शनिका ने सात बजे बंगले में प्रवेश किया। अंधेरा होने जा रहा था। दिन-भर की गर्मी-धूप में दौड़ती शनिका थक चुकी थी। खूबसूरत चेहरे का रंग जैसे ताँबाई हो रहा था। सिंदूरी जैसा।
बंगले में प्रवेश करते ही वह सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी।
"नमस्कार रानी साहिबा! एक कूरियर आया है। आपके कमरे में रखा है।" हरिया ने कहा।
"मुन्नी को भेजो।" कहते हुए शनिका आगे बढ़ती चली गयी। रास्ते में प्रेम का कमरा आया, परन्तु भीतर झाँकने की भी उसने जरूरत महसूस न की। अपने बेडरूम में पहुँची और साड़ी उतारकर एक तरफ फेंकी तो खुद को हल्का महसूस किया। वह कुर्सी पर जा बैठी।
तभी देवली ने भीतर प्रवेश किया।
"आ गईं आप रानी साहिबा। मैं आपको पानी देती हूँ।"
"वाइन दे कल वाली। गिलास भर दे।" शनिका बोली और आँखें बंद कर लीं।
"अभी लायी।" कहने के साथ ही देवली तेजी से अलमारी की तरफ बढ़ गयी।
शनिका की निगाह टेबल पर पड़े लिफाफे पर गयी।
"तो यह कूरियर है।"
शनिका ने हाथ आगे बढ़ाया और लिफाफा उठाया। उसे एक तरफ से फाड़ा। भीतर झाँका तो बड़ी सी कोई तस्वीर दिखी। उसने उस तस्वीर को बाहर निकालकर देखा। अगले ही पल उसका मस्तिष्क झनझना उठा।
वो उसकी कॉलेज के वक़्त की फ़ोटो थी। तस्वीर में उसकी सहेली वामा भी मौजूद थी। उसे अच्छी तरफ याद था कि उसने यह तस्वीर वामा को दी थी शनिका कि आँखें अभी तक फ़टी हुई थी। दिमाग झनझना रहा था।
इतने सालों बाद यह तस्वीर उसे किसने भेजी?
शनिका ने फौरन लिफाफा उठाया और उसके आगे-पीछे देखा। लिफाफे पर सिर्फ उसका पता था। भेजने वाले का कोई नाम-पता नहीं था।
शनिका के शरीर में सिरहन सी पैदा हुई और लुप्त हो गयी।
कौन भेज सकता है इस तस्वीर को? भेजने के पीछे उसका मकसद क्या है?
कहीं?
शनिका के चेहरे का रंग बदला, वामा जिंदा तो नहीं है?
नहीं, नहीं। यह नहीं हो सकता। उसने अपनी आँखों से वामा की लाश देखी थी। प्रेम ने भी देखी थी। वह मर चुकी थी। वह किसी भी हाल में जिंदा नहीं हो सकती। तो... तो यह तस्वीर किसने भेजी? वह... वह...।
"रानी साहिबा, यह लीजिए!"
शनिका ने फौरन खुद को संभाला। परन्तु चेहरे का रंग अभी भी उजला था। गिलास लेकर उसने एक ही साँस में आधा किया।
"मुन्नी!" शनिका बोली, "हरिया को बुला।"
देवली फौरन ही हरिया को बुला लायी।
"यह कूरियर किसने दिया?"
"दरबान ने मुझे दिया है। उसे बाहर का बाहर ही कोई दे गया था।"
"जाओ!"
हरिया चला गया। शनिका ने घूँट भरा।
"सब ठीक तो है रानी साहिबा?" देवली ने पूछा।
"ह... हाँ!" शनिका ने गिलास खाली किया और टेबल पर रखती खड़ी हो गयी, "मेरा गाउन दे।"
देवली ने वार्ड रोब से गाउन निकालकर शनिका को दिया।
गाउन पहनने के बाद शनिका तेज-तेज कदमों से कमरे से बाहर निकलते चली गयी।
देवली जानती थी कि वह प्रेम के पास जा रही है। देवली भी पीछे-पीछे सहज भाव से चल पड़ी।
शनिका इस कदर उलझन में थी कि उसे पीछे देवली के आने का अहसास भी न हुआ। वह जब प्रेम के कमरे के भीतर प्रवेश कर गयी तो देवली, दरवाजे के बाहर खड़ी रह कर भीतर की बातें सुनने लगी।
■■■
प्रेम की निगाह शनिका पर जा टिकीं। शनिका पास आकर ठिठकी। वह गंभीर और व्याकुल थी।
"प्रेम!" शनिका ने शब्दों को चबाकर कहा, "तुम्हें यकीन है कि हमें जो लाश मिली थी वह वामा की ही थी?"
"क्या मतलब?" प्रेम के माथे पर बल पड़े, "क्या कहना चाहती हो तुम?"
"वह लाश वामा की थी, तुम्हें यकीन है?" शनिका ने पुनः पूछा।
"हाँ! वह वामा ही थी। चील-बाजों ने उसे नोच-नोच कर खा लिया था, परन्तु उसका चेहरा ज्यादा न नोचा था। वह इस हद तक सलामत था कि उसे आसानी से पहचाना जा सके। हम दोनों ने ही उसे पहचाना था।"
शनिका प्रेम को देख रही थी।
"हुआ क्या?"
"यह देखो?" शनिका ने वह तस्वीर प्रेम को थमाई, "यह मेरी और वामा की कॉलेज के दिनों की तस्वीर है। इसे मैंने ही वामा को यादगार के तौर पर रखने को दी थी। यह आज किसी ने कूरियर द्वारा मुझे भेजी है।"
तस्वीर को देखते ही प्रेम के चेहरे पर बेचैनी फिर गयी।
"किसने भेजी यह तस्वीर?"
"यही तो मैं जानना चाहती हूँ।" शनिका ने होंठ भींचकर कहा, "तस्वीर भेजने का मतलब है कि भेजने वाला जानता है कि हमने वामा के साथ क्या किया। वह हमें डराकर, परेशान करके, हमें ब्लैकमेल करके हमसे पैसा लेना चाहता है।"
"लेकिन... लेकिन कोई कैसे जान सकता है कि हमने वामा की जान ली थी? वहाँ दूर-दूर तक कोई न था। इस बात की तसल्ली करने के बाद ही हमने वामा को मारा था।"
"यह बात बार-बार अपने होंठों पर मत लाओ और सोचो कि क्या हो रहा है, और क्या होगा अब?" शनिका ने होंठ भींचकर कहा, "तस्वीर भेजने का मतलब है कि कोई जानता है कि हमने वामा के साथ क्या किया था।"
"मेरा तो कोई दुश्मन नहीं।" प्रेम ने शांत स्वर में कहा।
"क्या कहना चाहते हो?"
"यह काम तुम्हारे किसी दुश्मन ने किया हो सकता है। कोई तुम्हारे पीछे है शनिका।"
शनिका की आँखों के सामने वालिया का चेहरा नाचा।
लेकिन वालिया को वामा के बारे में कैसे पता चल सकता है?
■■■
देवली बाहर दरवाजे से हटकर शनिका के कमरे की तरफ बढ़ गयी थी। वह जो जानना चाहती थी, जान चुकी थी।
शनिका और प्रेम ने मिलकर वामा की हत्या की थी ताकि वे शादी कर सकें। उसकी शंका सही निकली कि वामा की जान ली गयी थी। देवली का मन रोने को हुआ। परन्तु उसने अपने पर काबू रखा। उसकी प्यारी बहन को बुरी तरह मारा गया। उसके शरीर को चील-बाज नोच-नोच कर खाते रहे। बहुत बुरी मौत मिली थी उसे।
देवली ने भीग आयी आँखों को साफ किया और अपना फोन निकाल कर वालिया से बात की।
"चूड़ासिंह से मिले?" देवली ने पूछा।
"हाँ! मैंने तस्वीरें उसे दे दी हैं, और नेगेटिव्स भी। आज रात में पोस्टर छपने शुरू हो जायेंगे। कल दोपहर तक शादी के पोस्टर और हनीमून की तस्वीरों के पोस्टर शहर भर में लगने शुरू हो जायेंगे।" उधर से अजय वालिया की आवाज आई।
"अब सुनो। मैंने आज कूरियर द्वारा शनिका और अपनी बहन वामा की पुरानी फोटो शनिका को भेजी थी। वह उसे मिल गयी है। शनिका जरूर यह सोचेगी कि तुमने ही उसे वह तस्वीर भेजी है। क्योंकि तुम उसके ताजे दुश्मन हो। शनिका तुम्हें तलाश करवाएगी। तुम्हारी शनिका से मुलाकात हो जाये तो तुम्हें यह मान लेना है कि वह तस्वीर तुमने ही भेजी है। इस तरह शनिका का सारा ध्यान तुम पर रहेगा और मैं अपना काम खामोशी से करती रहूँगी।"
"आखिर तुम कर क्या रही हो देवली?"
उसने कोई जवाब न देकर फोन काट दिया।
वह इस काम से फुर्सत पाकर हटी थी कि शनिका भीतर आयी। हाथ में तस्वीर पकड़ी थी।
"एक गिलास और दो मुझे।"
"जी रानी साहिबा!" देवली ने कहा और टेबल पर पड़ा गिलास उठाकर अलमारी की तरफ बढ़ गयी।
शनिका परेशान और व्याकुल दिख रही थी। कुर्सी पर बैठते हुए उसने तस्वीर टेबल पर रखी और फोन निकालकर ओमी का नम्बर मिलाया। तुरंत ही बात हो गयी।
"हुक्म रानी साहिबा!"
"एक घण्टे बाद मुझे मिलना।"
"जी!"
शनिका ने फोन बन्द करके रखा। देवली समझ गयी कि शनिका आज फिर ओमी से मिलने वाली है।
देवली ने वाइन का गिलास तैयार करके शनिका को थमाया। शनिका के चेहरे पर अब पिये गिलास का असर नजर आने लगा था। उसका चेहरा नशे में तमतमा रहा था। शनिका ने उखड़े अंदाज में घूँट भरा।
"रानी साहिबा, डिनर कब लेंगी?"
"मैं नहाने जा रही हूँ।"
"डिनर यहाँ लेंगी या डाइनिंग हॉल में?"
"यहीं पर।"
■■■
देवली दरवाजे के बाहर कान लगाए भीतर की बातें सुन रही थी। भीतर अभी-अभी शनिका पहुँची थी। ओमी पहले से ही मौजूद था। ओमी ने शनिका को देखा तो मुस्कुरा पड़ा।
शनिका नाइटी में थी। कूल्हों के नीचे उसकी खूबसूरत टाँगें चमक रही थीं और उसकी छातियों को उभार आज उसने कुछ ज्यादा ही महसूस किया। ओमी अक्सर सोचता था कि किस्मत वाला है जो उसे ऐसा शरीर भोगने को मिला।
"रानी साहिबा, आप मुझे वासु को मारने से क्यों रोक रही थीं फोन पर?" ओमी ने पूछा।
"तूने उसे खत्म कर दिया तो बात खत्म। उसकी लाश कहाँ है?"
"रेगिस्तान वाले हिस्से में पड़ी।"
"कल पुलिस को वासु के गुम होने की खबर करना और शक चूड़ासिंह पर जाहिर कर देना।"
"ठीक है।" ओमी ने सिर हिलाया, "आज आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं।"
शनिका ने ओमी के ललचाये चेहरे पर निगाह मारी फिर शांत स्वर में बोली-
"मेरे सामने एक और समस्या है ओमी।"
"मैं समझा नहीं।"
"मेरा एक दुश्मन इन दिनों जैसलमेर में है। वह इस बात की चेष्टा कर रहा है कि मैं चुनाव न जीत सकूँ।"
"मरेगा साला।" ओमी गुर्रा उठा, "नाम क्या है उसका?"
"अजय वालिया।"
"आप मुझे उसका पता-ठिकाना बता दीजिए। मैं कल ही उसे...।"
"मैं नहीं जानती कि वह कहाँ ठहरा है।"
"फिर कैसे काम होगा?" ओमी ने शनिका को देखा।
"तुम कल मेरे साथ रहना। वह कहीं दिखा तो तेरी पहचान करा दूँगा।"
"ठीक है।"
"अजय वालिया को बचना नहीं चाहिए ओमी।"
"जिसने आपको परेशान किया है, वह कभी बच पाया है?" ओमी मुस्कुरा पड़ा।
बाहर बातें सुन रही देवली, चुपके से वहाँ से हट गयी।
शनिका, ओमी के हाथों वालिया को खत्म करने की तैयारी कर रही है।
देवली ने वहाँ से दूर होकर फोन निकाला और वालिया के नम्बर मिलाए। बात हो गयी।
"शनिका ने अभी-अभी ओमी को कहाँ है कि तुम्हें मार दे।"
"समझ गया।" वालिया की आवाज कानों में पड़ी।
"परन्तु ओमी तुम्हें नहीं जानता। कल ओमी शनिका के साथ रहेगा, ताकि तुम कहीं दिखो तो वह ओमी को तुम्हारा चेहरा दिखा दे। शनिका सोचती है कि वह तस्वीर तुमने भेजी है।"
"वह हर बात का शक मुझ पर ही करेगी। तस्वीर तुमने कैसे उस तक पहुँचाई?"
"मैंने उसके कमरे में रख दी थी।" देवली ने झूठ बोला।
"मैं कल शनिका को कहीं दिखूँगा, ताकि ओमी मुझे देख सके।"
"ओमी खतरनाक है, वह तुम्हें मार देगा। तुम्हारे पास कोई हथियार है?" देवली ने पूछा।
"नहीं। रिवॉल्वर थी जिसे शनिका ने मुम्बई में ही मुझसे छीन ली थी।"
"फिर तुम ओमी का मुकाबला कैसे करोगे?" देवली के चेहरे पर सोच के भाव थे।
"कोई इंतजाम करूँगा।"
"सुनो अजय।" देवली सोच में डूबी कह उठी, "तुम कल नाश्ते के बाद एक घण्टे के लिए होटल से बाहर निकल जाना।"
"इससे क्या होगा?"
"जब वापस आओगे तो पता चल जाएगा।"
"तुम मुझसे साफ बात क्यों नहीं करती?"
"बाकी बात कल करूँगी। नाश्ते के बाद घण्टे भर के लिए होटल से बाहर निकल जाना।" कहने के साथ ही देवली ने फोन बंद किया और जगत पाल को फोन लगाया।
"बोल मेंरी जान!" जगत पाल की आवाज कानों में पड़ी, "तेरे बिना नींद नहीं आती।"
"मेरी बात सुन। हर वक़्त रासलीला वाली बात मत किया कर।"
"घोड़े पर सवार है तू तो।"
"कल वालिया नाश्ते के बाद एक घण्टे के लिए होटल से बाहर जाएगा। तब तू उसके कमरे में रिवॉल्वर रख देना।"
"फँसाना है उसे?"
"नहीं। उसे रिवॉल्वर देनी है। शनिका ने उसकी जान लेने के लिए उस पर आदमी लगा दिया है।"
"समझ गया। रिवॉल्वर उसके कमरे में पहुँचा दूँगा। लेकिन तू कब कानपुर...।"
"जल्दी चलूँगी। थोड़ा सा काम बचा है।"
"शनिका के बंगले में तू क्या कर रही है? क्या पता चला कि वामा कैसे मरी थी?" उधर से जगत पाल ने पूछा।
"अभी नहीं पता चला। फिर बात करूँगी।" कहने के साथ ही देवली ने फोन बंद कर दिया।
■■■
देवली ने हाथ से धकेल कर आहिस्ता से दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश करके दरवाजा बंद किया और सिटकनी चढ़ा दी, फिर प्रेम के बेड की तरफ बढ़ गयी। उसके पास पहुँची। कमरे में नीला मध्यम प्रकाश फैला था।
"आ गयी तुम?" प्रेम की आवाज कानों में पड़ी, "मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा था।"
देवली ने उसका हाथ थाम लिया और दबाते हुए बोली-
"मेरा इंतजार कर रहे थे?"
"हाँ! बहुत देर लगा दी तुमने आने में।"
"कल भी इसी वक्त आयी थी। परन्तु आज आपको मेरा इंतजार था, इसलिए लगा कि मैं देर से आई हूँ।" कहने के साथ ही देवली ने अपने कपड़े उतारे और बेड पर प्रेम के साथ जाकर लेट गयी। प्रेम ने उसे बाँहों में भींच लिया।
"तुम कितनी अच्छी हो मुन्नी।"
देवली खामोश रही।
कुछ देर प्रेम के हाथ उसके शरीर पर फिरते रहे। फिर प्रेम की साँसें तेज होने लगीं। तभी प्रेम में डूबी देवली कह उठी-
"आपकी पत्नी बहुत परेशान है, किसी के द्वारा उस तस्वीर के भेजे जाने से।"
"छोड़ो, वे बातें मत करो।" प्रेम उसके शरीर से खेलता कह उठा।
"वह आज भी ओमी के पास गई है। इस समय उसके साथ है। मैं देख कर आई हूँ।"
"कमीनी, कुतिया है वह।" प्रेम गुर्रा उठा।
"उनकी बातें भी सुनो।" देवली बोली, "मैं आपसे बहुत नाराज हूँ। शिकायत है मुझे।"
"क्यों?" प्रेम के हाथ रुके।
"आपकी पत्नी वामा के बारे में ओमी को बता रही थी।" देवली फुसफुसाते स्वर में कह उठी।
देवली ने प्रेम के शरीर में कंपन महसूस किया।
"वामा के बारे में ओमी को बता रही थी, क्या?" प्रेम की मस्ती एकाएक गायब हो गयी।
"वही।"
"क्या वही?" प्रेम ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
"जो आपने मुझे नहीं बताया कि आपने अपनी पहली पत्नी के साथ क्या किया था।"
"क्या किया था, तुम बताती क्यों नहीं?"
"धीरे बोलिये। कोई सुन लेगा।" देवली ने उसके होंठों पर उँगली रखी फिर हटा ली, "आपने और शनिका ने मिलकर वामा को मारा था, ताकि आप दोनों शादी कर सकें।"
प्रेम की साँसें एकाएक तेज चलने लगीं।
"पीछे हट जाओ।" प्रेम गुस्से में बोला, "अपने कपड़े पहन लो।"
"नाराज हो गए?"
"प्लीज मुझे सोचने दो। शनिका ने यह बात ओमी को बताकर अच्छा नहीं किया।" परेशान सा प्रेम कह उठा, "तुम भी यह बात जान गई हो। ओह, कितना गलत हो रहा है यह।"
देवली बेड से उतरी और कपड़े पहनने लगी। उसके चेहरे पर कड़वी मुस्कान फैली हुई थी, जो कि नीली रोशनी में स्पष्ट नजर आ रही थी।
"शनिका ने बहुत बड़ी गलती की यह बात ओमी को बताकर। तुम भी जान गई हो, ओह...।"
देवली ने कुर्सी खींची और बेड के पास बैठ गयी।
"अब मैं आपसे साफ और स्पष्ट बात करने वाली हूँ प्रेम साहब।" देवली कह उठी।
प्रेम ने चौंक कर देवली को देखा। परन्तु कम रोशनी में चेहरे के भाव स्पष्ट न देख पाया।
"क्या बात?"
"मैं नौकरानी नहीं हूँ। मेरा नाम देवली है और मैं वामा की बड़ी बहन हूँ।" देवली का स्वर गंभीर था।
प्रेम बुरी तरह चौंका।
"तुम... तुम वामा की बहन। ओह, तभी मुझे पहली बार तुम्हें देखने पर लगा था कि तुम्हें कहीं देखा है। तुम्हारे चेहरे पर वामा के चेहरे की झलक है। ओह...।" प्रेम के चेहरे के भाव कम रोशनी में नहीं दिख रहे थे, "याद आया मुझे। वामा अपनी बहन देवली का नाम लिया करती थी। तुम... तुम शादी में नहीं आ सकी थी... और... अब तुम्हें सब कुछ मालूम हो गया कि वामा... वामा...।"
"मिस्टर प्रेम।" देवली धीमे स्वर में कह रही थी, "मुझे पहले ही शक था कि वामा मरी नहीं, उसे मारा गया है। तभी तो इस शक को पुख्ता करने मैं यहाँ पर नौकरानी बन कर आई और मेरी बात सही निकली।"
"यह मेरी गलती नहीं थी।" प्रेम की आवाज में घबराहट थी, "यह सब शनिका ने किया था। उसने मुझे अपने चक्कर में पागल कर दिया था। मैं अच्छा बुरा न पहचान पाया था। मैं... मैं आज भी पछता रहा हूँ।"
"यह बात आप मुझे किसी और मौके पर कहते तो शायद मैं यकीन न करती। परन्तु यहाँ आकर मैंने सब कुछ अपनी आँखों से देखा है। मैं तो वामा की मौत का बदला लेना चाहती थी। आप दोनों को मार देना चाहती थी। परन्तु मैंने महसूस किया कि आप पर जुल्म हो रहे है। शनिका ने आपको खिलौना बना रखा है। आप अपाहिज हो चुके हैं। मुझे बहुत तकलीफ हुई कि वामा जिसे चाहती थी वह आज बुरे हाल में पड़ा है।"
"मैं सच में बुरे हाल में हूँ।" प्रेम रो पड़ा।
"जानती हूँ। मुझसे कुछ भी छिपा नहीं है।" देवली ने अपना हाथ प्रेम के हाथ पर रखा, "यह सब देखकर तो मेरा दिल बदल गया। अब मैं बदला लेने की अपेक्षा आपकी सहायता करना चाहती हूँ।"
प्रेम के गहरी साँस लेने की आवाज देवली ने सुनी।
"मैं वामा से बहुत प्यार करता था। उसके साथ रहने के मैंने सपने देखे थे। हम दोनों एक-दूसरे को बहुत पसंद करते थे। परन्तु मुझसे बहुत भूल हो गई। मैं शनिका की बातों में फँस गया। उसने जैसे मुझ पर जादू कर दिया था। वह जो कहती, मैं वही करता चला गया। विश्वास करो, वामा का मारने का दुख आज भी मुझे खाये जा रहा है।"
"मैं अपनी बहन से बहुत प्यार करती थी मिस्टर प्रेम।" देवली ने गंभीर स्वर में कहा।
"हाँ, वामा मुझे बताया करती थी।"
"उसकी मौत का जितना दुख मुझे है, उतना किसी को नहीं हो सकता।"
"मैं अपने पापों को कैसे कम करूँ, समझ में नहीं आता।"
"आप अपाहिज हो गए। शनिका आपकी परवाह नहीं करती। यही आपकी सजा है मिस्टर प्रेम।"
"सच में।"
"लेकिन मुझे लगता है कि आपने काफी सजा भुगत ली है।"
"क्या मतलब?"
"मैं आपके काम आना चाहती हूँ। वामा के प्यार को मैं जिंदा और खुश रखना चाहती हूँ।"
"तुम... तुम क्या करोगी मेरे लिए?"
"जो आप कहें।"
"तुम कुछ नहीं कर सकती। शनिका ने मुझे पूरी तरह बर्बाद कर रखा है। उसने मुझे जकड़ रखा है।"
"मैं आपको शनिका से आजाद करा सकती हूँ।"
"कैसे?" प्रेम के होंठों से निकला।
"आजाद कैसे कराते है मिस्टर प्रेम?" देवली ने शांत स्वर में पूछा।
प्रेम ने कुछ न कहा। खामोशी रही, फिर कह उठा-
"तुम... तुम यह काम कर पाओगी?"
"आपकी हाँ की जरूरत है।"
"ले... लेकिन तुम यह काम क्यों करोगी? म... मैंने तुम्हारी बहन वामा की हत्या की थी। तुम...।"
"मुझे वामा की जगह लेनी होगी। तभी यह सब काम हो सकेंगे।"
"वामा की जगह?" प्रेम के होंठों से निकला, "क्या तुम... तुम मेरी पत्नी बनना चाहती हो?"
"तभी तो मैं आपकी सेवा कर पाऊँगी।"
"और... और शनिका?"
"वह तब तक नहीं रहेगी। उससे आपकी जान छूट चुकी होगी।"
"यह आसान नहीं है। जो तुम कह...।"
"मेरा काम आप मुझ पर छोड़ दे। मुझे सिर्फ आपका जवाब चाहिए मिस्टर प्रेम।" देवली बोली।
"अगर मैं तुम्हारी बात से इनकार कर दूँ तो?"
"तो मैं कल सुबह ही चली जाऊँगी। परन्तु शनिका से मैं वामा का बदला जरूर लूँगी।" देवली ने शांत स्वर में कहा, "मैंने जो भी बात आपसे की है। साफ मन से की है।"
प्रेम चुप रहा।
"अगर आप मुझे अपनी पत्नी बनाते हैं तो अपनी आधी जायदाद मेरे नाम लिखनी होगी।"
"ऐसा क्यों?"
"ताकि हम दोनों प्यार से रहें। हमारी हैसियत बराबर होगी तो हम ईमानदारी से जिंदगी बिताएँगे।"
प्रेम ने कुछ न कहा।
"आप सोच लीजिए मिस्टर प्रेम। मैं नहीं चाहती कि आप जल्दबाजी में कोई फैसला लें। कल मुझे अवश्य बता दीजिएगा कि इस बारे में आपने क्या फैसला लिया।" कहने के साथ ही देवली उठ खड़ी हुई।
■■■
ओमी सुबह से ही चुनाव प्रचार में शनिका के साथ था। शनिका की निगाहें हर जगह लोगों की भीड़ में वालिया को तलाश कर रही थीं। परन्तु वह उसे अभी तक कहीं भी नहीं नजर आया था। दोपहर के बारह बज चुके थे। शनिका मन ही मन परेशान थी कि वह ओमी को वालिया के पीछे लगा देना चाहती थी ताकि वह वालिया को खत्म कर सके। शनिका को इस बात का वहम हो गया था कि अजय वालिया ने किसी तरह वामा की हत्या के बारे में जान लिया है। उसी ने उसे तस्वीर भेजी थी। इसलिए शनिका जल्दी से वालिया को खत्म करवा देना चाहती थी। ताकि वालिया उसके लिए और भी मुसीबत खड़ी न कर सके।
परन्तु वालिया उसे कहीं दिख नहीं रहा था।
■■■
दोपहर के बारह बज चुके थे। परन्तु देवली, प्रेम के पास उसके कमरे में नहीं आयी थी। इस बात को लेकर प्रेम मन ही मन परेशान था कि देवली उसके पास क्यों नहीं आयी।
रात की सारी बातें प्रेम के मन में चक्कर लगा रही थीं। यह जानकर जाने क्यों उसे अच्छा लगा था कि देवली, वामा की बहन है।
आखिरकार प्रेम ने बेड के साथ लगी बेल बजायी तो कुछ ही देर में हरिया आ पहुँचा।
"हुक्म मालिक!"
"मुन्नी को भेजो!"
हरिया चला गया।
पंद्रह मिनट बाद वहाँ देवली ने प्रवेश किया। प्रेम उसे देखता रह गया। नहा-धोकर देवली ने सूट पहन रखा था। वह खूबसूरत दिख रही थी।
"आपने मुझे बुलाया मिस्टर प्रेम?" देवली का स्वर शांत था।
"हाँ! तुम सुबह से मेरे पास नहीं आयी।" प्रेम ने शिकायत भरे स्वर में कहा।
"मैं जा रही हूँ यहाँ से।"
"क्या?" प्रेम चौंका।
"सामान बाँध लिया है। अब मेरा यहाँ कोई काम नहीं। वामा की मौत का बदला शनिका से लेना है,वह मैं ले लूँगी।" देवली का स्वर गंभीर था। चेहरे पर किसी तरह का भाव न था।
"तुम... तुम मुझे छोड़कर चली जाओगी?"
"हाँ! क्योंकि आपको मेरा साथ मंजूर नहीं। मंजूर होता तो अब तक आप मुझे बता चुके होते।"
"रात हम में जो बातें हुई थीं, उस पर मैंने बहुत सोचा। मुझे सच में शनिका से मुक्ति चाहिए देवली।"
"तो तुम्हारी हाँ है?"
"हाँ, मैं तुम्हारे साथ जिंदगी बिताऊँगा। तब इतना बुरा तो जीवन नहीं होगा मेरा।"
"मैंने अपनी शर्त भी रखी थी जायदाद के बारे में।" देवली गंभीर थी।
"सोचा मैंने उस बारे में भी।" प्रेम ने सिर हिलाकर कहा, "आधी जायदाद तुम्हारे नाम लगाने से बेहतर है कि सब कुछ हम दोनों के नाम हो जाये। हर चीज पर जितना मेरा हक होगा , उतना ही तुम्हारा होगा।"
"मुझे भला क्या ऐतराज हो सकता है।" देवली मुस्कुरा पड़ी।
"अब तो खुश हो देवली?"
"हाँ!"
"मैंने वामा के साथ जो बुरा किया उसका पश्चाताप कर लेना चाहता हूँ। तुम में मैं वामा की झलक देखता हूँ।"
"तो मैं रुक जाऊँ?" देवली ने मुस्कुरा कर पूछा।
"हाँ! हमेशा के लिए।"
देवली आगे बढ़ी और प्रेम का हाथ थाम कह उठी-
"तुम कितने अच्छे हो। हमेशा इतने ही अच्छे बनकर रहना प्रेम।"
"ओह देवली।" प्रेम ने खुशी से गहरी साँस ली, "मुझे खुले में ले चलो। नौकरों से कहो। वह मुझे व्हील चेयर पर बिठाकर, बाहर तक ले जायेंगे। कमरे में बन्द रहने का मन नहीं करता। व्याकुल हो जाता हूँ।"
"मैं जल्दी ही आपकी टाँगें लगवा दूँगी। फिर आप चल फिर सकेंगे।"
प्रेम ने देवली को देखा फिर गंभीर स्वर में बोला-
"तुम शनिका के साथ क्या करोगी?"
"उसे!" देवली उसके कान के पास मुँह ले जाकर बोली, "खत्म कर दूँगी।"
"कैसे?"
"मैं किसी को जानती हूँ। वह ये काम कर देगा। मैं अपनी बहन की मौत का बदला लेकर रहूँगी।"
"इसमें खतरा है देवली।"
"सब कुछ मुझ पर छोड़ दो। सब ठीक हो जाएगा।" देवली ने मुस्कुराकर विश्वास भरे स्वर में कहा।
प्रेम सिर हिलाकर रह गया।
"मैं हरिया को बुलाती हूँ। वह तुम्हें व्हील चेयर पर बिठाकर, अन्य नौकरों के साथ व्हील चेयर उठाकर तुम्हें बाहर खुले में पहुँचा देगा। मैं वहीं पर तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ।"
देवली बाहर निकल गयी। सबसे पहला काम उसने जगत पाल को फोन करने का किया।
"बोल मेरी जान।" उसकी आवाज सुनते ही उधर से जगत पाल कह उठा।
"रिवॉल्वर वालिया तक पहुँचा दी?" देवली ने पूछा।
"हाँ! दस बजे वालिया कुछ देर के लिए होटल से बाहर गया था। मैं खिड़की के रास्ते उसके कमरे में जाकर बेड पर रिवॉल्वर रख आया था।" जगत पाल ने कहा।
"ठीक है। अब तेरे लिए काम निकल आया है।"
"बोल मेरी जान।"
"शनिका को साफ करना है।" देवली की आवाज कठोर हो गयी।
"पक्का?"
"पक्का।"
"तूने पता लगा लिया कि वामा को मारा गया था?"
"हाँ! वामा को प्रेम और शनिका ने मिलकर मारा था। प्रेम को मैं देख लूँगी। तू शनिका को साफ कर।"
"बुरा किया उन्होंने वामा के साथ।"
"अब भुगतेंगे। शनिका को इस तरह मारना कि तू फँसे न। वैसे तो शनिका को चक्कर में लेकर, उसे वीरान जगह भी बुला सकता है। उसे कह सकता है कि वह तस्वीर भेजने वाला तू है...।"
"समझ गया।"
"यह काम हर हाल में होना चाहिए।"
"दो-चार दिन में जब भी मौका लगा हो जाएगा।"
"मुझे भरोसा है कि मेरा जगतू सारा काम कर...।"
"हवा मत दे। आजकल चुनाव की वजह से शनिका लोगों से घिरी रहती है।"
"तू ही रास्ता निकाल।"
"मुझे उसका फोन नम्बर दे।"
देवली ने शनिका का फोन नम्बर जगत पाल को बता दिया।
■■■
अजय वालिया, चूड़ासिंह के पास ऑफिस में बैठा था। चूड़ासिंह बेचैनी भरे स्वर में फोन पर कह रहा था-
"तुम लोग पोस्टर तैयार करने में इतनी देर लगाओगे तो जीत लिया मैंने चुनाव।"
"छप रहे हैं, दो घण्टे में।"
"दो घण्टे। अब बारह बज रहे हैं। तुम तो सारा दिन बिता दोगे। जबकि उन पोस्टरों को मैं आज ही हर जगह लगवा देना चाहता हूँ। मैं कुछ लड़के वहाँ भेज रहा हूँ। ज्यों-ज्यों पोस्टर छपते जायें, उन्हें देते जाना। पोस्टर लगाने का काम तो शुरू हो। छपाई कैसी आ रही है पोस्टरों में?"
"एकदम ठीक।"
"पोस्टरों में रानी साहिबा और साथ वाले आदमी का चेहरा तो साफ है?"
"एकदम साफ। आप देखेंगे तो खुश हो जायेंगे।
"जल्दी कर।" कह कर चूड़ासिंह ने फोन वापस रखा और मुस्कुरा कर वालिया से कह उठा, "यह पोस्टर शहर भर में लगते ही शनिका को सारी हवा खत्म हो जाएगी। यह शादी के पोस्टर हैं, जब उसने तुम्हारे साथ शादी की थी। कल हनीमून की तस्वीरें भी छपकर लगेंगी। नेगेटिव्स मेरे पास है। सारा काम सच्चा है। कोई मेरी तरफ उँगली भी नहीं उठा सकता कि ये तस्वीरें नकली हैं। पोस्टर लगने के बाद मेरी जीत निश्चित है। तुमने तो कमाल कर दिया।"
"मैंने नहीं। यह सारा कमाल शनिका का है। सारी बात तुम्हें बता चुका हूँ।"
"तुम्हारे साथ सच में बुरा हुआ।"
"शनिका बर्बाद हो जाये तो मुझे अपनी हालत पर दुख न होगा।"
"वह होगी। पक्का होगी। तुम्हारे साथ उसने जो किया है, उसकी सजा तो वह भुगतेगी ही। वह चुनाव हार जाएगी।
"तुम्हारे साथ शादी और हनीमून को लोग जान जायें तो उसके पास इज्जत के नाम पर कुछ नहीं बचेगा। जीतने के बाद मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सका तो जरूर करूँगा। आखिर तुम्हारी वजह से मैं जीत रहा हूँ।"
वालिया ने कुछ कहना चाहा कि तभी उसका फोन बजा। दूसरी तरफ देवली थी।
"कहो?" वालिया चूड़ासिंह पर नजर मारकर बोला।
"रिवॉल्वर तुम्हें मिल गयी होगी?"
"हाँ! तुमने कैसे मुझ तक पहुँचाया उसे?"
"यह मत पूछो। मुझे तुम्हारी चिंता है और मैं नहीं चाहती कि ओमी तुम्हें मार दे।"
"मुझे खुशी है कि तुम्हें मेरी चिंता है।" वालिया के होंठों पर मुस्कान उभरी।
"मैं तुम्हें प्यार करती हूँ अजय!"
"तुम्हें देखे कई दिन हो गए।" वालिया बोला।
"मैं यहाँ पर वामा की मौत और तुम्हारी बर्बादी का बदला लेने आयी हूँ वालिया। फिर भी मैं तुमसे जल्द ही मिलूँगी। मैंने यह पता लगा लिया है कि वामा को प्रेम और शनिका ने ही मारा था।"
"ओह! अब तुम क्या कर रही हो?"
"बताऊँगी। मिलने पर बताऊँगी।" कहने के साथ ही उधर से देवली ने फोन बंद कर दिया था।
"किसका फोन था?"
"मेरी पहचान वाली का।"
"मैं तो कह रहा था कि चुनाव जीतने के बाद...।"
तभी चूड़ासिंह के खास आदमी ने तेजी से कमरे में प्रवेश किया।
"नेताजी, रानी साहिबा चुनावी भीड़ के साथ इसी गली से निकल रही हैं।"
"कोई बात नहीं।" चूड़ासिंह ने मुस्कुरा कर कहा, "कुछ घण्टे के बाद रानी साहिबा की भीड़ गायब हो जाएगी।"
"वह कैसे?"
तभी वालिया उठ खड़ा हुआ।
"तुम कहाँ चले?" चूड़ासिंह ने उससे पूछा।
"बाहर। कुछ देर में वापस लौटता हूँ।" कहने के साथ ही वालिया बाहर निकल गया।
"यह कौन है नेताजी?" वह आदमी बोला, "आप कल से इसे अपने साथ ही रख रहे हैं।"
"काम का बन्दा है। तू नहीं समझेगा।"
■■■
शनिका खुली जीप में खड़ी थी। जीप में ही नीचे ओमी, भँवरा और दो अन्य लोग बैठे थे। रामसिंह पीछे वाली कार में था। यह चुनावी काफिला उस चौड़ी गली में से निकल रहा था। बेहद मध्यम गति से इस गली में कम ही लोग उसके स्वागत के लिए खड़े थे। क्योंकि इसी गली में चूड़ासिंह का कार्यालय था। शनिका के काफिले की वजह से चूड़ासिंह ने अपने सब आदमियों को आदेश दे दिया कि वे भीतर आ जायें। चूड़ासिंह नहीं चाहता था कि कार्यकर्ताओं का कोई झगड़ा उठ खड़ा हो।
अभी उस काफिले ने आधी गली ही पार की थी कि एकाएक शनिका की नजर वालिया पर पड़ी जो सड़क के किनारे खड़ा उसे देखकर रहा था। शनिका कि चेहरे पर कठोरता आ गयी। उसने जल्दी से नीचे बैठे ओमी को हाथ मारा। ओमी ने सिर उठाकर शनिका को देखा। शनिका ने आँख से सड़क किनारे खड़े वालिया की तरफ इशारा किया।
वालिया ने उस इशारेबाजी को स्पष्ट देखा, स्पष्ट पहचाना। ओमी की निगाह वालिया की तरफ गयी। वह फौरन खड़ा हुआ।
"यही तेरा शिकार है ओमी।" शनिका लोगों की तरफ हाथ हिलाती ओमी से बोली।
"मैं समझ गया रानी साहिबा।" कहकर ओमी जीप से नीचे कूदने को हुआ तो शनिका बोली-
"इस गली में कुछ मत करना। यह चूड़ासिंह का पक्का इलाका है।"
"आप फिक्र न करें।"
तभी पास बैठा भँवरा, ओमी से बोला-
"मैं आऊँ साथ?"
"जरूरत नहीं, वह एक ही तो है।" ओमी ने कहा और जीप से उतरकर सड़क पर आ गया।
तब वालिया उससे दस कदम दूरी पर था। ओमी ने वालिया को देखा। दोनों की नजरें मिलीं। वालिया उसे देखकर जहर भरे अंदाज में मुस्कुरा पड़ा ओमी ने मुँह फेर लिया और गली में एक तरफ चल पड़ा। काफिला आगे जा चुका था। वालिया ने चूड़ासिंह के दफ्तर में प्रवेश किया। पीछे वाले कमरे में उसके पास पहुँचा।
"बैठ! मैंने नाश्ता मँगवाया है।" चूड़ासिंह ने उसे देखते ही कहा।
वहाँ दो-तीन लोग और भी मौजूद थे।
"मैं कुछ देर बाद आऊँगा।" अजय वालिया बोला।
"कहाँ जा रहा है?" चूड़ासिंह ने उसे देखा।
"कुछ काम याद आ गया। मैं...।"
"दो घण्टे में वह सब पोस्टर लगने वाले हैं। उनका मजा नहीं देखेगा मेरे साथ रहकर।"
"वो मजा तो मुझे पता लग जायेगा, लेकिन तेरे को यह जगह छोड़ देनी चाहिए।"
"क्यों?"
"उन पोस्टरों को जैसलमेर में लगते ही हो सकता है कि शनिका गुस्से में आकर तेरे पर हमला करा दे।"
"यह बात तो तूने सही कही।" चूड़ासिंह सिर हिलाकर बोला, "मैं अपना ठिकाना बदल लेता हूँ।"
वालिया बाहर की तरफ बढ़ गया।
"तुम कब वापस आओगे?" पीछे से चूड़ासिंह ने कहा।
"रात को तुम्हें फोन करूँगा।"
■■■
वालिया चूड़ासिंह के चुनाव कार्यालय से बाहर निकला और गली में आगे बढ़ गया। उसकी नजरें इधर-उधर घूम रही थीं। जल्दी ही उसे ओमी नजर आ गया। वह दीवार के छाँव में, दीवार से टेक लगाए खड़ा था। वालिया उसके सामने से निकलकर आगे बढ़ता गया। वह जानता था कि ओमी यहाँ पर उस पर हमला नहीं करेगा। क्योंकि पास में चूड़ासिंह का चुनाव कार्यालय है। वह गली से बाहर आ गया। सड़क पर जाता ऑटो दिखा तो उसने ऑटो को रुकवाया और भीतर बैठ गया। उसने ऑटो वाले को अपने होटल का नाम बताया।
ऑटो आगे बढ़ गया। वालिया ने पीछे देखा तो ओमी को ऑटो में बैठते पाया। वालिया ने होंठ भींच लिए। अब उसे पूरा यकीन हो गया था कि देवली ने उसे सही खबर दी है। ओमी उसकी हत्या करने के लिए उसके पीछे है। वालिया के जिस्म में डर की लहर उभरी।
ओमी पेशेवर आदमी था। जबकि उसके लिए किसी की जान लेना आसान नहीं था। वही जानता था कि दिल्ली में जगन्नाथ सेठी की हत्या के लिए, उसके पसीने निकल गए थे। कितनी मेहनत करनी पड़ी थी।
लेकिन वालिया को इस बात की तसल्ली थी कि उसके पास रिवॉल्वर है। देवली ने उसके कमरे में रिवॉल्वर पहुँचा दी थी। देवली सच में अच्छी है। उसका पूरा ख्याल रखती है।
वालिया ने भीड़ भरे बाजार के पास ऑटो रुकवा लिया। उसे पैसे देकर बाजार में प्रवेश कर गया। छिपी निगाहें पीछे भी थीं। ओमी को उसने पीछे आते देखा।
वालिया जानता था कि ओमी उसका पीछा नहीं छोड़ेगा। शनिका ने उसे मारने को पीछे लगाया है। कल ही ओमी ने शनिका के खास आदमी वासु को मारा है। शनिका, ओमी से इसी तरह के काम लेती है। परन्तु उसे अपनी जान नहीं गँवानी है। वह जानता था कि भीड़ भरे बाजार में ओमी उसकी हत्या नहीं करेगा। क्योंकि ओमी यहीं का था। कई लोग उसे पहचान सकते थे। वह किसी वीरान जगह ही उसकी हत्या करेगा।
वालिया सड़क के किनारे बने छोटे से रेस्टोरेंट में प्रवेश कर गया और एक टेबल के पास पड़े कुर्सी पर जा बैठा। छोकरा पास आया तो उसे चाय के लिए बोल दिया। मन में कभी-कभी घबराहट हावी हो जाती थी कि ओमी उसके पीछे है और उसकी हत्या कर देना चाहता है। लेकिन वालिया यह भी जानता था कि उसने शनिका के मामले में हाथ डाला है तो यह सब होना ही था। शनिका खामोश बैठने वालों में से नहीं है।
तभी उसने ओमी को रेस्टोरेंट में प्रवेश करते देखा। ओमी की निगाह उस पर ठहर गयी।
वालिया ने हिम्मत इकट्ठी की और उसे देखकर मुस्कुराया। ओमी के होंठों में कसाव आया। वह वालिया के पास जा पहुँचा।
"बैठ जाओ!" वालिया बोला।
ओमी मुस्कुराया और बैठ गया।
"तुम बहुत घटिया औरत के पास नौकरी करते हो।" वालिया ने कहा।
ओमी उसी मुस्कान के साथ उसे देखता रहा।
"वह तुम्हारा इस्तेमाल कर रही है। कल तुम्हारे हाथों वासु मारा गया।"
"आज तुम मरोगे।" ओमी शांत स्वर में बोला।
"मुझे मारकर तुम्हें बहादुरी का तमगा नहीं मिलेगा।
"क्यों?"
"निहत्थे आदमी की जान लेना बहादुरी नहीं होती।"
"तुम्हें रानी साहिबा से पंगा नहीं लेना चाहिए था।"
"वह हरामजादी है।" वालिया गुर्रा उठा।
"वह शानदार है।"
"मैं जानता हूँ उसने तुम्हें अपने जिस्म के जाल में फँसा रखा है।" वालिया बोला।
"कैसे जानते हो?" ओमी की आँखें सिकुड़ी।
"यह मत पूछो। मैं तुम्हें दो लाख रुपया दे सकता हूँ अगर तुम मुझे न मारो।"
"तुम आज मर जाओगे।"
"तुम हाँ कहते तब भी मैं दो लाख तुम्हें न दे पाता। मेरे पास पैसा नहीं है।
ओमी, वालिया को देखता रहा।
"क्या देख रहे हो?" वालिया के होंठ सिकुड़े।
"मैं तुम्हें मारने वाला हूँ। यह जानकर भी तुम्हें डर नहीं लग रहा?" ओमी बोला।
तभी छोकरा आया और चाय का गिलास टेबल पर रखा। वह चला गया।
"मैंने तुम जैसे कुत्ते बहुत देखे हैं।" वालिया ने एकाएक कहा।
ओमी के दाँत भिंच गए।
"तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।" वालिया ने गिलास उठाकर घूँट भरे, "अब क्या वक़्त हुआ है?"
ओमी उसे घूरता रहा।
"बताओ। तुम मुझे वक़्त बताओगे तो मैं तुम्हें बहुत काम की बात बताऊँगा।"
"एक बजा है।"
"चार बजे तक तुम्हारी रानी साहिबा का बुरा हाल हो जायेगा।"
"क्यों?"
"पूछते क्या हो। खुद ही पता चल जाएगा।" कहने के साथ ही वालिया ने जेब से दस का नोट निकाल कर चाय के गिलास के नीचे रखा और उठ खड़ा हुआ।
ओमी कठोर निगाहों से उसे देख रहा था।
एकाएक वालिया मुस्कुराया और बोला-
"चाय का स्वाद नहीं आया।" कहकर वह बाहर की तरफ बढ़ता चला गया।
वालिया जानता था कि ओमी उसके पीछे आएगा। ऐसा हुआ भी।
वालिया बाजार में आगे बढ़ने लगा और ओमी उसके पीछे था।
आगे जाकर बाजार खत्म होने को आया तो वालिया ठिठका और पलटा। बीस कदमों की दूरी पर उसने ओमी को पीछे आते देखा। वह पास आ गया तो वालिया मुस्कुराया।
"तुम मेरे साथ ही क्यों नहीं रहते।" वालिया बोला।
ओमी की आँखों में खतरनाक भाव उभरे।
"इस बाजार में तो तुम मुझे मारने से रहे। यहाँ कई लोग होंगे जो तुम्हें पहचानते होंगे।"
"मैं तुझे बहुत बुरी मौत मारूँगा कमीने।" ओमी गुर्रा पड़ा।
"निहत्थे बन्दे को मारना कहाँ की बहादुरी है?" वालिया मुँह बनाकर बोला।
"तेरा क्या पंगा हुआ था रानी साहिबा के साथ?" ओमी ने पूछा।
"उसी हरामजादी ने पंगा लिया। मुझे बर्बाद कर दिया। अब मेरी जान के पीछे है।"
"तू जैसलमेर क्यों आया?"
"तेरी रानी साहिबा को उसके किये का जवाब देने।"
"तेरे जैसे पागल ही अपनी जान गँवाते हैं।"
"अब शनिका मुझसे डर रही है कि मैं उसको न निपटा दूँ।"
"शाम चार बजे क्या होगा?"
"याद है तुझे।" वालिया मुस्कुराया, "मुझे लगा तू भूल गया होगा।"
"क्या होगा?"
वालिया उसे देखकर मुस्कुराया और पलटकर वापस बाजार में चल दिया।
सच बात तो यह थी कि वालिया को ओमी से डर लग रहा था। वह गुस्से में आकर कभी भी उसे गोली मार सकता था। वह साये की तरह उसके पीछे लगा हुआ था। जैलसमेर ऐसी जगह भी न थी कि जहाँ कहीं छिपकर खुद को बचा सके। छिप गया तो बाहर निकलते ही सामने आ जायेगा।
वालिया ने पीछे पलट कर देखा। ओमी उसके पीछे ही था।
वालिया बाजार से बाहर आया और सड़क पर निकल गया। दोपहर के इस वक़्त, तेज गर्मी में बहुत कम।लोग आ-जा रहे थे। ऑटो नजर न आया तो पैदल ही आगे बढ़ गया।
आगे सुनसान जगह थी। दस मिनट वह पैदल चलता रहा। देख चुका था कि ओमी पीछे है।
अब वह ऐसी जगह पहुँच चुका था कि जो जगह आबादी से जरा हट कर थी। कोई भी वहाँ नजर नहीं आ रहा था। सामने दूर तक रेगिस्तान था। दूर कहीं रेगिस्तान में गुम्बद सा बना नजर आ रहा था। ओमी का चेहरा खतरनाक हो चुका था। मात्रा पाँच कदम के फासले पर वह आ ठिठका और रिवॉल्वर निकाल ली।
वालिया ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। गर्मी और डर की वजह से गला सूख रहा था।
"मुझे मत मारना। मैं तेरे से बात करना चाहता हूँ।" वालिया जल्दी से बोला।
वालिया रिवॉल्वर को सामने पाकर अपनी टाँगों में कम्पन महसूस कर रहा था। ओमी की आँखों में दरिंदगी के भाव उभरे। उसने रिवॉल्वर सीधी की।
"मेरे पास कुछ ऐसा है जिसे देखकर तू मुझे मारने का ख्याल छोड़ देगा।"
"अच्छा!" ओमी मौत भरी हँसी हँसा, "जादू का चिराग है?"
"सच में बताऊँ?" वालिया के चेहरे पर भय स्पष्ट नजर आने लगा था।
ओमी रिवॉल्वर थामें उसे देखता रहा।
"दिखाता हूँ। प... पहले रिवॉल्वर नीचे कर। त... तू कहीं मुझे गोली न मार दे।"
ओमी ने कहर भरे अंदाज में रिवॉल्वर नीचे किया। वालिया ने बिजली की सी तेजी से जेब से रिवॉल्वर बाहर निकाला। उसकी तरफ हाथ उठाया। ओमी चौंका। उसका रिवॉल्वर वाला हाथ उसकी तरफ उठता चला गया।
दो पलों में ही दोनों ने एक-दूसरे पर रिवॉल्वरें तान रखी थीं। एक साथ दो गोलियाँ चलने की आवाज आयी।
वालिया की टाँगें काँप रही थी। गोली चलते ही वह काँपती टाँगों पर खड़ा न रहा सका और नीचे तो बैठता चला गया जो कि उसके लिए फायदे की बात हुई। उसकी चलाई गोली ओमी के छाती पर लगी और ओमी के रिवॉल्वर से निकली गोली वालिया के बालों को गर्म हवा देती निकल गयी थी।
ओमी तो तीव्र झटका लगा और वह पीठ के बल नीचे गिरा। रिवॉल्वर उसके हाथ से छूट गयी थी। ओमी धोखा खा गया था। उसने सोचा वालिया के पास रिवॉल्वर नहीं होगी। ऊपर से वालिया खुद को निहत्था बता रहा था। इसी चक्कर में वह धोखा खा गया था। वरना ओमी इस तरह सामने वाले से पिछड़ने वाला नहीं था।
वालिया को ऐसा लग रहा था जैसे उसकी जान निकल गयी हो।
यह सब पहले कभी उसके साथ नहीं हुआ था। उसकी टाँगें और हाथ अभी भी काँप रहे थे। रिवॉल्वर हाथ में दबी थी। धूप और आवेश में उसका चेहरा सुर्ख पड़ा हुआ था। गहरी-गहरी साँसें लेते उसने ओमी को देखा। ओमी उसे हिलता दिखा। उसका हाथ अपनी खून से सनी छाती पर था।
वालिया रेत में ही घुटनों के बल चला और ओमी के पास आ पहुँचा। ओमी की आँखें खुली थीं। दोनों की नजरें मिली।
"तू जीत गया।" ओमी के होंठों से मध्यम सी आवाज निकली, "मैं हार गया।"
वालिया उसे देखता रहा।
"मुझे बचा ले।" ओमी के होंठों से मध्यम सा स्वर निकला, "डॉक्टर के पास ले चल।"
वालिया ने नजरें उठाकर हर तरफ देखा। आबादी कुछ दूर थी। इस दोपहरी में रेगिस्तान सुनसान पड़ा नजर आ रहा था।
"मैं जाऊँगा। मुझे बचा ले।" ओमी ने क्षीण स्वर में कहा।
"तू अभी मरा नहीं।" वालिया के होंठों से कंपकंपाता स्वर निकला, "तू मुझे मारने आया था।"
"मुझे बचा लो।"
वालिया ने एक बार फिर हर तरफ देखा। उसके बाद रिवॉल्वर की नाल ओमी के कनपटी पर रखी।
"नहीं, मत मार मुझे। मैं... मैं...।"
वालिया ने ट्रिगर दबा दिया। तेज आवाज के साथ गोली ओमी के सिर में प्रवेश कर गयी।
ओमी के सिर को झटका लगा और चेहरा दूसरी तरफ घूम गया। वह मर गया था। उसकी आँखें अभी तक खुली पड़ी थी। वालिया उसके पास से उठा। रिवॉल्वर जेब में डाली और लड़खड़ाती टाँगों से आबादी की तरफ बढ़ गया।
■■■
शाम हो रही थी। साढ़े चार बज चुके थे। शनिका ने बेहाल साड़ी पहनी। कुछ देर पहले ही वह अपने काफिले के साथ एक चुनावी पड़ाव में पहुँची और ठंडा पानी पिया। फिर एक पंखे के सामने कुर्सी पर जा बैठी। यह पड़ाव सड़क के किनारे था। छोटा सा तम्बू लगा रहा था।
वह पंखा भी गर्मी को खास कम नहीं कर पा रहा था। तभी एक आदमी कोल्ड ड्रिंक ले आया।
शनिका ने दो घूँट भरे। हाथ में थमे मैले हो रहे रुमाल से चेहरे का पसीना पोंछा। फिर कोल्ड ड्रिंक खत्म करके फोन निकाला और ओमी का नम्बर मिलाने लगी। दूसरी तरफ बेल होती रही परन्तु ओमी की तरफ से बात नहीं की गई।
शनिका ने दो-तीन बार ओमी का नम्बर मिलाया। हर बार यही हाल रहा।
तभी राम सिंह पास आकर बोला-
"रानी साहिबा, हम दस मिनट में यहाँ से चल देंगे।"
"आज की सारी जगह तो खत्म हो गयी। तुमने ही तो अभी कहा था।" शनिका बोली।
"जी वह अभी-अभी पता चला है कि अगले चौराहे पर घण्टों से हमारे कुछ कार्यकर्ता और बाजार वाले आपके स्वागत के लिए खड़े हैं। दस मिनट के लिए वहाँ जाना जरूरी है।" राम सिंह ने कहा।
"ठीक है। इसके बाद मैं वापस बंगले में जाऊँगी। इतनी धूप में मुझे घूमते रहने की आदत नहीं है।"
"जी, आज के दिन के लिए वह आखिरी जगह है।"
तभी सामने सड़क पर एक कार आकर रुकी और एक युवक तेजी से बाहर निकला। उस के हाथ में तीन-चार बड़े-बड़े पोस्टर थे। वह तेजी से शनिका की तरफ आने लगा।
शनिका की निगाह भी उस पर जा टिकी थी। वह पास आते ही बोला-
"यह देखिए रानी साहिबा। चूड़ासिंह ने आपको बदनाम करने को कितनी नीच हरकत की है।"
उसने शनिका को पोस्टर थमाए। पोस्टरों पर निगाह पड़ते ही शनिका सन्न रह गयी। पोस्टर उसकी और वालिया की शादी की थी। दूसरा भी, जिसमें वह मेहमानों के साथ, वालिया के साथ खड़ी थी।
तीसरा उसकी हनीमून की तस्वीर का था, जिसमें वह वालिया से चिपकी हुई थी।
हर पोस्टर के नीचे तारीख और साल लिखा था। शनिका ठगी सी रह गयी।
वालिया ऐसा भी कर सकता है, यह तो उसने सोचा भी न था। शादी की तस्वीरों को तो वह पूरी तरह भूल चुकी थी। वालिया उसे बर्बाद करने के लिए चूड़ासिंह से जा मिला था। तभी तो वह आज उस गली में दिखा था, जिस गली में चूड़ासिंह का कार्यालय है। वालिया ने उसे बर्बाद करने में कोई कसर न छोड़ी थी।
प्रेम को तो वह समझा लेगी परन्तु जनता को समझाना आसान नहीं था।
वालिया कब उसके लिए खतरा बनना शुरू हो गया था। चुनाव की बात तो अलग थी, इन पोस्टरों से उसकी बनी-बनाई इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। गलती उसकी है जो उसने वालिया को कम समझा।
शनिका के दाँत भिंचते चले गए। भँवरा और अन्य कार्यकर्ता भी पास आ गए थे।
"यह तो बहुत गलत किया चूड़ासिंह ने रानी साहिबा।" राम सिंह बोला, "ऐसे नकली पोस्टर छापकर वह आपको बदनाम कर रहा है।"
शनिका ने गुस्से में भरी साँस ली।
"रानी साहिबा!" भँवरा ने खतरनाक स्वर में कहा, "आप कहें तो चूड़ासिंह को साफ कर दूँ?"
"नहीं। ऐसा कोई काम नहीं करना।" शनिका ने गुस्से से भरे स्वर में कहा, "चुनाव में ऐसा कोई काम नहीं होना चाहिए।"
"लेकिन उसने गलत हरकत...।"
"इस बारे में भी देख लेंगे। तुम लोग जवाबी पोस्टर तैयार करो। यह तस्वीरें झूठी हैं, नकली हैं। चूड़ासिंह नीचता भरी चाल चल कर जनता को अपनी तरफ करना चाहता है। सुमेर से कह दो, वह जवाबी हमले के पोस्टरों को तैयार कर देगा।"
"ठीक है रानी साहिबा।" भँवरा ने कहा।
"आपकी तस्वीर के साथ यह किसकी तस्वीर है?" रामसिंह ने पूछा।
"यह तो वही है जिससे आप कल कार में बैठकर बातें करती रही थी।" एकाएक भँवरा कह उठा।
"इसे भूल जाओ। यह मेरा दुश्मन है जो कि चूड़ासिंह से जा मिला है। यह तस्वीरें झूठी हैं।" शनिका गुर्रा उठी।
"मैं समझ गया रानी साहिबा।"
"सुमेर से कहना कि हमें चूड़ासिंह पर पलटवार करना है। बहुत अच्छे जवाब का पोस्टर तैयार करे।" कहने के साथ ही शनिका कुर्सी से उठ खड़ी हुई, "चूड़ासिंह चुनाव जीतने के लिए बुरी हरकतों पर उतर आया है तो हमें मुँह तोड़ जवाब उसे देना होगा।"
"ऐसा ही होगा रानी साहिबा।"
"अब मैं बंगले पर जाऊँगी; और भी कहीं जाने का मन नहीं है।" शनिका का चेहरा गुस्से से सुलग रहा था।
■■■
देवली, प्रेम के कमरे में पहुँची। प्रेम व्हील चेयर पर बैठा था। उसे देखकर मुस्कुराया। देवली भी मुस्कुरायी।
"लंच ले लिया?" पास पहुँचकर देवली ने प्यार से पूछा।
"हाँ!" प्रेम की निगाह उसके चेहरे पर थी, "तुम बहुत अच्छी हो।"
"अब मजाक भी करने लगे।" देवली हँसी।
"सच में। वामा भी बहुत अच्छी थी। परन्तु शनिका ने मेरे अक्ल पर पर्दा डाल दिया था। मैं अपना अच्छा-बुरा न समझ सका।"
"तुम्हें अपनी गलती का अहसास है, यही बहुत है।" देवली गंभीर स्वर में बोली।
"मैं शनिका के जाल से निकलना चाहता हूँ।" प्रेम ने दुख भरी साँस ली।
"मैं निकाल दूँगी। वह बचेगी नहीं। उसने मेरी बहन हो मारा है। उसकी खास सहेली बनकर उससे दगा किया है। अपनी पहचान वाले से मैं कह चुकी हूँ कि वह शनिका को खत्म कर दे।"
"ओह!" प्रेम बेचैन हुआ, "चुनावी माहौल में यह सब करना ठीक नहीं होगा।"
"मेरे ख्याल में यह वक़्त अच्छा है। हर कोई यह समझेगा कि चुनाव के चक्कर में शनिका की जान गई।"
प्रेम, देवली को देखता रहा, फिर बोला-
"क्या कोई और रास्ता नहीं है शनिका से पीछा छुड़ाने का?"
"मुझे तो नहीं पता। तुम्हें पता हो तो बता दो।" देवली ने मुस्कुरा कर उसे देखा।
"वह जीते जी पीछा नहीं छोड़ेगी।" प्रेम ने बेचैनी से कहा।
देवली कुर्सी पर बैठते कह उठी-
"उस दिन क्या हुआ था, जब वामा मरी? कैसे किया था तुम दोनों ने?"
"रहने दो। वह वक़्त मुझे याद मत दिलाओ।"
"प्लीज, मुझे बताओ प्रेम। मैं जानना चाहती हूँ।" देवली ने आग्रह भरे स्वर में कहा।
प्रेम ने व्हील चेयर के पहियों को घुमाया और खिड़की के पास जा पहुँचा। बाहर दूर तक तम्बू लगे नजर आ रहे थे। लोग खाना खा कर जा रहे थे। कार्यकर्ता बर्तन समेटने में लगे थे। शोर पड़ रहा था। देवली उठकर प्रेम के पास आ गयी। उसके कंधों पर हाथ रखा।
प्रेम बाहर ही देखता रहा।
"वह सब कैसे किया था प्रेम?" देवली उसके सिर के बालों में हाथ फेरने लगी थी।
"उस दिन।" प्रेम धीमे स्वर में बोला, "बहुत गर्मी पड़ रही थी। एक दिन पहले ही शनिका प्लान के मुताबिक मेहमान बनकर यहाँ आयी थी। वामा उसके आने पर बहुत खुश थी। दोनों की बातें ही खत्म न हो रही थी। परन्तु शनिका का और मेरा प्लान तो बन चुका था। अगले दिन दस बजे हम लोग नाश्ते की टेबल पर मिले। शनिका रेगिस्तान घूमने को कहने लगी। यह हमारे प्लान का हिस्सा था। वामा ने समझाया कि इतनी गर्मी में रेगिस्तान में जाना ठीक नहीं। परन्तु शनिका तो अपनी जिद पर अड़ी थी। आखिरकार हम तीनों, तीन ऊँटों पर दोपहर बारह बजे घूमने निकले। ऊँटों पर छाते लगे थे, जिससे थोड़ी-बहुत धूप और गर्मी से बचत हो रही थी।"
प्रेम खामोश हो गया। देवली उसके सिर पर हाथ फेरती कह उठी-
"फिर?"
"हम रेगिस्तान के भीतर पहुँच गए। इस गर्मी में दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। तब हमने वामा को ऊँट से उतारा और मार दिया।" प्रेम ने गंभीर स्वर में कहा।
"कैसे मारा?"
"गला घोंटकर। मैंने उसका गला घोंटा और शनिका ने उसके हाथ-पाँव जकड़ लिए। वह बहुत बुरा दिन था मेरे लिए। उसके बाद उसके ऊँट को छोड़कर हम वापस आ गए।"
देवली ने आँखें बंद कर ली। उसका हाथ प्रेम के सिर पर फिरता रहा।
"वह बहुत तड़पी होगी तब?" देवली बोली।
"हाँ!"
"उसने कुछ कहा भी होगा?"
"वह मुझे कह रही थी कि प्रेम मुझे छोड़ दो। मुझे क्यों मार रहे हो। मैं उसे कैसे कहता कि शनिका ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है, जिसकी वजह से उसे मारना पड़ा।" प्रेम ने अफसोस भरे स्वर में कहा।
"उसे मारते हुए तुम क्या सोच रहे थे प्रेम?"
"यही कि वह जल्दी से मर जाये और मैं शनिका से शादी कर लूँ।" कहने के साथ ही प्रेम ने व्हील चेयर घुमाई और देवली को देखते कह उठा, "यह सब बातें मत करो। मुझे तकलीफ होती है।"
"मैंने तो यूँ ही वक़्त बिताने के लिए...।"
"शनिका की कोई बात बताओ।" प्रेम ने बातों का रुख मोड़ा।
"कुछ भी नहीं है बताने को।" देवली हँसी, "जो होता है वह तुम्हें बता ही देती हूँ।"
प्रेम देवली के मुस्कुराते चेहरे को देखता रहा फिर बोला-
"वह वक़्त कितना अच्छा होगा जब हम दोनों शादी कर लेंगे।"
"बहुत मजा आएगा तब।" देवली ने मुस्कुराकर उसके गालों को थपथपाया, "चलती हूँ। कई काम है मुझे।"
"रात को आना भूलना मत।" प्रेम ने जल्दी से कहा।
"इतने बेसब्र मत बनो। अब हम दोनों जल्दी ही शादी करने वाले हैं।" देवली हँस पड़ी।
■■■
देवली ने अपने सर्वेंट क्वार्टर वाले कमरे में पहुँचकर, अजय वालिया को फोन किया।
बात हो गयी।
"ठीक हो?"
"हाँ!" वालिया के गहरी साँस लेने की आवाज कानों में पड़ी।
"बहुत लंबी साँसें ले रहे हो।" देवली ने शोख स्वर में कहा।
"मैंने ओमी को मार दिया।"
देवली के शरीर में कँपकँपी दौड़ती चली गयी। फोन थामे हाथ में भी कंपन हुआ।
"क... क्या?" देवली के होंठों से निकला, "ओ... ओमी को...।"
"मार दिया।"
"क... कैसे?"
"वह मुझे गोली मारने जा रहा था, लेकिन... लेकिन पहले मैंने गोली चला दी। उसकी चलाई गोली मेरे सिर के पास से निकली। मैं बहुत बुरा बचा।" अजय वालिया की आवाज कानों में पड़ी।
देवली ठगी सी रह गयी। उसके होंठों से कोई शब्द न निकला।
"देवली!"
"म... मुझे यकीन नहीं हो रहा।"
"मुझे भी नहीं हो रहा कि मैंने उसे मारा है। तुमने रिवॉल्वर मुझ तक पहुँचा कर अच्छा किया।"
"ओह!" देवली की अनियंत्रित साँसें चलने लगीं, "बहुत जल्दी यह सब हो गया। वह तुम्हें कहाँ मिला?"
उधर से वालिया ने सारी बात बताई।
"तुम्हारे लिए खतरा बढ़ गया है अजय...।"
"अब मुझमें हिम्मत आती जा रही है। मेरे पास रिवॉल्वर है।" वालिया का स्वर कानों में पड़ा।
"रिवॉल्वर ही सब कुछ नहीं होता।"
"रिवॉल्वर बहुत कुछ होता है। आज मुझे रिवॉल्वर की ताकत का अहसास हुआ है।"
देवली ने गहरी साँस ली। वह बेचैन दिखने लगी थी।
"अब तुम कहाँ हो?"
"होटल में।"
होटल से ज्यादा बाहर मत निकलना। शनिका तुम्हें खत्म करने की हर सम्भव कोशिश करेगी।"
"मैं समझता हूँ कि अब मेरे लिए खतरा ज्यादा हो गया है, लेकिन ओमी की मौत से शनिका को भी तकलीफ होगी।"
"बहुत तकलीफ होगी। रात को ओमी उसके पति के सारे काम करता था।"
"मैं भी चाहता हूँ कि उसे तकलीफ हो।"
"तुम ज्यादा बाहर मत निकलना। होटल में ही रहना।" देवली ने जैसे उसे याद दिलाया।
"तुमने वहाँ रहकर अब तक क्या किया?" उधर से वालिया ने पूछा।
"मेरी बहन वामा को प्रेम और शनिका ने ही मारा था।" देवली सर्द स्वर में कह उठी, "मैं जान चुकी हूँ। अब आगे जो भी करूँगी, तुम्हें पता चल जाएगा।"
"खुद को खतरे में मत डाल लेना।"
"कब फोन बंद करो अजय। कोई आ रहा है। मैं फिर बात करूँगी।" कहकर देवली ने फोन बंद कर दिया।
देवली के चेहरे पर सोच के भाव नजर आ रहे थे। वह गंभीर नजर आ रही थी। फिर देवली वापस प्रेम के पास पहुँची। उसे पुनः आया देखकर प्रेम उसे देखने लगा।
"तुम्हें खुशखबरी देने आई हूँ।" देवली ने धीमे किंतु गंभीर स्वर में कहा।
"गंभीर होकर तुम खुशखबरी देने को कह रही हो।" प्रेम मुस्कुरा पड़ा।
"ओमी को मार दिया गया है।"
"क्या?" प्रेम चौंका।
"शनिका को ओमी की मौत की खबर सुनकर बहुत तकलीफ होगी।" देवली ने कहा।
"लेकिन... लेकिन उसे किसने मारा?"
"उसी ने जिसने शनिका पर घात लगाएगा।" देवली झूठ बोली, "ओमी उसके हाथ लगा तो उसने ओमी को मार दिया।"
"ओह!" प्रेम गंभीर दिखने लगा।
"खुशखबरी पाकर तुम भी गंभीर नजर आने लगे।" देवली मुस्कुरायी।
प्रेम ने गहरी साँस ली।
"शनिका को वह कभी भी मार सकता है।" देवली बोली।
"यह काम जितनी जल्दी हो जाये, उतना ही अच्छा है।" प्रेम गंभीर था।
"मुझ पर भरोसा रखो। यह काम जल्दी ही होगा।"
"अभी शनिका लौटी तो नहीं?"
"नहीं। वह अभी वापस नहीं आयी।"
देवली कमरे से बाहर आ गयी। उसने जगत पाल को फोन किया।
"बोल मेरी जान। तेरे तो दर्शन ही दुर्लभ हो गए हैं।" जगत पाल की आवाज कानों में पड़ी।
"क्या किया तूने अभी तक?"
"कुछ नहीं। शनिका को कई बार फोन किया, परन्तु उसका फोन हर बार बन्द ही मिला।"
"चुनाव प्रचार के दौरान उसने फोन बंद रखा होगा। वैसे तेरे से बढ़िया तो वालिया ही रहा।"
"क्या तीर मार दिया उसने?"
"शनिका का खास आदमी ओमी। शनिका के कहने पर वालिया को मारने निकला था परन्तु वालिया ने उसे मार दिया।"
"उसी रिवॉल्वर से?"
"हाँ!"
"तो यह क्यों भूलती हो कि रिवॉल्वर मैंने ही उस तक पहुँचाई थी।" जगत पाल हँसकर कह उठा।
"तू भी काम जल्दी कर। शनिका को साफ करेगा तो जल्दी ही कानपुर रवाना हो जायेंगे।"
"तूने तो जगतू का दिल खुश कर दिया।"
"शाम को फोन करना शनिका को। मेरे ख्याल से तब तक वह अपना फोन चालू कर देगी।"
"मैं तो यह काम निपटा दूँगा। पर तूने को उस प्रेम का भी इंतजाम...।"
"उसकी चिन्ता छोड़ दे। समझ उसका काम हो गया।"
■■■
शनिका बंगले में पहुँची तो शाम के पाँच बज रहे थे। वह सीधी प्रेम के पास पहुँची। चेहरे पर गुस्सा भरा हुआ था। हाथ में तह किये पोस्टर थे।
प्रेम व्हील चेयर पर बैठा अखबार पढ़ने में व्यस्त था। उसने नजर उठाकर शनिका को देखा तो उसके चेहरे पर क्रोध पाकर उसका दिल धड़का कि कहीं उसे सब कुछ पता तो नहीं चल गया।
"पिछले इलेक्शन में तुमने उसे चुनाव जीताने के लिए उसकी भरपूर मदद की थी।" शनिका गुर्रायी।
प्रेम ने मन ही मन चैन की साँस ली कि सब ठीक है।
"चूड़ासिंह की बात कर रही हो?"
"उसी की।" शनिका के दाँत भिंच गए और पोस्टर उसे थमाती बोली, "देख लो कि तुम्हारे अहसान का बदला कैसे चुकाया है उसने। तुम्हारी जरा भी परवाह नहीं की। गन्दे तरीके से मुझे बदनाम करने में लगा है। यह पोस्टर पूरे जैसलमेर में लग चुके हैं। चूड़ासिंह से तुम्हारी पहचान है। उससे पूछो कि यह सब करने की उसकी हिम्मत कैसे हुई?"
प्रेम ने पोस्टर देखे। उसके माथे पर बल पड़े।
"यह तुम्हारे साथ कौन है?"
"क्या तुम अभी भी नहीं समझे कि यह कैमरा ट्रिक है। इस तरह वह मुझे बदनाम करके हरा देना चाहता है।"
"चूड़ासिंह ऐसा नहीं कर सकता।" प्रेम के होंठों से निकला।
"क्यों?" शनिका गुर्रायी।
"वह झूठ का खेल नहीं खेलता। सच्चा इंसान है वह।"
"तो फिर यह क्या है? क्या मैंने एक और शादी कर ली है? इन पोस्टरों से तो यही जाहिर है।" शनिका चीखी।
"चूड़ासिंह ने बहुत घटिया खेल खेला है जीतने के लिए। वह ऐसा करेगा मैं सोच भी नहीं सकता था।"
"उसे फोन करो। बात करो उससे कि यह गन्दा खेल बन्द करे।" शनिका बेहद क्रोध में थी।
प्रेम ने शनिका के चेहरे को देखा।
"मैंने कहा है उसे फोन करो।"
"वह मेरा फोन रखा है। चूड़ासिंह का नम्बर मिलाकर मुझे दो।" प्रेम बोला।
शनिका ने ऐसा ही किया। प्रेम ने चूड़ासिंह से बात की।
"कैसे हो चूड़ासिंह?" प्रेम ने उसकी आवाज सुनते ही कहा।
"ओह, प्रेम साहब!" उधर से चूड़ासिंह की आवाज कानों में पड़ी।
"तुमने चुनाव जीतने के लिए बहुत गलत चाल खेली।"
शनिका गुस्से से प्रेम को देखे जा रही थी।
"आप पोस्टरों के बारे में कह रहे हैं?"
"हाँ!"
"वह पोस्टर सच है प्रेम साहब।" चूड़ासिंह का गंभीर स्वर कानों में पड़ा।
"तो तुम्हें हर हाल में चुनाव जीतने का लालच लग गया।" प्रेम सख्त स्वर में बोला।
"मेरा यकीन करें वह पोस्टर है। मेरे पास नेगेटिव्स हैं। दो महीने पहले आपकी पत्नी ने मुंबई में अजय वालिया नाम के बिल्डर के साथ शादी की। अजय वालिया इस वक़्त जैसलमेर में है। आप चाहें तो उससे मिल सकते हैं। भेजूँ क्या उसे आपके पास? मैंने पूरी तसल्ली करने के बाद ही यह कदम उठाया है। आपकी पत्नी ने दीपचन्द की खातिर अजय वालिया को बर्बाद किया। जो मैं कह रहा हूँ उसके सबूत हैं मेरे पास।" चूड़ासिंह की आवाज में विश्वास भरा था।
प्रेम ने शनिका से कहा-
"तुम दो महीने अमेरिका में लगाकर आई थी?"
"हाँ!" शनिका ने भिंचे स्वर में कहा।
प्रेम ने फोन पर चूड़ासिंह से कहा।
"शनिका अमेरिका में थी, तब की बात कर रहे हो तुम।"
"आप मेरे साथ मुम्बई चलिए प्रेम साहब। मैं आपको अपनी कही बात का विश्वास दिलाया दूँगा।"
प्रेम ने फोन बंद कर दिया।
"क्या कहता है वह?" शनिका के होंठ भिंचे हुए थे।
"वह कहता है कि तुम अमेरिका में नहीं तब मुम्बई में थी। कहता है इस बात को वह साबित कर सकता है।" प्रेम ने गंभीर स्वर में कहा।
"बकवास करता है वह।" शनिका गुर्रा उठी।
"मुझे पता है कि वह बकवास करता है।" प्रेम मुस्कुरा पड़ा, "लेकिन तुम परवाह मत करो। चुनाव में इस तरह की शरारतें हो जाती हैं।"
"मैं उसे छोडूंगी नहीं। मैं...।"
"यह चुनाव का वक्त है। अभी कोई भी गलत हरकत मत करना।"
शनिका ने क्रोध में पाँव पटके।
"पता चला कि तुम्हारी और शनिका की तस्वीरें किसने भेजी थी?" प्रेम ने पूछा।
"नहीं। मैं चुनाव में व्यस्त हूँ, कैसे पता करती? लेकिन जिसने भी वह तस्वीर भेजी है, वह सामने जरूर आएगा। उसका कोई तो मकसद रहा होगा तस्वीर भेजने का, और वह मकसद उसके सामने आने पर ही पूरा होगा।"
"मैं सोचता हूँ कि तुम कितनी परेशानियों में हो।" प्रेम ने सहानुभूति जताई।
शनिका पलटी और बाहर निकलती चली गयी।
"हरामजादी।" कड़वे स्वर में प्रेम बड़बड़ा उठा।
■■■
शनिका नहा-धोकर बाथरूम से निकली। उसने गाउन पहना हुआ था। अब उसके चेहरे पर आराम के भाव थे। आँखों में हल्का नशा सवार था। बाथरूम में जाने से पहले, वह वाइन का आधा गिलास पी गयी थी। बाहर आकर उसने गीले बालों को झटका दिया और उन्हें पीछे करती कुर्सी पर आ बैठी। गिलास उठाकर घूँट भरा। फिर फोन उठाकर ओमी के नम्बर मिलाए। परन्तु उधर बेल होती रही, फोन नहीं उठाया गया।
"कहाँ मर गया ओमी?" शनिका बड़बड़ा उठी।
तभी देवली ने भीतर प्रवेश किया। उसके हाथ में पनीर के पकोड़े की प्लेट थी जिसे वह शनिका के सामने रख दी। शनिका ने उसे देखा फिर कह उठी-
"हरिया से बोल कि मैं मुर्गा खाऊँगी। आज पेट भर के पिऊँगी।"
"जी रानी साहिबा।" देवली तुरंत बाहर निकल गयी।
इसी पल शनिका का फोन बजा।
"हेलो!" शनिका ने बात की। वह सोच रही थी कि ओमी का फोन होगा।
"नमस्कार रानी साहिबा।" उधर से जैसलमेर के ए०सी०पी० डोरे की आवाज कानों में पड़ी।
"ओह, डोरे साहब!" शनिका मुस्कुरायी, "कैसे हैं आप?"
"आपकी मेहरबानी से अच्छा हूँ। दो बुरी खबरें आपको देना चाहता हूँ।"
"क्या?"
"आपके खास आदमी वासु और ओमी की लाशें मिली हैं।"
"ओमी की लाश?" शनिका अचकचाई।
"जी। वासु की लाश से तो पता चलता गई कि उसकी हत्या कल की गई परन्तु ओमी को आज ही मारा गया है।"
"कैसे?"
"उसे रिवॉल्वर की दो गोलियाँ लगी हैं। एक छाती पर, दूसरी कनपटी पर।"
शनिका के दाँत भिंच गए।
"यह हत्याएँ किसके नाम दर्ज करूँ?" उधर से कमिश्नर डोरे ने पूछा।
"आपने तो मुझे परेशान कर दिया कमिश्नर साहब।"
"मेरे ख्याल में यह हत्याएँ आपके चुनाव से वास्ता रखती हैं।"
"पता नहीं। मैं आपसे फिर बात करूँगी। इस वक्त...।"
"चूड़ासिंह ने आज आपकी शादी के पोस्टर शहर भर में लगवाए हैं। दूल्हा प्रेम साहब न होकर कोई दूसरा है।"
"चूड़ासिंह बेवकूफ है। वह सोचता है कि ऐसा करके वह जनता को अपनी तरफ कर लेगा। जबकि सब जानते हैं कि पाँच साल से मैं प्रेम की पत्नी हूँ। चूड़ासिंह की चाल सफल नहीं होगी।"
"मेरे लिए तो सब बराबर है। जो जीतेगा उसे सलाम मारना पड़ेगा।"
शनिका ने फोन बंद कर दिया। उसके चेहरे पर ओमी की हत्या की बात सुनकर परेशानी के भावों की बढ़ोतरी हो गयी थी।
तो ओमी अजय वालिया को नहीं मार सका। वालिया ने उसे मार दिया।
वालिया के पास रिवॉल्वर है?
शनिका दाँत पीस उठी। उसे लग रहा था कि आज का दिन बहुत खराब है। उसने गिलास उठाया और एक ही साँस में खत्म कर दिया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि ओमी मर गया। तभी देवली ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा-
"रानी साहिबा, हरिया कहता है कि मुर्गा आधे घण्टे में तैयार हो जाएगा।"
शनिका का चेहरा गुस्से से भरा हुआ था।
"मुझसे कोई गलती हो गयी रानी साहिबा?" देवली बड़बड़ा कर बोली।
"ओमी को मार दिया किसी ने।" शनिका ने दाँत भींचे।
"क्या? मार दिया किसी ने? आज सुबह ही तो मैंने उसे देखा था। वह ठीक था।" देवली घबराकर बोली।
"मैं जानती हूँ उस कमीने को।" शनिका गुर्रा उठी, "छोडूँगी नहीं, उस हरामी को।"
"मत छोड़ना।" देवली गुस्से से बोली, "मेरी तरफ से भी एक थप्पड़ लगा देना।"
"गिलास भर।" शनिका की आँखों में नशा मंडराने लगा था। उसने फोन उठाया और रामसिंह के नम्बर मिलाने लगी।
देवली गिलास उठाकर बारनुमा अलमारी की तरफ बढ़ गयी।
शनिका ने रामसिंह से बात की।
"ओमी मर गया रामसिंह।"
"यह आप क्या कह रही हैं?" उधर से रामसिंह का हैरानी भरा स्वर कानों में पड़ा, "यह कैसे हो सकता है?"
"ओमी मर गया।" शनिका की आवाज में नशे के भाव का अहसास हो रहा था।
"कैसे?"
"उसने मार दिया जो पोस्टर में मेरे साथ है। समझ गया न?"
"हाँ समझा।" रामसिंह की आवाज में कठोरता आ गयी।
"अजय वालिया नाम है उसका। जैसलमेर में ही है वह। तू उसे ढूँढ और मार दे उसे।"
"ठीक है रानी साहिबा।"
"उसके पास रिवॉल्वर है। ओमी उसे मारने गया था लेकिन खुद ही मारा गया।"
"इस बार वह रिवॉल्वर नहीं चला पायेगा।"
"जल्दी मार उस हरामी को।" शनिका ने कहा और फोन बन्द करके रखा।
तब तक देवली वाइन का गिलास तैयार कर लायी थी। शनिका ने गिलास थामकर घूँट भरा और बोली-
"तू कितनी सुखी है मुन्नी।"
"जी रानी साहिबा।" देवली बोली।
"मेरे पास सब कुछ है, फिर भी परेशानियों से घिरी रहती हूँ। मुझे चुनाव का टंटा नहीं पालना चाहिए था।" शनिका की आँखों में नशे के लाल डोरे आ ठहरे थे, "बहुत पैसा है मेरे पास। मुझे आराम से जिंदगी बितानी चाहिए।"
"परेशान मत होइए रानी साहिबा। सब ठीक हो जाएगा।"
"वालिया मेरे पीछे पड़ चुका है, वह जरूर कुछ करके रहेगा।"
"मैं समझी नहीं। आप किसकी बात कर रही हैं?" देवली कह उठी।
शनिका ने कुछ नहीं कहा और घूँट भर कर बोली-
"जा देख। हरिया मुर्गा तैयार कर रहा है या नहीं?"
तभी फोन बजा।
"हेलो!" शनिका ने बात की।
"वह तस्वीर तो मिल गयी होंगी?" जगत पाल की शांत आवाज कानों में पड़ी।
शनिका बुरी तरह चौंकी।
"तुम... कौन हो तुम?"
"नाम में क्या रखा है? काम की बात की जाए तो बढ़िया रहेगा शनिका देवी!"
"क्या चाहते हो?"
"पहले यह जान लो कि मैं क्या जानता हूँ।"
"क्या जानते हो?" शनिका के चेहरे पर व्याकुलता आ गयी थी।
"मैं जानता हूँ कि वामा को तुमने और प्रेम ने मारा है।"
"क्या बकवास कर रहे हो।" शनिका गुर्रा उठी।
"मेरे पास उस वक्त की तस्वीरें भी हैं।"
"यह नहीं हो सकता।"
"मेरे पास तस्वीर है तो क्यों नहीं हो सकता?" दूसरी तरफ से जगत पाल हँसा।
"तस्वीर नहीं हो सकती।" शनिका चीख पड़ी, "उस वक्त वहाँ पर कोई नहीं था।"
जगत पाल के हँसने की आवाज आई। शनिका गुर्रा उठी। उसका चेहरा गुस्से से तप उठा था।
"कौन हो तुम?"
"मिलोगी मुझसे?"
"हाँ, मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ। तुम मेरे पास आ जाओ।" शनिका गहरी-गहरी साँसें लेने लगी।
"नहीं रानी साहिबा! मैं तो नहीं आऊँगा आपके पास। आना तो आपको ही पड़ेगा।"
"कहाँ आऊँ?"
"कल बताऊँगा। मुझे कोई जल्दी नहीं है आपसे मिलने की।" जगत पाल की आवाज में कोई भाव नहीं था, "सुना है आपके पास बहुत दौलत है। तगड़ा माल है?"
"क्या चाहते हो?"
"सिर्फ पाँच करोड़। बदले में अपना मुँह बन्द रखूँगा कि वामा की हत्या आपने और प्रेम साहब ने की।"
"यह बातें मिलकर होंगी।" शनिका के होंठ भिंचते चले गए।
"तो मैं कल फोन करूँगा।" कहने के साथ ही जगत पाल ने उधर से फोन रख दिया था।
शनिका ने फोन रख दिया। गिलास उठाकर घूँट भरा। उसके चेहरे पर नशा था। उसने देवली को देखा।
"तू अभी तक गयी नहीं? जा देख मुर्गा तैयार हुआ कि नहीं?"
देवली बाहर निकलती चली गई।
"कौन हो सकता है यह?" शनिका बड़बड़ा उठी।
कुछ देर बाद शनिका अपने कमरे से निकली और प्रेम के कमरे में जा पहुँची। टाँगों में हल्की सी डगमगाहट थी। प्रेम बेड पर टेक लगा मैगज़ीन पढ़ने में व्यस्त था। उसने नजर हटाकर शनिका को देखा।
"तुमने...।" शनिका कह उठी, "किसी को बताया है वामा की मौत के बारे में?"
प्रेम के माथे पर बल पड़े।
"क्या कहना चाहती हो?"
"जिसने वह तस्वीर कूरियर से भेजी, उसका फोन आया था अभी।"
"तो?"
"वह पाँच करोड़ माँग रहा है मुँह बन्द रखने के।"
"मुँह बन्द?" प्रेम की निगाह शनिका पर थी।
"वामा के बारे में।" शनिका खा जाने वाले स्वर में बोली, "तुमने किसी को बताया। तभी तो बात बाहर गयी।"
"बकवास मत करो।" प्रेम के चेहरे पर उखड़े भाव आ ठहरे, "तुमने किसी के सामने मुँह खोला होगा जो...।"
"मैं क्या बेवकूफ हूँ जो...।"
"तो मैं तुम्हें बेवकूफ लगता हूँ?" प्रेम झल्लाया।
"तो जो बात हम ही जानते थे वह किसी और को कैसे पता चल गयी?" शनिका ने कड़वे स्वर में कहा।
"यह बात मैं भी तुमसे पूछ सकता हूँ।"
शनिका होंठ भींचे कुर्सी पर जा बैठी।
"बेहतर होगा कि इस बात को खत्म करने की कोशिश करो। वह जो है उसे पाँच करोड़ दे दो।" प्रेम ने कहा।
"बात पाँच करोड़ की नहीं है।" शनिका ने कहा, "मैं जानती हूँ कि ऐसे ब्लैकमेलरों की मांगें कभी खत्म नहीं होतीं।"
प्रेम ने कुछ नहीं कहा।
"मुझे ही इस ब्लैकमेलर का कोई इंतजाम करना होगा।"
"कूदकर किसी नतीजे पर मत पहुँचो।" प्रेम ने गंभीर स्वर में कहा, "पहले मामला पटाने की चेष्टा करो। हो सकता है कि एक बार पैसा लेने के बाद वह दोबारा पैसे की माँग न करे। पहली बार उसकी माँग पूरी कर दो और सख्ती से उसे वार्निंग दे दो कि वह दोबारा कभी ऐसी बात खड़ी न करे। उसके बाद वह फिर कभी माँग रखता है तो उसके इंतजाम के बारे में सोचते हैं।"
"मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूँ। परन्तु मैं वही करूँगी जो तुमने कहा है।" शनिका बोली।
"हम दोनों का भला इसी में है।"
"लेकिन यह बात बाहर नहीं निकलनी चाहिए थी।" शनिका ने पुनः कहा। उसकी आवाज में नशा भरभरा रहा था।
प्रेम ने गहरी साँस ली।
"साली-कुतिया।" शनिका बड़बड़ाई, "मरने के बाद भी हमें दुखी कर रखा है।"
उसकी बड़बड़ाहट सुनकर प्रेम हौले से हँस पड़ा।
"जले पर नमक मत छिड़क हँस कर।" शनिका ने गुस्से से कहा फिर बोली, "एक बात तो बताओ।"
"क्या?"
"पहले तुम अक्सर मुझसे झगड़ा करते थे कि मैं तुम्हारा ध्यान नहीं रखती, परन्तु कुछ दिनों से तुम बिल्कुल शांत हो।"
"तुम कह चुकी हो कि तुम महीना भर व्यस्त हो और मैं भी देख रहा हूँ कि तुम चुनाव में...।"
"कोई गड़बड़ तो नहीं है?"
"कैसी गड़बड़?"
"मुन्नी शानदार है, रेखा तो ऐसे ही थी।" शनिका कड़वे ढंग से मुस्कुरा पड़ी।
प्रेम ने तीखी नजरों से उसे देखा।
"और मत पीना, चढ़ने लगी है तुम्हें।"
शनिका हँस पड़ी। वह खड़ी हुई।
"मैं तो मजाक कर रही थी।"
"अगर यह मजाक था तो शर्म की बात है, और नहीं था तब भी शर्म की बात है।" प्रेम कड़वे स्वर में कह उठा।
"छोड़ो! यह बताओ कि तुम्हारी टाँगें कब लग रही है?"
"कुछ समस्या आ गयी है। कल सुबह रोडे आया था। अभी कुछ कुछ पता नहीं।"
"चलती हूँ। तुम आराम करो। उससे मैं निपट लूँगी जो पाँच करोड़ माँग रहा है।"
"पहली बार उसकी माँग जरूर पूरी करना।" प्रेम ने कहा, "हो सकता है दोबारा फिर कभी वह कोई माँग न रखे। मैं नहीं चाहता कि वामा वाली बात खुल जाए। लोग जान जायें कि उसके साथ क्या हुआ था।"
"मैं भी नहीं चाहती कि ऐसा हो।"
तभी देवली ने भीतर प्रवेश किया।
"ओह, आप यहाँ हैं रानी साहिबा। मैं आपको तलाश कर रही थी। मुर्गा तैयार है आपका।"
"चलो।" शनिका ने कहा और देवली के साथ ही बाहर निकल गयी।
"मुर्गे की खुशबू बहुत अच्छी आ रही है रानी साहिबा।"
"तू खुशबू भी सूंघ आयी।"
"मैं किचन में गयी तो साँसों में घुल गयी।" देवली ने मुस्कुरा कर कहा।
दोनों कमरे की तरफ बढ़ती जा रही थी।
"ले आऊँ रानी साहिबा?"
"अभी नहीं। पहले एक गिलास और तैयार कर।"
वे कमरे में पहुँचे। देवली गिलास उठाकर, बार नुमा अलमारी की तरफ बढ़ गयी।
"पहले एक सिगरेट पिला दे।" शनिका बोली।
देवली ने दराज से लाइटर पैकेट निकाल कर उसे दिया। सिगरेट निकालकर शनिका ने कश लिया और बोली-
"नशे में सिगरेट पीना कितना अच्छा लगता है।"
"सच रानी साहिबा।" देवली गिलास तैयार करके कह उठी।
"तू पीयेगी?"
"नहीं।"
देवली ने गिलास तैयार करके शनिका को दिया। शनिका ने घूँट भरा।
"मुन्नी, प्रेम ने कभी तेरे साथ गड़बड़ करने की चेष्टा तो नहीं की?"
"नहीं रानी साहिबा। मालिक तो बहुत शरीफ हैं।"
"शरीफ और प्रेम?" शनिका ने कड़वे स्वर में कहा, "नम्बरी हरामजादा है।"
"मुर्गा ले आऊँ रानी साहिबा?"
"ले आ!"
देवली कमरे से बाहर निकलती चली गयी।
शनिका ने कश लिया और मुँह से निकलते धुएँ के साथ खेलने लगी कि फोन बजा।
"क्या मुसीबत है?" शनिका नशे में बड़बड़ाई और फोन उठाकर कालिंग स्विच दबाते हुए कान से लगाया, "हेलो!"
"ओमी की मौत का दुख तो हुआ होगा?" अजय वालिया का स्वर कानों में पड़ा।
शनिका के चेहरे के भाव बदले। होंठ भिंच गए।
"तुम?"
"तुम्हारे मुँह से व्हिस्की की बदबू आ रही है।"
"फोन पर तुमने गन्ध सूंघ ली।" शनिका ने जहरीले स्वर में कहा, "आज तेरी किस्मत अच्छी थी कि तू बच गया। लेकिन हर बार किस्मत अच्छी नहीं होती। हो सकता है कि कल तेरी किस्मत बुरी निकले।"
"मैं तेरे को चुनाव में जीतने नहीं दूँगा।"
"उन तस्वीरों को छपवा कर, पोस्टर लगवा देने की वजह से ऐसा कहता है वालिया। मैं...।"
"यह तो शुरुआत है।"
"तू बचेगा नहीं मेरे हाथों से।" शनिका गुर्रा उठी।
"मेरे को तबाह कर दिया। यह सिर्फ खेल रहा तेरे लिए। अब तू मेरा खेल देख।"
"भाड़ में जा। मैं तेरी परवाह नहीं करती।" शनिका ने कहा और फोन बंद कर दिया।
तभी देवली हरिया के साथ भीतर आयी। वह मुर्गा ले आयी थी। हरिया चला गया।
शनिका मुर्गा खाने लगी।
"तू भी खा ले।" शनिका ने देवली से कहा। वह अब पूरी तरह नशे में आ चुकी थी।
"मैं मुर्गा नहीं खाती रानी साहिबा।"
"मुर्गा भी तू नहीं खाती, सिगरेट भी नहीं पीती। पैग ही लगा ले।"
"मैं तो बोतल की खुशबू सूंघते ही गिर जाती हूँ। पैग लगा लिया तो दुनिया घूम आऊँगी।" देवली हँसकर बोली।
मुर्गा खाते-खाते शनिका हँस पड़ी फिर बोली-
"मेरा फोन बंद कर दे। मुर्गा खाकर सोऊँगी मैं। जब जाए तो दरवाजा बंद करती जाना। तू भी खाना खाकर नींद ले लेना। सुबह उठाना मत मुझे।"
"जी रानी साहिबा।"
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