17 मई : रविवार

ट्रेनर का खार का पता मालूम कर लेना शोहाब के लिए कोई कठिन काम न निकला क्योंकि उसने ‘ब्लू डार्ट’ का रौब गालिब किया था जिनके पास कि उसका कूरियर था। भरत खनाल ने खुद ही बोल दिया था कि वो अकेला रहता था और दो बजे तक घर नहीं होता था इसलिए उसका कूरियर उसे दो बजे के बाद डिलीवर किया जाए।
‘ब्लू डार्ट’ की टेलीफोन कॉल सुबह सवेरे – पाँच बजे- आई थी, इस बात का उसने कोई नोटिस नहीं लिया था। शायद इसलिए क्योंकि खुद वो अर्ली राइज़र था।
सब का अन्दाज़ा था कि वो साढ़े पाँच बजे घर से निकलेगा लेकिन फिर भी उसके पीछे लगने के लिए विक्टर और आकरे पाँच बजे ही खार पहुँच गए थे। साढ़े पाँच बजे अपनी कार खुद ड्राइव करता वो घर से निकला था और उसका पहला पड़ाव मलाड वैस्ट में साईं बाबा नगर में था।
उसकी कार लाल रंग की ‘ऑल्टो’ थी जिनका फ्रंट का बम्पर रस्सी से बंधा हुआ था और इस वजह से भी उसकी कार दूर से ही पहचानी जाती थी।
सुबह सात से दस बजे तक विमल ने अपने पूर्वपरिचित इस्साभाई विग वाला की हाज़िरी भरी जिसने वॉर फुटिंग पर विमल के लिए योगा ट्रेनर के असली हेयर स्टाइल जैसा एफ्रो विग तैयार किया।
कलमें, भवें, मूंछ और सोलपैच मामूली काम था।
सवा दस बजे तक विमल के पास वहाँ खबर आ गई कि योगा ट्रेनर अपनी उस स्लॉट की एप्वायन्टमेंट पर शबरी अपार्टमेंट्स कांदीवली ईस्ट पहुँचा हुआ था। तदोपरान्त ग्यारह बजे रोज़ी बियांको के साथ उसकी अप्वायन्टमेंट थी लेकिन कहाँ थी, ये मालूम होना अभी बाकी था।
इरफ़ान की टैक्सी में उसके साथ शोहाब और मतकरी भी थे। सब ग्यारह से दस मिनट पहले कांदीवली ईस्ट और आगे शबरी अपार्टमेंट्स के सामने वाली सड़क पर पहुँच गए जहाँ से विक्टर और आकरे ने योगा ट्रेनर के पीछे लगना था और विमल ने इरफ़ान की टैक्सी पर उसके आगे’ लगना पर। ये इन्तज़ाम योगा ट्रेनर आगे जहाँ पहुँचता, वहाँ काम आता।
आगे लगी इरफ़ान की टैक्सी कभी दाएँ, बाएँ भटकती जान पड़ती तो आकरे का काम मोबाइल पर उसे फौरन ख़बरदार करना था।
उस इन्तज़ाम के तहत लाल ‘ऑल्टो’ जैसे दो टैक्सियों के बीच सैंडविच्छ कांदीवली बैस्ट और आगे शान्तिलाल मोदी रोड पर क्रॉस रोड नम्बर दो में दाखिल हुई जहाँ तत्काल ‘ऑल्टो’ की रफ़्तार कम हुई और अभी और कम होने लगी।
यानी ऑल्टो’ अपनी मंजिल पर पहुँच रही थी जो कि एक विशाल, शांत बंगला था। उस तक पहुँचने से पहले पूर्वनिर्धारित योजना के तहत इरफ़ान ने एकाएक इतनी ज़ोर की ब्रेक लगाई कि ‘ऑल्टो’ टैक्सी की बैक से टकराती बची। तभी विक्टर की टैक्सी भी ऑल्टो’ के पीछे आ लगी।
अब ‘ऑल्टो’ सच में ही सैंडविच्छ थी। योगा ट्रेनर उतावले भाव से हॉर्न बजाने लगा और इरफ़ान को टैक्सी आगे बढ़ाने का इशारा करने लगा।
इरफ़ान ने उसे धीरज रखने का इशारा किया और शोहाब और मतकरी के साथ टैक्सी से बाहर निकला। सब ‘ऑल्टो’ की ड्राइविंग साइड में पहुँचे। इरफ़ान ने ‘ऑल्टो’ का उधर का दरवाज़ा खोला और बड़े आराम से योगा ट्रेनर को ‘ऑल्टो’ से बाहर खींच लिया। उसने चिल्लाने के लिए मुँह खोला तो शोहाब की चौड़ी हथेली ढक्कन की तरह उसके मुँह पर पड़ी। फिर तीनों उसे जबरन विक्टर की कैब की ओर ले चले।
विक्टर अपनी कैब का पिछला दरवाज़ा पहले ही खोले खड़ा था।
योगा ट्रेनर को विक्टर की कैब में धकेला गया और उसका सिर जबरन यूँ नीचे झकाया गया कि उसका माथा उसके घुटनों से जा लगा।
अब योगा ट्रेनर नहीं देख सकता था कि सामने क्या हो रहा था।
लेकिन विमल को देखने का मौका मिला था कि योगा ट्रेनर कद में उसके बराबर ही था।
यानी एक पड़ाव तो विमल इत्तफ़ाकन पार कर चुका था।
उसने इरफ़ान की कैब में से एक कोई तीन फुट लम्बा, गोल लपेटा हुआ, गिफ़्ट रैप्ड पैकेट बरामद किया और ‘ऑल्टो’ के करीब पहुँचा। उसने पैकेट पैसेंजर सीट पर लम्बा खड़ा कर दिया और ख़ुद स्टियरिंग के पीछे ड्राइविंग सीट पर सवार हुआ।
इरफ़ान तब तक वापिस अपनी कैब में पहुँच चुका था, उसने कैब को ख़ामोशी से आगे बढ़ाया।
अब ‘ऑल्टो’ के लिए पर्याप्त रास्ता था कि वो कैब के बाजू से गुज़र पाती।
आगे ही बंगले का बन्द आयरन गेट था। विमल ने हौले से हॉर्न बजाया तो एक गार्ड गेट के बाजू के वॉच बाक्स से निकल का गेट की ओर बढ़ा। पहले से जानी पहचानी ‘ऑल्टो’ पर निगाह पड़ते ही वो लपक कर गेट पर पहुँचा और उसे इतना खोला कि ऑल्टो’ पार जा पाती।
विमल ने ‘ऑल्टो’ आगे एक अर्धवृत्ताकार ड्राइव वे पर डाली और बंगले की कवर्ड पोर्टिको में ले जाकर खड़ी की। उसने एक बार हॉर्न बजाया और कार से बाहर निकल आया।
भीतर से एक सर्वेट लपकता हुआ कार के करीब पहुँचा।
“ये पैकेट सम्भालो।” – विमल अधिकारपूर्ण स्वर में बोला – “मैडम के वास्ते है। मैं भी पीछे-पीछे आता हूँ।”
“यस, सर।”
सर्वेट बोला।
उसने ‘ऑल्टो’ का परली तरफ का दरवाज़ा खोला और सीट पर पड़ा लम्बा पैकेट उठा लिया।
विमल ने कार को लॉक किया और उसका घेरा काटकर सर्वेट के करीब पहुँचा।
“चलो।” – उसने आदेश दिया। सर्वेट घूम कर आगे बढ़ा तो विमल उसके पीछे हो लिया।
वो नहीं जानता था कि इतने बड़े बंगले में मालकिन कहाँ विराजती थी लेकिन सर्वेट जानता था। उस पैकेट को साथ लाने का यही प्रयोजन था।
सर्वेट एक बैडरूम में पहुँचा जो इतना विशाल था कि एक दीवार के साथ लगी डबल बैड के आगे उससे डेढ़ गुणा जगह खाली थी। वहाँ बैड पर अब तक उस की जानी-पहचानी रूपवती महिला मिसेज़ जाधव उर्फ गुलाब उर्फ रोज़ी उर्फ रोज़ी बियांको मौजद थी। अपने योगा ट्रेनर को आया देख कर वो उठ खड़ी हुई।
विमल ने सर्वेट से पैकेट ले लिया और उसे रुखसत कर दिया। फिर वो रोज़ी की तरफ आकर्षित हुआ, शिष्टता से मुस्कुराया और भर्राये कण्ठ से बोला – “गुड मार्निंग!”
“गुड मार्निंग, भरत जी।” – वो करीब आती बोली – “ये क्या है?”
“आप के लिए एक छोटा-सा गिफ्ट है।”
“गिफ़्ट! मेरे लिए!”
“ख़ास आपके काम का।”
“अच्छा ! देखें!”
“खुद खोलिए।”
उसने विमल के हाथ से पैकेट लिया और उसे खोलने का उपक्रम करती बोली – “आपकी आवाज़ को क्या हुआ?”
“कल रात एक ड्रिंक-डिनर पार्टी में इनवाइटिड था। वहाँ न ड्रिंक्स रास आए, न डिनर। नतीजतन सुबह उठा तो गला बैठा हुआ था।”
“ओह! प्लीज़ टेक गुड केयर ऑफ युअरसैल्फ।”
“आई विल। आई विल।”
पैकेट में से एक्सरसाइज़ मैट निकला।
“जापानी है।” – विमल पूर्ववत् भर्राती आवाज़ में बोला – “लेटेस्ट है। बहुत कम्फर्टेबल है। इसलिए आपके लिए ले के आया।”
“थैक्स ए लॉट, भरत जी। सो नाइस ऑफ यू। आज योगा इसी पर।”
“ज़रूर।”
उसने पहले से फ़र्श पर बिछा एक्सरसाइज़ मैट एक ओर किया और उसकी जगह नया, जापानी, मैट बिछाया।
“अब बोलिए” – वो बोली – “आज क्या करवाएँगे?”
“आज अभी कुछ नहीं।” – विमल बोला।
“क्या मतलब?”
“आज मैंने आपका इम्तिहान लेना है कि आपको मेरे पिछले रोज़ के सिखाए योगा एक्ट्स याद रहते भी हैं या नहीं!”
“ओह! कैसे करेंगे? क्या करना होगा मेरे को?”
“कल जो मैंने सिखाया था, उसे अब मेरी प्राम्पटिंग के बिना दोहराइए।”
“कल की तरह एक घन्टा लगा के?”
“नहीं। हर आसन थोड़ा-थोड़ा कर के दिखाएँगी तो पन्द्रह-बीस मिनट काफी होंगे। ओके?”
“यस।”
वो योगा के लिए माकूल टाइट ड्रैस पहने थी, वो कभी बैठ कर, कभी लेट कर अपना कल कर सबक दोहराने लगी।
बीस मिनट पूरे होने में अभी एकाध मिनट बाकी था जबकि एक सिक्योरिटी गार्ड बैडरूम के अधखुले दरवाज़े पर प्रकट हुआ।
उस घड़ी रोज़ी वो आसन दोहरा रही थी जो कि बैठ कर बाहें और कंधे दाएँ बाएँ घुमा कर किया जाता था। संयोगवश उसका मुँह उस घड़ी अधखुले दरवाज़े की तरफ था।
“वॉट द हैल!” – वो गुस्से से बोली – “नटके, मैंने कितनी बार बोला है कि जब मेरे योगा ट्रेनर यहाँ हों तो मेरे को डिस्टर्ब नहीं करने का।”
“नहीं किया, मै'म।” – नटके नाम से पुकारा जाने वाला गार्ड अदब से बोला।
“क्या बोला?”
“आपके योगा ट्रेनर आए हों तो आपको डिस्टर्ब नहीं करने का डिस्टर्ब नहीं किया – क्योंकि योगा ट्रेनर तो अब आए हैं!”
“क्या!”
गार्ड ने अधखुले बैडरूम डोर का एक पल्ला पूरा खोला और एक बाजू हट गया।
बदहवास योगा ट्रेनर ने भीतर कदम रखा।
उस पर निगाह पड़ते ही रोज़ी उठकर खड़ी हो गई और भौंचक्की-सी कभी दरवाज़े पर खड़े योगा ट्रेनर को तो कभी विमल को देखने लगी।
“मैं बंगले पर पहुँच ही रहा था” – वो कातर भाव से बोला – “तो मुझे किन्हीं अनजान लोगों ने पकड़ लिया और मेरी कार भी छीन ली।”
“आज़ाद कैसे हुए?”
“लम्बी कहानी है।”
“मैं इत्मीनान से सुनूँगी, पहले ...” विमल करीब ही खड़ा था, रोज़ी ने उसके सिर पर झपट्टा मारा। विग उसके हाथ में आ गया।
लम्बी कलमें, भवें, मूंछ और सोलपैच विमल ने ख़ुद उतार कर रोज़ी के हवाले कर दिया।
रोज़ी यूँ उसे अपलक देखती रही जैसे ट्रांस में हो। विमल निर्दोष भाव से मस्कराया।
“सोहल!” – वो सन्दिग्ध भाव से बोली।
“दि सेम, मैग्म।” – विमल तनिक सिर नवा कर बोला – “कैसे जाना?”
“ऐसे अन्धे हौसले के लिए सोहल ही मशहूर है मुम्बई में।”
“अच्छा! मेरे को तो नहीं मालूम था! फिर तो यही कहूँगा कि ज़िक्र मेरा मुझ से बेहतर है ...”
“आ तो गए हो! जाओगे कैसे?”
“जैसे आया।”
“लाइक दैट?”
“यस। ऐनी प्रॉब्लम!”
“बुरे फंसे हो। नहीं जा सकोगे।”
“माई डियर, तुम ख़ुद मुझे जहाँ मैं चाहूँगा, छोड़ के आओगी।”
“बड़ा बोल है।”
“नेपाली को रुखसत करो। इसका यहाँ कोई काम नहीं। ये जब कल आए तो इसकी आपबीती तब सुन लेना। इसे भेज के सारे गार्ड यहाँ इकट्ठे कर लो।”
वो हिचकिचाई।
“फिर सबके साथ मिलकर फैसला करना कि मेरा अचार डालना है या मुरब्बा बनाना है।”
“भरत जी, आप जाइए।” – वो योगा ट्रेनर की तरफ घूमी – “कल मिलते हैं।”
विमल ने उसकी कार की चाबी उसकी तरफ उछाल दी जो योगा ट्रेनर ने बड़ी
“मैं आप को बाहर तक छोड़ के आती हूँ।”
उसने आगे कदम उठाया तो विमल के बाँह पकड़ कर उसे वापिस खींच लिया। उसने बिफर कर बाँह छुड़ाई तो विमल ने उसकी तरफ गन तान दी।
“ये ... ये क्या है?”
“मवाली की माशूक हो, गन नहीं पहचानती!”
“तो इसलिए कह रहे थे कि तुम जहाँ चाहोगे, मैं तुम्हें छोड़ के आऊँगी?”
“कोई शक!”
“मुझ पर गोली चला के ख़ुद बच जाओगे?”
“नेपाली को रुखसत करो।”
रोज़ी ने योगा ट्रेनर को इशारा किया। तत्काल वो वहाँ से विदा हुआ।
“गार्ड का क्या सोचा है?” – उसके पीछे विमल बोला।
“ये यहीं टिकेगा।” – रोज़ी बोली – “ज़रूरत पड़ने पर बाकी गार्ड्स को भी
“कितने हैं कुल?”
“ऐसे पूछ रहे हो जैसे इस गन के दम पर सब से निपट लोगो!”
“दर्जन से ऊपर हैं तो ... प्रॉब्लम होगी।”
“क्या कहने! इतना गुमान!”
“झूठा तो नहीं! ऐसे ही तो कोई सोहल नहीं बन जाता!”
“अब असल बात पर आओ। क्या चाहते हो?”
“तुम लोगों के पाले में कोई हिलइल चाहता था जो मेरे कुछ कर पाने से पहले ही हो गई। तुम्हारा ट्रेनर पता नहीं कैसे आज़ाद हो गया और यहाँ पहुँच गया।
आगे तुमने देखा ही कि क्या हुआ!”
“वो न पहुँचता तो क्या करते?”
“तुम्हें काबू में तो फिर भी करता लेकिन तब कोई गार्ड यहाँ न होता।”
“उसके बाद?”
“अभी मालूम पड़ता है। ये तसवीर देखो।”
विमल ने उसे गुमनाम गैंगस्टर की तसवीर दिखाई। तसवीर पर निगाह पड़ते ही रोज़ी की आँखों में चमक आई। बड़ी मुश्किल से उसने उस वक्त के अपने जज़्बात पर काबू पाया।
“कौन है ये?” – वो बोली।
“तुम्हें नहीं मालूम?” – विमल उसे घूरता बोला। “नहीं।”
“झूठ बोलना आर्ट होता है। कामयाबी से बोल पाना हर किसी के बस का नहीं होता।”
वो ख़ामोश रही।
“ये मवालियों के फेमस गैंग ऑफ फ़ोर’ में से एक है।”
“कैसे मालूम?”
“ये दूसरी तसवीर देखो।”
विमल ने उसे साउथएण्ड बार से निकाली ग्रुप फोटो का प्रिंट दिखाया तो वो चौंकी।
“ये ग्रुप फोटो तो .... तो ...”
“साउथएण्ड बार में तुम्हारे बॉस के ऑफिस की शोभा थी – अभी भी है।”
“किसी की मजाल नहीं होती बिना इजाज़त उस ऑफिस में कदम रखने की।”
“माई डियर, मैं कोई नहीं हूँ। मैं हवा का झोंका हूँ जिसे कोई नहीं रोक सकता।”
वो फिर ख़ामोश हो गई। “ये साउथएण्ड बार में तुम्हारे बॉस के ऑफिस में टंगी ग्रुप फोटो की कॉपी है। ग्रुप फोटो में कोई इज़ाफा है तो वो तुम हो। इस ग्रुप फोटो में राजू-राजा-राजा सा'ब के अलावा वो गुमनाम गैंगस्टर भी शामिल है जिसकी तुम्हें मैंने अलग से तसवीर दिखाई। नाम बोलो।”
उसकी ख़ामोशी बरकरार रही।
“मुझे उम्मीद है कि तुम्हारा बाँस तुम्हारे जैसा ढीठ नहीं होगा। कहाँ पाया जाता है?”
वो परे देखने लगी।
“मेरे हाथ में गन है।” — विमल का स्वर शुष्क हुआ — “लगता है तुम उसे लॉलीपॉप समझ रही हो!”
“क्या करोगे? जान ले लोगे?”
“नहीं। ऐसा कुछ करूँगा कि आइन्दा किसी योगा ट्रेनर की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वो अंजाम जान लेने से बदतर होगा। कितनी फीस भरती हो नेपाली की?”
“तुमसे मतलब?”
“कोई मतलब नहीं, सोहनयो! इतनी-सी बात पर क्या भड़क कर दिखाना!”
“बीस हज़ार।”
“एक घन्टे के! बल्ले, भई! पैसा ख़ुद न कमाना पड़े तो खर्चना कितना आसान है!”
“शट अप!”
“मेरा डिनर तक यहाँ रुकने का कोई इरादा नहीं। अपना इरादा बोलो।”
“नहीं बोलूँगी तो क्या करोगे? मुझे शूट कर दोगे?”
“इस बाबत तुम्हारे लिए गुड न्यूज़ है।”
“क्या ?”
“जब तक कोई भारी मजबूरी न आन खड़ी हो, मैं औरत पर हाथ नहीं उठाता। तुम्हारा इरादा है मुझे मजबूर करने का!”
वो कई क्षण ख़ामोश रही, फिर निर्णायक भाव से बोली – “मैं तुम्हें एक बार फिर राजा सा'ब से मिलवा सकती हूँ।”
“दैट्स गुड न्यूज़। कब?”
“अभी।”
“क्या मतलब? राजा सा'ब यहीं, इसी बंगले में रहता है?”
“हाँ।”
“ओह!”
“क्या ओह?”
“तुम उसके साथ लिव-इन रिलेशनशिप में हो, ये ओह।”
“इसमें हैरान होने वाली क्या बात है? आजकल तो अर्बन सोसायटी में लिव इन रिलेशनशिप्स बहुत कॉमन हैं!”
“होंगी। मैं ज़रा पुराने जमाने का आदमी हूँ। तो ये बंगला राजा सा'ब का आवास है जिसमें उसके साथ तुम भी पाई जाती हो?”
“ऐसे ही सही।”
“तुम तो कुछ बता नहीं रही हो इसलिए मुझे राजा सा'ब से मिल के खुशी होगी।”
“मैं करती हूँ खुश। ले के चलती हूँ।”
“कहाँ?”
“बंगले के बैस्ट विंग में।”
“राजा सा'ब इस वक्त वहाँ है?”
“हाँ।”
“लेट स्लीपर है? सोया पड़ा है?”
“नहीं।”
“यहाँ इतना कुछ हो चुका, उसे कोई खबर नहीं?”
“ये पुराने ज़माने का बना बंगला है इसलिए बहुत फैला हुआ है और दोनों विंग्स के बीच में एक कवर्ड यार्ड है।”
“आई सी।”
“मैं ले के चलती हूँ।”
“नहीं। गार्ड को डिसमिस करो और उसे यहाँ बुलाओ।”
“गार्ड ही तो बुला के लाएगा!”
“फोन करो।”
“लेकिन ....”
“लेडी, माई पेशेंस इज़ वियरिंग थिन।”
“ओके। ओके। मैं फोन करती हूँ।”
“पहले गार्ड का जो करना है, करो।”
रोज़ी ने गार्ड को डिसमिस किया और मोबाइल से कॉल लगाई। तत्काल राजा सा'ब वहाँ पहुँचा। रोज़ी के साथ एक मर्द को देख कर वो ठिठका, उसने उलझनपूर्ण भाव से रोज़ी की तरफ देखा।
“सोहल।” – रोज़ी ने संजीदगी से घोषणा-सी की। वो चौंका, उसने हैरानी से सोहल की तरफ देखा।
“यहाँ?” – फिर बोला।
“हाँ।” – रोज़ी ने जवाब दिया।
“यहाँ पहुँच गया!”
“ज़ाहिर है।”
“कैसे? यहाँ का पता कैसे जाना?”
“बाज़ीगर ने बाज़ीगरी दिखाई। लेकिन अब ये बात अहम नहीं – जब ये यहाँ दिखाई दे रहा है तो अहम नहीं।”
“हो” – उसने ज़ोर की हुंकार भरी फिर विमल से मुखातिब हुआ – "हमने तुम्हारी तरफ जो है, दोस्ती का हाथ बढ़ाया, उसकी तुमने ये कद्र की! हमारा ही माल लूट लिया!”
“गिला शिकवा बैठ कर करें” – विमल बोला – “तो कैसा रहे?”
बैड से विपरीत सिरे पर बैठने का प्रबन्ध था। सहमति में सिर हिलाता राजा सा'ब वहाँ मौजूद सोफे की तरफ बढ़ा लेकिन विमल रोज़ी की बाँह थामे उससे पहले सोफे पर बैठ गया।
राजा सा'ब सकपकाया।
“इसके पास गन है” – रोज़ी बोली – “जिससे ये मेरे को कवर किए है। ये मुझे अपने से अलग नहीं होने देगा।”
“क्यों भला?”
“क्योंकि मेरे को यहाँ से खानगी का ज़रिया बना के रखना चाहता है।”
“ये अकेला?”
“अब कहाँ हूँ अकेला?” – विमल मुस्कुराता बोला – “तुम्हारी लिव-इन ब्यूटी मेरे साथ है। मेरी गन मेरे साथ है। हम तीन जने हैं जो तुम्हारे गार्ड्स की गारद का मुकाबला करने के लिए काफी हैं।”
“इसका बाल भी बाँका हुआ तो ...”
“नहीं होगा। क्यों होगा भला? ये मुझे बाहर तक छोड़ के आएगी और फिर हवा की तरह आज़ाद होगी।”
“अभी तक गए क्यों नहीं?”
“मैडम की राय थी मुझे तुम से मिल के, बात कर के जाना चाहिए था।”
“ओके। करो बात!”
“ऐसे कैसे करूँ? खम्बे की तरह मेरे सिर पर खड़े रहोगे तो कैसे होगी बात चैन से, आराम से? बैठ जाओ।”
वो एक सोफाचेयर पर ढेर हुआ।
“शुक्रिया। अभी तुमने दोस्ती का, लुटे माल का हवाला दिया था। मैंने दोनों का जवाब देता हूँ। बिग बॉस, दोस्ती का हाथ बढ़ाया जाना ही काफी नहीं होता, उसे थामा भी जाना चाहिए वर्ना एकतरफा दोस्ती किस काम की! दूसरे, तुमने कहा कि तुम्हारा माल लूट लिया। जवाब है कि अव्वल तो माल तुम्हारा नहीं था, कोई इक्वेशन उसे तुम्हारा बनाती थी तो सारा नहीं।”
“क्या मतलब?”
“बीच में ये बड़ा डाकू पड़ गया” – विमल ने हाथ बढ़ा कर गुमनाम गैंगस्टर की तसवीर उसकी गोद में डाल दी – “जो तुम्हारे गैंग ऑफ फ़ोर में से एक है।”
राजा सा'ब ने तसवीर उठा कर उसे गौर से देखा।
“असल रकम में से दस खोखा माल इसने झटक लिया ...” राजा सा'ब चौंका।
“डायन भी सात घर छोड़ देती है लेकिन तुम्हारे इस जोड़ीदार को ऐसी नफीस बातों पर कोई ऐतबार नहीं।”
“जानते हो ये कौन है?”
“अब जानूँगा न!”
“अभी जानते नहीं तो कैसे मालूम है कि जो किया बताते हो, इसने किया?”
“मेरे पास इसकी करतूत का सबूत है।”
“क्या? क्या सबूत है?”
“पहले कुबूल करो कि ये गैंग ऑफ फ़ोर में से एक है!”
“पहले तुम बताओ कि ये बात तुम्हें कैसे मालूम है?”
विमल ने ग्रुप फोटो की कॉपी पेश की।
“ये!”– वो चौंका – “ये ग्रुप फोटो तो.....”
“साउथएण्ड बार के तुम्हारे ऑफिस में लगी है।”
“वहाँ भी पहुँच गए!” – उसके मुँह से निकला।
“मैंने मैडम को बोला था मैं हवा का झोंका हूँ जो कहीं दाखिले के लिए किसी की इजाज़त का मोहताज नहीं होता। बहरहाल, गौरतलब बात ये है कि इस ग्रुप फोटो में जो बाकी तीन जने हैं, उन में से एक ये शख़्स भी है जिसने अमानत में खयानत की, रकम का सफर अभी शुरू भी नहीं हुआ था कि उसमें से दस करोड़ रुपया पार कर दिया।”
“कैसे मालूम?”
“गुमनाम गैंगस्टर की ये अकेली तसवीर ज्वेलर वसन्त राव कालसेकर के मैरीन ड्राइव के शोरूम में सीसीटीवी कवरेज के इन्तज़ाम में से उस क्लिप में से निकाली गई थी जिसमें इस शख्स ने पन्द्रह तारीख शुक्रवार को, यानी लूट की वारदात के दिन, सुबह सवेरे शोरूम में तब हाज़िरी भरी थी जब कि अभी स्टाफ की आमद का भी वक्त नहीं हुआ था। अपने इस जोड़ीदार से सवाल करना कि रोकड़े की डिलीवरी के दिन सुबह सवेरे कालसेकर के ज्वेलरी शोरूम ताज ज्वेलर्स में क्या कर रहा था?”
उसकी पेशानी पर गहन सोच की सिलवटें प्रकट हुई।
“और”– विमल आगे बढ़ा – “उसे कैसे मालूम था कि इतनी सुबह – जबकि शोरूम खुलने में अभी ढेर टाइम बाकी था – ज्वेलर अपने शोरूम में मौजूद होगा?”
पेशानी की सिलवटें और गहरी हुईं।
“और” – विमल ने जैसे तपते लोहे पर चोट की – “तब इसके साथ अनिल चिकना क्यों था?”
“कौन?” – वो सकपकाया।
“अनिल चिकन एकेए अनिल विनायक।”
“ओह! क्यों था?”
“बाकी के सवालों के जवाब नहीं जानना चाहोगे?”
“वो जवाब ऑबवियस हैं। बच्चा भी समझ सकता है कि ज्वेलर को सुबह सवेरे शोरूम में जो है, हाज़िरी भरने के लिए मजबूर किया गया। तुम अनिल विनायक की बोलो। तब अनिल विनायक साथ क्यों था?”
“क्योंकि ज्वेलर कालसेकर इस वन ऑफ दि गैंग ऑफ फ़ोर को पहचानता नहीं था लेकिन अनिल विनायक से वो अपने शोरूम में ही पहले मिल चुका था। अनिल विनायक की उसके साथ ज़रूरत उसे कालसेकर से इन्ट्रोड्यूस कराने के लिए थी, कालसेकर को ये जताने के लिए थी कि वो गैंग में तुम्हारे जैसी ही बड़ी हैसियत का मवाली था। अनिल विनायक का वहाँ बस इतना ही रोल था। अब सोचो कि जो शख्स उस सुबह हट्टा-कट्टा, चाक-चौकन्द, तन्दुरुस्त उसके साथ था वो शाम तक माहिम क्रीक में तैरती लाश में कैसे तब्दील हो गया!”
“कैसे तब्दील हो गया?”
“ये भी कोई पूछने की बात है! इतने बड़े भाई हो, तुम से बेहतर कौन समझता है कि इस धन्धे में गवाह कोई नहीं छोड़ता।”
“ओह!”
“अभी मैंने उस गुमनाम गैंगस्टर के और कारनामे भी बयान करने हैं ....”
“अभी और भी?”
“हाँ। लेकिन अब पहले उसका नाम बोलो।”
वो ख़ामोश रहा।
“जब मेरे पास उसकी तसवीर है तो अन्तपन्त तो मैं उसका नाम जान ही लूँगा। इसलिए इस बाबत तुम्हारी ख़ामोशी कोई ख़ास मायने नहीं रखती।”
“अब तक क्यों न जाना?”
“टाइम का तोड़ा था क्योंकि और भी काम थे।”
“मेंडिस! नेविल मेंडिस नाम है इस बैकबाइटर का।”
“ग्रुप फोटो में बाकी दो में बकरा दाढ़ी वाला माइकल गोटी है?”
उसने हैरानी से विमल की ओर देखा।
“हैरान होने वाली कोई बात नहीं। नाम से तो मैं वाकिफ़ ही था, उसकी गोटी’ से, बकरा दाढ़ी से, अन्दाज़ा लगाया कि उसका नाम माइकल गोटी था। अब बोलो, क्या कहते हो मेरे अन्दाज़े के बारे में?”
“बहुत स्मार्ट हो! ठीक है तुम्हारा अन्दाज़ा।”
“गुड! अब जो बाकी एक सूरमा बच गया, उसका नाम भी बोल दो!”
“दिवाकर झाम। दिवाकर झाम है उसका नाम।”
“सो दि गैंग ऑफ फ़ोर इन डिसैंडिंग ऑर्डर ऑफ इम्पॉर्टेस इज़ राजू-राजा राजा सा'ब, माइकल गोटी, नेविल मैंडिस एण्ड दिवाकर झाम। ओके?”
“ओके”
“डिफॉल्टर का क्या करोगे?”
“क्या करूँगा?”
“आई मीन, भुगत लोगे?”
“तुम मुझे जो है, बहुत कम करके आँक रहे हो! मुझे पिलपिला गया ‘भाई’ समझ रहे हो!”
“न-हीं।”
“हिचकिचा के जवाब दे रहे हो। इस बात को जो है, मगज में रख के जवाब दो कि ऐसे ही मैं गैंग का नम्बर टू नहीं बन गया!”
“यानी गुमनाम गैंगस्टर की – जिसका नाम अब मुझे मालूम है – खैर नहीं!”
“ये भी कोई कहने की बात है! बहुत जल्द बहुत बुरे अंजाम को पहुँचेगा।”
“दस खोखा रोकड़े का पता बता चुकने के बाद?”
“बिलाशक!”
“यानी तुम्हें मेरी बात पर यकीन है कि उसी ने कालसेकर को मजबूर किया कि डिलीवरी के लिए तैयार मुकम्मल रकम में से दस खोखा रकम कालसेकर उसे सौंप दे?”
“हाँ।”
“उसी ने अनिल चिकना उर्फ विनायक को ऑफ किया ताकि गवाहन बचे?”
“हाँ।”
“जब इतनी हाँ हैं तो उनमें एक बात, एक ख़ास बात और भी जोड़ो।”
“क्या ख़ास बात?”
“नेविल मेंडिस गैंग ऑफ फ़ोर में से एक था, तुम्हारा ऐतबारी था लेकिन
मुकाम तक सेफ़ पहुँच जाना अफोर्ड नहीं कर सकता था। रोकड़ा सेफ़ शिवाजी चौक पहुँच जाता तो रकम में दस खोखा की शार्टेज फौरन उजागर हो जाती। फिर उस शार्टेज की बाबत सबसे पहले सवाल कालसेकर से होता जिसको असलियत बतानी पड़ती कि कैसे अनिल चिकना के साथ आया गैंगस्टर उसको मजबूर करके दस खोखा निकाल ले गया था। लिहाज़ा मेंडिस की सलामती इसी में थी कि रकम अपने मुकाम पर न पहुँचती। यूँ गैंग में किसी को कभी ख़बर न लगती कि जो रकम रास्ते में लुटी, वो कितनी थी।”
“वो सब अब मैं समझता हूँ।”- राजा सा'ब उतावले लहजे में बोला – “आगे
बढ़ो।”
“एम्बुलेंस में रकम ढोई जाने का आइडिया किसका था?”
वो ख़ामोश हो गया।
“जवाब दो!”
“वो क्या है कि” – राजा सा'ब तनिक विचलित भाव से बोला – “कहने को तो आइडिया जो है, मेरा था लेकिन वो सुझाया मुझे कुबेर पुजारी ने था जो कि गैंग का ओहदेदार है और जिसने कालसेकर की माँग पर, बल्कि ज़िद पर, मेरी कालसेकर से बात कराई थी ताकि उसकी तसल्ली हो जाती कि उसका वास्ता जो है, जेनुइन पार्टी से था, बिग बॉस से था।”
“जो कि तुम हो?”
“बरोबर!” – उसके स्वर में गर्व का पुट आया।
“एम्बूलेंस का आइडिया तुम्हें कुबेर पुजारी ने सुझाया, तुमने उसे आगे ज्वेलर को फॉरवर्ड किया, तो उसकी मेंडिस को- नेविल मेंडिस को – कैसे ख़बर लग गई?”
उसने उस बात पर विचार किया।
“कुबेर पुजारी से लगी?” – विमल ने उसे ज़ुबान दी।
“यही मुमकिन जान पड़ता है।”- राजा सा'ब संजीदगी से बोला– “आजकल गैंग में हर कोई जो इम्पॉर्टेट करके भीड़ है, ओहदेदार है, वो गैंग ऑफ फ़ोर में से जो है, किसी न किसी का ख़ास है। मेरे ख़याल से पुजारी मेंडिस का ख़ास था जिसकी कि मेरे को कभी ख़बर न लगी।”
“मेंडिस का ख़ास! लेकिन रिपोर्ट तो वो माइकल गोटी को करता था?”
“तुम्हें कैसे मालूम?”
“मालूम किसी तरह से। जवाब दो!”
“जवाब यही है कि पुजारी की मेंडिस से भी कोई सैटिंग हो सकती थी जिसकी मुझे ख़बर नहीं थी।”
“फिर भी कहते हो कि तुम्हें पिलपिलाया हुआ ‘भाई’ न समझा जाए!”
राजा सा'ब से जवाब देते न बना।
“बहरहाल” – विमल बोला – “बावजूद इसके कि ट्रांसपोर्टेशन के कई ज़्यादा सेफ़ ज़रिए मुमकिन थे, मेंडिस ने न सिर्फ तुम्हारे सुझाए एम्बूलेंस पर ज़ोर दिया, इस बात का बाकायदा इन्तज़ाम किया कि दादर पर के नाके की पुलिस हाइजैकर्स की मदद करे!”
“नॉनसेंस!”
“गुलदस्ते की ताकत बता कर। इसलिए जब रोकड़े वाली एम्बूलेंस के पिछले पहिये सूआ घोंप कर पंक्चर किए जा रहे थे, नाके पर तैनात सिपाही यूँ परे देखने लगे थे जैसे जानते ही नहीं थे पीठ पीछे क्या हो रहा था! इसी वजह से खासतौर से नाके पर तैनात इंस्पेक्टर की तवज्जो में लाया गया कि ट्रैफिक के पीछे एक खाली एम्बूलेंस खड़ी थी जिसको आगे बुला कर खुद इंस्पेक्टर ने मरीज़ वाला स्ट्रेचर उस एम्बुलेंस में लदवाने की ज़िद की।”
“वो ... वो इन्तज़ाम ... तुम्हारा नहीं था, जिसने कि असल में रोकड़ा
लूटा?”
“मेरे से बेहतर कौन जानता हो सकता है कि वैसा कोई इन्तज़ाम मेरा नहीं था! वो इन्तज़ाम तो मेरी सहूलियत के लिए एकाएक ही मेरी झोली में आ कर टपका था।”
“हम्म!”
“अब मैं कनफर्म करता हूँ कि हाइजैक्ड रोकड़ा दस पेटी शॉर्ट था। ये तसदीक मैं ही कर सकता था क्योंकि लूट का माल मेरे कब्जे में था।”
“फर्ज़ करो कि किसी तरीके से ये बात खुल जाती ...”
“कोई तरीका नहीं था।”
“अरे, मैंने फर्ज़ करने को बोला न!” — वो झल्लाया।
“ओके! ओके! भाव नहीं खाने का।”
“अगर ये बात जो है, किसी तरीके से खल जाती तो कैसे मेंडिस इसे सँवारता?”
“वो कालसेकर को डिफॉल्टर करार देता।”
“कालसेकर की उंगली मेंडिस पर उठती!”
“मेंडिस कालसेकर को झठा करार देता। बतौर वन ऑफ दि गैंग ऑफ फ़ोर, तुम्हारा ऐतबार मेंडिस पर होता या कालसेकर पर होता जो पहले भी ऐसी नाकाबिलेबर्दाश्त हरकतें कर चुका था?”
“अनिल विनायक कैसे एकाएक ऑफ हो गया?”
“इसका जवाब मैं दे चुका हूँ। गवाह कौन छोड़ता है!”
“मेंडिस ने उसका विकेट लिया?”
“मिलोगे न! पूछना! दस खोखा रोकड़े का अता-पता कुबूलवाने से तो ये काम आसान ही होगा!”
“पूलूंगा।” – राजा सा'ब दृढ़ता से बोला – “और यूँ पूलूंगा कि वो उस घड़ी को याद कर के विलाप करेगा जब वो पैदा हुआ था।”
“ये काम अब करोगे? पहले कभी न सूझा?”
“बोले तो?”
“तुम गैंग में नम्बर वन की जगह लेना चाहते हो। खुद नम्बर वन बनना चाहते हो लेकिन इस सिलसिले में तुम्हारे रास्ते में जो कम्पीटीशन खड़ा है, उसकी शिनाख्त तुम नहीं करना चाहते। उसको ख़ातिर में तुम नहीं लाना चाहते।”
“अभी भी बोले तो?”
“क्या बोले तो? ख़ुद समझो। फर्ज़ करो नम्बर वन को कुछ हो जाता है तो नम्बर वन पोज़ीशन के लिए तुम्हें कम्पीटीशन देते तीन दावेदार और खड़े हो जाएँगे। अब समझे?”
उसने सहमति में सिर हिलाया।
“अब दो।” — फिर बोला – “बैकबाइटर मेंडिस को जो है, तुम ख़त्म समझो।”
“लाइक दैट?”
“यस! लाइक दैट।”
“नो प्रॉब्लम?”
“नो प्रॉब्लम।”
“खुद हैंडल करोगे?”
“बिलाशक!”
“मुझे उम्मीद नहीं थी कि ऐसे छुपे रुस्तम निकलोगे।”
“निकलँगा नहीं, मैं हँ। देखना!”
“ऐसे दमदार हो तो कभी कम्पीटीशन ख़त्म करने का ख़याल न आया!”
“अब ... नहीं ही आया।”
“अब आ गया तो इस बाबत अब कुछ करो।”
“क्या?”
“अरे, बोला न! कम्पीटीशन ख़त्म करने की जुगत करो। गैंग ऑफ फ़ोर का यूँ वजूद ख़त्म करो कि एक तुम ही तुम बाकी बचे दिखाई दो। फिर जब नम्बर बन की जगह लेने की नौबत आएगी तो तुम्हारा कोई कम्पीटीटर नहीं होगा, बस तुम ही तुम होगे। नहीं?”
उसने जवाब न दिया, उसके चेहरे पर सोच के गहन भाव आए।
“नाज़ुक मसला है।” — विमल बोला – “मैडम से भी मशवरा कर देखना इस बारे में।”
“इससे?” — वो सकपकाया।
“या कोई और करीबी हो तो उससे। मैडम से ज़्यादा करीबी है कोई?”
उसने जवाब न दिया।
“कहीं ये तो नहीं सोच रहे हो कि हुस्न का अक्ल से क्या रिश्ता!”
“नॉनसेंस!”
“वैसे एक बात बताओ। तुम्हारे तीन जोड़ीदारों में से किसी का – या सब का – इतनी हसीनतरीन, जन्नत की हूर जैसी मैडम पर दिल न आया!”
“क्या बकते हो?”
“खुल्लमखुल्ला नहीं तो चोरी-चोरी चुपके-चुपके!”
“शट अप!”
“समझो हो गया। अभी काफी सोच लिया हो तो, अब जवाब तो दो। कैसा लगा मेरा आइडिया कम्पीटीशन खत्म करने का? गैंग ऑफ फ़ोर को गैंग ऑफ वन करने का और फिर नम्बर टू से प्रोमोट होकर नम्बर वन बनने का?”
“तुम दो बातों को आपस में मिक्स कर रहे हो। कम्पीटीशन ख़त्म करना जुदा मसला है, नम्बर वन बनना जुदा मसला है। कम्पीटीशन जो है, कामयाबी से ख़त्म हो भी गया, गैंग ऑफ फ़ोर बाई डैथ ऑफ थ्री डिसबैंड हो भी गया तो इतने से ही जो है, मैं नम्बर वन नहीं बन सकता। नम्बर वन के होते मैं नम्बर वन बनने का सपना भी नहीं देख सकता। उसके लिए नम्बर वन का न होना ज़रूरी है और ये काम जो है, मैं पहले ही बोल चुका हूँ मैं ख़ुद नहीं कर सकता।”
“लेकिन अपने मिशन के करीब तक तो पहुँच सकते हो! जब नम्बर टू के आजू-बाजू बराबरी करने वाला कोई नहीं होगा तो...”
“तो भी ज़रूरी है कि ये काम कोई ऐसा शख़्स करे जिसका मुझे पूरा भरोसा
हो – जैसे कि तुम हो!”
“मेरा जवाब तुम्हें मिल चुका है।”
“तुम्हारा जवाब जो है, दो शर्तों पर मुनहसर था। एक ये कि मैं वजह बताऊँ कि ये काम मैं ख़ुद क्यों नहीं कर सकता! दूसरी ये कि उस काम की एग्जीक्यूशन के दौरान मैं तुम्हारा बन्धक बन के रहूँ। ठीक?”
“हाँ। क्या कहना चाहते हो?”
“यही कि एक शर्त से मैं हटता हूँ, एक से तुम हटो तो हमारा बीच में समझौता हो सकता है।”
“एक्सप्लेन!”
“मुझे बन्धक बना के रखने वाली अपनी ज़िद तुम छोड़ दो तो मैं इन स्ट्रिक्ट कंफीडेंस तुम्हें बताने को तैयार हूँ कि क्यों मैं ख़ुद नम्बर वन को ऑफ़ नहीं कर सकता।”
“नो!” – विमल पुरज़ोर लहजे से बोला।
“क्यों नो?”
“तुम्हारे पर मेरा कोई ज़ोर न होने की सूरत में मेरा रिस्क बहुत ज़्यादा है। जो मेरे से कराओगे, वो मुझे एलीमिनेट करने की तुम्हारी कोई साजिश हो सकती।”
“तुमने पहले भी कहा लेकिन ऐसी कोई बात नहीं।”
“न हो। लेकिन हो तो सकती है न! सोहल की विकेट लेने की तमन्नाइयों की
कमी नहीं है मुम्बई में।”
“मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं।”
“क्या पता लगता है!”
वो ख़ामोश रहा।
“बिना शर्त अपनी मजबूरी की वजह बताओ तो मैं विचार कर सकता हूँ तुम्हारी पेशकश पर।”
“फिर जल्दी क्या है? अभी तो पहले तुमने कम्पीटीशन ख़त्म करना है। क्या?”
“वो तो है!”
“पहला काम पहले। उसके बाद ... देखेंगे।”
वो उठ खड़ा हुआ, उसने बाँह पकड़ कर रोज़ी को जबरन अपने साथ उठाया और यूँ उसके साथ सट कर खड़ा हुआ कि उसके पहलू से सटी गन थोड़े किए किसी को दिखाई न देती।
राजा सा'ब भी उठा।
“तुम्हारा सामान”- विमल बोला – “बड़ी हद दस मिनट में सेफ़ यहाँ वापिस होगा। ओके?”
उसने अनिच्छा से सहमति में सिर हिलाया।
“गुड। इजाज़त दो।”
“एक मिनट रुको।”
“कोई ख़ास बात रह गई?”
“हाँ।”
“बोलो वो भी!”
“शेकड़ा वापिस करो।”
“क्या कहने!”
“वो तुम्हारा नहीं था।”
“तुम्हारा था?”
“हमारे लिए था।”
“माई डियर नम्बर टू, पोज़ेशन इज़ नाइन प्वॉयन्ट ऑफ लॉ।”
“बोले तो?”
“जिसकी लाठी, उसकी भैंस।”
“जो तुम कह रहे हो, वो तुम्हारी – सोहल की – स्थापित छवि के खिलाफ है।”
“अव्वल तो ऐसा है नहीं, है भी तो जैसे वक्त बदलते देर नहीं लगती, वैसे आदमजात का मिजाज बदलते भी देर नहीं लगती।”
“फैंसी बातें हैं। स्ट्रेट बात सुनो। हमारी मुखालफत बहुत भारी पड़ेगी।”
“ओह! ये बात!”
“क्या बात?”
“बखिया अभी जिन्दा है और वही तुम्हारे ऊपर नम्बर वन है।”
“ओ, शट अप!”
“तभी उसके खिलाफ ख़ुद कोई कदम उठाने की तुम्हारी मजाल नहीं हो रही। मेरी मजाल परखी हुई है इसलिए ...”
“आई सैड शट अप।”
“ओके, बॉस।”
“फिर सुनो। हमारी मुखालफत बहुत भारी पड़ेगी।”
“धमकी दे रहे हो?”
“वॉर्निंग! या जो भी तुम समझो।”
“यानी दोस्ती का फर्जी हाथ बढ़ाया!”
“तुमने थामा किधर! ख़ुद ही तो बोले!”
ऐसा है भी तो, राजू-राजा-राजा सा'ब, फिलहाल – रिपीट, फिलहाल, वक्ती तौर पर – मैं तुम्हारे खिलाफ नहीं हूँ। सोहल के हवाले से ये बिग न्यूज़ है, बड़ी तसल्ली है।”
“किसके लिए?”
“तुम्हारे लिए। नम्बर वन, जो कोई भी वो है, अपने लिए भी समझे तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं।’
“बहुत बड़ा बोल बोल रहे हो।”
“तो छोटा बोल सुनो, अगरचे कि मिजाज में आए। पहले अपने जोड़ीदार से, वन ऑफ दि गैंग ऑफ फ़ोर से, दस खोखा रोकड़ा वापिस वसूली की गुड न्यूज़ दो; जमा, गुड न्यूज़ दो कि उस गद्दार की विकेट तुमने ले ली, उसके बाद ... . उसके बाद बाकी रोकड़े का ज़िक्र उठाना।”
“लेकिन ...”
“नो, नो लेकिन। नो मोर बिकरिंग, प्लीज़।”
उसने गन की नाल से रोज़ी की पसलियों को टहोका। रोज़ी ने तत्काल आगे कदम बढ़ाया। दोनों यूँ साथ चले जैसे कोई अदृश्य डोर उनको आपस में बाँधे थी।
“पीछे न आना।” – आगे बढ़ते विमल ने चेताया – “गार्ड्स को अजीब लगेगा, शक करेंगे।”
राजा सा'ब ने जैसे फाँसी लगते सहमति में सिर हिलाया। उसको पीछे ठिठका खड़ा छोड़ कर दोनों बंगले से बाहर की ओर बढ़ने लगे तो विमल दबे स्वर में बोला – “कोई बातचीत करो, खामख़ाह की बातचीत करो, बातचीत को बीच-बीच में अपनी खनकती हँसी में पंचुएट करती चलो वर्ना गार्ड शक करेंगे, कोई बड़ी बात नहीं कि भाँप जाएँ कि हम दोनों के बीच कुछ नॉर्मल नहीं था। ओके?”
रोज़ी ने सहमति में सिर हिलाया।
“दैट्स लाइक ए गुड गर्ल! स्टॉर्ट नाओ।”
हँसी-खुशी बतियाने का पाखण्ड करते दोनों ने फ्रंट यार्ड को पार किया तो एक गार्ड ने लपक कर आउटर गेट खोला।
गेट से गुज़रते विमल ने हौले से उसे गन की नाल से कोंचा।
“पाँच मिनट में लौटती हूँ।” - अपने स्वर को भरसक सहज बनाती बो बोली
“गेट पर ही रहना।”
“बरोबर!” — गार्ड बोला। दोनों ने बाहर सड़क पर कदम रखा।
सड़क सुनसान पड़ी थी।
क्या माजरा था?
क्या उस सन्नाटे का योगा ट्रेनर के एकाएक बंगले में पहुँच जाने से कोई रिश्ता था?
वो दोनों आयरन गेट से कदरन दूर निकल आए तो विमल ने इरफ़ान का मोबाइल बजाया।
इरफ़ान की टैक्सी वापिसी के रास्ते पर दौड़ी जा रही थी।
पैसेंजर सीट पर विमल था और शोहाब पीछे बैठा था। मतकरी, जो आया उनके साथ था, अब विक्टर की कैब में विक्टर और आकरे के हवाले था।
रोज़ी बियांको को ब्लॉक के मोड़ पर से वापिस भेज दिया गया था।
“क्या हुआ था?” – विमल उत्सुक भाव से बोला – “योगा ट्रेनर एकाएक आज़ाद कैसे हो गया? ऐन गलत वक्त पर भीतर बंगले में मेरे सिर पर कैसे आन खड़ा हुआ?”
“पुलिस का पंगा पड़ा, बाप।” – इरफ़ान बोला।
“क्या बोला?”
“टिरैफिक पुलिस का। यकायक उनकी एक जीप उस सड़क पर आन टपकी और इंचार्ज सब-इंस्पेक्टर हमें घुड़कता बोला कि उस एरिया में कैब जैसे कम ... कम ... तू बोल, शोहाब!”
“कमर्शियल व्हीकल्ज़ की ऐन्ट्री मना थी।” – शोहाब बोला।
“वही।” – इरफ़ान बोला – “मैं बोला बंगले वाला भीड़ लोग कैब बुलाया। सब-इंस्पेक्टर साला फुल चिल्लाक! साला घौंचू बोला, दो कैब काहे वास्ते! दोनों में पहले से पैसेंजर काहे वास्ते! फिर बोला फिफ्टीन मिनट्स से बॉच करता था, अगर कोई बंगले से कैब बुलाया तो तब तक कैब पर पहुँचा काहे वास्ते नहीं!”
“सब ताड़ के रखे था।”
“हम सब-इंस्पेक्टर से बहस कर रयेले थे कि विक्टर की कैब में बैठेला नेपाली भीड़ यकायक ज़बरदस्ती कैब से बाहर निकला और लपकता-सा जाकर बंगले में दाखिल हो गया। पुलिस की मौजूदगी में हम उसको नहीं रोक सकते थे, क्योंकि ज़ाहिर तौर पर उसके साथ कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं कर सकते थे। बोले तो नेपाली की बन आई। दौड़ के बंगले की हिफाज़त में पहुँच गया।”
“फिर भी रोकने की कोशिश करते तो चिल्ला-चिल्ला कर आसमान सिर पर उठा लेता कि उसे जबरन पकड़ के रखा जा रहा था।”
“और मेरे को पक्की, वो ऐसा करता तो पुलिस उसकी ज़रूर सुनती। सुनती
तो जवाबदेही में पिराब्लम साला।”
“योगा ट्रेनर की कम्पलेंट पर हम सबको हिरासत में भी लिया जा सकता था।” – शोहाब बोला।
“आई सी।” — विमल बोला – “बहरहाल जो हुआ सो हुआ लेकिन मेरे को फोन तो करना था! मेरे को वॉर्न तो करना था!”
“अभी बोले तो” – इरफ़ान खेदपूर्ण स्वर में बोला – “दाँव ही न लगा।”
“योगा ट्रेनर तो एकाएक मेरे सिर पर आन खड़ा हुआ!”
“अभी क्या बोले मैं! तेरा फोन बजाने का वक्त रहते साला दाँव ही न लगा। सब तो पुलिस से उलझ रहे थे क्योंकि वो साला अफ़सर पुलिसिया दोनों कैब्स का चालान करने पर आमादा था।”
“चालान से तो जैसे-तैसे बाज़ आ गया, पण साला खजूर वहाँ से हमें खदेड़ कर ही माना।”
“डैमेज़ तो”–शोहाब बाला – “जो होना था हो चुका था। बाद में फोन लगाने कोई फायदा तो था नहीं!”
“बहरहाल” – विमल बोला – “जो हुआ, अच्छा हुआ।”
“बोले तो” – इरफ़ान बोला – “बंगले में तू सब हैंडल किया पर्फेक्ट करके?”
“हाँ।”
“कैसे किया?”
“बोलता हूँ।”
“पहले बाई की बोल। वो साथ काहे वास्ते थी?”
विमल ने धीरे-धीरे सब बयान किया।
“अब मैं” – आख़िर वो बोला – “एक ख़ास मुद्दे पर तुम लोगों से राय लेना चाहता हूँ।”
“बाप, तू!” – इरफ़ान बोला – “हमेरे से राय लेना माँगता है?”
“हाँ”
“कम्माल है! जो सब को राय देता है, वो हमेरे से राय माँगता है!”
“बात नहीं सुनता!”– विमल झल्लाया।
“सॉरी बोलता है, बाप। लगता है कोई ज्यास्ती करके इम्पॉर्टेट बात है!”
“हाँ। इतनी इम्पॉर्टेट कि दौड़ती कैब में ठीक से नहीं हो सकती। रोक!”
इरफ़ान ने कैब को बाजू में करके रोका।
“अभी बोल,बाप!” – वो बोला।।
“शोहाब, सुनता है न?” – विमल बोला।
“मकम्मल तवज्जो के साथ।”
शोहाब बोला।
“मैं उस गुमनाम गैंगस्टर की बाबत सोच रहा था जिसका नाम, अब हमें मालम है कि नेविल मेंडिस है जो शाह के गैंग का नम्बर टू के बराबर की हैसियत वाला डॉन है और गैंग ऑफ फ़ोर में से एक है। ओके?”
दोनों श्रोताओं ने सहमति में सिर हिलाया।
“मैंने नोट किया है कि गैंग ऑफ फ़ोर के लीडर राजू-राजा-राजा सा'ब की माली हैसियत काबिलेकश्क है। बांद्रा के नाइट क्लब शंघाई मून का मालिक वो बताया जाता है, फोर्ट के ‘साउथएण्ड’ नाम के हाई क्लास बार का मालिक वो बताया जाता है और अभी पता नहीं ऐसे कितने हाई क्लास ठीयों का वो मालिक है। जमा, वो विशाल, आलीशान बंगला हमने देखा ही है जिसे हम पीछे छोड़ के आए हैं और जो नम्बर टू की रिहायश है। क्या मतलब हुआ इसका?”
“दि मैन इज़ रोलिंग इन मनी।” – शोहाब बोला।
“क्या बोला?” – इरफ़ान बोला।
“भीड़ रोकड़े में लोट लगा रहा है।” – शोहाब ने तर्जुमानी की।
“वो तो, बोले तो, बरोबर।”
“अब मेरा सवाल है” – विमल बोला – “जब गैंग ऑफ फ़ोर का एक मेम्बर रोकड़े के मामले में इतना बाहैसियत है तो बाकी तीन भी तो अपनी माली हैसियत में उससे उन्नीस-बीस ही होंगे!”
“ज़रूरी नहीं।”
“क्यों? क्यों ज़रूरी नहीं?”
“जनाब, राजा सा'ब गैंग का नम्बर टू है, गैंग के नम्बर टू की अपनी सलाहियात होती हैं जो ज़रूरी नहीं कि औरों की भी हों।”
“मंजूर। लेकिन माली हैसियत में नम्बर टू के मुकाबले में बाकी तीन कहीं तो ठहरते होंगे! उन्नीस-बीस न सही, पन्द्रह-बीस सही, दस-बीस सही, औकात तो, कोई पुख्ता औकात तो उनकी फिर भी होगी! राजा सा'ब के बराबर नहीं तो आस-पास कहीं! आस-पास नहीं तो दूरदराज़ कहीं!”
“वो तो है! वैसे इस हवाले से किसका अक्स है आपके जेहन में?”
“गुमनाम गैंगस्टर उर्फ नेविल मेंडिस का। हैसियत वाला तो वो भी होगा, भले ही राजा सा'ब से आधी हैसियत वाला हो!”
“हाँ।”
“हाँ तो फिर, बिरादर, करोड़ों का आधा भी तो करोड़ों में ही होगा न!”
“क्या कहना चाहते हैं?”
“ये कि ऐसे शख्स ने गैंग से दगाबाज़ी की और बत्तीस करोड़ की कलैक्शन में से दस करोड़ ख़ुद सरका लेने की टुच्ची हरकत की, उसकी पर्दादारी के लिए इरादतन खून से हाथ रंगे। क्यों?”
“क्यों?” – शोहाब मन्त्रमुग्ध भाव से बोला।
“तू बोल, बाप” – इरफ़ान बोला – “तू दीमाक वाला है, हम तेरे दीमाक से कैसे सोच सकते हैं?”
“सुनो।” – विमल बोला – “पीछे राजा सा'ब से मुलाकात के दौरान मैंने उसे राय दी थी कि अगर वो सच में ही नम्बर वन बनने के लिए मरा जा रहा था तो उसे पहले कम्पीटीशन ख़त्म करना चाहिए था यानी तीन कम्पीटीटर्स को ऑफ़ करना चाहिए था जो नम्बर बन बनने में उसके रास्ते में रुकावट बन सकते थे। और राजा सा'ब को हिन्ट सरकाया था कि गैंग के बाकी तीन मेम्बरान सीक्रेटली उस पर लार टपकाते हो सकते थे।”
“तीनों?”
“तीनों भी। लेकिन मेरे फोकस में एक तरजीह के साथ है।”
“कौन?”
“नेविल मेंडिस”
“ऐसा सोचने की वजह?”
“कोई” – शोहाब उत्सक भाव से बोला – “ख़ास खूबी उसमें जो बाकी दो में नहीं?”
“वजह कोई नहीं, खूबी कोई नहीं है तो उसकी मेरे को ख़बर नहीं लेकिन उसके ख़ास किरदार के मद्देनज़र, जो माल में भांजी मारने की वजह से उजागर हुआ है, मेरा दिल गवाही देता है कि हो सकता है नम्बर टू की माशूक पर दिल सब रखते हो लेकिन खुद वो नेविल मेंडिस को भाव देती हो।”
“फट्टा है।” – इरफ़ान बोला।
“मुझे मंजूर है तेरा कहना लेकिन जब कोई शख़्स आउट ऑफ दि वे जाकर एक इम्पल्स के तहत कोई ख़ास, कोई बड़ा काम करता है तो नाहक नहीं करता, उसकी कोई वजह होती है। जो हरकत मेंडिस ने शुक्रवार सुबह की, वो ख़ास भी थी और बड़ी भी थी इसलिए मौजूदा हालात में मैं उसे – पुख़्ता न सही- वजह मानने को तैयार हैं।”
इरफ़ान ने शोहाब की तरफ देखा।
“अच्छा!” – शोहाब अनिश्चित भाव से बोला।
“तुम इस वजह से मुतमईन नहीं जान पड़ते!”
“आप अपनी बात मुकम्मल कीजिए।”
“देखो, आशिक तो माशूक के लिए चाँद-तारे तोड़ लाने की पेशकश करने लगते हैं, माशूक पर दस खोखा रोकड़ा न्योछावर कर देना क्या वही बात है?”
“बोले तो” – इरफ़ान मन्त्रमुग्ध स्वर में बोला – “उस भीड़ मेंडिस ने जो किया, उस बाई की खातिर किया!”
“क्यों नहीं हो सकता?”
“पर आप तो” – शोहाब बोला – “अभी उसे राजा सा'ब जितना मालदार भीड़ करार देकर हटे हैं!”
“ईजी मनी का लालच मालदार से मालदार शख़्स को सता सकता है।”
“बाई ने सैक्सुअल फेवर्स के बदले में इतनी बड़ी माँग खड़ी की!”
“मेरे ख़याल से मेंडिस ही हवा में आ गया होगा। दस खोखा रोकड़ा आसानी से हाथ आता देखा तो हो सकता है बाई ने इतनी माँग न खड़ी की होती, या कोई माँग खड़ी ही न की होती, वो ही उस परीचेहरा हसीना के लिए एक की आठ लगाने लगा।”
“सारी रकम बाई को सौंप दी?”
“हो सकता है।”
“इतनी बड़ी रकम उसने बंगले में छुपा के रखी?”
“ये नहीं हो सकता। वहाँ के गार्ड, वहाँ के प्यादे सब राजा सा'ब के वफादार हैं। किसी को बाई के कब्जे में इतनी बड़ी रकम की मौजूदगी की भनक भी लग गई तो बाई के लिए जवाबदेही मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होगी।”
“ठीक।”
“अब अगर हम ये मान के चलें कि दस खोखा रोकड़ा तो बाई के हवाले हो गया लेकिन उसे अपने पास रखे रहने का खतरा मोल लेते उससे न बना तो सेफ कीपिंग के लिहाज़ से बंगले के अलावा वो ठिकाना कहाँ होगा?”
दोनों ने इस बात पर विचार किया।
“बाप, तही बोल!” — फिर इरफ़ान झिलाता-सा बोला। विमल ने बोला। पहले ही दोनों के सिर इंकार में हिलने लगे।
“फट्टा है।” – इरफ़ान बोला।
“बहुत ही दूर की कौड़ी है।” – शोहाब बोला।
“कुबूल!” – विमल बोला – “लेकिन चैक करने में क्या हर्ज है!”
“बाप, ये वैसा ही फट्टा है” – इरफ़ान बोला – “जैसा तूने पहले सरकाया कि बाई मेंडिस करके भीड़ को भाव देती हो सकती है।”
“मैंने कब इंकार किया, लेकिन जो मैं बोला, वो सब मुमकिन तो है न, भले ही लाख के मुकाबले में एक चांस से मुमकिन हो!”
“ठीक!” – शोहाब बोला।
“फिर अभी हम कौन से इतना बिज़ी हैं कि बर्बाद करने के लिए हम एकाध घंटा नहीं निकाल सकते?”
“ये ठीक कह रहे हैं।”
“बोले तो टिराई करने का!” – इरफ़ान बोला।
“हाँ।” – विमल बोला – “लेकिन पहले ‘मराठा’ चलना होगा।”
“काहे वास्ते?”
विमल ने बताया।
वे खार पहुंचे।
जहाँ अम्बेडकर कॉलोनी में एक छ: मंजिला इमारत के टॉप फ्लोर पर योगा ट्रेनर भरत खनाल का फ्लैट था।
पहले ‘मराठा’ जाना ज़रूरी था क्योंकि ट्रेनर सुबह कान्दीवली वैस्ट वाले बंगले में विमल के रूबरू हो चुका था। ट्रेनर के सामने रोज़ी बियांको ने विमल के विग पर झपट्टा मारा था तो बाकी का मेकअप विमल ने ख़ुद ही उतार कर रोज़ी के हवाले कर दिया था। यानी ट्रेनर तब विमल की असली सूरत देख चुका था, उसी सूरत के साथ उसका अब ट्रेनर के रूबरू होना मुनासिब नहीं होता, इसलिए विमल ने ‘मराठा’ जाकर पहले अपना हुलिया तब्दील किया था।
अब उसने मोटे तौर पर वो हुलिया अपनाया था जिस में पिछले रोज़ वो साउथएण्ड बार में पहुँचा था।
सिर पर बिना माँग निकाले जैल से व्यवस्थित किए बाल, नथुनों के प्लास्टिक की गोलियाँ, सोल पैच की जगह मूंछ और नीले कॉन्ट्रैक्ट्स को तिलांजलि। चश्मे की जगह फैशनेबल गॉगल्स।
इरफ़ान को कैब में बैठा छोड़ कर विमल और शोहाब टॉप फ्लोर पर पहुँचे। शोहाब ने कॉलबैल बजाई तो ट्रेनर भरत खनाल ने ख़ुद दरवाज़ा खोला। अपने सामने दो अजनबियों को खड़ा पाकर बो सकपकाया।
“यस?” – फिर संदिग्ध भाव से बोला।
“कान्दीवली वैस्ट से आए हैं।” – नथुनों में गोलियों की वजह से बदली आवाज़ में विमल बोला – “मैडम ने भेजा।”
“कौन मैडम?”
“कान्दीवली बैस्ट बोला न!”
“सुना मैं। कौन मैडम?”
“रोजी बियांको मैडम। जिसके योगा ट्रेनर हो।”
“ओह! क्यों भेजा? क्या काम है?”
“हम दोनों बंगले के सिक्योरिटी स्टाफ से हैं” – शोहाब तनिक रूखे स्वर में बोला – “और मैडम के ख़ास हैं।”
“मैडम पसन्द नहीं करेंगी” – विमल ने तरह दी – “कि उनके ख़ास भीड़ओं को तुम चौखट पर ठहरा कर बात करो।”
ट्रेनर हिचकिचाया।
“जो फैसला करना है, जल्दी करो।”
“नाम बोलो।”
“गिरीश।”
“मैं इकबाला” – शोहाब बोला। ट्रेनर दरवाज़े पर से एक बाजू हटा।
“शुक्रिया।” – विमल बोला। दोनों भीतर दाखिल हुए तो उन्होंने खुद को एक बैठक में मौजूद पाया।
“बैठो।” – ट्रेनर बोला। “ऐसीच ठीक है।”
शोहाब बोला।
“हमें” – विमल बोला – “मैडम का हुक्म है जल्दी वापिस लौटने का, इस वास्ते हमेरे को ज्यास्ती टेम इधर नहीं ठहरने का।”
“काम बोलो।” – ट्रेनर बोला।
“मैडम ने सूटकेस मंगवाया है।”
“कौन-सा सूटकेस?”
“जो परसों मैडम ने तुम्हें सौंपा था! जब तुम योगा ट्रेनिंग के सैशन के लिए बंगले पर आए थे!”
“क्या हूँ?”
“मेरे को मैडम ने ऐसा कुछ नहीं बोला।”
“कैसा कुछ नहीं बोला?”
“कि उनका भेजा कोई सूटकेस लेने आ रहा था।”
विमल ने अर्थपूर्ण भाव से शोहाब की ओर देखा। शोहाब ने सहमति में सिर हिलाया। ट्रेनर के उस एक फिकरे ने स्थापित कर दिया था कि सूटकेस उसके पास था।
“सूटकेस मैं ख़ुद पहुँचा दूँगा।” – ट्रेनर बोला।
“कहाँ पहुँचा दोगे?” – विमल बोला – “मैडम अब बंगले पर नहीं हैं।”
“जब होंगी तब पहुँचा दूँगा।”
“कभी नहीं होंगी।”
“क्या बोला?”
“उन्होंने रिहायश चेंज कर ली है।”
“एकाएक?”
“हाँ। आज ही कोलाबा शिफ्ट किया। अब वहीं रहेंगी।”
“मैं ... फोन करूँगा।”
“नहीं मिलेगा। नम्बर भी बदल गया है।”
“ऐसा क्यों?”
“राजा सा'ब से पूछना – अगर मजाल हो तो – जिनके हुक्म पर ये सब हुआ।”
वो कई क्षण ख़ामोश रहा।
“चाहे कुछ भी हो” – फिर दृढ़ता से बोला – “सूटकेस मैं तुम्हें नहीं सौंप सकता। मैं ... बंगले का चक्कर लगाऊँगा।”
“क्यों लगाओगे? अब मैडम को योगा ट्रेनिंग की भी तो ज़रूरत नहीं है!”
“हैरानी है! वो तो योगा के मामले में बहुत संजीदा थीं!”
“क्या करेगी संजीदगी? खार से कोलाबा जा पाया करोगे?”
“न-हीं। बहुत फासला है। बहुत टाइम लगा करेगा पहुँचने में। मेरी क्लायन्टेल सफर करेगी।”
“तो फिर?”
“तुम लोग कहते हो कि तुम मैडम के ख़ास हो। तुम बोलना मैडम को कि भरत खनाल को तुम लोगों को सूटकेस सौंपना कुबूल नहीं। फिर मैडम या इस काम के लिए खुद आएँगी या मेरे को कोई हिदायत जारी करेंगी किसी तरीके से।”
“ये तुम्हारा आख़िरी फैसला है?”
“हाँ।”
“ठीक है। हमें ये फैसला मंजूर है।”
उसने चैन की साँस ली। “लेकिन एक बात फिर भी बोलो।”
“क्या ?”
“सूटकेस खोला था?”
“क्या! पागल हुए हो! मैं मैडम की अमानत के साथ ये हरकत करूँगा!”
“चाहते तो खोल सकते थे?”
“नहीं। उस पर नम्बई लॉक थे। मेरे को कोड नम्बर का क्या पता!”
“यानी तुम्हें मालूम नहीं कि सूटकेस में क्या है!”
“नहीं। नहीं मालूम।”
“एक आख़िरी सवाल और। सूटकेस की बाबत। मैउम ने बोला था कि वो चमड़े का लाल रंग का सूटकेस था। ठीक बोला था?”
वो हिचकिचाया।
“अरे, जो बात हमें मालूम है, उसकी तसदीक को ही तो बोल रहे हैं!”
“हाँ।”
“शुक्रिया। चलते हैं और जाकर मैडम को रिपोर्ट करते हैं।”
वो ख़ामोश रहा।
“एक बात फिर भी याद रखना। सूटकेस के साथ या सूटकेस के बिना बंगले पर नहीं जाने का। मैउम का मोबाइल नहीं बजाने का क्योंकि वो मोबाइल अब राजा सा'ब के पास है।”
उसके नेत्र फैले। “चलते हैं।”
उसका सिर सहमति में हिला। दोनों वहाँ से रुखसत हुए और नीचे जाकर इरफ़ान की कैब में बैठे।
“क्या हुआ?” – इरफ़ान उत्सुक भाव से बोला। विमल ने सब बयान किया।
“ओह!” – इरफ़ान बोला – “बाप, इतनी भी कामयाबी कम नहीं कि तू पक्की किया कि सूटकेस उधरीच नेपाली भीड़ के कब्जे में है।”
“फायदा क्या हुआ?” – विमल भुनभुनाया – “सूटकेस काबू में तो न आया!”
“फायदा होगा न! अपना आकरे है न फायदा पहुँचाने के लिए!”
विमल की भवें उठीं।
“तेरे को मालूम कि आकरे एक्सपर्ट तालातोड़। तेरे को मालूम अपने योगा के कारोबार के फेर में कौन-सा टेम नेपाली घर पर नहीं होता। और क्या माँगता है आकरे को? बोले तो तेरे को?”
“हमेरे को।” – विमल उसके लहजे की नकल करता बोला।
“बरोबर, बाप।”
शाम के छः बजने को थे जबकि राजा साब शिवाजी चौक के पिछवाड़े के ऑफिस में पहुंचा।
चपरासी मानक को पहले से हुक्म था कि वो फ्रंट ऑफिस को लॉक कर दे और पिछले ऑफिस में उसका इन्तज़ार करे जहाँ उसके अलावा कोई न हो।
हमेशा की तरह राजा सा'ब के साथ चार प्यादे बतौर बॉडीगार्ड थे जिनमें से दो को वहाँ रोका गया और दो को बाहर कार में बैठने का हुक्म हुआ।
“चाबियाँ”– राजा सा'ब मानक से मुखातिब हुआ – “काउन्टर पर रख और निकल ले।”
“ऑफिस बन्द करना होगा!” – मानक दबे स्वर में बोला।
“हो जाएगा।”
“सुबह खोलना होगा!”
“खुल जाएगा।”
मानक ने आदेशानुसार चाबियों का गुच्छा रिसेप्शन काउन्टर पर रखा और वहाँ से रुखसत हुआ।
“मैं ऑफिस में हूँ।” – पीछे राजा सा'ब बोला – “मेंडिस आने वाला है। फौरन मेरे को खबर करने का। क्या!”
“बरोबर, बाँस।” – एक प्यादा तत्पर स्वर में बोला।
राजा साब पिछवाड़े के उस भव्य ऑफिस में पहुँचा, जिस पर पहले कुबेर पुजारी काबिज़ होता था, और जाकर एग्जीक्यूटिव चेयर पर विराजमान हुआ।
पाँच मिनट उसने मेज़ ठकठकाते गुजारे, फिर नेबिल मेंडिस ने वहाँ कदम रखा। मेंडिस उसके सामने एक विज़िटर्स चेयर पर ढेर हुआ।
“आज इधर कैसे?” – मेंडिस बोला। “ऐसे ही।” - राजा सा'ब बोला – “तेरे को इधर आने में प्रॉब्लम!”
“अरे, नहीं, बॉस! प्रॉब्लम कैसी?”
“कटलरी के साथ आया?”
“वो तो.... बरोबर।”
“कितने? चार? हमेशा की तरह?”
“हाँ।”
“सब को डिसमिस कर। कार भी वापिस भेज दे।”
मेंडिस सकपकाया।
“यहाँ भीड़ करने का कोई फायदा नहीं। यहाँ थोड़ी देर जो है, गपशप करते हैं, फिर तू जिधर बोलेगा, मैं तेरे को ड्रॉप करेगा।”
“ऐसा?”
“हाँ।”
“ओके! आता हूँ।”
मेंडिस बाहर गया, दो मिनट में वापिस लौटा और आकर पूर्ववत् राजा सा'ब के सामने बैठा।
“काफी पियेगा?” – राजा सा'ब बोला।
“यहाँ इन्तज़ाम है?”
“नहीं। बाहर से आएगी।”
“फिर नहीं। अलबत्ता ऐतराज़ न हो तो सिगरेट सुलगा लूँ?”
“ज़रूर। एक मेरे को भी दे।”
दोनों ने सिगरेट सुलगाए।
“तो” – राजा सा'ब नए सुलगाए सिगरेट का एक लम्बा कश लगाता बोला – "ौंग ऑफ फ़ोर डिसबैंड होने वाला है!”
“कौन बोला ऐसा?” - मेंडिस ने हैरानी जताई।
“बोला तो कोई नहीं लेकिन परसों रात जैसे गोटी ने भाव खाया और तू और झाम जो है, उसकी तरफदारी करने लगे तो ऐसा लगा मेरे को बरोबर!”
“गलत लगा। जब चार जने मिल बैठते हैं तो गिले-शिकवे भी होते हैं और तल्खी -तुर्शी का माहौल भी इधर से उधर होता है। बस, इतनी सी बात थी परसों।”
“हम्म।”
“वैसे ये गिला सबको बराबर था कि तुमने हमारी शाह से मुलाकात में हील हुज्जत की।”
“ऐसी कोई बात नहीं थी, खाली शाह से इस बाबत जो है, मशवरा करना ज़रूरी था वर्ना गोटी तो ऐसा मिजाज दिखा रहा था जैसे खड़े पैर जाकर शाह के सिर पर खड़ा हो जाना चाहता हो।”
“ऐसी कोई बात नहीं थी।”
“ऐसी ही बात थी। बहुत कड़क बोला गोटी।”
“बॉस, आपसदारी की बात है। दिल पर नहीं लेने का।”
“बोले तो गैंग ऑफ फ़ोर की यूनिटी सलामत है?”
“सौटांक।”
“गैंग बिखर नहीं जाने वाला?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता।”
“जानकर खुशी हुई मेरे को। इसी बात पर जो है, मेरे पास एक गुड न्यूज़ है?”
“क्या?”
“कल तुम्हारी शाह से मुलाकात होगी।”
“मेरी?”
“सब की।”
“कहाँ?”
“मैं लीड करूँगा न! मालूम पड़ जाएगा।”
“फिर भी।”
“मुलाकात की जगह शाह के लिए खड़े पैर मुकर्रर होगी। कल मालूम पड़ जाएगा।”
“ओके!”
“अभी मेरे एक पर्सनल सवाल का जवाब दे।”
“पूछो?”
“तू किसकी तरफ है?”
“ये गैरवाजिब सवाल है। हम सब एक हैं, एक दूसरे की तरफ हैं।”
“यानी गैंग ऑफ फ़ोर फूट के कगार पर नहीं?”
“फिर वहीं पहुँच गए! अरे, सवाल ही नहीं पैदा होता।”
“तो रोकड़े पर नीयत क्यों मैली की?”
“रोकड़ा! कौन-सा रोकड़ा?”
“एक ही रोकड़ा है जो शुक्रवार से चर्चा में है।”
“किसने नीयत मैली की?”
“तूने।”
“क्या किया मैंने?”
“ज्वेलर कालसेकर से मिलीभगत की। उसके कब्जे में मौजूद बत्तीस करोड़ में से दस करोड़ सरका लिए।”
“बंडल!”
“मैं गलत बोला?”
“सौ टांक गलत बोला। जब किसी को मालूम ही नहीं कौन रोकड़ा लूट कर ले गया तो तुम्हें कैसे मालूम कि रोकड़ा पूरा नहीं था? दस खोखा कम था?”
“जब ये मालूम हो कि प्वायन्ट ऑफ ओरीजन पर ही रोकड़ा दस खोखा कम
था तो ये जानना जो है, ज़रूरी नहीं कि रोकड़ा कौन लूट के ले गया?”
“अगर प्वायन्ट ऑफ ओरीजन पर रोकड़ा दस खोखा कम था तो ये हरकत कालसेकर के अलावा किसी की नहीं हो सकती।”
“उसने धोखा दिया?”
“बरोबर।”
“तूने कुछ न किया?”
“अरे, करना तो दूर, मैं चाहता भी तो नहीं कर सकता था। कर सकता था तो बोलो, कैसे कर सकता था?”
“शुक्रवार सुबह सवेरे जो है, ज्वेलर के शोरूम में क्यों गया था?”
वो सकपकाया, अब नर्वस भाव से उसने पहलू बदला।
“उस शोरूम में जो है, सीसीटीवी सर्वेलेंस का इन्तज़ाम था, जैसा कि हर बड़े शोरूम में होता है। शुक्रवार सुबह की ताज ज्वेलर्स के शोरूम की सीसीटीवी फुटेज मेरे पास है।”
“तु-तुम्हारे पास है?”
“देखना चाहेगा? यहीं इन्तज़ाम हो जाएगा!”
उसने फिर पहलू बदला।
“तो फिर क्या जवाब है तेरा? गया था न वहाँ?”
“हं-हाँ। हाँ।”
“गया था तो कैसे मालूम था कि उस घड़ी शोरूम खुला होगा?”
“उम्मीद ... उम्मीद थी कि खुला होगा। आख़िर रोकड़े की डिलीवरी के सिलसिले में जो कुछ होना था, वहीं से होना था इसलिए मैंने चांस लिया।”
“शोरूम बन्द मिलता तो क्या करता?”
“खुलने का इन्तज़ार करता।”
“ज्वेलर को अपनी आमद की ख़बर न करता?”
“ऐसा कुछ करने की नौबत ही नहीं आई थी क्योंकि शोरूम मुझे खुला मिला था।”
“क्यों?”
“क्योंकि ज्वेलर ने अर्ली पहुँच कर रोकड़े की डिलीवरी की तैयारी करनी थी।”
“क्या तैयारी?”
“वो... वो... क्या है कि शायद उसने रोकड़ा एक बार फिर गिनने, चौकस करने की ज़रूरत महसूस की थी।”
“मकसद क्या था तेरे वहाँ जाने के पीछे?”
“मकसद बोले तो, सारे इन्तज़ाम को डबल चैक करना था।”
“कौन बोला ऐसा करने के वास्ते?”
“कोई न बोला। मैंने ख़ुद ज़िम्मेदारी महसूस की। आख़िर मैं शाह के गवर्निंग गैंग ऑफ फ़ोर में से एक था।”
“क्या डबल चैक किया था?”
“यही कि रोकड़ा चौकस था।”
“कैसे चौकस किया? गिनने बैठ गया?”
वो ख़ामोश हो गया।
“अनिल विनायक को क्यों साथ ले गया?”
“क-कैसे मालूम?”
“जैसे तेरी विज़िट मालूम! सीसीटीवी की फुटेज के ज़रिए! ज्वेलर की गवाही के ज़रिए।”
“जब मैं ख़ुद ही कह रहा हूँ कि मैं वहाँ गया था तो इतने बखेड़ों की क्या ज़रूरत थी भला?”
“मेंडिस, मेरे पिछले सवाल का जवाब जो है, तूने नहीं दिया। अनिल विनायक क्यों साथ था? जब जहाँ जाता है, वफ़ादार, भरोसे के, काबिल प्यादों के साथ जाता है तो ख़ास अनिल विनायक क्यों साथ था?”
“वो ... वो क्या है कि....”
“शह चलता मिल गया था सुबह-सवेरे जो है?”
“मैंने उसे तलब किया था।”
“क्यों?”
“साथ चलने के लिए। क्योंकि वो ज्वेलर कालसेकर से वाकिफ़ था, मैं नहीं था।”
“खल्लास कैसे हुआ?”
वो फिर ख़ामोश हो गया।
“खबर तो है न?”
“हं-हाँ। उड़ती-उड़ती पहुँची तो थी!”
“छापे में थी!”
“मैं अख़बार कम ही पढ़ता हूँ।”
“शुक्रवार सुबह वो तेरे साथ था। तेरे से अलग होने के बाद ही वो जो है, खल्लास! कैसे हुआ?”
“क्या पता कैसे हुआ? होगी किसी से कोई ज़ाती रंजिश, कोई खुन्नस, कोई अदावत जिसने जब मौका लगा, स्ट्रेट घुमा दिया।”
“कैसे मालूम कि स्ट्रेट घुमाया? गला न घोंटा? शूट न किया?”
वो फिर गड़बड़ाया।
“अख़बार में ज़िक्र था पर अख़बार तो तू पढ़ता नहीं!”
“वो... वो .....”
“मुमकिन है उड़ती-उड़ती आई ख़बर में ये भी ज़िक्र हो कि वो कैसे खल्लास हुआ था!”
“हाँ। हाँ।” – मेंडिस व्यग्र भाव से बोला – “यही बात थी।”
राजा सा'ब ने अपलक उसे देखा, फिर उसके मुँह से एक आह निकली।
“तेरे पास हर सवाल का जवाब है।” – फिर बोला – “मुस्तैद। तैयार। क्या!”
“हकीकत बयान करनी हो”
मेंडिस दिलेरी से बोला – “तो तैयारी की ज़रूरत नहीं होती।”
“हकीकत! जो कि तूने बयान की?”
“हाँ।”
“हम्म!” – राजा सा'ब ने सिगरेट का एक लम्बा कश खींचा और उसे ऐश ट्रे में झोंक दिया।
“और?” – मेंडिस अर्थपूर्ण भाव से बोला। राजा सा'ब ने एक क्षण अपलक उसे देखा। “तेरे को जल्दी कहीं जाने की?” – फिर बोला।
“न-नहीं! नहीं तो!”
“तो टिक के बैठ।”
टिक के बैठने के मद में उसने कुर्सी पर पहलू बदला और ख़त्म होते सिगरेट से नया सिगरेट सुलगाया।
“आजकल ख़बरें बहुत उड़ती हैं।” – राजा सा'ब संजीदगी से बोला – “एक उड़ती-उड़ती ख़बर मेरे कानों में भी पहुँची है।”
मेंडिस कश लगाता ठिठका, उसकी भवें उठीं।
“सुना है शुक्रवार की लूट की वारदात जो है, सोहल का कारनामा था!”
“ओह, नो!”
“और हमारा माइकल गोटी जो है, कम से कम इस प्रोजेक्ट में सोहल का जोड़ीदार था।”
“बाँस, फेंक रहे हो!”
“भरोसे का ज़ीरो नम्बर ऐसा बोला।”
“मेरे को यकीन नहीं।”
“अगर ये बात सच हो तो बता, गोटी का क्या अंजाम होना चाहिए?”
“सच हो तो नहीं सकती लेकिन तुम्हें ऐतबार है कि सच है तो ठौर मार दिया जाना चाहिए।”
“बढ़िया! मैं भी यहीच माँगता है। मार!”
“क-क्या बोला?”
“ऑफ़ कर दे गोटी को। मैं झाम की विकेट लेता हूँ। फिर तू और मैं बस दो ही होंगे। फिर गैंग ऑफ फ़ोर जो है, गैंग ऑफ टू होगा।”
“बॉस, फेंक रहे हो! मज़ाक ... मज़ाक कर रहे हो तो बान्दा नहीं लेकिन सीरियस हो तो...”
“मज़ाक नहीं कर रहा था, मेंडिस, तेरे को परख रहा था।”
“क्या परख रहे थे? कि मैं अपने ही एक साथी को ऑफ़ करने के लिए हाँ बोलता था या नहीं!”
“यही समझ ले, इसलिए यहीं समझ ले कि दोनों के फायदे की बात है।”
“कौन से फायदे की बात?”
“चार से दो भले। फिर कत्ल में जो है, हम एक-दूसरे के जामिन होंगे। तू मेरे से बाहर नहीं जा सकेगा, मैं तेरे से बाहर नहीं जा सकूँगा। इस इक्वेशन के तहत खब निभेगी हम दोनों की। अलबत्ता अफसोस होगा कि गैंग ऑफ फ़ोर जो है, गैंग ऑफ टू रह जाएगा।”
“नॉनसेंस! जैसा तुम सोच रहे हो, मेरे को सोचने के लिए राय दे रहे हो, वैसा गोटी भी तो सोच सकता है, झाम को वो भी तो अपनी तरफ कर सकता है!”
“आगे?”
“गोटी को तो तुमने अपना गुनहगार माना, उस पर इलज़ाम लगाया कि वो
अन्डरवर्ल्ड के भाई लोगों के सबसे बड़े दुश्मनों से मिल गया। झाम ने क्या गुनाह किया जिसकी सज़ा तुम्हारे मगज में है?”
“भई, गेहूँ के साथ घुन पिसता ही है!”
“बस करो, बाँस। इस घड़ी तुम्हारा खुराफाती दिमाग जिस आसमान पर उड़ रहा है, मैं उससे वाकिफ़ नहीं हूँ। अब कुबूल करो कि अच्छे मूड के हवाले मज़ाक कर रहे थे।”
राजा सा'ब के अपलक उसे देखा लेकिन इस बार मेंडिस विचलित न हुआ। एकाएक राजा सा'ब ठठा के हँसा।
मेंडिस हतप्रभ-सा राजा सा'ब का मुँह देखता रहा।
“बोले तो” — फिर बोला – “मज़ाक ही कर रहे थे!”
“हाँ, यार!” - राजा सा'ब ने हँसना बन्द किया।
“बैंक गॉड!”
“लेकिन जो अब करूँगा, वो जो है, किसी भी ऐंगल से मज़ाक नहीं लगेगा तेरे को।” – एकाएक अब संजीदासूरत राजा सा'ब के हाथ में गन प्रकट हुई जिस की नाल का रुख मेंडिस के माथे की तरफ था – “इतने शार्ट डिस्टेंस से भेजा उड़ा देना क्या मुश्किल काम होगा? या होगा? होगा तो मैं जो है, नाल को थोड़ा नीचे करे ताकि निशाना बड़ा टार्गेट, तेरा सीना हो!”
मेंडिस ने ज़ोर से थूक निगली।
“एक सैकंड में बोल, दस खोखा रोकड़ा कहाँ है?”
“स-सवाल कर रहे हो?” – अपने स्वर को भरसक संतुलित रखता मेंडिस बोला।
“तेरे को क्या लगता है?” – राजा सा'ब विष भरे स्वर में बोला।
“ये टेम जवाब देना मेरी मजबूरी है क्योंकि मजबूर करने का निहायत कारआमद आला मेरे को तुम्हारे हाथ में दिखाई दे रहा है।”
“सही पहचाना। जवाब दे।”
“देता हूँ लेकिन आगाह कर रहा हूँ, जवाब तुम्हारे से सुना नहीं जाएगा।”
“जवाब दे!” - राजा सा'ब कहरबरपा लहजे से बोला।
“तुम्हारी माशूक के पास है।”
“क-क्या बोला!”
“तुम्हारी डियर डार्लिंग रोज़ी बियांको के पास है।”
उस जवाब ने वाकई राजा सा'ब को अन्दर तक हिला दिया। एकबारगी तो मेंडिस को लगा कि उसके हाथ से गन छूट जाने वाली थी लेकिन आख़िर घिसा हुआ मवाली था, इतनी जल्दी अपने पर से कन्ट्रोल नहीं खोने वाला था!
“उसके पास क्यों है?” — पशेमान राजा सा'ब बोला।
“हुस्न वालों की डिमांड ऐसी ही होती हैं, भले ही नाजायज़ लगें।”
“तू ये कहना चाहता है कि वो रोकड़ा जो है, तूने अपने लिए नहीं, रोज़ी के लिए सरकाया क्योंकि उसकी माँग थी?”
“हाँ, यही कहना चाहता हूँ।”
“इतनी बड़ी माँग?”
“हाँ। छोटी-मोटी होती तो मैं ही पूरी कर देता। जब ज़रूरत दूसरी जगह से पूरी करनी थी तो रकम कम क्या, ज्यास्ती क्या! फिर बड़ी रकम ने जैसा उसे दीवानावार ख़ुश किया था, छोटी रकम न कर पाई होती।”
“दस खोखा! दस खोखा रोकड़ा जो है, तूने उसे सौंप दिया?”
“जब उसी के लिए सरकाया था तो उसी को तो देना था!”
“अच्छा !”
ख़ामोशी छा गई।
उस दौरान राजा साब की सूरत ने कई रंग बदले लेकिन गन की तरफ से उसकी तवज्जो कभी न हटी। उसके अन्तर को भावनाओं का सैलाब झकझोर रहा था, लेकिन गन वाला हाथ न काँपा, सदा स्थिर रहा।
“मेरी तरफ देख!” – आख़िर राजा सा'ब ने चुप्पी तोड़ी। मेंडिस ने सप्रयास आदेश का पालन किया। “तू रोज़ी के साथ सोता है?” - राजा सा'ब बोला। “मेरा इंकार मंजूर कर लोगे?”
“नहीं।”
“तो फिर क्या फायदा सवाल करने का?”
“जवाब दे। रोज़ी के साथ सोता है?”
“जवाब झेल सकोगे?”
“जवाब दे!”
“हाँ।”
“अक्सर?”
“हाँ।”
“कब से चल रहा है ये सिलसिला?”
“साल होने को आ रहा है।”
“कहाँ मिलते हो?”
“कोई एक ठिकाना नहीं। अमूमन ठिकाना रोज़ी ही सुझाती थी।”
“रोज़ी सुझाती थी!” – राजा सा'ब का लहजा हाहाकारी हुआ।
“हाँ।”
“तूने शुरूआत क्यों की? अब ये न कहना, रोज़ी ने की।”
“मैं यही कहने जा रहा था।”
“तुझे मेरा ख़याल न आया?”
“अरे, जो तुम्हारे दिलोजान की ज़ीनत बनी हुई थी, जब उसे तुम्हारा ख़याल न आया तो मैं क्या ख़याल करता! मर्द तो इस मामले में कुत्ते की ज़ात होता है, जो बोटी लहराए उसके पीछे हो लेता है।”
“फलसफा न झाड़!”
मेंडिस ने होंठ भींच लिए। “रोज़ी को रोकड़ा कब सौंपा, कहाँ सौंपा।”
“परसों सुबह ही। रोकड़े पर काबिज़ होते ही मैंने रोज़ी को फोन किया था तो उसने मेरे को कान्दीवली वैस्ट तुम्हारे बंगले पर पहुँचने को बोला। साथ ही हिदायत दी कि मैं बंगले पर न पहुँच जाऊँ, क्रॉस रोड दो के दहाने पर मिलूँ और ख़ास एहतियात रख कि कोई वहाँ मेरे को देख न ले। ऐसा अन्देशा दिखाई तो निकल लूँ और ठीक आधे घन्टे बाद वापिस वहीं पहुँचूँ।”
“निकल लेना पड़ा?”
“नहीं। पहली ही बार में सब ठीक हो गया।”
“मुलाकात की जगह वो कैसे पहुँची?”
“अपनी कार ख़ुद ड्राइव कर के।”
“कहाँ लौटी?”
“वापिस बंगले में।”
“कैसा जाना?”
“मैंने देखा उसकी कार को बंगले के आयरन गेट में दाखिल होते।”
“करीब आकर?”
“करीब जाने की ज़रूरत ही नहीं थी। सब फासले से ही दिखाई दे रहा था।”
“शेकड़ा ढोया कैसे गया था?”
“बोले तो?”
“क्या बोले तो? चौदह लाख डॉलर के नोट जेबों में तो नहीं भर लिए होंगे!”
“अच्छा , वो?”
“हाँ, वो। क्या ज़रिया इस्तेमाल किया वो रकम होने के लिए?”
“सूटकेस।”
“मैटल का? ट्रंक जैसा?”
“नहीं, चमड़े का। लाल रंग का। ट्रैवल लगेज जैसा।”
“अब वो सूटकेस जो है, रोज़ी के कब्जे में है?”
“हाँ”
“बंगले में?”
“वहीं कहीं होगा! इतना बड़ा बंगला है। सौ ठिकाने होंगे छुपाने के।”
“आगे?”
“क्या आगे?”
“रोकड़े की एवज़ में रोज़ी तेरे को वैसे थैक्यू बोल चुकी, जैसे कोई हुस्न की मलिका ही बोल सकती है, या अभी बोलेगी?”
वो विचलित दिखाई देने लगा।
“खैर, तू जो है, उसके साथ एक बार सोया या अनेक बार सोया, अब क्या फर्क पड़ता है! बेवफाई पहली बार दिल हिलाती है, बाद में तो रुटीन बन जाती है। क्या?”
मेंडिस से जवाब न दिया गया।
“आखिरी मौका है तेरे पास गॉड को याद करने का।”
“क-क्या!”
राज सा'ब ने उसे प्वॉयन्ट ब्लैंक शूट कर दिया।
ऑफिस के भीतर मौजूद दोनों प्यादे दौड़ते आए और बगूले की तरह ऑफिस में दाखिल हुए।
बॉस उन्हें एग्जीक्यूटिव चेयर से उठ कर टेबल के बाजू में खड़ा मिला। धुंआ
उगलती गन तब भी उसके हाथ में थी।
“बाकी दो को भी बुलाओ।” - राजा सा'ब ने हुक्म दिया। एक प्यादा बाहर को लपका और बाकी दो के साथ वापिस लौटा।
“चारों ने देखा?” – राजा सा'ब बोला – “समझा कि इधर क्या हुआ?”
फौरन चार सिर ऊपर नीचे हिले।
“लाश को जो है, ख़ामोशी से ठिकाने लगाना है लेकिन समन्दर में नहीं डालना। तैर के किनारे आ लगती है। क्या?”
“समन्दर में नहीं डालना।” – एक बोला। “तो क्या करोगे?”
“दफना देंगे।”
“कहाँ?”
“माहिम के इसाईयों के कब्रिस्तान में। उधर हमेरी, बोले तो गैंग की, सैटिंग है। कोई सवाल नहीं करेगा।”
“पक्की बात?”
“यस, बॉस।”
“कोई मेंडिस के बारे में सवाल करेगा तो क्या बोलोगे?”
“बॉस को मालूम। बॉस किधर भेजा अर्जेंट कर के।”
“शाह ने, टॉप बॉस ने, खड़े पैर गोवा भेजा।”
“बोले तो बरोबर।”
“मैं जाता है। सब सम्भालना इधर।”
“यस, बॉस।”