सुबह !


फोन की घंटी बजे चली जा रही थी । जैसे कोई सुनने वाला ही न हो। अपने कमरे से लॉबी में आकर देवांश ने रिसीवर उठाकर कान से लगाया । दूसरी तरफ से कहा गया ---- “ठकरियाल बोल रहा हूं।”


“हां, इंस्पैक्टर साहब ।” देवांश ने उत्सुक स्वर में पूछा ---- पता लगा कुछ?"


" ऐसा हो नहीं सकता ठकरियाल कुछ पता लगाना चाहे और न लगे।”


“मतलब?”


“राजदान साहब की कार में बम रखने वालों का पता लग गया है। वे दो थे ।”


“व- वैरी गुड । ” लॉबी में कदम रखते राजदान को देखता वह खुशी से उछल पड़ा----“क- कौन हैं वे ? कहां हैं? क्या वे पकड़े गये?”


" ऐसा हो ही नहीं सकता ठकरियाल किसी को पकड़ना चाहे और न पकड़ा जाये।” 


“क्यों मारना चाहते थे वे भैया को? क्या कहते हैं?"


“आप अगर अपने भैया, भाभी और उस ड्राइवर सहित थाने पर आ जायें तो बड़ा उपकार होगा मुझ पर । बहरहाल, इन मरदूदों की शिनाख्त भी तो जरूरी है । ”


“हम आ रहे हैं । फौरन पहुंच रहे हैं ।” कहने के साथ उसने रिसीवर क्रेडिल पर पटका और उत्साह से भरा राजदान की तरफ पलटकर बोला----“भैया, हमें इसी वक्त थाने पहुंचना होगा। ठकरियाल ने गाड़ी में बम रखने वालों को पकड़ लिया है।"


“हम लोग क्या करेंगे वहां जाकर ?” राजदान ने कहा- “हमने तो उन्हें देखा नहीं था । बन्दूकवाला को भेज दो। शिनाख्त कर आयेगा । तुम्हें मेरे साथ मीटिंग में चलना है। नये प्रोजेक्ट को लेकर मैंने ऑफिस में मीटिंग रखी है।" 


“अरे ! क्या बात कर रहे हैं आप?” कहने के बाद वह अभी-अभी लॉबी में पहुंची दिव्या की तरफ बढ़ता बोला----“देखा भाभी, भैया का अभी भी वही एटीट्यूट है। जिन हरामजादों ने इन्हें कत्ल करने की कोशिश की, उन्हें देखने तक में कोई दिलचस्पी नहीं है इन्हें । आखिर प्रॉब्लम क्या है, क्या रात को भी आपने भैया से कोई बात नहीं की ?”


दिव्या उसके सवाल का जवाब देने की जगह राजदान की तरफ बढ़ी। नजदीक पहुंची और उसकी आंखों में आंखें डालकर बोली- -“हमें थाने चलना चाहिए।” 


“ मैंने खुद मीटिंग बुलाई ...


“अगर आप थाने नहीं चल रहे तो मुझे भी किसी मीटिंग में नहीं जाना ।” देवांश बोला ।


“छोटे! मैंने कहा था ---- ये प्रोजेक्ट तुझी को देखना है ।”


“मेरी लिए उनसे निपटना किसी भी प्रोजेक्ट से ज्यादा जरूरी है जिन्होंने आपकी हत्या करने की कोशिश की।” अड़ियल स्वर में देवांश कहता चला गया ---- “आप चल रहे हैं तो चलें वरना मैं, भाभी और बन्दूकवाला को लेकर आ रहा हूं। क्यों भाभी- - तुम भी चल रही हो या नहीं?”


दिव्या ने राजदान की तरफ देखा, जैसे उसके हुक्म की तलबगार हो ।


“चलो।” कहने के बाद राजदान तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।


देवांश ने दिव्या की तरफ देखा। 'आओ' कहती हुई दिव्या भी राजदान के पीछे बढ़ गई । उस क्षण देवांश को लगा ---- दिव्या उससे नजरें मिलाने से कतरा रही है। मगर कुछ बोला नहीं । चुपचाप उसके पीछे बढ़ गया । बन्दूकवाला सहित जब वे थाने पहुंचे तो पाया ठकरियाल के अदरक जैसे ऊपरी जिस्म पर केवल बनियान था । वर्दीवाली शर्ट उतारकर कुर्सी की पुश्त पर टांग रखी थी। उन्हें देखते ही उठकर खड़ा होता हुआ बोला ---- “आइए ! पधारिए ! आप ही के इंतजार में सूख रहा था मैं।”


“ कहां हैं वे हरामजादे ?” देवांश उत्तेजित था- "कुछ बका?”


“ठकरियाल का आइडिया कभी फेल नहीं होता, वही निकला जो मैंने सोचा था।”


“क्या सोचा था ? ”


“आओ। ... खासतौर पर तुम आओ बन्दूकवाला ।” वह बन्दूकवाला की बांह पकड़ कर एक तरफ को बढ़ता हुआ बोला----“एक बार फिर मैं तुम्हें उसके साथ वही सब करने का मौका देता हं जैसा पार्किंग में किया गया ।”


“न- नहीं साब । म मुझे नहीं करना वो सब ।” बन्दूकवाला घबराकर ठिठक गया ।


“आओ तो सही ।” ठकरियाल उसे लगभग घसीटता हुआ

बोला----“पार्किंग की तरह यहां तुम्हारी ठुकाई होने वाली नहीं है।"


देवांश से बोला“स-साब ।” वह पीछे चले आ रहे राजदान, दिव्या और -- “मुझे बचाइए। पुलिस वालों की न मानो ———— तो ये मारते बहुत हैं।”


"देख! देख इसे!” कहने के साथ ठकरियाल ने उसे हवालात की तरफ धकेला । झोंक में बन्दूकवाला मोटी-मोटी सलाखों से जा टकराया । अभी आंखों के सामने रंग-बिरंगे तारे नाच ही रहे थे कि उसके सिर पर सवार ठकरियाल ने कहा----“ध्यान से देख इसे और बता ---- क्या ये वही लड़की है?”


सलाखों के उस पर मौजूद लड़की सचमुच वही थी ।


“व- वही है । वही है साब । ल - लिबास भी वही है ।” बन्दूकवाला घबराकर सलाखों से पीछे हटता हुआ बोला ---- “य - ये तो मुस्करा भी ठीक उसी तरह रही है जैसे पार्किंग में मुस्करा रही थी । क-क्या थाने में, आपके सामने भी इसी तरह मुस्करा सकती है ये?”


“आ !” वह उसी चाल से सलाखों के नजदीक आती बोली----“जो काम अधूरा रह गया था उसे पूरा कर दे ।”


बन्दूकवाला सहमकर दूर... और दूर हट गया ।


“इंस्पैक्टर !” देवांश गुर्राया-- “इसकी ठुकाई नहीं की है शायद तुमने ।”


“की है देवांश साहब । जमकर की है। इसकी भी और इसके उस खसम की भी जो हवालात की दीवार पर पीठ टिकाये फर्श पर बैठा है।" ठकरियाल कहता चला गया. “मगर ऐसे लोगों पर असर कहां होता है पुलिस की ठुकाई का ? असर भी उन्हीं पर होता है जिनका आये दिन पुलिस से पाला नहीं पड़ता।”


“मतलब?”


“पुलिस से पिटना ! जेल आना-जाना इनके लिए वैसी ही दिनचर्या है जैसे आपके लिए टूथपेस्ट करना । कोई फर्क नहीं पड़ता इन पर । पक्के हैं दोनों । शादी नहीं की लेकिन खसम-लुगाई की तरह रहते हैं। काम है ---- इस तरह का क्राइम करना। चोरी-चकारी से लेकर हत्या तक । अनेक केस चल रहे हैं। अंदर जाते हैं और जमानत कराकर बाहर आ जाते हैं।”


“भैया की हत्या क्यों करना चाहते थे ?”


“इन्हें नहीं पता।"


“फिर किसे पता है ?"


“ उसे, जिसने इन्हें यह काम सौंपा था ।”


“किसने सौंपा था ?”


"इन्हें ये भी नहीं पता।"


“क्यों नहीं पता । ”


“कहते हैं, वह अपने चेहरे को नकाब के पीछे छुपाकर मिला था। उसने इन्हें एक लाख रुपये दिए । टाइम बम और राजदान साहब का फोटो दिया । कार का नम्बर बताया और बताया कि वे कब, कौन-सी फ्लाइट से आने वाले हैं।”


“बकते हैं ये ! कहानी गढ़ रहे हैं!” देवांश चीखता चला गया----“भला ऐसा कैसे हो सकता है जिसने इन्हें एक लाख रुपया दिया, बम दिया ---- उसे जानते न हों ?”


“हो जाता है। अपराध की दुनिया में ऐसा हो तो जाता है देवांश साहब, मगर गारण्टी से यह नहीं कहा जा सकता कि इस केस में भी ऐसा हुआ है या झूठ बोलकर वैसी घटनाओं को अपनी आड़ बना रहे हैं। वैसे पुलिस रिकार्ड के मुताबिक किराये पर हत्याएं करना इनका धंधा है और यह भी मालूम करने की कोशिश नहीं करते कि 'रकम' देने वाला कौन है ? न ही इस बात से सरोकार रखते हैं कि मर्डर कराने वाला क्यों करा रहा है ?”


“तुम शायद ठीक से मुंह नहीं खुलवा सके इनका। मैं बात करता हूं ।” कहने के साथ देवांश लपका और लड़की के नजदीक आकर बोला---- “क्या नाम है तुम्हारा ?”


“ अंगीठी ।" वह अश्लील अंदाज में आंख मारती बोली ---- “वह, जो हमेशा गर्म रहती है।”


खुद को नियंत्रित नहीं रख सका देवांश । आपे से बाहर होकर उसने दो सलाखों के बीच से अपने हाथ का मजबूत घूंसा लड़की के चेहरे पर मारा । लड़की को शायद उससे इस हरकत की उम्मीद नहीं थी, इसलिए लड़खड़ाकर दूर जा गिरी। मगर इसी बीच ‘'ओए हराम के पिल्ले' दहाड़ता हुआ फर्श पर बैठा युवक न केवल अपने स्थान से उछला बल्कि झपटकर सलाखों के नजदीक आया और दोनों हाथ बाहर निकालकर देवांश का गिरेबान पकड़ता हुआ दांत भींचकर गुर्राया----“मेरी अंगीठी को मारा तूने? ये बात बर्दाश्त नहीं कर सकता मैं । मैं सबके द्वारा अपनी अंगीठी को सिर्फ प्यार किया जाता देखना चाहता हूं।"


उसे जवाब देने के लिए देवांश का घूंसा अभी तना ही था कि लड़की ने पीछे से अपने साथी के कंधे पर हाथ रखते


-“गर्म मत हो । गर्म मत हो मेरे अंगीठे । तू तो जानता है और फिर हमारे बीच समझौता भी तो है ----मर्दों " ———— तो से मैं निपटती हूं, औरतों से तू । इसके घूंसे का जवाब देकर 'तू' मेरे अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं दे सकता।”


लड़के की पकड़ ढीली पड़ती चली गयी । अंततः वह देवांश का गिरेबान छोड़कर पीछे हट गया । लड़की आगे आई। उसके होठों के एक कोने से खून की धार बह रही थी । मगर देख वह निरंतर देवांश की तरफ ही रही थी। आंखों में वही, निमंत्रण सा देने वाले भाव थे । बोली----“बोल राजा, क्यों फड़क रहा है इतना ? ”


“छोटे, क्यों मुंह लग रहा है इनके ?” राजदान पीछे से कंधा पकड़कर उसे अपनी तरफ खींचने का प्रयास करता हुआ बोला----“आ!... कोई काम की बात पता नहीं लगेगी ।”


“नहीं बड़े राजा ।” लड़की ने दोनों हाथों से देवांश की पैन्ट की बैल्ट पकड़ ली ---- “अब यह मुझसे इश्क लड़ाये बगैर यहां से नहीं जा सकता ।”


“भैया!” देवांश ने कहा- --- “तुम भाभी को लेकर यहां से जाओ। मैं इससे बात करके आता हूं ।”


“कोई फायदा नहीं छोटे । ये लोग..


“इंस्पैक्टर !” देवांश ने दांत भींचकर कहा- "भैया भाभी को ले जाकर अपने आफिस में बैठाओ। मुझे इनसे पूछताछ करनी है । "


दिव्या ने कुछ कहना चाहा- “देवांश..


“प्लीज भाभी।” वह उसे और कुछ बोलने का मौका दिए बगैर बोला ---- “तुम्हें मेरी कसम । और भैया तुम्हें भी ! इंस्पैक्टर के आफिस में जाकर बैठो। मैं अभी आता हूं। 


दिव्या और राजदान की नजरें मिलीं। दिव्या ने कहा- "उसे निकाल लेने दो अपने मन की।” कहने के साथ वह राजदान का हाथ पकड़कर ठकरियाल के ऑफिस की तरफ बढ़ गई । ठकरियाल और बन्दूकवाला जहां के तहां खड़े थे। बन्दूकवाला ने खुद को ठकरियाल की आड़ में छुपा रखा था ताकि कयामती लड़की की नजरों से बच सके। लड़की का साथी पूर्व की भांति इस तरह हवालात के फर्श पर जा बैठा था जैसे इस बीच कुछ हुआ ही न हो। लड़की ने निरंतर देवांश की आंखों में झांकते हुए कहा ---- "बहुत प्यार करते हैं तुम्हें तुम्हारे भैया-भाभी । बेचारे, इतना तक नहीं जानते वो जमाने लद गये जब किसी के कसम तोड़ने से कोई मर जाता था । अब तो उसे जुकाम तक नहीं होता जिसकी कसम तोड़ी जाती है । "


“बैल्ट छोड़ मेरी ।” देवांश ने शुष्क स्वर में कहा ।


“ये तो पकड़ी तुम्हें भागने से रोकने के लिए थी ।” लड़की ने बैल्ट छोड़ते हुए कहा ---- “जब खुद मुझसे इश्क लड़ाने के लिए मरे जा रहे हो तो पकड़ने की क्या जरूरत है ।”


“तो उस नकाबपोश ने तुम्हें एक लाख रुपये दिए थे ?”


“ बम भी।... मगर जो बात तुम्हें इंस्पैक्टर बता चुका है, वही पूछकर टाईम क्यों खराब कर रहे हो ?”


“ मैं तुम्हें दो लाख दूंगा | बताओ वह कौन था?”


“क-क्या? क्या कहा ?” वह उछल पड़ी, पलटकर अपने साथी से बोली- - "ओए ! सुन, सुन क्या कह रहा है छोटा राजा । ये तो काम की बात कर रहा है अपने | धंधे की बात ।”


“धंधे की बात?” इन शब्दों के साथ उसका साथी पुनः इस तरह उछला जैसे स्प्रिंग ने उछाला हो । झपटकर सलाखों के नजदीक पहुंचता बोला-~~-“इसे भी कत्ल कराना है क्या किसी का ?”


“बोल छोटे राजा ।” लड़की ने कहा - - - - “ शहद की बूंदें इसके कानों में भी टपका।”


इधर ठकरियाल देवांश की 'तरकीब' से बगैर प्रभावित हुए न रह सका। अपराधी से पूछताछ करने की इस तरकीब का इस्तेमाल कम से कम पुलिस नहीं कर सकती थी । इधर उन दोनों की प्रतिक्रिया पर देवांश मन ही मन मुस्करा उठा। अपने लहजे को प्रभावशाली बनाता हुआ बोला ---- “ऐसे ही नहीं कह रहा हूं यह बात | अगर तुम उसका नाम बताओगे तो मैं वाकई दो लाख रुपये दूंगा । कैश !”


“अये-हये-हये-हये।” कसमसाता हुआ लड़की का साथी नाच उठा-- - “हमने उसी वक्त साले का नकाब उलटकर शक्ल क्यों नहीं देख ली जब हमारे पास आया था । हार्ड कैश दो लाख की कमाई हो जाती इस वक्त । फिर भी, हम उसका हुलिया बता सकते हैं । ”


“हुलिए से मतलब?”


“ उसकी कद-काठी! बोलने का अंदाज । ”


“बताओ।”


“क्या मिलेगा ?”


“अगर तुम्हारे बताने से मेरी कुछ समझ में आ गया तो पूरे दो लाख ।”


“ और समझ में नहीं आया तो?”


“एक पैसा भी नहीं । जब इन्फारमेशन मेरे काम की ही नहीं होगी तो पैसे क्यों दूंगा?"


“ठीक बात है। एकदम उसूल वाली ।.... मगर ये कैसे पता लगेगा कि इन्फारमेशन तुम्हारे काम की है या नहीं?”


“काम की हुई तो जरूर दूंगा । मेरे लिए दो लाख की कोई अहमियत नहीं है ।”


“सोलह आने ठीक है यह भी ।” वह देवांश के कान पर झुका ---- “तो सुनो, लगभग तुम्हारी ही कद-काठी का था वो । बोलता ऐसे था जैसे शब्दों को दांतों से चबाकर बोल रहा हो ।” कहने के बाद उसने ध्यान से देवांश के चेहरे को देखा और अपने फेस पर उम्मीद की किरण लिए पूछा ---- “आया कुछ समझ में?”


“ अभी नहीं।”


“होगा वह तुम लोगों के आसपास का ही कोई शख्स क्योंकि खुद को इस तरह छुपाये रखने की कोशिश वही करता है जिसे पहचान लिए जाने का खतरा हो ।”


“कोई और पहचान बताओ।”


"क्या पहचान बताऊं?... क्या पहचान बताऊं साले की?" दो लाख कमाने के लिए मचलता वह साफ नजर आ रहा था। अचानक कुछ याद आते ही चौंकता सा बोला- "हां! वह थोड़ा थोड़ा लंगड़ाकर चलता था। अब तो जरूर तुम उसे पहचान जाओगे। याद करो, दिमाग घुमाओ देवांश बाबू आपके आसपास ऐसा कौन है जिसकी टांग में डिफेक्ट हो । जो लंगड़ाकर चलता हो । ... याद आया ?”


" ऐसा तो कोई नहीं है हमारे परिचितों में।"


“जरूर होगा | याद करने की कोशिश करो ।”


“कोई और पहचान बताओ।”


“ इतनी बड़ी पहचान बता दी, याद करने की कोशिश तो करो।”


“मतलब तुम और कुछ नहीं बता सकते ?”


“ और क्या बताऊं? इसके बाद बताने के लिए रह ही क्या गया?”


“सॉरी ।” कहकर देवांश पलट पड़ा - - - - "तुम मेरे काम की इन्फारमेशन नहीं दे सके ।”


लड़की ने तपाक से कहा “अगर मैं तुम्हें उसका नाम ही बता दूं तो?"


एक झटके से पलट पड़ा देवांश । रोमांचित हो उठा था वह और वही क्यों, ठकरियाल और बन्दूकवाला से लेकर लड़की का साथी तक भी रोमांचित हो उठा था। देवांश की तरफ देख रही लड़की ने अपने निचले होंट का किनारा दांतों से दबाकर आंख मारी।


लड़की के साथी ने पूछा, “क्या तू सचमुच उसे जानती है?”


“शक्ल से भी! नाम से भी । ”


“बोलो ।” देवांश बेचैन हो उठा ----“जल्दी बोलो ।”


“क्या मिलेगा ?” उसने कहा ।


“कहा तो है ! पूरे दो लाख ।”


“नहीं चाहिए।"


“मतलब?”


“मुझे सिर्फ उस घूंसे का बदला चाहिए जो तुमने मेरे फेस पर मारा था।”


" कैसे चुकेगा उसका बदला?”


"इन्हें।" उसने अपनी छातियां तान दी - “अपने ड्राइवर की तरह इन्हें भींच दो एक बार।"


देवांश ने एक और घूंसा उसके चेहरे पर जड़ने के लिए बिजली की सी गति से मुट्ठी अंदर डाली। इस हमले के लिए पहले से ही तैयार लड़की नीचे बैठ गयी। देवांश का हाथ सलाखों में उलझकर रह गया । वातावरण में लड़की के खिलखिलाकर हंसने की आवाज गूंज रही थी ।


लड़की का साथी देवांश का हाथ पकड़ने वाला था कि ठकरियाल ने उसे पकड़कर सलाखों से दूर खींचते हुए कहा- “आओ देवांश साहब ! उन्हें इससे ज्यादा कुछ नहीं  पता।"


लड़की की खिलखिलाहट बुलन्द होती जा रही थी ।


"तुम इन तक पहुंचे कैसे?"


"बहुत आसानी से पहुंच गया।" अपनी कुर्सी पर बैठे ठकरियाल ने कहा "यह विश्वास होने के बाद कि बन्दुकवाला का बयान सच्चा है, यह बात क्लियर हो गयी थी व लड़की शरीफ नहीं हो सकती । शरीफ लड़की वह हरकत कर ही नहीं सकती जो बकौल बन्दूकवाला के उसने की थी । जाहिर था वह कोई वैश्या या क्रिमिनल होगी। क्योंकि उस घटना की आड़ लेकर गाड़ी में बम रखा था । इससे मैं इस नतीजे पर पहुंचा यह काम वैश्या का नहीं हो सकता । वैश्याएं अश्लील हरकतें भले ही चाहे जितनी करें मगर किसी की हत्या जैसे संगीन अपराध में कम ही शामिल होती हैं | सो मैंने सीधा नतीजा निकाला - यकीनन वह कोई क्रिमिनल है और .... कुछ भी कहो, क्राईम की दुनिया में मर्दों के मुकाबले अभी लड़कियों का प्रतिशत उतना ही कम है जितना पोलिटिक्स में है। इसलिए, उनका पता लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं होता। मैंने फौरन इलाके के सारे मुखबिरों को थाने तलब किया । उन्हें बन्दूकवाला द्वारा बताया गया हुलिया बताया। पूछा ---- 'क्या वह किसी की हत्या करने हौसला भी रखती है।' जवाब मिला-- 'आप हौसले की बात कर रहे हैं, वह पहले ही कई मर्डर्स में इन्वॉल्व रह चुकी है।

'बुग्गा' और उसका काम ही सुपारी लेकर मर्डर करना है।' मैंने पूछा'बुग्गा कौन ?' बताया गया- 'बुग्गा उसका साथी है। शादी नहीं हुई लेकिन दोनों साथ रहते हैं। साथ ही क्राइम करते हैं। जब करने के लिए कोई और काम नहीं मिलता तो कम्मो झीने कपड़े पहनकर सड़क पर निकल पड़ती है, किसी शरीफ, संभ्रान्त मगर जेब के मोटे को निमंत्रण देती है, जाल में फंसाती है। अपने साथ अश्लील हरकत करने को कहती है । जब शिकार फंस जाता है तो जिन्न की तरह प्रकट होता है ----बुग्गा| दोनों मिलकर उसकी जेब की सफाई करते हैं। घड़ी, अंगूठी और चेन जैसी कीमती चीजें उतरवा लेते हैं। संभ्रान्त आदमी अपनी 'संभ्रान्ताई' बनाये रखने के लिए वही सब करता है जो वे कहते हैं और अपने साथ हुई लूट का जिक्र किसी और से तो क्या पत्नी तक से नहीं करता ।' इतना सब जानने के बाद मुझे लगा ---- हो न हो, बन्दूकवाला के साथ घटी घटना के पीछे यही दोनों होंगे। मैंने मुखबिरों से इनका पता पूछा । बताया गया वे इस इलाके के बदनाम होटल 'सवाया' के रूम नम्बर बारह में रहते हैं। पिछले एक साल से उनका ठिकाना वही है। मैं सवाया होटल पहुंचा । उस वक्त वे वहां नहीं थे । मैं वहीं जम गया। नशे में धुत दोनों रात के दो बजे आये । मैंने दबोचा और थाने ले आया । जब पूछताछ की तो पहले अंजान बने । आंय - बांय - शांय गाई मगर जब मैंने बन्दूकवाला को बुलाने की धमकी दी तो पहले कम्मो बोली----'अच्छा- अच्छा ठीक है, अदरक के बीज ! हमने ही किया है वो सब | क्या करेगा हमारा ? बना दे एक और केस | भेज दे जेल । एक बार फिर जमानत करा लेंगे। विस्तृत पूछताछ करने पर उन्होंने वही सब बताया जो आप जान चुके हैं।”


“बकौल उनके, नकाबपोश उन्हें कहां मिला?" देवांश ने पूछा।


“कहते हैं ---- उनके कमरे में आया था ।”


“ यानी सवाया होटल के रूम नम्बर बारह में।"


“हां |"


“भला इस तरह कोई खुद को छुपाकर किसी के कमरे में कैसे आ सकता है?"


"तीन दिन पहले वे रात के करीब बारह बजे कहीं से लौटे थे। बकायदा अपने कमरे का लॉक खोलकर अंदर घुसे । लाइट ऑन करते ही चौंक पड़े। एक कुर्सी पर बैठा नकाबपोश उन्हीं को घूर रहा था । खतरे का एहसास होने पर अभी उन्होंने हाथ-पैर हिलाने की कोशिश की ही थी कि नकाबपोश ने जेब से रिवाल्वर निकालकर उन पर तानते हुए --हिले तो गोली मार दूंगा | वैसे मैं दुश्मन नहीं, दोस्त हूं। धंधे की बात करने आया हूं।"


“छोटे ।” बोर से होते राजदान ने कहा---- - “ अब इस सारी डिटेल से क्या फायदा? जो होना था सो हो गया । हमें ऑफिस पहुंचना चाहिए। वहां...


“फायदा है भैया । इंस्पैक्टर ने ठीक कहा । 'असल लोग' कम्मो या बुग्गा नहीं हैं। असल में आपकी जान का दुश्मन है वह नकाबपोश | जब तक वह नहीं पकड़ा जाता तब तक आपकी जान को खतरा है। मैं उसकी गर्दन तक पहुंचकर रहूंगा और... रास्ता इस डिटेल से ही निकलेगा । तुम चालू रहो इंस्पैक्टर | भैया की बात पर ध्यान मत दो|... तो क्या हुआ उसके बाद? नकाबपोश के हाथ में रिवाल्वर देखकर कम्मो और बुग्गा की क्या प्रतिक्रिया हुई ?”


“ प्रतिक्रिया क्या होनी थी ---- बकौल इनके, उसने इनके सामने राजदान साहब के मर्डर का ऑफर रखा । इनके तो पौ बारह हो गये । बहुत दिन बाद इतनी मोटी रकम का काम मिला था । सौदा हो गया। उसने इन्हें राजदान साहब की गाड़ी का नम्बर बताया । यह बताया कि ये कब, कौन सी फ्लाइट से आने वाले हैं । बम, एक लाख रुपया और राजदान साहब का फोटो दिया और चलता बना । "


“नकाब लगाये - लगाये वह होटल से बाहर कैसे निकला होगा? वैसे रूप में तो कोई भी किसी को देखकर...


"मेरे ख्याल से उसने कमरे से निकलते ही नकाब उतार दिया होगा।”


“ऐसा ख्याल क्यों है तुम्हारा ?”


“क्योंकि वह इन्हें कमरे में बंद करके गया था। "


“मतलब?”


“जाने से पहले इनसे कमरे की चाबी ली। रिवॉल्वर की नोक पर बाहर निकला और बाहर से कमरा लॉक कर दिया ।”


“मतलब उसने कमरे से निकलते ही अपने चेहरे से नकाब उतार लिया होगा । और होटल स्टॉफ के किसी आदमी अथवा उसने उसकी शक्ल जरूर देखी होगी जो उस वक्त रिसेप्शन पर होगा।" उत्साह से भरा देवांश कहता चला गया ---- “समय रात के बारह के बाद का था । उस वक्त होटल में कम ही लोगों की आवाजाही रही होगी । हमें होटल स्टाफ से काम की जानकारी मिल सकती है।"


“अब छोड़ न छोटे ।” राजदान ने कहा ---"हमें मीटिंग में..."


“नहीं।” मेज पर घूंसा मारता देवांश एक झटके से खड़ा हो गया----“अब मैं उसका पीछा छोड़ने वाला नहीं हूं। मै, 

होटल सिवाया जा रहा हूं भैया ।” कहने के बाद किसी की सुनी ही तो नहीं उसने । राजदान के साथ दिव्या भी आवाजें लगाती रह गई मगर वह आंधी तूफान की तरह थाने से बाहर निकल चुका था ।