कविता के चेहरे पर चिन्ता और दुख के गहन लक्षण थे और ऐसा लगता था जैसे एक ही रात में उसकी उम्र पांच साल बढ गई हो ।


"मैं जेल में सुषमा से मिलकर आ ही हूं।" - वह धीमे स्वर में बोली - “प्रमोद, अब हम तुम पर ही निर्भर कर रहे हैं "


"सुषमा ने कोई नया बयान दिया है ?"


"नहीं।" 


"वैरी गुड | "


" आज सुबह के अखबार में था कि जगन्नाथ की पोर्ट्रेट उर्मिला नाम की एक महिला के पास भी थी और उसका दावा है कि रात के दो बजे पोर्ट्रेट के साथ जगन्नाथ के फ्लैट से निकलने वाली लड़की सुषमा नहीं वह थी । लेकिन वह पोर्ट्रेट बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से उसके फ्लैट में से गायब हो गई है । "


"वह झूठ बोल रही होगी।" - प्रमोद लापरवाही का प्रदर्शन करता हुआ बोला ।


"नहीं, प्रमोद, उर्मिला की कहानी सच है । जगन्नाथ की असली तस्वीर वाकई उसके पास थी । इस समय उर्मिला तस्वीर पेश नहीं कर सकती लेकिन नैतिक रूप से हर किसी को उसकी कहानी पर विश्वास है । ऐसी हालत में सुसी का पहला बयान, कि दो बजे पोर्ट्रेट के साथ जगन्नाथ के फ्लैट से निकलने वाली लड़की वह थी, झूठा सिद्ध हो जाता है।”


प्रमोद चुप रहा ।


अखबार में लिखा है कि उर्मिला की बात की सत्यता प्रमाणित करने वाले बहुत से नये तत्व सामने आये हैं । जैसे उर्मिला के फ्लैट वाली इमारत के मालिक वर्मा ने उसके फ्लैट में वह पोर्ट्रेट देखी थी। पुलिस ने उस टैक्सी ड्राइवर को भी खोज निकाला है जो रात के दो बजे उर्मिला को राबर्ट स्ट्रीट से महात्मा गांधी रोड लाया था। वह भी कहता है कि उर्मिला के पास पोर्ट्रेट थी । सारी बात उसे विशेष रूप से इसलिये याद है । क्योंकि अपने फ्लैट पर पहुंचने के बाद उर्मिला ने ड्राइवर को बताया था कि उसका पर्स कहीं रह गया है। फिर वह ड्राइवर को पैसे देने के लिए फ्लैट में अपने साथ ले गई थी। सड़क से उसके फ्लैट तक पोर्ट्रेट को ड्राइवर ही उठाकर लाया था ।”


"तुम कहना क्या चाह रही हो, सुषमा ?"


“मैं यह कहना चाह रही हूं कि उर्मिला के खिलाफ बड़े खतरनाक सबूत इकट्ठे होते जा रहे हैं । वह पहले से ज्यादा गहरे बखेड़े में फंसती जा रही है । राजेन्द्र नाथ ने उसके लिये एक बड़ा योग्य वकील किया है, उस वकील का रिकार्ड है कि आज तक उसने कोई मुकद्दमा नहीं हारा है। उसने बड़ी बारीकी से केस की स्टडी की है । वह कहता है कि शुरू में सुषमा को बड़ी गलत किस्म की राय दी गई है, उसे झूठ नहीं बोलना चाहिये था । लेकिन अब भी ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है, वह मामला सम्भाल लेगा, वह चाहता है कि सुषमा एक नया, उसका बताया हुआ बयान दे, जिससे यह जाहिर हो कि पहले उसने घबराकर झूठ बोल दिया था । लेकिन अब जब कि उसे अनुभव हो गया है कि उसे झूठ नहीं बोलना चाहिए था, वह अपना असली बयान दे रही है और बता रही है वास्तव में क्या हुआ था ?"


"वकील सुषमा से क्या कहलवाना चाहता है ?"


"वह सुषमा से कहलवाना चाहता है कि उसने आत्मरक्षा के लिए जगन्नाथ की हत्या की ।”


"क्या ?" - प्रमोद चिल्ला पड़ा ।


"हां । और उसका कथन है कि वर्तमान स्थिति में यही एक ऐसा डिफेंस है जो सुषमा की रक्षा कर सकता है । " 


"लेकिन सुषमा ने जब जगन्नाथ की हत्या की ही नहीं तो वह ऐसा किसी बात को स्वीकार क्यों करेगी ?" - प्रमोद आश्चर्य से बोला ।


"वकील कहता है कि कई बार गलत बात से भी बड़ा अच्छा नतीजा निकलता है। इस ढंग से और केवल इसी ढंग से सुषमा के बरी हो जाने की गारन्टी है ।"


"वह कहता क्या है ?" - प्रमोद ने पूछा ।


"वह कहता है कि अपराधी दो तरीकों से बरी हो सकता हो । एक तो यह कि उसका वकील यह सिद्ध कर दे कि उसके मुवक्किल ने हत्या नहीं की। और दूसरा यह कि सरकारी वकील यह सिद्ध न कर सके कि उसके मुवक्किल ने हत्या की है । सुषमा का वकील दूसरे तरीके पर निर्भर कर रहा है । "


"कैसे ?”


"वह सुषमा को कुछ इस प्रकार का बयान देना चाहता है कि जगन्नाथ सुषमा से अपनी एक पोर्ट्रेट तैयार करवा रहा था। सुषमा ने उसकी पोर्ट्रेट बनानी आरम्भ तो कर दी थी लेकिन उसे विश्वास नहीं था कि वह एक दोषरहित पोर्ट्रेट


तैयार कर लेगी । अत: वह जगन्नाथ के कुछ रफ स्कैच लेकर मेरे पास आई और उसने मुझे कहा कि एक पोर्ट्रेट मैं भी बनानी आरम्भ कर दूं । दोनों में से जो अच्छी पोर्ट्रेट होगी, वह जगन्नाथ को दे देगी । हत्या की रात सुषमा ने और मैंने भी अपनी-अपनी पोर्ट्रेट तैयार कर लीं । सुषमा उस रात दोनों पोर्ट्रेट जगन्नाथ के पास ले गई। जगन्नाथ ने एक पोर्ट्रेट पसन्द कर ली जो संयोगवश सुषमा की बनाई हुई थी । दूसरी पोर्ट्रेट सुषमा ने वापिस मेरे पास पहुंचा देनी थी । उस रात जगन्नाथ को और लोग भी मिलने आने वाले थे । जगन्नाथ ने सुषमा को काफी पिलाई जिसमें बेहोशी की दवा मिली हुई थी । सुषमा बेहोश हो गई । जब उसे होश आया तो उसने देखा कि जो पोर्ट्रेट जगन्नाथ ने रखने के लिए चुनी थी, वह गायब है। सुषमा के पूछने पर उसने बताया कि उसने वह पोर्ट्रेट उर्मिला नाम की एक औरत को दे दी है जो वास्तव में उसकी पत्नी है । उस समय तक जगन्नाथ से मिलने के लिए आने वाले सारे लोग जा चुके थे। तब जगन्नाथ के दिमाग में शैतानियत जागने लगी । उसने सुषमा को कहा कि पोर्ट्रेट तो केवल बहाना था । वास्तव में तो वह सुषमा के अछूते सौंदर्य और जवानी का आनन्द उठाना चाहता था । इसलिए उसने सुषमा को बेहोशी की दवा पिलाकर इतनी रात तक अपने फ्लैट पर रोके रखा था । जगन्नाथ उसका शील भंग करने के नापाक इरादे से उसकी ओर बढा । सुषमा भयभीत हो गई । उसने झपट कर मेज पर से एक बांस का टुकड़ा उठा लिया जो वास्तव में स्लीवगन थी लेकिन सुषमा को मालूम नहीं था कि वह क्या है । यह तो केवल उस बांस से जगन्नाथ पर प्रहार करना चाहती थी ताकि वह रुक जाये । जगन्नाथ सुषमा पर झपटा और उसने सुषमा को दबोच लिया। सुषमा आतंक से चिल्लाई और स्वयं को उसकी शैतानी पकड़ से छुड़ाने का प्रयत्न करने लगी । शैतान ने उसके कपड़े फाड़ दिए । जगन्नाथ के गन्दे पसीने से भरे हाथ उसकी नंगी बांहें को जकड़े हुए थे । जगन्नाथ के शरीर का दबाव उसके शरीर पर बढता जा रहा था। दोनों के शरीरों बीच में सुषमा का हाथ फंस गया था जिसमें वह स्लीवगन थामे हुए थी । सुषमा को मालूम नहीं था कि उसके हाथ में रिवाल्वर से भी खतरनाक हथियार है । उसी क्षण न जाने कैसे स्लीवगनका कैच दब गया और उसमें से तीर निकल कर सीधा जगन्नाथ की छाती में घुस गया । जगन्नाथ की पकड़ ढीली पड़ गई । वह धम्म से अपनी कुर्सी पर जा गिरा और उसका सिर मेज पर लटक गया । वह मर चुका था ।"


"वह वकील सुषमा से यह कहलवाना चाहता है ?" - प्रमोद हैरानी से बोला ।


"वह कहता है कि सुषमा जैसी सुन्दर लड़की जब अपनी आत्मरक्षा की यह कहानी सुनायेगी तो जज उसे बरी करने के लिए दस सैकेन्ड का वक्त भी नहीं लेगा। मैं और राजेन्द्र नाथ भी उसी ढंग की शहादत देंगे जिससे यही प्रकट हो कि सुषमा सच बोल रही है । "


“तुम लोग झूठ बोलोगे ?”


"वकील कहता है इस प्रकार का झूठ बोलने में कोई हर्ज नहीं है । वास्तव में सुषमा ने हत्या तो की नहीं है । "


"लेकिन कविता, यह ठीक नहीं है, इस प्रकार के बचाव तो वे प्रस्तुत करते हैं जो वास्तव में अपराधी होते हैं, ऐसे लोग बरी हो भी जायें तो दुनिया उन्हें अपराधी ही मानती है जो पर्याप्त प्रमाणों के अभाव से फांसी पर नहीं लटकाये जा सके। इस सफाई से बरी हो जाने के बावजूद भी सुषमा अपराधी ही समझी जाएगी, वह बदनाम हो जाएगी, उसका भविष्य खराब हो जाएगा । कविता, अच्छा यही है कि सुषमा अपने आपको निर्दोष सिद्ध करने का प्रयत्न करे, आत्मरक्षा की यह कहानी उसके चरित्र पर एक स्थायी कालिख पोत देगी ।"


“मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है, मैं क्या करू ।" - कविता असहाय भाव से बोली- "वकील कहता है यही ठीक है, तुम कहते हो यह ठीक नहीं है, प्रमोद मुझे इस उलझन में से निकालो, मैं सुषमा का बचाव चाहती हूं । चाहे यह कैसे भी हो ? चाहे इसके लिए मुझे यही कहना पड़े कि मैंने जगन्नाथ की हत्या की है । प्रमोद, मेरी सहायता करोगे न । इस बार भी तुम पहले की तरह मुझे छोड़ कर भाग तो नहीं जाओगे ?"


"पहले की बात और थी, कविता ।" - प्रमोद गम्भीर स्वर में बोला- "पहले मेरा भाग जाना ही तुम्हारे लिए हितकर था । तुम मेरे सबसे प्रिय दोस्त की पत्नी थीं । तुम्हारे बारे में मेरा कुछ सोचना भी पाप था लेकिन मैं दिल के हाथों मजबूर था । मैं मन ही मन तुम्हें प्यार करता था और अपने एक तरफा प्यार से खुश था, लेकिन उस रात... उस रात तुम मेरा राज जान गई, मैं तुम्हारे सामने अपने मन की बात छुपा न सका, मुझे यह जानकर बहुत डर लगा था । कि तुम भी मुझे प्यार करती थीं । उस रात एक अनर्थ होते-होते बचा । अगले ही दिन मैं चुपचाप भाग गया था । उस स्थिति में मेरा भाग जाना ही ठीक था । लेकिन तब और अब में बहुत अन्तर है । मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हूं।"


- "मेरे लिए नहीं सुषमा के लिए..." - कविता बोली । •


"नहीं तुम्हारे लिए । तुम्हारे अतिरिक्त मैं किसी को भी नहीं जानता। मैं उसके लिए कुछ करूंगा तो इसलिए क्योंकि तुम ऐसा चाहती हो, मैं सुषमा के वकील से बात करूंगा ।”


“प्रमोद !" - कविता रुधे स्वर से बोली और एकदम अपने स्थान से उठकर प्रमोद के कदमों में बैठ गई। उसके दोनों हाथ प्रमोद के घुटनों से लिपट गये और उसका सिर प्रमोद के घुटनों पर टिक गया, उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली थी ।


प्रमोद ने उसे उठाने का प्रयत्न नहीं किया उसका दायां हाथ धीरे-धीरे कविता के सिर पर फिरने लगा ।


"हे भगवान !" - कविता फुसफुसाहट जितने धीमे स्वर में बोली - “अगर मैं अभी मर जाऊं तो भी मुझे दुख नहीं होगा ।"


***

कविता के जाने के लगभग दो घन्टे के बाद सोहा प्रमोद के फ्लैट पर आई ।


उसके होंठ मुस्करा रहे थे लेकिन आंखों में चिन्ता की गहरी छाया थी ।


वह ड्राइंग रूम के एक साफे पर प्रमोद के सामने बैठ गई। 


“कल रात ग्यारह बजे के करीब तुम दुबारा उर्मिला के फ्लैट में थे ?" - सोहा ने सीधा प्रश्न किया ।


प्रमोद चुप रहा ।


"तुम वहां दुबारा क्या करने गये थे ?"


"मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा, सोहा ।" - प्रमोद ने गम्भीरता से उत्तर दिया- "मै वहां जगन्नाथ की पोर्ट्रेट चुराने गया था।”


"ताकि पेन्टर महिला का झूठ सच बना रहे ।"


प्रमोद फिर चुप हो गया ।


"तुम उससे इतना प्यार करते हो ?"


"सोहा । क्या हो गया है तुम्हें ?"


"मेरे सवाल को टालने की कोशिश मत करो | तुम इनकार भी करोगे तो मैं विश्वास नहीं कर पाऊंगी । लेकिन मुझे तुम्हारे किसी भी कृत्य के प्रति कोई एतराज नहीं है। मैं तो तुमसे हकीकत बयान करने आई हूं।"


"हकीकत ?"


“हां ! जगन्नाथ की हत्या मैंने की है। पच्चीस हजार रुपये ले चुकने के बाद भी वह और रुपया मांग रहा था । मुझे क्रोध आ गया और मैंने उसे स्लीवगन से मार डाला ।"


“स्लीवगन कहां मिली तुम्हें ?"


"स्लीवगन जगन्नाथ के सामने मेज पर पड़ी थी । "


“क्या उस समय जगन्नाथ की पोर्ट्रेट थी वहां ?"


“नहीं । उर्मिला वह पोर्ट्रेट दो बजे वहां से ले जा चुकी थी।"


"उस समय सुषमा कहां थी ?"


"मैंने पहले भी बताया था कि सुषमा भीतर वाले कमरे में सोई पड़ी थी ।"


"मेज पर और क्या पड़ा था ?"


"मुझे केवल एक ही चीज याद है । मेज पर एक काले रंग का हैंड बैग रखा था जो शायद पेन्टर महिला का था ।"


"तुम बाहर किस रास्ते से निकलीं ?"


"जिस रास्ते से मैं आई थी। सामने से ।"


"यह कहानी तुमने और किसे सुनाई है ?" - प्रमोद उसे घूरता हुआ बोला ।


"तुम्हारे सिवाय किसी को भी नहीं । "


" और मुझे क्यों सुना रही हो ?"


"ताकि जरूरत पड़ने पर तुम अपनी पेन्टर महिला की रक्षा कर सको ।”


"सोहा, तुम..."


"प्रमोद ।" - वह उसकी बात कर बोली "अगर मेरे बलिदान से तुम पेन्टर महिला को बचा सके तो यह मेरे लिये गौरव का विषय होगा ।"


और फिर वह बिना एक शब्द बोले उठी और सन्तुलित कदमों से चलती हुई फ्लैट से बाहर निकल गई ।


प्रमोद ने उसे रोका नहीं ।


उसके फ्लैट से निकलते ही प्रमोद की नजर सामने की दीवार पर लगे महात्मा बुद्ध के चित्र पर पड़ी । चित्र थोड़ा सा एक ओर को टेढा हो गया था। प्रमोद की तीव्र दृष्टि से वह बारीकी छुपी न रह सकी । वह सोफे से उठकर उस चित्र के समीप पहुंचा। नीचे गलीचे पर भी प्लास्टर की हल्की सी धूल दिखाई दे रही थी । प्रमोद ने धीरे से तस्वीर को अपने स्थान से हटाया । |


तस्वीर के पीछे एक माइक्रोफोन छुपा हुआ था ।


प्रमोद ने धीरे से तस्वीर अपने स्थान पर लगा दी और लपक कर कमरे के बीच में पहुंच गया । वह उस कुर्सी की ओर मुंह करके जिस पर आधा मिनट पहले सोहा बैठी थी, बड़े स्वाभाविक स्वर में बोला- "नहीं सोहा, एक मिनट ठहरो । मुझे भी कुछ कहना है । तुम चुपचाप मेरी बात सुन लो । इससे तुम्हारी बहुत सी गलतफहमियां दूर हो जायेंगी । नहीं, नहीं, सोहा, मुझे टोको मत। पहले मेरी पूरी बात सुन लो । तभी कुछ कहना । हां, शाबाश... सोहा तुम समझती हो मैं पेन्टर महिला से प्यार करता हूं। लेकिन यह सच नहीं है । मैं कविता से प्यार नहीं करता ।"


प्रमोद ने जानबूझ कर सुषमा की जगह कविता का नाम लिया ।


"मैं जो कुछ कर रहा हूं केवल अपनी खातिर कर रहा हूं।" - प्रमोद कहता रहा - "किसी और की खातिर नहीं । तुम इस सम्भावना पर विचार क्यों नहीं करती कि शायद जगन्नाथ की हत्या मैंने ही की हो ? आखिर वह मारा तो मेरी स्लीवगन से गया है । जरा सोचो क्या यह सम्भव नहीं कि मैंने उसकी हत्या की हो । सोचो ।"


प्रमोद चुप हो गया । वह दबे पांव खिड़की की ओर लपका । उसने खिड़की से बाहर झांका । सोहा इमारत से निकल कर अपनी कार में बैठ चुकी थी। उसकी कार चल पड़ी। किसी ने उसका पीछा नहीं किया। लेकिन फिर अभी उसे थोड़ा और समय मिलना चाहिए था । अगर माइक्रोफोन के दूसरे सिरे पर बैठे आदमी को, जो शायद आत्माराम ही हो को या मालूम हो गयी कि प्रमोद केवल खाली कुर्सी से बातें कर रहा है तो गड़बड़ हो जाने की सम्भावना थी ।


प्रमोद फिर अपने स्थान पर लौट आया और बोला "तुम्हारी शक्ल से लग रहा है कि तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है । तुम यहीं ठहरो, मैं तुम्हें एक ऐसा सबूत दिखाता हूं जिसके बाद सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं रह जायेगी।"


वह प्रतीक्षा करने लगा ।


उसी क्षण गलियारा भारी कदमों से गूंज गया । फिर फ्लैट के मुख्य द्वार खुलने के साथ-साथ याट-टो की आतंकित आवाज सुनाई दी- "नो मिस्टर जन्टलमैन । नो कम इन । नो कैन कम । नो... नो ।”


लेकिन आत्माराम उसे एक ओर धकेल कर भीतर घुस गया ।


"अब कैसे तशरीफ लाये, इन्स्पेक्टर साहब ?" - प्रमोद अपने स्वर में खीज का भाव उत्पन्न करता हुआ बोला ।


"आप से मिलने चला आया ।" - आत्माराम मीठे स्वर से बोला - "सोचा शायद आपके हाथ कोई ऐसा सूत्र लगा हो जिससे यह मालूम हो सके कि आपकी स्लीवगन किसने चुराई है।"


"बड़ी चिन्ता है आपको स्लीवगन की ?" - प्रमोद व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।


“क्या करें साहब हम तो जनता के नौकर हैं।" - आत्माराम की सतर्क दृष्टि फ्लैट में घूम गई थी ।


उसी क्षण याट-टो कैन्टीनीज में बोला- "मास्टर सारी इमारत में इस आदमी ने अपने साथी फैलाये हुए हैं । यह आदमी जबान का मीठा है, लेकिन भीतर से यह शैतान है। इससे बचकर रहिये ।"


"मैं खयाल रखूंगा, याट-टो।" - प्रमोद ने उसी भाषा में उत्तर दिया ।


"लगता है अब मुझे चीनी सीखनी पड़ेगी।" आत्माराम पीड़ित स्वर में बोला । -


प्रमोद चुप रहा ।


"जरा मैं एक बार फिर आपके फ्लैट पर नजर फिरा लूं ।" - आत्माराम ने पूछा ।


"क्या अभी भी कोई कसर रह गई है ?"


“कसर रह ही जाती है, प्रमोद साहब । आखिर मैं इन्सान हूं, कोई मशीन तो नहीं । मैं अभी कई बातें नजरअन्दाज कर सकता हूं।"


“जो जी में आये कीजिए ।"


एक बार फिर आत्माराम फ्लैट में घूम गया। पहले उसने सरसरी नजर से फ्लैट को देखा और फिर तो जैसे उसने फ्लैट को रौंद डाला ।


आत्माराम के चेहरे पर निराशा और उलझन के गहन भाव दिखाई देने लगे लेकिन उसके स्वर में से मिठास नहीं गई "प्रमोद साहब, कया इस फ्लैट में से आने-जाने का कोई ऐसा रास्ता भी है जो आपने मुझे दिखाया न हो ?"


"नहीं, इन्स्पेक्टर साहब ।" - प्रमोद सख्त स्वर में बोला "ऐसा कोई रास्ता नहीं है जो आपने न देखा हो ।”


"कमाल है, साहब । फिर तो कल सुषमा ओबेराय यहां से जादू के जोर से ही गायब हुई होगी। क्या चीनी मठों में आपको जादू भी सिखाया जाता था, प्रमोद साहब ?"


प्रमोद चुप रहा ।


"पहले हमने आपके फ्लैट की तलाशी ली सुषमा ओबेराय हमें भीतर नहीं मिलीं । हम बाहर चले गये । दो मिनट बाद फिर लौटे तो वह भीतर थी ।"


वह आपके जाने के थोड़ी देर बाद ही आई थी ।”


“कमाल है, साहब ।” - आत्माराम सिर हिलाता हुआ बोला - "पहले सुषमा ओबेराय गायब हो गई और अब..."


“अब क्या ?"


"कुछ नहीं ।" - आत्माराम बोला । शायद अभी वह यह प्रकट नहीं करना चाहता था कि उसने माइक्रोफोन की सहायता से प्रमोद और सोहा का वार्तालाप सुना था । शायद उसे अभी बड़ी मछली फंसने की आशा थी ।


लेकिन उस वार्तालाप से आत्माराम को बहुत कुछ मालूम हो गया था, सोहा के सामने प्रमोद ने स्पष्टरूप से स्वीकार किया था कि उसने उर्मिला के फ्लैट में से जगन्नाथ की पोर्ट्रेट चुराई है ।


आत्माराम अपने स्वभावानुसार हजार-हजार माफी मांगता हुआ चला गया ।


***

प्रमोद शंकर दास रोड पर पहुंचा ।


वह एक पांच मंजिली इमारत थी, कविता ओबेराय का फ्लैट बाकी फ्लैटों से तीन गुणा बड़ा था, पांचवी मंजिल लगभग सारी की सारी उसके अधिकार में थी ।


प्रमोद लिफ्ट के सहारे ऊपर पहुंचा ।


एक नौकर ने उसका स्वागत किया, नौकर उसे पहचानता था ।


"राजेन्द्र नाथ है ?" - प्रमोद ने पूछा ।


"नहीं, साहब ।" - नौकर बोला ।


"मालूम है कहां गया है ?"


"नहीं, साहब ।”


“अच्छा, मैं उसके कमरे में इन्तजार करता हूं।" प्रमोद, राजेन्द्र नाथ के कमरे की ओर बढता हुआ बोला ।


"साहब तो अपने कमरे को ताला लगा गये हैं । "


"क्या ?" - प्रमोद रुक गया - "पहले तो वह कभी अपने कमरे को ताला नहीं लगाया करता था ।”


"कल से ही ताला लगाना शुरू किया है उन्होंने । " "तो फिर मैं कविता के कमरे में बैठता हूं।"


“अच्छा साहब ।" - नौकर बोला और फिर वह कविता के कमरे तक उसके साथ आया ।


प्रमोद कविता के कमरे में बैठ गया ।


नौकर चला गया ।


प्रमोद कितनी ही देर वहां बैठा इन्तजार करता रहा लेकिन राजेन्द्र नाथ नहीं लौटा ।


एकाएक प्रमोद को एक खयाल आया । वह उठ खड़ा हुआ ।


कविता के कमरे की चाबी दरवाजे के भीतर की ओर से ताले में लगी हुई थी । प्रमोद ने चाबी निकाल ली और बाहर आ गया ।


वह राजेन्द्र नाथ के कमरे के पास पहुंचा । उसने आस-पास देखा । कोई नौकर दिखाई दे रहा था । |


प्रमोद ने चाबी ताले में लगाई । ताला खुल गया ।


प्रमोद भीतर घुस गया । उसने चुपचाप भीतर से ताला लगा लिया ।


फिर उसने बड़ी सफाई से एक-एक चीज की तलाशी लेनी आरम्भ कर दी । वार्डरोब में कपड़ों के पीछे उसे एक छोटी-सी अटैची दिखाई दी। प्रमोद के अपने चाबियों के गुच्छे में से एक अटैची की चाबी थी । प्रमोद ने वह चाबी ने अटैची में लगाई । अटैची खुल गई ।


अटैची में सौ-सौ के नोटों की तीन गड्डियां थीं । प्रमोद ने नोट गिने | पूरे पच्चीस हजार थे ।


प्रमोद ने अटैची को बन्द करके यथास्थान रख दिया और बाहर निकल आया । उसने बाहर से ताला बन्द कर दिया और चाबी कविता के कमरे में वहीं पहुंचा दी, जहां से उसने निकाली थी ।


उसने नौकर को आवाज दी ।


"मैं जा रहा हूं।" - प्रमोद बोला- "राजेन्द्र नाथ पता नहीं कब लौटे ?"


"अच्छा साहब ।" - नौकर बोला ।


प्रमोद लिफट की ओर बढ़ गया । लिफ्ट ऊपर ही आ रही थी ।


प्रमोद प्रतीक्षा करने लगा ।


लिफ्ट ऊपर आ गई । उसका द्वार खुला और भीतर से आत्माराम निकला । उसके साथ दो सिपाही भी थे।


“आप !” - आत्माराम उसे देखकर हैरानी से बोला - " आप हर जगह पहुंच जाते हैं ! प्रमोद साहब ।”


"यही बात मैं आपसे कहने वाला था ।" - प्रमोद शान्ति से बोला ।


"यहां रहने वालों से मिलने आया था ।”


"हैं वे लोग ?"


"नहीं।"


आत्माराम ने उन लोगों को संकेत किया । दोनों फ्लैट की ओर चल दिए ।


उनके लौटने तक आत्माराम एक शब्द नहीं बोला ।


"नहीं हैं।" - एक सिपाही ने बताया ।


“खैर, कोई बात नहीं।" - आत्माराम बोला - "जरूरत तो हमें प्रमोद की भी थी।"


"मेरी ?"


“जी हां।" - आपकी फिर जरूरत पड़ने पर जो पहला विचार मेरे दिमाग में आया था, वह यह था..."


" कि पुलिस इन्स्पेक्टर की ड्यूटी भी कितना अप्रिय होती है।" - प्रमोद उसकी बात काट कर उसी के स्वर में बोला - "कितने अधिक काम करने पड़ते हैं उसे । वगैरह-वगैरह।"


आत्माराम के चेहरे से यूं लग रहा था जैसे किसी ने उसके पेट में घूंसा मार दिया हो ।


"देखा, इन्सपेक्टर साहब" - प्रमोद बोला - "आपके मन की बात मुझे फौरन मालूम हो जाती है। मैंने आपके मन में माइक्रोफोन लगाया हुआ है ।"


"प्रमोद साहब ।" - आत्माराम को प्रमोद ने पहली बार तीखे स्वर में बोलता सुना - "हत्या के मामले में पुलिस से मजाक आपको महंगा पड़ सकता है।"


- “अच्छा !" - प्रमोद आश्चर्य व्यक्त करता हुआ बोला. "मैं तो समझा था आप बड़े मजाक पसन्द आदमी हैं । "


“मजाक पसन्द आदमी हूं लेकिन अच्छे नागरिकों के साथ । अपराधियों के साथ नहीं ।"


"मैं अपराधी हूं ?"


"हत्या के नहीं तो चोरी के अपराधी तो हैं ही आप | शायद आप को यह जानकर अफसोस होगा कि हमने उर्मिला के बगल वाले फ्लैट में से जगन्नाथ की असली पोर्ट्रेट बरामद कर ली है । उस रात किस आदमी ने बगल का फ्लैट किराए पर लिया था, उसका हुलिया हूबहू आपसे मिलता है और इस बात में सन्देह नहीं कि वह आदमी आप ही थे । हमें गलीचे के नीचे से कैनवस और अलमारी में से फ्रेम के टुकड़े भी मिल गए हैं । उस पोर्ट्रेट को उर्मिला, वर्मा और उस रात उर्मिला को उसके फ्लैट पर लाने वाले ड्राइवर तीनों ने पहचान लिया है ।"


"फिर ?"


"फिर यह कि आप मेरे साथ दुबारा पुलिस हैडक्वार्टर चल रहे हैं।"


***