अवतार के बेहोश जिस्म को कंधे पर डाले ठकरियाल बैठक में पहुंचा।
उन्हें इस पोजीशन में देखकर दिव्या और देवांश की आंखों में हैरत के भाव उभर आये ।
देवांश ने पूछा--- "क्या है ये सब ?”
“नजर नहीं आ रहा, बैंक लुटेरा बेहोश हो चुका है।"
“मगर कैसे ?”
“मैंने किया ।”
“क-क्यों?”
“ और क्या यूं ही छोड़ देता ? गिरफ्तार नहीं करता इसे ?”
"ओह!”
दिव्या ने पूछा--- "लेकिन एकान्त में बातें क्या कीं इसने?”
“रिश्वत देने की बात कर रहा था ताकि मैं गिरफ्तार न करूं।”
देवांश ने ठकरियाल की तरफ संदिग्ध नजरों से देखते हुए कहा- - - “ और तुमने पेशकश ठुकरा दी ?”
"नहीं।"
“क- क्या मतलब ?” उसके अजीब जवाब पर दोनों चौंक पड़े।
“ये वो मोहरा है जिससे हम राजदान को मात देने वाले हैं।"
“ बात कुछ समझ में नहीं आ रही ।”
ठकरियाल ने अवतार का बेहोश जिस्म चांदनी पर डाला । एक सिगरेट सुलगाई और कहना शुरू किया --- “हम जान चुके हैं, राजदान ने सारा गेम बबलू और अपने तीन पुराने ने दोस्तों के बेस पर खेला है । भट्टाचार्य, वकीलचंद और अखिलेश । इनमें भी सबसे प्रमुख अखिलेश है अर्थात् सारी बागडोर उसी के हाथ में है । वही इन सबको बल्कि पूरे मिशन को हैंडिल कर रहा है । "
“राजदान के क्लोन को भूल रहे हो तुम । ”
“मतलब?”
“मेरे विचार से तो असली बागडोर उसके हाथ में है।” देवांश ने कहा --- “अखिलेश पर मौजूद राजदान के लेटर पर गौर करो । कातिलों के रूप में हमारे नाम नहीं लिखे हैं उसमें अर्थात् पूरी जानकारी उससे भी छुपाई गई है जबकि क्लोन की जानकारी पर गौर किया जाये तो स्पष्ट हो जाता है --- उससे कुछ नहीं छुपा है । वह सब पता है उसे जो राजदान को पता था । ऐसी अवस्था में किसे राजदान का प्रमुख मोहरा कहोगे ?”
ठकरियाल ने बड़ी मुस्कान के साथ कहा--- " अब मेरे पेट में दर्द हो रहा है।"
“मतलब?”
“गोला सा उठ रहा है गैस का । जी चाह रहा है --- उस भेद को बता ही दूं जिसे रात से अब तक पचाये घूम रहा हूं।"
“क्या पचाये घूम रहे हो ?”
“असल में अखिलेश ही राजदान का क्लोन है । "
“क-क्या ?” दोनों के मुंह इस तरह खुले रह गये जैसे टी.वी. पर आने वाले किसी सीरियल के आज के एपीसोड का अन्त हुआ हो ।
“यही !” ठकरियाल बोला- - - “मुझे पूरा विश्वास था यह भेद जानने के बाद तुम दोनों की यही हालत हो जायेगी। अब मुद्राओं को ठीक करो । सीरियल की अगली कड़ी प्रस्तुत करनी है ।”
“म - मगर...।" देवांश का आश्चर्य कम होकर नहीं दे रहा था- “यह बात तुम कैसे कह सकते हो ?”
“क्योंकि खोपड़े में दिमाग है मेरे । वह दिमाग जिसे राजदान की तूफानी चालों ने कुछ देर के लिए 'फ्रीज' कर दिया था । रात के बाद से उसके कलपुर्जों ने फिर से हिलना-डुलना शुरू कर दिया है । "
“हम कुछ समझे नहीं।"
ठकरियाल को उन दोनों पर अपने दिमाग की 'धाक' जमाना ही जरूरी लग रहा था। इसलिए थोड़े ड्रॉमेटिक अन्दाज में बोला --- “मैंने रात ही ताड़ लिया था उसे ।”
“मगर कैसे?” अधीर हो चुका देवांश लगभग चीख पड़ा।
“अपनी नाक से।” ठकरियाल ने थोड़ा सस्पैंस और बनाया । दोनों के मुंह से हैरान स्वर निकला--- "न-नाक से?”
“सोचो।.... भला नाक से कैसे पहचान सकता है कोई किसी को ?”
“प- प्लीज ! प्लीज ठकरियाल, ज्यादा सस्पैंस मत बनाओ।” दिव्या उतनी ही बेचैन नजर आने लगी जितनी ठकरियाल कर देना चाहता था --- “बताओ तुमने उसे कैसे पहचाना?”
“सुल्फे की गंध आ रही थी उसके मुंह से ।”
एक बार फिर 'फ्रीज' हो गये दिव्या और देवांश !
ठकरियाल ने कहना जारी रखा --- “तब, जब मैं और वह गुत्थमगुत्था हुए फर्श पर लुढ़क रहे थे।”
दोनों में से अब भी कोई मुंह से आवाज न निकाल सका ।
“लकवा मार गया क्या?” ठकरियाल ने पूछा ।
देवांश चौंका। बोला---“क्या तुम्हें पूरा यकीन है, वह वही है ?"
“पूरे से भी ज्यादा ।”
“लेकिन ।” दिव्या बोली --- "कैसे हो सकता है ऐसा ? क्लोन को तो सबकुछ मालूम है । यह भी कि राजदान की मौत के जिम्मेदार हम दोनों हैं। जबकि अखिलेश के पास जो लेटर है, उसमें हमारी तरफ इशारा तक नहीं किया गया है ।”
“दो लेटर नहीं लिखे हो सकते उसे राजदान ने?”
“दो लेटर ?”
“एक वह जिसमें सबकुछ लिखा हो । अपना क्लोन वनकर ड्रामा करने के निर्देश हों और दूसरा वह जो उसने हमें दिखाया ।”
“दो लेटर्स का फायदा ? »
"दूसरा लेटर उसने अखिलेश को लिखा ही इस निर्देश के साथ होगा कि उसे हमें दिखा दे।”
"क्यों?”
“ताकि हम और आतंकित हों । हलकान हों । चैन की एक सांस तक न आये हमें । इस सारे खेल के पीछे एकमात्र यही तो मकसद है उसका । वरना, एक ही झटके में करना चाहें तो उसके प्यादे क्या नहीं कर सकते? जो सबकुछ जानते हैं, जिनके पास पाइप पर चढ़ते तुम्हारा फोटो है, उन्हें सच्चाई उजागर करने में एक से ज्यादा पल नहीं लगेगा तो क्यों ? एक ही कारण समझ में आता है -- - उनका मकसद एक ही झटके में खेल खत्म करना नहीं है। उनका मकसद है --- हमसे खिलवाड़ करते रहना। हमारे बीच दरार डाल देना । अविश्वास की ऐसी खाई खोद देना जिसमें आपस में लड़कर गिरें और गर्त हो जायें ।”
“यही । बिल्कुल यही कहना चाहता हूं मैं भी मगर दिव्या समझने को ही तैयार नहीं है।" देवांश कहता चला गया --- “ अभी तक शक कर रही है मुझ पर | फंस गई है उनकी चाल में । ”
“मगर अब !” ठकरियाल अपनी धुन में कहता चला गया --- “उनका यही मंसूबा उन्हें लेकर डूबने वाला है। उनके इरादे हमारे लिए वरदान बनने वाले हैं।” ni
“वह कैसे ?”
“जरा सोचो, अगर उन्होंने हमारे साथ खिलवाड़ करने का इरादा न किया होता | सीधे-सीधे हमारे किये की सजा देने की ठानी होती तो क्या हम इस वक्त जेल में नहीं होते ?”
“पक्के तौर पर होते।"
“जबकि अब हमारे पास उन्हें मात देने वाला मोहरा है । "
देवांश ने बेहोश अवतार की तरफ इशारा करके पूछा---“वो?”
“यस ।”
" कैसे मात देना चाहते हो इसके जरिए ?"
“मेरे और इसके बीच सौदा हो चुका है। मैं इसे गिरफ्तार नहीं करूंगा । कानून के हवाले नहीं करूंगा, बदले में यह उनके बीच जायेगा। अखिलेश से मिलेगा। दोस्त है ही उनका । बहुत जल्द उनका विश्वास जीत लेगा। उनके हर इरादे की भनक हमें लगती रहेगी।"
“मगर... अभी तो कह रहे थे तुमने इसे गिरफ्तार कर लिया है।"
“तुम्हारी नजरों में ।”
“मतलब?”
“कुछ बातों के मतलब बगैर बताये भी समझ जाया करो।" ठकरियाल ने मुस्कुराकर कहा --- “अब यह तो मैंने इसे बताया नहीं है कि हम तीनों ही एक ही थाली में लुढ़क रहे बैंगन हैं । इसने कहा--- अगर तुम मुझे गिरफ्तार नहीं करोगे तो बैठक में जो दो शख्स हैं उन्हें क्या जवाब दोगे? वे जान चुके हैं मैं हत्यारा, बैंक लुटेरा और जाने क्या-क्या हूं? मैंने यह कहते हुए इसकी कनपटी पर रिवाल्वर का दस्ता जड़ दिया कि 'लो', उनकी नजर में तुम्हें गिरफ्तार किये लेता हूं।"
“गुड !” सारी सिच्वेशन समझ में आने के बाद देवांश के मुंह से निकला ।
“लेकिन ... जैसा कि तुमने कहा---- - अखिलेश को राजदान का क्लोन होने के नाते सब मालूम है ।” दिव्या बोली- -- “इस अवस्था में तो हो सकता है, वह इसे भी सब कुछ बता दे । यदि इसे मालूम हो गया हम तीनों मिले हुए हैं तो..।
“यही तो देखना कि --- वे इसे क्या बताते हैं?”
“दो और बड़े खतरे हैं हमारे सामने।" देवांश ने कहा । “ उन्हें भी उगलो ।”
“पहला - - - पुराना दोस्त होने के नाते मुमकिन है ये उनसे मिल जाये।”
" ऐसा नहीं होगा। कारण ---यह उनमें से नहीं है जो रिश्ता नातों या पुरानी दोस्ती के नाम पर खुद को कुर्बान कर देते हैं। पक्का मुजरिम बन चुका है। निहायत ही प्रैक्टिकल और खालिस प्रोफेशनल आदमी है । दीवाना है दौलत का । केवल अपना फायदा देखता है और फायदा इसे मेरा साथ देने में है । इस नतीजे पर मैं इसके 'कहने' के बेस पर नहीं, बल्कि उस बायोडेटा के बेस पर पहुंचा हूं जो इस वक्त भी थाने में पड़ी फाइलों के बीच धूल चाट रहा है। खुद को कानून से बचाने के लिए | जेल की हवा खाने से रोकने के लिए यह मेरा साथ देगा । अखिलेश एण्ड कम्पनी इसका कोई भला नहीं कर सकती ।”
“ और अगर इसने किसी का भी साथ नहीं दिया?”
“मतलब?”
" तुमने इसे पहचान लिया है। इस बात से अंदर से अंदर डरा हुआ तो होगा ही ये । क्या पता यही फैसला कर डाले --- मैं इस झमेले में ही क्यों पडूं? और... गधे के सींग की तरह मुंबई से गायब हो जाये।”
ठकरियाल ने बड़ी ही रहस्यमय मुस्कान के साथ कहा - -- “ऐसा हरगिज नहीं करेगा ये ।”
“कारण?”
“न ही पूछो तो बेहतर होगा । बस यकीन करो मुझ पर, फरार होने का विचार तक इसके दिमाग में नहीं आयेगा ।”
“मगर क्यों ?” देवांश ने कहा --- ऐसे हालात में यकीनन यही करता ।” -“इसकी जगह मैं होता तो
“भले ही तुम्हारे दिमाग में दिव्या के जरिए राजदान की अकूत दौलत का मालिक बनने का विचार आ चुकता?"
" इसका क्या मतलब?”
जवाब में ठकरियाल ने उन्हें अवतार गिल के पूरे इरादे बता दिये । सुनने के बाद दिव्या बोली --- "यकीनन यह इसी चक्कर में है। डोरे डालने की कोशिश कर रहा था मुझ पर।"
अब बोलो क्या ये अपना इतना बड़ा मिशन छोड़कर फरार होने के बारे में सोचेगा?”
“लेकिन ।” देवांश बोला--- "वह धन है ही कहां जिसके भ्रम में उसने ये मंसूबे बनाये हैं?” "हम इसे क्यों बतायें वह धन कहीं है ही नहीं।”
“मेरा मतलब - - - किसी दूसरे माध्यम से भी तो पता लग सकता है इसे । उस वक्त...
“ उस वक्त से पहले मेरे हाथ इस सहित अखिलेश एण्ड कम्पनी की गर्दन तक पहुंच चुके होंगे। मुख्य काम होगा--- उनके पास मौजूद हर उस चीज को हासिल करके नष्ट कर देना जिसके बूते पर वे यह माने बैठे हैं कि जिस क्षण चाहेंगे सच्चाई को उजागर कर देंगे। बबलू को बेकुसूर सिद्ध करके हमें राजदान का हत्यारा बना देंगे। वे चाहे राजदान के लेटर्स हों, केसिट्स हों या पाइप पर चढ़ते तुम्हारा फोटो | वह सबकुछ नष्ट होते ही उनकी हालत बगैर हाथ-पैर के आदमी जैसी होगी। जो वे जानते हैं, उसे केवल कह सकेंगे। सिद्ध नहीं कर सकेंगे। और कोर्ट में किसी के कहने से कुछ नहीं होता । उस वक्त हम ठीक उसी तरह उनकी चीख-चिल्लाहट और कसमसाहट का मजा लूटते पांच करोड़ का भोग करेंगे जैसे अब तक उन्होंने हमारी कमजोरियों का मजा लूटा है।"
दिव्या और देवांश को विश्वास आकर नहीं दे रहा था कि वह दिन आयेगा ।
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