"लेकिन वॉल्ट के कमरे की भीतर से बन्द खिड़की..."


"उस पर हम बाद में पहुंचेंगे लेकिन पहले मैं ये बताना चाहता हूं कि वॉल्ट खोल लेने के बाद भीतर का माल हम बाहर कैसे निकालेंगे।"


"कैसे निकालेंगे ?"


“जाहिर है कि ऐसा उस रूट से नहीं हो सकता, जिससे कि तुम वॉल्ट तक पहुंचोगे । माल के साथ अव्वल तो प्रोजैक्शन पर चलना ही बहुत मुश्किल होगा, ऐसा तुम कर भी पाए तो भी माल अभी कैसीनो के फ्लोर पर ही होगा ।"


"तो ?"


"माल वहां से कैसीनो का एक मेहमान निकालेगा जो कि हमारा आदमी होगा ।”


"कैसे ?"


“वो चलने से लाचार । इसलिए व्हील चेयर का मोहताज होगा । उसको ऐसा बिल्ड अप एडवांस में दे दिया जाएगा कि वो कोई अरब शेख था जो दुबई से या शारजाह से या मस्कट वगैरह कहीं से सैलानी के तौर पर आया था और वैस्टर्न स्टाइल के जुए का रसिया था । उसकी व्हील चेयर की सीट खासतौर से ऐसी बनाई जाएगी कि उसके नीचे माल छुपाया जा सकेगा । रात को वो कैसीनो में एक खास वक्त पर एकाएक गंभीर रूप से बीमार पड़ जाएगा।”


“अभिनय करेगा वो गंभीर रूप से बीमार पड़ जाने का ?"


"नहीं । अभिनय नहीं चलने का । उसका सच में ही ऐसा बीमार पड़ जाना जरूरी है वर्ना वो वहां नहीं ले जाया जाएगा जहां कि उसका ले जाया जाना हमारी स्कीम के लिए जरूरी है।"


"कहां ?"


"ऑफिस में। जिसके पिछवाड़े में कि वॉल्ट वाला कमरा है।"


"आप बात को जरा तफसील से कहिए, जनाब | अगर वो गंभीर रूप से बीमार पड़ने का अभिनय नहीं करेगा तो एकाएक, हमारी सहूलियत के मुताबिक सच में ही ऐसा बीमार कैसे पड़ जाएगा ?"


"उसे एक कैप्सूल दिया जाएगा ।”


"कैप्सूल !"


"जो ऐसी दवा का होगा जो कि उसके पेट में पहुंचने पर उसे तड़पा के रख देगी, उरुकी ऐसी हालत कर देगी कि उसे देख के दहशत होगी कि वो अब मरा, अब मरा ।"


"कैप्सूल उसे कौन देगा ?"


"उसका सहायक जो कि उसके साथ होगा। व्हील चेयर के हवाले किसी संपन्न आदमी को ऐसे सहायक की हमेशा हर जगह जरुरत होती है । एक पूर्वनिर्धारित वक्त पर वो उसे याद दिलायेगा कि हिज हाइनैस के दवा लेने का वक्त हो गया था और उसे कैप्सूल पेश करेगा । वो कैप्सूल खाने के दस मिनट बाद वो तड़पने लगेगा। तब सहायक की मदद की गुहार पर उसे वहां से ले जाया जाएगा।"


"आफिस में ?"


" और कहां ? और तो कोई जगह है नहीं उस फ्लोर पर जहां कि एकाएक बीमार पड़ गए क्लब के मुअज्जिज मेहमान को फौरन ले जाया जा सकता हो ।"


"फिर ?"


"फिर, जाहिर है कि हिज हाइनैस के लिए डॉक्टर की जरुरत महसूस की जाएगी। तब पाया जाएगा कि संयोग से कैसीनो में ही बतौर मेहमान एक डॉक्टर मौजूद था, वो डॉक्टर मरीज का मुआयना करेगा, उसे एक इंजैक्शन देगा जिससे कि मरीज की तबीयत सुधरेगी और वो नींद के हवाले हो जाएगा । तब डॉक्टर उसके लिए कम से कम एक घण्टे के मुकम्मल आराम की सख्त सिफारिश करेगा और इस बात पर खास जोर देगा कि तब तक उसे जरा भी डिस्टर्ब किया जाना, जरा भी हिलाया-डुलाया जाना उसके लिए जानलेवा साबित हो सकता था । ऐसा इसलिए कहना जरूरी होगा ताकि कैसीनो वाले एम्बुलैंस बुला कर उसे किसी हस्पताल के हवाले कर देने की न सोचने लगें । "


"ओह !"


"तब स्थिति ये होगी कि मरीज एक घंटे का आराम करने के लिए तब उस ऑफिस में पड़ा होगा । कोई उसे डिस्टर्ब न करे इसलिये जाहिर है कि कैसीनो वाले ऑफिस के दरवाजे को बाहर से बंद कर देंगे । वो ऐसा नहीं करेंगे तो डॉक्टर उन्हें ये बात सुझा देगा ।"


"आगे ?"


" तब तक तुम वॉल्ट वाले कमरे में पहुंच चुके होगे । आफिस का दरवाजा बाहर से बन्द होते ही तुम आफिस में कदम रखोगे और व्हील चेयर की सीट के नीचे बने खाने में से अपने वॉल्ट खोलने के औजार वगैरह निकाल लोगे । "


"मेरे औजार व्हील चेयर में होगे ?"


"और तुम उन्हें भीतर कैसे लेकर जाओगे ? अपना औजारों का झोला हाथ में झुलाते हुए ?"


"नहीं।" 


"सो देयर यू आर ।"


जीतसिंह ने बड़े प्रभावित भाव से सिर हिलाया ।


"अब तुमने एक घण्टे से कम समय में वॉल्ट को खोलकर दिखाना होगा जो कि जाहिर है कि तुम कर लोगे । कर लोगे न ?"


जीतसिंह ने बड़े हौसले से सहमति में सिर हिलाया ।


"बस, फिर क्या है ! तुम माल को व्हील चेयर में ट्रांसफर कर दोगे और खिड़की के रास्ते जिधर से आए थे, उधर वापिस हो लोगे । ईजी ।"


एडुआर्डो कुछ क्षण बड़े नाटकीय अदाज से अपने शब्दों का श्रोताओं पर प्रभाव देखने के लिए रुका और फिर बोला - "एक घण्टे के बाद डॉक्टर ऑफिस में जाकर फिर मरीज का मुआयना करेगा और कहेगा कि अब उसे वहां से शिफ्ट कर दिया जाना सेफ था। मरीज का सहायक तत्काल एक एम्बुलैंस के लिए फोन करेगा जोकि हमारी ही होगी, मरीज को वापिस व्हील चेयर के हवाले करेगा और उसके साथ एम्बुलैंस ने सवार होकर वहां से चल देगा । ईजी । नो ?” 


“यस ।” - ऐंजो बोला ।


"हां।" - जीतसिंह बोला ।


"इस स्कीम को कारगर बनाने बनाने के लिये हमें छ जनों की जरुरत होगी।" - एडुआर्डो बोला- "एक, व्हील चेयर वाला अरब शेख । दो, उसका व्हील चेयर धकेलने वाला सहायक जो कि ऐंजो होगा । तीन, वॉल्ट बस्टर जोकि तुम होगे । चार, तुम्हारा एक सहायक। पांच, डॉक्टर जो कि मैं होऊंगा । छ, एक खूबसूरत लड़की जो कि लेडीज टॉयलेट के करीब वाली खिड़की खोलेगी । इसके अलावा एम्बुलैंस, उसका ड्राइवर और दो ऑर्डरली भी होने चाहिए होंगे लेकिन दो गैंग का हिस्सा नहीं होंगे । वो अपने मामूली काम की मामूली उजरत के ही हकदार होंगे।"


“यानी कि” - जीतसिंह बोला - "माल में हिस्सेदारी छ जनों की होगी ।"


"जाहिर है ।"


"वॉल्ट वाले कमरे की भीतर से बंद खिड़की तक आप बाद में पहुंचने वाले थे। अगर बाद हो गई हो तो बरायमेहरबानी पहुंचिये वहां भी ।"


"वो एक विकट समस्या है।"


"एक और विकट समस्या बीम भी है । "


"बीम ! कैसी बीम ?"


"फोटो इलैक्ट्रिक सैल के जरिए चलने वाली इलैक्ट्रोनिक किरण जो आंखों को दिखाई नहीं देती, जो वॉल्ट के सामने अदृश्य पहरेदार की तरह हर घड़ी चालू रहती है और जिसके पार कदम रखने की कोशिश करते ही सारे कैसीनो में खतरे की घंटियां बजने लगती हैं ।"


"सांता मारिया !" - एडुआर्डो नेत्र फैलाकर बोला ।


" यानी की बीम की खबर नहीं थी आपको !"


"नहीं थी लेकिन हमारी पहली समस्या के साथ-साथ इसका भी हल कोई इनसाइड मैन ही हो सकता है । "


"इनसाइड मैन ?"


"कोई कैसीनो का आदमी । कोई ऐसा आदमी जिसकी दूसरी मंजिल पर हर जगह पहुंच हो और जो तुम्हें भीतर दाखिल होने देने के लिये वॉल्ट वाले कमरे की खिड़की भीतर से खोल के रखे और तो... वो इलैक्ट्रोनिक बीम आफ कर के रखे ।"


"ऐसा आदमी है आपकी निगाह में ?"


“अभी नहीं है लेकिन मैं तलाश कर लूंगा ।"


“आप ऐसे आदमी से क्यों वो खिदमत चाहते हैं, इसकी वजह भी आपको उसे बतानी पड़ेगी ।"


"जाहिर है ।"


"फिर तो एक हिस्सेदार और बढ़ जाऐगा ।"


"हम कोशिश करेंगे कि उसे हिस्सेदार न बनाना पड़े, वो एम्बुलैंस वाली टीम की तरह किसी फिक्स फीस पर ही हमारा काम करने को तैयार हो जाए।"


“आप मजाक कर रहे हैं !"


"क्या मतलब ?"


" जनाब, जिस आदमी का स्कीम में रोल इतना अहमतरीन होगा कि उसके बिना स्कीम धरी रह जाएगी, वो भला किसी छोटी मोटी रकम के लिए काम करने को क्यों कर तैयार हो जाएगा ?”


एडुआर्डो सोचने लगा ।


"सच पूछिए तो उसका रोल तो मेरे से भी अहम होगा । खिड़की न खुली और वॉल्ट के रास्ते की वो अलार्म बीम बंद न हुई तो किस काम का मैं और किस काम का मेरा हुनर !"


"ओके । ओके । समझ लो कि हिस्सेदार सात हो गए।"


"कितने माल में ?"


"उतने माल में जो कि वहां से बरामद होगा और कितने माल में ?"


"कितना माल बरामद होगा वॉल्ट से ?"


"माल लाखों-करोड़ों में हो सकता है । "


" या नहीं भी हो सकता है । "


"ऐसा कैसे हो सकता है ?"


" हो सकता है । वहां नकद रकम कैसीनो में लगने वाले दावों की मूवमेंट पर निर्मर होती है। ये कतई जरुरी नहीं कि मेहमान ही हारें और हर बार कैसीनो ही जीते । "


"तुम कहना क्या चाहते हो ?"


"ये कि इत्तफाक से या हमारी बदकिस्मती से एक घड़ी ऐसी भी आ सकती है जब कि वॉल्ट में रुपया न हो और वो ही नामुराद घड़ी हमारे पल्ले पड़ सकती है ।"


"रुपये बिना कहीं कैसीनो चलाया जा सकता है !"


"रुपया होगा लेकिन कैशियरों के पास होगा। वॉल्ट में तो सरप्लस पैसा ही रखा जाता होगा न ! हो सकता है वॉल्ट खोलने की जो घड़ी हमारे पल्ले पड़े उसमें सरप्लस पैसा कैसीनी में हो ही नहीं !"


"ये तो बड़ी गड़बड़ वाली बात होगी।" - एडुआर्डो चिन्तित भाव से बोला ।


"मैं नहीं कहता कि ऐसा होगा लेकिन ऐसा हो सकता है । ऐसा हुआ तो इसका क्या मतलब होगा ? इसका मतलब होगा गुनाह बेलज्जत ।”


"हूं।"


कुछ क्षण खामोशी रही ।


"वो मूर्तियां !" - एकाएक ऐंजो बोला ।


"मूर्तियां!" - एडुआर्डो सकपकाया ।


"गोल्ड की । आठ | वॉल्ट में । ये बोला । खुद अपनी आंखों से देखकर आया ये ।"


"मूर्तियों का क्या किस्सा है ?” जीतसिंह ने बताया ।


"फिर क्या प्रोब्लम है !" - एडुआर्डो चैन की सांस लेता हुआ बोला- "रोकड़ा नहीं होगा तो दो डेढ़ करोड़ से ऊपर की मूर्तियां तो हाथ लगेंगी।"


"उनकी रोकड़े में तब्दील करना आसान काम न होगा ।"


"तुम फिक्र न करो । उनका ग्राहक मैं ढूंढ़ लूंगा।"


"पहले ।"


"पहले किसलिए ?"


“ताकि रोकड़ा फौरन हाथ आ सके । ताकि इस हाथ दे उस हाथ ले वाला सौदा हो सके । "


" सी ओ डी ।" - ऐंजो अपना जान बघारता हुआ बड़ी शान से बोला - "कैश ऑन डिलीवरी ।"


"वही ।" - जीतसिंह बोला । 


"ठीक है।" - एडुआर्डो बोला- "मैं तलाश करता हूं ग्राहक।"


"जल्दी । एक हफ्ते के भीतर-भीतर ।'


"क्यों ?"


जीतसिंह ने जवाब न दिया ।


"क्यों ?" - एडुआर्डो ने अपना सवाल दोहराया ।


"इसको रोकड़ा" - जवाब ऐंजो ने दिया - "विद इन द्वैल्व डेज मांगता है, नहीं तो नहीं मांगता ।"


"ऐसा क्यों ?"


किसी ने जवाब न दिया ।


"ठीक है ।” - एडुआर्डो बोला- "मैं जल्दी ही कुछ करूंगा।”


फिर उसने नए जाम बनाने के लिए रम की बोतल संभाल ली ।


***

आधी रात को वो वापिस लौटे ।


"बॉस" - रास्ते में ऐंजो बोला- "क्या बोलता है एडुआर्डो के बारे में ?"


“ठीक है।" - जीतसिंह लापरवाही से बोला ।


"बस ! खाली ठीक है ?"


"भई, रिकार्डो से ज्यादा समझदार है । आगाशे से ज्यादा जिम्मेदार है।"


" यानी कि हम कुछ कर गुजरेंगे ?"


"अगर वो इनसाइड मैन वाली समस्या हल हो गई तो । " 


"हो जाएगी । मेरा दिल बोलता है, हो जाएगी ।" 


“फिर क्या वान्दा है !" 


“यू सैड इट । बॉस ! वैल, गुड लक टू अस । मे वी बोथ गैट रिच | "


“आमीन ।”


"ये साला थर्ड चांस है । ये भी नक्की हो गया तो मेरे को लगता है कि फिर कोई चांस नहीं मिलेगा ।”


"मेरे को भी लगता है । आगाशे से उस रोज के बाद फिर कोई बात हुई ?"


"हां, हुई । फोन पर हुई ।"


"क्या बोलता था ?"


"यही कि तू खामखाह मिजाज दिखाया और इतना बढ़िया स्कीम छोड़कर भाग गया। बॉस, वो अभी भी चाहता था कि तू उसके साथ काम करे ।"


"सवाल ही नहीं पैदा होता । "


" मैं भी सेम ट सेम बोला । नो क्वेश्चन । जो काम नक्की किया, नक्की किया । "


“अब वो क्या करेगा ? ख्याल छोड़ देगा बख्तरबंद गाड़ी लूटने का ?"


"नहीं, ख्याल तो नहीं छोड़ने वाला । उसको तो वो एकदम परफेक्ट स्कीम मालूम होता है ।"


"तो क्या करेगा ?”


“ढूंढेगा कोई नवां जीतसिंह, कोई नवां ऐंजो । ढूंढ़ रहा ही होगा | क्या पता ढूंढ़ चुका ही हो । "


"बढ़िया ।"


***

अगले रोज दुकान बन्द करके जीतसिंह पैदल घर जा रहा था ।


आकाश पर उस रोज काले बादल छाए हुए थे और बारिश की दहशत से रास्ता लगभग सुनसान पड़ा था ।


तभी एक काली एम्बैसेडर उसके पहलू में आकर रुकी। कार का पिछला दरवाजा खुला और उसमें से हाथ में एक पर्चा थामे एक आदमी बाहर निकला ।


"मिस्टर ।" - वो बोला- "जरा देखना ये पता किधर पड़ेंगा ?"


जीतसिंह ने पर्चे पर निगाह डाली ।


"कुछ दिखाई नहीं दे रहा ।" - वो बोला ।


"जरा डोम लाइट जलाना ।" - वो आदमी कार के भीतर बैठे किसी आदमी से बोला ।


डोम लाइट जली तो जीतसिंह ने देखा कि आगे ड्राइवर के अलावा पिछली सीट पर केवल एक ही सवारी मौजूद थी। उसने कार की तरफ घूमकर पर्चे को यूं सामने को किया कि डोम लाइट की रोशनी उस पर पड़ पाती और उस पर लिखी इबारत पर निगाह डाली ।


तभी बाहर खड़े व्यक्ति ने उसे जोर से धक्का दिया कि वो कार के भीतर जाकर गिरा । बाहर खड़ा व्यक्ति फुर्ती से उसके पीछे कार में घुस आया । कार की डोम लाइट बुझ गई और कार फिर सड़क पर दौड़ चली ।


न जाने क्यों यूं अपहरण किये जाने पर जीतसिंह तनिक भी भयभीत न हुआ । उसने दाएं बाएं बैठे आदमियों पर निगाह दौड़ाई लेकिन काले सायों के अलावा उसे कुछ दिखाई न दिया ।


"मार्सेलो के आदमी हो ?" - वो सहज भाव से बोला । कोई उत्तर न मिला ।


"लड़की सोफिया क्या फिर वॉल्ट में बंद हो गई है ?"


"चुपचाप बैठ ।" - एक आदमी भावहीन स्वर में बोला । "माजरा क्या है ?”


"मालूम पड़ जाएगा। अभी खामोश बैठ | "


जीतसिंह खामोश हो गया ।


पांच मिनट बाद उसने महसूस किया कि गाड़ी कैसीनो डबल बुल का रास्ता नहीं पकड़े हुए थी । और पांच मिनट बाद एक दोमंजिला इमारत के करीब उसकी रफ्तार कम हुई । कार का हार्न बजा तो किसी ने इमारत का बाहरी फाटक खोल दिया । कार भीतर कम्पाउंड में दाखिल हुई और उसकी पोर्टिको में खड़ी हुई । पीछे बैठे दोनों आदमी जीतसिंह के साथ बाहर निकले । ड्राइवर कार में ही बैठा रहा ।


एक ने आगे बढ़कर काल बैल बजाई ।


दरवाजा एक नौकर ने खोला ।


"साहब कहां हैं ?" - काल बैल बजाने वाले ने पूछा ।


"स्टडी में ।"


"इसे वहां ले के जा ।"


नौकर ने सहमति में सिर हिलाया ।


"आइए।" - वो जीतसिंह से बोला ।


जीतसिंह उसके साथ हो लिया ।


उसके अपहरताओं ने उनके पीछे आने की कोशिश न की।


नौकर ने हॉल के दाएं कोने का एक दरवाजा खोला और एक तरफ हट गया । जीतसिंह ने भीतर कदम रखा तो उसने पाया कि वो एक विशाल कमरा था जिसमें इतनी वाल पेंटिंग और कांसे और संगमरमर की प्रतिमाएं थीं कि वो एक छोटा मोटा म्यूजियम मालूम होता था । एक तरफ एक विशाल ऑफिस टेबल थी जिसके पीछे एक राजसिंहासन जैसी एग्जीक्यूटिव चेयर पर एक सूटबूटधारी व्यक्ति बैठा सिगरेट के कश लगा रहा था ।


"आओ।" - जीतसिंह को देखते ही वो बोला- "आओ । बैठो।"


जीतसिंह आगे बढ़ा और झिझकता हुआ उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया ।


"सिगरेट लो ।"


जीतसिंह ने एक सिगरेट ले लिया । उस व्यक्ति ने भी अपनी चालू सिगरेट ऐश-ट्रे में झोंककर नया सिगरेट लिया और दोनों सिगरेट सुलगाए ।


"हमारे आदमी किसी गलत आदमी को तो नहीं पकड़ लाए ?" - वो उपहासपूर्ण स्वर में बोला - "तुम्हारा नाम बद्रीनाथ ही है न ?" -


"हां । " - जीतसिंह बोला ।


"हम तुमसे मिलना चाहते थे।"


"बड़ा अच्छा तरीका सोचा मिलने का !”


"भई, वो क्या है कि हमें पता लगा था कि तुम तो हथियारबंद लोगों के भी काबू में नहीं आते हो।" उसने अट्टहास किया - "खुद खाली हाथ हाते हुए हथियार छीन लेते हो उनके !”


"कैसे मालूम ?” - जीतसिह के मुंह से निकला ।


"इसलिए एक तरह से तुम्हारा अगवा कराना पड़ा।" - वो फिर हंसा - “लेकिन खातिर जमा रखो । तुम यहां बिल्कुल सेफ हो। तुम्हारे अड़ी करने का अन्देशा न होता तो हम तुम्हें सिर्फ पैगाम भिजवाते कि गाडगिल साहब तुम से मिलना चाहते थे।"


“गाडगिल साहब ! यानी कि आप ?”


" यानी कि हम ।"


"क्यों मिलना चाहते थे आप मेरे से ?"


"भई, तुम्हारी कुछ खूबियों की हमने ऐसी तारीफ सुनी थी कि हमारी ख्वाहिश होने लगी थी कि उनकी तसदीक हम तुम्हारी जुबानी सुनें ।"


"खूबियां ?"


"सुना है, मार्सेलो के कैसीनो का वॉल्ट तुमने चुटकियों में खोल लिया था !"


"किससे सुना है ?" 


"सुना है किसी से । लेकिन सच तो है न ये बात ?" 


"नहीं । सच नहीं है । मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ।” 


"तुमने कैसीनो का वॉल्ट नहीं खोला ?"


"नहीं । "


"तुम बद्रीनाथ हो न ?"


"हां । मेरा नाम बद्रीनाथ है । "


" ओल्ड गोवा में ओल्ड कोर्ट रोड पर जिसकी तालों की दुकान है ?"


"दुकान मेरी नहीं है, मैं वहां सिर्फ मुलाजिम हूं।"


"फिर तो तुम वही बद्रीनाथ हो । फिर तुम ये क्यों कहते हो कि तुमने कैसीनो का वॉल्ट नहीं खोला ?"


"क्योंकि ये सच है। मैंने कैसीनो का वॉल्ट नहीं खोला ।"


गाडगिल के चेहरे पर उलझन के भाव उभर आए । फिर एकाएक वो यूं सचेत हुआ जैसे कोई बिसरी बात याद आ गई हो ।


"कहीं तुम ये तो नहीं समझ रहे हो" - वो फिर हंसता हुआ बोला- "कि तुम पुलिस के पास पहुंच गए हो। भई, यकीन जानो हम पुलिस नहीं हैं। पुलिस से हमारा दूर दूर का कोई वास्ता नहीं है । बल्कि सच पूछो तो पुलिस तो हमें अपनी दुश्मन दिखाई देती है।"


जीतसिंह खामोश रहा । गाडगिल की उस सफाई से वो आश्वस्त नहीं था, उसे यही अन्देशा सता रहा था कि वो गायकवाड़ की ही कोई चाल थी । यानी कि अब वो उस गाडगिल साहब के जरिये उससे ये कुबूलवाना चाहता था कि उसने कैसीनो का वॉल्ट खोला था ।


"अब बोलो क्या कहते हो ?" - गाडगिल बोला ।


"वही जो पहले कहता था । मैंने वॉल्ट नहीं खोला । मुझे ऐसा कोई हुनर नहीं आता ।”


गाडगिल ने एक आह - सी भरी । फिर उसने मेज पर रखी एक घंटी बजाई । तत्काल दरवाजा खुला और पहले वाला नौकर चौखट पर प्रकट हुआ।


“बाहर रामदेव करके एक आदमी बैठा है।" - गाडगिल बोला - “उसे यहां बुलाकर लाओ ।”


नौकर सहमति में सिर हिलाता हुआ रुख्सत हो गया ।


दो मिनट बाद जिसे आदमी ने स्टडी में कदम रखा, उसे देखकर वो चौंका ।


वो मार्सेलो का वो आदमी था जिससे उसने उसकी रिवॉल्वर छीनी थी ।


धनेकर ।


धनेकर की उससे निगाह मिली तो वो मुस्कराया ।


"ओह !" - जीतसिंह बोला- "तो ये माजरा है ।"


"क्या माजरा है ?" - गाडगिल उसे घूरता हुआ बोला ।


"मार्सेलो के कैम्प में ये... ये रामदेव.... रामदेव धनेकर... आपका भेदिया है ?"


"समझदार आदमी हो । बात को जल्दी समझ जाते हो ।” जीतसिंह खामोश रहा ।


" अब बोलो वॉल्ट खोला होने की बाबत क्या कहते हो ?"


"जो बात आपको मालूम ही है, उसकी बाबत सवाल करने का क्या फायदा ? इस, धनेकर की मौजूदगी में मैं उस बात से कैसे मुकर सकता हूं।" .


"फिर भी जुबानी कुबूल करो ।" 


"ठीक है । किया ।" 


"वॉल्ट दोबारा खोल सकते हो ?" 


"खोल सकता हूं।"


"क्या ये सच है कि वॉल्ट में कई सोने की बेशकीमती मूर्तियां बंद थीं ?"


"हां । आठ । जो किन्नरियों के नाम से जानी-पहचानी जाती हैं। "


"तुम्हें ये भी मालूम है ?"


"हां"


"वो मूर्तियां हमारे को चाहिए। किसी ने हमें उनकी ऑफर दी है।”


"किसने ?"


“किसी ऐसे शख्स ने जो उन मूर्तियों को कैसीनो के वॉल्ट से निकाल सकता है। "


"आप हैं उसके ग्राहक ?"


"हां ! लेकिन पहले हमें इस बात की तसदीक चाहिए थी कि जो कुछ वो शख्स कह रहा था, सच कह रहा था । वो तसदीक या मार्सेलो कर सकता था या तुम कर सकते थे, हमारी खबर के मुताबिक जिसने कि हाल ही में वॉल्ट खोला था । तो तुम इस बात की तसदीक करते हो कि वॉल्ट में रखी हैं ?"


"हां"


" उन्हें वहां से निकाल सकते हो ?"


"मैं वॉल्ट खोल सकता हूं लेकिन भरे पूरे कैसीनो से उन्हें निकाल के नहीं ला सकता ।"


"फिर क्या बात बनी ?"


"ये किसी अकेले के किए होने वाला काम नहीं । ये टीम का काम है । "


"टीम ?"


"जिसका कि मैं एक हिस्सा... हो सकता हूं।"


"हिस्सा हो सकते हो ? कहीं उसी शख्स से तो तुम्हारा गठजोड़ नहीं जोकि हमारे पास मूर्तियों की फरोख्त की ऑफर लेकर आया था ?”


" हो सकता है। नाम क्या बताया था उसने अपना ?"


"नाम उसने एडुआर्डो बताया था लेकिन ये नाम फर्जी भी हो सकता है ।”


जीतसिंह खामोश रहा ।


" यानी कि वो आदमी बंडल नहीं मार रहा था । आइन्दा दिनों में सच में उसकी उन मूर्तियों तक पहुंच हो सकती है।"


"एक-दो मामलों में थोड़ी मदद हासिल हो जाए तो मैं अभी गारंटी कर सकता हूं कि यकीनन हो सकती है।" “किन मामलों में ?"


"हमें एक इनसाइड मैन की मदद दरकार है । वो इनसाइड मैन ये" - जीतसिंह ने धनेकर की तरफ इशारा किया - "हो सकता है। "


धनेकर हड़बड़ाया ।