तीन घंटे बाद जगमोहन, अशफाक और वो दोनों आदमी लौटे ।
साथ में तारिक मोहम्मद भी था जो घबराया हुआ दिखाई दे रहा था । (जगमोहन, मार्शल के ठिकाने पर एक बार भी तारिक मोहम्मद से नहीं मिला था । इसलिए जगमोहन को अपना प्लान खुल जाने का डर नहीं था ।)
"कोई पंगा खड़ा हुआ वहां ?" अंसारी ने पूछा ।
"नहीं बड़े भाई ।" अशफाक बोला--- "एक आदमी था । उसे चुपके से बेहोश कर दिया मैंने । पेट्रोल पम्प के दो कर्मचारियों ने तारिक मोहम्मद के साथ हमें जाते देखा । जब तक वे सतर्क होते, निकल चुके थे ।"
"ये अच्छा रहा ।" सलीम खान बोला और तारिक मोहम्मद के करीब आ पहुंचा ।
"तुम लोग कौन हो ?" तारिक मोहम्मद घबराया-सा कह उठा ।
"तुमने इसे बताया नहीं ?" सलीम खान ने अशफाक से पूछा ।
"बताया था । पर ये डरा हुआ है । शायद समझ नहीं पाया ।" अशफाक ने कहा ।
तभी एक तरफ बैठा जलालुदीन कह उठा ।
"ये तारिक मोहम्मद है। मैंने इसकी आवाज पहचान ली है ।"
"जलालुद्दीन ?" तारिक मोहम्मद के होंठों से निकला ।
"हां मैं--- हम सब यहां है । मोहम्मद डार, गुलाम कादिर, आमिर रजा खान, सरफराज हलीम, अब्दुल रजाक । अब तुम सुरक्षित हो ।"
"दोस्तों में हो तुम ।" जगमोहन तारिक मोहम्मद का कंधा थपथपा कर मुस्कुराते हुए बोला ।
सलीम खान ने मुस्कुरा कर कहा ।
"मैं वो हूं जिसका मोबाइल नम्बर तुम्हारे पास था । कहां पर पकड़ लिया तुम्हें ?"
"नेपाल बॉर्डर पर ।"
"फिक्र करने की जरूरत नहीं । अब तुम अपने लोगों में हो ।" सलीम खान बोला फिर देवराज चौहान की तरफ इशारा किया--- "इसे पहचानते हो ?"
देवराज चौहान पर निगाह पड़ते ही तारिक मोहम्मद चौंक पड़ा।
"ये...ये तो वो ही है जिस...जिस, ये तारिक मोहम्मद बनकर तुम्हारे पास पहुंचा था ना ?" तारिक मोहम्मद के होंठों से निकला ।
"हां । परंतु उसका भेद खुल गया । पकड़ा गया ये । इसका हाल देख रहे हो न ?" सलीम खान बोला ।
"तो ये जिंदा क्यों है। मैं इसका गलाअपने हाथों से काटता...।"
"शांत हो जाओ । इसकी जान लेने की ख्वाहिश बहुत होती है । ये देवराज चौहान है । हिन्दुस्तान का नामी डकैती मास्टर । इसके साथी ।" उसने जगमोहन की तरफ इशारा किया--- "जगमोहन से इसकी 'लग' गई है तभी तो जगमोहन ने बताया कि तुम्हें कहां रखा हुआ है । हमारा एक काम बाकी है । अगर वो काम भी जगमोहन कर देता है तो देवराज चौहान को, इस के हवाले कर दिया जाएगा कि, ये इसका जो भी करे।"
"बहुत बुरी मौत मारूंगा हरामजादे को ।" जगमोहन गुर्रा उठा ।
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए ।
"तारिक मोहम्मद ।" सलीम खान बोला--- "पाकिस्तान के काम आने का जज्बा अभी भी मन में है या खत्म हो गया ?"
"खत्म क्यों होगा जनाब । जो मेरे साथ हुआ, उससे थोड़ा थक अवश्य गया हूं, पर दो-चार दिन में ठीक हो जाऊंगा ।"
"शाबाश ।" सलीम खान खुश लग रहा था ।
"मेरे कारण तारिक मोहम्मद तुम्हें फिर मिल गया ।" जगमोहन मुस्कुरा कर बोला ।
"शुक्रिया ।" सलीम खान ने कहा फिर तारिक मोहम्मद से बोला--- "तुम पहले कहां कैद थे ?"
"मैं नहीं जानता । परंतु वो स्वचालित दरवाजों वाला कमरा था। खाना मुझे वक्त पर दिया जाता । पूछताछ में मैंने वो ही बातें बताई जिन्हें बताने से कोई फर्क नहीं पड़ता था ।" तारिक मोहम्मद ने बताया ।
"इस बात की कोई परवाह नहीं की तुमने उन्हें क्या बताया । जिसने तुम्हें कैद किया, उसका नाम मालूम है ।"
"हां । सब उसे मार्शल ही कहते थे ।"
"मास्टर ।" सलीम खान के दांत भिंच गए ।
"वो मुझे मारने जा रहे थे ।" तारिक मोहम्मद ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"कैसे पता ?"
"जहां से आज मुझे छुड़ाया गया, वहां से रात या कल दिन में मुझे किसी जंगल में ले जाया जाता और गोली मार दी जाती । मेरे सामने ही मार्शल ने किसी आदमी से ऐसा करने को कहा था ।" तारिक मोहम्मद का चेहरा फक्क था ।
"लेकिन हमने तुम्हें बचा लिया ।" सलीम खान हंसा ।
"सलीम खान ।" जगमोहन बोला--- "मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं ।"
"कहो ।"
"अब मैंने डकैतियां करनी छोड़ दी है । देवराज चौहान से दौलत का पता पूछने के बाद मैंने मार देना है । अगर तुम्हारा भरोसा मुझ पर टिक जाए तो मैं तुम्हारे साथ काम करना चाहूंगा ।" जगमोहन कह उठा--- "लेकिन मुझे पाकिस्तान की नागरिकता दिला देना । क्योंकि यहां तो पुलिस चैन नहीं लेने देती । पुलिस से बच के रहना पड़ता है । परेशानी होती है ।"
"सोचा जा सकता है इस बारे में । पहले तुम मार्शल से, उस गद्दार का नाम पूछ कर बताओ ।"
"फोन का स्पीकर ऑन करके तुम्हारे सामने ही बात करूंगा । सुन लेना ।" जगमोहन ने कहा ।
"अंसारी उसे फोन दो ।" सलीम खान बोला ।
अंसारी ने जगमोहन का मोबाइल, उसे वापस दिया ।
जगमोहन मोबाइल थामते कह उठा ।
"अगर मैं तुम्हारे साथ काम करूंगा तो मुझे पैसा क्या मिलेगा ?"
"काम हमारी पसंद का होगा और पैसा तुम्हारी पसंद का । परंतु मैं इतनी जल्दी किसी पर भी भरोसा नहीं कर...।"
"मेरा फोन नम्बर ले लेना । जब जरूरत पड़े, फोन कर देना ।"
"मार्शल से बात करो ।"
जगमोहन नम्बर मिलाने लगा ।
"बैठ जाओ तारिक मोहम्मद । आराम करो । सलीम खान बोला--- "खाना खाया है कि नहीं ?"
"आज नहीं मिला खाने को ।"
"अशफाक इसके लिए खाना मंगवाओ ।"
अशफाक ने अपने आदमी को इशारा किया तो वो बाहर निकल गया ।
तारिक मोहम्मद आगे बढ़कर जलालुद्दीन के पास जा बैठा ।
"तुम्हें यहां देख कर मुझे बहुत खुशी हो रही है ।"
जवाब में तारिक मोहम्मद मुस्कुरा पड़ा ।
"हम जल्दी ही कोई बड़ा काम करने वाले हैं ।" अब्दुल रज्जाक ने कहा ।
"मैं भी तुम लोगों के साथ हूं ।" तारिक मोहम्मद कह उठा ।
जगमोहन ने नम्बर मिलाया तो दूसरी तरफ बेल जाने लगी ।
जगमोहन ने फौरन फोन का स्पीकर ऑन कर दिया । बेल की आवाज वहां सब को सुनाई देने लगी ।
"हैलो ।" मार्शल का स्वर फोन से निकलकर वहां गूंजा। सबने सुना ।
"देवराज चौहान मिला मार्शल ?"
"अभी नहीं तलाश जारी है ।"
"ये ठीक नहीं हुआ । मुझे उसकी चिंता बहुत चिंता हो रही है ।" जगमोहन बोला ।
सब सांस रोके बातें सुन रहे थे ।
"सब ठीक हो जाएगा । हम उसे ढूंढ निकालेंगे ।" मार्शल की आवाज फोन से निकलकर वहां गूंजी ।
"एक बात बताओ । बहुत देर से मेरे दिमाग में आ रही थी कि आखिर हामिद अली की खबरें तुम्हें कैसे मिल जाती हैं ।"
"मेरा एजेंट है हामिद अली के यहां ।"
"कौन ?"
"तुम्हें बताना ठीक नहीं होगा जगमोहन । ये सीक्रेट बातें हैं। विभाग की बातें हैं ।"
"तुम्हारे कहने पर देवराज चौहान ने अपनी जान खतरे में डाल दी और तुम हो कि मेरे पे भरोसा नहीं कर रहे ।"
"ये बात नहीं । जरूरत ही क्या...।"
"मैं ये बात जानना चाहता हूं तो मुझे बता दो । मैं किसी से कहने वाला नहीं ।"
"पर तुम जानना ही क्यों चाहते...।"
"मेरे मन में है कि मैं जानूं । तुम्हें बताने में बहुत ज्यादा एतराज है तो...।"
"वो मुनीम खान है ।" मार्शल की आवाज गूंजी ।
सलीम खान के चेहरे पर दरिंदगी नाच उठी ।
"क्या कहा ?" मुनीम खान, ये कौन है ?"
"ये हामिद अली का खास आदमी है और दाऊद खेल का ठिकाना संभालता है ।"
"तुम्हें कहां मिला ये ?"
"मुझे कभी नहीं मिला। हमारी फोन पर ही बातें होती हैं। उसके पास मेरे सब नम्बर हैं। जब भी हामिद अली की कोई खबर देनी होती है वो मुझे दे देता है। एक तरह से मुनीम खान मेरी नौकरी करता है । पाकिस्तान स्थित मेरा एजेंट हर महीने उसे पांच लाख रुपया पहुंचा देता है । इस बार तो मुनीम खान ने सातों लड़कों के बारे में बढ़िया खबर दी। परंतु हमारा प्लान कामयाब नहीं रहा और देवराज चौहान पकड़ा गया। तुम्हें देवराज चौहान के साथ ये काम करना चाहिए था। तब शायद सब कुछ ठीक रहता ।"
जगमोहन ने सलीम खान का चेहरा देखा, जो धधक रहा था।
"तुम देवराज चौहान की तलाश करो मार्शल । मुझे सिर्फ उसी की चिंता है ।" कहकर जगमोहन ने फोन बंद कर दिया ।
अंसारी हक्का-बक्का सा खड़ा, सलीम खान को देखे जा रहा था ।
"मुनीम खान ।" सलीम खान गुर्रा उठा--- "हरामजादा । गद्दार-ये तो बहुत बड़ा कुत्ता निकला ।"
"बड़े भाई ।" अशफाक बोला--- "मुझे तो यकीन नहीं होता कि मुनीम खान...।"
"पैसा, अक्ल मार देता है ।" सलीम खान ने दांत किटकिटा कर कहा--- "वो गद्दार है या नहीं, ये देखना हामिद अली का काम है। मेरा काम तो उसे बताना है कि वो गद्दार हो सकता है । मार्शल के लिए काम करता हो सकता है ।" सलीम खान का चेहरा धधककर लाल सुर्ख-सा हो गया था । आंखों में खतरनाक चमक थी ।
सलीम खान दूसरे कमरे में जाने के लिए पलट कर आगे बढ़ गया ।
अंसारी ने उसके साथ जाने की चेष्टा की ।
"तुम रुको अंसारी । मुझे अकेले में हामिद अली से बात करनी है ।" चलते-चलते सलीम खान ने कहा ।
अंसारी ठिठक गया ।
सलीम खान वहां से निकाल कर दूसरे कमरे में चला गया।
सन्नाटा-सा आ ठहरा वहां ।
जगमोहन चेहरे पर जहरीली मुस्कान लिए देवराज चौहान के पास पहुंच गया ।
देवराज चौहान खा जाने वाली निगाहों से देख रहा था ।
"क्यों डकैती मास्टर साहब । कैसे मिजाज हैं ।" जगमोहन ने दांत भींचकर कहा--- "तुम्हारी हर डकैती में साथ रहा । जाने कितनी बार जान की बाजी लगाई और अब सारा माल लेकर, खिसक जाना चाहते थे। अब कौन बचाएगा तुम्हें ।" कहने के साथ ही जगमोहन झुका और नीचे दीवार से टेक लगाए बैठा देवराज चौहान के गाल पर जोरदार घूंसा मारा ।
देवराज चौहान के होंठों से तीव्र कराह निकली ।
"अब तू मुझे जल्दी ही बताएगा कि वो सारी दौलत तूने कहां रखी ।"
"नहीं बताऊंगा ।" देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
"नहीं ?"
"कभी नहीं ।"
जगमोहन चेहरे पर जहरीले भाव लिए पलटा और अंसारी से कह उठा ।
"इसमें थोड़ी-सी शर्म वाली बात तो है ही कि तुम लोग इसका मुंह नहीं खुलवा सके ।"
"ये बहुत पक्का है । तुम तो शायद न जान पाओ कि इतने पैसे कहां रखा है ।" अंसारी ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"मैं जान लूंगा । एक-दो दिन में सब बोल देगा ।" जगमोहन कड़वे स्वर में बोला ।
"कैसे मुंह खुलवाओगे इसका ?"
"इसकी कई कमजोरियां है मेरे पास । जैसे कि इसका परिवार है । पत्नी है दो बच्चे हैं ।"
"समझा ।"
"बीबी-बच्चा को सामने लाकर खड़ा कर दूंगा और गर्दन पर चाकू लगा दूंगा फिर ये चुप नहीं रहेगा, क्योंकि ये जानता है कि जगमोहन को गले काटने में बहुत मजा आता है ।" कहकर जगमोहन ने देवराज चौहान को देखकर खतरनाक स्वर में कहा--- "क्यों हीरो, लाऊं तेरी बीवी-बच्चों को यहां या उसके बिना ही बताएगा कि दौलत कहां रखी है ।"
देवराज चौहान दांत भींचे जगमोहन को देखता रहा ।
जगमोहन ठठाकर हंस पड़ा ।
"तुम सच कह रहे हो कि मुनीम खान गद्दार है ?" अंसारी ने गम्भीर स्वर में पूछा ।
"मैंने कहा ? मैंने तो नहीं कहा । तुम्हारे सामने मार्शल ने कहा । मार्शल की आवाज पहचानते हो न ?"
"मैं नहीं जानता मार्शल की आवाज । पर बड़े भाई मार्शल की आवाज को पहचानते हैं । बड़े भाई ने एक बार मार्शल से बात की थी वो हामिद अली के रास्ते पर रुकावट न डाला करे। बदले में उसे मोटी रकमें मिलती रहेंगी ।"
"तो नहीं माना मार्शल ?" जगमोहन तीखी आवाज में बोला ।
"नहीं ।"
"साले को नोट नहीं सिर में गोली दो । उसे गोली की जरूरत...।"
तभी सलीम खान को वापस इसी हाल में आते देख जगमोहन ठिठका फिर बोला ।
"हामिद अली को बता दिया कि मुनीम खान मार्शल का एजेंट है।"
"हां ।" सलीम खान गम्भीर-भरे स्वर में बोला--- "अब वो देखेगा कि मुनीम खान के साथ क्या करना है । हमें बहुत नुकसान हुआ है कि मार्शल सारा प्लान जान गया। मुनीम खान को गद्दारी की सजा हामिद अली जरूर देगा ।"
"ये तो अच्छा हुआ कि सारा मामला कंट्रोल हो गया, वरना तुम सब मारे गए होते । जो एक-दो बचते, वो गिरफ्तार हो जाने के बाद तिल-तिल कर के मरते । साला मुनीम खान गद्दार है ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मेरी बात याद रखना कि मैं तुम्हारे साथ काम करना पसंद करूंगा । जब ठीक लगे तो मुझे फोन जरूर करना ।"
तभी दीवार के साथ टेक लगाए देवराज चौहान दांत भींचे कह उठा ।
"तुमने बहुत गलत किया कमीने । मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा ।"
"अपनी हालत देख देवराज चौहान । इतना घायल है कि तुझ से हिला नहीं जा रहा । मुझे क्या मारेगा तू ।" जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा--- "तेरे सिर पर मौत नाच रही है, जिसे तू देख नहीं पा रहा । बता वो सारी दौलत कहां रखी है ।"
"नहीं बताऊंगा ।" देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा ।
"तेरा तो बाप भी बताएगा ।" जगमोहन गुर्रा उठा--- "अब तेरा वो हाल करूंगा कि...।"
"जगमोहन ।" तभी सलीम खान कह उठा--- "हमारा काम निबट चुका है ।"
"तो ?"
"अब हमें देवराज चौहान की जरूरत नहीं रही । हामिद अली भी चाहता है कि देवराज चौहान को मार दिया जाए । क्योंकि इसने हामिद अली के भाई अली को पाकिस्तान जाकर मारा था।"
"पहले मैं अपनी दौलत के बारे में तो...।"
तभी जगमोहन के जेब में पड़ा मोबाइल बज उठा । अंसारी ने जगमोहन से मोबाइल वापस नहीं लिया था । जगमोहन ने फोन निकालकर स्क्रीन पर आया नम्बर देखा फिर सलीम से बोला ।
"मार्शल का फोन है ।"
"बात करो ।"
"मुझे क्या जरूरत है बात करने की। मुझे देवराज चौहान मिल गया। ये अब दौलत का भी पता बता देगा । तुम लोगों से मेरी दोस्ती हो गई । अब मार्शल से मुझे क्या लेना-देना ।" जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा ।
"देखो तो क्या कहता है ।" सलीम खान का स्वर गम्भीर था ।
जगमोहन ने कॉल रिसीव की ।
"हैलो ।"
"मेरी बात ध्यान से सुनो । तारिक मोहम्मद के जूतों की एड़ी के साथ माइक्रो डिवाइस चिपकी हुई है । उसे वहां से निकालकर सलीम खान के कपड़ों में डाल दो । वो माइक्रो डिवाइस लोकेशन बताती है और ट्रांसमीटर का काम करती है ।" मार्शल की धीमी आवाज कानों में पड़ी ।
"तुम अभी तक देवराज चौहान का पता नहीं लगा सके । ये तो शर्म की बात है ।" जगमोहन जल्दी से कह उठा ।
"हमें विरार में सलीम खान के एक ठिकाने का पता चला है । मेरे आदमी दो घंटे तक वहां रेड करने वाले हैं ।" मार्शल की आवाज आई ।
"क्या देवराज चौहान वहां है ?"जगमोहन ने पूछा ।
"नहीं । लेकिन अब हमें सलीम खान का जो भी ठिकाना पता चलेगा, वहां हम रेड कर देंगे ।"
"देवराज चौहान को ढूंढो । उसका पता लगते ही मुझे फोन करना मार्शल । मुझे उसकी चिंता हो रही है ।" जगमोहन ने कहा और फोन बंद करके मार्शल से बोला--- "विरार में तुम्हारा कोई ठिकाना है ?"
"क्यों ?" सलीम खान की आंखें सिकुड़ी ।
"मार्शल कहता है कि विरार में तुम्हारा कोई ठिकाना मिला है । दो घंटे तक उसके आदमी रेड करने वाले हैं वहां ।"
सलीम खान ने आंखें सिकुड़ी । उसने मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाया और बात की ।
"ये जगह फौरन खाली कर दो ।" सलीम खान बोला--- "पुलिस वहां रेड करने वाली है ।"
कहकर सलीम खान ने फोन जेब में रखा । फिर बोला ।
"तो ये तय है जगमोहन कि तुमने देवराज चौहान को अंत में मौत ही देनी है ।
"देनी पड़ेगी । इसे जिंदा छोड़ दिया तो ये मेरी जान ले लेगा । बस जरा इससे मालूम कर लूं कि वो दौलत कहां...।"
"मैं तुम्हें तोहफा देना चाहता हूं । हमारी पहली दोस्ती का तोहफा ।" सलीम खान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "देवराज चौहान को तुम्हारे हवाले कर रहा हूं । इससे अपने काम की बात मालूम करके, खत्म कर देना इसे ।"
"क्या मतलब ?" जगमोहन के होंठों से निकला-"तुम्हारा मतलब कि मैं यहां से ले जाऊं ?"
"हां देवराज चौहान की वजह से हमारा बहुत वक्त खराब हो गया है । हमें कई काम करने हैं । जो मैं जानना चाहता था वो जान चुका हूं अब ये तुम्हारा है । इससे पूछताछ करने के बाद इसे खत्म...।"
"क्या तुम देवराज चौहान की मौत नहीं देखना चाहते ?" जगमोहन जहरीले स्वर में क्या कह उठा--- "मेरे ख्याल में तुम्हें जरूर देखना चाहिए कि मरते समय ये कितना तड़पता है । इसकी चीखें...।"
"मुझे खुशी होती कि मैं ये सब देख पाता। मन तो है कि मैं इसे अपने हाथों से मार दूं, परंतु तू मुझे बढ़िया लगा इसलिए अपने वादे पर कायम रहना चाहता हूं कि तुम इससे अपने काम की बात जान लो ।" सलीम खान ने मुस्कुरा कर कहा--- "मैं तुम्हें जल्दी ही फोन करूंगा और बड़ा काम हम मिलकर करेंगे । परंतु अभी मुझे बहुत काम करने हैं । बेहतर है इसे यहां से ले जाओ। ये अब तुम्हारे हवाले है । मेरे आदमी तुम्हारी आंखों पर पट्टी बांधकर, इसके साथ तुम्हें वहां छोड़ देंगे, जहां तुम चाहोगे।"
"वादे पर कायम रहने का शुक्रिया ।" जगमोहन ने आभार-भरे स्वर में कहा--- "परंतु मैं चाहता हूं कि कम-से-कम तुम आज रात का मौका दे दो कि मैं यहीं पर इससे अपने काम की बात जान सकूं । अगर मैं सफल रहा तो सुबह तक इसे खत्म कर देंगे ।"
सलीम खान ने देवराज चौहान को देख कर कहा ।
"ये सख्त जान है । मुझे नहीं लगता कि ये तुम्हें आसानी से बता देगा कि इसने दौलत कहां रखी है ।" सलीम खान ने कहा ।
"एक बार मुझे कोशिश कर लेने दो ।" जगमोहन बोला ।
"ठीक है । आज की रात का तुम्हें वक्त देता हूं । काम न बना तो सुबह इसे लेकर चले जाना ।"
"मैं रात में ही इसका मुंह खुलवा लूंगा ।" जगमोहन दृढ़ स्वर में कह उठा ।
सलीम खान ने पलटकर अंसारी से कहा ।
"मुझे आज की रात विरार के ठिकाने पर बितानी है । परंतु ये अच्छा रहा कि पता चल गया कि मार्शल के लोग वहां रेड करने जा रहे हैं । अब वो जगह खाली की जा रही होगी । इसलिए आज रात में यहीं पर बिताऊंगा ।"
"जी बड़े भाई । मैं आपके आराम करने का इंतजाम कर देता हूं।" अंसारी कहकर जाने को हुआ ।
"मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं । यहां मेरा कोई काम नहीं ।"
अंसारी और सलीम खान उस हाल से निकल गए ।
जगमोहन कमर पर हाथ रखे देवराज चौहान को देखने लगा । बाकी सब लड़कों को देखा । जो कि आराम करने के लिए इधर-उधर लुढ़के पड़े थे । तारिक मोहम्मद, जलालुद्दीन के पास बैठा था । उसने अपने जूते उतार रखे थे ।
जगमोहन तारिक मोहम्मद से मुस्कुरा कर कह उठा।
"तुम मेरी मेहरबानी से इस वक्त आजाद हो तारिक मोहम्मद ।" जगमोहन जानता था कि यहां होने वाली बातों को मार्शल सुन रहा था । तारिक मोहम्मद के जूते की एड़ी में माइक्रो डिवाइस चिपका रखी थी। मार्शल ने बताया था कि उस डिवाइस पर माइक्रोफोन लगा है और वो सही लोकेशन भी बताती है। इसका मतलब ठिकाना मार्शल की निगाहों में है ।
जगमोहन ने मन ही मन मार्शल की समझदारी की तारीफ की ।
"शुक्रिया दोस्त ।" तारिक मोहम्मद आभार-भरे स्वर में कह उठा।
जगमोहन आगे बढ़ा और तारीक मोहम्मद का जूता उठाकर देवराज चौहान की तरफ पलटा । इस दौरान उसने जूते की एड़ी पर नजर मारी तो एड़ी के साथ नन्ही-सी माइक्रो डिवाइस दिखी ।
जगमोहन देवराज चौहान के पास पहुंचा और कहर-भरे स्वर में बोला ।
"बोल बेटा । वो सारी दौलत कहां रखी है । उसमें आधा हिस्सा मेरा था पर तू सारी हजम करने की सोच बैठा और दौलत गायब कर दी । अब वो सारी दौलत मैं लूंगा । बता कहां रखी है दौलत । नहीं बोला तो इसी जूते से मारूंगा ।"
देवराज चौहान, जगमोहन को सख्त निगाहों से देखे जा रहा था।
"घूरता क्या है ?" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा--- "मुझे खाएगा क्या ?" इसके साथ ही जगमोहन का जूते वाला हाथ घूमा और देवराज चौहान के गाल पर जा पड़ा जूता ।
जख्मी चेहरे पर जूता पड़ते ही, देवराज चौहान के होंठों से पीड़ा-भरी कराह निकली ।
"तुम बहुत गलत कर रहे हो ।" देवराज चौहान दांत भींच कर बोला--- "इसके लिए तुम्हें पछताना पड़ेगा ।"
"वो सारी डकैतियों का पैसा कहां रखा है जो हमने कई सालों में की है। अब वो सारा पैसा मेरा है सीधी तरह मेरे हवाले कर दे देवराज चौहान । वरना तू इसी तरह कुत्ते की मौत मर जाएगा।" जगमोहन दांत किटकिटाकर बोला ।
"वो दौलत सिर्फ मेरी है ।"
"नहीं, अब वो मेरी है क्योंकि तूने मेरे साथ धोखेबाजी करने की चेष्टा की । वो सारी दौलत वहां से गायब कर दी, जहां पर हमने उसे रखा था । सब कुछ तू हड़प जाना चाहता था परंतु जगमोहन को भूल गया तू कि...।"
बुरी तरह घायल पड़े देवराज चौहान ने जगमोहन पर झपटना चाहा ।
उसी पल जगमोहन का जूते वाला हाथ घूमा और जूता देवराज चौहान के गाल पर पड़ा ।
देवराज चौहान पीड़ा से तड़प उठा । होंठों से तेज कराह निकली और वापस दीवार से सटकर बैठ गया । तेज-तेज सांसें लेने लगा था । क्रोध में जलती सुर्ख आंखे जगमोहन के चेहरे पर जा टिकी थीं।
"तू बहुत बुरी मौत मरेगा मेरे हाथों से ।" देवराज चौहान के होंठों से कमजोर, सख्त-सा का स्वर निकला ।
"तू अब मरने जा रहा है देवराज चौहान ।" जगमोहन दरिंदगी भरे स्वर में कह उठा--- "आज की रात तेरी जिंदगी की आखिरी रात है । तूने सलीम खान से तो पंगा लिया ही, परंतु मेरे से लिया पंगा तुझे ले डूबा । मैं तुझे ऐसी कुत्ते की मौत मारूंगा कि दोबारा जन्म लेने पर भी तू किसी से दगाबाजी करने से डरेगा।"
देवराज चौहान, जगमोहन को घूरे जा रहा था ।
तभी जगमोहन ने दूसरे हाथ का इस्तेमाल किया और हाथ में पकड़े जूते की एड़ी से चिपकी माइक्रो डिवाइस अलग की और अपनी जेब में रख ली ।
देवराज चौहान ने ऐसा करते उसे देखा। परंतु चेहरा शांत रहा ।
जगमोहन जूता एक तरफ फेंकते उन सब से कह उठा ।
"दोस्तों । मेरी सहायता करो । इसके हाथ-पांव बांधने हैं । इस हाल में भी ये मुझ पर झपटने की हिम्मत रखता है ।"
उसके बाद जगमोहन ने उन सब की सहायता से देवराज चौहान के हाथ-पांव बांधे और उसे फर्श पर पटक दिया । बंधनों में जकड़ा देवराज चौहान कसमसा कर रह गया ।
"अगर तू मुझे दौलत के बारे में बता देता है तो शायद मैं तुझे जिंदा छोड़ दूं ।" जगमोहन बोला ।
"तू वो दौलत नहीं पा सकेगा ।" देवराज चौहान तड़प कर कह उठा ।
"ये बहुत सख्त जान है ।" आमिर खान के उठा--- "मुंह नहीं खोलेगा ।"
"ऐसी पक्की जान मैंने पहले कभी नहीं देखी ।" गुलाम कादिर बोला ।
"लेकिन ये मेरे सामने नहीं टिक सकता ।" जगमोहन गुर्रा उठा ।
"तभी अंसारी भी वहां आ पहुंचा ।
"वो कैसे ?" अब्दुल रजाक बोला--- "तुम कौन-सी चाबी घुमाओगे, इसका मुंह खुलवाने के लिए ?"
"इसका परिवार इसकी बीवी, इसके बच्चे इसकी कमजोरी है और कोई नहीं जानता कि इस का परिवार कहां रहता है, परंतु मैं जानता हूं । मेरे से इसकी कोई बात नहीं छिपी । जब मैं इसकी बीवी बच्चों की गर्दन पर चाकू रखूंगा तो ये जरुर बोलेगा । क्योंकि इसे पता है कि जगमोहन जब किसी की गर्दन पर चाकू रखता है तो गर्दन काटने से पीछे नहीं हटता ।"
अंसारी पास खड़ा कह उठा ।
"नहीं बताया दौलत के बारे में ?"
"बताएगा ।" जगमोहन ने दांत भींचे--- "अब नहीं तो कल बताएगा । पर मेरी कोशिश है कि रात में ही ये बोल दे । ताकि इसकी दौलत का तमाशा सलीम खान भी देख सकें । सलीम खान कहां हैं?"
"आराम कर रहे हैं कमरे में ।"
"किधर ?"
"बाएं हाथ की तरफ जो कमरा पड़ता है । कोई काम है उससे ?" अंसारी ने पूछा ।
"नहीं । खास काम नहीं । मेरे लिए चाय और कुछ खाने का इंतजाम कर सकते हो ?" जगमोहन ने कहा ।
"हां, अभी लो ।" कहकर अंसारी पलटा ।
"चाय पीकर इसकी खाल उधेड़ना शुरू करूंगा ।" जगमोहन की सख्त निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी ।
■■■
पाकिस्तान का शहर दाऊद खेल ।
दाऊद खेल में हामिद अली का वो ही ठिकाना ।
"वो काली लंबी विदेशी वैन थी । उसके शीशे भी काले थे । वैन उस ठिकाने की बड़ी से लोहे के गेट के पास आकर रुकी । गेट पर गन थामे तीन आदमी टहलते हुए पहरा दे रहे थे परंतु उस वैन को देखकर वे सतर्क हो गए । वैन रुकते ही एक गनमैन फौरन वैन के पास जा पहुंचा । वे जानते थे कि वैन हामिद अली की है, परंतु भीतर का हाल भी देख लेना चाहते थे। हामिद अली ने सख्त ताकीद कर रखी थी कि बेशक उसकी वैन हो, वैन के भीतर जाकर झांके बिना गेट न खोला जाए । उसी पल वैन के शीशे नीचे होने लगे। पीछे वाली सीट पर हामिद अली खुद मौजूद था । उसके अलावा हामिद अली के चार खास गनमैन वैन के भीतर मौजूद थे । तुरंत गेट खोल दिया गया
वैन भीतर जाकर रुकी । सब उतरे और भीतर प्रवेश करते चले गए ।
ठिकाने पर हामिद अली के पहुंचने की खबर फौरन फैली और हलचल पैदा हो गई । सोये हुए सब जाग उठे । जागने वालों में मुनीम खान भी था और मुफ्ती इसरार भी । हामिद अली बहुत कम ठिकाने पर आता था । खास ही जरूरत होने पर ठिकाने पर आता था । इसलिए उसका आना अहम था ।
हामिद अली एक बड़े से कमरे में आ पहुंचा । उसके चारो आदमी गन थामे कमरे में फैल गए । हामिद अली पैंतालीस बरस का लंबा-चुस्त और क्रूर इंसान था । शरीर पर काले रंग का कमीज सलवार पहन रखा था । इस वक्त उसके चेहरे पर गम्भीरता के साथ-साथ कठोरता भी थी ।
एक आदमी ने वहां पहुंच कर सलाम बजाया ।
"मुनीम खान को बुलाओ ।"
"जी जनाब...।" कहने के साथ ही वो पलट कर बाहर निकल गया ।
तभी मुफ्ती इसरार ने भीतर प्रवेश किया ।
"हामिद अली साहब को मेरा सलाम ।" मुफ्ती इसरार ने भिंचे स्वर में कहा ।
"कैसे हो मुफ्ती ?" हामिद अली ने पूछा ।
"आपकी मेहरबानी से बहुत बढ़िया हूं जनाब ।"
"तुम अभी वापस मुम्बई गए नहीं ?"
"जनाब का हुक्म नहीं हुआ ।"
"चले जाना । तुम्हारा काम तो यहां है नहीं । जरूरत पड़ने पर फिर बुलाएंगे ।"
"जो हुक्म...।" मुफ्ती इसरार ने सिर हिलाकर कहा ।
तभी मुनीम खान ने भीतर प्रवेश किया । उसकी आंखें बता रही थी कि वो सोया उठ कर आया है ।
"सलाम जनाब ।" मुनीर खान कह उठा--- "आने से पहले खबर कर दी होती तो मैं दरवाजे पर खड़ा मिलता ।"
हामिद अली की सख्त निगाह, मुनीम खान के चेहरे पर जा टिकी ।
"कोई गुस्ताखी हो गई जनाब ?" मुनीम खान संभले स्वर में बोला ।
"हमारा प्लान कभी फेल नहीं हुआ मुनीम खान । परंतु इस बार हम असफल रहे ।" हामिद अली बोला ।
"मैं खुद परेशान हूं कि ये सब कैसे हो गया ?"
"कुछ घंटे पहले सलीम खान का फोन आया । उसने मुझे बताया कि कैसे गड़बड़ हो गई ?"
"कैसे हुई ?"
हामिद अली के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे । वो आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठा । नजरें मुनीम खान पर थी।
मुनीम खान भी हामिद अली को देख रहा था ।
"सलीम खान ने बताया कि यहां पर कोई गद्दार मौजूद है ।" हामिद अली तीखे स्वर में बोला ।
"गद्दार ? यहां ?" मुनीम खान चौंका--- "ये नहीं हो सकता । सलीम खान को धोखा हुआ है ।"
"यहां कोई गद्दार क्यों नहीं हो सकता ?" हमिद अली ने पूछा ।
मुफ्ती इसरार का दिल धड़क उठा था।
"यहां के सब आदमी मेरे देखे-भाले हैं । यहां पर कोई भी गद्दार नहीं है जनाब...।"
"है ।" हामिद अली के दांत भिंच गए ।
मुनीम खान ने फिर कुछ नहीं कहा ।
"उसी गद्दार की वजह से हमारी मेहनत मिट्टी में मिली । सारी खबरें बाहर गई ।"
"मुझे बताइए वा कौन है । मैं अपने हाथों से उसे बुरी मौत मारूंगा ।" मुनीम खान ने दृढ़ स्वर में कहा ।
हामिद अली मुनीम खान को घूरता रहा
"उस गद्दार ने हमारा प्लान मार्शल को बताया । हमारे लड़कों के नाम बताएं । उनकी तस्वीरें उसे भेजी । वो चीन और नेपाल के रास्ते इंडिया में प्रवेश करेंगे, ये भी बताया । सलीम खान का फोन नम्बर भी बताया ।"
"ओह...।" मुनीम खान गुर्रा उठा--- "आप मुझे उस गद्दार का नाम बताइए । फिर देखिए मैं उसका क्या हाल...।"
"मुम्बई में सलीम खान, उसके साथी और वो लड़के मार्शल के एजेंटों से बाल-बाल बचे ।"
"ये तो मैं जानता हूं । तारिक मोहम्मद ने वहां गद्दारी...।"
"वो तारिक मोहम्मद नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान का डकैती मास्टर देवराज चौहान है ।"
"देवराज चौहान ?" मुनीम खान चौंका--- "जिसने आपके भाई अली को मारा था ।"
"वो ही ।"
"परंतु वो तारिक मोहम्मद की जगह पर कैसे पहुंच...।"
"तुम तो सब जानते हो मुनीम खान...।" हामिद अली की आवाज में जहरीलापन आ गया ।
"मैं नहीं जानता । अभी तक ऐसी कोई खबर मुझे नहीं मिली ।" हैरान से मुनीम खान ने कहा--- "सलीम खान ने मुझे कुछ नहीं बताया।
"मुझे बहुत कुछ बताया सलीम खान ने ।"
"क्या...क्या बताया ?"
"उस गद्दार का नाम ।" हामिद अली गुर्रा उठा ।
मुफ्ती इसरार की टांगें कांप उठी । परंतु उसकी तरफ तो किसी का भी ध्यान नहीं था ।
"मुझे बताइए, वो कौन...।"
"तुम उसे जानते हो ?"
"मैं जानता हूं ?"मुनीम खान हैरानी से उछल पड़ा--- "मैं गद्दार को जानता हूं, ये कैसे हो सकता है । मैं जानता होता जनाब तो उसे कुत्ते की मौत मारकर, आपको खबर कर देता । मैं नहीं जानता कि कौन गद्दार...।"
"वो तुम हो ।" हामिद अली के होंठों से मौत भरा स्वर निकला ।
मुनीम खान के मस्तिष्क को झटका लगा । वो ठगा-सा खड़ा रह गया ।
"मुनीम खान है वो गद्दार ।" हामिद अली गुर्रा उठा--- "तुमने मेरे बरसों से खाए नमक पर गद्दारी का लेप कर दिया मुनीम खान । तुम्हें हर आराम हासिल था । परंतु पांच लाख महीने का लालच तुम्हें ले डूब...।"
मुनीम खान की आंखें फैल चुकी थी ।
"जनाब ये शब्द आप मेरे लिए कह रहे हैं ?" मुनीम खान के होंठों से फटा-फटा-सा स्वर निकला ।
"तुम इतने नीच हो । दगाबाज हो । मैंने तो कभी सोचा भी नहीं...।"
"सलीम खान से सारी भूल हुई है जनाब । वो कुछ समझने में गलती कर बैठा है ।" मुनीम खान ने अजीब से स्वर में कहा--- "मुनीम खान आपसे कभी गद्दारी नहीं कर...।"
"मार्शल ने कहा कि उसे खबरें देने वाला मुनीम खान है जो हर महीने उसे पांच लाख रुपया लेता...।"
"मार्शल ने ऐसा कहकर कोई खेल खेला है जनाब । मुनीम खान गद्दार नहीं...।"
"मार्शल ने ये बात अपने आदमी को बताई और सलीम खान ने कानों से सुना ये सब...।"
"और सलीम खान मान गया ।" मुनीम खान फटे-फटे स्वर में कह उठा--- "आपने भी इस बात को सच मान लिया । क्या आपको यकीन आ गया कि मुनीम खान का गद्दार हो सकता है। मैं तो आपके हुक्म का गुलाम हूं जो...।"
"मुनीम खान ।" हामिद अली गुर्राहट भरी आवाज में कह उठा--- "हमारे काम सिर्फ भरोसे पर चलते हैं। एक बार भरोसा उठने की बात हो गई तो हो गई । दोबारा भरोसा नहीं जमता। अगर तू अपने मुंह से गद्दार होने की बात मान लेता तो तुझे आसान मौत मिलेगी। नहीं तो तुझे बुरी मौत दी जाएगी । फैसला तेरे ऊपर है ।"
"बस...।" मुनीम खान का चेहरा देखने लायक था--- "बस इतना ही भरोसा था मुझ पर कि सलीम खान या मार्शल ने कहा कि मुनीम खान गद्दार है तो आपने मान लिया। एक बार भी नहीं सोचा कि गलत कह सकते हैं । ऐसा करना किसी की चाल हो सकती है । आपने ही तो मुनीम खान को जीना सिखाया और अब आप ही कहते हैं कि मैं गद्दार हूं । मेरे कान फट रहे हैं जनाब । ये बात दोबारा मत कहिए । मैं पागल हो जाऊंगा । ये सुनने से पहले मैं मर क्यों नहीं गया ।" मुनीम की आंखों में पानी चमक उठा ।
हामिद अली दांत भींचे मुनीम खान को देख रहा था ।
मुफ्ती इसरार हक्का-बक्का, ठगा-सा खड़ा था । वो महसूस कर चुका था कि ये मार्शल की चाल है मुनीम खान को खत्म कराने की कि हामिद अली की एक मजबूत बाहं तोड़ी जा सके ।
"ये सब ड्रामा छोड़ो और स्वीकार करो कि तुम मार्शल को यहां की खबरें देते रहते हो ।" हामिद अली गुर्राया ।
"नहीं...नहीं । मैं ऐसा नहीं करता । मैं आपका वफादार...।"
"खत्म कर दो इसे ।" हामिद अली एकाएक मौत भरे स्वर में अपने गनमैनों से कह उठा ।
अगले ही पल वो कमरा गोलियों की आवाज से गुर्रा उठा । जाने कितनी गोलियां मुनीम खान के शरीर में जा धंसी थी । वो नीचे जा गिरा था । मुफ़्ती इसरार का हाल बुरा था । इस वक्त जाने किस तरह सलामत खड़ा था । हामिद अली कई पलों तक मुनीम खान के मृत शरीर को देखता रहा फिर कह उठा ।
"तेरा मरना जरूरी हो गया था मुनीम खान । क्योंकि शक तो अब पैदा हो ही गया था । हमारे धंधों में जब किसी पर शक हो जाता है तो उसे खत्म करकर देना ही बेहतर होता है । तू गद्दार था या नहीं, इसका यकीन होने तक मैं इंतजार नहीं कर सकता था । क्योंकि तब तक तू मेरे लिए, गद्दार की सूरत में, कई मुसीबतें खड़ी कर देता ।"
■■■
जगमोहन रात के तीन बजे तक देवराज चौहान को काफी यातना दे चुका था और दौलत के बारे में पूछता रहा था कि वो उसने कहां रखी है । उसकी सहायता के लिए कभी कोई उसके साथ हो जाता तो कभी कोई । इसमें कोई शक नहीं कि देवराज चौहान की हालत काफी बुरी हुई पड़ी थी । अंसारी और अशफाक ने पहले उसका बुरा हाल किया और अब बची कसर जगमोहन ने पूरी कर दी थी । जगमोहन ने रियायती काम जरा भी नहीं किया था ।
"लगता है इसकी बीवी-बच्चों की गर्दन पर चाकू रखना ही पड़ेगा ।"
देवराज चौहान को घूरते जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा--- "मुझसे ये बच नहीं सकेगा ।"
"मुझे तो नींद आ रही है ।" सरफराज सलीम कह उठा ।
"मैं कुछ आराम करूंगा ।" जगमोहन ने कहा और बाहर की तरफ बढ़ गया ।
देवराज चौहान के हाथ-पांव बंधे हुए थे ।
जगमोहन उस जगह के बाई तरफ वाले हिस्से की तरफ गया, जिस तरफ सलीम खान के होने के बारे में अंसारी ने बताया था। कुछ आगे जाने पर एक कमरा दिखा तो वो बे-आवाज-सा भीतर तक प्रवेश कर गया ।
उसी पल ठिठका जगमोहन ।
सामने ही एक फोल्डिंग का सलीम खान लेटा, खर्राटे भर रहा था ।
जगमोहन के चेहरे पर सतकर्ता के भाव आ गए । उसने जेब में हाथ डाल कर माइक्रो डिवाइस निकाली और दबे पांव आगे बढ़कर फर्श पर सलीम खान के जूते की एड़ी के भीतर चिपका दी ।
सलीम खान के खर्राटे गूंजते रहे ।
जगमोहन जैसे भीतर गया था, वैसे ही बाहर आ गया ।
■■■
जगमोहन दो घंटे ही लेटा होगा । गुलाम कादिर उसके पास लेटा हुआ था। देवराज चौहान की मध्यम-सी कराहटें रह-रहकर उसके कानों में पड़ती रही थी । बाहर दिन का उजाला फैला तो उठ गया ।
बाकी सब गहरी नींद में थे ।
कुछ देर बाद अंसारी, सलीम खान के साथ वहां पहुंचा । जगमोहन ने छिपी निगाहों से देखा सलीम खान ने वो ही जूते पहने हुए थे जिसकी एड़ी पर उसने माइक्रो डिवाइस लगाई थी।
"नहीं बोला न?" सलीम खान ने जगमोहन से पूछा ।
"नहीं ।" लेकिन ज्यादा देर जुबान बंद नहीं रख सकेगा । आज मैं इसकी बीवी-बच्चों को उठा लाऊंगा ।" जगमोहन ने दांत भींचकर कहा ।
"यहां से ले जाओ इसे ।" सलीम खान ने कहा-"हमें अपने काम निपटाने हैं ।"
"ठीक है । मैं इसे लेकर, यहां से चला जाता हूं...।"
"अंसारी ।" सलीम खान ने कहा--- "अशफाक से कहो कि ये जहां जाना चाहे देवराज चौहान को लेकर, इसे वहीं छोड़ दे ।"
"जी...।" अंसारी फौरन पलट कर चला गया ।
"मैं तो चाहता था कि इसे तुम्हारे सामने तड़पा-तड़पा कर मारता । परंतु अभी इतने मुंह नहीं खोला ।" जगमोहन ने गहरी सांस ली ।
"मुझे यकीन है कि इसे तुम बुरी मौत दोगे ।" सलीम खान ने जगमोहन के कंधे पर हाथ रखा ।
"बहुत बुरी ।" जगमोहन गुर्रा उठा--- "तुमने उसकी कल्पना नहीं की होगी ।"
सलीम खान ने जगमोहन का कंधा थपथपाया ।
तभी अंसारी, अशफाक को लिए वहां आ पहुंचा ।
■■■
"बस । यहीं रोक दो ।" जगमोहन कह उठा--- "उस टैक्सी स्टैंड के पास...।"
"वहां से टैक्सी लोगे ?" अशफाक कार को धीमा करता बोला ।
"हां...।"
"टैक्सी क्या की क्या जरूरत है । मैं तुम्हें छोड़...।"
"मैं नहीं चाहता कि मेरा ठिकाना कोई देखे ।" जगमोहन मुस्कुरा कर कह उठा--- "जैसे कि तुम नहीं चाहते कि मैं तुम लोगों का ठिकाना देखूं । अब भी मुझे आंखों पर पट्टी बांधकर बाहर लाया गया और...।"
"सलीम खान ऐसा ही चाहता था ।"
"कोई बात नहीं अशफाक ।" जगमोहन बोला--- "जल्दी हम कोई बड़ा काम एक साथ करेंगे और दोस्त बन जाएंगे ।"
अशफाक ने कार को टैक्सी स्टैंड के पास रोक दिया ।
जगमोहन नीचे उतरा । पिछला दरवाजा खोला ।
देवराज चौहान पीछे वाली सीट पर अधलेटा-सा था । उसके हाथ-पांव बंधे हुए थे । वो बुरी हालत में दिख रहा था । जगमोहन ने उसके बंधन खोले और दांत भींच कर बोला ।
"बाहर निकल। कोई चालाकी की तो खड़े पांव तेरे को गोली मार दूंगा । दो-दो रिवॉल्वरें है मेरे पास ।"
देवराज चौहान किसी प्रकार सीधा होकर बैठा ।
जगमोहन ने उसकी कलाई पकड़ी और बाहर खींचते हुए कहा।
"चल...।"
"जगमोहन भाई ।" तभी अशफाक बोला--- "ये बहुत बड़ा हरामी है, इससे धोखा मत खा जाना ।
"मैं इससे भी बड़ा हरामी हूं । कहां जाने दूंगा इसे । मुझे दौलत के बारे में बताएं बिना तो ये मर भी नहीं सकता ।"
देवराज चौहान किसी प्रकार बाहर निकला ।
जगमोहन ने उसकी कलाई पकड़ रखी थी । देवराज चौहान के शरीर पर इस वक्त पूरी बाँह की कमीज और पैंट थी । जिसकी वजह से शरीर के जख्म नहीं दिख रहे थे। परंतु चेहरा बुरे हाल में अवश्य दिखाई दे रहा था ।
जगमोहन ने कार का दरवाजा बंद किया । अशफाक चला गया।
"तुम यहीं रुको ।" जगमोहन बोला--- "मैं टैक्सी लेकर आता हूं।"
"दो मिनट में ही जगमोहन टैक्सी लेकर आ गया ।
वो देवराज चौहान के साथ पीछे वाली सीट पर बैठा । टैक्सी आगे बढ़ गई । उसे बता दिया था कि कहां जाना है । देवराज चौहान सीट पर एक तरफ लुढ़क-सा गया था । उसकी हिम्मत नहीं थी बैठने की ।
परंतु अब जगमोहन का चेहरा दरिंदगी भरा दिखने लगा था । उसने मोबाइल निकाला और मार्शल का नम्बर मिलाने लगा । कुछ ही पलों में मार्शल से बात कर रहा था
"मैं उस डिवाइस के दम पर वहां होती सारी बातें सुन रहा हूं ।" मार्शल ने कहा--- "मुझे खुशी है कि तुम देवराज चौहान को वहां से ले आए ।"
"किस्मत साथ दे गई, परंतु देवराज चौहान की हालत बहुत बुरी है ।"
"उसे मेरे पास ले आओ ।" मार्शल की आवाज कानों में पड़ी ।
"तुम्हारे पास ?"
"मेरे डॉक्टर उसका बेहतरीन इलाज करेंगे । ऐसा इलाज तुम्हें बाहर कहीं नहीं मिलेगा ।"
"लेकिन मैं नहीं चाहता जानता कि तुम कहां पर हो ।"
"उसकी फिक्र मत करो । तुम विरार के गणेश मंदिर के बाहर पहुंचो । प्रभाकर तुमसे पहले ही वहां पहुंच जाएगा ।"
"ठीक है । मैं टैक्सी में हूं और हम चालीस मिनट तक विरार के गणेश मंदिर के सामने पहुंच जाएंगे ।"
"इस वक्त भी मैं सलीम की बातें सुन रहा हूं । वो सब के साथ उस जगह को खाली करने जा रहे हैं । मेरे आदमी रात को उसके उस ठिकाने के बाहर पहुंच गए थे। परंतु तुम और देवराज चौहान भीतर थे इसलिए मैंने एक्शन नहीं लिया, परंतु अब मेरे आदमी तैयार हैं और...।"
"अभी भी तुम कुछ नहीं करोगे मार्शल ।" जगमोहन गुर्रा उठा ।
"क्यों ?"
"मुझे आ लेने दो । तुम्हारे आदमियों के साथ मैं भी शामिल रहूंगा । मुझे देवराज चौहान के शरीर पर दिए जख्मों का हिसाब चुकाना है। बहुत बुरा हाल किया है उन्होंने देवराज चौहान का ।" जगमोहन का चेहरा धधक उठा था।
"इस बात का हिसाब मेरे आदमी ले...।"
"नहीं मार्शल । ये हिसाब मेरा है । मैं ही चुकता करूंगा ।" जगमोहन ने दांत भींचकर कहा ।
"वो उस जगह को छोड़ने की तैयारी में है ।"
"तुम्हारी माइक्रो फोन वाली डिवाइस सलीम खान के जूते की एड़ी में लगी है । तुमने कहा था कि उससे, सही लोकेशन जानी जा सकती है ।" जगमोहन ने कहा ।
"रात डिवाईस के दम पर ही तो उस ठिकाने पर पहुंचे मेरे आदमी ।" मार्शल की आवाज आई।
"तो अब भी डिवाइस के सहारे उनके नए ठिकाने पर पहुंच जाएंगे। जरूरत समझो तो सावधानी से उनका पीछा करो । मैं अंसारी, अशफाक और सलीम खान को छोड़ने वाला नहीं । अंसारी और अशफाक ने बहुत यातना दी है देवराज चौहान को।"
"आ जाओ ।" मार्शल का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा--- "मुझे कोई एतराज नहीं अगर तुम मेरे आदमियों के साथ जाते हो ।"
जगमोहन ने फोन बंद किया और टैक्सी ड्राइवर से बोला ।
"विरार के गणेश मंदिर तक चलो ।"
"लफड़ा क्या है साब ?" टैक्सी ड्राइवर कह उठा ।
"सब ठीक है । मैं पुलिस का आदमी हूं ।" जगमोहन ने कहा और देवराज चौहान को संभालने लगा ।
देवराज चौहान ने किसी तरह आंखें खोली ।
जगमोहन का दिल रो उठा उसकी हालत देखकर ।
"माफ करना मुझे ।" जगमोहन ने भर्राये स्वर में कहा--- "रात मैंने तुम्हें तकलीफ दी ।"
"वो जरूरी होगा, तभी तुमने ऐसा किया ।" देवराज चौहान क्षीण स्वर में बोला--- "सलीम खान मुझे ले जाने को कह रहा था परंतु तुम वहीं रहे । ऐसा क्यों किया तुमने ?"
"मार्शल ने तारिक मोहम्मद को जब मेरे प्लान के मुताबिक पेट्रोल पंप के पीछे वाले कमरे में पहुंचाया तो उसने तारिक के जूते की एड़ी पर माइक्रो डिवाइस चिपका दी थी । जिससे कि तारिक के आसपास होने वाली बातें सुन सके और ये जान सके कि वो कहां पर है। जब तारिक मोहम्मद उस ठिकाने पर लाया गया और मार्शल वहां की बातें सुनकर समझ गया कि अभी तक प्लान ठीक चल रहा है तो उसने मुझे फोन पर कहा कि वो माइक्रो डिवाइस सलीम खान के कपड़ों में छिपा दूं । मार्शल चाहता था कि उसे सलीम खान की लोकेशन पता चलती रहे । ये आईडिया मुझे भी जंचा । इसी वजह से मैं रात भर रुका और सही मौका देखकर मैंने वो माइक्रो डिवाइस सलीम खान के जूतों पर चिपका दी ।"
"हां ।" देवराज चौहान कराहा--- "मैंने तुम्हें जूते से कुछ अलग करते देखा था ।"
"वो तारिक मोहम्मद का जूता था और वहां से मैंने माइक्रो डिवाइस निकालनी थी । तभी तो मैंने जूते से तुम्हें मारने का नाटक किया कि माइक्रो डिवाइस को हासिल कर सकूं ।" जगमोहन ने होंठ भींचकर कर कहा ।
"तुम्हारा वो नाटक मुझे हकीकत ज्यादा लग रहा था ।" देवराज चौहान ने फिर से आंखें बंद कर ली । होंठों से कराह निकली--- "तुमने बहुत अच्छा काम किया । मुझे वहां से निकाल लाना, असंभव काम था जो तुमने कर दिखाया ।"
देवराज चौहान की बिगड़ी हालत देखकर, जगमोहन की आंखों में आंसू चमक उठे ।
■■■
देवराज चौहान कब तक ठीक होगा ?" जगमोहन ने मार्शल से पूछा ।
जगमोहन और मार्शल इस वक्त एक लंबी गैलरी में तेज-तेज कदमों से आगे बढ़े जा रहे थे ।
"डॉक्टर का कहना है शरीर के घाव गहरे हैं । चाकू से गहरे तक काटा गया है । सारे शरीर का ये ही हाल है, परंतु खतरे की कोई बात नहीं है । दस दिन तक सत्तर प्रतिशत ठीक हो जाएगा और आसानी से चलने फिरने लगेगा ।" मार्शल बोला ।
"मतलब कि ठीक होने में पन्द्रह-बीस दिन लग जाएंगे ।" जगमोहन ने व्याकुल-सा होकर कहा ।
"देवराज चौहान कि तुम फिक्र मत करो । वो मेरे डॉक्टरों के हवाले है । परंतु तुमने कमाल कर दिया देवराज चौहान को इस तरह वापस ला कर । बहुत खतरा उठाया तुमने । किसी को शक हो जाता तो तुम भी नहीं बचते । तुमने अपने को साबित कर दिया कि...।"
"मैं वहां देवराज चौहान को बचाने गया था खुद को साबित करने नहीं । मैंने कोई कमाल नहीं किया । बस मेरी योजना काम कर गई ।" जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा--- "अब मुझे अंसारी और अशफाक से हिसाब चुकता करना...।"
"वो लोग कुछ करने जा रहे हैं ।" मार्शल का स्वर सख्त हो गया।
"क्या ?"
"सलीम खान पाकिस्तान से आए लड़कों से काम लेने जा रहा है। तुमने जो माइक्रो डिवाइस उसके कपड़ों में छिपाई...।"
"कपड़ों में नहीं जूते की एड़ी के पास चुपकाई थी ।"
"वो ही । उसकी वजह से उसकी सारी बातें सुनी जा रही हैं और...।"
"ठिकाना बदल लिया उसने ?"
"हां, तुम्हारे वहां से निकलने के चालीस मिनट के भीतर ही उसने साथियों के साथ वो जगह छोड़ दी । मेरे ख्याल में ऐसा उसने एहतियात के तौर पर किया होगा कि तुम्हारी वजह से वहां कोई खतरा न आ जाए । अब वो सब के साथ वर्ली के एक इमारत में मौजूद हैं और मेरे आदमी उस जगह पर नजर रखे हैं। अब तक हमने एक्शन ले लिया होता अगर तुम्हारा फोन न आया होता ।"
"मेरा उनसे हिसाब चुकाना जरूरी है मार्शल ।" जगमोहन गुर्रा उठा--- "देवराज चौहान की कैसी बुरी हालत की उन्होंने ।"
"अच्छा तो ये ही रहा कि तुम देवराज चौहान बचकर आ गए ।"
"अब वो क्या प्लान बना रहे...।"
"खुद ही सुन लो । माइक्रो डिवाइस माइक्रो फोन का काम भी काम करती है और हम यहां बैठे उनकी बातें सुन रहे हैं ।"
मार्शल जगमोहन के साथ अपने ऑफिस जैसे कमरे में पहुंचा ।
मार्शल ने इंटरकॉम पर बात की ।
"सतनाम । सलीम खान क्या बात कर रहा है ?"
"मार्शल, वो उन सब को अपनी योजना बताने जा रहा है ।" सतनाम की आवाज कानों में पड़ी ।
मार्शल ने रिसीवर रखा और आगे बढ़ कर एक छोटे से लगे बोर्ड के दो-तीन स्विच दबाए की तभी बोर्ड पर मौजूद स्पीकर से सलीम खान की आवाज सुनाई देने लगी ।
"तुम भी सुनो सलीम खान क्या करने वाला है ।" मार्शल ने जगमोहन से कहा ।
"मेरे ख्याल में मार्शल मुझे वहां पहुंचना चाहिए जहां सलीम खान है ।"
"फ़िक्र मत करो । वो जगह मेरे आदमियों के घेरे में है । वो कहीं गए भी तो नजरों में रहेंगे ।"
"मैं वहां जाना चाहता...।" जगमोहन कहते-कहते ठिठका ।
स्पीकर से निकलती, सलीम खान की आवाज पर उसके कान लग गए थे ।
"मेरे दोस्तों हमारा बहुत वक्त खराब हो चुका है मुनीम खान की गद्दारी की वजह से । लेकिन आप लोगों को ये जानकर खुशी होगी कि हमीद अली ने मुनीम खान को सजा के तौर पर रात को ही मौत दे दी थी । अब हमें अपने काम की तरफ ध्यान देना है । सब ठीक रहा तो सावित्री हाउस के द्वारा अब तक हम तहलका मचा चुके होते ।"
"वैसा काम तो हम अब भी कर देंगे ।" गुलाम कादिर की आवाज सुनाई दी ।
"मैंने तुम लोगों के लिए दूसरा काम तैयार कर लिया है ।" सलीम खान की आवाज उभरी--- "छः महीने पहले ही चैम्बूर में पांच सितारा गोल्डन होटल तैयार हुआ था और उस होटल ने दूसरे होटलों को भी पीछे छोड़ दिया। वो नौ मंजिला होटल है और काफी चलने लगा है । वहां दिन-रात चहल-पहल रहती है। तुम लोग आज वहां जाकर, एक-एक करके अलग-अलग जाओगे और सातवीं मंजिल पर कमरे लोगे । होटल वालों को भी वही आई-डी दिखाओगे, जो कि मुफ्ती ने तुम सबको बना कर दी थी । अब सुबह के दस बज रहे हैं । शाम तीन बजे तक गोल्डन होटल में, सातवीं मंजिल पर कमरे में पहुंच चुके होगे । चार बजे तक तुम लोगों के पास बारूद पहुंचा दिया जाएगा । अपने कमरों में शाम छह बजे तक तुम सबने बारूद बिछा देना है । ठीक शाम सात बजे टाइमर के साथ बारूद फटेगा । तब तक तुम सब ने वहां से निकल आना है । मैं नहीं चाहता कि तुम में से कोई भी अपनी जान गवाए। क्योंकि बड़ा काम तो इसके बाद किया जाएगा। ये तो मुम्बई को छोटा-सा झटका देने के लिए किया जा रहा है । सातवीं मंजिल के छः कमरों में जब जबरदस्त बारूद फटेगा तो पूरा होटल तथा भीतर मौजूद लोग नहीं बचने वाले । ताश के पत्तों की तरह सारी मंजिले भरभरा कर गिर जाएंगी । हिन्दुस्तान को छोटी-सी चोट होगी । उसके बाद तुम सब कुछ दिन के लिए आराम करोगे । मेरे खंडाला के बंगले पर चले जाओगे । तब तक वहां रहोगे जब तक मैं तुम लोगों के लिए कोई बड़ा काम तैयार नहीं कर लेता । और तारिक मोहम्मद तुम...तुम इस काम में हिस्सा नहीं लोगे । क्योंकि लाइसेंस और आई-डी प्रूफ तो उस वक्त तुमसे ले लिए गए थे जब देवराज चौहान ने तुम्हें पकड़ा था ।"
"ठीक है जनाब...।" तारिक मोहम्मद की आवाज सुनाई दी ।
"अब हमें तैयारी शुरू कर देनी...।"
जगमोहन मार्शल से कह उठा ।
"वे सब इकट्ठे हैं मार्शल। ये मौका अच्छा है उन पर हमला करने का । मुझे तुरंत वर्ली पहुंचना होगा, जहां ये लोग हैं ।"
■■■
वो दो मंजिला इमारत थी ।
नीचे की मंजिल में किसी का गोदाम था । वहां टैम्पो खड़े थे । पांच-सात लेबर टैम्पो में पेटियां लाद रहे थे । ये उनकी रोजमर्रा की व्यस्तता का नियम था ।
इस जगह को आगे और पीछे से मार्शल के एजेंटों ने घेरा हुआ था ।
दस मिनट पहले ही जगमोहन और प्रभाकर वहां पहुंचे थे । एक एजेंट उनके पास आ गया था ।
"क्या पोजीशन है ?" प्रभाकर ने पूछा ।
"वो सब अभी इमारत में ही हैं ।" उसने बताया ।
"नीचे वाली मंजिल पर क्या है ?"
"पास में ही एक कंपनी का ऑफिस है और नीचे वाली मंजिल पर उसी कंपनी का गोदाम है । हमने पता कर लिया है ।"
"मतलब कि सलीम खान और बाकी सब लोग ऊपर की मंजिल पर हैं ?".
"हां ।"
"नीचे के गोदाम से कोई वास्ता नहीं सलीम खान का ?"
"कोई वास्ता नहीं प्रभाकर ।" वो बोला ।
"ठीक है ।" प्रभाकर गम्भीर स्वर में बोला--- "अब हमें भीतर घुसना है । पहली मंजिल पर जाना है । पीछे की तरफ से निकलने का कोई रास्ता है ?"
"हां । लेकिन वहां हमारे आदमी मौजूद हैं ।"
"उन्हें खबर कर दो कि जो भी पीछे से भागने की चेष्टा करें, उसे गिरफ्तार करो या गोली मार दो । जो भी आसान लगे ।"
"समझ गए ।"
"आगे की तरफ से ऊपर जाने का रास्ता कहां है ?" प्रभाकर ने पूछा ।
"गेट के भीतर, दाई तरफ ऊपर को सीढ़ियां जा रही हैं ।" उसने बताया ।
"यहां हमारे कितने लोग हैं ?"
"बाईस । छः पीछे, सोलह इस तरफ...।"
"दस को तैयार करो । वो हमारे साथ भीतर जाएंगे ।"
तभी जगमोहन कह उठा ।
"साथ में दूसरों को लेने की क्या जरूरत है । हम दो ही बहुत हैं।"
"बेवकूफी वाली बात मत करो । तीस सैकिण्ड में हम दोनों को खत्म कर देंगे। सलीम खान खुद मौजूद है वहां । उसकी मौजूदगी में उसके लोगों के हौसले दुगने हो जाएंगे, हमले का आभास होते ही । फिर उन सात पाकिस्तानियों को क्यों भूल रहे हो जो सिर पर कफन बांध कर पाकिस्तान से मुम्बई आ पहुंचे हैं । वहां हर कोई खतरनाक है जगमोहन । वो काबू में आने वाले लोग नहीं है । वो हाथ खड़े करने वालों में से नहीं हैं । उनसे मुकाबला करके, उन्हें मारना पड़ेगा । इस काम के लिए हम दो कोई मायने नहीं रखते । ये टीमवर्क है । जीतने के लिए हमें दल बनाकर आगे बढ़ना पड़ेगा । मेरी मानो तो तुम यहीं रहो।"
"क्यों ?"
"तुम्हारी जरूरत नहीं । हम लोग निपट लेंगे सब कुछ...।"
"मेरी बहुत जरूरत है ।" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा--- "देवराज चौहान को बुरी यातना दी है इन लोगों ने अंसारी और अशफाक से हिसाब चुकता करना है । तुम कैसे कहते हो कि मेरी जरूरत नहीं है ।"
"जब हम हमला बोलेंगे तो कुछ पता नहीं किस की गोली किस को लगेगी । तुम्हें किसी से शायद हिसाब चुकता करने का मौका ही ना मिले ।
"मैं तुम लोगों के साथ इस हमले में शामिल होने आया हूं ।"
"तुम्हें रोकूंगा नहीं ।"
तभी प्रभाकर का मोबाइल बजा । उसने बात की ।
"आदमी तैयार हैं ।" उधर से कहा गया ।
"दस को पांच-पांच में बांट दो । हम से आगे जाएंगे, पांच हमारे पीछे होंगे। सब के पास गनें हैं ?"
"हां...।"
"ठीक है । पांच हमारे आगे, पांच पीछे, बाकी ये जगह को घेरे रहेंगे कि अगर कोई भागता है तो उसे संभाला जा सके ।" प्रभाकर की निगाह उस इमारत की पहली मंजिल पर टिकी थी--- "ठीक एक मिनट बाद हम एक्शन में आएंगे । भीतर जो दिखे, खत्म कर दिया जाए । जो अपनी गिरफ्तारी दे, उसे न मारा जाए । किसी पर रहम नहीं करना है । हमें हारना नहीं है ।"
■■■
एक कमरे में वो सातों पाकिस्तानी, अंसारी, अशफाक और उसके दो आदमी सलीम खान के साथ मौजूद थे ।
"दोस्तों ।" सलीम खान गम्भीर स्वर में कह रहा था--- "मेरा प्लान तुम लोगों ने सुन लिया और समझ भी लिया । सब काम आसान है । गोल्डन होटल ठीक सात बजे तक धमाकों के साथ उड़ जाना चाहिए । अशफाक तुम लोगों तक बारूद पहुंचा देगा होटल के कमरों में । हम सावित्री हाउस में कुछ नहीं कर सके तो आज हमें यह छोटा-सा काम जरूर करना चाहिए ताकि हामिद अली समझ सके कि हम किसी समस्या में नहीं है । काम में जुटे हुए हैं, जो समस्या हमारे सामने आई थी, उससे छुटकारा पा लिया है ।"
हम आज ये काम कर दिखाएंगे बड़े भाई.. जलालुदीन जोश भरे स्वर में कह उठा ।
"मैं जानता हूं ।" सलीम खान मुस्कुराया--- "ये मामूली काम है तुम लोगों के लिए। ये काम पूरा होते ही हामिद अली को राहत मिलेगी और जब हम बड़ा काम करेंगे तो हामिद अली खुश होगा । पाकिस्तान खुश होगा । अब बातें छोड़ो और काम पर लग जाओ । अंसारी तुम लोगों का नाप लेगा और सब को नई पैंट-कमीज लाकर देगा। जब तुम लोग यहां से बाहर निकलोगे तो कोई तुम लोगों के साथ जाएगा कि बाजार से सूटकेस या बड़ा ब्रीफकेस खरीद सको । होटल में ठहरना है तो साथ में सामान भी होना चाहिए । अब मैं चलूंगा । मुझे दूसरों के पास भी जाना है । कल से ही मैं यहां हूं, वहां के लोग मेरा इंतजार कर रहे होंगे ।" अंसारी...।"
"जी बड़े भाई...।"
"जो समझाया है, वैसे ही सब काम संभाल लेना । मैं काम पूरा होते देखना चाहता हूं ।"
"काम पूरा हो जाएगा बड़े भाई ।" अंसारी विश्वास भरे स्वर में कह उठा ।
"कोई समस्या आए तो मुझे फोन कर लेना । चलता हूं ।" सलीम खान ने कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
दरवाजे से बाहर निकल कर सलीम खान तीन-चार कदम तेजी से आगे बढ़ा कि ठिठक गया ।
सामने तीन आदमी गनें लिए मौजूद थे ।
सलीम खान के चेहरे पर हैरत के भाव उभरे । मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा।
"हिलना मत ।" एक दबे स्वर में गन हिलाकर गुर्राया--- "मरना चाहते हो ?"
हक्के-बक्के से सलीम खान के होंठों से कुछ नहीं निकला ।
आगे वाला आदमी पास आया वो सलीम खान के पैंट से गन लगाकर धीमे स्वर में बोला ।
"ऊंचा बोल कर अपने लोगों को सतर्क मत करना । वरना मरोगे। जब तब तुम मेरी बात मानते रहोगे, तब तक गन से गोलियां नहीं निकलेंगी । चलो-चलो आगे बढ़ते जाओ ।"
तब तक दो अन्य गनमैन उस कमरे के दरवाजे के पास जा पहुंचे थे जहां से सलीम खान निकला था ।
सलीम खान दांत भींचे आगे बढ़ने लगा ।
उसे कवर करने वाला व्यक्ति घूम कर उसके पीछे आ गया था । उसकी कमर से गन लगा दी थी ।
तभी सामने से रिवॉल्वर थामें जगमोहन और प्रभाकर आते दिखे ।
जगमोहन को देखते ही सलीम खान की आंखें फैल गई ।
"तुम ?" सलीम खान अचकचा उठा ।
जगमोहन के चेहरे पर कठोरता नाच उठी । वो उसे कवर करने वाले आदमी से बोला ।
"ये सलीम खान है । बेहद खतरनाक । चालाकी करे तो तुरंत शूट कर देना ।"
वो सलीम खान को लिए आगे बढ़ने लगा ।
जगमोहन और प्रभाकर दरवाजे के साथ दीवार से चिपके खड़े दोनों आदमियों के पास पहुंचे ।
"भीतर शायद कई लोग हैं ।" एक ने प्रभाकर से दबे स्वर में कहा ।
प्रभाकर के दांत भिंच गए ।
"वो मुकाबला करेंगे । उनके पास हथियार होंगे ।" प्रभाकर बोला--- "एक बार उन्हें वार्निंग दो । अगर एक भी गोली चलाई तो गनों का मुंह भीतर की तरफ करके गोलियां चलाना शुरू कर दो ।" प्रभाकर ने जगमोहन से पूछा--- "वो सलीम खान था ?"
"हां...।"
तभी प्रभाकर ऊंचे स्वर में कह उठा ।
"तुम सब मेरी बात सुनो । यहां रेड हो चुकी है । सलीम खान पकड़ा जा चुका है । तुम सब गनों के घेरे में हो । हम मार्शल के आदमी हैं । अगर जिंदा रहना चाहते हो तो हाथ ऊपर करके बाहर आ जाओ, वरना हम गोलियां चलाने जा रहे हैं । तुम लोग बच नहीं सकते । पचास से ज्यादा हथियारबंद लोग इस इमारत को घेरे हुए हैं । पच्चीस लोग भीतर आ चुके हैं । मैं फिर कहता हूं कि सलीम खान पकड़ा जा चुका...।"
'धांय' तभी भीतर से गोली चली ।
जो कि खुले दरवाजे के सामने की दीवार में जा धंसी ।
"बेवकूफी मत करो ।" प्रभाकर गुर्राया--- "तुम लोग हमारा मुकाबला नहीं कर सकते...हम...।"
"गिरफ्तारी देने से अच्छा है हम लड़कर मरेंगे ।" सरफराज हलीम की गुर्राहट सुनाई दी ।
धांय-धांय । इस बार दो गोलियां चली ।
और सामने की दीवार में धंस गई ।
तभी पीछे से चार उनके साथी गनमैन, गोलियों की आवाजें सुनकर वहां आ पहुंचे थे ।
"ये नहीं मानेंगे ।" प्रभाकर सख्त स्वर में बोला--- "गनों के मुंह भीतर की तरफ करो और गोलियां चलाना शुरू कर दो। गोलियां रुकनी नहीं चाहिए । एक की गन खाली हो तो दूसरा शुरू हो जाए ।"
तभी भीतर से एक के बाद एक कई गोलियां बाहर को आई ।
मार्शल के दो एजेंटों ने गनों का मुंह खुले दरवाजे के भीतर किया और तड़-तड़-तड़-तड़-तड़ गनों का मुंह खोल दिया । उसके बाद तो फायरिंग की आवाजें रुकी ही नहीं ।
जगमोहन रिवॉल्वर थामे, होंठ भींचे दीवार के साथ सटा खड़ा रहा । इतना तो उसे आभास हो गया था कि शायद ही अब कोई जिंदा हाथ लगे। जबकि वो अंसारी और अशफाक को खुद अपने हाथों से मारना चाहता था ।
■■■
बीस मिनट बाद फायरिंग रोकी गई ।
पहले दस मिनट तो भीतर से गोलियां चलती रही थी फिर गोलियां चलनी बंद हो गई थी। या तो वे लोग मारे गए थे या उनके पास गोलियों की कमी थी। इस बारे में तैयारी नहीं कर रखी थी । परंतु दरवाजे के बाहर से लगातार गनों से फायरिंग होती रही थी । कभी नाल इधर हो जाती तो कभी इधर ।
फिर फायरिंग रुकते ही प्रभाकर एक आदमी के साथ भीतर प्रवेश करता चला गया । प्रभाकर के हाथ में रिवॉल्वर दबी थी तो दूसरे के हाथ में गन । वे तैयार थे किसी भी तरह के हालात के लिए । परंतु कमरे के हालात देखकर वो ठिठक गए । तब तक पीछे से जगमोहन और दो अन्य गनमैन भी भीतर आ गए थे। कमरे का जर्रा-जर्रा हिला पड़ा था । ऐसा लग रहा था जैसे प्लेन वहां पर क्रेश हो गया हो या फिर कमरा बवंडर में फंसकर हफ्तों बवंडर के साथ लुढ़कता रहा हो । दीवारों और छतों का कोई ऐसा हिस्सा न बचा था, जहां गोलियां न धंसी हो । प्लास्टर न उखड़ा हो । कमरे की हर चीज तहस-तहस हो चुकी थी ।
फर्श पर जगह-जगह खून बिखरा हुआ था । लाशे इधर-उधर बिखरी पड़ी थी । उन सब की निगाह लाशों पर फिर रही थी । गहरा सन्नाटा पड़ा था वहां ।
"चैक करो, इनमें कोई जिंदा है ?" प्रभाकर ने कहा--- "सतर्क रहना, कोई गोली चलाने की घात में भी हो सकता है ।"
गनें थाम आदमी आगे बढ़ गए और सावधानी से लाशों को चैक करने लगे ।
"इन लोगों के पास मुकाबले के लिए ज्यादा हथियार नहीं थे ।" जगमोहन बोला--- "तभी तो इनकी तरफ से गोलियां चलनी बंद हो गई । कहने के साथ ही जगमोहन आगे बढ़ा कि अगले ही पल ठिठक गया ।
सब ही चौंक गए ।
सामने टेड़े पड़े टेबल के पीछे से स्पष्ट आहट उभरी थी ।
जगमोहन फौरन घूमा और रिवॉल्वर थामें, दांत भींचे टेबल की तरफ बढ़ने लगा ।
सबकी गनें उस तरफ उठ चुकी थी ।
जगमोहन एकाएक टेबल के उस तरफ से सामने आ गया ।
वहां अशफाक दिखा । जिसकी टांग में गोली लगी हुई थी । वो टेबल के पीछे होने की वजह से फायरिंग से बचा रह गया था । नीचे पड़े अशफाक में जगमोहन को देखा तो कह उठा ।
"ओह, तुम हमें बचाने आए हो ।"
उसी पल दांत भींचे जगमोहन ने रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा किया और ट्रेगर दबा दिया।
'धांय' फायर की तेज आवाज उभरी ।
गोली अशफाक के माथे पर जा लगी । उसका सिर टेबल से टकराया फिर पूरी तरह फर्श पर लुढ़क गया ।
"ये तुमने क्या किया ।" प्रभाकर फौरन जगमोहन की तरफ भागा ।
"मैंने कुछ नहीं किया । सब मरे पड़े हैं ।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा ।
प्रभाकर ने अशफाक को देखा ।
"तुमने इसके माथे पर गोली मारी है ।"
जगमोहन प्रभाकर को घूरने लगा ।
प्रभाकर गहरी सांस लेकर रह गया । तभी एक गनमैन की आवाज वहां गूंजी ।
"यहां कोई भी जिंदा नहीं है ।"
■■■
शाम के पांच बज रहे थे । जगमोहन, देवराज चौहान के बैड के पास बैठा था । ये कमरा था परंतु यहां इलाज के सारे उपकरण दिखाई दे रहे थे । दो घंटे से देवराज चौहान गहरी नींद में था । गले तक चादर ओढ़ रखी थी । चेहरे पर जो जख्म थे । उसकी दवा-दारू हुई नजर आ रही थी । जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता थी । वो बार-बार देवराज चौहान के चेहरे पर निगाह मार लेता था । उसके लिए राहत की बात थी कि देवराज चौहान को जान का खतरा नहीं था।
तभी डॉक्टर ने भीतर प्रवेश किया । देवराज चौहान को चैक करने लगा ।
"ये काफी देर से नींद में है ।" जगमोहन बोला
"दवाओं का असर । ये जितना आराम करेगा, उतनी ही जल्दी ठीक होगा ।"
तभी देवराज चौहान ने आंखें खोल दीं।
दोनों की नजरें मिलीं। देवराज चौहान के चेहरे पर क्षीण-सी मुस्कान उभरी ।
डॉक्टर बाहर निकल गया ।
"तुम्हें क्या हुआ है ?" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा ।
"मुझे क्या होना है ।" जगमोहन बोला--- "तुम्हारी चिंता है ।"
"तुम्हारे चिंता करने से में जल्दी ठीक नहीं होऊंगा । डॉक्टर बढ़िया काम कर रहे हैं । सलीम खान का क्या हुआ ?"
"वो पकड़ा गया । मार्शल के एजेंटों के हाथ में लग गया ।"
"बाकी ?"
"वो सब मारे गए । मार्शल के एजेंटों ने वहां घेराबंदी कर ली थी, जहां वे थे। वे आज चैम्बूर के नौ मंजिला गोल्डन होटल को उड़ाने जा रहे थे । परंतु मार्शल ने उन्हें आसानी से संभाल लिया। मुझे कुछ भी करने का मौका नहीं...।"
तभी मार्शल ने भीतर प्रवेश किया ।
"तुम कहां थे ?" जगमोहन उसे देखते ही बोला--- "वापस आने पर तुम नहीं दिखे ।"
"सलीम खान के पास था ।" मार्शल ने मुस्कुरा कर कहा--- "उससे बातें कर रहा था । अभी उसकी और मेरी बातें कई दिन चलनी है । बहुत कुछ जानना है उससे । तुम कैसे हो देवराज चौहान ?"
"बेहतर महसूस कर रहा हूं ।"
"ये काम तुम दोनों के कारण ही हो सका । मुझे यकीन था कि तुम लोग सब संभाल लोगे ।"
"तब तो तुम्हारे हाथ-पांव फूल गए थे जब वो देवराज चौहान के साथ बेसमेंट का ठिकाना खाली कर गए थे ।" जगमोहन बोला।
"हां, तब मुझे ऐसा जरूर लगा था कि बाजी हाथ से निकल गई है परंतु तुमने अपने प्लान से इस सारे मामले को सही रास्ते पर ले आए । सलीम खान बात-बात पर तुम्हें गालियां दे रहा है । वो जानता है कि तुम्हारी वजह से ही फंसा...।"
"मैं तो वहां देवराज चौहान को बचाने गया था । उसके बाद के बाकी कामों में सबकी मेहनत ही जुड़ी हुई है । अब ये मत कहना कि ली रकम में से दो करोड़ तुम्हें लौटा दूं कि इसमें तुमने भी काम किया है ।"
"मैं ऐसा नहीं कहूंगा । क्योंकि मेरा तो काम ही, काम करना है।" मार्शल मुस्कुराया ।
"तुम्हारे लिए पहले काम किया तो महंगा पड़ा । इस बार देवराज चौहान की हालत तुम देख ही रहे...।"
"दुश्मन को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए । हम अपना प्लान बनाते हैं तो दुश्मन भी उसका जवाब देने को तैयार...।"
"कुछ भी हो मार्शल ।" जगमोहन ने कहा--- "अब हमतुम्हारे लिए काम नहीं करेंगे ।"
"करोगे जगमोहन ।"
"नहीं...।"
"जब कीमत तुम्हारी मुंह मांगी होगी तो काम क्यों नहीं करोगे । मार्शल को काम लेना आता है ।"
"कुछ भी हो जाए ।" जगमोहन ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा--- "अब हम तुम्हारे लिए काम नहीं करेंगे ।"
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभर आई ।
"दोबारा जब वक्त आएगा तो ये बात तब करेंगे ।" मार्शल बोला--- "आतंकवादियों का देश को हिला देने वाला हमला, होने से पहले ही तुम दोनों ने रोक दिया । वरना देश को ऐसा नुकसान होता कि आंका नहीं जा सकता था। दूसरी खुशी मुझे सलीम खान के जिंदा हाथ आ जाने की है । इस काम को करने की जो कीमत तुमने ली, इन दोनों के सामने वो बहुत ही कम रही ।"
"फिर तो मैं नुकसान में रहा ।" जगमोहन ने मार्शल को घूरा ।
"अपना नुकसान अगले काम में पूरा कर लेना ।" मार्शल ने मुस्कुरा कर कहा और बाहर निकल गया ।
"अगला काम ।" जगमोहन बड़बड़ा उठा ।
जबकि देवराज चौहान जगमोहन को देखता मुस्कुरा रहा था ।
"क्या लगता है इसका अगला काम हमें करना चाहिए ?" जगमोहन कह उठा ।
"तुम्हें एतराज नहीं होगा तो, मैं करने को तैयार हूं ।" देवराज चौहान धीमे स्वर में बोला ।
"इस नुकसान की भरपाई करने के लिए, मार्शल का एक और काम तो करना ही पड़ेगा ।" कहते हुए जगमोहन का चेहरा मुस्कुराहट से भर उठा ।
समाप्त
0 Comments