“तू फिर आ गया कमीने जिन्न। मरता भी नहीं। हाथ धोकर पीछे पड़ा है।” राधा गुस्से से कह उठी।

जिन्न बाधात के चेहरे पर अजीब से भाव ठहरे हुए थे।

“पहले कभी ऐसा सुना न पाया।” जिन्ना बाधात ने अजीब से स्वर में कहा-“साधारण मनुष्यों ने प्रेतनी को हरा दिया। बहुत

ही गलत हो गया ये। तुम सब चालाक मनुष्य हो। इतने साधारण नहीं हो। तभी तो प्रेतनी चंदा से उसका खास खंजर हासिल कर लिया।”

“बाप! वो ही आपुन लोगों को खंजर दिएला-।”

“पागलपन था प्रेतनी चंदा का।” जिन्न बाधात ने सिर हिलाकर कहा-“उसे अपना खास खंजर तुम लोगों के हवाले नहीं करना चाहिए था। ताकत के नशे में चूर होकर उसने ऐसा कर दिया। उसकी गलती से शैतान के अवतार तक पहुंचने का दूसरा ताला भी टूट गया।”

“ये दूसरा ताला था?” मोना चौधनी के होंठों से निकला।

“हां। ये दूसरा ताला ही था। शैतान के अवतार ने तीन तालों का इन्तजाम किया था, धरती से आने वाले मनुष्यों के लिये कि, उन तीन तालों को तोड़ने के बाद ही मनुष्य शैतान के अवतार तक पहुंच सकते हैं।” जिन्न बाधात कह रहा था-“शैतान के अवतार को पूरा विश्वास था कि मनुष्य उसके द्वारा शैतान की रुकावटों का एक ताला भी नहीं तोड़ सकते। लेकिन पहला ताला तुम मनुष्यों ने चील बनी प्रेतनी तवाली की टांग काटकर, मुद्रानाथ को बुत से असली हालत में लाकर तोड़ा। दूसरा ताला शक्तिशाली प्रेतनी चंदा को हरा कर तोड़ दिया। अब सिर्फ एक ही ताला बचा है। आखिरी ताला। अगर वो टूट

गया तो फिर तुम लोग शैतान के अवतार तक पहुंच जाओगे और उससे मुकाबला करना होगा। वहां तो तुम लोगों की मौत निश्चित है ही।”

“तीसरा ताला कहां है?” सोहनलाल ने पूछा।

“तुम लोगों का साथी मनुष्य देवराज चौहान बहुत जल्द तीसरे ताले तक पहुंचने वाला है।” जिन्न बाधात हंस पड़ा-“लेकिन उस ताले को नहीं तोड़ा जा सकता। वहां सिर्फ मौत ही मिलेगी उसे।”

“नीलू भी उसके साथ है?” राधा ने पूछा।

“हां और जगमोहन नाम का मनुष्य भी साथ है।” जिन्न बाधात हौले से हंसा।

“हमें, देवराज चौहान तक पहुंचने का रास्ता बता सकते हो?” मोना चौधरी कह उठी।

“अवश्य-।” जिन्न बाधात खुलकर मुस्कराया-“ऐसा करके मुझे प्रसन्नता होगी कि मैंने तुम सब को मौत का रास्ता दिखाकर, तुम लोगों की सांसों में बाधा डाल दी।”

“बताओ, नीलू तक कैसे पहुंचा जा सकता है?” राधा बोली।

“कोई कठिन कार्य नहीं।” जिन्न बाधात कह उठा-“यहां से पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ जाओ। चलते-चलते एक वक्त ऐसा भी आयेगा कि रास्ता बंद हो जायेगा। सामने दीवार होगी। उस दीवार को फलांग कर आगे बढ़ोगे तो बहुत जल्द अपने साथी मनुष्यों से मिल जाओगे। अब मैं चलता हूं। मुझे और भी कार्य करने हैं।” इन शब्दों के साथ ही उन्होंने जिन्न बाधात को अपनी जगह से गायब पाया।

“आपुन सब पश्चिम दिशा में बढ़ेला।”

“हां, लेकिन हर कदम पर हमें सावधान रहना होगा।” मोना चौधरी की आवाज में कठोरता आ गई-“जिन्न बाधात की इस बात का पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता। इसकी बातें हमें दूसरी मुसीबत में भी फंसा सकती हैं।”

“तुम परफैक्ट कहेला मोना चौधरी।”

“सच में-।” राधा तीखे स्वर में बोली-“बहुत कमीना है ये जिन्न।”

“बांके और पारसनाथ, जाने किस हाल में होंगे।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा-“शायद जिन्दा भी न हों-।”

“हां, उनके साथ बहुत बुरा हुआ।” राधा ने गहरी सांस ली-“बेचारा मूंछों वाला-।”

उसके बाद सब पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ गये। कुछ ही देर में अंधेरा हो गया।

परन्तु उनका आगे बढ़ना रुका नहीं।

☐☐☐

बांकेलाल राठौर और पारसनाथ ने खुद को गहरे अंधेरे कुएं जैसी जगह में जाते महसूस किया, जब उन्हें उस नदी से, टांग पकड़ कर नीचे खींचा गया था। सब कुछ अचानक हुआ था। वो नहीं समझ पाये कि उनके साथ क्या हो गया है।

पन्द्रह मिनट के बाद धीरे-धीरे वो रोशनी के करीब पहुंचते चले गये। फिर रोशनी में जिस जगह उन्होंने खुद को मौजूद पाया, वो जगह देखते ही दंग रह गये।

बांकेलाल राठौर और पारसनाथ आलीशान महल के हॉल के

बीचो-बीच खड़े थे। छत पर अलग-अलग तरह के लटक रहे फानूस जगमगा रहे थे। उनसे रंग-बिरंगी रोशनियां निकल रही थीं।

फर्श पर काले रंग का ऐसा कालीन बिछा था कि, वो भालू की खाल जैसा महसूस हो रहा था। कीमती फर्नीचर के अलावा सजावट का हर तरह का सामान था वहां। एक तरफ छोटी सी मंच जैसी जगह थी, जहां सबसे हटकर, बहुत ही खूबसूरत कुर्सी रखी हुई थी। इसके अलावा छः बेहद खूबसूरत युवतियां हॉल में जगह-जगह इस तरह खड़ी थीं, जैसे वहां उनकी तैनाती की गई हो। तभी बांकेलाल राठौर और पारसनाथ ने एक-दूसरे को देखा।

“तंम-।” बांकेलाल राठौर के होंठों से निकला-“तंम भी म्हारे संग या आ गयो।”

“ये कौन-सी जगह है?” पारसनाथ ने अपने खुरदरे गाल रगड़ते हुए पूछा।

“यां के बारो में जैसो तंम जानकार, वैसो अंम जानकार।” बांकेलाल राठौर आस-पास देखता हुआ कह उठा-“म्हारे को तो यो बढियो महल लगो हो।”

“तिलस्मी खेल में फंस चुके हैं हम।” पारसनाथ के होंठ भिंच

गये।

“वो छोरो और सोहनलाल बचो गयो। अंम ही फंस गये-।” कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर आगे बढ़ा और एक जगह खड़ी युवती के पास पहुंचा-। तंम अंम लोगों को यां ये काये को लायो हो?

“रानी के हुक्म से यहां लाया गया है आप लोगों को-।”

“रानी? यो कौन से मृतकों की रानी हौवे को अंम पर अपणो हुक्म लादो हो।”

“तिलस्म के छोटे से टुकड़े पर रानी का ही हुक्म चलता है।” उस युवती ने मुस्कराकर कहा।

“पण म्हारे को यां पे लायो क्यों?”

“रानी जी आने वाली हैं। इस बात का जवाब वो ही देंगी-।”

“तंम कौन हो?”

“मैं तो रानी जी की मामूली-सी दासी हूं।”

“दासी इतनी खूबसूरत होवो तो, रानी कितनो खूबसूरत होवे।” बांकेलाल राठौर, पारसनाथ के पास पहुंचा और धीमे स्वर में कह उठा-“म्हारे को तो लागे, बड़ी मुसीबत में अंम फंसो हो।”

“तुम ठीक कह रहे हो।” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।

“बचनो का रास्तो देखो। अंम तो-।”

“अभी तो हमें ये भी नहीं मालूम कि बचना किससे है। पहले सब कुछ सामने आ लेने दो।”

“यो बात भी फिट कहो हो।” बांकेलाल राठौर ने गर्दन हिलाई-“पैले मालूम तो हौवे कि बचनो किससे हौवो।”

तभी हल्का-सा शोर और कदमों की आहटें गूंजी।

बांकेलाल राठौर और पारसनाथ की नजरें आहटों की तरफ उठीं।

उधर रंगीन शीशों का बड़ा-सा दरवाजा था, जो खुला हुआ था। देखते ही देखते उस दरवाजे से कुछ युवतियों ने प्रवेश किया और रास्ता देने वाले अंदाज में दांयें-बांयें खड़ी हो गईं। उनके पीछे कम उम्र की युवती ने भीतर प्रवेश किया। जो कठिनता से बीस बरस की होगी उसके पीछे दो अन्य युवतियां हाथ में कपड़े का पंखा थामे हिला रही थीं। दोनों को समझते देर न लगी कि वही रानी है।

वो छोटे से मंच की तरफ बढ़ी। उसके चलने में शान थी। राजसी ढंग था। अलग ही अंदाज था उसके हाव-भावों में। होंठों पर जिन्दगी को छीन लेने वाली मुस्कराहट उभरी हुई थी।

बांकेलाल राठौर और पारसनाथ की नजरें उस पर टिक चुकी थीं।

वो बहुत ही कम कपड़े पहने थी।

टांगों के बीच जरा सा कपड़ा फंसा था और वक्षों को फूल की मालाओं से ढका हुआ था, जो कि गले में पहन रखी थी। फिर भी कभी-कभार वक्ष हिलकर, फूल की मालाओं से बाहर नजर आने लगते। मंच पर चढ़कर तो सिंहासन जैसी कुर्सी पर बैठी और प्रसन्नता भरे स्वर में कह उठी।

“तुम मनुष्यों का कब से इन्तजार था मुझे-।”

“अंम लोगों का?”

“हूं। शैतान के अवतार ने सवा सौ बरस पहले ही कहा था कि तिलस्म में धरती से आने वाले मनुष्य जब फंसें तो मैं उन पर काबू पाकर, उनसे शादी कर सकती हूं।” मुस्कान से उभरा चेहरा खिला हुआ था-“मनुष्यों के अलावा किसी और से ब्याह करूंगी तो शैतान मुझे मौत दे देगा।”

वो खिलखिलाकर हंस पड़ी।

“मेरी उम्र सवा सौ बरस की है।” हंसी रोकते हुये कह उठी वो-“शैतान के आशीर्वाद से मेरा जिस्म कभी भी नहीं ढलेगा। मेरी उम्र कभी भी नहीं झटकेगी। मैं जवान और कमसिन ही दिखूंगी। मर्द की चाह में मैंने सवा सौ बरस तड़प-तड़प कर बिता दिए। प्यार की आग में जलती रही। लेकिन अब अपनी चाहत पूरी कर सकूँगी। जिस प्यार की मुझे कमी रही। वो कमी अब नहीं होगी। अब-।”

“तुम हो कौन?” पारसनाथ ने टोका-“शैतान के अवतार के तिलस्म में क्या कर रही हो?”

“मैं-।” वो खुलकर मुस्कराई। उसके मोतियों जैसे दांत चमक उठे-“मेरा नाम जमना है। कभी मैं शैतान के अवतार की दासी हुआ करती थी। उसके छोटे-छोटे काम करती थी। उसकी सेवा में हाजिरी लगाती थी। फिर एक बार शैतान का अवतार मुसीबत में फंस गया और मैंने अपनी जान पर खेलकर शैतान के अवतार को मुसीबत से ही नहीं निकाला बल्कि उसकी जान भी बचाई। तब खुश होकर शैतान के अवतार ने तिलस्म के इस महल की रानी बना दिया मुझे। अपनी सेवा से मुक्त कर दिया। चूंकि मैं दासी थी, इसलिए उसने कहा कि मैं मनुष्यों के अलावा किसी और मर्द से प्यार नहीं कर सकती। ऐसा करूंगी तो मेरे सारे अधिकार छिन जायेंगे और मेरी जान ले ली जायेगी। मेरे पूछने पर कि मनुष्य मुझे कहां मिलेंगे, तो शैतान के अवतार ने कहा, एक बार मनुष्य तिलस्म में फंसेंगे। अगर मैंने उन्हें हासिल कर लिया तो मेरे हो जायेंगे, परन्तु सिर्फ एक मनुष्य ही मेरे शरीर को छू पायेगा। दूसरे मनुष्य से मैंने प्यार

की चेष्टा की तो मैं जलकर राख हो जाऊंगी।”

“यो बात भी शैतान का अवतारो बोलो हो।”

“हां। शैतान के अवतार ने ही ऐसा कहा था-।” वो मुस्करा रही थी।

“लेकिन हम तो दो हैं।” पारसनाथ के खुरदरे चेहरे पर मुस्कान उभरी।

“हां।” जमना ने कहा-“तुम में से एक मनुष्य मेरे लिए बेकार है।”

“अंम में से कौन सा थारे वास्ते बेकार हौवे?”

“इसका फैसला तुम दोनों ही करोगे।”

“कैसे?” पारसनाथ ने सिगरेट सुलगा ली।

“मुझे ताकतवर मनुष्य की जरूरत है।” जमना बोली-“ऐसा ताकतवर जो मेरे से प्यार करे तो मुझे अपना शरीर टूटता सा लगे। मुझे देर तक एहसास होता रहे कि किसी मर्द ने मुझसे प्यार किया है। कमजोर मनुष्य को मैं पसन्द नहीं करूंगी। बताओ कौन है तुम दोनों में से बहादुर-?”

“अंम दोनों ही बहादुर हौवे। थारे को मूँछों वालों चाहो था बिनो मूंछों के पसन्द हौवे। दोनों मॉडल थारो सामने हौवें।”

“मुझे ताकतवर चाहिये। बताओ कौन है तुम में से ज्यादा ताकतवर-?” जमना कह उठी।

“हमारी उम्र बढ़ती जा रही है।” पारसनाथ ने कहा-“बालों की सफेदी देखो। आधे काले, आधे सफेद हैं। ऐसे में तुम कब तक

बेड पर हमारा इस्तेमाल कर सकोगी। हम-।”

जमना खिलखिलाकर हंस पड़ी।

“यो तो हंसी हो थारी ठीको बातो पर-।”

पारसनाथ की नजरें जमना पर थीं।

“इस बात की तुम फिक्र मत करो।” हंसी रोकते हुए जमना ने कहा-“जो ताकतवर मनुष्य मर्द मुझे मिलेगा, मैं उसकी उम्र कम

कर दूंगी। उसे पच्चीस बरस का जवान बना दूंगी। जैसे मैं जवान हूं वैसा ही वो दिखेगा। और कभी भी वो बूढ़ा नहीं होगा। हम दोनों जवान ही रहेंगे। उसकी मर्दाना शक्ति को मैं नहीं बढ़ा सकती। वो उतनी ही रहेगी। लेकिन कम नहीं होगी। यही वजह है कि मैं ज्यादा शक्ति वाले मनुष्य को पाना चाहती हूं। बताओ मुझे, कैसे मालूम होगा कि तुम में से किसमें ज्यादा मर्दाना शक्ति है?”

बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।

“इसो के वास्ते तो थारे को ट्राई लेनो पड़ो हो।”

“मैं पहले ही कह चुकी हूं कि मैं दो मनुष्यों को प्यार करने के लिये अपने पास नहीं बुला सकती। ऐसा किया तो मैं खत्म हो जाऊंगी।” जमना के चेहरे पर सादी सी गम्भीरता आ गई।

“थारी यो चेलियां कबो काम आवें।” बांकेलाल राठौर ने आसपास बिखरी सेविकाओं पर नजर मारी।

“शैतान की माया ही कुछ ऐसी है कि तुम मनुष्य नहीं समझ सकोगे।” जमना कह उठी-“मेरी सेविकाओं के साथ शैतान के

अवतार की धरती का व्यक्ति ही सम्बन्ध बना सकता है। अगर किसी मनुष्य ने इनके साथ सम्बन्ध बनाया तो उसी पल उसकी जिन्दगी समाप्त हो जायेगी।”

बांकेलाल राठौर और पारसनाथ की नजरें मिलीं।

“यो जमना तो घणी खतरनाक बातों बोलो हो पारसनाथो-।”

पारसनाथ ने जमना को देखा।

“जो मनुष्य तुम्हारे काम का नहीं होगा, उसके साथ क्या किया जायेगा?” पारसनाथ ने पूछा।

“उसे वापस तिलस्म में छोड़ दिया जायेगा।”

“हम यहां से भाग भी तो सकते हैं।”

“नहीं भाग सकते।” जमना के चेहरे पर मुस्कान उभरी-“तिलस्म का बहुत बड़ा हिस्सा है मेरे पास। इससे पहले कि मेरे कब्जे से बाहर निकलो, पकड़ लिया जायेगा। भागने की कोशिश करके तुम मनुष्य मुझे सख्ती के लिये मजबूर नहीं करोगे। हमारी बात प्यार से निपट जाये तो ज्यादा ठीक रहेगा।”

“तुम जैसी खूबसूरतो सख्ती भी करो हो। विश्वासो नेई आयो हो।”

पारसनाथ ने सिगरेट का कश लिया। सोच के भाव चेहरे पर थे।

“ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि हम दोनों तुमसे छुटकारा पा सकें?” पारसनाथ ने पूछा।

“नहीं। ऐसा कभी नहीं हो सकता।” जमना ने दृढ़ स्वर में कहा-“तुम में से एक मनुष्य को सदा के लिये मेरा बनकर रहना होगा। जब तक ये तिलस्म सलामत है, वो मुझे प्यार करता रहेगा। बताओ कौन है तुम दोनों में से ज्यादा ताकतवर मर्द, जो मुझे प्यार करके खुश रखे?”

बांकेलाल राठौर और पारसनाथ की नजरें मिलीं।

“पारसनाथ-।” बांकेलाल राठौर ने गहरी सांस ली-“यों तो बोत कठिन प्रश्नो पूछो हो।”

पारसनाथ के खुरदरे चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट उभरी।

“तुम खुद ही फैसला कर लो।” पारसनाथ ने जमना से कहा।

“खुश फैसला करके मैं गलती नहीं करना चाहती। कमजोर मनुष्य मेरे हिस्से आ गया तो हमेशा दुःख में रहूंगी कि मेरा फैसला गलत रहा।” जमना ने गम्भीर स्वर में कहा-“इसलिए ये फैसला तुम मनुष्यों पर ही छोड़ती हूं।”

“हम कैसा फैसला करें?” पारसनाथ हाथ से अपना खुरदरा चेहरा रगड़ने लगा।

“धरती पर इस बारे में कैसे फैसला होता है कि ज्यादा ताकत वाला मर्द कौन सा है?”

“जब मर्द से मर्द टकराये तो ताकत का पता चलता है। जब मर्द औरत से टकराये तो, मर्द की मर्दानगी का पता चलता है।” पारसनाथ बोला-“ताकत-ताकत में फर्क होता है।”

जमना उलझन में नजर आने लगी।

“यो तो धर्म-संकटो में अटको हो।”

कुछ खामोशी के बाद जमना ने कहा।

“तुम दोनों लड़ाई करो। जो जीत जायेगा, मैं उसी को ही बढ़िया मर्द मानूंगी।”

“अगर धोखा खा गई।” पारसनाथ मुस्कुराया-“औरत के हिसाब से वो बढ़िया मर्द साबित न हुआ तो?”

जमना ने होंठ भींच लिया।

बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।

“अम दोनों ईब लड़यो का?”

“नहीं।” जमना के होंठों से निकला-“अभी ऐसा मत करना। ये ठीक कहता है कि अगर जीतने वाला, मेरे लिए बढ़िया मर्द साबित न हुआ तो मैं हमेशा के लिये प्यासी रह जाऊंगी।”

“ईब कुछ तो करो हो। हाथो पे हाथ रखो के तो बैठो न-।”

जमना ने दोनों को देखा फिर सोच भरे स्वर में कह उठा।

“मैं इस बारे में कोई जल्दी नहीं करना चाहती। जहां इतनी देर प्यासी रह गयी। कुछ देर और सही। लेकिन अपने लिए मर्द को पहचानने में धोखा खा जाना पसन्द नहीं करूंगी। तुम दोनों में से मेरे लिये कौन बढ़िया रहेगा? ये जानने के लिये कोई खास तरकीब लगानी पड़ेगी।”

“का तरकीबो हौवे थारो पास?”

“यही तो अब सोचना है।” कहते हुए जमना कुर्सी से खड़ी हो

गई-“और जब तक मैं तरकीब नहीं सोच लेती तुम दोनों महल में मजे से रहो। किसी चीज की कमी नहीं होगी। लेकिन महल से बाहर निकलने या यहां से भागने की चेष्टा की तो, खतरनाक अंजाम भुगतना पड़ेगा।”

“थारी धमकी में तो प्यार का समन्दर छलको हो।”

“तुम्हें कब तक तरकीब मिल जायेगी कि ये पहचान-?” पारसनाथ ने कहना चाहा।

“मैंने पहले ही कहा है कि इस बारे में मैं जल्दी नहीं करूंगी।”

जमना ने कहा-“हो सकता है दो-चार महीने में ही कोई तरकीब

समझ में जाये या फिर पांच-सात साल भी लग सकते हैं।”

“तबो तक तो हम बूढो हो जायो। दांतों भी सड़नो लगे। म्हारी हड्डो।”

“मैं पहले ही कह चुकी हूं कि अपनी पसन्द के मर्द को मैं पच्चीस बरस का सुन्दर युवक बना दूंगी। उम्र को कम करने और बढ़ाने का कार्य, शैतान के अवतार ने मुझे बता रखा है।” जमना मुस्कराकर कह उठी-“शायद वो जानता होगा कि कभी मैं मनुष्यों को लेकर ऐसी उलझन में फंसूंगी।”

“यो तो ईब म्हारे को बरेली को लाद के ही छोड़ो हो।”

जमना ने वहां मौजूद सेविकाओं से कहा।

“इन दोनों मनुष्यों को महल के मेहमानखाने में इज्जत से पहुंचा दो और इनकी जरूरत का हर ख्याल रखो। मेरे लिये ये मनुष्य खजाने से कम नहीं है। जिसने भी लापरवाही बरती, उसे सिर्फ मौत मिलेगी।”

“हम इन मनुष्यों का पूरा ध्यान रखेंगी रानी जी।” एक सेविका

ने सिर झुकाकर कहा।

जमना ने पारसनाथ और बांकेलाल राठौर को देखा।

“एक से एक खूबसूरत युवती तुम दोनों की सेवा में रहेगी। लेकिन अपनी नीयत खराब मत करना। अगर किसी युवती के साथ प्यार करने की कोशिश की तो उसी वक्त मारे जाओगे।”

“पारसनाथ-। यो तो धमकी भी ऐसो दयो कि ट्राई करनो का हौसलो भी कम्भो न बनो हो।”

जवाब में पारसनाथ मुस्कराकर रह गया।

“ले जाओ इन दोनों मनुष्यों को।”

चार युवतियां बांकेलाल राठौर और पारसनाथ की तरफ बढ़ गयीं।

☐☐☐

शैतान का अवतार।

पूर्व जन्म का द्रोणा।

कई दिनों के बाद थका-हारा अपने महल में लौटा। परेशानी और खीझ उसके चेहरे से स्पष्ट झलक रही थी। गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल को तलाश करने के लिये नगरी जाकर, कई-कई बार रूप बदलकर, अथाह मेहनत करने के पश्चात् भी बाल को तलाश न कर पाया था।

सबसे ज्यादा झुंझलाहट उसे इस बात की हो रही थी कि आज तक उसने कोई काम अधूरा नहीं छोड़ा था। शैतान का हुक्म पाते ही, काम को सम्पूर्ण कर देता था, परन्तु गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल को ढूंढना, उसके लिये समस्या बनता जा रहा था।

महल में पहुंचते ही उसने एक तरफ लटक रहे घंटे की जंजीर खींची तो दूर कहीं घंटा बजने का स्वर गूंजा। उसके बाद वो थका-हारा आरामदेह कुर्सी पर जा बैठा था। नगरी में ही शैतान के अवतार ने अपनी शक्ति के दम पर जान लिया था कि मिन्नो ने तिलस्म का दूसरा ताला भी तोड़ डाला था। प्रेतनी चंदा अपनी ताकत गवां कर शैतान के पास वापस चली गयी थी। और उधर देवा तिलस्म का आखिरी ताला तोड़ने के लिये, सही रास्ते पर कदम बढ़ा चुका था।

लेकिन तिलस्म के तीसरे ताले के बारे में शैतान का अवतार निश्चिंत था। वो जानता था कि साधारण मनुष्य के बस का नहीं है, उस ताले तक भी पहुंच पाना। वहां जाने की कोशिश में हर उस मनुष्य को मौत मिलेगी जो उधर का रुख कर चुका है। ये जुदा बात मनुष्य थी कि दूसरे ताले के टूटने के बारे में जानकर वो गुस्साया हुआ था। वरना पहले तो उसे इस बात का भी पूरा

विश्वास था कि मनुष्य के रूप में आने वाले, देवा और मिन्नो पहला ताला भी नहीं तोड़ सकेंगे।

“मूरत सिंह अपनी सेवा में हाजिर है मालिक-।”

इन शब्दों को सुनकर शैतान का अवतार सोचों से बाहर निकला। सामने मूरत सिंह खड़ा था।

“मदिरा बनाओ। इस वक्त मुझे हरे रंग वाली मदिरा की जरूरत है।”

“अभी हाजिर करता हूं।” कहने के साथ ही मूरत सिंह फौरन बाहर निकल गया।

मिनट भी नहीं बीता होगा की मूरत सिंह वापस लौट आया। साथ में दो युवतियां थीं। एक ने चांदी की ट्रे पकड़ रखी थी दोनों हाथों से। ट्रे में चांदी का खूबसूरत जग और चांदी का ही गिलास रखा था। वो शैतान के अवतार से पांच कदम पहले ही रुक गई और सिर झुका लिया। दूसरी युवती ने ट्रे में रखे जग से गिलास भरा और पास पहुंचकर शैतान के अवतार के सामने किया।

“लीजिये मालिक-।” युवती ने आदर भरे स्वर में कहा।

शैतान के अवतार ने गिलास थामा और खाली करके वापस दिया।

“जब तक मालिक इन्कार न करें, तब तक मदिरा का दौर जारी रखो।” मूरत सिंह ने कहा।

“जो हुक्म-।”

गिलास का भरना और खाली होना जारी रहा।

इस दौरान बातचीत भी होती रही।

“मालिक-।” मूरत सिंह ने कहा-“कुछ बुरी खबर है।”

तीन गिलास पीने के पश्चात शैतान के अवतार की आंखों में सुर्खी दिखने लगी थी।

“ऐसी कोई बुरी खबर नहीं, जिसकी जानकारी मुझे न हो।”

“मिन्नो ने तिलस्म का दूसरा ताला भी तोड़ दिया है। पहला ताला देवा और मिन्नो ने मिलकर तोड़ा था, परन्तु ये काम मिन्नो ने अकेले किया है। मैं हैरान हूं कि प्रेतनी चंदा साधारण मनुष्यों से कैसे हार गई-।”

“अपनी बेवकूफी से।” शैतान के अवतार का चेहरा गुस्से से भरा नजर आने लगा-“मनुष्यों को खत्म करने की अपेक्षा, उन्हें मुकाबला करने का मौका दे दिया। वो भी अपना खास खंजर देकर-।”

“ओह! इस बात की जानकारी नहीं थी मुझे-। परन्तु अब क्या होगा?”

“क्या मतलब?”

“जिन्न बाधात ने देवा को तीसरे ताले का रास्ता दिखा दिया है।” मूरत सिंह गम्भीर स्वर में कह उठा।

शैतान के अवतार के चेहरे पर, शैतानी मुस्कुराहट उभरी।

“जिन्न बाधात ने बहुत ही अच्छा कार्य किया है मूरत सिंह।” गिलास खाली करके शैतान का अवतार हंस पड़ा-“जिन्न बाधात बखूबी जानता है कि तीसरे ताले के रास्ते पर मनुष्यों को सिर्फ मौत ही मिलेगी और मेरा मकसद उन मनुष्यों को तड़पा-तड़पा कर मारना है। तीसरे ताले की तरफ जाने वाले मनुष्य शीघ्र ही मरने वाले हैं। ऐसा होते ही मेरी शक्तियां फौरन मुझे खबर कर देंगी।”

युवती शैतान के अवतार से गिलास लेकर, उसे पुनः भरने लगी।

“मालिक आपका काम पूरा हुआ।”

“इसी बात का तो दुःख हो रहा है मूरत सिंह कि शक्तियों से भरी बाल को मैं खोज नहीं पा रहा हूं। गुरुवर ने जाने कहां बाल छिपा दी है। नगरी का जर्रा-जर्रा छानते हुए, अब मन खराब होने लगा है। लेकिन मैं हिम्मत हारने वालों में से नहीं हूं। शक्तियों से भरी उस बाल को मैं अवश्य तलाश कर लूंगा। अफसोस तो इस बात का है कि गुरुवर की नगरी में मेरी खास शक्तियां कमजोर पड़ जाती हैं। वरना शक्तियों से भरी उस बाल का पता मेरी शक्तियां ही बता देतीं।” शैतान के अवतार के दांत भिंच गये थे। क्रोध और नशे की वजह से आंखों की सुर्सी और भी बढ़ गई थी-“मेरे सेवक उस नगरी में हर तरफ फैले बाल की तलाश कर रहे हैं। कभी भी उन्हें सफलता-।”

तभी वहां बिजली जैसी चमक पैदा हुई।

सबने उस तरफ देखा।

दागड़ा खड़ा नजर आया।

“मालिक की सेवा में हाजिर है दागड़ा-।” दागड़ा ने कहा।

“तू-।” शैतान के अवतार के होंठों से निकला-“मैंने तो तुझे बाल की तलाश में दासी भेजा था।”

“मैं नगरी से ही आ रहा हूं मालिक-।”

“बाल मिल गई क्या?” शैतान के अवतार के माथे पर बल उभरे।

“नहीं मालिक।” दागड़ा ने सिर हिलाकर कहा-“बाल नहीं मिली। उसी की तलाश में लगा हुआ था कि गुरुवर के खास शिष्य शुभसिंह को मरे बाद वजूद पर शक हो गया। वो जान गया कि मैं अलका सेवक हूं। उसने मेरी जान लेनी चाही तो मजबूरन मुझे वहां से भागना पड़ा। क्योंकि गुरुवर की नगरी में मेरी शक्तियां जाने क्यों कमजोर पड़ रही हैं। वहां ऐसा लगता है, जैसे मेरी ताकत किसी ने छीन सी ली हो।”

शुभसिंह के बारे में जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “ताज के दावेदार”।

“अवश्य तुम्हें ऐसा लगा होगा।” शैतान का अवतार दांत किटकिटाकर कुर्सी से उठा और चहलकदमी करने लगा-“ऐसा इसलिए हो रहा है कि गुरुवर ने यज्ञ में व्यस्त होने से पहले चंद शक्तियां नगरी की हवा में फैला दी थीं कि नगरी में बाहर से आने वाली शैतानी शक्तियां क्षीण हो जायें।”

“गुरुवर ने ऐसा क्यों किया होगा मालिक?”

“शायद! इसलिए कि गुरुवर को इस बात का पहले ही शक रहा होगा कि कोई उसकी शक्तियों से भरी बाल को तलाशने की कोशिश करेगा।” शैतान का अवतार गुर्रा उठा-“गुरुवर के यज्ञ को खराब करने का पूरा प्रयत्न किया है मैंने। परन्तु ठीक अन्तिम मौके पर मेरी शक्ति दगा दे जाती है। गुरुवर ने खुद को बचाने का पूरा इन्तजाम कर रखा है लेकिन देर-सवेर में मैं गुरुवर के सारे इन्तजाम बेकार कर दूंगा।”

“नगरी में गुरुवर के शिष्य हर तरफ सतर्क नजर आते हैं। शुभसिंह के अलावा प्रताप सिंह और कीरत लाल से भी मेरा टकराव होते-होते रह गया।”

“तुम दो दिन आराम कर लो। फिर नये वजूद में, नगरी जाकर उस बाल को तलाश करना।”

“जो हुक्म-।”

“जाओ।”

उसी पल दागड़ा नजरों से ओझल हो गया। जैसे हवा में घुल गया हो।

शैतान के अवतार ने युवती के हाथ से गिलास थामा और फेंका।

“उस मनुष्य युवती का क्या हाल है जो काले महल में, हमारे बेडरूम में कैद है।”

“वो ठीक है मालिक। उसे बराबर खाना-पीना दिया जा रहा है।” मूरत सिंह ने तुरन्त कहा-“वो तो कब से आपका दिल बहलाने के लिये आपके खास बेड पर बैठी आपकी राह देख रही हैं।”

“इन कामों से फुर्सत पाकर, सब से पहले उसी से मन बहलाऊंगा। तुम सब जाओ। कुछ देर मुझे आराम करना है। बहुत थका हुआ हूं। आज मेरी पसन्द का खाना तैयार होना चाहिये।”

“अवश्य मालिक। मैं अभी आपके रसोइये को हुक्म देता हूं। आपके खास भोजन के लिये उसने कई लोगों का चुनाव कर रखा होगा। उनमें से सबसे गुदाज जिस्म वाले को काटकर, वो जल्दी आपका भोजन तैयार करेगा। खाना तैयार होते ही मैं आपको खबर दूंगा।”

शैतान के अवतार ने हाथ के इशारे से उन्हें जाने का इशारा किया। मूरत सिंह दोनों युवतियों के साथ वहां से बाहर निकल गया। अकेला रह गया शैतान का अवतार वहां। परेशानी और क्रोध रह-रह कर उनके चेहरे पर नजर आने लगना। हाथ में पकड़ा गिलास उसने होंठों की तरफ बढ़ाया।

“द्रोणा-।”

शैतान के अवतार के जिस्म को जैसे करंट लगा। गिलास छलका। फिर गिलास हाथ से निकल कर नीचे जा गिरा। तूफानी रफ्तार से उसकी निगाह हर तरफ गई।

कोई भी तो नहीं था वहां।

शैतान के अवतार को लगा जैसे कानों को धोखा हुआ है सुनने में। उसे किसी ने नहीं पुकारा। यूं ही-यूं ही गूंज के कानों से टकराने का एहसास हुआ होगा।

“क्या बात है द्रोणा।” गूंजती आवाज उसके कानों से पुनः टकराई-“तू बहुत परेशान लग रहा है।”

☐☐☐

“शै-शैतान-।” शैतान के अवतार के होंठों से कांपता सा स्वर निकला।

“हां। मैं हूँ शैतान। तेरा मालिक। तेरा जन्मदाता-।”

उसी पल शैतान का अवतार पेट के बल नीचे लेट गया। दोनों हाथ जोड़कर आगे को कर दिया। वो गहरी-गहरी सांसें ले रहा था।

“मेरा सिर हाजिर है शैतान। मेरा सब कुछ तेरे कदमों के तले बिछा है। हुक्म कर-।”

“खड़ा हो जा। अपनों को आशीर्वाद दिया जाता है। जान नहीं ली जाती। तू तो मेरा सबसे प्यारा शिष्य है। अपने कर्मों से तूने दुनिया में मेरा नाम रोशन किया है। मुझे भी बहुत खुशी होती है कि मेरे पास द्रोणा जैसे होनहार शिष्य हैं। अपने दूसरे को अपनी शिक्षा देने के दौरान, मैं तो तेरा उदाहरण देता हूं कि मेरा नाम रोशन करना है तो, द्रोणा जैसे बनो।”

“मैं कुछ भी नहीं शैतान! सब आपकी माया है।”

“खड़ा हो जा।”

द्रोणा तुरन्त खड़ हो गया। परन्तु उसके खड़े होने के ढंग में आदर भाव था। कोई भी वहां नजर नहीं आ रहा था। फिर भी द्रोणा इस तरह खड़ा था, जैसे-।

“चार आसमान ऊपर, अपने कामों में व्यस्त था कि मेरी शक्ति ने मुझे खबर दी कि मेरा खास शिष्य द्रोणा परेशान है। तो तेरा हाल जानने आ गया।” शैतान का स्वर पुनः वहां गूंजा।

“मुझे बुलावा भेज देते शैतान। मैं आपके सामने हाजिर हो जाता।” शैतान के अवतार के होंठ हिले।

“ऐसा करके मैं तेरे कार्यों में बाधा नहीं डालना चाहता था। मैं जानता हूं इन दिनों तू व्यस्त है। मैं तो सिर्फ ये जानने आया हूं कि तू परेशान क्यों है।”

“शैतान से क्या छिपा है। आप तो हमारे दिलों का हाल भी जानते हैं।”

“फिर भी मैं तेरे मुंह से तेरी परेशानी सुनना चाहता हूं।” शैतान की आवाज वहां पुनः गूंजी।

“शैतान!” परेशान सा अवतार हाथ जोड़कर कह उठा-“मैं गुरुवर की शक्तियों वाली बाल की वजह से बेहद कष्ट के दौर से गुजर रहा हूं। बहुत कोशिश की, परन्तु वो बाल मुझे प्राप्त नहीं हो रही।”

“हिम्मत मत हार द्रोणा।” शैतान की आवाज कानों में पड़ी-“जो काम मैंने तेरे को सौंपा है, उसे सच्चे मन से पूरा करने की कोशिश करता रह। मेहनत हमेशा ही कोई न कोई रंग दिखाती है।”

“सच बात तो ये है शैतान कि मुझे शक होने लगा है कि इस काम में शायद सफल न हो सकूँ।”

“तेरी बातों से कमजोरी झलक रही है द्रोणा। मैंने तुझे अपना अवतार बनाकर, भेजा। अब सोचता हूं कि मैंने अपने अवतार के चुनाव में कोई गलती तो नहीं कर दी।”

“नहीं शैतान। आपका चुनाव गलत नहीं है। तेरी बातों का ये मतलब नहीं था। बहुत ज्यादा थके होने की वजह से शायद ये सब कह गया।” शैतान के अवतार ने अभी तक हाथ जोड़ रखे थे-“मैं यकीनन शक्तियों से भरी वो बाल तलाश कर लूंगा।”

“मुझे मालूम है द्रोणा! तू मेरा खास शिष्य है। तेरी मेहनत अवश्य रंग लायेगी।”

“लेकिन शैतान एक परेशानी अकसर मेरे मन में आकर बैठ जाती है।” शैतान का अवतार बोला।

“वो भी बता-।”

“कई बार मन में आता है कि शक्तियों से भरी उस बाल की पहचान नहीं है मुझे। हो सकता है कभी वो मेरी नजरों के सामने आई हो, परन्तु मैं उसे पहचान न पाया था फिर आने वाले वक्त में भी ऐसा हो जाना सम्भव है शैतान। उस बाल को पहचानने की कोई निशानी हो तो मुझे बता दो।”

“अवश्य-।” शैतान का स्वर कानों में पड़ा-“तेरी इस समस्या का समाधान अभी कर देता हूं।”

कुछ पलों के लिये वहां खामोशी छा गई।

शैतान का अवतार उसी तरह हाथ बांधे खड़ा रहा।

तभी शैतान का स्वर उसके कानों में पड़ा।

“सिर उठा द्रोणा। अपने ऊपर देख-।”

द्रोणा ने फौरन गर्दन को छत की तरफ घुमाया साथ ही चौंका-सिर से कुछ फीट ऊपर तीन इंच के व्यास का गोला हवा में लहराता नजर आ रहा था। वो गोला दूधिया कांच का लग रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे उसमें से रोशनी फूट रही हो।

“ये-ये क्या है शैतान?” शैतान के अवतार के होंठों से निकला।

वो छोटा सा दूधिया गोला हवा में घूमता हुआ अब उसके सामने की तरफ आ गया था।

“ये गुरुवर की बाल का अक्स है द्रोणा। जिस शक्तियों से भरी बाल को तू तलाश कर रहा है वो बाल ठीक ऐसी ही है। दिखने पर तू आसानी से पहचान लेगा शक्तियों से भरी बाल को?”

“हां शैतान।” उसके होंठों से निकला-“अब शक्तियों से भरी बाल को पहचानने में मैं धोखा नहीं खा सकूँगा।”

उसी पल वो दूधिया बाल, हवा में लहराती, एकाएक उसकी निगाहों से ओझल हो गह।

“शैतान-।” शैतान के अवतार के होंठ हिले। उसका चेहरा गहरी सोच में लग रहा था।

“बोल द्रोणा।” शैतान की गूंजती आवाज उसके कानों में पड़ी।

“आप तो अथाह शक्तियों के मालिक हैं शैतान। अपनी ताकत से पूरी दुनिया में उथल-पुथल पैदा कर सकते हैं। युग के युग तबाह कर सकते हैं। आपको तो आपकी शक्तियां एक पल में भी बता देंगी कि गुरुवर ने अपनी शक्तियों से भरी बाल कहां छिपा रखी है।” शैतान के अवतार ने कहा-“आप अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके, उस बाल को क्यों नहीं हासिल कर लेते।”

“ये कोशिश तो मैंने गुरुवर के यज्ञ आरम्भ करने पर ही की थी।” शैतान का स्वर सुनाई दिया-“जब मुझे सफलता नहीं मिली तो बाल को तलाश करने का कार्य तुम्हारे हवाले कर दिया।”

“क्या?” शैतान के अवतार के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे-“हैरानी है शैतान कि आपको सफलता नहीं मिली।”

“इसमें हैरानी की कोई बात नहीं द्रोणा।”

“मैं समझा नहीं।”

“गुरुवर की शक्तियों की बाल हम क्यों तलाश कर रहे हैं द्रोणा?” शैतान की आवाज आई।

“क्योंकि गुरुवर की शक्तियों की कोई सीमा नहीं। उन शक्तियों

को पाने में गुरुवर ने हजार बरस से ज्यादा का वक्त लगा दिया।

अगर वो बाल हमें मिल जाये तो हम उन शक्तियों का इस्तेमाल

करेंगे। आप और भी बेपनाह ताकत के मालिक बन जायेंगे। कोई हमारा मुकाबला नहीं कर सकेगा।” शैतान का अवतार कह उठा।

“तू ठीक कहता है द्रोणा। लेकिन ये बात तेरी समझ में क्यों नहीं आई कि गुरुवर ने थोड़ा भी इन्तजाम किया होगा कि कोई भी, अपनी खास शक्ति का इस्तेमाल करके ये बात न जान ले कि उस बाल में एक मोती डाल रखा था होंठों से निकला।”

“हां। उस बाल के मंत्र में लिपटा एक चमकीला मोती डाल रखा है गुरुवर ने। जब तक वो मोती उस बाल के भीतर मौजूद है तब तक कोई भी शक्ति ये नहीं बता सकती कि, बाल को कहां पर छिपा रखा है। यही कारण रहा कि मेरी शक्तियां उस बाल के बारे में कोई जानकारी नहीं पा सकीं।”

“कोई बात नहीं शैतान।” शैतान का अवतार दांत भींच कर दृढ़ स्वर में कह उठा-“वो बाल जहां भी छिपा कर रखी गयी है, मैं अवश्य उसे शीघ्र ही ढूंढ निकालूंगा।”

“मुझे तुम पर पूरा भरोसा है द्रोणा।”

“आपके आशीर्वाद के दम पर ही मेरे कार्य सम्पूर्ण होते हैं। आपके बिना मेरा वजूद कुछ भी नहीं।”

“मुझे तुझ पर नाज है। तूने बहुत बार मेरा नाम रोशन किया है।” शैतान की आवाज कानों में पड़ी-“कोई और परेशानी हो तो मुझे बता-।”

201

“सब ठीक है शैतान। अब कोई परेशानी नहीं-।”

“उन मनुष्यों की तरफ से कोई परेशानी है जिन्हें तूने धरती से अपनी जमीन पर आने का मौका दिया?”

“उन मनुष्यों से मुझे कोई परेशानी नहीं।” शैतान के अवतार का स्वर कठोर हो गया-“वो देवा और मिन्नो हैं। साथ में गुलचंद,

जग्गू, त्रिवेणी, नीलसिंह, परमू और भंवर सिंह हैं। मैं अपने पहले जन्म की मौत भूला नहीं हूं शैतान। इन सबने मुझे तड़पा-तड़पा कर मारा था। रहम मांगने पर भी रहम नहीं किया। अब ये सब तड़प-तड़प कर मरेंगे। मैं उस जन्म की मौत का बदला लूंगा। अब ये सब मेरे जाल में फंसे पड़े हैं।”

दो पल की खामोशी के बाद शैतान की आवाज वहां गूंजी।

“द्रोणा! तिलस्म के तीन दरवाजे तूने बताये थे कि तुम्हारा कोई भी दुश्मन तुमसे टकराना चाहेगा, तो उसे उन तीनों तालों को तोड़ना पड़ेगा। तभी तुम उसके मुकाबले पर उतरोगे। उन मनुष्यों ने दो ताले जाने-अन्जाने में तोड़ दिये हैं। अब तीसरा और आखिरी ताला ही बाकी है। अगर वो भी टूट गया तो तुम्हारा तिलस्म तबाह हो जायेगा। तुम्हें उन मनुष्यों से टकराना पड़ेगा।”

शैतान के अवतार के चेहरे पर मौत से भरे भाव आ ठहरे।

“शैतान! वो मनुष्य तिलस्म का तीसरा ताला नहीं तोड़ सकेंगे। उससे पहले ही मर जायेंगे।”

“तुम्हें आगाह करना तो मेरा काम है द्रोणा। चूंकि ये तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है इसलिये मैं इस मामले में न तो दखल दूंगा। न ही सलाह दूंगा। ये बात मैंने तुमसे इसलिये की कि सोच लो, अगर कहीं गलती कर रहे हो तो उस गलती को सुधारने के लिये तुम्हारे पास पर्याप्त वक्त है।”

“शैतान!” शैतान का अवतार कह उठा-“कभी पूरी न होने

वाली, इस बात को अगर मान भी लूं कि वो मनुष्य तिलस्म का ताला तोड़ कर मुकाबले के लिये वो मेरे सामने आ खड़े होते हैं तो तब क्या होगा। मेरे से और मेरी शक्तियों से वो किसी भी हाले सूरत में मुकाबला नहीं कर सकेंगे। मैं पलों में उन्हें खत्म कर दूंगा। मुझे अपनी शक्तियों पर पूरा भरोसा है शैतान। फिर आपका आशीर्वाद तो-।”

“द्रोणा!” शैतान का स्वर कानों में पड़ा-“मनुष्यों का मुकाबला

करने के लिये अगर तेरे को मेरे आशीर्वाद की जरूरत है तो मैं तेरे को कमजोर कहूंगा।”

“ठीक है शैतान! मैं आपके आशीर्वाद के बिना ही मनुष्यों को तड़पा-तड़पा कर मारूंगा।”

202

“मैं जा रहा हूं। तू अपने कर्म कर द्रोणा। तेरे कर्मों का हिसाब मैं लिखता रहूंगा।”

“शैतान की जय हो।” कहने के साथ ही शैतान का अवतार फौरन पेट के बल नीचे लेट गया और दोनों हाथ जोड़े हुए आगे

को कर दिया।

करीब मिनट भर ऐसे ही पड़ा रहा।

शैतान का स्वर कानों में नहीं पड़ा। शैतान के चले जाने का जब शैतान के अवतार को विश्वास हो गया तो वो उठा और गहरी-गहरी सांसें लेता, थका सा कुर्सी पर जा बैठा। सोचों में सिर्फ गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल थी कि जल्द से जल्द कैसे वो बाल तलाश करें?

☐☐☐

मध्यम से झटके ने देवराज चौहान, जगमोहन और महाजन को इस बात का एहसास दिलाया कि नीचे जाती मीनार रुक गई है। तीनों ने एक-दूसरे को देखा।

“मीनार रुक गई है।” जमोहन बोला।

“मुसीबतें शुरू-।” महाजन मुस्कराया और दो तगड़े घूंट भरे। देवराज चौहान कुछ कहने लगा कि तभी मीनार की वो दरवाजे रूपी जगह खुल गई और बाहर फर्श नजर आने लगा। पर्याप्त रोशनी हो रही थी वहां।

तलवार पर देवराज चौहान की पकड़ सख्त हो गई। उसने दरवाजे रूपी जगह से झांककर बाहर देखा। ये सामान्य सा कमरा था। वो मीनार कमरे की बीचो-बीच मौजूद थी। सामान के नाम पर कमरा खाली था। वहां कोई भी नजर नहीं आ रहा था।

देवराज चौहान बाहर निकला और कमरे के फर्श पर खड़ा हो गया। फिर महाजन और जगमोहन भी बाहर निकले। नजरें आस-पास फिर रही थीं।

तभी मध्यम सी आहट के साथ लोहे की मीनार का दरवाजा बंद हो गया और फिर देखते ही देखते वो मीनार ऊपर की तरफ वापस सरकने लगी।छत पर मीनार के आकार के ही साई की मट्ठे जैसी जगह थी। मीनार उसमें समाती हुई, निगाहों से ओझल हो गयी। किसी काले कैद की तरह वो जगह लगने लगी, जिसमें मीनार आई थी। भीतर अंधेरा दिखाई दे रहा था। मीनार नजर नहीं आ रही थी

अब वहां गहरी खामोशी थी।

कमरे में एक अन्य दरवाजा नजर आ रहा था।

“ये तो ऐसा लग रहा है, जैसा अंतरिक्ष यान में हमें चन्द्रमा पर छोड़कर वापस धरती पर चला गया हो।” जगमोहन बोला।

“अगर ऐसा होता तो ज्यादा फिक्र नहीं रहती।” महाजन कह उठा-“सुनसान चन्द्रमा पर जैसे-तैसे जीवन बिता लेते। ऑक्सीजन नहीं है। तो कुछ खोद-खाद कर उसका भी प्रबन्ध कर लेते। पेट भरने का भी किसी तरह जुगाड़ भिड़ा लेते। परन्तु अफसोस की बात है कि ये चन्द्रमा नहीं है। ये शैतान के अवतार के तिलस्म का खतरनाक हिस्सा है जहां किसी भी कदम पर हम मौत के आगोश में होंगे।”

“वास्तव में।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“ये जगह बहुत खतरनाक साबित होगी हमारे लिये। क्योंकि तिलस्म का ताला इसी रास्ते पर है। शैतान का अवतार नहीं चाहेगा कि कोई तिलस्म तबाह कर दे। जिन्न बाधात ने यूं ही नहीं भेजा हमें तिलस्म के ताले की तरफ उसे यकीन रहा होगा कि यहां की बाधाओं को हम किसी भी स्थिति में पार नहीं कर सकेंगे और मर जायेंगे।”

“और मायावी-जादुई शक्तियों का मुकाबला करने के लिये हमारे पास मुद्रानाथ की शक्तियों से भरी तलवार के अलावा और कोई भी हथियार नहीं। एक तलवार से किस-किस चीज का मुकाबला करेंगे।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।

देवराज चौहान के चेहरे पर कठोर सी मुस्कान उभरी।

“अगर हमारे पास ये तलवार भी न होती तो?” देवराज चौहान बोला।

“फिर तो कब का हमारा काम हो गया होता।”

“ठीक कहते हो और ये सोचकर आगे बढ़ो कि शक्तियों से भरी इस तलवार से ज्यादा ताकतवर हथियार दुनिया में दूसरा में है ही नहीं। ये सोचोगे तो इस तलवार का ठीक तरह इस्तेमाल कर सकोगे।”

“सही कहा तुमने-।” महाजन ने गम्भीरता से सिर हिलाया-“यहां से आगे जाने के लिये, सिर्फ वो बंद दरवाजा ही नजर आ रहा है।”

“उधर कैसा भी खतरा हमारा इन्तजार करता हो सकता है।” जगमोहन की निगाह दरवाजे पर जा टिकी।

“मैं आगे रहूंगा।” देवराज चौहान ने कहा-“तुम दोनों मेरे पीछे रहोगे। शक्तियों से भरी इस तलवार की मदद से जितने खतरों से खुद को बचाया जा सकता है, वहां तक तो हमें अवश्य बचना चाहिये।”

“क्या मतलब?”

“कोई बड़ा खतरा भी सामने आ सकता है, जहां तलवार की शक्तियां कमजोर पड़ सकती हैं। ऐसे में उस वक्त देखा जायेगा, कि क्या करना है। जितना आगे बढ़ सकते हैं। उतना तो आगे बढ़ें।

दोनों खामोश रहे।

देवराज चौहान आगे बढ़ा और धकेल कर कमरे का दरवाजा खोला। वो कमरा जितना नजर आया, खाली ही दिखा। देवराज चौहान सावधानी से भीतर प्रवेश कर गया। दो कदम उठाने के पश्चात ठिठका। उसके होंठ भिंच गये। आंखें सिकुड़ गईं।

जगमोहन और महाजन भी भीतर आ गये थे।

एक तरफ दीवार के पास पुरानी सी कुर्सी पर पुराने से कपड़े पहने एक व्यक्ति बैठा था। उसकी आंखें और गाल भीतर धंसे महसूस हो रहे थे। सिर के बाल लम्बे होकर, पीठ तक आ रहे थे। गालों पर शेव के जरा से बाल थे जैसे दो दिन पहले शेव की हो। उसके पास दूसरी कुर्सी भी पड़ी थी। लेकिन वो कुर्सी खाली थी। उसके अलावा वहां कोई नजर नहीं आया।

उसने बारी-बारी तीनों को देखा फिर उसकी निगाह देवराज

चौहान पर जा टिकी कभी वो देवराज चौहान को देखता तो कभी उसके हाथ में थमी तलवार को।

“कौन हो तुम?” देवराज चौहान के स्वर में कठोरता थी।

जवाब में पहले वो अजीब से अंदाज में मुस्कराया फिर बोला।

“यहां का पहरेदार हूं मैं।” उसकी भारी सी आवाज किसी गहराई से आती महसूस हो रही थी-“शैतान के अवतार के हुक्म का गुलाम हूं और मालिक का हुक्म है कि यहां से कोई भी आगे न जाये-।”

“हमें आगे जाना है।” देवराज चौहान के स्वर में सख्ती आ गई।

“मैं नहीं जाने दूंगा।” कहते हुए उसने इंकार भरे अन्दाज में गर्दन भी हिलाई।

“हमारी जान लोगे?” देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।

“मेरी बात मानोगे तो नहीं लूंगा और यहां से आगे भी जाने दूंगा। रोकूंगा नहीं।” उसने सामान्य लहजे में कहा।

“कैसी बात?”

“तुम्हारे पास जो तलवार है, वो मुझे दे दो। बहुत अच्छी है ये तलवार। मुझे पसन्द आ गई। तलवार मुझे देकर तुम तीनों यहां से आगे जा सकते हैं। मैं नहीं रोकूंगा। कसम ले लो।”

एकाएक देवराज चौहान के चेहरे पर जहरीली सी मुस्कान नाच उठी।

“तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं ये तलवार नहीं दूंगा।” देवराज चौहान कह उठा।

वो हौले से हंसा।

“और तुम भी अच्छी तरह जानते हो कि मैं ये तलवार लेकर रहूंगा। सीधे ढंग से नहीं दोगे तो पहले तुम्हारी जान लूंगा फिर तलवार लूंगा। शराफत से तलवार दे देते हो तो तुम्हारी जान नहीं लूंगा और आगे भी जाने दूंगा।”

देवराज चौहान ने कमरे में हर तरफ नजरें मारी।

परन्तु वो कमरा तो बंद जैसा था। एक वो ही दरवाजा था, जिसमें भीतर आये थे।

“यहां से आगे जाने का रास्ता कहां है?” देवराज चौहान बोला-“हर तरफ तो दीवारें हैं।”

“शैतान के अवतार ने इस रास्ते का मुझे पहरेदार बनाया है तो रास्ते मेरे ही इशारे पर खुलेंगे। ये बात क्यों भूल जाते हो कि ये तिलस्म है। यहां जो कुछ भी है वो सब माया का खेल है। लाओ तलवार मुझे दे दो।”

“तलवार तुम्हें किसी भी कीमत पर नहीं मिलेगी।”

जगमोहन और महाजन खामोशी से खड़े थे। इन बातों के दौरान महाजन दो-तीन घूंट भर चुका था। वो एक कदम आगे बढ़ा और तीखे स्वर में कह उठा।

“अगर मैं तुम्हारी सूखी गर्दन पकड़ कर तोड़ दूं तो-।”

“तुम्हारे साथ बात करके मैं समय व्यर्थ नहीं करना चाहता।” उसने रूखे स्वर में कहा फिर जाने किससे कह उठा-“मुझे नहीं

लगता कि ये तलवार दे।”

जवाब में ऐसी आवाज उभरी, जैसी दीवार में टकराती तेज हवा गुजरी हो।

उसी पल उस व्यक्ति की जगह कुण्डली मारे फन फैलाये करीब आठ फीट लम्बा नाग नजर आने लगा। उसकी बिना पलकों की गोल आंखें देवराज चौहान पर टिकी थीं।

महाजन हड़बड़ाकर दो कदम पीछे हट गया।

“इसे क्या हो गया?” महाजन के होंठों से निकला।

देवराज चौहान तलवार थामे सतर्क हो चुका था। उसकी निगाह नाग पर थी। वहां पर कुछ पलों के लिये मौत भरा सन्नाटा छा चुका था।

जगमोहन भी एक कदम पीछे हटा।

“अभी भी मेरी बात मान जाओ।” वो ही आवाज पुनः सुनाई दी।

आवाज के साथ उसका खतरनाक सा नजर आने वाला मुंह भी हिल रहा था-“तलवार मुझे दे दो-। मैं बहुत जहरीला हूं। मेरा जहर-।”

“तुमने जो करना है कर-।” देवराज चौहान अपने शब्द पूरे भी नहीं कर सका।

उसी क्षण वो आठ फीट लम्बा वो नाग, कुर्सी से उड़ने के अंदाज में तीर की तरह इस कदर तेज रफ्तारी के साथ आगे आया कि देवराज चौहान को न तो संभलने का मौका मिला और न ही तलवार को इस्तेमाल कर सका। वो नाग बेहद फुर्ती के साथ देवराज चौहान की गर्दन पर अपने शरीर के बल डालता चला गया।

देवराज चौहान को अपनी गर्दन अकड़ती सी महसूस हुई। नाग का फन देवराज चौहान के चेहरे के पास ही था। नाग के होंठों से फुंफकार निकली तो पूरे कमरे में गूंज उठी।

तभी देवराज चौहान ने हाथ में पकड़ी तलवार, गालों के पास हवा में लहराते नाग के फन की तरफ लाया तो औरत की बेहद कठोर आवाज सब को सुनाई दी।

“तलवार का इस्तेमाल मत करना। वरना वो तुम्हें डस लेगा।” देवराज चौहान को अपनी गर्दन अकड़ती महसूस हो रही थी। नाग ने गर्दन पर अपने शरीर का दबाव बढ़ा दिया था। इसके साथ ही उसका फन रह-रह कर उसकी आंखों के सामने आ रहा था।

“तुम कौन हो?” देवराज चौहान बोला। उसकी आवाज गर्दन

पर कसाव के कारण कुछ फंसी-फंसी थी।

“मैं इस नाग की नागिन हूं। तुम तभी बच सकते हो, जब ये तलवार हमें दे दो।”

“मेरी जान लेकर ही तुम ये तलवार ले सकते हो।”

“हां। बहुत आसान है ऐसा करना।” औरत की आवाज सुनाई दी-“लेकिन हम किसी मनुष्य को जान लेकर, खुद को कमजोर नहीं बनाना चाहते। इसलिये तुमसे तलवार मांग रहे-।”

“तलवार की तुम लोगों को क्या जरूरत है?” जगमोहन होंठ भींच कह उठा।

“शैतान के अवतार की तरफ से हुक्म आया है कि आने वाले मनुष्यों से तलवार लेनी है। उसके आदेश का पालन करना है हमें। हमें मजबूर न करो कि तुम मनुष्यों की जान हमें लेनी ही पड़े।”

“मैं अपने जीते-जी तलवार नहीं दूंगा।” देवराज चौहान ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा।

शब्द पूरे होते ही देवराज चौहान की गर्दन पर नाग के शरीर का कसाव और बढ़ गया। देवराज चौहान को अपनी सांस रुकती सी महसूस हुई। चेहरा लाल सा होने लगा। उसी पल देवराज चौहान ने तलवार जगमोहन की तरफ उछाल दी।

जगमोहन ने फौरन लपककर तलवार को थामा।

“छोड़ो मुझे, तलवार मेरे पास नहीं है।” देवराज चौहान ने घुटे स्वर में कहा।

“तुम चालाकी करके बच नहीं सकते।” औरत की आवाज पुनः सुनाई दी। इस बार उसकी आवाज में गुस्सा था-“आधी तलवार इस वक्त मेरे कब्जे में है।”

देवराज चौहान ने कठिनता से गर्दन जरा सी घुमाकर देखा।

जगमोहन ने तलवार थाम रखी थी, परन्तु उसके पकड़ने का ढंग बता रहा था कि तलवार का दूसरा हिस्सा किसी ने थाम रखा है। वो पूरी कोशिश कर रहा था कि तलवार उसके हाथ से निकले नहीं। नाजुक स्थिति थी। तलवार हाथ से निकल भी सकती थी।

“तलवार पकड़ने वाला नजर नहीं आ रहा।” महाजन के होंठों से निकला।

उसी पल देवराज चौहान, फुर्ती से जगमोहन के पास पहुंचा और तलवार पर हाथ रखकर बुदबुदा उठा।

“हे तलवार! हमारे आगे जाने के लिये रास्ता बना।” देवराज चौहान के शब्द पूरे ही हुये थे कि तलवार पर रखे, उसे हाथ को करंट सा लगा।

वैसा ही करंट जगमोहन को महसूस हुआ तो उसने हड़बड़ा कर तलवार छोड़ दी।

दो पल तो किसी को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हो गया है।

“तलवार कहां गई?” महाजन के होंठों में निकला।

तलवार एकाएक जाने कहां गायब हो गई थी।

कुछ पल ही बीते होंगे कि देवराज चौहान की गर्दन से लिपटा नाग, गर्दन से गायब हो गया। देवराज चौहान लम्बी-लम्बी सांसें लेने लगा। गले पर हाथ फेरा। गर्दन पर जहां नाग लिपटा था, वो सारी जगह लाल सी नजर आ रही थी। नाग के हटने से सांसें लेने में बहुत राहत मिली थी।

“नाग भी गायब हो गया।” जगमोहन ठगा सा खड़ा था-“तलवार भी नजर नहीं...।”

तभी दो कुर्सियों पर वो बैठे नजर आने लगे। व्यक्ति वही था, जो अचानक ही नाग बन गया था। उसके साथ पचास बरस की

औरत बैठी भी नजर आई।

“ये क्या?” जगमोहन हैरानी से कह उठा।

महाजन ने घूंट भरा।

“यहां तो जो हो जाये, वो ही कम है।” महाजन बड़बड़ा उठा।

इसी क्षण वो तलवार देवराज चौहान को अपने सामने, हवा में स्थिर खड़ी नजर आई। देवराज चौहान ने हाथ बढ़ाकर तलवार को थाम लिया।

उस आदमी और औरत के चेहरों पर मुस्कान थी।

“इस तलवार में शैतानी नहीं, पवित्र शक्तियां हैं।” कुर्सी पर बैठा व्यक्ति कह उठा।

तीनों की निगाह, उस व्यक्ति और औरत पर थी।

“बहुत-बहुत शुक्रिया, पृथ्वी से आये मेहमान मनुष्यों।” वो औरत मुस्कान भरे स्वर में बोली-“ये तलवार बहुत दयावान है। चाहती तो हमें खत्म कर सकती थी। लेकिन इसने हमें खत्म नहीं किया। हमारा उद्धार कर दिया।”

“उद्धार?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“हां।” उस व्यक्ति ने कहा-“हम इच्छाधारी नाग और नागिन हैं। कभी हम नागलोक से हर तरह की दुनिया देखने निकले थे। हमें नहीं मालूम था कि ये शैतान की धरती है। यहां पहुंचे तो शैतान के अवतार ने अपनी शक्तियों के दम पर हमें अपना गुलाम बना लिया और तिलस्म के इस हिस्से की पहरेदारी पर लगा दिया। जाने कब से हम यहां हैं। अब तो समय का भी हिसाब नहीं हमारे पास। हमने तुम मनुष्यों का जीवन नहीं लेने की चेष्टा की तो तलवार में मौजूद पवित्र शक्तियों ने हमें शैतान की अवतार की कैद से मुक्त करा दिया। अब हम इस शैतानी धरती से जा सकते हैं। कोई भी शैतानी शक्ति हम पर असर नहीं करेगी। नागलोक में सुना था कि मनुष्य जाति सबसे उच्च है। आज इस बात की सत्यता का भी अहसास हो गया। अब मैं अपनी नागिन के साथ वापस नागलोक जा रहा हूं। तुम मनुष्य शायद न महसूस कर सको कि वापस अपने लोक जाते समय हमें कितनी खुशी हो रही है। ये सामने की दीवार, महज एक धोखा है। आगे बढ़ोगे तो ये दीवार के पार निकल जाओगे। ये ही यहां से आगे जाने का रास्ता है।” इसके साथ ही उसने बगल में कुर्सी पर बैठी औरत को देखकर, खुशी भरे स्वर में

कहा-“चल नागिन । वापस अपनी दुनिया में चलते हैं।”

उसके शब्द पूरे हुये थे कि एकाएक वो गायब हो गये और कुर्सियों पर दो चिड़िया बैठी नजर आईं। देखते ही देखते चिड़े-चिड़ी ने उड़ान भरी और दरवाजे से बाहर निकलते चले गये।

तीनों कई पलों तक हैरानी के सागर में ही खड़े रहे।

“वो-वो दोनों इच्छाधारी नाग-नागिन थे।” महाजन के होंठों से निकला।

“मुझे तो उनकी बातों पर अभी भी विश्वास नहीं आ रहा।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।

“उन्होंने जो कहा, सच कहा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“अगर वो तिलस्मी खिलौना होते तो ये तलवार उनका वजूद ही समाप्त कर देती।”

“अजब दुनिया है ये-।” जगमोहन कह उठा।

देवराज चौहान ने सामने की दीवार को देखा।

“ये तिलस्मी दीवार है, जैसा कि उस इच्छाधारी नाग ने कहा। देखने में दीवार वैसे सिर्फ हवा। आओ यहां से आगे चलें।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“अभी जाने किन चीजों से सामना करना पड़ेगा। इस रास्ते के किसी भी हिस्से में, कहीं पर भी हम तीनों में से किसी की भी जान जा सकती है।” कहने के साथ ही देवराज चौहान आगे बढ़ा और उस दीवार के पास पहुंचकर पल भर के लिये ठिठका।

“कहीं ये सच में तो दीवार नहीं-।” महाजन कह उठा।

देवराज चौहान ने कदम आगे बढ़ाया और देखते ही देखते वो दीवार पार करके निगाहों से ओझल हो गया। महाजन और जगमोहन की नजरें मिलीं।

“चल ले भाई।” जगमोहन कह उठा-“यहीं अटके रह गये तो क्या होगा-।”

दोनों तेजी से आगे बढ़े और नजर आ रही दीवार के बीच में गुजर कर नजरों से ओझल हो गये।

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दीवार पार करते ही दो कदमों पर देवराज चौहान था। वो दोनों देवाराज चौहान के पास ठिठके। परन्तु वहां का नजारा देखते ही उनके चेहरों पर अजीब से भाव फैल गये।

देवराज चौहान की नजरें भी हर तरफ फिर रही थीं। होंठ भिंचे हुए थे।

इस वक्त वो जहां थे, वो छोटा सा सामान्य साईज का कमरा था। कमरे में रंग-बिरंगी रोशनियां बिखरी हुई थी। कमरे में अलग-अलग तरफ से तीन रास्ते जाते दिखाई दे रहे थे। एक रास्ते में पीली रोशनी फैली दिखाई दे रही थी। दूसरे रास्ते में लाल और तीसरे रास्ते में हरे रंग की रोशनी फैली थी।

एक तरफ चमकदार भड़कीले कपड़े पहने एक व्यक्ति सेवक की भांति खड़ा था।

आठ-दस फीट के बाद उन तीनों रास्तों के पार कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। क्योंकि उसके बाद जैसे धुंध का दौर आरम्भ हो रहा था। धुंध भी उन रास्तों में फैली रोशनी में रंगी हुई थी।

“ये सब क्या है?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“हमारी, मौत का नया इन्तजाम-।” देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा।

“कब तक बचेंगे।” महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा-“कहीं तो फंस कर ही रहेंगे।”

“लेकिन ये सब है क्या?”

देवराज चौहान ने वहां सेवक की भांति खड़े, भड़कीले कपड़े पहने व्यक्ति को देखा।

वो बुत की तरह खड़ा था।

“कौन हो तुम?” देवराज चौहान ने उसे देखा।

“सेवक।” उसके शरीर में हरकत हुई। उसने देवराज चौहान को देखा-“यहां आने वालों को, रास्तों की जानकारी देने का काम शैतान के अवतार ने मेरे हवाले किया है। हुक्म कीजिये। जानकारी चाहिये हो तो बोलो-।”

देवराज चौहान ने तीनों रास्तों को देखा फिर उस व्यक्ति को।

“कैसी जानकारी दोगे?”

“अगर आप लोग इस तिलस्म में महल जैसा सुख पाना चाहते हैं तो लाल रोशनी वाले रास्ते में चले जाईये। अगर मेहनत करके खाना चाहते हैं तो हरे रंग वाली रोशनी के रास्ते में प्रवेश कर जाईये। अगर भोग-विलास का आनन्द उठाना चाहते हैं, सारे सुख अपने कदमों में देखना चाहते हैं तो पीली रोशनी वाले रास्ते में जाना पड़ेगा।”

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गये।

“हम तिलस्म के ताले तक पहुंचना चाहते हैं।” देवराज चौहान ने कहा।

“मैं नहीं जानता आप क्या कह रहे हैं। मेरे पास जो जानकारी थी, वो मैंने आपको बता दी।”

“ये हरामी तो हमें फंसाने का पूरा इन्तजाम कर रहा है।” महाजन ने कड़वे स्वर में कहा।

“फंसे पड़े हैं।” जगमोहन कह उठा-“इससे ज्यादा और क्या फंसेंगे। आगे मौत, पीछे मौत।”

“कुछ और कहना है तुम्हें?” देवराज चौहान ने उस व्यक्ति से पूछा।

“सिर्फ इतना कि मेरी जानकारी पर यकीन करना आपकी जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती होगी। लेकिन मैं ये भी नहीं कहूंगा कि मैंने जो जानकारी दी है, उस पर आप विश्वास न करें।” वो व्यक्ति बोला।

देवराज चौहान सोच भरे ढंग में खड़ा उसे देखे जा रहा था।

“उल्लू के पट्ठे-।” महाजन ने घूंट भरा-“मालूम है तेरे को तू क्या कह रहा है?”

“मैं आप लोगों को जानकारी दे रहा हूं-।”

“ये कैसी जानकारी दे रहा है कि साथ ही कहता है उस पर यकीन करोगे तो वो हमारी जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती होगी। फिर कहता है कि तुम पर यकीन भी करें।” जगमोहन ने उखड़े स्वर में कहा।

“मेरा काम तो आप लोगों को जानकारी देना है। सोचना-समझना आपका काम है।” वो बोला।

“तेरे को जान प्यारी नहीं।” महाजन ने एक कदम उसकी तरफ बढ़ाया।

“मुझमें जान है ही नहीं तो डर कैसा, मैं तो भटकती आत्मा हूं। इस शरीर को काट दोगे शैतान का अवतार किसी दूसरे शरीर में मेरा प्रवेश करा देगा। जिन्दगी और मौत से मेरा कोई नाता नहीं। मुझे किसी का डर नहीं।”

महाजन ने गहरी सांस ली।

“कम से कम इस बार तो ये सच कहता लग रहा है।” जगमोहन ने उस व्यक्ति को खा जाने वाली नजरों से देखा।

“तुमने हमें जो बताया है, उससे ज्यादा नहीं बता सकते?” देवराज चौहान बोला।

“इसके अलावा मेरे पास किसी भी तरह की जानकारी नहीं है। अब मैं आप लोगों के किसी काम का नहीं। चाहें तो बेशक मेरा शरीर काट दीजिये। बेशक छोड़ दीजिये।” उसके स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था।

“इसने तो एकदम ही हाथ खड़े कर दिये-।” महाजन ने घूंट भरा।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया। चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे। फिर जगमोहन और महाजन को देखा। दोनों ने भी उसे देखा।

“क्या कहते हो।” देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभर आई-“किस रास्ते पर आगे बढ़ा जाये?”

“मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा।” जगमोहन बोला-“जिस रास्ते पर कहोगे, चल पड़ेंगे।”

देवराज चौहान ने सवालिया निगाहों से महाजन को देखा।

“जगमोहन ने ठीक कहा है।” कहते हुए महाजन ने गहरी सांस ली।

कुछ पलों की सोच के बाद देवराज चौहान कह उठा।

“इन हालातों में, जो सबसे ठीक लगता है, वो तो ये है हम तीन हैं और हमारे सामने तीन ही रास्ते हैं। पहले मैं एक रास्ते पर जाता हूं। अगर सब ठीक रहा तो फिर तुम दोनों भी उसी रास्ते पर आ सकते हो। अगर मैं कुछ देर में वापस न लौटा तो, तुम दोनों इसी तरह बारी-बारी दूसरे दो रास्तों पर जाओगे।”

“इससे क्या होगा?” जगमोहन बोला।।

“इनमें कोई एक रास्ता तो ठीक होगा। हम में से कम से कम एक तो बच जायेगा।”

“बचने वाला एक कब तक बचेगा।” जगमोहन गम्भीर था-“आगे कहीं जाकर फंस जायेगा।”

“इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। वो आगे की बात है।” देवराज चौहान ने हौले से सिर हिलाया-“मैं इस वक्त के हालातों पर बात कर रहा हूं-।”

महाजन ने घूंट भरा।

जगमोहन की निगाह उन तीनों रास्तों पर फिरने लगी।

“मैं जाऊं एक रास्ते पर-?” जगमोहन बोला।

“मेरे पहले जाने में क्या हर्ज है?”

“मेरे पास मुद्रानाथ की शक्तियां से भरी तलवार है। पहले मेरा जाना ही ठीक रहेगा। तुम दोनों से जैसा कहा है, वैसा ही करना। कहने के साथ ही देवराज चौहान उस रास्ते की तरफ बढ़ा, जिसमें लाल रोशनी थी।”

“लाल रंग तो खतरे की निशानी होता है।” जगमोहन जल्दी से कह उठा।

देवराज चौहान ठिठक कर पलटा और मुस्कराकर बोला।

“किसी को तो इस रास्ते पर जाना ही है।”

जगमोहन कुछ न कह सका। उसने महाजन को देखा। महाजन व्याकुल नजर आया।

तभी उनके कानों में दौड़ते कदमों की आवाज पड़ने लगी।

तीनों चौंके।

“ये आवाज-?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“इन्हीं तीनों रास्तों में से, किसी एक रास्ते पर कोई दौड़ रहा है।” देवराज चौहान के होंठ भिंच गये।

“किस रास्ते पर-?” महाजन की निगाह जैसे तीनों रास्तों पर ठहरी हुई थी-“ये-ये आवाजें हरी रोशनी वाले रास्ते पर से आ रही हैं।”

“अब आवाजें पास आ गई हैं।” कहते हुए देवराज चौहान सतर्क हो गया। तलवार को संभाल कर पकड़ लिया-“आने वाला इसी तरफ आ रहा है।”

तीनों की निगाहें हरी रोशनी वाले रास्ते पर टिक चुकी थीं।

दौड़ते कदमों की आहटें बेहद करीब आ पहुंची थीं। फिर देखते

ही देखते कोई हरी रोशनी वाले रास्ते से निकला और खुद को कमरे में पाकर कठिनता से अपने दौड़ते कदमों पर काबू पाया।

आने वाले को देखते ही तीनों चौंके।

“बेबी-।” महाजन के होंठों से हैरानी भरा स्वर निकला।

वो मोना चौधरी ही थी।

“तुम?” देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे थे।

“मोना चौधरी का इस तरफ से आना, वास्तव में हैरानी वाली बात है।” जगमोहन कह उठा।

मोना चौधरी गहरी-गहरी सांसें ले रही थी। उखड़ी सांसों पर काबू पाने की चेष्टा कर रही थी।

करीब मिनट भर में उसने खुद पर बहुत हद तक काबू पा लिया।

“तुम लोगों को यहां देखकर मुझे आश्चर्य के साथ-साथ खुशी भी हो रही है।” मोना चौधरी की उखड़ी साँसें अब ठीक होती जा रही थीं-“मैंने तो सोचा था कि शायद हम कभी न मिल-।”

“ऐसा मत कहो बेबी।” महाजन कह उठा-“तुम भी ठीक। हम भी ठीक। बाकी लोग कहां हैं?”

मोना चौधरी के चेहरे पर दुःख के भाव नजर आने लगे।

“मैं उन्हें न बचा सकी।”

“क्या मतलब?” देवराज चौहान के होंठ भिंच गये।

“देवराज चौहान-।” मोना चौधरी ने उसे देखा-“जिन्न बाधात ने गलती से हमें ऐसे रास्ते पर डाल दिया इत्तेफाक से हम शैतान

के अवतार तक जा पहुंचे।”

“शैतान के अवतार तक?” महाजन के होंठों से निकला।

“हां।” मोना चौधरी गम्भीरता से सिर हिलाया-“शैतान के अवतार तक हम पहुंच गये थे। लेकिन हमारे पास ऐसा कोई हथियार नहीं था कि जिससे शैतान के अवतार का मुकाबला कर पाते। जबकि शैतान के अवतार के पास तो खतरनाक से खतरनाक शक्तियां हैं। उसने हम पर जाने कैसा वार किया कि देखते ही देखते सब आग में घिर गये और जान गवां बैठे। बहुत बुरा हुआ।”

“ये नहीं हो सकता।” जगमोहन के होंठों से तड़प भरा स्वर निकला।

“ये हो चुका है।” मोना चौधरी का स्वर भर्रा उठा-“मेरी आंखों के सामने हुआ है।”

महाजन की हालत ऐसी हो गई थी, जैसे उसमें जान ही न हो।

जगमोहन खा जाने वाली निगाहों से मोना चौधरी को देख रहा था।

“तुम कैसे बच गईं?” देवराज चौहान के होंठों से सर्द स्वर निकला।

“मैं-।” मोना चौधरी ने गीली हो चुकी आंखों को साफ करते हुए कहा-“शैतान के अवतार के वहां पहुंचने से पहले ही, रास्ता देखने के लिये दूसरी तरफ चली गयी। सामने न होने की वजह से शैतान के अवतार को मेरी मौजूदगी का एहसास नहीं हो पाया। मैं उसकी निगाहों में न आ सकी और बच गयी। परन्तु अपनी आंखों से अपने साथियों का तड़प से भरा अंत देखा। कुछ भी नहीं कर सकी मैं उनके लिए। शैतान के अवतार का मुकाबला करने के लिये मेरे पास कुछ भी नहीं था। खुद को बचाने के लिये मैं एक छोटे से रास्ते में प्रवेश करके दौड़ पड़ी। जाने कब तक दौड़ती रही। मालूम नहीं। उसे बाद यहां आ पहुंची। तुम लोगों के पास-।”

“तो ये रास्ता शैतान के अवतार के महल में जाता है।” जगमोहन का चेहरा क्रोध से सुर्ख हो रहा था।

मोना चौधरी ने हौले से सिर हिलाया। आंखें पुनः गीली हो गईं।

“वो सब जल कर मर गये।” महाजन पागल सा हो रहा था-“शैतान के अवतार ने सबको लजा कर मार डाला। मैं उसे जिन्दा नहीं छोडूंगा। उसे भी आग के हवाले-।”

“होश में आओ महाजन।” मोना चौधरी ने पुनः अपनी गीली

आंखों को साफ किया-“शैतान के अवतार के पास बे-पनाह शक्तियां हैं। उसका मुकाबला करने के लिये-।”

“मैं कुछ नहीं जानता।” महाजन दांत किटकिटा उठा-“मैं उसे मार दूंगा। मैं उसे-।”

“शक्तियों से भरी तलवार है हमारे पास-।” जगमोहन गुस्से से मुट्ठियां भींच रहा था-“इस तलवार की ताकतों का मुकाबला करना आसान नहीं। शैतान के अवतार के साथ हम टकरा सकते हैं।”

देवराज चौहान की निगाह अपने हाथ में थमी तलवार पर गई।

“ये तलवार अवश्य शैतान के अवतार की ताकतों का मुकाबला कर सकती है।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी-“लेकिन सिर्फ इसके दम पर ही शैतान के अवतार पर विजय नहीं पाई जा सकती। उसके पास अवश्य इस तलवार से भी बड़ी शक्तियां होंगी।”

“जो होगा देखा जायेगा।” देवराज चौहान के होंठों से मौत भरा

स्वर निकला-“जिसे मेरे साथ आना हो वो आ सकता है जो यहां रहना चाहे, बेशक रहे।”

“मैं साथ चलूंगा।”

“मैं शैतान के अवतार की मौत देखना चाहता हूं जिसने हमारे साथियों को खत्म किया है।” महाजन का स्वर धधक उठा-“मैं यहां नहीं रुक सकता।”

देवराज चौहान ने उस रास्ते की तरफ कदम बढ़ाये, जिधर हरे रंग की रोशनी थी।

तभी सेवक की भांति खड़ा वो व्यक्ति कह उठा।

“सोच लो। आगे बढ़ने में जल्दी मत करो।”

देवराज चौहान ने ठिठक कर उसे देखा।

“क्या मतलब?”

“इस रास्ते पर धोखा भी हो सकता है।”

“धोखा।” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं। नजरें मोना चौधरी पर गईं। मोना चौधरी ने उलझन भरी निगाहों से उस व्यक्ति के देखा। उस पर शायद पहली बार उसका ध्यान गया था।

“ये कौन है?”

“ये हमारे यहां पहुंचने से पहले ही यहां मौजूद था।” देवराज चौहान ने कहा-“मालूम नहीं इसे यहां खड़ा किया गया है।” फिर वो, उस व्यक्ति से बोला-”तुम कैसे धोखे की बात कर रहे हो।”

“हो सकता है आप तीनों को लाल रोशनी वाले रास्ते में जाना हो। अब आप हरी रोशनी वाले रास्ते पर जा रहे हैं। आप तीनों

लाल रोशनी वाले रास्ते पर जा रहे हैं। अगर रास्ते में कुछ बुरा हो गया तो?”

“मैं अभी इसी रास्ते से आई हूं। यहां कोई खतरा नहीं।” मोना

चौधरी कह उठी।

“तुम्हारी बात को सच मानूं-।” देवराज चौहान बोला।

“मेरी बात को सच माना तो तुम जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती करोगे।” वो व्यक्ति शांत स्वर में कह उठा-“सच नहीं माना तो तुम्हारी जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं।”

“कैसी अजीब बात कर रहा है ये-।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

देवराज चौहान ने दांत भींचे उस व्यक्ति को देखा फिर हरी रोशनी वाले रास्ते में प्रवेश करता चला गया। जगमोहन और महाजन पीछे थे। मोना चौधरी भी साथ थीं।

“तुम भी साथ चल रही हो।” जगमोहन के दांत भिंचे हुये थे।

“अकेले वहां रहने से, साथ चलना ही अच्छा है।” मोना चौधरी ने कहा।

कुछ कदम आगे बढ़ने के पश्चात, रास्ते में धुंध जैसा वातावरण हो गया था।

“रास्ता साफ नजर नहीं आ रहा।” देवराज चौहान बोला।

“कुछ दूर तक ऐसी ही धुंध है। फिर रास्ता साफ है।” मोना चौधरी ने कहा।

वे आगे बढ़ते रहे। धुंध की वजह से कदम उठाने की रफ्तार कम हो गई थी।

“शक्तियों से भरी ये तलवार शैतान के अवतार को खत्म कर सकेगी?” महाजन ने दांत भींच कर पूछा।

“मालूम नहीं।” जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली-“लेकिन ये बात तो तय है कि या तो शैतान का अवतार जिन्दा रहेगा या

हम...। हमारे सब साथी मारे गये। सुनकर सोचकर मैं बार-बार कांप रहा हूं...।”

“समझ में नहीं आता ये सब क्या हो रहा है।” महाजन ने दुःखी

स्वर में कहा-“नगीना तो जिन्दा होगी।”

“क्या मालूम...।”

“शायद वो जिन्दा हो।” मोना चौधरी कह उठी-“शैतान के अवतार की कैद में हो। वो उस वक्त हमारे उन साथियों में नहीं थी, जो मेरे देखते ही देखते जल गये थे।”

“हरामजादे शैतान के अवतार को नहीं छोडूंगा मैं...।” जगमोहन दांत किटकिटा उठा।

“लेकिन...।” महाजन अपने शब्द पूरे न कर सका।

उसी पल देवराज चौहान की चीख गूंज उठी।

वो ठिठके। देखते ही देखते वहां छाई धुंध एकाएक गायब हो गई। उसके बाद जो नजारा देखने को मिला, वो दिल दहला देने वाला ही था।

☐☐☐