अपने फ्लैट में पहुँचते ही सोनिया निढाल सी कुर्सी में पसर गई । वह चाहकर भी जैकी की लाश का नज़ारा और अंधेरे कमरे में चलायी गई गोलियों के विचार को अपने दिमाग से निकल नहीं पायी थी ।

जलीस ने उसे ब्राँडी का एक जाम पिलाकर प्यार से उसके बाल सहलाए और गाल पर हल्का सा चुंबन लिया ।

"जब तक मैं फोन करूँ तुम यहीं रहना ।" वह बोला–"कहीं मत जाना ।"

"लेकिन जलीस...।"

"घबराओ मत । सब ठीक हो जाएगा ।"

"प्लीज, जलीस...।" वह फँसी सी आवाज़ में बोली–"तुम कुछ मत करना ।"

"फिक्र मत करो, सोनिया ।"

"नहीं, जलीस...तुम कुछ मत करना वरना सब खत्म हो जाएगा ।"

"मैं सावधान रहूँगा ।"

सोनिया ने निराश भाव से सर हिलाया तो उसके बाल चेहरे पर बिखर गए ।

"नहीं, तुम कुछ भी मत करो, प्लीज । किस्मत ने हमें मुश्किल से मिलाया है । हमारी तकदीरे साथ जुड़ी है । तबाही का सामान मत करो । अगर तुम कुछ नहीं करोगे तो हम इस शहर से दूर जाकर चैन से जिंदगी बसर कर सकते है ।"

"सोनिया...।"

लेकिन उसके चेहरे पर व्याप्त भाव सोनिया पढ़ चुकी थी ।

"मुझे बहलाने की कोशिश मत करो ।" वह बोली–"तुम्हें इस वक्त सिर्फ एक गन की जरुरत है । गन हाथ में आते ही तुम उसे इस्तेमाल जरुर करोगे...फिर हम दोनों ही खत्म हो जाएगे । तुम खुद भी यह जानते हो, जानते हो न ?"

जलीस के पास कोई जवाब नहीं था ।

"तुम्हारे दिमाग में इस वक्त कोई बहुत बड़ी बात है ।" वह बोली–"और तुम्हारे इरादे खतरनाक है ।"

"नहीं. सोनिया । बेवजह खतरा उठाना मैं भी नहीं चाहता ।"

"तो फिर तुम्हारे दिमाग में क्या बात है ?"

"यही कि यह सारा सिलसिला पुराने 'प्रिंसेज पैलेस' से जुड़ा है ।"

"तो इसे पुलिस पर छोड़ दो । वे लोग अपने आप निपट लेंगे ।"

जलीस जानता था, सोनिया को समझाने की कोशिश करने से कोई फायदा नहीं होना था ।

"ठीक है ।" वह बोला–"मैं वादा करता हूँ कि कुछ नहीं करूँगा । बस चंदेक और सवालों के जवाब मुझे चाहिए ताकि मैं समझ सकूँ कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाएगा । फिर मैं तुम्हें फ़ोन करुंगा या यहीं आ जाऊँगा ।"

इससे वह काफी हद तक संतुष्ट हो गई और अनिच्छापूर्वक उसका हाथ छोड़कर मुँह दूसरी ओर घुमा लिया ।

"मैं खुदा बाप से तुम्हारे लिए दुआ करूँगी ।"

जलीस फ्लैट से निकल गया ।

 

* * * * * *

 

पब्लिक टेलीफोन बूथ से जलीस ने पीटर द्वारा महाजन को बताया गया नंबर डायल किया ।

दूसरी ओर घंटी बजते ही रिसीवर उठा लिया गया ।

"पीटर ?" जलीस ने पूछा ।

"ओह, जलीस ।" पीटर का हाँफता सा स्वर सुनाई दिया–"कहाँ गायब हो गए थे ?"

"मैं मसरूफ था । तुम कहाँ से बोल रहे हो ?"

"मास्टर पिंटो की बार से ।"

"वही जो शिवाजी मार्ग पर है ?"

"हाँ । मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ । अरमान अली से मिलना चाहते हो तो यहाँ चले आओ ।"

एकाएक जलीस के स्वर में पैनापन आ गया ।

"तुमने उसे कैसे ढूंढ निकाला ?"

"मैंने नहीं, उसका पता सोहन लाल ने लगाया है । तुमने अरमान अली के गर्दन और कंधे के जोड़ की माँस पेशी में सुराख बना दिया था और उसे डॉक्टर के पास जाना पड़ा । सोहन लाल ने अपने सभी सोर्सेज से इस बारे में पूछताछ की तो पता लगा कि वह खुब चंदानी के पास गया था । तुम्हें भी याद होगा वही पुराना सिन्धी डॉक्टर । कई साल पहले पुलिस ने उसे ड्रग्स सप्लाई करने के जुर्म में गिरफ्तार किया था लेकिन अदालत में उसका जुर्म साबित नहीं किया जा सका...।"

"मैं समझ गया तुम किसकी बात कर रहे हो ।" जलीस ने उसे टोककर कहा–"आगे बोलो ।"

"डॉक्टर खूब चंदानी वाकई ड्रग्स का धंधा करता था और 'सिन्डीकेट' का आदमी हुआ करता था । इसलिए अरमान अली जानता था कि उसे इलाज के लिए किसके पास जाना चाहिए । इसका मतलब समझ रहे हो न ?"

"हाँ । अरमान अली का भी 'सिन्डीकेट' से ताल्लुक है । लेकिन वह अब कहाँ है ?"

"यहाँ पास ही कार्नर पर एक गैस्ट हाऊस में । नंबर है–दो सौ चौबीस । डॉक्टर खूब चंदानी के पास से वह सीधा यहीं आया था । मुझे लगता है, इस गैस्ट हाउस को खूब चंदानी ऐसे ही कामों के लिए इस्तेमाल करता है । सोहन लाल ने डॉक्टर के क्लीनिक से यहाँ तक उसका पीछा किया था और तब तक उस पर निगाह रखी जब तक कि मुझसे सम्पर्क नहीं बना लिया । फिर मैं यहाँ आ पहुँचा और उसे वाच करना शुरु कर दिया । तुम यहाँ आ जाओ । फिर हम उसकी मिजाजपुर्सी करेंगे ।"

"ठीक है । मैं बीस मिनट तक पहुँच जाऊँगा । और सुनो...हालात तेजी से बदल रहे हैं । जैकी की हत्या की जा चुकी है ।"

"जैकी ? ओह, माई गॉड...लेकिन किसने...?"

"यह आर्गेनाईजेशन का काम लगता है । जैकी ने क्लब पर कब्ज़ा करने की कोशिश में जो ब्लफ किया था वो चल नहीं पाया और उसकी पोल खुल गई । कुछ मायनों में अब यह बात समझ में आ रही है । विक्टर की बार में चल रही कांफ्रेंस याद है तुम्हें ?"

"हाँ ।"

"और शानदार लिबास वाले वे आदमी भी ?"

"हाँ ।" वे 'बड़े' लोग है–आर्गेनाइजेशन के फ्रंट मैन ।"

"ज्यादा उम्मीद इसी बात की है कि जैकी पावर गेम का स्टंट करने की ही कोशिश कर रहा था । वह उस वक्त भी उन्हें यकीन दिला सकता था लेकिन ऐन वक्त पर हम विक्टर की बार में जा पहुँचे । नतीजतन जैकी का स्टंट चल नहीं पाया और उसे मरना पड़ा ।"

"हालात और भी ज्यादा पेचीदा और खतरनाक हो गए हैं जलीस । अब हमारे मुकाबले पर बड़ी तोपें हैं, दोस्त । मछलियाँ नहीं अब मगरमच्छ सामने हैं...।" अचानक पीटर हँसा तो उसे खाँसी आ गई । खाँसी का दौरा रुका तो बोला–"मुझे नहीं लगता कि ज्यादा देर साथ दे पाऊंगा ।"

"सिगरेट छोड़ दो । जिंदगी और लंबी खिंच जाएगी ।" जलीस बोला–"तुम वहीं रहना मैं जितना जल्दी हो सकेगा पहुँच जाऊँगा । अपनी रिवॉल्वर लेने जाने के चक्कर में भी नहीं पडूँगा । इसलिए किसी लफड़े में मत पड़ना ।"

जलीस ने संबंध विच्छेद कर दिया ।

 

* * * * * *

 

शिवाजी मार्ग पर मास्टर पिंटो की बार में ।

जलीस को पीटर कहीं नजर नहीं आया ।

बार टेंडर को एक पैग विस्की का आर्डर देने बाद पीटर का हुलिया बताकर उसने पूछा–"उस आदमी को देखा था ?"

"हो, वह बार–बार आ जा रहा था । ब्राँडी के तीन स्माल पैग भी उसने लिए थे ।" बार टेंडर ने जवाब दिया–"वह किसी का इंतजार कर रहा लगता था ।"

"आखिरी दफा कितनी देर पहले उसे देखा था ?"

"करीब दस मिनट हो गए । वह बाहर गया था लेकिन अभी तक नहीं लौटा ।"

जलीस को असलियत भांपते देर नहीं लगी । पीटर बार–बार जाकर गैस्ट हाऊस को चेक कर रहा था–यकीनी तौर पर जानने के लिए अरमान अली वास्तव में वहीं था । वहाँ से कहीं और खिसकने के फेर में नहीं था ।

उसने पाँच मिनट और इंतजार किया ।

लेकिन पीटर नहीं लौटा ।

जलीस के मन में आशंका घर करने लगी । वह समझा गया कि जरूर कोई गड़बड़ थी ।

गिलास खाली करके उसने पचास का नोट काउंटर पर फेंका और बाहर निकल गया । पीटर ने बताया था, गैस्ट हाउस का नंबर दो सौ चौबीस था और वो एकदम कार्नर पर था ।

लेकिन कौन से कार्नर पर ?

बायाँ कार्नर नज़दीक था । जलीस ने वहीं ट्राई किया । मगर उस कार्नर के आस–पास दो सौ चौबीस नंबर की कोई इमारत नहीं थी ।

वह वापस दाएँ कार्नर की ओर दौड़ा–मकानों के नंबरों पर निगाह डालता हुआ ।

कार्नर पर पहुँचते ही उसे अपनी गलती का अहसास हो गया । वह सड़क की गलत साइड पर था । दो सौ चौबीस नंबर ठीक सामने दूसरी साइड में था ।

वो एक तीन मंजिला मकान था । बेसमेंट की सामने की तरफ वाली खिड़की से पीली मरियल सी रोशनी बाहर झाँक रही थी । परदे के पीछे कुर्सी पर बैठी किसी औरत के अखबार पढ़ रही होने का अस्पष्ट सा आभास मिल रहा था ।

ऊपर की मंजिलों पर अंधेरा था ।

पीटर को कहीं नजर नहीं आता पाकर जलीस एक ही नतीजे पर पहुँचा । अरमान अली वहाँ से जा चुका था और पीटर उसके पीछे लगा हुआ था । लेकिन उसके लिए यकीनी तौर पर जानना जरुरी था और इसका एक ही तरीका था–चेक किया जाए ।

चार सीढ़ियाँ तय करके प्रवेश द्वार पर पहुँचते ही जलीस ठिठककर रुक गया ।

पीटर के जूते दरवाजे के पास रखे थे । स्पष्ट था कि अंदर भारी गड़बड़ थी ।

तभी अंदर फायरों की आवाज़ गूँजी और एक आदमी की घुटी सी चीख उभरी ।

जलीस दरवाज़ा खोलकर अंदर दौड़ा ।

"पीटर ।" वह चिल्लाया ।

पहली मंज़िल से पीटर ने पुकारा ।

"यहाँ आओ, जलीस ।"

जलीस उसकी आवाज़ से अनुमान लगाकर सीढ़ियों की ओर भागा ।

ऊपर कोई चीज दीवार से टकराकर गिरी । फिर काँच टूटने का जोरदार छनाका हुआ । और फिर ज्यों ही लैंडिंग पर पहुंचकर जलीस अंधेरे में सामने मौजूद दरवाजे की ओर झपटा, एक फायर और किया गया ।

चंदेक फुट के फासले से अंधेरे में कराहने की आवाज़ उभरी ।

"पीटर ?" जलीस ने पुकारा ।

"ऊपर...छत पर...पिछली तरफ...उसे पकड़ो...जलीस ।"

जलीस अंधेरे में एक के बाद एक कमरे से गुजरा । एक स्थान पर मेज उसकी जाँघों से टकराई तो उसने मेज एक ओर धकेल दी ।

उसकी आँखें काफी हद तक अंधेरे की अभ्यस्त हो चुकी थीं । उसे सीढ़ियों की ओर खुलता दरवाज़ा नजर आ गया ।

अधिकांश मकानों में छत पर जाने के लिए एक ही सीढ़ियाँ थी । लेकिन इस मकान को अंदर से तोड़कर नई शक्ल दी गई थी इसलिए यहाँ पृष्ठ भाग में सीढ़ियाँ बनी हुई थीं ।

जलीस ने तेजी से सीढ़ियाँ तय की और छत पर खुलने वाले दरवाजे में रुक गया । अंधेरे के बावजूद सीधा छत पर पहुँचना खतरनाक था । उसने अपना कोट उतारकर छत पर फेंक दिया ।

फौरन दाँयी ओर से गोली चली और नीचे गिरने से पहले ही कोट को चीरती हुई गुजर गई ।

जलीस को फायरकर्ता की स्थिति का अंदाजा हो गया ।

वह सावधानी पूर्वक बाहर निकला, दाँयी ओर घूमा और कोने में आड़ लेकर आहट लेने की कोशिश की ।

नीचे कोई गला फाड़कर चिल्ला रहा था लेकिन छत पर पूरी तरह खामोशी थी ।

जलीस ने अपने जूते उतार दिए । ऊंची मुंडेर के साथ–साथ खुद को अंधेरे में रखता हुआ वह नंगे पैर उस तरफ बढ़ा जहाँ से साथ वाली छत पर पहुँचा जा सकता था ।

वांछित पोजीशन मिलते ही वह पंजों के बल बैठा । उसने इमारतों को एक–दूसरी से जुदा करने वाली मेहराबों की ओर देखा । उस ब्लाक की सभी इमारतें तीन मंजिला और पुरानी थी लेकिन उनका मालिक शायद एक ही था । इसीलिए सभी के बीच में पतली गली होने के बावजूद उनकी छतों की मुंडेरे मेहराबों द्वारा परस्पर जुड़ी हुई थी ।

सहसा जलीस को छत के उस तरफ के सिरे की ओर हल्की हरकत का आभास हुआ । मुंडेर के साए में वह दबे पाँव उधर ही बढ़ गया ।

चंद सैकेंड पश्चात ही उसे अंधेरे में लिपटी मानवाकृति धुंधली सी नजर आने लगी । जलीस की तरफ पीठ किए वह उन सीढ़ियों की ओर निगाहें गड़ाए प्रतीत होता था जिधर से जलीस छत पर पहुंचा था ।

जलीस ज्यादा देर वहाँ रुकने का रिस्क नहीं ले सकता था । वक्त तेजी से गुजर रहा था । अब तक चली गोलियों की आवाजें सुनकर पड़ोसियों ने जरुर पुलिस को इत्तिला कर दी होगी और वे लोग किसी भी क्षण वहाँ पहुँच सकते थे ।

एक–एक पल कीमती था ।

जलीस तेजी से उसकी ओर लपका । लेकिन भूत की तरह निशब्द दौड़ने वाला पीटर वह नहीं था । पर्याप्त सावधानी के बावजूद पैरों से आहट हो ही गई ।

उस वक्त वह उस आदमी से मुश्किल से दस फुट दूर था । वह आदमी फौरन पलटा और उस पर फायर झोंक दिया ।

गोली जलीस के सर के ऊपर से गुजर कर पीछे पानी की टंकी से जा टकराई ।

लेकिन दूसरा फायर करने का मौका उसे नहीं मिल सका । जलीस ने उस पर छलांग दी थी ।

उस आदमी की पीठ भड़ाक से मुंडेर से टकराई । उसकी गन हाथ से छूटकर मुंडेर के ऊपर से गुजरती हुई नीचे गली में जा गिरी ।

"हरामजादे ।" वह गुर्राया और जलीस को पीछे धकेल दिया ।

जलीस भांप गया, आदमी ताकतवर था ।

जलीस पुन: उसकी ओर झपटा ।

उस आदमी ने ऐसा जाहिर किया मानों बाएँ हाथ का घूंसा जड़ना चाहता था मगर ऐन वक्त पर दाएँ हाथ का घूसा चला दिया ।

घूँसा वजनी था और कनपटी पर पड़ना था लेकिन जलीस तनिक पीछे हटकर स्वयं को बचाने में कामयाब हो गया । फिर वह तेजी से आगे आया और उसकी ठोढ़ी पर मुक्का जमा दिया ।

वह आदमी लड़खड़ाकर पीछे हट गया ।

जलीस पुनः उसकी ओर झपटा तो उस आदमी ने जलीस के घुटने पर ठोकर जमा दी ।

ठोकर इतनी भारी थी कि जलीस तुरंत रुक गया ।

तभी उस आदमी ने फुर्ती से आगे आकर उसकी गरदन पर हाथ जमा दिया । जलीस बुरी तरह लड़खड़ाया और संभलने की कोशिश करने के बावजूद छत पर जा गिरा ।

मैदान पूरी तरह उस आदमी के हाथ में था । लेकिन जलीस के गिरते ही वह मुंडेर पर चढ़ गया और मेहराब की ओर लपका । ताकि वहाँ से गुजरकर बगल वाली छत पर पहुंचकर भाग सके । मगर मैदान छोड़कर भागने की हड़बड़ी में उसका पैर वहाँ फैली टी वी एन्टीना की तार में उलझा और वह तीन मंज़िल नीचे गली में जा गिरा ।

जलीस ने उठकर अपने जूते पहने और कोट उठाकर सीढ़ियों पर नीचे दौड़ गया ।

उस आदमी को वह पहचान चुका था । उसका नाम अमरनाथ था और वह सिंडिकेट के लिए काम करता था । उसकी मौजूदगी ने इस मामले की तस्वीर का काफी हद तक सही रुख पेश करना शुरु कर दिया था ।

जलीस वापस उसी कमरे में पहुँचा और लाइट स्विच ऑन कर दिया ।

फर्श पर खून में लथपथ पड़े पीटर ने मुस्कराने की कोशिश करते हुए उसे देखा ।

"उ...उसका क्या हुआ ?"

"वह मर गया ।" जलीस बोला–"यहाँ क्या हुआ था ।"

पीटर ने कमरे के दूसरे दरवाजे की ओर सर हिला दिया ।

जलीस ने अंदर जाकर लाइट स्विच ऑन किया और फिर फौरन ही ऑफ कर दिया ।

वह देख चुका था, गरदन पर पट्टियाँ लपेटे बिस्तर पर पड़े आदमी की छाती में दो ताजा सुराख बने नजर आ रहे थे ।

जलीस ने पीटर की हालत का सही जायजा लेना चाहा तो उसने हाथ उठाकर रोक दिया । वह रुक रुककर मुश्किल से सांस ले पा रहा था । चेहरा एकदम सफेद था और आँखें अधमुंदी ।

"तुम्हें गोली लगी है ?" जलीस ने पूछा ।

"हाँ...छाती में ।"

"मैं तुम्हें डॉक्टर के पास ले चलता हूँ ।"

"नहीं ।"

"डॉक्टर को यहीं बुला लूँ ।"

"नहीं...कोई फायदा नहीं होगा ।"

"पागल मत बनो । तुम ठीक हो जाओगे ।"

"नहीं, दोस्त...मेरा वक्त आ गया है...तुम भाग जाओ, जलीस ।"

"मुझे बताओ, यहाँ हुआ क्या था ?"

"मैं इस मकान को वाच कर रहा था...उस आदमी को यहाँ आते देखा...मैं उसे जानता था...वह सिंडिकेट का गनमैन था ।"

"मैंने भी पहचान लिया था । वह अमरनाथ था ।"

पीटर को खाँसी आ गई । दर्द के कारण उसका सास शरीर ऐंठ गया । आँखें बाहर को उबल आईं और मुँह से गाढ़ा खून रिसने लगा । इसके बावजूद खाँसी रुकने के बाद वह खामोश नहीं रहा ।

"म...मैंने उसे रोकने की कोशिश की...मगर अब मैं पहले वाला बिलाव नहीं रहा...उसने मेरी छाती में गोली मार दी...।" पीटर की हाँफती आवाज़ बहुत धीमी थी । लेकिन अत्यधिक पीड़ा के बावजूद वह मुस्कराया–"जलीस...शालीमार होटल के रिसेप्शनिस्ट से मिल लेना...फरमान अली ने फोन किया था...।"

"बोलो मत, पीटर । मैं समझ गया ।"

सहसा साइरन की धीमी आवाज़ दोनों को सुनाई दी । ।

"भागो, जलीस ।" पीटर बोला–"छत से होकर भाग जाओ...पुराने वक़्तों की तरह जाओ...।"

"तुम्हें इस हालत में छोड़कर ।"

पीटर एक बार और मुस्कराया ।

"म...मैं इसी हाल में खुश हूँ...मेरे लिए कुछ नहीं किया जा सकता...तुम मेरे दोस्त हो...हम ब्लड ब्रदर्स है...प्रिंसेज है... शहज़ादे है...पुराने वक़्तों में बहुत मजा आता था...उससे ज्यादा मजा अब तुम्हारे साथ आया है...जिंदगी भर हम फसाद करते रहे...लेकिन अब रुखसत होने का वक्त आ गया, दोस्त...हाथ नहीं मिलाओगे, शहज़ादे...।"

जलीस ने उसका हाथ धाम लिया ।

"ओके, मैन...नाऊ रन अवे ।" पीटर बुदबुदाया–"गुडबाई...।"

पुलिस साइरन की आवाज़ तेज होती जा रही थी ।

पीटर ने अपना हाथ खींच लिया ।

"जाओ...जलीस...।"

जलीस उठकर बाहर दौड़ गया ।

सीढ़ियों द्वारा वापस छत पर पहुँचा और मेहराबों के ऊपर से गुजरता एक छत से दूसरी पर दौड़ता चला गया–पुराने वक़्तों की तरह । उसे लगा कि वह एक बार फिर अपनी नौजवानी के दिनों में लौट गया था ।

अंतिम छत से बरसाती पानी की निकासी के लिए लगे पाइप से नीचे उतर गया ।

वह तेजी से पीटर की खोली की ओर चल दिया ।

अब सबसे पहला काम था–रिवॉल्वर वापस लाना ।

 

* * * * * *

 

शालीमार औसत दर्जे के हर मामले में बदनाम होटलों में से एक था ।

लॉबी खाली थी ।

जलीस सीधा रिसेप्शन पर पहुँचा ।

वहाँ मौजूद अधेड़ सूरत से काइंया नजर आता था ।

"कमरा चाहिए ?" उसने पूछा ।

"मुझे पीटर ने तुमसे मिलने के लिए कहा था ।"

अधेड़ ने उसे घूरा ।

"पीटर ने ?"

जलीस जानता था, उस तरह के आदमियों से निपटने के दो ही तरीके थे । पहला तरीका अपनाते हुए उसने सौ रुपए का एक नोट काउंटर पर डाल दिया ।

"हाँ, पीटर रोडरिक ने ।"

अधेड़ नोट को देखने लगा लेकिन उसका चेहरा भावहीन ही रहा ।

"पीटर रोडरिक ।" उसने यूँ दोहराया मानों नाम को याद करने की कोशिश कर रहा था ।

जलीस ने वक्त जाया करने की बजाय दूसरा तरीका इस्तेमाल करना बेहतर समझा । उसने अपने कोट के बटन इस ढंग से खोले कि बैल्ट होल्सटर में रखी रिवॉल्वर अधेड को दिखाई दे सके । फिर वह मुस्कराया तो अधेड़ समझ गया कि उसका कांझ्यापन नहीं चलेगा ।

"मेरा नाम जलीस है ।" वह बोला ।

अधेड ने चुपचाप नोट उठाकर जेब में रखा । खाली पड़ी लॉबी में निगाहें डाली फिर एक रजिस्टर अपने सामने खींच लिया ।

"पीटर ने बताया था ।" जलीस बोला–"तुम वो नंबर याद करके बता सकते हो जिस पर फरमान अली उर्फ जगन ने फोन किया था ।"

अधेड ने अपने होंठों पर ज़ुबान फिराई ।

"हाँ । लेकिन वे...।"

"उनकी फिक्र मत करो ।" जलीस सर्द लहजे में बोला–"वे दोनों मर चुके हैं ।"

अधेड ने रजिस्टर से निगाहें उठाकर उसे देखा उसकी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा इसी होटल के काउंटर पर गुजरा था । इस बीच हर तरह के इतने लोगों के चेहरे वह देख चुका था कि चेहरे देखकर लोगों को भांपने की खासी तमीज उसे हो गई थी । अपने उसी तजुर्बे की बिना पर उसे समझते देर नहीं लगी कि सामने खड़ा आदमी न सिर्फ सच बोल रहा था बल्कि उन दोनों की मौत की वजह भी वह खुद ही था ।

"इ...इसके चक्कर में मुझ पर तो कोई मुसीबत नहीं आएगी ?"

"अगर कोई पूछता है तो कह देना कि तुमने जिंदगी में पहले कभी मुझे नहीं देखा ।"

"ल...लेकिन पीटर तो जानता है ।"

"वह भी मर चुका है ।"

"ओह !"

"फोन नंबर बताओ ।"

"बीस चालीस अस्सी । टू जीरो फोर जीरो एट जीरो । यह राउंड फीगर में है इसीलिए मुझे याद आ गया ।"

जलीस वहाँ से हटकर पब्लिक टेलीफोन बूथ में जा घुसा । टेलीफोन विभाग का डाइरेक्ट्री इंक्वायरी का नंबर डायल करके संबंध स्थापित होने पर उसने अधेड़ द्वारा बताया गया नंबर बताकर पूछा कि वो नंबर किसका था ।

जवाब में उसे होल्ड करने के लिए कह दिया गया ।

कुछेक सैकेंड बाद लाइन पर पुनः उसी आप्रेटर का स्वर सुनाई दिया और उस व्यक्ति का नाम–पता बता दिया गया जो उस फोन नंबर का मालिक था ।

जलीस को पीटर की बात याद आ गई । दो पेशेवर हत्यारों को उसकी हत्या का कांट्रेक्ट दिया गया था । बाद में किसी ने हत्या करने में देर करने की एवज में नई और तगड़ी ऑफर उन्हें दे दी थी । हत्यारों ने अगले आदेश के लिए उस आदमी को फोन किया जिसने शुरु में उन्हें कांट्रेक्ट दिया था और उसने पुनः काम खत्म करने का पुराना आदेश दोहरा दिया ।

वो फोन काल करके उन्होंने बड़ी भारी गलती की थी । उनकी इसी गलती ने जलीस को उस आदमी तक पहुंचा दिया जिसने उसकी हत्या का कांट्रेक्ट उन्हें दिया था ।

वह आदमी था–सुलेमान पाशा । फरमान अली द्वारा वो काल उसी को की गई थी ।

 

* * * * * *

 

तिलक बाजार इलाके के पुराने खस्ता हालत मकानों को तोड़कर करीब दस साल पहले उनकी जगह नई चार मंजिला इमारतें खड़ी की गई थी और वहाँ रहने वालों को फिर से नए फ्लैटों में बसा दिया गया था । सभी आवश्यक सुविधाएँ भी उन्हें बेहतर ढंग से उपलब्ध करा दी गई थीं । लेकिन वे लोग जरा भी नहीं बदले । उनका रहन–सहन और सोचने का ढंग पहले जैसे ही थे । वे सब चुनाव में हमेशा एक ही व्यक्ति को वोट डालते थे जो भी उनकी वोट की सबसे ज्यादा कीमत देता था । विजेता उम्मीदवार बाद में उनकी कितनी परवाह करता था इससे कोई मतलब उन्हें नहीं था ।

सुलेमान पाशा को उनके वोट खरीदने में कोई दिक्कत नहीं होती थी । बुनियादी तौर पर सही जोड़–तोड़ बैठाने वाला वह एक तिकड़मी राजनीतिबाज था और उसका वजूद दिनों दिन भारी होता चला गया । क्योंकि बहुत बड़े वोट बैंक का मालिक होने की वजह से किसी भी चुनाव में उसकी भूमिका निर्णायक साबित होती थी ।

लोगों को उससे लगाव था और उसकी इज़्ज़त करते थे । उसकी 'छवि' एक ऐसे स्थानीय नेता की थी जो उन्हीं लोगों के बीच में रहकर उनकी समस्याएँ सुलझाने के लिए हर वक्त तैयार रहता था । यह एक अलग बात थी कि इसमें उसका निजी स्वार्थ ही प्रमुख होता था ।

लगभग पच्चीस साल पहले कार्नर की जिस इमारत के तीन कमरों में वह रहता था अब पूरी तरह उसका मालिक बन चुका था । उन दिनों वो इमारत तिलक बाजार से खा से फासले पर थी लेकिन वक्त और हालात ने अब उसे पूरे इलाके की गतिविधियों का केन्द्र बना दिया था । शायद इसीलिए वो इलाके की सबसे शानदार इमारत भी बन गई थी ।

सुलेमान पाशा पैंथा उस (टॉप फ्लोर पर बना अपार्टमेंट) में रहता था । नीचे के खंडो पर भले और इज्जतदार लोग बतौर किराएदार रहते थे ।

ठीक दस बजे निकटतम बार से निकलकर जलीस उस इमारत की ओर चल दिया ।

आसमान में घिरे बादलों की वजह से स्ट्रीट लाइट की रोशनी के बावजूद वातावरण पर्याप्त रुप से प्रकाशमय नहीं था और हवा में मिली नमी बारिश आने का संकेत दे रही थी ।

जलीस इमारत में दाखिल हुआ और लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों की ओर बढ़ गया ।

अंतिम फ्लोर पर पहुंचकर उसने देखा कि लिफ्ट वहाँ खाली खड़ी थी और वो सिर्फ वहीं तक जाती थी जबकि सीढ़ियाँ और ऊपर तक गई हुई थी ।

शेष सीढियाँ तय करके जलीस ने वहाँ मौजूद दरवाजा खोला जो पैंथा उसके चारों ओर बनी टैरेस पर खुलता था ।

टैरेस पर आकर उसने दरवाज़ा पुनः बंद कर दिया ।

उस तरफ दक्षिण की ओर खुलने वाली पैंथा उसकी बड़ी–बड़ी खिड़कियाँ थीं । जिन पर भारी पर्दे झूल रहे थे । उनमें से दो ग्रिल विहीन खिड़कियाँ ऐसी लगती थीं जिन्हें दरवाजे की तरह बाहर की और खोला जा सकता था । लेकिन जलीस अंदर जाने की कोशिश करने से पहले उस स्थान का एक चक्कर लगाना चाहता था । हालांकि अंदर कहीं से न तो रोशनी बाहर आ रही थी न ही कोई आवाज़ सुनाई दे रही थी । फिर भी अहतियातन पहले उस स्थान का भूगोल जानना जरूरी था ।

उत्तर की ओर का दरवाज़ा प्रत्यक्षतः किचिन एरिया में खुलता था ।

पश्चिम में बरांडेनुमा स्थान में तीन सुंदर मेजें और मैचिंग चेयर्स पड़ी थीं । अंदर कहीं से धूमिल सी रोशनी आती भी नजर आ रही थी । अनुमानतः वो रोशनी नाइट बल्ब की प्रतीत होती थी । लेकिन अंदर सुलेमान पाशा था और इतनी जल्दी सो गया था, यह बात समझ में आने वाली नहीं थी । ऐसा लगता था, पाशा कहीं गया हुआ था और नौकरों को रात भर की छुट्टी दे दी थी ।

पैंथा उसके लॉक्ड प्रवेश द्वार ने भी जलीस के इस अनुमान की पुष्टि कर दी ।

सारे मुआयने के बाद वह इस नतीजे पर पहुँचा कि दक्षिणी खिड़कियों को खोलना सबसे आसान था ।

कीरिंग में मौजूद छोटा सा मगर मजबूत चाकू निकालकर दो–तीन बार ट्राई करने के बाद वह अंदर से चढ़ी कुंडी को गिराने में कामयाब हो गया ।

धीरे से अंदर प्रवेश करके उसने पुनः खिड़की बंद कर दी और रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली ।

चंदेक सैकेंड पश्चात् उसकी आँखें अंधेरे की अभ्यस्त हो गई तो अस्पष्ट रुप से जो भी वस्तुएँ वहाँ दिखाई दी उनसे पाशा के रहन–सहन के स्तर का अंदाजा भली भांति लगाया जा सकता था । उस इलाके के अधिकांश लोगों को जिन आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ता था उनका मामूली सा भी कोई चिंह वहाँ नहीं था । अपना राजनैतिक प्रभुत्व बनाए रखने के लिए पाशा का उस इलाके में रहना जरुरी था लेकिन उस ढंग से रहना कतई जरुरी नहीं था जैसे कि दूसरे लोग रहते थे । पैसे से ख़रीदा जा सकने वाला विलासिता का प्रत्येक साधन उसने अपने लिए जुटाया हुआ था ।

शानदार प्यानो के बगल से गुजरकर वह मेहराबदार द्वार पर पहुंचा ।

रोशनी दाँयी ओर एक कमरे से आ रही थी । गलियारे में जाकर उसने देखा, दूर एक कोने में धीमी रोशनी के बल्ब वाला एक टेबल लैम्प ऑन था ।

वह उधर ही बढ़ गया ।

कमरा स्टडी रुम के अनुरुप सुसज्जित था । दो दीवारों के साथ पूरी लंबाई में बुक शैल्फ खड़े थे । एक सिरे पर कलर टी वी था । सामने कई चमड़ा मैंढ़ी आरामदेह कुर्सियाँ पड़ी थी ।

जलीस किसी चीज को छुए बगैर घूमकर दूसरी साइड में पहुँचा । एक दीवार के साथ बनी शानदार बार में बोतलें और गिलास दो कतारों में सजे थे । एक सिरे पर खाली गिलास रखा था । उसने गिलास उठाया तो उसमें पड़ा बर्फ का टुकड़ा धीरे से गिलास की साइड से टकरा गया ।

वहाँ एक अन्य खुला दरवाज़ा भी था ।

जलीस रिवॉल्वर निकालकर उधर ही बढ़ा ।

वो बैडरूम था । अंदर अंधेरा था लेकिन बाहरी कमरे का धीमा प्रकाश सीमित रुप से वहाँ पहुँच रहा था ।

खुले दरवाजे में खड़े जलीस को बिस्तर का निचला आधा भाग नजर आया । उस पर पड़े आदमी के शरीर में कोई हरकत नहीं थी ।

जलीस ने अंदर जाकर दीवार पर टटोलकर लाइट स्विच ऑन कर दिया ।

अचानक फैल गए तीव्र प्रकाश में बिस्तर पर निगाह डालते ही उसकी धड़कनें एकाएक बढ़ गई और वह समझ गया कि किसी बेवकूफ़ की तरह जाल में आ फँसा था ।

बिस्तर पर एक आदमी बंधा पड़ा था और उसके मुँह में कपड़ा ठूँसा हुआ था ।

इससे पहले कि जलीस संभलता एक गन की नाल उसकी पीठ में आ गड़ी ।

"रिवॉल्वर फेंक दो ।" सर्द लहजे में आदेश दिया गया ।

मजबूरी थी ।

जलीस ने रिवॉल्वर नीचे गिरा दी ।

पीठ में गड़ी गन द्वारा उसे आगे ठेला गया ।

जलीस कमरे में थोड़ा आगे आ गया ।

"पीछे घूमो ।"

जलीस ने वैसा ही किया ।

सामने पिस्तौल ताने खड़े आदमी का नाम टोनी था । वह प्रॉफेशनल किलर था और संगठित अपराध करने वाले सिंडिकेट के लिए काम करता था ।

"हलो, टोनी ।" जलीस बोला ।

टोनी ने लापरवाही से सर हिला दिया ।

उससे तनिक पीछे उसका एक और साथी हाथ में पिस्तौल ताने खड़ा यूँ जलीस को देख रहा था मानों उसे उम्मीद थी कि जलीस बचकर भागने की कोशिश करेगा और उसे इस तरह उसको शूट करने का मौका मिल जाएगा ।

तभी करीम भाई दारुवाला मुस्कराता हुआ भीतर दाखिल हुआ । नीचे पड़ी रिवॉल्वर उठाकर उसने जेब में रख ली और हिंसक निगाहों से जलीस को घूरा ।

"तुम्हारी गन बढ़िया है ।" वह बोला–"यह वही है न जो तुमने बरसों पहले उस पुलिसिए से छीनी थी ।"

"हाँ, वही है ।" जलीस बोला–"तुमने बिल्कुल ठीक पहचाना ।" उसके स्वर में उपहास का पुट था–"यह वही रिवॉल्वर है जिससे दो बार मैंने तुम्हें शूट किया था । दोनों बार तुम्हारी दुम पर गोली मारी थी ।"

टोनी हँस पड़ा । लेकिन जब दारुवाला ने उस पर निगाह डाली तो उसकी हँसी में ब्रेक लग गया ।

"मुझे मुद्दत से इसकी तलाश थी, जलीस ।" वह बोला ।

"जानता हूँ । तुम एक यादगार चीज के तौर पर इसे अपने पास रखना चाहते थे ।"

"तुम बहुत ज्यादा बोलते हो ।"

"पुरानी आदत जो है ।"

इससे पहले कि दारुवाला कुछ कहता टोनी बोला–"बेहतर होगा कि अब हम यहाँ से निकल चलें ।"

"अभी नहीं ।"

"क्यों ?"

"इसलिए कि मैं कह रहा हूँ ।" दारुवाला डांटता सा बोला ।

"लेकिन यह कहने वाले तुम कौन होते हो ?" टोनी बोला–"तुम भी तो उन्हीं लोगों के लिए काम करते हो जिनके लिए मैं करता हूँ । उन्होंने जल्दी लौटने के लिए कहा था इसलिए हमें वही करना है । हमें सुलेमान पाशा और इस आदमी को लाने को काम सौंपा गया था । पाशा तो हमारे हाथ नहीं आ सका । लेकिन इस आदमी ने खुद ही यहाँ आकर हमारी मुश्किल आसान कर दी । इस तरह आधा काम तो हमने कर ही दिया । आओ, अब वापस चलते है ।"

दारुवाला को यह याद दिलाया जाना अच्छा नहीं लगा कि वह किसी के आदेशों का पालन कर रहा था । उसका चेहरा कठोर हो गया और आँखें नफरत से जलने लगीं ।

जलीस इस बारे में और ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहता था इसलिए बिस्तर पर पड़े आदमी की ओर सर हिलाकर इशारा किया ।

"यह कौन है, करीम ?"

"पाशा का नौकर ।" टोनी ने जवाब दिया ।

"यह बेहोश है ?"

"हाँ ।"

"लेकिन होश में आने पर तो तुम लोगों के बारे में बता ही देगा ।"

"यह ऐसा कुछ नहीं कर सकेगा । इसे पता ही नहीं चल सका कि इस पर किसने वार किया था या किस चीज से किया था ।"

दारुवाला ने नज़दीक आकर जलीस को घूरा ।

"तुम यहाँ किस चीज की तलाश में आए थे ?"

"जिस की तलाश में तुम आए थे ।"

"इसका मतलब है, तुम जानते थे ।"

"क्या ?"

"यही कि पाशा यहाँ नहीं मिलेगा और हो सकता है तुम यह भी जानते हो कि वह कहाँ गया है ।"

जलीस समझ गया, वह आगे क्या करने वाला था इसलिए पहले ही बोल पड़ा–"तुम अगर रात भर भी मुझे टार्चर करते रहो तो भी कोई फायदा नहीं होगा । मैं यहाँ पाशा की तलाश में ही आया था । जिस तरह वह तुम्हें नहीं मिल सका उसी तरह मुझे भी नहीं मिला ।"

दारुवाला जलती निगाहों से उसे घूर रहा था ।

"लेकिन तुम्हारे मुकाबले में मेरी किस्मत ज्यादा तेज है । पाशा के बाद हमने तुम्हारी तलाश में जाना था । पाशा फिलहाल हमारे हाथ से बच गया । लेकिन ज्यादा देर बचा नहीं रह सकेगा । जल्दी ही हम उसे ढूंढ निकालेंगे । मगर तुम...तुम्हारी बात अलग थी लेकिन तुमने यहाँ आकर हमारा काम आसान कर दिया ।"

"तब तो वाकई तुम्हारी किस्मत तेज है ।"

"तुम्हारे सामने दो ही रास्ते हैं ।"

"अच्छा ?"

"यहाँ से चुपचाप बाहर चलो, नीचे खड़ी कार में बैठो और चुपचाप हमारे साथ चलो ।"

"कहाँ ?

"जहाँ भी हम ले जाएं ।"

"वरना ?"

"तुम्हें साथ ले जाने का दूसरा तरीका हमें अख्तियार करना पड़ेगा । हम तुम्हारे घुटने के जोड़ में गोली मार देंगे । ताकि तुम भागने की कोशिश न कर सको ।"

जलीस जानता था, दारुवाला सिर्फ कोरी धमकी ही नहीं दे रहा था । उसके सामने वाकई कोई और रास्ता नहीं था ।

"ठीक है ।" वह बोला–"मैं चुपचाप साथ चलूँगा ।"

दारुवाला ने उसके पीछे जाकर उसकी जेबें थपथपायीं जब उसे तसल्ली हो गई कि उसके पास कोई और हथियार नहीं था तो वह पीछे हट गया ।

"चलो ।"

दोनों पिस्तौलधारियों और दारुवाला के बीच घिरा जलीस बैडरूम से बाहर आ गया ।

तभी उसे पहली बार पता चला कि अपार्टमेंट में आने–जाने के लिए एक प्राईवेट लिफ्ट भी थी ।

उसी के द्वारा वे नीचे पहुँचे ।

इमारत के पिछले दरवाजे से कोई बीसेक गज दूर एक नई एम्बेसेडर खड़ी थी । वहाँ तक वे इस तरह पहुँचे जैसे पुराने दोस्त साथ–साथ चला करते हैं । जलीस नोट कर चुका था कि दोनों पिस्तौलधारी पूरी तरह सतर्क थे । किसी भी तरह की कोई चालाकी करने का रिस्क लेना मूर्खता थी ।

वह एम्बेसेडर की पिछली सीट पर बैठ गया और अपनी बाँहें मोडकर छाती पर रख लीं । पिस्तौलधारी एक–एक करके उसके दोनों ओर आ बैठे । उनकी पिस्तौलें उसकी साइडों में गड़ने लगीं ।

दास्वाला, ड्राइविंग सीट पर पहले से ही मौजूद ड्राइवर की बगल में बैठ गया और सीट की पुश्त पर बाँह रखकर पीछे देखा । जलीस की मौजूदा विवशता से वह पूरी एनज्वॉय कर रहा था । बरसों पहले जलीस ने उसके साथ जो किया था उस तमाम । कड़वाहट से अब वह छुटकारा पाता सा प्रतीत हो रहा था ।

ड्राइवर ने इंजिन स्टार्ट करके कार आगे बढ़ा दी ।

एम्बेसेडर विभिन्न सड़को से गुजरने लगी ।

जल्दी ही जलीस ने नोट किया कि इस बात को छिपाने का कोई प्रयत्न वे नहीं कर रहे थे कि किस रास्ते से गुजर रहे थे । इसका सीधा सा मतलब था–जहाँ उसे ले जाया जा रहा था वहाँ से उसे जिंदा वापस लौटने देने का कोई इरादा उनका नहीं था ।

मुनासिब वक्त का इंतजार करते रहने के अलावा अन्य कोई चारा उसके पास नहीं था । इससे भी बड़ी बात थी कि जो भी करना था अपने अकेले के दम पर ही करना होगा ।

वह एकदम अकेला था ।

अमोलक मर चुका था । पीटर भी नहीं रहा । कोई भी नहीं जानता था कि वह कहाँ था या किस फेर में था । अकेले पाशा के अपार्टमेंट में जाकर उसने बड़ी भारी गलती की थी और यह उसकी आखिरी गलती भी हो सकती थी । दोनों पिस्तौलधारी पेशेवर हत्यारे थे । वे सिर्फ एक ही काम जानते थे । उन्हें हत्या करने का काम सौंपा गया था और हर सूरत में उन्होंने यह काम अंजाम देना था । इस मामले में किसी भी तरह की दलील का कोई असर उन पर नहीं होना था । क्योंकि हत्या करना उनका पेशा था । हत्या करके लाश को ठिकाने लगाकर उन्होंने खा पीकर चैन से सो जाना था । इस काम के लिए तय की गई रकम लेने के बाद उन्होंने इस बारे में सोचना तक नहीं था ।

दारुवाला पुनः पीछे गरदन घुमाकर मुस्कराया । वह खुश था...बेहद खुश ।

"तकलीफ़ हो रही है, करीम ?" जलीस ने उसे छेड़ा ।

दारुवाला ने भौहे चढ़ाई ।

"क्या मतलब ?"

"जिस तरह तुम सीट पर बैठे हो उससे लगता है तुम्हारे नितंबों में कीलें चुभ रही है ।"

टोनी हँस पड़ा ।

"तुम्हें जल्दी ही पता चल जाएगा कि कीलें किसे चुभ रही है ।" दारूवाला ने कहा ।

"मेरा भी यही खयाल है ।" जलीस बोला ।

"तुम कहना क्या चाहते हो ?" |

"यही कि तुम बूढ़े हो गए हो । मारामारी करना तुम्हारे वश की बात नहीं है ।"

"तुम्हारे लिए मैं बूढ़ा नहीं हुआ हूँ, जलीस । मुझे बरसों से इस मौके का इंतजार था ।"

"तुम बहुत बड़ी ग़लतफहमी का शिकार हो रहे हो ।"

"इसकी बात में दम है ।" टोनी सपाट स्वर में हस्तक्षेप करता हुआ बोला–"खुद को कवर किए बगैर कहीं जाने वाला आदमी यह नहीं है । इसके साथ जरुर कोई और रहा होगा । और उस कोई और को पता होगा कि यह इस वक्त हमारे कब्ज़े में है ।"

"नहीं, मुझे लगता है इस दफा यह खुद को कवर करना भूल गया था ।" दारुवाला ने कहा–"यह अकेला ही पाशा के अपार्टमेंट में पहुँचा था ।"

"फिर भी तुम्हें यकीनी तौर पर जानना चाहिए ।"

"मुझे यकीन है । मैं बरसों से इसे जानता हूँ ।"

"यह बरसों तक इस शहर से दूर भी रहा है ।"

"ऐसे आदमी कभी नहीं बदलते । यह तुम भी अच्छी तरह जानते हो, टोनी ।"

टोनी कई पल खामोशी से जलीस को देखता रहा, फिर दारुवाला की ओर गरदन घुमा दी ।

"अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो मैंने फौरन इस आदमी को खत्म कर देना था ।"

"लेकिन तुम मेरी जगह नहीं हो, टोनी ।"

"लेकिन मुझे खतरा नजर आ रहा है ।"

"कैसा खतरा ?"

"इस आदमी को जिंदा रहने देना ठीक नहीं है । मुझे लगता है यह जरुर कोई भारी गड़बड़ करेगा ।"

"तुम बेकार वहम पाल रहे हो । यह कुछ नहीं कर पाएगा ।"

"मैं कोई वहम नहीं पाल रहा । इस आदमी को जिंदा रखकर तुम जो गलती कर रहे हो इसके लिए जल्दी ही तुम्हें बुरी तरह पछताना पड़ेगा ।"

"मेरी फिक्र छोड़ो और अपनी चोंच बंद करो ।"

टोनी कुछ बड़बड़ाया फिर खामोश हो गया । उसके साथी की निगाहें बराबर जलीस पर जमी हुई थी ।

करीब दस मिनट बाद एम्बेसेडर एक बंद रेस्टोरेंट के संमुख जा रुकी ।

टोनी का साथी दरवाज़ा खोलकर नीचे उतर गया ।

टोनी ने पिस्तौल से जलीस को टहोका लगाया ।

"बाहर निकलो ।"

जलीस खुले दरवाजे से बाहर आ गया ।

टोनी ठीक उसके पीछे था । उसने पिस्तौल की नाल से जलीस को रेस्टोरेंट के बगल वाले दरवाजे की ओर ठेला ।

दारुवाला भी कार का अगला दरवाज़ा खोल चुका था ।

"मैं पीछे रहूँगा ।"

जलीस समझ गया कि एक बार अंदर पहुँचने के बाद बचाव का कोई मौका नहीं मिल पाएगा । उसे फौरन कुछ करना होगा ।

लेकिन टोनी उसके इरादे को भांप गया लगता था इससे पहले कि जलीस कुछ कर पाता टोनी की रिवॉल्वर का भारी प्रहार उसकी कनपटी पर हुआ ।

जलीस को लगा मानों खोपड़ी फट गई थी फिर उसकी चेतना लुप्त हो गई ।

 

* * * * * *

 

होश में आने पर जलीस ने स्वयं को एक कुर्सी पर बैठा पाया । उसके पैर आपस में बंधे थे और हाथ पीछे कुर्सी के साथ । गरदन आगे की ओर लटकी हुई थी ।

दारुवाला की धीमी सी आवाज़ सुनाई दी ।

"इसे होश आ रहा है ।"

"गुड ।" कोई और बोला–"इसे फिर अमोनिया सुंघाओ ।"

तेज गैस ने उसकी नाक की राह से अंदर प्रवेश किया तो उसे गले में चुभन महसूस हुई और आँखों में पानी आ गया ।

उसने अपनी गरदन सीधी करके सर हिलाया ।

सामने बैठा मंझोले कद और इकहरे जिस्म वाला आदमी मुस्कराया ।

"शाबास ।"

जलीस ने पलकें झपकाते हुए उसे देखने की कोशिश की । जब उसकी आँखें साफ हो गई तो उसे पहचान गया ।

उस आदमी को सब मिस्टर नायर कहकर संबोधित करते थे और उसके सामने कोई भी ऊंची आवाज़ में नहीं बोलता था । वह सिंडिकेट का स्थानीय बॉस था । इस बात की जानकारी कम ही लोगों को थी । आमतौर पर उसे सफल बिजनेसमैन और विभिन्न समाज सेवी संस्थाओं से जुड़ा एक सहृदय और इज्जतदार आदमी समझा जाता था ।

कमरे में उसके अलावा और भी कई आदमी मौजूद थे । उनमें से कुछेक को जलीस उस रात 'प्रिंसेज पैलेस' क्लब की मीटिंग में भी देख चुका था । अब वे सब कुछ इस ढंग से उसे देख रहे थे मानों वह उनके रास्ते की सबसे बड़ी ऐसी रुकावट था जिसे सफाई से और हमेशा के लिए दूर किया जाना निहायत जरुरी था ।

"तुम ठीक हो ।" मिस्टर नायर ने पूछा ।

जलीस की खोपड़ी में हथौड़े से बज रहे थे । उसने मुँह से कुछ कहने की बजाय धीरे से सर हिलाकर हामी भर दी ।

"गुड । जानते हो, तुम्हें यहाँ क्यों लाया गया है ?"

"नहीं ।" इस दफा जलीस ने जवाब दिया ।

"इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । तुम जानते हो, हम क्या चाहते हैं ?"

अज्ञानता प्रदर्शन करने में कोई समझदारी नहीं थी ।

"रनधीर का सामान ।" जलीस ने जवाब दिया ।

"बिल्कुल ठीक ।"

जलीस जबरन तनिक मुस्कराया ।

"लेकिन वो मुझसे तुम्हें नहीं मिल सकता ।"

"क्यों ?"

"क्योंकि वो मेरे पास नहीं है ।"

"सच कह रहे हो ?"

"हाँ ।"

"फिर भी हम यकीनी तौर पर जानता चाहते है ।" मिस्टर नायर ने कहा और अपने कंधे के ऊपर से उंगली हिलाई–"मदन...अपने तरीके का नमूना दिखाओ ।"

मदन एक लंबा–चौड़ा पहलवान टाइप आदमी था । वह यूँ आगे आया मानों मनपसंद काम करने आ रहा था । एक पल के लिए गौर से उसने जलीस को देखा फिर उसका खुला हाथ जलीस के चेहरे पर पड़ा ।

जलीस को चेहरे का उतना भाग सुन्न हो गया महसूस हुआ । फिर इससे पहले कि वह संभल पाता दूसरे हाथ का भरपूर झापड़ दूसरी ओर पड़ा । जलीस को अपने जबड़े हिल गए महसूस हुए और गालों के भीतरी हिस्से दाँतों में दबकर कट जाने की वजह से मुंह खून से भर गया ।

"मेरी आवाज़ सुन सकते हो ?" मिस्टर नायर ने पूछा ।

जलीस ने सर हिलाकर हामी भर दी ।

"तुम्हारे बारे में मुझे सब कुछ बता दिया गया है ।" मिस्टर नायर बोला–"तुम बहुत ही सख्त जान हो । तुम और तुम्हारा दोस्त रनधीर दूसरों की ज़ुबान खुलवाने के लिए अजीब–अजीब तरीके इस्तेमाल किया करते थे । इसलिए बताने की जरुरत नहीं है कि तुम्हारा क्या अंजाम होगा । अगर तुमने ज़ुबान नहीं खोली तो तुम्हें तिल तिल करके मरना पड़ेगा ।"

"यह सब मैं भी जानता हूँ ।" जलीस मुश्किल से ही कह पाया–"लेकिन तुम्हें इससे कोई फायदा नहीं होगा ।"

"यह झूठ बोल रहा है ।" अचानक दारुवाला बोला ।

"अच्छा ?" मिस्टर नायर ने पूछा–"तुम कैसे जानते हो ?"

"क्योंकि मुझे याद है, ये दोनों दो जिस्म एक जान हुआ करते थे । मैं यह भी जानता हूँ कि इन दोनों के सोचने का ढंग कैसा था । रनधीर अपनी हर एक चीज इसी के लिए छोड़ गया था ।"

"अगर वो चीज इसके पास होती तो क्या अब तक इसने जाहिर नहीं कर देनी थी ?"

"मेरी बात सुनिए ।" दारुवाला जिद भरे लहजे में बोला–"कोई नहीं जानता यह आदमी किस फेर में है । रनधीर की बात और थी । वह सीधा खेल खेलता था । मगर इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता । मुझे पूरा यकीन है, यह जरुर जानता है वो चीज कहाँ है । इसे टार्चर कराइए...यह बता देगा ।"

"तुम कुछ कहना चाहते हो, जलीस ?" मिस्टर नायर ने बड़े ही नम्र स्वर में कहा ।

"नहीं । अगर मुझे टार्चर ही कराना चाहते हो तो करा लो ।"

"हमें कोई जल्दी नहीं है । हमारे पास वक्त है लेकिन तुम्हारे पास नहीं है । अगर तुम बता दोगे तो इसमें तुम्हारी अपनी ही भलाई है ।"

"अगला तरीका अपनाया जाए, मिस्टर नायर ?" मदन ने पूछा । मिस्टर नायर ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया ।

"अभी नहीं ।" उसने कहा फिर जलीस से बोला–"देख रहे हो, मदन कितना बेताब हो रहा है । जलती सिगरेट से दूसरों के शरीर को दागना, और चाकू की नोंक से माँस उखाड़ना इसके खास शौक है । ऐसे ही और भी कई काम यह करता है...खैर वे सब बाद की बातें है ।"

बंधनों की वजह से जलीस के हाथ और बाँहें सुन्न हो गए । सर दर्द से फटा जा रहा था और जबड़े दुख रहे थे ।

"इससे...कोई फायदा नहीं होगा ।" वह मुश्किल से ही बो  पाया ।

"जिद करके अपनी तकलीफों को मत बढ़ाओ, जलीस ।"

"यह जिद नहीं, असलियत है ।"

"बेवजह वायलेंस के हक में मैं नहीं हूँ । तुम इस बारे में बातें करना चाहते हो ?"

"मुझे कोई एतराज नहीं है ।"

मिस्टर नायर मुस्कराया ।

"ओ के तुम्हारे दोस्त की मौत से ही बात शुरु करते है । उसकी हत्या किसने की थी ?"

जलीस ने धीरे–धीरे अपना सर ऊपर उठाया ।

"तुमने की थी ?"

"बिल्कुल नहीं । हमारे लिए वो रिस्क लेना कतई जरुरी नहीं था । हालांकि रनधीर पूरी आर्गेनाइजेशन के लिए एक ऐसा बोझ था जिसे कोई बर्दाश्त करना नहीं चाहता था । इसके बावजूद मामले को बढ़ाने की बजाय उसकी माँग को पूरा करना ही सब ज्यादा ठीक समझते थे । नहीं, जलीस, हममें से किसी ने उसकी हत्या नहीं की थी ।" कहकर मिस्टर नायर ने पूछा–"बाई दी वे इस बारे में तुम्हारा अपना क्या विचार है ?"

"मेरे विचार से यह सुलेमान पाशा का काम था ।"

मिस्टर नायर पुनः मुस्कराया ।

"तुम्हारे इस विचार में दम है । पाशा का कद और वजन बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं । आर्गेनाइजेशन से बड़ी–बड़ी माँगें वह करता रहा है । लेकिन वह भी रनधीर की मुट्ठी में था । अगर उस पर अंकुश नहीं होता और वह अपनी मर्जी के मुताबिक काम करने के लिए आजाद रहा होता तो उसकी अहमियत कई गुना ज्यादा होनी थी । लेकिन रनधीर उसकी लगाम खींचकर रखता था । इसके अलावा पाशा उन लोगों में से है जिनका कोई दीन और ईमान नहीं होता । मैं अच्छी तरह जानता हूँ अगर रनधीर का खजाना उसके पास होता तो उसने क्या करना था । क्या तुम जानते हो, उसने तुम्हारे साथ क्या करने की कोशिश की थी ?"

"मुझे खत्म कराने के लिए उसने अरमान अली और फरमान अली की सेवाएँ हासिल की थीं ।"

"बिल्कुल ठीक । इत्तिफाक से वे दोनों आदमी ऐसे थे जिन पर हम भी अपना प्रभाव इस्तेमाल कर सकते थे । हमने किया भी । और उन्हें कुछ समय के लिए रोकने में कामयाब भी हम हो गए । हम नहीं चाहते थे कि रनधीर का वो खजाना किसी ऐसी जगह पड़ा रहे जहाँ से किन्हीं गलत हाथों में वो पड़ जाए । हमारे लिए यह जानना जरुरी था कि वो कहाँ है । इस मामले में हमने पाशा को वार्निंग तक भी दी थी लेकिन हमारी सलाह पर अमल उसने नहीं किया ।" मिस्टर नायर तनिक रुककर बोला–"हमें नीचा देखना पड़े यह भी आर्गेनाइजेशन के हित में ठीक नहीं है । रनधीर की अचानक मौत के बाद आर्गेनाइजेशन के बिखरने के हालात पैदा हो गए थे । स्थिति इतनी विस्फोटक थी और अभी भी है कि हर एक बड़े ग्रुप का मुखिया खुद को नया बॉस बनाना चाहता है । अगर रनधीर का खजाना मिलने में और ज्यादा वक्त लगा तो यहाँ सभी ग्रुप आपस में लड मरेंगे । अभी तक ऐसा न होने की इकलौती वजह था–जैकी । उसने ब्लफ किया और वक्ती तौर पर उसका ब्लफ चल भी गया । क्योंकि जैकी प्रत्यक्षतः रनधीर के नज़दीक और उसका पुराना साथी था । बेहद कांइया और मक्कार तो वह था ही । इसलिए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता था कि जैकी किसी प्रकार रनधीर की हत्या करके उसका खजाना हासिल करने में कामयाब हो गया था । मगर तुम्हारे आ पहुँचने से उसके ब्लफ की पोल खुलनी शुरु हो गई और उसके कोशिश करने के बावजूद खुलती चली गई और इसी चक्कर में उसे अपनी जान गंवानी पड़ी । लेकिन सुलेमान पाशा का मसला अलग है । उसने जो किया वो आर्गेनाइजेशन की अथार्टी को चुनौती देने के बराबर था । क्योंकि जब तक कोई ठोस और यकीनी बात सामने न आ जाए हम तुम्हें जिंदा रखना चाहते थे । चाहे तुम्हारे पास वो चीज है या नहीं जो हम चाहते हैं ।"

"अब तो असलियत तुम्हें पता चल गई ।" जलीस बोला ।

"अभी नहीं । यकीनी तौर पर नहीं ।"

जलीस ने उसे बातों में लगाए रखने की गरज से पूछा–"इसीलिए तुम पाशा को पकड़ना चाहते थे ?"

मिस्टर नायर उसका वास्तविक आशय समझ गया था लेकिन इस पर कोई एतराज उसने नहीं किया ।

"पाशा को पकड़ने की वजह थी–उसे सबक सिखाना । एक ऐसा सबक जिसे उसने हमेशा याद रखना था । उसकी वजह से हमें एक अच्छे आदमी को खत्म करना पड़ा । फरमान अली तो तुम्हारी वजह से मारा गया और अरमान अली को तुमने जख्मी कर दिया था । लेकिन उसे जख्मी हालत में अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था । क्योंकि वह हेरोइन एडिक्ट था और किसी को भी बता सकता था कि तुम्हारी हत्या को टाले रखने की एवज में हमने उसे रकम आफर की थी । इसलिए हमने रिस्क लेना मुनासिब नहीं समझा ।"

"तुम जानते हो ।" जलीस ने पूछा–"अरमान अली को खत्म करने के लिए तुमने जो आदमी भेजा था उसका क्या अंजाम हुआ ?"

मिस्टर नायर की मुस्कराहट गायब हो गई ।

"वो सब हम सुन चुके हैं । इससे यह भी साबित हो गया कि तुम्हारे बारे में जो हमें बताया गया था वो सब सच है ।"

"आप बेकार वक्त जाया कर रहे हैं ।" अचानक दारुवाला हस्तक्षेप करता हुआ बोला ।

"बातचीत करने से ही अगर बात बन जाती है तो अच्छी बात है ।"

"लेकिन मैं इसकी चीखें सुनना चाहता हूँ ।"

"मैं नहीं सुनना चाहता ।" मिस्टर नायर ने कहा । उसके नम्र स्वर में पैनापन था । फिर सामान्य स्वर में जलीस से बोला–"अब तक सारी बैक ग्राउंड तुम्हें बता दी गई है । अब तुम क्या कहते हो ?"

एकाएक जलीस ने अजीब सा खालीपन अपने अंदर महसूस किया ।

"रनधीर के बाद भी बहुत लोग मारे जा चुके है । अमोलक... पीटर...लेकिन यह सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है ।"

"तुम इसे यहीं रोक सकते हो ।"

"नहीं...मैं इसमें कुछ नहीं...कर सकता ।"

"मिस्टर नायर ?" अचानक दारुवाला उत्तेजित सा बोला ।

"क्या बात है, करीम ?"

दारुवाला अपनी कुर्सी से उठकर जलीस के पास पहुंचा । उसके बाल पकड़कर जोर से उसका सर हिलाया ।

"हम इस मामले को गलत ढंग से हैंडल कर रहे है...बिल्कुल गलत ढंग से ।" जलीस का सर एक ओर झटककर वह पीछे हट गया ।

"साफ साफ कहो, करीम ।" मिस्टर नायर बोला ।

"मैं उस लड़की सोनिया के बारे में कह रहा हूँ ।"

मिस्टर नायर की निगाहें दारुवाला से हटकर जलीस पर जम गई ।

"क्या ?"

एकाएक जलीस ने अपने पेट में भारी ऐंठन सी महसूस की और उसका दिल पसलियों में धाड़ धाड़ बजने लगा ।

"बड़ी सीधी सी बात है ।" दारुवाला ने कहा–"उस लड़की ने हम सबको बेवकूफ़ बना दिया ।" उसकी निगाहें जलीस के चेहरे पर जमी थीं ।

अचानक सोनिया के जिक्र से उसकी सलामती के लिए फिक्रमंदी के गहरे भाव जलीस के चेहरे पर आसानी से पढ़े जा सकते थे ।

"मुझे अफसोस है कि पहले मेरा ध्यान उसकी ओर नहीं गया ।" दारुवाला का कथन जारी था–"जरा सोनिया और रनधीर के बारे में सोचिए । दो साल तक वह लड़की उस मरदूद के साथ चिपकी रही और उस दौरान रनधीर पर उसका भूत इस बुरी तरह सवार था कि हर वक्त बस उसी की बातें किया करता था । उस लड़की का दीवाना था वह । और इस दीवानगी की वजह से ही न तो रनधीर देख सका और न ही समझ सका कि असल में वह क्या कर रही थी । क्या चाहती थी । क्यों उसके साथ चिपकी हुई थी । उस लड़की ने मेरे साथ भी यही किया था...मुझे बेवकूफ़ बनाकर ऐसे ऐसे अजीब अजीब काम मुझसे कराए कि मैं सोच भी नहीं सकता था । खैर, मैं बेवकूफ़ तो बना मगर उसकी दीवानगी मुझ पर सवार नहीं हुई ।"

"मतलब की बात करो ।" मिस्टर नायर ने उसे टोका ।

"मतलब की बात यह है, रनधीर उसका गुलाम बनकर रह गया था । उसके हाथों का खिलौना । लेकिन रनधीर 'टॉपमैन' था । सोनिया को यकीन दिलाने के लिए उसे यह साबित करना और बताना पड़ा कि जो वह था, क्यों था । आप भी जानते है रनधीर टॉप पर कैसे पहुंचा । एक बार टॉप पर पहुँचने के बाद सबने समझ लिया कि वह वास्तव में इसी काबिल था । लेकिन असलियत क्या थी, हम बेहतर जानते है । औरतों के मामले में दब्बू और काफी हद तक सनकी उस आदमी की इस असलियत को उसके नज़दीक रहने वाली सोनिया जैसी तेज और समझदार औरत भी आसानी से समझ सकती थी । इस हालत में सोनिया के दीवाने रनधीर ने यह साबित करने के लिए कि वह कितनी बड़ी चीज था, क्या करना था ? वह एक ही काम कर सकता था और वही उसने किया । उसने अपना वो 'खजाना' सोनिया को दिखा दिया । रनधीर के लिए ऐसा करना एक और वजह से भी बेहद जरूरी था । सोनिया उसकी पत्नी के तौर पर राजदार के रुप में खुद भी इसका एक हिस्सा बनने वाली थी ।"

"बको मत । तुम पागल हो ।" जलीस चिल्लाया–"सोनिया ने उस घटिया आदमी के पास फटकना भी नहीं था । अगर मुझसे अपनी पुरानी खुन्नस निकालने के लिए तुमने सोनिया को हाथ भी लगाया तो मैं तुम्हारी जान ले लूँगा करीम ।"

"देखा–मिस्टर नायर ।" दारुवाला बोला–"इसका रिकार्ड चालू हो गया है ।"

"तुम्हारी बात में दम है, करीम । कुछ और कहना चाहते हो ?"

"जरुर । यह मामला एकदम आइने की तरह साफ है । आप भी जानते हैं कि रनधीर क्लब में एक बहुत बड़ी पार्टी देने वाला था । हालांकि पार्टी की वजह को राज रखा जाना था लेकिन बड़बोले रनधीर के मुँह से बात निकल ही गई । क्योंकि वह चाहकर भी इस बात को, जो कि उसके लिए 'टॉपमैन' बनने जैसी ही अहमियत रखती थी, पचा नहीं सका । उस पार्टी में वह सोनिया के साथ अपनी एंगेजमेंट की घोषणा करने वाला था ।"

जलीस के मुँह से गालियों का बम फट पड़ा । वह तभी शांत हुआ जब बुरी तरह हाँफने लगा था ।

मिस्टर नायर ने सर हिलाया ।

"बड़ा ही जबरदस्त रिएक्शन हुआ है ।"

"यह तो इस पर होना ही था ।" दारूवाला बोला–"क्योंकि इसे भी बेवकूफ़ बनाया गया है । इससे पहले कि वो 'खजाना' सही मायने में सोनिया के हाथ लग पाता रनधीर की हत्या कर दी गई । और सोनिया को जलीस के साथ चिपकना पड़ा ताकि उसे पता लग सके कि वो 'खजाना' इसके हाथ लगा या नहीं ।

मिस्टर नायर धीरे से उठकर खड़ा हो गया ।

"वो तुम्हारे हाथ लगा, जलीस ?"

"बेशक लगा ।" जलीस की जगह दारुवाला ने जवाब दिया–"और इसने वो सोनिया को दे दिया ताकि वह तब तक उसे अपने पास रख सके जब तक कि यह अपने सभी कांटेक्ट्स से संपर्क नहीं कर लेता और उन सबका इंतजाम नहीं कर लेता जो इसके लिए मुसीबत खड़ी कर सकते है । इसीलिए यह आज रात पाशा की तलाश में उसके घर गया था ।" वह जोर से हंसा और जलीस की रिवॉल्वर जेब से निकाल ली–"इस तरह पाशा को हमारा अहसानमंद होना चाहिए कि हमने उसकी जान बचा दी ।"

मिस्टर नायर ने कोने में जाकर वहाँ रखे टेलीफोन उपकरण का रिसीवर उठाकर नंबर डायल किया ।

"सोनिया ब्रिगेजा को पकड़कर मेरे पास ले आओ ।" अपना नाम बताए बगैर वह बोला–"हाँ...हम वहीं हैं...पता...होल्ड करो ।" उसने पुकारा–"करीम ?"

दारुवाला ने सोनिया का पता बता दिया ।

मिस्टर नायर ने फोन पर दोहरा कर संबंध विच्छेद कर दिया । फिर उसके संकेत पर वे सब एक–एक करके उसके पीछे दूसरे कमरे में चले गए ।

जलीस को ड्रिंक्स बनाये जाने और उनके हँसने की मिली जुली आवाजें सुनाई देने लगीं । उनमें सबसे ऊंची आवाज़ दारुवाला की थी ।

लगभग दस मिनट बाद टेलीफोन की घंटी बजी ।

मदन ने आकर रिसीवर उठाया और मैसेज ले लिया ।

चंदेक सैकेंड पश्चात मिस्टर नायर भी आ गया ।

"लड़की वहाँ नहीं है, मिस्टर नायर ।" रिसीवर थामे खड़े मदन ने जानकारी दी ।

"उसने बताया कहाँ गई है ?"

"जी नहीं । उसका कहना है, इमारत के बाहर मौजूद पान वाले ने लड़की को जाती देखा था । पान वाला उस आदमी को भी जानता हैं जिसके साथ लड़की गई थी । वह सुलेमान पाशा था ।"

इस नई जानकारी की कोई प्रतिक्रिया जलीस पर नहीं हुई ।

"क्या वह जानता है वे कहाँ गए है ?" मिस्टर ने पूछा ।

मदन ने माउथपीस में प्रश्न दोहरा दिया । करीब दो मिनट तक इंतजार करने के बाद बोला–"पान वाले ने पाशाको एक टैक्सी रोकते देखा था । टैक्सी पास ही मौजूद स्टैंड से आ रही थी । पान वाला उस ड्राइवर को जानता है । उसका कहना है जल्दी ही वह ड्राइवर अपनी एक रेगुलर सवारी को ले जाने के लिए वापस आएगा ।"

"उससे कहो पता लगाए कि पाशा लड़की के साथ कहाँ गया था और फौरन फोन करे ।"

मदन ने दोहरा कर संबंध विच्छेद कर दिया ।

"ऐसा लगता है, करीम ।" मिस्टर नायर बोला–"पाशा भी तुम्हारी तरह इसी नतीजे पर पहुँचा है और इसी पर ही काम कर रहा है । बात बननी शुरु हो गई है ।"

"हरामजादा ।" दारुवाला गुर्राया ।

"लेकिन होशियार । वह दोनों तरफ से कब्ज़ा करने के चक्कर में हैं ।"

"आप इस बारे में क्या करेंगे ?"

"मैं ? मुझे कुछ नहीं करना है । मैं किसी फाइव स्टार होटल की बार में जाकर बैठूँगा जहाँ बहुत से लोग मुझे देख सकें और जरुरत पड़ने पर मेरी वहाँ मौजूदगी की गवाही दे सकें । लेकिन तुम्हारा मामला अलग है । तुम्हें यहीं रहकर उस फोन काल का इंतजार करना होगा । मैं चाहता हूँ, जैसे ही तुम्हें पाशा के बारे में पता चले तुम उसकी छाती पर जा चढ़ो । यह तुम्हारी सरदर्दी है और अब तुम इस मामले के इंचार्ज हो । ज्यादा उम्मीद इसी बात की है कि पाशा उसे किसी ऐसी जगह ले गया है जहाँ उसकी ज़ुबान खुलवा सके ।

"मेरा भी यही खयाल है ।"

मिस्टर नायर ने जलीस की ओर देखा ।

"तुम्हें उस लड़की से बहुत ज्यादा लगाव है ?"

जलीस कुछ नहीं बोला ।

"तुम्हारा जवाब तुम्हारे चेहरे पर साफ पढ़ा जा रहा है ।" मिस्टर नायर बोला–"तुम यह भी जानते हो कि उससे जानकारी हासिल करने के लिए पाशा उसके साथ क्या करेगा ।"

"पाशा पागल है । वह कुछ नहीं जानता ।"

"वह पागल नहीं है ।" दारुवाला बोला–"तुम बेवकूफ़ हो ।"

"बको मत, करीम ।" मिस्टर नायर ने कहा, फिर जलीस से बोला–"अगर तुम जानते हो पाशा लड़की को कहाँ ले गया है तो हम मदद कर सकते है ।"

"मैं नहीं जानता ।"

"मैं एक बार फिर दोहराता हूँ...अगर तुम जानते हो, रनधीर का वो खजाना कहाँ है और बता देते हो तो पाशा का इंतजाम हम कर देंगे और लड़की को छोड़ देंगे । क्योंकि अगर वो पैकेज हमें मिल जाता है तो कोई भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा ।"

जलीस ने जवाब नहीं दिया ।

"मुझे जो कहना था, कह दिया ।" मिस्टर नायर बोला–"तुम्हें जो ठीक लगता है, करो ।"

मदन मुस्कराता हुआ आगे आया ।

"आपने मुझे कोशिश नहीं करने दी । मैं...।"

"पागल मत बनो । जलीस यहाँ उसी जाल में फंसा हुआ है जिसमें जैकी फँसा था । यह कुछ नहीं जानता । अगर यह कुछ जानता होता तो उस लड़की को बचाने के लिए इसने सब बता देना था । यह बात कोई भी इसके चेहरे पर पढ सकता है ।"

जलीस समझ गया कि उन लोगों के लिए कोई कीमत या अहमियत उसकी नहीं थी । वह बिल्कुल बेकार था । इसका सीधा सा अर्थ था–उसकी निश्चित मृत्यु ।

"मुझे कम से कम आधा घंटे का वक्त चाहिए ।" मिस्टर नायर दारुवाला का कंधा थपथपाकर बोला–"फिर तुम जो चाहो जलीस के साथ कर सकते हो । टोनी और इमरान को यहीं रखो...।"

"मुझे इनकी जरुरत नहीं है ।"

"जो कहा जाता है, वही करो ।" मिस्टर नायर के स्वर में आदेश का पुट था–"पाशा और लड़की का पता लगते ही तुम उस इलाके में हमारे सबसे नज़दीकी ग्रुप को फोन करके उन दोनों को अपने कब्ज़े में लेने के लिए कहोगे । मैं उन सभी को तैयार रहने के लिए कहलवा दूँगा । उन्हें सिर्फ तुम्हारे आदेशों का पालन करने के लिए कह दिया जाएगा ।" वह तनिक रुका फिर बोला–"इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि पाशा या लड़की का क्या होता है । तुमने हर हालत में वो पैकेज लेकर ही यहाँ वापस लौटना है । समझे ?"

दारुवाला के चेहरे पर नापसंदगी भरे भाव थे लेकिन उसने सहमतिसूचक ढंग से सर हिला दिया ।

"में ऐसा ही करुंगा ।"

मिस्टर नायर दरवाजे के पास पहुँचकर जलीस की ओर पलटा ।

"इस सबके लिए मुझे अफसोस है, जलीस । लेकिन तुमसे कोई जाती दुश्मनी मुझे नहीं है । यह हालात की मजबूरी है वरना सच तो यह है कि मैं वाकई तुम्हें पसंद करता हूँ ।"

जलीस भी जवाब में कोई चुभती बात कहना चाहता था लेकिन उसके अंदर इतनी भयानक उथल–पुथल मची हुई थी कि वह कुछ नहीं कह सका । वह बस बुत बना बंधा बैठा रहा ।

मिस्टर नायर और उसके पिछलग्गु बाहर निकल गए ।

कमरे में टोनी, उसका खामोश पार्टनर इमरान और दारुवाला ही रह गए ।

दारुवाला मुस्करा रहा था । उसने जेब से दस्ताने निकालकर पहन लिए ।

टोनी ने कुर्सी से उठकर सिगरेट सुलगा ली ।

"मैंने सारा दिन कुछ नहीं खाया ।" वह बोला–"किसी बढ़िया जगह इत्मिनान से बैठकर भरपेट खाना खाना चाहता हूँ । आस–पास तो इस वक्त कुछ मिलेगा नहीं दूर ही जाना पड़ेगा ।"

"मेरे लिए भी कुछ ले आना ?" उसका पार्टनर इमरान पहली बार बोला–"दिन भर की भाग दौड़ ने बुरी तरह थका दिया है ।" उसने अंगड़ाई ली–"थोड़ी देर ऊंघना चाहता हूँ ।"

वह बैडरूम में चला गया ।

जलीस को स्प्रिंगों की हल्की सी चरमराहट सुनाई दी तो समझ गया कि इमरान बिस्तर पर लेट चुका था ।

टोनी भी बाहर निकल गया ।

दारुवाला धूर्ततापूर्वक मुस्कराता हुआ जलीस के सामने आ खड़ा हुआ ।

"मुझे एक लंबी मुद्दत से इस मौके का इंतजार था ।" वह अपने हाथों को मुट्ठियों की शक्ल में भींचता हुआ बोला–"आज अपनी ख़्वाहिश पूरी करुंगा ।"

जलीस ने उस पर थूक दिया ।

"तुम बूढ़े हो गए हो, सूअर ।" वह बोला–"मारामारी करने के चक्कर में तुम्हारा कमजोर हार्ट फेल हो जाएगा ।"

"हरामजादे ।" दारुवाला गुर्राया और दोनों हाथों से उस पर घूँसे बरसाने लगा ।

 

* * * * * *

 

पिटते–पिटते बेहोश हो जाने के बाद जलीस को जल्दी ही पुनः होश आया तो उसने स्वयं को फर्श पर पड़ा पाया । उसकी हालत बेहद खस्ता थी । सर दर्द से फटा जा रहा था । लेकिन शरीर के और किसी हिस्से में कोई दर्द नहीं था उसे पहले तो ताज्जुब हुआ फिर इसकी वजह भी समझ में आ गई । वह कुर्सी समेत नीचे पड़ा था । अभी भी उसके टखने आपस में बंधे थे और हाथ कुर्सी के साथ । रक्त प्रवाह रुक जाने के कारण टाँगे और बाँहें सुन्न हो गई थी इसीलिए वहाँ दर्द महसूस नहीं हो रहा था ।

तभी दारूवाला का स्वर उसके कानों में पड़ा ।

"इमरान । यहाँ आओ ।"

बैडरूम की ओर से कदमों की आहट आती सुनाई दी ।

"कहिए ?" इमरान द्वारा पूछा गया ।

"इसे यहाँ से ले जाओ ।"

इमरान ने उबासी ली । फिर बेमन से आगे आकर जलीस की पसलियों में पैर से टहोका लगाया ।

"इसे यहीं पड़ा रहने देने में क्या हर्ज है ?"

दारुवाला अब पुराने वक़्तों वाला दारुवाला नहीं रह गया था । वह पुराने वक़्तों जैसी बातें जरुर कर सकता था । उस ढंग से सोच भी सकता था । और उसी तरह रहने की कोशिश भी कर सकता था । लेकिन बढ़ती उम्र ने उसके भीतरी हौसले को इतना कम कर दिया था कि मारा मारी के माहौल का टेंशन ज्यादा देर तक बर्दाश्त कर पाना उसके वश की बात नहीं रह गई थी ।

"सवाल मत करो । इसे मेरे सामने से हटा दो । बैडरूम में ले जाओ और इसके पास ही रहो ।"

"लानत है ।" इमरान खीजता सा बोला–"मैं सोना चाहता हूँ । इसे खत्म करके इसकी लाश को ठिकाने लगाने भी तो मुझे ही जाना पड़ेगा ।"

"तुम कुर्सी में सो लेना । इसे अंदर ले जाओ ।"

जाहिर था कि इंकार करने की स्थिति में इमरान नहीं था लेकिन इस काम से खुश भी वह नहीं था ।

जलीस को घसीटने के लिए इमरान को पहले उसे कुर्सी से खोलना था ।

जलीस को सिर्फ आहटो और जिस ढंग से इमरान उसे उलट पुलट रहा था, से ही पता लग सका कि उसे खोला जा रहा था । अपने सुन्न हाथ–पैरों में उसे कुछ महसूस नहीं हुआ । अपनी आँखें भी उसने बंद ही रखी । हालांकि वह जानता था, जिस ढंग से आँखें सूज गई महसूस हो रही थी उससे इमरान को पता ही नहीं चलना था कि वे बंद थी या खुली हुई ।

इमरान ने उसकी बगलों में हाथ डाले, उसे बोरें की तरह घसीटकर बैडरूम में ले गया और बिस्तर की बगल में कारपेट पर औंधे मुंह डाल दिया बिल्कुल इस तरह मानों वह मर चुका था ।

फिर वह वापस दूसरे कमरे में गया, दारुवाला से कुछ कहा और अपने लिए ड्रिंक बना लिया ।

घसीटकर लाए जाने की वजह से अचानक पूरे शरीर में हुई हरकत ने जलीस के सोए दर्द को जगा दिया । धीरे–धीरे दर्द का अहसास बढ़ता गया और उसके समस्त शरीर से दर्द की तेज लहरें सी गुजरने लगीं । जल्दी ही, हाथ–पैरों में पुनः रक्तप्रवाह आरंभ हो जाने के कारण दर्द की लहरें उन हिस्सों में भी महसूस होने लगीं ।

असहनीय पीड़ा के बावजूद जलीस खुश था । वक्ती तौर पर मुर्दा हो गए हाथ पैरों को नई जिंदगी मिलनी शुरु हो गई थी । हालांकि उन्हें ज्यादा हिला पाने की ताकत उसमें नहीं थी लेकिन अगर किस्मत ने साथ दिया और कोई चूक उससे नहीं हुई तो इतना ही काफी था ।

जलीस चुपचाप पड़ा रहा ।

इमरान वापस लौटा तो उसके हाथ में रस्सी के वे दोनों टुकड़े थे जिनसे जलीस को कुर्सी के साथ बाँधा गया था ।

उसने नीचे झुककर जलीस के हाथ पुनः पीठ के पीछे ले जाकर बाँध दिए । रस्सी के दूसरे टुकड़े से उसने दोनों पैरों का आपस में बाँध दिया और पुनः बिस्तर के हवाले हो गया मानों कुछ हुआ ही नहीं था ।

बाहर दारुवाला अपने लिए दूसरा ड्रिंक बना रहा था ।

कुछेक मिनटों में ही उसने दो और ड्रिंक लिए और उनके बीच में पाशा और सोनिया को मोटी–मोटी गालियाँ बक डाली ।

बिस्तर पर पड़ा इमरान धीमी और हल्की साँस लेने लगा था । लेकिन पूरी तरह नींद में वह नहीं था इसलिए अभी उसे डिस्टर्ब करने का रिस्क नहीं लिया जा सकता था । जलीस ने महसूस किया कि बंधे होने के बावजूद उसके हाथ सामान्य होते जा रहे थे । रस्सी मजबूत थी । मगर इमरान द्वारा बेमन और लापरवाही से बाँधे गए बंधनों में कोई मजबूती नहीं थी । कलाइयों पर जोर डालकर उनसे मुक्त होना ज्यादा मुश्किल नहीं था ।

लेकिन जलीस के लिए सही वक्त तक इंतजार करना जरुरी था इसलिए वह चुपचाप पड़ा रहा ।

दर्द और मौजूदा स्थिति के तनाव से छुटकारा पाने के प्रयास में उसने सोचने की कोशिश की । ताकि इस तमाम सिलसिले की सही तस्वीर नजर आ सके ।

इसकी शुरुआत रनधीर की मौत से हुई थी । इसलिए सबसे पहला सवाल था–रनधीर की हत्या क्यों की गई ?

जिंदा रनधीर एक खतरा था । उसके पास ताकत थी, जिसके दम पर वह हर एक को अपने इशारों पर नचा सकता था–स्थानीय राजनीति में भी और अपराध जगत में भी । मिस्टर नायर तक ने भी यह स्वीकार किया था और उस रात क्लब में पाशा की मौजूदगी से भी यही साबित होता था । दूसरे कई और लोगों के इनवाल्व होने से भी इस बात की पुष्टि होती थी ।

लेकिन मिस्टर नायर ने एक खास बात कही थी–सिंडिकेट को रनधीर से कोई परेशानी नहीं थी । उसकी हत्या करने के मुकाबले में उसे मनाना ज्यादा आसान था ।

क्यों ?

इसके जवाब में जलीस को रनधीर के बारे में विनोद महाजन का नज़रिया याद आ गया जो कि कमोबेस सोनिया का नज़रिया भी था ।

रनधीर मेच्योर्ड नहीं था ।

असल में उसकी चाहत कोई ज्यादा बड़ी नहीं थी । बड़ा होने का उसका आइडिया वास्तव में इतना छोटा था कि सिंडिकेट को उसे मनमानी करने देने में कोई एतराज नहीं था...लेकिन जो 'चीज' उसके पास थी वो बहुत ज्यादा बड़ी थी इसलिए वे बेहिचक उसके इशारों पर नाचते थे ।

नहीं, सिंडिकेट उसे जिंदा रखना चाहता था । उसकी मौत से कोई फायदा उन्हें नहीं होना था ।

तो क्या उसका हत्यारा जैकी था ?

लेकिन इससे भी बड़ा सवाल था–क्या जैकी हत्या कर सकता था । और जवाब था–नहीं ।

इतना बड़ा काम करने लायक हौसला न तो उसमें था और न ही वह जुटा सकता था । उसके हाव भाव से उसका यह इरादा जरुर जाहिर हो जाना था और रनधीर ने उसकी नीयत को भांपकर यकीनन पहले ही उसे खत्म कर देना था । या फिर अगर सिंडिकेट को पता लग जाता कि जैकी रनधीर को ठिकाने लगाने के फेर में था तो उन्होंने ही जैकी को खत्म कर देना था । क्योंकि उस 'पावर पैकेज' के साथ रनधीर के मुकाबले में जैकी ने उनके लिए कहीं ज्यादा खतरनाक साबित होना था ।

रनधीर की हत्या के बाद इस सिलसिले की दूसरी कड़ी थी–माला सक्सेना की हत्या । जिसे भुला दिया गया था ।

जलीस को याद आया एक और भी बात थी जिसे वह लगभग भूल गया था । और वो थी–जिसने माला की हत्या की थी उसी ने रनधीर की हत्या की थी और उसी ने उसकी जान लेने की कोशिश भी की थी ।

इसी से जुड़ी अहम बात थी–इन तीनों वारदातों में इस्तेमाल किए गए हथियार ।

न तो कोई भारी कैलीबर की हैडगन प्रयोग की गई थी और न ही इतनी ज्यादा गोलियाँ चलाई गई थीं कि यकीनी तौर पर फौरन मृत्यु हो जाती । जैसा कि अमोलक अरमान अली और पीटर के साथ हुआ था ।

दूसरा सीधा सा अर्थ था कि रनधीर और माला का हत्यारा और उस पर कातिलाना हमला करने वाला कोई तजुर्बेकार और पेशेवर बदमाश नहीं था ।

रनधीर की हत्या बाइस कैलाबर की गोली से की गई थी, माला की बोतल से और उस पर भी सोडे की बोतल से हमला किया गया था ।

बाइस कैलीबर यानि पाइप गन या जिप गन और एक बोतल ।

मोटे तौर पर यह किसी बदमाश छोकरे द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली तरकीब थी । लेकिन इस बचकाना ट्रिक ने हत्याओं का एक ऐसा सिलसिला शुरु कर दिया था जो अभी तक खत्म नहीं हुआ था ।

शुरुआत इसी ढंग से हुई थी । किसी बदमाश छोकरे ने सोचा कि रनधीर जैसा आदमी अपने पास और घर में मोटी नगदी ज़रूर रखता होगा । उसने 'फ्रेंड्स विला' की निगरानी करके वहाँ के रुटीन का पता लगा लिया । वह जान गया कि रात में सिर्फ रनधीर अकेला ही वहाँ रहता था । उस रात वह जानता था कि रनधीर और दीना ही वहाँ थे । उसने इंतजार किया और दीना के बाहर चले जाने के बाद विला के प्रवेश द्वार पर लगी डोरबैल बजाई । रनधीर ने यह सोचते हुए कि दीना वापस आ गया था प्रवेश द्वार खोल दिया । छोकरा लिफ्ट द्वारा ऊपर पहुंचा और दस्तक दी । रनधीर ने दरवाज़ा खोला तो छोकरे को सामने खड़ा पाया ।

किसी को गोली मारने का शायद उस छोकरे का वो पहला मौका था । उसने जिप गन से गोली चला दी । गोली रनधीर की गरदन में लगी...शायद रनधीर लड़खड़ाया और नीचे जा गिरा । लेकिन वह मरा नहीं । छोकरे ने यह देखा और बुरी तरह डर गया । दोबारा जिप गन में गोली डालकर चलाना तो दूर रहा वह इतना ज्यादा आतंकित था कि नगदी लूटना भी भूल गया और रनधीर को वहीं पड़ा छोड़कर वापस लिफ्ट में सवार होकर नीचे चला गया ।

उत्तेजना सी अनुभव करते जलीस ने उसके बाद के रनधीर और उस छोकरे के एक्शन्स को एक साथ सोचने की कोशिश की तो तस्वीर साफ नजर आने लगी ।

प्रत्यक्षतः, वह छोकरा उसी इलाके के किसी छोकरों के गैंग का मेम्बर था । रनधीर उसे पहचानता था और जानता था कि कहाँ वापस जाएगा । उसे रास्ते में ही पकड़ने के लिए रनधीर भी बाहर भागा और फायर एस्केप द्वारा पिछली गली में पहुँच गया । उसी गली में जिसमें कि अमोलक की हत्या कर दी जाने के बाद फरमान अली का पीछा करता हुआ उस रात जलीस पहुंचा था । रनधीर उस गली से गुजरकर उधर ही सड़क पर आते छोकरे को पकड़ना चाहता था । इस पूरे दौर में वह गरदन में बने सुराख को हाथ से दबाए रहा था ।

लेकिन उस गली से बाहर वह नहीं जा सका । संभवतया इन्टरनल हेमरेज ने उसकी जान ले ली और वह वहीं ढ़ेर हो गया ।

सडक पर रात में उस वक्त कोई चहल पहल नहीं थी । बस देर से घर लौटने वाले इक्का–दुक्का लोग ही वहाँ से गुजर रहे थे । उन्हीं में से एक माला सक्सेना थी । नशे की झोंक में चली जा रही माला की निगाह उस पर पड़ गई । इसका मतलब था, रनधीर गली के दहाने के एकदम पास पड़ा था इसीलिए उसे सड़क से आसानी से देख लिया गया । माला ने उसे देखा, पहचाना और उस पर थूक कर ख़ुशी ख़ुशी आगे बढ़ गई । वह जानती थी कि अब एक जबरदस्त हंगामा शुरु हो जाएगा ।

फिर प्रीतम वहाँ पहुंचा और रनधीर की घड़ी, पर्स वगैरा लेकर चम्पत हो गया ।

लेकिन इन दोनों की वजह से तस्वीर बदल चुकी थी ।

तभी कई प्रश्न एक साथ हथौड़े की तरह जलीस के दिमाग से टकराए ।

इस पूरे दौर में हत्यारा कहाँ था ? वह भागा क्यों नहीं ? क्या वह माला द्वारा उस इलाके में देख लिया गया था या हत्यारे ने सोचा कि उसे देख लिया गया था ?

उसे माला की हत्या नहीं करनी चाहिए थी । माला ने कभी भी उसके खिलाफ नहीं बोलना था । फिर भी माला की हत्या कर दी गई । इसका मतलब था, माला अचानक उसके लिए बड़ा भारी खतरा बन गई थी ।

क्यों ?

इसके जवाब में सर खपाने की बजाय उसने एक नई संभावना पर गौर किया हो सकता है, गली के दहाने में पड़ी लाश हत्यारे के घर या अन्य किसी ठिकाने के भी इतनी ज्यादा नज़दीक थी कि उसके साथ उसका रिश्ता जोड़ा जा सकता था । इसलिए हत्यारे ने लाश को वहाँ पड़ी रहने देने की बजाय उसे वहाँ से हटा देना में ही कुशलता समझी ।

हालांकि कद बुत के लिहाज से रनधीर का भार कम नहीं था लेकिन आतंक और किसी भी कीमत पर खुद को बचाने की स्थिति में कमजोर और बूढ़े व्यक्ति भी असाधारण कार्य कर गुजरते हैं, हत्यारा भी उस वक्त ऐसे ही दौर से गुजर रहा था । वह रनधीर की लाश उठाकर पिछली गली से फायर एस्केप के रास्ते वापस अपार्टमेंट में ले आया और ड्राइंगरूम में फेंककर चला गया ।

इस पूरी वारदात से ताल्लुक रखती एक डिटेल ने पुलिस को भी बेवकूफ़ बना दिया था । गोली लगने के बाद रनधीर की गरदन से काफी खून बहा था । अपने साथ हुई इस सर्वथा अनपेक्षित वारदात ने रनधीर को बेहद बौखला दिया होगा । बौखलाहट के उसी आलम में इधर–उधर जाने–आने की वजह से कमरे में जगह–जगह खून फैल गया था । उस हालत में कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि गोली लगने के बाद रनधीर बाहर गया था । और फिर उसकी लाश को उठाकर वापस उसी स्थान पर लौटा दिया गया था ।

एक 'जिप गन' । एक छोकरे की बचकाना ट्रिक । एक सीधा लेकिन नासमझी भरा हत्या का मामला और पूरे शहर में भयंकर खून खराबे का माहौल बन गया ।

बाहर से आती बोतल टूटने और गालियाँ बकने की आवाज़ों से जलीस को समझते देर नहीं लगी कि दारुवाला नशे में था ।

अपनी उस स्थिति में जलीस दरवाजे से, बाहर मौजूद दारुवाला को देख नहीं सकता था ।

दारुवाला रुका, पुनः गाली बकी और अंधेरे बैडरूम में आ गया । जलीस को लगा उसका अंतिम समय आ पहुंचा था ।

"साले दो टके के गुंडे और घटिया प्रिंसेज पैलेस क्लब ।" भन्नाए से दारुवाला ने कहा, अपने गिलास से एक घूँट लिया और बाहर निकलकर दरवाज़ा भड़ाक से बंद कर दिया ।

कितनी अजीब थी । जलीस ने सोचा । बरसों पहले का सिर्फ एक मामूली बेसमेंट क्लब लेकिन उसका प्रभाव कभी खत्म नहीं हुआ । लोग उसे कभी अपने दिमागों से नहीं निकाल पाए । प्रिंसेज पैलेस क्लब किसी का चाहे किसी भी रूप में संबंध रहा मगर क्लब जिंदगी भर के लिए उन पर हावी होकर रह गया था । इसकी वजह पुरानी यादें, जज्बात, बेफिक्री भरा जैसा माहौल था, उनके लिए जो बतौर मेम्बर उससे जुड़े थे या मेम्बरों के दोस्त थे । या फिर उसी इलाके में रहने की वजह से खुद को उससे अलग नहीं रख पाए थे । जबकि दारुवाला जैसे लोगों के लिए वो क्लब एक बेहद तल्ख तर्जुबा था । जिसने उन्हें जिंदगी भर रिसते रहने वाले जख्म दिए थे ।

जलीस को याद आया । उसने सोनिया से कहा था कि यह सारा मामला क्लब से ही जुड़ा हुआ था ।

अचानक उसके दिमाग में बिजली की भांति एक विचार कौंधा और सारी असलियत उसकी समझ में आ गई ।

सब कुछ उसके सामने था । सारे सिलसिले की कड़ियाँ इधर उधर बिखरी हुई थीं । कुछ उसके अपने पास थीं, कुछ सोनिया, विनोद महाजन, जयपाल यादव, दारुवाला और मिस्टर नायर के पास थीं । उन सबको सही जगह फिट करके वह पूरी चेन बनाने में कामयाब हो गया था ।

इस पूरे किस्से को अंजाम तक पहुंचाने का सही वक्त आ गया था ।

बिस्तर पर पड़े इमरान की साँसें भारी थीं और नाक धीरे–धीरे बज रही थी । वह गहरी नींद में था ।

चुपचाप पड़े जलीस ने अपनी कलाइयों के बंधनों पर जोर लगाना शुरु कर दिया ।

कई बार कोशिश करने के बाद आखिरकार वह अपने एक हाथ को मुक्त करने में सफल हो ही गया । हालांकि इस प्रयास में उसके हाथ के पृष्ठ भाग की चमड़ी छिल गई थी । लेकिन इसकी कोई परवाह उसे नहीं थी । उसने दूसरे हाथ पर लिपटी रस्सी खोल डाली । फिर बैठकर अपने पैर भी आजाद कर लिए ।

कुछ देर उसी तरह बैठा वह पहले अपने हाथों और फिर पैरों को मसलता रहा ।

बंधनमुक्त होने के अहसास ने उसके शरीर में नवीन उत्साह एवं शक्ति का संचार कर दिया । दर्द और दुखन के बावजूद वह स्वयं को सामान्य अनुभव करने लगा ।

वह धीरे धीरे उठा । करवट के बल सोए पडे इमरान की कनपटी पर बंद मुट्ठी का जोरदार प्रहार कर दिया ।

इमरान की नींद बेहोशी में बदल गई ।

उसी का रुमाल निकालकर उसके मुँह में ठूँसा । दोनों जुराबें उतारकर एक साथ बाँधी और उन्हें पट्टी की तरह कसकर उसके मुँह पर बाँध दिया । फिर रस्सी के एक ही टुकड़े के एक सिरे से उसकी कलाईयाँ और दूसरे सिरे से टखने आपस में मजबूती से बाँध दिए ।

तभी बाहर पहले टेलीफोन की घंटी की आवाज़ सुनाई दी फिर दारुवाला का स्वर सुनाई दिया–"हाँ...हाँ...मैं समझ गया ।" फिर नंबर डायल करने की आवाज़ के बाद पुनः स्वर कानों में पड़ने लगा–"मलखान सिंह ? ...तुम्हारे पास कितने आदमी है ?...हाँ, आठ काफी है । मिस्टर नायर ने तुम्हें फोन किया था ? ...ओह, तो तुम जानते हो कि इस मुहिम पर तुमने मेरे आदेशों का पालन करना है...नहीं, वहीं ठहरो । मैं खुद भी तुम्हारे साथ रहूँगा । इसलिए मेरे बिना मूव मत करना । उस इमारत के पास ही ठहरो मेरे वहाँ पहुँचते ही भीतर दाखिल हो जाना । सुलेमान पाशा को खत्म कर देना लेकिन लड़की को जिंदा ही पकड़ना है । हम सब कुछ उस इमारत के अंदर ही करेंगे ताकि बाहर कोई कुछ न सुन सके…नहीं, मेरे पहुंचने का पता तुम्हें लग जाएगा । मैं रेस्टोरेंट का लाल सफेद ट्रक लेकर आऊंगा । ट्रक को देखते ही इमारत की ओर बढ़ना शुरु कर देना । तुमने बस मेरे पहुंचने का इंतजार करना है, समझ गए...।"

उसने रिसीवर यथास्थान रखकर कहकहा लगाया । फिर गिलास जोर से रखा जाने की आवाज़ सुनाई दी और फिर उसके कदमों की आहट दरवाजे की ओर आने लगी ।

जलीस फौरन दरवाजे की आड़ में छुप गया । उसकी रिवॉल्वर अभी भी दारुवाला के पास थी ।

दरवाज़ा भड़ाक से खुला ।

दारुवाला ने अंदर आते ही बिस्तर की ओर मुंह कर लिया । विस्की का उस पर खासा असर था और रोशनी से एकदम अंधेरे में आ जाने की वजह से वह साफ नहीं देख पा रहा था । इसलिए वह समझ बैठा था कि बिस्तर पर जलीस पड़ा था और इमरान अलग कुर्सी में, जो कि उस स्थिति में उसके पीछे थी, पसरा सो रहा था ।

"तुम्हारा आखिरी वक्त आ पहुँचा, जलीस ।" वह चटखारा सा लेकर बोला–"जानते हो, मैंने तुम्हें अब तक जिंदा क्यों रखा ? इसलिए कि मैं तुम्हें बताना चाहता था, सोनिया का क्या अंजाम होगा । जानते हो पाशा उसे कहाँ ले गया है ? पुराने प्रिंसेज पैलेस क्लब की इमारत में । क्योंकि सोनिया जानती है, उस इमारत में ही कहीं रनधीर का वो 'पावर पैकेज' मौजूद है । और पाशा उसके जरिए उस पैकेज को हासिल करने वाला है । लेकिन उसे इस्तेमाल करने के लिए वह जिंदा नहीं रहेगा और न ही सोनिया जिंदा रहेगी । सोनिया को आसान मौत नहीं मिलेगी । उसे पहले मुझे बेवकूफ़ बनाने की कीमत भी चुकानी पड़ेगी–अपने जिस्म से ।"

दारुवाला के हाथ में जलीस की रिवॉल्वर थी ।

जलीस कुछ भी करने से पहले उसे बताना चाहता था कि सोनिया कुछ नहीं जानती थी । वह पाशा को सिर्फ इसलिए वहाँ ले गई थी क्योंकि पाशा पहले ही उससे कुछ कबूलवा चुका था । सोनिया को उसकी आखिरी बात, कि यह सारा सिलसिला प्रिंसेज क्लब से जुड़ा था, याद थी और मजबूरन उसने वही दोहरा दी थी ।

लेकिन कुछ भी कहने की बजाय जलीस ने भूत की भांति नि:शब्द आड़ से निकलकर अपने खुले हाथ का भरपूर प्रहार उसकी दाँयी कलाई पर कर दिया ।

दारुवाला के हाथ से रिवॉल्वर छूट गई । तभी जलीस ने एक वजनी घूँसा उसकी कनपटी पर जड़ दिया ।

दारुवाला त्यौराकर नीचे गिरा और होश गवाँ बैठा ।

रस्सी के दूसरे टुकड़े से जलीस ने इमरान की तरह उसे भी बाँध दिया । अपनी रिवॉल्वर उठाकर होल्सटर में रखी और बाहर आ गया ।

तभी कॉरीडोर में एक जोड़ी कदमों की आहट सुना दी ।

जलीस समझ गया, टोनी वापस आ गया था और उसके स्वागत के लिए तैयार हो गया ।

दरवाज़ा खोलकर अंदर आते ही अपनी ओर रिवॉल्वर तनी पाकर टोनी ठिठक गया । फिर लापरवाही से बोला–"मैने मिस्टर नायर से पहले ही कहा था कि तुम्हें खत्म कर देना चाहिए ।"

"अपनी पिस्तौल निकालकर, नीचे डाल दो, टोनी ।" जलीस ने आदेश दिया–"खबरदार । कोई चालाकी मत करना ।"

टोनी ने चुपचाप पिस्तौल निकालकर फर्श पर गिराई और पैर की ठोकर से जलीस की ओर खिसका दी ।

"उन दोनों को खत्म कर दिया ?" उसने पूछा और जलीस को जवाब न देता पाकर बोला–"ठीक है, मैं समझ गया । मुझे भी शूट कर दो ।"

"वे दोनों अंदर है ।"

टोनी मुस्कराया ।

"यानी वे दोनों जिंदा हैं ।" वह बोला–"शुक्रिया, दोस्त ।" और पलटकर दीवार की ओर मुंह कर लिया–"ओ. के., कम ऑन । आयम आल सो रेडी ।"

जलीस ने आगे बढ़कर रिवॉल्वर के दस्ते के नपे तुले प्रहार से टोनी को बेहोश करके उसी की बैल्ट और जुराबों की सहायता से उसके भी हाथ–पैर बांध दिए ।

 

* * * * * *

 

रेस्टोरेंट की इमारत के पिछवाड़े जलीस को लाल–सफेद ट्रक खड़ा मिल गया । चाबियाँ भी उसी में मौजूद थीं ।

जलीस इंजिन स्टार्ट करके उसे मेन रोड पर ले आया और पुराने प्रिंसेज क्लब की ओर दौड़ाने लगा ।

रात में उस वक्त सड़कों पर यातायात नाममात्र को ही था ।

मुश्किल से पंद्रह मिनट बाद वह गोविंदपुरी के इलाके में दाखिल हुआ ।

उस सड़क का नाम बेला रोड था । जिसके लगभग बीच में क्लब की इमारत थी । उसने ट्रक की स्पीड कम कर दी । ताकि दारुवाला के वे आठ आदमी, जिन्हें उसने फोन किया था, ट्रक को देखकर पहचान सकें । हालांकि इमारतों के साए में छिपे उन आदमियों को वह नहीं देख सकता था लेकिन वह जानता था कि वे आस–पास ही थे और ट्रक के पहुँचने का इंतजार कर रहे थे ।

क्लब की इमारत के सामने से गुजरते जलीस ने उधर निगाह डाली । किसी भी खिड़की में उसे न तो कहीं रोशनी नजर आई और न ही अन्य कोई ऐसा चिंह जिससे पता लगे कि अंदर क्या हो रहा था ।

उस ब्लॉक के आखिर में अपेक्षाकृत अंधेरे स्थान पर पहुंचकर उसने ट्रक पार्क करके इंजिन बंद कर दिया ।

उसे इंतजार नहीं करना पड़ा ।

सडक पार एक इमारत के साए से निकलकर एक मानवाकृति उसे उधर ही आती दिखाई दी ।

उसने अपनी रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली ।

आगंतुक ड्राइविंग सीट वाला दरवाज़ा खोलकर बोला–"पाशा के दोनों गनमैन अभी अंदर गए है । आप...।"

अचानक जलीस को पहचानकर वह झटका सा खाकर खामोश हो गया ।

जलीस ने फौरन रिवॉल्वर के दस्ते से उसकी खोपड़ी पर प्रहार करके उसे ऊपर खींच लिया । गनीमत थी कि वह आदमी भारी नहीं था और इस तरह उसे खींचने में ज्यादा दिक्कत पेश नहीं आई ।

उसके बेहोश शरीर को सीट पर डालकर जलीस ने खिड़की लॉक कर दी ।

उसे कम–से–कम दो घंटे से पहले होश नहीं आना था । दारुवाला ने आठ आदमी कहे थे लेकिन उस एक के कम हो जाने से अब वे सात रह गए । उसके साथी सोचेंगे कि कारणवश उसे ट्रक में ही रोक लिया गया था और वे इमारत की ओर बढ़ना शुरू कर देंगे ।

जलीस दूसरी साइड वाले दरवाजे से नीचे उतरा और तेजी से क्लब की इमारत के पिछवाड़े की ओर चल दिया ।

 

* * * * * *

 

बेसमेंट के पिछले दरवाजे के पल्ले में चौखट के साथ कीलें ठोककर तरलोचन सिंह ने उसे सचमुच स्थायी रूप से बंद कर दिया ।

उधर से अंदर दाखिल होने की कोशिश करना मूर्खता थी । दरवाज़ा तोड़ने में वक्त भी काफी लगना था और शोर भी बहुत होना था । इसलिए उस लफड़े में जलीस नहीं पड़ा ।

अंदर दाखिल होने का एक रास्ता और भी था । क्लब के शुरुआती दिनों में इमारत के बूढ़े मालिक ने बेसमेंट जलीस और रनधीर को दो सौ रुपए माहवार किराए पर दिया था । लेकिन उन दिनों में जब भी वे वक्त पर किराया नहीं दे पाते थे तो बूढ़ा बेसमेंट के दोनों दरवाजे अंदर से बंद कर दिया करता था ताकि वे भीतर दाखिल न हो सकें । तब वे चोरी से उसी रास्ते को इस्तेमाल किया करते थे ।

वो रास्ता वास्तव में एक खिड़की थी जो बेसमेंट में ही उस कोठरीनुमा कमरे में खुलती थी जिसे कोयले, लकड़ी वगैरा के अलावा बेकार और फालतू की चीजें रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था । खिड़की ग्रिल विहीन थी और उसके पल्ले में लगे काँच के आयताकार टुकड़ो में से दो टुकड़े उन दिनों जलीस द्वारा ही तोड़े गए थे । अंदर हाथ डालकर कुंडी खोलने के लिए ।

बरसों गुजर जाने के बाद भी जलीस को वे टुकड़े उसी तरह गायब मिले । उसने अंदर हाथ डालकर कुंडी खोली और पल्ला पीछे धकेल दिया ।

खिड़की खुल गई ।

सावधानी पूर्वक उससे गुजरकर अंदर पहुंचने के बाद उसने खिड़की पुन: बंद कर दी ।

अंदर घुप्प अंधेरा था । लेकिन जलीस उस स्थान के चप्पे–चप्पे से परिचित था । अंधों की तरह टटोलता हुआ सा वह दरवाजे पर पहुँचा । धीरे से उसे खोलकर वह दूसरी कोठरी में आ गया ।

दरवाज़ा पुनः बंद करके दीवार पर टटोलकर उसने लाइट स्विच ऑन कर दिया । धूल और मक्खियों की गंदगी जमे बल्ब की धुँधली सी रोशनी वहाँ फैल गई ।

कबाड़खाने जैसी हालत वाली उस कोठरी में हर तरफ धूल की मोटी चादर फैली हुई थी ।

जलीस की निगाहें एक दीवार के साथ खड़े आदमकद रैक पर जम गई । लकड़ी के उस रैक के नीचे चारों सिरों पर लोहे के छोटे–छोटे पहिए लगे थे । रैक के बीच वाले खाने में लगे मोटे फट्टे में एक हैंडल लगा था जिसे पकड़कर रैक को दीवार से अलग करके इधर–उधर ले जाया जा सकता था ।

हैंडल के सिरों पर तो धूल की मोटी परत जमी थी लेकिन बीच के चार–पाँच इंच के हिस्से पर धूल नहीं के बराबर थी ।

जलीस ने हैंडल पकडकर रैक को दीवार से दूर कर दिया ।

रैक के पीछे ठीक बीचों–बीच दीवार में एक छोटी अलमारी थी । जो रैक के दीवार से सटी होने की हालत में बिल्कुल नजर नहीं आती थी । वो अलमारी वास्तव में पुराने प्रिंसेज क्लब का शस्त्रागार थी ।

जलीस ने अलमारी खोली ।

दो चाकू, तीन कृपाण, दो पाइप के टुकड़े, चार मोटरसाइकिल की चेनें, दो जिप गनें और तीन बाईस कैलीबर की गोलियों के डब्बे अभी भी अलमारी के फर्श पर लगे लकड़ी के उतने की आकार के फट्टे पर सजे रखे थे । वे सब किशोर उम्र की यादगार चीजें थीं ।

लेकिन दोनों जिप गनों के पास तीसरी जिप गन रखी होने के स्पष्ट चिंह भी वहाँ मौजूद थे । किसी ने गोलियों का एक डब्बा भी खोला था । शायद यह जानने के लिए कि गोलियाँ गन में फिट आती थीं या नहीं और यह काम जल्दबाजी में किया गया लगता था ।

जलीस मुस्कराने पर विवश हो गया ।

पुराने प्रिंसेज पैलेस क्लब में हर एक के लिए कुछ था और वो 'कुछ' उन्हें हमेशा वहाँ वापस ले आता था ।

मसलन, अगर किसी व्यक्ति को गन की जरुरत पड़ती है तो वह सिगरेट के पैकेट की तरह बाजार से नहीं ले सकता था । उस हालत में तो यह काम और भी मुश्किल हो जाता है अगर जरूरत मंद व्यक्ति यह भी चाहे कि किसी को भी उस गन के बारे में पता नहीं चले । ऐसी हालत में उसके लिए एक ही सुरक्षित ठिकाना था–पुराने प्रिंसेज पैलेस क्लब का अस्त्रागार ।

किसी को यह बात अच्छी तरह याद थी ।

लेकिन अलमारी में एक गुप्त स्थान ऐसा भी था जिसे सिर्फ जलीस और रनधीर मलिक ही जानते थे । जहाँ वे अपनी सबसे कीमती चीजें रखा करते थे । जिनमें उनमें दिनों सबसे महत्वपूर्ण चीज थी–जलीस की रिवॉल्वर ।

लकड़ी के फट्टे के नीचे अलमारी का फर्श सिर्फ ईटों को आपस में सीमेंट से जोड़कर बना था और उसके नीचे आयताकार गड्डे की शक्ल में खाली स्थान था ।

जलीस ने फट्टे का बायाँ सिरा ऊपर उठाकर उस तरफ की पहली ईंट, जो शेष ईंटों से अलग थी, उठाकर बाहर निकाली और खाली स्थान में हाथ घुसेड़ दिया ।

उंगलियों पर चिकनी सी चीज का स्पर्श अनुभव करके उसने वो चीज बाहर निकाल ली ।

वो पॉलीथीन का एक मजबूत लिफाफा था ।

जलीस ने लिफाफा खोलकर अंदर मौजूद चींजे बाहर निकाली । लैटर्स, फोटो, डाक्युमेंट्स की फोटो कापियाँ और ओरिजिनल डाक्युमेंट्स ।

चीजें ज्यादा नहीं थीं लेकिन काफी थीं ।

रनधीर उनके दम पर अपनी हुक़ूमत आसानी से चला सकता था ।

वो पावर पैकेज था ।

सारे फसाद की जड़ ।

जिसकी वजह से पूरे स्थानीय अंडरवर्ल्ड में भयंकर खून खराबे का माहौल पैदा हो गया था । यही वो 'खजाना' था जिसने सिंडिकेट तक की नींद हराम कर दी थी और जिसे पाने के लिए पेशेवर गिरोहबंद बदमाश ही नहीं बल्कि राजनीतिबाज, आला अफसर और बिजनेसमैन तक मरे जा रहे थे ।

जलीस ने तमाम चीजें लिफाफे में डाली । लिफाफा वापस उसी तरह रखकर ईंट को पूर्ववत, जमाया और फट्टा सही ढंग से रख दिया । फिलहाल वही उसके लिए सर्वाधिक सुरक्षित स्थान था ।

अलमारी बंद करके उसने रैक भी पहले की भांति दीवार से सटा दिया ।

जलीस पुराने क्लब के मेन हाल में आ गया ।

लम्बा–चौड़ा कमरा...जगह–जगह फैली कुसियाँ और खाली पेटियाँ और एक खास जगह पर रखा बड़ा सा पुराना रेडियो । उन दिनों टी.वी. का आम प्रचलन नहीं था और बढ़िया रेडियो स्टेटस सिम्बल का दर्जा रखता था ।

कोने में टेलीफोन उपकरण रखा था । जो कि स्टेटस सिम्बल होने के साथ–साथ मौजूदा दौर में क्लब हाउस के लिए जरूरी जरुरत भी था ।

सहसा, ऊपर की मंज़िल पर कदमों की हल्की आहट के अलावा घुटी सी चीख भी सुनाई दी ।

स्पष्ट था कि सोनिया को टार्चर किया जा रहा था...उसे फौरन वहाँ पहुँचकर सोनिया को बचाना चाहिए । लेकिन जलीस जानता था कि इस वक्त जोश और जल्दबाजी से ज्यादा होश की जरुरत थी ।

यह आखिरी मौका था । अगर इस वक्त वह चूक गया तो बड़ी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती थी । उसका सब कुछ दांव पर लगा था । इससे भी बड़ी बात थी–शहर में अंडरवर्ल्ड और उससे जुड़े लोगों में बाकायदा खुलेआम जंग छिड़ जानी थी । जो वह किसी भी कीमत पर नहीं होने देना चाहता था ।

टेलीफोन उपकरण के पास आकर उसने रिसीवर उठाया 'डाइरेक्ट्री' इंक्वायरी का नंबर डायल करके आप्रेटर को जयपाल यादव का नाम–पता बताकर उसका फोन नंबर पूछा और उससे संबंध स्थापित किया ।

"जयपाल ?" वह धीमे स्वर में बोला ।

जवाब में यादव का स्वर लाइन पर उभरा ।

"हाँ ?"

"जलीस बोल रहा हूँ ।"

इस दफा यादव को नुक्ता–चीनी करता न पाकर जलीस समझ गया कि उसे गैस्ट हाउस में हुई अरमान अली और पीटर की हत्याओं और उस इमारत के पीछे गली में पड़ी सिंडिकेट के किलर की लाश के बारे में पता चल चुका था ।

"तुम्हारे लिए एक और स्कूप है, दोस्त ।" वह बोला–

"मैं कह चुका हूँ, मुझे तुम्हारी मेहरबानी नहीं चाहिए ।"

"वह मेहरबानी नहीं, बेहद धाँसू खबर की फर्स्ट हैंड जानकारी है ।

"बोलो ।"

"यह किस्सा खत्म हो गया । आर्गेनाइजेशन, सिंडिकेट वगैरा सबका सफाया होने वाला है ।" जलीस ने पूर्ववत धीमे स्वर में कहा–"मुश्किल से पाँच मिनट बाद एक गैगवार छिड़ने वाली है उसमें जो बचेंगे वे भी शहर से भागते नजर आएँगे । क्योंकि बाजी पूरी तरह मेरे हाथ में है । रनधीर का वो पावर पैकेज मुझे मिल गया है और मैंने उन सब सुअरों को पुराने वक़्तों की तरह खदेड़ना है ।"

"तुम हो कहाँ, जलीस ?"

"पुराने क्लब हाउस में । तुम अपना पैड और पेंसिल लेकर आ जाओ । यह तुम्हारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी कहानी होगी...वही कहानी जिसे लिखना तुम्हारी चाहत रही है...मेरे पुराने गैंग के बारे में ।

"जलीस...।"

"लेकिन पूरी अहतियात से आना । ऊपर सोनिया उन लोगों के कब्ज़े में है और पहले मुझे उसको छुड़ाना है । हो सकता है, तुम्हारी इकलौती ख़्वाहिश पूरी हो जाए । हो सकता है मैं सोनिया को छुड़ाने में कामयाब न हो पाऊं । इसलिए उसे संभालने के लिए किसी का यहाँ होना जरुरी है ।"

इससे पहले कि यादव कुछ कहता जलीस ने संबंध विच्छेद कर दिया । फिर कुछेक पल सोचने के बाद उसने 'डाइरेक्टरी इंक्वायरी' से फोन नंबर पूछकर इंस्पैक्टर जगतवीर सिंह को भी ताजा स्थिति की पूरी सूचना दे दी ।

रिसीवर यथास्थान रखते जलीस को पुनः ऊपर चीख सुनाई दी । वह अपनी रिवॉल्वर निकालकर दबे पाँव सीढ़ियों की ओर दौड़ गया ।

पहली लैंडिंग पर अंधेरे में पहले से ही पड़े एक मानव शरीर में उलझकर वह गिरता–गिरता बचा ।

उसने नीचे झुककर टटोला तो उस शरीर के पास पड़ी टार्च हाथ आ गई । उसने टार्च जलाकर उस पर रोशनी डाली और फिर टार्च बुझा दी ।

वह तरलोचन सिंह था और बेहोश था । उसके सर से अभी भी खून रिस रहा था ।

जलीस के लिए एक–एक पल कीमती था लेकिन बूढ़े और वफादार तरलोचन सिंह को इस तरह पड़ा वह नहीं छोड़ सकता था । उसे बाँहों में उठाकर जलीस नीचे दौड़ा और उसकी चारपाई पर डाल दिया ।

पुनः सीढ़ियाँ चढ़ते जलीस को मौजूदा तस्वीर अब और ज्यादा साफ नजर आने लगी । सुलेमान पाशा ने सोनिया सहित यहाँ पहुँचकर तरलोचन सिंह के सर पर किसी कठोर चीज से प्रहार करके उसे बेहोश कर दिया था । फिर सोनिया के साथ उसने पूरी इमारत का चक्कर लगाया होगा । फिर जब सोनिया कोई करामद जानकारी नहीं दे सकी तो उसने अपने दोनों गनमैन को फोन करके बुला लिया । उसके गनमैन हालांकि सही हालत में नहीं होने थे फिर भी एक लड़की को टार्चर करके उसकी ज़ुबान खुलवाने के मामले में पाशा के मुकाबले में वे कहीं ज्यादा बेहतर थे । पाशा कठोर और निर्दयी तो था लेकिन वह सिर्फ हुक्म दे सकता था । किसी को टार्चर करने लायक हौसला उसमें नहीं था ।

अब स्थिति यह थी कि सात आदमियों का गैंग तीन आदमियों के गैंग को ढूँढ रहा था । कुल मिलाकर दस गनें, अगर पाशा के पास भी गन थी, उस अकेले के मुकाबले परे थीं और फिलहाल सोनिया की जान दाँव पर लगी थी ।

पहली मंज़िल पर पहुँचते ही जलीस ने पुनः चीख सुनी । फिर अन्य आवाजें भी सुनाई दी । वे टॉप फ्लोर पर थे । साथ ही वह समझ गया कि अब तक इमारत में दाखिल हो चुके वे सातों भी इस बात को समझ गए होंगे ।

लेकिन उन सातों के मुकाबले में उसका पलड़ा ज्यादा भारी था । क्योंकि इमारत के भूगोल की जानकारी उनसे ज्यादा उसे थी । वहाँ के इंच–इंच भाग से परिचित जलीस जानता था कि कौन सा मोड़ कितनी दूरी पर जाकर कहाँ खत्म होता था । यह भी जानता था कैसे खिड़की से गुजरकर पुराने फायर एस्केप के बचे खुचे ऊपरी हिस्से पर पहुँचा जा सकता था और अगर रिस्क लिया जाए तो उसके द्वारा ऊपर भी जाया जा सकता था ।

उसने फायर एस्केप वाला रास्ता ही चुना ।

बुरी तरह जंग खाए लोहे में अभी भी मज़बूती बाकी थी वरना वो ढाँचा बहुत पहले ही टूटकर नीचे गिर चुका होता ।

जलीस उस खिड़की तक पहुँचने में कामयाब हो गया जिसकी उसे तलाश थी । बरसों बाद भी । खिड़की आसानी से खुल गई । इससे जाहिर था कि तरलोचन सिंह मेहनती और कुशल केयर टेकर था ।

खिड़की से गुजरकर वह उस खंड के पृष्ठभाग वाले अंधेरे गलियारे में आ गया ।

पास ही एक अधयुला दरवाज़ा और उसकी बगल में खुली खिड़की थी । दोनों उसी बड़े हाल में खुलते थे जिसमें सुलेमान पाशा अपने गनमैन और सोनिया सहित मौजूद था । हाल में रोशनी थी लेकिन उस दरवाजे और खिड़की तक नहीं पहुंच पा रही थी ।

जलीस ने अहतियातन स्वयं को आड़ में रखते हुए खिड़की से अंदर देखा ।

कोई आठ–दस फुट दूर सोनिया फर्श पर पड़ी थी बाल बिखरे हुए और कपड़े अस्त–व्यस्त । लेकिन होश में थी उसके पास टाँगे चौड़ी किए शंकर, जिसकी बाँह में जलीस ने गोली मारी थी, अपनी पट्टियों में लिपटी बाँह को एक अन्य पट्टी की सहायता से गले में लटकाए खड़ा था । उसने अपनी सही हाथ पर चमड़े का दस्ताना चढ़ाया ताकि सोनिया को चोट पहुँचाते वक्त उसकी उंगलियों में चोट न आ सके । उससे थोड़े से फासले पर खड़ा एक अपरिचित उत्सुकता पूर्वक उन दोनों को देख रहा था । उन सबसे तनिक अलग पाशा सर झुकाए खड़ा था । खिड़की की तरफ उन तीनों की पीठ थी ।

जलीस ने अपना दायाँ हाथ धीरे–धीरे ऊपर उठाया ताकि रिवॉल्वर से शंकर के सर के पृष्ठ भाग को निशाना बना सके । उसके फौरन बाद वह पाशा और उस तीसरे को शूट कर देना चाहता था ।

शंकर द्वारा सोनिया को ठोकर ज़माने के लिए पैर उठाया जाता देखकर जलीस की उंगली ट्रीगर पर कसनी शुरू हो गई ।

तभी कोई चीखा और पाशा दूर हाल के सिरे पर बने दरवाजे की ओर पलट गया ।

"कौन था वह ?"

"लाइट बंद करो ।" शंकर चिल्लाया ।

पाशा ने लपककर स्विच ऑफ कर दिया ।

हाल में गहरा अंधेरा छा गया ।

उन्होंने दरवाज़ा अंदर से लॉक कर रखा था । उस पर बाहर से गोलियों की बौछार छोड़ी गई ।

पाशा चिल्लाकर दूर दूसरे सिरे की और दौड़ा । लेकिन बाकी दोनों की तरह वह पेशेवर नहीं था । उन दोनों ने दरवाजे की दिशा में एक–एक फायर करके भागकर फर्नीचर के पीछे आडलेली ।

मैदान साफ था । वे तीनों सोनिया को भूलकर इस नई विपत्ति की फिक्र कर रहे थे ।

मौका चूकना मूर्खता थी । जलीस ने रिवॉल्वर होल्सटर में रखा और अधखुले दरवाजे को खोलकर चौपायों की तरह अंदर रेंग गया ।

कुछेक सैकेंडों में ही वह फर्श पर पड़ी सोनिया के पास पहुँच गया ।

तभी बाहर से पुनः गोलियों की बौछार की गई । लॉक टूट गया । दरवाजे का पल्ला अंदर धकेला गया और कोई रोशनी के लिए चिल्लाया ।

"सोनिया" | जलीस फुसफूसाकर बोला–"मैं हूँ जलीस । मेरे साथ आओ ।"

उसकी आवाज़ पहचान गई सोनिया ने राहत की गहरी साँस ली और जलीस के साथ कोहनियों और घुटनों के बल रेंगने लगी ।

उसी दरवाजे से गुजरकर दोनों पिछले गलियारे में आ गए ।

हाल में लगातार गोलियाँ चल रही थीं और दीवारों, फर्नीचर वगैरा से टकरा रही थीं । किसी ने चीखना शुरू किया और चीखता ही चला गया ।

"तुम ठीक हो ?" जलीस ने पूछा ।

"हाँ ।" सोनिया ने जवाब दिया–"मेरे साथ ज्यादा मार पीट नहीं कर पाए ।"

"हमें फायर एस्केप से एक फ्लोर उतरकर इन लोगों से बचना होगा ।

"ठीक है ।"

जलीस ने पहले उसे खिड़की से गुजारकर फायर एस्केप पर पहुँचाया फिर खुद भी पहुँच गया ।

सावधानी पूर्वक सोनिया सहित सीढ़ियाँ उतरता जलीस मन ही मन दुआ कर रहा था कि उनके भार से फायर एस्केप टूटकर नीचे न जा गिरे ।

उसकी दुआ कबूल हुई और वे सकुशल निचले खंड पर पहुँच गए ।

ऊपर फ़ायरिंग तनिक रुकी फिर पुनः आरंभ हो गई ।

वे दोनों सीढ़ियों द्वारा पहले खंड पर पहुंचे ही थे कि ऊपर से सीढ़ियों पर नीचे भागते कदमों की आहटें सुनाई दी । जलीस सोनिया का हाथ थामें उस खंड के पृष्ठ भाग वाले गलियारे की ओर बढ़ गया । वहाँ एक और सीढ़ियाँ थीं जो सीधी बेसमेंट तक जाती थीं ।

टॉप फ्लोर से कोई चिल्लाया कि तीनों मारे गए और अचानक फायरिंग रुक गई । एक आवाज़ ने बताया कि शंकर मिल गया । दूसरी आवाज़ ने पाशा की लाश मिल जाने की घोषणा की फिर तीसरी लाश मिलने की भी घोषणा कर दी गई ।

सोनिया को वहाँ न पाकर वे दौड़कर पिछले गलियारे में पहुँचे और समझ गए कि वह कहाँ से खिसकी थी । लेकिन अभी भी यही समझ रहे थे कि वह अकेली ही थी । फिर किसी ने तीव्र स्वर में आदेश दिया और सीढ़ियों पर नीचे भागते कदमों की आहटें सुनाई देने लगीं ।

जलीस और सोनिया तब तक नीचे बेसमेंट में पुराने क्लब रुम में पहुँच चुके थे ।

तभी अचानक सड़क पर पुलिस साइरनों की आवाज़ गूँजी और प्रतिपल तेज होती चली गई ।

ऊपर सीढ़ियों से नीचे आती भागते कदमों की आहट एकदम रुक गईं । वे भी साइरनों की आवाजें सुन चुके थे और समझ गए कि पुलिस ने इमारत को घेर लिया था ।

जलीस और सोनिया, कोठरी से बाहर आ रही मरियल सी रोशनी में खड़े हाँफ रहे थे ।

पुलिस प्रवेश द्वार तोड़कर भीतर दाखिल हुई और फ़ायरिंग पुनः शुरु हो गई । ऊपर मौजूद सभी लोग पेशेवर बदमाश थे और वहीं पड़ी पाशा और उसके साथियों की लाशों की वजह से उन्होंने पुलिस का मुकाबला करते हुए भागने की नाकाम कोशिश करनी थी । क्योंकि आत्म समर्पण करके लम्बी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के बाद कानून द्वारा फाँसी चढ़ाए जाने के मुकाबले में ऐसा करना कम यातनापूर्ण था ।

"जलीस..." सोनिया पीड़ित स्वर में बोली ।

जलीस उसका आशय समझ गया ।

"मैने किसी को शूट नहीं किया है ।"

सोनिया ने अपने हाथों में उसका चेहरा थामकर नीचे झुकाया और होंठों पर चुंबन अंकित कर दिया ।

जलीस ने नोट किया, उसके हाथों में कंपन था और होंठ सर्द थे ।

"मुझे बताओ, प्लीज...मैं कुछ नहीं समझ पा रही हूँ ।" वह बोली–"पाशा मेरे पास आया था और मुझसे वो कबूलवाया जो तुमने कहा था । उसने एक डायरी दिखाते हुए यह भी बताया था कि शहर में इस ढंग से फसाद कराएगा कि बाद में सारा इल्जाम तुम पर मढ़ा जा सके ।"

जलीस ने उसके कंधे सहलाए ।

"मैं जानता हूँ, उसने क्या किया था ।"

"वह समझ रहा था कि मैं सब जानती हैं ।"

"वह गलत समझ रहा था ।"

ऊपर से अब स्टेनगनें चलने और सीटियों की आवाजें आ रही थी । साथ ही जगतवीर सिंह अधिकारपूर्ण स्वर में सरेंडर की चेतावनी भी दे रहा था । बाहर से आते साइरनों के शोर से जाहिर था कि और पुलिस फोर्स आ पहुंची थी और पूरे ब्लॉक को घेर लिया गया था ।

"मैंने जयपाल को फोन कर दिया था ।" जलीस बोला–"वह भी यह सारा तमाशा देख रहा होगा । ऐसा नज़ारा उसने कभी नहीं देखा होगा ।"

"लेकिन...वह तुमसे नफरत करता है ।"

"वह हर एक से नफरत करता रहा है ।" जलीस ने कटुतापूर्वक कहा ।

"क्या मतलब ?"

"पहले तुम बताओ कि क्या रनधीर के साथ तुम्हारी एंगेजमेंट हो गई थी या होने वाली थी ?"

सोनिया ने उससे अलग हटकर खोजपूर्ण निगाहों से उसे देखा ।

"नहीं, जलीस । ऐसा कुछ नहीं था । रनधीर ने मुझसे कहा जरुर था लेकिन मैने इंकार कर दिया । तुम तो जानते हो, मैं क्या करने की कोशिश कर रही थी ।"

"उस बात की जानकारी उसे नहीं थी । तुम्हारे इंकार को भी उसने सीरियसली नहीं लिया । वह समझता था कि तुम उसे प्यार करती हो । वह एक बहुत बड़ी पार्टी में सरप्राइज के तौर पर सबके सामने यह घोषणा करने वाला था कि तुम दोनों शादी करने वाले हो ।"

"लेकिन मेरी मर्जी के बगैर वह ऐसा कैसे...।"

"वह दिमागी तौर पर मेध्योर नहीं था ।" जलीस उसकी बात काटकर बोला–"याद करो...उसका सोचने का ढंग अभी भी वैसा ही था जैसा कि पुराने 'प्रिंसेज पैलेस' के दिनों में हुआ करता था । तुम उसके काफी नज़दीक आ गई थीं इसी से वह समझ बैठा कि तुम सिर्फ उसकी ही हो ।"

"वह पागल था । मैंने कभी...।"

"क्या तुमने जयपाल को बताया था कि रनधीर ने तुम्हारे साथ शादी करने के लिए कहा था ?"

"हाँ, बताया था । लेकिन...।"

ऊपर अब फ़ायरिंग और तेज हो गई थी ।

अचानक बुरी तरह चौंक गई सोनिया घोर अविश्वासपूर्वक उसे देखने लगी । जलीस के प्रश्न का वास्तविक आशय वह समझ गई थी लेकिन उस पर यकीन नहीं कर पा रही थी ।

"तुम्हारा मतलब है, जयपाल ही...नहीं ।"

"यह असलियत है, सोनिया । तुम्हारा भाई ही सारे फसाद की जड़ है ।"

"मेरा भाई वह नहीं है । मेरी माँ उसकी माँ की मुँहबोली बहन थी । इस नाते मैं तो उसे भाई कहकर पुकारती हूँ । लेकिन उसने कभी मुझे बहन नहीं कहा । हमेशा मेरा नाम ही लिया करता है ।"

सोनिया की इस बात ने सारी तस्वीर पूरी तरह साफ कर दी ।

"वह तुम्हें इसलिए बहन नहीं कहता क्योंकि शुरु से ही तुम्हें प्यार करता है ।"

"ओह नो", सोनिया ने उसके सीने से चेहरा सटा लिया ।

"यह एक कड़वा सच है जिसे जयपाल कभी जाहिर नहीं कर पाया । वह हम सबसे नफरत करता रहा है । लेकिन उसकी इस नफरत की बुनियाद भी इसी सच पर रखी गई थी । क्योंकि बरसों पहले, लड़कपन में ही मैंने तुम्हें पा लिया था और वह इसे जान गया था । वह शुरु से ही तुम्हें अपने लिए चाहता था । इसलिए यह असलियत काँटे की तरह उसके मन में गड़कर रह गई । वक्त़ गुजरने के साथ–साथ इस काँटे की चुभन भी बढ़ती गई और नफरत के रुप में प्रगट होती रही । हर पल नफरत से सुलगता रहने की वजह से उसकी पूरी जिंदगी नफरत की भेंट चढ़कर रह गई । तुम्हारी तरह वह भी गोविंदपुरी के इस इलाके से दूर जा सकता था लेकिन वह यहीं बना रहा । सिर्फ इसलिए ताकि उन सब चीजों को अपनी नफरत की आग में जला सके जिन्होंने तुम्हें उससे दूर कर दिया था....जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं तो बरसों पहले यहाँ से चला गया था । मगर नफरत की आग में जलता जयपाल मानसिक रुप से असामान्य होना आरंभ हो चुका था । वह दूसरी चीजों को अपनी नफरत का निशाना बनाने लगा । वह सबको निशाना बना सकता था–मुझे और रनधीर को छोड़कर । क्योंकि मैं तो यहाँ था नहीं और रनधीर उसकी पहुँच से दूर एक ऊँचे मुकाम पर पहुँच चुका था । फिर जब तुम रनधीर के बहुत ज्यादा करीब आ गई तो उसके लिए यह बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो गया । और फिर जब तुमने बताया कि रनधीर तुमसे शादी करना चाहता था तो वह सचमुच वक्ती तौर पर पागल हो गया–पूरा पागल । उसके दिमाग में बस एक ही बात गड़कर रह गई–रनधीर को कैसे खत्म किया जा सकता था । उसके पास गन नहीं थी लेकिन हमारे पुराने क्लब से जुड़ा होने की वजह से वह जानता था उन दिनों हम अपने हथियार कहाँ रखा करते थे । वह उस जगह पहुँचा और अलमारी खोल कर एक जिप गन और कुछ गोलियाँ निकाल ली ।" उसने तनिक रुककर पूछा–"जिस रात रनधीर की हत्या हुई, उससे कितने रोज पहले रनधीर ने तुमसे शादी करने के बारे में कहा था ?"

"दो रोज पहले ।"

"और तुमने जयपाल को इस बारे में कब बताया था ?"

"अगले रोज ।"

"इसका मतलब है, जयपाल को रनधीर द्वारा दी जाने वाली पार्टी और उसमें की जाने वाली घोषणा के बारे में पता चल गया था ।"

"यह तुम कैसे कह सकते हो ?"

"इसलिए कि जब दारुवाला को इस बात की जानकारी थी तो जयपाल को भी जरुर कहीं से पता चल गया होगा । आखिरकार वह एक रिपोर्टर है । उसे यह भी जरुर पता होगा कि उस रात उस वक्त रनधीर 'फ्रेंडस विला' में अकेला था । इसलिए मौके का फायदा उठाकर वह वहाँ पहुँचा और रनधीर को जो कि उस वक्त दीना का इंतजार कर रहा था, शूट करके वहाँ से भाग खड़ा हुआ । लेकिन रनधीर गोली लगते ही नहीं मर गया था । वह जानता था, जयपाल भागकर कहाँ जाएगा । उसे पकड़ने के लिए फायर एस्केप के जरिए वह पिछली गली में जा पहुँचा और गली के सिरे पर पहुँचकर दम तोड़ दिया । तभी जयपाल भी सड़क पर गली के सामने से गुजरा । वह अपने परमानेंट और सुरक्षित ठिकाने 'फ्रांसिस के कैफे' की ओर भाग गया । लेकिन उसे पता चल चुका था कि रनधीर ने उसका पीछा किया था । धीरे धीरे यह विचार उसे आतंकित करने लगा कि कोई भी उस वारदात से उसका रिश्ता जोड़ सकता था । बेहद आतंकित जयपाल ने तब एक ऐसा काम किया जो सामान्य हालत में उसके लिए नामुमकिन था । रनधीर की लाश को उठाकर उसने फायर एस्केप के रास्ते से वापस अपार्टमेंट में पहुँचाया और वहाँ से गोल हो गया । नफरत से पागल हो गए जयपाल ने तो इस तरह रनधीर की हत्या करके अपने दिमागी जुनून से निजात पा ली । लेकिन उसकी इस हरकत ने एक और खौफनाक सिलसिले की शुरुआत कर दी । रनधीर मर गया तो मुझे यहाँ आना पड़ा । मगर उससे पहले ही, रनधीर के मरते ही उसकी हुक़ूमत खासतौर पर 'पॉवर पैकेज' पर कब्ज़ा करने के लिए बाक़ायदा खुलेआम जंग छिड़ने के हालात पैदा हो गए थे । वो ताक़तें भी मैदान में आ गई थीं जिनके अस्तित्व तक की जानकारी जयपाल को नहीं थी । अपने पागलपन में उसने एक बार भी नहीं सोचा कि वह क्या कर चुका था ।"

ऊपर फ़ायरिंग अभी भी जारी थी ।

"यह सही है कि पहली हत्या उसने पागलपन के दौर में ही की थी ।" जलीस ने कहा–"लेकिन दूसरी हत्या करते वक्त वह पूरे होशो–हवास में था ।"

"दूसरी हत्या ?" सोनिया चौंकी ।

"हाँ । माला सक्सेना की हत्या भी जयपाल ने ही की थी ।"

"नहीं ।"

"यह सच है, सोनिया और यह भी कि उस वक्त वह पूरे होश में था और जानता था कि क्या कर रहा था । जब मैंने उसे बताया कि माला ने रनधीर की लाश पर थूका था तो वह डर गया और यह जानने पर कि प्रीतम ने रनधीर की लाश से उसकी घड़ी और पर्स पार कर लिए थे उसके छक्के ही छूट गये । इसका उसने एक ही नतीजा निकाला कि उन दोनों ने उसे वहाँ से भागते या लाश को वापस ले जाते देख लिया था । उस वक्त उसे एक ही हथियार उपलब्ध था–बोतल । उसी से उसने माला की खोपड़ी कूट डाली और मुझ पर भी घातक हमला कर दिया । शुरु में इस ओर कोई ध्यान मैंने नहीं दिया । यह सीधी सीधी एक अनाड़ी द्वारा की गई हत्या की वारदात थी जबकि मैं दूसरे लोगों को इसका क्रेडिट देता रहा ।"

"लेकिन माला...।"

"उस वक्त जयपाल पर पागलपन सवार नहीं था, सोनिया । वह उन लोगों को रास्ते से हटा रहा था जिनके बारे में उसे डर था कि उनकी वजह से रनधीर की हत्या का आरोप उस पर लगाया जा सकता था । मैं दावे के साथ कह सकता हूँ अगर प्रीतम की सर कटी या गला कटी लाश अभी तक नहीं मिली है तो जल्दी ही मिल जाएगी । जयपाल सारे दाँव पेच जानता है । अब वह खुद को सुरक्षित समझने की भूल कर रहा है ।"

सहसा, पिछली कोठरी से जयपाल का स्वर उभरा ।

"नहीं, जलीस । इतना बेवकूफ़ मैं नहीं हूँ ।"

उन दोनों को वह दिखाई तो नहीं दिया लेकिन स्वर से बहशीपन साफ झलक रहा था ।

उसका हाथ दरवाजे की आड़ से बाहर निकला जिसमें जिप गन थमी थी ।

जलीस समझ गया जयपाल ने पहले उसे खत्म करके सोनिया को भी खोपड़ी कूटकर आसानी से ठिकाने लगा देना था और फिर दोनों हत्याओं की सही सफाई भी उसने पेश कर देनी थी ।

जिप गन का रुख सीधा जलीस के सर की ओर था और फ़ासला इतना कम था कि निशाना चूकने की कोई गुंजाइश नहीं थी ।

ऊपर अचानक फ़ायरिंग रुक गई । सीढ़ियों पर कदमों की आहटें...और ऊंची आवाज़ों में लाशों की गिनती की जाती सुनाई दे रही थी ।

कुछेक पुलिसमैन सावधानी पूर्वक नीचे आ रहे थे । किसी को वो दरवाज़ा भी मिल गया था जिससे सीधा पुराने क्लब में पहुँचा जा सकता था ।

जयपाल जानता था कि पुलिस के पहुँचते ही उसका खेल खत्म हो जाना था और जलीस जानता था कि पुलिस पहुँचने का इंतजार करने का मतलब था–उसकी और सोनिया की मौत ।

प्रत्यक्षतः जयपाल पर एक बार फिर वही पागलपन सवार था ।

अचानक सोनिया ने जलीस की बाँह दबाई । भयभीत होने की बजाय उसे निश्चिंत पाकर जलीस चकराया फिर उसका इरादा भांप गया । वह खुद को उसके और जिप गन के बीच में लाकर उसे बचाना चाहती थी ।

जलीस ने फौरन उसे पीछे धकेल दिया ।

"तुम्हारा आखिरी वक्त आ गया, जलीस ।" जयपाल बोला । उसका स्वर तनावपूर्ण था–"तुम भी उन तीनों के पास पहुँचने वाले हो ।"

जलीस का हाथ अपनी बैल्ट पर पहुंच चुका था । अब वह जयपाल को सामने लाना चाहता था ।

"तीनों ? यानी रनधीर, माला और प्रीतम ?"

"हाँ ।"

"तुम पागल हो, जयपाल ।"

"हूँ नहीं, था । अब मैं खुद को बचा रहा हूँ ।"

"तुम अभी भी पागल हो ।"

"नहीं ।"

"तुम नहीं बचोगे । क्योंकि पागलपन में एक बहुत बड़ी बात को भूल रहे हो ।"

"कौन सी बात ?"

जलीस हँसा ।

"तुम्हारे हाथ में जो खिलौना है उससे इस तरह आड़ में रहकर निशाना नहीं लगाया जा सकता, पागल ।"

अगले ही पल किसी अनाड़ी की तरह चीखता हुआ वह बाहर आ गया उसी जिप गन को ताने जिससे उसने रनधीर की हत्या की थी । उसी से अब जलीस की जान लेना चाहता था । लेकिन असलियत को भांप गई सोनिया चीख पड़ी । जलीस ने रिवॉल्वर निकालकर जयपाल पर फायर झोंक दिया । गोली उसके माथे को फाडती हुई गुजर गई । उसका बेजान शरीर नीचे जा गिरा । लेकिन जिप गन अभी भी उसके हाथ में थी ।

सोनिया अपना चेहरा हाथों में छुपाए रो पड़ी । जयपाल के लिए नहीं । जलीस द्वारा रिवॉल्वर इस्तेमाल की जाने की वजह से उसके अंजाम को सोचकर ।

पुलिस की सीटियाँ गूँजी । सीढ़ियों पर सर्तकता पूर्वक नीचे आते कदमों की आहटें सुनाई देने लगी ।

"इंस्पैक्टर, जगतवीर सिंह ।" जलीस ने हाँक लगाई–"किस्सा खत्म हो गया । यहाँ सिर्फ मैं और सोनिया है ।"

सीढ़ियों पर धड़धड़ाहट हुई । कई आदमी तेजी से नीचे आ गए ।

इंस्पैक्टर जगतवीर सिंह के पीछे उसके कई मातहत भी थे । इंस्पैक्टर के चेहरे पर मुस्कराहट थी । उसके संकेत पर सभी मातहतों ने अपनी गनें नीचे कर ली ।

"वैलडन, माई फ्रेंड ।" जगतवीर सिंह बोला–"नाऊ कीप यूअर सर्विस रिवाल्वर बैक, इंस्पैक्टर जलीस खान ।"

जलीस ने रिवाल्वर वापस होल्सटर में रख ली ।

"खुश हो, इंस्पैक्टर ?" उसने मुस्कराते हुए पूछा ।

"मैं इतना ज्यादा खुश हैं कि अपने चेहरे का हुलिया बिगड़वाने का भी कोई अफसोस मुझे नहीं है ।" जगतवीर सिंह हँसा–"तुमने वाकई कमाल कर दिखाया । एक ऐसा कमाल जिसे सिर्फ तुम ही कर सकते थे, इंस्पैक्टर जलीस खान ।"

उसके मातहत है रानी से मुँह बाए खड़े थे ।

सोनिया घोर अविश्वासपूर्वक अपलक जलीस को देखे जा रही थी ।

"य...यह...सच है ?" वह फँसी सी आवाज़ में बोली ।

"सौ फीसदी सच है, मैडम ।" जगतवीर सिंह ने कहा–"दूसरा सच यह है कि फिलहाल इस शहर में अंडरवर्ल्ड और सिंडिकेट तक की कमर टूट गई है ।"

"एक सच और भी है, सोनिया ।" जलीस बोला ।

"क्या ?"

"अब हम दोनों को कोई जुदा नहीं कर सकता ।" जलीस ने मुस्कराते हुए कहा और उसे खींचकर सीने से लगा लिया ।

सोनिया एतराज करने की बजाय उसकी बाँहों में सिमट गई ।

 

* * * * * *

समाप्त