भूत
‘श्रीकांत प्रजापति जी’, भल्डियाना नामक गाँव में किराये के मकान में स्थायी हुए, पेशे से शिक्षक हैं। श्रीकांत स्कूल में काफी लोकप्रिय शिक्षक हैं। स्कूल में पढ़ाने के बाद वह बच्चों को अपने घर पर ट्यूशन भी पढ़ाते हैं। अभी 2 साल पहले ही उनका तबादला हो चुका है, पर जब वह भल्डियाना में थे, तब उन्हें अपने किराये के घर में एक बेहद भयानक अनुभव हुआ था।
भल्डियाना गाँव उत्तराखण्ड के टिहरी जिले में पड़ता था। यह शहर से काफी दूर होने के साथ-साथ एक पहाड़ी इलाका था, जहाँ उच्च शिक्षा के लिए अच्छे कॉलेज का अभाव था। उनका परिवार देहरादून में ही रहता था क्योंकि वहाँ शैक्षणिक सुविधा और बच्चों के पढ़ने के लिए अच्छे कॉलेज थे।
ये घटना उनके तबादला होने से लगभग 2 वर्ष पूर्व की है। तब वे पिछले 4 सालों से भल्डियाना गाँव में किराये के मकान में अकेले ही अपनी ज़िंदगी का पहिया चला रहे थे।
उस दिन कुछ अजीब सी बातें हुई। अचानक उनके मकान मालिक ने उन्हें कमरा खाली करने को कहा। इसके पीछे कारण यह था कि मकान मालिक की पुत्री का विवाह तय हो गया था और विवाह की तिथि अगले ही माह को 16 तारीख को निर्धारित हुई थी, जो पास के ही गाँव छाम में तय हुआ था। विवाह की तैयारियों को मद्दे नज़र और जगह के अभाव का हवाला देकर, उन्हें कमरे को छोड़ने का निवेदन किया गया था।
श्रीकांत जी भी बड़े उसूलों वाले व्यक्ति थे। उन्होंने यहाँ चार वर्षों से भी ज्यादा वक्त दिया था और मकान मालिक की मंद बुद्धि वाली पुत्री को किसी तरह इंटरमीडिएट तक की शिक्षा पूर्ण करवाने में और उत्तीर्ण करवाने में इनका बहुत बड़ा हाथ रहा था।
अचानक कमरा छोड़ने की बात, उनके दिल पर घाव कर गई।
आनन फानन में श्रीकांत जी ने अगले दिन ही अपना कमरा शिफ्ट कर लिया, जो कि भल्डियाना गाँव के दूसरे छोर पर ही था। हालाँकि वहाँ आस पड़ोस में 200 मीटर की दूरी पर भी किसी का घर नहीं था।
हाँ मगर, उनके इस अकेलेपन का साथ देने के लिए, घर के बगल में ही बड़ा सा ट्रांसफ़ार्मर और चीड़ के कुछ ऊंचे-ऊंचे वृक्ष जरूर विराजमान थे।
इन्होंने अपनी शिक्षा बोर्डिंग स्कूल से की थी, जिसकी वजह से नियमित सुबह 6 बजे उठना और सारे कार्यों को खुद ही वक़्त रहते सम्पन्न कर देते थे। यही दिनचर्या आज भी इनकी ज़िन्दगी का एक बड़ा हिस्सा बन चुकी थी, या दूसरे शब्दों में ये भी कहें कि ये अपने ही कार्यों में इतना उलझे रहते कि आस पड़ोस की ज़िंदगी में क्या चल रहा है, इन्हें उसकी ज़रा सी भी सुध-बुध नहीं रहती, कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
◆◆◆
नए कमरे में आए हुए उन्हें अभी चंद दिन हुए थे। रविवार की एक शाम वह अपनी आराम कुर्सी पर बैठ कर सुस्ता रहे थे। अचानक उनकी अलमारी का पल्ला अपने आप धड़ाम से खुल गया। इस आवाज़ से वह चौंक गए। उन्हें एक पल को काफी डर महसूस हुआ, चूँकि उस शाम वहाँ कोई हवा नहीं चल रही थी और घर पर तो वह अकेले ही रहते थे।
वह उठ कर अलमारी का पल्ला फिर से बंद कर, कुर्सी की ओर जाने लगे। तभी उन्हें महसूस हुआ कि किसी ने उनका नाम पुकारा और वह आवाज़ उस अलमारी के अंदर से आ रही थी।
इस भयानक घटना से श्रीकांत जी बुरी तरह डर गए। उन्हें वहीं खड़े-खड़े पसीने आने लगे और वह बुरी तरह काँपने लगे। हालाँकि वह विज्ञान विषय के शिक्षक थे और इन सब ऊलजलूल बातों पर विश्वास नहीं करते थे।
परन्तु जब ऐसे हालात का खुद सामना हो तो सारी की सारी तर्क विसंगत बस्ते में धरी की धरी रह जाती है।
डरते-डरते उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा तो अलमारी का पल्ला धीरे-धीरे हिल रहा था, जैसे कि अंदर से उसे कोई धक्का दे रहा हो।
खौफ के मारे काँपते हुए, श्रीकांत जी थोड़ी देर वह अजीब नज़ारा देखते रहे। तभी अचानक अलमारी से गाढ़ा काला धुआं बाहर आने लगा। यह सब घटनायें देख कर श्रीकांत जी की चीख निकल गई।
श्रीकांत जी दौड़ कर घर के बाहर आ गए। उन्होंने सोचा कि मकान मालिक को यह सब बातें जाकर अभी ही बता दें। वह दृढ़ निश्चय करके मकान मालिक के पास जाने लगें। मकान मालिक इस वक़्त अपनी दुकान पर ही रहते थे। दुकान को उन्होंने अपने घर के दाहिने हिस्से में बना रखा था। श्रीकांत चेहरे पर भय और मन में खौफ लिए दुकान की तरफ बढ़ चले।
अभी कुछ ही दूर चले ही थे कि उनके जेहन में विचार आया, “क्या यह सही रहेगा? मैं विज्ञान का शिक्षक हूँ। यदि मैंने उनसे इस तरह की बातें की तो लोग उनका मजाक बनाएंगे और वे गाँव में हँसी के पात्र बन जाएंगे। क्या पता, शायद यह मेरे बोझिल मन का वहम हो?”
यही सोचते-सोचते उनके कदम रुक गए। उन्हें इस बात का तनिक भी एहसास नहीं हुआ कि वह चलते-चलते मकान मालिक के दुकान के समीप आ चुके थे।
“गुरुजी, प्रणाम! कहिए, क्या परेशानी है?”, मकान मालिक ने उनके मंतव्य को भांपते हुए पूछा।
“न...नहीं तो! कुछ भी नहीं! मैं तो बस टहलने के लिए निकला था तो इस तरफ आ गया।”, श्रीकांत ने संकोच भरे शब्दों से बात दबाने की सफल कोशिश की।
“कुछ चाहिए तो बता दीजिएगा, मैं आपको कमरे पर ही भिजवा दूंगा।”, यह कहते हुए मकान मालिक किसी दूसरे ग्राहक को सामान देने में मसरूफ़ हो गए।
श्रीकांत भी लगभग दौड़ते हुए कमरे की तरफ चल दिए। जल्दबाजी में वे कमरे को खुला ही छोड़ कर भाग पड़े थे।
उन्होंने मन ही मन में विचार किया कि कुछ भी हो, उन्हें एक बार जाकर ज़रूर देखना चाहिए। क्या पता, यह मन का वहम ही हो।
अब उनकी चाल में पहले से कहीं ज्यादा रफ्तार थी। उन्होंने अपने विचारों से खुद को मजबूत किया था।
कुछ क्षण पश्चात ही वे कमरे के अंदर दाखिल हो गए। उन्होंने देखा कि अलमारी बिल्कुल सामान्य स्थिति में अपनी जगह खड़ी है। उन्होंने हिम्मत करते हुए उस लकड़ी की अलमारी को अपने दोनों हाथों से एक झटके में ही खोल कर पीछे हटे।
अलमारी में सिवाय धूल के, और कुछ भी नहीं था। यह देखकर उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ था लेकिन उससे कई ज्यादा सुकून भी था। अच्छा हुआ कि उन्होंने मकान मालिक को यह बात नहीं बताई, नहीं तो उनकी बेकार में खिल्ली उड़ती और हँसी का पात्र बनते वह अलग।
जल्दी-जल्दी खाना बनाया और बिस्तर पर सोने चले गए। उन्होंने मन से इस घटना को मानसिक थकान का प्रभाव समझा और गहरी नींद के आगोश में समा गए।
◆◆◆
हमेशा की तरह सुबह-सुबह उठकर, दैनिक कार्यों को संपन्न करने के बाद वे समय से विद्यालय चले गए। शाम को थके-हारे घर आते हैं और रात का खाना बनाने में लग जाते हैं। चिली चिकन के साथ बियर का स्वाद लेने के बाद बिस्तर पर जा कर पसर गए।
बड़... बड़ाम... धड़ाम...
इस कर्कश आवाज से अचानक श्रीकांत बिस्तर से नीचे गिर पड़े। उन्होंने देखा कि इस धमाके के साथ बिजली कट गई थी। मोबाइल उठा कर देखा तो घड़ी ठीक बारह बजने का इशारा कर रही थी। बिस्तर से उठने के बाद मोबाइल का फ़्लैश लाइट चालू करने के बाद वे कमरे का दरवाजा खोल कर देखते हैं।
दरवाजा खोलते ही वे अवाक होकर के रह जाते हैं। सामने ट्रांसफ़ार्मर में शार्ट सर्किट होने की वजह से भयंकर आग लग गई थी और ट्रांसफ़ार्मर धू-धू कर जल रहा था।
वे मन मारकर कमरे के भीतर दाखिल हो गए। जलाने के लिए मोमबत्ती भी नहीं थी। वे मन ही मन खुद को कोसते हुए बिस्तर पर लेट गए कि वह इतने लापरवाह कैसे हो गए कि मोमबत्ती लेने की भी सुध न रही।
अगली सुबह जल्दी उठे और सुबह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के बाद स्कूल के तरफ रवाना हो गए। हमेशा की तरह थके-हारे कमरे में प्रवेश होते हैं और खाना बनाने के बाद कुछ वक्त बिजली का इंतजार करते हैं और मन मारकर मोमबत्ती के प्रकाश में ही अकेले कैंडल लाइट डिनर करने के बाद बिस्तर पर लुढ़क जाते हैं।
मध्य रात्रि को उनको एहसास होता है कि उनकी छाती पर बहुत भारी वजन रखा हुआ है, जैसे मानो कोई उनकी छाती पर ही बैठा हुआ हो। वे आँख खोल कर देखते हैं तो उन्हें कोई भी दिखाई नहीं देता है। कमरे में चारों तरफ घुप्प अंधेरा पसरा हुआ है।
उन्होंने कोशिश की अपने हाथ को उठा कर छाती तक ले जाए और पता करें कि ऐसा क्यों हो रहा है लेकिन उनका यह प्रयास असफल रहता है। वे अपने हाथ तो दूर, अपने पलक झपकाने के अलावा, और कुछ भी करने में अपने आपको असमर्थ साबित हो रहे थे। लगभग 15 से 20 मिनट तक वे लगातार हाथ उठाने और उठ कर बैठने की लगातार कोशिश करते रहें लेकिन हर बार उन्हें असफलता ही हाथ लग रही थी।
वे भय के मारे पसीने से तर-बतर हो जाते हैं। उनके सोचने समझने की शक्ति खत्म होती जा रही थी।
उनके समझ में बिल्कुल ही नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। वे लाख प्रयत्न करने के बाद भी बस उंगलियां ही हिला पा रहे थे।
धीरे-धीरे उनके छाती पर दबाव बढ़ता ही जा रहा था।
अब मानो लग रहा था कि बस दम घुटने ही वाला है और अपने अंत का बस मूक दर्शक बनकर इंतजार कर रहे हो। इस अप्रत्याशित हरकत ने उनके सोचने विचारने की शक्ति भी उनसे छीन ली थी।
उन्हें एक बात तो समझ आ गई थी कि पिछले कुछ दिनों की घटनाएँ, उनके लिए किसी अनहोनी होने का इशारा थी, जिसको उन्होंने ने हमेशा नजरंदाज किया था। उन्हें इस चीज़ का भी मलाल था कि अब जब उन्हें इस बात पर विश्वास हुआ तो बहुत देर हो चुकी है।
उनकी साँसें उखड़ने लगी थी और चेहरा बिल्कुल सुर्ख लाल हो चुका था। उनकी आँखों की पुतलियां भी बाहर आने को बेबस सी दिख रही थी। होंठ भय के कारण थर-थर कांप रहे थे।
श्रीकांत जी ने हार मान ली और उनकी आँखें बंद होने लगी। उन्होंने अपने इष्ट देव को अंतिम बार याद किया और इस विकट समस्या से बाहर आने की गुहार करने लगे।
उनके शरीर में अचानक कहीं से ऊर्जा मिली और वे बुदबुदाते हुए ‘बजरंग बाण’ पढ़ने लगे।
निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करें सनमान।।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनिपुत्र पवन सूत नामा।।
जय हनुमान सन्त हितकारी, सुन लिज्जे प्रभु अरज हमारी।।
यह बजरंग बाण जो जापै, ताते भूत प्रेत सब काँपै ।।
श्रीकांत जी जैसे ही यह मंत्र बोलने के बाद अपनी आँखें खोली तो देख कर चकित रह गए। एक जोड़ी चमकीली आँखें उनकी ओर चमकती हुई प्रतीत हुई, जो उस काले साये की थी जो उनकी छाती पर लगभग आधे घंटे से सवार था।
अब श्रीकांत जी को उसकी हल्की-हल्की आकृति दिखने लगी थी।
उन्होंने यह देखते ही जोर-जोर से ‘बजरंग-बाण’ का मंत्रोच्चारण करने में लग गए। मंत्रोच्चारण करते ही एक जादुई असर शुरू हो गया। थोड़ी देर में उन्हें भारहीनता का एहसास हुआ और उन्हें अगले ही पल यह महसूस हुआ कि अब उन्हें उस भारी वजन का एहसास नहीं हो रहा था, ना ही अब वह अदृश्य शैतान दिख रहा था।
श्रीकांत जी ने सोचा कि यह बात अपनी धर्मपत्नी को बता दे, जो देहरादून में बच्चों के साथ रहती थी। परन्तु जब घड़ी पर नजर गई तो अपने आपको रोक लिया। दीवार घड़ी पर नजर दौड़ाई तो रात्रि के ढाई बजे का वक़्त हो रहा था। इस वक़्त आधी रात को फ़ोन करना उन्होंने उचित नहीं समझा। उन्होंने निश्चय किया कि सुबह सूर्यास्त के बाद सारी आपबीती बता देंगे।
बहरहाल, इस घटना के कारण उनकी नींद तो काफूर हो गई थी, सो सुबह का इंतजार करने लगे। इंतजार करते-करते उनके दिमाग में ख्याल आया कि अगर मैं फ़ोन कर इन सारी घटनाओं को बताऊंगा तो वह बेवजह ही परेशान हो जाएगी। श्रीकांत जी ने तर्क शक्ति से काम लिया और यह निश्चय किया कि आज शनिवार का दिन है, क्यों न वे देहरादून के लिए सुबह ही निकल जाए और खुद इन सभी घटनाओं को प्रत्यक्ष ही बता दें।
यही सब सोचते-सोचते कब सुबह हो गई, उन्हें इसका एहसास ही नहीं हुआ। अचानक दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई। बेमन से वे बिस्तर से उठे और दरवाजे की तरफ सावधानीपूर्वक बढ़ चले। जैसे ही दरवाजा खोलते हैं, तो देखते हैं कि ट्यूशन वाले कुछ बच्चे आए हैं। उन्होंने बच्चों को दो दिन का अवकाश करने को कह दिया और दरवाजा खोल कर देहरादून जाने की तैयारी में जुट गए ।
देहरादून भल्डियाना से लगभग 150 कि॰मी॰ की दूरी पर ही था। श्रीकांत जी ठीक एक बजे देहरादून वाले घर पहुँच चुके थे।
उनके अचानक बिना सूचना दिए आने पर उनकी पत्नी ने संदेह व्यक्त किया, लेकिन उन्होंने सोचा कि थोड़ी देर में इस बात का जिक्र करेंगी और उनकी आवभगत में लग गईं।
बच्चे कॉलेज गए हुए थे। नहाने धोने के बाद उन्होंने बीती रात की आपबीती अपनी धर्मपत्नी को सिलसिलेवार तरीके से बता दिया।
शुरू में उनकी बातों का विश्वास उनकी धर्मपत्नी को नहीं हुआ लेकिन जब उन्होंने गंभीर और हताश मुद्रा में यह बात बताई तो उन्हें विश्वास हो गया। उनकी पत्नी ने उनकी बातें सुनकर यह निश्चय किया कि इतवार को वह भी उनके साथ भल्डियाना जाकर कुछ दिन साथ रहेंगी।
अगले दिन दोपहर को वे दोनों भल्डियाना के लिए निकल गए। शाम 6 बजे वे लोग भल्डियाना पहुँच गए।
जैसे-जैसे रात होती जा रही थी, वैसे ही श्रीकांत जी के दिल में भय भी बढ़ता जा रहा था। फिर भी कहीं न कहीं आज उन्हें आत्मबल भी मिल रहा था, क्योंकि आज वे इस कमरे में अकेले नहीं हैं। उनकी हिम्मत बढ़ाने के लिए उनकी धर्मपत्नी प्रमिला देवी उनके साथ ही थी।
बिजली को गए हुए चार दिन हो चले थे और अभी भी शहर से कोई मेकैनिक नहीं आया था। दोनों ने ज़िन्दगी में पहली बार एक साथ कैंडल लाइट डिनर किया और मोमबत्ती को जलते हुए छोड़कर बिस्तर पर विश्राम करने के लिए लेट गए।
तकरीबन रात के 2 बजे लघुशंका के लिए प्रमिला ने श्रीकांत जी को उठाया। अंधेरा और नई जगह होने के कारण उनकी पत्नी को टॉयलेट का अंदाजा नहीं था। इस नए कमरे में टॉयलेट कमरे के बाहर पड़ता था, जो कि किचन के ठीक सामने था। वहाँ जाने के लिए कमरे से बाहर निकलना पड़ता था। थोड़ी देर में यह काम सम्पन्न करने के बाद वे बिस्तर पर लेट गए।
अभी लेटे हुए मुश्किल से चन्द मिनट ही हुए थे कि प्रमिला जी उठ कर बैठ गई।
श्रीकांत जी घबरा गए और बोले, “अरे प्रमिला! क्या हुआ? कुछ दिक्कत है क्या?”
“वो... वो मैंने अंकित की आवाज सुनी। मम्मी... मम्मी... कहकर कुछ कहना चाह रहा था।”, यह कहकर उनकी पत्नी ने अपने पति के हाथों को जकड़ लिया।
“अरे! कैसी बातें करती हो? अंकित भला यहाँ क्या करेगा? वह देहरादून में अपनी बड़ी बहन निक्की के साथ सुरक्षित है।”
श्रीकांत जी यह कहकर दिलासा दे ही रहे थे कि अचानक फिर से मम्मी... मम्मी... की आवाज ने उन दोनों को झकझोर कर रख दिया।
इस बार आवाज उनकी बड़ी बेटी निक्की की थी। न चाहते हुए भी वे अब इस बात को मानने को विवश हो गए कि बाहर कोई अनहोनी दस्तक दे रही है।
उन्होंने हिम्मत की और टॉर्च का प्रकाश जलाते हुए दरवाजे को खोलकर, चारों दिशाओं में प्रकाश से कुछ ढूंढने का यत्न करने लगें। चारों तरफ चीड़ के ऊंचे-ऊंचे वृक्ष और उनकी शाख पर उल्लू के सिवाय कुछ न दिखा। कुछ देर में थक हार कर वे वापिस कमरे में आ गए।
उन्होंने मोमबत्ती को प्रकाशित किया और बिस्तर पर पुनः लेट गए। विचार करने लगे कि आखिर यह कैसे हो सकता है? इसी उधेड़बुन में लगे हुए थे।
प्रमिला जी को श्रीकांत जी का साथ होने के कारण उन पर भय हावी न हुआ और इसी साथ की वजह से कुछ देर में ही घबराहट इनसे कोसो दूर हो गई और उन्हें नींद आ गई।
सुबह उठते ही उन्होंने अपने छोटे बेटे अंकित को फ़ोन किया और उसका हाल चाल लिया। अंकित से बात करने के पश्चात दोनों के दिल को तसल्ली मिली। अंकित बी.एस.सी. के अंतिम वर्ष में था।
शाम को श्रीकांत जी विद्यालय से आते वक्त अपने साथ लालटेन ले कर आए थे। उन्होंने अपनी पत्नी को बताया कि ट्रांसफ़ार्मर कल तक सही कर दिया जाएगा।
लालटेन को देख कर दोनों के चेहरे पर आज काफी हद तक सुकून था। खाना खाने के बाद लालटेन को मध्यम रोशनी करके दोनों सो जाते हैं।
रात्रि के लगभग 2 बजे, श्रीकांत जी लघुशंका करने के बाद बिस्तर पर लेट जाते हैं। उनकी पत्नी बिस्तर पर दूसरी तरफ करवट ले कर सो रही थी। कमरे में लालटेन की मध्यम रोशनी चारों तरफ फैली हुई थी।
अचानक कुछ देर में ही उनकी पत्नी प्रमिला श्रीकांत जी को जोर से हिलाती हुई बोलती है, “ऐ जी! ज... जरा जल्दी उठो!”
“क्या हुआ...? कोई बुरा सपना देख लिया क्या अब?”, श्रीकांत ने अर्धनिद्रा में खीझते हुए कहा।
“मुझे लगता है कि हम दोनों के बीच भी कोई सोया हुआ है।”, यह कहने के साथ ही प्रमिला कांपने लगती हैं।
श्रीकांत जी पलट कर देखते हैं तो उन्हें ऐसी किसी भी चीज़ का अनुभव नहीं होता।
“आज तो लालटेन जल रही है, उजाले में यह सब अप्रिय घटनाएँ होने के असार बहुत कम होते हैं। तुम पिछली घटनाओं से परेशान हो इसलिए तुमने बुरा सपना देखा होगा।”, यह कहकर श्रीकांत जी प्रमिला जी को शांत करवा कर, सुलाने का प्रयत्न करते हैं।
लगभग आधे घंटे के बाद उनकी पत्नी को फिर से वही एहसास होता है। जिस करवट लेटी थीं, उसी करवट लेटी रहीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि करें तो क्या करें। खुद को समझाने के लिए, उन्होंने सोचा कि शायद ये उनका वहम होगा।
लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें फिर से वही अनुभव हुआ कि जैसे बिस्तर का गद्दा दब रहा हो और बगल में लेट कर कोई करवट बदल रहा हो। इस एहसास से प्रमिला के तोरोंगटे खड़े हो गए। वह समझ नहीं पा रहीं थीं कि यह सब हो क्या रहा है?
बहुत हिम्मत जुटा कर वह बिस्तर से उठ कर बैठ गई और श्रीकांत जी को पलट कर देखा। श्रीकांत जी गहरी नींद में खोए हुए थे, लेकिन जब उनकी नज़र गद्दे पर पड़ी, तो प्रमिला का दिल दहल गया।
गद्दा नीचे की ओर दबा हुआ था और ऐसा दिख रहा था, जैसे उस पर कोई इंसान लेटा हुआ है। अब वह चिल्लाना चाहती थीं पर खौफ और डर के मारे उनके हलक से आवाज़ तक नहीं निकली।
दिल की धड़कन बहुत तेज़ हो चली थी। घबराहट में प्रमिला जी ने तकिया उठा कर श्रीकांत जी के चेहरे पर फेंक दिया। अचानक इस प्रहार से श्रीकांत जी सकते में आ जाते हैं और अपनी श्रीमती जी की तरफ क्रोध भरे भाव से देखते हैं।
लेकिन जैसे ही श्रीकांत जी करवट बदलते है तो उनको महसूस होता है कि कोई व्यक्ति वास्तव में उनके बीच सोया हुआ है, जिसकी एक टांग उनके टांग पर रखी हुई महसूस हुई। यह एहसास इतनी रात को लेटी महिला या पुरुष को डरा देने के लिए काफी था। इतना देखते ही उन्हें माजरा समझने में देर नहीं लगी।
वे करवटें बदलने में असमर्थ हो रहे थे। उनकी माथे की लकीरों से साफ-साफ भय को देखा जा सकता था। उनकी श्रीमती जी की आँखें खुली की खुली ही रह गई थी और अब वह कुछ बोल भी नहीं पा रही थीं। श्रीकांत जी भी अपने जिस्म को हिलाने डुलाने का भरसक निरंतर प्रयास कर रहे थे लेकिन वे कामयाब नहीं हो पा रहे थे।
तभी अचानक लालटेन हवा में उठने लगा और कमरे के अंदर ही अंदर चारों तरफ तेज गति से चक्कर काटने लगा। यह देखकर दोनों के प्राण हलक में आ गए।
‘छ्न्नाक’ की आवाज के साथ लालटेन दीवार पर जा टकराई और उसकी लपटें दीवार के नीचे पड़ी लकड़ी के मेज पर रखी कुछ पुस्तकों को आगोश में ले लेती है और धू-धू करके जलने लगती है। कमरे में तेज धड़कनों की आवाज साफ-साफ सुनी जा सकती थी। दोनों ने भय के मारे एक दूसरे को थाम लिया था।
तभी श्रीकांत जी के दिमाग एक युक्ति आई और उन्होंने दुबारा बजरंग बाण पढ़ना शुरू किया। जैसे ही उन्होंने जय श्री राम कहकर बजरंग बाण पढ़ना शुरू किया, तभी एक काली सी आकृति तीव्र गति से भागती हुई दिखी, जो खिड़की को चीरते हुए आर-पार हो गया।
उसके जाते ही दोनों की जान में जान आई और वे उठ कर बिस्तर पर बैठ गए। श्रीकांत जी ने मोमबत्ती जला दी और दोनों ने बैठ कर ही पूरी रात गुजारी।
◆◆◆
सुबह होते ही श्रीकांत जी के पिताजी का फ़ोन आता है। लगातार 10 मिनट तक सुनने के बाद उनकी आँखों की पुतलियां फैल जाती हैं। फ़ोन रखते ही प्रमिला उनको हिलाती हैं और पूछती हैं कि क्या हुआ ऐसा, जो चेहरे के रंग उड़ गए?
श्रीकांत जी बताते हैं, “पिछले कुछ दिनों से जो आत्मा परेशान कर रही है, वह विकास उनियाल नाम के व्यक्ति की है, जिसकी पिछले साल हार्ट अटैक के कारण मात्र 54 वर्ष की अल्पायु में मौत हो गई थी। उसकी कुछ इच्छाएँ अधूरी रह गई थीं, जिसकी वजह से वह हमें परेशान करता है।"
“ल... लेकिन तुम्हें यह सब कैसे पता और तुम इतने दावे के साथ कैसे कह सकते हो कि वो...!?”, प्रमिला घबराई हुई और संशय के भाव लिए कहती हैं।
श्रीकांत जी बोले, “पिताजी का फ़ोन आया था। वे बता रहें थे कि अंकित की दादी पर कुलदेवी आई थीं और उन्होंने ही यह सब जानकारी दी हैं। नहीं तो सोचो, इस घटना का हमारे और तुम्हारे सिवा किसी को पता नहीं था तो फिर उन्हें कैसे पता लगा? उन्होंने आज शाम से पहले ही इस कमरे को छोड़ने की नसीहत दी है और साफ-साफ शब्दों में कहा है कि नहीं तो इसका परिणाम बहुत ही बुरा होगा।”
प्रमिला को श्रीकांत जी की बातें सुनकर थोड़ी राहत तो मिली लेकिन खौफ का मंज़र, अभी भी उनके चेहरे पर स्पष्ट देखा जा सकता था।
इतना सुनने के बाद वे बोली, “हम्म! तुम सही कहते हो, क्योंकि जब भी हमारे घर में किसी व्यक्ति के ऊपर विपत्ति आती है तो कुलदेवी हमेशा हमें आगाह करती हैं। अब हमें जल्द से जल्द यह कमरा खाली कर देना चाहिए। इसमें ही हम सबकी भलाई भी है।”
श्रीकांत जी थोड़ी देर बाद प्रमिला जी के साथ अपने मकान मालिक के यहाँ पहुँचते हैं और साफ घटना विस्तार से बता देते हैं।
उनके मकान मालिक, उनकी बात को सुनने के बाद बोलते हैं, “गुरुजी! हमें माफ कीजिएगा। मैं यह बात आपको बताना चाहता था परन्तु हम बदनामी की वजह से नहीं बताना चाहते थे। अगर एक बार ये अफवाह फैला गई तो कोई भी किराये पर यह कमरा नहीं लेता।”
“वह कमरा मेरे बड़े भाई विकास उनियाल का था। एक दिन उनकी अकाल मृत्यु हो गई। पहले भी कुछ मेहमान वहाँ ठहरे थे तो उनके साथ भी कई बार वहाँ कोई अप्रिय घटनाएँ होती रहती थी। काफी वक्त से वह कमरा एकान्त में होने की वजह से खाली ही पड़ा था। बहुत मुश्किल से उस जगह रहने के लिए हमें किराएदार के रूप में आप मिले थे तो हम भला कैसे मना कर सकते थे। हमने सोचा कि अब काफी वक्त हो चला है तो शायद यह घटना शांत हो गई होंगी।”
“हद है! मतलब आपको यह सब पता था, फिर भी आपने जरा से लालच के लिए, लोगों के प्राणों को दांव पर लगा दिया। आप जैसे लोगों को लालच के सामने इंसान की ज़िंदगी भी छोटी जान पड़ती है। मैं आज और अभी ही इस कमरे को बदलने जा रहा हूँ।”, यह कहते ही श्रीकांत जी वहाँ से कमरे की तरफ निकल पड़े।
उसी वक़्त भल्डियाना गाँव में ही मुखिया के यहाँ कमरा शिफ्ट कर लिया। अभी कमरा शिफ्ट किए मुश्किल से कुछ महीने ही हुए ही थे कि श्रीकांत जी का तबादला टिहरी जिले में ही रिंगालगढ़ नामक जगह पर हो गया।
आज भी श्रीकांत जी उस पल को याद करते हैं तो एड़ी से चोटी तक सिहर जाते हैं। अपनी पत्नी का भी आभार जताना बिल्कुल भी नहीं भूलते, जिसने मुसीबत के वक़्त उनका साथ कदम से कदम मिलाकर दिया था।
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