चारों आंखों से मानो साक्षात लहू की वर्षा हो रही थी। दोनों की आंखों से खून की बूंदें मानो बस टपकने ही वाली थी । भयानक नीग्रो के मजबूत हाथों में उसकी कटार दबी थी । वह निरंतर खतरनाक ढंग से अधेड़ की तरफ बढ़ रहा था । इस भयानक नीग्रो का नाम काउंटरमैन ने शायद जिम्बोरा बताया था ।
इस अधेड़ की तो मानो अगली और पिछली सात-सात पुश्तों का बल सिर्फ उसी में एकत्रित हो गया था । खाली हाथ ही वह खूंखार दृष्टि से जिम्बोरा को घूरता हुआ उसकी ओर बढ़ रहा था । उसके जबड़े भयानकता के साथ एक-दूसरे पर जमे हुए थे । वह मानो नीग्रो से टकराने का दृढ़ संकल्प कर चुका था ।
हॉल में उपस्थित प्रत्येक इंसान बुरी तरह से भयभीत हो चुका था। सभी उन दो खतरनाक इंसानों को दिल संभाले देख रहे थे । प्रत्येक की आंखों में भय झांक रहा था, किंतु सीटें अपने स्थान पर थीं ।
- वह लड़की अस्त-व्यस्त सी हो चुकी थी । उसकी सांस फूली हुई थी । वह अधेड़ के पीछे काउंटर के निकट खड़ी थी । उसकी संपूर्ण दुआएं-समूची सहानुभूति पूर्ण रूप से अधेड के साथ थी... किंतु नीग्रो का जिस्म, उसकी भयानकता-उसके हाथ में दबी कटार लड़की को भयभीत कर रहे थे । न जाने क्यों उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि यह अधेड़-सा नजर आने वाला व्यक्ति--जिसने उसके लिए स्वयं को मौत के मुंह में धकेल दिया है - वह नीग्रो को परास्त न कर सकेगा, किंतु फिर भी वह न जाने कौन-सी शक्ति थी -- जिसने उसके मन में आशा की ज्योति को प्रज्वलित कर दिया था ।
अभी वे एक-दूसरे की तरफ बढ़ ही रहे थे कि वह कॉलगर्ल जो अभी तक अधेड़ से चिपकी हुई थी । अधेड़ के करीब आई और लगभग झिंझोड़ती हुई बोली ।
- "ये क्या बेवकूफी है? क्या तुम जिम्बोरा से टकराकर मरना चाहते हो?"
किंतु अधेड़ पर तो मानो खून सवार था । उसने पलक झपकते ही कॉलगर्ल को अपने सिर से ऊपर अधर में उठा लिया और इससे पूर्व कि कोई कुछ समझ सके, उसने कॉलगर्ल को जिम्बोरा पर फेंककर मारा । इधर जिम्बोरा इस विचित्र हरकत पर थोड़ा चकरा गया और हड़बड़ाहट में उसे और कुछ न सूझा तो अपनी कटार वाला हाथ आगे कर दिया ।
उफ्...!
कॉलगर्ल की एक भयानक चीख से मानो समस्त वातावरण कम्पित होकर रह गया! नारियों ने डर के मारे आंखें बंद कर ली । कुछ कमजोर हृदय की चीखें भी निकल गई । जिम्बोरा के हाथ की कटार खचाक से कॉलगर्ल के पेट में घुस गई, परिणामस्वरूप उसके कंठ से एक भयानक चीख निकली से और अगले ही पल वह हॉल के फर्श पर पड़ी तड़प रही थी ।
जिम्बोरा की कटार लहू से रक्तिम थी । उसकी भयानका में चार चांद लग गए । वह आगे बढ़ा, रास्ते में पड़े कॉलगर्ल के तड़पते जिस्म में एक ठोकर मारकर उसने अपने लिए रास्ता बना दिया ।
किंतु कॉलगर्ल के तड़पते जिस्म में ठोकर लगते ही अधेड़ का क्रोध मानो चरम सीमा को स्पर्श कर गया । अगले ही पल भयानक जांबाज की भांति अधेड़ का जिस्म हवा में लहराता हुआ जिम्बोरा की तरफ बढ़ा । जिम्बोरा ने भी भयानकता के साथ पैंतरा बदला और कटार वाला हाथ सामने कर दिया ।
किंतु गजब का शातिर था वह अधेड़ भी... पलक झपकते ही उसने वायु में ही एक ड्राइव ली और जिम्बोरा का कटार वाला हाथ थामकर फुर्ती के साथ दाएं हाथ से शक्तिशाली घूंसा उसके जबड़े पर रसीद किया । जिम्बोरा लड़खड़ा तो अवश्य गया, किंतु उस पर कोई विशेष प्रभाव न पड़ा ।
अगले ही पल वह संभला और कटार संभालकर एक बार फिर अधेड़ को घूरा ।
अधेड़ अत्यंत सतर्क नजर आता था, क्योंकि वार करते ही वह पीछे हट जाता था और दुबारा टकराने के लिए तैयार हो गया ।
खतरनाक जांबाज फिर एक-दूसरे के सामने थे ।
कोई कुछ न बोल रहा था- हॉल में मौत जैसा सन्नाटा व्याप्त था
एकाएक जिम्बोरा एक भयानक डकार के साथ कटार को लेकर अधेड़ पर झपटा।
किंतु कमाल था अधेड़ भी...!
वास्तव में गजब की शातिराना चाल...!
जैसे ही जिम्बोरा झपटा उसी पल अधेड़ न सिर्फ अपने स्थान से हट गया, बल्कि फूर्ती से घूमकर एक चेयर उठाई
और जिम्बोरा पर दे मारी । जिम्बोरा एक तो वैसे ही वार के खाली जाने पर लड़खड़ा गया था और ऊपर से चेयर आकर लगी तो वह वास्तव में हड़बड़ा गया, किंतु कमाल था जिम्बोरा भी...! वह भी गजब की फुर्ती का परिचय देता हुआ खड़ा हो गया । एक बार फिर वह अधेड़ के सामने था ।
इस बार जिम्बोरा पहली सभी स्थितियों से भयानक लग रहा था ।
शायद जिम्बोरा को अहसास हो गया था कि उसके सामने खड़ा अधेड़ भी वह रसगुल्ला नहीं कि जीभ पर रखते ही हजम कर जाओ अत: अब तक वह अधेड़ से टकराने में जिस लापरवाही का प्रयोग कर रहा था अब वहां लापरवाही के स्थान पर सतर्कता थी । कटार को संभाले वह खतरनाक ढंग से अधेड़ की ओर बढ़ा ।
दूसरी ओर अधेड़ भी पूर्णतया सतर्क नजर आ रहा था । वह निहत्थे ही जिम्बोरा को घूर रहा था । हॉल में उपस्थित लोगों को अधेड़ के कुछ हाथ देखकर उससे कुछ आशा बंध गई थी । एकाएक जिम्बोरा फिर भयानक ढंग से अधेड़ पर झपटा । अधेड़ ने भी गजब की फुर्ती का प्रदर्शन करने का प्रयास किया ।
किंतु...!
दृश्य देखकर उस लड़की की भयानक चीख निकल गई ।
इस बार अधेड़ मात खा गया। उसने ही दिखाने का बहुत प्रयास किया, किंतु इस बार जिम्बोरा भयानक बाज की भांति झपटा था । अत: उसके हाथ में दबी कटार खच से अधेड़ की बाई बाजू में धंस गई। परिणामस्वरूप लड़की की जोरदार चीख निकल गई - मानो कटार अधेड़ को न लगकर स्वयं लड़की को लगी थी । यह अन्य बात है कि अधेड़ के मुख से एक धीमी-सी सिसकारी भी न निकली हो ।
कटार लगते ही अधेड़ और भी अधिक भयानक हो उठा ।
इधर कटार उसके बाएं हाथ में धंसी--उधर उसके दाएं हाथ का शक्तिशाली आ जिम्बोरा की ठीक नाक पर पड़ा। जिम्बोरा के कंठ से निकलने वाली चीख इतनी भयानक और डरावनी थी कि समस्त हॉल दहल गया । उसकी नाक से लहू बहने लगा | घूंसा वास्तव में इतना शक्तिशाली था कि किसी साधारण आदमी के लगता तो निश्चित रूप से वह संसार से रूठ जाता? किंतु जिम्बोरा पर सिर्फ यह प्रभाव पड़ा कि वह सीटों से उलझता हुआ फर्श पर जा गिरा। साथ ही उसके कंठ से एक भयानक चीख निकल गई ।
जब जिम्बोरा लहराकर चीख के साथ फर्श पर गिर रहा था । उस समय अधेड़ अपने दाएं हाथ से बाई कलाई में धंसी कटार को निकालने का प्रयास कर रहा था । कटार खींचते ही भयानक पीड़ा ने जन्म लिया, किंतु अधेड़ दांतों पर दांत जमाकर उसे सहन कर गया। मुख से उसने सिसकारी तक न निकाली ।
किंतु ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कटार अधेड़ के जिस्म में न लगकर उस लड़की के जिस्म को लगी हो । कटार अधेड़ के जिस्म से न खींची गई हो, बल्कि उस लड़की के जिस्म से खींची गई हो । समस्त पीड़ाएं उस अधेड़ को न होकर उस लड़की को हो रही हो... तभी तो उस लड़की की दर्द भरी चीख निकल गई थी । आसुओं की तो मानो कोई थाह ही नहीं थी - आंसुओं से भरे नयनों से उसने अधेड़ के रूप में उस फरिश्ते को देखा, जो उसके लिए मौत से खेल रहा था- देखकर वह स्तब्ध रह गई, क्योंकि इतनी पीड़ाओं से गुजरने के बाद भी उसके उस विचित्र भाई के मुख पर धीमी-सी मुस्कान नृत्य कर रही थी । लड़की अपने भाई के विचित्र व्यक्तित्व को देखकर स्तब्ध रह गई, किंतु उसका दिल अब भी भयभीत होकर कांप रहा था । उसने देखा । एक बार फिर दोनों खतरनाक जांबाज एक-दूसरे के सामने थे ।
अधेड़ बांह से कटार निकालकर फेंक चुका था, किंतु बांह से निरंतर खून बह रहा था, लेकिन ऐसा लगता था मानो उसे बहते रक्त की लेशमात्र भी चिंता न हो । वह अब भी जिम्बोरा को खूंखार दृष्टि से घूर रहा था ।
इधर जिम्बोरा की नाक से भी लहू बह रहा था । उसका समस्त भयानक चेहरा रुधिर से लथपथ होकर और अधिक भयानक हो गया था, किंतु उसे भी बहते खून की कोई चिंता न थी । वह भी खूनी आंखों से अधेड़ को घूरता हुआ उसकी ओर बढ़ रहा था ।
हॉल में उपस्थित कोई भी व्यक्ति उनके बीच में आने का साहस नहीं कर पा रहा था ।
एकाएक भयानक क्षण... |
दोनों जांबाजों के जिस्म एक साथ वायु में लहाराए । दोनों ने एक ही साथ एक-दूसरे को फ्लाइंग किक मारने का प्रोग्राम बनाया । एक की फ्लाइंग किक दूसरे की फ्लाइंग किक से टकराई । लहराकर दोनों फर्श पर गिरे । किन्तु...!
अगला क्षण दोनों की फुर्ती की परीक्षा का क्षण था। दोनों ने ही अपनी संपूर्ण फुर्ती का प्रदर्शन करके उठकर एक-दूसरे को दबोचने का प्रयास किया, किंतु इस प्रयास में सफलता मिली जिम्बोरा को । जिम्बोरा यहां अधेड़ की अपेक्षा अधिक फुर्तीला निकला ।
प्रयास तो अधेड़ ने भी बहुत किया किंतु वह एक मेज में इस प्रकार उलझ गया था कि उस मेज को अपने सिर से हटाने में कुछ समय लग गया । जबकि जिम्बोरा खुले फर्श पर गिरा था । अत: वह कुछ पहले ही खड़ा हो गया । अधेड़ को खड़ा होने में केवल इतना ही विलम्ब हुआ जितने समय में उसने मेज अपने ऊपर से हटाई, किंतु यही क्षणमात्र का विलम्ब उसके लिए भयानक खतरा बन गया ।
जिम्बोरा क्योंकि सरलता से उससे पूर्व खड़ा हो गया, अत: वह अपनी मजबूत बाहें फैलाकर भयानक ढंग से एक डरावनी डकार के साथ अधेड़ पर झपटा और उसने उठने का प्रयास करते हुए अधेड़ को धर दबोचा । न सिर्फ धर दबोचा, बल्कि एक भयानक दांव की चपेट में ले लिया।
वास्तव में यह इतना भयानक दांव था कि स्वयं अधेड़ की भी चीख निकल गई ।
गजब की फुर्ती के साथ झपटकर जिम्बोरा ने अधेड़ को अपनी मजबूत पकड़ में ले लिया। अधेड़ ने प्रत्येक ढंग से पकड़ से मुक्त होने का प्रयास किया, किंतु उसे असफलता का खजाना मिला ।
वास्तव में जिम्बोरा की पकड़ शिकंजे की भांति सख्त हो चुकी थी । अधेड़ की स्थिति किसी बिल्ली के पंजे में फंसे चूहे जैसी थी । अपनी ओर से उसने मुक्त होने का प्रयास किया, किंतु सब निरर्थक ।
जिम्बोरा अधेड़ को पंजे में दबाकर ही रह जाता, तब भी गनीमत होती, किंतु जिम्बोरा ने उसे भयानक दांव की चपेट में ले लिया था । स्थिति देखकर लड़की भी जैसे थर-थर कांपने लगी थी ।
दांव यह था कि क्षणमात्र में जिम्बोरा ने अपने बाएं पैर का घुटना फर्श पर टेक दिया और दाएं पैर को धरती पर रखकर - उसने-घुटने वाले स्थान से इस प्रकार मोड़ा कि घुटने वाले स्थान पर समकोण यानी 90 डिग्री का कोण बन गया । इसी क्षणमात्र में उसने अपनी पकड़ में कैद अधेड़ का जिस्म समकोण बने पैर की जांघ पर इस प्रकार रखा कि उसका आधा जिस्म पैर के दाई ओर तथा आधा जिस्म बाई ओर । अधेड़ का जिस्म जांघ पर चित अवस्था में था ।
अधेड़ मुक्त होने के लोभ से छटपटाया, किंतु सफल न हो सका । वास्तव में जिम्बोरा शक्ति में किसी राक्षस से कम नहीं था । वह सिर्फ कसमसाकर रह गया, किंतु मुक्त न हो सका । तभी जिम्बोरा अपनी दोनों कलाइयों को भी कोहनी से समकोण की स्थिति में मोड़कर दाई भुजा से अधेड़ के जांघ पर रखे जिस्म का दायां भाग नीचे दबाने लगा तथा बाई कलाई से बाई ओर का जिस्म ।
अब स्थिति यह थी कि अधेड़ के जिस्म का बीच वाला भाग जिम्बोरा की जांघ पर था जबकि जांघ से लटके दोनों ओर के जिस्म को जिम्बोरा शक्ति के साथ नीचे की ओर दबा रहा था । अत: उसकी कमर कमान की भांति मुड़ती जा रही थी ।
बस यही उसकी चीख निकल गई ।
उसे अपनी रीढ़ की हड्डी टूटती- सी महसूस हुई। उसे लगा-जैसे कुछ ही पलों में उसकी रीढ़ की हड्डी चटक जाएगी । भयानक पीड़ा से उसके उसके कंठ से निरंतर चीखें निकलकर हॉल को दहलाने लगी । अधेड़ का समस्त चेहरा लाल हो गया । उसका कोई भी दांव इस समय कामयाब सिद्ध नहीं हो रहा था ।
जिम्बोरा के भयानक होंठों पर खतरनाक सफलतामयी मुस्कान नृत्य कर रही थी । वह अपनी संपूर्ण शक्ति से निरंतर अधेड़ की रीढ़ की हड्डी को तोड़ने पर उतारू था । वह तो मानो अधेड़ की हत्या करने का दृढ़ संकल्प ले चुका था ।
वास्तव में स्थिति यह थी कि अधेड़ न सिर्फ जिम्बोरा से
परास्त हो गया था, बल्कि अब उसकी जीवनलीला भी समाप्त होने जा रही थी । शायद ही उसके मरने में कुछ विलम्ब था । मौत! कितनी भयानक होती है मौत! और यह मौत तो मौत से भी अधिक भयानक मौत थी!
अथाह पीड़ाओं में से गुजरकर मौत! वास्तव में अधेड़ पराजितप्राय हो गया था किंतु...!
वह लड़की ! उस अबला की मासूम और प्यारी आंखों में जैसे ख़ून उतर आया था । अधेड़ को इस प्रकार मौत के मुंह में देखकर उन नारी नेत्रों ने ज्वाला की वर्षा प्रारम्भ कर दी । नारी का सोया हुआ साहस जाग्रत हो गया । अधेड़ की यह स्थिति देखकर वह इस प्रकार क्रोधित हो उठी मानो वह सगे भाई की सगी...मानो उन दोनों में कोई खून का रिश्ता रहा हो । मासूम लड़की साक्षात चंडी में बदल गई । भोले नेत्रों में लहू उबालें लेने लगा । प्यारा-सा मुखड़ा मौत से भी अधिक भयानक हो उठा ।
उसकी जलती हुई निगाहें फर्श पर पड़ी कटार पर स्थिर हो गई । खून से सनी हुई कटार को देखकर उसका खून जैसे और भी अधिक तेजी से उबाल लेने लगा। उसके भैया की चीखों ने जैसे उसे असीम शक्ति प्रदान कर दी । भयानक चंडी की भांति वह फुर्ती के साथ कटार पर झपटी ।
कोई कुछ समझ भी न पाया... उसकी हरकत देखकर सभी हतप्रभ रह गए ।
किंतु सभी की स्थितियों से बेखबर उस चंडी ने कटार उठा ली और पलक झपकते ही...!
उफ्..!
खच्च से कटार जिम्बोरा की पीठ में धंस गई । जिम्बोरा के कंठ से चीख निकल गई। खून का तीव्र फव्वारा निकला जिसने अबला के समस्त चेहरे को रंग दिया । सनी हुई कटार हाथ में लिए वह अबला कितनी खतरनाक - कितनी हौलनाक लग रही थी!
भयानक पीड़ा से जिम्बोरा मचला... खतरनाक ढंग से वह चीखा । इसी चक्कर में जिम्बोरा की पकड़ क्षणमात्र के लिए शिथिल हुई और अधेड़ के लिए एक पल काफी था । अत: सरलता से उसने स्वयं को छुड़ा लिया। उसे अब भी अपना दिमाग घूमता-सा प्रतीत हो रहा था ।
इधर जिम्बोरा भयानकता की चरम सीमा पर पहुंच गया । उसकी पीठ में बना वह कटार का वार मानो कोई महत्त्व ही न रखता था । भयानक ढंग से वह अधेड़ को भूलकर उस लड़की की तरफ घूमा और खतरनाक ढंग से चीखा ।
"डायन... कमीनी...! "
वह लड़की फिर कटार संभाले उस शेरनी की भांति जिम्बोरा पर झपटी-जैसे शेर अपने शिकार पर किंतु अब जिम्बोरा का समस्त ध्यान उसी पर केंद्रित था... फिर वह लड़की बेचारी क्या सफल होती? कहां वह भयानक और शक्तिशाली राक्षस और कहां वह मासूम कोमल अबला ? जिम्बोरा ने एक ही झटके में कठोर हाथ में थामे लड़की को उठाकर हॉल के एक कोने में फेंक दिया। लड़की के कंठ से भयानक चीख निकली और वह हॉल के एक कोने में जा गिरी । समूचा हॉल इस भयानक लड़ाई पर स्तब्ध था ।
लड़की की चीख सुनकर अधेड़ की मानो विलुप्त होती हुई चेतना वापस लौट आई-वह एकदम सजग होकर उठ खड़ा हुआ और लड़की की स्थिति देखकर मानो उसमें अपरिमित शक्ति का संचार हुआ । वह अपनी संपूर्ण शक्ति से जिम्बोरा पर झपटा । इस बार जिम्बोरा ने लाख चाहा कि वह किसी तरह अधेड़ को रोक सके, किंतु लगता था कि जैसे किसी अनजाने प्रेत की शक्ति और फुर्ती सिमटकर अधेड़ के जिस्म में आ गई है। जिम्बोरा की कुछ समझ में नहीं आया था कि अधेड़ के शक्तिशाली घूंसे तड़ातड़ वर्षा की बूंदों की भांति उसके चेहरे पर पड़ रहे थे। हालांकि इन घूंसों का उस पर कोई खास प्रभाव न पड़ रहा था, किंतु फिर भी इतना अवश्य था कि इन घूंसों ने जिम्बोरा को संभलने का अवसर नहीं दिया । जिम्बोरा की नाक से बहने वाला लहू तीव्र हो गया । ऐसा लगता था-जैसे बांध टूटने पर नदी का बहाव ।
जिम्बोरा को समस्त हॉल घूमता-सा प्रतीत होने लगा । वह अंधे हाथी की भांति इधर-उधर हाथ-पांव मारने लगा। तभी अधेड़ एक पल के लिए ठहरा और अगले ही पल उसकी जेब में पड़ा चाकू उसके हाथ में आ गया । इस एक पल का लाभ उठाने हेतु जिम्बोरा भी उस पर झपटा, किंतु अधेड़ तो मानो भयानक राक्षस में परिवर्तित हो चुका था । उसका चाकू वाला हाथ तीव्र वेग से ऊपर उठा और पलक झपकते ही नीचे गिरकर 'खचाक' से झपटते जिम्बोरा के चेहरे में धंस गया । जिम्बोरा के कंठ से ऐसी भयानक चीख निकली कि समस्त हॉल कांपता-सा प्रतीत हुआ। लोगों ने घृणा और नफरत से अपनी आखें बंद कर लीं ।
किंतु अधेड़ की भयंकरता की मानो कोई सीमा ही न थी । उसने तेजी के साथ चाकू खींचा और पलक झपकते ही अगला वार मस्त हाथी की तरह झूमते हुए जिम्बोरा पर कर दिया । जिम्बोरा की चीख से हॉल में उपस्थित व्यक्तियों में सिर्फ अधेड़ को छोड़कर सभी के दिलों में भयानक दहशत बैठ गई । नारियों की चीख से समस्त वातावरण दहल गया । कितना घिनौना दृश्य था यह... कितना घृणास्पद, कितना भयानक, इतना भयानक कि मौत भी भय से कांप उठे । खूनी लड़ाके भी दहल उठें । शांत पड़ा सागर भी गरजने लगे ।
उसके बाद तो अधेड़ मानो पागल हो गया था, उसने जिम्बोरा को संभलने का अवसर ही नहीं दिया । निरंतर भयानक ढंग से उस पर चाकुओं के वार करता रहा। हॉल में जिम्बोरा की चीखें गूंज रही थी, अब जिम्बोरा कुछ करने की स्थिति में न था । प्रत्येक बार वह भयानक ढंग से चीखता और हॉल को कंपाकर रख देता अधेड़ थमा नहीं... वह निरंतर तीव्र वेग से जिम्बोरा पर वार करता रहा।
समस्त हॉल सीने पर हाथ रखे इस अविश्वसनीय दृश्य को देख रहा था ।
लगभग चाकू के बीस खतरनाक वारों के बाद जिम्बोरा, भयानक व शक्तिशाली जिम्बोरा भयानक ढंग से हाथी की भांति लहराया और फिर धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ा । अधेड़ खून से सना चाकू हाथ में लिए उस भयानक नीग्रो के अब भी उठने को उम्मीद लिए उससे टकराने के लिए तैयार खड़ा था । उसकी सांस फूली हुई थी । इस समय वह अत्यंत ही भयानक लग रहा था । लोग आश्चर्य के साथ उसे देख रहे थे । वह भी थककर चूर हो चुका था । ऐसे झूम रहा था मानो अब गिरा । उसका शानदार सफेद सूट लहूलुहान हो चुका था । अपनी धौंकनी की भांति चलती सांसों पर संयम पाकर उसने इधर-उधर देखा... ।
पहाड़ जैसा भयानक नीग्रो कुछ देर तक फर्श पर पड़ा रहा, फिर एक झटके के साथ उसकी गरदन एक ओर ढुलक गई । जिम्बोरा अब ठंडा पड़ चुका था । वास्तव में भयानक नीग्रो जिम्बोरा का अंत भी कम भयानक नहीं था। मानो हाथी मृत पड़ा हो ।
समूचे हॉल में मौत जैसा सन्नाटा व्याप्त था ।
-"भैया... ऽऽऽ !" एकाएक हॉल के उसी कोने में खड़ी लड़की चीखी और अधेड़ की तरफ दौड़ी, अधेड़ ने चाकू फेंककर बाहें फैला दी । भागती, सिसकती, रोती-बिलखती वह लड़की अपने भैया के सीने से जा लगी और उसकी सिसकारियां और भी तेज हो गई। हॉल में एक विचित्र - सा सन्नाटा छा गया था । एकाएक अधेड़ के सीने से लगी लड़की चौंक पड़ी ।
उसने देखा- ये लगभग दस भयानक शक्ल वाले इंसान थे, जिनके हाथों में टॉमीगनें थी । ये अधेड़ के पीछे थे। उसे मौत अपने सिर पर नजर आई, अत: संपूर्ण शक्ति के साथ चीखी ।
"भैया….……ऽ.………!"
"काश वह यह देख सकती कि ऐसे ही दस-दस खतरनाक इंसान चारों दिशाओं से उन्हें घेर रहे थे...!
ऑस्टिन की डिक्की में छुपा नाटा साया अपनी सफलता पर प्रसन्न नजर आता था-किंतु वह बेचारा क्या जानता था कि उसका रहस्य अब रहस्य नहीं रह गया । डिक्की में बैठा साया क्या जानता था कि उसके शत्रु आग के बेटे उसकी उपस्थिति से परिचित हो चुके हैं । अब यह डिक्की उसके लिए एक प्रकर से कैद बनकर रह गई है । वह तो सोच रहा था कि वह आग के बेटों को धोखा देने में सफल है ।
वह अपने नाटे कद का लाभ उठाते हुए सरलता से डिक्की में समा गया था । ऑस्टिन तीव्र वेग से बढ़ती चली जा रही थी । डिक्की को उसने थोड़ा-सा ऊपर उठा रखा था, जिससे सांस के लिए उसे पर्याप्त वायु मिलती रहे और साथ ही दीवार से आंख सटाकर वह अपने दिमाग में उन रास्तों को पूर्णरूप से सुरक्षित करता जा रहा था- जिन मार्गों से ऑस्टिन गुजर रही थी।
यह यात्रा इसी क्रम के साथ लगभग तीस मिनट तक निरंतर चलती रही, वह आराम से बैठा मार्ग को अपने मस्तिष्क में सुरक्षित करता जा रहा था । उसी समय वह धीमे से चौंका- जब तीव्र वेग से चलती ऑस्टिन का वेग धीमा पड़ने लगा । उसने चारों ओर का निरीक्षण किया-आसपास दूर तक बीहड़ जंगल था । कहीं कोई इमारत कम-से-कम उसे तो दिखाई न दी। चारों ओर पूर्व काजल-सा काला अंधकार । कहीं-कहीं खेतों के बीच बने ट्यूबवेल के बल्ब चमक रहे थे । के वरना तो सर्वत्र अंधकार था । सिर्फ स्याह काजल-सा अंधकार | कभी-कभी जुगनू चमक उठते-ऐसा लगता था-मानो छोटी चिंगारियां वायु में चकरा रही हों ।
धीमी पड़ती हुई ऑस्टिन अचानक स्थिर हो गई। उसने धीमे से ऑस्टिन की डिक्की गिराकर उस दरार को समाप्त कर दिया और सांस रोककर बाहर की आहट लेने का प्रयास करने लगा। उसके कान बाहर ही लगे हुए थे। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि ऑस्टिन यहां जंगल में रोकने का क्या उद्देश्य? उसकी समझ में कुछ न आया किंतु वह चुपचाप आहट लेने का प्रयास करता रहा।
कुछ कदमों की आहट से उसने महसूस किया ऑस्टिन में उपस्थित सायों में से कुछ साए बाहर आए है । दरवाजा बंद होने की ध्वनि ने उसके इस विचार की ठोस पुष्टि कर दी । फिर वह ध्यान से कदमों की आहट सुनने का प्रयास करने लगा । अचानक उसने महसूस किया कि चार साए उसकी डिक्की की ओर बढ़े । फिर उसे ऐसा महसूस हुआ कि मानों वे चार साए बाहर डिक्की के पास ही थम गए हों । उसका दिल बड़ी बुरी तरह से धड़का । भय का पंजा उस पर प्रभुत्व जमाने लगा । अजीब हालत हो गई उसकी । आने वाले भयानक क्षणों के विषय में सोचकर माथे पर पसीने की बूदें उभर आई । वास्तव मे अगले कुछ पलों में आने वाला समय अत्यंत खतरनाक था...। क्या उसका रहस्य खुल गया? वह कौन है ? क्या आग के बेटे जान गए हैं? नहीं! उसके दिल ने कहा । यह रहस्य तो वे किसी भी कीमत पर नहीं जान सकते-किंतु ऐसा लगता है जैसे ये लोग उसकी डिक्की में उपस्थिति से परिचित हो गए है। किंतु कैसे? वह तो अत्यंत सतर्कता के साथ डिक्की में बैठा था, फिर अगर ये उसे देख लेते तो वहीं समाप्त कर देते--फिर उसे वहां क्यों लाया गया ? उसके दिमाग में स्वयं ही प्रश्न उठते और उसका उत्तर स्वयं ही खोजने का प्रयास करता । किंतु कोई भी ऐसा विचार उसके दिमाग में न आ सका, जो पूर्णरूप से उसे संतुष्ट कर सके । क्षण-भर में उसके दिमाग में विचारों का उत्थान-पतन
हो गया, किंतु वह किसी निर्णायक विचार पर न पहुंच सका । उसे अब भी ऐसा आभास-सा हो रहा था मानो वे लोग अभी डिक्की के बाहर ही खड़े हों ।
उसका रिवॉल्वर अपनी जेब में था और डिक्की ऐसी थी कि उसमें अगर वह रिवॉल्वर निकालने का प्रयास करता तो आवाज होने का भय था, क्योंकि डिक्की इतनी छोटी थी कि वह अपना रिवॉल्वर जेब से निकालने में असमर्थ था । उसका दिल बुरी आशंका से धड़क रहा था, उसे लग रहा था कि बस अब उठी डिक्की !
और वास्तव में उसका भय सत्य सिद्ध हुआ। अगले ही पल डिक्की उठा दी गई । नाटा साया कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था । सामने तीन छायाएं खड़ी थी जिनमें से दो के रिवॉल्वरों का रुख उसी की ओर था । तीसरे ने डिक्की उठाई थी । नाटा साया शान से अपने स्थान पर पड़ा रहा । तभी एकाएक रिवॉल्वर वाला कड़े स्वर में गुर्राया-"अगर कोई भी चालाकी दिखाने की कोशिश की तो गोली मार दूंगा ।"
डिक्की में पड़े-पड़े साए ने हाथ ऊपर उठा दिए । वह बुरी तरह फंस गया था ।
-"बाहर आओ...! " उसी इंसान ने आदेश दिया । नाटे साए के पास आज्ञा पालन करने के अतिरिक्त अन्य कोई चारा नहीं था । अत: वह चुपचाप डिक्की में से बाहर आ गया । उसने ध्यान से अपने चारों ओर का निरीक्षण किया तो स्वयं को दो रिवॉल्वरों और एक निहत्थे इंसान से घिरा पाया । इस समय तो वे लोग ऐसे निर्जन स्थान पर थे जहां दूर-दूर तक कोई इमारत तक दृष्टिगोधर नहीं होती थी स्याह अंधकार की चादर ने जंगल के वातावरण के भयानकपन में चार चांद लगा दिए थे। दूर-दूर तक किसी का पता न था । नाटा साया इतना नाटा था कि उन लंबे-तगड़े सायों के बीच बालक-सा लगता था । अचानक ऑस्टिन के अंदर से आवाज आई।
-"कौन है ?"
- " चेहरे पर काला नकाब है सर ।" निहत्थे व्यक्ति ने उत्तर दिया । बोलता हुआ भी वह निरंतर नाटे को घूर रहा था । नाटा शांति के साथ हाथ ऊपर किए खड़ा रहा- मानो उसे अब अपने पकड़े जाने का भय न हो ।
- "इसे यहां ले आओ।" ऑस्टिन के अंदर से फिर आदेशात्मक स्वर गूंजा |
- "चलो ।" नाटे साए के पीछे रिवॉल्वर लगाए साया रिवॉल्वर का दबाव बढ़ाकर बोला, न जाने क्यों नाटे के अधरों पर धीमी-सी मुस्कराहट तैर गई। हाथ ऊपर किए ही वह आगे बढ़ गया । कुछ ही समय उपरांत वे लोग ऑस्टिन के बाहर आगे की ओर चले गए। तभी ऑस्टिन के अंदर से आदेश देने वाले व्यक्ति के साथ सभी बाहर आ गए... सिर्फ प्रोफेसर हेमंत का अचेत जिस्म अंदर रह गया । बाहर आकर ओदश देने वाला साया बोला ।
"कौन हो तुम? " प्रश्न सीधा नाटे से किया गया ।
"तुम्हारी मौत! " नाटा साया गुर्रकर खतरनाक शब्दों में बोला ।
-"क्या मतलब ? " आदेश देने वाला साया एकदम से क्रोधित होकर गुर्राया- "लगता है, तुम्हारी मौत निकट आ गई है । खींच लो इसका नकाब ।'
आदेश के साथ ही एक साया नाटे की ओर बढ़ा । इस बार नाटा साया थोड़ा-सा भयभीत हुआ । क्या उसका रहस्य इतनी शीघ्र खुल जाएगा? शायद भय रहस्य खुलने का था, किंतु वह आदमी नहीं रुका । वह नाटे साए के निकट आया और जैसे ही उसने नाटे साए का नकाब नीचने के लिए हाथ बढ़ाए, तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। सभी चौंके थे । वास्तव में वह चौंकने वाली बात भी थी । सभी एक पल के लिए स्तब्ध रह गए। जैसे ही उस व्यक्ति का हाथ नाटे का नकाब नोचने हेतु आगे बढ़ा- ठीक उसी समय वहां वीरान जंगल में उनके रहस्यमय बॉस की, यानी आग के स्वामी की गरजदार और भर्राई हुई भयानक आवाज गूंजी- "ठहरो...!"
इस एक शब्द ने सबको चौंका दिया। सभी स्तब्ध-से रह गए । एक बार तो वे कांप भी गए, क्योंकि यहां निर्जन जंगल में आग के स्वामी की आवाज गूंजने का मतलब था कि उनका बॉस उनके साथ रहता है उनकी प्रत्येक हरकत पर निगाह रखता है । अत: कभी भी वे गलत कदम उठाएं तो वह स्वामी की नजरों से न छुप सकेगा। उन्होंने स्वामी की आवाज पर स्वामी की तलाश में इधर-उधर नजरें दौड़ाई, किंतु जंगल के कारण आवाज कुछ इस प्रकार प्रतिध्वनित हुई थी कि सहज ही अनुमान लगाना संभव न था कि आवाज कहां से आ रही है । अभी उनका आश्चर्य कम नहीं हुआ था कि स्वामी की आवाज फिर गूंजी।
-''अभी इसकी नकाब मत उतारो... इसे आंखों पर पट्टी बांधकर ले आओ।"
सभी ने अपने स्वामी के आदेश को सुना और स्तब्ध रह गए । कुछ समय तक तो वे आश्चर्य के सागर में गोते लगाते रहे फिर उन्होंने वहीं नाटे साए की तलाशी लेकर उसका रिवॉत्वर अपने अधीन कर लिया। आखों पर पट्टी बांधकर उसे ऑस्टिन के अंदर लाए और इस प्रकार पटक दिया मानो सामान की कोई भारी बोरी हो । नाटे ने महसूस किया कि वह किसी अन्य बेहोश जिस्म पर पड़ा है। उसके अनुमानानुसार उसके नीचे दबा जिस्म प्रोफेसर हेमंत के अतिरिक्त किसी का भी नहीं था । ऑस्टिन तीव्र वेग से दौड़ती हुई सड़क की निद्रा भंग कर रही थी और उसकी ध्वनि ने निःसंदेह रात के सन्नाटे को पराजित कर दिया था । प्रत्येक व्यक्ति अपने विचारों में उलझा हुआ था ।
नाटा साया सोच रहा था कि इन आग के बेटों का चीफ कौन है? प्रोफेसर हेमंत का अपहरण उनके लिए क्या महत्त्व रखता है? विकास का अपहरण करके इन लोगों ने उसके साथ कैसा व्यवहार किया होगा ? आग के बेटों का आखिर उद्देश्य क्या है? ऐन वक्त पर इनके चीफ की आवाज कैसे गूंज गई, जबकि वह नजर नहीं आ रहा था? इनके चीफ ने उसकी नकाब उलटने से इन्हें क्यों रोक दिया? आखिर इस बात के पीछे क्या रहस्य है? इत्यादि इत्यादि प्रश्न नाटे साए के दिमाग में उथल-पुथल मचाए हुए थे। ऑस्टिन निरंतर वेग से अनजाने मार्गों पर बढ़ रही थी ।
ठीक समय तो उसे नहीं मालूम, किंतु अनुमानानुसार लगभग तीस मिनट बाद ऑस्टिन एक स्थान पर थम गई । उसे उतारा गया । उसके बाद उसने उन आग के बेटों की मदद से कितनी ही सीढ़ियां चढ़ी और उतरीं । उसे एक लिफ्ट में भी बैठाया गया । यानी यह यात्रा लगभग दस मिनट तक चली। उसके बाद उसे एक स्थान पर खड़ा कर दिया गया । वह न जान सका कि वह किस स्थान पर है, क्योंकि अभी उसकी आंखों से पट्टी नहीं खोली गई थी । वह शांत खड़ा आहट लेने का प्रयास करता रहा, किंतु कहीं कोई आहट नहीं महसूस हुई। तभी उसके कानों में भर्राया-सा ऐसा स्वर टकराया - मानो वह किसी को आदेश दे रहा हो ।
- "सबसे पहले प्रोफेसर हेमंत को नंबर एक में बंद कर दिया जाए... इनसे निबटने में काफी समय लगेगा । अत: पहले इस नाटे को देखते हैं- जो अभी पहेली बना हुआ है।"
नाटे साए ने सब कुछ सुना, किंतु शांत खड़ा रहा, फिर उसके कानों में ऐसी आवाजें टकराई -जैसे फर्श पर पड़े प्रोफेसर हेमंत को उठाकर किसी ने कंधों पर लाद लिया हो । तत्पश्चात दूर जाते कदमों की ध्वनि । वह शांत खड़ा रहा । अभी तक उसकी पट्टी नहीं हटाई गई थी ।
लगभग पांच मिनट पश्चात आग के स्वामी की आवाज गूंजी "इसकी पट्टी हटाओ।"
आदेश का तुरंत पालन हुआ - एक इंसान ने आगे बढ़कर उसकी आंखों से पट्टी हटा दी । आंखें खुलते ही सबसे पहले उसकी निगाह सामने ऐसी वस्तु पर पड़ी, जिसने फिर से उसे आंखें बंद करने के लिए विवश कर दिया । सामने आग के स्वामी के रूप में एक विचित्र साया खड़ा था। जिसके जिस्म पर जलने वाले बल्बों के तीव्र प्रकाश ने उसे आंखें बंद कगने पर विवश कर दिया था। धीमे-धीमे उसने आंखे खोली तो पाया कि वह एक गोल हॉल में है इसमें धीमा-सा धुंधला प्रकाश है । जो उसे यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि उसके चारों ओर करीब बीस कद्दावर इंसान ग्रीन और चुस्त लिबास में खड़े है। इनके सिरों पर लाल कैप है और सीने पर आग के बेटे शब्द लिखा हुआ है । वे सभी शांत खड़े हैं ।
सबको निहारने के पश्चात नाटे की आंखें रहस्यमय आग के स्वामी पर स्थिर हो गई। तभी रहस्यमय साए की गुर्राहट से समूचा हॉल दहला ।
-"कौन हो तुम ?'' प्रश्न नाटे से किया गया था ।
- "ये प्रश्न पहले भी मुझसे पूछा जा चुका है ।" नाटा साया लापरवाही से बोला-" और इसका जवाब मैंने यह दिया था कि मैं आग के बेटों की मौत हूं... । या यूं कहिए कि मैं अपराधियों का काल हूं... ।" उसकी आवाज में तनिक भी भय न था ।
- "मेरे विचार से तुम पागल आदमी हो ।" स्वामी गुर्राया- ''बेटा नंबर शर्मीला सेशन!'
-- "यस महान स्वामी ।" शर्बीली सेशन एक कदम आगे बढ़कर आदर के साथ बोला ।
-- "इस नाटे की नकाब नोच लो !"
आदेश पाते ही शर्बीला सेशन नाटे की ओर बढ़ा । नाटा शांत खड़ा था । वह धीमे से उसके निकट आया । लोगों की जिज्ञासा जाग्रत हुई ।
सभी जानना चाहते थे कि इस नकाब के पीछे आखिर कौन-सा चेहरा छिपा है? यह नाटा बहुत देर से उनके लिए रहस्य बना हुआ था । सभी के दिल धड़क रहे कि आखिर यह कौन है?
और तब-जबकि नाटे का नकाब नोचा गया--- हॉल में उपस्थित समस्त इंसान इस प्रकार चौंके! --- मानो उन्होंने संसार का सर्वोत्तम आश्चर्य देखा हो । उनकी खोपड़ी मानो हवा में चक्कर लगा रही थी । सभी ऐसे चौंके -- मानो हजारों-लाखों बिच्छुओं ने उन्हें एकदम डंक मारा हो । सभी जैसे आकाश से गिरे। यहां तक कि स्वयं रहस्यमय
नकाबपोश यानी आग का स्वामी भी उसे हैरत से निहार रहा था- उसकी आंखों में ऐसा आश्चर्य था मानो वह हिमालय पर्वत को वायुमंडल में उड़ता हुआ देख रहा हो । बरबस ही उसके मुंह से निकला ।
-"तुम...!"
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