बेनक़ाब
“क्या बात है, ऋचा?” हॉल से कार्तिक की आवाज़ आयी, “बहुत परेशान लग रही हो।”
“अच्छा हुआ तुम आ गए, कार्तिक।” ऋचा ने मुँह फुलाकर अनाया की डायरी की ओर देखा।
“लगता है, हमारी तहकीकात अधूरी ही रह जाएगी।”
“क्यों? ऐसा क्या हो गया?” कार्तिक, ऋचा के पास आकर बैठ गया।
“पहले तुम ये डायरी पढ़ो,” ऋचा ने डायरी कार्तिक के हाथ में पकड़ा दी और उठ खड़ी हुई, “मैं तुम्हारे लिए कॉफी बनाकर लाती हूँ।”
पांच मिनट बाद, जब ऋचा कॉफी का कप हाथ में लिए वापस आयी तो उसने देखा कि कार्तिक डायरी का आखिरी पेज पढ़ रहा था। ये देखकर ऋचा को बड़ी हैरानी हुई। जिस डायरी को पढ़ने में उसने इतने दिन लगा दिए, उसे कार्तिक ने बस चंद मिनटों में ही पढ़ लिया।
“तुमने इतनी जल्दी पूरी डायरी पढ़ ली, कार्तिक?” ऋचा ने कॉफ़ी, कार्तिक की ओर बढ़ाते हुए बड़ी हैरानी से पूछा।
“वेल!” कार्तिक ने डायरी बंद करके मेज़ पर रख दी और ऋचा के हाथों से कॉफ़ी का कप ले लिया, “तुम्हें तो पता ही है न कि मैं हर काम में औरों से दो कदम आगे रहता हूँ।”
“लेकिन...” ऋचा को विश्वास करना कठिन लग रहा था, “इतनी जल्दी? तुम क्या कोई देव या दानव हो क्योंकि एक साधारण इंसान के लिए तो ये असंभव है।”
“ठीक कहा, तुमने।” कार्तिक मुँह दबाकर हँसने लगा, “बात दरअसल ये है कि, जब भी तुम नहाने जाती थी या किचन में होती थी, तब मौका देखकर मैं ये डायरी पढ़ लेता था।”
“क्या?” ऋचा ने कार्तिक को घूरा।
“अरे! यार, मुझसे सस्पेंस बिलकुल बर्दाश्त नहीं होता।” कार्तिक मुस्कुराया, “तुम्हारी तरह मुझे भी तो अनाया और अरमान की लव स्टोरी के बारे में जानने की उत्सुकता है।”
“चलो ठीक है,” ऋचा भी कार्तिक के पास बैठ गयी, “अब ये बताओ, हम ये कैसे पता लगाएं कि आगे क्या हुआ था?”
“अब, आगे क्या पता करना है?” कार्तिक ने कॉफी के कप को होंठों से लगाते हुए ऋचा को देखा, “सारी बातें साफ़ हो तो गयी।”
“कहाँ?” ऋचा ने मुँह बनाया, “हमें क्या पता, अरमान ने विवेक से, अपने और अनाया के बारे में बात की या नहीं। और अगर की, तो विवेक की प्रतिक्रिया क्या थी?”
“अरमान को ऐसा करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।” कार्तिक ने कॉफी ख़त्म की और कप को मेज़ पर रख दिया।
“क्या मतलब?” ऋचा ने चौंक कर कार्तिक को देखा।
“देखो, अनाया की डायरी में जो आखिरी एंट्री है, उसमें लिखा है कि विवेक दो दिन के लिए अहमदाबाद जा रहा है।” कार्तिक ने डायरी खोलकर अनाया के लिखे वो शब्द, ऋचा को दिखाए, “ठीक है, न?”
“हाँ,” ऋचा ने सर हिला दिया।
“हम जब अनाया के फादर से मिलने गए थे तो उन्होंने हमें बताया था न कि विवेक एक बिज़नेस मीटिंग के बहाने अहमदाबाद गया और फिर कभी वापस ही नहीं आया। उसका बिज़नेस ठप्प पड़ चुका था। उसके लेनदारों ने उस पर केस ठोक दिया था। इसलिए, वो सजा से बचने के लिए फ़रार हो गया। और उसके कुछ समय बाद, अरमान ने अनाया से शादी कर ली। बस, हो गयी उनकी लव-स्टोरी की हैप्पी एंडिंग।”
“बात सिर्फ उनकी लव-स्टोरी की नहीं है, कार्तिक।” ऋचा की नज़रें डायरी पर जा टिकीं, जैसे वो उस डायरी से जवाब माँग रही हो, “हम अब भी ये नहीं जानते कि अरमान और अनाया से क्या गुनाह हुआ था, जिसे छुपाने के लिए उन्होंने चिराग का क़त्ल कर दिया। और सिर्फ इतना ही नहीं, हमारे पास अब भी कोई ठोस सबूत नहीं है, जो ये साबित कर सके कि चिराग का ख़ून अनाया ने किया था। बिना सबूतों के हम चिराग को इन्साफ कैसे दिला सकेंगे? और इन सबसे बड़ी बात ये है कि मैं अपने उपन्यास की कहानी को आगे कैसे बढ़ाऊँ? क्योंकि, जब तक मुझे इन सवालों के जवाब नहीं मिल जाते, मैं अपने उपन्यास में क्या लिखूंगी?”
“जहाँ तक बात चिराग को इन्साफ दिलाने और उसके क़त्ल की सच्चाई को साबित करने के लिए सबूत ढूंढने की है, तो वो तुम पुलिस पर छोड़ दो।”
“पुलिस पर?” ऋचा का पारा चढ़ गया, “पुलिस पर कैसे छोड़ दूँ, कार्तिक? तुम्हें क्या पता नहीं है, उन लोगों ने चिराग के केस की तहकीकात कितने बेहूदा तरीके से की थी।”
“वही तो में भी कह रहा हूँ।” कार्तिक ने चुटकी बजाते हुए कहा।
“लेकिन, तुम कहना क्या चाहते हो?” ऋचा के लिए कार्तिक की बातों की सीपियों में छिपे बैठे, अर्थों के मोतियों को ढूँढ निकालना मुश्किल था।
“मैं तुम्हें समझाता हूँ,” कहते हुए कार्तिक ने ऋचा का हाथ अपने हाथ में ले लिया, “तुमने चिराग हत्याकांड की फाइल देखी है। हमें पता है कि तहकीकात ठीक ढंग से नहीं हुई। तो, अब हम क्या करेंगे कि तुम्हारे डी. सी. पी. मिश्रा अंकल की मदद से चिराग का केस फिर से खुलवायेंगे। लेकिन, इस बार तफ़्तीश करने के लिए पुलिस ऑफिसर्स दिल्ली से आएंगे, जो मिश्रा जी के भरोसेमंद और डिपार्टमेंट के सबसे काबिल ऑफिसर्स होंगे। वो लोग सबूत भी ढूँढ लेंगे और मुजरिमों को सजा भी दिलवायेंगे। इसलिए स्वीटहार्ट, तुम एक काम करो, अब तक की कहानी लिख डालो। आगे की कहानी, चिराग के केस की सुनवाई के बाद जोड़ लेना।”
“शायद, तुम ठीक कहते हो,” ऋचा को कार्तिक की बात सही लगी, “मुझे अपनी कहानी को भी ऐसा ही एक मोड़ देना चाहिए।”
“ठीक है, तो फिर तुम कहानी लिखो, मैं चलता हूँ।” कार्तिक अपनी कार की चाबियों को अपनी पॉकेट में ड़ाल कर खड़ा हो गया।
“लेकिन, तुम कहाँ जा रहे हो?” ऋचा भी, दरवाज़े की ओर बढ़ते कार्तिक के पीछे-पीछे चल पड़ी।
“विराट के साथ उसके एक दोस्त के घर जा रहा हूँ। तब तक तुम अपनी कहानी लिखो। मैं जल्दी वापस आ जाऊंगा, फिर साथ में डिनर करेंगे।” कार्तिक ने हाथ हिलाकर ऋचा को गुड-बाई कहा और विराट के घर की तरफ बढ़ गया।
* * *
कार्तिक के जाने के बाद, ऋचा ने अपना लैपटॉप खोला और कहानी लिखने बैठ गयी। उसने कई दिनों से कुछ नहीं लिखा था। चिराग की हत्या हो जाने तक की कहानी ही लिखी गयी थी। उसके बाद, लिखने का काम तो लगभग बंद ही हो गया था। वो कार्तिक के साथ मिलकर चिराग की हत्या की छान-बीन करने के लिए जो निकल पड़ी थी। और उसके बाद, कई दिनों तक अनाया की डायरी ने उसे व्यस्त रखा। ऋचा को अफ़सोस इस बात का था कि इतना सब कुछ करने के बाद भी, वो चिराग की हत्या के पीछे छुपे रहस्य तक नहीं पहुँच सकी।
“खैर!” ऋचा ने एक ठंडी आह भरते हुए खुद से कहा, “चाहे जो भी हो, कहानी तो पूरी करनी ही होगी, न। अब मुझे भी कार्तिक की बातों पर यकीन हो चला है। अनाया के जीवन में ठीक वैसा ही हुआ होगा, जैसा कार्तिक ने कहा। और कोई सम्भावना तो मुझे भी नज़र नहीं आती। अनाया और अरमान के बारे में, अनाया की डायरी से मैं जो कुछ भी जान पायी हूँ, वो लिख कर कहानी को आगे बढ़ाती हूँ। फिर रही बात चिराग की हत्या की, उसका रहस्य तो अब पुलिस की तफ्तीश के बाद ही सामने आएगा। तब की तब देखेंगे, फिलहाल अनाया की प्रेमकथा लिखी जाये।”
ऋचा ने आगे की कहानी को लैपटॉप पर टाइप करना शुरू किया। घंटे भर टाइप करने के बाद, उसकी उँगलियों ने जवाब दे दिया। ऋचा ने, 'अनाया की प्रेमकथा' नामक अध्याय का अंत करने के बाद, लिखने का काम बंद करने की सोची। कार्तिक के आने का वक़्त हो चला था और ऋचा को रात के खाने की तैयारी भी करनी थी। उसने जल्दी से कुछ और पंक्तियाँ टाइप की।
'अनाया को हमेशा इस बात का डर लगा रहता था कि कहीं वो पति और प्रेमी के बीच उलझ कर न रह जाये। लेकिन, शायद इसे उसकी खुशकिस्मती कहना चाहिए कि उसे, उन दोनों में से किसी एक को चुनने की नौबत ही नहीं आयी। ये फैसला तो किस्मत ने ही कर दिया। उद्योग में बहुत बड़ा घाटा हो जाने के बाद, विवेक के पास फ़रार हो जाने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं था। वो अहमदाबाद जाने का बहाना कर, एक दिन घर से चला गया। अरमान और अनाया उसके वापस आने के इंतज़ार में थे। पर, वो कभी वापस ही न आया। लेनदारों की धमकियों और कोर्ट-कचेरी के झंझट से बचने का उसके पास और कोई रास्ता नहीं था। विवेक के दुर्भाग्य ने, अनाया और अरमान को सदा के लिए एक हो जाने का स्वर्णिम अवसर दे दिया। अब अनाया, समाज की नज़रों में एक ऐसी लाचार, अबला नारी थी, जिसके पति ने उसे बीच मंझधार में लाकर, अकेला छोड़ दिया था। अरमान एक दयालु और आदर्श पुरुष की तरह आगे आया और उस बेचारी औरत का हाथ थाम कर, समाज की आँखों का तारा बन गया। और इस तरह, न सिर्फ उन दोनों के प्यार ने अपनी मंज़िल को पा लिया बल्कि समाज से भी दोनों ने खूब आशीष बटोरे। किसी ने ठीक ही कहा है, किस्मत की बाज़ी कब पलट जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। कहाँ तो अनाया समाज की उलाहना का पात्र बनने से डर रही थी और अब कहाँ समाज की सहानुभूति का लाभ उठा रही है।'
“हाँ, ये ठीक रहेगा।” ऋचा ने अब तक लिखी पूरी कहानी पढ़कर तृप्ति कर ली, “अब, मैं जाकर खाना गर्म कर लेती हूँ। कार्तिक आते ही होंगे।”
ऋचा ने लैपटॉप बंद कर दिया। वो उठी और हॉल से होते हुए किचन की तरफ चल पड़ी। लेकिन वो जैसे ही हॉल में पहुंची, वहाँ रखे फ़ोन की घंटी बजी।
“हेलो?” ऋचा ने पहली रिंग में ही फ़ोन उठा लिया।
“ऋचा...मैं...मैं...रेलवे स्टेशन से बोल रहा हूँ।” कार्तिक बहुत घबराया हुआ लग रहा था और उसकी आवाज़ में कंप-कंपी साफ़ सुनाई दे रही थी।
“क्या हुआ तुम्हें, कार्तिक? तुम ठीक तो हो, न?” किसी दुर्घटना की आशंका से ऋचा का दिल बैठ गया, “और, तुम रेलवे स्टेशन पर क्या कर रहे हो? तुम तो विराट भैया के साथ गए थे, न? सब ठीक तो है, न?”
“हाँ, मैं विराट के दोस्त, सुभाष सहगल के घर गया था।” कार्तिक की सांसें चढ़ी हुईं थी, “सुभाष, विवेक का जिगरी दोस्त था।”
“हाँ, मैंने अनाया की डायरी में पढ़ा था।” ऋचा की आँखों के सामने डायरी का वो पन्ना उभर आया जिस पर 'सुभाष सहगल' लिखा था, “लेकिन, तुम इतने घबराये हुए से क्यों लग रहे हो, कार्तिक? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है, न?”
“मैं ठीक हूँ, ऋचा।” कार्तिक एक लम्बी साँस लेने के लिए कुछ पल रुका और उसके बाद बोला,
“सुभाष ने आज मुझे विवेक के बारे में कुछ ऐसी बातें बतायी, जिनसे हम आज तक अनजान रहें है।”
“क्या कहा उन्होंने?” ऋचा ने झट से पूछ डाला।
“सुभाष ने बताया कि विवेक को बिज़नेस में कोई घाटा नहीं हुआ था। बल्कि, उसका बिज़नेस तो दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की कर रहा था।”
“तो फिर, वो सब-कुछ छोड़कर ऐसे अचानक क्यों चले गए?” ऋचा सोच में पड़ गयी।
“नहीं, ऋचा, हम अब तक गलत समझ रहे थे। विवेक, उस रात अहमदाबाद की ट्रैन से वापस बिलासपुरा आया था।” कार्तिक की कांपती हुई आवाज़ जब ऋचा के कानों में पड़ी तो उसका पूरा बदन सिहर उठा, “विवेक की ट्रैन जब बिलासपुरा पहुँचने वाली थी तो उसने सुभाष को फ़ोन किया था और अपने वापस आने की खबर दी थी।”
“क्या?” ऋचा को ऐसा झटका लगा जैसे उस पर बिजली गिर पड़ी हो, “अगर, विवेक बिलासपुरा आये थे तो अपने घर क्यों नहीं गए? स्टेशन से कहाँ चले गए वो?”
“मैंने यहाँ के स्टेशन मास्टर से बात की थी।” ऋचा को ये रहस्य बताने के बाद कार्तिक अब शांत हो चला था, “उन्होंने बताया कि अहमदाबाद से ट्रैन चढ़ते समय देरी हो जाने के कारण, विवेक को टिकट खरीदने का समय नहीं मिला था। इसलिए, बिलासपुरा के टी. टी. ने उससे फाइन वसूल किया था। मेरे कहने पर, स्टेशन मास्टर ने मुझे जुर्माने की रसीद दिखाई। उस पर्चे पर विवेक का नाम, तारीख और समय सब लिखे हुए हैं। उसके बाद, उन्होंने विवेक को रेलवे स्टेशन से एक टैक्सी लेकर जाते हुए भी देखा था। इन सबूतों से ये साफ़ ज़ाहिर है कि विवेक उस रात वापस ज़रूर आया था। लेकिन, वो घर क्यों नहीं पहुंचा, ये कोई नहीं जानता।”
“क्या हुआ होगा विवेक के साथ, कार्तिक?” ऋचा ने सहमते हुए पूछा। उसके मन में तरह-तरह के बुरे ख़याल जन्म ले रहे थे।
“पता नहीं ऋचा, लेकिन मुझे कुछ गड़बड़ नज़र आ रही है।” कार्तिक ने ऋचा के मन में छुपे ख्यालों को शब्दों में कह डाला, “मैं अभी घर पहुँचता हूँ। फिर, मिलकर सोचते हैं कि आगे क्या करना चाहिए।”
“तुम जल्दी आ जाओ, कार्तिक।” ऋचा ने धीमे स्वर में कहा, “मुझे बड़ा डर लग रहा है।”
“घबराओ मत, मैं अभी आया।” कहकर कार्तिक ने फ़ोन काट दिया।
ऋचा थोड़ी देर तो सुन्न होकर, फ़ोन के रिसीवर को हाथ में पकडे वहीं बैठी रही। फिर, उसने खुद को संभाला और रिसीवर नीचे रख दिया। वो अपने कमरे में गयी और उसने लैपटॉप खोला।
“चिराग!” लैपटॉप की स्क्रीन पर अपनी लिखी कहानी को देखते हुए वो बोली, “सच क्या है? बताओ मुझे, उस रात क्या हुआ था?”
ये कहने की देर थी कि ऋचा की लिखी वो पंक्तियाँ, जिनमें उसने विवेक के वापस न आने का ज़िक्र किया था, स्क्रीन से अपने-आप गायब होने लगी।
अचानक से, ऋचा का शरीर यूँ कांपने लगा जैसे उसे बिजली के झटके लग रहे हो। उसे अपने कानों में कई अजीब-सी आवाज़ों को फुसफुसाते हुए सुना। ऋचा को अपने आस-पास किसी अलौकिक शक्ति के होने का एहसास हुआ। उसकी आँखों की रोशनी धुँधली हो गयी और फिर अँधेरा छा गया। दो-तीन मिनट तक यही सिलसिला चलता रहा और फिर ऋचा की कंपकंपी बंद हो गयी और वो मेज़ पर सर रखकर बैठ गयी। तभी, दरवाज़े की घंटी बजी। ऋचा ने सर उठाकर उस तरफ देखा। वो उठी और उसने दरवाज़े की तरफ कदम बढ़ाये ही थे कि जो दृश्य उसने देखा, उससे उसकी रंगों में दौड़ता हुआ लहू जम गया। ऋचा ने किचन से अनाया को आते हुए देखा। अनाया जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाते हुए दरवाज़े की तरफ जा रही थी। वो ऋचा को छूती हुई गुज़र गयी मगर उसने ऋचा की तरफ देखा तक नहीं, जैसे मानो वो वहाँ थी ही नहीं। तभी दरवाज़े की घंटी दोबारा बजी और अनाया ने जल्दी से जाकर दरवाज़ा खोल दिया।
“क्या, वो आ गया?” अरमान ने घर के अंदर दाखिल होते ही पूछा।
“नहीं, अब तक नहीं आये,” घबराई हुई अनाया ने कहा।
“अब तक तो पहुँच जाना चाहिए था।” अरमान ने अपनी कलाई पर बँधी घड़ी को देखते हुए कहा।
“शायद, उनकी ट्रैन देर से आयी हो।”
ऋचा को समझ आ गया कि वो दोनों विवेक की बात कर रहे हैं।
“और वो लड़का कहाँ है?” अरमान ने ऊपर की ओर जाती सीढ़ियों की तरफ देखते हुए पूछा।
“चिराग अपने ननिहाल गया है।”
“मतलब, हम दोनों अकेले हैं।” कहते हुए अरमान ने अनाया की कमर में अपनी बाँहें ड़ाल दी।
“ये क्या कर रहे हो, अरमान?” अनाया ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, “विवेक किसी भी वक़्त आ सकते हैं।”
“अब तुम्हें विवेक से डरने की क्या ज़रूरत है, अनाया बेबी?” कहते हुए अरमान ने अनाया के गालों पर हाथ रखा।
“मुझे आज सुबह से बहुत डर लग रहा है,” अनाया का खूबसूरत चेहरा मुरझा गया था, “मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कोई बहुत भयानक हादसा होने वाला है।”
“तुम भी न, अनाया,” अरमान ने अनाया की आँखों में देखा, “कोई हादसा नहीं होने वाला बल्कि हमारे मिलन की घड़ी आने वाली है।”
“लेकिन, अरमान...” अनाया ने अरमान से दूर जाना चाहा पर अरमान ने उसकी कमर को कस कर पकड़ लिया।
“श्श्श्श...” अरमान ने अनाया के होंठों पर अपनी उँगली रख दी।
अरमान के छुवन की गर्माहट को महसूस कर, अनाया ने आँखें बंद कर ली। अरमान थोड़ी देर उसके होंठों को अपनी उँगली से सहलाता रहा। फिर उसने अपने होंठ, अनाया के होंठों पर रख दिये। वे दोनों थोड़ी देर तक एक-दूसरे को चूमते रहे। कुछ पलों बाद, जब अनाया ने आँखें खोली तो उसकी आँखों से डर गायब हो चुका था। उसकी आँखें किसी नशे में डूबकर मदहोश हो चुकी थी। और उनमें उस नशे को बार-बार पीने की प्यास भी थी। दोनों ने एक-दूसरे को कस कर बाँहों में भर लिया और एक दूसरे पर पागलों की तरह टूट पड़े। अरमान कभी अनाया के कानों पर अपने दाँत गड़ाता, तो कभी उसकी गोरी, सुराहीदार गर्दन पर स्नेह-वृष्टि करता। अनाया के बखूबी तराशे अंगों का स्पर्श जब अरमान करता तो उसके मन में वासना के हज़ारों ज्वालामुखी एक साथ फूट पड़ते थे। अनाया के दिलोदिमाग पर तो जैसे पागलपन सवार हो गया था। जैसे किसी मासूम हिरनी को वासना की शराब पिलाकर मदिर कर दिया हो।
जब कुछ समय बीत गया तो अरमान ने अपने अंदर जलती अग्नि को थोड़ा विश्राम दिया और अनाया की आँखों में देखा। वे दोनों हाँफने लगे थे पर दोनों की ही आँखों में अपने अंदर सुलगती कामना की लपटों को उसकी पराकाष्टा तक पहुँचाने की प्यास थी। अरमान ने अनाया को गोद में उठाया और उसे कमरे के अंदर ले आया। ऋचा, कमरे के दरवाज़े पर ही खड़ी थी। उसके पास से होकर गुजरने के बावजूद भी उन दोनों ने ऋचा को देखा तक नहीं। वे दोनों एक-दूसरे में पूरी तरह से खोये हुए थे। अरमान ने अनाया को पलंग पर लिटा दिया और अनाया ने उसे बाँहों में भर लिया। वे दोनों एक बार फिर अपनी कामाग्नि को तृप्त करने में लग गए। कामबाण के मारे वे प्रेमी ये भूल गए थे कि उन्होंने घर का दरवाज़ा खुला ही छोड़ दिया था।
तभी, उस खुले दरवाज़े से कोई घर के अंदर आया। ऋचा ने फौरन मुड़कर दरवाज़े की तरफ देखा तो उसके होश उड़ गए। विवेक वापस आ गया था। ऋचा ने पलट कर अनाया और अरमान को देखा। उन दोनों को इस बात का कोई इल्म नहीं था कि अब उनके अलावा कोई तीसरा भी उस घर में था। ऋचा को लगा इससे पहले कि विवेक अपनी पत्नी को किसी गैर मर्द के साथ देख ले, उसे आगाह करना होगा।
“अनाया,” ऋचा ने इस डर के मारे अपना स्वर नीचा ही रखा की कहीं विवेक न सुन ले, “देखो, विवेक आ गए हैं।”
लेकिन, उन दोनों के कानों पर जूं तक न रेंगी। काम-रस की मदहोशी उन पर हावी हो चुकी थी।
“अनाया,” विवेक ने हॉल से आवाज़ दी।
जब कोई जवाब न मिला तो विवेक ने अपना बैग हॉल में ही छोड़ दिया और किचन में जाकर देखा। वहाँ कोई नहीं था। विवेक वापस जाने को मुड़ा तो उसने देखा कि अनाया के कमरे की लाइट जल रही थी। उसे लगा शायद अनाया अपने कमरे में होगी, इसलिए वो उस तरफ बढ़ा।
“अनाया,” ऋचा अपना स्वर धीमा रखकर चिल्लाई, “ये क्या कर रही हो, तुम? विवेक, इसी तरफ आ रहे हैं।”
ऋचा के कहने की देर थी कि विवेक कमरे में दाखिल हो गए।
“अनाया!” विवेक ज़ोर से चिल्लाया।
अनाया और अरमान यूँ अचानक विवेक को अपने सामने देखकर हड़बड़ाकर उठे और एक-दूसरे से अलग होकर खड़े हो गए।
“बेशर्म औरत!” विवेक गुस्से से पागल होकर अनाया की तरफ लपका, “तुझे शर्म नहीं आती? एक शादी-शुदा औरत होकर, अपने पति की पीठ पीछे ऐसी नीच हरकत करने की तेरी जुर्रत कैसे हुई? क्या यही संस्कार दिए हैं तेरे परिवार ने तुझे?”
विवेक, अनाया को थप्पड़ मारने ही वाला था कि अरमान ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया, “वो बेचारी पत्नी होने का फ़र्ज़ निभाते हुए घुट-घुट कर जिए और तुम अपनी मन की करो। ये कैसा न्याय है, विवेक?” अरमान ने पूछा, “क्या कभी पति होने का फ़र्ज़ तुमने निभाया है? क्या उसे अपनी पत्नी होने का कोई भी अधिकार दिया है, तुमने? अनाया से शादी करने के बाद भी तुम तो अपनी स्वर्गवासी पत्नी से ही प्यार करते हो, न? फिर वो किसी और से प्यार करे तो तुम्हारे पौरुष को ठेस क्यों लग रही है?”
“आस्तीन के साँप,” विवेक ने अरमान को लात मारी और वो फर्श पर गिर गया, “दोस्त बनकर तूने मेरे घर की इज़्ज़त पर ही हाथ डाल दिया। मेरे साथ इतना बड़ा विश्वासघात किया। मैं तुझे ज़िंदा नहीं छोडूंगा।”
विवेक और अरमान में हाथा-पाई हो गयी। बदले की आग ने विवेक को पागल बना दिया था। उसने अरमान पर लात और घूसों से वार किया और उसे चित कर दिया। वो, अरमान की छाती पर सवार हो गया और अपने हाथों से उसका गाला घोंटने लगा। अरमान ने खुद को छुड़ाने की बहुत कोशिश की पर विवेक की गिरफ्त मजबूत थी। धीरे-धीरे अरमान का चेहरा नीला पड़ने लगा। ये देखकर अनाया डर गयी।
“विवेक,” रोती हुई अनाया ने हाथ जोड़कर विनती की, “उन्हें छोड़ दीजिये। आपकी गुनहगार मैं हूँ। आप मुझे जो चाहे सज़ा दे सकते हैं। लेकिन, उन्हें छोड़ दीजिये। उनका कोई दोष नहीं, सारा दोष तो मेरा है।”
अनाया को गैर मर्द की तरफदारी करते देख, विवेक का क्रोध भड़क गया और उसने ठान ली की वो आज अरमान की जान लेकर ही रहेगा। अरमान के गले पर विवेक के हाथों का दबाव बढ़ता ही गया। फर्श पर पड़ा अरमान साँस लेने के लिए तड़प रहा था। अनाया को लगा अगर उसने और देर की तो अरमान अपनी जान से हाथ धो बैठेगा। अनाया दौड़कर किचन में गयी और वहाँ से एक लोहे की छड़ी ले आयी। फिर उसने आव-देखा न ताव, सीधा विवेक के सर पर वार कर दिया। खून में लथ-पथ विवेक, फर्श पर गिर गया। अरमान खाँसते हुए उठा और ज़ोर-ज़ोर से सांस लेने लगा। अनाया, स्तब्ध-सी होकर वहीं फर्श पर बैठ गयी। थोड़ी देर बाद, जब अरमान की जान में जान आयी तो उसने विवेक की नब्ज़ देखी। उसके चेहरे का रंग उड़ गया और उसने फौरन अपना हाथ, विवेक के शरीर से पीछे खींच लिया।
“अनाया!” अरमान ने अनाया के गालों पर थपकियाँ देते हुए कहा, “ये तो मर गया।”
“अरमान,” अनाया, फूट-फूटकर रोने लगी, “मेरे हाथों से खून हो गया।”
“तुम चिंता मत करो,” अरमान ने अनाया को गले से लगा लिया, “तुम्हारे घर के पीछे जो जंगल है न, उसके ठीक बीचों-बीच आम के पेड़ों का झुरमुट है। वो जगह एकदम सूनसान है। वहाँ किसी का आना-जाना नहीं है। हम इसकी लाश को वहाँ दफन कर देते हैं। रात होने की वजह से किसी ने भी विवेक को घर आते नहीं देखा। हम सबसे कह देंगे कि वो दो दिन पहले अहमदाबाद गया था, लेकिन फिर वापस घर नहीं आया।”
* * *
तभी दरवाज़े की घंटी बजी और ऋचा ने चौंकते हुए आँखें खोली। उसने देखा कि वो तो मेज़ पर सर रखकर सोई हुई थी। फिर उसकी नज़र पास रखे लैपटॉप पर पड़ी। उसे देखकर ऋचा के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। तभी, दोबारा घंटी की आवाज़ सुनाई दी और ऋचा दरवाज़ा खोलने के लिए दौड़ी।
“ये क्या हाल बना रखा है तुमने, ऋचा?” घर के अंदर दाखिल होते ही कार्तिक की नज़र ऋचा के बिखरे बाल और मुरझाये चेहरे पर पड़ी। उसकी आँखें भी नम थी।
“ओह! कार्तिक,” ऋचा, कार्तिक के गले से लगकर रोने लगी, “अच्छा हुआ तुम आ गए।”
“बताओ तो सही, क्या हुआ है?” कार्तिक ने उसके आंसू पोछते हुए कहा।
“मेरे साथ आओ।” ऋचा, कार्तिक का हाथ पकड़कर उसे अपने कमरे में ले गयी।
कमरे में पहुँच कर ऋचा चुपचाप अपने लैपटॉप को ही देखती रही।
“क्या बात है, ऋचा?” कार्तिक को कुछ समझ न आया और वो बस ऋचा को देखता ही रहा।
“उस पर जो लिखा है, उसे पढ़ो।” ऋचा, लैपटॉप की तरफ उँगली से इशारा करती हुई बोली, “तुम्हें सब समझ आ जायेगा।”
कार्तिक लैपटॉप के सामने बैठ गया और पढ़ने लगा। विवेक के अहमदाबाद से वापस आने के बाद जो कुछ भी हुआ, उसका पूरा ब्यौरा लिखा हुआ था। ठीक वैसे ही, जैसे ऋचा ने अपनी आँखों के सामने घटते हुए देखा था।
“वाह! ये कहानी तो बड़ी अच्छी लिखी है तुमने।” कार्तिक ने मुस्कुराते हुए ऋचा की पीठ थपथपाई।
“ये महज़ कहानी नहीं है, कार्तिक।” ऋचा की पथराई आँखें कार्तिक से मिली तो उसकी हंसी गायब हो गयी।
“म... मतलब...,” कार्तिक की नज़र कभी लैपटॉप पर लिखे शब्दों पर तो कभी पास खड़ी ऋचा की तरफ जाती, “तुम...तुम ये कहना चाहती हो कि विवेक का मर्डर हो गया है। ओह! माय गॉड। इसका मतलब ये हुआ कि अरमान और अनाया ने मिलकर जो गुनाह किया था वो विवेक की हत्या थी। और, ये बात चिराग ने सुन ली थी इसलिए उन्होंने उसे भी मार डाला।”
थोड़ी देर के लिए कार्तिक को समझ न आया कि वो क्या कहे, क्या करे? ऋचा भी सदमे में थी इसलिए कुछ न बोल सकी। पांच मिनट बाद, कार्तिक बड़ी फुर्ती से उठ खड़ा हुआ जैसे उसके शरीर में किसी अज्ञात ऊर्जा का संचार हो गया हो।
“उठो, ऋचा, हमें जाना है।” कार्तिक ने ऋचा का हाथ पकड़कर उसे उठाया, “चलो, हर्री अप!”
“लेकिन, कहाँ?”
“हमें विवेक की लाश ढूँढ़नी होगी।” कार्तिक बड़ी बेसब्री से कमरे में चहल-कदमी करने लगा, “उसकी लाश ही सबसे बड़ा सबूत है। उसके ज़रिये हम अरमान और अनाया को गिरफ्तार करवा सकते हैं। अगर, ऐसा हुआ तो, चिराग का केस भी अपने-आप सोल्व हो जायेगा।”
“हाँ, तुम ठीक कहते हो।” ऋचा को भी जोश आ गया, “अरे, लेकिन तुम कहाँ जा रहे हो?”
“मैं फावड़े लेकर आता हूँ।” किचन की तरफ भागते हुए कार्तिक ने कहा।
* * *
ऋचा और कार्तिक जब जंगल में पहुंचे तो ज़ोर से आँधी चलने लगी। पेड़ों के पत्तों की सरसराहट और तेज़ी से बहती हवा का शोर चारों ओर गूँज उठा। हाथों में फावड़े लिए, हवा की विपरीत दिशा में उन दोनों के लिए आगे बढ़ना कठिन हो रहा था। रह-रह कर, हवा के साथ उड़ती धूल-मिट्टी और सूखे पत्ते उनके चेहरों से टकराते थे।
“लगता है, तूफ़ान आने वाला है।” ऋचा ने कार्तिक की बाँह कसकर पकड़ ली।
“तूफ़ान तो आ चुका है, ऋचा।” कार्तिक ने ऋचा के हाथ पर अपना हाथ रखा और तेज़ आँधी का सामना करते हुए दोनों आगे बढ़े।
करीब आधा घंटा, जंगल में भटकने के बाद वो उस जगह पहुँच गए जहाँ चारों तरफ आम के पेड़ थे। दोनों ने हर तरफ नज़र घुमाकर देखा। आम के पेड़ दूर-दूर तक फैले हुए थे। उन दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि विवेक की लाश को कहाँ दफनाया गया होगा।
“अब क्या करें, यार?” कार्तिक ने निराश होकर ऋचा को देखा, “अब ये पूरा जंगल तो नहीं खोद कर देख सकते, न। हमारे पास सिर्फ एक रात का वक़्त है। और अगर ठीक-ठीक हिसाब लगाया जाये तो सूरज निकलने में सिर्फ कुछ घंटे ही बाकी रह गए है। अगर, आज रात के अंदर-अंदर हमने अपना काम खत्म न किया, तो हो सकता है कल का सूरज निकलते ही हमारा काम तमाम हो जाये।”
“लेकिन, पता कैसे चलेगा कि लाश कहाँ दफ़न है?” ऋचा के कहते ही बिजली कड़कने लगी।
“अब इसकी कमी और रह गयी थी।” कार्तिक ने आसमान में कड़कती बिजली की तरफ इशारा करते हुए अपना माथा ज़ोर से पीटा।
“मैं तो छाता भी नहीं लायी।” ऋचा ने ऊपर आसमान में उमड़ते काले बादलों को देखते हुए कहा, “अगर बारिश हो गयी तो हम क्या करेंगे, कार्तिक?”
“बारिश में भीगते हुए कोई अच्छा-सा रोमांटिक गाना गाएंगे।” कार्तिक ने व्यंग कसा।
“सच!” ऋचा ने ताली बजायी, “कितना मज़ा आएगा।” हमेशा की तरह ऋचा, कार्तिक के कहने का अर्थ नहीं समझ पायी।
“लाश ढूंढो, जानेमन!” कार्तिक ने ज़मीन पर रखे फावड़े को उठाकर कंधे पर रखते हुए कहा, “नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि कल सुबह पुलिस को विवेक की लाश के साथ, दो लाशें और मिल जाएँ। वो सुपरमार्केट में जैसे ऑफर होता हैं न, एक आइटम खरीदो तो उसके साथ दो और फ्री में ले जाओ।”
अचानक ऋचा को ऐसा लगा कि उसके ठीक पीछे, आम के पेड़ों के बीच कुछ हरकत हुई है। ऋचा ने फौरन मुड़कर देखा। उसे ऐसा लगा पेड़ों के झुरमुट के पास कोई खड़ा है। लेकिन, वहाँ बहुत अँधेरा था। ऋचा कुछ ठीक से देख नहीं पा रही थी। तभी ज़ोर से बिजली कड़की और उस रोशनी में ऋचा ने उन पेड़ों के बीच चिराग को खड़े देखा। अगले ही पल, सारा जंगल फिर से अँधेरे में डूब गया। ऋचा ने उस तरफ टोर्च मारकर देखा, लेकिन अब वहाँ कोई नहीं था।
“कार्तिक!” ऋचा ने पेड़ों के झुरमुट से नज़र हटाए बिना कार्तिक का हाथ पकड़ लिया, “वहाँ उस तरफ।”
“क्या है वहाँ?” कार्तिक ने टोर्च मारकर देखा।
“विवेक की लाश वहीं दफन है।”
“क्या?”
“चलो, जल्दी करो,” कहकर ऋचा उस तरफ दौड़ी और कार्तिक भी उसके पीछे चल पड़ा।
दोनों ने मिलकर करीब दस-पंद्रह मिनट तक खुदाई की। तब उन्हें ज़मीन में गडा एक बक्सा मिला। कार्तिक नीचे गड्ढे में उतर गया और उसने एक पत्थर से बक्से पर लगा ताला तोड़ा। उस बक्से को खोला तो उन्होंने देखा कि उसके अंदर एक नर-कंकाल था। कार्तिक ने टोर्च की रोशनी में उसे ध्यान से देखा।
“इसके सर के पीछे एक फ्रैक्चर है।” कार्तिक ने ऋचा से कहा, “ठीक उसी जगह जहाँ अनाया ने विवेक के सिर पर वार किया था।”
“मतलब ये कंकाल विवेक का ही है।”
“लगता तो ऐसा ही है।” कार्तिक ने हाथों पर लगी मिट्टी झाड़ी और कहा, “बाकी तो, फॉरेंसिक एनालिसिस की रिपोर्ट से ही पता चलेगा।”
“अब हमें क्या करना चाहिए?”
“इस बक्से को यहाँ से बाहर निकालते है।” कहते हुए कार्तिक ने बक्सा बंद कर दिया।
“कोई ज़रूरत नहीं है।” एक मर्द की भारी-भरकम आवाज़ सुनकर दोनों चौंक गए।
ऋचा इस आवाज़ को पहचानती थी। उसने ये आवाज़ पहले भी सुनी थी। ये वही आवाज़ थी जिसने उसे फ़ोन पर धमकी दी थी। हाँ, ये आवाज़ अरमान की आवाज़ है। ऋचा और कार्तिक ने नज़रें उठाकर देखा तो सामने अरमान और इंस्पेक्टर कश्यप खड़े थे।
“स्टेशन मास्टर ने मुझे बताया था कि तुम उसके पास जाकर गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हो।” अरमान के हाथों में पिस्तौल थी जिसे दिखाकर उसने कार्तिक को गड्ढे से बाहर आने का इशारा किया “मैं तभी समझ गया था कि तुम पुरानी कब्रें खोदते हुए यहाँ तक पहुँच जाओगे। हम लोग, तुम दोनों पर नज़र रखे हुए थे।”
अरमान की बात सुनकर ऋचा कांप उठी। उसका व्यक्तित्व भी बहुत रौबदार था। उसका कद करीब छः फ़ीट से ज़्यादा होगा, गोरा रंग और खूबसूरत नैन-नक्श। लेकिन, उसकी उन हसीन, भूरी आँखों से हैवानियत टपक रही थी।
‘अपनी खूबसूरती और व्यक्तित्व के जादू से वो किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकता था।’ ऋचा सोचने लगी, ‘यूँ ही नहीं, बेचारी अनाया उसके जाल में फंस गयी।’
“अब कब्र तो तुमने खोद ही दी है,” अरमान ने सामने खड़े ऋचा और कार्तिक पर अपनी पिस्तौल से निशान साधा, “तो इसमें दो मुर्दे और गाड़कर इस कहानी को हमेशा के लिए खत्म कर देते हैं। तुम दोनों ने मेरी नाक में दम कर रखा था। अब मुझे तुमसे हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाएगी।
तुम्हारा वक़्त पूरा हो गया है। अब इस दुनिया को अलविदा कहने की तैयारी कर लो।”
अरमान ने अपनी उँगली पिस्तौल के ट्रिगर पर रख दी। ऋचा ने अपनी आँखें बंद कर ली और वो पास खड़े कार्तिक से लिपटकर ज़ोर से चिल्लाई। अरमान ट्रिगर दबाने ही वाला था कि रात के सन्नाटे में एक और आवाज़ गूंजी।
“बन्दूक फेंक दो, अरमान।”
“मिश्रा अंकल?” ऋचा ने उस आवाज़ को पहचान तो लिया था पर उसे विश्वास न हुआ। इसलिए उसने आँखें बंद ही रखी और पूछा, “क्या ये सच-मुच आप ही हैं?”
“जी, हाँ मोहतरमा, हम ही हैं।” एक और आवाज़ आयी और ऋचा दंग रह गयी।
वो आवाज़ सुनते ही ऋचा ने फौरन आँखें खोल ली और वो ज़ोर से चिल्लाई, “पापा!”
डी.सी.पी. मिश्रा और उनके साथ आये पुलिस कर्मचारियों ने अरमान को और उसके भागीदार इंस्पेक्टर कश्यप को गिरफ्तार कर लिया। ऋचा दौड़कर अपने पापा के गले लग गयी।
“लेकिन पापा, आप यहाँ कैसे पहुँच गए?” ऋचा ने बड़ी हैरानी से पूछा, “आपको किसने बताया ये सब?”
“कार्तिक ने,” गुप्ता जी ने हाथ के इशारे से कार्तिक को पास बुला लिया और उसके गले में बड़े प्यार से हाथ डाला।
ये देखकर ऋचा को अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ।
“आप कार्तिक को जानते हैं?” ऋचा, साथ-साथ खड़े अपने पिता और कार्तिक को देखती ही रह गयी।
“हाँ, मैं सब जानता हूँ,” गुप्ता जी ने ऋचा के गालों को पुचकारते हुए कहा, “हम दोनों की अक्सर फ़ोन पर बात होती थी और अब हमारी अच्छी दोस्ती हो गयी है।”
“लेकिन ये सब हुआ कब?”
“जिस दिन तुमने मुझे बताया था कि तुम्हें फ़ोन पर किसी ने धमकी दी है, मैंने उसके अगले दिन ही इन्हें फ़ोन करके सब बता दिया था।” कार्तिक ने खुलासा किया, “मुझे पता था कि अरमान जैसे दरिंदे से भिड़ना हमसे अकेले नहीं हो पायेगा। हमें दिल्लीवालों से मदद मांगनी ही पड़ेगी।”
“मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी।” गुप्ता जी ने ऋचा से ज़रा बेरुखी दिखाई, “मुझे किसी गैर से पता चल रहा है की मेरी बेटी मुसीबत में है।”
“मुझे माफ़ कर दीजिये, पापा।” ऋचा ने अपने रूठे पापा को मनाने के लिए अपने कान पकडे और कहा, “मुझे लगा आप बेवजह परेशान हो जायेंगे।”
“नहीं मिलेगी तुम्हें माफ़ी क्योंकि तुम्हारा गुनाह केवल इतना ही नहीं है।” गुप्ता जी ने ऋचा को फटकार लगायी, “मुझे एक अजनबी से पता चल रहा है कि वो कोई अजनबी नहीं बल्कि मेरा होने वाला दामाद है। बोलो, मैं तुम्हें कैसे माफ़ कर दूँ?”
“पापा!” कहते हुए ऋचा अपना चेहरा हाथों से छुपाये, अपने पिता के गले लग गयी।
गुप्ता जी ने मुस्कुराते हुए अपनी बेटी और दामाद, दोनों को ख़ुशी-ख़ुशी गले से लगा लिया।
* * *
एक साल बाद...
“अनाया और अरमान को सिर्फ उम्र-कैद की ही सजा मिली है।” कार्तिक ने गुस्से में आकर सुबह के अखबार को मेज़ पर फेंक दिया, “अनाया ने दो-दो क़त्ल किए हैं। उसे तो फाँसी दे देनी चाहिए थी।”
“उसने जज के आगे अपना जुर्म कुबूल करते हुए, फाँसी की ही माँग की थी।” ऋचा ने सर झुकाकर, धीमे से कहा, “और इसके साथ ही, उसने कटघरे में खड़े होकर कुछ ऐसे सवाल पूछे, जिनके जवाब वहाँ मौजूद लोग तो क्या, इस पूरे समाज में कोई नहीं दे पाया। उसने पूछा की पुरुष चाहे तो कितनी भी स्त्रियों को अपने जीवन में स्थान दे सकता है, पर स्त्री ऐसा नहीं कर सकती। आखिर क्यों? उसके तन-मन पर केवल एक ही पुरुष का अधिकार हो सकता है। और ये अधिकार उसकी मौत के बाद भी कायम रहता है। पुरुष की अगर अपनी पत्नी के साथ बनती ना हो तो वो उसका त्याग कर, अपने लिए एक नया साथी चुनने का हक़ रखता है। तो फ़िर, स्त्री को अपना जीवन नए सिरे से शुरू करने का हक़ क्यों नहीं होता? अगर वो ऐसा करे तो ये समाज उसके चरित्र पर उँगली क्यों उठाता है? क्यों स्त्री को ही अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है? क्यों कोई पुरुष से उसके चरित्रवान होने का सबूत नहीं माँगता? क्यों उसे ही अपने प्यार की पवित्रता को साबित करने के लिए सती होना पड़ता है? क्यों समाज पुरुष से ये मांग नहीं करता? अगर समाज ऐसा भेदभाव न करता तो शायद अनाया के हाथों ऐसा भयानक अपराध भी न होता।”
“अरे! सब उसका नाटक है ताकि उसे सबकी सिम्पथी मिल जाये और उसकी सजा कम हो जाए।” कार्तिक का क्रोध भड़क गया और वो अखबार में छपी अनाया की तस्वीर को घूरने लगा।
“अनाया बुरी नहीं थी, कार्तिक।” ऋचा ने एक गहरी सांस ली, “बस उसे कोई समझ नहीं पाया, तुम भी नहीं।”
“मुझे यकीन नहीं होता कि तुम एक कातिल की तरफदारी कर रही हो?”
“अनाया हालातों की शिकार थी। उसने जो किया मजबूरी में किया। एक औरत को समझ पाना इतना आसान नहीं है, कार्तिक। ये सिर्फ एक औरत ही समझ सकती है कि औरत होने की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। समाज ने तुम मर्दों को तो बहुत छूट दे रखी है। लेकिन, औरत को आज भी बन्धनों में जकड़कर रखा है। औरत अगर समाज की इन बंदिशों का विरोध करे, तो समाज उसका जीना हराम कर देता है। औरत चाहे अमीर घराने की हो या गरीब हो, पढ़ी लिखी हो या अनपढ़, समाज के बंधनों के आगे उसे झुकना ही पड़ता है। नहीं तो ये समाज उसे तोड़ देता है।”
“तो तुम ये कहना चाहती हो कि अनाया ने जो किया, सही किया।” कार्तिक की क्रोधित आँखें ऋचा की तरफ मुड़ी, “उसके साथ अन्याय हुआ है इसलिए उसे क़त्ल करने का अधिकार है।
“मैं ये नहीं कहती कि वो सही है, मगर वो पूरी तरह से गलत भी तो नहीं है।”
“क्या मतलब?'' अब कार्तिक की आँखों में क्रोध की जगह कौतुकता थी।
“हर किसी की तरह अनाया को भी किसी का प्यार पाने की चाहत थी।” ऋचा ने कार्तिक की तरफ प्यार से देखकर कहा, “अगर विवेक से उसे वो प्यार मिल गया होता, तो वो अरमान को अपने दिल में जगह कभी नहीं देती। और, ये सब नहीं होता। अनाया से शादी करने के बाद भी विवेक, माया से ही प्यार करता रहा। उसके लिए अनाया कोई मायने नहीं रखती थी। लेकिन, जब उसने देखा कि अनाया किसी और से प्यार करने लगी है, तो उसे अचानक अनाया में वो बेवफा पत्नी नज़र आयी, जिसने उसके घर की इज़्ज़त को मिट्टी में मिला दिया। उस रात, जब विवेक ने अनाया को अरमान के साथ देखा, तो उसके अंदर के ज़ख़्मी पुरुष पर अपने अपमान का बदला लेने का पागलपन सवार हो गया था। अगर, अनाया ने उसे न मारा होता तो वो अरमान और अनाया, दोनों को मार डालता। ये कहना गलत न होगा कि अनाया ने विवेक का क़त्ल, आत्मरक्षा के लिए किया था।”
“और चिराग का क़त्ल? उसके लिए तुम्हारे पास क्या दलील है?”
“अनाया ने चिराग का क़त्ल, अरमान के भड़काने पर किया था।” चिराग की याद आते ही ऋचा की आँखें उदास हो गयीं, “अरमान बहुत स्वार्थी था और अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता था। उसे पता था कि अनाया उसके प्यार में दीवानी हो चुकी है। अरमान जानता था कि अनाया को उसके साथ घर बसाकर जो सुख मिल रहा है, उसे वो किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहेगी। और, उसे बचाने के लिए वो कुछ भी करेगी। अरमान ने इसी बात का फायदा उठाया है। अरमान के उकसाने पर अनाया ने चिराग को गोली तो मार दी, लेकिन फिर, जीवन भर वो इस अपराध के बोझ के तले घुटती रही। मैंने जब अनाया के जन्मदिन की पार्टी पर उससे चिराग के बारे में पूछा था तो मैंने उसकी आँखों में वो दर्द, घुटन और पछतावा देखा था जो उसकी आत्मा को हर पल कचोटता रहता था। मैंने कहा न कार्तिक, अनाया बुरी नहीं थी। वो सिर्फ किस्मत और हालातों की मारी, एक मजबूर औरत थी। और उसकी इस मजबूरी का फायदा, हर उस मर्द ने उठाया जो उसकी ज़िन्दगी में शामिल था, फिर चाहे वो पिता हो, पति हो या प्रेमी। पिता के प्यार के आगे मजबूर होकर, उसे अपनी मर्ज़ी के खिलाफ शादी करनी पड़ी। पति द्वारा तिरस्कृत होते हुए भी, पत्नी बने रहना उसकी मजबूरी थी। और, अरमान के लिए तो अनाया वो कामधेनु थी जिसे वो जब चाहे, जैसे चाहे दोह सकता था।”
“ये कोई बहाना नहीं है, किसी का क़त्ल करने का।” कार्तिक ने अपना सिर हिलाया और कहा, “मैं तुमसे सहमत नहीं हूँ।”
“यही तो विडम्बना है कार्तिक, ये समाज औरत को कभी समझ नहीं पायेगा।” ऋचा ने आह भरी, “अगर समझ पाता तो कोई अनाया कभी क़ातिल नहीं बनती।”
“अब वो सब छोडो,” कार्तिक अपनी कुर्सी से उठते हुए बोला, “आज तुम्हारी डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट है। अब, जल्दी से तैयार हो जाओ। अभी तुम्हारे पापा का फ़ोन आता ही होगा। देर करो तुम और फटकार पड़े मुझे।”
“अरे हाँ, मैं तो भूल ही गयी थी।” ऋचा ने हड़बड़ाकर अपनी कुर्सी से उठने की कोशिश की।
“अरे! ये क्या कर रही हो?” कार्तिक ने जल्दी से उसका हाथ पकड़कर उसे सहारा दिया और कहा, “ज़रा धीरे से उठा करो। पाँचवा महीना चल रहा हैं।”
“माफ़ कर दो, बिटिया के डैडी,” ऋचा ने अपने कान पकड़ते हुए कहा।
“चलो माफ़ किया, बिटिया की मम्मी।” कहते हुए कार्तिक ने ऋचा को गले से लगा लिया।
समाप्त
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