ठकरियाल उस वक्त सादे लिबास में था।
सिर पर एक ऐसी कैप जो चेहरे के अधिकांश भाग को छुपाये हुए थी ।
पिछले करीब एक घण्टे से वह सेन्टूर होटल की लॉबी में बैठा सिगरेट फूंक रहा था ।
पता कर चुका था --- अखिलेश अपने सुईट में है।
ठकरियाल को उसके बाहर निकलने का इन्तजार था ।
करीब सवा घण्टे बाद इंतजार खत्म हुआ।
अखिलेश को लिफ्ट से निकलकर लॉबी में कदम रखते देखा उसने ।
हालांकि उसका ध्यान ठकरियाल की तरफ बिल्कुल नहीं था, इसके बावजूद कैप कुछ और ज्यादा चेहरे पर झुका ली। चेहरा सेन्टर टेबल की तरफ कर लिया, मगर आंखें उठाकर लगातार अखिलेश की तरफ देख रहा था ।
- उस अखिलेश पर जो सीधा रिसेप्शन पर पहुंचा। रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कराकर उसका स्वागत किया। अखिलेश ने अपनी ‘रूम की' सौंपी और लॉबी के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गया।
दरबान ने सेल्यूट मारने के साथ दरवाजा खोला।
उधर वह होटल से बाहर निकला, इधर ठकरियाल के जिस्म में जैसे बिजली भर गई ।
करीब-करीब आधी बची सिगरेट सेन्टर टेबल पर रखी एशट्रे में कुचली । फुर्ती के साथ खड़ा हुआ और उसी लिफ्ट की तरफ बढ़ गया जिससे अखिलेश निकला था।
छठी मंजिल पर पहुंचा।
फिर, सुईट नम्बर छ: सौ बारह के बंद दरवाजे पर ।
मुश्किल से दो मिनट बाद वह 'मास्टर की' की मदद से सुईट के अंदर था ।
जाहिर है --- सुईट शानदार था । खूबसूरत और कीमती फर्नीचर से सजा। फर्श पर ईरानी कालीन | दीवारों पर कीमती पेन्टिंग्स | दो कमरों का सुईट था वह । बैडरूम और ड्राइंगरूम । बैडरूम में बैड, ड्रेसिंग टेबल और कई स्टूल । ड्राइंगरूम में सोफा सेट और डायनिंग टेबल | दोनों कमरों में टी. वी. और रेफ्रिजरेटर । खिड़कियों पर कीमती और मोटे पर्दे खिंचे हुए थे।
दोनों कमरों का निरीक्षण करने के बाद वह डायनिंग टेबल की तरफ बढ़ा । उसने बीचो-बीच रखी फलों की टोकरी से एक सेब उठाया । उसमें 'बुड़क' मारता खिड़की की तरफ बढ़ा। पर्दे का एक कोना हटाकर बाहर झांका ।
कांच के पार एक तरफ शांताक्रुज एयरपोर्ट और दूसरी तरफ मुंबई का विहंगम दृश्य नजर आ रहा था। नीचे नजर आ रहा था --- सेन्टूर का स्वीमिंग पूल ।
रंग-बिरंगे अधोवस्त्रों से सजे अनेक स्त्री-पुरुष थे वहां ।
कुछ जलस्नान कर रहे थे, कुछ धूपस्नान ।
सेब उसने उसी दृश्य का अवलोकन करते खाया ।
उसके बाद सुईट की तलाशी लेनी शुरू की। हड़बड़ाहट की तो बात ही दूर, जल्दी तक में नजर नहीं आ रहा था वह । इतने आराम से तलाशी में जुटा हुआ था जैसे उसका अपना सुईट हो । काफी तलाश के बावजूद राजदान के लेटर्स और पाइप पर लटके देवांश की फोटो जैसी महत्वपूर्ण सामग्री नहीं मिली। हां, कैनन का एक कैमरा जरूर मिला ।
उसने खोलकर देखा।
रील नहीं थी ।
बैडरूम की वार्डरोब तक पहुंचा । उसे खोलते ही आंखें चमक उठीं ।
स्केल की चौड़ाई जितनी काली- सफेद पट्टियों वाला गाऊन एक हुक पर टंगा हुआ था ।
ठकरियाल ने गाऊन की जेबों में हाथ डाला । एक जेब से उस ब्राण्ड के सिगार की डिब्बी बराबद की जिस ब्राण्ड का सिगार राजदान पीता था । म्यूजिक लाइटर भी मौजूद था।
वे दोनों चीजें जेब में डाल दी।
दराज खोली ।
उसमें एक खूबसूरत बॉक्स था । छोटा सा । नीले शनील चढ़ा।
बॉक्स उठाया । उसे खोलते ही ठकरियाल के होंठ बेध्यानी में सीटी बजा उठे ।
यह वह सीटी थी जिसे आदमी मस्त होकर बजाता है ।
राजदान का फेसमास्क उसके सामने था ।
ठकरियाल ने उसे उठाकर ध्यान से देखा ।
बहुत ही बारीक झिल्ली जैसा था वह ।
मगर मजबूत !
फट नहीं सकता था।
कान और सिर के बाल तक मौजूद थे उसमें । आंखों की जगह दो छेद ।
ठकरियाल उसे लिए ड्रेसिंग टेबल के सामने पहुंचा। अपने चेहरे पर फिट चाहा Mom मगर नहीं हो सका । उसका अपना फेस फेसमास्क से थोड़ा चौड़ा था। कुछ देर किसी कलाकार की कला के उस शानदार नमूने को देखता रहा, फिर वापस वार्डरोब के नजदीक आया। मास्क को वापस बॉक्स में रखने के बाद वार्डरोब का दरवाजा बंद किया ।
जेब में पड़ा मोबाइल बज उठा।
मोबाइल निकाला ।
स्क्रीन पर नजर आ रहा नम्बर पढ़ा।
नम्बर अंजान था ।
रिस्टवाच पर नजर डाली । पूरे दो बजे थे ।
होठों पर मुस्कान फैल गयी ।
मोबाइल ऑन किया । कहा --- “वक्त के काफी पाबंद मालूम पड़ते हो अवतार प्यारे ।”
“वक्त से पहले होश आ गया तो कर भी रहा हूं फोन वरना तुमने तो लुढ़का ही दिया था ।” दूसरी तरफ से वाकई अवतार गिल की आवाज उभरी--- "बड़े बेमुरव्वत दोस्त हो यार ! अच्छी खासी चल रहीं बातों के बीच आक्रमण कर बैठे | आक्रमण भी ऐसा कि दिन में तारे दिखा दिये ।”
“वह जरूरी था, यार ।” हंसते हुए ठकरियाल ने कहा --- “बहरहाल, दिव्या और देवांश को तो यह दिखाना ही था न कि मैं रिश्वतखोर पुलिसिया नहीं बल्कि वो हूं जो एक हत्यारे को, बैंक लुटेरे को गिरफ्तार किये बगैर नहीं रह सकता।"
“होश में आने के बाद बात समझ में आ चुकी है। उस वक्त अचानक समझ में नहीं आई थी जब तुमने हमला किया । उस वक्त तो लगा था --- अचानक ये कैसी पलटी खा बैठे तुम ?”
“ आश्चर्य के भाव देखे थे मैंने तुम्हारी आंखों में।" ठकरियाल अब भी हंस रहा था --- “ और तुम्हारी बुद्धि पर तरस खाया था।"
“खैर! क्या हुआ था उसके बाद ? "
“ होता क्या? मैंने उनसे कहा --- 'गिरफ्तारी से बचने के लिए रिश्वत की पेशकश कर रहा था। मैंने लिटा दिया । मुझे.. ठकरियाल को रिश्वत देगा गधा ! जानता नहीं मैं रिश्वत को हराम समझता हूं।'
"तुमने मुझे गधा कहा?"
“कहना पड़ा। और कुछ कहना पड़ता तो वह भी कह देता।”
“संतुष्ट हो गये वे ?”
“तुम्हें गधा कहने के बावजूद न होते ?”
" यानी उनकी समझ में मैं इस वक्त हवालात की हवा खा रहा हूं।"
"हां ।”
“रिवाल्वर कहां है मेरा ?”
“मेरे पास है। मिलने पर दे दूंगा ।"
“जल्दी मिलना । उसके बगैर मैं खुद को विधवा औरत सा लगता हूं।”
“दिव्या को क्या देखा, तुम्हें तो ख्वाब में भी विधवा औरतें नजर आने लगीं।”
“दुखती रग पर हाथ मत रखो, प्रोग्राम बताओ आगे का ।”
“कहां से बोल रहे हो ?”
“उस कचरा बॉक्स के नजदीक एक पी. सी.ओ. है जिसमें मेरे बेहोश जिस्म को कचरा समझकर डाल गये थे । होश में आने के बाद रिस्टवाच देखी और बस यहीं तक आया तुम हूं।"
“हुलिया ठीक है?”
"सदाबहार।"
“तो अपने दिमाग की इलैक्ट्रानिक डायरी में नोट करो --- होटल सेन्टूर, सुईट नम्बर छः सौ बारह | "
“हो गया नोट | तुम कहां हो ?”
“ अपने इलाके की गश्त पर हूं।" ठकरियाल ने कहा --- “सरकारी नौकर हूं। बहरहाल ड्यूटी भी बजानी पड़ती है। अखिलेश से मुलाकात खत्म होते ही फोन करके रिपोर्ट देना ।”
“जरूर दूंगा । अपना तीन लाख का रिवॉल्वर भी तो लेना है तुमसे ।” इन शब्दों के साथ दूसरी तरफ से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया ।
***
क्रमशः....
P14
डोर लॉक में चाबी घूमने की आवाज सुनाई दी।
दरवाजा खुला।
कुछ लोगों के बोलने-चालने की आवाज उभरी ।
वे अंदर आ चुके थे ।
दरवाजा वापस बंद हुआ।
ठकरियाल ने रेफ्रिजरेटर के पीछे से झांककर देखा --- वे अखिलेश, भट्टाचार्य और वकीलचंद थे ।
ठकरियाल ने पुनः खुद को रेफ्रिजरेटर के पीछे समेट लिया।
वह दीवार और रेफ्रिजरेटर के बीच खाली स्थान में था । छुपा
सोफे पर पसरते वकीलचंद ने पूछा- -- “रात क्या रहा?”
“दिव्या और देवांश के बीच दरार पड़ चुकी है।” आवाज अखिलेश की थी ।
“जल्द ही यह दरार रंग लायेगी, वही होगा जो राजदान ने सोचा था । "
“वाकई ! राजदान के साथ किया बहुत बुरा इन कमीनों ने।” ठकरियाल ने भट्टाचार्य की आवाज साफ-साफ पहचानी --- “तुम लोग तो खैर दूर मैंने सब कुछ अपनी आंखों से देखा है। दुख बस इस बात का है कि इतना नजदीक रहने के बावजूद न मैं खुद वक्त रहते उन्हें पहचान सका, न ही राजदान ने कुछ बताया ।”
वकीलचंद ने कहा --- " बताया तो कमबख्त ने मुझे भी कुछ नहीं था। बस इतना ही कहा - - - वकीलचंद, -- वकीलचंद, तू देख ही रहा है | हफ्ता - दस दिन से ज्यादा का मेहमान नहीं हूं मैं । एक लड़का है। बबलू । सोलह साल उम्र है उसकी । वह जान है मेरी । टुकड़ा है जिगर का । उससे उतना ही प्यार करने लगा हूं जितना एक बाप अपने बेटे से करता होगा। मुझे शक है --- कुछ लोग उसे एक हत्या के झूठे इल्जाम में फंसायेंगे। पुलिस थाने में उसे टार्चर कर सकती है लेकिन याद रखना, अगर उसे एक चांटा भी पड़ा तो वह मेरे कलेजे पर चलाई गई गोली के समान होगा । तेरा काम होगा --- उसकी रक्षा करना । केस कोर्ट तक जाये तो उसे बेकुसूर साबित करना । मैं तब होऊं, न होऊं, तुझे कवच बनकर हर वक्त साये की तरह उसके साथ रहना है।... मैंने खूब पूछा, जानना चाहा--- 'क्या डाऊट है तुझे ? किसका कत्ल होने वाला है ? कौन लोग, क्यों फंसाने वाले हैं बबलू को ? मगर एक सवाल का भी तो जवाब नहीं दिया जालिम ने। मैं तो सोच तक नहीं सकता था वह खुद अपने ही कत्ल की बात कर रहा है।"
“मुझे लिखे लेटर में राजदान ने साफ लिखा है ।” अखिलेश ने कहा- - - चाहूं तो मरने से पहले भी मैं दिव्या और देवांश जिन्दगी मौत नजर आने लगे । ऐसा कैसे में विस्तार से लिख रहा हूं।... और तुम जानते हो राजदान
को पकड़वा सकता हूं। खुद को बचा सकता हूं मरने से । मगर अखिलेश, तीन कारण हैं ऐसा न करने के । पहला---एड्स की उस स्टेज का मरीज हूं कि वैसे ही हफ्ता दस दिन से ज्यादा जिन्दा नहीं रहूंगा। दूसरा--- दिव्या और देवांश को उस अवस्था में देखने के बाद दस दिन तो क्या, दस मिनट जिन्दा रहना मेरे लिए मौत से ज्यादा कष्टप्रद है । और तीसरा --- वे मेरे मर्डर के प्रयास में जेल चले जायें, यह कोई सजा नहीं होगी उनके लिए। मैं तो ये भी नहीं चाहूंगा कि मेरे बाद वे मुझे आत्महत्या के लिए प्रेरित करने या मेरी हत्या करने के इल्जाम में जेल जायें। असल में जेल इतने घिनौने अपराधियों के लिए कोई सजा नहीं होती। मौत या फांसी तो एक तरह से मुक्ति होती है ऐसे लोगों के लिए । इनकी सजा तो ये है... ये कि इनकी जिन्दगी को ही मौत में बदल दिया जाये । सुनने में अजीब लग रहा होगा तुझे --- लेकिन सोचकर देख --- अगर किसी की उन सांसों को ही जिसे वह जिन्दगी समझ रहा है, मौत में बदल दिया जाये तो कैसा लगेगा उसे ? तुझे यही काम करना है । ऐसी अवस्था में पहुंचा देना है दोनों को कि मौत उन्हें जिन्दगी और ज़िंदगी मौत नज़र आने लगे। ऐसा कैसे होगा - - - इसी लेटर में विस्तार से लिखा रहा हूँ। और तुम जानते हो.... राजदान ने पूरा प्लान विस्तार से लिखा है।"
“काश!” भट्टाचार्य बोला --- “अवतार भी इस मौके पर हमारे साथ होता।"
तभी ।
कॉलबेल बजने की आवाज गूंजी।
वकीलचंद ने कहा ---"कौन आ गया ?”
“मैं देखता हूं।” अखिलेश की आवाज के साथ किसी के सोफे से उठने की आवाज उभरी ।
ठकरियाल को पूरा विश्वास था --- आगन्तुक अवतार ही होगा।
कितना कारगर रहा था उसका यहां छुपना ?
सारे रहस्य | राजदान का पूरा प्लान पर्त-दर-पर्त खुलते वह अपने कानों से सुनने वाला था ।
रोमांचित सा हो उठा वह । यह सोचकर कि अब
अब जाकर पकड़ बनी है उसकी इस झमेले पर ।
राजदान ने भले ही लाखों कल्पनाएं कर ली होंगी मगर यह कल्पना हरगिज नहीं कर पाया होगा कि वह इस स्पॉट पर अखिलेश के कमरे में रेफ्रिजरेटर के पीछे आ छुपेगा ।
सारी बातें सुन लेगा उनकी ।
यह बात वह सोच भी कैसे सकता था कि महज सुल्फे की गंध से ठकरियाल राजदान बने शख्स को ताड़ जायेगा । यह तो उसकी अपनी 'एप्रोच' हुई। उसी एप्रोच के कारण इस वक्त वह वहां था ।
दूसरी बात - - - इनकी आपसी बातों से जाहिर है, अवतार के बारे में राजदान सहित किसी को कुछ मालूम नहीं था अर्थात् राजदान उसे वकीलचंद या अखिलेश की तरह कान्टेक्ट नहीं कर पाया था ।
वह खुद अपने प्लान से मुम्बई आया था ।
राजदान ने भला कहां कल्पना की होगी अवतार अखबार में उसकी मौत की खबर पढ़कर आ पहुंचेगा! ठकरियाल के चंगुल में फंस जायेगा!
अब ।
अब जाकर बिखरी है राजदान की शतरंजी बिसात ।
इन दो घटनाओं की कल्पना करने का उस पर कोई आधार नहीं था ।
अब आयेगा खेल का मजा !
ठकरियाल इतना ज्यादा रोमांचित हो उठा कि दांत भींचकर बड़बड़ाया - - - ‘मरे हुए आदमी! अब देखूंगा मैं तुझे । राजदान, तेरे इन प्यादों को एक चाल में चित्त कर दूंगा मैं ।”
वह रेफ्रिजरेटर के पीछे से झांकने का लोभ संवरण न कर कर सका।
रेफ्रिजरेटर ऐसे कोण पर रखा था कि हल्का सा झांकते
ही कमरे के मुख्य दरवाजे का नजारा साफ देखा जा सकता था। अखिलेश दरवाजे के नजदीक पहुंचा। तक तक एक बार और कॉलबेल बज चुकी थी। दरवाजा खोला । सामने अवतार खड़ा था । वह कुछ बोला नहीं । अखिलेश की तरफ देखता खड़ा खड़ा केवल मुस्कराता
रहा। अखिलेश ने कहा --- “किससे मिलना है आपको?”
“पहचान बेटे !” अवतार ने कहा । "म-मतलब?” अखिलेश के मुंह से निकला | " दुनिया कहती है तू प्राइवेट डिटेक्टिव बन गया है।”
अवतार ने कहा--- " बड़ी पहुंची हुई चीज है। मैं कहता हूं--- आज भी अकल से पैदल है तू। जब मुझे नहीं पहचान रहा तो...
“अबे ... !” अखिलेश चौंका--- "कहीं अवतार तो नहीं
है तू?”
“ये हुई न बात ! ये हुई ना मेरे यार की पारखी नजर....।” “अबे ! अबे तूने पगड़ी उतार दी। दाढ़ी कटवा दी और बीस साल बाद । अचानक सामने आकर कहता है ---पहचान मुझे। साले - - - कैसे पहचानूं? सरदार से मोना बन गया ।”
“हां मेरे यार ! हां ! तेरी बिरादरी में शामिल हो गया मैं ।” कहने के साथ अवतार ने लपककर अखिलेश को बांहों में भर लिया था। अखिलेश की बाहें भी उसके जिस्म के चारों तरफ लिपट गईं । उसे हवा में उठाकर चिल्लाया वह - - - “अबे वकीलचंद भट्टाचार्य! देखो! देखो! अपना चौथा यार भी आ गया।"
वकीलचंद और भट्टाचार्य इस तरह सोफों से उछल-उछलकर दरवाजे की तरफ लपके जैसे अपने घर में निकले प्राचीन खजाने की खबर सुन ली हो ।
भट्टाचार्य ने कहा --- “बड़ा शैतान है ये हरामजादा तो! मैंने नाम लिया और हाजिर हो गया।"
“अबे ! अबे तुम दोनों भी यहीं हो? मजा आ गया यारों मजा आ गया ।”
उसके बाद ।
रेफ्रिजरेटर के पीछे छुपे ठकरियाल ने बचपन के दोस्तों का भावनात्मक मिलन देखा वे तीनों तो खैर खुश थे ही मगर, अवतार भी उनसे कम खुश और रोमांचित नजर नहीं आ रहा था। उसका इतना खुश होना ठकरियाल के दिल को जोर-जोर से धड़का गया ।
शंका उभरी --- उन्हीं में तो नहीं मिल जायेगा वह ?
ऐसा हो गया तो ?
बस 'तो' से आगे वह सोच न सका ।
ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा था अवतार एक्टिंग कर रहा है।
दोस्तों से मिलने पर वास्तविक खुशी से झूमता नजर आ रहा था वह ।
अब धड़कते दिल से ठकरियाल को उनके बीच होने वाली बातों का इंतजार था ।
“आओ !” अखिलेश ने कहा - "बैडरूम में बैठते हैं।”
दोनों कमरों के बीच का दरवाजा पार करके वे अंदर वाले रूम में चले गये ।
रेफ्रिजरेटर के पीछे छुपे ठकरियाल को हालांकि उनकी आवाज अब भी आ रही थी से कम अब उनके बीच होने वाली बातें सुनना बहुत जरूरी Join @rovers शब्द स्पष्ट नहीं थे। और कम था।
वह रेफ्रिजरेटर के पीछे से निकला ।
दबे पांव उस दरवाजे की तरफ बढ़ा जिसके पार वे थे ।
अब वह उनमें से किसी के द्वारा देख लिये जाने के खतरे के प्रति उतना सुरक्षित नहीं था जितना रेफ्रिजरेटर के पीछे था मगर, खतरा उठाने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं था।
यह बात तो उसकी नॉलिज में होनी ही चाहिए थी कि अवतार का रुख क्या रहने वाला है ?
खुद ठकरियाल का आगे का सारा प्लान इसी सवाल के
जवाब पर निर्भर था ।
सो, दरवाजे के नजदीक पहुंचा।
दीवार से पीठ टिकाकर खड़ा हो गया ।
दिल 'धाड़-धाड़' की आवाजों के साथ पसलियों से टकरा रहा था ।
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