इंस्पैक्टर ठीक अजय के सामने जा रुका। वर्दी पर लगी प्लास्टिक की नेम प्लेट के मुताबिक उसका नाम अजीत सिंह रावत था।
–"आप थंडर' के रिपोर्टर अजय कुमार हैं?" उसने सिर से पांव तक अजय को घूरते हुए पूछा।
अजय बड़ी मुश्किल से स्वयं को सामान्य बनाए रख पा रहा था।
–"जी हां।" वह बोला–"फरमाइए?"
–"कल ही यहां पहुंचे हो?"
–"जी हां।"
–"हमें आपकी मदद की जरूरत है। करोगे?"
–"जरूर।" अजय ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।
–"तो फिर हमारे साथ आइए।"
अजय को जवाब देने का मौका दिए बगैर इंस्पैक्टर ने उसकी बांह पकड़ी और प्रवेश–द्वार की ओर बढ़ गया।
उसके साथ चलता अजय सोच रहा था इंस्पैक्टर को जरूर कोई ऐसा सबूत मिल गया था जिससे उसका दीवान पैलेस। जाना साबित होता था और उसे वहीं ले जाया जा रहा है।
अजय की निगरानी करने वाले अविनाश के दोनों आदमियों में से एक उस वक्त लॉबी में ही मौजूद था। इस दृश्य को देखकर उसे मानो लकवा–सा मार गया। अपनी कुर्सी पर बैठा वह हैरानी से ताकता रह गया।
निगरानी करने वाला दूसरा आदमी टैरेस पर था। अजय को पुलिस दल के साथ जाता देखकर उसकी भी खोपड़ी घूम गई।
इंस्पैक्टर के साथ पुलिस जीप की ओर जाते अजय की निगाहें यूं ही ऊपर की ओर उठ गई। लीना अपने रूम सुइट की बालकनी में खड़ी थी। उसके दोनों हाथ रेलिंग पर कसे थे और फटी–फटी आंखों से अपलक अजय को ताके जा रही थी।
अजय पुलिस दल के साथ जीप में सवार हुआ। होटल के गेट से गुजरकर सड़क पर आने के बाद जीप बायीं जोर बढ़ गई।
अजय चुपचाप बैठा रहा। उसकी बगल में बैठा इंस्पैक्टर भी खामोश था।
अजय ने बातें करने की कोशिश की थी, लेकिन इंस्पैक्टर को जरा भी रुचि न लेता पाकर उसे भी खामोश हो जाना पड़ा।
जीप विभिन्न सड़कों पर भागती रही। अजय ने सिगरेट सुलगा ली थी और हल्के–हल्के कश ले रहा था।
जीप शहर से बाहर पहुंची तो वह मन–ही–मन आशंकित हो गया।
जल्दी ही उसे अपनी आशंका सच साबित होती नजर आने लगी। जीप मेन रोड से उस पहाड़ी पर चढ़ रही थी, जिस पर दीवान पैलेस' की भव्य इमारत खड़ी थी।
–"तुम पहले भी यहां आ चुके हो?" अचानक इंस्पैक्टर ने मौन भंग करते हुए बेतकल्लुफी से पूछा।
–"हाँ!" अजय ने जवाब दिया।
–"कब?"
–"पिछली शाम।"
इंस्पैक्टर मुस्कराया।
–"उस वक्त तुम्हें यहां कोई मिला भी था?"
–"नहीं।"
इंस्पैक्टर ने आगे कुछ नहीं पूछा।
अजय समझ नहीं सका इंस्पैक्टर की इस पूछताछ का वास्तविक आशय क्या था।
लगातार आगे बढ़ती जीप गेट के भीतर दाखिल हुई और ड्राइव वे से गुजरकर दीवान पैलेस की मुख्य इमारत के सम्मुख जा रुकी।
कई पुलिस मैनों सहित वहां पहले से ही कोई दर्जन भर लोग मौजूद थे।
–"चौबीस घंटों के अन्दर तुम पहले भी इस जगह आए हो?" इंस्पैक्टर ने पूछा।
–"नहीं।" अजय ने स्पष्ट इन्कार कर दिया।
–"आओ। अन्दर चलते हैं।" कहकर इंस्पैक्टर जीप से उतर गया।
अजय को भी उसका अनुकरण करना पड़ा।
पहले से मौजूद व्यक्तियों में दो प्रेस रिपोर्टर भी थे। वे इंस्पैक्टर की ओर लपके। लेकिन इंस्पैक्टर उन्हें टालकर अजय की बांह थामे अपने दो मातहतों को साथ लिए प्रवेश द्वार से, जहां दो पुलिस मैन तैनात थे, इमारत में दाखिल हो गया।
इंस्पैक्टर सबसे पहले उस कमरे में पहुंचा जिसकी खिड़की काटकर पिछली रात अजय इमारत में दाखिल हुआ था।
वहां भी दो पुलिस मैन मौजूद थे। उनके अलावा खिड़की समेत उस कमरे की हालत वैसी ही थी जैसी कि पिछली रात अजय छोड़कर गया था। लेकिन मन–ही–मन चिंतित और आतंकित अजय समझ नहीं पा रहा था उसे वहां क्यों लाया गया है? क्या पिछली रात उससे कोई ऐसी चीज छुट गई थी जो उसके खिलाफ। बतौर ठोस सबूत इस्तेमाल की जा सकती है?
–"लगता है।" वह स्वयं को सामान्य और स्वर को शांत बनाए रखने की कोशिश करता हुआ बोला–"यहां सेंध लगाई गई है।"
–"हां, सेंध लगाई गई है।" इंस्पैक्टर ने तनिक सर्द लहजे में कहा–"आओ, दूसरे कमरे में चलते हैं।" और बाहर आ गया।
अजय भी बाहर गलियारे में आ गया।
फिर उसे साथ लेकर इंस्पैक्टर जिस तरफ बढ़ा वो रास्ता स्टडी रूम की ओर जाता था। लेकिन इंस्पैक्टर गलियारे में पहले दायीं ओर मुड़कर एक हाल में दाखिल हुआ और सीढ़ियों द्वारा ऊपर जाने लगा।
उसका अनुकरण करते अजय ने पीछे निगाह डाली तो एक एस० आई० और दो कांस्टेबल भी उसे आते दिखाई दिए।
सहसा, लैंडिंग पर एक बन्द दरवाजे के सामने पहुंचकर इंस्पैक्टर रुका और पलटकर अजय की कलाई मजबूती से थाम ली।
–"तुम इस इमारत में पहले भी आए हो?"
–"हां, एक बार आया था।" अजय असमंजसतापूर्वक बोला–"और नीचे से ही वापस लौट गया था।"
–"यानी इस इमारत में ऊपर कभी नहीं आए?"
–"नहीं।"
–"वैसे क्या तुम सुमेरचन्द दीवान के दोस्त हो?"
–"नहीं।"
–"परिचित?"
–"वो भी नहीं।"
इस पूछताछ से अजय सिर्फ इतना ही अन्दाजा लगा सका इंस्पैक्टर को किसी वजह से उस पर शक था।
–"विराट नगर में काशीनाथ जावेरी नामक तुम्हारा एक दोस्त है?" इंस्पैक्टर ने सपाट स्वर में पूछा।
–"है नहीं, था।" अजय ने जवाब दिया–"उसका मर्डर कर दिया गया।"
–"मर्डर!'' इंस्पैक्टर चटखारा–सा लेकर बोला। फिर अपने पीछे खड़े एस० आई० को हाथ से इशारा किया–"मोहन लाल, दरवाजा खोलो।"
एस० आई० मोहन लाल ने दरवाजा खोल दिया। इंस्पैक्टर अजय सहित कमरे में दाखिल हुआ।
अगले ही क्षण अजय बुरी तरह चौंका और फिर यूं ठिठका मानो एकाएक किसी अदृश्य दीवार से टकरा गया था।
सामने पलंग पर कंधों तक चादर ताने लेटी रंजना का गला एक कान से दूसरे तक कटा हुआ था। तकिए और बिस्तर, चादर पर फैला खून सूखकर काला पड़ चुका था। रंजना की हालत उसके मुर्दा होने का स्पष्ट प्रमाण थी।
* * * * * *
अजय घोर अविश्वासपूर्वक रंजना की लाश को ताक रहा था।
अचानक अपनी कलाई को तेज झटका दिया जाता महसूस करके वह इंस्पैक्टर की ओर पलटा।
–"यह हत्या तुमने की थी?" इंस्पैक्टर कौड़े की फटकार जैसे स्वर में बोला–"इसके हत्यारे तुम हो?"
अजय ने हिकारत भरी निगाहें से उसे घूरा। फिर अपनी कलाई छुड़ाकर पलंग की ओर बढ़ गया।
मृत्यु के पश्चात् भी रंजना की खूबसूरती में खास फर्क नहीं पड़ा था। ऐसा लगता था, जैसे गहरी नींद में सोई पड़ी है, कोई चुपके से उसके कमरे में आया और बेहद तेज धार वाले किसी हथियार से एक ही वार में उसका गला काट डाला।
–"बेहतर होगा तुम अपने जुर्म का इकबाल कर लो, अजय।" इंस्पैक्टर ने टोका।
अजय ने उसे घूरा।
–"क्या मतलब?"
–"यहां आकर तुम्हीं ने इसकी हत्या की थी। इसके बैग में मिले एक कागज पर तुम्हारा ही नाम लिखा हुआ है। जो इस बात का सबूत है यह तुमसे मिलने ही विराट नगर से आई थी, पिछली रात इसने तुम्हें फोन किया था, फिर तुम यहां आए और...।"
–"मैं न तो यहां आया था और न ही इसकी हत्या की। अजय ने उसकी बात काटते हुए लापरवाही से कहा और खिड़की के पास जा खड़ा हुआ।
–"मैं पूछता हूं–" इंस्पैक्टर ने चीखते हुए पूछा–"इसकी हत्या क्यों की थी तुमने?"
उसके लहजे में पहले जैसा रौब नहीं था। अजय समझ गया वह ब्लफ कर रहा है।
–"बेकार की बातें मत करो, इंस्पैक्टर।" अजय शांत स्वर में बोला–"मैं पिछली रात यहां नहीं आया और न ही रंजना की हत्या करने की कोई वजह मेरे पास थी। तुम शायद नहीं जानते हरीश दीवान से शादी करने से पहले वह मेरे एक दोस्त की पत्नी थी। बेहतर होगा इसके माता–पिता को सूचित कर दो। इसकी करीब आठ साल की एक बेटी भी है।" तनिक रुककर उसने कहा–"और जहां तक मुझे हत्यारा ठहराए जाने की बात है, मेरे बारे में कोई भी राय कायम करने से पहले बेहतर होगा विराटनगर पुलिस से मेरे बारे में जानकारी हासिल कर लो।"
–"मैं तुम्हारे बारे में सब–कुछ जानता हूं।" कहकर इंस्पैक्टर ने पूछा–"जवाब दो, तुमने इसकी हत्या क्यों की?"
–"मैं जवाब दे चुका हूं।"
–"वही तुम्हारा आखिरी जवाब है?"
–"हाँ।"
–"मेरे साथ आओ।" इंस्पैक्टर ने कहा और बाहर निकल गया।
अजय भी एस० आई० और एक कांस्टेबल के साथ बाहर निकला।
इंस्पैक्टर के पीछे सीढ़ियां उतरकर वे तीनों नीचे स्टडी में पहुंचे।
अजय ने यह देखकर राहत महसूस की कि वहां कारपेट बुक शेल्फ वगैरा सही ढंग से मौजूद थे। वह समझ गया वो सब अविनाश ने ही किया था, क्योंकि उसी ने स्ट्रांग रूम में सेंध लगाये जाने के बारे में बताया था।
इंस्पैक्टर अजीत सिंह रिसीवर हाथ में थामे खड़ा आग्नेय नेत्रों से अजय को घूरता हुआ माउथपीस में कह रहा था–"हैलो, होटल अलंकार...गिव मी सुइट नम्बर 417 प्लीज...आयम होल्डिंग...हैलो, इंस्पैक्टर विजयपाल, मैं अजीत सिंह बोल रहा हूँ...तलाशी में क्या–क्या मिला क्या तुमने...अच्छी तरह तलाशी ली है...ओह...?"
उसने रिसीवर वापिस क्रेडिल पर पटक दिया।
अजय ने मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया कि 'कलैक्शन' को पिछली रात ही स्टैण्डर्ड में छुपाने की बात उसे सूझ गई थी। वह काफी हद तक निश्चित था फिलहाल इंस्पैक्टर का कोपभाजन नहीं बन सकेगा।
–"सहयोग के लिए शुक्रिया अजय।" इंस्पैक्टर ने कहा–"तुम वापस होटल जा सकते हो। लेकिन मुझे बताए बगैर शहर से बाहर जाने की कोशिश मत करना।"
–"ठीक है।" अजय ने कहा–"लेकिन मैं वापस जाऊंगा कैसे?"
–"मोहन लाल तुम्हें छोड़ आएगा।" इंस्पैक्टर ने एस० आई० की ओर संकेत करते हुए कहा।
अजय एस० आई० मोहन लाल के साथ इमारत से बाहर आ गया।
ठीक उस वक्त, जब वह और मोहन लाल पुलिस जीप में सवार हो रहे थे, तूफानी रफ्तार से आकर एक फिएट कार इस ढंग से रुकी कि ब्रेकों की चरमराहट और टायरों का मिला–जुला शोर वातावरण में गूंज गया।
फिएट से उत्तरने वाला एकमात्र व्यक्ति अविनाश था। उसका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था और आंखों से चिंगारियां–सी निकल रही थीं। वह खूंखार नजर आ रहा था।
फिएट का दरवाजा भड़ाक से बन्द करके प्रवेश–द्वार की ओर दौड़ गया।
मोहन लाल ने इंजन स्टार्ट करके जीप आगे बढा दी। वह खामोशी से ड्राइव करने लगा।
अजय ने सिगरेट जलाई और चुपचाप बैठा फूंकता रहा।
मोहन लाल ने होटल अलंकार के सम्मुख पहुंचकर जीप रोक दी।
अजय जीप से नीचे उतरा और उसका शुक्रिया अदा करके प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गया।
* * * * * *
लीना टैरेस पर एक सन अम्ब्रेला के नीचे बैठी थी। उसे देखकर लीना अपने स्थान से हिली तो नहीं, अलबत्ता अजय ने नोट किया उसने राहत जरूर महसूस की थी।
उसके दोनों साथी भी थोड़े फासले पर एक मेज पर मौजूद थे।
अजय होटल में दाखिल हुआ। लिफ्ट द्वारा चौथे खंड पर पहुंचा। अच्छी तरह तसल्ली करने के बाद, कि आस–पास कोई नहीं है, उसने ताला खोला और अपने सुइट में प्रवेश कर गया।
दरवाजा पुनः बंद करने के बाद इधर–उधर निगाहें दौड़ाते ही साफ नजर आ गया वहां बारीकी से तलाशी ली गई थी।
चन्द क्षणोपरान्त दरवाजे पर दस्तक दी गई।
–"कौन?" उसने पूछा।
–"लीना।" बाहर से आवाज आई।
अजय ने दरवाजा खोल दिया।
लीना अन्दर आ गई।
पुनः दरवाजा बंद करते अजय ने देखा गलियारे से गुजरती एक युवती उसकी ओर देखने के बाद रहस्यमय ढंग से मुस्कराती जा रही थी। वह दरवाजा बन्द करके पलटा तो देखा–लीना के चेहरे परभय–मिश्रित चिंता के गहन भाव थे।
–"यह सब क्या चक्कर है?" उसने व्याकुलतापूर्वक पूछा।
–"तुम नहीं जानती?"
–"नहीं। पहले तो पुलिस तुम्हें पकड़कर ले गई। फिर अविनाश आंधी तूफान की भांति दीवान पैलेस की ओर दौड़ गया।"
–"मैंने भी उसे देखा था। उसकी हालत ऐसी थी मानो या तो उसे सूली पर चढ़ाया जाने वाला था या फिर तोप के मुंह से बांधकर उड़ाया जाने वाला था।"
लीना सचमुच भयभीत नजर आ रही थी और लगता था काफी देर से उसकी ऐसी हालत थी। क्या उसे रंजना की मृत्यु की जानकारी थी? अजय ने सोचा–क्या हत्यारा अविनाश था–रंजना का भी और काशीनाथ का भी?
–"मैंने शुरू में ही तुम्हें समझाया था लेकिन तुम नहीं मानी। नतीजा यह हुआ अब बड़ी भारी मुसीबत में फंस गई हो। अजय ने शुष्क स्वर में कहकर पूछा–"बता सकती हो, अविनाश क्यों गया है?"
–"नहीं, उसे किसी ने फोन किया था। फोनकर्ता की बातें सुनते ही वह दौड़ गया था और उस वक्त उसकी हालत ऐसी थी मानो किसी का खून करने जा रहा था।"
–"'खून करने जा नहीं रहा था।" अजय उसके कंधे पकड़कर उसे झंझोड़ता हुआ बोला–"बल्कि वह पहले ही खून कर चुका था। उसका स्वर कठोर था–"अगर तुम हत्यारे के साथ फांसी के फंदे पर नहीं झूलना चाहती तो साफ–साफ बताओ कि यह चक्कर क्या है?"
–"हत्या के अपराध में?" लीना ने असमंजसता पूर्वक पूछा–"किसकी हत्या हुई है?"
–"रंजना दीवान की।"
–"क्या? नहीं।" लीना फंसी–सी आवाज में अविश्वासपूर्वक बोली और असहाय भाव से उसकी ओर देखा–"नहीं, यह नहीं हो सकता। रंजना बहुत ही अच्छी थी।"
–"मैं उसकी गला कटी लाश देख चुका हूं।"
–"नहीं!'' लीना ने कहा। उसकी आंखों में आतंकपूर्ण भाव थे–"किसने की थी उसकी हत्या? तुमने?
जाहिर था, यह जानते हुए कि उसने दीवान पैलेस' में सेंधमारी की थी, लीना सोच रही थी रंजना की हत्या भी उसी ने की होगी।
–"नहीं, लीना।" अजय ने जवाब दिया–"यह काम तुम्हारे ही किसी दोस्त का है।"
लीना ने कुछ कहने की बजाय विचारपूर्वक उसे घूरा, फिर झटका देकर स्वयं को छुड़ाया और एक बार भी पलटकर देखे बगैर दरवाजा खोलकर बाहर निकल गई।
उसे देखने की कोशिश करने की बजाय अजय दरवाजा बन्द करके बाहरी कमरे में सोफे पर पसर गया।
उसने सिगरेट सुलगाई और मौजूदा हालात के बारे में सोचने लगा।
लीना के व्यवहार से साफ जाहिर था रंजना की मृत्यु का समाचार सुनकर उसे बेहद हैरानी हुई थी, लेकिन इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता था कि हत्या अविनाश ने की हो सकती थी और अगर हत्यारा अविनाश नहीं था तो कौन था और रंजना की हत्या क्यों की गई थी?
इन सबसे भी बड़ी बात थी कि अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के विपरीत रंजना इतनी जल्दी वापस क्यों लौट आई थी?
लेकिन इन तमाम सवालों में से एक का भी जवाब उसके पास नहीं था।
असलियत यह थी कि रंजना की निर्ममता पूर्वक की गई हत्या से अजय अपने लिए भी खतरा पैदा हो गया महसूस कर रहा था। संभवतया इंस्पैक्टर अजीत सिंह ने होटल स्टाफ से उसकी पिछली रात की गतिविधियों के बारे में पूछताछ नहीं की थी वरना उसे पता लग जाना था अपनी कथित पत्नी सहित अजय लगभग तमाम रात होटल से गायब रहा और सुबह सवेरे अकेला वापस लौटा था। इसके अलावा पिछली रात की न तो मामूली सी भी एलीबी अजय पेश कर सकता था और न ही इस बात का कोई माकूल जवाब उसके पास था कि उसकी कथित बीवी कहां है। उसे यह बात भी कम अजीब नहीं लगी कि अपने दल बल सहित उसकी छाती पर आ चढ़े अजीत सिंह ने उसे इतनी आसानी से छोड़ दिया। इसका मतलब या तो कुशल आफिसर नहीं था या फिर उसका असली गेम कुछ और था। क्या अविनाश की भांति वह भी उसे वाच कर रहा था? अजय ने सोचा। मगर किसी नतीजे पर वह नहीं पहुंच सका।
उसने अपनी रिस्टवाच पर दृष्टिपात किया–पौने तीन बजे थे।
अपने पूर्व–निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक उसने, अंधेरा होने पर, रहमान स्ट्रीट वाली कोठी में दाखिल होने की कोशिश करनी थी और अंधेरा होने में कई घंटे बाकी थे।
थकान, चिंता और रात भर की भागदौड़ के कारण उसकी हालत खस्ता थी। लेकिन आराम करने या सोने की बजाय एकाएक वह लीना की जुबान खुलवाने की कोशिश करने की सख्त जरूरत महसूस करने लगा।
आखिरी कश लगाकर उसने सिगरेट ऐश ट्रे में कुचल दी और सोफे से उठ गया।
वह कमरे से निकला।
लीना के सुइट के सम्मुख जाकर दरवाजे पर दस्तक दी।
जवाब में भीतर खामोशी छाई रही।
दो बार और दस्तक देने के बाद भी कोई जवाब नहीं मिला गया तो वह समझने पर विवश हो गया अंदर कोई नहीं था और अपने सुइट में वापस लौट आया।
उसने रिसेप्शन पर फोन किया तो पता चला सुइट नम्बर 416 में ठहरी लड़की होटल छोड़कर जा चुकी थी।
अजय ने गहरी सांस ली, सम्बन्ध विच्छेद किया और पलंग पर पसर गया।
जल्दी ही उसकी आंखें मुंदने लगी और वह नींद की आगोश में समाता चला गया।
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