देवराज चौहान ने खुद को संभाला ।


मोना चौधरी जिस हालत में उसके सामने मौजूद थी, वह वास्तव में हैरान कर देने वाली बात थी । दो पल में ही उसने महसूस किया कि वो भारी खतरे में है। मोना चौधरी के चेहरे के भाव स्पष्ट बता रहे थे कि वो अब इस स्थिति में ज्यादा देर नहीं रह सकती ।


देवराज चौहान के होठों पर मध्यम-सी मुस्कान उभरी।


"हैलो ।" देवराज चौहान ऊंचे स्वर में बोला--- "मुझे नहीं मालूम था कि जिस 'ताज' को हमने हासिल करना है वो इस मगरमच्छ के पेट में है। जहां तुम जाने वाली हो ।"


"तुम भी आ जाओ । ले लो ताज ।" मोना चौधरी का थका स्वर उसके कानों में पड़ा । "मेहरबानी ।" देवराज चौहान ने कहा--- "मगरमच्छ के पेट में हाथ डालकर, ताज निकालने का मेरा कोई इरादा नहीं है। ऐसी हिम्मती काम तुम्हें ही मुबारक हो ।"


"म्याऊं।"


देवराज चौहान के पांवो के पास खड़ी बिल्ली ने जैसे अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाया ।


मोना चौधरी की निगाह बिल्ली की तरफ गई ।


काली बिल्ली की चमकदार आंखों से मोना चौधरी की आंखें टकराई ।


बिल्ली ने पूंछ हिलाई । उसके दोनों कान हिले । जैसे खुश हो रही हो ।


काली बिल्ली की आंखों से आंखें टकराते ही मोना चौधरी के मस्तिष्क में बिजली की तीव्र लहरें दौड़ी । लगा जैसे मस्तिष्क में तूफान उठ खड़ा हुआ हो । चीखों-पुकार उसके कानों में पड़ी, फिर एकाएक सब कुछ सामान्य हो गया।


मोना चौधरी को समझ नहीं आया कि अभी दो पल पूर्व उसे क्या हुआ था ? वो कैसी चीखों-पुकार थी जो उसके कानों में पड़ी थी और फिर गुम हो गई।


मोना चौधरी ने इन सब विचारों को मस्तिष्क से निकाला फिर सिर नीचे करके मगरमच्छों को देखा उसके बाद उसकी नजरें देवराज चौहान पर जा टिकी


देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव थे ।


"अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें बचाने की कोशिश करूं ।" देवराज चौहान ने कहा । 


"मेरे चाहने या न चाहने से कोई बात नहीं है । मुझे यहां से निकालने में तुम्हें कोई तकलीफ न हो तो, बेशक मुझे निकाल सकते हो । लेकिन याद रखना, ताज मैं ही हासिल करके रहूंगी।"


देवराज चौहान के होठों पर शांत मुस्कान उभरी।


"मैं ताज की बात नहीं कर रहा । मैं तो तुम्हें इंसानियत के नाते बचाने को कह रहा हूं । तुम्हारा मारा जाना मुझे इसलिए रास नहीं आएगा कि, उस हालत में मेरे लिए 'ताज' बैकार हो जाएगा। जब तक कोई एक ताज हासिल नहीं कर लेता, तब तक जीतने के लिए दोनों का जिंदा रहना जरूरी है।"


मोना चौधरी की निगाह देवराज चौहान पर टिकी रही ।


नीचे बैठी बिल्ली चमकती निगाहों से मोना चौधरी को देखे जा रही थी। फिर उसने सिर उठाकर पास खड़े देवराज चौहान को देखा ।


"म्याऊं ।"


जैसे काली बिल्ली देवराज चौहान से कह रही हो कि वो मोना चौधरी को बचाए । देवराज चौहान ने जेब से बेला का दिया लकड़ी का टुकड़ा निकाला और खुली हथेली पर रखा ।


"मोना चौधरी को बचाना है ।" देवराज चौहान बुदबुदाया।


अगले ही पल हथेली में रखा, लकड़ी का छोटा-सा टुकड़ा उछला और कमरे के बीच में जा गिरा । दूसरे ही पल वहां काफी लंबा, मोटा-सा रास्ता पड़ा नजर आने लगा । देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े । वो आगे बढ़ा और रस्सा उठाकर वापस दरवाजे पर पहुंचा । उसके हाथों में रस्सा देखकर, मोना चौधरी की आंखों में आशा भरी चमक उभरी।


देवराज चौहान ने उस लंबे रास्ते का एक कोना बाएं हाथ में रखा और दाएं हाथ से रास्ते का दूसरा कोना पकड़कर, मोना चौधरी की तरफ उछला । तब तक मोना चौधरी एक हाथ से जंजीर थाम चुकी थी और दूसरा हाथ खाली करके रस्सा थामने के लिए तैयार कर लिया था।


परंतु रस्सा मोना चौधरी तक नहीं पहुंचा ।


देवराज चौहान ने वापस रस्सा खींचा। दोनों के बीच पन्द्रह फीट का फासला था । परंतु रस्सा फेंकने में देवराज चौहान इस बात की सावधानी बरत रहा था कि कहीं वह झटका लगने से नीचे तालाब में मगरमच्छों पर न जा गिरे।


दूसरी बार देवराज चौहान ने और भी वेग के साथ रस्सा फेंका, जिसका सिरा मोना चौधरी के हाथ में अटक गया था। मोना चौधरी ने रस्से को सख्ती से पकड़ा।


"अभी रुको ।" देवराज चौहान बोला--- "जब मैं आवाज दूं, तब रस्से का इस्तेमाल करना ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान वापस कमरे में पहुंचा और रस्से को बांह पर लपेटकर मजबूती से थाम लिया। कमरे में ऐसी कोई चीज नहीं थी कि जिससे रस्से का सिरा बांध सकता ।


काली बिल्ली की चमक भरी निगाह, देवराज चौहान पर टिकी थी।


"आ जाओ मोना चौधरी ।" देवराज चौहान ऊंचे स्वर में बोला।


आवाज सुनते ही मोना चौधरी ने दूसरा हाथ भी जंजीर से हटाया और रास्ते पर थाम लिया। होंठ सख्ती से भींच लिए । नीचे तालाब में मौजूद व्याकुल हो रहे मगरमच्छों पर निगाह मारी । उसकी दोनों टांगे जंजीर के गिर्द लिपटी थी और दोनों हाथ रस्से पर ।


इस तरह हवा में लटकी थी ।


तभी उसने टांगों में लिपटी जंजीर छोड़ दी ।


उसका शरीर रस्से पर झूलता तेजी से दीवार से जा टकराया । ऐसा करते ही वो काफी नीचे मगरमच्छों की जद में आ गई थी। मगरमच्छ तेजी से उसकी तरफ लपके। परंतु मोना चौधरी पहले ही जानती थी कि ऐसा होगा । उसने खुद को पहले ही तैयार कर रखा था । दीवार से टकराते ही, उसने दोनों पांव दीवार से टकराए और रस्सा थामें इस तरह ऊपर चढ़ती चली गई, जैसे वो दीवार पर चल रही हो।


ऊपर पहुंचकर वो मगरमच्छों की जद से दूर हो गई थी । यह महसूस करके मोना चौधरी ने गहरी साँस ली फिर ऊपर देखा । दरवाजा सिर्फ पांच-सात फीट की दूरी पर था । वो जल्दी से ऊपर चढ़े और फिर रस्सा छोड़कर इस दरवाजे की चौखट थाम ली । परंतु हाथों में मौजूद, छालों जखम और अकड़न के कारण, चौखट पर पकड़ मजबूत न रह सकी ।


देवराज चौहान ने इस बात को तुरंत महसूस किया और रस्सा छोड़कर और नीचे फिसल रही मोना चौधरी की कलाई थाम ली। उसकी तरफ झपटा


नीचे गिरने को हो रहा मोना चौधरी का शरीर थम गया ।


दांत भींचे मोना चौधरी ने देवराज चौहान को देखा ।


देवराज चौहान मुस्कुराया।


"शायद तुम भूखे मगरमच्छों का पेट भरना चाहती हो ।" देवराज चौहान ने कहा और उसे ऊपर खींचने लगा । मिनट भर में ही मोना चौधरी कमरे के बीच, फर्श पर बुरे हाल में पड़ी, उल्टे-पुल्टे ढंग से सांसे ले रही थी । ऐसा लगता था, जैसे उसमें जान ही न बची हो ।


देवराज चौहान ने कमरे में बिखरे पड़े रस्से को देखा और हथेली फैलाकर आगे कर दी । रस्सा गायब हो गया और हथेली में पुनः लकड़ी का टुकड़ा आ गया । उसके बाद उसने मोना चौधरी पर निगाह मारी । उसकी हालत वास्तव में बुरी हो रही थी।


तब तक काली बिल्ली भी पास पहुंची थी और पंजा मार-मारकर उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने की चेष्टा करने लगी, परंतु मोना चौधरी की बिगड़ी हालत ने उसे इस बात की इजाजत नहीं दी कि वो, बिल्ली पर ध्यान दे पाती।


देवराज चौहान ने झुककर मोना चौधरी के दोनों हाथ और साथ लगती कलाइयों को देखा जो जंजीर से टकरा-टकराकर बुरे हाल हो गए थे । छाले पड़े हाथों से खून निकल रहा था । देर तक लटके रहने से शरीर सुन्न पड़ गया था । अब उसमें इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि करवट ले सके । आंखें बंद किए वो पस्त हाल में पड़ी थी।


"कब से तुम, जंजीर के सहारे लटकी हुई थी ?" देवराज चौहान ने पूछा । 


जबकि उसकी हालत देखकर वो इतना तो अनुमान लगा ही चुका था कि वो देर से लटकी हुई थी। 


देवराज चौहान की आवाज पर मोना चौधरी की बंद पलकें हिली ।


थोड़ी-सी खुली और देवराज चौहान को देखा। 


उसके बाद क्षीण स्वर में बोली । 


"वक्त का हिसाब नहीं । शायद दो दिन होने वाले थे, जंजीर पलट लटके।" 


"अब तुम कैसा महसूस कर रही हो ?"


"मुझमें हिम्मत नहीं बची ।" कहने के साथ ही उसने आंखें बंद कर ली।


देवराज चौहान सोच भरी निगाहों से उसे देखता रहा । फिर फर्श पर पड़ी मोना चौधरी को दोनों हाथों से उठाया और बिछी चारपाई पर ले जा लिटाया। काली बिल्ली आगे बढ़ी और उछलकर मोना चौधरी के सिर के पास चारपाई पर जा बैठी । देवराज चौहान ने एक बार फिर उसके घायल हाथों और कलाइयों को देखा, जो इस वक्त किसी काम करने के काबिल नहीं रही थी।


फिर देवराज चौहान मुट्ठी में दबा रखी लकड़ी को देखकर बुदबुदाया ।


"मोना चौधरी के लिए दवा का प्रबंध करो।"


शब्द पूरे होते ही सामने फर्श पर पड़ा कुछ नजर आने लगा। जिसमें चीनी मिट्टी जैसे किसी चीज कै दो प्याले रखे हुए थे । देवराज चौहान ने लकड़ी का टुकड़ा जेब में डाला और आगे बढ़कर थाल को उठाया तो प्यालों के बाहर लिखी लिखावट को पढ़ा।


एक पर लिखा था---इस प्याले की दवा जख्मों पर लगा दो । दूसरे पर लिखा था---- इस प्याले की दवा पिला दो।


देवराज चौहान थाल लेकर मोना चौधरी के पास चारपाई पर आ बैठा और प्याले की दवा उंगलियों से निकालकर, उसके जख्मी हाथों पर लगाने लगा । वह दवा, हरे रंग का गाढ़ा सा पदार्थ था । दोनों हाथों और दोनों कलाइयों पर दवा लगाकर वो प्याला खाली किया।


फिर दूसरा प्याला उठाकर, कंधा पकड़ कर मोना चौधरी को हिलाया । 


"मोना चौधरी ।" 


मोना चौधरी के होंठ हिले । परंतु आंखें बंद रही।


"मोना चौधरी दवा पी लो ।"


होंठ हिले । फिर थोड़ी सी पलकें खुली । 


"मुझमें हिम्मत नहीं है।" कहकर उसने पुनः आंखें बंद कर ली । आवाज भी टूट रही थी । देवराज चौहान ने एक हाथ से सहारा देकर, उसे थोड़ा सा ऊपर किया । 


"दवा पीयो ।" कहने के साथ ही दवा का प्याला उसने मोना चौधरी के होठों से लगा दिया।


किसी तरह मोना चौधरी ने दवा का प्याला खाली किया । देवराज चौहान ने उसे पुनः लिटा दिया और खाली प्याला उसी थाल में रख दिया । निगाह मोना चौधरी पर गई । वो महसूस करने लगा कि मोना चौधरी पर नींद हावी होती जा रही है।


ऐसी हालत में, नींद ले लेना, मोना चौधरी के लिए ठीक था ।


देवराज चौहान चारपाई से उठ खड़ा हुआ । लेकिन काली बिल्ली, मोना चौधरी के सर के पास ही बैठी रही । मगरमच्छों की तरफ का दरवाजा खुला हुआ था । देवराज चौहान आगे बढ़ा और दरवाजे पर ठिठककर, सामने लटक रही जंजीर को देखा फिर नीचे, जहां तालाब में अभी ढेर सारे मगरमच्छ नजर आ रहे थे, कुछ की निगाह दरवाजे की तरफ भी थी।


देवराज चौहान पीछे हटा और उस दरवाजे को बंद करके, मोना चौधरी पर निगाह मारी । वो गहरी नींद में डूब चुकी थी। उसके शरीर पर मौजूद सिर्फ जीन्स की कमीज अस्त-व्यस्त सी हुई पड़ी थी । बटन खुला हुआ था, वहां से उसकी छाती स्पष्ट नजर आ रही थी ।


देवराज चौहान मोना चौधरी के पास पहुंचा उसकी कमीज ठीक की । बटन बंद किया फिर पलटकर, कुर्सी पर आ बैठा, जो खाने की टेबल के पास पड़ी थी । देवराज चौहान ने जेब से एक पैकिट निकाला और सिगरेट निकाल कर सुलगाई। चेहरे पर गंभीरता और सोच के भाव थे। फकीर बाबा की बातें याद आ रही थी और याद आने लगे थे अपने परिवार वाले, जो डेढ़ सौ बरस से तिलस्म में कैद हुए पड़े थे । और उन्हें उनके आने का इंतजार था कि देवा आकर उन्हें आजाद करवाएगा इस कैद से ?


और फकीर बाबा का कहना था कि वो तिलस्म उसके और मोना चौधरी के नाम से बंधा है । जब तक दोनों मिलकर आगे नहीं बढ़ेंगे तब तक उसके परिवार वाले कैद से आजाद नहीं हो सकते । उस कैद वाले तिलस्म को वह और मोना चौधरी ही मिलकर तोड़ सकते हैं और इसके लिए उसे मोना चौधरी से दोस्ती करनी पड़ेगी।


देवराज चौहान की निगाह चारपाई पर नींद में डूबी मोना चौधरी पर गई । उसके दिमाग की सोचें तेज से दौड़ रही थी । अपने परिवार वालों को आजाद करवाने के लिए जो कुछ भी करना पड़ा, वो करेगा । किसी भी हाल में उनके विश्वास को नहीं तोड़ सकता था । उन्हें देवा पर विश्वास था और कभी तो वो देवा ही था । कभी तो वो परिवार उसका था । इन सोचों के साथ ही देवराज चौहान की अब ताज में जरा भी दिलचस्पी नहीं रही थी । उसकी निगाहों में पहला अहम काम अपने परिवार वालों को आजाद करवाना था और इसके लिए वो हर हाल में मोना चौधरी से दोस्ती करेगा।


******


देवराज चौहान जब कुर्सी पर बैठा-बैठा थक गया तो नीचे फर्श पर दीवार के पास बैठने के लिए कुर्सी से उठा । मोना चौधरी बेसुध-सी गहरी नींद में थी और काली बिल्ली उसके सिर के पास, चारपाई पर इस तरह बैठी थी, जैसे मां, छोटे से बच्चे की देखभाल के लिए बेचैनी से बैठी हो ।


"देवराज चौहान ।" देवराज चौहान के कानों में बेला की फुसफुसाहट पड़ी ।


देवराज चौहान के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा । उसने आसपास देखा ।


"मैं तुम्हारे सिर पर सवार हूं। तुम मुझे देख नहीं सकते।" बेला की फुसफुसाहट पुनः कानों में पड़ी ।


"ओह ।" देवराज चौहान के होठों से गहरी सांस निकली । बेला को तो जैसे वह भूल ही गया था।


"अब तो मैं तुम्हें देवा कह सकती हूं ? " 


"देवा ?"


"क्यों-क्या तुम देवा नहीं हो ?" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी ।


देवराज चौहान दो पल के लिए चुप कर गया । फिर बोला।


"ठीक है । तुम देवा कह सकती हो मुझे।"


"अपने परिवार वालों से मिले ?"


"हां ।" देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता आई ।


"उनसे मिलना अच्छा लगा ना ?" बेला की फुसफुसाहट में हंसी शामिल हो गई।


"हां।" देवराज चौहान ने हौले से सिर हिलाया ।


"तो उनको कैद से आजाद नहीं करवाओगे ?"


"तुम ये सब बातें कैसे जानती हो ?"


"बेकार का सवाल है । इतना याद रखो कि मैं सब कुछ जानती हूं।"


देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे ।


"तुम यह भी जानती होगी कि मैं अपने परिवार को तिलस्मी कैद से कैसे छुटकारा दिला सकता हूं ।


"हां देवा । मैं सब कुछ जानती हूं।"


"तो बताओ, मैं क्या करूं ? "


"सबसे पहले मिन्नो से दोस्ती करो। तुम दोनों के बीच जो दुश्मनी है, वो खत्म कर दो।"


"उसके बाद ?"


"उसके बाद बता दूंगी कि क्या करना है । तुम्हारे परिवार बस्ती को कैद करने वाला तिलस्म, तुम्हारे और मिन्नो के नाम से बांधा गया है। उसे तुम दोनों ही मिलकर तोड़ सकते हो । एक हो जाओ तो सारे काम संवर चलेंगे । तब भी तिलस्म तोड़ना आसान नहीं होगा । दालूबाबा तुम लोगों को यह सब नहीं करने देगा।"


"फिर क्या होगा ?"


"ये बाद की बात है देवा । मैं... | "


"वो तिलस्म टूटे। जिसमें मेरे घरवाले-बस्ती वाले कैद हैं। इसमें तुम्हारी क्या दिलचस्पी है ?" देवराज चौहान ने पूछा।


"दिलचस्पी है । तभी तो कह रही हूं, इस तिलस्म को तुम दोनों मिलकर तोड़ो ।" बेला की आवाज में गंभीरता आ गई ।


"एक बात का जवाब दोगी ?"


"कैसी बात ?"


"यहां जो कुछ भी हो रहा है । जो हुआ था कभी, मुझे मालूम नहीं हो पा रहा। रोशनी में खड़ा होकर भी मैं अंधेरे को देख रहा हूं। तुम मुझे बताओगी कि यहां डेढ़ सौ बरस पहले क्या हुआ था ?"


"ये बात मैं नहीं बता सकती ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ रही थी ।


"तो कौन बताएगा ?" देवराज चौहान के चेहरे पर उखड़े पन के भाव आए । 


"वही बताएगा, जो तुम लोगों को इस नगरी में लाया है, या फिर आने वाला वक्त तुम्हारे सवाल का जवाब बनेगा।" 


देवराज चौहान के माथे पर बल नजर आने लगे।


"तुम फकीर बाबा को जानती हो ?"


"मैं किसी फकीर बाबा को नहीं जानती । मैं सिर्फ उसे जानती हूं जो तुम लोगों को यहां लाया है।"


"कौन है वहां, क्या नाम है उसका ?"


"पेशीराम।"


"पेशीराम ।" देवराज चौहान के होठों से निकला--- "कौन है यह पेशीराम । यह...।" 


"अभी इससे ज्यादा नहीं बता...।" 


"तुम अपने बारे में नहीं बताती । अब इस पेशीराम के बारे में भी नहीं बता रही, जिसे हम फकीर बाबा...।"


"मैं अपने बारे में तुम्हें थोड़ा सा बता देती हूं देवा ।" बेला की आवाज में मुस्कुराहट का भाव था ।


"क्या ?" 


"मैं मिन्नो की बहन हूं । "


"मिन्नो की बहन ?" देवराज चौहान के होठों से हैरानी भरा स्वर निकला ।


"हां । जिस तरह वो तुम्हारे परिवार वाले हैं, उसी तरह डेढ़ सौ बरस पहले मिन्नो मेरी । बहन थी। मेरे से एक साल बड़ी थी ।" बेला की फुसफुसाहट उसके कानों में पड़ी


"ओह ! समझा लेकिन तुम तुम अब क्या चाहती हो, जो मेरी सहायता...।"


"मैं सब कुछ ठीक कर देना चाहती हूं। मैं...।"



"क्या सब ठीक...।"


"ये तिलस्म नहीं, जहर भरा जंगल है । इसकी वजह से बहुत कुछ डेढ़ सौ बरसों से तबाह हुआ पड़ा है और ये तिलस्म मिन्नो की ही देन है । ये इसके गुस्से का नतीजा है । जिसे अब ये भी भुगत रही है और हम भी । सब समझते जाओगे धीरे-धीरे ।" एकाएक बेला की आवाज में मुस्कान के भाव आ गए--- "एक बात और बताऊं अपने बारे में।" "हां।"


"मेरा ब्याह तेरे साथ होने जा रहा था देवा।" बेला की फुसफुसाहट में चंचलता आ गई थी ।


देवराज चौहान की आंखों के सामने वो दृश्य नाच उठा जो लॉकेट डालते ही मस्तिष्क में से गुजरा था कि उसकी शादी पक्की होने जा रही है । घर वाले सब खुश हैं । 


"तुम्हारे साथ ?"


"हां मैं तुम्हारी पत्नी बनने जा रही थी।" देवराज चौहान के होठों से निकला--- "तो फिर बनी क्यों नहीं।"


"इसके जवाब में इस वक्त इतना ही कह सकती हूं कि तब एक तूफान आया और सब कुछ तहस-नहस कर गया। जब तूफान थमा तो कुछ भी नहीं था । सिर्फ बर्बादी ही बर्बादी थी ।" बेला की फुसफुसाहट में दुख था ।


"स्पष्ट नहीं बताओगी क्या हुआ था ?"


"अभी नहीं । खैर, अब वो सुनो, जिसके लिए मुझे तुम्हारे पास आना पड़ा।"


"क्या ?"


"जिस रास्ते पर तुम तय कर आए हो, उस पर वापस नहीं जा सकते। यहां इस तिलस्म का नियम है। आगे बढ़ने के लिए तुम दोनों के पास जगह बची नहीं। यह रास्ता मगरमच्छों के तालाब तक पहुंच कर समाप्त हो जाता है। मैं तुम्हें यहां से निकालने का रास्ता बताने आई हूं।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी ।


"किस तरफ है रास्ता।"


"ठीक सामने वाली दीवार को देखो। वहां पर एक छोटा-सा कील लगा हुआ है । उस कील को दीवार से बाहर खींच लो तो यहां से निकलने का रास्ता बन जाएगा।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी--- "अब मैं चलती हूं और बहुत जल्द तुमसे और मिन्नो से मिलूंगी । साथ में बापू भी होंगे।"


"बापू ?" देवराज चौहान के होठों से निकला ।


परंतु बेला का स्वर कानों में नहीं पड़ा।


देवराज चौहान ने मन ही मन बेला को पुकारा ।


"बेला।"


कोई जवाब न मिलने पर देवराज चौहान समझ गया कि बेला जा चुकी है ।


देवराज चौहान आगे बढ़ा और दीवार के साथ ही फर्श पर नीचे बैठ गया । बेला की बातें उसे और उलझा गई थी । पूर्व जन्म में वो मोना चौधरी की बहन थी और उससे, उसकी शादी होने वाली थी । देवराज चौहान के दिलो-दिमाग में दिलचस्पी पैदा हो चुकी थी, वो उत्सुक था अपने पूर्व जन्म के हालातों को जानने के लिए।


******


मोना चौधरी की जब आंख खुली तो उसने खुद को तरो-ताजा महसूस किया । वो फौरन उठ बैठी । अपने हाथों को देखा तो वहां दवा को लगे पाया, परंतु हाथों का दर्द और जख्मों को गायब पाया शरीर में कहीं भी थकान का नामोनिशान नहीं था । उसे याद आया कि जब वो बुरे हाल, बेहोशी में जा रही थी तो हाथों पर तब देवराज चौहान ने दवा भी लगाई थी और उसे सहारा देकर दवा पिलाई भी थी ।


मोना चौधरी समझ नहीं पाई कि यहां पर एकाएक दवा का इंतजाम कैसे हो गया ? तभी उसकी निगाह देवराज चौहान पर पड़ी जो फर्श पर बैठा, दीवार से टेक लगाए, नींद में था । कई पलों तक देवराज चौहान को देखती रही।


"म्याऊं।"


तभी तकिए पर बैठी काली बिल्ली बोली ।


मोना चौधरी ने उसे देखा ।


दोनों की चमक पूर्ण आंखें टकराई । उसी पल मोना चौधरी के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा । दिमाग में तीव्रता की लहरें दौड़ी और आंखों के सामने मुद्रानाथ का चेहरा नजर आया, जो कि सफेद कपड़े पहने था । सिर पर कंलगी वाली पगड़ी थी और सफेद घोड़े पर सवार भागा-भागा आया और विशाल से मकान में प्रवेश कर गया, जहां वह चूल्हे के सामने बैठी खाना बनाने में व्यस्त थी, घोड़े को प्रवेश करते देख वो मुस्कुरा पड़ी और मुद्रानाथ को बापू कहकर पुकारा। तभी भीतर से एक और युवती (बेला) निकली और बाबू कहती हुई पास पहुंचकर घोड़े की लगाम पकड़ ली । मुद्रानाथ नीचे उतरा तो वो युवत घोड़े की लगाम पकड़े सामने नजर आ रहे अस्तबल की तरफ बढ़ गई, जहां बंधे हुए उसे और भी तीन घोड़े नजर आए। तब तक मुद्रानाथ आंगन में बिछी चारपाई पर बैठ चुका था । तभी भीतर से पचास बरस की औरत निकली जिसने सर पर पल्लू ले रखा था और साड़ी बांध रखी थी । वो जल्दी से मुद्रानाथ की तरफ बढ़ गई । उसके साथ काली बिल्ली भी थी जो कि चूल्हे के पास खाना बनाती उसके पास जा बैठी थी।


"म्याऊं।"


बिल्ली का पुनः बोलना, मोना चौधरी को वर्तमान में ले आया । मस्तिष्क में अभी भी हलचल सी थी । क्या देखा था उसने ? सपना नहीं हो सकता । वो तो होशोहवास में बैठी हैं । तो फिर ये सब क्या था जो उसकी आंखों के सामने-मस्तिष्क में आया था ।


मुद्रानाथ ?


उसे मुद्रानाथ नजर आया था, जिसने जंगल में उसे तिलस्मी खंजर दिया था वो उस पर में घोड़े पर आया और वो चूल्हे के आगे बैठी खाना बना रही थी । वो युवती कौन थी जो घोड़े की लगाम पकड़ कर अस्तबल की तरफ बढ़ गई थी और वो औरत जो मकान के भीतर से निकालकर मुद्रानाथ की तरफ बढ़ी थी ?


मोना चौधरी को अपना सिर घूमता-सा महसूस हुआ ।


अगले ही पल उसने फौरन बिल्ली को देखा। बिल्ली की नजरें मिलते ही उसे यह सब नजर आने लगा था । परंतु इस बार बिल्ली से आंखें मिलने पर उसे कुछ भी नजर नहीं आया । बिल्ली की चमकदार आंखे मोना चौधरी पर थी। रह-रहकर वो पूंछ हिलाने लगी तो कभी उसके कान हिलने लगते । जैसे वो मोन चौधरी के साथ अपनापन जताने की चेष्टा कर रही हो ।


मोना चौधरी की निगाहें देवराज चौहान पर गई ।


बिल्ली की आवाज पर उसकी आंखें खुल चुकी थी। वो भी मोना चौधरी को ही देख रहा था ।


मोना चौधरी को अपनी तरफ देखकर पाकर, वो मुस्कुराया और उठ खड़ा हुआ ।


"क्या बात है, तुम कुछ परेशान सी लग रही हो ?" देवराज चौहान ने पूछा ।


"यूं ही।" मोना चौधरी ने काली बिल्ली निगाह मारी --- "इस बिल्ली से जैसे मेरी आंखें टकराई तो मुझे ऐसे लगा जैसे मैं कहीं और पहुंच गई हूं। कुछ नए चेहरे मुझे नजर आए।"


दो पल के लिए देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी, फिर सामान्य भाव में सिर हिलाया । 


"जहां तुम्हें अपने पहुंचने का एहसास हुआ, वहां तुमने क्या देखा ?" मोना चौधरी ने बताया । 


"वो सब तुम्हारे पूर्व जन्म के दृश्य थे और वे लोग तुम्हारे अपने ही थे ।" देवराज चौहान ने कहा ।


"क्या मतलब ?"


"ऐसा मेरे साथ भी हुआ था और उसके बाद मैं अपने पूर्वजन्म के परिवार के सदस्यों के बीच जा पहुंचा । उनसे मिला । बातें की, खाना खाया । वे सब मेरा इंतज़ार कर रहे थे।" देवराज चौहान ने गहरी सांस लेकर कहा--- "लेकिन मैं-मैं उन्हें नींद में छोड़कर, आगे बढ़ा आया।"


"पूर्वजन्म, मैं समझी नहीं, तुम क्या बात कर रहे हो ?" 


"तुम कैसे समझोगी।" देवराज चौहान अनमने मन से बोला--- "मैं सब देख-समझ कर भी नहीं समझ सका । तुम अपनी हालत बताओ । हाथों का जख्म कैसा है ?" मोना चौधरी की निगाह हाथों पर गई। 


"मुझे तो ऐसा लगता है, जैसे जख्म था ही नहीं । मोना चौधरी के होठों से निकला--- "शरीर की सारी थकान उतर चुकी है। मैं खुद को फ्रेश महसूस कर रही हूं।"


"आओ ।" तुम्हारे हाथों की दवा साफ करूं ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने टेबल पर मौजूद पानी का जग उठाया । मोना चौधरी पास आई तो पानी से उसके हाथ धुलाए । हाथों पर लगी सारी दवा उतर गई । कहीं भी अब जख्म नहीं था । अलबत्ता जख्म ठीक होने के कुछ निशान अवश्य नजर आए ।


"वास्तव में, दवा बहुत कमाल की थी ।" देवराज चौहान बरबस ही मुस्कुरा पड़ा ।


मोना चौधरी ने देवराज चौहान को देखा।


"किसने दी तुम्हें दवा ?"


"तुम्हारी बहन ने । जो तुमसे एक साल छोटी है, उम्र में।"


"मेरी बहन।" मोना चौधरी के होठों से हैरानी भरा हुआ स्वर निकला । 


"हां । बेला नाम है उसका । पूर्वजन्म में, वो तुम्हारी बहन थी । 


"कहां है वहां?" मोना चौधरी अभी तक हक्की-बक्की थी।


"मैं नहीं जानता ।" 


"तुम्हें कहां मिली ?"


"तिलस्मी नगरी में प्रवेश करने से पहले वो यहां भी आई थी । तुम नींद में थी । जाने से पहले कह् गई कि वो जल्दी ही फिर मिलेगी तब तुम्हारे बाबू जी भी साथ होंगे।" देवराज चौहान ने कहा ।


"तुम पागलों वाली बातें कर रहे हो ।" मोना चौधरी के होठों से निकला।


"मैं मान लेता तुम्हारी बात को । अगर मैं अपने पूर्व जन्म के परिवार वालों से न मिला होता ।"


"या तो तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है देवराज चौहान या फिर मेरा । तुम्हारी बातें मेरी समझ से बहुत दूर है। हो सकता है तिलस्मी नगरी के हादसों ने तुम्हारे दिमाग को बहका दिया हो ।"


देवराज चौहान मुस्कुराया।


"क्या हुआ ?" मोना चौधरी ने उसे घूरा ।


"कुछ नहीं । जब वक्त आएगा, तो मेरी बातें खुद ही तुम्हारी समझ में आ जाएगी।" 


मोना चौधरी देवराज चौहान को देखती रही।


"खाना खाओगी ?" देवराज चौहान ने पूछा ।


मोना चौधरी ने सहमति में सिर हिला दिया । चेहरे पर उलझनों का जाल बिछा था । देवराज चौहान ने जेब से लकड़ी का टुकड़ा निकाला और खाने के लिए कहा । दूसरे ही पल टेबल पर से पहले वाला खाने का सामान गायब हो गया और नया खाना नजर आने लगा । देवराज चौहान ने लकड़ी का टुकड़ा जेब में रख लिया ।


मोना चौधरी ने कुछ नहीं पूछा । दिलो-दिमाग को सोचों और परेशानियों ने घेर रखा था। खाने से फारिग होने के बाद दोनों ने एक-दूसरे को देखा । quest


"ये क्या है ?" मोना चौधरी ने पूछा |


"तुम्हारी बहन ने दिया था ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान मुस्कुराया।


"यहां से चला जाए ?" देवराज चौहान ने पूछा ।


"कहां ?"


"मैं नहीं जानता । जहां रास्ता मिलेगा, वहीं पर ही आगे बढ़ना होगा ।" देवराज चौहान बोला ।


मोना चौधरी की निगाह कई पलों तक देवराज चौहान पर टिकी रही।


"कुछ कहना चाहती हो ? पूछना चाहती हो ?" देवराज चौहान बोला । 


"कहना चाहती हूं ।" मोना चौधरी का स्वर गंभीर था ।


"क्या ?"


"तुम और मैं यहां ताज लेने आए हैं।" मोना चौधरी का स्वर सोच से भरा था--- "लेकिन तिलस्मी जाल की वजह से आगे बढ़ने में बहुत रुकावटें आ रही है । अगर हम ताज की तरफ एक साथ बढ़े तो शायद ठीक रहे । 'ताज' हाथ में आने पर फैसला कर लेंगे कि उसे कौन लेगा ?"


देवराज चौहान के होठों पर शांत मुस्कान उभरी ।


"इस बात को किसी तरह की मेरी कमजोरी मत समझना। मैंने तो तुम्हारे सामने राय रखी है । अगर पसंद आए तो ठीक है। ये जरूरी नहीं कि तुम, मेरी सोचों से इत्तेफाक रखो।"


"मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं।" देवराज चौहान मुस्कुराया।


"मोना चौधरी भी मुस्कुरा पड़ी ।


"एक से दो भले । जब 'ताज' हाथ में आएगा तो, फैसला कर लेंगे कि कौन लेगा ताज।" देवराज चौहान ने कहा ।


"मंजूर है ।" मोना चौधरी ने सहमति से सिर हिलाया ।


देवराज चौहान आगे बढ़ा और बेला के बताएनुसार सामने की दीवार में लगा 'कील' निकालने लगा ।


"ये क्या कर रहे हो ?"


"यहां से निकलने का रास्ता बना रहा हूं।"


"तुम्हें कैसे पता कि 'कील' निकालने से रास्ता बन जाएगा।" मोना चौधरी ने उलझन भरे स्वर में पूछा ।


"तुम्हारी बहन ने बताया था ।"


मोना चौधरी ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला कि फिर होंठ सिकोड़ कर रह गई। दो-तीन मिनट की कोशिश के बाद, दीवार में सख्ती से धंसी कील बाहर निकल आई ।


परंतु से बाहर निकलने पर कोई भी रास्ता नजर नहीं आया । सब कुछ वैसा का वैसा ही रहा । देवराज चौहान की निगाह हर तरफ घूमने लगी ।


"कहां है रास्ता ?"


"वही तो मैं देख रहा हूं।" कहते हुए देवराज चौहान ने हाथ में पकड़ी कील एक तरफ उछाल दी । वो जानता था कि बेला गलत नहीं कह सकती, तो फिर कील निकालने पर रास्ता क्यों नहीं ? ।


"कोई रास्ता नहीं बना ।" मोना चौधरी बोली--- "वो सामने खुला दरवाजा नजर आ रहा है । वहीं चलते हैं ?"


देवराज चौहान ने उधर देखा ।


"वहां से तो मैं आया हूं।


"तो ?"


"तिलस्मी के रास्ते को पार करने के बाद, पलटकर उस पर वापस नहीं देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "इस तिलस्म का ये भी एक सिस्टम है।" जाया जा सकता ।" मोना चौधरी आगे बढ़ी और दरवाजे पर जा पहुंची। पलटकर देवराज चौहान को देखा । "मेरे सामने तो कोई दिक्कत नहीं आई ।" मोना चौधरी बोली । "लेकिन मेरे सामने आएगी ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान आगे बढ़ा । दरवाजे पर पहुंचा । चौखट पार करने लगा तो जैसे एकाएक अदृश्य दीवार सामने आ गई है।


"क्या हुआ ?" उसे रुकते पाकर मोना चौधरी बोली ।


देवराज चौहान मुस्कुराया । दोनों आमने-सामने थे । परंतु वो अदृश्य दीवार किसी को भी नजर नहीं आ रही थी । देवराज चौहान को रुका पाकर मोना चौधरी उलझन में थी।


"मेरे सामने दीवार जैसी कोई चीज आ गई है, जो मुझे आगे नहीं बढ़ने दे रही और वो दीवार न तो तुम्हें नजर आ रही है और ना ही मुझे ।" देवराज चौहान ने कहा ।


"ये कैसे हो सकता है ।" कहने के साथ ही मोना चौधरी ने हाथ आगे बढ़ाया और देवराज चौहान की बांह पकड़कर खींची परंतु देवराज चौहान का शरीर जरा भी आगे नहीं हुआ ।


"तुम इस रास्ते पर आगे जा सकती हो । क्योंकि तुम दूसरे रास्ते से यहां पहुंची हो । मेरे लिए ये रास्ता बंद हो चुका है। "


मोना चौधरी ने देवराज की बांह छोड़ी तो देवराज चौहान पीछे हट गया । मोना चौधरी भी भीतर आ गई । दोनों के चेहरों पर सोच के भाव नजर आ रहे थे ।


"बेला गलत नहीं कह सकती, तो फिर गड़बड़ कहां हुई है ?" देवराज चौहान होठों ही होठों में बड़बड़ाया और नजरें पुनः कमरे में दौड़ने लगी। आंखे सिकुड़ चुकी थी ।


"लगता है मेरी वो बहन तुम्हें धोखा दे गई ।" मोना चौधरी ने मजाक भरे स्वर में कहा ।


"एक बारगी तुम तो धोखा दे सकती हो ।" देवराज चौहान भी मजाक में बोला--- "लेकिन कम से कम, तुम्हारी बहन से मैं ऐसी आशा नहीं रख सकता । वो धोखा देने वालों में से नहीं है । "


"इतना विश्वास उस पर ?" मोना चौधरी हौले से हंस पड़ी।


"हां । वो विश्वास के काबिल है ।" कहने के साथ ही जाने क्या सोचकर देवराज चौहान उस दरवाजे की तरफ बढ़ा, जिसे खोलते ही सामने-नीचे मगरमच्छों का तालाब नजर आता था । करीब पहुंचकर दरवाजे के दोनों पल्लों को खोला तो चेहरा हैरानी से भर उठा । मोना चौधरी भी करीब आ पहुंची थी और दरवाजे के पार देखते ही उसके होठों से निकल आया ।


"यह क्या ?"


सामने हरे-भरे पेड़ों के बीच एक सीधा रास्ता जा रहा था । वो तालाब, वो मगरमच्छ और वो लटकती जंजीर, कहीं भी, किसी भी चीज का किधर भी नामोनिशान नहीं था । देवराज चौहान और मोना चौधरी की नजरें मिली ।


"वो तालाब कहां गया ?" मोना चौधरी के होठों से निकला।


"वो तिलस्मी तालाब था ।" देवराज चौहान सोच भरे स्वर में बोला--- "जिसका कोई वास्ता उस दीवार में धंसी कील से था । जिसे निकालते ही वो गायब हो गया और ये रास्ता नजर आने लगा।" 


"इसका मतलब तिलस्मी में फंसने के रास्ते हैं तो, बचने के भी रास्ते है ।" मोना चौधरी बोली ।


"ठीक कहा । लेकिन बचने के लिए इस बात की जानकारी होनी जरूरी है कि तिलस्म में कब-कहां किस चीज को छेड़ना है।" देवराज चौहान बोला-- "यहां से चलते हैं।" 


तभी पीछे मौजूद बिल्ली ने उछाल भरी और मोना चौधरी के कंधे पर आ बैठी । दो पल के लिए मोना चौधरी अचकचाई । उसे हटाने के लिए हाथ हटाया।


"इसे कंधे पर ही रहने दो ।" देवराज चौहान बोला--- "ये काली बिल्ली पूर्वजन्म में तुम्हारी ही थी और तुमने ही अभी बताया था कि उस औरत के साथ घर में से बिल्ली निकली और तुम्हारे पास आ बैठी । ये वो ही बिल्ली है । ये हमें फायदा ही देगी । नुकसान नहीं ।"


मोना चौधरी ने गंभीर भाव में सिर हिलाया और फिर दोनों आगे बढ़ गए। रह-रहकर मोना चौधरी की गर्दन घूमती और कंधे पर मौजूद बिल्ली को देखने लगती । बिल्ली की चमकदार निगाह चौधरी पर ही थी और रह-रहकर अपनी पूंछ हिला रही थी, जिसका एहसास मोना चौधरी को बराबर हो रहा था । कभी वो बिल्ली अपनी सी लगने लगती, तो कभी पराई । जाने क्यों मोना चौधरी को ऐसा महसूस हो रहा था कि कोई उसके दिलोदिमाग पर दस्तक देने की कोशिश कर रहा है ।

******