कुत्ते की मौत
डॉक्टर शौकत इन्स्पेक्टर फ़रीदी की मौत की ख़बर सुन कर दंग रह गया। उसे हैरत थी कि आखिर एकदम से यह क्या हो गया। लेकिन वह सोच भी न सकता था कि उसकी मौत सविता देवी के क़त्ल की ख़ोज-बीन के सिलसिले में हुई है। वह यही समझ रहा था कि फ़रीदी के किसी पुराने दुश्मन ने उसे मौत के घाट उतार दिया होगा। जासूसी विभाग वालों के लिए दुश्मनों की अच्छी-ख़ासी फ़ौज पैदा कर लेना कोई बड़ी बात नहीं। इस पेशे में कामयाब आदमियों की मौतें ज़्यादातर इसी तरह होती हैं।
सविता देवी के क़त्ल के सिलसिले में उसकी अब तक यही राय थी कि यह काम उन्हीं के किसी मज़हब वाले का है, जिसने मज़हबी जज़्बात से अन्धा हो कर आखिरकार उन्हें क़त्ल कर दिया। इन्स्पेक्टर फ़रीदी का यह ख़याल कि वह हमला दरअसल उसी पर था, धीरे-धीरे उसके दिमाग़ से हटता जा रहा था। यही वजह थी कि जब उसे राजरूप नगर से डॉक्टर तौसीफ़ का ख़त मिला तो उसने उस क़स्बे के नाम पर ध्यान तक न दिया।
दूसरे, डॉक्टर तौसीफ़ ख़ुद उससे मिलने के लिए आया था। उसने नवाब साहब के म़र्ज की सारी बातें बता कर उसे ऑपरेशन करने पर राज़ी कर लिया।
डॉक्टर शौकत की कार राजरूप नगर की तरफ़ जा रही थी। वह अपने असिस्टेंट और दो नर्सों को हिदायत कर आया था कि वे चार बजे तक ऑपरेशन का ज़रूरी सामान ले कर राजरूप नगर पहुँच जायें।
नवाब साहब के ख़ानदान वाले अभी तक कर्नल तिवारी के ट्रांसफ़र और तौसीफ़ के नये फ़ैसले से वाक़िफ़ न थे। डॉक्टर शौकत की आमद से वे सब हैरत में पड़ गये। ख़ासकर नवाब साहब की बहन तो आपे से बाहर हो गयीं।
‘‘डॉक्टर साहब...!’’ वे तौसीफ़ से बोलीं। ‘‘मैं आपकी इस हरकत का मतलब नहीं समझ सकी।’’
‘‘मोहतरमा, मुझे अफ़सोस है कि मुझे आपसे राय लेने की ज़रूरत नहीं।’’ तौसीफ़ ने लापरवाही से कहा।
‘‘क्या मतलब?’’ नवाब साहब की बहन ने हैरत और ग़ुस्से के मिले-जुले अन्दाज़ में कहा।
‘‘मतलब यह कि अचानक कर्नल तिवारी का तबादला हो गया है और अब इसके अलावा कोई और सूरत बाक़ी नहीं रह गयी।’’
‘‘कर्नल तिवारी का तबादला हो गया है।’’
‘‘उनका ख़त पढ़िए।’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने जेब से एक लिफ़ाफ़ा निकाल कर उनके सामने डाल दिया। वे ख़त पढ़ने लगीं। कुँवर सलीम और नवाब साहब की भानजी नजमा भी झुक कर देख़ने लगी।
‘‘लेकिन मैं ऑपरेशन तो हरगिज़ न होने दूँगी।’’ बेगम साहिबा ने ख़त वापस करते हुए कहा।
‘‘देख़िए, मोहतरमा...यहाँ आपकी राय का कोई सवाल ही नहीं रह जाता। नवाब साहब का डॉक्टर होने की हैसियत से इसकी सौ फ़ीसदी ज़िम्मेदारी मुझ पर होती है। कर्नल तिवारी की ग़ैरमौजूदगी में मैं क़ानूनन अपने हक़ का इस्तेमाल कर सकता हूँ।’’
‘‘बिलकुल...बिलकुल...डॉक्टर साहब।’’ कुँवर सलीम ने कहा। ‘‘अगर डॉक्टर शौकत मेरे चचा को इस बीमारी से निजात दिला दें तो इससे बढ़ कर और क्या बात हो सकती है। मेरा भी यही ख़याल है कि अब ऑपरेशन के अलावा और कोई चारा नहीं रह गया।’’
‘‘सलीम...!’’ नवाब साहब की बहन ने गरज कर कहा।
‘‘फूफी साहिबा...मैं समझता हूँ कि आप मुहब्बत करने वाली बहन का दिल रखती हैं, लेकिन उनकी सेहत की ख़ातिर दिल पर पत्थर रखना पड़ेगा।’’
‘‘कुँवर भैया...आप इतनी जल्द बदल गये।’’ नजमा ने कहा।
‘‘क्या करूँ नजमा...अगर कर्नल तिवारी मौजूद होते तो मैं कभी ऑपरेशन के लिए तैयार न होता। लेकिन ऐसी सूरत में, तुम ही बताओ, चचा जान कब तक यूँ ही पड़े रहेंगे।’’
‘‘क्यों साहब, क्या ऑपरेशन के अलावा कोई और सूरत नहीं हो सकती?’’ नवाब साहब की बहन ने डॉक्टर शौकत से पूछा।
‘‘यह तो मैं मरीज़ को देखने के बाद ही बता सकता हूँ।’’ डॉक्टर शौकत ने मुस्कुरा कर कहा।
‘‘हाँ, हाँ, हो सकता है कि इसकी नौबत ही न आये।’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा।
नवाब साहब जिस कमरे में थे, वह ऊपरी मंज़िल पर था। सब लोग नवाब साहब के कमरे में आये। वे कम्बल ओढ़े लेटे हुए थे, ऐसा मालूम हो रहा था जैसे वे गहरी नींद में सो रहे हों।
डॉक्टर शौकत ने अपने आले की मदद से उनका चेक-अप करना शुरू किया। फिर बोला।
‘‘मुझे अफ़सोस है बेगम साहिबा कि ऑपरेशन के बग़ैर काम न चलेगा।’’ डॉक्टर शौकत ने अपना आले को हैंडबैग में रखते हुए कहा।
फिर सब लोग नीचे वापस आ गये।
डॉक्टर शौकत ने नवाब साहब के ख़ानदान वालों को काफ़ी इत्मीनान दिलाया। उनकी तसल्ली के लिए उसने इन लोगों को अपने बेशुमार ख़तरनाक केसों के हालात सुना डाले। नवाब साहब का ऑपरेशन तो उनके मुक़ाबले में कोई चीज़ न था।
‘‘फूफी साहिबा, आप नहीं जानतीं।’’ बेगम साहिबा से सलीम ने कहा। ‘‘डॉक्टर शौकत जैसा डॉक्टर पूरे हिन्दुस्तान में नहीं मिल सकता।’’
‘‘मैं किस क़ाबिल हूँ।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा। ‘‘सब ख़ुदा की मेहरबानी और उसका एहसान है।’’
‘‘हाँ, यह तो बताइए कि ऑपरेशन से पहले कोई दवा वग़ैरह दी जायेगी?’’ कुँवर सलीम ने पूछा।
‘‘फ़िलहाल एक इंजेक्शन दूँगा।’’
‘‘और ऑपरेशन कब होगा?’’ नवाब साहब की बहन ने पूछा।
‘‘आज ही...आठ बजे रात से ऑपरेशन शुरू हो जायेगा। चार बजे तक मेरा असिस्टेंट और दो नर्सें यहाँ आ जायेंगी।’’
‘‘मेरा तो दिल घबरा रहा है।’’ नवाब साहब की भानजी ने कहा।
‘‘घबराने की कोई बात नहीं है।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा। ‘‘मैं अपनी सारी कोशिशें लगा दूँगा। केस कुछ ऐसा ख़तरनाक नहीं। और अल्लाह ताला से बड़ा कोई नहीं, उससे हम सब को उम्मीद है। इंशा अल्लाह ऑपरेशन कामयाब होगा। आप लोग बिलकुल परेशान न हों।’’
‘‘डॉक्टर साहब, आप इत्मीनान से अपनी तैयारी पूरी कीजिए।’’ कुँवर सलीम हँस कर बोला। ‘‘बेचारी औरतों के बस में घबराने के अलावा और कुछ नहीं।’’
नवाब साहब की बहन ने उसे तेज़ नज़रों से देखा और नजमा के माथे पर लकीरें पड़ गयीं।
‘‘मेरा मतलब है फूफी साहिबा कि कहीं डॉक्टर साहब आप लोगों की हालत देख कर परेशन न हो जायें। अब चचा जान को अच्छा ही हो जाना चाहिए। हद है, अट्ठारह दिन हो गये, अभी तक उनको होश नहीं आया।’’
‘‘तुम इस तरह कह रहे हो जैसे हम लोग उन्हें सेहतयाब देखने के ख़्वाहिशमन्द नहीं हैं!’’ बेगम साहिबा ने मुँह बना कर कहा।
‘‘ख़ैर... ख़ैर...!’’ फ़ैमिली डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा। ‘‘हाँ तो डॉक्टर शौकत, मेरे ख़याल से अब आप इंजेक्शन दे दीजिए।’’
डॉक्टर शौकत, डॉक्टर तौसीफ़ और कुँवर सलीम ऊपरी मंज़िल पर मरीज़ के कमरे में चले गये और दोनों माँ-बेटियाँ हॉल में रुक कर आपस में बातें करने लगीं। नजमा कुछ कह रही थी और नवाब साहब की बहन के माथे पर लकीरें उभर रही थीं। उन्होंने दो-तीन बार सीढ़ियों की तरफ़ देखा और बाहर निकल गयीं।
इंजेक्शन देने के बाद डॉक्टर शौकत, कुँवर सलीम और डॉक्टर तौसीफ़ के साथ बाहर आया।
‘‘अच्छा कुँवर साहब, अब हम लोग चलेंगे। चार बजे तक नर्सें और मेरा असिस्टेंट आपके यहाँ आ जायेंगे और मैं भी ठीक छै बजे यहाँ पहुँच जाऊँगा।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा।
‘‘तो यहीं रुक जाइए ना...!’’ सलीम ने कहा।
‘‘नहीं...डॉक्टर तौसीफ़ के यहाँ ठीक रहेगा और फिर क़स्बे में मुझे कुछ काम भी है। हम लोग छै बजे तक आ जायेंगे।’’
डॉक्टर कार में बैठ गये, लेकिन डॉक्टर शौकत की लाख कोशिशों के बावजूद कार स्टार्ट न हुई।
‘‘यह तो बड़ी मुसीबत हुई।’’ डॉक्टर शौकत ने कार से उतर कर मशीन का जायज़ा लेते हुए कहा।
‘‘फ़िक्र मत कीजिए...मैं अपनी गाड़ी निकाल कर लाता हूँ।’’ कुँवर सलीम ने कहा और लम्बे डग भरता हुआ गैराज की तरफ़ चला गया, जो पुरानी कोठी के क़रीब था।
थोड़ी देर बाद नवाब साहब की बहन आ गयीं।
‘‘डॉक्टर शौकत की कार ख़राब हो गयी। कुँवर साहब कार के लिए गये हैं।’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने उनसे कहा।
‘‘ओह...कार तो मैंने ही शहर भेज दी है और भाई जान वाली कार बहुत दिनों से ख़राब है।’’
‘‘अच्छा, तो फ़िर आइए डॉक्टर साहब, हम लोग पैदल ही चलें...सिर्फ़ डेढ़ मील तो चलना है।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा।
‘‘डॉक्टर तौसीफ़! मुझे आपसे कुछ राय-मशवरा करना है।’’ नवाब साहब की बहन ने कहा। ‘‘अगर आप लोग शाम तक यहीं ठहर जायें तो क्या हर्ज है।’’
‘‘डॉक्टर साहब को आप रोक लें। मुझे कोई ऐतराज़ न होगा।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा।
‘‘आप कुछ ख़याल न कीजिए...! बेगम साहिबा बोलीं। ‘‘अगर कार शाम तक वापस आ गयी तो मैं छै बजे तक भिजवा दूँगी, वरना फिर किसी दूसरी सवारी का इन्तज़ाम किया जायेगा।’’
‘‘शाम को तो मैं हर सूरत में पैदल ही आऊँगा, क्योंकि ऑपरेशन के वक़्त मैं काफ़ी चाक़-चौबन्द रहना चाहता हूँ।’’ शौकत ने कहा और क़स्बे की तरफ़ रवाना हो गया। रास्ते में कुँवर सलीम मिला।
‘‘मुझे अफ़सोस है डॉक्टर कि इस वक़्त कार मौजूद नहीं। आप यहीं रहिए, आखिर इसमें हर्ज ही क्या है।’’
‘‘हर्ज तो कोई नहीं, लेकिन मुझे तैयारी करनी है।’’ डॉक्टर शौकत ने जवाब दिया।
‘‘अच्छा तो चलिए, मैं आपको छोड़ आऊँ।’’
‘‘नहीं...शुक्रिया...रास्ता मेरा देखा हुआ है।’’
डॉक्टर शौकत जैसे ही पुरानी कोठी के क़रीब पहुँचा उसे एक अजीब तरह का क़हक़हा सुनाई दिया। बूढ़ा प्रोफ़ेसर इमरान क़हक़हे लगाता हुआ उसकी तरफ़ बढ़ रहा था।
‘‘हैलो, हैलो...!’’ बूढ़ा चीख़ा। ‘‘अपने मकान के क़रीब अजनबियों को देख कर मुझे ख़ुशी होती है।’’
डॉक्टर शौकत रुक गया। उसे महसूस हुआ जैसे उसके जिस्म के सारे रोयें खड़े हो गये हों। इतनी ख़ौफ़नाक शक्ल का आदमी आज तक उसकी नज़रों से न गुज़रा था।
‘‘मुझसे मिलिए...मैं प्रोफ़ेसर इमरान हूँ।’’ उसने हाथ मिलाने के लिए दायाँ हाथ बढ़ाते हुए कहा। ‘‘और आप...!
‘‘मुझे शौकत कहते हैं...!’’ शौकत ने बेदिली से हाथ मिलाते हुए कहा, लेकिन उसने महसूस किया कि हाथ मिलाते वक़्त बूढ़ा कुछ सुस्त पड़ गया था। बूढ़े ने फ़ौरन ही अपना हाथ खींच लिया और क़हक़हा लगाता, उछलता-कूदता, फिर पुरानी कोठी में वापस चला गया।
डॉक्टर शौकत हैरान खड़ा था। तभी एकाएक क़रीब की झाड़ियों से एक बड़ा-सा कुत्ता उस पर झपटा। डॉक्टर शौकत घबरा कर कई क़दम पीछे हट गया। कुत्ते ने छलाँग लगायी और एक भयानक चीख़ के साथ ज़मीन पर जा गिरा। कुछ सेकेण्ड तक वह तड़पा और फिर उसकी हरकत बन्द हो गयी। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि डॉक्टर शौकत को कुछ सोचने-समझने का मौक़ा न मिल सका। इसके बाद कुछ समझ ही में न आ रहा था कि वह क्या करे।
‘‘अरे, यह मेरे कुत्ते को क्या हुआ...टाइगर! टाइगर...!’’ एक ज़नाना आवाज़ सुनायी दी। शौकत चौंक पड़ा। सामने नवाब साहब की भानजी नजमा खड़ी थी।
‘‘मुझे ख़ुद हैरत है।’’ शौकत ने कहा।
‘‘मैंने इसके ग़ुर्राने की आवाज़ सुनी थी। क्या यह आप पर झपटा था? लेकिन इसकी सज़ा मौत न हो सकती थी।’’ वह तेज़ आवाज़ में बोली।
‘‘यक़ीन कीजिए, मोहतरमा! मुझे ख़ुद हैरत है कि उसे एकदम से हो क्या हो गया...अगर आपको मुझ पर शक है तो भला बताइए मैंने उसे क्योंकर मारा...?’’
नजमा कुत्ते की लाश पर झुकी उसे पुकार रही थी। ‘‘टाइगर, टाइगर...!’’
‘‘बेकार है मोहतरमा, यह ठण्डा हो चुका है।’’ शौकत कुत्ते की लाश को हिलाते हुए बोला।
‘‘आखिर उसे हो क्या गया।’’ नजमा ने डरे हुए अन्दाज़ में पूछा।
‘‘मैं ख़ुद यही सोच रहा हूँ। बाहर से तो कोई ज़ख़्म भी नहीं नज़र आ रहा।’’
‘‘हैरत है...!’’
तभी अचानक डॉक्टर शौकत के दिमाग़ में एक ख़याल आया। वह उसके पंजों को देखने लगा।
‘‘ओह...!’’ उसके मुँह से हैरत की चीख़ निकली और उसने कुत्ते के पंजे में चुभी हुई ग्रामोफ़ोन की सुई खींच ली और ग़ौर से उसे देर तक देखता रहा।
‘‘देखिए, मोहतरमा, मेरे ख़याल से यह ज़हरीली सुई ही आपके कुत्ते की मौत का सबब बनी है।’’
‘‘सुई...!’’ नजमा ने चौंक कर कहा। ‘‘ग्रामोफ़ोन की सुई...क्या मतलब...?’’
‘‘मतलब तो मैं भी नहीं समझा, लेकिन पूरे तौर से यह कह सकता हूँ कि यह सुई ख़तरनाक हद तक ज़हरीली है। मुझे बहुत अफ़सोस है। कुत्ता बहुत उम्दा नस्ल का था।’’
‘‘लेकिन यह सुई यहाँ कैसे आयी?’’ वह पलकें झपकाती हुई बोली।
‘‘किसी से गिर गयी होगी।’’
‘‘अजीब बात है?
शौकत ने वह सुई एहतियात से थर्मामीटर रखने वाली नली में रख ली और बोला, ‘‘यह एक दिलचस्प चीज़ है। मैं इसकी जाँच करूँगा। आपके कुत्ते की मौत पर एक बार फिर अफ़सोस करता हूँ।’’
‘‘ओह...डॉक्टर, मैं आपसे सच कहती हूँ कि मैं इस कुत्ते का बहुत ख़याल रखती थी।’’ उसने हाथ मलते हुए कहा।
‘‘वाक़ई, बहुत अच्छा कुत्ता था। इस नस्ल के ग्रेहाउण्ड बहुत कम मिलते हैं।’’ शौकत ने जवाब दिया।
‘‘होने वाली बात थी...अफ़सोस तो होता है, मगर अब हो ही क्या सकता है। मगर एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि सुई यहाँ आयी कैसे।’’
‘‘मैं ख़ुद यही सोच रहा हूँ।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा।
‘‘हो सकता है कि यह सुई उस पागल बूढ़े की हो। उसके पास अजीबो-ग़रीब चीज़ें हैं...मनहूस कहीं का।’’
‘‘क्या आप उन साहब के बारे में तो नहीं कह रही हैं जो अभी इस कोठी से निकले थे।’’
‘‘जी हाँ...वही होगा...!’’ नजमा ने जवाब दिया।
‘‘ये कौन साहब हैं। बहुत ही अजीबो-ग़रीब आदमी मालूम होते हैं?’’ डॉक्टर शौकत ने कहा।
‘‘यह हमारा किरायेदार है। प्रोफ़ेसर इमरान....लोग कहते हैं कि अन्तरिक्ष वैज्ञानिक है। मुझे तो यक़ीन नहीं आता। वह देखिए, उसने मीनार पर एक दूरबीन भी लगा रखी है।’’
‘‘प्रोफ़ेसर इमरान...अन्तरिक्ष वैज्ञानिक...ये बहुत मशहूर आदमी हैं। मैंने इनकी कई किताबें पढ़ी हैं। अगर वक़्त मिला तो मैं उनसे ज़रूर मिलूँगा।’’
‘‘क्या कीजिएगा मिल कर...दीवाना है। वह होश ही में कब रहता है। वह जानवर से भी बदतर है।’’ नजमा ने कहा। ख़ैर, हटाइए इन बातों को...डॉक्टर साहब ऑपरेशन में कोई ख़तरा तो नहीं?
‘‘जी नहीं, आप इत्मीनान रखिए...इन्शा अल्लाह कोई गड़बड़ न होने पायेगी।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा। ‘‘अच्छा, अब मैं चलूँ। मुझे ऑपरेशन की तैयारी करनी है।’’
डॉक्टर शौकत क़स्बे की तरफ़ चल पड़ा। एक शख़्स झाड़ियों की आड़ लेता हुआ उसका पीछा कर रहा था।
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