पुलिस कंट्रोल रूम को की गयी आकाश अंबानी की कॉल के जवाब में जो पुलिसवाला अंबानी नर्सिंग होम पहुँचा, वह सब इंस्पेक्टर नरेश चौहान था, जो कि कोरोना की वजह से मार्च 2020 में देश भर में लगे कर्फ्यू के दौरान गठित की गयी दिल्ली पुलिस की ही एक शाखा एफआईबी में तैनात था। यह एक ऐसा डिपार्टमेंट था, जो कि सीधा पुलिस हेडक्वार्टर से ऑपरेट करता था।

नरेश चौहान वहाँ इंस्पेक्टर गरिमा देशपाण्डेय की टीम में था और उसके मातहत काम करने वाले पुलिसियों में सबसे ज्यादा भरोसेमंद ऑफिसर था। ऊपर से बेहद शॉर्प माइंडेड और ईमानदार पुलिसवाला था, जिसके कारण गरिमा के साथ उसकी बहुत अच्छी निभ रही थी।

दो सिपाहियों के साथ पुलिस जीप में सवार होकर वह हॉस्पिटल पहुँचा था, मगर भीतर अकेला ही गया। बाकी के दोनों पुलिसवाले बाहर गाड़ी में बैठकर उसका इंतजार करने लगे।

रिसेप्शन पर पहुँचकर उसने आकाश अंबानी के बारे में दरयाफ्त किया तो वहाँ बैठी नर्स ने दस कदमों की दूरी पर ओटी के बाहर खड़े मर्द की तरफ इशारा कर दिया।

“थैंक यू सिस्टर।” कहकर वह आगे बढ़ गया।

आकाश और शीतल उस वक्त किसी गुफ्तगू में बिजी थे। इस हद तक कि एक बमय वर्दी पुलिसवाले के वहाँ पहुँचने की उन्हें खबर तक नहीं हुई। वरना शीतल अंबानी ने आंसुओं की गंगा यमुना बहाते दिखाई देना था।

“मिस्टर आकाश अंबानी?” चौहान ने करीब पहुँचकर सवाल किया।

“जी मैं ही हूँ।” आकाश चौंककर उसकी तरफ देखता हुआ बोला।

“पुलिस को कॉल आपने की थी?”

“ऑफ़कोर्स मैंने ही की थी, आने के लिए थैंक यू।”

“ये तो मेरी ड्यूटी है सर।” कहकर उसने शीतल की तरफ देखा – “आपका परिचय?”

“मेरी भाभी हैं, शीतल अंबानी।”

“मिसेज सत्यप्रकाश अंबानी?”

जवाब में शीतल ने हौले से सिर भर हिला दिया।

“अंबानी साहब अब कैसे हैं?”

“ठीक नहीं हैं।”

“हुआ क्या था?”

“आकाश ने बताया नहीं फोन पर?”

“जरूर बताया होगा मैडम, लेकिन उतने को पर्याप्त तो नहीं माना जा सकता न?” कहकर क्षण भर की चुप्पी के बाद बोला – “आप पर इस वक्त क्या गुजर रही है उसका अंदाजा लगा सकता हूँ मैं, इसलिए डिस्टर्ब करने में हिचकिचाहट हो रही है, लेकिन हमलावर का पकड़ा जाना भी उतना ही जरूरी है जितना कि आपका यहाँ खड़े होकर गमगीन होना। फिर आप लोग भी तो यही चाहते होंगे, तभी तो पुलिस को कॉल किया है।”

“जी बेशक चाहते हैं।”

“थैंक यू, बताइए क्या हुआ था?”

“क्या हुआ, कब हुआ, ये ठीक-ठीक बता पाना तो मुश्किल है, मगर जो हुआ था, उसकी खबर हमें आज सुबह सवा सात बजे तब लगी, जब सत्य का पीए अनंत गोयल हमारे घर पहुँचा।”

“इतनी सुबह-सुबह?”

“मुंबई के लिए निकलना था दोनों को, दस बजे की फ्लाइट थी।”

“यानि अनंत के आगमन के बारे में आपको पहले से पता था?” कहते हुए चौहान ने पॉकेट डॉयरी और पेन संभाल लिया।

“नहीं, मुझे तो ये भी नहीं मालूम था कि सत्य को आज मुंबई जाना था।”

“ऑफिस की बातें घर में शेयर नहीं करते?”

“करते हैं, मगर कल हमारी मैरिज एनिवर्सरी थी। बड़ी पार्टी रखी थी सत्य ने, जिसके कारण हम दोनों ही बहुत ज्यादा बिजी हो गये थे। और बाद में रात बारह बजे के करीब जब सारे मेहमान विदा हो गये तो तब तक हमारी खुद की हालत भी बद थी। हम दोनों ही उस वक्त तगड़े नशे में थे, शायद इसी वजह से सत्य मुझे उस बारे में बताना भूल गये होंगे।” कहती हुई वह हौले से सिसक उठी।

“यानि बीती रात बारह बजे के बाद आप दोनों बेडरूम में सोने गये थे?”

“नहीं, बल्कि मैं तो पहुँची ही नहीं। हुआ ये कि ड्राइंगरूम में कदम रखते ही सत्य ने एक-एक ड्रिंक और लेने की बात कह दी। हालांकि मैं पहले ही आउट हुए जा रही थी, मगर क्योंकि खुशी का माहौल था और रात को हमने कहीं जाना भी नहीं था, इसलिए ऐतराज नहीं कर पाई। आगे ड्रिंक करते हुए हम दाएं-बाएँ की पता नहीं कौन-कौन सी बातें करते रहे। उस दौरान कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता भी नहीं लगा। वो तो आज सुबह जब घर की मेड ने जगाया तब जाकर मालूम पड़ा कि मैं पूरी रात सोफे पर ही पड़ी रही थी।”

“और आपके हस्बैंड?”

“सुबह बेडरूम में पाये गये थे, इसलिए जाहिर है रात भी वहीं गुजारी होगी।”

“आपको सोफे पर पड़ा छोड़कर?” चौहान को थोड़ी हैरानी हुई।

“डिस्टर्ब नहीं करना चाहते होंगे। वो क्या है कि एक बार मेरी नींद उचट जाती है तो दोबारा बड़ी मुश्किल से आती है, शायद इसी कारण सत्य ने मुझे जगाने की कोशिश नहीं की होगी।”

“एनी वे, सुबह मेड द्वारा खुद को जगाये जाने के बाद की कहिए।”

“मुझे जगाने के बाद वह मेरे कहने पर चाय बनाने चली गयी। फिर वापिस लौटी ही थी कि तभी अनंत गोयल हमारे घर पहुँच गया।”

“आपके पति का पीए?”

“जी हाँ, मैं इतनी सुबह उसे वहाँ आया देखकर हैरान रह गयी। तब उसी ने मुझे बताया कि उसे सत्य के साथ दस बजे की फ्लाइट से मुंबई रवाना होना था, जबकि सवा सात तो हो भी चुके थे। उसकी बात सुनकर मैं सत्य को जगाने के लिए बेडरूम में पहुँची और फिर... फिर...।” उसके शरीर ने जोर की झुरझरी ली।

“क्या फिर?”

“मैंने वो देखा, जिसके बारे में सोच भी नहीं सकती थी।”

“क्या देखा?”

“सत्य का जला हुआ चेहरा, बेड पर बेहिसाब फैला खून...।” कहकर वह रोने लग गयी।

“और..?”

“पता नहीं। वह दिल दहला देने वाला नजारा देखते ही मेरे मुँह से चीख निकल गयी, जिसे सुनकर अनंत और मेड दोनों दौड़ते हुए कमरे में घुस आये, फिर आकाश भी वहाँ पहुँच गया। उसके बाद अनंत ने तत्परता दिखाई और सत्य को अपने दोनों हाथों में उठा लिया। हम सब गेट की तरफ दौड़े और बाहर पहुँचकर कार में सवार होकर यहाँ आ गये।”

“माफी के साथ पूछता हूँ मैडम कि क्या किसी ने ये जानने की कोशिश की थी कि उनकी साँसें चल भी रही हैं या नहीं?”

“मेरे ख्याल से तो नहीं, और अच्छा ही हुआ, जो वैसा कुछ जांचने में हमने वक्त बर्बाद करने की कोशिश नहीं की, वरना जाने क्या हो गया होता।”

“यानि उनके बच जाने की उम्मीद है अभी?”

“जी डॉक्टर पुरी ने तो हमसे यही कहा है, बाकी ईश्वर की मर्जी। उसके आगे किसकी चल पाई है आज तक?”

“ये तो आपने एकदम सही कहा मैडम।”

“अंबानी साहब की हालत बेशक खस्ता है इंस्पेक्टर साहब, बल्कि किसी की कल्पना से भी ज्यादा बुरे हाल में हैं।” उसी वक्त ओटी से बाहर निकलता नरेंद्र पुरी बोला – “मगर हमें यकीन है कि उनकी जान बचाने में कामयाब हो जायेंगे।”

“डॉक्टर पुरी?” चौहान ने जानना चाहा।

“जी हाँ, मैं ही हूँ, डॉक्टर नरेंद्र पुरी, साथ ही इस नर्सिंग होम का चीफ मेडिकल ऑफिसर भी।”

“मैडम अभी-अभी बताकर हटी हैं सर कि पेशेंट का चेहरा जला दिया गया है, आपने क्या ऑब्जर्व किया?”

“यही कि मैडम ठीक कह रही हैं। अंबानी साहब के चेहरे पर बहुत सारा गंधक डाला गया था, जिसके कारण जगह-जगह से खाल गायब है, कुछ जगहों से मांस भी नदारद है और नीचे की हड्डियां तक दिखाई दे रही हैं।”

“वैसा उनकी किसी अपनी गलती का नतीजा भी तो हो सकता है?”

“मैं आपकी बात जरूर मान लेता इंस्पेक्टर, अगरचे कि चेहरे पर तेजाब डालने के साथ-साथ गला न रेत दिया गया होता, गोली मार कर उसकी जान लेने की कोशिश नहीं की गयी होती।”

“गला रेत दिया, गोली मार दी, तेजाब से चेहरा जला दिया?” चौहान के मुँह से हैरानी भरा स्वर निकला।

“उसके अलावा भी कम से कम एक वार और किया गया था।”

“वॉट?”

“एक बड़े फल वाले छुरे से उनकी छाती पर वार किया गया था। यानि हमला कम से कम भी चार बार हुआ था और हर बार जुदा ढंग से। जरूर किसी कसाई का किया-धरा होगा ये सब, आम इंसान तो शायद ही इतनी बर्बरता दिखा पाये।”

“बर्बरता का कोई ओर छोर नहीं होता डॉक्टर साहब, अपनी जिंदगी में मैंने इससे भी कहीं ज्यादा भयानक केस देखे हैं, मगर चार अलग-अलग हथियारों का प्रयोग किसी एक ही शख्स पर होते तो शायद ही देखा होगा। जबकि हमलावर चाहता तो रिवाल्वर की नाल सीधा उनके माथे पर रखकर भी गोली चला सकता था। और उन हालात में उसे नाकामयाबी का मुँह भी नहीं देखना पड़ा होता। आप इस बात पर कोई रोशनी डाल सकते हैं?”

“नतीजे निकालना मेरी एक्सपर्टीज नहीं है इंस्पेक्टर, मगर घायल की हालत देखकर जो पहला ख्याल मन में आया, वह यही था कि चार जुदा लोगों ने पूरी प्लानिंग के साथ उस पर हमला किया था। ऐसे में यह किसी चमत्कार से कम नहीं है कि वह अभी तक सर्वाइव कर रहे हैं।”

“चार लोगों ने?” चौहान हैरानी से उसका मुँह तकने लगा।

“जी हाँ, वरना खुद सोचकर देखिए कि एक ही आदमी की जान लेने के लिए कोई चार बार हमला क्यों करेगा, वह भी अलग-अलग हथियारों से, जबकि उसके पास पिस्तौल भी मौजूद थी।”

“मामला बेशक उलझाने वाला है।” कहकर उसने देवर-भाभी की तरफ देखा – “आप लोगों को किसी पर शक है?”

“शक तो नहीं है, लेकिन इतना जरूर दिखाई दे रहा है कि हमला करने वाले

लोग कल की पार्टी को जरिया बनाकर ही हमारे घर में घुसे थे, और पार्टी खत्म होने के बाद वापिस लौटने की बजाय बंगले में ही कहीं छिपकर सबके सो जाने का इंतजार कर रहे थे।”

“ऐसा कोई शख्स बाद में वहाँ से बाहर कैसे गया होगा?”

“मेरे ख्याल से पीछे का दरवाजा खोलकर।” आकाश बोला – “उधर कोई गार्ड वगैरह भी नहीं होता, इसलिए देख लिए जाने का उसे जरा भी खतरा नहीं रहा होगा।”

“वह दरवाजा आप लोगों को खुला मिला था?”

शीतल हड़बड़ाई क्योंकि उस मामले में एक बड़ी चूक उससे हो चुकी थी। रात को मौर्या और गोयल के जाने के बाद उसे दरवाजा नहीं बंद करना चाहिए था। मगर अब वह बात हाथ से निकल चुकी थी।

“पता नहीं।” प्रत्यक्षतः वह बोली – “सुबह सत्य को लेकर हम लोग सीधा यहाँ चले आये थे, और तब से अब तक यहीं मौजूद हैं। इसलिए दरवाजे के बारे में नहीं बता सकते आपको।”

“घटनास्थल का मुआयना करना होगा, आप दोनों कब तक उपलब्ध होंगे वहाँ?”

“मैं अभी कैसे जा सकती हूँ इंस्पेक्टर साहब, लेकिन आप लोग जाकर अपना काम कीजिए। हमारे वहाँ होने या न होने से क्या फर्क पड़ जायेगा?”

“तो भी घर का कोई न कोई सदस्य वहाँ मौजूद होना ही चाहिए, ताकि कुछ नया सामने आ जाये तो वह उसका गवाह बन सके।”

“आकाश को भेज देती हूँ आपके साथ।”

“ये बढ़िया रहेगा।” कहकर चौहान ने सवाल किया – “आपने बताया है कि अंबानी साहब को यहाँ तक उनका पीए अनंत गोयल लेकर आया था, अभी कहाँ है वह?”

“कहाँ है?” शीतल हैरानी के साथ बोली – “पता नहीं कहाँ है। वैसे थोड़ी देर पहले तक तो यहीं था। हो सकता है सिगरेट पीने के लिए हॉस्पिटल से बाहर चला गया होगा।”

“हो सकता है।” कहकर चौहान ने डॉक्टर की तरफ देखा – “पेशेंट पर एक नजर मारने की इजाजत दीजिए डॉक्टर साहब।”

पुरी ने क्षण भर को उस बात पर विचार किया फिर बोला- “प्लीज कम।”

तत्पश्चात दोनों ओटी में दाखिल हो गये।

आगे बढ़ने से पहले डॉक्टर ने उसे डिस्पोजल कैप और शू कवर पहन लेने को कहा, साथ में एक ग्रीन कलर का चोगा भी पकड़ा दिया, जिस पर ऐतराज जताने का कोई मतलब नहीं बनता था इसलिए चौहान तीनों चीजें पहनकर उसके साथ हो लिया।

दोनों आगे बढ़कर दाईं तरफ के एक दरवाजे से भीतर दाखिल हो गये।

प्रत्यक्षतः वहाँ मुआयना करने जैसा कुछ भी नहीं था। पेशेंट का कमर तक का हिस्सा कंबल से ढका हुआ था, जबकि ऊपर का हिस्सा पूरी तरह नग्न था। हाँ, आस-पास एक गाउन जरूर दिखाई दे रहा था, जो कि खून से तर था, साथ ही कई जगहों पर जल सा गया दिख रहा था। गला, छाती और पेट पट्टियों से ढके हुए थे और पूरे चेहरे पर पीले रंग के मलहम जैसी किसी चीज का लेप लगा दिखाई दे रहा था।

सही मायने में कहा जाये तो वह सत्य का चेहरा ही था, जिसे देखकर हमलावरों की दुर्दांतता का अंदाजा लगाया जा सकता था। वरना बाकी सब-कुछ तो आम नजारा था।

मगर चेहरा....उसे तो देखने मात्र से उबकाई आने लगती थी।

चौहान ने पॉकेट डायरी पर कामचलाऊं ढंग से एक इंसानी चित्र बनाया फिर डॉक्टर की तरफ देखकर सवाल किया- “गोली कहाँ मारी गयी थी?”

जवाब में पुरी ने पेट पर बंधी पट्टी के ऊपर एक जगह उंगली रख दी।

“और छुरा?”

डॉक्टर ने दिल से थोड़ा ऊपर एक जगह को इंगित किया।

“गला कितना गहरा रेता गया था?”

“गहरा कुछ खास नहीं था, मगर खून बहुत बहा था वहाँ से।”

“आधा सेंटीमीटर?” चौहान ने जानना चाहा।

“अरे नहीं, उतना होता तो ये कब के निकल गये होते दुनिया से। आप उसका अंदाजा इस बात से लगा लीजिए कि गला रेते जाने से गर्दन की किसी नस को नुकसान नहीं पहुँचा था।”

“और छाती का वार कितना गहरा है?”

“साढ़े तीन इंच।”

“जबकि आपने बताया था कि किसी लंबे फल वाले छुरे से हमला किया गया था।”

“उसका अंदाजा मैंने इस बात से लगाया कि घाव अंदर की तरफ बहुत छोटा था, जबकि ऊपर का कट एक इंच के करीब था। और साढ़े तीन इंच का घाव बनाने वाले छुरे का फल अगर छोटा होता तो अंदर और बाहरी कट में इतना ज्यादा अंतर नहीं होता, क्योंकि तब उसके फल की कुल जमा चौड़ाई ही आधा इंच के करीब होती, जबकि मौजूदा घाव अंदर से बाहर की तरफ निरंतर बड़ा

होता चला गया था।”

“और पेट में जो गोली लगी है उसके बारे में क्या कहते हैं?”

“गोली निकाल दी गयी है, आप चाहें तो रिसीविंग देकर अपने साथ ले जा सकता हैं।”

“बेशक ले जाना चाहूँगा, मगर उससे पहले जरा हमले के वक्त पर आइए। कोई अंदाजा बता सकते हैं कि जो हुआ वह कब किया गया होगा?”

“जिस वक्त पेशेंट को यहाँ लाया गया, खून बहना एकदम बंद हो चुका था। और शरीर पर मौजूद घावों की हालत देखकर लगता था कि उस पर हमला हुए कम से कम भी चार-पांच घंटे गुजर चुके थे। इस लिहाज से देखें तो दो से तीन के बीच इनकी जान लेने की कोशिश की गयी हो सकती है।”

“थैंक यू डॉक्टर साहब, अब बुलेट मेरे हवाले कीजिए। बताइए कहाँ रिसीविंग देनी है?”

“गोली मैं अभी आपको दिये देता हूँ, रिसीविंग रिसेप्शनिस्ट को दे दीजिएगा।” कहकर उसने वहीं एक ट्रे में पड़ी बुलेट निकालकर चौहान को थमाया, जिसे उसने एविडेंस पॉलिबैग में रखकर अपनी जेब में ठूंस लिया।

तत्पश्चात वह ओटी से बाहर निकल आया।

“आकाश साहब।”

“जी कहिए।”

“चलें?”

जवाब में एक नजर शीतल पर डालता हुआ वह बोला- “घबराना नहीं भाभी, बस ईश्वर पर भरोसा रखो, सब ठीक हो जायेगा।”

“जल्दी वापिस आना प्लीज।”

“बेशक आऊंगा।” कहकर वह चौहान के साथ हो लिया।

दोनों रिसेप्शन पर पहुँचे तो वहाँ बैठी नर्स ने एक कंप्यूटर प्रिंट आउट चौहान के सामने रख दिया, जिसे पढ़कर उसने अपने हस्ताक्षर घसीटे और एक फोटो क्लिक करने के बाद आकाश के साथ अस्पताल से बाहर निकल आया।

“आप अपनी गाड़ी से चलेंगे या...?” उसने जानना चाहा।

“अगर किसी खास वजह से आप मुझे पुलिस की गाड़ी में नहीं बैठाना चाहते तो और बात है, अदर दैन आई हैव नो प्रॉब्लम।”

“ठीक है फिर चलिए।”

दोनों पुलिस जीप में सवार हो गये।

अंबानी नर्सिंग होम से अंबानी हाउस पहुँचने में उन्हें पांच मिनट भी शायद ही लगे होंगे क्योंकि उस वक्त गलियां एकदम खाली पड़ी थीं और मेन रोड का रूख

उन्हें करना नहीं था।

सबसे पहले चौहान ने गेट पर खड़े दोनों गार्ड्स से ही सवाल जवाब शुरू किया।

“नाम बोलो अपना।”

“जी मानेसर सिंह।”

“और तुम्हारा?” उसने दूसरे गार्ड से पूछा।

“अजय प्रताप।”

“कब से यहाँ ड्यूटी कर रहे हो?”

“मैं दो महीने से हूँ सर और ये पंद्रह दिनों से।”

“कितने घंटे की शिफ्ट होती है?”

“बारह घंटे की सर।”

“बीती रात तुम दोनों तो यहाँ ड्यूटी पर नहीं रहे होगे, क्योंकि अभी दिन में यहाँ दिखाई दे रहे हो?”

“जी हम भी थे।”

“मतलब?”

“हमारी ड्यूटी रात आठ बजे खत्म हो जाती है, मगर कल क्योंकि यहाँ बड़ी पार्टी थी, इसलिए हमें रात को भी रूकने के लिए कह दिया था। और दिन की ड्यूटी आजकल क्योंकि हमारी ही चल रही है, इसलिए सुबह घर वापिस नहीं जा पाये।”

“नाम बोलो उनके।”

“निहाल और सूरज सिंह।”

“यानि आम दिनों में यहाँ एक वक्त में बस दो ही गार्ड्स होते हैं?”

“बाहर गेट पर दो ही होते हैं सर जी, मगर दो गार्ड अंदर कंपाउंड में भी तैनात होते हैं। कल रात उनकी भी संख्या चार थी, क्योंकि हमारी ही तरह अंदर ड्यूटी देने वाले दिन की पाली के गार्डों को भी रोक लिया गया था।”

“पार्टी में जो मेहमान आये थे, उनको पहचानते हो तुम लोग?”

“जी चार-पांच लोगों को जानता हूँ।”

“यानि इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकते कि बीती रात तमाम मेहमान यहाँ से बाहर चले गये थे, या कोई ऐसा भी था, जिसे तुमने पार्टी खत्म होने के बाद जाते हुए नहीं देखा था?”

“सौ से ज्यादा लोग पहुँचे हुए थे सर।” दूसरा गार्ड बोला – “हम उन्हें पहचानते भी होते तो इस बात का जवाब शायद ही दे पाते कि उनमें से कोई रात को भीतर ही तो नहीं रूक गया था, मगर गाड़ियां सब चली गयी थीं, इस बात की

गारंटी कर सकते हैं।”

“रात में मेहमानों के जाने के बाद कोई और आवागमन हुआ हो, अंबानी साहब या घर का कोई दूसरा सदस्य बाहर गया हो? या कोई बाहर से भीतर पहुँचा हो?”

“ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ था सर। पार्टी खत्म होने के बाद रात एक बजे के करीब हमने गेट बंद किया तो सुबह सात बजे के करीब अनंत गोयल साहब के आने पर ही खोला गया था।”

“घर के आस-पास कोई मंडराता दिखाई दिया हो, या कोई दूसरी शक पैदा करने वाली बात तुम दोनों ने नोट की हो?”

“जी नहीं सर।”

“क्या पता ड्यूटी के दौरान नींद आ गयी हो? अक्सर मेरे साथ भी ऐसा हो जाया करता है, इसलिए झिझकने की जरूरत नहीं है, डरने की तो जरा भी नहीं है।”

“ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है सर, मगर ये नहीं हो सकता कि हम चारों एक साथ नींद में पहुँच गये हों, फिर मुझे तो अच्छी तरह से याद है कि पूरी रात जगा रहा था।”

चौहान ने एक गहरी सांस ली और आकाश को भीतर चलने का इशारा कर दिया।

दो गार्ड उन्हें कंपाउंड में विचरते मिले।

चौहान ने उन्हें अपने करीब आने का इशारा किया, फिर सवाल जवाब करना शुरू किया तो उन लोगों ने भी सबसे पहले यही बताया कि रात को उनकी संख्या दो की बजाय चार थी।

“कोई हलचल दिखाई दी थी?” उसने पूछा।

“पार्टी में?”

“उसके बाद?”

“नहीं सर।”

“मेहमानों के जाने के बाद कहीं तुम चारों सो तो नहीं गये थे, ये सोचकर कि बाहर गेट पर तो गार्ड तैनात थे ही, इसलिए कोई भीतर नहीं दाखिल हो सकता।”

“कैसी बात करते हैं सर? ये अंबानी साहब का घर है। ऐसी कोताही की तो फौरन यहाँ से भगा दिये जायेंगे। कंपनी का कांट्रेक्ट खत्म हो जायेगा सो अलग।”

“यानि मुस्तैदी से ड्यूटी कर रहे थे?”

“जी बेशक।”

“बावजूद इसके कोई पिछला दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया और तुम

लोगों को खबर तक नहीं हुई?”

“इधर फ्रंट से होकर तो कोई नहीं गुजरा था सर, मगर उस दरवाजे तक पहुँचने का एक रास्ता भीतर से भी है। किसी ने उधर से आउट मारा हो तो नहीं बता सकते।”

“कैसे गार्ड हो भई तुम लोग, यहाँ तुम्हें बस फ्रंट में निगाह रखने के लिए तैनात किया गया है या पूरे घर की चौकसी के लिए?”

“फ्रंट के लिए सर। जिस रोज हमने यहाँ ड्यूटी ज्वाइन की थी, उसी रोज हमें बता दिया गया था कि भूले से भी बंगले के पिछले हिस्से में कदम नहीं रखना था।”

चौहान ने हैरानी से आकाश की तरफ देखा।

“ये ठीक कह रहा है। पहली बात तो ये है कि वह दरवाजा ठोस स्टील का बना हुआ है, जिसमें बाहर की तरफ कोई कुंडा वगैरह तक नहीं है। ऐसे में उसे खोल पाना एकदम नामुमकिन बात है। और दूसरी वजह के बारे में मैं आपको भीतर चलकर बताऊंगा।”

चौहान ने हौले से सिर हिलाकर सहमति जताई फिर वहाँ खड़े गार्डों की तरफ देखकर बोला- “फ्रंट से होकर कोई पीछे नहीं पहुँचा हो सकता, इस बात की गारंटी करते हो?”

“बेशक करते हैं सर, क्योंकि पूरी रात हम कंपाउंड में ही तो टहलते रहते हैं। ऐसे में हमारी निगाहों से बचकर कोई पीछे की तरफ कैसे जा सकता है।”

“ठीक है भाई लोग, डंटे रहो।” कहकर उसने आकाश को चलने का इशारा कर दिया।

दोनों भीतरी दरवाजे तक पहुँचे तो आकाश ने कॉल बेल का बटन पुश कर दिया।

दरवाजा घर की मेड शीतल ने खोला।

चौहान की निगाहें उस पर ठहर सी गयीं। इतनी खूबसूरत और मॉर्डन मेड तो उसने अपनी जिंदगी में शायद ही पहले कभी देखी होगी।

“नाम क्या है तुम्हारा?” उसने पूछा।

“जी सुमन।” कहकर उसने आकाश की तरफ देखा – “साहब कैसे हैं अब? वह ठीक तो हो जायेंगे न?”

“अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।”

“अरे डॉक्टर ने भी तो कुछ बोला होगा?”

“कहते हैं बच जाने की उम्मीद की जा सकती है।”

“शुक्र है भगवान् का।” कहकर सीलिंग की तरफ देखते हुए लड़की ने अपने

दोनों हाथ जोड़ दिये।

“सुबह शीतल मैडम को तुमने ही सोते से जगाया था?”

“जी साहब।”

“कितने बजे थे तब?”

“सात बजकर दस मिनट हुए थे।”

“रात में भी किसी वक्त तुमने उन्हें सोफे पर सोते देखा था?”

“जी देखा था, तब मैंने उन्हें जगाकर बेडरूम में जाने के लिए भी कहा, मगर वह गहरे नशे में थीं, इसलिए ये कहकर मुझे अपने कमरे में जाने को कह दिया कि जब उनका दिल होगा खुद चली जायेंगी।”

“उस वक्त हालत कैसी थी उनकी?”

“नशे में थीं, ये बात मैं पहले ही बता चुकी हूँ। उसके अलावा और कुछ नहीं नोट किया था मैंने।”

“यहाँ तुम्हारा कमरा कौन सा है?”

“किचन के एकदम बगल वाला।” कहकर सुमन ने उधर को उंगली उठा दी।

“रात को कोई भी, कैसी भी आवाज सुनी थी?”

“जी नहीं।”

“झूठ बोलने का....पुलिस से झूठ बोलने का नतीजा जानती हो?”

“मैं झूठ क्यों बोलूंगी साहब?”

“तुम बताओ क्यों बोल रही हो?”

“मेरा मतलब है, मैं झूठ नहीं बोल रही।”

“अरे ये भी कोई यकीन में आने वाली बात है कि रात को यहाँ गोली तक चल गयी और तुम्हें कुछ भी सुनाई नहीं दिया?”

“गोली चली थी?” उसने हैरानी से चौहान को देखा – “आप कहते हैं तो जरूर चली होगी सर, लेकिन सुनाई कुछ नहीं दिया मुझे। आप आकाश साहब से ही पूछ लीजिए कि क्या बीती रात इन्होंने वैसी कोई आवाज सुनी थी?”

“अभी सवाल तुमसे किया जा रहा है।”

“तो फिर मेरी बात पर यकीन कीजिए, बीती रात यहाँ कैसी भी, कोई भी आवाज नहीं गूंजी थी, गोली चलने की तो हरगिज भी नहीं, वरना सबकी नींद उचट गयी होती।”

“अपने कमरे में कितने बजे गयी थी तुम?”

“साढ़े बारह बजे, मगर बाद में एक बजे के करीब मैं पानी पीने के लिए बाहर निकली थी, तभी मैंने मैडम को यहाँ सोते हुए देखा था। उसके बाद जब फिर से अपने कमरे में गयी तो आज सुबह सात बजे ही मेरी नींद खुली थी, क्योंकि

अलार्म मैंने उसी वक्त का सेट कर रखा था।”

“यानि रात एक बजे के बाद तुम किसी भी वजह से बाहर नहीं आई थी?”

“और मैं क्या कह रही हूँ साहब? वैसे भी रात बहुत ज्यादा हो चुकी थी और पार्टी में दौड़ भाग करने की वजह से थकान भी बरबार महसूस हो रही थी, इसलिए बिस्तर पर गिरते के साथ ही मैं गहरी नींद में पहुँच गयी थी।”

“घर में और कितने नौकर हैं?”

“रसोइये को मिलाकर बारह।” जवाब आकाश ने दिया।

“रात को रूकते भी सब यहीं होंगे?”

“जी बिल्कुल, मगर भीतर सिर्फ सुमन ही रहती है, बाकी सबके लिए बाहर कंपाउंड में सर्वेंट क्वार्टर बने हुए हैं।”

“ठीक है, चलकर घटनास्थल दिखाइए।”

तत्पश्चात दोनों मास्टर बेडरूम में पहुँचे।

सत्यप्रकाश अंबानी का कमरा कम से कम भी तीस बाई तीस का तो जरूर रहा होगा, जो कि बेडरूम कम और हॉल ज्यादा नजर आता था। इसलिए भी क्योंकि तकरीबन खाली पड़ा था।

कमरे के बीचों बीच एक किंग साइज़ पलंग रखा था, जबकि बाईं दीवार के साथ एक वॉल कैबिनेट और उसके बगल में ठोस लकड़ी का बना ड्रेसिंग टेबल रखा हुआ था, जिसमें एक आदमकद आईना जड़ा हुआ था। इसके अलावा वहाँ और कुछ नहीं था, कोई कुर्सी या टेबल तक नहीं दिखाई दे रही थी।

कमरे में सेंट्रलाईज एसी लगा था, जैसा कि चौहान ड्राइंगरूम में पहले ही देख चुका था। वह एसी उस वक्त भी चल रहा था, जिसकी वजह से कमरे का तापमान बेहद ठंडा था, इतना ठंडा कि कंबल ओढ़े बिना शायद ही नींद आ पाती।

वह आगे बढ़कर पीछे की तरफ खुलती खिड़की के करीब पहुँचा। वातानुकूलित बेडरूम में उतनी बड़ी खिड़की, वह भी बाउंड्री वॉल की तरफ खुलने वाली, ऊपर से हैरानी ये कि वहाँ कोई ग्रिल भी लगी नहीं दिखाई दे रही थी।

बाहर, बाउंड्री वॉल से थोड़ा पहले एक बड़े चबूतरे पर गणेश भगवान् की मूर्ति स्थापित की गयी थी, जिसके ऊपर एक ऐसी छतरी लगाई गयी थी, जो दूर से प्लास्टिक की जान पड़ती थी, अलबत्ता थी या नहीं, इसका अंदाजा चौहान नहीं लगा सका।

उसने आकाश की तरफ देखा- “ये खिड़की पहले से खुली थी या आप में से किसी ने बाद में खोल दिया था?”

“नहीं, हमने नहीं खोला। सुबह जब भाभी की चीख सुनकर मैं यहाँ पहुँचा था

तो खिड़की खुली हुई थी।”

“ये आपको हैरानी की बात नहीं लगती?”

“बेशक लगती है, मगर अब खुली थी तो थी, उसमें मैं क्या कर सकता हूँ।”

“यहाँ इतनी बड़ी खिड़की की कोई खास वजह?”

“गणपति महाराज की मूर्ति, जो कि खिड़की के एकदम सामने है।” आकाश ने बताया – “एक साल पहले किसी ज्योतिषाचार्य, या वास्तु विशेषज्ञ ने भैया को सलाह दी थी कि रोज सुबह उठकर सबसे पहले गणेश भगवान् के दर्शन करना उनके स्वास्थ्य और बिजनेस के लिए बहुत लाभदायक होगा, मगर शर्त ये थी कि उसी मूर्ति के दर्शन उनसे पहले कोई और न कर ले। उसके बाद ही यहाँ की खिड़की के उस पार गणपति महाराज को स्थापित किया गया। और गार्ड्स को बंगले के पीछे राउंड न लगाने का आदेश देने के पीछे भी वजह यही थी कि कोई भैया से पहले दर्शन करने में कामयाब न हो सके।”

“फिर तो हर सुबह ये खिड़की खोली जाती होगी?”

“जी हाँ।”

खिड़की से हटकर चौहान पलंग के करीब पहुँचा।

बेडशीट खून से लाल हुआ पड़ा था और सिरहाने की तरफ का काफी सारा हिस्सा जल भी गया था, जिसकी वजह वह तेजाब रहा हो सकता है, जो अंबानी के चेहरे पर उड़ेला गया था।

उसने झुककर चादर का गौर से मुआयना किया तो पाया कि खून बेशक हर जगह मौजूद था, मगर फिर भी उसे तीन स्थानों पर अलग-अलग प्वाइंट किया जा सकता था। वैसी पहली जगह चादर के जले हुए हिस्से के एकदम करीब थी। वहाँ कुछ इंच की दूरी पर दो जगह खून के बड़े धब्बे बने हुए थे, जिसकी वजह गला रेता जाना रहा हो सकता था। दूसरी जगह उससे काफी नीचे बाईं तरफ को थी, जो कि गोली लगने के बाद बहे खून की तरफ इशारा करती थी। जबकि तीसरा बड़ा धब्बा दाईं तरफ को बना हुआ था, इसलिए वह छाती पर किये गये वार का ही नतीजा हो सकता था।

वह बातें भी अंबानी पर हुए अलग-अलग प्रकार के हमलों को साबित किये दे रही थीं, अलबत्ता हमलावर अगर सच में चार थे तो सबसे पहले यही जानना जरूरी था कि वह चारों एक दूसरे की निगाहों से बचकर वहाँ पहुँचे थे, या फिर योजना बनाकर एक साथ धावा बोला था।

उसने एक आखिरी निगाह कमरे में डाली फिर आकाश से बोला- “पिछला दरवाजा दिखाइए चलकर।”

आकाश उसके साथ हो लिया।

एक लंबे गलियारे से गुजरकर दोनों इमारत से बाहर निकल गये। वह फाटक कोई बहुत बड़ा तो नहीं था मगर आम दरवाजों के मुकाबले फिर भी खूब लंबा चौड़ा था। जैसा कि आकाश पहले ही बता चुका था, वह ठोस स्टील का बना दरवाजा था, जिसको बाहर से खोलने का कोई तरीका नहीं था। यानि ये नहीं हुआ हो सकता था कि कोई पीछे की बाउंड्री वॉल फांदकर भीतर दाखिल होने में कामयाब हो गया हो, बशर्ते कि घर के किसी सदस्य के साथ उसकी मिली भगत न रही हो।

दरवाजा उन्हें अंदर से बंद मिला, जिसे खोलकर दोनों इमारत के पिछले हिस्से में पहुँच गये।

चौहान ने आकाश को वहीं दरवाजे के पास ही रूके रहने को कहा, फिर नीचे की जमीन का मुआयना करता हुआ धीरे-धीरे खिड़की की तरफ बढ़ने लगा। उस दौरान एक दो जगहों पर बने चप्पलों के निशान उसे बराबर दिखाई दिये, मगर वह इतने अस्पष्ट थे कि उनका प्लास्टर कॉस्ट नहीं उठाया जा सकता था। बल्कि कहीं भी पूरी की पूरी चप्पल के निशान नहीं दिखाई दे रहे थे। किसी फुटप्रिंट्स में एड़ियों का हिस्सा था, तो किसी में चप्पल का अगल भाग, जिसकी वजह ये थी कि वहाँ की जमीन बेहद कच्ची होने के बावजूद बेहद सख्त थी।

मगर इतना अंदाजा लगाने में वह फिर भी कामयाब हो गया कि दिखाई दे रहे निशान साइज में बहुत छोटे थे, ज्यादा से ज्यादा पांच नंबर के रहे होंगे। इसलिए अधिकतर उम्मीद इसी बात की थी कि वह किसी मर्द के न होकर औरत के थे।

और औरतें तो उस घर में बस दो ही थीं, पहली शीतल अंबानी और दूसरी घर की मेड सुमन। फिर जाने क्यों चौहान का ध्यान सुमन पर पहुँचकर अटक सा गया।

कुछ देर तक एक ही जगह पर खड़ा वह उस लड़की के बारे में सोचता रहा फिर नये सिरे से इधर-उधर कोई साक्ष्य तलाशने में जुट गया।

मगर हासिल कुछ भी नहीं हुआ।

तत्पश्चात वह आकाश के पास पहुँचा और उसे पार्टी वाली जगह दिखाने को कहा।

दोनों ड्राइंगरूम से होते हुए सीढ़ियों की तरफ बढ़े तो एक बार फिर चौहान की निगाह सुमन पर पड़ी, जो एक हाथ में कोलीन की बोतल थामे दूसरे हाथ में थमे डस्टर से सेंटर टेबल को चमकाने में जुटी हुई थी

चौहान ठिठक गया।

सुमन को उस बात का एहसास हुआ तो सीधी होकर खड़ी हो गयी।

“एक बात बताओ, आज सुबह जब घर के लोग अंबानी साहब को लेकर

अस्पताल चले गये तो क्या उसके बाद तुमने पीछे की तरफ खुलने वाले स्टील के दरवाजे को बंद किया था?”

“नहीं साहब जी, वह तो हमेशा बंद ही रहता है, क्योंकि बड़े साहब के हुक्म के बिना उधर जाने की इजाजत किसी को नहीं है। और वह हुक्म भी तब होता है जब गणपति बप्पा को नहलाना-धुलाना होता है।”

“वह काम तुम्हारे जिम्मे है?”

“जी हाँ।”

चौहान आगे बढ़ चला।

दोनों बेसमेंट में पहुँचे, जहाँ काफी देर तक इधर-उधर भटकने के बावजूद भी वह कोई खास बात नोट नहीं कर पाया। उसने वहीं खड़े होकर आकाश अंबानी से दो चार सवाल किये, फिर दोनों वापिस ड्राइंगरूम में पहुँचकर बैठ गये।

“घर का कोई कीमती सामान चोरी तो नहीं चला गया?” चौहान ने पूछा।

“जी सामने से तो कुछ गायब हुआ नहीं दिखाई दे रहा। हाँ, कोई जूलरी वगैरह चोरी हो गयी हो तो उसके बारे में भाभी ही बता पायेंगी।”

“कल रात कोई मोटी रकम मौजूद रही हो घर में?”

“उम्मीद तो नहीं है। मेरे पास बीस-तीस हजार रूपये पड़े होंगे, इसी तरह भाई साहब के पास भी कोई छोटी-मोटी रकम ही रही हो सकती थी, इसलिए मैं नहीं समझता कि हमलावर लूट के इरादे से यहाँ पहुँचे होंगे।”

“लेकिन रहे वह पार्टी के मुअज्जित मेहमान ही होंगे, है न?”

“लगता तो यही है इंस्पेक्टर साहब, बाकी असल में वह कौन थे, इसका पता तो आप लोग ही लगा पायेंगे।”

“ठीक है, मेहमानों की लिस्ट मुहैया कराइए।”

“आप अपना नंबर दे दीजिए, शाम तक लिस्ट आपके पास पहुँच जायेगी।”

“अभी फौरन ऐसा क्यों नहीं कर सकते आप?”

“क्योंकि लिस्ट भाभी ने कहीं रखी होगी, और इस वक्त उन्हें फोन कर के डिस्टर्ब करना मैं ठीक नहीं समझता।”

“कमाल करते हैं आकाश साहब, सिर्फ इतना पूछ लेने भर से वह डिस्टर्ब हो जायेंगी कि मेहमानों की लिस्ट घर में कहाँ रखी है?”

“हो सकती हैं। उन पर इस वक्त क्या बीत रही होगी इसका अंदाजा ना तो आप लगा सकते हैं ना ही मैं, इसलिए शाम तक वेट कीजिए। मैं आपके कहने भर से तो उनको फोन करने से रहा।”

“चलिए ऐसा ही सही। ये बताइए कि पार्टी में कुछ खास नोट किया था आपने?”

“खास से मतलब?”

“कुछ भी ऐसा, जो नहीं होना चाहिए था मगर हुआ, या कुछ ऐसा, जिसके होने की कोई वजह आपको नहीं दिखाई दे रही हो।”

“जी नहीं, ऐसी किसी बात की तरफ मेरा ध्यान नहीं गया था। वैसे भी पार्टी में ऐसी बातों पर भला निगाह कौन रखता है?”

“किसी ऐसे शख्स के बारे में ही बता दीजिए, जो बिन बुलाये यहाँ पहुँच गया हो। बड़ी पार्टियों में ऐसा आम हो जाया करता है।”

“उस बारे में भी बताना आसान नहीं होगा। आप किसी को विद फेमिली आने का निमंत्रण भेजते हैं और बाद में वह फेमिली की बजाय अगर किसी दोस्त के साथ आपके घर पहुँच जाता है, तो आप उसे निकाल बाहर तो नहीं करेंगे?”

“यानि ऐसा कोई पहुँचा था यहाँ?”

“मुझे नहीं मालूम। मैंने तो बस स्थिति समझाने की खातिर वैसा कहा है। ऊपर से बामुश्किल आधा घंटा मेहमानों के बीच रहा होऊंगा मैं। उसके बाद वापिस अपने कमरे में लौट आया और दोबारा बेसमेंट का रूख नहीं किया।”

“वजह?”

“मेरे कुछ दोस्त यहाँ पहुँचे थे। उन्हें कल रात ही एक और पार्टी अटेंड करनी थी, इसलिए जल्दी ही यहाँ से निकल गये। उनके जाने के बाद मेरा भी मन नहीं लगा इसलिए बाहर आ गया।”

“अंबानी साहब की किसी के साथ कोई रंजिश, कोई दुश्मनी?”

“बड़ी दुश्मनी तो किसी के भी साथ नहीं थी, मगर छोटी मोटी रंजिश रखने वालों की कमी भी नहीं है। वो क्या है कि भाई साहब जरा गुस्सैल प्रवृत्ति के इंसान हैं, इसलिए अक्सर लोग-बाग उनके खिलाफ हो जाया करते हैं, मगर इतनी मामूली बातों के कारण कोई किसी पर जानलेवा हमला नहीं कर बैठता।”

“नाम लीजिए ऐसे किसी शख्स का?”

“कहा न कोई ओर छोर नहीं है।”

“चलिये यही बता दीजिए कि वैसा कोई शख्स क्या कल की पार्टी में भी दिखाई दिया था आपको?”

उस सवाल को सुनकर आकाश मन ही मन थोड़ा परेशान हो उठा। उसके लिए फौरन ये तय कर पाना मुश्किल हो गया कि विक्रम राणे या अजीत मजूमदार के बारे में अभी कुछ कहना ठीक होगा या नहीं।

“जवाब नहीं दिया आपने?”

“याद करने की कोशिश कर रहा हूँ।”

“ठीक है कीजिए।”

तत्पश्चात बहुत देर तक वहाँ चुप्पी छाई रही फिर आकाश बोला- “दो तीन ऐसे चेहरे दिखाई तो बराबर दिये थे मुझे पार्टी में, लेकिन ये भी हो सकता है कि भाई साहब ने खुद ही उन्हें इनवाईट कर लिया हो, क्योंकि अगर नहीं किया होता तो उन्हें देखकर फौरन भड़क उठे होते।”

“मेहमानों की लिस्ट आपके भाई साहब ने तैयार की थी?”

“नहीं, लिस्ट मैंने और भाभी ने मिलकर बनाई थी। इसलिए इतना तो पक्के तौर पर कह सकता हूँ कि उन्हें हमारी तरफ से इनवाईट नहीं किया गया था, मगर भाई साहब ने यकीनन किया होगा, क्योंकि सब रूतबे वाले लोग थे, जो कि बिन बुलाये किसी की पार्टी में नहीं जाने वाले।”

“मगर रंजिश बराबर थी उनकी आपके भाई साहब से?”

“किसी के साथ रंजिश थी तो कोई इसलिए उनसे खफा था कि वह उसकी बात मानने को राजी नहीं हो रहे थे।”

“नाम लीजिए ऐसे लोगों का।”

“एक तो निशांत मौर्या ही था, जो कि हमारी ही तरह एक फॉर्मास्युटिकल कंपनी का मालिक है। दूसरा विक्रम राणे था, जो कि बड़ा ही नामी गिरामी वकील है, और तीसरा अजीत मजूमदार, जो कि बड़ा डॉक्टर है और लाजपत नगर में अपना क्लिनिक चलाता है। ऐसा क्लिनिक, जो असल में खूब बड़ा नर्सिंग होम है।”

“और उन तीनों के ही साथ आपके भाई साहब की पटरी नहीं बैठती है, है न?”

“जी हाँ।”

“वजह?”

“एडवोकेट राणे की वजह से उन्हें एक बार कोई बड़ा नुकसान हुआ था, तब भाई साहब ने उसकी जमकर लानत मलानत की थी। उन दिनों हमारी कंपनी के तमाम लीगल ईशूज वही हैंडल करता था, लेकिन उस नुकसान के बाद भाई साहब ने फौरन उसे आउट कर दिया था।”

“और अजीत मजूमदार, उसके साथ क्या पंगा हुआ था?”

आकाश हिचकिचाया क्योंकि उस बात का जवाब एक बड़ी घटना से जुड़ा हुआ था, जिसके बारे में बिना शीतल से सलाह मशविरा किये वह मुँह नहीं फाड़ना चाहता था।

“मैं नहीं जानता।” प्रत्यक्षतः वह बोला – “भैया से एक बार पूछा भी था मगर वह टाल गये थे, इसलिए दोबारा कभी सवाल करने की कोशिश नहीं की मैंने।”

“और मौर्या साहब के बारे में क्या कहते हैं?”

“उसके साथ ना बनने की वजह कुछ जुदा है।” कहकर आकाश ने दोनों कंपनियों के असफल रह गये समन्वय की कहानी उसे सुनाई, फिर बोला – “इस तरह से देखें तो रंजिश वाली कोई बात नहीं दिखाई देती, मगर भाई साहब उसे सख्त नापसंद करते हैं इस बात में शक की कोई गुंजाईश नहीं है।”

“और ऐसे तीन लोग कल की पार्टी में यहाँ मौजूद थे?”

“जी हाँ।”

“एनी वे, एक पल को कल्पना कीजिए कि बीती रात हुए हमले में आपके भाई साहब की जान चली गयी होती तो आगे उनकी संपत्ति का क्या होता?”

“क्या होता? मेरा मतलब है कुछ भी नहीं होता, सिवाये इसके कि उनकी कुल जमा पूंजी पर भाभी का अधिकार कायम हो जाता, कोई दूसरा हिस्सेदार तो दिखाई नहीं देता मुझे।”

“आपको कुछ भी नहीं मिलता?” चौहान ने हैरानी से पूछा।

“भैया के हिस्से से कुछ नहीं मिलता, मगर बिजनेस क्योंकि डैड का खड़ा किया हुआ है इसलिए उसमें मेरा और भाई का बराबर का हिस्सा है, जो कि मुझे मिलकर रहना था, बल्कि उसमें मिलने जैसी कोई बात ही कहाँ है, वह तो आज भी मेरा है और कल भी रहेगा।”

“उम्र कितनी होगी अंबानी साहब की?”

“अड़तालिस के हो चुके हैं।”

“और आपकी भाभी?”

“पक्का नहीं मालूम लेकिन 26-27 के करीब होंगी।”

“बड़ा अंतर है दोनों की उम्र में, कोई खास वजह?”

“सिर्फ इतनी कि शादी का ख्याल भाई साहब को बहुत देर से आया। अब उनके बराबर की उम्र वाली कोई कुवांरी लड़की मिल भी जाती तो उससे शादी कर के क्या हासिल कर लेते वह? औलाद का मुँह तो नहीं देख पाते, ऐसे में कमउम्र लड़की से विवाह करना मजबूरी बन जाती है।”

“यहाँ कोई सीसीटीवी वगैरह नहीं लगी हुई है?”

“लगी क्यों नहीं है, दो कैमरे फ्रंट गेट पर हैं, दो कंपाउंड में हैं और दो इमारत के पिछले हिस्से में भी लगे हुए हैं, मगर बेसमेंट में कैमरा नहीं है।”

चौहान की आँखें चमक उठीं- “फुटेज देखने का इंतजाम कर सकते हैं?”

“वह क्या बड़ी बात है, चलिए।” आकाश उठ खड़ा हुआ।

दोनों बाहर निकलकर उधर को बढ़ गये, जिधर सर्वेंट क्वार्टर बने दिखाई दे रहे थे। उसी में से एक कमरा ऐसा था, जो सर्विलांस रूम के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था।

वहाँ लगा लोहे का दरवाजा खोलकर आकाश भीतर दाखिल हो गया।

“यहाँ कोई ताला वगैरह नहीं लगाया जाता?”

“ना, कभी ख्याल तक नहीं आया।” कहते हुए उसने दीवार पर लगा एक स्विच ऑन किया तो कमरे में रोशनी फैल गयी। अंदर एक कंप्यूटर टेबल मौजूद थी, जिस पर एचपी का बड़ा सा मॉनिटर रखा हुआ था, जबकि सीपीयू बॉक्स मेज के नीचे बने एक प्लेटफॉर्म पर रखा था, जिसके करीब ही एक प्रिंटर भी मौजूद था।

आकाश ने वहाँ मौजूद कुर्सी पर बैठकर कंप्यूटर का ऑन ऑफ बटन पुश किया और इंतजार करने लगा।

स्क्रीन पर बूटिंग दिखाई देने लगी, मगर वह आगे बढ़कर डेस्कटॉप तक नहीं पहुँची, बल्कि बीच में ही रूक गयी। वहाँ एक एरर दिखाई दिया- ‘प्लीज सेलेक्ट बूट डिवाइस’ उसे पढ़कर आकाश ने स्विच को ऑफ करके फिर से ऑन कर दिया। इस बार भी कंप्यूटर तुरंत बूट होना शुरू हो गया, मगर ब्लू स्क्रीन से आगे नहीं बढ़ा, और एरर फिर से पहले वाला ही दिखाई देने लगा।

चौहान बड़े ही ध्यान से वह नजारा देख रहा था।

“कोई फॉल्ट आ गया मालूम पड़ता है।” आकाश परेशान स्वर में बोला।

“जबकि मुझे कुछ और ही लग रहा है आकाश साहब।”

“क्या?”

“यही कि किसी ने इस कंप्यूटर की हॉर्ड डिस्क पार कर दी है।”

“ये कैसे हो सकता है?”

“अभी पता लग जायेगा, यहाँ कोई स्क्रू ड्राईवर होगा?”

“होना तो चाहिए।” कहकर आकाश ने मेज की दराज खोली तो वहाँ एक पेचकस रखा दिखाई दे गया।

तत्पश्चात चौहान ने नीचे बैठकर सीपीयू बॉक्स को अनप्लग किया और उसके कैबिनेट का ढक्कन खोलने लगा।

उसकी आशंका सही साबित हुई, भीतर से हॉर्ड डिस्क नदारद थी।

“चलिए जनाब, यहाँ अब कुछ नहीं रखा।” कहता हुआ वह कमरे से बाहर निकल आया।

उसके पीछे आकाश ने उठकर दरवाजा बंद किया, फिर पूछा- “अब?”

“अब क्या सर, हमलावर तो अपनी चतुराई दिखा गया, आगे जो कुछ भी हासिल होगा वह लंबी पूछताछ के बाद ही होना है, या शायद होश में आने के बाद आपके भाई साहब कुछ बता पायें।” फिर क्षण भर को रूककर बोला – “आपको मेरे साथ पुलिस हेडक्वार्टर चलना होगा।”

“किसलिए?” आकाश एकदम से पसीने से नहा उठा।

“रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए, मौखिक बातों के बूते पर तो पुलिस काम नहीं कर सकती न?”

“ओह, कब चलना होगा?”

“अभी चलें तो ज्यादा बेहतर होगा। नहीं जाना चाहते तो अपनी सहूलियत के हिसाब से पुलिस हेडक्वार्टर पहुँच जाइएगा।”

“पुलिस हेडक्वार्टर? थाने नहीं?”

“जी नहीं, ये मामला एफआईबी डिपार्टमेंट के सुपुर्द किया गया है, जो कि सीधा हेडक्वार्टर से ऑपरेट करता है।”

“ठीक है, चलिए।”

“थैंक यू।” दोनों बंगले से बाहर निकले और पुलिस जीप में सवार हो गये।

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