गाँव की सड़कों पर कारखाने लग गए थे। गुरुग्राम शहर पास में ही था। शायद देशभर में शहर और बढ़ जाएँ तो विकास तेज हो जाए। सोचने लगा कि देश की सरकार अभी तक सारे देश में बिजली-पानी-सड़क तक मौलिक सुविधाएँ भी नहीं दे पाई है आजादी के इतने सालों में। सत्ते से पता चला कि गाँव में खेतों की कीमतें भी बढ़ गई हैं। वो जमाना चला गया जब एक एकड़ भूमि एक-दो लाख रुपये में मिल जाती थी। अब इनकी कीमत बीस गुना तक बढ़ गई है। जहाँ गाँव भर में बड़े जाटों का दबदबा था, वहाँ अब दलित भी अपनी जगह बना रहे थे।
शाम के पाँच बज गए थे। मैंने सत्ते को फोन किया कि घर चलना चाहिए तो उसने कहा, “यार नीतू तुझसे एक बार और मिलना चाहती है।”
मैंने कहा, “फिर कभी मिल लेंगे, अभी घर चलते हैं।”
सत्ते दस मिनट में मेरे पास आ गया। हम घर की तरफ चल दिए।
“यार आज पार्टी भी करनी है।” सत्ते ने कहा।
“मैं तो भूल ही गया था। रास्ते से पार्टी का सामान भी लेना पड़ेगा।”
फिर हमने शराब की बोतल और अपने लिए एक बीयर भी ली। हमें खाने में चिकन भी खरीदना था। वो रास्ते की दुकान से चिकन भी खरीद लाया। मैंने पूछा, “चिकन कौन बनाएगा?”
“रघुवीर का नौकर है, वो इसे बना देगा।”
“पर पार्टी कहाँ है?”
“रघुवीर के खेत में एक कमरा है वहीं पर।”
हम दोनों रघुवीर के खेतों में पहुँच गए। वहाँ उसका नौकर था जो हमें देखते ही समझ गया कि आज पार्टी है। सत्ते ने उसे चिकन बनाने को कहा। सत्ते ने रघुवीर को फोन किया तो उसने आठ बजे तक खेत में पहुँचने को कहा।
हम खेतों में घूमने लगे। कोई आठ बजे खेत में एक फॉर्चुनर एस.यू.वी. गाड़ी आकर रुकी। उस में से दो लड़के उतरे हम भी उनके पास गए सत्ते ने हमें मिलवाया। ये मेरा भाई जो दिल्ली में रहता है और ये रघुवीर और विजय, रघुवीर ने कहा, “तू तो अकेला था, तेरा भाई कहाँ से आ गया?”
“ये मेरे ताऊ जी का लड़का है। ये किसी काम से यहाँ आया है।”
रघुवीर ने मेरे से हाथ मिलाया। चिकन भी बनकर तैयार था। रघुवीर ने अपने नौकर से बाहर कुर्सी- मेज निकालने को कहा।
“इस दारू को किसके साथ पिएँगे? नमकीन लाए हो?” रघुवीर ने पूछा।
सत्ते ने कुछ पैकेट नमकीन पॉलीथिन से निकाले। मैंने आज पहली बार बीयर शुरू की। रघुवीर ने पहले पैक के साथ ही कहा, “तुम्हारे पापा शहर में क्या काम करते हैं?”
“वो सरकारी नौकरी करते हैं। और तुम्हारे पापा का क्या काम है?” बस एक भट्ठा है ईंट का, पर काम में मंदी है अभी।”
तभी रघुवीर का दोस्त विजय ने कहा, “सुना है शहर में सब की गर्लफ्रेंड होती है? तुम्हारी भी होगी?”
“नहीं। बस एक लड़की से दोस्ती है, पर सत्ते की गर्लफ्रेंड है। उसी को इस बारे मेज्यादा पता है।”
उसने लगभग मुँह बनाते और हँसते हुए कहा “इस घोंचू की कौन भाईली है?”
मैंने कहा, “साथ के गाँव में नीतू नाम की लड़की है वो इस की भाईली है। मैंने उसे आज पहली बार देखा है।” रघुवीर हँसने लगा, “अरे वो भी क्या भाईली है, उसके तो आशिकों की लंबी लाइन है बड़ी चालू लड़की है। दो महीने से ज्यादा किसी की भाईली नहीं रही है वो। मेरी भी बोल-चाल है उससे।”
मैंने बीयर का आखिरी गिलास खत्म किया। मेरे दिमाग में बीयर चढ़ी थी। मैंने सत्ते की सारी बात नशे के कारण बताई। तब तक सत्ते भी नशे में हो गया।
मैंने अपने काम की बात अब रघुवीर से की, “यार यहाँ कोई जे.सी.बी. वाला है?”
“हाँ मैं कई जे.सी.बी. वालों को जानता हूँ। पर काम क्या है?”
“बस खेत में एक पाँच-छह फीट का तालाब बनाना है।”
“पर किसलिए।” रघुवीर ने पूछा।
“मैं वहाँ मछली पालना चाहता हूँ। अगर जानते हो तो कल मिलवा दो।”
रघुवीर ने कहा, “ठीक है, कल वो तुम्हारे घर आ जाएगा। खेत की मिट्टी का क्या करोगे? अगर बेचनी है तो मैं खरीद लूँगा।” वो मिट्टी इसलिए लेना चाहता था इस मिट्टी से वो अपने भट्ठे में ईंट बनाता।
“मिट्टी तो बेचनी ही पड़ेगी। दो एकड़ के तालाब के लिए काफी मिट्टी निकलेगी।”
“विजय, जरा जे.सी.बी. वाले का नंबर तो मिला, आज ही उससे बात करते हैं।”
विजय ने जे.सी.बी. वाले का नंबर मिलाया और रघुवीर से बात करवाई। उसने सुबह ही गाँव आने की हाँ कर दी। हमने फिर खाना खाया।
रात में हम दस बजे सत्ते के घर पहुँचे। जैसे ही हम घर में गए चाची ने दरवाजा खोला। सत्ते के पैर शराब के नशे के कारण लड़खड़ा रहे थे। चाची ने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया।
“पीकर आया है?”
“नहीं रघुवीर ने पिला दी थी इसलिए।” सत्ते भी थप्पड़ पड़ते ही हिल गया। पर नशे के कारण उसे कोई फर्क नहीं पड़ा । वो लड़खड़ाते हुए घर में घुस गया।
“खाना खाना है या वो भी नहीं?”
“नहीं खाना है।”
असलियत में चाची मुझे दिखाने के लिए नाटक कर रही थी क्योंकि वो कभी सत्ते से पूछती ही नहीं थी।
रात भर मैं बिस्तर में पड़ा-पड़ा नशे को महसूस करता रहा। जब बीयर का नशा उतरा तभी मैं सो पाया और सुबह देर तक सोता रहा। चाची ने मुझे ग्यारह बजे चाय दी जब मैं उठा।
“बेटा ये मछली पालन का क्या काम है मुझे भी समझा। मैं भी मछली पालन के लिए सत्ते से कह रही थी। इस काम को करने में कितने पैसे लगते हैं?”
“चाची ज्यादा नहीं बस सात-आठ लाख ही लगते हैं।” शायद चाची इतने पैसे किसी काम पर लगाना नहीं चाहती थी उन्हें डर था की उनकी पूजी डूब ना जाए अगर काम धन्धा ना चले तो।
“क्या मछली पालने और उनके मरने से जीव हत्या का पाप नहीं लगता है?”
“अरे चाची दुनिया बदल गई है और आप पाप-पुण्य पर अटकी पड़ी हैं।”
चाय पीते ही मेरे फोन की घंटी बजी। फोन रघुवीर का था। उसने जे.सी.बी. वाले को मिलने को कहा। मैंने कहा, “उसे घर भेज दो मैं घर पर ही हूँ।”
कुछ ही देर मेजे.सी.बी. वाला घर आ गया। मैंने उसे दो एकड़ में पाँच से छह फीट गहरी खुदाई के लिए कहा। उसने दो लाख रुपए में हाँ कर दी। उसने ये काम कल से करने के लिए कहा और पचास हजार रुपए भी कल ही एडवान्स देने को कहा। बाकी के पैसे उसने काम के बाद मेलेने को कहा। मैंने भी डील पक्की कर दी। वो जब चला गया तो मैंने कोलकाता फोन लगाया। वहाँ मछली का व्यापारी था जिससे मैंने मांगुर मछली के बीज मँगाए। उसने दस दिन में मांगुर मछली के बीज पहुँचाने के लिए हाँ कर दी।
अगले ही दिन से खुदाई का काम चल पड़ा। मैंने खुदाई की मिट्टी बेचने के लिए भी रघुवीर से बात कर ली थी जिससे मुझे अच्छे पैसे मिट्टी के मिल गए। तालाब को खोदने में दस दिन लगे। मैंने इसी बीच खेत में चदरों से ढ़का एक हॉल भी बनवाना शुरू कर दिया था।
मैं मछली पालन के साथ गाय भी पालना चाहता था। मैंने एक आदमी को भी नौकरी पर रखा। वो इसलिए कि गाय के गोबर हटाने, चारा करने के साथ दूध भी दूह सके। मैंने गोबर को डालने के लिए दस फीट का गड्ढा भी खुदवाया। गोबर से खेत में खाद का काम करना था। दस दिन में खुदाई का काम हो गया। इसी बीच मैंने सत्ते के साथ कुछ विदेशी गाय भी देखी। मैं पाँच गाय खरीदना चाहता था। मैं इन से दूध बेचकर मुनाफा कमाना चाहता था। मैंने सबसे अच्छी गाय खरीदी। एक चारे के बोंगे के साथ ज्वार भी खरीदी। गाय को खिलाने के लिए खल बाट की भी इसी दौरान खरीदारी की। मैंने गाँव वालों से गाय की जानकारी भी इकट्ठी की कि इनका रख-रखाव कैसे करते हैं। ये जानकारी बहुत जरूरी थी जिसे वही बता सकते थे। मैं मवेशियों के बारे में कुछ नहीं जानता था। जैसे ही तालाब बना मैंने खेत में ट्यूबवेल भी लगवाया तालाब में पानी भरने के लिए। वैसे खेत में ट्यूबवेल तो था पर वो चाचा के खेत में था।
मैंने ट्यूबवेल से तालाब में पानी भरना भी शुरू कर दिया। अब तक गाय के लिए हॉल भी बन गया था और गाय भी उस में थी। मैंने सत्ते से पूछ कर दूध खरीदने वाली कंपनी से भी बात कर ली थी जो सुबह आकर दूध भी ले जाती थी। दूध के पैसे मुझे हफ्ते में मिलने लगे। मैंने गाँव में भी सभी घरों में बात पहुँचाई कि वे यहाँ से दूध बेच सकते हैं। गाय से मुझे हर रोज पचास लीटर दूध बेचने को मिलता था। सुबह एक टैंकर आकर मेरा दूध ले जाता था एक लीटर दूध के मुझे पैंतीस रुपये मिलते थे। फिर मछली का बीज भी कोलकाता से आ गया। मैंने मछली का चारा भी एक स्थानीय बाजार से खरीदा। गाँव में अब मेरी नई तरह की खेती की बातें होने लगी थी। कोई कहता लड़का समझदार है, हम सब ये नहीं कर पाए पर इसने कर दिखाया। कुछ ये भी कहते कि गाय तो ठीक है पर ये मछली पालन से जीव हत्या होगी। सबके अपने-अपने तर्क थे। कुछ लोग तो अपना दूध भी बेचने मेरे खेतों में भी आने लगे थे जिसके उन्हें अच्छे पैसे मिलते थे। उन लोगों में एक लड़की भी आती थी जो दलित थी, नाम था पूनम। वो कोई बीस लीटर दूध बेचती थी। वो इसे साइकिल से लाती थी। मेरी ही हम उम्र की रही होगी। लोगों से पता चला कि पूनम के पिता गुजर गए थे और उसकी माँ गूँगी-बहरी थी। इसलिए पूनम अपने दो भाई और बहन को पालने के लिए शादी नहीं करना चाहती थी। लड़की के विचारों से मैं बहुत प्रभावित था।
मेरे चाचा-चाची मेरे काम से चिढ़े हुए थे। वे नहीं चाहते थे कि मेरा काम सफल हो। वे तो चाहते थे कि मैं साल-छह महीने में यहाँ से चला जाऊँ। नहीं तो वे एक अच्छी आमदनी खो देते। वे नहीं चाहते थे कि उन्हें मेरे खेतों की फसल से हाथ धोना पड़े।
एक दिन चाची ने मुझे कहा, “राघव हम तुम्हें नहीं रख सकते हैं। आज की महँगाई में हमारा ही पेट भर जाए वही काफी है।”
मैंने कहा, “चाची मैं महीने दो महीने में अपना ठिकाना बना लूँगा।”
“बेटा एक बात और करनी थी, तुमने खेतों की हमारी फसल के पैसे भी देने हैं।”
मैंने उन्हें इस बात की भी हाँ कर दी। मैंने खेतों में दो कमरे और एक बरांडा भी बनवाना शुरू कर दिया। अभी तक मुझे दूध से अच्छी आमदनी भी होने लगी थी। एक दिन सत्ते को भी पता चल गया कि उसकी माँ मुझे नहीं रखना चाहती है। इसलिए उनमें मेरी गैरमौजूदगी में तूतू-मैंमैं हुई थी। पर वो इस बारे में कुछ नहीं कर पाया था। मैं भी चाची के पास नहीं रहना चाहता था एक तो वे खाने में नमक-मिर्च ज्यादा डालती थी और खाने में कुछ भी स्वाद नहीं रहता था। वे जान-बूझकर रोज ही दाल बनाती थी जिससे मैं गाँव से निकल जाऊँ। जब उन्होंने देखा कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा तो उन्होंने मुझे घर से निकल जाने को कहा।
मैंने भी जब खेत में दो कमरे और बरांडा बन गया तो चाचा का घर छोड़ दिया। मैंने अपने खेतों में सब्जी उगा ली थी। मेरे पास दूध की भी कमी नहीं थी, बाकी का खाना बनाने का सामान मैंने सोहना से खरीदा। खाना बनाने के लिए मैंने ब्लैक से रसोई गैस सिलेंडर भी ले लिया। बुरे वक्त में फँस जाने पर मैं खाना बनाने का काम भी जानता था, जिसे मेरी माँ ने सिखाया था।
इतने काम में मैं मशगूल हो गया की निधि को बिल्कुल भूल ही गया था। मुझे उस की याद ही नहीं थी कि मैं उससे प्यार भी करता हूँ। ये मेरी जिन्दगी में पहली बार हुआ था जब से मैं उसके प्यार में पड़ा था। वैसे मेरे दर्द में कमी आई थी या वक्त ने मेरे दर्द पर मरहम लगा दिया था। वंश को भी मैं भूल गया था। एक दिन इसी बीच निधि का भी फोन मेरे पास आया। उसने कहा, “राघव गाँव में ही बस गए हो क्या? कभी अपने घर भी आ जाया करो।”
“मेरा अभी गाँव में काम है, कुछ दिन बाद आ जाऊँगा। और बता क्या चल रहा है?”
“कुछ नहीं बस पढ़ाई मेलगी हूँ। सुना है तुमने गाँव में मछली पालन और दूध की डेयरी का काम कर लिया है?”
“हाँ कुछ समय से ही।”
“राघव मैं तुझे कल तुम्हारे गाँव में मिलने आ रही हूँ।”उससे बाते करके मैं फिर से उसी झमेले में पड़ गया। मुझे अब वंश भी याद आ गया।
“आ जाना, मेरा गाँव सोहने के पास है। क्या तेरा दोस्त वंश भी आएगा?”
“नहीं हमारी बोलचाल खत्म हो गई है।”
“तुम्हारा ब्रेकअप हो गया है पर किस बात की लड़ाई है?” मैं ये ब्रेकअप की बात इसलिए कर रहा था की वंश और उसके बीच अब क्या पक रहा है देखना चाहता था।
“मेरा ब्रेकअप... मैं उसे प्यार नहीं करती जो ब्रेकअप होता।”
“अच्छा तो फिर तुम्हारे बीच क्या था?” अब मैंने उससे सीधी बात की पर लड़कियों से बात निकलवानी आसान चीज नहीं होती है।
“छोड़ो उसे तुम ये बताओ तुम्हारे गाँव का नाम क्या है? और रास्ता भी बताओ।”
“गाँव का नाम है गागोली, ये सोहने से दाईं तरफ के दूसरे कट पर है।”
“ठीक है।”
“अमित को भी ले आना, बहुत समय हो गया है उससे मिले।”
“वो क्या करेगा आके? हमारे बीच कबाब में हड्डी बनेगा।”
मैंने कहा, “किस टाइम आएगी कल?”
“मैं शाम को पहुँचूँगी।”
“और बता, वंश से बोलचाल कैसे बंद हो गई है तुम्हारी?”
“अरे दोस्ती थी पर वो कुछ और ही चाहता था इसलिए।” मैं थोड़ा मुस्कराया सोचने लगा लड़कियाँ कितनी एक्पर्ट होती है बात छुपाने में ।
“घर पर क्या बोलकर आओगी कि कहाँ जा रही है?”
“कुछ नहीं बोलूँगी। जब गाँव से वापस घर जाऊँगी तब कोई बहाना बना लूँगी।”
“अकेली ही आओगी कि कोई और भी होगा?”
“अमित होगा, तुमने ही कहा था कि उसे ले आना। अच्छा अब फोन रखती हूँ।”
उसने फोन काट दिया। मैं अपने काम मेलग गया। मैं बहुत खुश था कि निधि ने वंश से बात करनी बंद कर दी थी। मैंने अपने लिए चाय भी बनाई। जब मैं बहुत खुश होता हूँ तो अक्सर चाय बनाता था। उसके बाद मैं गाँव की दुकान से नमकीन और बिस्कुट लेकर आया निधि के लिए। मवेशियों को चारा डालने का समय भी हो गया था। मैंने चारा डालने के लिए रहीम को बोल दिया। रहीम मेरे लिए काम करता था।
अगले दिन शाम का समय था। कोई पाँच बजे थे कि अमित और निधि मेरे खेत में अपनी गाड़ी से आए। निधि ने आते ही कहा, “यार अपनी मछलियाँ दिखाओ।”
“पानी में काई की परत जमी है, इसलिए मछलियाँ नहीं दिखेगी।”
“तो मछलियों के पकोड़े ही बनवा दो।”
“नहीं अभी मछलियाँ बड़ी नहीं हैं। तुम तब तक उनका मजा नहीं ले सकते हो जब तक वे बड़ी नहीं हो जाती।” असलियत ये थी की मैं मछली पकड़ना जानता ही नहीं था इसलिए मैंने बहाना बनाया था
मैंने रहीम को आवाज लगाई तो रहीम वहाँ हाजिर हो गया, “हाँ भईया।”
“दो गिलास दूध में शक्कर मिलाकर लाना।”
वो खेत में बने कमरे में गया और दो गिलास दूध गर्म करने लगा।
“यार पढ़ाई कैसी चल रही है?” मैंने निधि से पूछा।
“हाँ ठीक चल रही है।”
“और बता इतनी दूर मुझसे मिलने की वजह क्या है?” मुझे अब भी विश्वास नहीं था वो वंश को छोड़ कर मेरे और बस मेरे से मिलने आई है।
“वजह क्या, मैं तेरी बचपन की गर्लफ्रेंड हूँ इसलिए आई हूँ।”
“मैं सब समझता हूँ तुम क्यों आई हो।”
“क्या समझते हो सच में? मैं तुम से मिलने आई हूँ।”
तभी अमित ने बातों में घुसते हुए कहा, “यार राघव ये तुझ से मिलने आई है, बात को समझो।”
“ठीक है पर...” और मैं कुछ कहते हुए रुक गया। मुझे निधि की हर बात से चिढ़ होने लगी थी।
“क्या पर? मैं तेरे से मिलने नहीं आ सकती हूँ? तुम्हें क्या हो गया जो छह-सात महीने से हर बात के उल्टे-सीधे जवाब मिल रहे हैं?”
“कुछ नहीं लगता है, राघव काम के कारण चिड़चिड़ा हो गया है।” अमित ने माहौल को शांत करने के लिए ऐसा कहा। रहीम दो गिलास दूध लेकर आ गया।
“मलाई डाली है इसमें?” मैंने रहीम से पूछा।
“हाँ भईया।”
“ठीक है गाय का दूध दुहना शुरू करो।” वो चला गया।
निधि ने कहा, “दूध तो बिलकुल हैवी है, बहुत अच्छा लग रहा है।” निधि सच कह रही थी यहाँ का दूध बड़ा ही हैव्वी और मजेदार होता है।
“बिल्कुल प्योर है। चलो तुम्हें डेयरी दिखाता हूँ।” और मैं वहाँ से खड़ा हो गया। मैंने उन्हें गाय के बैठने की जगह दिखाई जिस जगह की रहीम ने अच्छे-से सफाई कर रखी थी। फिर भी गोबर की गंध आ रही थी। निधि ने अपनी नाक रुमाल से ढक ली थी।
“एक बात बताओ राघव, एक गाय कितना दूध एक दिन में देती है? और ये कितने का बिकता है?”
“एक गाय दस से बारह लीटर दूध देती है और ये पैंतीस रुपये में एक लीटर बिकता है। रोज के हिसाब से ये दो हजार का तो बिकता ही है।”
तभी अमित ने कहा, “यानी साठ हजार का तो बिक ही जाता होगा महीने में। मैं ठीक कह रहा हूँ न।”
“हाँ तुम सही हो अमित। लेकिन इनको खिलाने के लिए चारा भी खरीदना पड़ता है जिसका अच्छा-खासा खर्च हो जाता है। मैंने इन्हें खिलाने के लिए दो लाख की ज्वार की फसल खरीदी है। साथ में खल बाट के साथ पचास हजार रुपये का भूसा भी। इसके साथ ही ये कामगार महीने में सात हजार मासिक वेतन भी लेता है। इन गाय से मासिक पैंतीस हजार ही बचता है। सभी को मिलाकर साल में चार लाख ही गाय से कमा सकते हैं।”
अमित और निधि ने ये बड़े ध्यान से सुना। मुझे ये सब बताने में बड़ा ही अच्छा लग रहा था।
“भाई तुम तो इस काम को एक कंपनी की तरह चला रहे हो। मुझे तेरे जैसे भाई पर गर्व है।”
निधि ने कहा, “और मछलियाँ कितने की बिकेंगी ये नहीं बताया।”
मैंने एक मुस्कान से कहा, “शायद पाँच-छह लाख से लेकर अच्छी फसल हुई तो आठ लाख रुपये तक।”
यह सुनकर निधि बहुत खुश हुई और मेरे पास आकर मेरे गाल पर एक चुंबन देने की कोशिश की, पर मैं पहले ही पीछे हट गया। तब उसने मुँह बना लिया। अमित ने ये देखकर मेरी तरफ आँख मारी।
“यार राघव, जो खेत बचे हैं उस में क्या बोया है?” मैंने मुस्कराते हुए कहा
“मैंने छह एकड़ जमीन जो पापा की बची है उसे किसानों को पट्टे पर खेती के लिए दे दी है जिसके बदले में वे हर एकड़ के तीस हजार रुपये मुझे साल में देंगे। साथ में खेत से चारा ठीक कीमत पर मुझे देंगे।”
अमित ने मेरी तरफ देखकर एक मुस्कान दी तो निधि ने मेरी तरफ देखकर ताली बजाई।
“यार तुम तो मंजे हुए खिलाड़ी हो मैं तुम से इंप्रेस हूँ।” निधि ने कहा।
शाम के छह बज चुके थे। मैंने निधि से कहा, “तुम्हें अब घर के लिए निकल लेना चाहिए नहीं तो रात हो जाएगी।”
“अरे राघव अभी दिन छुपने में दो घंटे हैं और हम कार से आए हैं, चले जाएँगे कौन-सी देर हो रही है।” निधि ने कहा। “यार चलो गाँव में घूमने चलते हैं मैंने कभी गाँव को पास से नहीं देखा है। शाम भी हो गई है फिजा में गर्मी भी नहीं है।”
“यार तेरे कपड़े देखकर सारा गाँव डर जाएगा।” मैंने कहा तो निधि हँसने लगी। उसने जींस और टॉप पहना था। उसकी जींस कई जगह से फटी थी। साथ मेजींस कुछ ज्यादा ही टाइट थी। ऊपर उसने गुलाबी टॉप पहना था जो कमर से ऊँचा था। उसकी कमर साफ दिख रही थी जो बहुत पतली थी। नाभि पर एक बाली टँकी थी। कान में बड़े-बड़े छल्लेनुमा टॉप्स थे। बाल उसने खुले छोड़ रखे थे जिसकी वजह से वो कुछ ज्यादा ही सुंदर दिख रही थी। मैं जानता था, गाँव में आदमी हो या औरत लोग उसे घूर-घूरकर देखेंगे।
“भाई मुझे सत्ते भाई से भी मिलना है, अरसा हो गया उसे मिले।” अमित ने कहा
“वो इस टाइम नहीं मिलेगा। वो किसी दोस्त के साथ शराब पी रहा होगा।”
“ठीक है चाचा-चाची से ही मिल लूँगा।”
“मैं उनके घर नहीं जाऊँगा, तुम्हें घर छोड़ दूँगा।”
“ठीक है।” अमित ने कहा। हम खेतों से गाँव की तरफ चल दिए। चाचा का घर गाँव के शुरू में ही था। अमित वहीं रह गया। मैं और निधि गाँव में घूमने लगे। गाँव के लोग निधि को घूर रहे थे। निधि भी मजाकिया तौर पर घूरते लोगों को गौर से देख रही थी। निधि ने कहा, “गाँव तो बिल्कुल साफ-सुथरा है। यहाँ पर गंदगी नाम की चीज नहीं है। शांति तो ऐसी है जैसे स्वर्ग में हूँ।”
सच में गाँव साफ-सुथरा था। बीच-बीच में ट्रैक्टर की आवाज आ रही थी जिससे लोग खेतों से घर आ रहे थे। गलियों में भी ज्यादा लोग नहीं थे। घरों से धुआँ निकल रहा था। गाँव में सब घरों में औरतें खाना बना रही थी। गाँव में खाना जल्दी बन जाता है, वजह थी बिजली रात में कभी भी चली जाती है।
निधि ने कहा, “गाँव में बहुत से मंदिर है।”
“हाँ गाँव मेलोग ज्यादा धार्मिक होते हैं। एक वजह यह है कि यहाँ दलितों के अलग मंदिर और ऊँची जाति के अलग मंदिर हैं। गाँव में छोटी जाति के लोग ऊँची जाति के मंदिर में नहीं जाते हैं। अगर ऐसा कोई करे तो उसकी अच्छी पिटाई गाँव के लोग करते हैं।”
निधि हँसने लगी, “क्या दलितों के अलग भगवान होते हैं और ऊँची जाति के अलग?”
मैं भी सुनकर हँसने लगा। फिर मैं गंभीर हो गया, “तुम सच कहती हो अलग ही होते होंगे। लोग कितने सेल्फिश होते हैं। ये लोग गाय या भैंस का दूध तो पी सकते हैं पर दलित को छूने भर से हाथ धोते हैं। गाँव में कुछ तो छूने भर से नहाते हैं पर गाय भैंस का गोबर उठाने में उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। दलित की भैंस खरीदकर उसका दूध पी सकते हैं उनका गोबर उठा सकते हैं पर उन्हें अपना बर्तन तक छूने नहीं देते। ऐसा होता है यहाँ। इंसान को इंसान ना समझकर उसे जानवर से भी नीचे समझा जाता है।” हँसते हुए मैंने कहा, “चलो इस दुकान से बंटा पीते हैं।”
“ये बंटा क्या है?”
“कंचे वाली कोल्डड्रिंक।”
“वाउ! वो मिलती है यहाँ? काफी समय से नहीं पी है मैंने।”
हम एक दुकान पर गए। मैंने दस के दो नोट दुकानदार को दिए और कहा, “दो बंटा दो।”
पैसे लेकर वो निधि को निहारता रहा। ये सब देखकर निधि हँसने लगी। दुकानदार ये सब देखकर शरमा कर दूसरी तरफ देखने लगा। बंटा पीकर हम खेतों की तरफ चल दिए।
रास्ते में हमने अमित को बुलाया। मैंने निधि से कहा, “अब तुम्हें घर के लिए निकलना चाहिए।”
“अभी नहीं... अभी तो बस आठ ही बजे हैं। कुछ टाइम बाद चलेंगे।”
हम खेतों में घर पर थे तभी बिजली चली गई। चारों तरफ अँधेरा था। निधि आसमान को देखने लगी, “यार राघव कितने तारे निकले हैं जैसे गाँव में ही रहते हों और गाँव के भोलेपन में घुल-मिल गए हों। मैंने इतने तारे पहली बार देखे हैं। तारों को देखकर लगता है ये गाँव में किसी की बारात लेकर आए हों।”
सुनकर अमित हँसने लगा। निधि ने उसके सर पर हाथ मारा। रहीम ने आवाज लगाई, “भईया खाना तैयार है।”
“क्या बनाया है खाने में?”
“आलू गोभी की सब्जी और बाजरे की रोटी।”
मैंने अमित और निधि को खाना खाने को कहा। रहीम की बीवी ने तीन थाली में खाना परोस दिया। हम सब हाथ धोकर खाना खाने लगे। बाजरे की रोटी वो चूल्हे से गरम-गरम सेंक कर देती रही जिस पर बहुत-सा मक्खन लगा था। सबने खाने की बड़ाई की। निधि ने इतना अच्छा खाना बनाने पर रहीम की बीवी को सौ रुपये दिए। हम फिर खेत में खाट पर बैठ गए।
कुछ ही देर हुई थी बैठे हुए कि एक फॉर्च्यूनर एस.यू.वी गाड़ी आकर हमारे पास रुकी। गाड़ी में रघुवीर और सत्ते थे। मेरे पास निधि को देखकर दोनों ढीले हो गए। मैंने निधि से कहा, “ये है सत्ते मेरा भाई और ये है रघुवीर मेरा दोस्त।”
गाँव वालों की तरह ही रघुवीर भी निधि को देखकर देखता ही रह गया। तो निधि की हँसी छूट गई। रघुवीर भी थोड़ा शरमा गया। मैंने कहा, “क्या हाल है तुम लोगों के?”
रघुवीर शरमाते हुए बोला, “अगले हफ्ते मेरी सगाई है, तुम्हें न्योता देने आया हूँ। पार्टी का जो अगली बारह तारीख को है।”
मैंने कहा, “ये तो बहुत खुशी की बात है।”
रघुवीर ने दो कार्ड निकाले। एक पर मेरा नाम लिखा था तो दूसरे पर कुछ नहीं लिखा था। आप भी अगर पार्टी में आओगी तो मुझे बड़ी खुशी होगी। आपका नाम क्या है कार्ड पर लिखना है। निधि ने अपना नाम बता दिया।
“क्या आप भी महरौली में रहती हैं?”
“हाँ मैं राघव के घर के ही पास रहती हूँ और मैं राघव की मंगेतर हूँ।” निधि ने एक हल्की-सी मुस्कान दी। मैं निधि की बात पर थोड़ा-सा गुस्सा हुआ।
“इसे मजाक करने की आदत है, मैं इसका मंगेतर नहीं हूँ।” इस पर निधि ने सड़ा-सा मुँह बनाया, “मैं तेरी गर्लफ्रेंड तो हूँ।”
मैंने कहा, “ऐसा मजाक करना ठीक नहीं।” माहौल अब गर्म हो गया। निधि ने अमित से कहा, “जब हम तुम्हारे कुछ नहीं हैं तो हम यहाँ फालतू में हैं। चलो अमित घर चलते हैं।” उसने कार में बैठते हुए कार को तेजी में धूल उड़ाते हुए मोड़ा और तेजी में वहाँ से चली गई। मुझे भी अब अपनी गलती का एहसास हुआ शायद मुझे उससे नरमी से पेश आना था पर मुँह से निकले वाक्य वापस नहीं हो सकते थे पर मुझे पता था की निधि ये सब दो ही दिन में भूल जाएगी।
रघुवीर सोचता रहा कि ऐसा क्या हो गया कि लड़की मुँह बनाकर ऐसे चली गई। रघुवीर बस मेरी तरफ देखता रहा। मैंने कहा, “रघुवीर कहाँ खोया है?”
“यार बड़ी ही सुंदर है तेरी गर्लफन्ड" सत्ते ने कहा। “भाई इतनी सुंदर लड़की को क्यों रुला दिया?”
“वो रो नहीं रही थी, बस भड़क गई थी।”
“मैंने देखा वो रो रही थी। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे।”
तभी रघुवीर ने कहा, “अभी चलता हूँ। मुझे और भी न्योता देने हैं।” वो मेरे गले मिला और चला गया।
मैंने वहीं खाट पर सोने की कोशिश की। पर मुझे नींद नहीं आई। मैं निधि पर उलझा था कि क्या मैंने उसका अपमान कर दिया या फालतू में ही मुँह बनाकर चली गई। कभी मुझे वंश का वो चेहरा याद आ जाता जब उसने कहा था कि तुम्हारी गर्लफ्रेंड मेरे नीचे दो बार लेट चुकी है। मैं अंदर तक उसकी शरारती मुस्कान से जल रहा था। जब सोया तो सपने भी ऐसे ही आए। मैं सुबह पाँच बजे तक सोता रहा। मुझे सुबह रहीम ने उठाया, “भईया पाँच बजे हैं, दूध वाली गाड़ी आने वाली है।”
“तुमने दूध दुह लिया?”
“हाँ जी भईया।”
फिर मैंने मुँह धोया। तब तक दूध की गाड़ी आ गई। मैंने दूध को नपवाया। कुछ और लोग भी गाँव के थे जिन्होंने नाप कर गाड़ी वाले को दूध दिया।
गाड़ी वाले ने दूध की पर्ची सब को दी जिस में दूध कितना है और पैसे लिखे थे। तभी सुबह–सुबह ही मेरे फोन पर घंटी बजी। फोन निधि का था।
“हेलो, आज सुबह–सुबह ही उठ गई?”
“मैं सोई ही कब थी जो उठ जाती।”
“सोई क्यों नहीं?” मैंने अन्जान बनते हुए कहा
“तुम्हारे कारण। किस बात का बदला तुम मेरे से ले रहे हो? मैं समझ नहीं पा रही हूँ तुम्हारी बातों से। कल मैं सारी रात नहीं सोई। अगर तुम्हें लगता है मेरा अफेयर वंश से है तो मैं साफ कह रही हूँ हमारे बीच कुछ नहीं है। मैं तो उसे केवल दोस्त मानती थी। जब से तुम्हारा व्यवहार मेरे लिए बदला है, मैंने वो दोस्ती भी तोड़ दी है। प्लीज मेरे से तुम ठीक से पेश आया करो। मैं प्यार करती हूँ तुमसे, पर तुम मेरी कहीं भी बेइज्जती कर देते हो।”
ऐसे में मैंने बात को दबाने के लिए पहले से ही अपनी तैयारी कर रखी थी मैं जानता था की वो ये सब मुझे जरूर कहेगी इसलिए मैंने जवाब पहले ही तैयार कर रखा था।
“यार तुम समझती नहीं हो। जहाँ तुम आई थी वो शहर नहीं गाँव है जो तुम्हारी बातों पर ध्यान नहीं देते। लोग यहाँ ये सब छुपकर ही करते हैं। जहाँ तक तुम्हारे प्यार की बात है, मेरे मन में तुम्हारे लिए बस प्यार की फीलिंग की जगह गहरे दोस्त की ही फीलिंग है। मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखना चाहता हूँ।” मैं उसे समझाना चाहता था कि वो ज्लदी से मेरे से दूरी बना ले पर मैं जानता था निधि को ये सब समझने में शायद बहुत समय लगने वाला है।
निधि हँसने लगी, “मुझे माफ करो, कोई ऐसा कर सकता है कि कुछ टाइम कोई किसी से प्यार करे और फिर वो उसका दोस्त बन जाए?”
मैंने कहा, “ऐसा ही है, मैं प्यार नहीं करता हूँ तुम से।” पर वो मानने वाली ही नहीं थी मैं पहले ही जानता था वो मुझ से टूटकर जो प्यार करती थी पर जबसे उसकी दोस्ती वंश से खत्म हुई थी वो शायद मुझसे और भी प्यार करने लगी थी।
“मैं नहीं मान सकती कि प्यार दोस्ती में बदल सकता है, हाँ धीरे-धीरे दोस्ती प्यार बन सकती है। और सुनो मैं रघुवीर की सगाई मैं जरूर आऊँगी चाहे तुम भले मना करो और मैं ये भी जानती हूँ कि तुम महरौली में क्यों नहीं आना चाहते हो ताकि मेरे से ना मिलना पड़े। पर ये प्यार है, ऐसे ही पीछा नहीं छोड़ेगा। तुम प्यार को पकड़ो और दोस्ती को छोड़ो। मैं जानती हूँ प्यार दोस्ती नहीं बन सकता है। वो प्यार ही रहेगा।” फिर निधि हँसने लगी। उसने फोन काट दिया। शायद निधि प्यार को मेरे से ज्यादा जानती थी। वो सच कह रही थी प्यार करके आदमी किसी को दोस्त या दोस्ती नहीं कर सकता था।
सात दिन बाद रघुवीर की सगाई थी। मैं जानता था निधि सगाई मेजरूर आएगी इसलिए मैं नए कपड़े खरीदने गुरुग्राम गया। वहाँ से मैंने सफेद कुर्ता-पाजामा खरीदा। कपड़े तो मैंने इसलिए खरीदे थे कि मैं निधि से कम ना लगूँ और निधि पर भी अपना इंप्रेशन डालना चाहता था। मैंने कुर्ते-पाजामें के साथ जूतियाँ भी खरीदी। जिस दिन की सगाई थी उस दिन निधि का फोन आया। उसने पूछा, “मैं गाँव में किसी को नहीं जानती हूँ, तुम कब पार्टी में पहुँचोगे?”
मैंने कहा, “शाम आठ बजे मैं पार्टी मैं पहुँच जाऊँगा।”
शाम को आठ बजे मैं रघुवीर की पार्टी को निकला। ये पार्टी रघुवीर की कोठी में थी। यह पार्टी दो भागों में थी। एक तो सब लोगों के लिए एक एकड़ में टेंट लगा था और दूसरे मैं खास लोगों के लिए कोठी में खाने का इंतजाम था जहाँ पर कई नेता भी आए थे।मेरा कार्ड कोठी का था। मैं वहाँ पहुँचा। घर के लॉन में एक जगुआर और बी.एम.डब्लू. कार खड़ी थी जिसे लड़की वालों ने दहेज में दी थी। जगुआर रघुवीर की थी और बी.एम.डब्लू. उसके पिताजी को लड़की वालों ने उपहार में दी थी। अभी वहाँ पहुँचा ही था की निधि का फोन आ गया। निधि ने पूछा कि कहाँ आना है? तो मैंने उसे रघुवीर के घर का रास्ता बताया। कुछ देर में निधि मेरे पास पहुँच गई।
हम रघुवीर के घर में घुस गए। निधि ने कहा, “बहुत मालदार लोगों की पार्टी है। सगाई मेजगुआर मिली है।”
मैंने कहा, “मालदार पार्टी तो है ही।”
हम तब तक हॉल में थे हॉल काफी बड़ा था। यहाँ कोई दो सौ लोग थे जिस में हरियाणा सरकार के कई मंत्री भी थे। हॉल काफी सुंदर दिख रहा था। यहाँ आदमी की संख्या महिलाओं से ज्यादा थी। सभी महिलाएँ सूट या साड़ी में थी। सगाई हो चुकी थी। अब पार्टी चल रही थी। निधि ने जींस और टॉप पहना था। ये उसके नॉर्मल कपड़े थे। जींस घुटने से फटी थी और टॉप से उसकी पतली कमर दिख रही थी। बाल भी हमेशा की तरह ही खुले थे। मेरे हिसाब से वो पार्टी में सबसे सुंदर लग रही थी। उसने चेहरे पर कोई मेकप नहीं कर रखा था। जैसे ही पुरुषों ने हमें देखा सबकी नजर हम पर थी। सच में निधि सुंदर दिख रही थी। मैंने सत्ते को ढूँढना शुरू किया, पर वो मुझे नहीं दिखा।
कुछ देर में हमारे पास वेटर शराब लेकर आया। निधि ने एक छोटा पैक स्कॉच का लिया और वो उसे पीने लगी। एक और वेटर हमारे पास आया। उसके पास स्नैक्स थे। मैंने भी स्नैक्स लिए और एक वेटर से बीयर मँगवाई। वो बार से एक हनी कैन का प्वॉइंट लेकर आ गया।
मैंने देखा सत्ते और रघुवीर दोस्तों के साथ शराब पी रहे थे। मैंने निधि से कहा, “वो रहा रघुवीर, चलो उसे विश करते हैं।”
हम दोनों उसकी तरफ चल दिए। मैंने उसके पास जाकर कहा, “बहुत-बहुत बधाई!”
निधि ने भी उसे एक गुलदस्ता दिया तो रघुवीर ने धन्यवाद कहा। सत्ते ने भी हमसे हाथ मिलाया। रघुवीर ने अपने दोस्तों से कहा, “ये है राघव और ये इनकी गर्लफ्रेंड निधि।” सब दोस्त हमारी तरफ देखने लगे। एक लड़के ने कहा, “ये तो यहाँ के नहीं लगते हैं, कहाँ के हैं आप?” मैं बोलना ही चाह रहा था कि निधि ने कहा, “हम महरौली, दिल्ली से हैं पर राघव यहाँ छह महीने से रह रहा है।”
सभी तरफ से निगाहें निधि पर थी। ऐसे में निधि कंफर्टेबल महसूस नहीं कर रही थी। तब रघुवीर ने कहा, “आप जैसी लड़की इन लोगों को फिल्मों में ही देखने को मिलती है, इन लोगों से डरो नहीं। आप दोनों पार्टी का मजा लो।” निधि थोड़ी मुस्कुराई।
असलियत में निधि को ये सब नॉर्मल ही लगता था। पर उसकी परेशानी औरतों से थी जो उसे देखकर बातें कर रही थी। निधि फिर भी अपने को नॉर्मल ही दिखने की कोशिश कर रही थी। कुछ देर में रघुवीर भी फ्री हो गया। उसने अपने परिवार से हमें मिलाया। पहले उसने अपनी बहन से मिलवाया, उसके बाद अपने मम्मी पापा से। परिवार के सभी लोग मिलनसार थे। रघुवीर की मम्मी बोली, “तुम्हारी जोड़ी बहुत अच्छी लगती है।” रघुवीर की बहन ने भी निधि की तारीफ की।
रात दस बजे हमने खाना खाया फिर हम वहाँ से निकल लिए। निधि ने कहा, “सब लोगों को हमारी जोड़ी अच्छी लगी, तुम क्या कहोगे?”
मैंने कहा, “अभी तो तुम घर जाओ, नहीं तो रात में पुलिस बैरिकेट लगाकर जगह-जगह चेकिंग करती मिलेगी। तुमने शराब पी रखी है।”
“तो क्या हुआ? पुलिस तो सौ दो सौ में मान जाती है।” और वो हँसने लगी। मैंने निधि को गाड़ी तक छोड़ा। वो जब महरौली के लिए चली गई तब मैं भी अपने खेतों की तरफ निकल लिया। मुझे भी नशा हो रहा था। मैंने भी अपने ठिकाने पर जाकर चाय पी, फिर मैं सो गया।
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