एक नई पहेली

सुबह दस बजे वंश वशिष्ठ मॉडल टाऊन पहुंचकर उस शख्स से मिला जिसने मनसुख और कौशल्या के कत्ल की खबर पुलिस को दी थी। वह करीब 35 की उम्र का अच्छी शक्लो सूरत वाला युवक था, जिसने वंश का परिचय जानने के बाद मिलने या बातचीत करने में कोई आनाकानी नहीं दिखाई।

दोनों ड्राईंगरूम में जाकर बैठ गये, तो उसने अपनी बीवी को चाय बनाने के लिए कहा, फिर वंश की तरफ देखकर बोला, “कहिये सर, क्या जानना चाहते हैं?”

“पुलिस को वारदात की खबर तुमने दी थी?”

“जी हां, और देकर बड़ी गलती कर दी।”

“क्यों?”

“पूरी रात थाने में खोटी हुई, सुबह छह बजे घर पहुंचा और सोने की कोशिश कर ही रहा था कि मीडिया के लोग यहां पहुंच गये। तरह-तरह के सवाल करने लगे, ऐसे सवाल जैसे उन दोनों की हत्या मेरी आंखों के सामने ही की गयी हो।”

“और अब मैं पहुंच गया आपको परेशान करने?”

“कैसी बात करते हैं सर? नहीं मुझे किसी अकेले इंसान के सवालों का जवाब देने से कोई ऐतराज नहीं है, फिर आपके शो का तो मैं जबरदस्त फैन हूं, इतना कि ऑफिस में खास उसी लिए एक टीवी तक लगवा रखी है, क्योंकि कई बार देर रात तक रुकना पड़ जाता है। बावजूद इसके आपको फौरन नहीं पहचान पाया तो इसलिए नहीं, क्योंकि आपके यहां पहुंचने की कोई उम्मीद नहीं थी मुझे।”

“जानकर खुशी हुई कि आपको मेरा शो पसंद है - कहकर उसने सवाल किया - करते क्या हैं आप?”

“मायापुरी में इलैक्ट्रिक पार्ट्स बनाने का एक कारखाना लगा रखा है।”

“कैसा चल रहा है?”

“मेहरबानी है ऊपर वाले की, जब से फैक्ट्री लगाई है कभी घाटे का मुंह नहीं देखना पड़ा, जबकि उधर चल रही वैसी ही दो फैक्ट्रियां जाने कब की बंद हो चुकी हैं।”

“सही कहा ईश्वर की मेहरबानी बनी रहनी चाहिए।”

“वही तो, वरना हम इंसानों के वश में क्या है?”

“मनसुख को कब से जानते थे?”

“कई साल हो गये, पांच साल तो यकीनन। दोनों मां बेटे पहले उसी घर में किराये पर रहते थे, मगर आठ नौ महीने पहले वह मकान खरीद लिया और कुछ पुराने किरायेदारों को हटाकर नये रख लिये।”

“आठ नौ महीने पहले खरीदा था?”

“दस महीने पहले - एक कमउम्र और खूबसूरत युवती चाय के साथ वहां पहुंचती हुई बोली - नमस्ते भाईजान।”

“नमस्ते।”

“ये मेरी वाईफ है फिरोजा, लव मैरिज की थी हम दोनों ने, बता इसलिए रहा हूं ताकि आप हम दोनों का नाम सुनकर चौंक न पड़ें।”

“जरूर एक ही स्कूल या कॉलेज में रहे होंगे?” वंश मुस्कराता हुआ बोला।

“हां, स्कूल और कॉलेज दोनों की पढ़ाई एक साथ पूरी की थी। और मैं क्योंकि पढ़ने में बहुत होशियार था, इसलिए ये फिदा हो गयी मुझपर।”

“झूठ बोलना बंद कीजिए - फिरोजा हंसती हुई बोली - सच ये है भाईजान कि ग्रेजुएशन में इनके 60 परसेंट और मेरे 92 परसेंट मॉर्क्स आये थे। मगर कम मॉर्क आने में इनकी कोई गलती नहीं थी। मेरे घर का चक्कर लगाने से फुर्सत मिलती तब तो पढ़ाई पर ध्यान दे पाते।”

“परिवार वालों ने ऐतराज नहीं किया?”

“नहीं, हम दोनों के पेरेंट्स गहरे दोस्त थे, इसलिए सहज ही मान गये। किसी के पेट में दर्द हुआ तो वह बस हमारे रिश्तेदारों के हुआ, किसी ने जीवन भर के लिए रिश्ता तोड़ लेने की धमकी दी, तो किसी ने ये तक कह दिया शादी हुई तो दोनों में से कोई जिंदा नहीं बचेगा, जिसकी परवाह ना तो हमें थी ना ही हमारे घरवालों को हुई।”

“फिर तो आपके पेरेंट्स काफी समझदार हुए।”

“हां वो तो बराबर हैं।”

“अच्छा अब जरा मनसुख पर आईये, करता क्या था वह?”

“मजनूं का टीला इलाके में पटरी पर दुकान लगाते थे मां बेटे।”

“किस चीज की?”

“आर्टीफीशियल ज्वैलरी की।” फिरोजा ने बताया।

“जो कि बहुत अच्छी चलती होगी, नहीं?”

“अरे नहीं भाईजान, साल भर पहले तक तो दोनों एकदम भूखे नंगे दिखाई देते थे, मगर बाद में छप्पर फटा और दौलत बरस पड़ी। घर खरीद लिया, गाड़ी खरीद ली, अपना लिविंग स्टैंडर्ड तक बदल डाला।”

“फिरोजा को लगता है वंश साहब कि मनसुख ने कहीं डकैती डाल ली थी।”

“क्यों न लगे, पैसा एकदम से तो नहीं आ जाता किसी के पास? हालात बदलते भी हैं तो धीरे धीरे बदलते हैं, लेकिन उन दोनों मां बेटों के पास तो यूं आया, जैसे गड़ा हुआ खजाना हाथ लग गया हो।”

“कोई अंदाजा, घर कितने में खरीदा होगा?”

“अंदाजा क्या पक्का मालूम है कि साठ लाख में खरीदा था, और स्विफ्ट भी कैश में ली थी। घर के इंटीरियर के बारे में तो वह बड़े ही शान के साथ पड़ोसियों को बताता था कि पूरे दस लाख खर्च कर दिये थे। एकदम से इतना पैसा ईमानदारी से तो नहीं ही आ सकता किसी के पास।”

“इसका सोचा सच है या नहीं वंश साहब, मैं नहीं जानता, लेकिन कोई न कोई राज की बात तो जरूर थी। क्योंकि पटरी पर दुकान लगाकर इतनी दौलत कोई नहीं जमा कर सकता।”

“कभी किसी पुलिसवाले को उनके घर आते देखा था?”

“कई बार - जवाब फिरोजा ने दिया - पहली बार तो मुझे लगा वे लोग किसी वजह से मनसुख को गिरफ्तार करने आये थे, मगर नहीं वह तो उनसे यूं हंस हंसकर बातें कर रहा था जैसे रिश्तेदार हों, दोस्त हों।”

“घर खरीदने से पहले या बाद में?”

“मेरे ख्याल से तो पहले।”

“दोनों पुलिसियों की शक्ल देखी थी आपने?”

“एक की देखी थी।”

सुनकर वंश ने चौहान को फोन कर के अधिकारी और दीक्षित की फोटो मंगवा ली, जिसमें से दीक्षित को फिरोजा फौरन पहचान गयी, “ये वाला था, जहां तक याद पड़ता है दो या तीन बार देखा होगा मैंने, जबकि आया उससे ज्यादा मर्तबा भी हो सकता है। जबकि दूसरा वाला, जिसकी शक्ल मैं नहीं देख पाई थी बस एक बार उनके घर आया था।”

“मनसुख या उसकी मां से बातचीत होती थी आप लोगों की?”

“कभी कभार हो जाया करती थी।”

“कभी उनके मुंह से किसी डॉक्टर का नाम सुना हो, डॉक्टर बरनवाल का?”

“ओह अब समझी मैं - फिरोजा यूं बोली जैसे कोई गहरे राज की बात जान गयी हो - सारी रईसी डॉक्टर का कत्ल कर के हासिल हुई थी दोनों को।”

“यानि नाम बराबर लिया था डॉक्टर का?”

“नहीं, वो तो मैंने टीवी पर न्यूज में देखा था।”

“ओह।”

“चाय ठंडी हो रही है भाईजान।”

“सॉरी - कहकर उसने कप से एक चुस्की ली फिर बोला - कोई और भी उनसे मिलने जुलने आता था?”

“आते तो थे, लेकिन उनके बारे मेंं कुछ पता नहीं है हमें।”

“बीती रात कुछ देखा हो?”

“हां देखा था।”

“क्या?”

“एक लंबे कद वाले मर्द को मनसुख के घर से निकलते देखा था।”

“शक्ल नहीं देखी?”

“नहीं, क्योंकि हुडी पहने हुए था, जिसकी कैप अपने सिर पर यूं चढ़ा रखी थी कि सूरत दिखना मुमकिन नहीं था, फिर मैंने ज्यादा ध्यान भी तो नहीं दिया था। दिख तो इसलिए गया क्योंकि बिजली जाने के कारण मैं सामने वाली दुकान से मोमबत्ती लेने चली गयी थी। उसके बस थोड़ी देर बाद ही ये आ गये, और कार हटाने को कहने के लिए उसके घर गये जहां दोनों मां बेटे मरे पड़े थे।”

“उसके बाद पुलिस को इंफॉर्म कर दिया?”

“जी हां।”

“और कोई खास बात नोट की हो?”

“याद तो नहीं आ रहा।”

“हुडी वाला पहुंचा कैसे था यहां तक?”

“नहीं जानती, आपको लगता है कातिल वही था?”

“उम्मीद तो पूरी पूरी दिखाई दे रही है - कहकर उसने चाय खत्म की और उठ खड़ा हुआ - अब इजाजत दीजिए, आप दोनों का बहुत बहुत धन्यवाद।”

“आपका भी यहां पधारने के लिए शुक्रिया भाईजान।” फिरोजा हंसती हुई बोली।

तत्पश्चात वहां से निकलकर वंश अपनी कार में सवार हो गया।

दोपहर बारह बजे के करीब वंश संगम विहार पहुंचा, जहां वह बिल्डिंग तलाशने में उसके पसीने छूट गये, जिसके एक कमरे में विश्वजीत बरनवाल अपनी मां के साथ किराये पर रह रहा था।

आधे घंटे के अथक परिश्रम के बाद आखिरकार वह मंजिल पर पहुंचा और दरवाजे पर हौले से दस्तक देकर खोले जाने का इंतजार करने लगा।

मिनट भर बाद एक लड़के ने दरवाजा खोला जिसे विश्वजीत के रूप में वह फौरन पहचान गया, “हैलो।”

“हैलो - वह अनमने भाव से बोला - आप कौन?”

वंश ने बताया।

“क्या चाहते हैं?”

“पांच मिनट बात करनी है तुमसे।”

“अलग से बताने को कुछ नहीं है मेरे पास, मतलब जो जानता था वह पहले ही पुलिस और मीडया को बता चुका हूं।”

“दरवाजे से टरकाने की कोशिश कर रहे हो?”

“अरे नहीं सर, मेरी क्या मजाल जो वैसा करूं।”

“तो फिर दे क्यों नहीं देते पांच मिनट का वक्त, चाहो तो हम यहीं खड़े खड़े भी बात कर सकते हैं।”

“नहीं यहां नहीं कर सकते, और विद सॉरी कहता हूं कि मैं आपको कमरे में भी नहीं बुला सकता।”

“क्योंकि अपनी मां के सामने बात नहीं करना चाहते?”

“मौसा और मौसी भी आये हुए हैं।”

“बाहर मेरी कार में बैठकर बात करें तो कैसा रहेगा?”

“ठीक है चलिए - कहने के बाद भीतर की तरफ मुंह घुमाकर वह थोड़ा उच्च स्वर में बोला - अब्बे आवत हईं माई।”

फिर दोनों वंश की कार में जाकर बैठ गये।

“मेरे पास बताने के लिए अलग से कुछ नहीं है सर।”

“कोई बात नहीं, जो है मैं उसी से काम चला लूंगा।”

“क्या जानना चाहते हैं?”

“उससे पहले मेरी तरफ से बधाई कबूल करो, तुमने जो कर दिखाया उसे करने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। बहुत हिम्मत वाला काम था पुलिस से पंगा लेना।”

“शुक्र है किसी को तो कद्र हुई, वरना अभी तक तो यही लग रहा था जैसे मैंने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो, झूठे जुर्म कबूल कर के। वसंतकुंज थाने की पुलिस तो मुझे काट खाने को दौड़ रही थी।”

“अब तो खैर क्या बिगाड़ पायेंगे तुम्हारा।”

“क्या पता लगता है सर, बात पटना की होती तो एक बार को मैं संभाल भी लेता, मगर यहां तो कब कौन मेरे भेजे में एक गोली उतार जायेगा, उसका अंदाज भी नहीं लगाया जा सकता।”

“ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि तुम्हारे दुश्मन अब आपस में लड़-मर रहे हैं। यानि उन्हें तुम्हारी तरफ ध्यान देने की फुर्सत नहीं है। इसलिए भी नहीं है क्योंकि उनकी खुद की जान के लाले पड़े हैं।”

“मैं समझा नहीं।”

“अधिकारी और दीक्षित का कत्ल हो गया, खबर नहीं लगी?”

“लग गयी है, उस बात से मां और मैं दोनों बुरी तरह घबराये हुए हैं, ये सोचकर कि कहीं उन दोनों का कातिल मुझे ही न समझ लिया जाये। आखिर उनको खत्म करने की छोटी मोटी ही सही वजह तो बराबर थी मेरे पास।”

“तुमने कत्ल किया है?”

“नहीं सर, इतना जिगरा होता तो जाने कब का खत्म कर दिया होता सालों को, फिर मेरी दुश्मनी उनसे थी ही नहीं, उनका नाम तो बस इसलिए उछाल दिया ताकि पुलिस के अफसर लोग मेरी बात पर ध्यान दें और उनपर दबाव डालकर जानने की कोशिश करें कि बाबूजी की जान किसने ली थी, जो कि अब होता नहीं ही दिखाई दे रहा।”

“क्यों?”

“जब दोनों मारे जा चुके हैं सर, और उनके अलावा कातिल के बारे में कोई दूसरा जानता भी नहीं है, तो ऐसे में केस कहां से सॉल्व होगा?”

“तुम्हें क्या मालूम कि कोई और नहीं जानता तुम्हारे पिता के कातिल के बारे में?”

“बस अंदाजा है, बात अगर चार लोगों को मालूम होती तो पुलिस सबको चुप कैसे करा सकती थी, तब हत्यारे ने पकड़ा ही जाना था, जो कि वह नहीं पकड़ा गया, इसलिए लगता तो यही है कि अब आगे भी नहीं पकड़ा जायेगा।”

“अच्छा एक बात बताओ, अधिकारी और दीक्षित ने बस तुम्हें और तुम्हारी मां को दिल्ली से वापिस लौट जाने की धमकी दी थी, या कुछ और भी किया था?”

“ट्रेन में बैठाकर आये थे, ये कहकर कि दोबारा दिल्ली में दिखाई दिया तो किसी को मेरी लाश का भी पता नहीं लगने देंगे। और तो कुछ नहीं किया था।”

“तुम यहां इंसाफ की चाह में तो नहीं आये होगे, है न?”

“उसी लिए आया था सर, और यहां क्या धरा है मेरे लिए?”

“पुलिस को तो तुमने बयान दिया था कि नौकरी खोजने आये थे?”

“यूं ही कह दिया था, असलियत उन्हें बताना कैसे अफोर्ड कर सकता था। दोनों को पता लग जाता कि मैं कौन हूं तो अगले ही पल मेरे भेजे में एक गोली दागते और लाश किसी गटर में ले जाकर फेंक देते।”

“इंसाफ की चाह थी तो इतना लंबा इंतजार क्यों किया?”

“क्योंकि मां का दबाव था, कहती थी पहले बीटेक पूरा कर लूं, जो मैंने इसी साल कंप्लीट किया है। उसके बाद दिल्ली आया और एडवोकेट रमन राय से मशवरा किया, जो कि रिश्ते में मेरे फूफा लगते हैं। उन्हें पूरी बात बताई तो वह कहने लगे कि मेरी तरफ से अदालत में केस की फिर से इंवेस्टिगेशन की अपील लगा सकते थे, लेकिन कुछ हासिल होना मुश्किल था क्योंकि पुलिस पहले ही लंबा इंवेस्टिगशन कर चुकी थी। उन्होंने ये भी कहा कि ऐसी रिकॉर्डिंग को भी सबूत का दर्जा नहीं दिया जा सकता जो एक मोबाईल से दूसरे में ट्रांसफर की जा चुकी हो, और जो कॉल रिकॉर्डिंग भी न हो।”

“मोबाईल बदलने की जरूरत क्यों पड़ गयी?”

“पहला वाला हैंग होने लगा था।”

“रिकॉर्डिंग करना क्योंकर सूझ गया?”

“जब पहली बार हम वसंतकुंज थाने पहुंचकर पुलिस से मिले तो उनकी बातें सुनकर ही मुझे लगने लगा था कि वे लोग कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे थे। बहुत बुरे ढंग से पेश आये थे। मां से भी तू तू कहकर बात कर रहे थे, उम्र का भी लिहाज नहीं किया। ऐसे में जब अगले ही रोज रात दस बजे दरवाजा खटखटाकर बताया कि पुलिस आई थी, तो मैंने सावधानीवश मोबाईल में रिकॉर्डिंग चलाकर उसे मां को दे दिया, ये कहकर कि आंचल में छिपाकर बैठ जाये।”

“कोई मारपीट भी की गयी थी तुम्हारे साथ?”

“नहीं, लेकिन गाली गलौच बराबर की थी, हां उनकी बात मान नहीं लेता तो पक्का वे लोग वही करने वाले थे, क्योंकि दिल्ली से पटना का टिकट अपने साथ लेकर आये थे।”

“उस वक्त भी तुम किराये के कमरे में ही रुके थे?”

“नहीं मौसा के घर पर, जो कि उन दिनों सपरिवार गांव गये हुए थे। आते वक्त मां उनसे चाबी मांग लाई थी।”

“इस बार वहां क्यों नहीं रुके?”

“क्योंकि लंबा रुकना था, ऐसे में किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे। हां बर्तन वगैरह का इंतजाम मौसी ने ही कर के दिया था, हमें तो बस एक सिलेंडर और चूल्हा ही खरीदना पड़ा।”

“तुम्हारे पापा और अमरजीत एक दूसरे के गहरे दोस्त थे?”

“पुलिस ने बताया था, लेकिन सच यही है सर कि मैं या मेरी मां, दोनों को नहीं पता कि अमरजीत कौन थे। पापा ने कभी जिक्र किया नहीं, और हम कभी उनसे मिले नहीं।”

“गिरफ्तारी के वक्त तुम वसंतकुंज में क्या कर रहे थे?”

“किस्मत रूठ जाये सर तो आदमी अक्सर गलत जगह पर पहुंच ही जाया करता है। मैं भी पहुंच गया, इसलिए क्योंकि सिर पर जासूसी का भूत सवार हो गया था। पापा को जानने वाले कुछ लोगों के नाम थे मेरे पास जिनसे मिलकर सवाल करना चाहता था।”

“पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि उस रात तुम मनोहर पार्क के सामने उस जगह को घूर रहे थे, जहां अमरजीत की बॉडी पाई गयी थी?”

“उत्सुकतावश, क्योंकि वहां लाश की पोजिशन दिखाती आउट लाईन बनी हुई थी, मैं बस उसी को देखने के लिए क्षण भर को रुक गया था, और वही मेरे जी का जंजाल बन गया।”

“तुमने पुलिस को बता क्यों नहीं दिया कि तुम कौन हो?”

“अधिकारी और दीक्षित के डर से।”

“आगे जो कुछ तुमने अपने बयान में कहा वह तुम्हारा खुद का आईडिया था?”

“अरे नहीं सर, मैं तो उन्हें इस बात का यकीन दिलाने में जुटा हुआ था कि अमरजीत का कत्ल मैंने नहीं किया था। तभी वकील साहब कोई जुगाड़ लगाकर वहां मुझसे अकेले में मिलने में कामयाब हो गये। उन्होंने ही मुझे बताया कि कैसे मैं पुलिस की मार खाने से बच सकता था, और उसी बहाने बाबूजी के कत्ल की री इंवेस्टिगेशन के आदेश भी अदालत द्वारा जारी कराये जा सकते थे। सुनकर पहले तो मेरे रोंगटे खड़े हो गये, मगर जब उन्होंने ये कहा कि कोई चाहकर भी मुझे बाबूजी का हत्यारा साबित नहीं कर सकता क्योंकि उस वक्त मैं दिल्ली में नहीं था, तो मैंने उनका कहा मान लिया। इसलिए भी मान लिया क्योंकि पुलिस तब तक मेरे साथ मारपीट कर चुकी थी, और आगे उससे कहीं ज्यादा बुरी गत बनती दिख रही थी। जिसमें ना चाहते हुए भी मुझे अमरजीत का कत्ल किया होना कबूल करना ही पड़ा होता, इसलिए मैंने वह सबकुछ बोल दिया जो वकील साहब कहकर गये थे कि मुझे बोलना चाहिए।”

“और वह आईडी जलाने वाली बात?”

“वकील साहब का आईडिया था, मैं क्योंकि पहले ही अपना नाम अखिल बता चुका था, और उस नाम की, या गिरफ्तारी के वक्त कोई दूसरी आईडी मेरे पास नहीं थी, इसलिए वह झूठ चल गया।”

“आईडी पेश तो बराबर की गयी थी।”

“वह उन्हीं लोगों का कारनामा था, कैसे किया मैं नहीं जानता।”

“और जबरन शराब पिलाने वाली बात?”

लड़का हिचकिचाया।

“मैं किसी को नहीं बताऊंगा प्रॉमिस।”

“मेरे कहने पर अधिकारी ने बीयर की एक बोतल मंगा दी थी, जो मैं एक ही सांस में खाली कर गया था, वह भी वकील साहब का ही आईडिया था, कहते थे मेडिकल जांच में उसका खुलासा होकर रहेगा, जिससे दोनों पुलिसवालों की बोलती बंद हो जायेगी। हालांकि जांच की कोई नौबत नहीं आई थी।”

“बाल और दाढ़ी क्यों बढ़ा रखी है? वह भी बड़े अजीब तरीके से?”

“गांव में ही बढ़ाना शुरू कर दिया था, डर था कि कहीं अधिकारी या दीक्षित से आमना-सामना न हो जाये, जो कि अगर हो जाता तो उस स्थिति में फौरन पहचान जाते मुझे, फिर पता नहीं मेरा क्या हश्र होता।”

“आवाज से भी तो पहचान लेना चाहिए था, क्यों नहीं पहचाना?”

“मैं नहीं जानता, वैसे मैं हर वक्त यूं बात कर रहा था जैसे कोई इंसान तब बोलता है जब वह नशे में हो, शायद उसी वजह से नहीं पहचान पाये होंगे।”

“यानि पुलिस पर ये इल्जाम गलत था कि उन्होंने ये जानकर तुम्हें गिरफ्तार किया था कि तुम विश्वजीत हो।”

“जी हां, जानते होते तो मुझे या तो वापिस पटना लौटने को मजबूर कर देते, या फिर खत्म कर देते, कोर्ट में पेश करने की गलती तो हरगिज भी नहीं की होती।”

“वह झूठ बोलने की क्या जरूरत थी?”

“वकील साहब ने कहा था कि जितनी बातें उन दोनों के खिलाफ होंगे, कोर्ट से बाबूजी के कत्ल की री इंवेस्टिगेशन के आदेश हासिल होना उतना ही आसान हो जायेगा।”

“इसी तरह रिकॉर्डिंग में भी तो कोई भेद नहीं था?”

“नहीं सर, फिर उसे फॉरेंसिक जांच के लिए भी भेजा जा चुका है। गलत होगा तो क्या पकड़ाई में नहीं आ जायेगा। जबकि पुलिस कहती थी कि वे लोग फौरन इस बात का पता लगा लेंगे कि कोई एक ही आदमी अलग अलग आवाजों में बात कर रहा था, या सच में वह चार लोगों की आवाजें थीं।”

“हां उतने की गारंटी तो फॉरेंसिक वाले कर ही दिखायेंगे।”

“इसलिए मान लीजिए कि रिकॉर्डिंग सच्ची है।”

“मान लिया, ये बताओ कि क्या तुम कविता कुमावत को जानते हो?”

“हां पापा के क्लिनिक में नर्स थी।”

“उसका डॉक्टर साहब के कत्ल में कोई हाथ हो सकता है?”

“मुझे तो नहीं लगता, वह भला क्यों मारेगी बाबूजी को?”

“कल रात दस बजे के बाद तुम कहां थे?”

“नौ बजे के बाद से यहीं था, क्योंकि उस कांड के बाद रात को मां मुझे बाहर नहीं जाने देती, अपनी कसम दे रखी है। कहती है जो करना है दिन में करूं लेकिन रात को कमरे में रहूं।”

“कुछ ऐसी बातें सामने आई हैं विश्वजीत जिससे लगता है कि अधिकारी और दीक्षित किसी वजह से तुम्हारे पापा को ब्लैकमेल कर रहे थे, तुम्हें कोई अंदाजा है उस बारे में?”

“नहीं।”

“तुम लोग उनके साथ क्यों नहीं रहते थे?”

“क्योंकि गांव में बहुत खेतीबाड़ी है, जिसकी देखभाल के लिए किसी ना किसी का वहां होना बहुत जरूरी था, और मुझे छोड़कर मां दिल्ली में रहने को तैयार ही नहीं होती थी।”

“डॉक्टर साहब के कत्ल के बाद जब पुलिस ने दबाव डालकर तुम लोगों को यहां से खदेड़ दिया, तो बाद में उनके हौजखास वाले घर पर अपना अधिकार कैसे कायम कर पाये, उसके लिए तो कोर्ट के खूब चक्कर काटने पड़े होंगे?”

“घर बेचने की जरूरत नहीं थी सर, क्योंकि वह किराये पर था।”

“व्हॉट! किसने कहा?”

“अधिकारी ने बताया था, क्लिनिक भी किराये पर था। हां उनके बैंक में कुछ पैसे पड़े थे, मेरे ख्याल से साढ़े तीन लाख रूपये जिसका एक चेक बाद में उसने हमारे गांव के पते पर भिजवा दिया था। ऐसे में अगर उसने हमें दिल्ली से भगाने की कोशिश नहीं की होती, तो मैं उसे साक्षात भगवान ही मान लेता।”

“तुम ये कह रहे हो कि हौजखास वाला घर तुमने नहीं बेचा था?”

“अरे जो चीज हमारी थी ही नहीं, उसे हम बेच कैसे सकते थे?”

“पिता का क्रिया कर्म कर के यहां से वपिस जाने के बाद पहली बार दिल्ली कब आये थे?”

“एक महीने पहले।”

“बीच में कभी नहीं आये?”

“नहीं।”

वंश का दिमाग भिन्ना उठा, ये सोचकर कि हौजखास वाला करोड़ों का मकान वह किराये का बता रहा था। उससे भी बड़े आश्चर्य की बात ये थी कि अगर वह किराये पर था तो बाद में कोई बबिता बरनवाल उसे किसी को बेचने में क्योंकर कामयाब हो गयी। या उस मकान की ऑनर कोई दूसरी बबिता बरनवाल थी? मगर वह बात भी उसे हजम नहीं हुई क्योंकि दीक्षित पहले ही उसकी हामी भर चुका था।

पक्का कुछ गड़बड़ थी।

कोई बहुत बड़ी गड़बड़ थी।

“तुम यहां इंसाफ की लड़ाई लड़ने आये हो - प्रत्यक्षतः वह बोला - जरूर लड़ो। अच्छी बात ये है कि इस बार पुलिस और मीडिया दोनों तुम्हारे साथ है। मगर इतना तो अभी अभी तुम खुद कह के हटे हो कि अधिकारी और दीक्षित के कत्ल के बाद हत्यारे का पता लगना मुश्किल हो गया है। इसलिए सोचो, अपने दिमाग पर जोर डालो, क्या कभी तुम्हारे पापा ने किसी ऐसे शख्स का जिक्र किया था जिसके साथ उनका मनमुटाव चल रहा हो, झगड़ा हो गया हो, या ऐसा ही कुछ और?”

“नहीं, लेकिन पापा की मौत के बाद यहां पहुंचकर जब मैंने सुशांत अधिकारी से ये सवाल किया था कि मेरे पापा का कत्ल किसने किया? तो उसने एक बड़ी अजीब बात कही थी, जिसपर मुझे जरा भी यकीन नहीं आया था।”

“क्या कहा था?”

“ये कि ‘तेरा बाप रंगीला राजा था, क्या मालूम किसी औरत के खसम ने उसकी छाती में छुरा भोंक दिया हो, इसलिए सवाल करना बंद कर दे वरना ऐसी बेइज्जती होगी कि यहां से गांव तक किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जायेगा’ जबकि मेरे पापा वैसे नहीं थे सर। बाद में मैंने कविता से सवाल किया तो उसने भी यही कहा था कि पुलिस झूठे लांछन लगा रही थी।”

“और किसी पर शक भी नहीं है तुम्हें?”

“शक तो तब हो न सर जब मुझे मालूम हो कि पापा की दुश्मनी किसके साथ थी, उनके जीवन में क्या चल रहा था। हां इतना यकीन है कि रहा वह कोई बहुत पैसे वाला आदमी ही होगा, क्योंकि पुलिए लाख दो लाख की रिश्वत लेकर तो मामले को दबाने में जुट नहीं गयी होगी।”

“नहीं उसके लिए पचासों लाख कम पड़ गये होंगे।”

“और वैसी जान पहचान तो पापा की बस अपने पेशेंट के साथ ही रही होगी, सुना है वसंतकुंज में रहने वाला हर कोई अमीर ही है। मतलब कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि कातिल कौन था।”

“कभी किसी आयशा बागची का नाम सुना है?”

“बागची याद आ रहा है, उससे पहले आयशा था या कुछ और मैं नहीं जानता।”

“कब सुना था?”

“पापा के कत्ल के बाद जब दिल्ली आया था, तभी सब इंस्पेक्टर दीक्षित किसी को बागची मैडम, बागची मैडम कहकर मोबाईल पर बात कर रहा था।”

“क्या बात कर रहा था?”

“लताड़ खा रहा था, दूसरी तरफ से बहुत तेज आवाज में कोई लड़की बोल रही थी जो मेरे कानों में भी पड़ा था, उससे यही लग रहा था कि खुद को फोन किये जाने पर वह गुस्सा होकर दीक्षित को खरी खोटी सुना रही थी।”

“और भीष्म साहनी का?”

“नाम सुना है, कविता ने बताया था कि पापा की भीष्म साहनी और उन्मेद कनौजिया के साथ दोस्ती थी, ये भी कि दोनों वसंतकुंज में ही रहते हैं।”

“मेरा कार्ड रख लो - उसने एक विजिटिंग कार्ड लड़के को थमा दिया - कोई नई बात याद आ जाये तो मुझे इंफॉर्म करना, ऐसे ही कुछ और पूछना हुआ तो मैं तुम्हें कॉल कर लूंगा।”

“एक सवाल मैं पूछं?”

“पूछो?”

“क्या दिल्ली में मुझे और मेरी मां को कोई खतरा है?”

“चांसेज तो कम हैं, बल्कि नहीं है क्योंकि कातिल के बारे में तुम दोनों कुछ नहीं जानते, इसलिए वह तुम्हारे पीछे पड़ने की कोशिश भी नहीं करने वाला।”

“थैंक यू सर।” कहकर वह गाड़ी से बाहर निकल गया।

“दयानंद दीक्षित था मैडम - गरिमा के कमरे में दाखिल होता चौहान बोला - एक सीसीटीवी फुटेज हाथ लगी है, जिसमें उसका चेहरा भले ही नहीं दिख रहा, लेकिन कद काठी से साफ मालूम पड़ता है कि वह वही था। फिर उसके मोबाईल की लोकेशन भी कत्ल के वक्त उसी इलाके में पाई गयी है, लेकिन उसके साथ और कोई नहीं था, अधिकारी की मोबाईल लोकेशन भी हर वक्त साकेत की ही रही थी।”

“रिकॉर्डिंग में उसे साफ साफ ये कहते सुना था कि मनसुख और कौशल्या का कत्ल वह और दीक्षित भी कर सकते थे। इसलिए कातिल भी उन दोनों ने ही होना था, बस हैरानी की बात ये है कि दीक्षित वहां अकेला पहुंचा था। उससे भी बड़ा सवाल ये है कि दो आम लोगों का कत्ल क्यों कर दिया? उनका पूरे मामले से क्या लेना देना था?”

“कुछ ना कुछ लेना देना तो जरूर था मैडम, क्योंकि दीक्षित कई बार वहां देखा जा चुका है, वह भी कई महीने पहले, जिसके बारे में मेरा अंदाजा है कि डॉक्टर के कत्ल के बाद की ही बात रही होगी। और उससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि घटनास्थल की जांच करने पहुंची पुलिस को उनके घर से दो आधार और वोटर कार्ड मिले हैं, जो कि विश्वजीत और बबिता बरनवाल के हैं।”

“व्हॉट?”

“लेकिन वह कहीं गिरे नहीं पड़े थे, बल्कि आलमारी में सहेजकर रखे हुए थे। और सबसे खास बात ये कि उन दोनों आईडीज पर लगी फोटो मनसुख और कौशल्या की है।”

“मतलब?”

“विश्वजीत के नाम वाली आईडी पर मनसुख की तस्वीर और बबिता बरनवाल की आईडी पर कौशल्या की फोटो लगी हुई है।”

“ये क्या मुसीबत है, तुमने सही से पहचानता तो था न?”

“जी मैडम।”

“कोई लिंक नहीं खोज पाये चारों के बीच?”

“नहीं, उस मामले में हमने कविता कुमावत से भी बात की थी जो कहती है कि उसने कभी मनसुख या कौशल्या का नाम तक नहीं सुना। वसंतकुंज थाने का वह स्टॉफ जो डॉक्टर के कत्ल की इंवेस्टिगेशन कर रहा था, उन लोगों ने भी यही बताया है कि जांच के दौरान वह दोनों नाम कभी सामने नहीं आये थे।”

“तो फिर उनके कत्ल की जरूरत क्यों आन पड़ी, वह भी इतने आनन फानन में?”

“क्या पता मैडम, वैसे दो सिपाहियों को लगाया है इस काम पर, देखते हैं कोई जानकारी हासिल होती है या नहीं।”

“और कविता की मूवमेंट चेक की?”

“उसपर काम चल रहा है मैडम।”

“लल्लन का क्या करें?”

“छतरपुर थाने को सौंप देते हैं, उन्हें बहुत खुशी होगी सालों पुरानी हत्या की वारदात सुलझाकर।”

“हमारे मतलब का तो कुछ नहीं ही होगा उसके पास, है न?”

“नहीं, साफ जाहिर हो रहा है कि उसने एहसान का बदला चुकाने के लिए कविता के कत्ल की कोशिश की जिसमें नाकाम हो गया।”

“और उसके बाद इतनी परफेक्ट कहानी सुनाई कि वंश वाली रिकॉर्डिंग सामने नहीं आ गयी होती तो उसके कहे को सच मानकर आजाद कर दिया होता हमने।”

“कहानी तो वाकई परफेक्ट थी मैडम, जिसमें उसने कोई जुर्म कबूल किया भी तो यूं किया कि हम चाहते भी तो उसपर केस नहीं बना सकते थे। मगर अब बनकर रहेगा क्योंकि हम जानते हैं कि उस मोटर वर्कशॉप के ऑनर बिलाल खान का कत्ल उसी ने किया था, जिसका मालिक आज खुद बना बैठा है।”

“ठीक है फिर छतरपुर पुलिस के हवाले करो उसे, यहां रोककर रखने से कुछ हासिल नहीं होगा।”

“एक बात और पता लगी है मैडम।”

“क्या?”

“फॉरेंसिक वालों की एक्सपर्ट राय है कि कत्ल साईलेंसर लगी पिस्टल से किया गया था।”

“और मनसुख-कौशल्या के कत्ल के बारे में?”

“मनसुख का गला रेता गया था, जबकि कौशल्या के दिल में छुरा घोंपकर वहीं छोड़ दिया गया।”

“और कुछ हाथ नहीं लगा?”

“लगा, जिसका कोई रोल केस में नहीं दिखाई दे रहा अभी।”

“क्या?”

“सात आठ महीने पहले रातों रात अमीर बन गये थे दोनों।”

“कैसे?”

“पता नहीं, लेकिन पड़ोसियों का कहना है कि उससे पहले इतने फटेहाल थे कि किराये के एक कमरे में गुजारा करते थे। जबकि आठ महीने पहले वह पूरा मकान खरीद लिया जिसमें रहा करते थे। नई गाड़ी भी खरीद ली, लिविंग स्टैंडर्ड भी ऊंचा उठ गया।”

“यानि अचानक कहीं से पैसा हाथ लगा था?”

“दिख तो यही रहा है मैडम, बाकी सोर्स की जानकारी निकालने में जुटा हुआ हूं, देखें क्या पता लगता है।”

“शुरू से ही इस मामले से ब्लैकमेलिंग की बू आती रही है चौहान, तो क्या डॉक्टर को ब्लैकमेल करने वालों में वह दोनों मां बेटे भी शामिल थे? या फिर सारा कुचक्र ही उन्हीं का रचा हुआ था।”

“पहले ये तो पता लग जाये मैडम कि डॉक्टर बरनवाल ने ऐसा क्या कर दिया था जो पूरी दुनिया उसे निचोड़ने में लगी हुई थी? हां इस बात में कोई शक नहीं कि पैसा उसके पास बहुत था।”

“कोई लिंक खोजो चौहान, क्योंकि जहां पैसे का रोल दिखता है वहां ब्लैकमेलिंग की गुंजाईश अक्सर बन ही जाती है।”

“एक जानकारी और हासिल हुई है।”

“वो क्या?”

“साकेत वाला घर जहां से अधिकारी और दीक्षित की लाश बरामद हुई थी, करीब छह साल पहले किसी ऋषिकेश के नाम से नब्बे लाख में खरीदा गया था। जिसके एक साल बाद ही उसकी मौत हो गयी थी। उसके बाद से ही वहां अधिकारी और दीक्षित का आना जाना लगा रहता था। बल्कि उनके अलावा कोई आता जाता ही नहीं था। ये भी पता लगा है कि रिषीकेश परिवार में और कोई नहीं था।”

“वह छह साल पहले का मामला है चौहान तो चाहे मरने से पहले ऋषिकेश अपना घर हमारे ऑफिसर्स को दान कर गया हो, या उन दोनों ने उसपर जबरन कब्जा जमा लिया हो, डॉक्टर के कत्ल से उसका कोई लेना देना नहीं हो सकता। फिर अधिकारी और दीक्षित जिंदा होते तो कोई बात भी थी, जो कि अब वे लोग नहीं हैं। इसलिए उस फ्रंट पर कोई इंवेस्टिगेशन करने की जरूरत नहीं है।”

“जरूरत है मैडम, क्योंकि घर खरीदने से पंद्रह दिन पहले उसके एकाउंट में ऐन उतनी ही रकम किसी दूसरे एकाउंट से ट्रांसफर की गयी थी, और धमाकेदार खबर ये है कि वह दूसरा एकाउंट डॉक्टर बरनवाल का था।”

सुनकर गरिमा एकदम से हक्की बक्की रह गयी।

“जबकि अभी तक दोनों के बीच दूर दूर तक कोई लिंक नहीं दिखाई दे रहा हमें।”

“दिखेगा भी नहीं, क्योंकि बात अब कुछ कुछ मेरे पल्ले पड़ने लगी है।”

“क्या मैडम?”

“बेमानी खरीद था वह मकान, पैसे डॉक्टर ने किसी रिषीकेश को दिये, जबकि असल में वह अधिकारी और दीक्षित को दिये गये थे, यही वजह है कि मकान के ऑनर की बजाये वह दोनों उसपर कब्जा जमाये बैठे थे। बल्कि प्रापर्टी बाद में किसी और के नाम से भी ट्रांसफर कराई गयी हो सकती। और उस तरह के कोई कागजात, जैसे कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी, अधिकारी और दीक्षित के घर में ही कहीं रखे होंगे, जो यकीनन उन दोनों के नाम होंगे।”

“ऐसा कैसे हो सकता है मैडम?”

“मतलब?”

“डॉक्टर का कत्ल साल भर पहले हुआ था, जबकि वह प्रापर्टी छह साल पहली खरीदी गयी थी।”

“हद है यार, भूलने की बीमारी लगती जा रही है। एनी वे तुम पता तो करो, फिर कुछ न कुछ सामने आकर रहेगा, क्योंकि डॉक्टर का नब्बे लाख रूपये किसी को ट्रांसफर करना मामूली घटना नहीं है।”

“ठीक है।”

“और कविता की कल रात की मूवमेंट ट्रेस करने पर भी जोर लगाओ। मनसुख और कौशल्या का बैंक एकाउंट टटोलकर देखो, पैसा अगर जेनुइन रास्ते से आया होगा तो आगे और कुछ करने की जरूरत ही नहीं रह जायेगी। नहीं आया होगा तो उनके पहचानवालों को पकड़ो, इंटेरोगेट करो, कुछ तो मालूम पड़कर रहेगा।”

“मैं समझ गया मैडम।”

“केस पेचीदा है इस बात में कोई दो राय नहीं है, लेकिन जितना पेचीदा दिखाई दे रहा है, उतनी ही आसानी से हल भी हो जायेगा, बस जरूरत है सही रास्ता मिलने की।”

“हम विश्वजीत को इंटेरोगेट नहीं करेंगे?”

“करेंगे क्यों नहीं? मैं उसे फोन कर चुकी हूं, तीन बजे पहुंच जायेगा। लेकिन उसके साथ कोई सख्ती नहीं करनी है। करेंगे तो लेने के देने पड़ जायेंगे क्योंकि मीडिया की पूरी पूरी हमदर्दी हासिल है उसे, फिर अभी तक हमारे पास उसके खिलाफ कुछ है भी तो नहीं।”

“कविता की कॉल डिटेल्स निकलवाऊं?”

“निकलवा लो, और उसकी लोकेशन ट्रेस ना हो तो मोबाईल की लोकेशन भी निकलवा लेना। कुछ न कुछ तो सामने आकर रहेगा। फिर क्या पता उसी से आगे बढ़ने का कोई रास्ता दिखाई दे जाये।”

“डॉक्टर के दोस्तों से पूछताछ भी पेंडिंग है।”

“विश्वजीत से सवाल जवाब कर चुकने के बाद पहला काम हम वही करेंगे।”

“ठीक है।” कहकर वह कमरे से बाहर निकल गया।

भीष्म साहनी पचास के पेटे में पहुंचता, मामूली शक्लो सूरत वाला हेल्दी शख्स निकला। जिसकी बीवी उम्र में उससे आधी ना भी रही हो तो तीस से ज्यादा की तो हरगिज भी नहीं हो सकती थी, ऊपर से खूबसूरती ऐसी कि बयान करने के लिए शब्द कम पड़ जायें।

मतलब लंगूर के हाथ हूर लग गयी थी।

अच्छी बात ये रही कि साहनी ने उससे मिलने में कोई हुज्जत नहीं की। फोन पर गार्ड से ये सुनकर कि भारत न्यूज से कोई वंश साहब उससे मिलने आये थे, साहनी ने एक नौकर को भेजकर उसे अपने पास ड्राईंगरूम में बुलवा लिया, जहां उस घड़ी अपनी वाईफ के साथ बैठा वह चाय पी रहा था।

“हैलो सर, हैलो मैम।”

“हैलो वंश, प्लीज बैठो।”

“थैंक यू।”

“चाय लोगे, तकल्लुफ दिखाने की जरूरत नहीं है।”

“फिर तो मंगा ही लीजिए।”

सुनकर उसकी बीवी शैली साहनी ने किसी सुहानी को आवाज लगाकर मेहमान के लिए चाय लाने को कह दिया। जो कि मिनट भर से भी कम समय में सर्व कर दी गयी।

“अब बताओ - भीष्म साहनी बोला - क्या चाहते हो?”

“डॉक्टर बरनवाल से बहुत अच्छे लाल्लुकात थे आपके सर, इसलिए उसी सिलसिले में दो चार सवाल करने हाजिर हो गया। खबर तो लग ही गयी होगी कि अदालत ने केस को री इंवेस्टिगेट करने के आदेश दिये हैं।”

“पुलिस को - वह थोड़ा हंसकर बोला - ना कि मीडिया को।”

“बेशक पुलिस को ही दिया है सर, लेकिन हमारा काम भी तो उनके साथ साथ ही आगे बढ़ता, वे लोग कर रहे होते हैं, हम दिखा रहे होते हैं। बीच में दो चार कदम आगे पीछे भी हो जाते हैं, जबकि कोशिश हमेशा आगे बने रहने की होती है।”

“तुम तो हमेशा दस कदम आगे दिखते हो पुलिस से।”

“थैंक्स फॉर कांप्लीमेंट सर, मगर सच यही है कि मीडिया चाहकर भी पुलिस से आगे नहीं निकल सकती, क्योंकि वह उनका काम है, उसी के लिए ट्रेंड किये गये होते हैं। देश भर में आये दिन अपराधी पकड़े जाते हैं, अपने किये की सजा पाते हैं, तो वह कारनामा पुलिस का ही होता है ना कि मीडिया का।”

“डॉक्टर के साथ साल भर पहले जो कुछ भी घटित हुआ, या उसके बाद इंवेस्टिगेशन कर रहे पुलिसवालों ने जो कुछ उसके बेटे और बीवी के साथ किया, उसे देखते हुए तो मैं यही कहूंगा कि पुलिस निकम्मी हो गयी है, रिश्वत के आगे उन्हें कुछ सूझता ही नहीं है।”

“जबकि मुझे लगता है - शैली साहनी बोली - तुम दोनों ही बेवजह की बातें कर रहे हो, ऐसी बातें जिनसे तुम्हारा कोई लेना देना नहीं है। सिस्टम को सुधारने की कोई मुहिम शुरू करने का इरादा भी नहीं रखते होगे, फिर खामख्वाह के तर्क वितर्क किसलिए? टू द प्वाइंट बात क्यों नहीं कर लेते वंश?”

“याद दिलाने के लिए थैंक यू मैडम - कहकर उसने भीष्म की तरफ देखा - क्या आपको याद है कि आपने आखिरी बार डॉक्टर बरनवाल को जिंदा कब देखा था?”

“बिल्कुल याद है, पिछले साल की छब्बीस जनवरी को। डॉक्टर का क्लिनिक उस रोज बंद था, मगर शैली की तबियत खराब होती दिखाई दी, तो मैंने उसे फोन कर के बुला लिया था। उस रोज डॉक्टर ने किसी रेकी हीलिंग टेक्निक से इसका इलाज किया था, जो कि पूरा घंटा भर चला। और उसके बाद ये यूं भली चंगी हो गयी कि दोबारा डॉक्टर बुलाने की जरूरत नहीं पड़ी कभी। शैली तो ये भी कहती है कि डॉक्टर चाहता तो पहले ही इसे ठीक कर सकता था, मगर रेग्युलर फीस के चक्कर में जानबूझकर इलाज लंबा खींचता चला गया था।”

“क्यों न कहूं, आखिर उस दिन के बाद मुझे कभी दवाईयों की भी जरूरत नहीं पड़ी। मतलब डॉक्टर चाहता तो वही काम पहले भी कर सकता था।”

“रेकी हीलिंग, ये कैसे की जाती है?” वंश ने पूछा।

“पता नहीं, क्योंकि उसका इस्तेमाल डॉक्टर ने कमरे के भीतर किया था, मैं तो यहीं ड्राईंगरूम में बैठकर उसका इंतजार करता रहा था। लेकिन इसे जरूर पता होगा।” उसने शैली की तरफ इशारा कर के कहा।

“क्या खाक पता है, मालूम नहीं डॉक्टर ने कोई जादू किया था या उसके स्पर्श में ही कोई खास बात थी, इधर उसने मेरे माथे पर अपना हाथ रखा उधर मैं एकदम शांत होती चली गयी, फिर वह सवाल जवाब करता रहा, जाने क्या क्या पूछता रहा, मैं जवाब देती रही, मगर बाद में याद तो कुछ भी नहीं रह गया।”

“सिवाये इसके कि डॉक्टर ने आपके माथे पर हाथ रखा उसके बाद आप हिप्नोटाईज वाली स्थिति में पहुंच गयीं।”

“सही कहा वह एक प्रकार का हिप्नोटिजम ही था।”

“उस रोज डॉक्टर कुछ परेशान दिखे हों, या आप दोनों से कोई खास बात कही हो?”

“अपने पेशे से रिलेटेड बहुत बातें की थीं - भीष्म साहनी ने बताया - जैसे उसने ये कहा था कि ‘पटना से दिल्ली का सफर आसान नहीं था, उसे जाने कितने पापड़ बेलने पड़े थे मौजूदा मुकाम हासिल करने के लिए, बल्कि उसे सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात पर आ रहा था कि एमबीबीएस के बाद काफी सारा वक्त सरकारी अस्पताल में बर्बाद करना पड़ा था।”

“मतलब यहां क्लिनिक खोलने से पहले उसने गर्वनमेंट अस्पताल में काम किया था?”

“उसी मैडिकल कॉलेज में किया था जहां से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की थी। उसके बाद पटना में अपना क्लिनिक भी खोला था, जो ढंग से चला नहीं, इसलिए दिल्ली शिफ्ट कर गया।”

“नहीं पसंद था सरकारी अस्पताल में काम करना तो छोड़ देते, इसमें शिकायत वाली क्या बात थी?”

“नहीं छोड़ सकता था, सुना है गर्वनमेंट कॉलेज में एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई करने की कोई शर्त होती है, जिसके अनुसार डिग्री हासिल करने के बाद एक निश्चित अवधि तक वहीं काम करना पड़ता है। उसके लिए पहले ही कोई बांड वगैरह भरवा लिया जाता है।”

“ओह तो डॉक्टर साहब की असल समस्या ये थी।”

“बिल्कुल।”

“आदमी कैसे थे?”

“बढ़िया था, लेकिन डॉक्टर ज्यादा बढ़िया था। शायद ही कभी किसी पेशेंट को उससे शिकायत हुई हो। तभी तो धंधा फुल स्विंग में था, जिसके बारे में मेरा अंदाजा है कि महीने के बीस तीस लाख तो बना ही लेता होगा।”

“हैरानी है ऐसे आदमी के बैंक एकाउंट में महज साढ़े तीन लाख रूपये जमा पाये गये थे।”

“मुझे उसकी कोई खबर नहीं है, लेकिन ऐसा रहा नहीं हो सकता। पांच हजार कंसल्टेंसी फीस थी उसकी, और पेशेंट की भीड़ लगी रहती थी। एक दिन में बीस मरीज भी देख लेता हो तो मतलब बनता है एक लाख रोज कमा लेता था, यानि महीने के तीस लाख, जिसमें से पांच लाख खर्च भी हो जाते हों तो पच्चीस लाख की तो सीधी बचत थी।”

“ऐसा आदमी हौजखास में किराये पर क्यों रह रहा था?”

“कौन कहता है?”

“उसका बेटा, और बेटे को पुलिस ने बताई थी वो बात।”

“गलत बताई थी, हौजखास वाला मकान डॉक्टर का अपना था, जिसे उसने सात करोड़ में खरीदा था। हां ये रहा हो सकता था कि उस मकान को खरीदने में उसकी जमा पूंजी चुक गयी, लोन भी उठा लिया हो, जिसकी वजह से कमाई बैंक में टिक नहीं पाती होगी।”

“अगर मकान उसका होता सर तो क्या उसकी मौत के बाद बबिता बरनवाल का अधिकार नहीं कायम हो गया होता?”

“तुम्हें क्या पता कि नहीं हुआ था?”

“विश्वजीत तो यही कहता है।”

“कमाल है।”

“फिर दोनों मां बेटों को तो दिल्ली पहुंचने के बाद उल्टे पांव वापिस पटना भगा दिया गया था, ऐसे में उस घर पर कब्जा क्योंकर कायम कर पाते वे लोग?”

“मैं नहीं जानता कि असल में क्या हुआ था, लेकिन इस बात की गारंटी कर सकता हूं कि हौजखास वाला मकान उसका अपना था।”

“चलिए आप कहते हैं तो मान लेता हूं, अब जरा डॉक्टर की हत्या पर आईये। आपको क्या लगता है, क्यों किसी ने उसकी जान ले ली थी?”

“नहीं जानता।”

“कोई अंदाजा?”

“वह भी नहीं है भई, क्योंकि दुश्मनी जैसी कोई बात तो उसके जीवन में थी ही नहीं, और धंधा मजे में चल रहा था।”

“कभी किसी पेशेंट के साथ बड़ा झगड़ा हो गया हो?”

“अगर हुआ था तो समझ लो मुझे उस बात की कोई खबर नहीं है।”

“कहीं आयशा ने तो खत्म नहीं कर दिया उसे?” शैली बोली।

“आपका मतलब है आयशा बागची?”

“हां मिल चुके हो?”

“अभी नहीं, लेकिन यहां से निकलकर वहीं जाने वाला हूं। मगर वह भला डॉक्टर बरनवाल का कत्ल क्यों करने लगी?”

“आयशा चालीस साल की कुंवारी लड़की है वंश, मेरा मतलब है शादी नहीं की इसलिए कुंवारी है, वरना तो घाट घाट का पानी पीने वालों में से है।”

“शैली!” भीष्म ने उसे कस के घूरा।

“तुम क्यों फिक्र करते हो, या दिल आ गया है उसपर?”

“क्या अनाप शनाप बोलती रहती हो?”

“नहीं अनाप शनाप नहीं बोल रही, फिर ये भी तो सोचो कि वंश को डॉक्टर के हत्यारे की तलाश है, ऐसे में इसे हर बात की जानकारी होनी जरूरी है, तभी तो अगली बार पर्दाफाश में हमें कुछ ज्यादा मजेदार देखने को मिलेगा - कहकर उसने वंश की तरफ देखा - डॉक्टर पर तो वह यूं निगाहें गड़ाये हुए थी कि क्या कोई बिल्ली मलाई से भरे टोकरे को देखती होगी। दिन में दो बार उसके क्लिनिक के फेरे लगाया करती थी। उसे अपने घर पर भी गाहे बगाहे आमंत्रित करती रहती थी। ऐसे में दोनों के बीच कोई खास रिश्ता बन गया हो तो क्या कोई बड़ी है?”

“नहीं कोई बड़ी बात नहीं है मैडम, लेकिन सवाल ये है कि अगर उनके बीच अफेयर चल भी निकला था, तो बीच में डॉक्टर की हत्या कहां से आ घुसी?”

“क्या पता आधा अधूरा डॉक्टर उसे कबूल न हुआ हो, वह उसे पूरा का पूरा हजम कर जाना चाहती हो, जिसके लिए वह तैयार नहीं हुआ, तब आयशा को गुस्सा आ गया और उसने अपने संभावित हमसफर को हमेशा के लिए गुड बाय बोल दिया, क्योंकि गुस्सैल प्रवृत्ति की तो वह बराबर है, बात बात पर भड़क उठती है, भड़ककर लोगों को पीट भी देती है।”

“गुड बाय, मतलब डॉक्टर की जान ले ली?”

“और नहीं तो क्या।”

“और पूरा हजम करने से आपका अभिप्राय ये है कि वह डॉक्टर के साथ शादी करना चाहती थी?”

“ठीक समझे।”

“माफी के साथ पूछता हूं मैडम कि क्या कुंवारे लड़कों का अकाल पड़ गया था?”

“अरे उम्र भी तो देखो उसकी, चालीस साल की लड़की को चालीस साल का कुंवारा लड़का कहां से मिलता? कोई मिल भी जाता तो जरूरी थोड़े ही था कि उसकी हैसियत आयशा की हैसियत से मैच कर जाती। जबकि डॉक्टर उसके मुकाबले ज्यादा अच्छी पोजिशन पर था।”

“मतलब फाईनेंशियली बहुत स्ट्रांग है आयशा बागची?”

“हां वह तो है, जबकि करती कुछ नहीं है, मेरा मतलब है ‘तितली बनी उड़ती फिरूं मस्त गगन में’ के अलावा दूसरा कोई काम धंधा नहीं है उसके पास।”

“फिर पैसा कहां से आता है?”

“सोचने वाली बात है।”

“खानदानी रईस है - भीष्म बोला - इसलिए तुम शैली की बातों पर ध्यान मत दो।”

“हां मत ही दो वरना मेरे प्राण नाथ का कलेजा चाक हो जायेगा।”

“शैली!” उसने एक बार फिर चेतावनी दी।

“उसे देखते ही इनके मन में लड्डू जो फूटने लगते हैं।”

“अब बस भी करो यार।”

“ओके कर दिया।”

“इसकी बातों को दिमाग में मत रखना वंश, जो मन आया बोल देती है। फिर मैं नहीं समझता कि आयशा के पास डॉक्टर के कत्ल की दूर दूर तक कोई वजह रही हो सकती है।”

“और किसने किया हो सकता है?” उसने जानबूझकर वह सवाल शैली की तरफ देखकर किया, क्योंकि कुछ मिनटों में ही ये बात साबित हो गयी थी कि उसका अपनी जुबान पर कंट्रोल नहीं था।

“अमरजीत के नाम से तो वाकिफ होगे ही?”

“जी हां, आखिरी सारा फसाद उसके कत्ल के बाद ही तो शुरू हुआ है।”

“फिर तो ये भी जानते होगे कि डॉक्टर की उसके साथ दोस्ती थी?”

“जी हां मालूम है।”

“आगे तुम बताओ प्राणनाथ - उसने अपने पति की तरफ देखा - आखिर मुझे भी तो तुमने ही बताया था।”

“महज अपना शक बयान किया था।”

“जो कि सच भी हो सकता है।”

“खामख्वाह?”

“अरे बताने में क्या हर्ज है?”

सुनकर उसने गहरी सांस ली फिर बोला, “डॉक्टर अमरजीत के घर बहुत जाया करता था, उसको ध्यान में रखते हुए एक रोज मैंने इससे कह दिया कि कहीं अमरजीत की बीवी के साथ कोई चक्कर तो नहीं चला रखा था बालकृष्ण ने। जबकि वैसा सोचने की कोई वजह नहीं थी। ना ही मैंने सोच समझकर वह बात कही थी, मगर इसका क्या - उसने शैली की तरफ देखा - मुंह से निकले हर लफ्ज को पकड़कर बैठ जाती है।”

“चक्कर रहा भी तो हो सकता है, आखिर खूबसूरत है वह औरत, और डॉक्टर तनहा था।”

“आप मिल चुकी हैं मुक्ता से?” वंश ने पूछा।

“नहीं टीवी पर उसकी शक्ल देखी थी।”

“ओह।”

“नहीं मुक्ता कातिल नहीं हो सकती, मेरा मतलब है डॉक्टर के साथ अगर उसका अफेयर था भी तो कातिल वह नहीं हो सकती।”

“वजह।”

“अभी अभी मुझे एक ऐसी बात याद आ गयी है, जिससे लगता है कि डॉक्टर का कत्ल आयशा बागची ने ही किया था, और वही वह लड़की थी जिसने इंवेस्टीगेशन ऑफिसर के मुंह में इतने नोट ठूंस दिये कि आवाज निकलनी बंद हो गयी। मुक्ता के पास भला उतने पैसे कहां से आ सकते थे।”

“नहीं आ सकते थे, लेकिन नया क्या क्या याद आ गया आपको?”

“नया नहीं, पुरानी बात है। साल भर पहले की बात।”

“वही सही।”

“हुआ ये कि डॉक्टर की हत्या के दूसरे या तीसरे दिन उसकी पहचान के लोगों को थाने बुलाया गया था, मैंने और भीष्म ने भी हाजिरी भरी थी। आयशा बागची भी आई थी।”

“और भी कोई आया था?”

“हां उन्मेद कनौजिया और अभिनव गोयल आये थे।”

“फिर क्या हुआ?”

“इंस्पेक्टर सुशांत अधिकारी हम सबको एक ही जगह पर बैठाकर सवाल जवाब कर रहा था। वह कोई आरोप नहीं लगा रहा था, बस ये जानना चाहता था कि हममें से कोई उस मामले में कुछ जानता था या नहीं जानता था। जाहिर है सब इंकार ही कर रहे थे। तभी सब इंस्पेक्टर दयानंद दीक्षित वहां पहुंचा, उसने अधिकारी के कान में जाने कौन सा मंत्र फूंका कि उसने आयशा को छोड़कर सबको वहां से जाने के लिए कह दिया। तब वह लड़की कितनी बुरी तरह तड़पी थी, उसे बयान नहीं कर सकती मैं।”

“तड़पी नहीं थी - भीष्म बोला - बस ये कहकर विरोध जताया था कि जब सबको जाने दिया जा रहा था तो उसे वहां रोकने का क्या मतलब बनता था।”

“चलो वही सही - शैली बोली - आगे हुआ ये कि सब लोग वहां से निकलकर अपनी अपनी राह हो लिए, मैं और भीष्म भी करीब करीब बाहर पहुंच ही गये थे कि तभी मुझे याद आया कि अपना मोबाईल मैं इंस्पेक्टर की मेज पर रखा छोड़ आई थी। तब इसे वहीं रुकने को कहकर मैं वापिस अधिकारी के कमरे में पहुंची, जो मुझे देखते ही चुप हो गया, मगर उससे पहले जो इकलौती लाईन मेरे कानों में पड़ी थी वह मुझे आज भी ज्यों की त्यों याद है।”

“क्या कहा था?” वंश ने बड़े ही उत्सुक भाव से पूछा।

“ये कि ‘अगर आपने कत्ल नहीं किया था मैडम तो उतनी रात को उस इलाके में क्या कर रही थीं’ आगे मैंने अपना मोबाईल उठाया और वहां से निकल गयी। उस रोज मैंने भीष्म से कहा भी था कि डॉक्टर की कातिल आयशा बागची ही थी, मगर इसे यकीन नहीं आया।”

“जो कि वह नहीं ही थी, पुलिस जरूर किसी गलतफहमी का शिकार हो रही थी, जिसे उसने दूर कर दिया और उनके चंगुल से आजाद हो गयी।”

“तब मुझे तुम्हारी बात कबूल हो गयी थी प्राणनाथ, लेकिन अभी के हालात में लगता है कि उसने गलतफहमी दूर नहीं की थी, बल्कि दोनों ऑफिसर्स को खरीद लिया था। इसलिए उनके चंगुल से आजाद हो गयी, ना कि इसलिए कि वह बेगुनाह थी।”

“बकवास।”

“तुम्हें उसकी इतनी फिक्र क्यों है?”

“अरे मैं क्यों करूंगा उसकी फिक्र, लेकिन तुम्हारी तरह बिना जाने समझे किसी पर आरोप लगाना मुझे नहीं आता।”

“जैसे मेरे कह देने से तुम्हारी आयशा फांसी पर चढ़ जायेगी।”

“वह मेरी आयशा नहीं है, मेरा उसके साथ कोई लेना देना नहीं है।”

“तो फिर नाराज क्यों हो रहे हो, गुस्सा क्यों आ रहा है तुम्हें?”

“तुमसे तो बात करना ही बेकार है - कहकर उसने वंश की तरफ देखा - इसकी बातों कान मत धरना, क्योंकि सच यही है कि हमारे पास ऐसी कोई जानकारी नहीं, जो तुम्हारे काम आ सके।”

“कोई बात नहीं सर, मैं समझ गया - कहकर उसने कप से चाय की आखिरी चुस्की ली और उठ खड़ा हुआ - वक्त देने के लिए आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया, साथ में चाय के लिए भी, अब इजाजत चाहूंगा।”

“हम उम्मीद करें कि पर्दाफाश के अगले शो में डॉक्टर के कत्ल का खुलासा करते दिखाई दोगे तुम?”

“जी कोशिश तो यही है।” कहकर वह बाहर की तरफ बढ़ गया।

“क्या जरूरत थी?” भीष्म साहनी भुनभुनाता हुआ शैली से बोला।

“जरूरत थी यार, एलएलबी के बाद मैंने वकालत करने की जगह तुम्हारी बीवी बनना कबूल कर लिया तो उसका मतलब ये नहीं हो जाता कि मुझे ऐसी बातों की कोई समझ ही नहीं है। बल्कि दूसरे वकीलों से कहीं ज्यादा है चाहे तुम मानों या न मानों, इसलिए मैं ये भी जानती हूं कि इंवेस्टिगेशन में छोटी छोटी बातें भी कभी कभार बहुत महत्वपूर्ण साबित हो जाती हैं। तभी उसे आयशा के बारे में बताना जरूरी था, फिर मैं ना भी बताती तो कोई और बता देता।”

“ठीक है, लेकिन मुझे यूं प्रेजेंट क्यों किया जैसे आयशा के साथ मेरा कोई चक्कर चल रहा था?”

“चल भले ही नहीं रहा, लेकिन चलाने के लिए मरे बराबर जा रहे हो, वह तो आयशा ही तुम्हें घास नहीं डालती।”

“अब इतने भी फुंदने नहीं जड़े हैं उसमें, और वह क्या तुमसे ज्यादा खूबसूरत है?”

“नहीं ऐसा कैसे हो सकता है?”

“फिर शक क्यों कर रही हो?”

“मैं तो नहीं कर रही।”

“लेकिन वंश के मन में पक्का ऐसी कोई बात घुमड़ने लगी होगी।”

“अच्छा ही है न, इसी बहाने टीवी पर वह इतना तो जरूरत कह देगा कि पहले हमें भीष्म साहनी पर शक हुआ, मुझे लगा आयशा के साथ उसकी आशनाई चल रही थी, लेकिन वह बात गलत साबित हुई, क्योंकि इस बात में अब शक की कोई गुंजाईश नहीं है कि डॉक्टर बरनवाल का मर्डर आयशा बागची ने ही किया था।”

“लो तुमने तो उसे कातिल मान भी लिया।”

सुनकर शैली ठहाके लगाकर हंस पड़ी। भीष्म साहनी कुछ देर तक अपनी बीवी को गहरी निगाहों से देखता रहा, फिर उठकर स्टडी की तरफ बढ़ गया।

जब उसके मन में द्वंद चल रहा हो, कोई बात उलझाये दे रही हो, या किसी मुद्दे पर ध्यान से सोचना होता था तो वह हमेशा अपनी स्टडी का ही सहारा लिया करता था।

आज भी वही करने गया था।

वंश के मन में दो परस्पर विरोधी बातें घुमड़ रही थीं। पहली ये कि क्या दोनों मियां बीवी का बयान स्क्रिप्टेड था, मतलब जानबूझकर एक जना आयशा को निर्दोष बता रहा था और दूसरा उसे कसूरवार ठहराने के लिए दलीलें दिये जा रहा था। दूसरी बात ये कि अगर शैली का कहा सच था तो क्या कातिल आयशा बागची ही थी?

सोचते हुए उसने कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।

आयशा बागची का फ्लैट उसी इलाके के डी ब्लॉक में स्थित ‘स्टॉर हाईट्स’ नाम से जानी जाने वाली एक बहुमंजिला इमारत के तीसरे फ्लोर पर था, और वह जगह भीष्म साहनी के घर से बस एक किलोमीटर की दूरी पर थी।

वंश को सिक्योरिटी प्वाइंट पर रोक लिया गया, फिर एक गार्ड उसके करीब पहुंचा, “कहां जाना है सर?”

“तीन सौ एक, आयशा बागची।”

“वेट कीजिए।” कहकर वह केबिन से बाहर को निकलते काउंटर तक गया और वहां रखे लैंडलाईन फोन से आयशा के फ्लैट का नंबर डॉयल कर दिया। वहां हर फ्लैट का इंटरकॉम नंबर फ्लैट का नंबर ही था, इसलिए उसे किसी का नंबर रजिस्टर वगैरह में तलाशने की जरूरत नहीं पड़ती थी।

दूसरी तरफ लगातार घंटी बजती रही मगर किसी ने कॉल अटैंड नहीं किया। गार्ड ने फिर और फिर ट्राई किया मगर कोई रिस्पांस नहीं मिला, तब वह वंश के पास लौटा, “मैडम फोन नहीं उठा रहीं सर, आपके पास उनका नंबर हो तो कॉल कर के मेरी बात करा दीजिए।”

“मैं नहीं जानता था कि आयशा बागची से मिलना किसी मिनिस्टर से मिलने जितना मुश्किल काम है।”

“यहां के यही नियम हैं सर, बात हुए बिना मैं आपको एंट्री नहीं दे सकता, सॉरी।”

“मेरे पास उनका नंबर नहीं है, तुम दे दो।”

“मैं वह भी नहीं कर सकता सर।”

उसी वक्त एक पुलिस कार वहां आ खड़ी हुई।

वंश की निगाह भीतर गयी तो गरिमा देशपांडे की एक झलक उसे दिखाई दे गयी। तब उसने जल्दी से अपनी गाड़ी को साईड में लगाया और नीचे उतरकर उनकी कार के पास पहुंच गया।

“गुड ईवनिंग मैडम।”

“गुड ईवनिंग - वह विंडो ग्लास नीचे सरकाती हुई बोली - आप यहां क्या कर रहे हैं?”

“वही जो आप करने आई हैं।”

“आपको लगता है हमारी मंजिल एक ही है?”

“लगता नहीं है मैडम बल्कि गारंटी है, लेकिन आयशा कॉल नहीं उठा रही, और गार्ड उससे बात किये बिना मुझे अंदर नहीं जाने दे रहा।”

“अरे बताया नहीं कि आप कितने बड़े वाले पत्रकार हैं?”

“नहीं बताया, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि गार्ड पर उस बात का कोई रौब पड़ेगा।”

“अरे ट्राई तो करना चाहिए था।”

उसी वक्त गार्ड ड्राईविंग सीट पर बैठे सिपाही के पास पहुंचा, और उसे ये बताने में जुट गया कि आयशा मैडम कॉल का जवाब नहीं दे रहीं। और बात हुए बिना वह किसी को भी भीतर नहीं जाने दे सकता था।

सुनकर पिछली सीट पर गरिमा के साथ बैठा चौहान नीचे उतरा, “जवाब नहीं दे रही कोई बात नहीं, लेकिन अंदर तो हमें जाना ही है। तुम्हारा कोई इंचार्ज वगैरह हो तो बेशक उसे बुला लो।”

सुनकर उसने मोबाईल निकाला और किसी को कॉल करने के बाद जल्दी जल्दी बता दिया कि पुलिस क्या चाहती थी। उसके थोड़ी देर बाद अधेड़ावस्था को प्राप्त एक शख्स वहां आन खड़ा हुआ, “क्या बात है सर?”

“तुम कौन हो?”

“यहां का सिक्योरिटी सुपरवाईजर हूं सर।”

“बात ये है सुपरवाईजर साहब कि भीतर मेरी अफसर बैठी हैं जो आयशा बागची से मिलने आई हैं, और मिलकर ही जायेंगी, इसलिए चाहो तो किसी को उनके फ्लैट तक भेजकर मौखिक इजाजत हासिल कर लो, या फिर हमें जाने दो।”

“मैडम आपको जानती हैं सर?”

“नहीं, ये ऑफिशल इंक्वायरी है।”

सुपरवाईजर सोच में पड़ गया।

“असल में हमें शक है कि आयशा मैडम पर जानलेवा हमला हो सकता है, इसलिए जो करना है जल्दी करो, वरना लेने के देने पड़ जायेंगे।”

‘हमला’ सुनकर सुपरवाईजर एकदम से हड़बड़ा गया। फिर उसने गार्ड को बैरियर हटाने का इशारा किया ही था कि उसी वक्त वंश वशिष्ठ पैसेंजर डोर खोलकर ड्राईवर के बगल में जा बैठा।

“पुलिस के साथ जबरदस्ती कर रहे हैं वंश साहब?”

“अरे नहीं मैडम, मैं तो ये सोचकर बैठ गया कि आपको मुझे अपने साथ अंदर ले जाने में कोई हर्ज नहीं होगा, है तो बोल दीजिए मैं अभी नीचे उतर जाता हूं।”

“रहने दीजिए, क्योंकि आज मैं किसी की बेइज्जती करने के मूड में नहीं हूं।”

“थैंक यू।”

सिपाही ने गाड़ी आगे बढ़ाई और बिल्डिंग के करीब ले जाकर खड़ी कर दी। फिर तीनों नीचे उतरे और लिफ्ट में सवार होकर थर्ड फ्लोर पर पहुंचे।

तीन सौ एक का दरवाजा बंद था, लेकिन बाहर से ताला नहीं लगाया गया था, मतलब आयशा बागची उस वक्त भीतर मौजूद थी।

चौहान ने कॉलबेल बजाई। भीतर बजती घंटी की आवाज भी तुरंत उनके कानों तक पहुंचने लगी, मगर दरवाजा नहीं खुला। उसने फिर से ट्राई किया, साथ ही इस बार जोर जो दस्तक भी दे दी।

“कहीं चौहान साहब का कहा ही सच न निकल आये मैडम।”

“मतलब?”

“इन्होंने सिक्योरिटी सुपरवाईजर से कहा था कि इन्हें आयशा पर जानलेवा हमला होने का अंदेशा था।”

“सुना था मैंने, लेकिन खातिर जमा रखिये, चौहान की जुबान में वह ताकत तो नहीं है जो आपकी जुबान में है। इसलिए आयशा को कुछ नहीं हुआ होगा।”

“दरवाजा नहीं खुला तो क्या करेंगी?”

“तोड़ देंगे, क्योंकि मिले बिना तो मैं वापिस लौटने से रही।”

सुनकर चौहान ने एक बार फिर से दरवाजा भड़भड़ा दिया।

भीतर कांच की कोई चीज टूटने की आवाज गूंजी। चौहान और गरिमा की निगाहें मिलीं, फिर बेध्यानी में ही दोनों के हाथ होलस्टर पर कसकर रह गये।

तभी दरवाजे की तरफ बढ़ते कदमों की आवाज उन्हें सुनाई देने लगी।

दरवाजा खुला।

खोलने वाली एक लड़की थी, जो बनियान जैसा टॉप और जांघों को ढक पाने में नाकाम अंडर वियर से बस जरा ही बड़ा जींस पहने थी। उसके बाल बिखरे हुए थे, आंखें लाल थीं जो कि मुंदी जा रही थीं, और नाक के नीचे थोड़ी नमी मौजूद थी।

कुल मिलाकर कहें तो चुड़ैल लग रही थी, नशेड़ी दिखाई दे रही थी। कम से कम ऐसी लड़की तो हरगिज भी नहीं लग रही थी जिसपर भीष्म साहनी को डोरे डालना सूझ जाता, या डॉक्टर बरनवाल जिसपर फिदा हो जाता।

“क्या हो गया?” वह सप्रयास आंखें खोलती हुई बोली।

“आयशा बागची?” गरिमा ने पूछा।

“हां मैं ही हूं।”

“मैं इंस्पेक्टर गरिमा देशपांडे।”

“यानि वर्दी असली है?”

“जी हां।”

“क्या चाहती हैं?”

“आपका पांच मिनट का वक्त।”

“उतने में क्या होगा, दस ले लीजिए।”

“ठीक है दस ही सही।”

“ओके बताईये दस मिनट में आप मेरे साथ क्या करने वाली हैं?”

“सवाल जवाब।”

“किस बारे में?”

“डॉक्टर बरनवाल के बारे में।”

“मुझे नींद आ रही है।”

“आप चाहती हैं कि मैं आपको पुलिस हैडक्वार्टर ले चलूं - गरिमा सख्ती से बोली - और जो सवाल अभी यहां किये जा सकते हैं, वो वहां जाकर करूं?”

“जैसे तुम्हारे बाप का राज है।”

“आप नशे में हैं, बहुत ज्यादा नशे में हैं।”

“हुड़दंग तो नहीं मचा रही, किसी का सिर तो नहीं फोड़ दिया, ऊपर से अपने घर में हूं, फिर आपको क्या प्रॉब्लम है?”

“नशे में हैं इसलिए नहीं जानतीं कि क्या बोल रही हैं।”

“ठीक है अंदर आ जाओ।”

“थैंक यू।”

“सोफे पर बैठो जाकर, मैं अपनी हालत दुरूस्त कर के आती हूं।” कहकर वह बॉथरूम की तरफ बढ़ गयी।

वंश और गरिमा बैठ गये जबकि चौहान की निगाहें लगातार आयशा पर टिकी रही थीं। उसके देखते ही देखते वह बॉथरूम से मुंह हाथ धोकर निकली फिर किचन में जाकर फ्रीज से बोतल निकाल लिया, निकालकर दो तीन घूंट नीट पी गयी, उसके बाद बोतल को वापिस फ्रीज में रखा और जाकर गरिमा के सामने बैठती हुई बोली, “सॉरी, अब मैं ठीक हूं।”

“यानि नशा ज्यादा नहीं था?”

“था, लेकिन उससे ज्यादा असर इस बात का है कि बीती रात मैं एक मिनट को भी सोई नहीं थी।”

“वजह जान सकती हूं।”

“उन्मेद ने इतना उन्माद मचाया कि सोने की फुर्सत ही नहीं मिली - लड़की हंसी - वह ऐसा ही है, एकदम जानवरों जैसा सलूक करता है, जो मुझे बहुत पसंद है।”

गरिमा का मन वितृष्णा से भर उठा।

“खैर आप पूछिये जो पूछना चाहती हैं।”

“उन्मेद आपका दोस्त है?”

“हां।”

“कभी डॉक्टर बरनवाल का भी हुआ करता था।”

“अरे वैसा दोस्त नहीं है, डॉक्टर का बस दोस्त था, जबकि मेरा नया ब्वायफ्रैंड है, इतना नया कि दिल करता है उसे कवर चढ़ाकर रखूं, आखिर नई कार खरीदने पर भी तो लोग यही करते हैं।”

“आपने उसे खरीद लिया है?”

“है तो कुछ ऐसा ही।”

“सुना है वह शादीशुदा है।”

“तो मैं क्या करूं?”

“जबकि आप कुंवारी हैं।”

“अनमैरिड हूं।”

“और आपकी उम्र चालीस साल है।”

“उन्तालिस की हूं।”

“शादी ना करने की कोई वजह?”

“मुझे नफरत है।”

“शादी से?”

“नहीं।”

“मर्दों से तो हो नहीं सकती?”

“नहीं वह तो मेरी फर्स्ट चॉयस हैं। असल में नफरत मुझे बच्चे पैदा करने से है, जो शादी कर लो तो करना ही पड़ता है। साली बॉडी की वॉट लग जाती है, इसलिए मैं ऐसे ही खुश हूं।”

“बच्चा एडॉप्ट भी तो किया जा सकता है।”

“लो यहां अपने बच्चे के लिए ही मैं तैयार नहीं हूं और तुम दूसरे की बला अपने गले बांधने की बात कर रही हो, कमाल की औरत हो - कहकर उसने पूछा - शादी हो गयी है?”

“नहीं।”

“क्यों?”

“क्योंकि मेरी भी फितरत कुछ कुछ आप जैसी ही है।”

“यानि बच्चे पसंद नहीं हैं?”

“यही समझ लीजिए - कहकर उसने सवाल किया - ये बताईये कि डॉक्टर बरनवाल को कैसे जानती थीं आप?”

“फर्स्ट टाईम तो उसके क्लिनिक में ही मिली थी, फिर धीरे धीरे पहचान बढ़ती गयी, ऐसे जानती थी मैं बाल को।”

“बाल?”

“बालकृष्ण।”

“मर्ज क्या था आपको?”

“मर्ज! वो क्या होता है?”

“डिसीज, इलनेस, जिसके कारण आप डॉक्टर के दवाखाने गयी थीं?”

“एंजाईटी के सिम्पटम्स थे, मगर सिर्फ मेरी निगाहों में, डॉक्टर ने तो आधे घंटे की काउंसलिंग के बाद ये कहा था कि मैं भरपूर नींद नहीं लेती और रेग्युलर ड्रिंक करती हूं, उसी का साईड इफेक्ट था।”

“यानि कोई दवा नहीं दी?”

“दी थी, कहता था खुश रहने की दवा है। कोलोनाजैप कर के कुछ नाम था, याद नहीं आ रहा। उससे फायदा भी हुआ, मगर दो महीने बाद डॉक्टर ने दवा बंद करा दी। फिर बाद में उस तरह की कोई समस्या भी नहीं हुई, इसलिए मैंने कंटीन्यू नहीं किया, वरना डॉक्टर के मना करने से तो हरगिज भी नहीं मानने वाली थी।”

“आप डॉक्टर की सलाह मानकर दवा बंद करने की बजाये लेती रहतीं?” गरिमा ने हैरानी से पूछा।

“हां।”

“क्यों?”

“क्योंकि कोई मर्द मुझे हुक्म दे, एडवाईज करे, ये मुझे पसंद नहीं।”

“एंजाईटी में लोग बाग बहुत कुछ किया करते हैं, कोई बात बात पर गुस्सा होता है, कोई हर वक्त चिड़चिड़ाया सा रहने लगता है, कोई खुद को नुकसान पहुंचाने की भी कोई कोशिश करता दिख जाता है, आप क्या करती थीं?”

“छह महीने के अंतराल में दो लोगों को धुनकर रख दिया था।”

सुनकर तीनों हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगे।

“ज्यादा मत सोचिये, किसी अंजान शख्स को नहीं पीटा था।”

“फिर?”

“दोनों बार अपने सैक्स पार्टनर को पीटा था, जिनमें से एक जिगोलो था जबकि दूसरा मेरा तब का ब्वॉयफ्रैंड था, लेकिन आप मुझसे यहां मेरी पर्सनल लाईफ डिस्कस करने तो नहीं आई होंगी?”

“नहीं, इसलिए वापिस डॉक्टर पर लौटते हैं, उसका कत्ल किसने किया आयशा?”

“जैसे मुझे मालूम ही है।”

“काफी करीब बताई जाती हो उसके, तो कोई न कोई अंदाजा भी तो लगाया ही होगा।”

“हां वो तो लगाया था।”

“कुछ सूझा?”

“हां सूझा।”

“क्या?”

“यही कि डॉक्टर ने आत्महत्या कर ली थी।”

“जो कि पॉसिबल नहीं था, छुरा उसके दिल में भोंका गया था। आत्महत्या के केसेज में अमूमन ऐसा देखने को नहीं मिलता है।”

“जैसे लॉ में कोई गाईड लाईन मुकर्रर की गयी है आत्महत्या करने वालों के लिए। ये तो हद ही हो गयी, अरे उसका जैसे मन किया घोंप लिया छुरा, और मर गया तो मर गया, उसके लिए आप लोग मेरा दिमाग क्यों खा रहे हैं? यहां से दफा क्यों नहीं हो जाते?”

“अभी नहीं खा रहे - गरिमा सख्ती से बोली - जब खाना शुरू करेंगे मैडम तो आप पनाह मांग जायेंगी, इसलिए तहजीब के दायरे में रहकर बात कीजिए।”

“आपको पता है मैं कौन हूं?”

“हां आयशा बागची नाम है आपका, उम्र उन्तालीस साल है, डेली ड्रिंकर हैं, शायद ड्रग्स भी लेती हैं। दौलतमंद भी दिखाई दे रही हैं। इसके अलावा कुछ हो तो आप खुद बता दीजिए।”

“मेरे सोशल कनैक्शन बहुत ऊपर तक हैं।”

“कितने ऊपर तक?”

“बहुत ऊपर तक।”

“जरूर होंगे लेकिन हमें क्यों बता रही हैं?”

“अरे समझिये, आप चाहकर भी मुझे डॉक्टर का हत्यारा साबित नहीं कर सकतीं, कत्ल मैंने किया होता तो भी नहीं, जबकि मैं पहले भी बता चुकी हूं कि उसे मैंने नहीं मारा था।”

“ना तो हमने आप पर कत्ल का इल्जाम लगाया, और ना ही वैसा कुछ आपने कहा था, इसलिए खुद को थोड़ा कंट्रोल कर के हमारे सवालों संजीदा जवाब दीजिए। नहीं दे सकती, अभी प्रॉब्लम हो रही है तो हम बाद में आ जायेंगे, लेकिन जवाब मैं लेकर रहूंगी।”

“नहीं दो बार मेरा परेशान होने का कोई इरादा नहीं है, इसलिए इसे अभी खत्म करते हैं, बताईये क्या डिमांड है आपकी, आखिर दीक्षित की डिमांड भी तो पूरी की ही थी मैंने।”

सुनकर तीनों हकबका से गये।”

“सब इंस्पेक्टर दयानंद दीक्षित को?”

“हां उसी की बात कर रही हूं।”

“कितने दिये थे?”

“बीस लाख, नहीं शायद दो लाख दिये थे, या उससे थोड़ा कम।”

“कहीं दस का नोट ही तो नहीं थमा दिया था?”

“नो, दस रूपये से क्या होता है।”

“तो फिर ठीक से याद कर के क्यों नहीं बतातीं कि कितने दिये थे?”

“दो लाख, अब याद आ गया मुझे।”

“किसलिए दिये थे?”

“मैं चाहती थी पैसे लेकर वह यमुना में कूद जाये।”

“फिर पैसे उसके किस काम आते?”

“कौन से पैसे?”

“दो लाख रूपये जो आपने दीक्षित को दिये थे?”

“आपको कैसे पता?”

“मालूम है - गरिमा खुद को जबरन जब्त करती हुई बोली - पुलिस को जानकारियां रखनी पड़ती हैं, अब बताइये क्यों दिये थे उसे पैसे?”

“दीक्षित ने बताया?”

“किसी ने भी बाताया हो, अब उससे क्या फर्क पड़ता है?”

“सही कहा कुछ नहीं पड़ता - फिर थोड़ा ठहर कर बोली - साला घोंचू, अपने को बड़ा तीसमार खां समझता था, अब गया न दांत निपोरकर दुनिया से। इसीलिए किसी के साथ ज्यादती नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऊपरवाला सब देखता है।”

“उसने आपके साथ ज्यादती की थी?”

“धमकाकर, झूठे आरोप लगाकर किसी से पैसे ऐंठना ज्यादती ही होता है मैडम।”

“उसने आपको धमकाया था?”

“किसने?”

“दीक्षित ने।”

“आपको कैसे पता?”

“अभी अभी आप खुद कहकर हटी हैं।”

“नहीं वैसा कुछ नहीं था।”

गरिमा के मुंह से गहरी आह निकल गयी।

“आपने दो लाख की रिश्वत उसे क्यों दी थी मैडम?”

“इसलिए ताकि वह खामख्वाह मुझे परेशान करना बंद कर दे। जो कि करने की कोशिश वह बराबर कर रहा था। इसलिए कर रहा था क्योंकि जानता था मैं उसके आगे हड्डी फेंकना अफोर्ड कर सकती हूं, साला कुत्ता कहीं का।”

“मैडम सोच समझ कर शब्दों का इस्तेमाल कीजिए।”

“अच्छा! कुत्ते को कुत्ता कहना गलत होता है, तो क्या कुत्ता जी कहूं, ऐसा भला अपनी डॉगी को कौन कहता होगा?”

“मैडम अपनी ढोल में कोई पोल न हो तो रिश्वत क्यों देगा कोई?”

“अपनी शांति के लिए, सुकून के साथ जिंदगी जीने के लिए, जिसमें पुलिस की कोई जगह नहीं होती। कभी कभी इस बात के लिए भी पैसे खर्चने पड़ते हैं कि रात के दस बजे कोई साला दो कौड़ी का पुलिसवाला मेरे फ्लैट की घंटी नहीं बजा देगा, अब बोलिये आप लोग कितना चाहते हैं?”

“औकात कितने की है आपकी?”

“व्हॉट?”

“कुल मिलाकर कितनी औकात है तुम्हारी?”

“ये क्या बद्तमीजी है?”

“अच्छा! मैंने औकात पूछ ली तो बद्तमीजी हो गयी, और तुम जो खुल्लम खुल्ला रिश्वत ऑफर कर रही हो, गालियां बक रही हो, वह बद्तमीजी नहीं है?”

“ओह अब समझी।”

“क्या समझी?”

“यही कि तुम सबके सामने रकम का साईज नहीं बताना चाहती।”

गरिमा के मुंह से आह निकल गयी।

“आयशा जी - तब वंश पहली बार बोला - यहां आपके पैसों का तलबगार कोई नहीं है, आप बस मैडम के सवालों का ठीक ठीक जवाब दे दीजिए, फिर कोई आपको परेशान करने दोबारा नहीं आयेगा।”

“ये तो हद ही हो गयी यार, रिश्वत ऑफर करना बद्तमीजी होती है? पहली बार सुन रही हूं, क्योंकि वो तो हर पुलिसवाला लेने को तैयार रहता है।”

“ऐसा नहीं है, कानून का हर मुहाफिज अगर रिश्वतखोर होता तो रोज नये नये केस सॉल्व नहीं हो रहे होते, अपराधियों से जेल भरी नहीं दिखाई दे रही होती, इसलिए उस बारे में बात करना बंद कीजिए।”

“तुम मुझे समझदार आदमी लगते हो, जबकि पुलिसवाले हो।”

“नहीं, ये पुलिसवाला नहीं है।” इस बार गरिमा थोड़ा सख्त लहजे में बोली।

“अच्छा फिर कौन है?”

“पत्रकार है।”

“ओह! ओह, तभी आप इतनी नोबल बनकर दिखा रही हैं।”

“देखिये आयशा जी, इससे पहले कि मैं अपना धैर्य खो बैठूं, आपसे रिक्वेस्ट है कि सही ट्रेक पर आ जाईये, या फिर कह दीजिए कि अभी होश में नहीं हैं, तब हम चले जायेंगे और बाद में आपकी सहूलियत के मुताबिक बातचीत के लिए कोई दूसरा वक्त मुकर्रर कर लेंगे।”

“तुम इतनी जल्दी धैर्य खो बैठती हो?”

“नहीं, लेकिन दस मिनट में बराबर खो बैठती हूं, जिनमें से नौ खत्म हो चुके हैं।”

“यानि एक मिनट और बर्दाश्त कर सकती हो, है न?”

“हां।”

“पक्का?”

“पक्का।”

“वादे से मुकरोगी तो नहीं?”

“नहीं।”

“तो सुन बे दो टके की पुलिसवाली, तेरे जैसी जाने कितनी आईं और चली गयीं, मगर आयशा बागची का ना तो पहले कोई कुछ बिगाड़ पाया ना आगे बिगाड़ पायेगा।”

सुनकर उसका चेहरा लाल हो उठा। चौहान तेजी से आयशा की तरफ झपटा मगर गरिमा ने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया।

“अब कितना वक्त बचा है?” आयशा ने पूछा।

“पैंतीस सेकेंड।”

“उतनी देर में अगर तुम तीनों यहां से दफा नहीं हो गये तो पछताओगे इस बात पर कि किससे पंगा ले लिया, इसलिए तुरंत निकल जाओ मेरे फ्लैट से, इससे पहले कि मैं अपना आपा खो बैठूं - कहकर उसने पूछा - अभी कुछ सेकेंड बाकी होंगे, है न?”

“हां दस हैं।”

“तो दफा क्यों नहीं हो जाती यहां से।”

पांच, चार, तीन, दो, एक...

फिर गरिमा ने इतनी जोर का थप्पड़ उसके गाल पर जड़ा कि वह सोफे पर बायीं करवट को गिर गयी, गिरकर ना तो चिल्लाई ना ही उठने की कोशिश की। यूं पड़ी रही जैसे थप्पड़ खाकर उसके प्राण निकल गये हों।

वंश और चौहान बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोक पाये।

“ले चलें मैडम।” चौहान ने पूछा।

“आयशा को?”

“और कौन है ले जाने लायक?”

“अरे नहीं, नशे में है, फ्रीज से ठंडा पानी निकालकर इसके ऊपर उड़ेलो अभी उठ बैठेगी, फिर नशा भी टूटेगा और ढंग से बात भी करेगी, पकड़ ले जायेंगे तो जुलूस निकल जायेगा बेचारी का।”

“बेचारी?”

“और नहीं तो क्या, एक थप्पड़ खाकर भी बेहोश होता है कोई।”

चौहान फ्रीज से एक वॉटर बोतल निकाल लाया और उसे आयशा के चेहरे पर उड़ेलना शुरू ही किया था कि वह हड़बड़ाकर उठ बैठी, मगर चौहान ने बोतल फिर भी उसके ऊपर खाली कर दी।

“मुबारक हो मैडम - गरिमा बोली - आपको होश आ गया।”

“क...क्या हुआ था मुझे?”

“चक्कर खाकर गिर पड़ी थीं।”

“ओह थैंक यू, लेकिन पुलिस यहां कैसे पहुंच गयी?”

“आपके नेबर ने इंफॉर्म किया था।” गरिमा बोली, जबकि मन ही मन ये सोच रही थी कि क्या सच में उसे कुछ याद नहीं था, या नौटंकी कर रही थी।

“ओह ठीक है, अब आप लोग जा सकते हैं।”

“जब आ ही गये हैं मैडम तो क्यों न दो चार सवाल कर लिये जायें।”

“किस बारे में?”

“डॉक्टर बरनवाल के कत्ल के बारे में।”

“मेरा उससे क्या लेना देना?”

“किसी ने बताया था कि आप दोनों एक दूसरे के काफी करीब थे।”

“हां करीब तो थे।”

“और दोस्तों को एक दूजे के बारे में सब पता होता है।”

“आप क्या जानना चाहती हैं?”

“कत्ल किसने किया था उसका?”

“मुझे जोरों की ठंड लग रही है, दो मिनट दीजिए कपड़े चेंज कर लेती हूं।”

“ठीक है कर लीजिए।”

सुनकर वह उठी और बेडरूम में दाखिल हो गयी।

“ये नौटंकी कर रही है मैडम।” चौहान धीरे से बोला।

“करने दो, हमारा क्या ले जायेगी।”

थोड़ी देर बाद आयशा बेडरूम से बाहर आई तो सूट सलवार पहने थी और उसके ऊपर एक जैकेट डाल लिया था। बालों का जूड़ा भी बना आई जिसके कारण अब कम से कम इंसान तो दिखने ही लगी थी।

“दो मिनट और प्लीज।” कहकर वह किचन में जा घुसी।

“घूंट लगाने गयी है मैडम, पहले भी लगाया था, हमारे यहां पहुंचने के तुरंत बाद।”

“क्या कर सकते हैं भई - गरिमा एक लंबी आह भरकर बोली - लगा लेने दो।”

मगर इस बार आयशा घूंट लगाने नहीं गयी थी। थोड़ी देर बाद जब वह वापिस लौटी तो एक ट्रे में कॉफी से लबालब भरे चार कप रखे हुए थे।

“ठंड बहुत है - कहते हुए उसने एक एक कप सबको थमाया फिर चौथा खुद लेकर बैठती हुई बोली - लेकिन इसके अलावा और कोई खातिरदारी आप लोगों की मैं नहीं कर सकती, क्योंकि मेड छुट्टी पर है।”

“जरूरत तो इसकी भी नहीं थी मैडम, लेकिन आप ले आई हैं तो पीने से इंकार तो हम नहीं ही करेंगे, थैंक यू।”

“मोस्ट वेल्कम, अब बताईये क्या जानना चाहते हैं डॉक्टर के बारे में?”

“वह सबकुछ जो आपको पता हो।”

“बस इतना मालूम है कि पटना का रहने वाला था, उधर से ही स्टडी की थी, कुछ साल प्रैक्टिस भी की, उसके बाद आठ नौ साल पहले दिल्ली आ गया। मैरिड था, लेकिन फेमिली को साथ नहीं रखता था।”

“वजह?”

“मुझे लगता था जैसे उसे बीवी को साथ रखने में बेइज्जती महसूस होती थी, देहाती औरत है न इसलिए। बाकी कोई और बात रही हो तो मैं नहीं जानती।”

“कत्ल की कोई संभावित वजह?”

“आई डोंट नो, लेकिन उसकी मौत के बाद सबसे पहला शक मेरा उसकी नर्स कविता पर गया था।”

“क्यों?”

“मैंने एक दो बार नोट किया था कि वह डॉक्टर को बड़ी अनुराग भरी निगाहों से देखा करती थी। जिससे ये अंदाजा भी लगा कि या तो वह डॉक्टर को हासिल थी, या वैसी कोशिशों में जुटी हुई थी।”

“ठीक है हासिल थी, लेकिन कत्ल क्यों कर दिया?”

“इमोशनल लड़की है, हो सकता है डॉक्टर से शादी की बात की हो, और उसने इंकार कर दिया हो, या कविता को पता ही न हो कि वह शादीशुदा था, ऐसे में जब दोनों करीब आ गये और बाद में कविता को ये मालूम पड़ा कि वह मैरिड था, तो गुस्से में आकर खत्म कर दिया उसे। ऐसे किस्से आये दिन तो सामने आते रहते हैं।”

“लेकिन है तो ये अंदाजा ही न मैडम?”

“और नहीं तो क्या, उसने कत्ल करना होता तो मेरे सामने करती?”

“नहीं करती।”

“यही तो मैं भी कह रही हूं।”

“थोड़ी देर के लिए मान लीजिए कातिल वह नहीं है, तो दूसरा कोई है आपकी निगाहों में?”

“सुनकर आपको अच्छा नहीं लगेगा।”

“परवाह मत कीजिए।”

“जब डॉक्टर का केस लगातार लटकता चला गया, मतलब पुलिस सॉल्व नहीं कर पाई, तो मेरे मन में ख्याल उठा था कि कहीं उसकी हत्या में पुलिस का ही तो हाथ नहीं था।”

“आपका मतलब है सुशांत अधिकारी का?”

“या दीक्षित का, या फिर दोनों का। क्योंकि मैं नहीं समझती कि पुलिस अगर ईमानदारी से कोशिश करे तो अपराधी पकड़ाई में आने से बच सकता है। मतलब डॉक्टर के कत्ल की इंवेस्टिगेशन ईमानदारी से नहीं की गयी थी। जिसकी दो वजहें हो सकती हैं, पहली ये कि पुलिस हत्यारे का फेवर कर रही थी, और दूसरी ये कि हत्या खुद उन दोनों पुलिसवालों ने ही कर दी थी।”

“उनके पास डॉक्टर के कत्ल की भला क्या वजह रही हो सकती है?”

“डॉक्टर ने एक बार ड्रिंक के दौरान यहीं बैठकर बताया था कि दोनों जोंक बनकर उसका खून चूस रहे थे। लेकिन डिटेल में नहीं बताया, मैंने पूछा तो बात बदलकर कहने लगा कि आये दिन किसी ना किसी बहाने से सौ दो सौ रूपये ऐंठ ले जाते हैं। जबकि पहले जिस तरह से उसने वह बात कही थी उससे साफ लगता था कि रकम का साईज बड़ा था, जो डॉक्टर से जबरन ऐंठी जा रही थी, वह भी रेग्युलर, यानि ब्लैकमेल कर रहे थे दोनों उसे। अगर मेरा सोचा सही है तो उसका मतलब बनता है कि जब डॉक्टर ने ब्लैकमेल होने से इंकार कर दिया तो उसे खत्म कर दिया गया।”

“हासिल?”

“क्या पता कुछ हुआ हो, उस बारे में मैं कैसे बता सकती हूं आपको?”

“और कुछ?”

“डॉक्टर की मौत के बाद जब उसकी बीवी और बेटा क्लिनिक पर पहुंचे थे तो मैं भी वहीं थी, और मुझे यूं महसूस हुआ था जैसे दोनों को उसकी मौत का जरा भी गम न हो, रोई तक नहीं थी बबिता बरनवाल।”

“उस बात का कोई खास मतलब?”

“ये कि कातिल दोनों मां बेटे भी हो सकते हैं।”

“वो भला डॉक्टर का कत्ल क्यों करेंगे?”

“खुंदक में आकर क्योंकि उसने उन्हें अनाथों की तरह गांव में छोड़ रखा था।”

“आपको पता है कि कोर्ट में विश्वजीत ने अधिकारी और दीक्षित पर कैसे आरोप लगाये थे?”

“हां पता है।”

“उस स्थिति में कातिल विश्वजीत कैसे हो सकता है?”

“हां ये भी ठीक कहा आपने। फिर तो समझ लीजिए सब किया धरा या तो कविता का है, या फिर आपके डिपार्टमेंट का, क्यों किया मैं पहले ही बयान कर चुकी हूं।”

“किसी ने बताया है मैडम कि - वंश बोला - डॉक्टर के साथ आपके जिस्मानी ताल्लुकात थे?”

“हां थे, मैं कहां इंकार कर रही हूं उस बात से, लेकिन कत्ल मैंने नहीं किया हो सकता, क्योंकि इत्तेफाक से जिस वक्त उसके दिल में छुरा भोंका गया मैं एक पार्टी में थी, जहां कई लोग मेरे होने के गवाह बने थे।”

“आप भीष्म साहनी को तो जानती ही होंगी?” वंश ने पूछा।

“हां जानती हूं, यहीं पास में ही तो रहता है।”

“सुना है डॉक्टर का उसके घर पर खूब आना जाना था?”

“गलत सुना है, हां महीने में एक दो बार पेशेंट देखने जरूर जाता था, जो कि भीष्म की वाईफ शैली थी, मतलब उसपर शक करेंगे तो अपना वक्त ही जाया करेंगे।”

“और उन्मेद कनौजिया के बारे में क्या कहती हैं, क्या उसने किसी वजह से डॉक्टर का कत्ल किया हो सकता है?”

“सवाल इंट्रेस्टिंग है, मुझे बस आज आज का वक्त दीजिए, अगर उसने कुछ किया है तो मैं पक्का उससे उगलवा लूंगी।”

“और मान लीजिए उसने कबूल कर लिया कि वही कातिल है तो?”

“तो आप जाने या वो जाने।”

“मतलब आप उस बात को छिपाने की कोशिश नहीं करेंगी?”

“क्यों करूंगी, वह क्या कोई सगेवाला है मेरा?”

“अभिनव के बारे में क्या जानती हैं?”

“खूसट बुड्ढा है, बात बात पर चिड़चिड़ाया रहता है। इसके अलावा उसके बारे में जानने को है ही क्या।”

“मेरा मतलब था कि क्या उसने डॉक्टर का कत्ल किया हो सकता है?”

“क्या लगता है आपको क्या मैं कभी मुंबई गयी हो सकती हूं?”

“मैं आपका इशारा समझ गया मैडम, थैंक यू।”

“कुछ और पूछना है?”

“आप कुछ बताना चाहती हैं?”

“हां एक बात है जो अभी अभी मुझे याद आई है।”

“क्या?”

“आज से चार-पांच साल पहले डॉक्टर के साथ कुछ बड़ा घटित हुआ था, इतना बड़ा कि चार-पांच दिनों तक उसने अपना क्लिनिक भी बंद कर के रखा था।”

“और हुआ क्या था?”

“आई डोंट नो, बट अधिकारी और दीक्षित तभी से डॉक्टर के क्लिनिक में आया जाया करते थे। वैसे मैंने बस दो बार ही उन्हें वहां देखा था।”

“किसी ऋषिकेश का नाम सुना है कभी?”

“नहीं, कौन है?”

“अभी तो हमें भी नहीं पता।”

“ओह।”

तत्पश्चात गरिमा उठ खड़ी हुई और आयशा को थैंक यू बोलकर वंश तथा चौहान के साथ वहां से बाहर निकल गयी। उस आयशा को थैंक यू बोलकर आई थी जिसे थोड़ी देर पहले थप्पड़ जड़कर हटी थी।

“ये ऋषिकेश कौन है मैडम?” लिफ्ट में सवार होते वंश ने पूछा।

“अभी तो कोई नहीं है, आगे देखते हैं।”

“क्यों गरीबमार कर रही हैं, बता क्यों नहीं देतीं?”

“आप भी तो हर बार वही करते हैं वंश साहब, केस पर काम हमारे साथ मिल मिलाकर करते हैं, हम एक दूसरे के साथ नोट्स भी एक्सचेंज करते हैं, मगर आखिरी क्षणों में जब मामला सुलझने ही वाला होता है, आप हमेशा कल्टी मार जाते हैं।”

“मजबूरी जो न करा दे मैडम - वह फरमाईशी आह भरता हुआ बोला - आप तो जानती ही हैं कि मेरी रोजी रोटी पर्दाफाश के सहारे ही चल रही है। जिसके लिए खबर का एक्सक्लूसिव होना अहम शर्त है। उसे भी मैं पुलिस के साथ साझा कर दूंगा तो मेरे शो का क्या होगा। लेकिन इतना तो आप मानेंगी ही कि मेरी नीयत में कोई खोट नहीं है।”

“ओके, समझ लीजिए कि आपका एक्सप्लेनेशन मेरी समझ में आ गया - कहकर उसने चौहान की तरफ देखा - बता दो भई, जो कुछ भी हमें अलग से हासिल है सब बता दो, क्योंकि उधारी तो वंश साहब चुकता कर ही देते हैं।”

जवाब में चौहान ने उसे वह तमाम जानकारियां दे दीं जो अभी तक सिर्फ पुलिस के ही पास थीं। तत्पश्चात नीचे पहुंचकर गरिमा और चौहान पुलिस कार में सवार हो गये जबकि वंश बाहर खड़ी अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया।

उन्मेद कनौजिया चालीस के पेटे में पहुंचता हैंडसम मर्द निकला, जो घर में भी सूट बूट पहनकर बैठा हुआ था। जिससे वंश ने यही अंदाजा लगाया कि या तो वह कहीं जाने वाला था, या तभी कहीं से वापिस लौटा था।

“बैठो।”

“थैंक यू सर।”

“तुम मीडिया वालों से बात करना किसी गुनाह से कम नहीं होता यार। हमेशा बात का बतंगड़ बनाकर रख देते हो। इसलिए मेरी कोशिश दूरी बनाकर ही रखने की होती है।”

“फिर भी मुझे भीतर बुला लिया?” वंश थोड़ा हंसकर बोला।

“अब घर आये मेहमान को दरवाजे से तो नहीं भगा सकता न, इसलिए बुला लिया, बताओ क्या जानना चाहते हो? वैसे मुझे नहीं लगता कि तुम्हें बताने लायक कुछ है मेरे पास।”

“कहीं जाने की तैयारी में दिखते हैं?”

“नहीं, अभी अभी ऑफिस से लौटा हूं।”

“ओह।”

“अब जो पूछना है शुरू करो।”

“सबसे पहले तो डॉक्टर बरनवाल के बारे में ही बताईये, सुना है उनकी जिंदगी में आप दोनों गहरे दोस्त हुआ करते थे।”

“हां दोस्त तो बराबर थे हम, लेकिन बताने जैसा कुछ भी याद नहीं आ रहा, मेरा मतलब है ऐसा कुछ नहीं जानता जो मीडिया या पुलिस को पहले से ही न मालूम हो। इसलिए सीधा सवाल करो, जवाब मालूम होगा तो मैं जरूर दूंगा।”

“कत्ल किसने किया होगा डॉक्टर का?”

“मैं नहीं जानता।”

“मैं आपका अंदाजा जानना चाहता हूं सर।”

“कत्ल का मामला है भई, ऐसे ही थोड़े किसी का नाम ले दूंगा।”

“सर आप दोस्त थे उसके, और दोस्तों में सबकुछ साझा हुआ करता है।”

“हमारे बीच नहीं था, सच पूछो तो वैसी दोस्ती तो उसकी किसी के साथ नहीं रही होगी। कुल मिलाकर कहूं तो बड़ा ही मिस्टीरियस पर्सन था। अपने बारे में कभी बात नहीं करता था, और कभी ड्रिंक वगैरह के दौरान कुछ बोलता भी तो वक्त रहते चेत जाया करता था। मतलब नशे होने के बावजूद खुद पर उसका पूरा कंट्रोल होता था।”

“डॉक्टर की बीती जिंदगी में कोई खास बात रही हो?”

“बोल तो रहा हूं भई कि वह अपने बारे में ज्यादा बातें नहीं करता था, बल्कि करता ही नहीं था।”

“किसी ने बताया है सर कि पांच साल पहले कोई बड़ी घटना या हादसा घटित हुआ था डॉक्टर के साथ, उसके बारे में तो आपको जरूर जरूर पता होगा?”

“जिसने बताया उसी से क्यों नहीं पूछ लिया?”

“क्योंकि वह असल बात नहीं जानता।”

“और मैं जानता हूं?”

“हां क्योंकि आप डॉक्टर के दोस्त थे जबकि वह नहीं था।”

“नहीं मुझे वैसी कोई बात नहीं मालूम।”

“टालू जवाब है, आपके चेहरे पर साफ साफ लिखा दिखाई दे रहा है।”

“मुझे तुम पत्रकारों की ये खामख्वाह गले पड़ने वाली आदत भी बहुत बुरी लगती है, जब मैं कह रहा हूं नहीं जानता तो कबूल क्यों नहीं कर लेते?”

“क्योंकि मुझे लगता है कुछ तो जानते हैं।”

“एक काम करो।”

“क्या सर?”

“अब जाओ यहां से।”

“क्यों?”

“क्योंकि तुम्हारी बातों का कोई जवाब नहीं है मेरे पास।”

वंश हंसा।

“अरे मैं सच कह रहा हूं।”

“एक काम करते हैं, मैं अपना सवाल वापिस लिए लेता हूं। ये बताईए कि क्या आपकी वाईफ जानती हैं कि आप आजकल आयशा बागची के साथ क्या गुल खिला रहे हैं?”

“व्हॉट - वह तमतमाया सा उठ खड़ा हुआ - तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है?”

“नहीं मैं मेंटली एकदम फिट हूं सर।”

“तो पागलों जैसी बातें क्यों कर रहे हो?”

“बैठ जाइये, पांव दुःख जायेंगे।”

“तुम जाते हो या नहीं?” वह पिचपिचाता हुआ बोला।

“यानि मैडम नहीं जानतीं, वैसे जान जायेंगी तो क्या करेंगी?”

“तुम..तुम मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो?”

“कैसी बात करते हैं सर, मैं तो बस आपकी धर्मपत्नी का ज्ञानवर्धन करना चाहता हूं, कहां हैं इस वक्त? जरा बुला दीजिए प्लीज।”

“दफा हो जाओ मेरे घर से।” वह फुंफकारता हुआ सा बोला।

“जबकि थोड़ी देर पहले आप मुझे मेहमान तस्लीम कर के हटे हैं।”

“मेहमानों के ये लक्षण होते हैं?”

“सोच लीजिए सर, जो बात मैं कह रहा हूं उसके एविडेंस भी मौजूद हैं मेरे पास। आपको क्या अच्छा लगेगा कि मैं पूरी दुनियां में आपके अफेयर की ढोल पीट दूं? अगर आपका जवाब हां में है तो मैं चलता हूं, वक्त देने के लिए थैंक यू।” वह उठकर गेट की तरफ बढ़ा।

“रुको।”

“किसलिए?”

“अब बैठ भी जा यार।”

“फिर से तो गेट आउट नहीं बोल देंगे?”

“मैंने गेट आउट कब बोला?”

“अच्छा नहीं बोला, फिर तो बैठ ही जाता हूं।”

“क्या चाहते हो?”

“सच जानना।”

“फिर मेरा यकीन क्यों नहीं कर लेते कि मैं डॉक्टर के कत्ल के बारे में कुछ नहीं जानता।”

“हो सकता है न जानते हों, लेकिन इतना आपके चेहरे पर साफ लिखा दिखाई दे रहा है कि चार पांच सालों पहले घटित हुई उस घटना की जानकारी आपको बराबर है, जिसने डॉक्टर को खासा परेशान कर के रख दिया था। ये भी सुना है कि कुछ दिनों के लिए उसने क्लिनिक भी बंद कर दिया था।”

“पक्का कर के नहीं जानता।”

“कच्चा ही बता दीजिए।”

“उस घटना का डॉक्टर के कत्ल के साथ कोई लेना देना नहीं रहा हो सकता।”

“तो फिर बताने में क्या हर्ज है?”

“मैं खामख्वाह की मुसीबत में नहीं पड़ना चाहता।”

“कैसे पड़ेंगे, किसको पता लगेगा कि आपने मुझसे क्या कहा, फिर ये भी तो सोचिये कि डॉक्टर अब जिंदा नहीं है, यानि आप उसके खिलाफ या उसके हक में चाहे कितनी भी बड़ी बात क्यों न कह दें, उससे उसको कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।”

“समझता हूं, बच्चा नहीं हूं मैं। जुबान सिर्फ इसलिए नहीं खोलना चाहता क्योंकि उस मामले से कई और लोग भी जुड़े हुए हैं। जिनमें से दो पुलिसवाले हैं, जिनके साथ पंगा लेना मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।”

“सुशांत अधिकारी और दयानंद दीक्षित की बात कर रहे हैं?”

“हां वही।”

“फिर तो बेकार ही डर रहे हैं, क्योंकि बीती रात उन दोनों का चैप्टर क्लोज हो चुका है।”

“गिरफ्तार हो गये?”

“नहीं मार डाले गये।”

“व्हॉट?”

“न्यूज नहीं देखी शायद?”

“बहुत कम देखता हूं, लेकिन आज तो वह भी नहीं देखी, क्या हुआ था?”

वंश ने संक्षेप में सारा किस्सा सुना दिया।

“कमाल है उन कमीनों का भी कत्ल कर गया कोई।”

“कमीने कैसे हुए?”

“कोई किसी को ऐसे काम के लिए ब्लैकमेल करे, जिसमें खुद भी शामिल रहा हो तो उसे कमीना नहीं तो और क्या कहा जायेगा। और डॉक्टर की मानो तो वह दोनों वही कर रहे थे।”

“बात कुछ समझ में नहीं आई सर।”

“देखो मैं जानता हूं कि तुम मेरे कहे को दुनिया के सामने लाने से बाज नहीं आओगे, मत आना कोई बात नहीं। लेकिन इतनी मेहरबानी करना कि बात का जिक्र मेरे हवाले से मत करना। मतलब किसी को ये पता नहीं लगना चाहिए कि जो बताया वह उन्मेद कनौजिया ने बताया।”

“ओके, नहीं करूंगा प्रॉमिस।”

“ठीक है सुनो, सच ये है कि पांच साल पहले डॉक्टर बरनवाल ने किसी का कत्ल कर दिया था।”

वंश हकबकाया सा उसकी शक्ल देखने लगा।

“किसका किया था मैं नहीं जानता, लेकिन इतना पता है कि उस काम में उसके साथ-साथ उसका एक दोस्त अमरजीत भी शामिल था, जिसकी पिछले दिनों हत्या कर दी गयी थी। अधिकारी और दीक्षित भी उसकी तरफ हो गये, जिसके बाद लाश को गायब करके डॉक्टर को साफ बचा लिया गया था - फिर क्षण भर को खामोश रहने के बाद बोला - हो सकता है मेरा कहा झूठ निकल आये, क्योंकि डॉक्टर ने कोई एक ही बार में पूरा किस्सा मुझे नहीं बता दिया था, ना ही होशो हवास में बताया था।”

“अब इसका क्या मतलब हुआ?”

“कई महीनों में जाकर वह बात मेरे कानों तक पहुंची थी। ड्रिंक करते हुए कभी ये बता दिया तो कभी वो बता दिया। मतलब जो बोला नशे में बोला था। जैसे एक बार ये कहा कि दोस्त हो तो अमरजीत जैसा, जो उसके महज कहने भर से कत्ल करने को तैयार हो गया। इसी तरह एक बार कहने लगा कि पुलिस अगर रिश्वतखोर न हो तो उसके जैसे लोगों के लिए आजादी सपना बनकर रह जाये। मतलब यूं ही गाहे बगाहे उसके द्वारा कही गयी बातों को आपस में जोड़कर मैंने ये नतीजा निकाला था कि उसने अपने दोस्त अमरजीत के साथ मिलकर किसी का कत्ल कर दिया था, जिसमें अधिकारी और दीक्षित ने उसका पूरा पूरा साथ दिया था। पता नहीं सिर्फ उसे बचाने में दिया या कत्ल में भी कोई एक्टिव रोल निभाया था।”

“अगर लाश गायब कर दी गयी थी सर, तो जाहिर है थाने में कोई कंप्लेन भी नहीं दर्ज की गयी होगी।”

“मेरे ख्याल से तो नहीं ही की गयी। हां मरने वाले के परिवार वालों ने गुमशुदगी वगैरह दर्ज करा दी हो तो मैं कुछ कह नहीं सकता।”

“और पांच साल पहले की उसी घटना के बूते पर दोनों पुलिसिये डॉक्टर बरनवाल का खून चूस रहे थे, है न?”

“हां, इस बात की तो मैं गारंटी कर सकता हूं।”

“और अब वह दोनों ही मारे जा चुके हैं।”

“तुम कहते हो तो जरूर मर चुके होंगे।”

“और डॉक्टर क्योंकि पहले ही अपनी जान से हाथ धो बैठा था इसलिए जाहिर है अधिकारी और दीक्षित के कत्ल में उसका कोई हाथ नहीं हो सकता। ऐसे में सवाल ये उठता है सर कि कातिल कौन है?”

“अभी भी नहीं समझे?”

“नहीं, मैं नहीं समझा।”

“मेरे ख्याल से तो पूरा मामला बदले का है।”

“किस बात का बदला?”

“पांच साल पहले जिस शख्स को खत्म किया गया, उसी का कोई सगा संबधी चुन चुनकर उन लोगों को मार रहा है जो उस मामले में शामिल रहे थे। पहले डॉक्टर को खत्म किया, और इंतजार किया, फिर अमरजीत और दोनों पुलिसवालों को मार गिराया, इनके अलावा भी अगर कोई उस षड़यंत्र में इंवॉल्व था तो पक्का अगली बारी उसी की होगी। मतलब तुम अगर ये पता लगा लो कि पांच साल पहले डॉक्टर ने किसका कत्ल किया था, तो मेरे ख्याल से हत्यारे तक पहुंचने में वक्त नहीं लगेगा।”

“रास्ता अच्छा सुझाया है सर, थैंक यू। अभी इसी तरह ये भी बता दीजिए कि उस शख्स की जानकारी मुझे कहां से हासिल हो सकती है?”

“मुझे क्या पता? लेकिन वह जो भी रहा होगा डॉक्टर के कत्ल से पहले भी उसके क्लिनिक में आता जाता रहा होगा। इसलिए तुम्हारे सवाल का जवाब अगर कोई दे सकता है तो वह है नर्स कविता कुमावत। वह पक्का जानती होगी उस तरह के किसी आदमी को।”

“मैं उससे मिल चुका हूं सर, वह किसी सीक्रेट विजिटर का जिक्र करती है जो डॉक्टर की जिंदगी में हर महीने उससे मिलने आया करता था। कत्ल वाले रोज भी आने वाला था, तभी डॉक्टर ने उसे वक्त से पहले वहां से चलता कर दिया। मगर वह कौन था ये बात कविता नहीं जानती।”

“जिस तरह मुझपर होल्ड बनाकर जवाब हासिल किया है, वैसा ही कोई होल्ड उसपर बना लो तो वह सब बक देगी। प्यार मोहब्बत से पूछोगे तो भला जुबान क्यों खोलने लगी। बल्कि उसकी कही बात से तो ऐसा मालूम पड़ता है जैसे वह सीक्रेट विजिटर भी डॉक्टर से पैसे ऐंठने ही आया करता था।”

“मतलब वह जानता था कि डॉक्टर ने किसी का कत्ल कर दिया था?”

“हां तभी तो उसे ब्लैकमेल कर रहा था।”

“दम तो है आपकी बात में।”

“अब जाओे, और आइंदा मुझे धमकी देने फिर मत पहुंच जाना यहां क्योंकि मैं जो जानता था वह सब बता चुका हूं तुम्हें।”

“वाईफ से बनती नहीं है आपकी?”

“व्हॉट! नो, उल्टा बहुत अच्छी बनती है।”

“फिर भी उस भूतनी के साथ यारी गांठ ली?”

“आयशा तुम्हें भूत लगती है?”

“नशेड़ी तो अव्वल दर्जे की जान पड़ती है। जाते जाते मुफ्त की एक सलाह देकर जाता हूं आपको कि जितनी जल्दी हो सकती आयशा बागची से दूरी बना लीजिए, वरना वह लड़की आपको ले डूबेगी। इसलिए क्योंकि नशे में गैर जिम्मेदार हो जाती है, उसे पता ही नहीं होता कि क्या बोल रही है और क्या नहीं बोल रही।”

“अफेयर वाली बात तुम्हें आयशा ने बताई?” उसने हैरानी से पूछा।

“नहीं, वह बात तो मैंने बस तुक्के में कह दी थी, जो तीर बन गया।”

“व्हॉट?”

“मुझे क्या पड़ी है जो आपकी पर्सनल लाईफ टटोलता फिरूं।”

“बड़े वाहियात आदमी हो यार।”

“हूं तो नहीं सर, लेकिन आप ऐसा समझते हैं तो मुझे कोई ऐतराज नहीं। बहरहाल वक्त और जानकारी दोनों के लिए आपको थैंक्स - कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ - एक आखिरी सवाल, जो कि अभी अभी दिमाग में आया है।”

“पूछो।” वह वंश को खा जाने वाली निगाहों से घूरता हुआ बोला।

“कल रात दस बजे के बाद आप कहां थे?”

“यहीं अपने घर पर था, चाहो तो गेट कीपर से पता कर लो।”

“रहने दीजिए मैं वैसे ही आप पर यकीन किये लेता हूं - कहकर वह बाहर निकला और गार्ड के पास जाकर खड़ा हो गया - एक बात तो बताओ यार।”

“क्या सर?”

“ये उन्मेद साहब क्या रोज इतनी ही जल्दी घर आ जाते हैं, या आज इत्तेफाक से मिल गये मुझे?”

“आमतौर पर आठ नौ बजे के बाद ही आते हैं सर।”

“यानि दोबारा मिलना हो तो नौ बजे के बाद ही आना ठीक रहेगा, है न?”

“जी सर, लेकिन फोन कर के आईयेगा, क्या पता ना भी लौटे हों।”

“जैसे कल नहीं लौटे थे?”

“नहीं कल तो नौ सवा नौ तक आ गये थे।”

“फिर कहीं गये भी तो थे?”

“मैंने तो जाते नहीं देखा सर, आपको किसने बताया?”

“इट्स ओके, मुझे लगता है उन्मेद ने वह बात मजाक में कह दी थी।”

“हो सकता है सर।” गार्ड अनमने भाव से बोला।

“ठीक है आगे से फोन कर के ही आऊंगा।” कहकर वह अपनी कार में सवार हो गया, फिर वहां से थोड़ा आगे जाने के बाद गाड़ी रोककर कविता कुमावत को कॉल लगा दी।

“हलो।” लड़की की आवाज उसके कानों में पड़ी।

“मैं वंश।”

“नंबर सेव है तुम्हारा मेरे मोबाईल में।”

“अकेली हो?”

“नहीं कौशल भी है, ड्राईंगरूम में टीवी देख रहा है।”

“और तुम कहां हो?”

“किचन में।”

“मतलब दूर हो उससे?”

“ओह माई गॉड - वह थोड़ा हंसकर बोली - तुम तो ऐसे बात कर रहे हो जैसे मेरे साथ तुम्हारा अफेयर चल रहा हो।”

“मेरा मतलब था हमारी बातें वो तो नहीं सुन सकता न, क्योंकि मैं तुम्हें किसी प्रॉब्लम में नहीं डालना चाहता।”

“इट्स ओके मैं बस मजाक कर रही थी।”

“मुलाकात हो सकती है?”

“कब?”

“अभी या थोड़ी देर बाद?”

“बहुत जरूरी है?”

“बहुत नहीं, लेकिन जरूरी है।”

“अभी कहां हो?”

“वसंतकुंज में।”

“मेरे फ्लैट के करीब ही ‘अग्रवाल स्वीट्स’ है, वहां कॉफी पी सकते हैं - कहकर उसने पूछा - कब तक पहुंच जाओगे?”

“मे बी ट्वैंटी मिनट।”

“ठीक है पहुंचो।”

कहकर कविता ने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।

वंश ठीक बीस मिनट में मुनिरका पहुंचा और अग्रवाल स्वीट्स में जाकर बैठ गया। जबकि कविता ने वहां पहुंचने में पूरे चालीस मिनट लगा दिये। फोन तक करना जरूरी नहीं समझा कि उसे आने में देर हो जायेगी। ना ही वंश ने उसे कॉल करने की कोई कोशिश की।

“सॉरी - वह उसके सामने बैठती हुई बोली - मैं लेट हो गयी।”

“नैवर माइंड।”

“क्या हो गया?”

“कुछ नहीं।”

“ओह, मैंने सोचा कोई बड़ी घटना घटित हो गयी है।”

“कैसी घटना?”

“पता नहीं लेकिन जब से डॉक्टर के बेटे ने हंगामा खड़ा किया है तब से रोज कुछ न कुछ सुनने को मिल ही जाता है। फिर तुम भी तो ऐसे ही बोल रहे थे, जैसे कोई बहुत सीक्रेट बात करनी हो।”

“नहीं सीक्रेट जैसा कुछ नहीं है, कुछ नई बातें मेरी नॉलेज में आई हैं, जिनकी कंफर्मेशन तुमसे हासिल करने के लिए चला आया, ये सोचकर कि तुम्हें तो सब पता होगा।”

“ऑफ कोर्स होगा, नर्स होना तो मेरा कवर है, असल में स्पाई हूं, वह भी टॉप की, दुनिया भर की सरकारें थर्रा जाया करती हैं मेरे नाम से। किसी की पैंट गीली हो जाती हो तो भी कोई बड़ी बात नहीं होगी।”

सुनकर वंश हौले से हंसा, फिर एक वेटर को बुलाकर दो कॉफी लाने को कह दिया।

“अब पूछो क्या पूछना है?”

“पांच साल पहले डॉक्टर बरनवाल ने - वंश ने अपनी निगाहें उसके चेहर पर गड़ा दीं - अमरजीत राय के साथ मिलकर कोई भयानक कांड कर डाला था, तुम्हें कुछ पता है उस बारे में?”

“कैसा कांड?”

“किसी का कत्ल किया था।”

“व्हॉट?”

“उसी वजह से अधिकारी और दीक्षित उससे लगातार पैसे ऐंठते जा रहे थे, एक तरह से ब्लैकमेल कर रहे थे। ये बात डॉक्टर की जिंदगी में सामने आई होती तो मैं यही सोचता कि दोनों पुलिसवालों का कत्ल उसी ने कर दिया था। मगर वैसा हुआ नहीं हो सकता, यानि हत्यारा कोई और ही है, बल्कि किसी ने सुझाया है कि कातिल उस शख्स का कोई रिलेटिव रहा हो सकता है जिसे डॉक्टर ने खत्म कर दिया था - कहकर उसने पूछा - अब बताओ उस बारे में क्या जानती हो?”

“कुछ नहीं, फिर जान भी कैसे सकती हूं, जबकि मैंने दो साल पहले ही, अभी के हिसाब से तीन साल पहले डॉक्टर का क्लिनिक जॉयन किया था। मुझे इस बात पर भी यकीन नहीं आ रहा कि डॉक्टर कातिल था, कैसे हो सकता है?”

“फिर तो मैंने खामख्वाह ही तुम्हें तकलीफ दी।”

“इट्स ओके, मैंने कौन सा सौ कोस दूर से आना था।”

“कोई अंदाजा, कोई घटना, कोई बातचीत, मतलब कुछ भी ऐसा याद आ रहा तुम्हें जिसमें डॉक्टर ने किसी से भी वैसा कुछ डिस्कस किया हो। इशारों इशारों में किया हो, जिसका कोई मतलब तब तुम्हारी समझ में न आया हो?”

“नहीं।”

“किसी भी वजह से कल रात दस बजे के बाद तुम साकेत गयी थीं?”

“अरे नहीं भई, मेरे बस का काम नहीं है किसी का कत्ल करना।”

“मैंने कत्ल के बारे में कब पूछा?”

“साकेत का जिक्र और किसलिए किया होगा?”

“ये सवाल पुलिस भी तुमसे कर के रहेगी।”

“करे, मेरे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है।”

“तुम रहने वाली कहां की हो?”

“रांची की, क्यों पूछ रहे हो?”

“यहां दिल्ली में कब से हो?”

“पांच साल की उम्र से, पहले पापा यहां शिफ्ट हुए फिर मैं और मां भी साथ रहने चले आये।”

“भाई भी है?”

“अब नहीं है।”

“ओह सॉरी, क्या हुआ था?”

“कोविड का शिकार हो गया था।”

“बहुत बुरा हुआ, उम्र कितनी रही होगी?”

“मुझसे दो साल छोटा था।”

“फिर तो बहुत से भी बहुत बुरा हुआ, सॉरी मैंने खामख्वाह तुम्हारे जख्मों को कुरेद दिया, ये बताओ कि डॉक्टर की मुलाजमत में आने से पहले क्या करती थी?”

“मुलाजमत! वह क्या होता है?”

“जॉब, मेरा मतलब था डॉक्टर का क्लिनिक जॉयन करने से पहले कहां जॉब करती थीं?”

“कहीं नहीं, उसी साल मैं नर्सिंग कंप्लीट कर के हटी थी और वह मेरी पहली जॉब थी।”

“किसी मनसुख या कौशल्या को जानती हो? कभी क्लिनिक में बरनवाल से मिलने आये हों? या वैसे ही उनका नाम सुन लिया हो डॉक्टर के मुंह से?”

“याद तो नहीं आ रहा, कौन हैं दोनों?”

“अब नहीं हैं, बीती रात मॉडल टाउन के इलाके में उन दोनों की भी हत्या कर दी गयी।”

“उसका डॉक्टर के कत्ल से कोई लिंक मिला है?”

“मामूली सा, लेकिन मिला तो है - कहकर उसने चौहान से हासिल जानकारी उसके आगे दोहरा दी, फिर बोला - अब खुद सोचकर देखो कि अगर लिंक नहीं होता तो विश्वजीत और बबिता बरनवाल के नाम से फर्जी आईडी, जिसपर मनसुख और उसकी मां की फोटो लगी थी, वहां से बरामद क्यों हुई?”

“हैरानी की बात है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैंने कभी उन दोनों का नाम सुना हो।”

“न्यूज में उनकी तस्वीर दिखाई गयी थी, उससे कुछ याद नहीं आया तुम्हें?”

“मैंने वो न्यूज भी नहीं देखी।”

“रुको मैं फोटो दिखाता हूं, क्या पता शक्ल देखकर पहचान जाओ।”

“ओके।”

वंश ने अपने ही चैनल का ऑनलाईन पोर्टल मोबाईल में ओपन किया, फिर खोजकर वह न्यूज प्ले कर दी, जिसमें मनसुख और कौशल्या की उनके घर से बरामद पासपोर्ट साईज फोटो दिखाई गयी थी, तत्पश्चात मोबाईल उसके सामने रख दिया।

तस्वीरों पर निगाह पड़ते ही लड़की के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे। उसने स्ट्रीमिंग थोड़ा पीछे ले जाकर फिर से प्ले किया और जैसे ही तस्वीरें सामने आईं, तुरंत पॉज कर दिया, उसके बाद गौर से दोनों तस्वीरें देखने लगी।

हैरानी के भाव गहराते चले गये।

“लगता है पहचान गयीं?” वंश ने पूछा।

“पहचान तो रही हूं लेकिन जो दिख रहा है वह सच नहीं हो सकता वंश, जरूर कोई गड़बड़ हुई है तुम्हारे चैनल से।”

“कैसी गड़बड़?”

“ये तस्वीरें किसी मनसुख और कौशल्या की नहीं हैं।”

“फिर किसकी हैं?”

“विश्वजीत और उसकी मां की।”

कविता ने जैसे बम ही फोड़ दिया।

वंश बहुत देर तक हकबकाया सा उसकी शक्ल देखता रहा, फिर बोला, “नहीं तुमसे पहचाने में कोई गलती हो रही है। क्योंकि इस बात की तो मैं गारंटी कर सकता हूं कि ये फोटो विश्वजीत और बबिता बरनवाल की नहीं हैं।”

“हैं, भले ही तुम लोगों ने गलत तस्वीरें दिखा दी हों टीवी पर - कहकर उसने पूछा - तुम कभी मिले हो विश्वजीत और बबिता से?”

“विश्वजीत से मिल चुका हूं।”

“कब?”

“कल।”

“जिसे बढ़ी हुई दाढ़ी में देखा होगा, जो कि आजकल वह रखे हुए है। इसलिए ये तस्वीर तुम्हें उसकी नहीं लग रही, लेकिन मैं साल भर पहले उसे बिना दाढ़ी के भी देख चुकी हूं, और सूरतें कभी नहीं भूलती, इसलिए गारंटी करती हूं कि ये विश्वजीत और बबिता बरनवाल ही हैं।”

“कैसे मुमकिन है यार?” वंश का दिमाग भिन्नाकर रह गया।

“क्यों नहीं है?”

“क्योंकि तस्वीरें पुलिस के जरिये मीडिया को हासिल हुई थीं, वे लोग इतनी बड़ी गलती भला कैसे कर सकते हैं?”

“लाशों की तस्वीरें भी तो होगी?”

“न्यूज में उन्हें धुंधला कर के दिखाया गया था, इसलिए उससे पहचान नहीं हो पायेगी, लेकिन वह कोई समस्या नहीं है। मैं अभी ऑफिस से मंगवाये लेता हूं।” कहकर उसने किसी को फोन लगाया और मनसुख तथा कौशल्या की फोटो डेडबॉडी की वीडियो से क्रॉप कर के भेजने को कह दिया।

तभी कॉफी सर्व कर दी गयी।

“कल कौशल को कोई शक तो नहीं हुआ था?”

“नहीं, थैंक्स तुमने मुझे बचा लिया।”

“मैंने नहीं पुलिस ने बचाया, स्पेशली गरिमा देशपांडे ने।”

“तुम्हारी वजह से।”

“चलो वही सही - कहकर उसने कप से एक चुस्की ली फिर गौर से लड़की का चेहरा तकता हुआ बोला - अधिकारी और दीक्षित के कत्ल की खबर सुनकर तुम्हारे मन को थोड़ा चैन तो मिल ही गया होगा, है न?”

“सच कहूं?”

“और क्या झूठ बोलोगी?”

“मुझपर कोई असर नहीं हुआ, ना तो मैं खुश हुई ना ही दुःखी, शायद इसलिए क्योंकि वह घटना अब पुरानी पड़ चुकी थी। वरना शुरू में तो मैं रोज ही उन दोनों के, स्पेशली सुशांत अधिकारी के मरने की दुआयें मांगा करती थी।”

“जो कि देर से ही सही कबूल हो गयी।”

“अब किसे फर्क पड़ता है।”

“जिन्दा होते तो तुम्हें बराबर पड़ता, क्योंकि एक लल्लन के फेल हो जाने का मतलब ये नहीं हो जाता कि वे लोग किसी और को तुम्हें मारने के लिए नहीं भेज देते, बल्कि इस बार जो करते खुद करते, ताकि गलती की कोई गुंजाईश ही नहीं रह जाती।”

“हां इस लिहाज से तो अच्छा ही हुआ जो दोनों मारे गये।”

“हत्यारे को थैंक यू बोलना चाहोगी?”

“अब बस भी करो।” वह हंस पड़ी।

“ऐसी ही खिलखिलाती रहा करो, हंसते वक्त ज्यादा खूबसूरत लगती हो तुम।”

“वंश!” उसने आंखें तरेरीं।

“अरे मैं सच कह रहा हूं, मुंह बना लेती हो तो एकदम बंदरिया लगती हो।”

“यार तुम तारीफ कर रहे हो या बेइज्जती?”

“हंसती मुस्कराती रहोगी तो तारीफ है, मुंह बनाकर रहोगी तो बेइज्जती, अब खुद फैसला करो कि मेरे कहे का क्या मतलब है।”

“ओके, तो मिस्टर वशिष्ठ की बात मानकर अब मैं हमेशा मुस्कराने की कोशिश करूंगी, इसलिए ताकि कोई मुझे बंदरिया न समझ ले।”

“दैट्स गुड।”

तभी वंश के मोबाईल पर नोटिफिकेशन की बीप सुनाई दी। वह व्हॉट्सअप मैसेज था जो ऑफिस से भेजा गया था। ओपन किया तो उसमें मनसुख और कौशल्या की लाश की तस्वीरें मौजूद थीं, जिनपर एक नजर डालते ही वह समझ गया कि पासपोर्ट साईज तस्वीरें भी उन्हीं दोनों की थीं, यानि कविता किसी गलतफहमी का ही शिकार हो रही थी।

मोबाईल उसने लड़की को थमा दिया, उसने तस्वीरें देखीं, गौर से देखीं, फिर अफसोस भरी सांस खींचकर बोली, “ओह माई गॉड, किसने मारा इन्हें?”

“अभी पता नहीं लग पाया, अब कहो कि तुम्हारी शिनाख्त गलत थी?”

“नो वे, कहा न मैं चेहरे कभी नहीं भूलती, ये दोनों विश्वजीत और उसकी मां ही हैं।”

अब वंश की हैरानी बढ़ गयी।

“उस बात पर मैं शर्त लगाने को तैयार हूं।” लड़की बोली।

“कैसे पॉसिबल है?”

“वो सब मैं नहीं जानती, लेकिन मेरी शिनाख्त झूठी नहीं है।”

“तुम नामुमकिन बात कर रही हो।”

“नहीं, अफसोस कि पूरी फेमिली ही खत्म हो गयी।”

कविता जो कह रही थी, वह यकीन के काबिल नहीं था, मगर ये भी सच था कि वह झूठ बोलती नहीं हो सकती थी। फिर ऐसा झूठ बोलने का क्या फायदा जो अगले ही पल पकड़ में आ जाने वाला हो, यानि कहीं न कहीं कोई गड़बड़ तो जरूर थी।

क्या माजरा था?

वह सोच में पड़ गया।

फिर अचानक ही उसके ज्ञानचक्षु खुल गये। शरीर में रोमांच हो आया और आंखों में इतने गहन आश्चर्य के भाव उभरे जिन्हें शब्दों में बयान कर पाना मुमकिन नहीं था।

‘इतना बड़ा षड़यंत्र - वह बड़बड़ाया - इतनी बड़ी हेर फेर।’

“क्या कह रहे हो?” कविता ने पूछा।

“कुछ नहीं थोड़ी लाऊड थिंकिंग करने लग गया था, थैंक यू।”

“किस बात के लिए?”

“ये बताने के लिए कि दोनों लाशें विश्वजीत और उसकी मां की हैं, ना कि किसी मनसुख और कौशल्या की। और उस बारे में बताकर तुमने मुझपर कितना बड़ा एहसान किया है उसका अंदाजा भी नहीं होगा तुम्हें।”

“यकीन आ गया?”

“हां अब आ गया।”

“मुझे खुशी है वंश कि मैं तुम्हारे किसी काम आ पाई, वरना अभी तक तो यही सोच रही थी कि खामख्वाह तुम मुझसे सवाल जवाब कर के अपना वक्त बर्बाद करते हो।”

“आज ऐसा नहीं है, समझ लो एक ही झटके में तुमने अगली पिछली सारी मुलाकातों की वसूली करा दी - कहकर उसने पूछा - जानना नहीं चाहोगी उस बारे में?”

“अभी मत बताओ, वरना तुम्हारा शो देखते वक्त मजा नहीं आयेगा।”

“जैसी तुम्हारी मर्जी।”

तत्पश्चात वंश ने बिल पे किया फिर दोनों वहां से निकल गये।

आगे वह कार में सवार हुआ और ग्रेटर कैलाश की तरफ ड्राईव करने लगा, क्योंकि ऑफिस जाने की फिलहाल कोई जरूरत महसूस नहीं हो रही थी।

उसकी समझ में अब तक इतना तो आ ही चुका था कि दिल्ली में डॉक्टर बरनवाल के बारे में जितनी जानकारियां हासिल हो सकती थीं, हो चुकी थीं, मतलब वह कितना भी सिर क्यों न फोड़ लेता कोई नई बात सामने नहीं आने वाली थी। इसलिए उसने दूसरा सिरा पकड़ने की सोची यानि पटना जाने का फैसला कर लिया। वहां डॉक्टर की किसी के साथ दुश्मनी की खबर उसे लग सकती थी। या कोई ऐसी बात सामने आ सकती थी, जिससे उसकी मौत की वजह को समझना आसान हो जाता।

उन्मेद कनौजिया ने भले ही ये कह दिया था कि पांच साल पहले डॉक्टर ने किसी का कत्ल कर दिया था, मगर वंश को उस बात पर पूरी तरह यकीन नहीं आ रहा था। पहली बात तो ये कि वह डॉक्टर था, दूसरा ये कि जो कहा वह नशे में कहा था। तीसरा उसके कहे का उन्मेद ने कोई गलत मतलब भी निकाल लिया हो सकता था। यानि डॉक्टर ने कत्ल किया हो सकता था तो नहीं भी किया हो सकता था।

इसलिए उसने फ्लैट पर पहुंचकर अगले रोज की टिकट बुक करने का फैसला किया और अपना पूरा ध्यान सड़क पर टिका दिया, क्योंकि ट्रैफिक बहुत बढ़ सा गया दिखाई दे रहा था।