शबनम शाम छ: बजे तक रुकी ।
उसके वहां से जाने से पहले दोनों ने आपस में यह फैसला कर लिया कि वह या मनोहर कभी उस होटल में कदम नहीं रखेंगे । वे हमेशा सार्वजनिक स्थल पर मिलेंगे ताकि विकास के पकड़े जाने पर वे लोग कह सकें कि उनकी तो विकास से इत्तफाक से मुलाकात हो गई थी और उस मुलाकात से पहले उन्होंने विकास को कभी कहीं नहीं देखा था । होटल में उन लोगों के विकास के साथ पकड़े जाने से उन्हें विकास का संगी-साथी समझा जा सकता था और फिर उसके साथ-साथ वे भी गिरफ्तार हो सकते थे ।
शबनम ने कहा कि वह मनोहर से कहेगी कि वह इस बारे में छानबीन करे और फिर अगली सुबह विकास से सम्पर्क स्थापित करे ।
अन्धेरा हो जाने के बाद विकास अपनी जैकेट और टोपी पहने डिनर की नीयत से बाहर निकला ।
वह उसी रेस्टोरेन्ट में पहुंचा जिसमें उसने लंच किया था । रेस्टोरेन्ट के बाहर एक छोकरा शाम का अखबार बेच रहा था । उसने एक प्रति खरीद ली और भीतर दाखिल हुआ ।
भोजन का आर्डर देने से पहले उसने अखबार पर निगाह डाली ।
महाजन के कत्ल के समाचार से सारा मुख पृष्ठ रंगा पड़ा था । लिखा था :
नगर में तब सनसनी फैल गई जब स्थानीय कार डीलर और अपराध निरोधक कमेटी का चेयरमैन प्रकाश देव महाजन, स्वयं को कत्ल कर दिये जाने की धमकी हासिल होने के चौबीस घन्टों के भीतर अपने आफिस में दिन दहाड़े कत्ल कर दिया गया । कल रात आठ बजे महाजन को अपने घर के लेटर बक्स में एक चिट्ठी पड़ी मिली थी जो अखबार में से अक्षर काट-काट कर बनाई गई थी और जिसमें उसे जान से मार डालने की धमकी दी गई थी। पुलिस की धारणा है कि धमकी भरी उस चिट्ठी का महाजन के कत्ल से कोई रिश्ता नहीं है। उनकी इस धारणा के पीझे उनके इस दावे का हाथ है कि वे जानते हैं कि महाजन की हत्या किसने की है ।
हत्या महाजन के रिचमंड रोड पर स्थित आफिस में उस वक्त हुई बताई जाती है जब हत्प्राण मेहतानी नाम के एक अन्य कार डीलर से टेलीफोन पर बात कर रहा था । मेहतानी ने दूसरे सिरे पर गोली चलने की आवाज साफ सुनी थी, उसी ने घटना की खबर पुलिस को दी थी और उन्हें कथित हत्यारे के बारे में बताया था ।
स्थानीय पुलिस चीफ डी एस पी राजेश्वर दयाल का कहना है कि महाजन की हत्या एक ऐसे आदमी द्वारा की गई थी जो एक बोगस चैक उसके सिर थोपने की कोशिश कर रहा था । महाजन टेलीफोन पर मेहतानी के हत्यारे के बारे में कुछ सवाल कर रहा था और उसे पुलिस बुलाने को कह रहा था जब कि हत्यारे ने वह वार्तालाप सुन लिया था और गिरफ्तारी से बचने के लिए महाजन को गोली से उड़ा दिया था ।
पुलिस के अनुसार कथित हत्यारा विकास गुप्ता नाम का एक व्यक्ति था जो स्थानीय होटल रिवर व्यू में ठहरा हुआ था और हत्या के थोड़ा देर बाद तक वहां के कमरा नम्बर 312 में मौजूद था । कथित हत्यारा होटल में पुलिस के पहुंचने से कुछ ही क्षण पहले बिना होटल का बिल अदा किये वहां से भाग खड़ा हुआ था ।
उसकी गिरफतारी के वारंट जारी कर दिये गये हैं ।
कथित हत्यारा लगभग पौने छः फुट कद का, लगभग तीस वर्ष आयु का एक बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व वाला नौजवान बताया जाता है । जब वह आखिरी बार देखा गया था तो उस समय वह एक हल्के भूरे रंग का गैबरडीन का सूट पहने था और सफेद कमीज पर लाल रंग की प्लेन की टाई लगाये हुए था । पुलिस का जनता से अनुरोध है कि अगर उस व्यक्ति को किसी ने कहीं देखा हो तो वह फौरन पुलिस को इत्तला दे ।
होटल रिवर व्यू के रजिस्ट्रेशन के रिकार्ड में से पुलिस को अभियुक्त का दिल्ली का एक पता मिला है जहां से उसके बारे में छानबीन करने की खातिर दिल्ली पुलिस को पहले ही एक टेलीग्राम भेजी जा चुकी है। वैसे डी. एस. पी. राजेश्वर दयाल का कहना है कि कथित हत्यारे ने अपना नाम पता जरूर गलत लिखवाया होगा इसलिए दिल्ली पुलिस से कोई कारआमद जानकारी हासिल होने की सम्भावना नहीं के बराबर है ।
डी. एस. पी. राजेश्वर दयाल ने हमारे सम्वाददाता को बताया है कि यह बात निश्चत है कि हत्प्राण को पिछली शाम मिली कत्ल की धमकी का उसकी हत्या से कोई सम्बन्ध नहीं । वह कत्ल की धमकी जरूर किसी शरारती और गैरजिम्मेदार आदमी का काम था । डी. एस. पी. साहब को हमारे सम्वाददाता ने जब यह याद दिलाया कि महाजन का अपने जीवन काल में यह ख्याल था कि उसे मिली कत्ल की धमकी के पीछे बख्तावर सिंह का हाथ था तो उन्होंने उस ख्याल को एकदम बचकाना और बेबुनियाद बताया ।
पुलिस ने आशा व्यक्त की है कि वे अड़तालीस घन्टों के भीतर-भीतर हत्यारे को गिरफ्तार कर लेंगे । विकास ने अखबार लपेट कर एक तरफ डाल दिया ।
डी. एस. पी. के बयान से साफ जाहिर होता था कि पुलिस महाजन की हत्या को गैंग किलिंग मानना ही नहीं चाहती थी । प्रत्यक्षतः वे लोग विकास के ही पीछे पड़े रहने का इरादा रखते थे। डी एस पी जरूर बख्तावर की मुट्ठी में था । तभी वह उसकी तरफ कोई उंगली नहीं उठने देना चाहता था ।
यानी कि पुलिस से इन्साफ हासिल होने की उम्मीद करना बेकार था ।
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अगली सुबह दोपहर तक विकास अपने होटल के कमरे में शबनम की टेलीफोन काल के इन्तजार में बैठा रहा ।
अन्त में दोपहर से थोड़ी देर बाद उसका फोन आया ।
“देर से फोन करने के लिये माफी चाहती हूं । " - वह बोली- "लेकिन मैं क्या करती ? मेरा मनोहर से अभी सम्पर्क हुआ है।"
"कुछ बात बनी ?" - विकास ने आशापूर्ण स्वर में पूछा
“पता नहीं । पिछली रात वह काफी जगह पूछताछ करता तो फिरा था । आज सुबह भी वह पुलिस हैडक्वार्टर का चक्कर लगाने गया था । अभी उसका फोन आया था कि वह तुम्हारे केस के ही सिलसिले में डेली एक्सप्रेस के एक रिपोर्टर के साथ लंच कर रहा था। उसने तुम्हें दो बजे मिलने के लिए कहा है ।"
"कहां ?"
"बैंक स्ट्रीट के एक बार में । बार का नाम मुझे भूल गया है। लेकिन उसने कहा था कि वहां एक ही बार है । "
"मैं तलाश कर लूंगा ।"
"वक्त पर पहुंच जाना।”
"जरूर ।"
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
वह बैंक स्ट्रीट पहुंचा।
बार तलाश करने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई ।
वह एक मध्यम वर्ग के लोगों का मामूली बार था । मनोहर उसे दरवाजे से ही बार काउन्टर पर बैठा दिखाई दे गया । उस वक्त वह एक सूरत से बहुत जहीन लगने वाले, चश्माधारी युवक से बात कर रहा था ।
विकास बार में दाखिल हुआ और काउन्टर के सामने कोने के एक स्टूल पर बैठ गया | मनोहर ने एक बार उसकी तरफ देखा और फिर फौरन परे निगाह फिरा ली ।
बारटेण्डर विकास के पास पहुंचा ।
विकास ने एक बियर का आर्डर दिया ।
फिर वह कान लगाकर चश्माधारी युवक और मनोहर में चल रहा वार्तालाप सुनने लगा ।
“जनाब !” - मनोहर कह रहा था - "आप मैथ्स के प्रोफेसर हैं तो मैं भी रिटायर्ड कर्नल हूं इसलिये अनपढ या नासमझ नहीं माना जा सकता ।"
"आपको किसी ने नासमझ या अनपढ कहा भी नहीं है, कर्नल साहब" - चश्माधारी युवक बोला- "मैंने सिर्फ इतना कहा है कि जो बात आप कह रहे हैं, वह सम्भव नहीं हो सकती ।"
"वह सरासर सम्भव है । "
"नहीं है । "
'शर्त हो जाये इसी बात पर ।"
"कैसी शर्त !"
"अगर मैं बात को सम्भव साबित कर दिखाऊं तो मेरा विस्की का बिल आप अदा कर दीजिएगा और अगर मैं ऐसा न कर सकूं तो आपका बिल मैं अदा करूंगा।”
"मंजूर ।"
"अब बताइये बात क्या थी ?"
“आप कह रहे थे कि आपके पास दो सिक्के हैं। दोनों सिक्कों की वेल्यू का जोड़ पचपन पैसे है लेकिन उनमें से एक सिक्का अठन्नी नहीं है । "
"ऐग्जैक्टली । यही कहा था मैंने ।"
"लेकिन मैं कहता हूं ऐसा नहीं हो सकता । अगर दो सिक्कों की कीमत का जोड़ पचपन पैसे है तो यह नहीं हो सकता कि उनमें से एक सिक्का अठन्नी न हो ।”
"लेकिन मैं कहता हूं कि ऐसा हो सकता है । "
"हो सकता है तो बताइये कैसे हो सकता है।" - युवक चैलेंज भरे स्वर में बोला- "इसी बात की तो शर्त है ।"
“बारटेण्डर !" - मनोहर बारटेण्डर से सम्बोधित हुआ ।
"तुमने समस्या सुनी ?"
" जी हां ।" - बारटेण्डर बोला ।
"जरा दोहराओ तो क्या समस्या है ?"
"आप कहते हैं कि सिक्कों की कीमत का जोड़ पचपन पैसे है लेकिन उन दोनों सिक्कों में से एक सिक्का अठन्नी नहीं है । आप कहते हैं ऐसा हो सकता है, प्रोफेसर साहब कहते हैं ऐसा नहीं हो सकता ।"
"शाबाश । अब बताओ शर्त क्या है ? "
"शर्त यह है कि जो हारेगा वह दूसरे का बिल अदा करेगा।"
"गुड | तुम्हारा अपना क्या ख्याल है, ऐसा हो सकता है या ऐसा नहीं हो सकता ?"
"ऐसा नहीं हो सकता ?"
"कैसा नहीं हो सकता ?"
“कि दो सिक्कों का योग पचपन पैसे हो और उनमें से एक अठन्नी न हो ।"
"तुम भी शर्त लगाना चाहते हो ?"
बारटेण्डर एक क्षण हिचकिचाया । फिर उसने इन्कार में सिर हिला दिया ।
"क्यों ? जब तुम्हें गारण्टी है, ऐसा नहीं हो सकता तो शर्त लगाने में क्या हर्ज है । "
बारटेण्डर ने उत्तर नहीं दिया । वह मनोहर से निगाह चुराने लगा ।
"अब बताइये, साहब ।" - प्रोफेसर उतावले स्वर में बोला - "कि यह कैसे हो सकता है कि दो सिक्कों का जोड़ पचपन पैसे हो लेकिन उनमें से एक अठन्नी न हो ।"
"अभी लो" - मनोहर बोला । उसने अपनी जेब में से एक अठन्नी और एक पांच पैसे का सिक्का लिकाला और उसे प्रोफेसर के सामने काउन्टर पर रख दिया ।
“देखिये" - मनोहर बोला- "इन दोनों सिक्कों का योग पचपन पैसे हैं ।”
"लेकिन आपने कहा था " - प्रोफेसर ने बड़े तीव्र स्वर में प्रतिवाद किया - "कि इनमें से एक सिक्का अठन्नी नहीं है। "
"ठीक ही तो कहा था " - मनोहर पांच पैसे के सिक्के की ओर संकेत करता हुआ बोला- "यह सिक्का अठन्नी नहीं है। "
"लेकिन यह अठन्नी है।" - प्रोफेसर ने अठन्नी की ओर संकेत किया ।
"होगी" - मनोहर लापरवाही से बोला - "लेकिन यह यह पांच का सिक्का अठन्नी नहीं है। अगर है तो बताओ । मैंने यही तो कहा था कि दोनों सिक्कों में से एक सिक्का अठन्नी नहीं है । यही मैं अब भी कह रहा हूं यह" - मनोहर ने फिर पांच के सिक्के की ओर इशारा किया - "सिक्का अठन्नी नहीं है । " -
प्रोफेसर मुंह बाये कर्नल को देखता रहा ।
मनोहर ने दोनों सिक्के उठाकर जेब में रखे, काउन्टर पर से व्हिस्की का गिलास उठाकर खाली किया और स्टूल से उतरता हुआ बोला- "थैंक्स फार दि ड्रिंक्स, प्रोफेसर साहब । बारटेण्टर, मेरा व्हिस्की का बिल साहब देंगे । "
प्रोफेसर के मुंह से बोल न फूटा ।
मनोहर बार से बाहर निकल गया ।
विकास ने जल्दी से अपनी बियर खत्म की, उसका बिल चुकाया और फिर वह भी वहां से विदा हो गया ।
मनोहर उससे कोई बीस कदम आगे फुटपाथ पर जा रहा था ।
विकास अपने दोनों हाथ जैकेट की जेबों में धंसाये, सिर झुकाये उसके पीछे हो लिया ।
मनोहर बस स्टैण्ड पर पहुंचा। बस स्टैण्ड के सायबान के नीचे बनी बैंच पर वह बैठ गया । उसने अपनी जेब से एक अखबार निकाला और उसे खोलकर पढने लगा ।
कुछ क्षण बाद विकास भी वहां पहुंचा । वह जाकर उसकी बगल में बैठ गया ।
“एक वरका देना ।" - विकास बोला ।
मनोहर ने अखबार के बीच का हिस्सा उसे दे दिया ।
विकास ने अखबार खोलकर अपने चेहरे के सामने कर लिया और धीरे से पूछा- "चश्मे को कितने की थूक लगाई, खलीफा ?"
" ज्यादा की नहीं, सिर्फ चार पैग की। "
"बाज नहीं आते हो अपना कमाल दिखाने से । "
"प्रैक्टिस बनी रहनी चाहिए, बेटा । "
"कुछ पता लगा ?"
"ज्यादा तो नहीं लेकिन अखबार में छपे से तो ज्यादा पता लगा ही है ।"
"आई सी !"
"आजकल सत्यकथा मार्का पत्रिकाओं का बड़ा बोलबाला है और ऐसी पत्रिकाओं की लता मंगेश्कर है मनोहर कहानियां । मैंने अपने आपको मनोहर कहानियां का प्रतिनिधि बताया तो हर कोई मेरी मदद करने को व्यग्र दिखाई देने लगा । पुलिस वाले भी मेरे साथ बड़ी मुहब्बत से पेश आये । हर कोई मुझे यह संकेत देने लगा कि अगर महाजन के कत्ल की खबर के साथ 'मनोहर कहानियां' में उसकी तस्वीर भी छप जाये तो उसे बहुत खुशी होगी।”
“इन्सानी फितरत है यह । हर कोई पब्लिसिटी चाहता है। तुम बताओ पता क्या लगा ?"
"पहले तो यही पता लगा कि हर कोई तुम्हें ही हत्यारा समझ रहा है । "
"पुलिस तो यह समझेगी ही..."
" पुलिस ही नहीं, हर कोई, मेरे भाई हर कोई । प्रैस रिपोर्टरों तक का भी, जो कि बख्तावर सिंह के गैंग के खिलाफ हैं, यही ख्याल है कि हत्यारे तुम्हीं हो । वैसे अगर इस मामले में बख्तावर सिंह की टांग घसीटी जा सकती तो वे लोग बहुत खुश होते लेकिन वह भी क्या करें, तुम्हारे खिलाफ सबूत हैं ही बहुत तगड़े।"
"हूं।"
"विनोद पुरी नाम के 'डेली एक्सप्रेस' के जिस रिपोर्टर के साथ मैंने आज लंच किया था, उसने मुझे एक उम्मीद अफजाह बात बताई है । वह कहता है कि महाजन को जो कत्ल की धमकी मिली थी, उसके पीछे निश्चय ही बख्तावर सिंह का हाथ था । अखबार में वे लोग यह बात इतने धड़ल्ले से नहीं छाप सकते । वे केवल महाजन का ही हवाला दे सकते हैं कि उसकी ऐसी धारणा थी कि उसको मिली धमकी के पीछे बख्तावर सिंह का हाथ था लेकिन हकीकत यही है । वह रिपोर्टर कहता है कि वैसी धमकी किसी को देना बख्तावर सिंह की फितरत से भी मेल खाता है। उसका कहना है कि अगर महाजन का काम तुमने पहले ही न कर दिया होता तो बख्तावर सिंह आने वाले दिनों में बहुत जल्द अपनी धमकी पर खरा उतर कर दिखा देता । वह शर्तिया महाजन का खून करवा देता ।”
"हूं। पुलिस से क्या जाना तुमने ।"
" पुलिस से मालूम हुआ है कि घातक गोली एक पैंतालीस कैलिबर की भारी मोजर रिवाल्वर से चलाई गई थी । रिवॉल्वर घटनास्थल से बरामद नहीं हुई है । और क्लाक रूम के दरवाजे के भीतर की तरफ से तुम्हारी उंगलियों के साफ-सुथरे, नुमाइश में रखने के काबिल, निशान उठाये गये हैं। "
"ओह ! वे तब बने होंगे जब मैं दरवाजे के साथ कान लगाये खड़ा था । मैंने दरवाजे का हैंडल तो दोनों तरफ से पोंछा था लेकिन दरवाजे को भूल गया था । लेकिन उन उंगलियों के निशानों का उन्होंने मिलान कहां से किया ?"
"दिल्ली से तुम्हारे रिकार्ड की फोटो कापी आ गई है। उसके मुताबिक तुम उत्तर भारत के बहुत बड़े ठग हो और कई राज्यों की पुलिस तुम्हें अन्दर करवाने की कोशिश कर रही है । रिकार्ड के मुताबिक तुम सत्रह बार गिरफ्तार हो चुके हो लेकिन एक बार भी तुम्हें सजा नहीं हो सकी है ।"
"बख्तावर सिंह का कोई ठिया ठिकाना है ?" - विकास पूछा। ने
"है। जहांआरा रोड पर एक 'मधुबन' नाम का बार है । वहीं बख्तावर सिंह का हैडक्वार्टर बताया जाता है । एक मजेदार बात यह सुनने में आई है कि बख्तावर सिंह उस इलाके का स्थानीय म्यूनिसिपल कमेटी का मैम्बर भी है ।"
“क्या कहने ! यानी कि वह रक्षक भी है और भक्षक भी।"
"यह समझ लो । "
"बख्तावर सिंह का जैसा बखान मैंने सुना है, उससे ऐसा तो नहीं लगता कि कत्ल वह खुद करता हो ।”
"वह क्यों करेगा ? ऐसे कामों के लिये तो उसने चेले चांटे पाले हुए होंगे।'
"खलीफा, यह पता लगाने की कोशिश करो कि उसका चीफ एग्जीक्यूशनर कौन है। यानी कि अगर महाजन का कत्ल बख्तावर के गैंग का काम होता तो कत्ल किसने किया होता ।"
"मैं मालूम करने की कोशिश करूंगा। तुम मुझे एक बात बतओ।"
"क्या ?"
"तुम बख्तावर जैसे शक्तिशाली आदमी से सीधे ही जा भिड़ने की फिराक में तो नहीं हो ? अगर ऐसा करोगे तो तुम्हारा काम हो जायेगा । बख्तावर के आदमी तुम्हें मार डालेंगे ।"
“अगर मैं ऐसा नहीं करूंगा तो कानून मुझे मार डालेगा । मुझे तो पिस्तौल की गोली और फांसी का फन्दा दोनों अपनी आंखों के सामने नाचते दिखाई दे रहे हैं । "
"यह बात तो है" - मनोहर हमदर्दी भरे स्वर में बोला ।
“अब आगे सिलसिला कैसे चलेगा ?" - विकास ने पूछा ।
"मैंने आज रात को विनोद पुरी नामक उस प्रैस रिपोर्टर को डिनर पर बुलाया हुआ है । अगर मुझे कोई नई बात मालूम हुई तो मैं तुम्हारे होटल में तुम्हें फोन करूंगा।"
"ठीक है । और तकलीफ के लिये शुक्रिया । मैं जानता हूं कि ये बातें तुम्हारे अपने काम में अड़ंगा लगा रही हैं लेकिन..."
"छोड़ो। यह काम मैं किसी गैर के लिये नहीं कर रहा, अपने एक रिश्तेदार के लिये कर रहा हूं । "
"रिश्तेदार ?”
“हां ! चोर-चोर मौसेरे भाई । भूल गये ?"
"ओह !"
वार्तालाप वहीं समाप्त हो गया ।
विकास ने मनोहर का अखबार उसे वापिस किया और उठ खड़ा हुआ । फिर वह पूर्ववत जेबों में हाथ धंसाये और सिर झुकाये चलता हुआ वहां से विदा हो गया ।
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