देवराज चौहान जब उस पते पर पहुँचा तो शाम के छः बज रहे थे । अँधेरा कब का फैल चुका था । सर्दी में बढ़ोतरी हो गई थी ।

देवराज चौहान ने गर्म स्वेटर पहन रखा था । वह घर कॉलोनी के बीच में था । परिवार में मियां-बीवी के अलावा अट्ठारह साल की बेटी थी ।

आदमी का नाम शौकत और उसकी बीवी का नाम रेहाना था । शौकत चालीस बरस का स्थानीय स्वस्थ व्यक्ति था । उसी ने दरवाजा खोला था उसके वहाँ पहुँचने पर ।

“मुझे राठी ने यहाँ पहुँचने को कहा है । उसने तुम्हें फोन कर दिया होगा ।” देवराज चौहान बोला ।

“भीतर आइये जनाब । राठी साहब का फोन आ चुका है । उन्होंने कहा है कि आप में और उनमें फर्क न समझूँ ।”

देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया ।

शौकत ने दरवाजा बन्द किया ।

घर के भीतर देवराज चौहान को गर्माहट का एहसास हुआ ।

“बाहर बहुत सर्दी है ।” शौकत कह उठा ।

“हाँ !” देवराज चौहान ने शौकत को देखकर सिर हिलाया, “मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे रहने को एक कमरा दे दो । ताकि न तो तुम्हें कोई परेशानी हो और न ही मुझे । मैं यहाँ सिर्फ दो-तीन दिन तक रहूँगा ।”

“जितने दिन मन चाहे रहिये । आप राठी साहब के खास हैं । चलिए, मैं आपको कमरा दिखा दूँ ।”

देवराज चौहान शौकत के पीछे चल पड़ा ।

घर चार कमरों का था और साफ-सुथरा था । एक कमरे में रेहाना और उसकी बेटी दिखी । देवराज चौहान ने हाथ जोड़कर नमस्ते किया ।

“अम्मी !” बेटी ने कहा, “ये तो हिन्दू है । नमस्ते करता है ।”

जवाब में देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

शौकत के साथ देवराज चौहान एक कमरे में पहुँचा । डबल बेड लगा, अच्छा कमरा था वह । सर्दी का एहसास बहुत कम हो गया था । देवराज चौहान शौकत को देखकर मुस्कुराया ।

“यहाँ आप आराम से रह सकते हैं । रात के लिए कपड़े भी आपको चाहिए होंगे ?” शौकत ने पूछा ।

“हाँ !”

शौकत ने कपड़े लाकर उसे दिए । जिनमें गर्म स्वेटर भी शामिल था । देवराज चौहान ने कपड़े बदले ।

“तुम राठी के साथ काम करते हो ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“हाँ, मैं राठी के लिए काम करता हूँ । अफगानिस्तान से उसके लिये ड्रग्स लाता हूँ ।” शौकत बोला ।

देवराज चौहान ने सिर हिला दिया ।

“आप रात के खाने में क्या लेना पसन्द करेंगे ?” शौकत ने पूछा ।

“जो बना है, वही खा लूँगा । व्हिस्की हो तो एक पैग लेना पसन्द करूँगा ।”

शौकत बाहर निकल गया ।

देवराज चौहान ने बड़ा खान वाला मोबाइल निकाला और उसके भीतर ‘फीड’ कर रखे नामों की लिस्ट को चैक करने लगा । फोन में पचास से ज्यादा नाम और नम्बर फीड थे । ये जो लोग भी थे, बड़ा खान की खास पहचान वाले होंगे, तभी तो उनके नम्बर बड़ा खान ने अपने फोन में डाल रखे थे । ये बड़ा खान के लिए काम करने वाले लोग हो सकते थे ।

शौकत ने भीतर प्रवेश किया । वह बोतल, गिलास और पानी लाया था । शौकत उसका गिलास तैयार करने लगा तो देवराज चौहान कह उठा-

“मैं तैयार कर लूँगा । तुम फ्री हो और ये सोचना भी मत कि घर में कोई है । आराम से अपने परिवार में बैठो ।”

शौकत चला गया ।

देवराज चौहान ने गिलास तैयार करके दो घूंट लिए कि उसका फोन बजने लगा ।

देवराज चौहान ने बात की । दूसरी तरफ जगमोहन था ।

“कलाम ने अपने आदमियों के साथ बड़ा खान की पाँच नई जगह छः बजे हमला किया । तीन ठिकाने पूरी तरह तबाह कर दिए । एक ठिकाने पर मुकाबला करने की चेष्टा की गई, परन्तु बाजी हमारे हक में रही । अभी इस बात का अंदाजा नहीं कि बड़ा खान के कितने आदमी मारे गए । 

“तुम बताओ, बड़ा खान इलाज के लिए तुम्हारे पास आया कि नहीं ?”

“आया ।”

“आया ?” जगमोहन उधर से चौंका, “बड़ा खान आया ?”

“हाँ ! परन्तु निकल भी गया । मेरी आशा से कहीं ज्यादा फुर्तीला निकला । उसने मुझे बराबर की टक्कर दी ।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने बड़ा खान से वास्ता रखती सारी बात बताई ।

“अब तो बड़ा खान सतर्क हो गया होगा ।” जगमोहन ने परेशानी भरे स्वर में कहा ।

“हाँ ! परन्तु वह बच नहीं सकता । उसका फोन झगड़े के दौरान गिर गया था । उसमें पचास से ज्यादा नाम और नम्बर दर्ज हैं । जो कि उसके खास आदमी ही होंगे । हम उन्हें तलाश करके, उस तक पहुँच सकते हैं । उन नम्बरों में रशीद और मस्तान का नाम भी दर्ज है । यह फोन उसके लिए खास होगा ।”

“ये अच्छी बात रही हमारे लिए ।”

“हाँ ! यह फोन मैं तुम्हें देना चाहता हूँ । कलाम यहाँ की स्थानीय भाषा में हर नम्बर पर बात करके, उन लोगों के ठिकाने के बारे में जानकारी हासिल करेगा । मेरा या तुम्हारा लहजा सुनकर वह सतर्क हो सकते हैं ।”

“ठीक है, मैं फोन लेने कहाँ आऊँ ? अब तुमने होटल तो छोड़ दिया होगा ।”

“मैं इस वक्त राठी के किसी पहचान वाले घर पर हूँ । तुम्हारा यहाँ आना ठीक नहीं होगा ।” फिर देवराज चौहान ने उसे ऐसी जगह पर मिलने को कहा, जो यहाँ से ज्यादा दूर नहीं थी ।

“ठीक है ! मैं एक-आधे घण्टे में तुम्हें वहीं मिलूँगा । क्या बड़ा खान एच०आई०वी० की वजह से परेशान था ?”

“बहुत ! तभी तो अखबारों में इश्तिहार देखकर, इलाज के लिए वहाँ आ पहुँचा था ।” देवराज चौहान ने कहा, “तुम एक घण्टे बाद मुझे वहीं मिलना ।” कहकर देवराज चौहान ने व्हिस्की का घूँट भरा और सोच में लग गया ।

तभी शौकत ने भीतर प्रवेश किया । वह प्लेट में पकौड़े लाया था, जो कि गर्म थे ।

“धन्यवाद !” देवराज चौहान मुस्कुराया, “तुम नहीं लोगे ?”

“मुझे अभी काम पर जाना है । आधी रात को लौटूँगा ।” शौकत ने कहा ।

“राठी का ही काम होगा ?”

“नहीं ! थोड़ा-बहुत किसी और का काम भी कर लेता हूँ ।” शौकत ने कहा और बाहर निकल गया ।

घूंट भरते देवराज चौहान की सोचें नाच रहीं थी ।

☐☐☐

अगले दिन देवराज चौहान आठ बजे सोकर उठा । गर्म पानी से हाथ-मुँह धोया । शौकत भी उठ गया था । या यूँ कहें कि उसे उठा पाकर उसकी पत्नी ने उसे भी उठा दिया था ।

शौकत उसके पास दो गिलासों में चाय लिए आया और वहीं कुर्सी पर बैठ गया ।

देवराज चौहान ने चाय का घूंट लेते हुए कहा-

“रात कब वापस लौटे ?”

“एक बजे । तुम नींद में थे ।” शौकत ने गहरी निगाहों से उसे देखा, “तुम्हारा नाम देवराज चौहान है ?”

“तुम्हें कैसे पता ?” देवराज चौहान ने आँखें सिकोड़कर उसे देखा ।

“बड़ा खान के आदमियों की जुबान पर तुम्हारे नाम का ही जिक्र है । वह तुम्हें ढूंढते फिर रहे हैं । कल बड़ा खान से तुम्हारा झगड़ा हुआ ?”

“हाँ !” देवराज चौहान शौकत को देखे जा रहा था ।

“अगर मुझे पहले पता होता कि तुम बड़ा खान से उलझ चुके हो तो मैं तुम्हें अपने घर न रखता ।”

“तुम्हें कोई परेशानी है तो अब मैं चला जाता हूँ ।”

“राठी नाराज होगा । अब मैं तुम्हें जाने को नहीं कह सकता ।”

“ये बातें तुम्हें कहाँ से पता चलीं ?”

“मेरी पहचान का है कोई जो बड़ा खान के लिए काम करता है ।” शौकत ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“बड़ा खान तक पहुँचने में तुम मेरी कोई सहायता कर सकते हो ?”

“मैं किसी भी कीमत पर तुम्हारा साथ नहीं दूँगा ।”

“मैं तुम्हें लाखों रुपया दे सकता हूँ ।”

“नहीं !” शौकत ने इंकार में सिर हिलाया, “तुम गलत दरवाजा खटखटा रहे हो । पता चला कि तुम डकैती मास्टर हो ?”

“हाँ ! तुम मुझसे काफी पैसा कमा सकते हो, बड़ा खान के बारे में बताकर ।”

“बार-बार ये मत कहो । मैं बड़ा खान के खिलाफ कुछ नहीं करूँगा ।”

“क्यों ?”

“वह ताकतवर है । तुम बड़ा खान का मुकाबला करने की सोचकर गलती कर रहे हो ।”

देवराज चौहान का चाय का आखिरी घूंट भरा और कह उठा-

“तुम बड़ा खान के लिए काम करते हो । झूठ मत कहना ।”

“हाँ ! तुमने सही सोचा ।”

“तुम बड़ा खान के लिए भी काम करते हो और राठी के लिए भी ।”

“राठी का काम दो-चार दिन का होता है । अफगानिस्तान आने-जाने में चार-पाँच दिन लगते हैं । पैसे अच्छे मिल जाते हैं ।”

“तुम बड़ा खान को किस हद तक जानते हो ?”

“मुझसे ऐसी बातें मत करो ।” शौकत गंभीर स्वर में बोला ।

“तुम सच में मेरी कोई सहायता नहीं करोगे ?”

“नहीं ! किसी भी कीमत पर नहीं । तुम पर बड़ा खान ने इनाम रखा है ।”

“दिलचस्प ! कितना इनाम है ?”

“उसने अपने आदमियों को कह दिया है जो तुम्हें मारेगा उसे दस लाख मिलेगा । जो तुम्हें जिन्दा पकड़ लेगा, उसे बीस लाख ।”

“ये अच्छी खबर है ।” देवराज चौहान मुस्कुराया, “तो मुझे यहाँ से चले जाना चाहिए ।”

“मैं तुम्हें जाने के लिए नहीं कहूँगा ।”

“लेकिन तुम्हारे पास रहना भी ठीक नहीं होगा । कभी भी तुम बीस लाख कमाने की सोच सकते हो ।”

“ये तुम्हारी सोच है । परन्तु मेरा इरादा ऐसा नहीं है ।”

“तुम रात खाना खाने से पहले कहीं बाहर गए थे । कहाँ गए थे ?”

“सिगरेट लेने गया था ।”

तब देवराज चौहान जगमोहन को बड़ा खान का मोबाइल देने गया था ।

“अगर तुम बड़ा खान को मेरे घर से मिल गए तो वह मेरे साथ-साथ मेरे परिवार को भी खत्म कर देगा ।”

“मैं कुछ देर में यहाँ से चला जाऊँगा ।”

शौकत सिर हिलाकर उठ खड़ा हुआ ।

“नाश्ता, क्या करना चाहोगे ?”

“जो भी बनेगा ।” देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा ।

शौकत कमरे से बाहर निकला और अन्य कमरे की बालकनी में जा पहुँचा । वहाँ से बाहर का नजारा साफ दिख रहा था । इस वक्त आसमान साफ था । सूर्य निकलने की सम्भावना लग रही थी ।

कुछ पल सोचो में लगा शौकत फिर मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाने लगा । बात हुई ।

“मैं शौकत बोल रहा हूँ ।” शौकत ने गंभीर स्वर में कहा, “मैं तुम्हें देवराज चौहान के बारे में बता सकता हूँ ।”

“कहाँ है वह ?”

“उसे जिन्दा पकड़ना । मैं बीस लाख कमाना चाहता हूँ । गोली ही मारनी होती तो मैं मार चुका होता ।”

“चिंता मत करो । हम उसे जिन्दा ही पकड़ेंगे और तुम्हें बीस लाख मिलेगा । बताओ, कहाँ है वह ?”

“कम से कम डेढ़ घण्टे तक मेरे अगले फोन का इंतजार करो ।” शौकत ने कहा और फोन बन्द करके जेब में रख लिया ।

☐☐☐

देवराज चौहान ने नहा-धोकर अपने कल के उतारे कपड़े पहने । अब वह नाश्ता करने को तैयार था । शौकत उसे कह भी गया था कि नाश्ता तैयार है । तभी जगमोहन का फोन आ गया ।

“कलाम ने उस फोन में दर्ज कई नम्बरों पर फोन किया और कोई न कोई बहाना लगाकर, उसका पता-ठिकाना जाना है । हमारे पास कई नाम-पते इकट्ठे हो गए हैं । वह सब बड़ा खान के लिए ही काम करते होंगे ।”

“ठीक कहा । परन्तु अभी कुछ मत करो । पहले सब नम्बरों पर फोन करके उस इंसान का पता जानो । हो सकता है बाद में बड़ा खान इस बारे में सतर्क हो जाये और अपने आदमियों को भी इस बारे में सतर्क कर दे ।”

“कलाम अभी भी इसी काम पर लगा हुआ है । दोपहर तक वह सब नम्बरों पर फोन कर लेगा । कुछ लोग ऐसे भी हैं जो फोन पर अपने बारे में नहीं बता रहे । उनके लिए बाद में कोई और तरकीब लगाई जायेगी । किसी लड़की से उन लोगों को फोन कराकर उनके बारे में जानने की चेष्टा की जायेगी ।” उधर से जगमोहन ने कहा ।

“जिन लोगों के पते मिल गए हैं, उनके बारे में जानकारी पाने के लिए अपने आदमी दौड़ा दो ।”

“मैं ये काम अभी करता हूँ ।”

देवराज चौहान ने फोन बन्द किया कि तभी पुनः फोन बजने लगा ।

“कहो !” देवराज चौहान ने कहा ।

“तुमने मुझे सच में बहुत परेशान कर रखा है देवराज चौहान ।” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी, “एच०आई०वी० का खौफ क्या होता है, ये मैं अब महसूस कर रहा हूँ । मैंने कुछ देर पहले ही डॉक्टर से बात की । डॉक्टर कहता है कि अभी टेस्ट करने का कोई फायदा नहीं । टेस्ट में इस बीमारी का पता लगने में दो से छः महीने का वक्त लग जाता है ।”

“उससे पहले मैं तुम्हें खत्म कर दूँगा ।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा ।

“मैं ही तुम्हें खत्म कर दूँगा ।”

“तुमने अपने आदमियों में मेरे लिए इनाम घोषित कर दिया है ।”

“तुम्हें कैसे पता चला ?”

“इत्तेफाक से ।”

“मेरे आदमी जब किसी को ढूँढना चाहते हैं तो ढूंढ ही लेते हैं । फिर अब तो मेरे पास तुम्हारा नाम भी है और तस्वीर भी ।”

“तस्वीर ?”

“हाँ ! उस होटल के रिसेप्शन पर सी०सी०टी०वी० कैमरा लगा था । मैंने अपने आदमियों से वह मँगवा लिया । उसमें तुम थे और उससे तुम्हारी तस्वीर बनाकर अपने लोगों में बाँट दी है । बच सकते हो तो बच के दिखाओ । मेरा हर आदमी तुम्हें ढूंढ रहा है । इसके अलावा वह कोई और काम नहीं कर रहे । तुम जल्दी मरोगे ।”

ये खतरनाक बात थी । देवराज चौहान के होंठ भिंच गए ।

“देखते हैं कि पहले कौन सफल होता है ।”

“बड़ा खान कभी हारता नहीं है ।”

“हारता तो देवराज चौहान भी नहीं है ।” देवराज चौहान ने दाँत भींचकर कहा, “परन्तु मेरी तस्वीर तुम्हारे आदमियों के पास है, ये बात खतरनाक है । इस तरह मैं पकड़ा जा सकता हूँ ।”

“तुम्हें किसी नाले में छलांग लगा देनी चाहिए या ऊँचे पहाड़ पर चढ़कर बैठ जाना चाहिए ।”

“मैं ऐसा ही करूँगा ।”

“मेरा मोबाइल फोन तुम्हारे पास है ?” उधर से बड़ा खान ने पूछा ।

“मोबाइल फोन ? मेरे पास ?”

“कमरे में झगड़े के दौरान गिर गया था । मेरे आदमी फोन लेने गए, पर उन्हें नहीं मिला । तुम्हारे पास है क्या ?”

“मेरे पास नहीं है । हैरानी है कि तुम एक फोन के लिये भी मरे जा रहे हो ।”

“मैं उस वक्त का इंतजार कर रहा हूँ जब तुम मारे जाओगे या जिन्दा पकड़ लिए जाओगे ।”

“एच०आई०वी० तुम्हें घेर चुका है । सोचो जब ये बात तुम्हारे आदमी जान लेंगे तो वे तुम्हें कमजोर समझने लगेंगे । शायद वह तब तुमसे इतना खौफ भी न खायें जितना कि अब खाते हैं ।”

“मैं तुझे बहुत बुरी मौत मारूँगा देवराज चौहान !” बड़ा खान उधर से दाँत किटकिटाकर कह उठा ।

देवराज चौहान ने मुस्कुराकर फोन बन्द कर दिया ।

परन्तु खतरे का एहसास उसे हो चुका था । उसकी तस्वीर बड़ा खान के आदमियों के पास पहुँच चुकी थी और वे श्रीनगर की सड़कों पर फैले उसे तलाश कर रहे थे ।

तभी शौकत ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा-

“नाश्ता ठंडा हो रहा है ।”

“तुम्हारे पास मेरी तस्वीर भी होगी ।” देवराज चौहान बोला ।

“तुम्हें किसने बताया तस्वीर के बारे में ?” शौकत के होंठों से निकला ।

“मैं वह तस्वीर देखना चाहता हूँ ।”

शौकत ने जेब से तस्वीर निकालकर उसे दिखाई ।

तस्वीर तब की थी जब वह रिसेप्शन पर खड़ा था । उसमें साफ-स्पष्ट उसका चेहरा दिख रहा था ।

☐☐☐

“मैं भी बाहर जा रहा हूँ ।” शौकत नाश्ते के बाद बोला, “तुम जहाँ कहोगे तुम्हें छोड़ दूँगा ।”

“ठीक है ! मुझे सिर्फ इस कॉलोनी के बाहर सड़क पर छोड़ देना ।” देवराज चौहान बोला ।

दोनों बाहर निकले । तेज ठण्डी हवा चल रही थी । सूर्य भी निकला हुआ था । शौकत ने ड्राइविंग सीट संभाली । देवराज चौहान उसके बगल में बैठा तो शौकत ने कार आगे बढ़ा दी ।

“तुम खुश लग रहे हो ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“क्योंकि तुम मेरे घर से जा रहे हो । बड़ा खान तुम्हें मेरे घर से बरामद कर लेता तो मेरी खैर नहीं थी ।”

“मेरी वजह से तुमने खतरा उठाया । धन्यवाद उसका ।”

“राठी की वजह से मैंने ऐसा किया । तुम्हें तो मैं जानता तक नहीं ।”

शीघ्र ही कार कॉलोनी से निकलकर सड़क पर आ गई ।

“मुझे यहीं उतार दो ।”

“थोड़ा आगे । वहाँ से तुम्हें टैक्सी मिल जायेगी ।” शौकत बोला ।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई ।

कुछ आगे तिराहे जैसी जगह पर शौकत ने कार रोकी ।

“यहाँ तुम उतर सकते हो ।” शौकत ने कहा और रिवॉल्वर निकालकर देवराज चौहान की कमर से लगा दी ।

“ये क्या ?” देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े ।

“बाहर देखो ।” शौकत ने होंठ भींचकर कहा ।

देवराज चौहान ने बाहर देखा । अगले ही पल उसके होंठ भींचते चले गए । कार को पाँच-छः आदमी घेर चुके थे । अपने लम्बे कोटों में से दो ने गनें भी निकाल ली थीं ।

देवराज चौहान ने खतरनाक निगाहों से शौकत को देखा ।

“मैंने बीस लाख रुपये कमा लिए देवराज चौहान ।” शौकत कठोर स्वर में बोला ।

“इतना तो मैं तुम्हें दे देता ।” देवराज चौहान गुर्राया ।

“साथ में बड़ा खान की वफादारी भी खरीदी है तुम्हें उसके हवाले करके ।”

“तुमने गलत किया ।”

“बड़ा खान के दुश्मन हो तुम । मेरे लिए ठीक यही था कि तुम्हें उसके हवाले कर दूँ ।”

तभी देवराज चौहान की तरफ का दरवाजा खुला और खतरनाक आवाज कानों में पड़ी ।

“बाहर निकलो ।” साथ ही गन की नाल भीतर आकर देवराज चौहान की छाती पर आ लगी ।

“निकलो !” शौकत ने उसकी कमर में लगी रिवॉल्वर का दबाव बढ़ाया ।

“ठीक है !” देवराज चौहान भिंचे दाँतों से कह उठ, “पर तुम्हारा अंदाज मुझे पसन्द नहीं आया ।”

“चलो !” शौकत गुर्राया ।

देवराज चौहान कार से बाहर निकला । बाहर खड़े छः के छः आदमियों ने उसे घेरे में ले लिया । एक ने उसकी तलाशी ली । रिवॉल्वर और मोबाइल निकाल लिया । दूसरा उसके हाथ पीछे करके, उन पर डोरी बाँधने लगा । इस दौरान दो गनें उसकी छाती से सटी रहीं ।

शौकत की कार वहाँ से आगे बढ़ गई थी । पास ही एक और पुरानी कार खड़ी थी । देवराज चौहान को घेरे वे सब उस कार तक पहुँचे । गनों की नालों का एहसास उसे बराबर हो रहा था । वह फँस चुका था । तीन आदमी कार में आगे बैठे । तीन देवराज चौहान को लिए पीछे फँस-फँसाकर बैठे । दरवाजे बन्द हो गए । कार चल पड़ी । देवराज चौहान की आँखों के सामने शौकत का चेहरा नाच रहा था कि उसके मन में क्या चल रहा है, वह समझ नहीं सका था । शौकत ने किसी भी तरफ से जाहिर नहीं होने दिया था कि वह कुछ करने जा रहा है या करेगा ।

☐☐☐

शाम के सात बज रहे थे ।

जगमोहन एक कमरे में बैठा कॉफी के घूंट ले रहा था कि कलाम ने भीतर प्रवेश किया ।

“मेरे कई आदमी उन पतों से लौट आये हैं जो मैंने फोन करके हासिल किये थे ।” वह बैठ गया ।

“क्या पता लगाया उन्होंने ?”

“उन्होंने पता लगाया कि ज्यादातर लोग बड़ा खान के लिए ही काम करते हैं । परन्तु उन लोगों को हमें खासतौर से चैक करना पड़ेगा जो अमीर हैं, दौलतमंद हैं । जैसे कि अब्दुल करीम नाम का आदमी जो कि कश्मीर के तीन होटलों का मालिक है । परन्तु होटल नहीं चलते । जबकि होटलों में तगड़ा स्टाफ है ।”

“वह होटल बड़ा खान के हो सकते हैं ।” जगमोहन बोला ।

“हाँ ! बड़ा खान के आदमी वहाँ ठहरते होंगे या वहाँ कोई भी सामान रखा जाता होगा । वह होटल बड़ा खान का ठिकाना हो सकते हैं । अब्दुल करीम शानो-शौकत के साथ एक बंगले में रहता है ।”

“इस आदमी को चैक करना पड़ेगा ।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“हो सकता है बड़ा खान इससे मिलता भी हो ।”

“हम बड़ा खान का चेहरा नहीं जानते । अगर वह मिलता भी हो तो हमें पता नहीं चलेगा ।”

“ये समस्या तो है, परन्तु हम इसी तरह की अपनी कोशिशें करके बड़ा खान को कभी न कभी ढूंढ निकालेंगे ।”

“इसके अलावा और कोई इंसान जो कि खास नजरों में आया हो ?”

“इफ्तिखार नाम का आदमी । कश्मीर में इफ्तिखार हथियारों के सौदागर के नाम से जाना जाता है । सुनने में आता है कि वह अक्सर सीमा पार जाता है और पाकिस्तान से हथियार लाता है । वह बड़ा खान के लिए ही काम करता है । जब सीमा पार से हथियार लाता है तो बड़ा खान की जरूरतें पूरी करके बाकी के हथियार आतंकवादी संगठनों को बेच देता है और पैसा बड़ा खान की जेब में जाता है ।”

“बड़ा खान में कश्मीर में अपनी तगड़ी पकड़ बना रखी है ।” जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा ।

“हाँ ! उसने अपने काम की हर चीज सेट कर रखी है । सुना है कि वह पाकिस्तान की सरकार का भेजा आदमी है कि वह कश्मीर में आतंकवाद की आग जलाये रखे ।” कलाम ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“स्थानीय नेता कुछ नहीं करते ये सब रोकने के लिए ?”

“वह क्या करें ? वह तो खुद डरे हुए हैं इन संगठनों से । आज वह संगठनों के खिलाफ बोलते हैं तो अगले दिन उनकी हत्या हो जाती है । कोई हिम्मत करे भी तो कैसे करे । कश्मीर के हालातों को सेना ने ही सब संभाल रखा है । सेना न होती तो कश्मीर में पाकिस्तान के भेजे आतंकवादी ही हर तरफ दिखते ।”

“तो अभी तक खास ये दो नाम ही सामने आये हैं ।” जगमोहन बोला ।

“हाँ ! बाकी काम जारी है । कई नाम और भी सामने आयेंगे ।”

तभी जगमोहन का फोन बजने लगा । जगमोहन ने देखा । देवराज चौहान का फोन था ।

“जब्बार कहाँ है ?” जगमोहन ने पूछा ।

“उसी कमरे में ।”

“मैं देवराज चौहान से बात करके उसे इन दोनों के बारे में बताता हूँ । तुम ध्यान रखो कि जब्बार इस तरफ न आये ।”

कलाम बाहर निकल गया ।

“हैलो !” जगमोहन ने बात की ।

दूसरी तरफ से कोई आवाज नहीं आई ।

“कहो भी, तुम चुप क्यों हो ?” जगमोहन ने पुनः कहा ।

“तो ये तुम हो ।” बड़ा खान की शांत आवाज कानों में पड़ी, “आजादी-ए-कश्मीर वाले ।”

जगमोहन बुरी तरह चौंककर खड़ा हो गया ।

“बड़ा खान ?” जगमोहन के होंठों से निकला ।

“मेरी आवाज से तुमने पहचान लिया ?”

“ये... ये फोन तुम्हारे पास कहाँ से आया ? ये… ये तो... ।”

“डकैती मास्टर देवराज चौहान के पास था ।” उधर से बड़ा खान ने हँसकर कहा ।

जगमोहन सन्न सा खड़ा रह गया । कानों में बड़ा खान के शब्द गूंज रहे थे ।

“द... देवराज चौहान कहाँ है ?” जगमोहन के होंठों से निकला ।

“मेरे पास । सुबह से ही वह मेरा मेहमान बन चुका है । उसका फोन मेरे पास था और सोच रहा था कि तुम अपने यार को फोन करो । परन्तु अभी तक तुम्हारा फोन नहीं आया । तुम्हें देवराज चौहान की खैर-खबर के लिये फोन करना चाहिए था । इतने भी निश्चिन्त नहीं रहते कि तुम्हारा साथी ठीक होगा । बड़ा खान से पंगा लेकर कोई ठीक नहीं रह सकता ।”

जगमोहन के मस्तिष्क में धमाके जैसा महसूस हो रहा था । देवराज चौहान बड़ा खान के कब्जे में पहुँच गया । यकीन नहीं आ रहा था जगमोहन को । परन्तु ये सच था । क्योंकि देवराज चौहान के फोन पर बड़ा खान बात कर रहा था ।”

कई पलों तक जगमोहन के मुँह से बोल नहीं फूटा । उधर से बड़ा खान ठहाका लगाकर हँस पड़ा । जगमोहन ने खुद को सँभालने की चेष्टा की ।

“तुमने... तुमने देवराज चौहान के साथ क्या किया ?” जगमोहन के होंठ भिंच गए थे ।

“कुछ नहीं । अभी तो मैं बहुत व्यस्त हूँ । उससे मिल भी नहीं सका । वह मेरे आदमियों की देख-रेख में बहुत मजे से है ।”

“तुम बुरी मौत मरोगे ।”

“डकैती मास्टर भी ऐसा ही कहता था और अब वह मेरे शिकंजे में फँस चुका है । तुम अपने बारे में सोचो ।”

“मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं… मैं.... ।”

“मैंने पता लगा लिया है । तुम्हारा नाम जगमोहन है । तुम देवराज चौहान के खास साथी हो । तुमने जो संगठन बनाया है, नकली है और मेरे लिए बनाया है । मुझे खत्म करने के लिए इसे बनाया है । परन्तु तुम सबको मैं ही एक-एक करके खत्म कर दूँगा । तुम सब कुत्ते की मौत मरोगे ।”

“हमें सौदा कर लेना चाहिए ।”

“कैसा सौदा ?”

“देवराज चौहान को छोड़ दो और... ।”

“तुम्हारे पास है ही क्या जो तुम बड़ा खान से सौदा कर सको ।” बड़ा खान का कड़वा स्वर जगमोहन के कानों में पड़ा, “दौलत की मेरे पास कमी नहीं है । इसके अलावा तुम खाली हो । हमसे कोई सौदा नहीं हो सकता ।”

“जब्बार है मेरे पास ।”

“जब्बार को बहुत जल्दी समझ में आ जायेगा कि वह देवराज चौहान की चाल का शिकार हुआ है । जब्बार के लिए मेरे मन में कोई मैल नहीं है । वह अभी देवराज चौहान के बारे में जानता नहीं है । जान जायेगा तो फिर उसका रूप देखना । अगर तुम्हारे पास मस्तान जिन्दा होता तो सौदा हो सकता था । परन्तु मस्तान को तुमने मार दिया ।”

“तो हमसे सौदा नहीं हो सकता ?” जगमोहन के दाँत भिंच गए ।

“तुम्हारे पास बराबर का सौदा करने के लिए सामान नहीं है ।”

“मैं तुम्हें मजबूर कर दूँगा कि तुम मुझसे सौदा करो ।” जगमोहन गुर्रा उठा ।

“देवराज चौहान को मैं नहीं छोड़ूँगा । बहुत बुरी मौत मारूँगा उसे ।”

“तुम एच०आई०वी० पीड़ित बन चुके हो ।”

“देवराज चौहान की वजह से । कुत्ता बहुत बुरी मौत मरेगा ।”

जगमोहन ने फोन बन्द कर दिया ।

देवराज चौहान बड़ा खान के कब्जे में पहुँच गया था । ये खबर जगमोहन को हिला देने वाली थी ।

परन्तु देवराज चौहान इस कदर आसानी से बड़ा खान के हाथों में नहीं पहुँच सकता । कोई तो गड़बड़ हुई ही है उसके साथ । रात वह देवराज चौहान से मिला था । वह राठी के किसी पहचान वाले घर पर रह रहा था । जगमोहन उसी पल हाथ में दबे मोबाइल से राठी का नम्बर मिलाने लगा । मिनट भर बाद ही वह राठी से बात कर रहा था ।

“देवराज चौहान तुम्हारे पहचान वाले के पास ठहरा था श्रीनगर में ?” जगमोहन ने पूछा ।

“हाँ !”

“वह पता बताओ जहाँ वह ठहरा था ।”

“बात क्या है ?”

“देवराज चौहान बड़ा खान के हाथों में पहुँच गया है । ये इतना आसान नहीं था ।”

राठी की आवाज नहीं आई ।

“बताओ ।”

“वह शौकत नाम के आदमी के घर पर ठहरा था ।” उधर से राठी ने शौकत का पता बताकर कहा, “वह बड़ा खान के लिए भी काम करता है ।”

“शौकत बड़ा खान के लिए भी काम करता है ?”

“हाँ !”

“तो तुमने देवराज चौहान को उसके पास क्यों भेजा ?”

“वह मेरा पुराना साथी था । मैं सोच भी नहीं सकता था कि मेरे साथ वह ऐसी हरकत कर जायेगा ।”

जगमोहन ने फोन बन्द कर दिया । दाँत भिंच चुके थे उसके ।

☐☐☐

रात के नौ बज रहे थे । आज बाहर सर्दी ज्यादा थी ।

शौकत घर में अपनी पत्नी और बेटी के साथ बातों में लगा था और खुश था । व्हिस्की का एक गिलास खत्म कर चुका था और दूसरा तैयार कर लिया था । दोपहर में बड़ा खान का आदमी बीस लाख के नोटों से भरा थैला उसे दे गया था, जो कि अभी सामने ही रखा था । वह रह-रहकर उठकर नोटों को देखता और खुश होता कि कितनी आसानी से उसने बीस लाख कमा लिए । शिकार खुद ही उसके पास आ गया और उसने प्यार से शिकार को पिंजरे में धकेल दिया ।

“खाना खा लो ।” उसकी पत्नी रेहाना ने कहा ।

“आधे घण्टे बाद खाऊँगा । तुम खा लो ।”

तभी कॉलबेल बजी ।

शौकत और रेहाना की नजरें मिलीं ।

“मेरे से कोई मिलने आया होगा ।” कहकर उसने गिलास खाली किया और उसे रखकर दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।

उसने दरवाजा खोला और उसी पल उसकी छाती पर गन आ लगी ।

शौकत घबरा उठा । चेहरे का रंग उड़ गया । सामने कलाम खड़ा था और पीछे और भी लोग दिखे ।

“शौकत हो तुम ?” कलाम ने कठोर स्वर में पूछा ।

“ह...हाँ !”

“भीतर चलो !” कलाम ने छाती पर रखी गन से उसे पीछे धकेला ।

“परन्तु तुम... ।”

कलाम ने जोरों से उसे पीछे धकेला ।

शौकत लड़खड़ाकर तीन-चार कदम पीछे हो गया । चेहरा सफेद पड़ने लगा ।

कलाम ने भीतर प्रवेश किया । उसके पीछे जगमोहन और चार अन्य लोगों ने भीतर प्रवेश किया और दरवाजा बन्द करके, शौकत की बाँह पकड़े कमरे के बीच में जा पहुँचे ।

ये सब देखकर रेहाना घबरा उठी । उसकी बेटी घबराकर माँ के पास आ पहुँची ।

“क... कौन हो तुम लोग ?” रेहाना के होंठों से निकला ।

“खामोश रहो ।” कलाम गुर्राया ।

शौकत ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । सबको देखा । व्हिस्की का नशा उड़ गया था ।

जगमोहन आगे बढ़ा और थैले के पास पहुँचा । भीतर पड़ी नोटों की गड्डियों को देखते ही उसके दाँत भिंच गए । वह पलटा और शौकत के पास जा पहुँचा । कलाम एक कदम पीछे हट गया ।

“देवराज चौहान कल यहीं था, तेरे पास ?” जगमोहन ने शब्दों को चबाकर पूछा ।

शौकत ने थूक निगला ।

“राठी कहता है कि उसे तुमसे ऐसी आशा नहीं थी । तुमने देवराज चौहान को बड़ा खान के हवाले कर दिया । कितने पैसे लिए ?”

“म... मैंने ऐसा नहीं किया ।”

“तो देवराज चौहान अचानक ही बड़ा खान के हाथों में कैसे पहुँच गया ?”

“मैं… मैं नहीं जानता । वह सुबह नाश्ता करके यहाँ से चला गया था ।” शौकत ने हिम्मत करके कहा ।

तभी कलाम ने गन की नाल का वार शौकत के चेहरे पर किया ।

शौकत चीख उठा ।

रेहाना और उसकी बेटी और भी सहम गई ।

“राठी कहता है कि तुम बड़ा खान के लिए भी काम करते हो । कितने नोट मिले नोट बड़ा खान से ? ये थैले में पड़े नोट, देवराज चौहान को फँसाने की एवज में ही मिले हैं न । सच बोल । झूठ सुनकर हम बहलने वाले नहीं ।”

“तुम लोगों को गलतफहमी हुई है । मैं राठी से बात करता हूँ ।”

तभी कलाम ने दाँत भींचकर गन की नाल को चाकू की तरह उसके पेट में मारा ।

शौकत चीख उठा ।

“इन्हें कुछ मत कहो ।” रेहाना तड़प उठी, “इन्हें माफ कर दो । गलती हो गई इनसे ।”

“तेरी बीवी ने स्वीकार कर लिया है कि तूने देवराज चौहान को, बड़ा खान के हवाले किया है ।” जगमोहन गुर्राया ।

“मुझे माफ कर दो ।” शौकत काँपते स्वर में कह उठा, “मुझे एक बार राठी से बात करने दो ।”

“ये मामला राठी का नहीं है । मेरा है । मैं देवराज चौहान का साथी हूँ ।” जगमोहन ने खूंखार भरे स्वर में कहा, “देवराज चौहान को फँसाने से पहले तुम्हें ये जरूर सोच लेना चाहिये था कि उसके पीछे भी लोग हो सकते हैं ।”

“मुझे माफ कर दो ।”

“देवराज चौहान कहाँ है ?” जगमोहन दरिंदा लग रहा था ।

“मैं नहीं जानता ।”

“अभी भी वक्त है, सच कह दो ।”

“सच कह रहा हूँ ।” शौकत का चेहरा दूध की भांति सफेद था, “मैं नहीं जानता बड़ा खान ने उसे कहाँ रखा है ।”

“बड़ा खान कहाँ मिलेगा ?”

“नहीं पता । किसी को भी नहीं पता कि बड़ा खान कहाँ मिलता है । मैं पता लगाने की कोशिश करूँगा कि... ।”

जगमोहन ने दाँत भींचे रिवॉल्वर निकाली और दिल वाली जगह पर नाल रख दी ।

“ये क्या कर रहे हो । मत करो, मैं... ।”

“हम पता लगा लेंगे कि बड़ा खान कहाँ मिलता है । तेरी जरूरत नहीं रही अब ।” जगमोहन ने वहशी स्वर में कहा और ट्रिगर दबा दिया ।

तेज धमाका गूंजा । शौकत चीखकर नीचे जा गिरा । रेहाना चीखकर शौकत की तरफ लपकी ।

जगमोहन ने नोटों वाला थैला उठाया और पलटकर दरवाजे की तरफ बढ़ा । दरवाजा खोला गया और सब बाहर निकल गए । सामने ही वैन खड़ी थी, जिसमें वह सब आये थे । सब वैन में बैठे और वैन तेजी से आगे बढ़ गई ।

☐☐☐

अब्दुल करीम के एक तीन मंजिला होटल के पास वह वैन जा रुकी । रात के दस बज रहे थे । कड़ाके की सर्दी थी और सड़कें सूनसान दिख रही थीं । कभी-कभार कोई कार आती-जाती दिख जाती थी ।

जगमोहन वैन का दरवाजा खोलते हुए बोला ।

“मैं होटल को चैक करता हूँ । वे देवराज चौहान को यहाँ भी रख सकते हैं ।”

“तुम अकेले ये काम कैसे करोगे । फँस सकते हो ।” कलाम बोला ।

“मैं कर लूँगा ।” कहने के साथ ही जगमोहन होटल के भीतर रिसेप्शन पर जा पहुँचा ।

रिसेप्शन खाली था । रिसेप्शन के सोफों पर एक आदमी कम्बल ओढ़े सो रहा था । जगमोहन ने उसे उठाया ।

“क्या है ?” वह अभी भी नींद में था ।

“कमरा चाहिए ।”

“कमरा ?” उसकी आँखें खुलीं । जगमोहन को देखा, “हजार रुपये का कमरा है यहाँ ।”

“चलेगा ।”

“हजार रुपया दो ।” वह कम्बल एक तरफ करके उठता हुआ बोला, “तुम्हें कमरा दिखा देता हूँ । सामान कहाँ है ?”

“वह कल आएगा ।” कहकर जगमोहन ने हजार रुपये उसे दे दिए जो कि उसने जेब में रखे ।

जगमोहन को लेकर वह पहली मंजिल पर एक कमरे में पहुँचा और बोला-

“ये दो हजार रुपये का कमरा है, तुम्हें हजार में दे रहा हूँ । यहाँ दस लोग एक साथ ठहर सकते हैं ।”

जगमोहन ने कमरे में नजर दौड़ाई और आगे बढ़कर दरवाजा बन्द कर दिया ।

“खाना-पीना भी चाहिए ?” उसने पूछा ।

जगमोहन ने रिवॉल्वर निकाली और उसे दिखाकर बोला-

“बैठ जाओ । तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ ।”

रिवॉल्वर देखकर वह घबरा उठा ।

“तुम... तुम मुझे लूटना चाहते हो । लेकिन मेरे पास तुम्हारे दिए हजार के अलावा कुछ नहीं... ।”

“मेरी सुनो ।”

“ह... हाँ !”

“कितना स्टाफ है होटल में ?”

“इस वक्त तीन लोग हैं मेरे को मिलाकर । वे दोनों सोने जा चुके हैं ।”

“नाम क्या है तुम्हारा ?”

“भगत ।”

“कितने कमरे फुल हैं ?”

“चार ।”

“बैठ जाओ ।” जगमोहन आगे बढ़ा और कुर्सी खींचकर उसके पास कर दी । भगत घबराया सा बैठ गया ।

“मैं जानता हूँ कि ये जगह बड़ा खान की है । अब्दुल करीम बड़ा खान के लिए काम करता है ।”

“म... मेरे को इन बातों से क्या लेना-देना । मैं... मैं तो नौकर हूँ ।”

“आज दिन में एक आदमी को यहाँ लाकर रखा गया है । अगर जिन्दा रहना चाहते हो तो उसके बारे में बताओ ।”

“म... मैं नहीं जानता । मेरी ड्यूटी तो शाम आठ बजे से शुरू हुई है ।”

“होटल में बड़ा खान के आदमी किस कमरे में हैं ?”

“किसी में भी नहीं । यहाँ कोई नहीं है ।”

“तुम्हारा मतलब कि यहाँ बड़ा खान के आदमी आते ही नहीं ।” जगमोहन के दाँत भिंच गए ।

“यहाँ कुछ ऐसे लोग आते हैं जो पैसा नहीं देते और रहकर, खाकर चले जाते हैं । मालिक कह देते हैं कि उनसे पैसा नहीं लेना ।”

“ऐसे लोग अब होटल में नहीं हैं ?”

“नहीं ! ऐसा कोई भी नहीं है । जो लोग भी हैं मुसाफिर हैं । ये रिवॉल्वर पीछे कर लो ।”

“तुम मुझे पूरा होटल दिखा सकते हो ?”

“हाँ, चलो ! दिखा देता हूँ ।”

☐☐☐

जगमोहन ने अब्दुल करीम का दूसरा और तीसरा होटल भी देखा । इसमें रात के डेढ़ बज गये परन्तु देवराज चौहान की कोई खबर नहीं मिली ।

“अब्दुल करीम के बंगले पर चलो कलाम ।” जगमोहन ने गुस्से से कहा ।

वैन आगे बढ़ गई ।

“मेरे ख्याल में बड़ा खान ने देवराज चौहान को किसी ऐसी जगह पर रखा होगा, जहाँ हर कोई न पहुँच सके ।” कलाम बोला ।

“अब्दुल करीम को उस जगह के बारे में पता हो सकता है ।”

“देखते हैं ।”

एक घण्टे बाद ही वैन एक ऐसे बंगले के बाहर खड़ी थी जो कि अंधेरे में डूबा हुआ था । गेट पर चौकीदार कहीं नजर नहीं आ रहा था । सर्दी की वजह से वह कहीं दुबक गया होगा ।

जगमोहन, कलाम और तीन आदमी बंगले की दीवारों को फलांगकर भीतर पहुँचे

हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था ।

पोर्च में एक बल्ब जल रहा था । परन्तु सर्दी और कोहरे की वजह से उसकी रौशनी ज्यादा न फैल रही थी । वे बंगले के भीतर प्रवेश करने का रास्ता तलाश करने लगे । परन्तु दरवाजे-खिड़कियाँ भीतर से बन्द थे ।

कलाम ने उन्हें वहीं रुकने को कहा और खुद एक पाइप के सहारे चढ़कर छत पर जा पहुँचा और नजरों से ओझल हो गया । दस मिनट बाद ही उसने भीतर का दरवाजा खोल दिया । वे भीतर गए तो दरवाजा बन्द कर लिया गया । भीतर सर्दी कम थी ।

“उधर कमरे में तीन नौकर सोये हैं ।” कलाम ने बताया, “पहली मंजिल पर एक कमरा भीतर से बन्द है ।”

वह पाँचों सीढ़ियाँ चढ़कर एक दरवाजे के पास जा रुके । वहाँ बल्ब जल रहा था । मध्यम सी रौशनी हो रही थी ।

जगमोहन ने दरवाजे का हैंडिल दबाकर उसे खोलने की कोशिश की ।

“भीतर से बन्द है ।” कलाम बोला ।

अगले ही पल जगमोहन ने दरवाजा थपथपाया ।

“ये क्या कर रहे हो ?” कलाम हड़बड़ाकर कह उठा ।

जगमोहन ने पुनः दरवाजा खटखटाया । इस बार स्वर तेज था । बाकी सबने हथियार संभाल लिए ।

दो पल बीते कि भीतर से नींद भरी एक मर्द की आवाज आई-

“कौन है ?”

“मालिक ! जरा दरवाजा खोलिए । जरूरी बात है ।” जगमोहन नौकरों जैसे स्वर में कह उठा ।

कुछ देर खामोशी रही फिर भीतर से दरवाजा खुलने की आवाज आई ।

वे सब सतर्क हो गए । जगमोहन एक तरफ हट गया । कलाम गन थामे आगे बढ़ गया था । दरवाजा खुला । कलाम ने दरवाजा खोलने वाले की छाती पर गन रखी और धकेलता भीतर चला गया ।

बाकी सब भी भीतर आ गए ।

वह चालीस बरस का व्यक्ति था । शरीर पर उसने गाउन पहन रखा था । कमरा गर्म था । हीटर चल रहे थे । बेड पर एक औरत लेटी थी, जिसने रजाई ओढ़ रखी थी । वह ये सब देखकर घबरा गई थी ।

वह व्यक्ति इतने हथियारबंद लोगों को इस तरह कमरे में पाकर हड़बड़ा उठा था ।

जगमोहन ने उसके गाउन की तलाशी ली । कोई हथियार नहीं मिला । जगमोहन ने जोरदार घूँसा उसके चेहरे पर दे मारा । वह कराहकर दो कदम पीछे हुआ । सबने उस पर हथियार तान रखे थे ।

“कौन हो तुम ?” जगमोहन दाँत भींचकर गुर्राया ।

“अब्दुल करीम ।” वह कह उठा, “तुम लोग कौन हो । ये सब क्या कर रहे हो मेरे घर में ?”

“बड़ा खान किधर है ?” जगमोहन के इस सवाल पर वह चौंका, “अगर तुमने कहा कि बड़ा खान को नहीं जानते तो हम तुम्हारे शब्द पूरे होने से पहले ही तुम्हें गोली मार देंगे ।”

“मैं... मैं नहीं जानता बड़ा खान कहाँ पर है ।” अब्दुल करीम कह उठा ।

“सच बोलो, वरना तुम भी उन लोगों की तरह मारे जाओगे, जो हमें बड़ा खान के बारे में नहीं बता सके ।”

“मैं सच कह रहा हूँ । मैं नहीं जानता कि बड़ा खान कहाँ पर मिलता है ।” अब्दुल करीम घबराया हुआ था, “तुम लोग कौन हो, अपने बारे में बताओ ?”

“तुम बड़ा खान के लिए काम करते हो ?”

अब्दुल करीम ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

“बोलो, वरना वक्त से पहले मरोगे ।”

“बड़ा खान ने मुझे तीन होटल खरीद कर दे रखे हैं । वहाँ उसके आदमी ठहरते हैं । छिपते हैं । कभी-कभी हथियार भी रखे जाते हैं ।”

“आज तुम लोगों ने देवराज चौहान को पकड़ा है ।” जगमोहन दाँत भींचकर कह उठा, “बताओ वह कहाँ है ?”

“मैंने सुना है कि वह पकड़ा गया, परन्तु नहीं जानता उसे कहाँ रखा ।”

“झूठ मत बोलो ।” जगमोहन गुर्रा उठा, “तुम जानते हो कि उसे कहाँ रखा है ।”

“मैं सच में नहीं जानता ।”

“कुछ अंदाजा तो होगा ?”

“नहीं ! मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता । मैं अपने काम में ही व्यस्त रहता हूँ ।” वह जगमोहन को देखने लगा ।

“इफ्तिखार कहाँ रहता है ?”

अब्दुल करीम ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर जगमोहन को देखा ।

“ये तो रुक गया ।” जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कलाम से कहा ।

कलाम ने गन उसकी छाती पर रखी ।

“ठहरो ! रुको, बताता हूँ ।” फिर उसने इफ्तिखार का पता बताया ।

“ये बड़ा खान के लिये पाकिस्तान से हथियार लाता है ?” जगमोहन ने दाँत भींचकर कहा ।

“ह... हाँ !”

“उन हथियारों को आतंकवादी संगठन को भी बेचता है ?”

अब्दुल करीम ने सहमति में सिर हिला दिया ।

“तुम लोग हिन्दुस्तान को बर्बाद करने पर लगे हो ?”

अब्दुल करीम का चेहरा फक्क था । कुछ कह न सका । बारी-बारी सबको देखता रहा ।

“ये कौन है ?” जगमोहन ने बेड पर लेटी औरत की तरफ इशारा किया जो डरी पड़ी थी ।

“मेरी बीवी ।”

“तूने ।” जगमोहन खतरनाक स्वर में उस औरत से कह उठा, “तूने अपने पति को कभी समझाया नहीं कि वह गलत रास्ते पर न चले ।”

खौफ में दबी औरत कुछ कह न सकी । जगमोहन ने अब्दुल करीम की आँखों में झाँका और वहशी स्वर में कह उठा-

“अगर तुम हमें देवराज चौहान के बारे में बता दो तो तुम्हारी जान बच सकती है ।”

“मैं सच में नहीं जानता ।” अब्दुल करीम कांपते स्वर में कह उठा, “मैं जानता होता तो बता चुका होता ।”

“इसे खत्म कर दे ।” जगमोहन ने कलाम को देखकर दरिंदगी भरे स्वर में कहा ।

तड़-तड़-तड़ ।

गन थोड़ी सी गरजी ।

अब्दुल करीम चीख न सका और बेड से टकराता नीचे जा गिरा । वह ठंडा पड़ गया था । जगमोहन ने औरत को देखा, जो कि डर की वजह से बेहोश हो चुकी थी ।

☐☐☐

इफ्तिखार का जो पता अब्दुल करीम ने बताया था, वहाँ पर काफी तगड़ा पहरा था ।

कड़कती सर्दी में भी उसके बंगले के गनमैन सतर्कता से अपनी-अपनी जगह पर मौजूद थे ।

वैन उन्होंने बंगले से पहले ही रोक दी थी । करीम पैदल ही अँधेरे में छिपता-छिपता बंगले का हाल देख आया था । जब पास पहुँचा तो जगमोहन वैन की सीट पर आँखें बन्द किये बैठा था ।

“इफ्तिखार तक पहुँचना आसान नहीं । बंगले पर जबरदस्त पहरा है ।” कलाम बोला ।

जगमोहन ने आँखें खोलकर कलाम को देखा फिर कह उठा-

“वहाँ हमेशा ही पहरा होता होगा या आज ही पहरा है ?”

“मैं समझा नहीं ।”

“ऐसा तो नहीं कि वहाँ देवराज चौहान को रखा हो और पहरा लगा दिया हो ।” जगमोहन बोला ।

सोच-भरी चुप्पी के बाद कलाम कह उठा ।

“मेरे ख्याल में वहाँ देवराज चौहान नहीं होगा । देवराज चौहान पर इस तरह सरेआम पहरा लगाकर, बड़ा खान इश्तिहार जैसा काम नहीं करेगा कि देवराज चौहान को यहाँ रखा है ।”

“तो तुम्हारे ख्याल से देवराज चौहान वहाँ नहीं है ।”

“हाँ, ये ही ख्याल है मेरा ।”

“इफ्तिखार तो होगा ?”

कलाम ने जगमोहन को गहरी निगाहों से देखा । अंधेरे में चेहरा स्पष्ट नहीं दिखा ।

“वहाँ गनमैन मुस्तैद हैं । छः तो मैंने देखे । ऐसे में कुछ किया तो मरेंगे ।”

“हम रुकेंगे नहीं । हमें कुछ करना ही है ।” जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा ।

“ऐसा है तो हमें दिन निकलने का इंतजार करना होगा । इफ्तिखार के बंगले से बाहर निकलने का इंतजार करना होगा ।”

“हम इंतजार करेंगे ।”

“तुम इफ्तिखार को मारना चाहते हो ?” कलाम ने पूछा ।

“हाँ ! मैं बड़ा खान को इतनी तकलीफ देना चाहता हूँ कि वह बाहर आ जाये ।”

“तुम्हारी हरकतें बड़ा खान को मजबूर कर देंगी कि वह देवराज चौहान को कोई नुकसान पहुँचा दें ।”

“वह उसे छोड़ने वाला तो वैसे भी नहीं ।” जगमोहन गुर्राया, “हो सकता है इफ्तिखार को पता है कि देवराज चौहान को कहाँ रखा हुआ है और हम उसका मुँह खुलवा लें । वह बड़ा खान के लिए हथियार लाता है पाकिस्तान से । इफ्तिखार बड़ा खान के काफी करीब है । हो सकता है वह बड़ा खान के ठिकाने के बारे में जानता हो ।”

“तुम्हारी सोच सही हो सकती है ।” कलाम ने गम्भीर स्वर में कहा, “परन्तु उसके बंगले पर इतना पहरा है तो बाहर निकलने पर वह गनमैनों को अपने साथ रखता होगा । उस पर हाथ डालना आसान नहीं होगा ।”

“बात को समझो कलाम । जितनी देर होगी, देवराज चौहान के लिये उतना ही खतरा बढ़ जायेगा ।”

“परन्तु अब तो हमें दिन के उस वक्त का इंतजार करना होगा जब इफ्तिखार बंगले से बाहर निकलेगा ।”

“वैन को किसी ऐसी जगह खड़ी कर लो कि किसी को हम पर शक न हो ।”

“ये ठीक जगह है ।” कलाम ने आस-पास देखते हुए कहा ।

“सबसे कह दो कि वह दो-तीन घण्टे नींद ले सकते हैं । दिन निकलने पर इफ्तिखार के बंगले की हालात देखेंगे ।”

“जरूरत पड़ी तो सुबह मैं फोन करके अपने और आदमी भी बुला सकता हूँ ।”

“देखेंगे ।”

तभी जगमोहन का मोबाइल बजा ।

“हैलो !” जगमोहन ने फोन पर बात की ।

“तुम कहाँ हो ?” जब्बार की आवाज कानों में पड़ी, “अभी आँख खुली तो मैंने एक गनमैन से पूछा । उसने बताया कि तुम अभी लौटे नहीं ।”

“मैं किसी काम के लिए निकला था, परन्तु वह काम लम्बा हो गया । दिन निकलने पर आऊँगा ।” जगमोहन ने कहा ।

“कलाम भी तुम्हारे साथ है ।”

“हाँ !”

“तो मुझे साथ क्यों नहीं लेकर गए ?” कानों में पड़ने वाले जब्बार की आवाज में शिकायती भाव आ गए ।

“तब मैंने सोचा था कि छोटा सा काम है ।”

“अब आऊँ मैं ?”

“सुबह तक हम ही वापस लौट आयेंगे । तुम आराम से नींद लो ।” कहकर जगमोहन ने फोन बन्द कर दिया ।

☐☐☐

देवराज चौहान की हालत सर्दी से बुरी हो रही थी । उसे एक खाली कमरे में रखा गया था । फर्श और दीवारों के अलावा कमरों में कुछ नहीं था । सामान के नाम पर कुछ नहीं था । रात भर वह सर्दी से बुरी तरह ठिठुरता रहा था । न तो वह बैठ पा रहा था । न ही लेट पा रहा था । इस कड़कती सर्दी में बिस्तर और मोटी रजाई भी हो तो, वह भी कम थी । कल दोपहर बाद उसे खाना दिया गया था । उसके बाद उसे पीने का पानी तक नहीं दिया । कोई आया भी नहीं था, जबकि उसे पूरी आशा थी कि बड़ा खान उसके पास अवश्य आएगा । परन्तु वह भी नहीं आया था ।

रात भर सर्दी में ठिठुरने से उसकी हालत बुरी हो गई थी । आँखों में नींद थी परन्तु नंगे फर्श पर इतनी सर्दी में सो पाना जानवर के बस में भी नहीं था । दरवाजे के नीचे रौशनी देखकर उसे महसूस हो गया कि दिन निकल आया । परन्तु बाहर शांति ही छाई रही । वह नहीं जानता था कि उसे कहाँ लाया गया है । उसे जब कार में बैठाकर ले जाया गया तो कुछ देर तक उसके सिर पर कपड़ा डाल दिया गया था कि वह रास्ता या ठिकाना न देख सके ।

देवराज चौहान ठिठुरता सा, एक कोने में सिकुड़ा बैठा था । इतनी सर्दी में शरीर पर पड़ा गर्म स्वेटर भी कुछ खास राहत नहीं दे रहा था । किसी भी इंसान के लिए ये बहुत बड़ी यातना थी ।

दिन की रौशनी दरवाजे के नीचे से नजर आने के बाद, दो-तीन घण्टे के बाद दरवाजे पर आहट हुई ।

कोई आया था ।

देवराज चौहान के दाँत भिंच गए । वह फुर्ती से उठा और चौखट के पास जा खड़ा हुआ । वह दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगा । दरवाजा भीतर की तरफ खुलता था और इस तरह उसने दरवाजे की ओट में हो जाना था । बाहर से दरवाजा खोला जा रहा था । देवराज चौहान खुद को पूरी तरह तैयार कर चुका था हमला करने के लिए । इस कैद से छुटकारा पाना बहुत जरूरी था । वरना बड़ा खान उसे जिन्दा नहीं छोड़ने वाला ।

दरवाजा खुला । पल्ला भीतर की तरफ खुलता चला गया । वह दरवाजे की ओट में हो गया ।

दरवाजे पर तीन गनमैन दिखे । आगे वाले गनमैन की निगाह कमरे में घूमी । कमरा खाली पाकर उसके चेहरे पर कड़वे भाव उभरे और दरवाजे के पल्ले पर उसकी निगाह टिक गई । फिर वह तेजी से दौड़ा और गन के साथ भीतर प्रवेश करके फुर्ती से पलटा और अब गन दरवाजे के पीछे छिपे देवराज चौहान की तरफ थी । देवराज चौहान के होंठ भिंच गए । वह गनमैन को देखने लगा ।

“तुम किसी भी चालाकी में सफल नहीं हो सकते । हम तीन हैं ।”

तब तक बाकी दो भी भीतर आ गए थे ।

देवराज चौहान समझ गया कि वह सच में कुछ नहीं कर सकता ।

“तुम हम पर झपटने वाले थे ।” वही गनमैन बोला, “अच्छा हुआ जो तुम ऐसा नहीं कर सके । वरना मैंने तुम्हें मार देना था ।”

देवराज चौहान खामोश रहा ।

“कमरे के बीच फर्श पर बैठ जाओ । बड़ा खान तुमसे मिलने आ रहा है ।” दूसरा गनमैन कह उठा ।

इनकी बात मानने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं था । देवराज चौहान आगे बढ़ा और कमरे के बीचोबीच जा बैठा ।

तीनों गनमैन, तीन अगल-बगल दीवारों के साथ पीठ सटाकर खड़े हो गए ।

चंद पल बीते कि एक आदमी कुर्सी थामे भीतर आया और रखकर वापस चला गया । तभी दरवाजे पर बड़ा खान नजर आया । उसके होंठों पर खतरनाक मुस्कान नाच उठी ।

देवराज चौहान उसे देखता रहा ।

“तुम्हें यहाँ देखकर मुझे बहुत खुशी हुई हकीम साहब ।” बड़ा खान कहते हुए भीतर आ गया, “मेरी आशा से कहीं जल्दी तुम मेरे हाथों में आ फँसे । वरना मैं तो सोचता था कि डकैती मास्टर अभी मुझे बहुत नचायेगा ।”

बड़ा खान कुर्सी पर आ बैठा ।

“क्या बात है ? चूहे बने बैठे हो । रात नींद तो बढ़िया आई होगी ।” बड़ा खान मुस्कुराया ।

“मैं तुम्हारी कैद में हूँ ।” देवराज चौहान ने कहा, “इसलिए मेरा कुछ भी कहना ठीक नहीं ।”

“अच्छा ! एक ही रात में समझदार हो गए हो । तुम्हारा संगठन मुझे बहुत परेशान कर रहा है । उन लोगों ने शौकत को मार दिया था ।”

“उसे तो मरना ही था ।”

“मेरे एक खास आदमी अब्दुल करीम को भी मार दिया । उसकी पत्नी से पता चला कि अब्दुल को मारने से पहले वह उससे मेरे और तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे । वह तुम्हें तलाश कर लेना चाहते हैं ।” बड़ा खान बोला ।

“वह मुझे ढूंढने की पूरी कोशिश करेंगे ।” देवराज चौहान बोला ।

“लेकिन वह तुम्हें ढूंढ नहीं सकते । उन्हें मालूम नहीं होगा कि तुम कहाँ हो । लेकिन अब्दुल करीम को मारकर मुझे तगड़ा नुकसान दिया । रशीद-मस्तान की कमी मुझे खल रही है । तुमने कदम-कदम पर मुझे तकलीफ दी । तुमने जो बीमारी मुझे दी, वह तो मेरी मौत के साथ ही खत्म होगी ।” बड़ा खान शांत स्वर में कह उठा, “ये सब तकलीफें तो मुझे सहनी ही हैं, परन्तु मैंने तुम्हारी मौत सोच ली है कि कैसे तुम्हारी जान निकलेगी ।”

बड़ा खान को देखता देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

“तुम यहीं इसी कमरे में सर्दी की वजह से तड़प-तड़प कर दम तोड़ोगे । तुम्हारे लिए यातना भरी ये मौत, तकलीफ वाली होगी । कड़कती सर्दी में खाली कमरे में पड़े रहना बहुत बुरा होता है । दिन में एक बार यानी कि चौबीस घण्टों में एक बार तुम्हें दो रोटी और पानी का गिलास मिलेगा, ताकि तुम भूख से तड़पकर नहीं, ठंड में तड़प कर मरो । यही है तुम्हारी मौत की तरकीब ।”

देवराज चौहान बड़ा खान को देखता रहा । बड़ा खान के चेहरे पर क्रूरता नाच रही थी ।

“आज हमारी आखिरी मुलाकात है । अब मैं तुमसे दोबारा मिलने नहीं आऊँगा । मेरे पास वक्त नहीं होता बर्बाद करने के लिए और तुमने मुझे बीमारी देकर और भी व्यस्त कर दिया है । इलाज करवाने के लिए मुझे अमेरिका जाना पड़ेगा । वहाँ के डॉक्टर से मेरी बात चल रही है । वह कहता है कि जब तक टेस्ट में एच०आई०वी० पॉजिटिव नहीं आता, तब तक मुझे शांत रहना होगा । हो सकता है ये बीमारी अभी मुझे न लगी हो । जो भी सच है, वक्त आने पर पता चलेगा । लेकिन अब तुम्हारी मौत तो निश्चित हो गई है । चार-पाँच दिन में मर जाओगे । ज्यादा हिम्मत वाले हुए तो आठ दिन जिन्दा रह लोगे । जब मरोगे तो तुम्हारा शरीर बुरे हाल में अकड़ा हुआ होगा । चेहरा सफेद पड़ा होगा । उस हाल में देखकर मुझे बहुत अच्छा लगेगा ।”

देवराज चौहान खामोश रहा ।

“तुम्हारे साथी जगमोहन को भी मैं ऐसी ही मौत दूँगा । वह भी तुम्हारी तरह ही मरेगा ।”

देवराज चौहान ने गहरी साँस लेकर कहा-

“मुझे सिगरेट मिल सकती है ?”

“नहीं !” तुम्हें दो रोटी और पानी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा ।” बड़ा खान ने कड़वे स्वर में कहा । फिर अपने गनमैनों को देखता कह उठा, “अगले पाँच मिनट तक इसे ठोकरें मारते रहो । मैं इसकी चीखें सुनना चाहता हूँ ।”

एक गनमैन अपनी जगह पर सतर्क खड़ा रहा । बाकी दो आगे बढ़े और देवराज चौहान को ठोकरें मारने लगे । दो मिनट बीत गए परन्तु देवराज चौहान के होंठों से कोई चीख नहीं निकली । हर ठोकर पर कभी इधर लुढ़कता तो कभी उधर । उसने होंठ भींच रखे थे ।

“अभी तक इसकी चीख नहीं सुनी मैंने ।” बड़ा खान कह उठा ।

अगले ही पल ठोकरों के प्रहार बहुत तेज हो उठे । देवराज चौहान पीड़ा पर काबू नहीं पा सका और चीखने लगा । बड़ा खान के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नाच रही थी ।

“मारो हरामजादे को !” बड़ा खान दाँत भींचकर बोला । देवराज चौहान चीखता रहा ।

करीब दस मिनट तक ये ही सिलसिला चला । देवराज चौहान निढाल हो गया ।

“चलो !” बड़ा खान ने कहा, “अब डकैती मास्टर इसी कमरे में तड़प-तड़पकर मरेगा ।”

वे सब बाहर निकले और दरवाजा बन्द कर दिया । कराहता सा देवराज चौहान फर्श पर पड़ा था ।

दरवाजा बन्द करके गनमैन ने कुंडी लगा दी ।

“ये बहुत खतरनाक आदमी है ।” बड़ा खान ने गनमैनों से कहा, “इसे जरा भी मौका मिला तो तुम लोगों को मारकर फरार हो जायेगा । ये मेरा खास दुश्मन है । सावधानी से सख्त नजर रखो इस पर और जब सर्दी में तड़प-तड़पकर मर जाये तो इसकी लाश किसी चौराहे पर फेंककर, मुझे खबर कर देना ।”

☐☐☐

दिन के 11:30 बजे थे ।

आज सूर्य नहीं निकला था । अभी भी वातावरण में कोहरा फैला था । रात में गिरी ओस की वजह से अभी तक जमीन और पेड़ों के पत्ते गीले थे । पत्तों में रह-रहकर पानी की बूँद गिर जाती थी । तीखी सर्दी जारी थी । इफ्तिखार के बंगले पर तगड़ा पहरा था । रात के पहरेदार सुबह छः बजे बदल गए थे और नए आ गए थे । इस इलाके में बंगले ही बने हुए थे । इसलिए ज्यादा भीड़भाड़ जैसी कोई चीज नहीं थी । जानलेवा सर्दी में कम ही कोई आता-जाता दिखाई दे रहा था ।

11:40 पर इफ्तिखार के बंगले का पूरा गेट खुला और काले रंग की एक लम्बी कार बाहर निकली । उसमें एक आदमी ड्राइविंग सीट पर बैठा था । एक उसकी बगल में बैठा था । पीछे वाली सीट पर अकेला इफ्तिखार पसरा हुआ था । उसने काला, गर्म कमीज-पायजामा पहन रखा था । वह पचपन बरस का सेहतमंद, कुछ मोटा व्यक्ति था । चेहरा लाल-सुर्ख सेब जैसा था ।

उसकी कार के पीछे-पीछे गेट से एक कार और निकली और पीछे आने लगी । उस कार में दो आदमी आगे और तीन पीछे थे । उनके पास गनें होने की झलक मिल रही थी । दोनों कारें मध्यम रफ्तार से आगे जा रही थीं ।

इफ्तिखार के बंगले से कुछ दूर पेड़ के नीचे एक आदमी गर्म कपड़ों में, चेहरे पर मफलर लपेटे खड़ा था । जब दोनों कारें उसके सामने से निकल गईं तो तुरन्त मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाया और बात की ।

“कलाम, इफ्तिखार बंगले से बाहर निकल आया है । मैंने उसे पहचाना । वह काली कार के पीछे वाली सीट पर अकेला बैठा है । आगे एक आदमी कार चला रहा है, एक और आगे बैठा है । काली कार के पीछे पाँच आदमियों से भरी कार है । उनके पास गनें हैं ।”

☐☐☐

इफ्तिखार की काली लम्बी कार उस कॉलोनी से निकलकर मुख्य सड़क पर पहुँची । परन्तु पीछे वाली कार मुख्य सड़क पर न आ सकी । आठ-दस लोगों ने उस कार पर हमला कर दिया । तड़ातड़ कार पर गोलियाँ बरसने लगीं । टायर बेकार हो गए । कार आगे नहीं जा सकी । भीतर बैठे पाँच व्यक्ति बाहर न निकल सके । गोलियों की बौछारें जारी थी । उनकी चीखों की आवाजें बाहर तक नहीं सुनाई दे रही थीं ।

हमला करने वाले कलाम के आदमी थे । कलाम ने सुबह ही ठिकाने से अपने और आदमी बुला लिए थे । दो मिनट में ही उस कार में पाँच लाशें पड़ी थीं ।

उसके बाद हमला करने वाले वहाँ से गायब होते चले गए ।

☐☐☐

गोलियों की आवाजें सुनकर इफ्तिखार चौंका । फौरन पलटकर पीछे देखा तो पीछे आती कार का हाल उसने अपनी आँखों से देखा । ड्राइवर ने कार रोक दी ।

“बेवकूफ कार क्यों रोकी ? दौड़ा कार को ।” इफ्तिखार ने गुस्से से कहा ।

अगले ही पल कार दौड़ पड़ी ।

“क्या हुआ जनाब ?” आगे बगल वाली सीट पर बैठे व्यक्ति ने पूछा ।

“कोई मुझ तक पहुँचना चाहता है । पीछे आते आदमियों को रोककर उन्होंने मुझे अकेला कर दिया है ।”

“ओह ! क्या कोई दुश्मन ऐसा करने वाला था ?”

“नहीं ! पता नहीं ये लोग कौन हैं । कार तेजी से दौड़ाते रहो ।” इफ्तिखार ने बेचैनी से कहा, “दुश्मन अब कहीं पर भी मुझे पकड़ने की चेष्टा करेगा । दुश्मन जो भी है वह खतरनाक और चालाक है । जाने कबसे मेरे बाहर निकलने का इंतजार कर रहा था ।”

“आप चिंता न करें जनाब ! मैं देख लूँगा उन लोगों को ।” कहकर उसने पाँवों के पास रखी गन उठा ली । परन्तु इफ्तिखार के दाँत भिंच गए ।

“जनाब !” कार चलाने वाला व्यक्ति कह उठा, “सफेद कार हमारा पीछा कर रही है ।”

इफ्तिखार ने फौरन गर्दन घुमाकर पीछे देखा । सफेद इंडिका कार तेजी से उनके पीछे आ रही थी ।

“कब से पीछे है ये ?” उस कार को देखते इफ्तिखार ने पूछा ।

“हमारे मुख्य सड़क पर आते ही ये हमारे पीछे लग गई थी । तब से पीछे ही है । हम कई मोड़ ले चुके हैं ।”

“पता नहीं ये कौन लोग हैं ।” इफ्तिखार ने दाँत भींचकर कहा, “इस कार से पीछा छुड़ाओ ।”

“पहाड़ी इलाके में कार ज्यादा तेज चलाना ठीक नहीं । सड़कें भी गीली हैं । कार फिसलकर खाई में गिर सकती है ।”

इफ्तिखार बराबर पीछे आती सफेद इंडिका को देख रहा था । वह करीब आती जा रही थी ।

“फोन करके सहायता माँग लीजिये ।” ड्राइवर ने कार दौड़ाते हुए कहा ।

“इतना वक्त नहीं है ।” इफ्तिखार ने कठोर स्वर में कहा ।

सफेद इंडिका काफी पास आ गई थी ।

जल्दी ही वह वक्त भी आ गया जब सफेद इंडिका ने उनकी कार को ओवरटेक किया । इफ्तिखार ने देखा, कार में पाँच आदमी बैठे थे । कइयों से उसकी नजर मिली ।

इफ्तिखार के होंठ भिंचे गए ।

आगे पहुँचते ही सफेद इंडिका कार ने अपनी कार की स्पीड कम कर दी । वह कार उनकी कार को रोकने को मजबूर कर रहे थे ।

“अब क्या करूँ जनाब ?” ड्राइवर ने पूछा ।

बगल में बैठे व्यक्ति ने गन संभाल ली ।

“कार को एक तरफ करके रोक दो और तुम ।” दूसरे ने कहा, “गन का इस्तेमाल मत करना । मुझे उनसे बात कर लेने दो ।”

“जी जनाब !” वह गन थामे कह उठा ।

कार सड़क के किनारे रुक गई थी । आगे इंडिका भी रुकी और देखते ही पाँचों आदमी बाहर निकले । जिनमें जगमोहन और कलाम भी थे । दो ने गनें थाम रखी थीं । अन्य तीन के हाथों में रिवॉल्वर थे । उन्होंने तुरन्त इफ्तिखार की कार को घेर लिया ।

इफ्तिखार ने बैठे-बैठे पीछे का दरवाजा खोला और सामने खड़े गनमैन से बोला ।

“मेरे पीछे क्यों पड़े हो ?”

“बाहर निकलो !” जगमोहन आगे आया, ‘तुमसे बात करनी है ।” उसका स्वर कठोर था ।

“मैं तुम लोगों को नहीं जानता ।”

“तुम इफ्तिखार हो और हम तुम्हें जानते हैं । इतना ही बहुत है । बाहर निकलो ।”

“जो बात करनी है वह इस तरह भी हो सकती है ।”

जगमोहन ने हाथ बढ़ाया और इफ्तिखार की बाँह पकड़कर उसे बाहर खींचा । ये देखकर आगे बैठा गनमैन मचला । उसने गन सीधी करनी चाही । उसकी खिड़की के पास खड़े कलाम ने हाथ में पकड़ी गन का मुँह खोल दिया ।

तड़-तड़ की आवाजें गूँज उठीं ।

वह गनमैन और ड्राइवर दोनों ही जिन्दा नहीं बचे । ये देखकर इफ्तिखार हड़बड़ा उठा । वह बाहर निकल आया था ।

“ये तुम लोगों ने क्या किया । पहले भी तुम लोगों ने पीछे आती कार पर... ।”

जगमोहन ने उसकी कमर से रिवॉल्वर की नाल लगा दी । चेहरे पर दरिंदगी थी ।

“चलो, हमारी कार में बैठो । जरा भी देर की तो हम तुम्हें भी मारकर चले जायेंगे ।”

इफ्तिखार ने खतरे को महसूस किया और आगे खड़ी सफेद इंडिका की तरफ बढ़ गया । जिन लोगों ने ये सब देखा, वे खौफ से पीछे हटते चले गए । वे सब इफ्तिखार को लेकर इंडिका में बैठे और कार दौड़ा दी ।

इफ्तिखार ने बोलना चाहा, परन्तु उसे चुप रहने को कहा गया ।

☐☐☐

इफ्तिखार को जंगल जैसी जगह पर ले जाया गया । दोपहर हो रही थी । कोहरा बरस रहा था । वातावरण में ठंडक बढ़ गई थी । ऊपर से जंगल जैसा खुला इलाका था ।

इफ्तिखार परेशान और व्याकुल लग रहा था ।

“आखिर तुम लोग कौन हो और क्या चाहते हो ?” इफ्तिखार कह उठा, “मुझ पर हाथ डालने की हिम्मत कोई नहीं कर... ।”

“डकैती मास्टर देवराज चौहान को कल बड़ा खान ने पकड़ा है ।” जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली, “मैंने देवराज चौहान को वापस पाना है । मैं उसका साथी जगमोहन हूँ और तुम हमें बताओगे कि देवराज चौहान कहाँ है ।”

“मैं... मैं नहीं जानता ।” इफ्तिखार के होंठों से बरबस ही निकला ।

“तो पता करके बताओ । तुम बड़ा खान के लिये खास हो । पाकिस्तान से उसके लिए हथियार लाते हो ।”

इफ्तिखार ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

“पाकिस्तान से हो या कश्मीर से ?”

“कश्मीर से ।” इफ्तिखार बारी-बारी सबको देख रहा था ।

“हम सिर्फ पाँच ही नहीं हैं । बहुत हैं । तुम्हारे पीछे गनमैनों से भरी कार पर हमारे आदमियों ने हमला किया था । तुम्हारे वह सब आदमी मर चुके हैं । देवराज चौहान को शौकत ने फँसाया । शौकत को हमने पिछली रात मार दिया । रात ही हम अब्दुल्ला करीम के पास पहुँचे । परन्तु वह नहीं जानता था कि देवराज चौहान कहाँ है । हमने उसे भी मार दिया । रात डेढ़ बजे से हम तुम्हारे बंगले के बाहर सर्दी में सड़ रहे थे । अब तुम्हारी बारी है । तुम देवराज चौहान के बारे में नहीं बता सके तो तुम्हें भी मार देंगे ।” जगमोहन की आवाज और चेहरे पर मौत के भाव बरस रहे थे ।

इफ्तिखार जानता था कि ये मजाक नहीं हो रहा ।

“बोलो !” जगमोहन ने इफ्तिखार के दिल वाली जगह पर रिवॉल्वर रख दी, “देवराज चौहान कहाँ पर है ? बड़ा खान कहाँ पर मिलेगा ? मुँह से इंकार निकला तो गोली चल जायेगी ।”

पल भर के लिए इफ्तिखार की टाँगे काँप उठी । उसने तुरन्त खुद को संभाला । मौत को उसने पास ही खड़े महसूस कर लिया था । वह जानता था कि सच में अभी गोली चल सकती है ।

“मैं पता लगाता हूँ ।” इफ्तिखार सम्भल कर बोला ।

“कैसे ?”

“मुन्ना खान चार लोगों के साथ देवराज चौहान को पकड़ने गया था । उसे फोन करता हूँ ।”

“फोन पर उसे पूछोगे कि देवराज चौहान को कहाँ रखा गया है ?” जगमोहन उसी मौत भरे स्वर में बोला ।

“हाँ !”

“नहीं ! ये गलत होगा । उसे कहीं बुला लो । किसी सुरक्षित जगह पर । कहना अकेला आये ।”

“ठीक है !” इफ्तिखार ने सिर हिलाकर जेब की तरफ हाथ बढ़ाया । तभी कलाम गुर्रा उठा ।

“रुको !”

इफ्तिखार का हाथ रुक गया । उसने कलाम को देखा ।

कलाम गन थामे आगे बढ़ा और तलाशी लेने लगा । उसके कपड़ों से हथियार के नाम पर एक रिवॉल्वर निकली । जिसे लेकर कलाम पीछे हटा और इफ्तिखार को आँख से इशारा किया ।

इफ्तिखार ने जेब से मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा ।

“कोई चालाकी मत करना ।” जगमोहन ने दाँत भींचकर कहा ।

“इन हालातों में मैं चालाकी कर ही नहीं सकता ।” फोन का नम्बर मिलाने में व्यस्त इफ्तिखार बोला ।

“कब से बड़ा खान के लिए काम कर रहे हो ?” जगमोहन ने पूछा ।

“दो साल से । जब से बड़ा खान ने कश्मीर में आकर अपना काम शुरू किया है ।” कहने के साथ ही इफ्तिखार ने मोबाइल कान से लगा लिया ।

दूसरी तरफ बेल जा रही थी । इफ्तिखार की गम्भीर, चिंता भरी निगाह जगमोहन, कलाम और बाकी तीनों पर जा रही थी । वह अपनी जान बचा लेना चाहता था ।

“कहिये जनाब !” दूसरी तरफ से मुन्ना खान की आवाज कानों में पड़ी, “हुक्म दीजिये !”

“कैसे हो मुन्ना ?” इफ्तिखार ने शांत स्वर में पूछा ।

“आपकी मेहरबानी से सब बढ़िया चल रहा है ।”

“क्या कर रहे हो ?”

“काम तो चलते ही रहते हैं ।” उधर से मुन्ना खान ने हँसकर कहा, “बताइये, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ?”

“तुमसे काम था ।” इफ्तिखार ने सरल स्वर में कहा, “क्या तुम किसी को बिना बताये मेरे से अभी मिल सकते हो ?”

“बिना बताये ? खास काम लगता है । कहाँ आऊँ ?”

“तुम ।” इफ्तिखार ने एक सूनसान सड़क के बारे में बताते हुए कहा, “वहाँ पहुँचो । मैं सफेद इंडिका में मिलूँगा ।”

“समझ गया । मैं आधे घण्टे में वहाँ पहुँचता हूँ ।”

“किसी को बताना नहीं कि तुम मुझसे मिलने आ रहे हो ।” कहकर इफ्तिखार ने फोन बंद किया और जगमोहन से बोला, “क्या तुम अपनी जुबान के पक्के हो कि मैं तुम्हें देवराज चौहान तक पहुँचा दूँगा तो तुम मुझे मारोगे नहीं ?”

“मेरी जुबान का कभी भी भरोसा मत करना ।” जगमोहन खतरनाक स्वर में बोला, “मैं अक्सर भूल जाता हूँ कि कुछ देर पहले मैंने क्या कहा है । परन्तु तुम्हारी तरफ से सब ठीक रहा तो तुम जिन्दा बच सकते हो ।”

इफ्तिखार ने गहरी साँस ली ।

“तुमने मुन्ना खान को ही फोन किया है या किसी को खतरे का इशारा किया है ।” कलाम खतरनाक स्वर में बोला ।

“मैं कोई चालाकी नहीं कर रहा । सिर्फ अपनी जान बचाना चाहता हूँ । मुन्ना खान से काम की बात पूछकर उसे खत्म कर देना ।”

“क्यों ?”

“वरना वह बड़ा खान को बता देगा कि मैंने तुम लोगों की सहायता की । मैं मुसीबत में पड़ जाऊँगा ।”

☐☐☐

आधे घण्टे बाद, मुन्ना खान से मिलने की तय सड़क के किनारे सफेद इंडिका खड़ी थी । कार में कलाम और इफ्तिखार बैठे थे । दोनों खामोश थे और नजरें बाहर दौड़ रही थी । जगमोहन और बाकी के तीनों साथी सड़क किनारे पेड़ों के पीछे हथियारों के साथ छिपे थे । ये सतर्कता इसलिए बरती जा रही थी कि कहीं इफ्तिखार ने फोन पर कोई चाल न चली हो, उन्हें फँसाने के लिये । बड़ा खान से वास्ता रखता मामला था । हर कदम वे बेहद सोच-सम्भलकर उठा रहे थे ।

तय वक्त के दस मिनट बाद मुन्ना खान कार पर वहाँ पहुँचा । इंडिका के पीछे ही सड़क किनारे कार रोकी और उतरकर इंडिका की तरफ बढ़ा । वह तीस बरस का कुछ लम्बा व्यक्ति था । देखने में फुर्तीला लग रहा था । इस वक्त उसने गर्म कमीज-सलवार, ऊपर मोटी जैकिट और सिर पर गर्म टोपी डाल रखी थी ।

वह इंडिका के पास पहुँचा और नीचे झुककर भीतर देखा । कलाम इस वक्त बेहद सतर्क था । रिवॉल्वर वाला हाथ उसने एक तरफ छिपा रखा था ।

मुन्ना खान से नजरें मिलते ही इफ्तिखार मुस्कुराया ।

“आपको देखकर खुशी हुई जनाब !” मुन्ना खान ने कलाम पर नजर मारी, “कोई खास बात है क्या ?”

“भीतर बैठो मुन्ना ।”

मुन्ना खान ने दरवाजा खोला और इफ्तिखार के साथ भीतर जा बैठा ।

“कहाँ जाना है ?” मुन्ना खान ने पूछा ।

“शायद… !” कहते-कहते इफ्तिखार ने गहरी साँस ली ।

“क्या बात है ?” एकाएक मुन्ना की आँखें सिकुड़ी ।

यही वह वक्त था जब जगमोहन और बाकी तीनों कार तक आ पहुँचे ।

जगमोहन मुन्ना खान को धकेलते हुए भीतर बैठा और रिवॉल्वर उससे सटा दी । मुन्ना खान चौंका ।

“ये क्या ?” मुन्ना के होंठों से निकला ।

बाकी तीनों आदमी आगे की सीटों पर जा बैठे थे । एक ने कार स्टार्ट की ।

“ये क्या हो रहा है । ये लोग कौन हैं ?” मुन्ना खान तेज स्वर में इफ्तिखार से बोला ।

“मैं इन लोगों के कब्जे में हूँ ।” इफ्तिखार बोला, “इनके कहने पर तुम्हें बुलाया है ।”

“क्या ?” मुन्ना खान की निगाह कलाम की तरफ उठी, “ये कौन लोग हैं ?”

“चुप रहो !” जगमोहन उसकी कमर में रिवॉल्वर लगाये कह उठा, “अभी तेरे से बात करेंगे ।”

“तुमने किसी को बताया कि मेरे कहने पर, मुझसे मिलने आ रहे हो ?” इफ्तिखार ने पूछा ।

“आपने मना किया था । मैंने किसी को नहीं बताया । लेकिन ये सब... ।”

☐☐☐

मुन्ना खान को लेकर वह सब वापस उसी जंगल में, उसी जगह पर आ पहुँचे । मुन्ना खान व्याकुल दिख रहा था । उसकी जेब में पड़ी रिवॉल्वर ले ली गई थी । इफ्तिखार गम्भीर था ।

“जनाब बात क्या है ? कुछ मुझे भी तो पता चले ।” मुन्ना खान ने खीझे स्वर में कहा ।

इफ्तिखार ने जगमोहन को देखा ।

“तुम बात करो ।” जगमोहन ने दाँत भींचकर कठोर स्वर में कहा, “हम सुन रहे हैं ।”

मुन्ना खान परेशानी से बारी-बारी सबको देख रहा था । उसने इफ्तिखार से पूछा-

“क्या बात है ?”

“मुन्ना ! ये लोग देवराज चौहान के साथी हैं और मेरे कई आदमियों को मारकर इन्होंने मुझे पकड़ रखा है । रात इन्होंने शौकत को भी मार दिया और अब्दुल करीम को भी । अगर मैंने इनकी बात नहीं मानी तो ये मुझे भी मार देंगे और तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे ।”

ये देवराज चौहान के साथी हैं, सुनकर मुन्ना सम्भल गया था ।

इफ्तिखार पुनः गम्भीर स्वर में कह उठा-

“ये देवराज चौहान को वापस चाहते हैं और उसे शौकत के पास से पकड़कर तुम ही ले गए थे ।”

“ओह ! तो जनाब आपने खुद को बचाने के लिए मुझे इनके हाथों में फँसा दिया । ये तो गद्दारी हुई ।” मुन्ना खान गुर्रा उठा ।

“ये वक्त गुस्सा करने का नहीं, समझदारी दिखाने का है । इन्हें बता दो कि देवराज चौहान को कहाँ रखा है । बता दोगे तो ये हमें जिन्दा छोड़ देंगे ।” इफ्तिखार का धीमा स्वर गंभीर था ।

“बड़ा खान को आपकी ये हरकत जरा भी पसन्द नहीं आएगी ।” मुन्ना खान गुस्से में था ।

“उसे मैं संभाल लूँगा ।” इफ्तिखार मुस्कुरा पड़ा ।

तभी जगमोहन ने मुन्ना खान के गले पर रिवॉल्वर रखकर कहा ।

“बस । अब बाकी की बात हमसे करो ।”

मुन्ना खान ने कठोर नजरों से जगमोहन को देखा । उसी पल कलाम ने जूते की ठोकर मुन्ना खान के पेट में मारी । मुन्ना खान पेट थामकर चीखा ।

“अपनी नजरें ठीक करो ।” कलाम ने कड़वे स्वर में कहा, “हमें घूरो मत ।”

“बता, देवराज चौहान को कहाँ रखा है ?” 

मुन्ना खान ने दाँत भींच लिए ।

“वह जिन्दा है ?” जगमोहन गुर्राया ।

“हाँ !”

“जिन्दा रहना चाहता है तो बता देवराज चौहान कहाँ है ?” जगमोहन ने एकाएक खूँखार लहजे में कहा, “अब बीस तक गिनती गिनी जायेगी । इस दौरान तू मर भी सकता है या देवराज चौहान के बारे में बताकर अपनी जिंदगी खरीद भी सकता है ।” कहने के साथ ही जगमोहन ने कलाम को इशारा किया । कलाम आराम से गिनती गिनने लगा । जगमोहन ने रिवॉल्वर मुन्ना खान के गले पर लगा रखी थी ।

मुन्ना खान के चेहरे पर मौत के साये लहरा रहे थे ।

कलाम की गिनती दस तक पहुँच गई थी ।

“बेवकूफी मत करो मुन्ना ! इन्हें बता दो जो पूछ रहे हैं । ये सच में मार देंगे ।” इफ्तिखार कह उठा ।

कलाम ने पंद्रह कहा । फिर सोलह ।

मुन्ना खान ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

“तेरी मौत का मुझे सच में अफसोस होगा ।”

कलाम ने उन्नीस कहा तो मुन्ना खान कांपते स्वर में कह उठा ।

“ठहरो ! रुको, बताता हूँ । देवराज चौहान को पीली कोठी में रखा है ।”

“पीली कोठी ?” जगमोहन वहशी स्वर में बोला, “ये कहाँ है ?”

“मैं बता दूँगा पीली कोठी कहाँ है ।” इफ्तिखार कह उठा ।

जगमोहन ने मुन्ना खान की गर्दन से रिवॉल्वर हटाई और दो कदम पीछे हट गया । 

मुन्ना खान ने गहरी साँस ली ।

तभी कलाम आगे बढ़ा और अपने साथी से गन लेकर मुन्ना खान की छाती पर रख दी । मुन्ना खान कांप उठा ।

“म... मैंने बता… द... दिया है ।”

“आधी बात । अभी बाकी है ।” कलाम ने दरिंदगी भरे स्वर में कहा ।

“क...क्या ?”

“बड़ा खान कहाँ पर है ?”

“मैं... मैं नहीं जानता ।” मुन्ना खान के होंठों से निकला ।

कलाम ने इफ्तिखार को देखा तो इफ्तिखार शांत स्वर में कह उठा-

“ये बड़ा खान का खास आदमी है । और इसे पता होता है कि वह कहाँ पर मिलेगा ।”

मुन्ना खान ने दाँत भींचकर खा जाने वाली नजरों से इफ्तिखार को देखा ।

“तुम ।” कलाम ने जगमोहन से कहा, “अब तुम बीस तक गिनती शुरू करो । ये मेरे हाथों से मरेगा ।”

जगमोहन ने फौरन बीस तक गिनती शुरू कर दी । मुन्ना खान का चेहरा फक्क पड़ने लगा ।

कलाम ने गन की नाल मुन्ना खान की छाती पर टिका रखी थी ।

गिनती आठ तक पहुँच गई । इफ्तिखार कह उठा ।

“बता दे । बचने का कोई रास्ता नहीं । ये तेरे को मार देंगे । इन्होंने शौकत और अब्दुल करीम को भी मार दिया है ।”

“रशीद और मस्तान भी हमारे हाथों ही मरे थे ।” कलाम ने दरिंदगी से कहा ।

जगमोहन चौदह तक पहुँच गया था ।

“बताता हूँ ।” मुन्ना खान हड़बड़ाकर कह उठा, “बड़ा खान नवाब हाउस गया है ।”

“नवाब हाउस ?” कलाम के माथे पर बल पड़े ।

“ये एक ठिकाना है उसका ।” इफ्तिखार बोला, “मैं जानता हूँ ।”

“तो तुम पूरी तरह मेरा साथ दोगे ?” जगमोहन बोला ।

“हाँ ! ईमानदारी से ।” इफ्तिखार ने गर्दन हिलाई ।

“तो अब इसकी जरूरत तो नहीं ।” कलाम ने मुन्ना खान को देखा ।

मुन्ना खान कुछ नहीं समझा ।

“नहीं !” इफ्तिखार ने होंठ भींचकर कहा ।

तड़-तड़-तड़

थोड़ी सी गन गर्जी और मुन्ना खान उछलकर पीछे को जा गिरा । वह शांत पड़ गया ।

इफ्तिखार ने आँखें बंद कर लीं ।

“दुःख हो रहा है ?” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा ।

“ऐसा कुछ नहीं है ।” इफ्तिखार ने आँखें खोलीं, “ये वादा है कि तुम लोग मुझे नहीं मारोगे ?”

“वादे से पहले एक शर्त भी है ।”

“मैं हर कदम पर तुम लोगों का साथ दूँगा ।”

“साथ देगा और ये बुरा काम छोड़ देगा ।”

“मैं तो छोड़ दूँ पर बड़ा खान मुझे नहीं छोड़ेगा । मैंने ऐसा सोचा भी तो वह उसी पल मुझे मार देगा । मैं उसके बहुत राज जानता हूँ । वह मुझे दूर नहीं होने देगा ।” इफ्तिखार बेचैनी से कह उठा ।

“ये हमारी गारन्टी है कि बड़ा खान जिन्दा नहीं बचेगा ।”

“फिर मैं ये काम छोड़ दूँगा ।”

“न छोड़ा तो हम अभी तेरे को खत्म कर...”

“ये नौबत नहीं आएगी । मैं छोड़ दूँगा । इन कामों से मैं भी तंग आ चुका हूँ ।”

“तो तुम पीली कोठी और नवाब हाउस के बारे में जानते हो कि ये दोनों जगह कहाँ हैं ?”

“हाँ ! पीली कोठी तो यहीं श्रीनगर में है । नवाब हाउस श्रीनगर से बाहर दस किलोमीटर दूर है । बड़ा खान नवाब हाउस में जब जाता है तो समझ जाता हूँ कि वह कुछ दिन आराम करना चाहता है ।”

“तो वह वहाँ आराम करने गया है ?” जगमोहन खतरनाक स्वर में बोला, “वहाँ कितना पहरा होता है ?”

“आठ-दस गनमैन और दो-तीन नौकर होते हैं । चार-चार गनमैन चार-चार घण्टों की ड्यूटी देते हैं । हर चार घण्टे बाद गनमैन बदल जाते हैं ताकि वह ड्यूटी देने के काबिल रहें । छुट्टी के चार घण्टों में वह नींद ले लेते हैं ।”

“ये तो ज्यादा कोई सख्त पहरा न हुआ ।”

“नवाब हाउस के गनमैन अचूक निशानेबाज हैं और आसपास किसी संदिग्ध को देखकर फौरन उसे शूट कर देते हैं । एक पहाड़ी पर दो मंजिला साधारण सा मकान है नवाब हाउस । गनमैन और नौकर नीचे वाली मंजिल पर रहते हैं और बड़ा खान पहली मंजिल पर रहता है । मैं दो-तीन बार बड़ा खान के साथ वहाँ जा चुका हूँ ।”

“वहाँ कौन से वक्त जाना ठीक रहेगा ?”

“कह नहीं सकता । हर वक्त ही वहाँ खतरे से खाली नहीं है ।”

“पीली कोठी के बारे में बताओ ।” जगमोहन ने कहा ।

“पीली कोठी बड़ा खान का ऐसा ठिकाना है जिसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते । यहाँ बड़ा खान के बेहद करीबी लोग रहते हैं । दस-पंद्रह के करीब हैं वह । बड़ा खान उन पर पूरा भरोसा करता है ।”

“मुन्ना खान भी उन्हीं में से एक था ?”

“हाँ !”

“पीली कोठी के लोग तुम्हें जानते हैं ?”

“हाँ ! मैं वहाँ जाता रहता हूँ । हथियारों को कभी वहाँ रखना होता है तो कभी वहाँ से उठाकर हथियार किसी संगठन को देने होते हैं । मेरा वहाँ आना-जाना सामान्य सी बात है ।” इफ्तिखार ने सरल स्वर में कहा ।

“अपने साथ किसी को ले जा सकते हो ?”

“ये सम्भव नहीं । बड़ा खान की मौजूदगी में तो बिल्कुल ही सम्भव नहीं । अगर किसी को साथ में वहाँ पर ले जाता हूँ तो इस बारे में मुझे बड़ा खान के सामने सफाई देनी होगी कि बाहरी आदमी को पीली कोठी लेकर क्यों गया ।”

“तुम मुझे वहाँ ले जा सकते हो ?”

इफ्तिखार के चेहरे पर बेचैनी उभरी, बोला-

“बाद में बड़ा खान को जवाब देना भारी पड़ जायेगा ।”

“बाद तक वह जिन्दा नहीं रहेगा ।” जगमोहन ने कहा फिर कलाम से बोला, “आओ, हम आगे की रणनीति तय कर लें ।”

“इसका ध्यान रखना ।” कलाम ने अपने आदमियों से कहा, “गड़बड़ की चेष्टा करे तो शूट कर देना ।”

इफ्तिखार गहरी साँस लेकर रह गया ।

दिन सरकता जा रहा था । सर्दी बढ़ गई थी । दोनों कुछ कदम दूर जा पहुँचे ।

“हमारे पास वक्त कम है कलाम । आज शाम ढलते ही हम पीली कोठी और नवाब हाउस पर हमला करेंगे । नवाब हाउस पर हमला करने में हम जब्बार का इस्तेमाल करेंगे ।” इसके साथ ही जगमोहन कलाम को अपनी योजना समझाने लगा ।

करीब बीस मिनट वे बातों में व्यस्त रहे फिर वह इफ्तिखार के पास पहुँचे ।

“तुम्हारा परिवार है ?”

“हाँ !” इफ्तिखार ने सिर हिलाकर कहा, “पत्नी है, चार बच्चे हैं । एक मुम्बई में पढ़ता है, दो अमेरिका में । एक साथ रहता है ।”

“हम जो काम करने जा रहे हैं, उसके लिए बहुत हद तक तुम पर निर्भर है । तुम्हें इस बात का पूरा मौका मिलेगा कि तुम हमें धोखा देकर बड़ा खान के हाथों में फँस सको और हम नहीं चाहते कि तुम ऐसा करो ।”

“कसम से, मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा ।” इफ्तिखार ने यकीन दिलाने वाले स्वर में कहा ।

“तुम अपनी पत्नी को फोन करके बुलाओ ।”

“क्या ?” इफ्तिखार के होंठों से बेचैनी भरा स्वर निकला ।

“तुम्हारी पत्नी गारन्टी के तौर पर हमारे पास रहेगी कि तुम हमसे धोखा नहीं करोगे ।”

“मैं धोखा नहीं करूँगा ।”

“फिर तुम्हें क्या परेशानी है । जैसा हमने कहा है, वैसा कर दो । अपनी पत्नी को बुलाकर हमारे हवाले कर दो । वह हमारे पास पूरी तरह तब तक सुरक्षित रहेगी, जब तक कि तुम हमें धोखा नहीं दोगे ।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“मुझे क्या करना होगा ?” इफ्तिखार परेशान स्वर में बोला ।

जगमोहन ने बताया ।

“बड़ा खान मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगा ।” इफ्तिखार दाँत भींचकर कह उठा ।

“तुम हमारी बात नहीं मानोगे तो मैं भी तुम्हें मार सकता हूँ ।”

“बात मानने से मैंने इंकार नहीं किया । क्या ये जरूरी है कि मैं अपनी पत्नी को बुलाऊँ ?”

“जरूरी है ।”

इफ्तिखार ने अपनी पत्नी को फोन करके मामला समझाया और आने को कहा । उसे जगह बता दी ।

“अब तुम मुझे नवाब हाउस के बारे में बताओ कि वहाँ तक कैसे पहुँचा जा सकता है ?” जगमोहन कह उठा ।

☐☐☐

जगमोहन इफ्तिखार की बीवी फातिमा के साथ ठिकाने पर पहुँचा । फातिमा पचास बरस की लम्बी-चौड़ी सेहतमंद औरत थी और सारा मामला वह समझ चुकी थी । इन हालातों में भी वह निश्चिन्त थी कि उसका शौहर उसे बचाने के लिए कुछ भी करेगा । वह जानती थी ।

जगमोहन ने फातिमा को अपने आदमियों के हवाले करते हुए कहा-

“इसे अपनी माँ-बहन समझकर, पूरी इज्जत देते हुए अपनी कैद में रखो ।”

उसके बाद जगमोहन जब्बार के पास पहुँचा । जब्बार उसे देखते ही कह उठा-

“तुम मुझे यहाँ छोड़कर किन कामों में भागे फिर रहे हो । मुझे भी तो साथ ले जा सकते थे तुम ।”

“मैं बहुत बढ़िया काम करके आया हूँ ।” जगमोहन मुस्कुराया ।

“क्या ?”

“बड़ा खान के बारे में पता लगा लिया है कि वह कहाँ पर है ।” जगमोहन ने कहा ।

“कहाँ है वह ?”

“नवाब हाउस में ।”

“इस जगह के बारे में मैंने पहले कभी नहीं सुना । कहाँ है ये ?” जब्बार की आँखें सिकुड़ी ।

“मैं बड़ा खान का शिकार करने जा रहा हूँ । क्या तुम ऐसे मौके पर मेरे साथ रहना चाहोगे ?”

“इस बढ़िया मौके को मैं हाथ से कैसे जाने दूँगा ।” जब्बार गुर्रा उठा ।

“ऐसा ही मेरा ख्याल था कि तुम जरूर साथ चलोगे । तैयार हो जाओ । नवाब हाउस काफी सुरक्षित जगह पर है । वहाँ हमें खतरा आ सकता है । बढ़िया से बढ़िया हथियार साथ ले लो । चाहें जो भी हो, बड़ा खान जिन्दा नहीं बचना चाहिये ।”

“नहीं बचेगा ।” जब्बार ने दाँत किटकिटाये, “उसने मेरे साथ बहुत बुरा किया है । सब संगठनों में ये बात फैला दी कि मैं पुलिस के साथ मिल गया हूँ । फिर वह मुझे शहीद बनाने जा रहा था । कुत्ते की मौत मारूँगा हरामजादे को ।”

☐☐☐

इफ्तिखार खुद कार चला रहा था । बगल में कलाम बैठा था और पीछे वाली सीट पर कलाम का आदमी गन लिए बैठा था । कभी-कभी इफ्तिखार के चेहरे पर घबराहट नजर आने लगती थी । अँधेरा घिर चुका था । कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी । शाम से ही ओस पड़नी शुरू हो गई थी । सब सड़कें गीली दिखाई दे रही थीं ।

“बड़ा खान मुझे नहीं छोड़ेगा ।” इफ्तिखार कह उठा ।

“उसे आज रात खत्म करने की पूरी चेष्टा की जायेगी ।” कलाम कठोर स्वर में बोला, “तुम्हें अपनी पत्नी की चिंता करनी चाहिए । वह हमारी कैद में है । तुम ठीक से हमारा साथ दोगे तो तभी वह आजाद हो सकेगी ।”

इफ्तिखार के होंठ भिंच गए ।

“जैसा तुम्हें समझाया है, वैसा ही करना ।” कलाम ने कहा ।

कुछ ही देर में कार कोठी पर जा पहुँची ।

वह काफी बड़ा एक मंजिला मकान था जो कि शांत इलाके में बना हुआ था । लोहे के बड़े गेट पर टोपी पहने दो गनमैन खड़े थे । इफ्तिखार ने उनके पास कार ले जा रोकी । चूँकि कार इफ्तिखार की नहीं थी, सड़क से उठाई थी, ऐसे में वे कार को पहचान नहीं पाये । दोनों गनमैन सतर्क हो गए थे । एक गन थामे सावधानी से पास आया ।

“मैं हूँ इफ्तिखार ।” इफ्तिखार ने कहा, “गेट खोलो !”

“ओह, जनाब आप !” वह बोला । झुककर भीतर झाँका । कलाम और पीछे बैठे व्यक्ति को देखता कह उठा, “ये लोग कौन हैं ?”

“पाकिस्तान से आये हैं । मिलिट्री के लोग हैं ।”

गनमैन फौरन पीछे हटा और दूसरे गनमैन से बोला-

“इफ्तिखार साहब हैं, गेट खोल दो ।”

तुरंत ही गेट खोल दिया गया ।

कार आगे बढ़ी और भीतर प्रवेश करती चली गई । हैडलाइट की रौशनी में कलाम वहाँ का माहौल देख रहा था । दो गनमैन उसे लॉन की तरफ टहलते दिखे । कार पोर्च में जा रुकी ।

“आओ !” इफ्तिखार ने इंजन बंद करके दरवाजा खोलते हुए कहा ।

कलाम और उसके साथी भी बाहर निकले ।

तीनों सामने के लकड़ी के बड़े से दरवाजे की तरफ बढ़ गए । जो कि खुला हुआ था ।

उन्होंने भीतर प्रवेश किया तो सामने ही कुर्सियों पर चार आदमी बैठे दिखे । जो कि ताश खेल रहे थे । गनें पास ही कुर्सियों से सटा रखी थीं । उन्हें देखते ही पत्ते छोड़कर गन थामी और सब खड़े हो गए । इफ्तिखार का आना तो साधारण बात थी । परन्तु साथ में दो अजनबी देखकर वह कुछ सतर्क हुए । वे जानते थे कि इस जगह पर कोई फालतू आदमी नहीं आता । एक गनमैन आगे बढ़ता हुआ इफ्तिखार से कह उठा ।

“आइये जनाब ! साथ में कौन हैं ? मैंने इन्हें पहचाना नहीं ।”

“गनी !” इफ्तिखार सामान्य लहजे में कह उठा, “ये जुनैद साहब हैं और आज ही पाकिस्तान से आये हैं । ये इनके अंगरक्षक हैं ।” इफ्तिखार ने पास खड़े गनमैनों की तरफ इशारा किया, “एक नया हथियार बनाया है । उनके बारे में ये तुम सब लोगों को बताएँगे ।”

“नया हथियार ?” गनी के होंठ सिकुड़े ।

“क्योंकि वह आम हथियार नहीं है । गन रूपी उस हथियार पर निशाना तय करने के लिये एक कम्प्यूटराइज चिप लगी है और उस पर सुइयों जैसा मीटर है । कमरे में बैठे-बैठे भी गोली को निर्देश दे सकते हो उस कंप्यूटराइज्ड चिप द्वारा । सुइयों से सेट कर लो दिशा और ट्रिगर दबा दो । गोली कमरे से निकलकर हवा में घूमती हुई उसी दिशा की तरफ जायेगी, जो दिशा तुमने सुइयों द्वारा सेट की है और अपने टारगेट पर जा लगेगी ।”

“ओह ! ऐसी भी गन हो सकती है भला ।”

“हाँ ! पाकिस्तान ने ऐसी गन तैयार कर ली है । जुनैद साहब अभी सिर्फ दो गनें ही लेकर आये हैं । दोनों गनें तुम लोगों को दे जायेंगे । रातोंरात इन्हें सीमा पार करके पाकिस्तान पहुँचाना है । ये समझा देंगे कि गनें कैसे काम करती हैं और तुम लोग गनें इस्तेमाल करके देखना । अगर ठीक लगीं तो बताना, तब मैं ज्यादा गनों का ऑर्डर दे दूँगा ।”

“ऐसी गन तो वास्तव में शानदार होंगी ।” गनी ने कहा, “परन्तु हमने तो शाम को सुना था कि कुछ लोगों ने आप पर हमला किया है । आपके काफी आदमी मारे गए और... ।”

“मैं बच निकला था ।” इफ्तिखार ने गहरी साँस ली ।

“कौन थे वे लोग, जिन्होंने आप पर हमला किया ?”

“पता नहीं ! लेकिन वह खतरनाक थे । बड़ा खान से उनके बारे में बात करनी होगी । कहाँ है बड़ा खान ?”

“सुबह आये थे और चले गए । उसके बाद कोई खबर नहीं है ।”

तभी कलाम इफ्तिखार से कह उठा ।

“मेरे पास वक्त कम है । पाकिस्तान लौटना है । दस मिनट के लिए यहाँ सबको इकट्ठा कर लो ।”

“जल्दी करो गनी !” इफ्तिखार ने कहा, “मुझे भी अभी कई काम करने हैं ।”

“लेकिन सबको इकट्ठा करने की क्या जरूरत है ।” गनी बोला ।

“दस मिनट के लिए सबको इकट्ठा कर लोगे तो तुम्हें क्या परेशानी है ?” इफ्तिखार ने सख्त स्वर में कहा ।

“ठीक है जनाब ! अभी बुलाता हूँ सबको ।” फिर गनी ने पास खड़े तीन लोगों से कहा कि वे सबको यहाँ इकट्ठा होने को कहें ।

वे तेजी से चले गए ।

“वह गन कहाँ है ?” गनी ने कलाम के साथी के हाथ में पड़ी गन को देखकर कहा ।

“कार में रखी है ।” कलाम कह उठा, “अभी ले आता हूँ ।”

इफ्तिखार का दिल तेजी से बज रहा था । परन्तु चेहरा शांत था ।

पाँच-सात मिनट लगे कि वहाँ चौदह गनमैन आ खड़े हुए । सबके पास गनें थी । जो कि खतरनाक था । वे लोग जो करने जा रहे थे, उसके मुताबिक उनके पास गनें होना ठीक नहीं था । परन्तु सबके पास गने थीं ।

“इतने ही हैं ?” इफ्तिखार ने पूछा ।

“इतने ही हैं हम ।” गनी बोला ।

“मुन्ना खान नहीं दिख रहा ?” इफ्तिखार ने यूँ ही पूछा ।

“वह सुबह से ही जाने कहाँ गया है । बताकर नहीं गया । अब वह गन दिखाइए ।”

कलाम ने अपने गनमैन को इशारा किया ।

गनमैन तो जैसे तैयार था । अगले ही पल उसके हाथ में दबी गन का मुँह खुल गया ।

तड़-तड़-तड़-तड़-तड़… ।

गन ने रुकने का नाम नहीं लिया ।

एक-दो को अपनी गन सँभालने का मौका मिला परन्तु कलाम ने रिवॉल्वर निकालकर फुर्ती से उनका निशाना ले लिया । वे अपनी गन का इस्तेमाल नहीं कर सके ।

मात्र डेढ़ मिनट में सारा काम खत्म हो गया ।

वह चौदह के चौदह नीचे पड़े थे । उनमें चार-पाँच तड़प रहे थे । कलाम दाँत भींचे आगे बढ़ा और तड़पने वालों के सिर में गोली मारकर उन्हें शांत कर दिया ।

इफ्तिखार हक्का-बक्का खड़ा, फटी-फटी आँखों से वहाँ बिखरी पड़ी लाशों को देख रहा था । उनके जिस्मों से खून निकलकर फर्श पर बहने लगा । फायरिंग के बाद अब सन्नाटा सा आ ठहरा था ।

कलाम और उनके साथी के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी । तभी दौड़ते कदमों की आवाज गूँजी । वे तीनों चौंककर पलटे ।

गोलियों की आवाज सुनकर वहाँ काम करने वाले नौकर दौड़े आये थे । इफ्तिखार दाँत भींचकर कह उठा-

“इन्हें भी खत्म करो वरना ये मेरे बारे में बड़ा खान को बता देंगे कि... ।”

गन पुनः गर्जी और दोनों नौकर शांत पड़ गए ।

“देवराज चौहान को ढूँढो ।” कलाम ने दाँत भींचकर कहा ।

उसके बाद वे तीनों पीली कोठी में देवराज चौहान को तलाश करने लगे । तब छिपा हुआ एक गनमैन उन पर फायरिंग करने लगा ।

दस मिनट की कोशिश के बाद उसे शूट कर दिया गया ।

वे जल्द से जल्द यहाँ से निकल जाना चाहते थे । गोलियों की आवाजें गूँज चुकी थीं । कोई मुसीबत आ सकती थी ।

कुछ देर बाद ही एक कमरे में बंद देवराज चौहान उन्हें मिल गया ।

☐☐☐

वह छोटी सी पहाड़ी थी । खुले में थी । पहाड़ी पर पाँच हजार गज जगह समतल कर रखी थी । उस पर थोड़ी सी जगह में दो मंजिला मकान बना रखा था । उसी को बड़ा खान ने नवाब हाउस का नाम दे रखा था । उसके अलावा पहाड़ी पर कोई और मकान नहीं था । पहाड़ी के किनारों पर काँटेदार तारें लगा रखी थी कि कोई आसानी से पहाड़ी पर न आ सके । पहाड़ी पर बने मकान की हर तरफ खुली जगह थी । पेड़ों को काट दिया गया था कि कोई पेड़ों की आड़ लेकर छिपकर मकान तक न पहुँच सके । चौबीस घण्टे मकान के आसपास गनमैन तैनात रहते थे । दो नौकर थे जो मकान की साफ सफाई किया करते और खाना बनाते थे ।

ये नवाब हाउस बड़ा खान की पसन्दीदा जगह थी । जब भी बड़ा खान को आराम करना होता, तो वह यहाँ आ जाता था । पहाड़ी तक आने वाला कच्चा रास्ता पहाड़ी से ही नजर आता था । ऐसे में रास्ते पर पहाड़ी से ही नजर रखी जाती थी । दिन की रौशनी में वह कच्चा रास्ता साँप की तरह बल खाता नजर आता था । रात में उस रास्ते पर कोई वाहन आता तो उसकी लाइट इस बात का एहसास करा देती थी कि कोई आ रहा है । यहाँ पहरा देने वाले लोगों का बाकी किसी काम से वास्ता नहीं था । वह सिर्फ यहीं की देखभाल करते थे । इस जगह के बारे में बहुत कम लोग जानते थे । यहाँ पर बड़ा खान के साथ इफ्तिखार ही दो बार आया था । इफ्तिखार के अलावा यहाँ कोई और नहीं आया था । बड़ा खान को इफ्तिखार पर ही थोड़ा बहुत भरोसा था । तभी वह दो बार उसे यहाँ ला चुका था ।

इस वक्त सर्द गहरी रात थी । बाहर ओस गिर रही थी । जमीन, मकान, पेड़-पौधे सब कुछ गीला सा हो रहा था । चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था । छः गनमैन गर्म कपड़ों के ऊपर बरसाती और कैप पहने, गनें थामे मकान के आसपास और दूर टहलते पहरा दे रहे थे । एक कटीली तारों के पास खड़ा उस तरफ नजरें टिकाये हुए था, जहाँ रास्ता नजर आता था । रात के इस गहरे अंधेरे में रास्ता तो नजर नहीं आता था, परन्तु उस पर कोई वाहन आये तो, हैडलाइटों से उसके आने के बारे में जाना जा सकता था । मकान की ऊपरी मंजिल पर रोशनी हो रही थी । रास्ते पर नजर रखने वाले गनमैन को ये बात जरा भी महसूस न हो सकी थी कि आधा घण्टा पहले एक कार हैडलाइटें बन्द करके, बेहद सावधानी से ऊपर की तरफ आई थी । कुछ पहले ही वह कार एक जगह रुकी और उनमें से छः लोग गनें थामे उतरे और अँधेरे से भरे रास्ते को तय करके पहाड़ी की तरफ बढ़ने लगे थे । कुछ ही देर में वह बिखरे हुए पहाड़ी पर सावधानी से चढ़ रहे थे । सड़क वाला कच्चा रास्ता उन्होंने छोड़ दिया था ।

पहाड़ी काफी हद तक सीधी थी । वे छः लोग जगमोहन, जब्बार और चार अन्य गनमैन थे । हाथों में थमी गनों पर साइलेंसर लगे थे । सर्दी ने उनका बुरा हाल कर रखा था, परन्तु इरादे इतने पक्के थे कि वह रास्ते में आने वाली किसी भी कठिनाई की परवाह नहीं कर रहे थे । वह बिखरे हुए सावधानी से पहाड़ी पर चढ़ते हुए जा रहे थे ।

कुछ ही देर में वह पहाड़ी के ऊपर तक जा पहुँचे थे ।

आगे कांटेदार तारें लगी थीं वहीं रुककर उन्होंने पोजीशन ली । गनें तैयार की और भीतर का नजारा देखने लगे । मकान दो-ढाई सौ कदम दूर था । मकान के आगे-पीछे, दायें-बायें बल्ब जल रहे थे । वहाँ गनमैन टहलते दिखे । एक-दो-तीन-चार । कुल चार दिखे थे वह ।

“एक साथ चार को उड़ाने का मौका सामने है जब्बार ।” जगमोहन गुर्रा उठा ।

“अभी लो । इन हरामियों को तो... ।”

दोनों ने गनें सम्भाली और पिट-पिट की आवाजें उभरी ।

उन चारों को गिरते देखा । एक छोटी सी चीख गूँजी । दो पल बीते कि दो और गनमैन वहाँ पर भागकर आते दिखे । शायद वह माजरा समझने की चेष्टा में थे ।

जब्बार और जगमोहन ने उन्हें भी निशाने पर ले लिया । साइलेंसर लगी गन से फायदा हो रहा था कि शोर नहीं गूँजा था । परन्तु तभी उन्होंने एक गनमैन को भागते देखा । ये वह गनमैन था जो रास्ते पर निगाह रख रहा था । परन्तु जब उसने साथी गनमैनों को नीचे गिरते देखा तो समझ लिया कि मामला गड़बड़ है । वह मकान की तरफ दौड़ा ।

परन्तु कुछ ही कदम भाग पाया था कि जब्बार ने उसे भी निशाने पर ले लिया । एक साथ कई बार ट्रिगर दबाया और गोलियाँ उसके शरीर में जा धँसी । वह उछलकर नीचे जा गिरा और फौरन ही ठंडा हो गया ।

दोनों की निगाह हर तरफ फिर रही थी परन्तु अब कोई नजर नहीं आ रहा था ।

“छः ही थे क्या ?” जगमोहन भिंचे दाँतों से कह उठा ।

“सात को मारा है हमने ।” जब्बार गुर्राया ।

“शायद और भी हों ।”

“परवाह नहीं ।” जब्बार के होंठों से गुर्राहट निकली । वह खड़ा हो गया, “आओ !”

अगले ही पल जब्बार ने छलांग लगाई और कांटेदार तार के पास पहुँच गया । जगमोहन भी तार पार करके दूसरी तरफ आ गया । चारों साथी गनमैनों ने भी ऐसा ही किया । उनकी निगाह हर तरफ घूम रही थी ।

जगमोहन गन थामे दबे पाँव मकान की तरफ दौड़ा और दीवार के पास पहुँचकर ठिठक गया । इधर-उधर बिखरी गनमैनों की लाशों को देखा । सब ठीक था । कोई और खतरा नहीं दिखा । उसने दूसरों को वहाँ आने का इशारा किया ।

जब्बार उन चारों से बोला-

“तुम लोग इधर-उधर अंधेरे में बिखरकर पोजीशन ले लो । कोई दिखे तो बेहिचक शूट कर देना ।”

वे चारों अंधेरे में गुम होते चले गए । जब्बार गन थामे जगमोहन के पास पहुँचा । दोनों खतरनाक शिकारी लग रहे थे ।

दोनों की निगाहें मिली । जब्बार ने जगमोहन को आने का इशारा किया और आगे बढ़ गया । वह गन थामे मकान की दीवार के साथ-साथ आगे बढ़ता चला गया । आगे मोड़ आया तो सावधानी से मोड़ मुड़कर आगे चलता गया । फिर ठिठक गया । आगे मकान में प्रवेश करने वाला दरवाजा था, जो कि बन्द दिख रहा था ।

“दरवाजा बन्द है ।” जब्बार ने दाँत भींचकर कहा ।

“गनमैन बाहर पहरा दे रहे थे । कोई तो रास्ता जरूर खुला होगा भीतर जाने का ।” कहने के साथ ही जगमोहन गन थामे आगे बढ़ा और बन्द दरवाजे के पास पहुँचकर ठिठक गया ।

दरवाजा शीशे का था । भीतर की तरफ पर्दे लगे थे ।

जगमोहन ने दरवाजे के हैंडिल पर हाथ रखकर धक्का दिया तो दरवाजा खुलता चला गया । जगमोहन गन थामे सावधानी से भीतर प्रवेश कर गया । चारों तरफ नजरें घुमाई । कोई नहीं दिखा । ये सामान्य साइज का हॉलनुमा ड्राइंगरूम था और साधारण सा फर्नीचर रखा हुआ था । वहाँ से ऊपर नजर उठाने पर, ऊपरी मंजिल के कमरे और बालकनी नजर आ रही थी ।

जब्बार भी भीतर आ गया । उसने दरवाजा बन्द कर दिया ।

दोनों की नजरें मिली ।

“पहले नीचे देखो ।” जगमोहन ने दाँत भींचकर कहा और आगे बढ़ गया ।

जब्बार दरिंदा सा बना गन थामे उसके साथ चल पड़ा ।

☐☐☐

ऊपरी मंजिल के एक कमरे में बड़ा खान बेड पर रजाई ओढ़े बैठा था । कमरे में पर्याप्त रोशनी थी । बेड पर रखी ट्रे में व्हिस्की की बोतल, गिलास और नमकीन के अलावा मुर्गे के भुने हुए दो पीस पड़े थे । गिलास में घूंट भर ही व्हिस्की पड़ी थी । बड़ा खान का चेहरा नशे में तप रहा था । आँखें लाल सुर्ख हो रही थीं । तीन घण्टों से वह सिर्फ पीने में ही लगा हुआ था । रह-रहकर आँखों के सामने देवराज चौहान का चेहरा घूम जाता था, जिसने उसे एच०आई०वी० जैसी घिनौनी बीमारी से पीड़ित कर दिया था । जिसका कि दुनिया में कोई इलाज नहीं था ।

खुद को एच०आई०वी० से बचाने के लिए वह सिर्फ महँगी दवायें ही खा सकता था । परन्तु वह जानता था कि जल्दी ही एच०आई०वी०, एड्स में बदलेगा और फिर वह मौत के गले जा लगेगा ।

ये ही परेशानी थी बड़ा खान की जो देर से पीये जा रहा था । उसे लगा कि देवराज चौहान को वह आसान मौत दे रहा है । मन ही मन उसने तय किया कि कल सुबह आदमी भेजकर देवराज चौहान को यहाँ मँगवा लेगा और उसे तड़पा-तड़पाकर बुरी से बुरी मौत देगा ।

“ऐसा ही करूँगा मैं । कल देवराज चौहान को यहाँ मँगवा लूँगा ।” बड़ा खान क्रूरता भरे स्वर में बड़बड़ाया फिर खाली गिलास करके नया पैग बनाने लगा ।

नए गिलास से उसने घूंट भरा और गिलास रखकर, मुर्गा उठाया और खाने लगा । मन ही मन ये सोच रहा था कि अब उसे पाकिस्तान वापस चले जाना चाहिए । एच०आई०वी० का खौफ उसके जिस्म के जर्रे-जर्रे में फैल चुका था । थोड़ा सा खाने के बाद उसने मुर्गा वापस ट्रे में रखा और आँखें बन्द कर लीं । उसने थकान से भरी गहरी साँस ली ।

उसकी साँसों से बारूद की स्मैल टकराई । बड़ा खान की आँखें तुरन्त खुल गईं ।

“बारूद की स्मैल कहाँ से आई ? गोलियों की तो आवाज नहीं आई । फिर ये स्मैल... ।” शरीर पर डाल रखे गाउन की जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर उसका हाथ जा टिका । सूंघने की कोशिश की । परन्तु अब उसे कोई स्मैल महसूस नहीं हुई । वहम हुआ होगा । ये सोचकर उसने रिवॉल्वर पर से हाथ हटाया और रजाई से हाथ बाहर निकालकर गिलास उठाया और घूंट भरा ।

तभी दरवाजा खुला और गन थामे जब्बार ने भीतर प्रवेश किया । बड़ा खान के नशे से भरे मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा । जब्बार को सामने पाकर वह ठगा सा उसको देखता रहा । वह पलक झपकाना भी भूल गया था । गिलास हाथ में ही थमा रहा ।

इसी पल जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया । बड़ा खान को जैसे होश आया । गिलास ट्रे में रखता कह उठा ।

“ओह जब्बार ! मेरे सच्चे साथी । अच्छा हुआ जो तू आ गया । मैं तेरे को देवराज चौहान के बारे में बताना चाहता था ।”

जब्बार के चेहरे पर वहशी मुस्कान नाच उठी ।

“ये ही है बड़ा खान ।” जगमोहन बोला, “मैंने इसकी आवाज पहचान ली है ।”

“तुम ?” बड़ा खान कह उठा, “आजादी-ए-कश्मीर वाले । जब्बार ये संगठन भी इंस्पेक्टर सूरजभान यादव की तरह नकली है । तुम सूरजभान यादव को नहीं जानते । मैं तुम्हें बताता हूँ कि देवराज चौहान ही... ।”

पिट...पिट... ।

जगमोहन की गन से आवाज उभरी ।

दोनों गोलियाँ बड़ा खान की छाती पर जा लगीं । वह वेग के साथ पीछे बेड से टकराया । उसी पल एक और गोली निकली जगमोहन की गन से और उसके माथे पर जा लगी । बड़ा खान वहीं का वहीं शांत पड़ गया ।

जब्बार ने जगमोहन से कहा-

“सुन तो लेते कि ये क्या कहना चाहता था ।”

“ये खामख्वाह की बातें करके, अपनी मौत से बचने की चेष्टा करता और हमारा वक्त खराब करता ।”

“ये देवराज चौहान कौन है ?”

“पता नहीं ।” जगमोहन मुस्कुराया, “मैंने तो नाम नहीं सुना । हमारा काम खत्म हो गया । हमें यहाँ से निकल जाना चाहिए ।”

☐☐☐

जगमोहन, जब्बार और चारों गनमैन आधी रात के बाद उस ठिकाने पर पहुँचे । ठिकाने पर शांति थी । कलाम मिला । जगमोहन से आँखों-आँखों में बात हुई । जगमोहन समझ गया कि देवराज चौहान को कैद से आजाद करा लिया गया है ।

“बड़ा खान का क्या हुआ ?” कलाम ने पूछा ।

“बड़ा खान को हमने मार दिया ।” जगमोहन मुस्कुराया, “जब्बार की सहायता से ये काम आसानी से हो गया ।”

“साले को मरना ही था, मर गया ।” जब्बार खतरनाक स्वर में कह उठा, “मेरे को शहीद बनाने जा रहा था । मेरी इज्जत मिट्टी में मिला दी बाकी संगठनों की नजरों में ।”

“सब ठीक हो जायेगा । अब तुम हमारे संगठन के वफादार हो ।” जगमोहन मुस्कुराकर बोला ।

“तो अब काम खत्म ।” कलाम कह उठा ।

“खत्म ?” जब्बार ने कलाम को देखा, “अभी तो कई संगठनों को खत्म करना है ।”

“हाँ !” कलाम ने फौरन खुद को सम्भाला, “मेरा मतलब था बड़ा खान का काम खत्म ।”

☐☐☐

जब्बार गहरी नींद में था कि उसकी साँसों से सिगरेट की स्मैल टकराई । उसने फौरन आँखें खोल दीं । दीवार में लगी घड़ी में वक्त देखा । सुबह के साढ़े दस बज रहे थे । नजरें घुमाई तो देवराज चौहान को सामने खड़ा पाया । जब्बार दो पल तो देवराज चौहान को देखता रहा फिर उसकी आँखें फैलकर चौड़ी होती गई ।

“तुम ?” उसके होंठों से निकला, “इंस्पेक्टर सूरजभान यादव । तुम तो नकली इंस्पेक्टर हो । य... यहाँ कैसे ?” उसके चेहरे पर हैरानी थी ।

देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कश लिया ।

वहाँ जगमोहन और कलाम के अलावा तीन आदमी और भी थे । एक ने हाथ में डोरी थाम रखी थी । एकाएक जब्बार की आँखें सिकुड़ी और जगमोहन को देखकर बोला-

“ये... ये कौन है ? ये तुम लोगों के पास कैसे ? ये ही तो है इंस्पेक्टर सूरजभान यादव । जिसने मुझे जेल से निकाला ।”

“ये देवराज चौहान है ।” जगमोहन ने कहा ।

“देवराज चौहान ?” जब्बार की आँखें सिकुड़ी, “जिसके बारे में बड़ा खान मुझे कुछ कहना चाहता था ।”

“ये मेरे ही लोग हैं जब्बार ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“क्या ?” जब्बार चिहुँककर उछल पड़ा, “तुम्हारे लोग ?”

“तुम बड़ा खान के बारे में मुँह खोलने को तैयार नहीं थे तो मुझे तुम्हारा मुँह खुलवाने के लिए दूसरा रास्ता इस्तेमाल करना पड़ा । मुझे खुशी है कि बड़ा खान को मारने के लिए तुमने मेरे लोगों का पूरा साथ दिया ।”

जब्बार हक्का-बक्का सा सबको देखने लगा । मस्तिष्क में धमाके फूटने लगे थे । सारा मामला उसकी समझ में आता चला गया । एकाएक उसके दाँत भिंचते चले गए ।

“हरामजादे, कुत्ते.... !” जब्बार ने चीखकर देवराज चौहान पर छलांग लगा दी, “तूने इतना बड़ा खेल खेला मेरे साथ ।”

तभी तीन आदमियों ने आगे बढ़कर जब्बार को थामा और बेड पर उलटा लिटा लिया । हाथ पीछे करके उसकी कलाईयाँ बांधी जाने लगीं । जब्बार के मुँह से गालियाँ निकल रही थी । उसकी पिंडलियाँ भी बाँध दी गईं ।

“जगमोहन !” देवराज चौहान ने कहा, “इसे नींद का इंजेक्शन दे दो ।”

जब्बार गालियाँ निकाले जा रहा था । 

देवराज चौहान ने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा ।

कुछ ही पलों बाद कमिश्नर सजंय कौल की आवाज कानों में पड़ी तो देवराज चौहान उससे बात करने लगा ।

☐☐☐

जम्मू पुलिस हैडक्वार्टर के बाहर ए.सी.पी. संजय कौल अकेला खड़ा था । रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे । वह बार-बार कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह मार लेता था । पंद्रह मिनट और इसी प्रकार बेचैनी से बीते कि एक वैन पास आकर रुकी । कौल की निगाह वैन पर जा टिकी । वैन धूल से अटी पड़ी थी । तभी वैन का पीछे का दरवाजा खुला और कलाम बाहर कूदा । भीतर से जब्बार के द्वारा दी जा रही माँ-बहन की गालियों की आवाजें कौल के कानों में पड़ने लगी थीं ।

कलाम ने वैन के फर्श पर लेटे जब्बार की टाँगे पकड़ीं । भीतर से जगमोहन ने उसे कन्धों से सम्भाला और वैन से बाहर लाकर, कमिश्नर कौल के पास ही नीचे लिटा दिया ।

“जब्बार !” कौल हक्का-बक्का सा कह उठा ।

कलाम और जगमोहन वैन में चले गए । तब तक देवराज चौहान वैन से बाहर, कौल के पास आ पहुँचा था ।

“य... ये तो जब्बार है ।” कौल ने अजीब से स्वर में देवराज चौहान से कहा ।

“मैंने इस वक्त तुमसे मिलने को कहा था ।” देवराज चौहान बोला ।

“हाँ ! तुमने कहा था कि तुम मुझे सारा मामला बताओगे । परन्तु ये तो जब्बार... ।”

“कानून की अमानत ले गया था । उसे लौटाने आया हूँ । तुमने क्या सोचा कि मैं खाकी पहनकर कानून से गद्दारी करूँगा । मैं बेशक नकली पुलिस वाला था, परन्तु खाकी तो असली थी कमिश्नर ।”

“तुम... तुम आखिर चाहते क्या हो ? इसे ले गए और अब वापस दे रहे हो ।”

“काम खत्म हुआ । मैं इसके द्वारा बड़ा खान तक पहुँचना चाहता था । उसे खत्म कर देना चाहता था । तुम्हें खुश होना चाहिए कि बड़ा खान अब जिन्दा नहीं है । कल रात उसे मार दिया गया ।”

“मार दिया ?”

“हाँ !”

“परन्तु तुमने ये काम क्यों किया ?”

“मन था, कर दिया ।”

“तुम हो कौन ?”

“देवराज चौहान । लोग मुझे डकैती मास्टर कहते... ।”

“डकैती मास्टर देवराज चौहान ।” कौल चिहुँक पड़ा ।

“हाँ ! वही ।”

कौल अविश्वास भरी नजरों से उसे देखता रहा ।

“सौदा बुरा नहीं रहा कानून के लिए । कुछ दिन के लिए मैं जब्बार को ले गया और बड़ा खान को खत्म करके जब्बार को कानून के हवाले कर रहा हूँ । अब मैं चलूँ ।” देवराज चौहान कहकर पलटा ।

नीचे पड़ा जब्बार अभी भी माँ-बहन की कर रहा था ।

“वह इंस्पेक्टर सूरजभान यादव कहाँ है ?” पीछे ए.सी.पी. कौल ने पूछा ।

“वह सलामत है और कल सुबह के बाद वह दिल्ली में नजर आने लगेगा ।” कहने के साथ ही देवराज चौहान वैन में जा बैठा ।

उसी पल वैन आगे बढ़ गई ।

कमिश्नर कौल वैन को जाते देखता रहा फिर गहरी साँस लेकर नीचे पड़े जब्बार को देखा । देवराज चौहान को गया पाकर जब्बार अब सामने कौल को पाकर, उसकी माँ-बहन की करने लगा था । उसे गालियाँ देने लगा था । कौल ने जोरदार ठोकर जब्बार की कमर में मारी । जब्बार चीख उठा ।

“मुझे गालियाँ देता है ।” कौल ने दाँत भींचकर कहा, “अभी बताता हूँ तेरे को ।” कौल ने आवाज लगाकर सामने से जाते पुलिस वालों को बुलाया और जब्बार को उठाकर भीतर ले चलने को कहा ।

हाथ-पाँव बँधे थे जब्बार के । वह फिर से वापस अपनी जगह पर आ पहुँचा था ।

समाप्त