28 दिसम्बर !
सुबह दस बजे देवराज चौहान ने जंग बहादुर को फोन किया ।
"कहो देवराज चौहान ।" उसकी आवाज पहचानते ही उधर से जंग बहादुर ने कहा ।
"तुम शाम को छः बजे मुझे ब्लू स्टार होटल में आकर मिलना ।" देवराज चौहान बोला ।
"छः बजे पहुंच जाऊंगा । उस मकान के बारे में तुमने कुछ नहीं बताया, जिसके बारे में मैं जानकारी इकठ्ठी करके तुम्हें दे रहा हूं।"
"शाम को बताऊंगा ।"
"छः बजे तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा ।"
देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया और सिग्रेट सुलगा ली ।
ग्यारह बजे माथुर का फोन आया ।
"रात हम बाल्को खंडूरी के कमरे में गए थे। होटल में। पूरा कमरा छान मारा पर माइक्रोचिप नहीं मिली।" माथुर ने बताया।
"बाल्को ने मुंह नहीं खोला ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"नहीं। रात उसे सर्दी लग गई । बुखार हो गया है । दवा दे दी है उसे ।"
"उस पर सख्ती कायम रखो ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"वो तो हम कर ही रहे हैं । परंतु मुझे लगता है कि माइक्रोचिप स्ट्रांग रूम में रखे सूटकेस में हो सकती है ।"
"वो सूटकेस हमें मिल जाएगा। तुम अपनी पूछताछ बाल्को से जारी रखो । वो देर तक मुंह बंद नहीं रख सकेगा ।"
■■■
11:40 बजे जगमोहन माला के घर पहुंचा। माला बाहर कुर्सी पर बैठी उसका इंतजार करते मिली। उसे देखते ही वो दौड़कर जगमोहन के गले आ लगी। जगमोहन ने उसे बाहों में भर लिया।
"तुम कल नहीं आए। मेरा दिल नहीं लगा।" माला ने उसके सीने पर चेहरा रखे कहा ।
"अब सिर्फ तीन दिन बचे हैं।" जगमोहन ने उसकी पीठ थपथपाई--- "वक्त बीतता जा रहा है ।"
माला उससे अलग होते बोली ।
"आज तो शाम तक रहोगे न ?"
"हां । बंधु कहां है ?"
"वो भीतर तुम्हारा इंतजार कर रहा है। वो खुश है कि कसीनो का मैनेजर साथ देने को तैयार हो गया है ।" माला ने कहा ।
"मुझे बंधु से बात करनी है।" कहने के साथ ही जगमोहन, माला के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ा--- "आज नाश्ते में क्या है ?"
"तुम्हारे लिए मूली के परांठे, दही के साथ ।" माला ने मुस्कुराकर, प्यार से कहा ।
जगमोहन भीतर पहुंचा तो सामने ड्राइंग रूम में बंधु, पदम सिंह और गोरखा मौजूद थे ।
माला किचन की तरफ बढ़ गई ।
"मैं बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रहा था ।" बंधु हंस करके उठा--- "तुम्हारी गोटियां तो फिट बैठ रही है। बाज बहादुर हमारा साथ देने को तैयार है। सब कुछ आसान होता जा रहा है। तुम्हारी प्लानिंग शानदार है ।"
जगमोहन सोफे पर बैठा उसे देखता बोला ।
"असली प्लानिंग तो अब शुरू होनी है ।"
"नोटों को गिनने की ?" बंधु मुस्कुराया ।
"हां 31 दिसम्बर की रात नोटों को स्ट्रांग रूम से कैसे निकाला...।"
"मैंने उसे कहा था कि आज मैं उसे प्लानिंग के बारे में बताऊंगा।" बंधु बोला--- "वो कहता है कि गुरंग को छोड़कर बाकी सब के सामने पूरी तरह चलती है । गुरंग उस रात समस्या पैदा कर सकता है ।"
"आज कल गुरंग की शाम और रात कसीनो में ही बीतती है। सीजन का वक्त है ।" जगमोहन बोला ।
"तो 31 दिसम्बर की रात भी गुरंग कसीनो में होगा ।"
"हां। गुरंग के बारे में मैं सोच चुका हूं कि उस रात उसे कैसे संभालना है। तुम्हारे पास सबसे शानदार बंदा कौन-सा है ।"
"किस मामले में ?"
"गुरंग को संभालने के लिए ।"
"विजय ही ठीक रहेगा, उसके लिए ।" बंधु कड़वे अंदाज में मुस्कुरा कर बोला--- "लेकिन संभालना कैसे हैं ?"
"मैंने प्लानिंग बना ली है। वो ही बताने जा रहा हूं। आज रात ये प्लानिंग बाज बहादुर को दे देना। ताकि अगले दो-तीन दिन में वो प्लानिंग के हिसाब से अपने को पूरी तरह तैयार कर ले । गुरंग को संभालने वाली प्लानिंग उसे मत बताना। वो पूछे तो यही कहना कि गुरंग की वो फिक्र ना करे। 31 दिसम्बर की रात काम के वक्त वहां गुरंग कहीं नहीं होगा ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"क्या गुरंग को साफ करने का इरादा है ?" बंधु के होंठ सिकुड़े ।
"कभी नहीं।" जगमोहन ने दृढ़ स्वर में कहा--- "दौलत पाने के लिए मैं या देवराज चौहान कभी भी खून नहीं बहाते। ऐसे हालात पैदा हो जाएं तो हम काम छोड़ देते हैं। तुम भी ये बात सुन लो कि किसी भी कीमत पर, किसी की जान नहीं ली जाएगी ।"
"अगर कोई गड़बड़ हो गई तो...।"
"गड़बड़ नहीं होती। होती है तो भी किसी की जान नहीं लेनी है। ये बात कान खोलकर सुन लो ।" जगमोहन का स्वर सख्त हो गया ।
बंधु चुप रहा ।
"मुझे जवाब चाहिए कि तुमने बात सुनी कि नहीं ?" जगमोहन पुनः बोला ।
"तुम जैसा कहोगे, वैसा ही होगा ।" बंधु ने शांत स्वर में कहा ।
"अपने साथियों को भी ये बात अच्छी तरह समझा देना ।"
"निश्चित रहो ।" बंधु ने सिर हिलाया ।
तभी जगमोहन का मोबाइल बज उठा ।
"हैलो ।" जगमोहन ने बात की ।
"जगमोहन।" बाज बहादुर की व्याकुलता से भरी आवाज कानों में पड़ी--- "सब कुछ सोच कर मुझे बेचैनी-सी हो रही है ।"
"मुझे बताइए साहब जी । क्या बात है ।" जगमोहन कह उठा ।
बंधु, पदम सिंह और गोरखा की नजरे जगमोहन पर टिक गई थी ।
"मैं जो करने जा रहा हूं क्या वो ठीक है ?" उधर से बाज बहादुर ने कहा ।
"बिल्कुल ठीक है साहब जी । आपने क्या अपने बेटे को बचाना नहीं है। मैडम जी से बात की इस बारे में ।"
"हां। उसे सब कुछ बता दिया है। ये भी बताया है कि मैंने गोपाल से बात की । वो खुशी है कि गोपाल वापस आ जाएगा।"
"तो फिर परेशान होने की क्या बात है साहब जी। मैं हर कदम पर आपके साथ हूं। आपके लिए तो जान भी दे दूंगा ।"
"इस वक्त एक तुम ही हो, जो इस मुसीबत में अपने नजर आ रहे हो ।"
"आप किसी बात की फिक्र मत कीजिए साहब जी । आधी रात को भी फोन करेंगे तो मैं फौरन हाजिर हो जाऊंगा । गोपाल को वापस लाना है हमने ।"
"हां । गोपाल को लाना है। नहीं तो उसकी मां जिंदा नहीं रहेगी।" बाज बहादुर के गहरी सांस लेने की आवाज आई--- "कल गुरंग मिला कसीनो में । उसने एक बार भी गोपाल के बारे में नहीं पूछा । सीजन की ही बातें करता रहा ।"
"साहब जी, बड़े साहब को तो कसीनो से मतलब है। आपके बेटे से उन्हें प्यार क्यों होगा। उन्हें तो कसीनो से प्यार होगा । आप जो कर रहे हैं ठीक कर रहे हैं । किसी शक-वहम में मत पड़िए। मैं आपके साथ हूं ।" इसके साथ ही बातचीत खत्म हो गई ।
जगमोहन ने फोन बंद करके जेब में रखा ।
"बाज बहादुर का फोन था ?" बंधु ने पूछा ।
"हां । अभी थोड़ा बहुत ही कमजोर पड़ेगा, परंतु दो-एक दिन में पूरी तरह संभल जाएगा ।" जगमोहन ने स्वर में कहा ।
तभी माला नाश्ते की दो प्लेट ले आई । एक अपने लिए, दूसरी जगमोहन के लिए। माला भी उसके पास ही सोफे पर बैठ गई । जगमोहन नाश्ता करने लगा । माला भी खाने लगी ।
नाश्ते के दौरान जगमोहन ने बंधु से कहा ।
"स्ट्रांग रूम में एक काला सूटकेस रखा है। वो सूटकेस मेरा होगा ।"
"क्या है उसमें ?"
"उसमें ऐसा कुछ है जो लेने मैं और देवराज चौहान काठमांडू आए हैं ।"
"उसमें नोट हैं ?"
"अगर नोट हैं तो वो तुम्हारे। हमें जो चाहिए, उसका वास्ता दौलत से नहीं है ।" जगमोहन ने कहा ।
"ले लेना । इसमें मेरी इजाजत की क्या जरूरत है ।"
"मैं तुम्हारी इजाजत नहीं ले रहा । तुम्हें पहले ही बता रहा हूं कि वो सूटकेस जब स्ट्रांग रूम से बाहर आए तो मेरी अमानत समझ कर, उसे संभाल कर रखना। तुम्हें बाज बहादुर से कहना है कि स्ट्रांग रूम में रखा बाल्को खंडूरी का सूटकेस भी बाहर निकालना है। ये बात अभी कहने की जरूरत नहीं। 30 दिसम्बर की रात को कहना, जब काम होने वाला हो ।"
"इसका मतलब तुम भी उस सूटकेस को पाने के लिए, स्ट्रांग रूम तक जाते हो।"
"ऐसा कुछ नहीं है। अगर ये काम न हो रहा होता तो हम सूटकेस को दूसरे ढंग से बाहर निकलवाते ।" जगमोहन बोला--- "फालतू की बातें छोड़ो और सिर्फ वो बात करो, जो तुम्हारे काम से वास्ता रखती हो ।"
"तुम्हें अब प्लानिंग बतानी है कि 31 दिसम्बर की रात काम कैसे होगा । गुरंग को कैसे संभालना है ।" बंधु ने गम्भीर स्वर में कहा--- "इस काम में गड़बड़ नहीं होनी चाहिए। नहीं तो हमारी सारी मेहनत खराब हो जाएगी और मैं माला की शादी कैलाश से...।"
"ये बात अपने दिमाग में बैठा लो कि माला मेरी हो चुकी है ।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा--- "मैंने तुम्हें पहले ही समझाया था और अब भी कह रहा हूं कि माला को यहां से ले जाना मेरे लिए मामूली काम है। तुम माला के भाई हो, इसलिए मैं ये काम तुम्हारे लिए कर रहा हूं ।"
बंधु मुस्कुरा पड़ा ।
"कैलाश का जिक्र करने का ये मेरा ही मतलब था कि तुम बढ़िया प्लान बनाओ कि हम सफल रहें ।"
"दोबारा मेरे सामने माला और कैलाश की बात मत करना ।" जगमोहन ने चुभते स्वर में कहा--- "तमीज से मेरे सामने पेश आओ। जो काम हो रहा है, उसी के बारे में सोचो। उसी के बारे में बात करो । वरना अब की बार तुम्हें भुगतना पड़ेगा ।"
"तुम बहुत जल्दी नाराज हो जाते हो ।" बंधु हंसा ।
जगमोहन ने माला को देखा जो चुभती नजरों से बंधु को देख रही थी । एकाएक वो कह उठी ।
"इसे मजा चखा दो जगमोहन । ये डकैती यहीं पर छोड़ दो और हम यहां से चलते हैं " माला गुस्से में आ गई थी ।
जगमोहन के चेहरे पर सख्ती छाई रही। कहा कुछ नहीं ।
नाश्ते के बाद जगमोहन बंधु को समझाने लगा कि 31 दिसम्बर की रात कसीनो के स्ट्रांग रूम में डकैती कैसे करनी है। कैसे करोड़ों की दौलत वहां से बाहर आएगी और उसने बाज बहादुर को क्या-क्या समझाना है ।
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रात आठ बजे कसीनो में जब देवराज चौहान, जंग बहादुर के साथ था तो जगमोहन टकरा गया ।
जंग बहादुर पचास वर्ष का ठिगने कद का स्वस्थ व्यक्ति था। उसने सूट पहन रखा था और उसके झुर्रियों वाले चेहरे पर हमेशा ही मुस्कान ठहरी रहती थी । जंग बहादुर मुम्बई में उनके साथ काम कर चुका था और इन दिनों काठमांडू में अपने परिवार के साथ रह रहा था ।
"मजे हो रहे हैं।" जंग बहादुर ने मुस्कुराकर जगमोहन से कहा ।
"तुम यहां कहां ?" जगमोहन ने जंग बहादुर को देखने के बाद, देवराज चौहान को देखा ।
"देवराज चौहान का अकेले में दिल नहीं लग रहा था, मुझे बुला लिया।" जंग बहादुर बराबर मुस्कुरा रहा था--- "सुना है तुम शादी करने जा रहे हो। मुझे बुलाना मत भूलना, वैसे मैंने तुम्हारी शादी की तैयारियां शुरू कर दी हैं ।"
"वो कैसे ?" जगमोहन मुस्कुराया ।
"जिस दिन बैंड बजेगा, तब खुद ही देख लेना ।" जंग बहादुर ने हंसकर जगमोहन से कहा
जगमोहन वहां से चला गया तो जंग बहादुर देवराज चौहान से बोला ।
"शादी की बात पर खुश है जगमोहन ।"
देवराज चौहान ने जंग बहादुर को देखा, कहा कुछ नहीं ।
"तुम किसी गेम में किस्मत नहीं आजमा रहे ?"
"इस तरह का जुआ मुझे पसंद नहीं ।" देवराज चौहान बोला ।
"छोड़ो भी। कसीनो में आए हो तो कुछ खेलो भी। नेपाली होने के नाते मैं तो कसीनो में खेल नहीं सकता। तुम्हें खेलते तो देख सकता हूं। आओ मशीनों पर दांव लगाते हैं ।" जंग बहादुर ने देवराज चौहान की बांह पकड़ी और मशीनों वाले हॉल की तरफ चल पड़ा ।
रात ग्यारह बजे बाज बहादुर, जगमोहन से मिला और धीमी-से बोला ।
"उन लोगों का फोन आया था ।" स्वर में बेचैनी थी--- "उन्होंने मुझे बताया कि काम कैसे करना है ।"
"आपको उनकी प्लानिंग ठीक लगी ?" जगमोहन फुसफुसाया ।
"प्लानिंग तो ठीक है। नोटों को स्ट्रांग रूम से बाहर निकालकर, बाहर खड़ी गाड़ी में रखना है। गोपाल भी मुझे वापस मिल जाएगा। परंतु उसके बाद के हालातों के बारे में सोच कर कांप जाता हूं । पुलिस मुझे पकड़कर जेल में डाल देगी ।"
"जब वो वक्त आएगा साहब जी तो वो भी देख लेंगे। पहले गोपाल को तो बचाइए ।"
"तुम कल मेरे घर आना। दोनों इकट्ठे लंच करेंगे। तुम्हें उनकी योजना बताकर, तुमसे सलाह लूंगा ।"
"ठीक है साहब जी, कल मैं आपके पास पहुंच जाऊंगा ।"
"जब स्ट्रांग रूम में नोट निकाले जाएंगे तो, उस वक्त उन्होंने गुरंग साहब को संभालने का कुछ सोचा है। पर मुझे नहीं बताया ।"
"आपको क्या करना है मालूम करके। वो जैसे कहते हैं, करते जाइए ।"
"वो कहीं गुरंग साहब की जान न ले ले ।"
"ऐसी गलत हरकत नहीं करेंगे। बाकी बात कल करेंगे साहब जी। यहां इस बारे में बात करना ठीक नहीं ।" जगमोहन ने आहिस्ता से कहा ।
उसके आधे घंटे बाद जगमोहन ने बंधु को फोन किया ।
"मैंने उसे समझा दिया है कि स्ट्रांग रूम से नोट कैसे निकाले जाएंगे ।" बंधु की आवाज कानों में पड़ी ।
"उसने कल मुझे अपने घर बुलाया है। इसी मुद्दे पर मुझसे बात करेगा । वक्त पर फुर्सत मिली तो आऊंगा, नहीं तो नहीं । माला को बता देना ।"
"ठीक है। कोई नई बात हो तो फोन करना।" उधर से बंधु ने इतना ही कहा ।
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29 दिसम्बर !
नहा-धोकर जब जगमोहन साढ़े ग्यारह बजे कमरे से निकला और टैक्सी पर बाज बहादुर के घर जा रहा था तो ठीक तभी माला का फोन आया। वो नाराज थी कि आज क्यों नहीं आ रहा, हालांकि बंधु ने उसे बता दिया था कि उसने बाज बहादुर के घर जाना है, ये बात भी माला नहीं जगमोहन को कही, पर माला ने कहा कि उसके बिना उसका दिल नहीं लगेगा । जगमोहन ने कहा कि बाज बहादुर से उसे वक्त रहते फुर्सत मिल गई तो वो जरूर उसके पास पहुंचेगा । माला ने इस बात का वादा लिया ।
बाज बहादुर अपने घर पर उसके इंतजार में ही था। वो बेचैन था। जगमोहन को लेकर बाज बहादुर इन्हीं बातों में लग गया । उसे बंधु की बताई योजना बताने लगा। बंधु अपने हिस्से के काम को ठीक से संभाल रहा था। उसने उसी ढंग से बाज बहादुर को योजना बताई थी जिस ढंग से उसने बंधु को समझाया था। दोपहर का खाना भी उन्होंने साथ खाया। उससे सलाह लेता रहा बाज बहादुर । दिन भर इसी मुद्दे पर बात होती रही। बाज बहादुर बहुत चिंतित था कि क्या 31 दिसम्बर को सारा काम ठीक-ठाक ढंग से निपट जाएगा ? अब वो पुलिस के बारे में तो बात ही नहीं करता था। स्ट्रांग रूम से पैसा निकालने की बात करता था और गोपाल की सही-सलामत वापसी की बात करता था। उस शाम भी बाज बहादुर और जगमोहन इकट्ठे ही कसीनो पहुंचे थे और स्टोर रूम से कसीनो की वर्दी के रूप में कमीज-पैंट और सफेद कमीज ले ली थी। तय वक्त के मुताबिक रात के नौ बजे बंधु का फोन आया, बाज बहादुर ने बात की और नया मोबाइल नम्बर दिया। बाज बहादुर ने बंधु से भी कई सवाल पूछे और गोपाल से थोड़ी-सी फोन पर बात भी की ।
देवराज चौहान और जंग बहादुर सुबह से इकठ्ठे ही रहे । उधर सूर्य थापा ने फोन पर देवराज चौहान को बता दिया था कि जगमोहन आज उस लड़की से मिलने वहां नहीं पहुंचा। रात देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन करके पूछा था कि आज दिन भर कहां रहा? जगमोहन ने उसे बाज बहादुर के बारे में बता दिया था और आगे बढ़ते काम के बारे में भी सब कुछ बताया। इन्हीं बातों के साथ 29 दिसम्बर का दिन खत्म हो गया।
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30 दिसम्बर !
आज सुबह दस बजे ही बाज बहादुर का फोन जगमोहन को आ गया । तब जगमोहन सोया हुआ था ।
"जगमोहन।" बाज बहादुर का व्याकुल स्वर उसके कानों में पड़ा तो उसकी आंखें खुल गई--- "मुझे बहुत घबराहट हो रही है कल रात के बारे में सोच कर। हिम्मत जवाब दे रही है कि मैं कैसे काम कर पाऊंगा ?"
बाज बहादुर की हिम्मत बढ़ाते रहना जरूरी था। अगर कसीनो के स्ट्रांग रूम में डकैती करनी है तो? इस योजना का सारा खेल बाज बहादुर पर ही निर्भर था। उसकी हिम्मत कम नहीं होनी चाहिए ।
"आप तो खामखाह घबरा रहे हैं साहब जी ।" जगमोहन बोला--- "कल सारा काम ठीक से हो जाएगा ।"
"अकेले में मुझे घबराहट होती है। तुम मेरे पास आ जाओ ।" उधर से बाज बहादुर ने कहा ।
"आ जाता हूं ।" जगमोहन ने कहकर फोन बंद किया और बंधु को फोन किया ।
"हैलो ।" बंधु की आवाज कानों में पड़ी ।
"मैं आज नहीं आ पाऊंगा। बाज बहादुर थोड़ा घबरा रहा है मुझे उसके पास जाना होगा ।" जगमोहन ने कहा ।
"वो तो ठीक है, पर हमारी बातचीत भी आज होनी थी। तुमने कल रात के बारे में बताना था ।" बंधु उधर से बोला ।
"उसकी चिंता मत करो। कल का सारा दिन हमारे पास है । तुमने वैन का इंतजाम कर लिया?"
"पदम सिंह सरकारी अस्पताल की बड़ी वाली एंबुलैंस उड़ा लाएगा। उसके ड्राइवर से बात कर ली है। पांच हजार में वो इस शर्त पर एंबुलैंस हवाले करने को तैयार है कि अगले दिन बारह बजे से पहले उसे एंबुलैंस वापस मिल जाए ।"
"एंबुलैंस बड़ी वाली है ?"
"मिनी बस से थोड़ी-सी छोटी है ?"
"फिर ठीक है। एंबुलैंस का ड्राइवर पदम सिंह को जानता है ?"
"नहीं जानता ।"
"एंबुलैंस कल रात नौ बजे तक तुम्हारे पास होनी चाहिए ।"
"पास ही होगी ।"
"अब कल बात होगी ।"
जगमोहन नहा-धोकर तैयार ही हुआ था कि बंधु के फोन से माला का फोन आ गया ।
"तुम आज भी नहीं आ रहे ।" माला ने उधर से शिकायत भरे स्वर में कहा ।
जगमोहन के होंठों पर मुस्कान नाच उठी ।
"आज और कल का दिन ही तो है फिर हमें साथ ही रहना है । कल स्ट्रांग रूम का पैसा बाहर निकालना है। इसलिए मेरा बाज बहादुर के साथ रहना ही ठीक है । कल जरूर आऊंगा ।"
"तुम ये काम जल्दी खत्म क्यों नहीं करते? मेरा तुम्हारे बिना दिल नहीं लगता ।"
"कल खत्म हो जाएगा।" किसी तरह माला को समझाकर, जगमोहन ने फोन बंद किया ।
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जगमोहन, बाज बहादुर के घर पहुंचा। बाज बहादुर से बात हुई। बाज बहादुर वास्तव में परेशान और चिंतित लग रहा था । कल रात स्ट्रांग रूम से पैसा निकालने की सोच कर घबराहट हो रही थी उसे। जगमोहन ने उसे मेहनत करके ढेरों तसल्लियां दीं। किसी प्रकार उसका ब्लड प्रेशर सामान्य करने में सफल हो सका। इसके लिए उसकी पत्नी का की बुरी हालत का वास्ता दिया। गोपाल के वापस आ जाने की झलक दिखाई। अंत में कह उठा ।
"मैं आपके साथ हूं साहब जी। आपके लिए तो जान भी दे सकता हूं ।"
"नोटों को डालने के लिए सूटकेसों का इंतजाम करना है जगमोहन । वो कैसे होगा ?"
"मैं इंतजाम कर दूंगा । बाजार से ले आऊंगा ।"
"कितने सूटकेस लाओगे ?"
"जितने आप कहें। साहब जी नोट तो ज्यादातर विदेशी करेंसी में होंगे ।"
"हां। यूरो और डॉलर ज्यादा संख्या में हैं। विदेशियों से ही मिलते हैं। हिन्दुस्तान की करेंसी भी है। हमने बैंकों से बात कर रखी होती है और उन्हें छोटे नोट देकर बड़े नोट ले लेते हैं । दिन में एक बार कसीनो की वैन छोटे नोटों को बैंक ले जाती है । जिसके बारे में बैंकों को पहले ही खबर की जाती है तो वो उसी हिसाब से डॉलर या यूरो या हजार के हिन्दुस्तानी नोट तैयार रखती है।"
"फिर तो ज्यादा सूटकेसों की जरूरत नहीं पड़ेगी। दस बड़े सूटकेसों में ही 60 से 80 करोड़ तक की रकम आ जाएगी ।" जगमोहन ने कहा ।
"तुम बाजार से बारह सूटकेस खरीद लेना। पैसे मैं दे दूंगा ।" बाज बहादुर ने कहा ।
"आज तो तीस तारीख है। सूटकेसों को कल खरीदना ठीक रहेगा ।"
"कल ही सही।" बाज बहादुर ने सूखे होठों पर जीभ फेर कर कहा--- "तुम आज और कल मेरे साथ ही रहो। मुझे हर वक्त डर लगा रहता है। इन सब बातों को सोच कर मैं बार-बार कांप जाता हूं ।"
"जो हुकुम साहब जी ।"
"आज मेरे साथ ही कसीनो चलना। मुझे गोपाल की चिंता है । ये काम ना हुआ तो वो लोग गोपाल को मार देंगे ।"
■■■
रात 9:30 बजे कसीनो में जगमोहन की मुलाकात देवराज चौहान और जंग बहादुर से हुई ।
"तुम क्यों साथ चिपके फिर रहे हो ।" जगमोहन ने जंग बहादुर से कहा ।
"बताया तो मेरे बिना देवराज चौहान का दिल नहीं लगता ।" जंग बहादुर हंसा ।
"तुम्हारा काम कैसा चल रहा है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"एकदम ठीक । कल रात ग्यारह और बारह के बीच काम होगा।" जगमोहन ने आहिस्ता से कहा ।
"यहां से दौलत कहां ले जाई जाएगी ?"
"बंधु चाहता है कि दौलत को उसी के घर पर ले जाएं। वहां से जहां भी चाहेगा, पैसा ठिकाने लगा लेगा ।"
"पैसा किस में ले जाना है ?"
"इसके लिए उसने सरकारी हॉस्पिटल की बड़ी वाली एंबुलैंस का इंतजाम किया है ।"
"उस काले सूटकेस को मत भूलना ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"सब याद है ।"
"उसके बाद तुम शादी करोगे ।" जंग बहादुर ने कहा ।
"तुम मेरी शादी के पीछे क्यों पड़े हो ।" जगमोहन मुस्कुराया ।
"तेरी शादी में बैंड तो मैंने ही बजाना है। इंतजार है मुझे उस वक्त का ।" जंग बहादुर पुनः हंसा ।
फिर जगमोहन रात 12:30 बजे बाज बहादुर से मिला ।
"जगमोहन ।" बाज बहादुर सूखे स्वर में बोला--- "न जाने क्यों मेरा दिल घबरा रहा है ।"
"साहब जी। घबराने की क्या बात है। मैं आपके साथ हूं। आप कुर्सी पर बैठे रहिएगा, आपके हुक्म से सारा काम में निबटा दूंगा। कल इस वक्त तक तो सारा काम ही खत्म हो चुका होगा।" जगमोहन ने बेहद शांत स्वर में कहा ।
"तुम्हें डर नहीं लग रहा ?"
"मुझे डर क्यों लगेगा। आपके बेटे को वापस लाना है साहब जी। आपके लिए तो मैं जान भी दे सकता हूं ।"
"कल पुलिस तुम्हें भी पकड़ सकती है।" बाज बहादुर वास्तव में बहुत परेशान था ।
"आपके लिए तो फांसी पर भी चढ़ जाऊंगा। आप कितने अच्छे इंसान हैं जो अपने बेटे को बचाने के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी दे रहे हैं तो मैं क्या आपके लिए इतना भी नहीं कर सकता ।"
"तुम्हारा बहुत हौसला है मुझे। तुम कल सुबह मेरे पास आ जाना। अकेले में मुझे घबराहट होगी ।"
"पहुंच जाऊंगा साहब जी। फिर कल तो बारह बड़े वाले सूटकेस भी खरीदने हैं। कल बहुत काम रहेगा। आज फोन आया था ?"
"हां कल के बारे में ही बात होती रही। उसने मुझे फिर बताया कि काम कैसे होना है। मैंने गुरंग साहब के बारे में पूछा कि उन्हें कैसे कसीनो में आने से रोकेंगे तो उसने कहा, ये बात कल बताऊंगा ।"
"आप क्यों चिंता करते हैं। ये उनका काम है कि...।"
"मुझे डर है कि कहीं वो गुरंग साहब की जान ना ले लें ।"
"आप तो खामखाह के वहम में पड़ रहे हैं साहब जी । जो लोग आपसे ये काम करवा रहे हैं वो बच्चे तो नहीं। उन्हें भी पता है कि हत्या हो जाने से मामले को संगीन माना जाएगा। मुझे पूरा विश्वास है कि वो गुरंग साहब की जान नहीं लेंगे ।"
"तुम्हें भरोसा है इस बात का?" बाज बहादुर सच में परेशान था।
"पूरा भरोसा है साहब जी। मेरा भरोसा कभी खाली नहीं जाता।" जगमोहन ने कहा ।
बाज बहादुर के चेहरे पर फिर भी तसल्ली के भाव ना आए। वो वहां से आगे बढ़ गया।
जगमोहन रात तीन बजे तक कसीनो में ड्यूटी पर रहा। उसके बाद ड्यूटी समाप्त होने पर सवा तीन बजे कसीनो से बाहर निकल कर पैदल ही आगे बढ़ गया। कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। बुरा हाल हो रहा था। ओस पड़ने से सड़कें, हर चीज गीली हो रही थी। ठंड ठिठुरा रही थी। दोनों हाथ छाती पर बांधे जगमोहन आगे बढ़ते, माला के बारे में सोच रहा था। बीते दिन भी उसे बाज बहादुर के घर जाना पड़ा था और कल भी उसे बाज बहादुर के घर जाना था। ऐसे में वो माला से नहीं मिल पाएगा। माला फिर नाराज होगी। वो खुद भी माला से मिलना चाहता था। उसे देखना चाहता था। इस वक्त तो वो नींद में होगी। कोई बात नहीं। चुपके से उसके घर में किसी तरह प्रवेश कर जाएगा और कमरे में सो जाएगा। सुबह जब माला उसे वहीं पर पाएगी तो हैरान हो जाएगी। इस विचार के साथ जगमोहन के होंठों पर मुस्कान रेंग गई। वो अपने कमरे की तरफ न जाकर, माला के घर की तरफ चल पड़ा। सिर्फ एक दिन ही तो बाकी था। अब तो 24 घंटे भी बाकी नहीं बचे थे। स्ट्रांग रूम की दौलत बंधु के हवाले करके, माला को लेकर उसने वापस मुंबई पहुंच जाना था। नई जिंदगी शुरु करेगा। माला के हर पल के साथ के बारे में सोच कर ही रोमांचित हो उठा ।
आधे घंटे में वो माला के घर तक जा पहुंचा। माला की सोचों में इस कदर डूबा हुआ था कि सर्दी का एहसास उसे जरा भी नहीं हुआ । बाहरी गेट को धकेल कर खोला और भीतर आ गया । सामने काफी खुली जगह थी। मकान के माथे पर एक बल्ब जल रहा था । परंतु सर्दी और कोहरे की वजह से उसकी रोशनी दूर तक नहीं जा रही थी। दो कारें, वही खड़ी थी, जहां उसने पहले खड़ी देखी थी। वो मकान के पास पहुंच गया। इस बे-वक्त बेल मार कर सबको नींद से उठा और चौंकाने का इरादा नहीं था उसका। उसने दरवाजे को धक्का दिया। परंतु वो बंद था तो मकान के गिर्द घूमता वो खिड़कियों को टटोलने लगा कि कोई खुली मिल जाए ।
एक खिड़की मिल गई। उसने चैन की सांस ली। खिड़की के पल्ले खोले । इस मकान में किसी भी खिड़की पर ग्रिल नहीं थी। जगमोहन चौखट पर चढ़ा और खिड़की से भीतर प्रवेश कर गया। खिड़की बंद की। अब सर्दी का एहसास कम हुआ । उसने खुद को एक कमरे में पाया। अंधेरे में टटोलकर लाइट जलाई, परंतु कमरा खाली था। वो सोचने लगा की माला किस कमरे में होगी। कमरे के बाहर निकलकर वो अन्य कमरों में झांकने लगा। एक कमरे की लाइट जल रही थी। वहां पदम सिंह और विजय सोए पड़े थे। जिस कमरे में बाज बहादुर के बेटे गोपाल को रखा गया था, उस कमरे का दरवाजा बंद था, जिसे धकेलने पर थोड़ा-सा खुल गया। जगमोहन ने भीतर झांका बैड पर गोपाल के साथ गोरखा सो रहा था। जगमोहन वहां से हटा और अन्य कमरों को देखने लगा । माला भी किसी कमरे में गहरी नींद में होगी और...।"
अगले ही पल जगमोहन ठिठक गया ।
उसे बातों की, हंसने की कुछ ऐसी आवाजें दो पल के लिए सुनाई दी थी। परंतु अब सब कुछ शांत था। जगमोहन को लगा उसे वहम हुआ है। शायद कुछ नहीं सुना उसने। सामने ही एक बंद कमरे का बंद दरवाजा था। पास पहुंचकर दरवाजों को थोड़ा-सा धकेला और भीतर झांका। कमरे में मध्यम-सा प्रकाश था। वो भीतर देखने लगा। अगले ही पल उसे तेज सांसे चलने जैसी आवाज कानों में पड़ी। वो कमरे में देखता रहा । आंखें उस मध्यम रोशनी में देखने की अभ्यस्त होती जा रही थी।
फिर उसने जो देखा उसने उसकी सांसे थम-सी गई
वो माला ही थी। उस मध्यम रोशनी में उसने स्पष्ट पहचाना माला को। उसके साथ बंधु था। दोनों पूरी तरह नंगे थे। उनके जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था और वो, वो दोनों खेल, खेल रहे थे जो आदमी और औरत के बीच, खामोशी से खेला जाता था। बंधु माला के ऊपर था और जोरो से हिल रहा था । माला ने अपनी दोनों टांगे फैलाकर उठा रखी थी। उनकी गर्म सांसों की आवाजें जगमोहन के कानों में स्पष्ट पड़ रही थी। किसी भांप वाले इंजन से निकलती, जैसे सांसों की आवाजें ।
जगमोहन की आंखें फैल चुकी थी। दुनिया भूल गया था वो ।
हक्का-बक्का सा खड़ा वो माला और बंधु के खेल को देख रहा था । चेहरे पर अविश्वास के भाव थे। ये सब देखते वो कुछ भी नहीं सोच रहा था। दिमाग खाली हो गया था उसका। बुत-सा बना खड़ा रहा वो, दरवाजा मात्र छः इंच खुला था और उसी में से वो उस खेल को देख रहा था, जिसकी कल्पना तो उसने सपने में भी नहीं की थी ।
फिर उसने खेल को खत्म होते देखा ।
बंधु, माला की बगल में ही लेट गया । कई पलों तक वहां चुप्पी रही ।
जगमोहन आंखें फाड़े अभी तक वहीं-का-वहीं खड़ा था ।
"माला ।" बंधु की आवाज उसने सुनी--- "कल इस वक्त तक हमारे पास कितनी बड़ी दौलत होगी ।"
"मैं उस पागल जगमोहन के बारे में सोच रही हूं । जो हमें भाई-बहन समझ रहा है। मेरे साथ रहने का सपना देख रहा है ।" माला की हंसने की आवाज भी आई--- "कल जब उसे असलियत पता चलेगी तो बेचारा बुरे हाल में फंस जाएगा ।"
"उसे जिंदा नहीं छोड़ना है " बंधु बोला--- "वो देवराज चौहान का साथी है। अपने साथ हुए धोखे को भूलेगा नहीं और हम से बदला भी ले सकता है। उसे शूट करके उसकी लाश खाई में फेंक देंगे ।"
"जो तुम ठीक समझना, वो ही करना। मुझे तो नोटों से मतलब है।" माला ने लापरवाही से कहा ।
जगमोहन दरवाजे से हट गया ।
उसके मस्तिष्क में धमाके फूटने लगे ।
माला? जिस पर वो जान देता था। उसका नया रूप उसके सामने आया था। वो कमीनी निकली। धोखेबाज निकली, फरेबी, मक्कार और चालबाज निकली । उसके साथ शुरू से ही खेल खेला गया था। माला ने उसे फांसा। बंधु के सहारे उसे किस खूबसूरती के साथ डकैती के लिए तैयार किया । उसे जरा भी शक नहीं हुआ, न माला पर, न बंधु पर । उस पर माला को अपना बनाने की धुन सवार थी और माला, बंधु अपनी चाल चलते उसे अपने ही इशारों पर नचाते रहे और वो डकैती के लिए तैयारी करता रहा। जबरदस्त धोखे का शिकार हुआ था वो। वो चाहता तो अभी दोनों को शूट कर सकता था। परंतु अभी ऐसा नहीं करना था। स्ट्रांग रूम से बाल्को का काला सूटकेस लेना था और गोपाल को बाज बहादुर तक पहुंचाना था। स्पष्ट था कि ये डकैती करना उसके लिए भी जरूरी हो गया था ।
जगमोहन जिस खिड़की के रास्ते भीतर आया था, वहीं से बाहर निकला और वहां से दूर होता चला गया। चेहरे पर, मन में माला के प्रति गुस्सा था। मन में नफरत भर आई थी। माला का अभी नया रूप देखा था उसने। वो बेवकूफ था जो कि माला के प्यार में इस कदर डूब गया था कि उसे और कुछ भी दिखाई नहीं दिया । बंधु का माला को मारना, उसे तकलीफ देना, सब कुछ इसलिए था कि वो माला को सहानुभूति का पात्र समझे । वो धोखे में फंसा रहे। बंधु और माला ने सच में शानदार नाटक खेला था और वो नहीं भांप सका था कि उसके गिर्द जाल बुना जा रहा है। उसे सिर्फ माला ही दिखी और वो माला की खूबसूरत चेहरे में डूबा रहा। माला ने उसे बहुत ही चालाकी और खूबसूरती के साथ फांसा था। माला का असली रूप सामने आने पर भी, जगमोहन बेहद शांत रहा था। तकलीफ उसे बहुत हो रही थी, परंतु सब्र बनाए रखा उसने। डकैती के बाद बंधु और माला उसे खत्म करने का प्लान बनाए बैठे हैं ।
"मान गए तेरे को ।" जगमोहन ने बड़बड़ाते हुए आसमान की तरफ देखा--- "तू भी क्या-क्या खेल दिखाता है ।"
जगमोहन को लग रहा था कि उसे आसमान से सीधा जमीन पर फेंक दिया हो। कहां माला के साथ जीवन बिताने के सपने देख रहा था और अब पलों में ही माला उससे इतनी दूर हो गई थी कि वो दिखनी बंद हो गई। वो शातिर दिमाग थी। महाचालाक थी। अपनी खूबसूरती से दूसरों को बेवकूफ बनाना, बखूबी आता था उसे। कितनी आसानी से उसे फंसा लिया था। और वो भी फंस गया था। माला को अपना मान बैठा था, जबकि वो घटिया और सस्ती औरत थी। उसकी असलियत जगमोहन ने देख ली थी ।
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31 दिसम्बर !
जगमोहन की आंख मोबाइल फोन की बेल बजने पर खुली । उसने घड़ी में वक्त देखा, दिन के बारह बज रहे थे। माला का ख्याल आते ही उसका चेहरा कड़वी मुस्कान से भर उठा। थके-से अंदाज में उसने फोन पर बात की। दूसरी तरफ बाज बहादुर था, जो कि काफी परेशान लग रहा था। उसकी आवाज में भरपूर बेचैनी थी ।"
"तुम पहुंचे नही अभी तक ।" बाज बहादुर की आवाज कानों में पड़ी ।
"आपके पास आने में वक्त लगेगा साहब जी। मैं सूटकेस खरीदने जा रहा हूं ।" जगमोहन बोला ।
"ओह हां, वो तो मैं भूल ही गया था । तुम सब कुछ याद रखते हो। तुम मेरे बहुत काम आ रहे हो ।" बाज बहादुर का तेज कानों में पड़ रहा था--- "तुम जल्दी से मेरे पास आओ सूटकेस खरीदने के बाद । उन्हें रखोगे कहां ?"
"दुकान पर ही रहने दूंगा खरीदकर और शाम को उठा लूंगा। ये काम करके मैं आपके पास पहुंचता हूं ।"
उसके बाद जगमोहन ने देवराज चौहान को फोन किया ।
"तुम मेरे पास आ जाओ ।" जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा--- "तुमसे कुछ बात करनी है । मेरा होटल में आना ठीक नहीं।"
"तुम कमरे पर हो ?" उधर से देवराज चौहान ने पूछा ।
"हां ।"
"मैं आता हूं ।"
उसके बाद जगमोहन नहा-धोकर तैयार हुआ। चेहरे पर गम्भीरता ठहरी हुई और सोचों में माला की धोखेबाजी नाच रही थी। बार-बार आंखों के सामने, माला और बंधु को बेड पर देख रहा था, जो नजारा रात को उसने देखा था ।
डेढ़ घंटे बाद देवराज चौहान आ पहुंचा। साथ में जंग बहादुर भी था। जगमोहन के चेहरे को देखते ही देवराज चौहान समझ गया कि कोई खास बात ही है । जंग बहादुर मुस्कुरा कर बोला ।
"आज 31 दिसम्बर है। तो कल तुम शादी करने वाले हो । मैं नाचूंगा तुम्हारी बारात में ।"
"शादी नहीं होगी ।" जगमोहन ने शांत स्वर में कहा ।
देवराज चौहान और जंग बहादुर की नजरें मिली ।
"मेरा नाचना तुम्हें बुरा लगता है तो मैं नहीं नाचूंगा । पर शादी तो कर लो ।" जंग बहादुर गम्भीर हो गया ।
"ये बात नहीं ।" उसके बाद जगमोहन ने उन्हें रात की सारी बात बता दी कि उसने क्या देखा और क्या सुना ।
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली। होंठों पर मुस्कान नाच उठी थी ।
"तो मालूम हो गया तुम्हें ।" जंग बहादुर ने गम्भीरता से सिर हिलाया ।
"काफी बातें मुझे पहले से ही मालूम थी ।" देवराज चौहान ने कहा--- "मैंने जंग बहादुर को माला के मकान के बारे में पता करने को कहा था कि वहां की सारी जानकारी मुझे लाकर दे । जंग बहादुर ने मालूम किया और मुझे बताया कि वो मकान माला या बंधु का नहीं है। दस दिन पहले ही उस मकान को किराए पर लिया है और जंग बहादुर ने बंधु के बारे में पता किया कि वो बदमाश टाइप का आदमी है और उसकी कोई बहन नहीं है ।
"तो ये बात तुमने मुझे क्यों नहीं बताई?" जगमोहन ने नाराजगी से कहा ।
"हम तुम पर नजर रखे थे और मैं चाहता था कि तुम जैसे काम कर रहे हो, वैसे ही करो । क्योंकि स्ट्रांग रूम में रखा बाल्को का काला सूटकेट हमें चाहिए। अब ये डकैती हमारी जरूरत बन गई है ।" देवराज चौहान ने कहा--- "तुम्हारे साथ कुछ होता तो हम संभाल लेते ।"
"फिर भी मुझे बता देते तो अच्छा रहता ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"हम ये सोच रहे थे कि जब तुम्हारा दिल टूटेगा तो, तब तुम्हारा क्या हाल होगा ।" जंग बहादुर बोला ।
"क्या इस वक्त मैं ठीक नजर नहीं आ रहा ।" जगमोहन मुस्कुरा पड़ा ।
"ठीक ही लग रहे हो ।" जंग बहादुर ने गहरी सांस ली ।
"तुमने क्या सोचा कि माला की असलियत पता चलते ही मैं कपड़े फाड़ कर सड़कों पर दौड़ने लगूंगा या...।"
"ऐसा कुछ नहीं। हम कोई ठीक मौका देख रहे थे।" देवराज चौहान बोला--- "पर अच्छा हुआ जो तुम्हें खुद ही पता चल गया कि तुम्हें कसीनो के स्ट्रांग रूम में डकैती के लिए फंसाया गया है। अब क्या इरादा है तुम्हारा ?"
"डकैती तो होगी ।" जगमोहन बोला--- "क्योंकि हमें स्ट्रांग रूम में रखा बाल्को का सूटकेस चाहिए। बाज बहादुर के बेटे को भी वहां से निकाल कर उसके बाप के हवाले करना है। काम वैसे ही चलेगा, जैसा चल रहा है ।"
"बंधु और माला डकैती के बाद तुम्हें खत्म करने का प्लान बनाए बैठे हैं ।" जंग बहादुर ने कहा ।
"हां, वो...।"
"तुम अपना काम करते रहो ।" देवराज चौहान ने कहा--- "हम तुम्हारे पास ही रहेंगे और तुम पर नजर रखेंगे । समझ गए ?"
जगमोहन ने सोचों में डूबे गम्भीरता से सिर हिला दिया ।
देवराज चौहान और जंग बहादुर वहां से चले गए ।
जगमोहन कमरे से निकलने की तैयारी कर ही रहा था कि उसका मोबाइल बजा। दूसरी तरफ माला थी ।
"आ रहे हो ?" माला की आवाज में प्यार का मीठापन भरा हुआ था ।
जगमोहन मुस्कुराया । कड़वी और खतरनाक मुस्कान ।
"ओह माला ।" जगमोहन ने प्यार से कहा--- "मैं तुम्हें फोन करने ही वाला था। तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था। तुमसे दूरी अब बर्दाश्त नहीं होती, परंतु आज का दिन मैं बहुत व्यस्त हूं। तुम समझ ही सकती हो। बस आज का दिन ही हमें दूर रहना पड़ेगा, उसके बाद तो जिंदगी भर हमें एक साथ ही रहना है। आज रात डकैती हो जाएगी। मैं उसी की तैयारियों में लगा हूं ।"
"तो नहीं आ रहे ।" उधर से माला ने मुंह फुला कर कहा ।
"बस आज का दिन ।" जगमोहन ने प्यार से कहा ।
"बंधु से बात करनी है ?"
"अभी नहीं । उसे बाद में फोन करूंगा। उसे कहना कि रात नौ बजे तक एम्बुलैंस मंगवा कर तैयार रखे। बाय माला, हम आधी रात को मिलेंगे करोड़ों के नोटों के साथ।" कहने के साथ ही जगमोहन ने फोन बंद करके जेब में रखा। चेहरे पर कठोरता दिखने लगी थी। वो कमरे से बाहर निकला। ताला लगाया और आगे बढ़ता चला गया। माला का फरेब उसकी आंखों के सामने नाच रहा था ।
■■■
शाम आठ बजे ।
कसीनो में आज जबरदस्त भीड़ थी। हर तरफ विदेशी लोग ही नजर आ रहे थे जो न्यू ईयर के साथ-साथ कसीनो में जुआ खेलते, नया साल आने का इंतजार कर रहे थे। रोशनी और सजावट आज विशेष प्रबंध था। बाज बहादुर आज चार बजे कसीनो पहुंच गया था। लोगों को जुआ खेलने के लिए जगह नहीं मिल रही थी। हर हॉल में जगह फुल थी। ताश वाले हॉल में, सब टेबलें फुल थीं और लोग टेबलों को घेरे खड़े, खेल देख रहे थे और कोई जगह खाली होने का इंतजार कर रहे थे। ये ही हालात मशीनों वाले हॉल में थे और दूसरे वाले हॉल में भी। आज की गहमागहमी देखने वाली थी। हर कोई अपनी ही धुन में था ।
बाज बहादुर तो एक मिनट भी नहीं बैठा था अपने ऑफिस में जाकर। आज उसने स्ट्रांग रूम में रखा सारा पैसा बाहर निकलवाना था। डकैती करवानी थी। ये ही बात उसे परेशान किए दे रही थी कि काम कैसे होगा। साढ़े आठ बजे उसे बंधु का फोन आया और उसने बताया कि गुरंग को किस तरह उसके ही ऑफिस में बैठा कर रखा जाएगा। उसके बाद बाज बहादुर, जगमोहन से मिला। उसे भीड़ से अलग हटा कर ले गया और धीमे स्वर में बोला।
"अभी नए नम्बर वाले मोबाइल पर उसका फोन आया था । उसने बताया कि गुरंग साहब को उनका आदमी, उनके होटल वाले ऑफिस में ही बैठा लेगा। उन्हें वहां से हिलने नहीं देगा बाज ।" बहादुर के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी ।
"ये तो और भी अच्छी बात है ।" जगमोहन ने कहा ।
"सारा काम तुमने ही संभालना है।" बाज बहादुर परेशान-सा कह उठा--- "तुम्हारे साथ नाटियार को लगा दूंगा ।"
"ये ठीक रहेगा ।"
"वो सूटकेस कहां है ?"
"बाहर, वॉचमैन के पास दीवार से लगा रखे हैं ।" जगमोहन ने बताया
"उन्हें वक्त पर भीतर ले आना ।"
"आप चिंता क्यों कर रहे हैं साहब जी । काम तो ग्यारह बजे के बाद शुरू होना है ।"
"मुझे बहुत चिंता हो रही है ।"
"सब काम मुझ पर छोड़ दीजिए। गोपाल के बारे में सोचिए, सुबह वो आपको मिल जाएगा ।"
"सुबह? बाज बहादुर ने गहरी सांस ली--- "पुलिस मुझे पकड़ लेगी कि मैंने स्ट्रांग रूम का पैसा...।"
"मैं आपके साथ हूं। बड़े-से-बड़ा वकील करूंगा आपको छुड़ाने के लिए और...।"
"गुरंग साहब इधर ही आ रहे हैं ।" एकाएक बाज बहादुर हड़बड़ा कर बोला--- "तुम जाओ ।"
जगमोहन बाज बहादुर के पास से हट गया ।
तभी गुरंग मुस्कुराता हुआ बाज बहादुर के पास पहुंचा ।
"इस बार तो सीजन पिछले साल से भी बढ़िया जाएगा बाज ।" गुरंग बोला ।
"ज-जी...।"
"तुम घबराए हुए क्यों हो ?"
"घबराया हुआ ?" बाज बहादुर ने खुद को संभालकर कहा---"गुरंग साहब, यहां भीड़ देख रहे हो कितनी है। लोगों को खेलने को जगह नहीं मिल रही। पांव पर पांव रख रही है भीड़। मैंने तो आपको पिछले साल भी कहा था कि ऊपर की मंजिल पर भी खेलने का इंतजाम कर लेते हैं, परंतु आपने मेरी बात का ध्यान नहीं दिया। ध्यान दिया होता तो कसीनो की कमाई डबल हो जाती ।
"तुम ठीक कहते हो। अब की बार, ऊपर की मंजिल को भी कसीनो में बदल देंगे ।"
"अब की बार ?" बाज बहादुर गहरी सांस लेकर रह गया ।
"तुमने बहुत मेहनत की है कसीनो को जमाने में। कल से तुम्हारी पन्द्रह दिन की छुट्टी । मेरे खर्चे पर दिल्ली घूमकर आना।"
बाज बहादुर, खुशी से भरे गुरंग के चेहरे को देखता सोच रहा था इसे सब कुछ याद है, सिवाय मेरे बेटे के कि उसका अपहरण हुआ पड़ा है और उसकी कोई खबर नहीं मिल रही । दो दिन से इसे गोपाल के बारे में पूछना भी याद नहीं। कसीनो की कमाई ने इसे सब कुछ भुला दिया है। जगमोहन ठीक कहता है कि पहले उसे अपने बेटे को बचाने के बारे में सोचना चाहिए ।
गुरंग वहां से चला गया ।
जगमोहन ने बंधु को फोन करके कहा ।
"तुम्हें अपना प्रोग्राम याद है ?"
"हां। मैं 10:45 पर एम्बुलैंस लेकर कसीनो के बाहर पहुंच जाऊंगा और विजय कसीनो में आकर तुमसे मिलेगा। उसके बाद जब तुम फोन करोगे तो मैं एम्बुलैंस को कसीनो के सामने लाकर खड़ा कर दूंगा कि सूटकेस भीतर रखे जा सकें ।"
जगमोहन ने फोन बंद करके देवराज चौहान को फोन किया ।
■■■
10:50 बजे बंधु का फोन जगमोहन को आया ।
"हम आ पहुंचे हैं और विजय तुम्हारे पास आ रहा है । अब मुझे तुम्हारे फोन का इंतजार रहेगा ।"
जगमोहन कसीनो के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गया ।
पांच मिनट बाद ही उसे विजय आता दिखा। विजय उसे देख कर मुस्कुराया ।
"मैं आ गया। कुछ ही घंटों में मेरे पास, मेरे हिसाब का पांच करोड़ रूपया होगा ।"
"मेरे साथ भीतर चलो ।" जगमोहन, विजय को भीतर ले गया और कसीनो में एक जगह खड़ा किया उसे--- "यहीं रहना। यहां से हिलना मत ।"
उसके बाद जगमोहन ने बाज बहादुर को फोन करके कहा ।
"हमें तैयारी शुरू कर देनी चाहिए ।"
"तुम बोलो, अब मैं क्या करूं ?"
"मैं नाटियार को आपके पास लाऊंगा तो आपने हम दोनों को आदेश देना है और पहली बार आपने भी स्ट्रांग रूम तक जाना है ।"
"हां, ठीक है । गुरंग साहब को क्या उनके ऑफिस में बंद कर दिया उन लोगों ने ?" उधर से बाज बहादुर ने पूछा ।
"वो हमारा काम नहीं है। उन लोगों का काम है। हमें पंद्रह-बीस मिनट के बाद हरकत में आना है ।"
उसके बाद जगमोहन ने गुरंग को तलाशा । इतनी भीड़ में उसने स्टाफ के दो-चार लोगों से गुरंग साहब को पूछने के बाद, दस मिनट के बाद गुरंग साहब को ढूंढ निकाला और उसे एक तरफ ले जाकर बोला ।
"बड़े साहब जी। आपसे बहुत जरूरी बात करनी है ।"
"क्या ?"
"आप अपने ऑफिस में चलिए । होटल वाले ऑफिस में । वहीं पर बात...।"
"मेरा कसीनो में रहना जरूरी है । तुम्हें जो बात करनी हो, यहीं करो ।"
"बड़े साहब जी ।" जगमोहन ने कहा--- "मेरे पास पक्की खबर है कि कसीनो में डकैती पड़ने वाली है ।"
"क्या ?" गुरंग बुरी तरह चौंका ।
"मैनेजर साहब कहीं दिखाई नहीं दे रहे तो मैं आपके पास आ गया। यहां कुछ भी बात नहीं हो सकेगी। अपने ऑफिस में...।"
"बाज के ऑफिस में चलो । वहां मुझे बताओ कि...।"
"बड़े साहब जी यहां डकैती करने वाले फैले हुए हैं। हमें बातें करते देखकर उन्हें कहीं शक न हो जाए। आप अपने होटल वाले ऑफिस में चलें, एक मिनट लगेगा और मैं सब कुछ आपको बता दूंगा कि कसीनो में कैसे डकैती हो रही है । उसके बाद पुलिस को बुला लीजिएगा ।"
"आओ ।" गुरंग ने कहा और आगे बढ़ गया ।
जगमोहन, गुरंग के साथ उस रास्ते की तरफ बढ़ गया, जो ब्लू स्टार होटल में जाकर निकलता था। रास्ते में पहले से ही विजय खड़ा था । जगमोहन ने विजय को पीछे-पीछे आने को कहा ।
ब्लू स्टार होटल में गुरंग अपने ऑफिस वाले कमरे में पहुंचा । वो खाली था ।
"बोलो ।" गुरंग ने बैठते हुए जगमोहन से कहा--- "डकैती की क्या बात कर रहे थे तुम ?"
तभी दरवाजा खोलकर विजय भी भीतर आ गया ।
गौरंग ने विजय को देखा । माथे पर बल पड़ गए ।
"तुम इस तरह भीतर कैसे आ गए ?"
विजय दांत फाड़ कर हंसा ।
जगमोहन शांत खड़ा, गुरंग को देखता रहा था ।
"ये कौन है ?" गुरंग ने जगमोहन से पूछा--- "तुम जानते हो इसे ?"
"हां । ये मेरे साथ है और हम लोग, अब कसीनो में डकैती करने जा रहे हैं ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"क्या ?" गुरंग चौंका, फिर उसका हाथ तेजी से पैंट की जेब की तरफ बढ़ा ।
उसी पल विजय ने रिवॉल्वर निकालकर, नाल का रुख उसकी तरफ कर दिया ।
गुरंग ठिठका । उसके होंठ भिंच गए । गुरंग बोला ।
"ये क्या हो रहा...।"
"आपके कसीनो में डकैती होने जा रही है बड़े साहब जी ।" जगमोहन कहते हुए गुरंग के पास पहुंचा और उसकी पैंट की जेब से रिवॉल्वर निकाल ली--- "जब तक डकैती होगी, ये आदमी आपको यहीं बैठाए रखेगा । समझ गए ।"
"तुम-तुम ऐसा नहीं कर सकते ।" गुरंग का चेहरा फक्क पड़ गया--- "कसीनो में डकैती नहीं कर...।"
"गुरंग साहब का ध्यान रखना अब तुम्हारा काम है ।" जगमोहन ने विजय से कहा गुरंग और गोरख की रिवॉल्वर अपनी जेब में रखता बाहर निकल गया ।
विजय ने दांत फाड़े और आगे बढ़कर टेबल के इस पार कुर्सी पर जा बैठा। रिवॉल्वर वाला हाथ टेबल के नीचे कर लिया । अब अगर वो गोली चलाता तो गोली सीधे गुरंग को लगती ।
"कान खोल कर सुन ले।" विजय खतरनाक सर में बोला--- "मेरा रिवॉल्वर वाला टेबल के नीचे है। ट्रेगर दबाया तो गोली सीधे तेरी टांगों के बीच या पेट पर लगेगी। होशियारी मत दिखाना मुझे। मैंने कल ही दो को मारा है। होशियारी दिखा रहे थे साले ।"
गुरंग ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"तु-तुम लोग कामयाब नहीं हो सकते। स्ट्रांग रूम तक कोई नहीं पहुंच...।"
"मेरे को पांच करोड़ का हिस्सा मिलेगा। पांच करोड़। मेरे तो मजे आ जाएंगे ।" विजय खतरनाक स्वर में हंस पड़ा ।
■■■
11:20 बजे जगमोहन, नाटियार को साथ लिए, बाज बहादुर से मिला ।
"ले आए नाटियार को ।" बाज बहादुर अपनी घबराहट पर काबू पाता कह उठा--- "अब तुम दोनों ध्यान से मेरी बात सुनो। ये बहुत ही नाजुक वक्त चल रहा है। मुझे खबर मिली है कि कसीनो में कुछ लोग डकैती करने वाले हैं ।"
"क्या ?" जगमोहन ने चेहरे पर हैरानी भर ली ।
"ये आप क्या कह रहे हैं मैनेजर साहब ?" नाटियार बेचैन हो उठा ।
"हमें कसीनो के पैसे को बचाना है। इस वक्त एक ही बात समझ में आती है कि कुछ देर के लिए स्ट्रांग रूम के पैसे को कसीनो से निकाल कर बाहर किसी सुरक्षित जगह पर रख दिया...।"
"ये कैसे हो सकता है ?" नाटियार अजीब-से स्वर में कह उठा ।
"ये होने जा रहा है। जैसा मैं कहता हूं तुम दोनों वैसा ही करो । मैंने सूटकेस मंगवा रखे हैं। बाहर वॉचमैन के पास खड़े हैं । उन्हें लेकर हमें स्ट्रांग रूम में चलना है और सूटकेस भरकर, कसीनो के बाहर खड़ी एक एम्बुलैंस में रखे रहना देना है। ऐसे बारह सूटकेस हैं और स्ट्रांग रूम की सारी दौलत उन सूटकेसों में आ जाएगी । दो-तीन घंटे हमें पैसे उसी एम्बुलैंस में रखे रहने देना है। कोई सोच भी नहीं सकता कि कसीनो का पैसा बाहर खड़ी एम्बुलैंस में रखा है। तब डकैती होती है तो डकैती करने वालों के हाथ कुछ नहीं लगेगा ।"
"लेकिन साहब जी...।" नाटियार ने कहना चाहा ।
"तुम्हें जो कहा है, फौरन वो करो। सूटकेस लाकर, मेरे साथ स्ट्रांग रूम में चलो। देर मत करो ।"
नाटियार कुछ कहने लगा कि जगमोहन उसका हाथ थाम उसे वहां से आगे देता चला गया ।
"वक्त बर्बाद मत करो ।" जगमोहन बोला--- "मैनेजर साहब की बात मानो । वो जो कह रहे...।"
परंतु दस कदम आगे जाकर नाटियार ठिठक गया ।
"मुझे गड़बड़ लग रही है जगमोहन ।" नाटियार बोला ।
"क्या ?"
"स्ट्रांग रूम में इस तरह सारा पैसा बाहर निकालना गलत है । मैनेजर साहब का फैसला सही नहीं है ।"
"हम कौन होते हैं, इस बारे में सोचने वाले, हम तो...।"
"गुरंग साहब से हमें इस बारे में बात करनी होगी । वो कहां है, उन्हें ढूंढो ।" नाटियार ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"गुरंग साहब तो अपने होटल वाले ऑफिस में गए हैं।" जगमोहन फौरन बोला ।
"तुम्हें कैसे पता ?"
"जाते वक्त मुझे मिले थे। कह रहे थे कुछ आराम करना चाहता हूं कोई बात हो तो वहीं पर आ जाना। चलो वहीं चलते हैं ।"
जगमोहन, नाटियार के साथ गुरंग के होटल वाले ऑफिस में पहुंचा ।
जगमोहन के साथ नाटियार को देखकर गुरंग के माथे पर बल पड़े ।
विजय टेबल पर उसके सामने कुर्सी पर बैठा था। टेबल के नीचे हाथ में रिवॉल्वर थी ।
"बड़े साहब जी ।" नाटियार बोला--- "मैनेजर साहब कहते हैं कि कसीनो में डकैती होने वाली है। उन्हें जाने कैसे पहले खबर मिल गई। अब उनका कहना है कि स्ट्रांग रूम से सारा पैसा निकाल कर, बाहर खड़ी किसी वैन में रखना है। मैंने सोचा आपको बता दूं ।"
गुरंग ने बेचैनी से पहलू बदल कर विजय को देखा
"मैंने तो पहले ही कहा था गुरंग साहब आज डकैती होगी ।" विजय ने गम्भीर स्वर में कहा--- "खबर सही निकली न। पैसा बचाने का एक ही रास्ता है कि स्ट्रांग रूम के पैसे वहां से निकाल दिये जाएं। अब जल्दी से इसे हां कह दो ।"
"हां-हां। हां।" गुरंग के होंठों से निकला--- "ऐसा ही करना है ।"
जगमोहन और नाटियर बाहर निकल गए ।
विजय दांत फाड़ कर हंसा और गुरंग से बोला ।
"मेरे पांच करोड़ । आज तो मजा ही आ जाएगा ।"
"तुम लोग बच नहीं सकोगे ।" गुरंग गुस्से से भरा कह उठा ।
"अपनी खैर मना पिल्ले। तू अब खाली होने जा रहा है ।" विजय कड़वे स्वर में कह उठा ।
■■■
सब काम ठीक ढंग से चला। खामोशी से, चुपचाप चला। स्ट्रांग रूम से सूटकेस डॉलरों, और यूरो, पाउंड और हिन्दुस्तानी करेंसी से भरकर, बाहर खड़ी बड़ी-सी एम्बुलैंस में रखे जाने लगे। ये काम सिर्फ जगमोहन और नाटियार ही कर रहे हैं। स्ट्रांग रूम वाले सूटकेस भर देते और वे उन्हें उठाकर, बाहर खड़ी एम्बुलैंस में रख देते। बाज बहादुर का हुक्म पूरी तरह काम कर रहा था। कसीनो के स्टाफ को हवा भी नहीं थी कि उनकी आंखों के सामने डकैती हो रही है। ये बात तो वो सोच भी नहीं सकते थे क्योंकि बाज बहादुर खुद स्ट्रांग रूम से कभी बाहर आता तो कभी भीतर जाता। सब कुछ उसकी देखरेख में हो रहा था। अब तो उसे इस बात की चिंता थी कि ये डकैती ठीक ढंग से निबट जाए । काम होते-होते अंतिम चरण पर पहुंच गया। अब आखरी दो सूटकेस थे, जो कि जगमोहन और नाटियार, बाहर खड़ी एम्बुलैंस तक ले जा रहे थे। बाज बहादुर पागलों की तरह कसीनो में घूमता फिर रहा था । वो जानता था कि अब वो कहीं का नहीं रहेगा। आने वाले वक्त में पुलिस ने उसे पकड़ लेना था कि कसीनो के स्ट्रांग रूम में उसने डकैती करवा दी ।
आखिरी दोनों सूटकेस भी एम्बुलैंस में पहुंच गए। दरवाजा बंद करके, वे दोनों वापस कसीनो में चले गए। ल परंतु मौका पाकर जगमोहन पांच मिनट में ही वापस एम्बुलैंस में आ बैठा और तसल्ली से उस सूटकेस को देखा जो बाल्को का था। उसे तो उसने पहले फेरे में ही स्ट्रांग रूम से निकालकर एम्बुलैंस में रख लिया था ।
"विजय को फोन करो ।" जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला--- "उसे जल्दी से...।"
तभी एम्बुलैंस का दरवाजा खुला और विजय भीतर पर आ गया । दरवाजा बंद हुआ । वैन चल पड़ी ।
"तुमने गुरंग का क्या किया ?" जगमोहन ने विजय से पूछा ।
"उसे बेहोश कर आया हूं ।"
"हमारी डकैती कामयाब रही जगमोहन ।" एम्बुलैंस चलाते बंधु हंसा--- "तुमने कमाल कर दिखाया है।"
जगमोहन की आंखों के सामने माला का चेहरा नाचा और चेहरे पर कड़वे भाव फैल गए। माला का नशा उसके सिर से गायब हो चुका था। कमीनी के लिए अब उसके दिल में कोई जगह नहीं थी ।
"मुझे तो यकीन नहीं आ रहा ।" पदम सिंह ने कहा ।
"मुझे तो यकीन है ।" गोरखा के हंसने की आवाज आई--- "इन सूटकेसों में करोड़ों रुपया भरा पड़ा है ।"
जगमोहन चुप था। गम्भीर था ।
"तुम खुश नहीं हो ?" विजय जगमोहन से बोला--- "करोड़ों रुपया हमारे हाथ आ गया है ।"
"जिन्हें नोट मिलने हैं, वो खुश हो ।" जगमोहन ने शांत स्वर में कहा ।
"तुम्हें तो माला मिलने वाली है ।" विजय हंस पड़ा--- "तुमने सच में माला को जीत लिया ।"
जगमोहन ने मुंह फेर लिया। वैन में अंधेरा था ।
एम्बुलैंस तेजी से सड़कों पर दौड़ी जा रही थी ।
"बंधु ।" विजय बोला--- "मेरा पांच करोड़ याद है न ?"
"मेरा भी ।" गोरखा कह उठा ।
"मुझे मत भूल जाना ।" पदम सिंह जल्दी से कह उठा ।
"मेरे दोस्तों को सब कुछ मिलेगा ।" एम्बुलैंस चलाते बंधु हंसा--- "अब हमारे पास करोड़ों रुपया है ।"
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माला ने घिसी हुई जींस की पैंट और लैदर की काली जैकेट पहन रखी थी। खुले बाल उसके कंधों पर लहरा रहे थे। होंठों पर लिपस्टिक लगी थी, आंखों में काजल की चमक थी। वो बेचैनी से मकान के दरवाजे के बाहर टहल रही थी। आज एक की अपेक्षा दो बल्ब जल रहे थे वहां। रोशनी पर्याप्त थी। दोनों कारें खड़ी थी। सर्दी तगड़ी थी और ओस से कारें गीली हुई पड़ी थी। रात एक बजे उसने एम्बुलैंस की हैडलाइटें जब गेट पर ठहरते देखी तो उसका चेहरा खुशी से चमक उठा। तभी एम्बुलैंस से किसी को नीचे उतरते देखा। वो गोरखा था। क्योंकि गोरखा की आवाज गेट खोलते उसने सुनी ।
"चलो, जल्दी करो ।"
गेट खुलते ही एम्बुलैंस भीतर आई और कारों के पास आ रुकी।
"सब बाहर निकलने लगे ।
बंधु एम्बुलैंस से नीचे उतरा और हंस कर बोला ।
"मजा आ गया। हमारे पास करोड़ों रुपया है । माला, हम जीत गए ।"
खुशी से चमक रहा था माला का चेहरा ।
बंधु, माला के पास पहुंचा और धीमे से बोला ।
"साइलैंसर लगी रिवॉल्वर कहां है ?"
माला ने लैदर की जैकेट के भीतर हाथ डालकर रिवॉल्वर निकाली और उसे दी ।
बंधु की आंखों में खूंखारता के भाव आ गए । वो पलटा ।
गोरखा, पदम सिंह और विजय एम्बुलैंस के बाहर खड़े हंस-हंसकर बातें कर रहे थे कि बंधु ने दांत भींच कर रिवॉल्वर सीधी की और एक के बाद एक, तीन बे-आवाज फायर किए ।
तीनों को गोलियां लगी ।
बंधु फौरन उनके पास पहुंचा और एक-एक गोली उनके सिरों में उतार दी ।"
"सारा पैसा हमारा है ।" बंधु एकाएक दरिंदगी भरे स्वर में कह उठा ।
गोरखा, पदम सिंह और विजय मर चुके थे ।
"इनकी लाशें खाई में फेंक दे बंधु ।" माला कह उठी ।
"अभी फेंकूँगा।" बंधु ने खतरनाक स्वर में कहा--- "साला अभी चौथा भी तो है ।"
"जगमोहन ?" माला मुस्कुराई ।
"तेरा बावला आशिक ।"
तभी एम्बुलैंस का पिछला दरवाजा खुला और काला सूटकेस थामे जगमोहन बाहर निकला। उसने घूम कर दोनों को देखा। वहीं खड़ा वो माला को देखता रहा। आज माला कमीज-सलवार में नहीं थी, जिसे पहनकर उसे धोखा दिया करती थी । ढोल पीटती थी शराफत का। आज वो कमर पर हाथ रखे, जगमोहन को देख रही थी ।
जगमोहन शांत भाव से माला को देखता रहा ।
माला के चेहरे पर मुस्कान थी ।
तभी बंधु हंसकर कह उठा ।
"कहिए आशिक साहब। माला के फेर में पड़कर, हमारे लिए डकैती कर ली। बहुत-बहुत शुक्रिया। तुमने कितनी आसानी से इतना बड़ा काम कर दिया जबकि हम करने की सोच भी नहीं सकते थे । क्यों माला ।"
माला मुस्कुराती हुई जगमोहन को देखे जा रही थी ।
"लगता है ये अभी समझा नहीं।" बंधु हंसकर कह उठा--- "जगमोहन हम भाई-बहन नहीं हैं । हम तो आशिक-माशूक हैं । तुम्हें धोखा देने और पटाने के लिए भाई-बहन बनने का नाटक किया। माला को मारना-पीटना गालियां देना, सब हमारे प्लान का हिस्सा था। तुम्हें इस डकैती के लिए तैयार करना था और किया भी। हमने तो कमाल कर दिया ।"
"तुम लोगों को कैसे पता चला कि मैं डकैती मास्टर देवराज चौहान का साथी हूं और ये काम कर सकता हूं ।" जगमोहन ने कहा--- "मुझे पहचाना कैसे तुम लोगों ने ।"
"कैसे पहचाना ?" बंधु हंसा--- "मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता । ये सारा प्लान माला का है। माला ही मेरे पास आई । सिर्फ कुछ दिन पहले। मेरी नजर तो पहले ही माला पर थी। हम दोनों दोस्त बन गए। फिर माला ने अपना प्लान और तुम्हारे बारे में बताया। माला का कहना था कि वो तुम्हें अपना दीवाना बना लेगी। जो भी हो हमने काम शुरू किया और अब अंजाम तुम्हारे सामने हैं। हमारी जीत हो गई। साली माला भी बड़ी हरामी चीज है ।"
"मैं इस सूटकेस और बाज बहादुर के बेटे के साथ यहां से जाना चाहता हूं ।"
बंधु जवाब में हंस पड़ा ।
तभी माला ने रिवॉल्वर निकाली । नाल पर साइलैंसर चढ़ा था ।
"क्या बात है । अपने आशिक को तो खुद ही मारेगी। ठीक है मार ।" बंधु उसे रिवॉल्वर निकालते पाकर कह उठा ।
माला ने अपनी रिवॉल्वर वाली बांह सीधी की और एक एकाएक बंधु की तरफ घूम गई । फिर एक के बाद एक बे-आवाज फायर करती चली गई । चार गोलियां बंधु की छाती पर जा लगी। बंधु के हाथ से रिवॉल्वर छूट गई । दोनों हाथ अपनी छाती पर रखे अविश्वास भरी निगाहों से माला को देखते, घुटनों के बल नीचे जा बैठा। उसके मुंह से खून आ गया था ।
माला के चेहरे और आंखों में वहशी चमक नाच रही थी ।
जगमोहन हैरान और हक्का-बक्का सा माला को देखने लगा था। माला ने जो किया था, वो उसकी हैरानी से कहीं परे था। बंधु के साथ मिलकर इतना जबरदस्त प्लान रचा और सफलता के मौके पर उसे गोली मार दी ।
माला रिवॉल्वर थाम बंधु के पास पहुंची और घुटनों के बल उसके सामने बैठ गई ।
"हैलो बंधु ।" माला मीठे स्वर में बोली--- "कैसा लग रहा है ।"
बंधु दोनों हाथ छाती पर रखे आंखें फाड़े उसे देखे जा रहा था ।
"तेरा काम तो यही तक था बंधु ।" माला ने प्यार से कहा--- "तुझे मैंने यहीं तक के लिए फंसाया था। तेरा प्लान खत्म हो गया परंतु तेरी मौत से मेरा असली प्लान तो अब शुरू होता है। इस मौके पर तेरे को मारना, मेरे प्लान का हिस्सा था । ये नोट, करोड़ों की दौलत तेरे लिए नहीं है। इन नोटों से तो वो ऐश करेगा, जिसकी मैं दीवानी हूं । जिसे मैं दिल से प्यार करती हूं । जिसे पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं और किया भी । मुझे चाहने वाला तो नहीं, ये सब तेरे लिए नहीं, किसी और के लिए किया मैंने ।" कहने के साथ ही माला ने रिवॉल्वर की नाल बंधु के माथे पर रखी और बोली--- "अब तू जा।" और गोली चला दी ।
बंधु पीठ के बल पीछे जा गिरा ।
शांत पड़ गया था वो ।
मर गया ।
माला रिवॉल्वर थामे उठी और जगमोहन को देखने लगी ।
जगमोहन हक्का-बक्का सा माला का ये खतरनाक रूप देख रहा था ।
दोनों एक दूसरे को देखते रहे। एम्बुलैंस की हैडलाइट की रोशनी थी वहां। मकान की दीवार पर दो बल्ब जल रहे थे । दोनों के चेहरे स्पष्ट एक-दूसरे को दिखाई दे रहे थे ।
जगमोहन समझ नहीं पा रहा था कि आखिर माला क्या चाहती है। उसके मन में क्या है ? क्या प्लान उसने बना रखा है। ये किसकी बात कर रही है, किसकी दीवानी है ये- क्या उसकी ? नहीं, अब नहीं। माला जैसी युवती उसने कभी भी अपने लिए नहीं सोची थी। उसकी निगाहों में माला की जरा भी इज्जत नहीं थी। माला और बंधु को एक साथ उसने बेड पर देखा था। जाने कितने मर्द आए होंगे इसके जीवन में। जिस तरह इसने बंधु की जान ली, वो समझ गया कि ये बेहद शातिर और खतरनाक औरत है। ऐसी औरत जो दौलत पाने के लिए कुछ भी कर सकती है ।
जगमोहन और माला एक-दूसरे को देखे जा रहे थे ।
"कैसा लगा रहा है जगमोहन ?" माला ने प्यार-भरे स्वर में पूछा।
"बहुत बुरा ।" जगमोहन बोला ।
"तो क्या मैं बुरी हूं ।" माला ने मुंह फुलाकर पूछा ।
"बहुत बुरी ।" जगमोहन का स्वर शांत था ।
"तो क्या अब तुम मुझे पसंद नहीं करते ?"
"नहीं । वो माला दूसरी थी जिससे मैंने प्यार किया था। मैं रात यहां आया था ।"
"अच्छा-कब ?"
"कसीनो की ड्यूटी खत्म करने के बाद-जब तुम और बंधु बेड पर नंगे थे ।" जगमोहन का स्वर भाव हीन था ।
"ओह ।" माला के होठों से निकला--- "तुमने हमें सब करते देख लिया था ?"
"हां ।"
"फिर भी डकैती की ?" माला के होंठ सिकुड़े ।
"इस सूटकेस के लिए, बाज बहादुर के बेटे को बचाने के लिए । अब मैं यहां से चले जाना...।"
जगमोहन के शब्द मुंह में ही रह गए ।
उसे कदमों की आहट मिली ।
गर्दन घुमाते ही गेट की तरफ से किसी को आते देखा। अभी वो अंधेरे में, कम रोशनी में था। जगमोहन के होंठ भिंच गए। उसने उठा रखा सूटकेस नीचे रख दिया। एकाएक सतर्क हो उठा ।
माला की निगाह भी उस तरफ घूमी और खुशी से कह उठी ।
"वो आ गया। जिसे मैं चाहती हूं। जिसकी मैं दीवानी हूं। जो मेरी निगाहों में इस दुनिया का सबसे शानदार मर्द है। उसके बिना मेरा जीवन अधूरा है। वो भी मुझे बहुत चाहता है । पागलों की तरह...।"
जगमोहन की निगाह आने वाले को देखने की चेष्टा मे थी ।
माला भी हाथ में रिवॉल्वर पकड़े खुशी से उधर ही देख रही थी।
धीरे-धीरे वो करीब आता जा रहा था और फिर वो वहां फैली रोशनी के घेरे में आ गया ।
उसका चेहरा चमका ।
वो सूर्यथापा था ।
"हम कामयाब हो गए सूर्य ।" माला खुशी से चिल्ला उठी--- "हमने 70-80 करोड़ की दौलत पा ली । इस एम्बुलैंस में भरी पड़ी है। सब तुम्हारी है, मैं तुम्हारी हूं । हमारा प्लान बहुत ही शानदार रहा ।"
सूर्य थापा को देखते ही, जगमोहन के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा। वो हैरानी से थापा को देखता रह गया। सूर्यथापा? जगमोहन को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था ।
सूर्यथापा के चेहरे पर मुस्कान नाच रही थी। जब वो पास पहुंचा तो माला उससे जा लिपटी। अगले ही पल दोनों के होंठ आपस में चिपक गए। फिर अलग होते थापा बोला ।
"तुमसे जुदा हुए कितने दिन हो गए जानेमन ।"
"अब हम फिर एक साथ हो गए ।" माला खुशी से हंसी--- "अपने प्लान को पूरा करने के लिए हमें कुछ दिन के लिए अलग होना ही था। ये मेरा प्लान था। बोल सूर्या सब कुछ शानदार रहा कि नहीं ?"
"बहुत ही शानदार । तुम्हारे दिमाग कि मैं दाद देता हूं । शुरू में तो मुझे लगा कि तुम सफल नहीं हो सकोगी। लेकिन तुमने तो कमाल कर दिया जगमोहन को अपना दीवाना बनाकर। ऐसा दीवाना कि तुम्हें पाने के लिए डकैती करने को तैयार हो गया ।" सूर्यथापा मुस्कुराया--- "कसूर जगमोहन का भी नहीं, तुम हो ही ऐसी लाजवाब कि तुम्हारे सामने हर कोई झुक जाए। मुझे देखो, ये तो मैं हूं जानता हूं कि तुम्हारे बिना ये दिन मैंने कैसे काटे । लाओ ये रिवॉल्वर मुझे दे दो । अब ये मेरे हाथ में अच्छी लगेगी।" सूर्य थापा ने उसके हाथ से रिवॉल्वर ले ली ।
जगमोहन अभी तक अविश्वास-भरी निगाहों से सूर्य थापा को देखे जा रहा था ।
सूर्य थापा ने जगमोहन को देखा और रिवॉल्वर वाला हाथ हिलाकर कहा।
"हाय जगमोहन ।"
माला, सूर्यथापा के पास खुशी से भरी खड़ी थी ।
"मुझे, सच में हैरानी हो रही है, तुम्हें इस मामले में पाकर ।" जगमोहन के होंठों से निकला ।
"हैरानी ?" सूर्य थापा मुस्कुराया--- "इसमें हैरानी की कोई बात नहीं। ये मामला मेरी वजह से ही शुरू हुआ । बंधु और उसके साथी तो हमारे मोहरे थे। ये माला, मेरी जान है माला। चार सालों से मेरे साथ है और जीने-मरने तक साथ ही रहेंगे। याद है मैंने पूछा था कि डकैती करनी हो कसीनो में तो मेरे को भी साथ ले लो। परंतु तुमने कहा कि तुम्हें और देवराज चौहान को यहां दूसरा काम है, डकैती नहीं करनी । ये बात मैंने माला को बताई और कहा कि अगर जगमोहन और देवराज चौहान डकैती कर रहे हैं तो मुझे करोड़ों की कमाई हो जाती। बस ये ही बात माला को चुभ गई। उसने कहा कि वो तुम्हें कसीनो में डकैती के लिए तैयार कर लेगी। मुझे विश्वास नहीं हुआ। कुछ ही घंटों में माला ने अपनी योजना बनाकर मुझे बताई। लेकिन मुझे भरोसा नहीं हुआ की माला कामयाब हो सकेगी। परंतु माला अपनी जिद पर अड़ गई तो मैंने इसे छूट दे दी कि ये अपनी कोशिश कर सकती है। यहां से माला की योजना में बंधु और उसके तीनों साथियों का प्रवेश हुआ । बंधु बदमाशी करता था और माला पर नजर रखता था। माला बंधु के पास पहुंची और उसे बताया कि वो सूर्यथापा को छोड़ आई है, क्योंकि उसकी योजना पर काम नहीं करना चाहता। अगर वो उसकी योजना पर काम करे तो, उससे दोस्ती कर लेगी । बंधु फौरन तैयार हो गया। उसने माला की योजना सुनी। तुम्हारे बारे में बताया। सब कुछ बंधु और उसके साथियों के साथ सामने खोल कर रख दिया । बंधु को ये काम पसंद आया । परंतु इसमें सबसे खास काम तो ये था कि माला तुम्हें अपना दीवाना बना दे। तभी बात आगे बढ़ सकती थी। ये जगह बंधु ने किराए पर ले ली और माला फौरन तुम्हें फांसने पर लग गई । तुम फंस गए। बंधु भी माला के इशारों पर नाच रहा था। दोनों का भाई-बहन बनने का नाटक, बहुत मजेदार रहा। फिर आगे क्या हुआ तुम जानते ही हो । इस मामले में सारा कमाल माला का था । माला की योजना थी। माला ने तुम्हें फंसाया । माला ने बंधु और उसके तीन साथियों को भी सैट रखा। अब बंधु का काम खत्म हो गया तो उसे खत्म कर दिया गया। अगर वो जिंदा रहता तो मुसीबतें खड़ी करता मेरे और माला के लिए। अब हमारे पास करोड़ों की दौलत है । मैं और माला सारी उम्र मजे से रहेंगे, क्यों माला ?" थापा ने माला को मुस्कुरा कर देखा ।
"मेरा राजा है तू ।"
"जगमोहन। माला ऐसी है कि हर किसी के बस में न आए । इसे मैं ही संभाल सकता हूं । मैं इसकी नस-नस से वाकिफ हूं । यूं तो अब तक हम काठमांडू में आने वाले विदेशियों को ही अपनी चालों से लपेटा करते थे। परंतु अब हमें ये सब नहीं करना पड़ेगा। हमने बड़ा हाथ मार लिया।" सूर्यथापा ने कहते हुए अपना रिवॉल्वर वाला हाथ उसकी तरफ तान दिया--- "आज काम खत्म हुआ। तुम्हारा काम भी खत्म। मेरी तुम्हारी यूं तो कोई दुश्मनी नहीं है, परंतु तुम्हें खत्म करना पड़ेगा। वरना इस कदर तगड़ा झटका खाकर, तुम चुप नहीं बैठने वाले, फिर तुम्हारे साथ देवराज चौहान है। मैं कोई खतरा नहीं लेना चाहता। तुम्हें अब गोली मारूंगा और यहां पड़ी सब लाशों को खाई में फेंककर....।"
"सूर्य ।" माला कह उठी--- "अब सोचते क्या हो, गोली मारो और निबटा दो मेरे इस आशिक को ।"
"अभी लो जानेमन ।" सूर्य थापा के चेहरे पर कहर-भरी मुस्कान उभरी ।
इसी पल सूर्य थापा के शरीर को हल्का-सा झटका लगा और वो छाती के बल आगे को गिरता चला गया। शांत पड़ा रहा उसका शरीर । ये देखकर माला दो पलों के लिए जो हक्की-बक्की रह गई ।
"सूर्य...क्या हुआ ?" माला नीचे औंधे पड़े थापा की तरफ लपकी ।
वहीं खड़े जगमोहन की निगाह पीछे की तरफ उठी तो देवराज चौहान और जंग बहादुर दिखे, जो कि माला की तरफ आते जा रहे थे । देवराज चौहान के हाथ में रिवॉल्वर दबी थी । नाल पर साइलैंसर चढ़ा था ।
माला ने थापा सिर के पिछले हिस्से से खून निकलते देखा तो उसे समझते देर न लगी कि क्या हुआ है । वो फौरन घूमी और पीछे को देखा। देवराज चौहान और जंग बहादुर करीब आ चुके थे।
माला सीधी खड़ी हो गई। उसकी आंखों से चिंगारियां निकलने लगी ।
"क-कौन-हो तुम ?" माला के होंठों से थरथराता स्वर निकला ।
"देवराज चौहान ।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा ।
माला वहीं-के-वहीं रह गई ।
"तुम और थापा, शायद मुझे भूल बैठे थे।" देवराज चौहान ने पूर्ववत स्वर में कहा ।
तभी जगमोहन आगे बढ़ा और थापा के हाथ से गिरी रिवॉल्वर उठा ली ।
"तुम कमीने-कुत्ते ।" माला चिल्लाते हुए देवराज चौहान पर झपटी--- "तुमने सूर्य को मार...।"
तभी जगमोहन ने ट्रेगर दबा दिया ।
गोली माला के पीठ पर लगी और वो उछलकर नीचे जा गिरी ।
जगमोहन उसके पास जा पहुंचा। चेहरे पर कठोरता थी। दांत भिंच चुके थे ।
"ये तुमने क्या किया जगमोहन ।" माला गोली लगे पीड़ा भरे स्वर में कह उठी--- "ये सब तो मैंने तुम्हारे लिए किया है। मैं सूर्य को मारने वाली थी । मैं तुम्हें प्यार करती हूं । मैंने तुम्हें सच्चे मन से चाहा...।"
जगमोहन झुका, होंठ भींचे रिवॉल्वर की नाल उसके माथे पर रखी और ट्रेगर दबा दिया ।
लगा जैसे माला का माथा ही उड़ गया हो ।
जगमोहन उसी प्रकार झुका उसे देखता रहा, फिर बोला ।
"तुम्हारी बेवफाई पर मुझे कोई एतराज नहीं था माला । तुमने मुझे धोखे में रख कर, मेरे से डकैती करवाई, ये भी मैं सह लेता। परंतु अब तुम थापा के हाथों मेरी हत्या करवाने जा रही थी। बस, ये ही बात मुझे बुरी लगी।" इसके साथ ही जगमोहन सीधा खड़ा हुआ। रिवॉल्वर फेंकी और जंग बहादुर से बोला--- "इस मकान के एक कमरे में 17 साल का लड़का बंधा हुआ है। उसे खोलकर बाहर ले आओ। उससे प्यार से पेश आना ।" जगमोहन गम्भीर था ।
जंग बहादुर मकान के भीतर चला गया ।
जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा ।
"एम्बुलैंस में रखा कसीनो का पैसा मैं बाज बहादुर की खातिर, वापस कर देना चाहता हूं। बाज बहादुर अच्छा इंसान है। मैं नहीं चाहता कि उस पर पुलिस या गुरंग का कहर टूटे ।"
"जो तुम्हारे मन में है वो ही करो। मुझे कोई एतराज नहीं ।" देवराज चौहान ने कहा और सूटकेस की तरफ बढ़ गया ।
जगमोहन ने फोन निकाला और बाज बहादुर का नम्बर मिलाने लगा ।
बाज बहादुर से बात हो गई ।
"तुम कहां हो जगमोहन...मैं...।"
"साहब जी ।" जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला--- "मैं आपका ही काम कर रहा था ।"
"मेरा काम ? यहां मैं बुरी तरह फस गया हूं । गुरंग साहब और पुलिस मेरे सिर पर...।"
"आपको कुछ नहीं होगा । कसीनो का सारा पैसा और आपका बेटा मेरे पास सुरक्षित हैं। अगर दोनों चीजें आप वापस पाना चाहते हैं तो गुरंग के साथ मेरे बताए मकान पर आ जाइए । वहां एम्बुलैंस खड़ी है। दौलत से भरे सूटकेस उसी में पड़े हैं और आपका बेटा आपको एम्बुलैंस के पास खड़ा मिलेगा । मकान का पता सुनिए ।" जगमोहन ने अच्छी तरह मकान की लोकेशन बाज बहादुर को बताई और फोन बंद कर दिया ।
■■■
देवराज चौहान, जगमोहन और जंग बहादुर तब तक वहां से कुछ दूर अंधेरे में दुबके रहे, जब तक कि वहां अजीत गुरंग और बाज बहादुर नहीं पहुंच गए ।
गोपाल डरा-सा एम्बुलैंस के पास खड़ा रहा था । जब उसने वहां अपने पापा को आए देखा तो दौड़कर उनसे लिपट गया । बाज बहादुर फूट-फूटकर रो पड़ा उसे गले लगाकर ।
अजीत गुरंग की हालत तो लूटी-पुटी लग रही थी। वो पागल-सा हुआ पड़ा था। आते ही वो एम्बुलैंस के भीतर जा घुसा था। और सूटकेस खोल-खोलकर देखने लगा था। करोड़ों की दौलत को वापस आया पाकर उसने चैन की सांस ली। जैसे उसे जिंदगी वापस मिल गई हो। परंतु वहां पर लाशे काफी पड़ी थी। ऐसी स्थिति में गुरंग ने पुलिस को फोन कर दिया। उसे पूरा विश्वास था कि पुलिस को वो आसानी से संभाल लेगा ।
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1 जनवरी ।
गुरंग ने पुलिस को संभाल लिया था। उसका सारा पैसा वापस कसीनो के स्ट्रांग रूम में पहुंच गया था। उसे राहत थी कि बर्बाद होते-होते बचा है। उसने बाज बहादुर को भी पुलिस के हाथों बचा लिया था। उस पर कोई केस नहीं बनने दिया था। सब ठीक हो गया था। परंतु बाज बहादुर को कसीनो की नौकरी से निकाल दिया था। ये बाज बहादुर के लिए खुशी की बात थी कि उस पर कोई पुलिस केस नहीं बना था। नौकरी जाने से उसने ज्यादा परवाह नहीं की ।
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देवराज चौहान को उस सूटकेस में से माइक्रोफिल्म मिल गई थी जो कि उसने माथुर और कदम सिंह के हवाले कर दी । सूटकेस में डेढ़ करोड़ों रुपया के बराबर डॉलर भी थे जो कि जगमोहन ने अपने पास रख लिए । काठमांडू में अब कोई काम नहीं था, उसी दोपहर किराए की कार में मुम्बई के लिए चल पड़े।
जगमोहन आंखें बंद किए कार में चुप-चुप-सा बैठा था । देवराज चौहान उसके दिल की हालत समझ रहा था ।
"क्या सोच रहे हो ?" देवराज चौहान ने प्यार से जगमोहन के कंधे पर हाथ रखा ।
"सूर्य थापा के बारे में । अपना सिक्का ही खोटा निकला ।" जगमोहन ने गहरी सांस ली--- "इतना कुछ हो गया। अगर मैंने काठमांडू आते ही उससे संबंध ना बनाया होता तो, कुछ भी नहीं होना था ।"
देवराज चौहान ने जगमोहन का कंधा थपथपाया और गहरी सांस लेकर कार से बाहर देखने लगा। पहाड़ी रास्तों से कार तेजी से, मोड़ काटती नीचे उतरती जा रही थी ।
जंग बहादुर में अपनी पहचान का ड्राइवर और उसकी कार उन्हें दी थी कि पहुंचने तक उन्हें रास्ते में किसी परेशानी का सामना न करना पड़े ।
समाप्त
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