स्टैंडर्ड बार से ।



कोई दो फर्लांग पहले ही विक्रम भाड़ा चुकाकर ऑटोरिक्शा से उतर गया । एहतियातन, मेन रोड से जाकर प्रवेश-द्वार से बार में जाना उसने मुनासिब नहीं समझा । कुछ दूर सीधा जाने के बाद, वह दायीं ओर की बगल की एक गली में मुड़ गया ।



गली अपेक्षाकृत अन्धेरी और सुनसान थी । विक्रम ने अपने चेहरे पर चिपकी दाढ़ी-मूंछे और ऐनक उतार कर जेब में डाल लीं ।



वह धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा ।



किरण वर्मा से मिल चुकने के बाद उसका जीवन से मिलना बेहद जरूरी हो गया था । उसे जीवन के ठौरठिकाने की जानकारी नहीं थी, इसीलिए उसके बारे में मालूमात हासिल करने के बारे में उसने सुलेमान को फोन पर हिदायत दी थी । सुलेमान ने अपने सभी सोर्सेज से उस बारे में पता लगाने की कोशिश की होगी । उसकी कोशिशों के नतीजे का पता करने ही वह स्टैंडर्ड बार जा रहा था ।



जीवन हेरोइन एडिक्ट था । विक्रम ने सोचा । और आखिरी दफा सुना गया कि उसे हेरोइन की सप्लाई मिलने में कठिनाई हो रही थी । यानी उसके लिए सप्लाई का सोर्स ढूंढ़ना जरूरी था । इसका सीधा-सा मतलब था-'जीवन किसी डीलर को खोज रहा हो सकता था ।"



सहसा विक्रम के दिमाग में एक विचार कौंधा और एक नई आशंका उसे घेरने लगी ।'



अगर जीवन ने कैपसूल में मौजूद चीनी का 'फिक्स' लिया तो लगभग फौरन ही उसे पता लग जाएगा कि कैपसूल में मौजूद पाउडर में कोई दम नहीं था । उस हालत में उसकी तलब और जोर पकड़ लेगी । और वह 'फिक्स' पाने के लिए तड़प उठेगा । तब वह 'फिक्स' पाने की खातिर तमाम एहतियातें उठाकर ताक पर रख देगा । उसका बस एक ही मकसद होगा-नशे की अपनी तलब मिटाना । उस सूरत में, क्योंकि उसके लिए जाती तौर पर कैपसूल की कोई अहमियत नहीं रह जाएगी और माइक्रो फिल्म के बारे में उसे जानकारी होगी नहीं । इसलिए उसने फालतू और बेकार की चीज समझकर उस कैपसूल को फेंक देना था । क्योंकि किसी ड्रग एडिक्ट से तलब लगने पर निराशा के दौरान सब कुछ अपेक्षित होता है ।



विक्रम ने इसी बारे में दूसरे पहलू से भी सोचा । अगर जीवन को अपनी रेगुलर सप्लाई मिलने में बहुत ज्यादा मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा । तो बहुत मुमकिन था कि वह अपने रेगुलर सप्लायर से ही चिपका रहे और उस कैपसूल को रिजर्व कोटा के तौर पर अपने पास ही रहने दे ।



इस बात की सम्भावना एक ही लिहाज से ज्यादा थी । जीवन एक मुद्दत से इस धन्धे में था । इसलिए उसके सॉलिड कांटेक्ट्स होने जरूरी थे । मगर इस मामले में, मौजूदा हालात को देखते हुए, जीवन का एक माइनस प्वाइंट भी था । अगर कोई ड्रग एडिक्ट या पैडलर किसी मुसीबत में फंस जाता है तो धन्धे से तल्लुक रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति उसमें किनारा कर लिया करता है । और जीवन पर आफताब आलम की ओर से मुसीबत टूट पड़ी थी । क्योंकि विक्रम के भाग जाने के लिए उसने जीवन को ही जिम्मेदार ठहराया होना था ।



अचानक विक्रम तनिक चौंका और रुक गया ।



वह स्टैंडर्ड बार के पिछले दरवाजे पर पहुंच चुका था ।



दरवाजा ठेलकर वह भीतर दाखिल हुआ और छोटासा गलियारा पार कर के पिछले कमरे में बने कोई दर्जन भर केबिनों में से एक में जा बैठा ।



उसने वेटर को बुलाने के लिए बैलपुश दबा दिया ।



चन्द क्षणोपरान्त, करीब चालीस वर्षीय जो वेटर केबिन में पहुंचा, उसका नाम पीटर था और वह विक्रम से भली-भांति परिचित था । इसके बावजूद उसने चश्मे के पीछे अपनी आंखें मिचमिचाते हुए यूं विक्रम को सिर से पांव तक घूरा मानों पहचानने का प्रयत्न कर रहा था । फिर एकाएक उसके चेहरे पर दहशत भरे भाव पैदा हो गए ।



"ख...खन्ना साहब आप ?" वह हकलाता-सा बोला ।



विक्रम मुस्कराया ।



"हां, मैं ही हूं । तुम्हें नजर नहीं आ रहा ?"



"जी...नजर तो आ रहा है । लेकिन...।"



"लेकिन क्या ?".



"मेरा मतलब है ।" पीटर सामान्य होता हुआ बोला, "आप किसलिए आए हैं ?"



"बार में लोग किसलिए आते हैं ?"



"पीने-पिलाने । मगर आप तो पीते नहीं हैं ।"



"तो क्या सिर्फ इसलिए मेरे यहां आने पर पाबन्दी हैं ?"



"ऐसी बात नहीं है ।"



"फिर ?"



"दरअसल, करीब घण्टा भर पहले खुद आफताब आलम आपको पूछने यहां आया था । बॉस ने कह दिया कि कोई दो हफ्तों से आपकी शक्ल भी उसने नहीं देखी । आफताब आलम यह हिदायत देकर चला गया कि अगर तुम यहां आओ तो उसे सूचित कर दिया जाए ।"



"अब तुम उसे सूचित करना चाहते हो ?"



"नहीं, नहीं । ऐसा करने के बारे में तो हम सोच भी नहीं सकते ।"



"फिर क्या कहना चाहते हो ?"



"यही ।" पीटर हिचकिचाता-सा बोला-"कि आफताब आलम बार के बाहर, प्रवेश-द्वार की निगरानी के लिए अपना कोई आदमी जरूर छोड़ गया होगा ।"



"मैं पिछले दरवाजे के अन्दर आया था और उसी से बाहर चला जाऊंगा ।"



"आप समझते क्यों नहीं खन्ना साहब, हालात बहुत ज्यादा खराब हैं । आफताब आलम के साथ वो नया आदमी भी था । जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वह बेहद खतरनाक है । और उसे खासतौर पर कंचनगढ़ से बुलाया गया है । उन लोगों को आपकी इस बुरी तरह तलाश है कि मैं बयान नहीं कर सकता ।"



"मेरी फिक्र मत करो पीटर !" विक्रम गम्भीरतापूर्वक बोला-"मैं सब जानता हूं ।"



पीटर ने अपने होंठों पर जुबान फिराई, फिर तनिक आगे झुक गया ।



"लेकिन आप यह नहीं जानते ।" वह राजदाराना लहजे में बोला-"कि आफताब आलम के पीछे-पीछे पुलिस भी यहां आई थी ?"



"जानता तो नहीं मगर अन्दाजा लगा सकता हूं । क्योंकि पुलिस नहीं चाहती आफताब आलम डंके की चोट पर कानून को अपने हाथ में लेकर उनका मखौल उड़ाए ।" विक्रम ने कहा-"अब तुम जाओ । अपने बॉस अमरनाथ से पूछो कि मेरे लिए कोई मैसेज है ? और सुनो, व्हिस्की का एक लार्ज पैग भी ले आना ।"



पीटर चौंका ।



"व्हिस्की ? आप व्हिस्की पिएंगे ?"



"नहीं । मैं सिर्फ इसलिए कह रहा हूं कि वेटर को यानी तुम्हें केबिन में दो बार खाली हाथ आते-जाते देखकर किसी को शक न हो ।"



"ठीक है ।"



पीटर केबिन से बाहर निकल गया ।



कुछ ही मिनटोपरांत वह वापस लौटा ।



व्हिस्की का पैग मेज पर रखने के बाद उसने मुडातुडा-सा कागज विक्रम को थमा दिया ।



किसी ने आपके लिए फोन पर मैसेज छोड़ा था कि आप उसे फोन कर लें ।" वह बोला-"नम्बर इस कागज पर लिखा है ।"



विक्रम हाथ में पकड़े कागज को खोलने लगा ।



"बॉस ने भी एक गुजारिश की है ।" पीटर कह रहा था-"जब तक हालात नार्मल नहीं हो जाते, आप यहां आने से पहले फोन कर लिया करें तो बेहतर होगा ।"



विक्रम कागज खोलकर फोन नम्बर पढ़ चुका था ।



"ठीक है ।" उसने लापरवाही से कहकर पूछा-"अमरनाथ इस वक्त कहां है ?"



"बार में ।"



"उसकी ऑफिस खाली है ?"



"जी हां ।"



"उससे कहना वह पांच-सात मिनट और वहीं ठहरे । मैंने उसके ऑफिस में जाकर फोन करना है । और मैं नहीं चाहता कि कोई उसे मेरे साथ देखे ।"



पीटर ने नाखुशी भरे ढंग से सिर हिलाकर हामी भरी फिर बाहर निकल गया ।



विक्रम ने व्हिस्की के गिलास को हाथ नहीं लगाया । कोई डेढ़ मिनट बाद वह उठा । सतर्कतापूर्वक बाहर निकला और सुनसान गलियारा पार करके अमरनाथ के ऑफिस में जा घुसा ।



वहां कोई नहीं था । विक्रम दरवाजा बन्द करके डेस्क के पास पहुंचा और रिसीवर उठाकर, कागज पर लिखा, नम्बर डायल किया ।



दूसरी ओर एक बार घंटी बजते ही रिसीवर उठा लिया गया । फिर सतर्कतापूर्ण पुरुष स्वर लाइन पर उभरा ।



"यस ।"



"विक्रम कालिंग ।"



"कहां से बोल रहे हो ?"



"जहाँ तुमने फोन करके मैसेज छोड़ा था ।"



"फिर भी जगह का नाम बताने में क्या हर्ज है ?"



"कुछ नहीं । स्टैंडर्ड बार से बोल रहा हूं ।"



"गुड ।" दूसरी ओर से कहा गया-"आज मेरी मुलाकात सुलेमान से हुई थी । उसने कहा था कि तुम जीवन के बारे में जानना चाहते हो ।"



"उसने ठीक ही कहा था । तुम कुछ बता सकते हो ?"



"नहीं । लेकिन मैं इतना जानता हूं, वह हेरोइन की अपनी सप्लाई कहां से लेता है । वह जसपाल के लिए ड्रग पैडलिंग का काम करता है । और जसपाल बतौर कमीशन या वेतन उसे हेरोइन दिया करता है ।"



"तुम्हारा मतलब है, जीवन की तलाश में जसपाल को ट्राई करना चाहिए ?"



"हां ।"



"बहुत-बहुत शुक्रिया ।" विक्रम बोला-"मैं जान सकता हूं, कि तुम कौन हो और क्यों मेरी मदद कर रहे हो ?"



"नहीं । ऐसे मामलात में गुमनाम रहना ही बेहतर होता है ।" दूसरी ओर से कहा गया और फिर सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया गया ।



विक्रम ने भी रिसीवर यथास्थान रख दिया ।



उसने ऑफिस का दरवाजा थोड़ा-सा खोलकर बाहर झांका । वहां किसी को न पाकर वह बाहर निकला ।



वापस केबिन में जाने की कोई तुक नहीं थी । वह चुपचाप गलियारे से गुजरा और पिछले दरवाजे से बाहर आ गया ।



उसी अन्धेरी सुनसान गली में वह मेन रोड की ओर चल दिया ।



अब उसे जसपाल के पास पहुंचना था ।



जसपाल !



जिसे स्थानीय अपराध जगत में ड्रग्स का सबसे बड़ा सप्लायर समझा जाता था । हालांकि उसका इलाका छोटा और शहर के एक खास हिस्से तक ही महदूद था । लेकिन उसकी पीठ पर आफताब आलम का हाथ होने की वजह से उसके रुतबे में खासा इजाफा हो गया था । और शायद पुलिस के उस पर हाथ न डालने की बड़ी वजह भी यही थी ।



आफताब आलम से उसकी सांठ-गांठ का भी दिलचस्प किस्सा था ।



दरअसल, कुछ अर्सा पहले तक स्थानीय संगठित अपराध जगत पर जोगेंदर पाल और गनपत राय का कब्जा हुआ करता था । उन्होंने पूरे शहर को, बाप से विरासत में मिली जायदाद की भांति बांट रखा था । जोगेंदर पाल क्योकि गनपत के मुकाबले में हर प्रकार से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली और साधन सम्पन्न था । इसलिए इस बंटवारे में उसका हिस्सा भी उतना ही बड़ा था ।



यही मुख्य कारण था, जिसने परोक्ष रूप से दोनों को एक-दूसरे का प्रतिद्वन्द्वी बना दिया था ।



एक-दूसरे को खत्म करने की नाकाम कोशिशें करते रहने के बावजूद दोनों वर्षों तक शहर में अपनी पूरी हुकुमत जमाए रहे थे ।



धीरे-धीरे हालात बदलने लगे । फिर एक-एक करके उन दोनों की रहस्यमय ढंग से हत्या कर दी गई ।



यह तो एक अलग बात थी कि विक्रम को उनकी हत्याओं के रहस्य की न सिर्फ पूरी जानकारी थी । बल्कि वह, यानी उस वक्त का एस० आई० विक्रम खन्ना, उनकी हत्याओं के लिए पूरे तौर जिम्मेदार भी था । क्योंकि उस वक्त उसकी जिन्दगी जिस दौर से गुजर रही थी उसमें, उस के सामने इसके सिवाय और कोई चारा भी नहीं था ।



बहरहाल, जो भी हुआ उन दोनों की हत्याओं के बाद कुछ दिनों तक शहर में खास तौर पर अंडरवर्ल्ड में आतंक और अनिश्चितता का वातावरण बना रहा फिर धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा ।



लेकिन जैसा कि अपराध की दुनिया में आमतौर पर होता है । जोगेंदर पाल के मरते ही उसका गैंग कई गिरोहों में बंट गया । उन्हीं में से एक गिरोह का सरगना आफताब आलम था और मौजूदा वक्त में उसका ही गिरोह शहर में सबसे शक्तिशाली था । लगभग सभी संगठित अपराधों में उसका दखल था ।



गनपत की मौत के बाद हालांकि उसका गिरोह भी अलग-अलग हिस्सों में बंट गया था । लेकिन जहां तक जसपाल का सवाल था, वह आफताब आलम जितना खुशकिस्मत साबित नहीं हो सका । ऐसा न होने की कई वजह थीं । एक तो गनपत का गिरोह ही अपने-आपमें ज्यादा शवितशाली नहीं था । दूसरे उस गिरोह में जसपाल की हैसियत किसी पेशेवर बदमाश की न होकर गनपत के ड्राइवर की थी । तीसरे, जसपाल खास हौसलामंद भी नहीं था । मगर वह चालाक और मौकापरस्त जरूर था । ड्राइवर होने के नाते गनपत और उसके क्रिया-कलापों की खासी जानकारी उसे थी । उसी के दम पर मौके का भरपूर फायदा उठाते हुए गनपत के गिरोह के एक खासे हिस्से का मालिक वह बन बैठा था । लेकिन उसके साथ एक और बड़ी दिक्कत थी । वह महत्त्वाकांक्षी तो था पर किसी संगठन को संभालने लायक सही मायनों में जरूरी काबलियत उसमें नहीं थी । नतीजा यह हुआ कि जल्दी ही उसका गिरोह लगातार छोटा होता जाकर लगभग अस्तित्वहीन हो गया था । ड्रग्स के धन्धे के अलावा उसकी आमदनी का और कोई जरिया नहीं था और उस धन्धे में भी ज्यादा कमाई उसे नहीं थी क्योंकि वह महज सप्लायर था ।



लेकिन कुछ दिनों से अण्डरवर्ल्ड में जसपाल आम चर्चा का विषय बना हुआ था । वजह थी-उसकी मरहूम परवेज आलम के साथ गहरी दोस्ती । सगे भाइयों से भी ज्यादा प्यार उन दोनों में था ।



उनके सम्बन्धों की घनिष्ठता का आरम्भ कुछ दिनों पहले तब हुआ था जब आफताब आलम ने अपने छोटे भाई परवेज को शहर का एक इलाका सौंप दिया था । जहां वह मनचाहे ढंग से धन्धा करके अपने पैरों पर खड़ा हो सके ।



परवेज ने भी उस मामले में अपनी योग्यता का पूरा परिचय दिया । उसका धन्धा दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा । ड्रग्स के धन्धे में एक बड़े आपरेटर के तौर पर खुद को स्थापित करने की दिशा में वह तेजी से कामयाबी की ओर बढ़ता जा रहा था कि अचानक उसकी हत्या कर दी गई ।



आफताब आलम ने अपने मरहूम भाई के धन्धे को संभालने के लिए वक्ती तौर पर जसपाल को ही नियुक्त कर दिया था ।



विक्रम के हक में यह बात भी खतरनाक थी क्योंकि परवेज का हत्यारा उसी को समझा जा रहा था । इसलिए परवेज का दोस्त होने के नाते, जाहिर था कि जसपाल भी उसकी जान का दुश्मन बन बैठा होगा ।



'लानत है !'



विक्रम मन-ही-मन बड़बड़ाया-'वह इस बखेडे में फंसा ही क्यों ? जब परवेज हेंकडी और दादागिरी की वजह से गरीब इन्दरसेन की पिटाई कर रहा था तो वह खुद पर काबू क्यों नहीं रख पाया ? उसने क्यों परवेज का जबड़ा और पसलिया तोड़कर उसे मार-मारकर अधमरा कर दिया था ?' इस बात की जरा भी परवाह उस वक्त उसने नहीं की थी कि परवेज खुद क्या था या उसके बाकी दोनों भाई कितनी बडी तोप थे । हालांकि उस वक्त परवेज के दो चमचे भी उसके साथ थे मगर उनमें से किसी ने भी परवेज का पक्ष लेना तो दरकिनार रहा, उसे बचाने तक की कोशिश नहीं की थी । वे जानते थे कि उनके बीच में बोलते ही परवेज के साथ-साथ उनकी भी शामत आ जानी थी ।



उस घटना के बाद, क्योंकि परवेज अपना रुतबा कायम रखना चाहता था । इसलिए उसने ख्वाहिश जाहिर की था कि अपनी तौहीन का बदला वह खुद लेगा । इसलिए उसके भाइयों ने उस मामले में कोई दखल नहीं दिया ।



परवेज अपने घर से विक्रम की जान लेने के इरादे से चला था । लेकिन किसी ने उसे ही ठिकाने लगा दिया ।



क्यों ?



इसकी दर्जनों वजह हो सकती थीं । मगर किसी भी वजह की मामूली-सी भी यकीनी तौर पर जानकारी विक्रम को नहीं थी ।



उसने निराश भाव से सिर हिलाया फिर आसपास निगाहें डालीं तो पाया कि मेन रोड पर पहुंच चुका था ।



सड़क पर यातायात ज्यादा नहीं था । स्टैंडर्ड बार से विपरीत दिशा में जाते हुए उसकी निगाहें किसी खाली वाहन को खोज रहीं थीं ।



तीन-चार मिनट बाद उसे एक खाली टैक्सी आती दिखाई दी । उसने टैक्सी रोकी और उसमें सवार होकर उस इलाके की ओर रवाना हो गया । जहां उसके अनुमानानुसार जसपाल से मुलाकात हो सकती थी ।



करीब बीस मिनट बाद वह उस इलाके में जा पहुंचा ।



वह जानता था कि जसपाल को ढूंढने में खास दिक्कत उसके सामने पेश नहीं आएगी । क्योंकि उस एरिया में उसके अपने कई कांटेक्टस थे । वे भी हालांकि शरीफ लोग न होकर थे तो पेशेवर बदमाश ही मगर ड्रग्स के धन्धे से जरा भी वास्ता उनका नहीं था ।



असलियत यह थी, ड्रग्स के धन्धे की वजह से पुलिस की निगाहें उस इलाके पर रहती थीं और ऐसा होने की वजह से उनके अपने धन्धों पर फर्क पड़ता था । यानी वे सब और उस इलाके के दूसरे अधिकांश लोग जसपाल के खिलाफ थे ।



नतीजा यह हुआ कि विक्रम को अपना जो भी परिचित मिला वही उसके साथ सहयोग करने को तैयार हो गया । लेकिन वे सब लोग इस बात से भी बखूबी वाकिफ थे कि विक्रम की पुलिस और आफताब आलम दोनों को ही बुरी तरह तलाश थी और उनमें से किसी के भी झमेले में पड़ना वे नहीं चाहते थे । खुद विक्रम भी अपनी वजह से किसी मुसीबत में उन्हें डालना नहीं चाहता था । हालांकि उनमें से दो ने साथ चलकर उसकी मदद करने की अपनी इच्छा प्रगट की थी मगर विक्रम ने धन्यवाद सहित इन्कार कर दिया ।



विक्रम को सिर्फ यह जानने में दिलचस्पी थी कि जसपाल कहां मिलेगा । जल्दी ही पता लगाकर बता दिया गया कि वह उसी इलाके की एक बार में मौजूद था ।



विक्रम उस बार के सम्मुख पहुंचा और सड़क पार एक मोटे पेड़ की आड़ में, अंधेरे में छुपकर इंतजार करने लगा । उसकी निगाहें बार के प्रवेश द्वार पर लगी थीं और वह हरेक जाने-आने वाले को गौर से देख रहा था ।



करीब पौना घंटा बाद जसपाल बार से बाहर आता दिखाई दिया । उसकी चाल से जाहिर था कि वह खासी पिए हुए था ।



वह कोई पैंतालीस साल का सामान्य कद-बुत और सांवली रंगत वाला आदमी था । उसके दायें गाल पर जख्म का पुराना निशान था । जिसकी वजह से उसका चेहरा तनिक खौफनाक नजर आता था ।



बार के प्रवेश द्वार से दायीं ओर बीस-पच्चीस गज दूर जाकर वह रुक गया । उसने सड़क पर दायीं ओर निगाह डाली । फिर जेब से पैकेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा ली ।



प्रत्यक्षत: वह किसी खाली टैक्सी का इंतजार करता प्रतीत हो रहा था ।



विक्रम ने पेड़ के पीछे से निकलकर तेजी से मगर सतर्कतापूर्वक सड़क पार की और जसपाल के एकदम पास जा पहुंचा । उसका दायां हाथ अपने कोट की जेब में था ।



"हलो, जसपाल !" वह बोला ।



जसपाल तरन्त उसकी ओर पलटा । नशे के कारण उसकी आंखें सुर्ख थीं । पलकें तनिक बोझिल और चेहरा तनावपूर्ण था । उसने आंखें मिचमिचाते हुए विक्रम को घूरा, फिर उसके चेहरे पर अविश्वास भरे भाव उत्पन्न हुए और फिर मुस्कराने की कोशिश करते हुए उसने ऐसा जाहिर करना चाहा कि विक्रम को अचानक सामने पाकर जरा भी ताज्जुब उसे नहीं हुआ था ।



"तुम्हारे हौसले बहुत बुलंद होते जा रहे हैं, विक्रम !" वह शराब की बू का भभूका छोड़ता हुआ बोला ।



"मेरे कोट की दायीं जेब में रिवॉल्वर है ।" विक्रम उसकी बात पर ध्यान न देता हुआ बोला-"अगर अभी मरना चाहते हो तो शौक से कोई भी शरारत कर सकते हो ।" और बायें हाथ से जल्दी-जल्दी उसकी जेबें थपथपाने लगा ।



जसपाल के पैट की दायीं जेब में पिस्तौल थी ।



विक्रम ने उसे निकालकर अपने कोट की दूसरी जेब में डाल लिया ।



अब तुम चुपचाप इसी फुटपाथ पर चल दो ।" वह बोला-"और एक बार फिर सुन लो, अगर किसी प्रकार की गड़बड़ी करने का ख्याल गलती से दिमाग में आ भी जाए तो उसे फौरन परे झटक देना ।"



विक्रम के स्वर से उसका इरादा साफ जाहिर था । जसपाल भी अच्छी तरह जानता था कि वो कोरी धमकी ही नहीं थी । विक्रम ने सचमुच उसे बेहिचक शूट कर देना था । लेकिन वह इस बात से भी नावाकिफ नहीं था कि अगर उसने बिना किसी हीलो-हुज्जत आदेश पालन किया तो ऐसी नौबत नहीं आएगी ।



वह चुपचाप चल दिया ।



विक्रम अपने कोट की जेबों में हाथ डाले उसकी बगल में यूं चलने लगा मानो दो दोस्त जो रहे थे ।



जसपाल ने सिगरेट का अवशेष एक तरफ उछाल दिया ।



"तुमने इस इलाके में आकर अच्छा नहीं किया, विक्रम !" वह बोला ।



"क्यों ?" विक्रम ने पूछा ।



"क्योंकि आफताब आलम के करीब आधा दर्जन आदमी यहां घूम रहे हैं ।"



"अच्छा । लेकिन मुझे तो अभी तक तुम्हारे अलावा कोई नहीं मिला ।"



"यह तुम्हारी खुशकिस्मती है । अगर अब कोई मिल गया..."



"तो यह तुम्हारी बदनसीबी होगी ।" विक्रम उसका वाक्य पूरा करता हुआ बोला-क्योंकि उस सूरत में मैं तुम्हें हरगिज नहीं छोडूंगा । इसलिए भगवान से दुआ करनी शुरू कर दो कि ऐसा कोई आदमी मिले ही नहीं ।"



उसके चेहरे पर तुरन्त ऐसे भाव उत्पन्न हुए मानो मन-ही-मन सचमुच भगवान से प्रार्थना कर रहा था । फिर उसने सड़क पर दोनों ओर निगाहें डालीं और फिर पूछा-"यह सब क्या है ?"



"कुछ नहीं ।"



"तो फिर तुम इस तरह मेरी छाती पर क्यों आ चढ़े ? मेरी-तुम्हारी तो कोई दुश्मनी भी नहीं है ।"



"दुश्मनी तो मेरी भी किसी से नहीं है । फिर भी पुलिस ओर बदमाश सब मेरी छाती पर चढ़ दौड़ना चाहते है ।"



"मैं तुम्हारी नहीं अपनी बात कर रहा हूं । तुम मुझसे क्या चाहते हो ?"



"जीवन ।"



"क्या ?"



"जीवन ! मैं उस जीवन की बात कर रहा हूं जो तुम्हारे लिए ड्रग पैडलिंग का धन्धा करता है । और उसे तुम बतौर कमीशन पैसे की जगह हेरोइन देते हो । क्योंकि वह हेरोइन एडिक्ट है । समझे ?"



जसपाल ने जवाब नहीं दिया ।



"बताओ ।" विक्रम ने पूछा-"जीवन कहां है ?"



"मुझे नहीं मालूम ।"



"गनीमत है, तुमने यह तो नहीं कहा कि जीवन को जानते ही नहीं ।" विक्रम ने कहा-"खैर बाकी बातें बाद में होंगी । अब तुम शराफत के साथ बायीं ओर वाली सड़क पर मुड़ जाना ।"



जसपाल ने जरा भी विरोध नहीं किया । वह कोई दस कदम आगे मेन रोड से बायीं ओर बगल की सड़क पर मुड़ गया ।



दोनों पहले की भांति ही चलते रहे ।



"पिछली दफा जब जीवन मुझे मिला था ।" विक्रम पुन: वार्तालाप आरम्भ करता हुआ बोला-"वह हेरोइन की पूरी सप्लाई न मिल पाने की शिकायत कर रहा था ।"



"तो मैं इसमें क्या कर सकता हूं ?"



"तुम उसकी सप्लाई के सोर्स हो । इसलिए वह तुम्हारे पास आया हो सकता है । क्या वह तुम्हारे पास आया था ?"



जसपाल कुछ नहीं बोला ।



विक्रम का धैर्य जवाब देने लगा था ।



"देखो जसपाल, अगर तुम मेरे सवाल का जवाब नहीं दोगे तो मैं तुम्हारे दोनों घुटनों के जोड़ों पर एक-एक गोली मार दूंगा । फिर पुलिस के आने से पहले ही मैं तो फूट जाऊंगा और तुम जिन्दगी भर के लिए अपाहिज हो जाओगे । तुम्हें बाकी जिंदगी नकली टांगों पर व्हील चेयर के सहारे ही घसीटनी होगी ।"



जसपाल के चेहरे पर दहशत के भाव प्रगट हो गए । वह चंद क्षण खामोश रहा फिर स्वर को सामान्य बनाए रखने की कोशिश करता हुआ बोला-"तुम ऐसा नहीं करोगे ?"



"क्यों ? शायद तुम नहीं जानते कि पुलिस की अपनी नौकरी के दौरान मैंने तुम जैसे कई हरामजादों को शूट किया था । उनमें से इसी शहर के जो तीन आदमी हमेशा के लिए अपाहिज होकर रह गए । उनसे तुम भी बखूबी वाकिफ हो । याद करो दाताराम कैसे व्हील चेयर में अपने दिन गुजार रहा है । यासीन को बैसाखियों का सहारा लेना पड़ता है । और विलियम को हमेशा के लिए अपनी बायीं बांह से हाथ धोना पड़ा ।"



जसपाल के माथे पर छलक आईं पसीने की बूंदें इस बात का स्पष्ट प्रमाण थीं कि उसे एक साथ तीनों वाकयात याद आ गए थे । इस असलियत से भी नावाकिफ वह नहीं था कि वे तीनों आदमी उसके मुकाबले में ज्यादा हौसलामन्द और सख्तजान थे ।



"जीवन कहां है, मैं नहीं जानता ।" वह थूक निगलने के बाद फंसी-सी आवाज में बोला-"मगर...।" और फिर खामोश हो गया ।



"चुप क्यों हो गए ?" विक्रम ने कड़वाहट भरे लहजे में पूछा ।



"मैं इतना ही बता सकता हूं ।" वह हिचकिचाता-सा बोला-"जीवन को कोई 'माल' नहीं देगा ।"



"क्यों ?"



"आफताब आलम नहीं चाहता था कि कोई जीवन को 'माल' दे । उसने सभी सप्लायर्स को इस बाबत कड़ी हिदायतें दे दी है ।" जसपाल कठिन स्वर में बोला-"इस तरह वह जीवन को सजा देना चाहता है ।"



"किसलिए ?"



"इसलिए कि जीवन तुम्हें नहीं सम्भाल सका । हत्थे चढ़ने के बावजूद तुम उसकी बेवकूफी और लापरवाही की वजह से भाग निकलने में कामयाब हो गए ।"



विक्रम ने उसे घूरा ।



"जीवन है कहां ?"



"पता नहीं । मैं...।"



"मुझे गोली चलाने के लिए मजबूर कर रहे हो ! विक्रम उसकी बात काटता हुआ सर्द लहजे में बोला-"सुनो, मैं तीन तक गिनूंगा । अगर तुमने जीवन का पता बता दिया तो ठीक है । वरना तुम्हारे दोनों घुटनों के जोड़ हमेशा के लिए बेकार कर दूंगा ।" वह जसपाल से तनिक पीछे हो गया-"एक...दो...।"



"ठहरो !" जसपाल फौरन पलटकर चिल्लाता-सा बोला फिर हांफती आवाज में जल्दी-जल्दी कहा-"सच कह रहा हूं । मैं वाकई नहीं जानता, जीवन कहां है ? तुम किसी और को ट्राई क्यों नहीं करते ?"



"किसी और को ?"



"हाँ ।"



"किसे ?"



"मेरे अलावा कभी-कभी कमलेश, हरबंस और दयाशंकर से भी वह अपने जाती इस्तेमाल के लिए माल लेता रहा है ।"



विक्रम उन तीनों से ही परिचित था ।



"लेकिन वे तीनों भी तो आफताब आलम के आदमी हैं । क्या उन्हें हिदायतें नहीं दी गई होंगी ?"



"जरूर दी गई होंगी और उन्होंने भी उसे माल नहीं देना है ।"



"फिर मुझे उन लोगों के पास क्यों भेज रहे हो ?"



"इस उम्मीद में कि शायद जीवन उनके पास गया हो ।"



"क्या जीवन को आफताब आलम के सप्लायरों को दी गई हिदायतों की जानकारी नहीं है ।"



"पता नहीं ।"



"उन तीनों के अलावा जीवन के और भी कांटेक्टस हैं ।"



"होने तो चाहिएं । मगर मैं यकीनी तौर पर नहीं कह सकता ।"



"इस बारे में कहां से पता लगाया जा सकता है ?"



"शायद उस्मान बाग वाले इलाके से । क्योंकि जीवन अक्सर वहां जाता रहता है ।"



"सच बोल रहे हो ?"



"बिल्कुल सच ।"



विक्रम को वह झूठ बोलता नजर नहीं आया । वैसे भी उस वक्त झूठ बोलने का हौसला उस में नहीं था । वह जल्दी-से-जल्दी अपनी जान छुड़ाने के लिए मरा जा रहा प्रतीत होता था ।



"जीवन रहता कहां है, जसपाल ?" अचानक उसने पूछा ।



"मेहता स्ट्रीट पर ईटमोर नामक रेस्टोरेंट के पास एक इमारत के बेसमेंट में ।"



"पूरा पता बताओ ।"



जसपाल ने बता दिया ।