अगले दिन सुबह आठ बज रहे थे जब देवराज चौहान नहा-धोकर  तैयार हो चुका था। अपने पास मौजूद दोनों रिवाल्वरों को उसने चैक किया और कमीज के भीतर पैंट में फंसा लिया ।

साढ़े आठ बजे नौकर नाश्ते के लिए बुलाने आया ।

"यहीं ले आते नाश्ता ।" देवराज चौहान बोला ।

"मालिक, नाश्ते की टेबल पर आपका इंतजार कर रहे हैं ।" नौकर ने बताया ।

देवराज चौहान, नौकर के साथ बंगले के भीतर नाश्ते की टेबल पर पहुंचा ।

वहां सुमित जोशी और खूबी पहले से ही मौजूद थे । खूबी ने नाराजगी भरी निगाहों से उसे देखा और मुंह फेर लिया । जबकि जोशी कह उठा---

"आओ..बैठो ।" जोशी ने मुस्कुराने की चेष्टा की ।

देवराज चौहान ने कुर्सी खींची और बैठ गया ।

तीनों ने नाश्ता शुरू कर दिया ।

"याद है न आज कोर्ट जाना है ?" सुमित जोशी व्याकुल-सा कह उठा ।

"याद है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"मैंने सोचा इस बारे में, कोर्ट से मैं चुपचाप आसानी से खिसक जाऊंगा ।"

"बढ़िया है ।" देवराज चौहान ने खूबी पर नजर मारकर जोशी से कहा--- "अकेले खिसक रहे हो ?"

"हां । मैंने खूबी को समझा दिया है ।"

"बच्चे कहां हैं ?"

"स्कूल गये हैं । मैंने खूबी को समझा दिया है सब कुछ । कोई बढ़िया-सा ठिकाना देखकर इन्हें भी बुला लूंगा।"

"अच्छा होता अगर बीवी-बच्चों को साथ ले जाते । तुम्हें गायब पाकर बांटू और गोवर्धन इन्हें नहीं छोड़ेंगे ।"

सुमित जोशी ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा---

"बेकार के वहम में मत पड़ो । इन्हें कुछ नहीं होगा ।"

जोशी के इस जवाब से जाहिर था कि उसे सिर्फ और सिर्फ अपनी परवाह है। खूबी या बच्चों की उसे जरा भी परवाह नहीं कि वो उनके खिसकने के बाद जिंदा रहते हैं या नहीं । ऐसे घटिया इंसान का मर जाना ही अच्छा है ।" देवराज चौहान ने सोचा ।

"मेरी बात समझ रहे हो ना । बांटू और गोवर्धन के आदमी मेरे इंतजार में कोर्ट के भीतर नहीं आयेंगे । वो बाहर रहकर ही मेरे बाहर आने का इंतजार करेंगे । तब मैं पुलिस की किसी गाड़ी में बैठकर खिसक जाऊंगा।"

देवराज चौहान ने उसे देखकर मुस्कुराया ।

"मेरा सोचना ठीक है ना ?" जोशी ने देवराज चौहान को देखा ।

"परफैक्ट है ।" देवराज चौहान ने खाते हुए खूबी को देखा जो वहीं बैठी थी ।

"तुम्हें आज खास सावधान रहना होगा । क्योंकि आज ज्यादा खतरा है । मैं...।"

"मैं अपनी ड्यूटी पूरी करूंगा ।"

"मुझे तुम पर भरोसा है । तुम पहले भी मेरी जान बचा चुके हो ।" सुमित जोशी उठते हुए बोला--- "तुम आराम से खाओ । मैं कपड़े पहनकर आता हूं । खुबी को समझा देना, कुछ नाराज-सी लग रही है ।"

देवराज चौहान ने मुस्कुराकर खूबी को देखा ।

सुमित जोशी वहां से चला गया ।

"तुम बहुत झूठे हो ।" खूबी ने दांत भींचकर धीमे स्वर में कहा ।

देवराज चौहान चुप रहा। ।

"तुमने कहा था कि ये एक-आध दिन में मर जायेगा, परन्तु इसने मारने वाले को रात दस करोड़ रुपया दिया कि वो इसे ना मारे और अब ये मुम्बई से खिसकने जा रहा है । तुमने तो कहा वो...।"

"मेरे ख्याल में तो आज खेल खत्म हो जाना चाहिये ।"

"क्या मतलब ?"

"जोशी मुम्बई से खिसक नहीं सकेगा । क्योंकि जो लोग इसकी जान लेना चाहते हैं, वो खतरनाक हैं ।"

"रात उन्हें दस करोड़...।"

"वो दूसरी पार्टी थी।  जो खतरनाक पार्टी है, वो कभी भी इसकी जान ले सकती है । उसी से तो बचकर, भागने जा रहा है ।"

"तुम सच कह रहे हो ?"

"पूरा सच ।"

"अगर ये भाग गया तो...।"

"वो लोग इसे भागने नहीं देंगे ।"

"तुम इसकी सहायता कर रहे हो तो...।"

"मैं कोई सहायता नहीं कर रहा । मुझे इससे कोई हमदर्दी नहीं है । मैं सिर्फ दिखावे के लिए इसके साथ हूं ।"

"ऐसा क्यों ?" खूबी देवराज चौहान को देखने लगी ।

"ये मेरी व्यक्तिगत बात है । इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं...।"

खूबी ने गहरी सांस ली, फिर कहा---

"तो आज ये मर जायेगा ?" आवाज धीमी थी ।

"मुझे तो ऐसा ही लगता है ।"

"अगर ये मुम्बई से भाग निकला तो ?"

"मेरा वादा है कि मैं इसे मुम्बई से बाहर नहीं निकलने दूंगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।

खूबी के चेहरे पर कुछ तसल्ली-सी आ ठहरी ।

"तुम इसे मार देने का वादा करो तो मैं खुद तुम्हें खुश कर दूंगी ।"

"मैं इसे नहीं मारूंगा ।"

"क्यों ?"

"क्योंकि किसी को ये जिंदा चाहिये । उसका एहसान है मुझ पर । इसलिए मैं इसे नहीं मार सकता।"

"पहले वाला बॉडीगार्ड अच्छा था जो मेरी बात सुनकर इसे मारने को तैयार हो गया था ।" खूबी ने तीखे स्वर में कहा--- "परन्तु वो खुद मर गया ।"

"हां, बेचारे का एक्सीडेंट हो गया...।"

देवराज चौहान ने मुंह  दूसरी तरफ छुपा लिया ।

"अगर ये आज न मारा तो ?" खूबी ने पूछा ।

"तो कल मर जायेगा ।" देवराज चौहान ने कहा--- "एक-दो दिन से ये ज्यादा जिंदा रहने वाला नहीं...।"

"ये बात तुम कब से कह रहे...।"

"कल शाम को कही थी ये बात तुमसे और अब कह रहा हूं । इसकी किस्मत तेज है । इसीलिए बचे जा रहा है ।"

खूबी देवराज चौहान को देखने लगी थी ।

"तुमने उन लड़कों को मना कर दिया ना ?" देवराज चौहान कह उठा ।

"तुम उन लड़कों को हटाने के लिए तो ये सब बातें मुझसे नहीं कह रहे ?" खूबी ने शक भरे स्वर में कहा ।

"मैं झूठ नहीं बोलता । तुमने उन लड़कों को मना कर दिया कि नहीं ?"

"कर दिया है । रात ही फोन कर दिया था उन्हें । परन्तु जाने क्यों मुझे तुम्हारी बात पर भरोसा नहीं आ रहा ।"

"जल्दी भरोसा हो जायेगा...।"

"उसी पल देवराज चौहान का मोबाइल बजा ।

देवराज चौहान ने बात की । दूसरी तरफ से जगमोहन था ।

"मुझे रात को ठीक से नींद नहीं आई ।" उधर से जगमोहन ने कहा--- "मैं ये सोच-सोचकर परेशान हो रहा हूं कि आखिर सी.बी.आई. वालों ने तुम्हारे कहने पर मुझे पुलिस के हाथों से क्यों आजाद करवा दिया । ऐसा क्या हो रहा है जो...।"

"जल्दी बताऊंगा ।"

"कब ?"

"शायद आज ये मामला खत्म हो जाये । हो तो जाना चाहिये।

"कुछ मुझे भी तो पता चले ।" उधर से जगमोहन ने खींझ भरे स्वर में कहा--- "तुम क्या कर...।"

"हम जल्दी मिलेंगे ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद करके जेब में रखा ।

"कौन था ?" खूबी ने पूछा ।

"मेरा दोस्त...।"

"सुरेंद्र पाल, जब भी तुम्हारे बारे में सोचती हूं तो परेशान हो जाती हूं । मुझे ये नहीं समझ आ रहा कि मेरे पति तुम्हें डिनर पे नाश्ते में साथ क्यों बिठा लेते हैं ? वरना पहले वाले बॉडीगार्ड को तो वो बंगले के भीतर भी नहीं आने देते थे ।"

देवराज चौहान की निगाह सुमित जोशी पर पड़ी, जो तैयार होकर इधर ही आ रहा था । वो वकीलों के कपड़ों में था । हाथ में छोटा-सा ब्रीफकेस पकड़ रखा था । पास आकर वो मुस्कुराकर खूबी से बोला---

"अब तुम ठीक लग रही हो । लगता है सुरेंद्र पाल ने तुम्हें समझा दिया है कि सब ठीक है ।"

"मुझे आपकी चिंता है ।" खूबी प्यार से कह उठी ।

"मेरी फिक्र मत करो । मैं पहले भी ठीक था । और आगे भी ठीक रहूंगा ।" चलें सुरेंद्र पाल...।"

देवराज चौहान, खूबी को देखकर सोच रहा था कि ऊपर वाले ने औरतों में कितने रंग भर रखे हैं, ये बात तो वो खुद भी अब तक भूल चुका होगा ।

■■■

मंगल कार चला रहा था ।

देवराज चौहान और सुमित जोशी पीछे वाली सीट पर बैठे थे ।

सुमित जोशी व्याकुल था और बार-बार पहलू बदल रहा था । बार-बार उसकी निगाह देवराज चौहान पर जाती, जो कि सतर्कता के नाते बाहर देख रहा था।

"कोई हमारे पीछे है क्या ?" आखिरकार जोशी ने पूछा ।

"पता नहीं । सड़कों पर वाहनों की बहुत भीड़ है । पीछे कोई है भी तो उसका आभास नहीं हो पा रहा है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तुम...तुम सावधान रहना...।"

इसी तरह घंटे भर में कार कोर्ट जा पहुंची । मंगल ने पार्किंग में कार खड़ी की और इंजन बंद कर दिया । देवराज चौहान और सुमित जोशी बाहर निकले । पार्किंग में भी चहल-पहल नजर आ रही थी । कई कारें जा रही थीं । कुछ आ रही थीं । काले कोर्ट में वकील भी आते-जाते नजर आ रहे थे।

जोशी की निगाह हर तरफ घूमी ।

तभी जोशी ने दो वकीलों को देखकर हाथ हिलाया और मुस्कुराकर उनकी तरफ बढ़ गया ।

देवराज चौहान की निगाह हर तरफ घूमी । शक करने लायक कोई नहीं दिखा।

"मंगल ।" देवराज चौहान बोला--- "आज खतरा आ सकता है । सावधान रहना ।"

मंगल ने सहमति से सिर हिलाया ।

"अगर खतरा आये तो सबसे पहली कोशिश खुद को बचाने की करना ।"

"ठीक है ।"

तभी दूर खड़े जोशी ने देवराज चौहान को इशारे से पास आने को कहा ।

उससे मिलने वाले वकील जा चुके थे ।

देवराज चौहान जोशी के पास पहुंचा ।

"मेरे साथ चलो ।" जोशी ने कहा ।

"क्या कोर्ट में भी मुझे तुम्हारे साथ रहना होगा ?"

"तुम्हें क्या परेशानी है ?"

"कोई नहीं । मेरा कहना है कि कोर्ट में तुम सुरक्षित हो । तुम अकेले जाओ और अपनी फरारी का रास्ता देखो।"

सुमित जोशी ने होंठ भींचकर आसपास नजरें घुमाईं।

वो डर की वजह से आशंकित था ।

"तुम साथ रहो मेरे...।" वो कह उठा ।

"ठीक है ।"

दोनों कोर्ट के भीतर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ गये।

■■■

मंगल कार से टेक लगाए सिगरेट के कश ले रहा था । उसकी निगाह यूं ही इधर-उधर जा रही थी । आधे से ज्यादा तो उसे यूं ही बिताना था । अभी पहचान वाले और ड्राइवरों में भी मिल जाना था ।

वे तीन आदमी थे जो एकाएक मंगल के पास आ पहुंचे थे ।

मंगल ने जैसे खुद को घिरा पाया और तीनों को सवालिया निगाहों से देखा ।

"तू वकील सुमित जोशी का ड्राइवर है ?" एक ने कठोर स्वर में पूछा।

मंगल चौंका । उसने तुरन्त सिर हिलाया ।

"गोवर्धन साहब तेरे पास बात करने के लिए आ रहे हैं । जानता है उन्हें ?" वो पुनः बोला ।

मंगल ने पुनः सिर हिलाया । चेहरे पर घबराहट नाच उठी।

उसी पल पार्किंग में खड़ी एक बंद वैन का साइड का दरवाजा खुला और बत्तीस-तैतीस बरस के युवक से दिखने वाले व्यक्ति ने बाहर कदम रखा । वो सफेद कमीज, सफेद पैंट और सफेद जूते पहने था । गले में सोने की मोटी चेन पड़ी थी । कमीज का सामने का बटन खुला हुआ था । आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था । परन्तु उसकी आंखें चढ़ी हुई थी, जैसे नशे से भरी दौर से बाहर निकल कर आया हो ।

वो गोवर्धन था।

गोवर्धन आगे बढ़ा और शांत प्रभाव से चलता हुआ उनके पास आ पहुंचा । मंगल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर उसे देखा ।

"जानता है मुझे ?" गोवर्धन ने शांत स्वर में पूछा । चेहरे पर कठोरता थी

मंगल ने घबराये अंदाज में सिर हिला दिया ।

चारों मंगल को घेरे खड़े थे।

मंगल कार से सटा खड़ा था ।

"उस दिन तू वकील के साथ था, जब प्रभाकर को जेल से निकालकर लाया ?"

"हाँ...हाँ...।"

"साथ में और कौन था ?"

"सुरेंद्र पाल...।"

"ये कौन है ?"

"ब...बॉडीगार्ड ।" घबराया हुआ था मंगल ।

"फिर क्या हुआ ?"

मंगल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"रुक मत ।" पास खड़ा आदमी गुर्राया---"गोवर्धन साहब जो पूछे, जवाब देता जा ।"

"प्रभाकर को...।" मंगल घबराकर कह उठा--- "प्रभाकर को कार में बिठाकर वहां से चल पड़े । आगे जाकर जिम्मी को स...साथ लिया ।"

"जिम्मी अकेला था या साथ में कोई और भी...।"

"अकेला था...।" मंगल व्याकुल स्वर में कह उठा ।

"फिर कहां गये ?"

"व...वहां से मुम्बई सीमा पर, हाईवे के पास किनारे पर जोशी साहब ने कार रुकवाई।"

"जहां प्रभाकर और जिम्मी की लाश मिली ?" गोवर्धन ने दांत भींचकर पूछा ।

मंगल ने सिर हिला दिया ।

"फिर क्या हुआ ?"

"वो...वो जोशी साहब प्रभाकर और जिम्मी को लेकर वहां के पेड़ों के बीच चले गये । मुझे वो नजर नहीं आये...।"

"वो बॉडीगार्ड साथ था ?"

"ह...हाँ...।"

"फिर ?"

मंगल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"बोल...।"

"फिर ?" गोवर्धन ने पुनः भिंचे स्वर में पूछा।

"म..मैंने गोलियां चलने की आवाज सुनी । पता नहीं, तीन-चार गोलियां चलीं। उसके बाद जोशी साहब और सुरेंद्र पाल कार में वापस आ बैठे । वहां से सीधे अपने ऑफिस आये थे...।"

"तो प्रभाकर और जिम्मी को वकील ने अपने बॉडीगार्ड के साथ मिलकर, गोलियां मारी ?" गोवर्धन गुर्राया ।

"सुरेंद्र पाल ने उन्हें नहीं मारा ।" मंगल सूखे स्वर में बोला ।

"तेरे को कैसे पता ?" गोवर्धन के चेहरे पर दरिंदगी थी ।

"उनके वापस आने पर कार में मैंने उनकी बातें सुनी थी । सुरेंद्र पाल को भी नहीं पता था कि जोशी साहब क्या करने वाले हैं।  उन दोनों को मारने में सुरेंद्र पाल का कोई हाथ नहीं था ।"

गोवर्धन, होंठ भींचे मंगल को घूरने लगा ।

मंगल की टांगों में, खौफ से भरा कंपन उठने लगा था ।

"वकील कोर्ट से वापस कब आयेगा ?" गोवर्धन ने शब्दों को चबाकर पूछा।

"वो...वो, जोशी साहब भाग जाने का प्रोग्राम बनाए हुए हैं ।"

"भाग जाने का ?"

"उन्हें खतरा है तुम लोगों से, रतनपुरी से । आज वो कोर्ट आये ही इसलिये हैं कि यहां से चुपचाप खिसक जायें ।

"तेरे को कैसे पता ?"

"मैंने उनकी बातें रात को सुनी थी । वो पोर्च में खड़े होकर, सुरेंद्र पाल से बात कर रहे थे । तब मैं कुछ दूरी पर था ।"

"पक्की बात ?"

"हाँ...।" मंगल ने अपना घबराहट भरा चेहरा हिलाया--- "मैं सच कह रहा हूं, जो सुना, वो बताया है ।"

"हूँ...।" गोवर्धन के चेहरे पर कंपा देने वाले भाव थे--- "कोई और बात तू मुझे बताना चाहता है ?"

"ह...हाँ । बॉडीगार्ड के बारे में । सुरेंद्र पाल उसका असली नाम नहीं है । एक बार जोशी साहब ने उसे देवराज चौहान कहकर पुकारा था...तो उसने कहा कि उसे सुरेंद्र पाल कहे ।"

"और ?"

"बस...। मैं... ने सबकुछ बता दिया है ।"

"सोच ले ?"

"स...ब कुछ बता दिया ।"

"चल, कार के भीतर बैठ...।" गोवर्धन ने मौत भरे स्वर में कहा।

मंगल फौरन दरवाजा खोलकर कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया ।

इसी पल गोवर्धन के हाथ में लम्बे फल का चाकू चमका ।

मंगल की आंखें फैलीं ।

उसी पल गोवर्धन का चाकू वाला हाथ तीव्र झटके से घूमा और मंगल की गर्दन आधी कटती चली गई । खून बहने लगा । गर्दन एक तरफ दहशत भरे अंदाज में लुढ़क गई । दरिंदा लग रहा था गोवर्धन । वह चाकू के फल को मंगल के कपड़ों से तसल्ली से साफ करने लगा।

आस-पास उसके तीन आदमी घेरे खड़े थे ।

किसी को पता नहीं चला सका कि यहां क्या हो गया है ।

चाकू साफ करके गोवर्धन ने उसे बंद करके पैंट की जेब में रख लिया ।

"तुम तीनों वैन में बैठो ।" गोवर्धन कार का दरवाजा बंद करता बोला--- "मैं वकील का काम खत्म करके आता हूं ।"

"हम भी चलें ?"

"नहीं।  कोर्ट के भीतर का मामला है । भीड़ ठीक नहीं ।" कहकर गोवर्धन वहां से हटता चला गया ।

■■■

सुमित जोशी अपने चैम्बर में था।

वहां तीन-चार उसके असिस्टेंट वकील थे । बाकी कोर्ट में गये हुए थे ।

देवराज चौहान कुर्सी एक तरफ खींचकर बैठ गया ।

जोशी, वकीलों को केसों के बारे में टिप्स देने लगा । सलाह-मशवरा होता रहा ।

देवराज चौहान शांत-सा बैठा, वहां होता सब कुछ देखता रहा ।

एक घंटे बाद में जोशी फारिग हुआ । वहां बचे दो वकीलों से बोला---

"मैं अभी आता हूं।"

उसके बाद वो देवराज चौहान के साथ चैम्बर से बाहर निकल आया । आगे बढ़ गये थे वे । कोर्ट का लंबा, सीधा जाता रास्ता । भीड़ भरा । वकील, लोग आ-जा रहे थे । भीड़ इतनी कि फर्क दिखाई न दे रहा था।

"अब तुम्हें मेरी जरूरत तो नहीं होनी चाहिये ?" देवराज चौहान बोला ।

"बस, कुछ देर और...फिर चले जाना ।" जोशी ने गहरी सांस लेकर कहा--- "मुझे अफसोस है कि मैं जगमोहन को बाहर नहीं...।"

"तुम्हें कई बातों का अफसोस होगा, जो कि तुम जाने से पहले नहीं कर सके ।" देवराज  चौहान ने कहा ।

"कई...बातों का...मैं समझा नहीं....?" चलते-चलते जोशी ने उसे देखा ।

"मेरे कहने का मतलब है कि ऐसे कई काम होंगे जो तुम करके जाना चाहते थे, परन्तु कर नहीं सके ।"

"हाँ ।" जोशी ने सिर हिलाया--- "एक-दो जरूरी काम थे, जो रह गये ।

"कमिश्नर का फोन नहीं लगा ?"

"आज तो मैंने कोशिश ही नहीं की । अब मेरे पास बेकार करने के लिए वक्त नहीं है ।"

"रतनपुरी से तो तुम्हारी जान छूट गई...।"

"शुक्र है ।" जोशी मुस्कुरा पड़ा ।

"क्या सोचा, कहां जाओगे ?"

"सच में, अभी कुछ नहीं सोचा । पहले मुम्बई से बाहर निकलूंगा, उसके बाद ही सोच पाऊंगा कि कहां जाना है ।"

"इन हालातों में तुम अपने बच्चों और पत्नी को छोड़कर जा रहे हो । तुम्हारे दुश्मन उन्हें मार देंगे ।"

"इस वक्त सबसे जरूरी है कि मैं अपनी जान को...।"

तभी सुमित जोशी की आंखें फैलती चली गईं ।

सामने से, भीड़ में आता गोवर्धन, जिसे जोशी देख नहीं पाया था, उसके गले आ लगा और इसके साथ ही उसके  पेट में एक के बाद एक कई वार हो गये । ये सब दो पलों में हो गया । अगले ही पल जोशी नीचे गिरता चला गया और गोवर्धन तेजी से आगे निकल गया था ।

सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि देवराज चौहान भी न समझ सका।

समझा तब जब, जब गोवर्धन जोशी को छोड़कर आगे बढ़ गया ।

जोशी नीचे जा गिरा ।

देवराज चौहान ने पीछे से गोवर्धन को जाते देखा।

कोई दूसरे हालात होते तो देवराज चौहान ने गोवर्धन को जाने नहीं देना था । परन्तु गोवर्धन ने ऐसे इंसान पर हमला किया था, जो पुलिस के हाथों उसकी हत्या करा देना चाहता था।  इसलिए देवराज चौहान इस मामले में दखल देना ही नहीं चाहता था । वो तो जैसे दर्शक की भांति खड़ा रहा।

गोवर्धन भीड़ में उसकी नजरों से ओझल हो गया ।

जल्दी ही लोगों को नीचे गिरे पड़े जोशी की हालत पर ध्यान गया ।

उसी पर वहां भगदड़ मच गई ।

शोर उठ खड़ा हुआ ।

देवराज चौहान गंभीर सा, नीचे पड़े सुमित जोशी को देखे जा रहा था--- जो पेट पकड़े दोहरा हुआ पड़ा था ।

तभी जाने कहां से भागते हुए दयाल और जोशी वहां पहुंचे।

"तुम खड़े क्या देख रहे हो ?" दयाल बोला--- "इसे डॉक्टर की जरूरत है ।"

"ये काम तुम ही करो ।"

"तुम्हें इसे बचाना चाहिये था ।"

"ये किसी भी तरह से इस लायक नहीं कि, दुनिया में किसी को इसकी जरूरत हो ।" देवराज चौहान बोला।

"हटो पीछे । हमें इसकी जरूरत है ।"

रमेश सिंह और दयाल जोशी को संभालने में लग गये ।

देवराज चौहान वहां से हटा और उसी रास्ते पर वापस चल पड़ा । उसे आशा नहीं थी कि जोशी बच पायेगा ।

देवराज चौहान पार्किंग में पहुंचा ।

कार के पास पहुंचते ही उसके कदम जड़ होकर रह गये ।

कार में जैसे खून का तालाब बना हुआ था । मंगल की लाश सीट पर उखड़ी-सी पड़ी थी ।

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली और इधर-उधर नजर मारी। वो समझ गया कि बांटू या गोवर्धन ने पहले मंगल से पूछताछ की । जिम्मी और प्रभाकर की हत्या के बारे में मंगल से सब कुछ जाना ,उसके बाद मंगल की हत्या कर दी । फिर वह कोर्ट में आया और जोशी के सामने पड़ते ही चाकूओं से उस पर हमला कर दिया ।

बांटू और गोवर्धन सच में खतरनाक थे ।

देवराज चौहान कार के पास से हटा और मोबाइल जेब में से निकालते हुए बाहर गेट की तरफ बढ़ गया ।

मंगल की लाश पर किसी की निगाह नहीं पड़ी थी । वरना अब तक हो-हल्ला खड़ा हो चुका होता।

देवराज चौहान ने रमेश सिंह का नम्बर मिलाया । बात हो गई ।

"मर गया वो ?"

"नहीं । सांस बाकी है। तुम उसकी मौत की ख्वाईशमंद क्यों हो ?" उधर से रमेश सिंह ने कहा ।

"वो पुलिस के हाथों मेरी हत्या करवाने जा रहा था ।"

"हमने मामला संभाल तो लिया...।"

"लेकिन वो तो मरवाने जा रहा था ।"

"तुम्हें हमारे लिये वकील को सुरक्षा देनी चाहिये थी ।"

"ये क्या कम है कि मैं अभी भी उसके साथ हूं और उसे कुछ नहीं कहा मैंने ।"

रमेश सिंह के गहरी सांस लेने की आवाज आई, फिर उसका स्वर आया---

"अगर ये मर जाता है तो हमारी सारी मेहनत खराब हो जायेगी ।"

"मैंने तो पहले ही कहा था कि तुम लोगों के हाथ कुछ नहीं लगेगा । कोई इसे मार देगा ।"

"अभी ये मरा नहीं, जिंदा है ।"

"कहां हो तुम ?"

"इसे हॉस्पिटल ले जा रहे हैं । रास्ते में हैं।"

"कौन-सा हॉस्पिटल ?"

रमेश सिंह ने हॉस्पिटल का नाम बताया ।

"मैं वहीं आता हूं...।"

"आ जाओ...।"

देवराज चौहान ने उसके बाद जगमोहन को फोन किया ।

"कहां हो तुम ?" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

"आज शायद हमारी मुलाकात हो जाये ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तो काम खत्म हो गया ?"

"अभी हुआ तो नहीं । अभी एक पर हमला हुआ है । वो घायल है । वो मर जाता है तो काम खत्म हो जायेगा।"

"आखिर तुम किस चक्कर में हो ?"

"मैंने पहले ही कहा है कि फोन पर नहीं बताया जा सकता । मिलने पर बताऊंगा ।"

"ये तुम्हारा अपना काम है या किसी का काम कर रहे हो ?"

"किसी का ।"

"काम करने की कीमत ली ?"

"शायद ले ली...।"

"शायद का क्या मतलब ?"

"मेरे काम की कीमत तुम्हारी आजादी थी । पहले मैं एक के लिए काम कर रहा था, क्योंकि उसने तुम्हें आजाद कराने का वादा किया था, परन्तु किसी और ने तुम्हें आजाद करा दिया तो अब मैं उसके लिये काम कर रहा हूं...।"

"आखिर ये कैसा काम है जो तुम कभी किसी के लिए कर रहे हो तो कभी किसी के लिए ।" उधर से जगमोहन ने कहा ।

"मिलने पर बताऊंगा । वो घायल मर गया तो हम आज ही मिलेंगे।"

"तुम तो...।" उधर से देवराज चौहान ने कहना चाहा ।

लेकिन देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया था ।

■■■

सुमित जोशी किस्मत का बहुत तेज निकला ।

इस बार भी बच गया ।

C.B.I. वालों के बीच में होने के कारण डॉक्टरों ने अपनी पूरी चेष्टा की । वे कामयाब भी रहे ।

जोशी बज गया ।

रात दस बजे डॉक्टर ने कहा कि वो खतरे से बाहर है । परन्तु दवा के असर की वजह से वो नींद में था।

रमेश सिंह और दयाल अब किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते थे । उन्होंने इंतजाम करा दिया कि सुमित जोशी के कमरे के बाहर हर वक्त एक पुलिस वाला मौजूद रहेगा, जो आने-जाने वालों पर नजर रखेगा ।

देवराज चौहान, कमरे के बाहर ही टहल रहा था ।

चूंकि देवराज चौहान से दयाल या रमेश से बातें कर लेते थे, इसलिए पुलिस वाला उसे भी C.B.I. वाला ही समझ रहा था । दयाल और रमेश सिंह ने तब राहत की सांस ली, जब डॉक्टर ने कहा कि वो खतरे से बाहर है ।

उसके बाद दोनों ने देवराज चौहान को कोने में ले जाकर बात की ।

"तुमने देखा कि वकील पर हमला किसने किया ?" दयाल ने पूछा ।

"उस वक्त तो नहीं देखा । परन्तु तब देखा, जब हमला करके आगे बढ़ गया था ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तुमने उसे जाते देखा ?"

"हाँ ।"

"पकड़ा क्यों नहीं उसे ?" दयाल ने सख्त स्वर में कहा ।

"मैं क्यों पकड़ता ?"

"तुम वकील से खार खाये हुए हो ?"

"हाँ।"

"तो ऐसी स्थिति में हमारी सहायता कैसे करोगे ? तुम्हारे कहने पर हमने जगमोहन को आजाद...।"

"मैं अब भी कहता हूं कि सुमित जोशी के खिलाफ तुम लोगों को सबूत दूंगा । मैं इसी ताक में हूं कि तुम लोगों के काम का कोई सबूत हासिल कर सकूं । इस दौरान उसे कोई मार जाता है तो, मैं क्या कर सकता हूं ?"

"तुम उसे बचा सकते...।"

"जोशी को बचाने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं ।"

"पहले तो तुमने उसे तीन बार बचाया ।"

"तब वो पुलिस के हाथों मेरी हत्या नहीं कराना चाहता था ।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा ।

दयाल ने रमेश सिंह को देखा ।

"ये अपने वादे से पीछे हट रहा है । वकील के खिलाफ सबूत तो ढूंढ रहा है, परन्तु उसे बचाने को तैयार नहीं ।" दयाल बोला ।

देवराज चौहान ने कहा---

"हममें ये बात हुई थी कि तुम्हें वकील के खिलाफ सबूत इकट्ठे करके दूंगा ।"

"इस बीच वो मर गया तो सबूतों का क्या फायदा ?"

"ये तुम जानो । कोई उसे  मारना चाहता है तो मैं क्या कर सकता हूं ? तुम दोनों कोर्ट में कब से थे ?"

"तुम लोगों के पहले ही हम वहां आ गये थे।" रमेश सिंह बोला ।

"मतलब कि जोशी पर नजर रख रहे थे ।"

"हाँ...।"

"तो तुमने भी हत्यारे को देखा होगा ।"

रमेश सिंह, दयाल की नजरें मिलीं ।

"देखा ।"

"कौन था वो ?"

"गोवर्धन ।"

"पकड़ा क्यों नहीं उसे ?"

"मौका ही नहीं मिला । वो निकल गया ।"

"सच कह रहे हो ?" देवराज चौहान ने दोनों को देखा।

"हाँ...।" रमेश सिंह मुस्कुरा पड़ा ।

"तो सच ही कह रहे होगे ।" देवराज चौहान भी मुस्कुरा पड़ा--- "मैं क्यों कहूं कि उससे डरकर, तुम दोनों ने उसे जाने दिया ।"

"हम वकील के चक्कर में हैं । गोवर्धन के नहीं ।" दयाल ने स्पष्ट कहा--- "जैसे तुम डकैती मास्टर में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं, उसी तरह गोवर्धन में भी नहीं...।"

"गोवर्धन ने तुम्हारे शिकार की हत्या करनी चाही है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"हम गोवर्धन से झगड़ा नहीं करना चाहते।"

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

"तुम रात को जोशी के पास रहोगे ?" दयाल ने पूछा ।

"तुम चाहते हो तो जरूर रहूंगा ।

"कमरे के भीतर तुम्हारे आराम करने के लिए लंबा बैंच है । बाहर पुलिस वाला । डॉक्टर-नर्स का आना-जाना लगा ही रहेगा । वैसे ऐसा नहीं कि इन हालातों में गोवर्धन कुछ करने की कोशिश करे।"

देवराज चौहान चुप रहा ।

"वो कुछ करे तो तुमने वकील को बचाना है । देखते ही नहीं रहना ।" दयाल ने तीखे स्वर में कहा।

"ठीक है । तुम दोनों जा रहे हो ?"

"अभी सोचा नहीं । हमें तुम पर बहुत यकीन था कि तुम वकील को फंसवाने में हमारी मदद करोगे ।"

"वो तो मैं अब भी...।"

"दिल से नहीं कर रहे काम...।"

"तुम गोवर्धन के रास्ते में नहीं आना चाहते । जब वो वकील को चाकू मार रहा था, उसे देखकर भी नहीं पकड़ा और मुझे कहते हो कि मैं गोवर्धन को रोक लूं । मैं क्यों रोकूं ? क्यों गोवर्धन को अपना दुश्मन बनाऊं...।"

"मैंने तो सोचा था कि तुम गोवर्धन से नहीं डरते होगे ।"

"क्यों...।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "मैं बहुत बड़ा पहलवान हूं क्या ?"

"तुम...तुम नम्बर वन डकैती मास्टर हो । हमने तो सुन रखा है तुमने बड़ी-बड़ी लड़ाइयां लड़ीं।"

"वो मेरी अपनी लड़ाईयां थीं । इसलिये लड़ीं ।"

"ये उल्टा चल रहा है ।" दयाल ने मुंह बनाकर कहा ।

"वकील, कमिश्नर के हाथों इसे मरवाना चाहता था । ये भी अपनी जगह ठीक है ।"

"तो रात को ये वकील के पास रहकर क्या करेगा ? गोवर्धन आया तो ये उसे रोकेगा नहीं।"

"क्यों देवराज चौहान ?" रमेश सिंह ने कहा--- "तुम्हारा हमें कोई फायदा नजर नहीं आ रहा । जगमोहन को हमने आजाद...।"

"अगर मेरी मौजूदगी में गोवर्धन आया तो मैं उसे समझाने की चेष्टा करूंगा...कि वो वकील को न मारे ।"

"तू क्या समझता है कि वो समझ जायेगा तेरे समझाने से ?"

"मैं तो अपना फर्ज पूरा करूंगा । आगे गोवर्धन जाने...।"

"साला चालू बन रहा है हमसे...।"

"मैं सही बात कर रहा हूं। गोवर्धन को, वकील की खातिर गोली मारने से तो रहा ।"

"सुना...।" दयाल ने लंबी सांस लेकर रमेश सिंह को देखा । रमेश सिंह मुस्कुरा पड़ा ।

"मेरे ख्याल से देवराज चौहान को किसी के हाल पर छोड़ दो । वो जो ठीक समझेगा, करेगा ।"

"क्या फायदा । वकील को नहीं बचायेगा ये...।" दयाल बोला।

"मारेगा भी तो नहीं । ऐसे में ये वकील के पास रहे तो हमें नुकसान नहीं होगा ।"

"ठीक है ।" दयाल मुंह बनाकर कह उठा ।

"चलो, तुम्हें कमरे में छोड़ दूँ...।"

देवराज चौहान, रमेश सिंह के साथ भीतर कमरे में पहुंचा ।

सुमित जोशी बैड पर पड़ा था । ग्लूकोज लगा था । वो गहरी नींद में था । सीना उठ-बैठ रहा था । पेट पर पट्टियां बंधी दिखाई दे रही थीं। देवराज चौहान ने जोशी को देखा अच्छी तरह ।

"वो लम्बा बैंच पड़ा था । तुम वहां पीठ सीधी कर सकते हो ।" रमेश सिंह ने कहा ।

"नर्स नहीं है इसके पास ?"

"आ रही है। जब तक इसे होश नहीं आता, तब तक नर्से  इसके पास रहेगी ।"

"इसके घर वालों को खबर दी ?"

"नहीं ।" रमेश सिंह ने मुस्कुराकर कहा--- "मैं नहीं चाहता कि यहां ज्यादा लोग आयें। इसकी पत्नी जानती है कि आज इसने कहीं पर खिसक जाना था । इसलिए इसके घर न आने से वो चिंता नहीं करेगी । वैसे भी तुम्हारी जेब में मौजूद माइक्रोफोन के दम पर बातें सुनकर मैं जान चुका हूं कि उसकी पत्नी इसके बारे में क्या विचार रखती है ।"

देवराज चौहान ने सिर हिलाया ।

"इसे ठीक होता पाकर उसे अच्छा नहीं लगेगा ।" रमेश सिंह बोला।

"तुम्हें बहुत चिंता है उसकी ?" देवराज चौहान ने व्यंग से कहा ।"

"मैं...बस यहां भीड़ नहीं चाहता ।"

उसके बाद रमेश सिंह चला गया ।

देवराज चौहान बैंच पर जा लेटा । नर्स का आना-जाना चलता रहा ।

इसी दौरान देवराज चौहान की आंख लग गई ।

■■■

देवराज चौहान को रात भर तबीयत से नींद आई । चिंता तो उसे कोई थी नहीं । रमेश सिंह और दयाल से ये ही वादा था कि वो खुद नहीं मारेगा सुमित जोशी को कोई दूसरा मारे तो उसकी जिम्मेवारी नहीं।

सुबह आठ बजे उसकी आंख खुली ।

कमरे की वो ही स्थिति थी, जो रात में थी । अलबत्ता नर्स रात वाली नहीं थी ।

"अब ये कैसा है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"ठीक है । सुबह चार बजे होश आया था । नींद का इंजेक्शन दे दिया । अब उठेगा तो बात करने लायक होगा । नर्स ने बताया ।

देवराज चौहान ने सिर हिलाया । उठा।

"तुम इसके कोई खास लगते हो ?" नर्स बोली ।

"क्यों ?"

"जब होश आया तो बहुत डरा हुआ था । परन्तु जब इसने तुम्हें देखा तो शांत हो गया ।"

"हाँ, मैं इसका खास ही हूं ।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "सुबह चार बजे ड्यूटी पर तुम तो नहीं होगी ?"

"वो दूसरी नर्स थी । ये बात उसने मुझे बताई । क्या हुआ था इसे ?" नर्स ने पूछा--- "किसने चाकू मारे ?"

"इसे इसके कर्मों का फल मिला है । और अभी कम मिला है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"क्या मतलब ?"

"इंसान बुरे काम करता है तो कुछ अच्छे भी करता है । लेकिन ये तो सिर्फ बुरे ही काम करता रहा है । करता ही जा रहा था । मेरे सामने तो इसने एक भी अच्छा काम नहीं किया ।" देवराज चौहान बोला ।

नर्स अजीब-सी नजरों से देवराज चौहान को देखने लगी ।

"यहां नहाने-धोने के लिये बाथरूम होगा कहीं ?"

"इसी कमरे में बाथरूम है । सामने है दरवाजा ।"

देवराज चौहान बाथरूम में चला गया।

■■■

दोपहर के बारह बज रहे थे ।

देवराज चौहान दो घंटे लगाकर वापस लौटा । पास के रैस्टोरेंट से नाश्ता करके आया था।

"सब ठीक है ?" देवराज चौहान ने बाहर बैठे पुलिस वाले से पूछा ।

"जी साब...।" पुलिस वाला उसे भी C.B.I. वाला समझ रहा था ।

देवराज चौहान कमरे में गया ।

सुमित जोशी को होश आया पड़ा।  उसे देखते ही बैचेनी से बोला---

"तुम कहां चले गए थे ?"

"नाश्ता करने...।"  देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा--- "तो तुम्हें होश आ गया ।

"मेरे पास रहो । मुझे अभी भी खतरा है ।"

"तुम्हें तब तक खतरा रहेगा, जब तक तुम जिंदा रहोगे । तुमने अपनी जिंदगी ऐसी बनाई है । नर्स कहां है ?"

"दवा लेने गई है ।"

"फ़िक्र मत करो । बाहर पुलिस वाला भी है ।"

सुमित जोशी के चेहरे पर पीलापन मौजूद था ।

"जब वो मुझे चाकू मार रहा था तो मुझे लगा अब मैं नहीं बचूंगा ।" जोशी धीमे स्वर में बोला ।

"तुमने पहचाना उसे ?"

"हाँ, वो गोवर्धन था । मैंने उसे अपने से लिपटते देख लिया था । परन्तु तब तक देर हो चुकी थी । मैं अपने को बचा न सका । वो चाकू के वार करके चला गया । तुमने देखा था उसे ?"

"बाद में । जब वो चाकू से वार करके आगे बढ़ गया था । पीछे से देखा था । चेहरा अब भी नहीं जानता ।"

"वो गोवर्धन था । खतरनाक हत्यारा...।" जोशी ने सांस लेकर कहा ।

देवराज चौहान सुमित जोशी को देखता रहा ।

"तब तो तुम्हें भी पता न लगा होगा कि मेरे साथ क्या हो रहा है ?"

"ठीक कहा।  मैंने सोचा कि वो तुम्हारी पहचान वाला है और तुम्हारे गले मिल रहा है । परन्तु जब तुम नीचे गिरने लगे तो तब मुझे लगा कि कुछ गलत हो रहा है । तब तक वो तुम्हें छोड़कर भीड़ में आगे बढ़ गया था।"

"उसने बहुत तेजी से हमला किया ।"

"वो सच में फुर्तीला है ।" देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया--- "किसी पर कैसे हमला करना है, वो जानता है । मेरे ख्याल में कोर्ट में होने की वजह से उसने चाकू का इस्तेमाल किया । दूसरी जगह होती तो वो रिवाल्वर चलाता ।"

सुमित जोशी ने आंखें बंद कर लीं । फिर आंखें खोलता कह उठा---

"वो यहां भी आ सकता है ।"

"मेरे ख्याल में तो वो जरूर आयेगा । बस उसे पता चलना चाहिये कि तुम बच गये ।"

जोशी का चेहरा पीला पड़ गया ।

"वो आया तो तुम मुझे बचाओगे ना ?"

"क्यों नहीं । वैसे बाहर पुलिस वाला भी है ।"

"गोवर्धन पुलिस वालों को कुछ नहीं समझता । मुझे तुम्हारा ही सहारा है देवराज चौहान ।"

देवराज चौहान मुस्कुराकर जोशी को देखने लगा ।

"यहां पर मुझे तुम लाये ?" जोशी ने पूछा।

"नहीं C.B.I. वाले लाये । वो सब तुम पर नजर रखते, कोर्ट में ही थे ।"

"ओह...।"

"बांटू गोवर्धन की नजर तुम पर थी । C.B.I. वालों की नजर तुम पर थी और तुम फरार होने की सोच रहे थे । तुम्हारा ख्याल था कि तुम सफल हो जाओगे । जबकि ऐसा नहीं था ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"मुझे बांटू-गोवर्धन से बचा लो देवराज चौहान बोला । अब मुझे मौत का डर लगने लगा है ।"

"मुझे तो हैरानी है कि तुम बच गये । वो फिर आयेगा तुम्हें मारने ।"

तभी दरवाजा खुला और दयाल, रमेश सिंह ने भीतर कदम रखा ।

"तो तुम होश में आ गये वकील ? खुशी हुई । हमें आने में जरा देर हो गई ।" रमेश सिंह बोला ।

"वो पास आकर ठिठके।

सुमित जोशी दोनों की टकटकी बांधे देखने लगा ।

"तुम हमारी मेहरबानी से बचे हो । हम न होते तो तुम कोर्ट में ही मर जाते ।" दयाल ने कहा।

"मुझे सुरेंद्र पाल ले आता ।" जोशी के होंठों से निकला ।

"ये...।" दयाल ने देवराज चौहान को देखा--- "ये तो गोवर्धन को पकड़ने चला गया था।"

जोशी ने देवराज चौहान को देखकर कहा---

"तुमने मुझे बताया नहीं कि तुम गोवर्धन को पकड़ने...।"

"लेकिन गोवर्धन बच निकला ।" दयाल बोला--- "इस बीच हम तुम्हें यहां ले आये ।"

"शुक्रिया...।"

"शुक्रिया छोड़ो ।" रमेश सिंह ने कहा--- "तुम जानते हो कि हम किस फेर में हैं । ये बात तुम्हें माननी ही पड़ेगी कि तुमने अपने तीन असिस्टेंट वकीलों की हत्या करवाई । यूँ तो हमें पता है कि तुमने अपने तीन बॉडीगार्डों की भी हत्या कराई है। परन्तु हम बॉडीगार्डों का चार्ज तुम पर नहीं लगायेंगे । कानून के आगे सिर झुका देने में ही तुम्हारा फायदा है।"

"मैंने किसी की हत्या नहीं कराई ।"

"तुमने प्रभाकर को भी जेल से फरार करवाया । उसके बाद प्रभाकर-जिम्मी को शूट कर दिया ।"

"कौन कहता है ?"

"गोवर्धन कहता है । बुलाओ उसे ?"

सुमित जोशी का चेहरा फक्क पड़ गया ।

"तुम्हें अपने असिस्टेंट वकीलों की हत्या का जुर्म स्वीकार करना ही होगा ।"

"नहीं । मैंने किसी को...।"

"वकील ।" रमेश सिंह कह उठा--- "तेरी बुद्धि खराब हो गई है। मान ले अपनी जुर्मों को।"

"तुम मुझे फंसा रहे हो...।"

"हमें फंसाने की क्या जरूरत है । तू तो खुद ही फंसा पड़ा है।" रमेश सिंह ने कड़वे स्वर में कहा।

" क्या मतलब ?"

"गोवर्धन को अब तक खबर मिल गई होगी कि तू जिंदा बच गया है । वो आता ही होगा । सोच ले।"

सुमित जोशी का चेहरा फक्क पड़ गया ।

"गोवर्धन से तुझे हम बचा सकते हैं । ये तभी हो सकता है, जब तू अपना जुर्म कबूल कर ले ।"

"मैंने कोई जुर्म नहीं किया ।"

रमेश सिंह ने दयाल को देखकर कहा---

"तू ठीक कहता था कि गोवर्धन अबकी बार इसे छोड़ने वाला नहीं । ये इसी कमरे में मरेगा ।"

तभी देवराज चौहान का फोन बजा ।

"हैलो...।" उसने बात की ।

"तुम रात भर बंगले पर नहीं आये ?" खूबी की आवाज कानों में पड़ी--- "फोन भी नहीं किया ?"

देवराज चौहान ने कमरे से बाहर आकर बात की ।

"कल जोशी पर जबरदस्त हमला हुआ ।" देवराज चौहान ने बताया--- "वो...।"

"वो मर गया ?" खूबी ने तेज स्वर में पूछा ।

"नहीं ।" देवराज ने लम्बी सांस ली--- "तगड़े हमले के बाद भी बच गया । अस्पताल में है इस वक्त ।"

"उसे मर जाना चाहिये था ।"

"हौसला रखो । वो बचने वाला नहीं । मेरे ख्याल में आज फिर उस पर हमला होगा और हमला करने वाला आज अपनी तसल्ली करके ही जायेगा कि वो मर गया है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"क्या मतलब...तुम...।"

"रात के बारह बजे तक इंतजार करो । खामोशी से बैठी रहो । मैं तुम्हें फोन करके मरने की खबर दूंगा ।

"प्रॉमिस ?"

"पता नहीं प्रॉमिस है या नहीं। अभी तुम शांत बैठ जाओ ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद किया, वापस कमरे में पहुंचा ।

दयाल और रमेश सिंह, सुमित जोशी को घेर लेने के चक्कर में थे ।

परन्तु जोशी था कि उनकी बातों की परवाह नहीं कर रहा था ।

देवराज चौहान उनके पास पहुंचा ।

"दयाल, ये नहीं मानेगा । इसे उसके हाल पर छोड़ देना चाहिये ।" रमेश सिंह कह उठा ।

"मैं भी यही सोच रहा हूं कि गोवर्धन को अपना काम कर लेने दो । बाहर से पुलिस भी हटा लेते हैं ।"

"तुम ऐसा नहीं कर सकते ।" सुमित जोशी घबराकर कह उठा ।

"ऐसा करने पर तुम हमें मजबूर कर रहे हो ।"

"मैं वो जुर्म मान लूं जो मैंने किया ही नहीं...।"

"तुमने किया है । हमारे पास जुर्म स्वीकार करने की रिकॉर्डिंग है । तुमने खुद ही सब कुछ स्वीकारा है...तुम...।"

"अदालत रिकॉर्डिंग जैसी गवाही को नहीं मानती...।"

"अब अदालतें मानने लगी हैं । पूरा नहीं तो आधा मानने लगी हैं ।" दयाल ने कठोर स्वर में कहा--- "हम बाहर से पुलिस हटा रहे हैं । तुम जानो अब या गोवर्धन जाने...।"

"मैं घायल हूं । तुम्हें चाहिये कि मुझे गोवर्धन से बचाओ ।" जोशी परेशान स्वर में कह उठा ।

"तब तो तुम्हें मानना होगा कि तुमने ही अपने वकीलों की हत्या करवाई...।"

"सुमित जोशी ने होंठ भींच लिए ।

देवराज चौहान की निगाह जोशी पर थी ।

"ठीक है । मैं अपना जुर्म स्वीकार करता हूं "।" सुमित जोशी ने गहरी सांस ली--- "अब मुझे गोवर्धन से बचा लो ।

"तुम हस्ताक्षर युक्त बयान दोगे ?"

"हाँ...। जो कहोगे, वो ही करूंगा । लेकिन गोवर्धन से मुझे बचा लेना...।"

"गोवर्धन तुम्हारे पास भी नहीं फटक सकेगा । दो-तीन घंटों में तुम इसी अस्पताल में खास जगह पर रख दिए जाओगे । मैं अभी डॉक्टरों से बात करके आता हूं । याद रहे कि तुम अपने बयान से पीछे नहीं हटोगे । अगर ऐसा किया तो तुम्हें यहां से निकालकर बाहर अस्पताल के गेट के पास बिठा दूंगा कि गोवर्धन आसानी से तुम्हें मार सके।"

"तुम जो चाहोगे, मैं वो ही करूंगा । परन्तु गोवर्धन के हाथों मरना नहीं चाहता ।" जोशी कह उठा ।

"तुम्हें कुछ नहीं होगा । C.B.I. तुम्हारे साथ हैं । दो-तीन घंटे तो लगेंगे ही, उसके बाद तुम पूरी तरह सुरक्षित हो जाओगे ।" कहने के साथ ही दयाल ने रमेश सिंह से कहा--- "चलो डॉक्टर से बात करके आते हैं ।"

रमेश सिंह ने सिर हिलाया और देवराज चौहान से कहा---

"तुम यहीं हो ना ?"

"हाँ...।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "मैं यही हूं...।"

रमेश सिंह और दयाल वहां से बाहर निकल आये ।

देवराज चौहान ने मुस्कुराकर, सुमित जोशी से कहा---

"तो तुम जुर्म-इकबाले बयान देने वाले हो ?"

"हाँ, लेकिन अदालत में पीछे हट जाऊंगा । इस वक्त मजबूरी है इनकी बात मानना।

"मेरा भी यही ख्याल है कि तुम उन्हें उल्लू बना रहे हो ।"

"मैं गोवर्धन से बचना चाहता हूं । वो मुझे मार देगा ।" जोशी ने धीमे स्वर में कहा ।

"मेरे ख्याल में तुम्हें सच्चे दिल से C.B.I. वालों का दामन थाम लेना चाहिये । तभी तुम बचोगे ।"

"तो तुम चाहते हो कि तीन वकीलों की हत्या करवाने का जुर्म कबूल कर लूं ?"

"इस तरह तुम्हें C.B.I. वाले बचा लेंगे ।"

"वो तो अब भी बचा रहे हैं ।"

"अवश्य । परन्तु तुम्हारे मन में बेईमानी है । ये बेईमानी तुम्हें ले डूबेगी ।"

"तुम मुझे सज्जनता का पाठ मत पढ़ाओ ।" सुमित जोशी ने चिढ़े स्वर में कहा।

"जो तुम्हारा मन करे, वो ही करो...।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "तुम कभी भी सुधरोगे नहीं...।"

"अपने आपको देखो । तुम नामी मशहूर डकैती मास्टर हो । पहले खुद को सुधारो ।"

"हाँ । मैं नामी हूं । मशहूर हूँ । परन्तु तुम तो बिना मशहूर हुए ही बड़े-बड़े गुल खिला रहे हो ।"

"क्या तुम्हारा ठिकाना किसी मंदिर के पास है ?"

"नहीं तो ।"

"तुम्हारी बात से तो यही लगता है कि तुम किसी मंदिर के पड़ोस में रहते हो और लोगों को सुधारने का ठेका मंदिर वालों ने तुम्हें दे रखा है ।"

"तुम बुरे हो और बुरे ही रहोगे ।"

"मैं जैसा भी हूं ठीक हूं...।"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।

"मुझे रिवाल्वर दे दो देवराज चौहान...।" सुमित जोशी ने कहा ।

"क्यों ?" देवराज चौहान ने उसे देखा ।

"मैं अपनी सुरक्षा के लिए कह रहा हूं...।"

"तुम्हारी सुरक्षा के लिये मैं हूं । बाहर पुलिस है फिर तुम क्यों...।"

"रिवाल्वर पास होगी तो थोड़ा विश्वास रहेगा मुझे अपने पर ।"

"ठीक है । दे दूंगा ।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "अभी तो मैं यहीं हूं ।"

"वैसे तुम्हारा क्या ख्याल है, गोवर्धन मुझे फिर मारने की कोशिश करेगा ?"

"हाँ । तुम्हें मारे बिना वो चैन से बैठने वाला नहीं । जो कोर्ट के भीतर तुम पर हमला कर सकता है, वो यहां क्यों नहीं करेगा ?"

सुमित जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"अगर तुम प्रभाकर-जिम्मी को ना मारते तो हालात बेहतर रहते...।" देवराज चौहान ने कहा ।

"हाँ । इनसे तो बेहतर रहते ।" जोशी ने गहरी सांस ली--- "लेकिन मुझे जिंदा नहीं छोड़ते ।" सुमित जोशी ने आंखें बंद कर लीं--- "मैं कल मुम्बई से खिसकने में कामयाब हो जाता तो कितना अच्छा रहता।"

देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान रेंग उठी ।

"कल की सुबह के बाद तुम्हें गोवर्धन कहीं दिखा ?"

"नहीं...।"

"वो अस्पताल के बाहर होंगे ?" सुमित जोशी ने आंखें खोलकर देवराज चौहान को देखा ।

"बाहर क्या, वो भीतर भी हो सकते हैं ।"

सुमित जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"मैं तुम्हें बताना भूल गया कि कल गोवर्धन ने मंगल की हत्या भी कर दी थी । कोर्ट की पार्किंग में । मैंने कार की सीट पर उसे मरे देखा।"

"ओह...।"

देवराज चौहान कमरे की खिड़की के पास पहुंचा और खिड़की खोलकर सिगरेट सुलगा ली ।

खिड़की के बाहर सामने अस्पताल की पार्किंग का नजारा था ।

पार्किंग में वाहनों की बहुत भीड़ थी । लोग आ-जा रहे थे । कुछ स्ट्रेचर तो कुछ व्हीलचेयर पर दिखे ।

कश लेते देवराज चौहान की निगाहें बाहर ही थीं । यूं ही नजरें घुमा रहा था वो।

तभी देवराज चौहान की निगाह उस वैन पर जा टिकी, जिसके पास चार-पांच लोग खड़े थे और उसके देखते ही देखते वैन से एक पुलिस वाला बाहर निकला । हवलदार की वर्दी थी उसके जिस्म पर । उसकी पीठ थी। देवराज चौहान की तरफ । वो उन चार-पांच लोगों से बात कर रहा था । अगले ही पल देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ती चली गईं।

वो ही चौड़े कंधे उसके सामने थे, जो कल गोवर्धन के साथ थे, तब-जब वे सुमित जोशी को कोर्ट में चाकू मारकर आगे बढ़ गया था । आज पुलिस की वर्दी थी उसके जिस्म पर, परन्तु देवराज चौहान ने पीछे से गोवर्धन के शरीर के शेप पहचान ली थी । यकीनन उसे गोवर्धन ही होना चाहिये।

कश लेता देवराज चौहान, वही देखता रहा ।

एक मिनट, दो मिनट, तीन मिनट बाद देवराज चौहान ने उसकी बातचीत खत्म होती देखी । फिर उसने गोवर्धन को पलटकर अस्पताल की तरफ आते देखा । उसके पीछे चार कदमों पर तीन लोग थे । बाकी के दो वहीं खड़े रह गये थे ।

देवराज चौहान के होंठ भी सिकुड़ गये।

गोवर्धन का चेहरा अब उसके सामने था । पहली बार उसने गोवर्धन को देखा था । हवलदार की वर्दी में वो जंच रहा था । कोई नहीं कह सकता था कि वो नकली पुलिस वाला है । देवराज चौहान ने घड़ी में वक्त देखा । दोपहर के 2:30 बजे थे ।

देवराज चौहान समझ नहीं पाया कि हवलदार की वर्दी में गोवर्धन करना क्या चाहता है ?

परन्तु ये स्पष्ट था कि वो यहीं आ रहा था ।

सुमित जोशी की हत्या करने आ रहा था।

देवराज चौहान का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था । वो खिड़की से हटा और बाथरूम में प्रवेश कर गया । दरवाजा बंद करके उसने रिवाल्वर निकाली और फिर उसकी मैग्जीन बाहर निकाली । मैग्जीन में मौजूद सारी गोलियां निकालकर, उसने जेब में रखीं और खाली मैग्जीन वापस रिवाल्वर में घुसेड़ दी।

अब रिवाल्वर खाली था ।

गोलियां उसकी जेब में थीं।

रिवाल्वर थामें देवराज चौहान बाथरूम से बाहर निकला और बैड पर लेटे सुमित जोशी के पास पहुंचा ।

सुमित जोशी ने उसे देखा । मुस्कुराया ।

देवराज चौहान भी मुस्कुराया ।

"अब तबीयत कैसी है ?"

"ठीक है । एक-दो दिन में बेहतर हो जायेगी "

"तुम सच में शेर हो । कल गोवर्धन के चाकू के वारों के बाद भी बच गये...तो उससे साबित हो गया कि तुम पक्के शेर हो । तुम बहुत अच्छे ढंग से हालातों का मुकाबला कर रहे हो । ऐसे जिगर वाले इक्का-दुक्का लोग ही होते हैं। परन्तु खतरा अभी टला नहीं है । ये रिवाल्वर रखो । इसे हर पल अपने पास रखो ताकि गोवर्धन तुम्हें न मार सके ।" देवराज चौहान ने उसे रिवाल्वर दी ।

सुमित जोशी ने रिवाल्वर लेकर तकिये के नीचे रख ली ।

"तुम्हें सच में मेरी बहुत चिन्ता है ।" जोशी कह उठा ।

"हाँ । बहुत चिंता है । मैं अभी, पांच मिनट में आया ।" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा ।

"तुम्हें मेरे पास ही रहना चाहिये...तुम...।"

"पास ही हूं । बस...पांच मिनट...।" कहने के साथ ही देवराज चौहान दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।

"दरवाजा खोलकर देवराज चौहान बाहर निकला ।

पुलिस वाला दरवाजे के पास ही कुर्सी पर बैठा था ।

"सब ठीक है ?" देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में कहा।

"ठीक है साब जी...।" पुलिस वाला बोला ।

देवराज चौहान आगे बढ़ गया ।

गैलरी में और भी कई लोग आ-जा रहे थे।

तभी देवराज चौहान की निगाह गोवर्धन पर पड़ी । जो हवलदार की वर्दी में गैलरी में मुड़कर इसी रास्ते पर इसी तरफ आने लगा था । उससे चार कदम पीछे उसके तीन आदमी थे ।

पास आते गोवर्धन की निगाह देवराज चौहान पर गई । परन्तु गोवर्धन उसे नहीं पहचानता था ।

देवराज चौहान ने लापरवाही भरे अंदाज में अपनी नजर दूसरी तरफ ही रखी।

गोवर्धन और वो एक-दूसरे को क्रॉस कर गये ।

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली और सोचा कि जोशी तो गया...।

तभी गोवर्धन के तीनों आदमियों ने उसे घेर लिया।

देवराज चौहान चौंका ।

"यही है ।" एक ने कहा ।

"चलो...।"  दूसरे ने देवराज चौहान की बांह पकड़ ली ।

"ये क्या कर रहे...।" देवराज चौहान ने कहना चाहा ।

तभी तीसरे ने छिपे अंदाज में, देवराज चौहान की कमर से रिवाल्वर लगा दी ।

देवराज चौहान ने रिवाल्वर लगाने वाले को देखा ।

"चुपचाप चल । वरना यहीं गोली मार देंगे ।" वो धीमे स्वर में गुर्राया ।

"कौन हो तुम लोग...?"

"अभी पता चल जायेगा-चल...।"

■■■

गोवर्धन हवलदार की वर्दी में कमरे के बाहर कुर्सी पर बैठे पुलिस वालों के पास पहुंचकर ठिठका ।

"आ गये तुम ?" कुर्सी पर बैठे पुलिस वाले ने उसे देखा--- "तुम बीस मिनट जल्दी आ गये ।"

"तुम्हारे लिए तो अच्छा है ।" गोवर्धन शांत भाव में कह उठा--- "तुम्हें बीस मिनट पहले छुट्टी मिल गई ।"

"ठीक कहते हो ।" वो सिर हिलाते हुए उठा । पास रखी अखबार उठाने लगा तो गोवर्धन बोला--- "रहने दो । इसे मैं पढूंगा । वक्त भी तो बिताना है।"

"तुम ही रखो ।" उसने कहा और अखबार रखकर वहां से चला गया ।

गोवर्धन उसे जाता देखता रहा । जब वो नजरों से ओझल हो गया तो उसने आसपास देखा । कोई भी ऐसा नहीं था, जिसका ध्यान इस तरफ हो । गोवर्धन आगे बढ़ा । कमरे का दरवाजा धकेला और भीतर प्रवेश कर गया । दरवाजा बंद कर लिया । बैड पर लेटे सुमित जोशी ने पुलिस वाले को भीतर आते देखा । परन्तु जब उसने दरवाजा बंद करके सिटकनी लगाई तो जोशी के माथे पर बल पड़े ।

सिटकनी लगाकर गोवर्धन पलटा ।

सुमित जोशी की आंखें मिलीं ।

सुमित जोशी के बदन में चीटियां रेंगती चली गईं।

गोवर्धन ?

सुमित जोशी के मस्तिष्क में बड़ा-सा धमाका हुआ ।

अगले ही पल बिजली की सी गति से उसने तकिये के नीचे से रिवाल्वर निकाली और उस पर तान दी ।

गोवर्धन ठगा-सा खड़ा रह गया...चेहरे पर कई रंग आकर गुजर गये ।

"साले...कुत्ते...।" सुमित जोशी घबराहट में चीख उठा--- "अब तू मरेगा ।" कहने के साथ ही उसने ट्रेगर दबाया ।

क्लिक ।

मध्यम-सी आवाज उभरी ।

कोई गोली नहीं चली ।

गोवर्धन के चेहरे पर अजीब से भाव आये ।

जबकि सुमित जोशी ने सकपकाकर रिवाल्वर को देखा--- फिर एक साथ कई बार ट्रेगर दबाया ।

गोली कहां से चलती । वो सब तो देवराज चौहान की जेब में थीं।

जोशी का चेहरा पीला पड़ता चला गया । आंखों के सामने देवराज चौहान का चेहरा उभरा । मस्तिष्क में यही बड़ा-सा सवाल था कि देवराज चौहान ने उसे खाली रिवाल्वर क्यों दी ?

एकाएक गोवर्धन मुस्कुराया और खतरनाक अंदाज में पास पहुंचकर उसके हाथ से रिवाल्वर ली और उसे पास ही में बैड पर रख दिया । वहशी भाव थे उसकी आंखों में।

जोशी की आंखों में मौत का खौफ नाचने लगा था ।

"मैंने तो सोचा भी नहीं था । गोवर्धन दरिंदगी भरी मुस्कान के साथ कह उठा--- "ख्याल भी नहीं आया था मुझे कि, इस हाल में बिस्तर पर पड़े वकील के पास रिवाल्वर भी हो सकती है ? तूने तो मुझे डरा ही दिया था । सच कहूं तो आज पहली बार मैंने मौत को अपने करीब महसूस किया । ये तो अच्छा रहा कि तेरे रिवाल्वर में गोली नहीं थी । लेकिन भविष्य में सतर्क रहूंगा । कब्र से भी किसी को निकालने जाऊंगा तो ये नहीं भूलूंगा कि उसके पास रिवाल्वर हो सकती है।"

सुमित जोशी का चेहरा पीला पड़ चुका था ।

"वो तेरा बॉडीगार्ड कहां है जो हर वक्त तेरे साथ चिपका रहता है ?" गोवर्धन ने कमरे में नजर दौड़ाई । बाथरूम का दरवाजा खुला दिखा तो उसकी तरफ बढ़ता कह उठा--- "तुम अपनी जगह से मत हिलना । हमने कई बातें करनी है अभी...।"

सुमित जोशी की तो जान निकली पड़ी थी गोवर्धन को सामने पाकर । उसे अपनी मौत दिखाई दे रही थी । गोवर्धन की आवाज कानों में पिघले शीशे की तरह पड़ रही थी ।

गोवर्धन बाथरूम में झांककर पास आ पहुंचा ।

सुमित जोशी के गले में भय की वजह से बड़ा-सा कांटा आ ठहरा था ।

गोवर्धन उसे देखकर मुस्कुराया और कमीज के भीतर हाथ डालकर, पैंट में फंसी रिवाल्वर निकाली फिर, पैंट की जेब से एक छोटा-सा गोला-सा साइलेंसर निकाला और उसे रिवाल्वर की नाल पर चढ़ाने लगा।

"म...मुझे मत मारो । मैं...मैं...।"  जोशी अपने शब्द भी पूरे नहीं कर पाया ।

"वकील ।" गोवर्धन की आवाज में मौत से भरी ठंडक थी--- "तेरे से बातें करने के लिये मेरे पास वक्त ही वक्त है । ये तो तू जानता ही है कि मैं तेरे को मारने आया हूं । तेरे को मारे बिना मैं जाने वाला नहीं । दरवाजा भीतर से बंद है । तेरे को बचाने कोई नहीं आ सकता । अब बात तेरे और मेरे बीच है ।" रिवाल्वर की नाल पर साइलेंसर चढ़ चुका था...। उसने नाल को उसकी कनपटी पर रखा । और वहशी स्वर में बोला--- "चल बातें करते हैं । ये बता कि मरते वक्त प्रभाकर और जिम्मी तड़पे थे ?"

जोशी के होंठ हिले । मगर आवाज नहीं निकली ।

"बता, वो कितना तड़पे थे ? बहुत दर्द हुआ होगा उन्हें ?"

जोशी की आवाज जाने कहां गायब हो गई थी ।

"नहीं बात करेगा ?" गोवर्धन ठंडे स्वर में बोला--- "नाराज लगता है मेरे से । जब तू प्रभाकर और जिम्मी को मार रहा था तो क्या सोच रहा था कि किसी को पता नहीं चलेगा कि तूने मारा है उन्हें ? क्यों, यही बात है ना ?"

"मुझे छोड़ दो ।" सुमित जोशी के होंठों से खरखराता स्वर निकला।

"मैं तेरे को मुक्ति दिलाने आया हूं । भगवान ने मुझसे कहा कि मेरा बच्चा बहुत तकलीफ में है । उसके पेट में मैंने चाकू मारे, परन्तु वो मरा नहीं । उसे दर्द हो रहा है । जाकर उसे बिल्कुल शांत कर दूँ । तो उसका आदेश मानकर मैं आ गया ।"

जोशी के होंठ कांपे ।

तभी गोवर्धन ने ट्रेगर दबा दिया ।

"पिट ।"

मध्यम-सी आवाज हुई और कनपटी की दूसरी तरफ से गोली निकली और दीवार में जा धंसी ।

सुमित जोशी के सिर को तीव्र झटका लगा, फिर वो शांत हो गया । उसकी आंखें खुली हुई थीं । चेहरा अभी तक पीला पड़ा हुआ था । वो मर चुका था।

गोवर्धन कुछ पल उसे देखता रहा ।

कनपटी के जिस हिस्से में गोली ने भीतर प्रवेश किया था, वहां से कम खून निकल रहा था । छेद भी छोटा था । परन्तु जिस हिस्से से गोली बाहर निकली थी, वहां छेद कुछ बड़ा था और उधर से खून भी ज्यादा निकल रहा था।

गोवर्धन के दांत भिंचे हुए थे । वहशी और खतरनाक दिख रहा था इस वक्त । उसने पूरी तसल्ली की, कि वो मर गया है । उसके बाद उसने नाल से साइलेंसर खोला और जेब में डाल लिया । रिवाल्वर को वापस कमीज के भीतर, पैंट के साथ फंसाया और गहरी-लंबी सांस लेकर खुद को सामान्य करने की चेष्टा करता दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

उसके बाद दरवाजा खोलकर गोवर्धन बाहर निकल गया ।

कुछ ही आगे गया था कि सामने से रमेश सिंह और दयाल आते दिखे । गोवर्धन उन्हें नहीं पहचानता था और वे दोनों भी, पुलिस की वर्दी में होने की वजह से गोवर्धन को नहीं पहचान सके और एक-दूसरे को वो क्रॉस करते चले गये ।

■■■

रमेश सिंह और दयाल ने कमरे में प्रवेश किया।

"डॉक्टर से बात कर आये हैं ।" रमेश सिंह, जोशी के बैड की तरफ बढ़ता कह उठा--- "तेरे को ऐसा बढ़िया कमरा दे दिया जायेगा, जहां तक कोई नहीं पहुंच सकता । वहां पर पुलिस का तगड़ा पहरा होगा और आज ही तेरे ब्यान...।"

रमेश सिंह के शब्द होंठों में ही रह गये ।

"ये क्या ?" दयाल चौंका--- "ये...ये..तो...ये...तो मरा पड़ा है।"

"गोली मारी है कनपटी पर ।" रमेश सिंह हड़बड़ाया-सा था ।

"हे भगवान । ये नहीं होना चाहिये । हम कितनी मेहनत कर रहे थे । इसे कानून के फंदे में लाने के लिए...।"

रमेश सिंह कमरे में नजरें दौड़ाता कह उठा---

"देवराज चौहान कहां गया ?"

"वो भाग गया लगता है।" दयाल बाथरूम की तरफ बढ़ता बोला--- "उसी ने वकील को मार दिया । उसने अपना बदला पूरा कर लिया, क्योंकि वकील पुलिस के हाथों देवराज चौहान की जान लेना चाहता था ।"

बाथरूम में झांककर दयाल पलटा ।

"वो यहां नहीं है ।"

"बहुत गलत किया देवराज चौहान ने । हमें धोखा...।"

"ये खिड़की किसने खोली ?" रमेश सिंह खिड़की की तरफ जाता कह उठा ।

"देवराज चौहान, वकील को मारकर भाग...।"

"दयाल...।" रमेश सिंह के होंठों से निकला--- "वो देख, देवराज चौहान, गोवर्धन भी है ।"

"किधर ?" दयाल खिड़की पर पहुंचा।

"कारों की अगली कतार में, सफेद वैन के पास । गोवर्धन पुलिस वाले की वर्दी में है । पास में पांच लोग और देवराज चौहान है । ओह, मुझे याद आया, जब हम इस कमरे की तरफ आ रहे थे तो तब पुलिस की वर्दी पहने कोई हमारे पास से निकला था । वो...वो गोवर्धन ही होगा । तब वकील को शूट करके वापस जा रहा होगा ।" रमेश सिंह होंठ भींचकर कह उठा ।

"हां, एक पुलिस वाला पास से निकला तो था । लेकिन देवराज चौहान को...।"

"पहले गोवर्धन ने अपने आदमी भेजे होंगे । वो देवराज चौहान को पकड़ ले गये होंगे । उसके बाद पुलिस के कपड़ों में गोवर्धन आया। और वकील को गोली मारकर चला गया । ये ही हुआ होगा ।"

"लेकिन अब देवराज चौहान के साथ वो लोग क्या कर रहे...।"

"देवराज चौहान खतरे में है ।" रमेश सिंह तेज स्वर में कह उठा--- "वकील ने जब प्रभाकर को, जिम्मी को मारा तो देवराज चौहान वहीं था । गोवर्धन सोच रहा होगा कि देवराज चौहान भी उन हत्याओं में शामिल है ।

"ओह...।"

"आओ...हम...।" रमेश सिंह ने तेजी से कहते हुए खिड़की से हटना चाहा ।

"रुको ।" दयाल ने गंभीर निगाहों से उसे देखा--- "कहां जा रहे हो ?"

"वहां, बाहर...।"

"क्यों ?"

रमेश सिंह, टकटकी बांधे दयाल को देखने लगा ।

दयाल सिर हिलाकर गंभीर स्वर में कह उठा---

"हमें क्या देवराज चौहान और गोवर्धन के बीच क्या होता है ? हम बीच में दखल क्यों दें ?"

रमेश सिंह ने गहरी सांस ली ।

"हमें वकील से मतलब था, तभी हम देवराज चौहान से मतलब रखे हुए थे । वकील खत्म हो गया, हमारे लिए ये मामला भी खत्म हो गया । दूसरे के फटे में हम अपनी टांग क्यों अड़ायें । वो देवराज चौहान है तो वो गोवर्धन है । दोनों ही एक से बढ़कर एक हैं । किसी के साथ कुछ भी हो, हमें दखल नहीं देना चाहिये । हमारे परिवार हैं । बच्चे हैं । इसको क्या फर्क पड़ेगा कि ये हमें मार दे ?"

"तू ठीक कहता है दयाल...।" रमेश सिंह बात को समझा ।

दोनों की निगाह वहीं थी । पार्किंग में उन पर ही थी ।

"चल जरा बाहर चलें ।" रमेश सिंह ने कहा ।

"फिर तू...।"

"हम बीच में दखल नहीं देंगे । यूं ही दूर रहकर देखेंगे । आ ।"

रमेश सिंह, दयाल की बांह पकड़कर दरवाजे की तरफ बढ़ा ।

दयाल ने सुमित जोशी की लाश पर निगाह मारी ।

"वकील की मौत की खबर हमें अपने अफसरों को देनी...।"

"दे देंगे । पहले बाहर तो देखें कि वहां क्या होने वाला है ।"

■■■

देवराज चौहान वैन के पास पांच आदमियों से घिरा खड़ा था । देखने में ऐसा लगता था कि जैसे वे लोग आपस में बात कर रहे हैं । उन्होंने देवराज चौहान से कह दिया कि खामोशी से खड़े रहो । गोवर्धन साहब उससे बात करेंगे ।

देवराज चौहान जानता था कि ये शोर-शराबा करने का वक्त नहीं है । ये पांच है । पांचों हथियारबंद हैं । उसे किसी भी हाल में यहां से जाने नहीं देंगे । अभी कुछ भी करना बेवकूफी होगी ।

देवराज चौहान खड़ा रहा और जोशी के बारे में सोचने लगा कि जब उसे पता चला होगा कि खाली रिवाल्वर उसके पास है तो उसकी क्या हालत हुई होगी ?

दस मिनट में ही हवलदार की वर्दी में गोवर्धन वहां आ पहुंचा ।

गोवर्धन का चेहरा शांत और आंखों में कठोरता थी । उसने देवराज चौहान को घूरा । बाकी पांच एक-एक कदम पीछे हट गये थे । देवराज चौहान के चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था ।

"तो तुम हो वकील के बॉडीगार्ड...।" गोवर्धन शब्दों को चबाकर बोला ।

"मेरे ख्याल में वो काम मैं पहले कर रहा था, अब नहीं...।"  देवराज चौहान ने कहा ।

"अब क्यों नहीं ?"

"क्योंकि अब तू उसे मार आया है ।"

"तेरे को कैसे पता ?"

"मैं जानता था तू पुलिस की वर्दी में,  सुमित जोशी को मारने आ रहा है । मैंने उस खिड़की से तेरे को आते देख लिया और कमरे से बाहर निकल आया । तू तब मेरे पास से ही निकला था ।"

"तो तू वकील को मरने छोड़ आया ? अपनी ड्यूटी पूरी तरह नहीं निभाई ?"

"वो इसी लायक था ।"

"वो मुझे पुलिस के हाथों मरवा देना चाहता था ।"

"क्यों ?"

"रहने दे, क्या करेगा सुनकर ।"  देवराज चौहान शांत स्वर में मुस्कुराया।

देवराज चौहान को देखते गोवर्धन की आंखें सिकुड़ी ।

"तेरे को मरने से डरना नहीं चाहिये ।"

"क्योंकि मैं गोवर्धन हूं । जानता है न तू ?"

"फिर तो तेरे को भी मेरे से डरना चाहिये ।"

देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका ।

"क्यों ?"

"क्योंकि मैं देवराज चौहान हूं...।"

"कौन देवराज चौहान--- मैं नहीं जानता तुझे ।"

"डकैती मास्टर देवराज चौहान का नाम नहीं सुना कभी ?"

गोवर्धन चौंका ।

"तू वो वाला देवराज चौहान है ?" उसके होंठों से निकला ।

"हां, वो ही वाला।"

गोवर्धन के दांत भिंच गये ।

"भाड़ में जा ।" गोवर्धन गुर्राया--- "तू जो भी हो, मरने वाला है तू । तूने प्रभाकर और जिम्मी को, वकील के साथ मिलकर मारा है ।"

"मैंने नहीं मारा । मुझे तो तब पता भी नहीं था कि सुमित जोशी क्या करने का इरादा रखता है ।"

"बकवास मत कर-तू...।"

"मैं सही कह रहा हूं...।"

"मैं तेरी बातों में नहीं आने वाला...।"

"तूने मंगल को मारा--- ड्राइवर को ?"

"हां... वो...।"

"तो मंगल से पूछता कि मैं प्रभाकर-जिम्मी को मारने में साथ था या नहीं ?"

गोवर्धन देवराज चौहान को घूरने लगा ।

देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई । इधर-उधर देखा । तभी उसे दयाल दिखा जो कि बीस कदम दूर कार से टेक लगाए जेब में हाथ डाले खड़ा था । देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े । उसने रमेश सिंह की तलाश में नजरें घुमाई तो वो दूसरी तरफ खड़ा दिखा । उसका हाथ भी जेब में था । दोनों की नजरें इधर ही थीं ।

देवराज चौहान ने गोवर्धन को देखकर कहा---

"जोशी की रिवाल्वर की गोलियां मेरी जेब में है ।" कहकर देवराज चौहान ने जेब में हाथ डाला और गोलियां उसके हाथ में रख दी--- "मैं रिवाल्वर खाली करके उसे देकर आया था । ये बात उसे नहीं पता थी ।"

गोवर्धन के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे ।

"उसने तुम पर गोली चलाई ही नहीं ?"

"चलाई...।"  गोवर्धन के होंठों से निकला ।

"फिर तो तू मेरी वजह से बच गया । अगर मैं रिवाल्वर खाली न करता तो इन्हीं में से किसी गोली ने तेरी जान ले लेनी थी और जोशी अभी तक जिंदा होता। परन्तु मेरी वजह से, इस बार उसकी किस्मत ने साथ नहीं दिया ।"

"तूने ऐसा क्यों किया ?"

"क्योंकि वो मुझे पुलिस के हाथों मरवा देना चाहता था । मैं उसकी जान बचाता फिर रहा था और वो मेरी हत्या करवाने के फेर में था । उसका कसूर नहीं था । उसकी आदतें ही ऐसी थी कि, कोई उसका कितना भी कर ले, वो किसी का एहसान नहीं मानता था और उसी को नुकसान पहुंचा देता था । मेरे साथ भी उसने ऐसा ही किया ।"

"मुझे इन बातों से कोई मतलब नहीं । तूने प्रभाकर और जिम्मी को...।"

"नहीं मारा।"  देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा--- "ये बात बार-बार मत कह ।"

"नहीं मारा ?"

"बिल्कुल नहीं । मुझे तो तब पता भी नहीं था कि वो मरने वाले हैं ।"

गोवर्धन होंठ भींचें देवराज चौहान को घूरने लगा ।

"तू अपने आदमियों के दम पर चौड़ा हो रहा है तो चौड़ा होना छोड़ दे।  यहां मेरे आदमी भी फैले हैं ।" देवराज चौहान बोला ।

"तेरे आदमी ? साले झूठ बोलता है ।" गोवर्धन गुर्रा उठा ।

"वो देख ।" देवराज चौहान ने दयाल की तरफ सिर घुमाया--- "नीली चैक शर्ट में वो मेरा ही आदमी खड़ा है । इधर ही देख रहा है और हाथ तो उसका जेब में है । वो इस इंतजार में है कि तुम मुझे कुछ करना चाहो तो, वो तुम्हें पहले ही गोली मार दे । उधर देख-बाईं तरफ ।" देवराज चौहान ने दूसरी तरफ सिर घुमाया--- "सफेद कमीज पहने खड़ा है वो । हाथ जेब में, नजरें इधर, उसके बारे में ये बात खासतौर से कही जाती है कि आसमान में उड़ती चिड़िया का निशाना लगाना उसके लिए मामूली बात है । दो लोग और भी हैं । कुल चार हैं और वो हर तरह के हालातों के लिए तैयार खड़े हैं ।"

गोवर्धन कुछ ढीला पड़ा । परन्तु चेहरे पर कठोरता ही रही ।

"तू सच कहता है कि प्रभाकर-जिम्मी की मौत में तेरा हाथ नहीं था ?" वो गुर्राया ।

"हाथ तो क्या, सोच भी नहीं थी ।"

"अगर मुझे कभी पता चला कि तू भी...।"

"तब मुझे ढूंढकर, गोली से उड़ा देना ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

गोवर्धन के होंठों से गुर्राहट निकली--- फिर पलटते हुए अपने आदमियों से बोला---

"चलो...।"

देवराज चौहान वहीं खड़ा रहा ।

देखते ही देखते गोवर्धन और उसके आदमी वैन में बैठे । वैन चली गई ।

देवराज चौहान ने दयाल और रमेश सिंह को देखा ।

वो दोनों धीरे-धीरे देवराज चौहान के करीब आने लगे ।

देवराज चौहान ने कश लिया । वे पास आ पहुंचे थे । देवराज चौहान को घूर रहे थे ।

"क्या हुआ ?" देवराज चौहान मुस्कुराकर बोला ।

"जैसे तेरे को पता नहीं ?" दयाल तीखे स्वर में बोला ।

"गोवर्धन ने मारा जोशी को । तब मैं वहां नहीं था । उसके आदमी मुझे पकड़कर यहां ले आए थे।"

"तेरे को पता था कि वकील हमारे लिए जरूरी है । उसे बचाता । हम तेरे भरोसे तो...।"

"उसे बचाने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं थी । इसका जवाब तुम लोग जानते ही हो कि क्यों नहीं थी...।"

"तुमने जगमोहन को तो मुफ्त में आजाद करा लिया ।"

"मुफ्त में क्यों--- सुमित जोशी का इकबालिया बयान, तुम लोगों ने रिकॉर्ड किया है । उसे भूल गये...।"

"उसका क्या फायदा । वकील तो मारा गया ।"

"ये बात भी मैंने तुम्हें पहले ही कह दी थी कि कोई फायदा नहीं होगा । उसे कोई-न-कोई मार देगा । वो ही हो गया ।"

"जो भी हुआ, गलत हुआ ।"

"मैं कब कहता हूं कि ठीक हुआ ? परन्तु ये तो होना ही था ।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।

रामेश सिंह और दयाल ने एक दूसरे को देखा ।

"मैंने तुम दोनों से कहा था कि तुम लोगों की इजाजत लेकर ही जाऊंगा । अब जाऊं क्या ?"

"जा भाई, जान छोड़ ।" रमेश सिंह नाराजगी से बोला--- "तेरा कोई फायदा नहीं हुआ । फायदा तब होता, जब तू गोवर्धन के हाथों वकील को बचा लेता और ऐसा तू करना नहीं चाहता था ।"

"ठीक समझे । नमस्कार...।" देवराज चौहान ने दोनों हाथ जोड़कर कहा और पलटकर आगे बढ़ गया । मन ही मन सोच रहा था कि अजीब-सी झंझट से उसने मुक्ति पा ली है । कुछ आगे जाकर, पीछे देखा कि कहीं रमेश सिंह या दयाल उसके पीछे तो नहीं है । परन्तु उन दोनों को उसने अस्पताल में प्रवेश करते देखा ।

देवराज चौहान ने सड़क पर जाकर टैक्सी पकड़ ली और उसे बताया कि कहां जाना है । फिर फोन निकालकर, जगमोहन के नम्बर मिलाए। तुरन्त ही उधर फोन बजने लगा।

"हैलो ।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

"शुक्र है ।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

"काम हो गया...।"  जगमोहन ने उधर से चैन वाले स्वर में कहा।

"तुम कहां हो ?"

"होटल में । और तुम ?"

"टैक्सी में-बंगले की तरफ जा रहा हूं...। तुम भी आ जाओ । ये देख लेना कि कोई पीछे न हो ।"

"सब ठीक है । कोई पीछे नहीं है । मैं तसल्ली कर चुका हूं । पहुंचता हूं बंगले पर ।" उधर से जगमोहन ने कहा ।

देवराज चौहान ने अगला फोन खूबी को किया ।

"क्या है ?" खूबी तीखे स्वर में बोली ।

"तुम्हारा काम हो गया है ?"

"क्या ?" खूबी का हक्का-बक्का स्वर कानों में पड़ा--- "वो मर गया ?"

"हां । सुमित जोशी को गोवर्धन ने करीब घंटा भर पहले मारा है ।"

"तुमने...तुमने देखी उसकी लाश--- उसे मरे हुए देखा ?"

"देखा ही समझो । चिंता मत करो, वो फिर से जिंदा नहीं होने वाला।"

"ओह सुरेंद्र पाल, तुम ग्रेट हो, तुम...तुम...।"

"जोशी को मैंने नहीं, गोवर्धन नाम के आदमी ने मारा है...तुम...।"

"किसी ने भी मारा हो । मैं खुश हो गई । खबर तो तुमने सुनाई मुझे । इसलिए मेरे लिये तो नम्बर वन तुम ही हो । मैं तुम्हें ट्रीट दूंगी । पार्टी करेंगे । गोवा चलेंगे। तुम्हें एक करोड़ रुपया भी दूंगी-तुम्हें...।"

"वकील के बच्चों का हक मत मारना । बराबर का तीसरा हिस्सा लेना । शराफत से चलना...।"

"पक्का । बुरी नहीं हूं मैं । फिक्र मत करो । मैं समझती हूं । वो बच्चे हैं । उन्हें पूरी जिंदगी बितानी है ।"

"अब फोन बंद करता हूं मैं...।"

"बंद...लेकिन तुम कब आ...।"

देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया ।

उसके बाद देवराज चौहान ने जूही को फोन किया ।

हैलो...।" जूही की खनकती आवाज कानों में पड़ी ।

"मैं सुरेंद्र पाल...।"

"ओह सुरेंद्र पाल ।" जूही ने फोन पर चीखी--- "तुम कैसे हो ?"

"मैं अच्छा हूं-तुम...।"

"मैं ब्यूटी पार्लर खोल रही हूं...।"

"ब्यूटी पार्लर ?"

"हाँ, जिससे मेरी शादी होने वाली है, उसने आज ही एक जगह खरीदी है । सारा पैसा वो लगा रहा है । मजा आ गया...मेरा पार्लर होगा । तुम्हें सुनकर खुशी हुई ?"

"बहुत ।" देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान थी ।

"तुम सर से कह देना कि...।"

"मैंने तुम्हें ये कहने के लिए फोन किया है कि ऑफिस हमेशा के लिए बंद हो गया है ।" देवराज चौहान बोला ।

"कोई परवाह नहीं...।" लेकिन ऐसा हुआ क्यों ?"

"जोशी को किसी ने मार दिया...।"

"ओह...कब ?" जूही के गहरी सांस लेने की आवाज आई ।

"आज ही...घंटा भर पहले ।

"ओह, सुनकर दुख हुआ । छोड़ो । रोज जाने कितने लोग मरते हैं । तुम बताओ कि आज शाम को क्या कर रहे हो ?"

"क्यों ?"

"मेरी सहेली का फ्लैट खाली...।"

देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया । जेब में रखा और बाहर देखने लगा । अब चेहरे पर कोई तनाव नहीं था । दुनियादारी की अजीब-सी घेराबंदी से बाहर निकल आया था । इसमें कोई शक नहीं कि जोशी कमाल का इंसान था, परन्तु वो किसी का सगा नहीं बन सका । इसी वजह से मारा गया । वरना वो शायद अब भी जिंदा होता।

समाप्त