जुगल किशोर और लक्ष्मी उसी गोदाम जैसे कमरे में थे।
खिलाने-पिलाने के बाद लक्ष्मी के हाथ अभी बांधे थी जुगल किशोर ने। उसका आदमी बर्तन ले गया। लक्ष्मी का चेहरा बंधे रहने की थकान की वजह से मुरझाया हुआ था। यूँ उसकी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी।
जुगल किशोर टहलने लगा। सिगरेट सुलगा ली उसने।
लक्ष्मी नाराजगी भरी नजरों से, जुगल किशोर को देखे जा रही थी। जुगल किशोर ने लक्ष्मी को देखा तो चेहरे पर मीठी मुस्कान लाकर बोला---
"तू खूबसूरत है...।"
"मैं तेरी बातों में नहीं फंसने वाली।" लक्ष्मी ने शांत स्वर में कहा।
"मैं तेरे को फंसा नहीं रहा। सच कह रहा हूं। तू सच में हीरोइन बनने के काबिल है, थोड़ी सी पतली होनी पड़ेगी तेरे को।"
"वो मेरे को पता है।" लक्ष्मी बोली--- "मुंबई पहुंच कर मैं पतले होने का कोर्स ज्वाइन कर लूंगी।"
"ब्यूटीशियन से भी सलाह ले लेना।"
"तू मुझे मत बता। सब पता है मुझे...।"
"नाराज क्यों होती है मुझ पर?"
"तेरे से बात करना मुझे अच्छा नहीं लगता। तूने मुझे बांध रखा है।"
"वो जरूरी है। तेरे लिए जरूरी है। तेरे हाथ खुले होते तो तूने जरूर कुछ करने की कोशिश की होती... और मैंने तेरा चेहरा बिगाड़ देना था, ठोक-ठोक कर। फिर तू हीरोइन कैसे बनती? तेरे हाथ बांधकर मैंने तेरा भला ही किया है।"
"लानत है ऐसे भले पर!" लक्ष्मी मुंह बिगाड़ कर बोली।
जुगल किशोर हंसकर रह गया फिर बोला---
"मैं तेरे लिए फिल्म बना सकता हूं।"
"मेरे लिए?"
"हां। तेरे को टॉप की हीरोइन बना दूंगा। बोल, तैयार है?" जुगल किशोर ने मुस्कुरा कर कहा।
"हीरो कौन होगा?"
"जिसे तू कहेगी, उसे ही लूंगा।"
"कहानी का लेखक मोहनलाल होगा।" लक्ष्मी ने शर्त रखी।
"मानी तेरी बात।"
"डायरेक्टर टॉप का लेना। तभी फिल्म हिट हो पाएगी।"
"मेरी फिल्म में सब काम बढ़िया होंगे। एक ही फिल्म में तेरे को टॉप पर पहुंचा दूंगा।"
"बंडल तो नहीं मार रहा?"
"कसम से। बस तेरे को देखकर फिल्म बनाने का ख्याल आ गया कि हीरोइन तेरे जैसी होनी चाहिए। कितने साल हुए तेरी शादी को।"
"दस साल...।"
"कमाल है! तू तो एकदम फिट है। क्या मोहनलाल तेरे साथ ठोका-पिटी नहीं करता?"
"ठोका-पीटी?" लक्ष्मी जुगल किशोर को देखने लगी।
"वो ही जो आदमी-औरत के बीच होता है।"
"क्यों नहीं करता! उसे तो इस काम के अलावा कोई काम ही नहीं है...।" लक्ष्मी मुस्कुरा पड़ी।
"फिर तू इतनी फिट कैसे है दस साल बाद भी...।"
"अब तू मेरे को हीरोइन लेकर फिल्म बनाने वाला है--- तेरे को सच बता ही देती हूं...।"
"बता...बता...।"
"जब मेरी शादी हुई थी तो मैं पतली फट्टे की तरह थी। समझ गया ना?"
"समझा...।"
"अब जो हूं वो मोहनलाल की ही बदौलत हूं। उसी ने ठोका-पिटी करके मुझे खूबसूरत बनाया है।"
"तो ये बात है...।" जुगल किशोर ने सिर हिलाया।
"तू तो औरतों के बारे में बहुत कुछ जानता है?"
"मैंने डिग्री ले रखी है। पूरा कोर्स कर रखा है।"
"किस बात की?"
"औरतों को जानने की।"
"पहुंचा हुआ है तू...।" लक्ष्मी ने गहरी सांस ली।
"कुछ भी कह ले...।"
"ये बता, फिल्म कब शुरू करेगा?"
"एक साल बाद...।"
"एक साल बाद?" लक्ष्मी के माथे पर बल पड़े--- "तो मैं एक साल तक क्या करूंगी?"
"एक साल तू मेरे साथ रहेगी और मेरी डिग्री में एक तमगा और ठोकेगी कि मैंने एक और औरत को जान लिया है।"
"क्या कहना चाहता है तू?"
"तेरे को हीरोइन बनना है ना?"
"हां।"
"तो क्या तू मुफ्त में हीरोइन बन जाएगी? मैं मुफ्त में करोड़ों रुपए तेरे पर फेंक दूंगा? कुछ मुझे भी तो मिलना चाहिए...।"
"बड़ा कमीना है तू।" लक्ष्मी कड़वे स्वर में कह उठी--- "तेरी नियत ही खोटी है। तुझसे अच्छा तो मोहनलाल है जो बिना किसी लालच के मुझे हीरोइन बना रहा है। मेरे लिए वो फिल्म बना रहा...।"
"वो दस सालों से तेरे साथ ठोका-पिटी कर रहा है। मैंने तो सिर्फ एक साल ही...।"
"वो मेरा पति है।"
"मैं पति नहीं हूं, तभी तो एक साल करूंगा। बहुत आसान सा सौदा है। एक बार मुंबई जाकर तो देख। वहां पहले इस बारे में बात होती है, बाद में फिल्म या रोल के बारे में। कोई ऐसे ही हीरोइन नहीं बन जाती।"
"मैं ऐसे ही बन जाऊंगी। मोहनलाल मेरे को हीरोइन बनाएगा।"
"दस साल की शादीशुदा को, पब्लिक हीरोइन के रूप में स्वीकार नहीं करेगी। तेरी फिल्म नहीं चलने वाली।"
"कौन कहता है कि मैं शादीशुदा हूं? मुंबई में तो मैं इक्कीस की, कंवारी बनकर पब्लिक के सामने आऊंगी। मुझे देख कर कोई कह भी नहीं सकेगा कि मैं दस साल की शादीशुदा हूं।" लक्ष्मी ने तीखे स्वर में कहा।
"मेरे साथ एक साल रह ले, मैं बड़े बजट की फिल्म बनाऊंगा। एकदम हिट होगी फिल्म।"
"मैं मोहनलाल को नहीं छोड़ सकती।" लक्ष्मी ने गहरी सांस ली।
"क्यों?"
"वो अच्छा बंदा है। वो...।"
"अच्छे बंदे कभी भी फिल्म नहीं बना सकते।"
"इसका मतलब तू अच्छा बंदा नहीं है?"
"फिल्म बनाने के लिए मेरे जैसे लोग ही चाहिए। सारी क्वालिटी मेरे में हैं। फौजी के बस का नहीं है फिल्म बनाना।"
"मैं तेरे से फंसने वाली नहीं। सब समझती हूं। तूने फिल्म नहीं बनानी। बस मेरे से ठोका-पीटी करनी है...फिर...।"
"कसम से फिल्म बनाऊंगा।"
"ठोका-पीटी नहीं करेगा?"
"वो भी करूंगा।"
लक्ष्मी जुगल किशोर को देखने लगी। फिर कह उठी---
"ठीक है तू ठोका-पीटी कर लेना। लेकिन रहूंगी मैं मोहनलाल के साथ ही।"
"मंजूर है। अभी करें?"
"जल्दी क्या पड़ी है? पहले मुंबई चल। फिल्म शुरू कर। शूटिंग के बाद, तेरे साथ आया-जाया करूंगी।"
"इसमें तो बहुत वक्त लग जाएगा...।"
"तो तू क्यों मरा जा रहा है? जैसे काम चला रहा है, वैसे कुछ और चला ले। ये तो हीरोइन बनने की खातिर मैंने तेरे को हां कर दी, वरना मैं तो किसी को हाथ भी नहीं लगाने देती।"
"मुझे क्या पता...।" जुगल किशोर ने गहरी सांस ली--- "मेरे ख्याल में हमें शुरुआत कर देनी चाहिए।"
"बिल्कुल नहीं। पहले फिल्म शुरू कर, उसके बाद ही ये काम होगा। एकदम नई जैसी हूं मैं।"
"पक्का?"
"तो क्या मैं झूठ बोलूंगी? तारीफ नहीं कर रही अपनी चीज की। सच बता रही हूँ। तभी तो मोहनलाल मेरा दीवाना है।" लक्ष्मी सिर हिला कर कह उठी--- "जल्दी से फिल्म शुरू कर और स्वाद चख ले फुर्र-फुर्र हो जाएगा।"
"फुर्र-फुर्र--- ये क्या होता है?"
"नहीं पता तेरे को?"
"नहीं...।"
"मोहनलाल जानता है--- और वक्त आया तो तू भी जान जाएगा कि...।"
तभी जुगल किशोर का मोबाइल बजा।
"हैलो...।" जुगल किशोर ने बात की।
"मैं निजामुद्दीन स्टेशन पहुंच गया हूं।" मोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी--- "सौदा पक्का है ना? मैं तेरे को आधे डॉलर दूंगा और तू...।"
"तेरी हीरोइन को वापस कर दूंगा।"
"हां...। ये ही बात। जब तू डॉलर लेने आए तो मेरी पत्नी को साथ लाना।"
"पक्का लाऊंगा। तू डॉलर निकालकर स्टेशन के बाहर आकर मेरे को फोन कर।"
"ठीक है।"
जुगल किशोर ने फोन काट कर अन्य नंबर मिलाया उधर से कानों में आवाज पड़ते ही उसने कहा---
"मोहनलाल निजामुद्दीन स्टेशन पहुंच गया क्या?"
"हां। मैं उसके पीछे हूं...।"
"क्या आस-पास ऐसा कोई है जो उस पर नजर रख रहा हो?" जुगल किशोर ने पूछा।
"मुझे तो ऐसा कोई नहीं दिखा।"
"तूने देखने की कोशिश की या यूं ही कह रहा है?"
"कोशिश की--- पर मुझे कोई नहीं दिखा।"
"अब मोहनलाल क्या कर रहा है?"
"वो स्टेशन के भीतर जा रहा है और मैं उसके पीछे हूं...।"
"पीछे लगा रह और उसकी हरकतों की खबर मुझे देता रह। आसपास भी नजर रख।" कहने के साथ ही जुगल किशोर ने फोन बंद किया और मुस्कुराकर लक्ष्मी से कहा--- "तेरा पति तेरे को पांच करोड़ डॉलर में मुझसे खरीद रहा है। तू तो बहुत महंगी चीज है।"
"उसने मेरा स्वाद चखा है, तो वो दौलत देकर मुझे छुड़ा रहा है, तूने स्वाद नहीं चखा तो तू दौलत ले रहा है।"
"तो मुझे भी चखा दे...।"
"एक शर्त पर कि तू बिना पैसे ही मुझे छोड़ देगा।" लक्ष्मी ने कहा।
"तो मोहनलाल से क्या कहेगी कि कैसे छूटी?"
"उसे संभाल लूंगी। कह दूंगी कि मौका देख कर भाग निकली। मेरे हाथ खोल...।"
"क्यों?"
"स्वाद नहीं चखना क्या?"
"दौलत पहले औरत बाद में। तू इतनी कीमती नहीं कि पांच करोड़ डॉलर तेरे पर कुर्बान कर दूं।"
"भाड़ में जा।" लक्ष्मी कुढ़ कर बोली--- "तेरी किस्मत ही खराब है।"
"तेरे को हीरोइन नहीं बनना क्या?"
"वो मोहनलाल मुझे बनाएगा। तू मुझे किसी लायक नहीं लगता।"
"मैं तेरे को मुंबई में मिलूंगा।"
"क्यों?"
"तेरे को साईन जो करना है अपनी फिल्म के लिए। उसके बाद शूटिंग करके तू सीधा मेरे पहलू में आया करेगी।"
"सच में तू फिल्म बनाएगा? मुझे हीरोइन लेगा?" लक्ष्मी कुछ ढीली हुई।
"तेरी कसम सच में। लेकिन जिस दिन से तेरे को साईन करूं, उस दिन से मेरे पहलू में आना शुरू कर देगी।"
"ठीक है। तेरी ये बात मान ली।" लक्ष्मी ने सहमति दे दी--- "कब आएगा तू मुंबई?"
"मोहनलाल से पैसा लेकर, दस दिन बाद मुंबई पहुंच जाऊंगा। तू वहीं मिलेगी?"
"हां। अपना मोबाइल नंबर बता दे। तेरे को फोन करके पूछ लिया करूंगी कि तू पहुंचा कि नहीं। एक फिल्म तू बनाएगा, एक मोहनलाल बनाएगा। दो में से एक फिल्म तो हिट होगी ही।"
"एक चुम्मी ले लूं?"
"चुम्मी!"
"एक।" जुगल किशोर ने उसे उंगली दिखाई--- "शराफत से गालों पर।"
"कोई और शरारत नहीं...।"
"नहीं, तेरी कसम।" जुगल किशोर आगे बढ़ा और लक्ष्मी के गाल को दो बार चूम लिया।
■■■
मोहनलाल निजामुद्दीन स्टेशन से बाहर निकला। हाथ में छोटा सूटकेस उठा रखा था। उसके उठाने के अंदाज से ही लग रहा था कि वह भारी है। पार्किंग में खड़ी कार के पास पहुंचा और आगे का उस तरफ का दरवाजा खोलकर सूटकेस उस पर रखा और कार के साथ घूम स्टेयरिंग सीट पर आ बैठा। मोबाइल निकाला कि उसी वक्त वो बजने लगा।
मोहनलाल ने बात की। दूसरी तरफ जाकिर था।
"तुमने हमें बताया नहीं कि जुगल किशोर से कहां पर मिलने वाले हो?" जाकिर, हुसैन की आवाज कानों में पड़ी।
"मुझे नहीं पता तो तुम्हें कैसे बताता? अब उससे फोन पर बात करने जा रहा हूं।"
"करो और मुझे बता देना...।"
"तुम क्या मेरे आस-पास हो?"
"हां। हम सब हैं और तुम पर नजर रख रहे हैं।"
"तो इस बात का ध्यान रखना कि जुगल किशोर का कोई आदमी मेरे पास से पैसे छीन कर भाग ना ले।"
"तुमने किसी को आस-पास देखा है या महसूस किया है?"
"नहीं। परन्तु देवराज चौहान कहता है कि उस कमीने के आदमी मुझ पर नजर रख रहे होंगे।"
"चिंता मत करो। ऐसा कुछ होगा तो हम संभाल लेंगे।"
बात खत्म करके मोहनलाल ने जुगल किशोर का नंबर मिलाया।
"पैसा निकाल लिया क्लॉक रूम से?" जुगल किशोर की आवाज कान में पड़ी।
"हां। मैं स्टेशन की पार्किंग में कार के भीतर मौजूद हूं। तुम्हारे आदमी मुझ पर नजर रख रहे होंगे।"
"तुमने देखा किसी को?"
"नहीं देखा तो नहीं।"
"तो खामखाह के तीर मत छोड़ा करो। मुझे कैसे पता चलेगा कि पांच करोड डॉलर हैं सूटकेस में?"
"एक जैसे दो सूटकेस में मैंने आधे-आधे अंदाजे से रख दिए थे। किसी में दो-चार गड्डियां कम होंगी तो किसी में ज्यादा। क्या तुम इतने कमीने हो कि दोनों सूटकेसों का वजन कराकर, भारी वाला सूटकेस लेना चाहोगे?"
"उतना कमीना नहीं हूं---।"
"तुमने ये तो माना कमीने हो!" मोहनलाल ने गहरी सांस ली।
"दूसरा सूटकेस भी तुमने इसी प्रकार निजामुद्दीन स्टेशन पर रखा...।"
"चूल्हे में रखा है दूसरा सूटकेस।" मोहनलाल भड़का--- "साले आधी दौलत लेकर भी तुम्हें चैन नहीं।"
"नाराज क्यों होता है?"
"लक्ष्मी कैसी है?" मोहनलाल दारूवाला अभी भी गुस्से में था।"
"वह खुश है।"
"खुश? क्या मतलब... तेरी कैद में रहकर वह खुश कैसे रह सकती है? तूने कुछ गड़बड़ कर के उसे खुश...।"
"हमेशा उल्टा क्यों सोचता है?"
"फौजी की पत्नी को तूने कैद करके अच्छा नहीं किया। फौजी का गुस्सा अभी तू नहीं जानता था कि...।"
"मुझे सिर्फ दौलत चाहिए।"
"लक्ष्मी से बात करा।"
"मरा क्यों जा रहा है, हम---।"
"तूने सुना नहीं--- बात करा।" मोहनलाल दारूवाला भड़का--- "बात करा! वरना एक एक पैसा नहीं दूंगा।"
"फिर तेरे को हीरोइन नहीं मिलेगी वापस।"
"कोई बात नहीं--- दूसरी ले आऊंगा।"
"वैसी तो नहीं मिलेगी।"
"वैसी?"
"वो तो कहती कि शादी के दस सालों बाद भी वो नई जैसी है।"
"क्या?" मोहनलाल तड़प उठा--- "ये बात उसने तेरे को बता दी। कहीं तुम दोनों ने गड़बड़...।"
"ऐसा कुछ नहीं है।"
"पक्का?"
"एकदम पक्का।"
"तो उसे बहन बोल...।"
"क्या?" उधर से जुगल किशोर हड़बड़ाया।
"बोल कि लक्ष्मी तेरी बहन है।"
"ये फालतू के चक्करों में मैं नहीं पड़ने वाला। मेरी कोई बहन नहीं है तो तेरी पत्नी भी मेरी बहन नहीं है। नोट दे और अपनी पत्नी को वापस ले और चलता बन। तेरा-मेरा मामला खत्म।" जुगल किशोर का सड़ा स्वर कानों में पड़ा--- "साला कहता है बहन बोलूं। मेरा दिमाग खराब है क्या? मैं किसी भी औरत जात को बहन नहीं बोलता। समझ गया फौजी?"
"ठीक है, ठीक है। पर लक्ष्मी ने तेरे को क्यों बताया कि दस साल बाद भी वो नई जैसी है, ये बात...।"
"ये तू उसी से पूछना... मेरे को तो नोट गिनवा।"
"कहां मिलेगा?"
"तेरे आगे-पीछे तो कोई नहीं है ना?"
"कौन होगा? किसी को क्या पता कि मैं किधर हूं? वो पाकिस्तानी तो मेरे लिए भागे फिर रहे होंगे कि---।"
"तू वहीं रह।"
"स्टेशन की पार्किंग में?"
"हां...। सूटकेस के साथ कार में ही बैठा रह। मैं आधे घंटे में तेरे को फोन करता हूं।"
"ठीक है। पर एक बात कान खोलकर सुन ले--- कि फौजी से अब कोई नया पंगा मत खड़ा करना।"
"नया पंगा?"
"कहीं तू ऐन मौके पर बिल्ली बनकर दूध पीने लगे। बर्तन खाली करके, ऊपर प्लेट रखकर, खाली बर्तन मेरे को दे दे।"
"मैं तेरे को ऐसा लगता हूं...?"
"तू तो मेरे को सब तरह का लगता है। पाकिस्तानी भी तेरी तरह के नहीं होते होंगे।"
"वो तो मेरे से भी आगे हैं, तू कभी पाकिस्तान गया है?"
"नहीं। तू गया है?"
"नहीं।"
"फिर तेरे को कैसे पता कि वो तेरे से कम है या ज्यादा हरामी---।"
"वो तो हिन्दुस्तान आते ही हैं।"
"साला, कुत्ता ये अमेरिकियों से आगे की चीज हैं---।" मोहनलाल ने कड़वे स्वर में कहा--- "हिन्दुस्तान बैठे-बैठे ही पूरी दुनिया घूम लेगा और लोगों को कहता फिरेगा कि हवाई जहाज में सफर के दौरान जब रेड लाइट आती है, तब वियतनामी से एक रुपये के छह संतरे लेकर खाए थे।" इसके साथ उसने फोन बंद कर दिया।
मोहनलाल के चेहरे पर कड़वे भाव फैले रहे।
फोन हाथ में लिए सोचता रहा, फिर जाकिर का नंबर मिलाया।
"हुई बात?" जाकिर की आवाज कानों में पड़ी।
"हां। आधा घंटा उसने मुझे वहीं, स्टेशन की पार्किंग में, कार में बैठे रहने को कहा है। फिर उसका फोन आएगा।
"तुम्हें कार में बैठाकर क्या करेगा?"
"मुझे क्या पता! लेकिन वो पाकिस्तानी कुछ भीतर...।"
"वो पाकिस्तानी नहीं...हिन्दुस्तानी है।"
"फौजी का दुश्मन जो भी होगा, वो पाकिस्तानी ही होगा।" मोहनलाल दारूवाला बोला--- "मुझे लगता है कि कहीं वो दो-चार को न भेज दे, जो मेरे नोट लेकर भाग जाये।"
"चिंता मत करो। हम तुम्हारे पास हैं। ऐसा हुआ तो हम उसे संभाल लेंगे।"
"तुम लोग मुझे नजर नहीं आ रहे।"
"तुम्हारी कार से दस गाड़ियां दूर एक काली वैन, काली शीशे वाली खड़ी है। हम उसी में हैं।"
मोहनलाल कार से निकला और वाहनों की कतारों में नजर मारी।
काली वैन उसे दिख गई।
"इस तरह मत देखो, कोई नजर रख रहा होगा तो उसे शक हो जाएगा।" जाकिर की आवाज कानों में पड़ी--- "आधे घंटे के बाद जब जुगल किशोर का फोन आये तो बताना कि कौन सी जगह तय हुई है।"
"ठीक है।" मोहनलाल दारूवाला कार में बैठता हुआ कह उठा--- "तुम लोग सतर्क रहना, मेरे से कोई पैसा न छीन ले।"
"हमारी नजर तुम पर है।" उधर से जाकिर ने कहा और फोन बंद कर दिया।
मोहनलाल गहरी सांस लेकर मोबाइल को देखने लगा। चेहरे पर गंभीरता थी। फिर पास की सीट पर पड़े सूटकेस को थपथपाया और जेब से रिवॉल्वर निकालकर उसे चैक किया। तीन गोलियां ही इस्तेमाल हुई थीं। बाकी की पन्द्रह गोलियां अभी बाकी थी, जोकि बुरे हालातों में देर तक साथ दे सकती थीं।
■■■
35 मिनट के बाद जाकिर का फोन देवराज चौहान को आया। तब देवराज चौहान सोहनलाल और अजहर मेनन के साथ कॉफी पी रहा था। देवराज चौहान ने बात की तो जाकिर ने बताया---
"जुगल किशोर ने मोहनलाल से उधर मिलने के लिए करोलबाग का बाजार चुना है। सवा घंटे के बाद जुगल किशोर और मोहनलाल की मुलाकात करोलबाग के बाजार में होगी। वहीं पर सूटकेस और मोहनलाल की पत्नी की अदला-बदली होगी। हमें पता चला है कि करोलबाग के बाजार में बहुत भीड़ रहती है।"
"तो?" देवराज चौहान के चेहरे पर सोचें थीं।
"जबकि हमारा प्रोग्राम था कि जुगल किशोर से डॉलरों वाला सूटकेस लेकर उसे शूट करना---।"
"तो इसमें समस्या क्या है?"
"भीड़ भरे बाजार में गोलियां चलीं तो वहां दो-चार लोग भी मर सकते...।"
"किसी मासूम की जान नहीं जानी चाहिए...।"
"बिना गोलियां चलाये ना तो हम जुगल किशोर को मार सकते हैं और ना ही उससे सूटकेस ले सकते हैं...वो...।"
"सूटकेस की परवाह मत करो। पैसा जाता है तो जाने दो। कोई बे-गुनाह न मरे।"
"ये तुम क्या कह रहे हो देवराज चौहान? उसमें पांच करोड़ डॉलर हैं और वो तुम्हारा है।"
"तभी तो कह रहा हूं कि सूटकेस की परवाह मत करो। मासूम लोगों के खून पर मैं दौलत की कमाई नहीं करता।"
"सोच लो।"
"सोचा हुआ हूं। अगर वहां मासूम लोग मरे तो तुम लोगों को डॉयरी नहीं दूंगा।"
"ठीक है, हम बिना गोली चलाये उससे सूटकेस लेने की कोशिश करेंगे।" जाकिर की आवाज आई।
"ऐसा करना ठीक होगा और इस स्थिति में जुगल किशोर और उसका कोई भी साथी रिवाल्वर का इस्तेमाल कर सकता है तो तब तुम लोगों ने ही ये कोशिश करनी है कि वह कम से कम गोलियां चला पायें।"
"समझ गया।"
"सबको समझा देना।" देवराज चौहान गंभीर स्वर में बोला--- "जुगल किशोर ने जानबूझकर ऐसी जगह चुनी है कि अगर कोई गड़बड़ कर रहा है मोहनलाल तो, भीड़ की वजह से बच कर निकल सके।"
■■■
करोल बाग।
शाम साढ़े चार बजे।
रामचंद्र-कृष्णचंद्र साड़ी एंपोरियम के पास की भीड़ भरे चौराहे के एक तरफ मोहनलाल दारूवाला हाथ में सूटकेस थामें खड़ा था। तगड़ी भीड़ थी वहां। मार्केट की लंबी सड़क पर लोग दुकानों पर खरीददारी में व्यस्त थे। यहां पर ऐसा हाल रोज ही रहता था। कनॉट प्लेस मार्केट के बाद, करोल बाग की मार्केट, दिल्ली की दूसरी धड़कन थी।
मोहनलाल को हर तरफ सिर ही सिर नजर आ रहे थे। पास से आते-जाते लोगों से यदा-कदा टक्करें लग रही थीं। जुगल किशोर ने उसे यहीं पर मिलने को कहा था।
मोहनलाल के चेहरे पर गंभीरता नजर आ रही थी। उसके हाथ में दबे सूटकेस में मोटी रकम थी। जो कि उसकी अपनी होनी थी, परन्तु अब हाथ से निकल रही थी। हालात ही ऐसे बने कि वह उलझता चला गया। एक से एक गुरु लोग उसके पल्ले पड़े थे। देवराज चौहान उसे बढ़िया बंदा लगा था। उसने ना सिर्फ उसे पिटाई से बचाया बल्कि आधी दौलत लेने को भी तैयार हो गया और अब भी कहता है कि दौलत के साथ कोई गड़बड़ हो गई, यानी उसे जुगल किशोर ले जाने में सफल रहा तो परवाह नहीं, वो डॉयरी इराकियों के हवाले कर देगा। और एक जुगल किशोर था। जो नंबरी हरामी, मक्कार, कमीना, कुत्ता था--- जो कि दौलत पाने के लिए कुछ भी कर जाने के लिए तैयार था।
"उल्लू का पट्ठा साला!" मोहनलाल दारूवाला बड़बड़ा उठा।
तभी मोहनलाल का मोबाइल बज उठा। भीड़ की वजह से फोन की आवाज तो उसे सुनाई नहीं दी, परन्तु फोन में होते कंपन ने उसे एहसास करा दिलाया कि फोन बज रहा है।
"हैलो।" मोहनलाल ने फोन निकालकर बात की।
"क्या तुम ठीक जगह खड़े हो?" मौला की आवाज कानों में पड़ी।
"हां। यहीं पर ही उस कमीने से मिलना है।" मोहनलाल बोला।
"फिक्र मत करना, हम तुम्हारे पास ही हैं।"
मोहनलाल ने फोन बंद कर दिया।
मिनट भर बीता कि फोन दोबारा बजा।
"अब क्या है?" मोहनलाल परेशान हो उठा।
"तुम अभी फोन पर किससे बात कर रहे थे?" जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी।
"तुम?" मोहनलाल संभला--- "तुम कहां हो?"
"तुम्हारे पास ही हूं। देख रहा हूं तुम्हें।"
परन्तु जुगल किशोर नहीं दिखा।
"किससे बात कर रहे थे तुम?"
"तुम्हें इससे क्या मतलब?"
"जानना जरूरी है मेरे लिए। तुम जबसे चावला के घर से निकले हो, तुमने कई बार फोन पर बात की। किससे की बात?"
"तुम मुझ पर नजर रखवा रहे थे?" मोहनलाल के होंठों से निकला।
"जो मुझे पांच करोड़ डॉलर देने जा रहा हो, उस पर नजर रखवानी जरूरी हो जाती है।"
मोहनलाल होंठ सिकोड़ेकर रह गया।
"तुमने जवाब नहीं दिया मेरी बात का?"
"वो एक लड़की है।" मोहनलाल बोला।
"लड़की?"
"हां। मेरा उसके साथ चक्कर चल रहा है, परन्तु लक्ष्मी की वजह से हमारा रिश्ता आगे नहीं बढ़ पा रहा। दो दिन पहले फोन पर मेरी बात हुई तो मैंने उससे यूं ही कह दिया कि लक्ष्मी को किसी ने उठा लिया है और वह कभी भी मर सकती है। ये सुनने के बाद वो बार-बार मुझे फोन करती है कि लक्ष्मी अभी मरी नहीं?" मोहनलाल ने सहज स्वर में कहा।
"बात गले से नहीं उतरती...।"
"क्यों?"
"इधर तुम लक्ष्मी को आजाद कराने के लिए इतनी बड़ी दौलत दे रहे हो, साथ ही लक्ष्मी के मरने की इच्छा भी रखते...।"
"मैं नहीं रखता। वो लड़की रखती है। औरत ही औरत की दुश्मन होती है। हकीकत में मर्द तो बहुत शरीफ होता है। एक दो बार उस लड़की के साथ कुछ हो गया, वो तो मुझ पर पत्नी की तरह हक जताने लगी है।"
"भाड़ में जाओ! डॉलर पूरे हैं?"
"हां, सूटकेस भरा हुआ है। दो-चार गड्डियों के कम-ज्यादा होने की बात हो सकती है।"
"मैं खोल कर देखूंगा।"
"देख लेना। लक्ष्मी कहां है?"
"मेरे साथ। उसका हाथ मैंने पकड़ रख...।"
"तूने उसका हाथ क्यों पकड़ रखा है?" मोहनलाल भड़का।
"ताकि वो भागे नहीं। वैसे उसका हाथ गर्म भी है और गर्म भी---।"
"साले! आकर डॉलर ले और लक्ष्मी को मेरे हवाले कर...।"
"मैं आ गया हूँ। तुम्हारे पीछे---।" फोन से कानों में आवाज पड़ी।
मोहनलाल तुरन्त पीछे घूमा।
पीछे भीड़ थी।
आखिरकार उसकी नजरें जुगल किशोर और लक्ष्मी पर जा टिकीं। जो कि पांच कदम पीछे खड़े थे और बीच में से लोग आ-जा रहे थे। मोहनलाल दारूवाला बेचैन हो उठा। उसने तो सोचा था कि इराकियों को सतर्क कर देगा कि यहां जुगल किशोर के आदमी भी नजर रखे हुए हैं। परन्तु मोहनलाल को इस बात का मौका नहीं मिल पाया था।
लक्ष्मी का हाथ पकड़े जुगल किशोर पास आया।
"कैसा है मोहनलाल?" लक्ष्मी प्यार से कह उठी।
"तू ठीक तो है?" मोहनलाल बेचैन स्वर में कह उठा।
"ठीक हूँ...।"
"इसने कुछ गड़बड़ तो नहीं की? दूध-बिल्ली वाली बात?" मोहनलाल ने पूछा।
"नहीं। पर ये बहुत उतावला हो रहा था। मैंने गर्म दूध की खुशबू सूंघा दी कि अभी दूध गर्म है, ठंडा होने दो।"
"गर्म दूध की खुशबू...वो कैसी होती है?" मोहनलाल के माथे पर बल दिखे।
"फालतू की बातें बंद करो।" जुगल किशोर सख्त स्वर में बोला--- "डॉलर खोल के दिखा।"
"इतनी भीड़ में सूटकेस खोलूं?" मोहनलाल ने आसपास जाते लोगों पर नजर मारी।
"खोल...।"
"मर्जी तेरी!"
मोहनलाल ने सूटकेस नीचे रखा और उसे थोड़ा-सा खोलकर जुगल किशोर को झलक दिखाई भीतर की।
फिर सूटकेस बंद कर दिया।
"अगर तूने कोई चालाकी की होगी तो छोडूंगा नहीं।"
"अभी तूने फौजी का हाथ देखा नहीं।" मोहनलाल ने सूटकेस उसकी तरफ बढ़ाया--- "इधर आ जा लक्ष्मी---।"
अदला बदली हो गई।
मोहनलाल ने लक्ष्मी का हाथ पकड़ा।
जुगल किशोर ने सतर्क निगाहों से आसपास देखा।
"मोहनलाल!" लक्ष्मी बोली--- "इस पैसे से ये भी फिल्म बनाने मुंबई जा रहा है...।"
"क्या... फिल्म बनाने?" मोहनलाल सकपकाया--- "तो ये मेरे से कंपटीशन करेगा? वो भी मेरे पैसे से?"
"सुन तो...।"
"हां...।"
"मेरे को हीरोइन लेगा।"
"तेरे को...?"
"हां, मैं एक साथ दो-दो फिल्मों की हीरोइन बनूंगी। एक तो हिट होगी--- और मैं मशहूर हो जाऊंगी।"
"कहीं तूने सारा दूध तो नहीं गिरा दिया जो ऐसी बात...।"
"कैसी बात करता है मोहनलाल--- मैं क्या ऐसी हूं...।"
"म...मुझे क्या पता कि...।"
"मैंने इसका मोबाइल नंबर भी ले लिया है। मुंबई पहुंच कर इसे फोन...।"
"वो जा रहा है।" मोहनलाल के होंठों से निकला।
लक्ष्मी ने जुगल किशोर को देखा।
रास्ता साफ देख कर जुगल किशोर सूटकेस थामें भीड़ में आगे बढ़ा।
"अब ये हमें मुंबई में मिलेगा। अपनी फिल्म में मुझे हीरोइन के लिए साइन करने आएगा।"
"बेवकूफ!" मोहनलाल झल्लाया--- "तू उसकी बातों में आ गई? वो बहुत कमीना इंसान है। वो फिल्म नहीं बनाने वाला। हमारे पैसे से जिंदगी भर ऐश करेगा। हर रोज नई शादी करेगा। नई बोतल खोलेगा। हमारे पैसे उड़ा देगा।"
"नहीं मोहनलाल, वो ऐसा इंसान नहीं...।"
"दो दिन में तू इसे पहचान गई।" मोहनलाल झल्लाया--- "ये हरामी कुत्ता है। ये तो...।"
"ये बात है तो मैं अभी इससे पैसे ले... लेती...।"
तभी मोहनलाल को वजीर खान दिखा, जो कि जुगल किशोर के पास पहुंच चुका था।
"वो देख, पाकिस्तानियों ने उसे घेर लिया है।"
"पाकिस्तानी?"
"देखती रह उधर। फौजी से पंगा लिया था इसने। अब इसके हाथ-पांव टूटेंगे। कमीना मेरी बीवी को उठा ले गया था---।"
जुगल किशोर सूटकेस के साथ एक कदम आगे बढ़ा ही था कि ठिठक गया। चेहरे पर से कई रंग आकर गुजर गए। मस्तिष्क में बिजली कौंधी। दो क्षणों के लिए तो समझ नहीं पाया था कि क्या हो रहा है।
सामने वजीर खाना खड़ा हुआ था।
जुगल किशोर हक्का-बक्का सा उसे देखने लगा।
वजीर खान के चेहरे और आंखों में कठोरता नाच रही थी।
पास से भीड़ के रूप में लोग आ-जा रहे थे। हल्की टक्करें मार रहे थे।
"कैसे हो मिस्टर जुगल किशोर?" वजीर खान का स्वर भी कठोर था।
"तुम...?"
"सोचा नहीं था कि इस मौके पर मुझसे मिलोगे? बाकी भी हैं।" वजीर खान उसी स्वर में बोला।
"बाकी?" जुगल किशोर ने हड़बड़ाकर नजर आसपास घुमाई तो खुद को घेरे में पाया।
दाईं तरफ जाकिर खड़ा हुआ था। बाई तरफ मौला। पीछे हुसैन और पास में शेख आ गया था।
जुगल किशोर के चेहरे पर ऐसे भाव आ गए जैसे लुट-पिट गया हो।
अपने नसीब के पत्ते बे-आवाज से पलटते महसूस किये उसने।
"ये जो भी हुआ, तेरे को फंसाने के लिए ही किया गया था।"
"मोहनलाल...।" जुगल किशोर ने नजर घुमाकर पांच-छः कदमों की दूरी पर खड़े मोहनलाल और लक्ष्मी को देखा--- "तू इन लोगों के साथ मिला हुआ था?"
"हां। वो हमारे साथ मिलकर ही ऐसा कर रहा था कि तुम हमारे जाल में फंस सको।"
जुगल किशोर ने फौरन खुद को संभाला और कह उठा---
"ये सब करने की क्या जरूरत थी? मैं तो खुद ही तुम लोगों को फोन करने वाला था कि मैंने डॉलर पा लिए हैं और इन्हें देवराज चौहान को देकर, उससे वो डॉयरी ली जा सकती है। अच्छा ही हुआ, जो तुम मिल गए।"
तभी शेख ने उसके कंधे पर हाथ रखा और मुंह आगे करके बोला---
"मिस्टर जुगल किशोर, तुम अब्बल दर्जे के कमीने, बेईमान और दगाबाज हो। अगर तुमने इससे दगाबाजी ना की होती तो ये मामला इतना लंबा नहीं खिंचता। कब की हम डॉयरी लेकर ईराक पहुंच चुके होते और सुलेमान बाजमी को सौंप कर उसे खुश कर चुके होते। परन्तु तुम्हारे लालच ने हमारे सारे काम बिगाड़ दिए। याद है, हमने एडवांस में तुम्हें दस करोड़ रुपए दिए थे?"
"अभी तो बीस-तीस करोड़ और लेना है। डॉयरी तुम लोगों तक पहुंच जाये, इसी के लिए तो भाग दौड़ कर रहा हूं।" जुगल किशोर ने मुस्कुराने की चेष्टा की।
"दौलत की हमारे पास कमी नहीं। हम तुम्हें इससे भी ज्यादा दौलत दे सकते हैं। तुम पहले ही बता देते कि तुम इतने लालची हो तो हम सौदा पचास करोड़ में भी कर सकते थे। परन्तु हम अपना काम बिगड़ता नहीं देखना चाहते थे। तुमने कदम-कदम पर हमारा काम बिगाड़ा। हमने तुम्हें शुरू में ही बता दिया था कि हम इराक के एक खतरनाक संगठन से वास्ता रखते हैं और खतरनाक लोग हैं। हम धोखेबाजी नहीं करते और कोई हमसे धोखेबाजी करे तो उसे जिंदा नहीं छोड़ते। परन्तु तुमने हमारी बात की परवाह नहीं की और...।"
"मैं तुम लोगों के लिए ही तो डॉयरी को पाने की चेष्टा कर रहा हूं। ये पैसा देवराज चौहान को देकर उससे तुम लोगों के लिए डॉयरी लेनी थी मैंने।"
"सच?" शेख सहज स्वर में बोला।
"कसम से...।"
"तुम जैसा कमीना ईराक में तो ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा। ऐसे तो अमेरिकन होते हैं तुम हिन्दुस्तान में कैसे पैदा हो गये?"
"म...मुझे क्या पता, मैं तो...।"
तभी उनके पास लक्ष्मी आ पहुंची।
"मुझे दे ये सूटकेस।" लक्ष्मी उसके हाथ से सूटकेस लेने की कोशिश में बोली--- "तू तो बहुत झूठा है।"
"झूठा?" जुगल किशोर ने होंठों पर जीभ फेर कर उसे देखा।
"और नहीं तो क्या? मोहनलाल कहता है कि तू कोई फिल्म नहीं बनाएगा। रोज नई शादी करेगा, बोतल खोलेगा और...।"
"मोहनलाल पागल है... वो तो...।"
"इधर दे सूटकेस...।" लक्ष्मी ने गुस्से से कहा और सूटकेस ले लिया।
"ये क्या कर रही...।" वजीर खान ने कहना चाहा।
शेख जुगल किशोर के कंधे से हाथ हटाकर बोला---
"ले जाने दो इसे। वजीर, तुम इसके और मोहनलाल के साथ जाओ--- वापस ठिकाने पर।"
वजीर खान ने हौले से सिर हिलाया।
"इसे निपटाकर हम भी वहीं पहुंचते हैं।" शेख ने जुगल किशोर को घूरते हुए कहा।
"मोहनलाल को पागल कहता है कमीना...।" जली-भुनी लक्ष्मी कह उठी।
"हां। वो सच में पागल है। तेरे को मेरा नंबर याद है ना! तू सूटकेस लेकर मुंबई पहुंच, दस दिन बाद मुझे फोन करना वहां...मैं...।"
"चल...।" वजीर खान ने लक्ष्मी से कहा।
फिर लक्ष्मी और वजीर खान मोहनलाल के पास पहुंचे।
मोहनलाल ने लक्ष्मी के हाथ से सूटकेस ले लिया।
"मेरे साथ चलो...।" बोला वजीर खान।
"और वो?" मोहनलाल ने जुगल किशोर को देखा।
"उसने हमसे गद्दारी की। मेरे साथी उसे जिंदा नहीं छोड़ेंगे।"
इसके साथ ही तीनों करोलबाग की भीड़ में गुम होते चले गए।
उन्हें जाते देखकर जुगल किशोर मन ही मन कलप उठा था।
"तुम लोग मेरी बात समझते क्यों नहीं कि...।"
"मिस्टर जुगल किशोर!" हुसैन ने मौत भरे स्वर में कहा--- "अब तुम्हारा खेल खत्म। हम तुम्हें मौत की सजा देने जा रहे हैं। यूँ तो तुम्हें यहां भी शूट कर सकते हैं। परन्तु हम हिन्दुस्तान की पुलिस की नजरों में नहीं आना चाहते। क्योंकि आने वाले वक्त में ईराक में सुलेमान बाजमी साहब की सरकार बननी है--- और हम लोगों ने सरकार के महत्वपूर्ण ओहदे संभालने हैं। ऐसे में हमारा बदनाम होना ठीक नहीं। इसलिए तुम्हें मारने के लिए हमें आस-पास की कोई सुनसान गली देखनी होगी, जहां तुम्हारे सिर में गोली मारी जा सके और गोली की आवाज जब तक लोग सुनें, तब तक हम वहां से जा चुके हों। चलो अब कोई ऐसी गली ढूंढे।"
"मेरी जान लेकर तुम्हें क्या मिलेगा, मैं जिंदा रहा तो...।"
"जुबान बंद रखो!" मौला ने कड़वे स्वर में कहा और जुगल किशोर की बांह थाम ली।
जुगल किशोर के दांत भिंच गए। बोला---
"सुलेमान बाजमी ने ईराक का राष्ट्रपति बनने के बाद तुम लोगों को पहचानना भी नहीं है। उसके लिए मेरी हत्या करना...।"
"इसके लिए नहीं, हम तुम्हारी गद्दारी की वजह से तुम्हारी जान लेने जा रहे हैं।" जाकिर ने कहा--- "रही बात जनाब सुलेमान बाजमी साहब की, तो उनका नाम तुम मत लो। तुम्हारे मुंह से उनका नाम सुनना अच्छा नहीं लगता हमें। यहां से निकलो और कोई सुनसान जगह ढूंढें।"
मौला ने सख्ती से जुगल किशोर का हाथ थाम रखा था।
जब कि जुगल किशोर सोच रहा था कि बाजार की भीड़ में इन लोगों से बच निकलना बहुत आसान रहेगा।
"मेरा हाथ छोड़ो। भाग नहीं रहा। तुम लोगों के साथ ही हूं...।" जुगल किशोर ने भागने का इरादा कर लिया था।
"तुम इसी तरह हमारे साथ चलोगे...।" मौला ने जुगल किशोर को एक तरफ खींचते हुए कहा।
बाकी सब इस प्रकार साथ चल पड़े कि जुगल किशोर घिर गया।
परेशान से जुगल किशोर ने इधर-उधर नजर घुमाई। उनके साथ चल पड़ा। दो पल भी नहीं बीते कि कुछ दूर भीड़ में मौजूद एक आदमी से उसकी आंखें मिलीं तो आंखों में चमक आ गई। जुगल किशोर ने आंख से इशारा किया।
वो आदमी हौले से सिर हिलाने लगा।
इतने में वो जुगल किशोर को घेरे आगे बढ़ गए थे।
"तुम लोग मेरी जान नहीं ले सकोगे...।" जुगल किशोर ने कहा।
किसी ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया।
"मैं तो तुम लोगों के लिए ही डॉयरी का इंतजाम कर रहा था। मैंने ही तुम लोगों को मोहनलाल के बारे में बताया। मैंने ही तुम लोगों को देवराज चौहान के बारे में बताया। मैंने हर कदम पर तुम्हारा भला चाहा। परन्तु तुम लोग मेरी जान ही लेने जा रहे हो। बेईमान हो तुम।"
कोई जवाब नहीं मिला उसे।
"मैंने तो सोचा था कि तुम लोगों ने देवराज चौहान से डॉयरी ले ली होगी। ईराक पहुंच गये होगे। परन्तु मैं नहीं जानता था कि तुम लोग इतने कमजोर हो कि कुछ नहीं कर सके और मेरी जान लेने को बहादुरी का कारनामा समझ रहे हो। याद रखो, मैं मर गया तो तुम लोगों को डॉयरी नहीं मिलेगी।"
वे चारों जुगल किशोर को लिए, भीड़ से बाहर एक तरफ निकलने के लिए आगे बढ़ रहे थे।
"उस डॉयरी ने सद्दाम हुसैन की दौलत का जिक्र है--- और ये बताया गया है कि मरने से पहले सद्दाम हुसैन ने दौलत कहां छिपा दी थी?"
उसकी बात का जवाब किसी ने नहीं दिया।
"सुलेमान बाजमी क्या गरीब बंदा है?" जुगल किशोर पुनः बोला।
"उसके संगठन के पास बहुत बड़ी दौलत है।" मौला कह उठा।
"तो सद्दाम हुसैन की दौलत की उसे क्या जरूरत पड़ गई।"
"अमेरिका ने तबाह कर दिया है ईराक को। उस दौलत से ईराक को फिर से खड़ा किया जाएगा। ये काम तब होगा जब सुलेमान बाजमी साहब राष्ट्रपति बन जाएंगे। तब एक बार फिर अमरीका को नीचा दिखाना है। हम बदला लेंगे ईराक की बर्बादी का।"
"मतलब कि सुलेमान बाजमी, उस डॉयरी के बदले दो-चार सौ करोड़ की दौलत आसानी से दे सकता है।" जुगल किशोर कह उठा।
"क्या मतलब?" मौला के दांत भिंच गए।
"ये तुम्हारे समझने लायक बात नहीं है। तुम लोग मेरी हत्या करके, अपने काम पर लगो।" जुगल किशोर ने शांत स्वर में कहा।
"पागल हो गए हो तुम...।"
"जुगल किशोर कभी पागल नहीं होता। हिन्दुस्तान में तुम्हें मुझ जैसा क्वालिटी और किसी में नहीं मिलेगी।"
"हां।" मौला ने दांत भींचकर कहा--- "इस बात का हमें पता चल चुका है तभी तो तुम मरने जा रहे हो।"
यही वो वक्त था जब उन सबको लगा कि उनके आसपास भीड़ अचानक बढ़ गई हो।
जबकि जुगल किशोर सतर्क हो गया था। उसने अपने आदमियों को पहचान लिया था। वो कुल छः आदमी थे। जोकि उसके कहने पर उस पर नजर रख रहे थे। अब उन्हें जुगल किशोर का इशारा मिल चुका था तो वो हरकत में आ गए थे।
जाकिर, शेख, हुसैन और मौला ने एकाएक अपने को कुछ लोगों की भीड़ में फंसा महसूस किया।
फिर एक-एक करके सबकी कमर में छिपे अंदाज में रिवाल्वरें चली गईं।
वे ठिठक गए।
बदलते हालातों का उन्हें फौरन एहसास हुआ। परन्तु रिवाल्वर लग जाने की वजह से वो कुछ ना कर सके।
"कौन हो तुम लोग?" हुसैन अपने पास खड़े आदमी से कह उठा।
"इन्हें...।" जुगल किशोर कड़वे स्वर में बोला--- "सुलेमान बाजमी साहब ने भेजा है।" फिर मौला से कहा--- "अब तो मेरा हाथ छोड़ दो। ये मेरे आदमी हैं। मुझे यहां से ले जाने आए हैं। मरना चाहते हो तो मेरी कलाई मत छोड़ना।"
मौला ने फौरन उसकी कलाई छोड़ दी।
जुगल किशोर अपनी कलाई को मलता कह उठा---
"तुम लोगों की वजह से मेरे हाथ से डॉलरों से भरा सूटकेस निकल गया। फिर भी मुझे तुम लोगों से कोई नाराजगी नहीं। तुम लोग मेरी हत्या करने वाले थे, तब भी नाराजगी नहीं।"
वहां आस-पास से लोग निकल रहे थे। किसी को नहीं पता था कि यहां कुछ हो रहा है।
"मेरे जाने के पांच मिनट बाद इन्हें छोड़ देना।" जुगल किशोर ने एक आदमी से कहा।
उसने सिर हिला दिया।
"कोई नखरे दिखाए तो गोली मार देना और मैं तुम चारों से फिर मिलूंगा। जल्दी ही। क्योंकि तुम्हें डॉयरी चाहिए जो कि जल्दी ही मेरे कब्जे में होगी और उस डायरी का सौदा 500 करोड़ में होगा। नोट तैयार कर लेना।" जुगल किशोर जाने लगा तो उसके एक आदमी ने कहा।
"हमारे पैसे?"
"मिल जायेंगे।" जुगल किशोर पल भर के लिए ठिठका--- "हरि को दे दूंगा। उससे ले लेना।"
फिर जुगल किशोर करोलबाग की भीड़ में गुम होता चला गया।
मौला, जाकिर, शेख, हुसैन की कमर में अभी भी रिवाल्वरें लगी थीं। चारों के चेहरों पर गुस्सा और बेबसी थी।
"हम तुम सबको मालामाल कर देंगे--- तुम जुगल किशोर को हमारे हाथों में पहुंचा दो।" शेख उन छः लोगों से कह उठा।
"कौन जुगल किशोर?"
"जुगल किशोर को नहीं जानते?" शेख पुनः बोला।
"नहीं तो...।"
"यही आदमी, जिसे तुम लोगों ने मेरे हाथों से निकलवाकर भगा दिया है।"
"ओह, तो इसका नाम जुगल किशोर था...।"
"उसका नाम नहीं जानते तो उसे हमसे बचाया क्यों?"
"हमारे एक साथी ने हमें इस पर नजर रखने और इसे हर मुसीबत से बचाने को कहा था। बदले में हमें साठ हजार मिलने हैं।"
"मैं तुम लोगों को पांच लाख दूंगा--- जुगल किशोर को हमारे हाथों में फंसा दो।" मौला खतरनाक स्वर में कह उठा।
"लेकिन हम तो जानते नहीं कि वो कौन है और कहां रहता है?"
■■■
"कितना गलत हुआ जो जुगल किशोर को धोखेबाजी की सजा नहीं दे सके हम।" वजीर खान कसमसा कर कह उठा।
ये निजामुद्दीन वाला वो ही ठिकाना था।
कमरे में वजीर खान, जाकिर, मौला, शेख, हुसैन, देवराज चौहान, सोहनलाल, मेनन, मोहनलाल दारूवाला और लक्ष्मी मौजूद थीं। टेबल पर डॉलरों वाला खुला सूटकेस रखा हुआ था। रात के दस बज रहे थे। करोलबाग की घटी उस घटना को पांच घंटे बीत चुके थे। वहां से चारों कुछ देर पहले ही ठिकाने पर पहुंचे थे कि सारा हाल जानकर वजीर खान तिलमिला उठा था।
"यहीं पर हम धोखा खा गए कि वो अपने साथ आदमी नहीं लाया होगा।" जाकिर अफसोस भरे स्वर में कह उठा।
तभी मोहनलाल दारूवाला कह उठा---
"ये बातें बाद में करते रहना। तुम लोगों को मैंने अब आधे डॉलर दे दिए हैं। मुझे और लक्ष्मी को जाना है अब। बहुत काम करने हैं। मुझे फिल्म की कहानी पूरी करनी। मुंबई पहुंचना है। वहां भी बहुत देखना...।"
"तुम अभी यहां से बाहर ना ही जाओ तो बेहतर है।" देवराज चौहान बोला।
"क्यों ना जायें?" लक्ष्मी कमर पर हाथ रख कर कह उठी।
"अभी तुम सुरक्षित नहीं हो मोहनलाल।" देवराज चौहान ने कहा--- "जुगल किशोर के हाथ कुछ भी नहीं लगा। वो ऐसा इंसान है जो चैन से नहीं बैठेगा। कोई बड़ी बात नहीं कि तुम अपने घर जाओ और वो वहीं तुम्हें इंतजार करता मिले।"
"तो मेरा क्या कर लेगा वो, अगर मिल गया तो? फौजी हूं, एक ही हाथ में...।"
"बचपना मत करो मोहनलाल। वो जुगल किशोर है। महाठग है। जो कर दे, वो ही कम है। जैसे भी हो, वो तुमसे बाकी के डॉलर निकलवा लेगा। वो हार मानने वाला नहीं है। अगर डॉलर नहीं ले सका तो तुम्हारा वो हाल कर देगा कि तुम दौलत का मजा कभी नहीं ले सकोगे। थोड़ा-बहुत मैं उसे जानता हूं। पैसे से बड़ा उसके सामने कुछ भी नहीं। वो तुम्हारे लिए खतरा बन सकता है।"
मोहनलाल ने लक्ष्मी को देखा।
"तुम बहादुर हो मोहनलाल। फौजी हो। डरते क्यों हो?" लक्ष्मी ने कहा।
"वो तो मैं पहले भी था, परन्तु उसने तुम्हें उठा लिया। मैं कुछ नहीं कर सका।"
"तब तुम मेरे पास नहीं थे। अब तो...।"
"मैं हर वक्त तेरे पास कैसे रहूंगा? अब भी तो तू अकेली हो सकती है।"
"इसकी बात सुनकर तू डर गया मोहनलाल?"
"नहीं। समझदारी से सोच रहा हूं कि एक-दो दिन यहां रहकर यहीं से मुंबई के लिए निकल जाएंगे।"
"ये भी ठीक है।" लक्ष्मी ने सिर हिलाया--- "लेकिन तेरी लिखी अधूरी कहानी तो घर पर पड़ी है।"
"उसकी तू फिक्र नहीं कर। मेरे दिमाग में एक और आईडिया चल रहा है। मुंबई पहुंच कर उस पर कहानी लिख दूंगा।"
"उसमें हीरोइन है ना?"
"हीरोइन ही हीरोइन हैं। फिक्र क्यों करती है, तेरे लिए ही तो फिल्म बना रहा हूं। तू इतनी खूबसूरत ना होती तो मेरे दिमाग में फिल्म बनाने का ख्याल ही नहीं आता। पर तू इतनी खूबसूरत कैसे हुई? तेरे मां-बाप में तो कोई इतना खूबसूरत नहीं।"
"छोड़ भी, गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ता है?"
"बता दे, अगर तेरे को कुछ पता हो तो...।"
"मुझे क्या पता, पता होगा तो मेरी मां को पता होगा कि मैं...।" लक्ष्मी ने गहरी सांस ली--- "इतनी खूबसूरत कैसे हो गई!"
तभी जाकिर देवराज चौहान से कह उठा--- "ये आधे डॉलर टेबल पर सूटकेस में पड़े हैं। ये तुम्हारे हैं। अब तो तुम्हें काली जिल्द वाली डॉयरी हमें देने में कोई एतराज नहीं होगा।"
"कोई एतराज नहीं है।" देवराज चौहान ने कहा।
"कहाँ रखी है वो डॉयरी?"
"किसी के पास है। अभी मंगवा देता हूं।" देवराज चौहान ने जेब से मोबाइल निकाला और नंबर मिलाने लगा।
शेख, हुसैन, मौला, वजीर खान और जाकिर के चेहरे चमक उठे।
डॉयरी उन्हें मिलने जा रही थी।
इसी के लिए तो वो महीनों से भाग दौड़ कर रहे थे।
■■■
रात के नौ बज रहे थे--- और वो जुगल किशोर ही था जो मन ही मन सुलगता विनायक के बंगले की तरफ दीवार फलांगकर भीतर अंधेरे में जा दुबका था। हर तरफ उसने नजर मारी। सब ठीक था। किसी का ध्यान उस पर नहीं गया था। गेट पर एक दरबान मौजूद था, परन्तु यहां से वो नजर नहीं आ रहा था। बंगले में रोशनी हो रही थी। मेन दरवाजा भी खुला हुआ था। बाई तरफ गेस्ट रूम था। उसमें भी रोशनी हो रही थी।
जुगल किशोर यहां हेमंत के लिए आया था।
वो नहीं जानता था कि हेमंत बंगले पर होगा भी या नहीं। परन्तु गुस्से से भरा वो आ गया था। बंगले पर नौकरों की पूरी चहल-पहल नजर आ रही थी--- कि तभी उसने पचास बरस के एक नौकर को बंगले के मुख्य द्वार से बाहर आकर एक तरफ जाते हुए देखा। उसके अलावा और कोई वहां नहीं था। जुगल किशोर दबे पांव उसकी तरफ बढ़ गया।
नौकर के पीछे जा पहुंचा और रिवाल्वर निकाल ली।
आहट पाकर नौकर पलटा तो जुगल किशोर उसे रिवाल्वर दिखाकर बोला---
"घबरा मत। तेरे को गोली नहीं मारूंगा। कुछ पूछना है तेरे से। इधर अंधेरे में आ।"
नौकर की टांग कांपने लगी।
जुगल किशोर उसकी बांह पकड़कर, उसे खींचता अंधेरे में ले गया।
"म...मुझे मत मारना...।" नौकर थरथराते स्वर में कह उठा।
"यार, तू तो खामखाह ही घबरा गया। ये ले।" जुगल किशोर ने रिवाल्वर जेब में रख ली--- "अब तो डर मत।"
नौकर के होश अभी भी गुम थे।
"हेमंत कहां है?" जुगल किशोर ने पूछा।
"व...वहां...।" नौकर ने गेस्ट रूम की तरफ इशारा किया।
"वो क्या जगह है?"
"गेस्ट रूम है। सेठ जी तो चीन गए हैं। ऐसे में हेमंत बाबू बंगले की देखभाल के लिए, यहां रुके हुए हैं।"
"और तो कोई नहीं बंगले पर?"
"और? नहीं...।"
"वो जो यहां रह रहा था--- जो घायल था...।"
"वो, वो तो कई दिन पहले गए हैं, उसके बाद नहीं लौटे।"
"हूं। हेमंत गेस्ट रूम में अकेला है?" जुगल किशोर ने एक निगाह गेस्ट रूम पर मारी।
"हां, हेमंत बाबू यहां पर अकेले ही हैं।"
अगले ही पल जुगल किशोर ने जेब से रिवाल्वर निकाली और उसकी कनपटी पर जोरों से नाल की चोट की।
नौकर के होंठों से छोटी सी कराह निकली और वो वही अंधेरे में लुढ़क गया।
जुगल किशोर ने सतर्कता भरी निगाह हर तरफ मारी, फिर रिवाल्वर थामें गेस्ट रूम की तरफ बढ़ गया। वहां पहुंचकर सीढ़ियां चढ़ीं, ऊपर पहुंचा और उस कमरे की तरफ बढ़ा, जिसमें लाइट रोशन थी।
दरवाजा लॉक नहीं था।
पल्ला धकेला तो वो खुलता चला गया। जुगल किशोर ने भीतर प्रवेश किया तो ठिठक गया। सामने ही कुर्सी पर गिलास थामें बैठा हेमंत पानी पीने में मस्त था। पास ही टेबल पर प्लेट में काजू रखे हुए थे।
हेमंत जी ने जुगल किशोर को देखा तो उसकी आंखें सिकुड़ी। हाथ में दबी रिवाल्वर को देखा। उसने जुगल किशोर को पहले कभी नहीं देखा था। परन्तु हेमंत शांत रहा। हाथ में दबे गिलास से घूंट भरकर, गिलास टेबल पर रखता कह उठा---
"कौन हो तुम?"
"जुगल किशोर।"
"ओह! तुम हो। नाम सुना है तुम्हारा, शायद देवराज चौहान के मुंह से...।" हेमंत सिर हिलाकर कह उठा---
"तो मेरी तारीफ भी सुनी होगी...।"
"तारीफ नहीं सुनी।"
"मेरी तारीफ तुम बहुत जल्दी महसूस कर लोगे।" कहकर जुगल किशोर आगे बढ़ा और उसका व्हिस्की का गिलास खाली किया, फिर मुट्ठी भर काजू उठाकर एक-एक करके खाने लगा।
"तुम्हें किसी ने रोका नहीं?" हेमंत कुर्सी पर बैठा एकटक उसे देख रहा था।
"दीवार फलांग कर आया हूं। देखा नहीं किसी ने।" हेमंत को घूरता जुगल किशोर बोला--- "उस दिन ईराकी आये और देवराज चौहान को ले गये।"
"तो?"
"मैं बाहर ही था। सबकुछ देखा मैंने। परन्तु वो ईराकी अभी तक डॉयरी ढूंढ रहे हैं। इसका मतलब देवराज चौहान से उन्हें डॉयरी नहीं मिली।"
"तो मैं क्या करूं?"
"देवराज चौहान के खास बने तुम ही उसके साथ चिपके हुए थे। डॉयरी देवराज चौहान के पास से नहीं मिली तो वो तेरे ही पास है।"
हेमंत ने गहरी सांस ली, फिर मुस्कुरा पड़ा---
"तेरा ख्याल बिल्कुल गलत है।"
"क्यों?"
"क्योंकि मैं नहीं जानता कि वो डॉयरी कहाँ है। वो देवराज चौहान के पास थी। यहां से वो नर्सिंग होम में चला गया था। डॉयरी अपने साथ ले गया था। तुमने कैसे सोच लिया कि वो डॉयरी मेरे पास रखी होगी?" हेमंत बोला--- "वो डॉयरी तो सद्दाम हुसैन की दौलत का पता बताती है।"
जुगल किशोर आगे बढ़ा और हाथ में दबी रिवाल्वर की नाल की चोट, अचानक ही उसके गालों पर की।
हेमंत को ऐसी आशा नहीं थी।
हेमंत के होंठों से दबी-दबी सी चीख निकली और चेहरे पर हाथ रखे वो कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। उसकी सुलगती निगाह जुगल किशोर के चेहरे पर जा टिकी। जुगल किशोर दांत भींचे उसे ही देख रहा था।
"वो डॉयरी अगर देवराज चौहान से इराकियों को नहीं मिली तो स्पष्ट है कि वो तेरे पास है। मेरे हवाले कर डॉयरी को।"
"पागल है तू---जो डॉयरी को मेरे पास ढूंढ रहा...।"
तभी जुगल किशोर की टांग घूमी और हेमंत के पेट में जा लगी।
हेमंत के होंठों से चीख निकली और वो पीछे की तरफ जा गिरा।
"वो डॉयरी मेरे लिए दौलत के दरवाजे खोल सकती है। इसलिए वो मुझे हर हाल में चाहिए। सीधी तरह दे दो तो ठीक रहेगा।"
हेमंत सीधा हुआ। उठने की कोशिश में उसका हाथ पैंट की जेब में जा पहुंचा।
जुगल किशोर बाज की तरह झपटा और उसके चेहरे पर रिवाल्वर की नाल रखकर गुर्राया---
"हिल मत!"
हेमंत वैसे का वैसा ही ठिठक गया।
"जेब से हाथ निकाल...।"
हेमंत ने जेब से हाथ निकाला।
जुगल किशोर ने उसकी जेब में हाथ डालकर रिवाल्वर निकाली और पीछे हट गया।
हेमंत सीधा हुआ और बैठे ही बैठे जुगल किशोर को देखा।
"बेटे!" दोनों रिवाल्वरें पकड़े जुगल किशोर कह उठा--- "तू अभी मुझे ठीक से जानता नहीं, लेकिन अब जान जायेगा। खड़ा हो।"
हेमंत होंठ कसे जुगल किशोर को देखता रहा।
"खड़ा हो! वरना घोड़े से भी तेज लात मारूंगा इस बार।" जुगल किशोर गुर्रा उठा।
हेमंत उठा। पेट में अभी भी दर्द हो रहा था।
"अब तू मेरे साथ चलेगा।"
"कहाँ?" हेमंत के होंठों से निकला।
"जहां तू मुझे डॉयरी के बारे में...।"
"बेवकूफों वाली बात मत करो। मेरे पास कोई डॉयरी नहीं है।" हेमंत कह उठा--- "मुझे क्या पता कि...।"
"बतायेगा तू। डॉयरी मुझे देगा भी--- यहां से चल। तेरी खातिरदारी तो मैं बढ़िया करूँगा। खातिरदारी से बचना चाहता है तो डॉयरी मेरे हवाले कर दे। आने वाली तकलीफों से बच जायेगा। अभी तू मुझे जानता नहीं कि मैं...।"
"मैं तुझे कैसे समझाऊं कि डॉयरी मेरे पास नहीं...।"
"डॉयरी मुझे दे दे, मैं समझ जाऊंगा।" जुगल किशोर कहर भरे ढंग से हंसा--- "डॉयरी देवराज चौहान के पास भी नहीं है। तेरे पास भी नहीं है--- तो फिर क्या डॉयरी को तोता ले गया भूतनी के? चल दरवाजे की तरफ। तू मेरे ठिकाने पर चलकर ही बोलेगा।"
"तुम...।"
"अब कुछ मत बोल।" जुगल किशोर गुर्राया--- "तेरे को पूरा मौका मिलेगा बोलने का। दरवाजे की तरफ चलना शुरू कर दे वरना...।"
हेमंत को जुगल किशोर की बात माननी पड़ी।
■■■
जुगल किशोर, हेमंत को वहीं पर ले आया था, जहां लक्ष्मी को कैद कर रखा था। वो ही छोटा सा कमरा सामान से भरा था। अपने आदमी की सहायता से जुगल किशोर ने हेमंत के हाथ पीठ पीछे बांधे और मुंह पर इस तरह कपड़ा बांध दिया कि चीखे तो आवाज दूर तक ना जा सके। उसके बाद जुगल किशोर ने डंडा लेकर उसकी पिटाई शुरू कर दी।
हेमंत तड़पा।
चीखता तो आवाज बमुश्किल कमरे में ही फैल पाती।
एक ही सवाल था जुगल किशोर का--- कि बता वो डॉयरी किधर रखा है।
मुंह पर कपड़ा बंधा होने की वजह से वह स्पष्ट कुछ नहीं बोल पा रहा था, परन्तु इंकार में हिलाता सिर ये ही दर्शा रहा था कि जैसे वह कह रहा हो कि उसके पास डॉयरी नहीं है।
लेकिन जुगल किशोर जैसे उसे पीट-पीटकर डॉयरी उसके पेट से निकाल लेने का इरादा रखता हो।
डण्डे खा-खा कर हेमंत ढीला पड़ने लगा।
जुगल किशोर ने डण्डा एक तरफ रखा और आगे बढ़ कर उसके मुंह पर बंधा कपड़ा खोला।
हेमंत मुंह खोले गहरी-गहरी सांस लेने लगा। शरीर में जगह-जगह दर्द हो रहा था।
"अगर तूने डॉयरी मेरे हवाले नहीं की तो इसी तरह तड़प-तड़प कर मर जाएगा। मैं तेरी ठुकाई रोकने वाला नहीं। सीधी तरह बता दे कि डॉयरी किधर है, वरना सारी रात बार-बार इसी तरह पिटता रहेगा।"
"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है।" गहरी सांसे लेते हेमंत पीड़ा भरे स्वर में कह उठा--- "इतने बड़े खजाने का नक्शा है उस डॉयरी में। वो डॉयरी देवराज चौहान भला मुझे क्यों देगा। उसका दिमाग खराब है जो डॉयरी मुझे देगा।"
तभी हेमंत की जेब में पड़ा फोन बजने लगा।
"अगर डॉयरी उसके पास होती तो इराकियों को मिल चुकी होती। उसके पास नहीं तो डॉयरी तेरे पास है। मुझे बेवकूफ मत समझ। घिसा हुआ बंदा हूं मैं। तेरे जैसों को तो जेब में लिए घूमता हूं। ठीक है, हम सौदा कर लेते हैं।"
हेमंत की जेब में पड़ा मोबाइल अभी भी बज रहा था।
"सौदा?"
"उस डॉयरी से मैं जो भी कमाऊंगा, तीस परसेंट तेरे को दूंगा।" जुगल किशोर ने कहा।
"वो तो ठीक है, परन्तु डॉयरी मेरे पास नहीं है तो...।"
"साले...।" जुगल किशोर ने दांत भींचकर अपना हाथ घुमा दिया।
हाथ हेमंत के गाल से टकराया। उसके होंठों से चीख निकली।
अब मोबाइल बजना बंद हो गया।
"मुझे डॉयरी चाहिए या उसका पता-ठिकाना चाहिए कि वो कहां है। तू ही देवराज चौहान के साथ था। तेरे को जरूर पता है कि डॉयरी कहां है। चल तेरे को चालीस परसेंट दे दूंगा। अब ज्यादा चिक-चिक मत कर। निकाल डॉयरी।"
"तुम मुझ पर अपना वक्त खराब कर रहे हो।"
"तो तू नहीं देगा?" जुगल किशोर गुर्राया।
"है ही नहीं मेरे पास...।"
"हरामजादे! अभी तक मैं तेरे से शराफत से बात कर रहा हूं और तू मेरी शराफत का फायदा उठा रहा...।"
"ये तू शराफत से बात कर रहा है? डंडे मार रहा है मुझे...।"
"ये मेरी शराफत ही है। वरना नोटों के मामले में तो मैं लोगों की खाल उधेड़ देता हूं।" जुगल किशोर खतरनाक स्वर में बोला--- "मैं तेरे को अपना परमानेंट साथी बना लूंगा। मेरे साथ रहकर तू बहुत माल बनाएगा। परन्तु इस वक्त तू डॉयरी मेरे हवाले कर दे।"
"होती तो जरूर दे देता।"
"बहुत ढीठ है तू। चल तेरे को फिफ्टी परसेंट का पार्टनर बनाता हूं।"
"तू मुझे सौ परसेंट ही क्यों ना दे, पर डॉयरी मेरे पास नहीं है तो कैसे दे दूं तेरे को?"
"कुत्ता-साला!" कहने के साथ ही जुगल किशोर ने जोरदार घूंसा उसके चेहरे पर मारा।
हेमंत चीख कर नीचे लुढ़क गया।
जुगल किशोर ने आगे बढ़ कर पुनः डंडा उठा लिया।
तभी दरवाजा खुला और उसके साथी ने भीतर प्रवेश किया। वहां का हाल देखा।
"मैं कुछ करूं गुरु?" वो बोला।
"इसके पास डॉयरी है, वो मुझे लेनी है। कमीना मुझे दे नहीं रहा।"
"मेरे पास नहीं है...।" हेमंत तड़पा।
"गुरु! छःमहीने पहले भी एक आदमी ऐसे ही कहता था कि उसके पास कुछ नहीं है तो मैंने उसकी सारी हड्डियां तोड़ दीं। फिर वह कहने लगा कि मुझे अस्पताल पहुंचा दो मैं सब कुछ बता देता हूं।"
"अच्छा। लेकिन ये तूने किया कैसे?"
"इसी डण्डे से...।"
"ठीक है। अब तू ही कर। डंडा पकड़। लेकिन पहले इसका मुंह इस तरह बांध कि चीखे तो आवाज कमरे से बाहर ना निकले।"
"तुम क्यों मेरे पीछे पड़े हो। मेरे पास डॉयरी नहीं है। मैं नहीं जानता...।"
परन्तु उसके शब्दों की परवाह किसी ने नहीं की।
हेमंत का मुंह पहले की तरह बांध दिया गया।
"ले डण्डा पकड़ और अपना कमाल दिखा।" जुगल किशोर ने डंडा उसे थमा दिया।
डण्डा हाथ में आते ही वो हेमंत पर शुरू हो गया।
मुंह पर कपड़ा बंधा होने की वजह से हेमंत के होंठों से दबी-दबी चीख निकलने लगी।
■■■
बेल जाती रही। देवराज चौहान ने मोबाइल कानों से लगाए रखा।
सबकी नजरें देवराज चौहान पर थीं।
फिर देवराज चौहान ने फोन कान से हटा लिया।
"क्या हुआ?" हुसैन बेचैन स्वर में कह उठा।
"वो अभी फोन नहीं उठा रहा।" देवराज चौहान बोला।
"कौन?"
"जिसके पास डॉयरी है।" देवराज चौहान ने हुसैन को देखा।
"तु...तुमने डॉयरी किसी को रखने को दे रखी है?" मौला भी परेशान हुआ।
"हां...।"
"और वो जानता है कि डॉयरी सद्दाम हुसैन की दौलत से वास्ता रखती है?"
"पता है उसे...।"
"ये तो गलत बात हो गई।" वजीर खान का कह उठा--- "उसके मन में बेईमानी भी आ सकती है। वो डॉयरी किसी और को बेंच सकता है।"
"ऐसा नहीं करेगा वो।"
"क्यों?"
"क्योंकि वो मुझे अच्छी तरह जानता है कि मैं क्या हूं। वो मेरे से धोखा नहीं कर सकता।" देवराज चौहान ने कहा।
"बकवास! हिन्दुस्तान में बहुत धोखेबाज हैं, हमने ये बात महसूस कर ली...।"
"हिन्दुस्तान में बहुत अच्छे लोग भी हैं, ये बात तुमने महसूस क्यों नहीं की?" देवराज चौहान मुस्कुराया।
"जिसके पास डॉयरी है, वो तुम्हारी कॉल रिसीव क्यों नहीं कर रहा?"
"व्यस्त होगा। फोन इधर-उधर पड़ा होगा। नहा रहा होगा। ऐसी कोई भी बात हो सकती है।"
सब देवराज चौहान को देख रहे थे।
सोहनलाल और मेनन शांत थे।
मोहनलाल दारूवाला और लक्ष्मी ने एक दूसरे का हाथ थाम रखा था।
परन्तु पांचों ईराकी परेशान दिखने लगे थे।
"किसके पास है वो डॉयरी?"
"उसी हेमंत के पास, जिससे तुम लोग मिल चुके हो।" देवराज चौहान ने बताया।
"ओह...।"
"वो तो उसी बंगले पर होगा। वहां जाकर भी हम...।"
"क्या पता वो वहां न हो। कहीं और हो। जल्दबाजी मत करो। अभी उसका फोन आ जाएगा।" देवराज चौहान बोला।
"तुम्हें डॉयरी उसके हवाले नहीं करनी चाहिए थी, वो...।"
"तुम लोग खामखाह ही परेशान हो रहे हो। डॉयरी सुरक्षित है।" देवराज चौहान ने कहा और सिगरेट सुलगा ली।
पांचों की आपस में नजरें मिलीं।
तभी मोहनलाल कहे उठा---
"हमारा तो तुम लोगों में कोई काम नहीं। हमें एक कमरा दे दो।"
"कमरा--- क्यों?"
"ये भी कोई पूछने की बात है!" मोहनलाल दारूवाला कह उठा--- "हम शादीशुदा हैं, क्यों लक्ष्मी?"
"हां-हां, दस साल पहले फेरे लिए थे...।" लक्ष्मी ने तुरन्त कहा।
"लक्ष्मी को हीरोइन लेकर, मैं फिल्म बनाने वाला हूं। मुझे, इसे खूबसूरत रखना है और मैं जानता हूं कि ये कैसे और भी खूबसूरत बन जाएगी। उसके लिए कमरा चाहिए। इसकी खूबसूरती देखकर ही फिल्म हिट हो जाएगी। कहानी की कोई परवाह ही नहीं करेगा कि वो कैसी है। मैं वक्त बर्बाद नहीं करना चाहता। फिल्म की तैयारी शुरू कर देना चाहता हूं...।"
"वजीर!" शेख ने कहा--- "इन्हें एक कमरा दे दे...।"
"आओ...।" वजीर खान दरवाजे की तरफ बढ़ता कह उठा।
"चल लक्ष्मी।" मोहनलाल लक्ष्मी का हाथ थामे दरवाजे की तरफ वजीर के पीछे चल दिया--- "तू मुझे बिल्ली और दूध की बात समझा। तूने कहा था कि तूने उसे दूध की खुशबू सुंघाई थी, वो खुशबू क्या होती है?"
वो बाहर निकल गये।
जाकिर, देवराज चौहान से कह उठा---
"तुम उसे फोन लगाओ। अबकी बार भी उसने फोन पर बात नहीं की तो हम बंगले पर जाकर देखेंगे कि...।"
"जल्दी मत करो। थोड़ा इंतजार कर लो। उसका फोन आ जाएगा।"
"मिस्टर देवराज चौहान! सब्र तुम्हारे पास होगा, परन्तु डॉयरी के मामले में सब्र हमारे पास नहीं है। ये हम ही जानते हैं कि वो डॉयरी हमारे लिए और हमारे ईराक के लिए कितनी जरूरत रखती है। उस डॉयरी को वापस पाने के लिए ईराक से आये हमें कई महीने हो गए हैं। सुलेमान बाजमी साहब हमारी वजह से परेशान हो रहे होंगे कि डॉयरी हासिल करने में इतनी देर क्यों लग रही है। अब हम जल्दी ये काम खत्म करना चाहते हैं। तुम उसे फोन करो।"
देवराज चौहान ने पुनः हेमंत का नंबर मिलाया।
दूसरी तरफ फिर बेल जाने लगी।
सबकी निगाह देवराज चौहान पर थी।
देवराज चौहान गंभीर था। वो ये सोच रहा था कि हेमंत फोन पर बात क्यों नहीं कर रहा?
लंबी बेल जाने के बाद देवराज चौहान के कानों में आवाज पड़ी---
"हैलो...।"
देवराज चौहान के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा।
ये आवाज हेमंत की ना होकर, जुगल किशोर की थी।
दो पलों के लिए देवराज चौहान हक्का-बक्का रह गया।
"हैलो...।" जुगल किशोर की आवाज पुनः कानों में पड़ी।
"हेमंत कहां है?" देवराज चौहान की आवाज में कठोरता आ गई थी।
"कमाल है! मैं देवराज चौहान से बात कर रहा हूं। विश्वास नहीं होता।" उधर से जुगल किशोर के हंसने की आवाज आई।
"हेमंत कहां है?"
"मेरे सामने पड़ा है। परन्तु बात करने के काबिल नहीं है। डण्डों से इसकी इतनी पिटाई की गई है कि इस वक्त वह अपने को भी भूल बैठा है। साला बता ही नहीं रहा कि डॉयरी कहां रखी है इसने।"
देवराज चौहान के दांत भिंच गये।
"तुमने इराकियों को खूब बेवकूफ बनाया डॉयरी के चक्कर में। वो तो सोच भी नहीं सकते कि तुमने डॉयरी हेमंत को दे दी होगी। ये तो मैं ही हूं जिसने ये बात भांप ली और हेमंत को उठा लाया। लेकिन बहुत पक्का है। मानता ही नहीं कि डॉयरी इसके पास है। जो हाल मैंने इसका किया है उसे देखते हुए इसे डॉयरी अब तक दे देनी चाहिए थी।"
"तुम मेरे हाथ से बहुत बुरी तरह मरोगे जुगल किशोर!" देवराज चौहान गुर्रा उठा।
"क्यों डरा रहे हो। मेरी जीवन-रेखा बहुत लंबी है। फिर तुम्हारे हाथ से मरना तो मेरे हाथ में लिखा ही नहीं है। तुम हेमंत की बात करो अगर इसने मुझे डॉयरी नहीं दी तो, ये मर जाएगा। क्यों, क्या कहते हो?"
देवराज चौहान के मुंह से जुगल किशोर का नाम सुनकर सब चौंके थे।
"हेमंत को छोड़ दे जुगल किशोर!"
"डॉयरी?"
"वो उसके पास नहीं हैं।"
"ये मैं नहीं मान सकता। इस वक्त तुम्हारा फोन आना ही ये जाहिर करता है कि हेमंत के पास डॉयरी होने के फुल-फुल चांस हैं।"
"छोड़ दे उसे...।"
"मुझे डॉयरी चाहिए।"
"वो मेरे पास है। उसके पास नहीं है।" स्वर कठोर था देवराज चौहान का।
"तो तूने हेमंत को फोन क्यों किया अब?"
"हेमंत का मालिक, विनायक जगमोहन के साथ किसी काम के लिए चीन गया है। उसी सिलसिले में बात करने के लिए मैंने हेमंत को फोन किया। ये बात तू हेमंत से भी पूछ...।"
"मुझे सिर्फ डॉयरी चाहिए देवराज चौहान। डॉयरी दे दे, हेमंत को ले ले।" नहीं तो कल सुबह किसी सड़क पर इसकी लाश...।"
"तू बार-बार मेरे रास्ते में आ रहा...।"
"ये मामला मेरा था। तुम मेरे रास्ते में आये...।"
"मुझे वीरा त्यागी इस मामले में लाया। वो तेरा आदमी था। तू डबल गेम खेल रहा था। एक तरफ से रिचर्ड जैक्सन का अपहरण करके फिरौती लेने जा रहा था और दूसरी तरफ से तू वीरा त्यागी द्वारा उस फिरौती को रास्ते में ही लूट रहा था, ताकि तेरे को उस दौलत का बंटवारा ना करना पड़े अपने साथियों से। जो कुछ भी हुआ या हो रहा है उसका जिम्मेदार तू है।"
"मुझे डॉयरी देता है कि नहीं?"
"क्या करेगा डॉयरी का? ईराक जाकर सद्दाम हुसैन की दौलत तलाश करेगा कि कहां पर...।"
"मैं डॉयरी का सौदा इराकियों से करूंगा।"
"कितने में?"
"चार-पांच सौ करोड़ तो आसानी से मिल---।"
"मैं तेरे को डॉयरी के बदले आधे डॉलर दे सकता हूं---।"
जुगल किशोर की तरफ से फौरन आवाज नहीं आई।
"जवाब दे---।"
"तेरे को डॉलर कहां से मिले?"
"लग गये हाथ। सौदा करना है तो बोल। आधे डॉलर तेरे। हेमंत को तू छोड़ देगा।"
"और डॉयरी तू रखेगा?"
"उससे तेरे को कोई मतलब नहीं कि मैं डॉयरी का क्या करता हूं! तू आधे डॉलरों के बारे में सोच।"
"पांच करोड़ डॉलर?"
"पता नहीं वो कितने हैं! लेकिन लगभग आधे हैं। मुझे जो सूटकेस मिला, उसमें ही हैं वो।"
"सौदा मुझे मंजूर है।" जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी।
"तो हेमंत की हालत ठीक कर। हम कल दिन में मिलेंगे।" देवराज चौहान ने कहा।
"अब क्यों नहीं? पूरी रात अभी बाकी है।"
"मैं आराम करना चाहता हूं। वीरा त्यागी ने मुझे गोली मारी थी वो जख्म अभी ठीक हो रहा है।"
"मैंने वीरा त्यागी को समझाकर, पक्का करके भेजा था कि देवराज चौहान को मत मारना। परन्तु कमीने ने मेरी बात नहीं मानी। जब मैंने सुना कि उसने तुम्हें गोली मारी है तो मुझे बहुत दुख हुआ।"
"हेमंत की हालत ठीक कर और हम कल मिलेंगे।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
सबकी निगाह देवराज चौहान पर थी। वजीर खान भी वापस आ पहुंचा था।
"तुम मिस्टर जुगल किशोर से बात कर रहे थे?" जाकिर कह उठा।
"हां। उसने हेमंत को कब्जे में ले लिया है और उससे डॉयरी के बारे में पूछ रहा है।"
"ओह!" मौला बोला--- "ये तो बहुत बुरा हुआ...।"
"निश्चिंत रहो। हेमंत डॉयरी के बारे में उसे कुछ नहीं बताने वाला।" देवराज चौहान गंभीर था।
"ये बात तुम दावे के साथ तो नहीं कह सकते।" जाकिर बोला।
"हेमंत इस वक्त बात करने की हालत में नहीं था और उसने डॉयरी के बारे में भी नहीं बताया।"
"क्या पता अब बता दे!"
"वो नहीं बताएगा। वैसे भी जुगल किशोर अब शांत हो गया होगा कि हेमंत के बदले उसे पांच करोड़ डॉलर मिल रहे...।"
"तुम डॉलर उसे दे दोगे?"
"नहीं।"
"क्या मतलब?" मौला के माथे पर बल पड़े।
"तुम करना क्या चाहते हो?" शेख ने पूछा।
"कल मैं उससे हेमंत को लेने और डॉलरों वाला सूटकेस देने जाऊंगा।"
"खाली सूटकेस ले जाओगे?" बोला हुसैन।
"नहीं। उसमें डॉलर होंगे।" देवराज चौहान की निगाह टेबल पर खुले सूटकेस पर पड़ी--- "सब कुछ असल में होगा। परन्तु उसे डॉलर दूंगा नहीं---क्योंकि ये सौदा नहीं ब्लैकमेलिंग है।"
पल भर के लिए वहां खामोशी आ ठहरी।
सोहनलाल के होंठ भिंच गए थे।
"जब तक हमें डॉयरी नहीं मिल जाती, तुम कहीं नहीं जाओगे देवराज चौहान।" जाकिर गंभीर स्वर में बोला।
"क्या मतलब?"
"हम तुम्हें किसी भी तरह के खतरे में नहीं डालेंगे। क्योंकि अगर तुम्हें कुछ हो जाता है तो हमें डॉयरी नहीं मिलेगी। डॉयरी मिलने तक हम तुम्हें पूरी सुरक्षा देंगे। तुम कल जुगल किशोर से नहीं मिलोगे।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"फिक्र मत करो। जुगल किशोर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। मैं सब संभाल लूंगा।"
"हमने ऐसे काम बहुत देखे हैं। ऐसे मौके पर कभी भी कुछ भी हो जाता है। वो पांच-सात आदमी साथ ले आए और वो तुम पर गोलियां चलाने लगे तो तुम क्या कर लोगे? जुगल किशोर खतरनाक आदमी है। वो सिर्फ अपने बारे में सोचता है और कभी भी कुछ भी कर सकता है। हमें उस पर जरा भी भरोसा नहीं कि---।"
"मैं उसे संभाल लूंगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"हमें तुम्हारी बात मंजूर नहीं।" शेख कह उठा।
"बात को मंजूर करना पड़ेगा--- क्योंकि हेमंत उसके हाथों में फंसा है और डॉयरी उसके पास है।"
"ये काम हम करेंगे।" मौला ने कहा।
"बेवकूफी मत करो। शाम को करोलबाग में वो देख चुका है कि मोहनलाल ने तुम लोगों के साथ मिलकर उसे फंसाने की चेष्टा की। ऐसे में उसने इस मामले में तुम लोगों को देखा तो वो पूरी तरह सतर्क हो जाएगा और तब शायद हेमंत को ही मार दे और तुम लोगों को डॉयरी कभी नहीं मिल सकेगी। इस मामले में तुम लोगों का आना ही गलत हो जाएगा। मेरे बारे में जुगल किशोर ये बात सोच सकता है कि मैं जो काम करूंगा, वो कम से कम तुम लोगों के साथ मिलकर नहीं करूंगा। ये सोच उसे राहत देगी।"
"तुम उसे डॉलर नहीं देना चाहते?"
"हाँ, नहीं दूंगा।"
"तो तब झगड़ा हो सकता है। वो तुम्हें और हेमंत को गोली मार सकता है।"
"और हम गोली खा लेंगे?" देवराज चौहान तीखे स्वर में बोला--- "मैं क्या वहां गोली खाने जा रहा हूं? बच्चों की तरह बातें मत करो। इस वक्त मेरे से ज्यादा जरूरी है हेमंत का जिंदा रहना क्योंकि डॉयरी उसके पास है।"
वो पांचों एक-दूसरे को देखने लगे।
गंभीरता में डूबे देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।
"जो भी हो हम तुम्हें अकेले नहीं जाने देंगे।" जाकिर फैसले वाले स्वर में कह उठा।
"तुम लोगों का साथ होना सारे काम को खराब कर देगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"हम दूर रहेंगे।" जाकिर पुनः बोला।
"कितनी दूर?" देवराज चौहान ने जाकिर को देखा।
"इतनी दूर की कम से कम जुगल किशोर हमें वक्त से पहले ना देख सके। हम वहां रहकर तुम्हें और हेमंत को सुरक्षा देंगे। हम सांप पर भरोसा कर सकते हैं, परन्तु जुगल किशोर पर नहीं।"
"ठीक है, तुम लोग कल दूर रहना। जुगल किशोर से मैं ही बातचीत करूंगा।" देवराज चौहान कह उठा।
■■■
देवराज चौहान कमरे में पहुंचकर बैड पर लेटा तो रात के बारह बज रहे थे। सबने खाना खा लिया था। सोहनलाल कुछ देर बाद कमरे में आया और बैड के कोने पर बैठता कह उठा---
"अभी जुगल किशोर से तुम्हारी मुलाकात करना ठीक नहीं होगा।"
"क्यों?"
"कमर में गोली का जख्म ठीक नहीं हुआ है। आधा-अधूरा ही ठीक है। तीन-चार दिन और बीत जाते तो बेहतर रहता।"
"इतना ठीक हूं कि चल फिर सकूं और कल का काम निपटा सकूं।" देवराज चौहान ने कहा।
"परन्तु तुम तो जुगल किशोर को दौलत नहीं देना चाहते और हेमंत को उससे ले लेना चाहते हो।"
"हां...। मैं जुगल किशोर के हाथों ब्लैकमेल नहीं होने वाला।"
देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता उभरी।
"इसका मतलब वहां पंगा होगा।"
"हां, कुछ तो होगा।"
"तुम पूरी तरह ठीक नहीं हो। ऐसे में...।"
"मैं ठीक हूं। जुगल किशोर को संभाल ही सकता...।"
"मेनन को कल अपने साथ रख लो।"
"ये बेवकूफी होगी। इस काम में मेनन, जुगल किशोर का साथी रह चुका है। वो गड़बड़ को भांप लेगा।"
"ओह, ये बात तो मेरे ध्यान में नहीं।" सोहनलाल ने गहरी सांस ली।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"हेमंत को डॉयरी देकर तुमने गलत फैसला लिया।"
"फैसला ठीक था मेरा। परन्तु जुगल किशोर का दिमाग हेमंत तक जा पहुंचा। कोई और नहीं सोच सकता था कि हेमंत के पास डॉयरी हो सकती है। हेमंत ने भी मुंह नहीं खोला डॉयरी के बारे में। ये अच्छी बात रही।"
"ये मामला शुरू से ही उलझा रहा कि...।"
"सीधा-सीधा मामला था, परन्तु जुगल किशोर ने अपने लालच की वजह से मामले को उलझा दिया। अगर वो ठीक नीयत वाला होता तो मामला कब का खत्म हो जाना था और जरा भी शोर नहीं उठता।"
"बाकी के आधे डॉलर मोहनलाल के पास हैं।" सोहनलाल ने कहा।
"वो मर जाएगा परन्तु बाकी के आधे नहीं देगा। वैसे भी उन डॉलरों पर उसका हक बनता है।"
"वो फिल्म बनाने के चक्कर में है। सारा पैसा बर्बाद कर देगा।"
"हमें क्या?"
तभी दरवाजे पर आहट हुई और मोहनलाल दारूवाला ने भीतर प्रवेश किया।
दोनों की निगाह उस तरफ घूमी।
मोहनलाल उस बिल्ली की तरह लग रहा था, जो ताजी-ताजी दूध पीकर, मस्त लग रही हो।
"मैंने सुना, तुम्हारे उस हेमंत को हरामी जुगल किशोर ने उठा लिया है और तुमने डॉयरी उसे दे रखी है।" मोहनलाल बोला।
"हां...।" देवराज चौहान के होंठ हिले।
"वो कमीना तो उसके मुंह में भी हाथ डालकर डॉयरी निकाल लेगा। क्या पता ले भी ली हो।"
"अभी ऐसा कुछ नहीं हुआ।"
"मुझे नहीं पता था कि डॉयरी इतनी कीमती है, वो तो मैं जबर्दस्ती ही तुम्हें दे आया था। तुम ले नहीं रहे थे।"
देवराज चौहान मुस्कुराया।
"तुम जुगल किशोर को अपने हिस्से के आधे डॉलर देने को तैयार हो गए हो। पर इससे तुम्हें क्या फायदा? वो डॉयरी मिली तो उसे ईराकी ले लेंगे। तुम्हें तो कुछ ना मिला।" मोहनलाल दारूवाला ने कहा।
"मैं उसे डॉलर नहीं दूंगा।"
"नहीं दोगे? तो फिर ले जा क्यों रहे हो?"
"दिखाने के लिए। मैं ऐसे मक्कार बंदे की कोई चाल सफल नहीं होने दूंगा।"
"तुम्हारे साथ कौन होगा?"
"कोई नहीं...।"
"उसने तुम्हें थप्पड़ मारकर तुमसे डॉलर ले लिए तो?"
सोहनलाल ने गहरी सांस लेकर मुंह घुमा लिया।
"चिंता मत करो।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "ऐसा कुछ नहीं होगा।"
"मैं चलूं तुम्हारे साथ?"
"शाम को उसने देख लिया कि तुम् इराकियों के साथ मिले हुए हो। मेरे साथ तुम्हें देखकर वो फौरन महसूस कर लेगा कि कुछ गड़बड़ है। मैं उसे संभाल लूंगा। वैसे ईराकी भी वहां पर नजर रख रहे होंगे।"
"मैं तो पता नहीं किस तरह के चोर-उचक्को में फंस गया हूं। अच्छी भली रिटायर्ड फौजी की जिंदगी कट रही थी कि तुम सब लोगों से वास्ता पड़ गया। बस एक ही गलती की मैंने---।" मोहनलाल दारूवाला ने गहरी सांस ली।
"वो क्या?" देवराज चौहान पुनः मुस्कुराया।
"जो वहां दोबारा तुम्हें पानी पिलाने चला गया। लक्ष्मी ने बहुत रोका मुझे, परन्तु मैंने उसकी बात ना मानकर गलती की। तब से अब तक भुगते ही जा रहा हूं। कभी सोचा भी नहीं था चोर-उचक्कों से वास्ता पड़ेगा।"
"ओह...।" सोहनलाल उखड़ा--- "ये चोर-उचक्के नहीं डकैती मास्टर देवराज चौहान हैं।"
"मेरे लिए तो तुम सब चोर-उचक्के ही हो।" मोहनलाल दारूवाला ने कहा और कमरे से बाहर निकल गया।
मोहनलाल अन्य कमरे में लक्ष्मी के पास पहुंचा।
लक्ष्मी बैड पर टांगे फैलाए लेटी थी। चेहरे पर मौज के निशान दिख रहे थे।
"कहां चले गए थे तुम?" लक्ष्मी ने कहा।
"देवराज चौहान के पास।" बैड पर बैठा मोहनलाल दारूवाला कह उठा।
"क्या जरूरत है इन लोगों से मिलने की। तुम अब बड़े आदमी बनने वाले हो।"
"बड़ा आदमी?" मोहनलाल ने उसके खूबसूरत चेहरे को देखा।
"फिल्म बनाने नहीं जा रहे क्या?"
"वो... हां-हां...।"
"बड़े लोग ही फिल्म बनाते हैं।" लक्ष्मी ने नाज नखरे से कहा--- "छोटे लोगों के मुंह मत लगा करो।"
"ठीक है।" मोहनलाल ने शराफत से कहा।
"एक बात तो बताओ...।"
"बोल-बोल...!"
"फिल्मी दुनिया में मेरा नाम क्या रखोगे?"
"यही--- लक्ष्मी दारूवाला।"
"लक्ष्मी पुराने फैशन का नाम है।"
"साथ में दारूवाला लगा है ना। लक्ष्मी दारूवाला। दारू ऐसी चीज है जो हर फैशन में नई रहती है। तेरे को सब दारूवाला के नाम से जानेंगे। जैसा दारु पीने से नशा चढ़ता है ना, वैसे ही पब्लिक को तेरा नाम लेने पर नशा चढ़ेगा।"
"सच मोहनलाल...।"
"सच-सच-सच।" कहने के साथ ही मोहनलाल ने झपट कर लक्ष्मी को बांहों में भर लिया।
"ये क्या कर रहा है।"
"मैं जानता हूं कि तू किस तरह ज्यादा खूबसूरत हो उठती है। तेरे को ज्यादा खूबसूरत बना रहा हूं। हीरोइन को ज्यादा से ज्यादा खूबसूरत होना चाहिए। जब तू शादी हो कर आई थी तो खास कुछ नहीं थी, तेरे को मैंने ही खूबसूरत बनाया है। अब तो मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई है कि हीरोइन को और भी ज्यादा खूबसूरत बनाना है।"
"ओह मोहनलाल...।" लक्ष्मी उससे लिपट गई--- "मुझे और भी खूबसूरत बना दे।"
■■■
अगले दिन सुबह आठ बजे जुगल किशोर का फोन आने पर देवराज चौहान की आंख खुली।
"क्या प्रोग्राम है?" उधर से जुगल किशोर ने कहा--- "हेमंत को मार दूं क्या?"
"मैं आज तुम्हें मिलूंगा।" देवराज चौहान बोला--- "हेमंत को लेकर आना।"
"तुम डॉलरों वाला सूटकेस लेकर आओगे?"
"हां, वो तुम्हें दूंगा।"
"वैसे हैरानी है देवराज चौहान कि तुम हेमंत के बदले इतनी बड़ी दौलत देने को तैयार हो!"
"इसमें हैरानी क्या है?"
"क्योंकि हेमंत तुम्हारा कुछ नहीं लगता। ऐसे में तुम इतनी बड़ी दौलत क्यों दे रहे हो?"
"तुम्हें बेकार की बात नहीं...।"
"ये बेकार की नहीं, मेरे लिए सोचने वाली बात है। ये भी सोचने वाली बात है कि सारे डॉलर मोहनलाल के पास थे--- तो ऐसे में तुम्हारे पास डॉलर कहां से आ गये? कायदे का सवाल है।"
"मैंने डॉयरी के बदले डॉलर लिए हैं।"
"तो डॉयरी तुमने दे दी इराकियों को?"
"हां...। मोहनलाल इराकियों के कब्जे में है। उसने आधे डॉलर इराकियों को दिए--- और इराकियों ने मेरे से सौदा कर लिया।"
"मतलब की डॉयरी का सौदा हो गया?"
"हाँ...।"
"वो डॉयरी अभी इराकियों के पास है?"
"मैंने उन्हें दे दी थी।"
"तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते।"
"क्या मतलब?"
"तुम हेमंत को छुड़ा ही इसलिए रहे हो कि डॉयरी उसके पास रखी है तुमने।"
"खामखाह के हवाई फायर मत करो। डॉयरी इराकियों के हाथों में पहुंच चुकी है।" देवराज चौहान ने कहा--- "हेमंत के बदले डॉलर चाहिए तो ठीक है, वरना मैं फोन बंद करता हूं...।"
"अकेले आओगे?"
"हां...।"
"क्या भरोसा तुम साथ में दो-चार को ले आओ और डॉलर दिए बिना हेमंत को ले जाओ?"
"तुम्हें ऐसा लगता है तो तुम अपने साथ दस आदमी ले आओ।" देवराज चौहान ने कहा।
"देवराज चौहान!" जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी--- "पंगा तुम लो या मैं, ये बात हम दोनों के लिए नुकसानदेह हो सकती है। बेहतर यही होगा कि हम जो भी सौदा करने जा रहे हैं, वो आराम से निपट जाये।"
"मैं भी इसी पक्ष में हूं...।"
"मिलना कहां है?" जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी।
"ऐसी जगह कि अगर गोलियां चलने की नौबत आए तो दूसरे लोग खामखाह नहीं मरें।"
"और वो जगह कौन सी होगी?"
"किसी भी साधारण सड़क के किनारे।" देवराज चौहान बोला।
"तो सड़क तुम तय करोगे या मैं करूं?"
"तुम तय कर लो...।"
"पहाड़गंज कैसा रहेगा?"
"वहां ज्यादा भीड़ होती है। शंकर रोड की मार्केट के बाहर सड़क पर?"
"ठीक है। दस बजे...।"
"बारह बजे।"
"कोई चालाकी मत करना देवराज चौहान।"
"इस बात का ध्यान तुम रखना।"
"तुम्हें गोली लगी थी। जख्म का क्या हाल है?"
"बस इतना ही बेहतर हूं कि तुमसे सौदा कर सकूं।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
■■
12:10 बजे।
शंकर रोड मार्केट की बाहरी सड़क।
पास ही छोटी लालबत्ती थी। ट्रैफिक आ-जा रहा था। सड़क चौड़ी थी इसलिए जाम लगने की स्थिति नहीं आ रही थी। उन्हीं वाहनों की भीड़ में से एक कार सड़क के किनारे पर पहुंची और पतले से फुटपाथ के ऊपर दो पहिए चढ़ाकर ठहर गई। चूंकि वो कार साइड में रुकी थी, इसलिए दौड़ते ट्रैफिक को उससे कोई समस्या नहीं आई।
कार ड्राइविंग डोर खोलकर देवराज चौहान बाहर निकला और हर तरफ नजर मार कर सिगरेट सुलगा कर कश लिया, फिर मोबाइल निकाल कर हेमंत का नंबर मिलाया।
"हैलो।" जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी।
"मैं शंकर रोड मार्केट के सामने वाली सड़क पर पहुंच गया हूं।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैं देख रहा हूं।"
"आ जाओ।" देवराज चौहान की निगाह हर तरफ घूमने लगी।
"मैं तुम्हारे साथ आये लोगों को तलाश रहा हूं...।"
"अकेला आया हूं...।"
"अकेला तो मैं भी हूं, परन्तु जरूरत पड़ने पर मेरे दस आदमी आ जायेंगे।" जुगल किशोर का सोच भरा स्वर कानों में पड़ा।
"ठीक है। तुम मेरे आदमियों को तलाश कर लो। तसल्ली हो जाये तो मेरे पास आ जाना।" देवराज चौहान ने कहकर फोन बंद कर दिया।
कार से टेक लगाए सिगरेट के कश लेता रहा देवराज चौहान।
सिगरेट समाप्त हुई तो नीचे गिराकर जूते से मसल दी।
दस मिनट बीते।
एक तरफ से जेब में हाथ डाले जुगल किशोर अकेला ही आता दिखा।
देवराज चौहान उसे देखता रहा।
जुगल किशोर पास आकर ठिठका और मुस्कुराया।
देवराज चौहान शांत सा उसे देखता रहा।
"क्या देख रहे हो?"
"सोच रहा हूं कि जैसी तुम्हारी हरकतें हैं, उन्हें देखते हुए तो अब तक तुम्हारी हत्या हो जानी चाहिए थी।"
"लेकिन फिर भी जिंदा हूं।" जुगल किशोर हंसा।
"कोई मार देगा तुम्हें...।"
"मैं किसी को ऐसा मौका ही नहीं देता कि वो मार सके ।"
"पीछे से कोई गोली मारेगा।"
"पीछे मैं रास्ता ही नहीं छोड़ता। दीवार के साथ पीठ लगाकर खड़ा होता हूं--- और ऐसी कोई गली नहीं बनी जो दीवार में छेद कर सके।"
"तुम जैसा इंसान ज्यादा देर जिंदा नहीं रह सकता। हेमंत कहां है?"
"मेरे आदमियों के पास। वो करीब ही हैं। पहले मुझे डॉलर दिखाओ।"
"पीछे की सीट पर हैं। देख सकते हो...।" जुगल किशोर ने सतर्कता भरी नजर सब तरफ मारी।
सब ठीक लगा उसे।
फिर उसने कार का पीछे का दरवाजा खोला और सीट पर पड़े सूटकेस की तरफ झुक गया। उसे सीधा किया और उसे खोल कर देखा। सूटकेस लबालब डॉलरों से भरा हुआ था। जुगल किशोर की आंखें चमक उठीं।
उसने गड्डियां उठाकर नीचे की गड्डियां देखीं।
सब ठीक पाया, पूरा सूटकेस डॉलर की गड्डियों से भरा पड़ा था। गड्डियां पुनः ठीक से लगाकर उसने सूटकेस बंद किया और पलटकर देवराज चौहान को देखा और कह उठा---
"अब तो इसे मैं ले सकता हूं?"
"हेमंत को मेरे पास लाओ और सूटकेस ले जाओ।"
"डॉयरी हेमंत के पास है ना?" जुगल किशोर बोला।
"वो इराकियों के हाथों में पहुंच चुकी है।"
"मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं। तुम हेमंत को छुड़ाने के लिए मुझे इतनी बड़ी दौलत नहीं दे सकते।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"वो तुम्हारा कुछ भी नहीं लगता कि तुम उसके लिए इतना पैसा खर्च करो।"
"तुम सौदा नहीं करना चाहते?"
"क्यों नहीं चाहता?"
"तो डॉलर तुमने देख लिए हैं--- परन्तु हेमंत मुझे अभी तक नहीं दिखा।" देवराज चौहान ने कहा।
तभी जुगल किशोर ने पचास कदम दूर खड़े आदमी को हाथ से इशारा किया।
वो आदमी अपनी जगह से हटा और एक तरफ चला गया।
"पांच मिनट में हेमंत यहां पर होगा।" जुगल किशोर बोला।
देवराज चौहान खामोश रहा।
"तुमने कभी सोचा कि मेरे साथ काम करके तुम्हें कैसा लगेगा?" जुगल किशोर कह उठा।
"तुम्हारे साथ और काम...।" देवराज चौहान बरबस ही मुस्कुरा पड़ा।
"क्या बुरा है?"
"बुरा ही बुरा है। इसमें सबसे बुरी तो तुम्हारी नियत है।" देवराज चौहान मुस्कुरा रहा था--- "तुम हर चीज में खुद ही खा जाना चाहते हो। जबकि साथियों का ध्यान तो पहले रखना होता है--- क्योंकि इसी दुनिया में रहना है। ये ही काम करना है। कभी भी दोबारा किसी की जरूरत पड़ सकती है। बदनामी हासिल करके ये धंधे नहीं किए जा सकते।"
"मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरा काम चलता रहता है।"
"क्या कभी कोई तुम्हारे पास आया कि मिलकर काम करते हैं? अगर तुम्हारी साख होगी तो लोग तुम्हारे पास जरूर आते होंगे।"
"मेरे पास कोई नहीं आता क्योंकि कोई नहीं जानता कि मैं कहां रहता हूं...।"
"तुम्हारे साथ काम करने के लिए कभी तुम्हें तलाशता कोई तुम तक पहुंचा?"
"नहीं। परन्तु काम के हिसाब से मैं ही लोगों को इकट्ठे कर लेता हूं।"
"पहले तुम ठगी का धंधा किया करते थे।"
"वो बेकार का काम था। खतरा उसमें भी कम नहीं था। परन्तु उसमें वक्त ज्यादा और कभी-कभी हाथ कुछ भी नहीं लगता था।"
"तुम्हें वही काम करते रहना चाहिए था। अब जिन कामों में तुम हो, तुम्हें कोई मार देगा।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
"मेरी परवाह मत करो। अगर तुम मुझे अपने साथ मिलाकर कोई काम करते हो तो यकीन करो, तुम्हें धोखा नहीं होगा।"
"ये बात मुझे पसंद नहीं कि तुम्हें अपने काम में साथ लूं।"
"मैं इतना बुरा तो नहीं।"
"लोगों से पूछो।"
"तुम ही बता दो।"
"मेरे जवाब से तुम्हें समझ जाना चाहिए कि तुम क्या हो। मेरी राय है कि तुम्हें दौलत नहीं लोगों का विश्वास कमाना चाहिए। अगर अंडरवर्ल्ड में जिंदा रहना और लंबे चलना चाहते हो। वरना तुम जैसी आदतों वाले आए दिन मरते रहते हैं।"
"मैं तो एक बार भी नहीं मरा।" जुगल किशोर हंस पड़ा।
देवराज चौहान चेहरे पर मुस्कान समेटे जुगल किशोर को देखता रहा। फिर बोला---
"जल्दी मरोगे। शायद मुझे खबर भी ना मिले तुम्हारे मरने की।"
"तुम डॉलर मुझे दे रहे हो, ये इतनी बड़ी रकम है कि इससे मैं खुद को हमेशा के लिए सुरक्षित कर लूंगा। पांच करोड़ डॉलर मेरे लिए खजाने से कम नहीं हैं, इसी कारण इन्हें पाने के लिए हाथ-पांव मार रहा था। इतनी दौलत हाथ में आ जाने के बाद मुझे कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी और बाकी की जिंदगी शान से बिताऊंगा। दोनों हाथों से भी दौलत लुटाऊं तो मुझे पन्द्रह साल तक भी कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। तब तक मेरे दुश्मन मर-खप चुके होंगे या मुझे भूल चुके होंगे।" जुगल किशोर के चेहरे पर खुशी से भरी चमक थी--- "अगर एक बार तुम्हारे साथ काम कर लेता तो मुझे और भी ज्यादा खुशी होती।"
"तुम जैसे इंसान को कोई भी समझदार इंसान अपने साथ काम में नहीं लेना चाहेगा। तुम्हारी लालच से भरी आदत कभी भी दूसरे के लिए मुसीबत खड़ी कर देगी। कभी सोचना भी मत कि तुम मेरे साथ काम करोगे कभी...।"
"मैं तुम्हारे बिना भी ठीक हूं...।" जुगल किशोर दूसरी तरफ देखता कह उठा--- "आ गया हेमंत...।"
देवराज चौहान की नजर घूमी।
दो आदमियों के बीच चलता हेमंत ही आ रहा था।
देवराज चौहान एकटक हेमंत को पास आते देखने लगा।
"अब तो मैं सूटकेस ले सकता हूं...।" कहते हुए जुगल किशोर ने कार के पीछे का दरवाजा खोलना चाहा।
"अभी नहीं। हेमंत को पास आने दो और जब तुम्हारे दोनों आदमी चले जायें तब सूटकेस लेना।" देवराज चौहान ने कहा।
"ये क्या बात हुई...।" जुगल किशोर भुनभुनाया।
हेमंत पास आ पहुंचा। उसके चेहरे पर शांति थी देवराज चौहान को देखकर। परन्तु ठुकाई के निशान भी थे माथे व चेहरे पर।
"ठीक है।" जुगल किशोर उन आदमियों से बोला--- "तुम लोग जाओ।"
वो दोनों पलटकर चले गये।
"डॉयरी कहां है?" देवराज चौहान ने हेमंत से पूछा।
"मेरे पास ही है।" हेमंत ने जुगल किशोर पर नजर मारकर कर कड़वे स्वर में कहा--- "इस कमीने ने मेरी बहुत ठुकाई की डंडों से। सारा शरीर टूट रहा है। कई जगह तो जख्म भी हो गए हैं। इसने---।"
"अपने दुख-दर्द बाद में एक-दूसरे को सुनाना।" जुगल किशोर बोला--- "मैं सूटकेस लेने जा रहा हूं। मुझे तो पहले से ही शक था कि डॉयरी इसी के पास है। इसी वास्ते तुम इतनी बड़ी रकम मेरे को देने को तैयार हो गये---तभी...।"
जुगल किशोर ने कार का दरवाजा खोला तो देवराज चौहान कह उठा---
"ये डॉलर मैं तुम्हें देने नहीं, दिखाने के लिए लाया था।"
जुगल किशोर ने चौंककर देवराज चौहान को देखा।
"क्या मतलब?" उसके होंठों से निकला।
"इन डॉलरों को तुम्हें देने का मेरा इरादा नहीं है।" देवराज चौहान ने जुगल किशोर को कार से पीछे किया और दरवाजा बंद कर दिया।
जुगल किशोर हक्का-बक्का देवराज चौहान को देखने लगा।
देवराज चौहान के चेहरे पर सख्ती आ गई थी।
"तुम...तुम तो जुबान वाले इंसान माने जाते हो... तुम...।"
"तुम जैसे बेईमानों के लिए नहीं।"
"तुमने मेरे से सौदा किया था देवराज चौहान।" जुगल किशोर दांत भींच कर कह उठा।
"ये सौदा नहीं, तुम्हारी ब्लैकमेलिंग थी। इस समय तुम खाली हाथ हो तो ये भी तुम्हारे लालच का नतीजा है। अगर तुमने कदम-कदम चालाकियां ना दिखाई होतीं तो इज्जत से तुम्हारे हाथ कुछ-ना-कुछ तो आ ही गया होता। परन्तु...।"
"तुम ऐसा नहीं कर सकते।" जुगल किशोर दांत भींच कर कह उठा।
"मैं ऐसा कर रहा हूं...।"
तभी हेमंत ने जोरदार घूंसा जुगल किशोर के चेहरे पर जमा दिया।
जुगल किशोर लड़खड़ाकर एक कदम पीछे हुआ, गाल लाल सा हो गया।
"तूने बहुत डंडे मारे थे मुझे हरामी के, तेरी तो...।"
"देवराज चौहान!" गुर्रा उठा जुगल किशोर--- "सीधी तरह मुझे डॉलर दे दे, वरना...।" कहने के साथ ही जुगल किशोर ने रिवाल्वर निकाली और रुख देवराज चौहान की तरफ कर दिया--- "तू जान से जाएगा।"
देवराज चौहान के कठोर चेहरे पर मुस्कान नाच उठी।
"तेरे को अपनी जान की चिंता करनी चाहिए जुगल किशोर। इस वक्त तू अपना कीमती समय खराब कर रहा है।"
"रिवाल्वर मेरे हाथ में है और कहता है कि मुझे अपनी जान की चिंता करनी---।"
"वो ईराकी हुसैन, जाकिर, मौला, वजीर खान और शेख इस वक्त यहीं हैं---और तेरे को मारने का इरादा रखे हुए हैं।"
"क्या?" जुगल किशोर चिंहुक उठा।
जुगल किशोर की निगाह फौरन हर तरफ घूमने लगी।
इराकियों को तो तभी सिग्नल मिल गया कि उन्हें आगे बढ़ना चाहिए, जब हेमंत ने जुगल किशोर को घूंसा मारा था। वैसे भी उन्होंने हेमंत के सामने आने का इंतजार करना था और तब तक वो सड़क किनारे दूर खड़ी कार में हथियारों के साथ बैठे रहे थे। हेमंत के आ जाने पर वो बाहर निकले और धीमी चाल से सावधानी से इसी तरफ आने लगे थे।
जुगल किशोर की निगाह फौरन उन पांचों पर जा टिकी।
परन्तु वे अभी कुछ दूर थे।
जुगल किशोर के चेहरे पर कई रंग आकर गुजर गए। कल शाम ही इनके हाथों से मरते-मरते बचा था। जानता था कि ये ईराकी उसे धोखेबाजी की सजा के बदले मौत देने पर आमादा हैं। जुगल किशोर के दांत भिंचने लगे। उसके होंठों से गुर्राहट निकली और देवराज चौहान को देखा। देवराज चौहान के कठोर चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नाच रही थी। यूं जुगल किशोर के अपने लोग भी वहां मौजूद थे। परन्तु वे कुछ दूर से नजर रखे हुए थे--- और इस तरफ से लापरवाह थे कि सब ठीक चल रहा है।
"तू बचेगा नहीं देवराज चौहान। उन लोगों को तू अपने साथ लेकर आया...वो...।"
"मैं उन्हें नहीं लाया। तेरे को मारने के लालच में वो साथ चल पड़े।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "वक्त बर्बाद मत कर। जान बचा सकता है तो बचा ले। उनके बारे में पहले बताकर मैंने तेरे को जान बचाने का शानदार मौका दिया है।"
"मैं तेरे को जिंदा नहीं छोडूंगा। तू मेरे हाथों से नहीं बचेगा देवराज चौहान। तूने मेरे से धोखा किया...।" अगले ही पल जुगल किशोर पलटा और भागा, जिधर मार्केट थी। रिवाल्वर अभी भी उसके हाथ में दबी हुई थी।
उसे भागते पाकर कुछ दूरी पर आते वो ईराकी भी तेजी से भागे।
देखते ही देखते वे उस तरफ दौड़ते चले गए, जिधर जुगल किशोर गया था।
"आओ हेमंत, हम चलते हैं।" देवराज चौहान दरवाजा खोलकर ड्राइविंग सीट पर बैठता कह उठा।
हेमंत बगल वाली सीट पर जा बैठा।
देवराज चौहान ने कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।
"हमें देखना चाहिए कि जुगल किशोर का क्या हाल...।"
"पता चल जाएगा।"
"कमीने ने डंडों से बहुत मारा मुझे। उसका आदमी भी मारता रहा।" हेमंत दर्द भरे स्वर में कह उठा--- "मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मैं अस्पताल में भर्ती होना चाहता हूं। मेरी हालत सच में ठीक नहीं है देवराज चौहान।"
"डॉयरी कहां है?"
"वो मैंने छुपा रखी...।"
"वो मुझे दे दो। उसकी मुझे जरूरत है। उसके बाद जिस नर्सिंग होम में कहोगे, वहीं छोड़ दूंगा।" देवराज चौहान ने कहा।
■■■
शाम चार बजे।
निजामुद्दीन का वही ठिकाना।
मौला, शेख, जाकिर और वजीर खान परेशान से एक कमरे में मौजूद थे। वहां पर सोहनलाल, मेनन, मोहनलाल दारूवाला और लक्ष्मी भी थे। पांचों इन लोगों से जाने कितनी बार पूछ चुके थे कि क्या उनमें से कोई जानता है कि देवराज चौहान का ठिकाना कहां है? कहां मिलेगा वो?
परन्तु कोई जवाब नहीं दे पा रहा था उनकी बात का।
सोहनलाल पर दवाब डालकर, देवराज चौहान के बारे में पूछा जा रहा था। परन्तु सोहनलाल का हर बार यही कहना रहा कि वो नहीं जानता था कि देवराज चौहान का ठिकाना कहां है। वो कहां मिलेगा। ऐसा जवाब देने के पीछे वजह ये थी कि उसे नहीं मालूम था कि देवराज चौहान के मन में क्या है? वो इन्हें डॉयरी देना चाहता है या नहीं।
"गलती हम सब की थी।" हुसैन होंठ भींचे कह उठा--- "हम सब ही उस कमीने जुगल किशोर के पीछे भाग खड़े हुए। जबकि हम में से एक को देवराज चौहान के पास रुकना चाहिए था--- और वो भी मौका पाते फरार हो गया।"
"शायद वो हमें डॉयरी नहीं देना चाहता होगा।" शेख ने कहा।
"वो बात बाद की है। गलती हमसे हो चुकी है उसे वहां अकेला छोड़कर।" मौला ने गुस्से से कहा।
"जनाब सुलेमान बाजमी साहब को हम क्या जवाब देंगे कि हम इतने बेवकूफ हैं कि...।"
"हमें कुछ करना होगा।" जाकिर अपने चेहरे पर हाथ फेरता कह उठा।
"अब हम कर भी क्या सकते हैं?"
"देवराज चौहान की तलाश करेंगे। उससे डॉयरी लेंगे।"
"उसका ठिकाना ढूंढेंगे। बेशक महीना दो महीना ही क्यों ना लग जायें। ये सोहनलाल हमारी मदद करेगा।"
"मैं?" सोहनलाल के होंठों से निकला।
"क्यों--- तुम क्यों नहीं?" जाकिर ने सोहनलाल को घूरा--- "हम तुम्हारे वक्त का तुम्हें मेहनताना देंगे। तुम्हारी देवराज चौहान से पहचान है। तुम उसकी पहचान के कई लोगों को जानते होगे। जैसे भी हो हम देवराज चौहान को ढूंढ कर ही रहेंगे। इस हिन्दुस्तान में हर कोई बेईमान है। जुगल किशोर ने हमें धोखा दिया। देवराज चौहान ने धोखा दिया--- हम तो...।"
"मैंने तो धोखा नहीं दिया।" मोहनलाल दारूवाला कह उठा--- "मैंने तो आधे डॉलर भी दे दिए तुम लोगों को...।"
"तुमने भी हमें धोखा दिया। अगर तुम पहले ही हमारी कैद से ना भागते और हमें डॉयरी दे देते तो इस वक्त हम ईराक में होते। तुम हमारी कैद से भाग निकले और वो डॉयरी तुमने देवराज चौहान को दे दी। यहां सब धोखेबाज...।"
"चुप रह मोहनलाल...।" लक्ष्मी कह उठी--- "इनसे तो बात करना ही बेकार है।"
"तुम ठीक कहती हो। इन पाकिस्तानियों से बातचीत करना हमेशा ही बेकार...।"
"हम पाकिस्तानी नहीं, ईराकी हैं।" वजीर खान गुर्रा उठा।
"हिन्दुस्तानी फौजी को हर दुश्मन पाकिस्तानी दिखता है। तुम लोग मेरे लिए तो पाकिस्तानी ही हो।" मोहनलाल दारूवाला उखड़े स्वर में कह उठा।
"चुपकर मोहनलाल।" लक्ष्मी बोली--- "दुश्मनों के मुंह नहीं लगते ज्यादा।"
"तू ठीक कहती है।" मोहनलाल ने लक्ष्मी को देखा फिर मुस्कुरा कर बोला--- "तू पहले से खूबसूरत हो गई लगती है।"
"क्यों ना होऊंगी!" लक्ष्मी अदा के साथ इतरा कर बोली--- "फिल्म की हीरोइन जो बनने वाली हूं।"
"टॉप की हीरोइन...।" मोहनलाल मुस्कुराया।
"वो ही तो...।"
तभी जाकिर गंभीर और परेशान स्वर में कह उठा---
"देवराज चौहान की नियत शुरू से ही खराब थी, जो कि हम पहचान ना सके। वो मरहूम सद्दाम हुसैन साहब की दौलत पा लेना चाहता होगा। परन्तु वो ऐसा नहीं कर पाएगा। हम उसे कामयाब नहीं होने देंगे। इसके लिए वो ईराक जाएगा और हम उसे पकड़ लेंगे।"
"हम उसे पहले ही हिन्दुस्तान में पकड़ लेंगे।" वजीर खान दांत किटकिटा उठा--- "वो जानता नहीं अभी कि हमारे हाथ कितने लंबे हैं और हम कितने खतरनाक हैं। हम उसे...।"
"हमारा तो यहां कोई काम नहीं।" मोहनलाल कह उठा--- "मुझे बहुत काम करने हैं। हम चलें लक्ष्मी?"
"हां-हां चलो...।" लक्ष्मी ने उसी पल मोहनलाल की कलाई थाम ली।
तभी शेख ने सोहनलाल से कहा---
"उसका नंबर फिर मिला।"
"कोई फायदा नहीं।"सोहनलाल ने गंभीर स्वर में कहा--- "देवराज चौहान के फोन का स्विच ऑफ आ रहा...।"
उसी वक्त दरवाजे पर कदमों की आहट गूंजी और एक अन्य ईराकी ने भीतर प्रवेश किया।
"वो आ गया।"
"कौन?"
"देवराज चौहान...।"
■■■
ये सुनते ही पांचों सन्न से रह गये।
वो तो देवराज चौहान के आने की उम्मीद छोड़ चुके थे और उसे ढूंढने का प्रोग्राम बना रहे थे।
उनके मुंह से कोई बोल ना फूटा।
तभी खुले दरवाजे से देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया। हाथ में काली जिल्द वाली डॉयरी थमी थी।
पांचों के चेहरे उसे और डॉयरी को देखते ही खिल उठे।
सोहनलाल ने गहरी सांस ली।
"ये लो।" देवराज चौहान ने डॉयरी वाला हाथ आगे बढ़ाया--- "तुम लोग यही चाहते थे ना?"
वजीर खान झपट्टा मारने वाले अंदाज में आगे बढ़ा और डॉयरी लेकर उसे खोल-खोल कर देखने लगा। ऐसा करते समय उसके हाथों में हो रहा कंपन स्पष्ट दिखाई दे रहा था।
"यही है!" वजीर खान के होंठों से खुशी से कंपकंपाता स्वर निकला--- "यही है वो डॉयरी! सुलेमान बाजमी साहब ने इसी डॉयरी को लाने को कहा था। मैंने मरहूम सद्दाम हुसैन साहब की लिखाई पहचान ली है। ओह, हमने फतह हासिल कर ली! डॉयरी पा ली। ईराक अब फिर जिंदा हो जाएगा और अमेरिका को हम सबक सिखा कर रहेंगे।" वजीर खान की खुशी बयान नहीं की जा सकती थी।
मौला ठठाकर हंसा और आगे बढ़कर देवराज चौहान के गले जा लगा।
"हिन्दुस्तानी कितने ईमानदार होते हैं, ये हमने देख लिया है देवराज चौहान...। हम तुम्हें कभी नहीं भूलेंगे।"
"मोहनलाल।" लक्ष्मी बोली--- "कुछ देर पहले तो ये हिन्दुस्तानियों को गालियां दे रहा...।"
"ये पाकिस्तानी ऐसे ही होते हैं। कभी कुछ कहते हैं तो कभी...।"
"हम ईराकी हैं।" वजीर खान डॉयरी थामे हंसकर कह उठा।
"एक फौजी के सामने तुम लोग पाकिस्तानी ही हो।" मोहनलाल दारूवाला जिद्द भरे स्वर में कहा उठा।
सोहनलाल ने देवराज चौहान से पूछा---
"तुमने इतनी देर कैसे लगा दी?"
"हेमंत के साथ था। जुगल किशोर ने उसे डंडों से पीटा था। उसकी हालत बुरी हो रही थी। उसे डॉक्टर के पास ले गया। फिर उसे विनायक के बंगले पर छोड़ा और तब यहां आया...।"
"तुम्हारे फोन का स्विच ऑफ आ रहा...।"
"चार्जिंग खत्म हो गई है।" देवराज चौहान बोला--- "जुगल किशोर का क्या हुआ? मार दिया उसे इन लोगों ने?°
"वो बचकर भाग निकला।" सोहनलाल कहते हुए मुस्कुरा पड़ा।
"किस्मत का तेज निकला। परन्तु वो जल्दी मरेगा। बेईमानी और लालच उसे ले डूबेगा।" देवराज चौहान ने कहा।
उधर जाकिर कह रहा था।
"हमें आज रात ही डॉयरी के साथ ईराक के लिए चल देना चाहिए। जुगल किशोर हमारे हाथों से बच निकला है। उसे ना तो डॉयरी मिली और ना ही दौलत। वो चैन से नहीं बैठेगा। इससे पहले कि वो कुछ और करे, हमें हिन्दुस्तान छोड़ देना चाहिए।"
"ये ठीक रहेगा। हम आज ही ये देश छोड़ देंगे।"
"हमारे हिन्दुस्तानी दोस्तों!" शेख सबसे कह उठा--- "हम वापस ईराक जा रहे हैं। हमारी किसी हरकत या हमारे शब्दों की वजह से किसी को दुख पहुंचा हो तो उससे हम माफी मांगते हैं। तुम लोग अब कहीं भी जाने को आजाद हो।"
वो पांचों डॉयरी के साथ बाहर निकल गए।
"भाग ले मोहनलाल!" लक्ष्मी बोली--- "फिर कोई मुसीबत ना आ जाये!"
तभी देवराज चौहान ने मोहनलाल दारूवाला से कहा---
"तुम फिल्म बनाओगे इन पांच करोड डॉलर से?"
"हां। तुम भी अगर फिल्म बना रहे हो तो लक्ष्मी को हीरोइन...।"
"मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। लेकिन मुंबई पहुंच कर तुम इन पैसों से सिर्फ फिल्म का मुहूर्त ही कर पाओगे।"
"क्या मतलब?"
"नये बंदे के साथ ऐसा ही होता है। अगर तुम वास्तव में फिल्म बनाना चाहते हो तो मुंबई पहुंच कर मुझे फोन करना। मैं तुम्हें ऐसे आदमी से मिलवा दूंगा जो अपना खर्चा लेकर तुम्हारी फिल्म बनवा देगा।" देवराज चौहान ने अपना मोबाइल नंबर बताया।
"ओह, तुम फिल्म इंडस्ट्री को जानते हो?" मोहनलाल बोला।
"ज्यादा नहीं, थोड़ा बहुत जानता हूं। कम से कम तुम्हारी फिल्म बनवा दूंगा और पैसे भी बच जाएंगे। ये काम मैं इसलिए कर रहा हूं कि तुम शरीफ हो। मैं नहीं चाहता कि फिल्म के बहाने कोई तुम्हें लूट ले।" देवराज चौहान ने कहा।
"ओह शुक्रिया।" मोहनलाल खुश हो गया--- "तुम कितने अच्छे इंसान हो।"
"मेरा फोन नंबर याद कर लो...।"
"वो तो मैंने तभी कर लिया था जब तुमने बताया...।"
"जुगल किशोर से सावधान रहना।" देवराज चौहान ने हिदायत दी।
"वो कमीना...।" मोहनलाल दारूवाला के नथुने फूलने लगे--- "अब के उसने फौजी से पंगा लिया तो उसके सिर में गोली फोड़ दूंगा। मेरी लक्ष्मी को जबरदस्ती उठाकर ले गया। खुद को बिल्ली कहने लगा और...।"
"बस मोहनलाल।" लक्ष्मी ने टोका--- "बिल्ली और दूध की बात मत करो...।"
"ठीक है। ठीक है।"
उसके बाद देवराज चौहान, सोहनलाल, मेनन, दारूवाला और लक्ष्मी एक साथ उस ठिकाने से निकले और सब अपनी-अपनी राहों पर बढ़ गए।
सोहनलाल, देवराज चौहान के साथ ही था।
मोहनलाल दारूवाला, लक्ष्मी का हाथ थामे, फुटपाथ पर तेजी से आगे बढ़ता कह रहा था---
"ताश के पत्ते तो बहुत बार सीधे पड़े, परन्तु नसीब के पत्ते पहली बार सीधे पड़े हैं। उन पत्तों ने हमें कितना अमीर बना दिया। मैं फिल्म बनाऊंगा तू उसमें हीरोइन होगी और एक ही फिल्म में तू टॉप पर पहुंच जायेगी।"
"मोहनलाल!" लक्ष्मी मुंह लटका कर कह उठी।
"अब क्या हो गया?"
"मुझे और भी खूबसूरत बनना है...। बना दे न...।"
"अब यहीं पर तुझे खूबसूरत बनाने से रहा। घर चल, वहां तेरे को और भी खूबसूरत बनाऊंगा। अब काम ही क्या है मेरे को। तेरे को खूबसूरत बनाना है और फिल्म बनानी है। चकाचक करके तेरे को पर्दे पर पेश करूंगा, मेरी टॉप की हीरोइन...।"
समाप्त
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