दिल को चुराया तूने सनम

रात के 03:00 बज रहे थे। वीर और माया फ़ोन पर बात कर रहे थे। कुछ महीनों के इस रिलेशनशिप ने प्यार का वो ख़ूबसूरत रूप ले लिया था कि दोनों अब एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे। वो कालेज में क्या-क्या हुआ उस पर बातें करते थे, घर से related बातें करते थे और अन्त में प्यार की बात न हो, ऐसा तो असम्भव था दोनों के बीच। कभी-कभी तो बातें इतना लम्बी चलती थीं कि दोनों की गुड़-मार्निंग भी फ़ोन पर ही हो जाती थी।

वीर और माया फ़ोन पर बातें करते करते कभी-कभी कुछ देर के लिए शान्त हो जाते थे। ऐसा ही होता है गंभीर प्यार। इंसान प्यार के शुरुआती दिनों में नदी की तरह होता है। जहाँ से शुरुआत होती है वहाँ उथल-पुथल होती है और जैसे-जैसे वो प्रेम के समन्दर की गहराइयों में उतरते जाते है तो शान्त और गंभीर हो जाते है। प्यार भी ऐसा ही होता है, शांत और गंभीर।

माया ने वीर से कहा कि बताओ, तुम मुझसे कितना प्यार करते हो? कितना चाहते हो मुझे? माया की बात सुनकर वीर कुछ सेकेंड तक चुप रहा। फिर उसने माया से कहा कि मैं तुमसे उतना प्यार करता हूँ जितना तुम मुझे करने दोगी। मैं कितना प्यार करता हूँ यह जानने के लिए तुम अपनी बाँहें खोलो, मैं उनमे समा जाऊँगा।

“यह क्या बात हुई? मैंने तुमसे क्या पूछा और तुम क्या बता रहे हो?” माया ने कहा।

“मैं तुम्हें वही बता रहा हूँ जो तुमने पूछा है। हाँ, मुझे ख़ुद भी नहीं पता अपनी दीवानगी के बारे में। मैं तुम्हें कितना चाहता हूँ? यह तो तुम्हें मैं बिल्कुल भी नहीं समझा पाऊँगा।” वीर ने जवाब दिया।

“देखती हूँ, जब मैं तुम्हारी नज़रों से दूर हो जाऊँगी तब भी तुम मुझे इतना ही प्यार करोगे क्या?” माया ने कहा।

“अब ऐसी बात क्यूँ बोल रही है? ये प्यार देखनी की चीज़ नहीं है। महसूस करो इसे तो तुम्हें ख़ुद ही सवालो के जवाब मिल जाएँगे। और यह क्या बात कही तुमने कि नज़रों से दूर चली जाऊँगी?” वीर ने पूछा।

“हम्मम...ऐसा ही होने वाला है। मैं ये कालेज छोड़ रही हूँ। मेरे घरवालों ने दूसरे शहर में कोई कालेज देख लिया है तो अब मैं वही पर पढूंगी।” माया ने कहा।

“ये क्या बकवास कर रही है? दिमाग़ ख़राब है क्या तेरा? कालेज कैसे छोड़ सकती है तू? जैसा तूने मुझे एक बार अप्रैल फूल बनाया था, यह कहकर कि मैं अपनी एक फ्रैंड़ के घर आई हुई हूँ तो मैं सिर्फ़ तुम्हें देखने के लिए उस घर के बाहर घंटों खड़ा रहा था। फिर बाद में तुमने बताया कि तुम अप्रैल फूल बना रही थी। अब ये बिना अप्रैल के महीने के मुझे फूल बना रही हो ना।” वीर ने कहा।

“हाँ, मुझे याद है कि मैंने तुम्हें एक बार अप्रैल फूल बनाया था, लेकिन अब मैं कोई तुम्हें फूल नहीं बना रही हूँ। मैं सच में कालेज छोड़ रही हूँ। आज ही घर पर यह फाइनल हुआ है। बस, मैं केवल परीक्षा तक ही हूँ कालेज में।” माया ने कहा।

“लेकिन ऐसे बीच में कालेज छोड़ना तो ग़लत है ना। तुम्हारा एक साल बर्बाद हो जाएगा। और कम-से-कम मेरा तो सोच। मैं कैसे रह पाऊँगा तुम्हारे बिना? तुम्हें जब तक कालेज में न देखूँ तो लगता है कि अभी तक मेरा दिन तो शुरू ही नहीं हुआ है। और वैसे भी इस कालेज और उस कालेज में फ़र्क थोडे ही है? पढाई तो यहाँ भी हो सकती है।” वीर ने कहा।

“हाँ, पढ़ाई तो यहाँ भी हो सकती है। मैं ख़ुद भी नहीं चाहती थी इस कालेज को छोड़ना, लेकिन अब घर पर फ़ैसला हो चुका है और वैसे भी मैं ये कालेज छोड़ रही हूँ, तुम्हें नहीं।” माया ने कहा।

“हाँ, वो तो ठीक है, लेकिन अब मिलना कम हो जाएगा न हमारा?” वीर ने माया से पूछा।

“ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा। हम मिलते रहेंगे। अब यह सब छोड़ो । सुबह होने वाली है। अब मैं फ़ोन रखती हूँ। कल बात करेंगे, बाय।” माया ने यह कहकर फ़ोन काट दिया।

माया के फ़ोन रखने के बाद बातों से हो रहे शोर ने कमरे में फैली ख़ामोशी के साथ सन्तुलन बना लिया था। वीर ने मोबाइल को चार्जिंग प्वाइंट में लगाया और बिस्तर पर पसर गया। वह थोड़ी देर सो जाना चाहता था, लेकिन माया के कालेज छोड़ने की बात के कारण नींद उसकी आँखों से ओझल हो गई थी। वह माया के बारे में सोच रहा था। उसकी आँखों के सामने माया को पहली बार देखने से लेकर अब तक के सारे दृश्य घूमने लगे थे। उसे एक-एक घटना, साथ बिताया एक-एक पल बारिकी से नज़र आ रहा था। माया के साथ बिताया हुआ समय चलचित्र बनकर वीर की आँखों के आगे चल रहा था।

वीर का माया को पहली बार देखना, कुछ दिनों तक दोनों का नज़रें चुराकर एक-दूसरे को देखना, माया को प्रपोज़ करना, उसकी कॉल का इन्तज़ार करना, उससे पहली बार सिटी हार्ट रेस्टोरेंट में मिलना, उसी रेस्टोरेंट की फेमस ‘कसाटा आईसक्रीम’ बार-बार खाना, कालेज में उसकी बॉटनी लैब की attendance प्रॉब्लम को सुलझाना, शहर के बाहर बने मशहूर जल महल को देखना तथा वहाँ बैठकर कुछ समय बिताना, खालडा वाले हनुमान मन्दिर में जाना और वहाँ बाहर सीढ़ियों पर बैठकर बातें करना, उसकी फ्रैंड़ के भाई की शादी में साथ जाना, सुभाष पार्क में पेड़ की छांव में बैठकर वहाँ घंटों तक समय बिताना, माया के हाथ के बढ़े हुए नाखूनों को हर बार काट देना यह कहकर कि मुझे बढ़े हुए नाखून अच्छे नहीं लगते, माया का घर से हलवा बना कर लाना और उसे बिना यह बताए कि हलवा बहुत कच्चा था और उसमें मिट्टी के कारण किरकिराहट होते हुए भी खा लेना, कालेज से बस स्टैंड तक माया के जाते रहने पर बाइक से उसके पीछे दो-तीन बार चक्कर लगाना, माया को चॉकलेट लाकर देना, माया का वीर के जन्मदिन पर एक ब्राउन रंग की शर्ट ग़िफ्ट करना और माया को यह न बताना कि शर्ट के बाजू काफ़ी छोटे थे, घर का झूठ बोलना, उसी घर पर उन दोनों का मिलना और पहला किस करना, माया का एक बार कालेज में जींस पहन कर आना और उसे बाद में बताना कि जींस उस पर अच्छी नहीं लग रही थी, नीले रंग के सूट में माया का इतना ख़ूबसूरत लगना, उसके होंठों के नीचे के तिल से वीर के सीने का दिल चुराना, रवि को कालेज के बाहर बुलाकर समझाना, कालेज के पीछे खुले मैदान में हुई लडाई, माया को नया मोबाइल और सिम कार्ड देना, घंटों तक रात को माया से बात करना, फ़ोन बिज़ी आने पर घंटों तक इस पर लड़ाई करना, उसका नाराज़ होना, माया का वीर को लव-लैटर देना जिसमें तीन पेज़ पर केवल ‘आई लव यू’ ही लिखा था और आख़िरी पेज पर हाथ से बनाया हुआ मिकी माउस का कार्टून जिसमें रंग भरे हुए थे और नीचे लिखा था कि आपकी शक्ल बहुत स्वीट है, रात को वीर के कहने पर फ़ोन पर ‘दिल को चुराया तूने सनम-पागल बनाया तूने सनम-आवारगी थी रहबर मेरी-जीना सिखाया तूने सनम’ गाकर सुनाना, माया को तनुश्री दत्ता कहकर उसे चिढ़ाना, माया की तस्वीरें लेना, वीर की शर्ट पहन कर माया का बिस्तर पर लेट जाना, वीर के करीब आने पर माया का शर्म से वीर से लिपट जाना, वीर का माया के जिस्म पर बने तिलों को गिनना, फ़ोन पर प्यार की बातें करना, अजय से माया के बारे में बातें करना, बीयर और सिगरेट पीना छुपाना, अजय और माधवी का वीर को माया का नाम लेकर छेड़ना। 

यह सब कुछ वीर की आँखों के आगे किसी फ़िल्म की तरह चल रहा था। उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था कि माया अब कुछ दिनों में कालेज छोड़कर जाने वाली है। अब उससे मिलना कम हो जाएगा और देखना तो कभी-कभी हो पाएगा। माया ने तो कहा है कि उनका मिलना कभी कम नहीं होगा, लेकिन फिर भी इनसिक्योरिटी बार-बार वीर के दिमाग़ पर हावी हो रही थी।

काफ़ी देर तक माया के बारे में सोचते रहने के कारण वीर का मन तो सोने का बिल्कुल भी नहीं हो रहा था, लेकिन आँखों मे उसे नींद का बोझ-सा महसूस हुआ और वीर वहीं बिस्तर पर आँखें बन्द कर लेट गया।

जब इंसान प्यार में होता है तो वह अपने प्रेमी के अतिरिक्त कुछ सोच ही नहीं पाता है। यह एक प्रकार का जुनून बन जाता है और वह इंसान प्यार और प्रेमी के अलावा किसी अन्य काम पर एकाग्र नहीं हो सकता है।

आजकल की जनरेशन जो व्हाट्सऐप, वीडियो कॉल, चैटिंग, इंस्टाग्राम रिल्स में जूझती हुई प्यार तलाशती है, वो क्या जाने कि मिलने और देखने का जुनून क्या होता है? वो नहीं जान पाते उस समय की घुटन, इन्तज़ार, प्यार और खुशी को, जो बिल्कुल जुनूनी होती थी, जो आज की जनरेशन में ख़त्म होने की दहलीज़ पर है।