभीर थी ।


"अभी कुछ ही समय बाद आप एक ऐसा तमाशा देखेंगे अंकल, जिससे सारा विश्व चकित रह जाएगा। ओवर।" विकास ने कहा।


"अबे, कैसा तमाशा?"


." आप स्वयं देख लेना।" दूसरी ओर से विकास ने कहा और संबंध-विच्छेद कर दिया। विजय लॉकेट हाथ में लिए काठ के उल्लू की भांति खड़ा रह गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा कि विकास क्या लड़का है? इस समय वह कहां है? और कुछ ही देर बाद वह क्या खेल दिखाना चाहता है ?


न जाने क्यों बार-बार विकास उसके मस्तिष्क में एक प्रश्न

बनकर रह जाता था। अभी वह विकास के विषय में सोच ही रहा था कि वह अपने स्थान से इस प्रकार उछल पड़ा, मानो अचानक पलंग गर्म हो गया हो ! भयानक खतरे का आभास होने लगा!


चौंककर आश्चर्य के साथ उसने आशा को देखा तो पाया कि आशा के नेत्रों में भी महान आश्चर्य झांक रहा था। वह भी शायद उसी बात को महसूस कर रही थी----- जिसे वह स्वयं


कमरे में मधुर संगीत की लहरें गूंज रही थीं। ऐसा मधुर संगीत कि उन्हें लगा जैसे वे मदहोश होते जा रहे हैं। दोनों पहले तो एक-दूसरे की ओर देखते रहे तथा फिर अचानक आशा चौंककर बोली ." विजय... यह तो मर्डरलैंड का संगीत है।"


---- "लगता है, हमारी मम्मी यहां आने वाली हैं।"


अभी विजय ने इतना ही कहा था कि दोनों की दृष्टियां एक ही स्थान पर स्थिर हो गई। वह कमरे की एक खिड़की थी, जो बंद थी ----- किंतु उसकी दरारों से एक अजीब-सा नीले और सुनहरे रंग का संयुक्त धुआं संगीत की लहरों के साथ निरंतर कमरे में प्रविष्ट होता जा रहा था। दोनों आंखें फाड़े उसे देख रहे थे।


संगीत की लहरों के साथ वह अजीब-सा धुआं निरंतर कमरे में प्रविष्ट होता रहा और धीमे-धीमे वह एकत्रित होता गया और उसने एक मानव आकृति का रूप ले लिया। एकाएक वहां शहद से भी मधुर आवाज गूंजी।


"हैलो मिस्टर विजय!'


."अरे.. मम्मी!'' विजय खुश होता हुआ बोला- --- "तुम तो दरारों में आ गई।"


आशा जान गई कि धुएं की यह आकृति प्रिंसेज ऑफ मर्डरलैंड यानी जैक्सन के अतिरिक्त कोई नहीं है । वह चुपचाप बैठी रही।


धुएं की वह मानव आकृति आराम से सामने के सोफे पर बैठ गई और फिर विजय और आशा के देखते ही देखते वह -


अजीब-सा धुंआ विलुप्त होने लगा और उसके स्थान पर वहां सौंदर्य को भी लजा देने वाली सुंदरी, और साथ ही मौत को भी कंपकंपा देने वाली प्रिंसेज ऑफ मर्डरलैंड यानी जैक्सन बैठी थी। उसके गुलाबी अधरों पर बड़ी मोहक मुस्कान थी। उसके प्यारे-प्यारे नेत्रों में एक विशेष खिंचाव था। पतली सुराहीदार गरदन इतनी गोरी व कोमल कि अगर वह शराब का एक घूंट भी पिए तो उसके सामने बैठा व्यक्ति कंठ के बाहर से ही देख ले कि शराब का रंग कैसा है ?


-----"क्या देख रहे हो विजय ? " अचानक जैक्सन की मधुर आवाज ने विजय और आशा की तंद्रा भंग की।


"देख रहा हूं मम्मी, कि अब तुम्हारे क्या इरादे हो सकते हैं?''


----"किस विषय पर?"


"अचानक यहां आने का मतलब?"


"टुम्बकटू नामक अपराधी का चैलेंज । "


-----''मम्मी!'' विजय बोला- "उस साले को छलावा कहते हैं। लगता है, वह तुम्हारी नाक की नकेल बन जाएगा।"


-"मिस्टर विजय!" जैसन गंभीर स्वर में बोली--~--''हमारी भी प्रतिज्ञा है कि टुम्बकटू के जीवित रहते हुए ही हम वह माइक्रोफिल्म प्राप्त करेंगे।"


उसके बाद।


थोड़ी देर तक जैक्सन टुम्बकटू के विषय में विजय से बात करती रही और फिर अचानक धुएं में परिवर्तित होने लगी, तभी विजय 'मम्मी-मम्मी' चीखा, परंतु जैक्सन यह कहकर कमरे से गायब हो गई कि शीघ्र ही फिर मुलाकात होगी।


जैक्सन के जाने के पश्चात कुछ देर तक विजय आशा से बातें करता रहा और फिर उठकर चल दिया। इस समय वह कार में बैठा रघुनाथ की कोठी की ओर जा रहा था उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि विकास आखिर बोल कहां से रहा था? वह क्या खेल दिखाना चाहता है? और उसका अभिप्राय: क्या है?


जैक्सन को देखकर उसे अधिक आश्चर्य नहीं हुआ था। क्योंकि केस की स्थिति पहले ही बता रही थी कि सिंगही और जैक्सन दोनों ही टुम्बकटू के चैलेंज को स्वीकार करते हुए उसके पीछे लगेंगे। फिलहाल उसे सिंगही की प्रतीक्षा और थी।


वैसे विजय उस समय की कल्पना कर रहा था, जब सिंगही और जैक्सन का टकराव होगा। वह निर्णय न कर सका कि उनमें से कौन अधिक खतरनाक है? वह विचारों में खोया हुआ था और कार की गति अति तीव्र थी।


"कार अधिक तेज मत चलाया करो भतीजे!" एकाएक विजय इस प्रकार उछला, मानो उसकी कार एक धमाके के साथ उड़ गई हो। हाथ कांपने के कारण कार डगमगा गई। अगर विजय संभाल न लेता तो निश्चित रूप से कोई भयानक दुर्घटना हो गई होती। वह इस आवाज को लाखों में पहचान सकता था। यह आवाज शत-प्रतिशत संसार के भयानकतम अपराधी सिंगही के अतिरिक्त किसी की न थी। इस प्रकार अचानक सिंगही की आवाज सुनकर उसका चौंक पड़ना स्वाभाविक था।


-----"संभलकर भतीजे!" सिंगही का भयानक भर्राया हुआ लहजा कार के इंजन की ध्वनि को चीरता हुआ गूंजा।


अब तक विजय स्वयं को संभाल चुका था। अत: कार की गति अपेक्षाकृत धीमी करके उसने सामने लगे शीशे में पिछली सीट पर बैठे सिंगही के भयानक चेहरे को देखा-----सिंगही का चेहरा अत्यंत ही खौफनाक और भयानक था। उसे देखकर ऐसा लगता, जैसे कोई मुर्दा कब्र फाड़कर अचानक जीवित हो उठा हो । एक जीता-जागता कंकाल! हल्दी की भांति पीला रंग। गड्ढे में धंसी छोटी और चमकीली आखें, पिचके हुए गाल और सफेद दाढ़ी !


विजय ने देखा कि उस भयानक मुर्दे के खौफनाक होंठों पर विचित्र - सी जहरीली मुस्कान थी। विजय कार को एक नोड पर मोड़ता हुआ बोला।


-"चचा, हो ना पूरे वनस्पति।"


"क्यों?" उसकी आवाज अजीब-सा डरावनापन लिए थी। 


"तुम यहां-कहां अलादीन के चिराग की तरह प्रकट हो गए?"


"तुम्हारा प्यार खींच लाया।"


"मेरा प्यार या टुम्बकदू का चैलेंज?"


-"जैसा भी तुम समझो। "


उसके बाद! सिंगही ने भी विजय से टुम्बकटू के विषय में अनेक जानकारियां एकत्रित कीं, विजय ने यह भी बताया कि जैक्सन भी इसी सिलसिले में उससे मिल चुकी है। यूं विजय उसे बातें बता तो अवश्य रहा था, किंतु उसके मस्तिष्क में प्रत्येक क्षण यही बात चकरा रही थी कि वह इस समय सिंगही पर हाथ कैसे डाले, परंतु उसे कोई उपयुक्त उपाय न सूझ रहा था, वैसे उसने कार का रुख कोतवाली की ओर कर दिया था। तभी सिंगही बोला।


- ''मैं इस नमूने को जिंदा ही गिरफ्तार करूंगा भतीजे!"


"ये नमूना बहुत खतरनाक है चचा!" विजय उसे उलझाने का प्रयास करता हुआ बोला।


-'" उससे ज्यादा तो तुम खतरनाक हो बेटे ! " सिंगही बोला।