आधी रात का वक्त हो रहा था।
आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे। चाँद कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा था। आसमान साफ था, मध्यम सी हवा कभी चलती तो कभी थम जाती। उस बड़े से गड्ढे के किनारे पर नगीना, जानकीदास और पार्वती बैठे थे। पार्वती, जानकीदास के प्रति बहुत चिन्तित थी। जानकीदास पार्वती को कभी प्यार से तसल्ली भरे शब्द कहता तो कभी उसके स्वर में खीझ के भाव आ जाते।
दो घंटों से वे तीनों वहां बैठे थे।
“आधी रात हो रही है।” नगीना बोली-“अभी रास्ता खुला नहीं।”
“अब तक वो रास्ता बन जाना चाहिये।” जानकीदास ने गम्भीर स्वर में कहा।
“आज एक सौ आठवीं रात ही है। कहीं गलत हिसाब तो नहीं लगाया रातें गिनने का।”
“तुम भी तो रातें गिनती थीं।” जानकीदास बोला-“बताओ कहां गलती की?”
पार्वती ने फिर कुछ नहीं कहा।
“रातें गिनने में गलती हो सकती है।” नगीना बोली-“एक-आध रात पीछे भी हो सकती है।”
“मैं भी तो यही कह रही हूं-।” पार्वती कह उठी।
“मुझे पूरा विश्वास है कि रातें गिनने में कोई गलती नहीं हुई-।” जानकीदास ने दृढ़ स्वर में कहा-“मैं-।”
तभी जमीन में हल्का-सा कम्पन हुआ।
जानकीदास के शब्द मुंह में ही रह गये।
देखते ही देखते उस गड्ढे की जमीन का बीच का हिस्सा फटने लगा।
तीनों जल्दी से उठकर कुछ कदम पीछे हट गये।
“ये क्या?” नगीना के हाथ में दबी तलवार पर पकड़ सख्त हो गई।
“रास्ता बन रहा है।” जानकीदास के होंठों से खुशी से भरा स्वर निकला-“अब मैं अपने बेटे की आत्मा को ले आऊंगा। मेरा बेटा फिर से जिन्दा हो जायेगा। कितना अच्छा लगेगा हम सब को, तब-।”
“मेरा मन घबरा रहा है।” पार्वती बोली।
“खामोश रहो।”
जमीन का काफी बड़ा हिस्सा फट कर अलग हो गया और बीच में से कुछ बाहर को निकला। और जरा-सा ऊपर होकर ठहर गया। तीनों की निगाहें उस उभरी चीज पर जा टिकीं।
“ये क्या?” नगीना के होंठों से निकला।
“पास जाकर देखते हैं।”
तीनों सावधानी से आगे बढ़े और गड्ढे में उतर कर पास पहुंचे।
फटी जमीन के बीच में से निकली वो चीज पत्थर की पक्की सीढ़ी थी। नीचे तक सीढ़ियां जा रही थीं। भीतर भरपूर रोशनी
में सीढ़ियां समाप्त होती भी दिखाई दे रही थीं।
“यही है रास्ता।” जानकीदास का स्वर खुशी से कांपा।
नगीना की निगाह रोशनी में चमकती सीढ़ियों पर जा रही थी। जाने ये कैसी रोशनी थी, जो कि सीढ़ियों से बाहर नहीं आ रही थी। दो पल गहरी चुप्पी में बीत गये।
“सुनिये!” पार्वती ने हड़बड़ाकर कहा-“अभी भी अपना फैसला बदल दीजिये। भीतर जाने क्या है। कैसे-कैसे खतरे हैं।”
“खामोश हो जाओ। मेरे बेटे की आत्मा ज्यादा दूर नहीं है। तुम झोपड़ी में रहना। मैं आत्मा लेकर लौटता हूं।” कहने के साथ ही वो आगे बढ़ा और पहली सीढ़ी पर पांव रखा, फिर नीचे उतरता चला गया।
नगीना के होंठ भिंच गये। जरा सा आगे होकर उसने नीचे झांका।
जानकीदास आखिरी सीढ़ी पर जा पहुंचा था फिर ठिठक कर, ऊपर देखा।
“मैं जा रहा हूं।” जानकीदास ने ऊंची आवाज में कहा-“अगर
तुम्हें डर लग रहा है तो पार्वती के साथ रहो। देवा की आत्मा मिली तो उसे भी मैं लेता आऊंगा।”
“मैं आ रही हूं-।” कहने के साथ नगीना ने कदम आगे बढ़ाकर पांव सीढ़ी पर रखा और सीढ़ियाँ उतरती चली गई।
ठक-ठक आवाजें पार्वती के कानों में पड़ती रहीं।
उसी पल पार्वती पलटी और गड्ढे के किनारे पर जा खड़ी हुई।
कुछ ही क्षण बीते होंगे कि फटी जमीन देखते ही देखते आपस में मिल गई। जो रास्ता बना था, वो बंद हो गया। पार्वती ने गहरी सांस ली और पलट कर अंधेरे में ही झोंपड़ी की तरफ वापस चल पड़ी।
☐☐☐
झोंपड़ी के फर्श पर बिछे फूस पर लेटी पार्वती नींद में डूबने की चेष्टा कर रही थी कि तभी झोंपड़ी के दरवाजे पर कदमों की आहट पाकर फौरन उठ बैठी। उधर निगाह पड़ते ही पार्वती की आंखें सिकुड़ गईं।
झोंपड़ी के दरवाजे की जगह पर दो फीट के आकार में जिन्न बाधात खड़ा था।
“तुम-?” पार्वती के होंठों से निकला और तुरन्त उठ खड़ी हुई।
“तुम्हारी झोंपड़ी बहुत छोटी है पार्वती।” जिन्न बाधात कह उठा-“इसलिये, मुझे दो फीट का बनकर भीतर प्रवेश करना पड़ा-।” जिन्न बाधात के बारे में जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “दूसरी चोट”।
“तुम यहां कैसे आये?” पार्वती के माथे पर बल पड़े।
“मुझे कहीं भी पहुंचने पर कौन रोक सकता है।” जिन्न बाधात मुस्कराकर कह उठा-“सौदागर सिंह का चक्रव्यूह घूमने का मन किया तो इस तरफ निकल आया। जानकीदास कहां है?”
“कहीं भी हो। तुम्हें क्या?” पार्वती के स्वर में तीखापन आ गया।
“यूं तो जानकीदास जगह छोड़कर जाने वाला नहीं-।” जिन्न बाधात ने उसे गहरी निगाहों से देखा।
“तू अपनी बात कर। मुझे तेरा यहां आना पसन्द नहीं। चला जा-।” पार्वती का स्वर कठोर हो गया।
“कभी तो प्यार से बोला कर। मैंने तेरे को गलत क्या कह दिया।” जिन्न बाधात मुस्कराया।
“मैं तुमसे और शैतान से नफरत करती हूँ। शैतान ने हमारे मालिक को कैद कर रखा है।” पार्वती गुस्से से भर उठी।
“पुरानी हो गई है ये बात। नई बात कर।” जिन्न बाधात हंसा-“सौदागर सिंह कभी भी कैद से आजाद नहीं हो सकता। ये बात तुम दोनों को अच्छी तरह मालूम है। फिर क्यों अभी भी सौदागर सिंह के हुक्म की तामील कर रही हो।”
“सौदागर सिंह हमारा मालिक है। उसका हुक्म है कि जो भी यहां आये उसे, उसके चक्रव्यूह के भीतरी परतों में फंसा दिया जाये। हम उसके हुक्म की तामील कर रहे हैं, ढाई सौ बरस हो गये। यही हमारा धर्म और कर्म है।”
“अब किसको फंसाया?”
“तुम्हें क्या?”
“मुझे किसी की तलाश है।” जिन्न बाधात बोला-“नीचे की जमीन का कोई इन्सान शैतान के आसमान पर अदृश्य होकर घूम रहा है। उसे ढूंढने के लिये मुझे भेजा गया है।”
“यहां कोई अदृश्य इन्सान नहीं आया। भाग जा तू यहां से। मैं और जानकीदास तेरे शैतान से नहीं डरते। शैतान हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। क्योंकि सौदागर सिंह ने हमारे गिर्द ऐसी शक्तियां छोड़ रखी हैं कि उन शक्तियों को शैतान काटकर, हम तक नहीं पहुंच सकता। ढाई सौ सालों से शैतान हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सका।”
“तुम तो यूं ही नाराज हो रही हो पार्वती।” जिन्न बाधात मुस्करा कर कह उठा-“हम तो वास्तव में तुम दोनों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते। मैं तो सिर्फ इतना पूछ रहा था कि मैं जिसे ढूंढ रहा हूं, वो कहीं इधर तो नहीं आ गया और जानकीदास उसे चक्रव्यूह की गहरी परतों में फंसाने के लिये, चक्रव्यूह के भीतर तो नहीं ले गया।”
“तू चला जा यहां से। मैं तेरे किसी सवाल का जवाब नहीं दूंगी।” पार्वती तीखे स्वर में कह उठी।
“तेरा मन ठीक नहीं लग रहा। गुस्से में है तू-। फिर आऊंगा।” जिन्न बाधात के शब्द पूरे होते ही एकाएक वो नजरों से ओझल हो गया। जहां वो खड़ा था, कुछ पल वहां धुएं की लकीर नजर आती रही फिर वो लकीर भी लुप्त हो गई।
पार्वती ने गहरी सांस ली और अपने चेहरे के भावों को ठीक करती हुई नीचे बैठ गई। एक तरफ लटक रही लालटेन का मध्यम सा प्रकाश झोंपड़ी में फैला था।
अभी पन्द्रह मिनट भी नहीं बीते होंगे कि जानकीदास ने भीतर प्रवेश किया।
“आ गये आप-।” पार्वती के होंठों पर मुस्कान उभर आई।
“हां।” जानकीदास बैठता हुआ बोला-“नगीना को चक्रव्यूह की गहरी परतों में धकेल आया हूं। बहुत जल्दी वो किसी न किसी हादसे का शिकार होकर अपनी जान गंवा बैठेगी।”
“ये तो अच्छा हुआ कि हमने उसे पहले आते देख लिया था और उसे अपनी बातों में फंसाने के लिये इस तरह की बातें करनी शुरू कर दीं कि, उसे हम पर विश्वास आ जाये। पहली बार जब मैं झोंपड़े से निकली तो मैंने यही दर्शाया कि वो मुझे नजर नहीं आ रही। क्योंकि सौदागर सिंह की दी शक्तियों की वजह से मैंने महसूस कर लिया था कि वो अदृश्य लकीरों से घिरी है। दूसरी बार जब मैंने पाया कि वो अदृश्य लकीरों से नहीं घिरी तो मैंने उसे देख लेने का नाटक किया।”
“जो भी हुआ ठीक हुआ।” जानकीदास ने कहा-“हमारी कही
बातों में वो आसानी से फंस गई और मेरे साथ चल पड़ी।”
“अभी जिन्न बाधात आया था।”
“जिन्न बाधात?”
पार्वती ने बताया कि जिन्न बाधात से क्या बातें हुईं।
“उसकी परवाह मत करो। जिन्न बाधात हो या शैतान, हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सौदागर सिंह की मौजूद शक्तियां उन्हें हमारे पास नहीं आने देंगी। शैतान कितना भी ताकतवर सही, परन्तु हमें खत्म करने के मामले में कमजोर है। सौदागर सिंह ने बहुत सोच-समझ कर पक्का इन्तजाम किया था। रात बहुत हो रही है। थोड़ी सी नींद ले लें तो ठीक रहेगा।”
☐☐☐
बहुत मध्यम-सी रोशनी फैली थी उस कमरे में। कमरे की दीवारें काली होने की वजह से मध्यम रोशनी और भी कम हो गई थी। वहां सिर्फ दो ही नजर आ रहे थे।
शैतान का अवतार।
और प्रेतनी चंदा।
प्रेतनी चंदा कुर्सी पर बैठी थी। टेबल पर हरे रंग के पेय पदार्थ से भरे दो गिलास पड़े थे।
शैतान का अवतार यानि कि द्रोणा पीठ पर हाथ बांधे चहलकदमी कर रहा था।
कई मिनट से उनके बीच चुप्पी थी।
प्रेतनी चंदा ने गिलास उठाया और घूंट भरकर गिलास टेबल पर रख दिया।
“द्रोणा!” प्रेतनी चंदा के होंठों में खतरनाक स्वर निकला-“मेरी पांच सौ बरस की मेहनत मिन्नो ने मिट्टी में मिला दी। मेरे ही खंजर से उस त्रिवेणी (रुस्तम राव) ने मेरी जान ले ली। वरना मैं दो की जानें और ले लेती तो मुझे प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती। ये सब होने के साथ-साथ शैतान की निगाहों में मेरी इज्जत मिट्टी में मिल गई।”
“तुमसे ज्यादा मेरे साथ बुरा हुआ।” द्रोणा, वहशी स्वर में गुर्रा
उठा-“शैतान के अवतार की जगह हासिल करने के लिये मैंने
बड़े-बड़े काम किए। कितनी मेहनत करके मैंने शैतान के अवतार की जगह पाई। बहुत अच्छी तरह से मैं शैतान के अवतार का नाम रोशन कर रहा था। पृथ्वी से देवा-मिन्नो और उनके साथी मेरी धरती पर पहुंचे तो वे मेरे लिये कोई समस्या नहीं थे। उन्हें खत्म करना सेकेंडों का खेल था मेरे लिये। उन्हें खत्म कर भी देता। देवा को तो खत्म कर दिया था मैंने। दूसरे भी मारे जाते, लेकिन मिन्नो ने धोखे से मुझे खत्म कर दिया। मैं सोच भी नहीं सकता था कि उसके पास कोई शैतानी हथियार होगा। लेकिन तब उसके पास तुम्हारा खंजर था। जिसमें अथाह शैतानी शक्तियां मौजूद हैं। उसी खंजर का इस्तेमाल करके, मिन्नो ने मेरी जान ले ली। शैतान के सामने मेरा सिर झुका दिया।” ये सब बातें जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “दूसरी चोट”।
“मेरा खंजर मिन्नो के पास था तो इसमें मेरी गलती नहीं थी। उस खंजर की वजह से तो मेरी भी जान गई।” प्रेतनी चंदा ने दांत भींचकर कहा-“हमारे सामने असल मुद्दा मिन्नो है। ये ठीक है कि शैतान ने हमारी आत्मा पहले वाले शरीरों में डाल दी है। हमारी शक्तियां हमें लौटा दी हैं, परन्तु शैतान की निगाहों में हमारी इज्जत तो वो नहीं रही।”
चहलकदमी करता द्रोणा एकाएक ठिठका और प्रेतनी चंदा को घूरने लगा।
“मुझे अपनी हार का बदला लेना है। मिन्नो से ही नहीं। उन सबसे।” द्रोणा गुर्रा उठा।
“बदला बाद में।” प्रेतनी चंदा का खूबसूरत चेहरा एकाएक
भयानक लगने लगा-“पहले हमें शैतान से किया वायदा पूरा करना है। अगर इस बार हम ‘चोट’ खा गये तो शैतान बता चुका है कि वो कितनी भयानक सजा देगा। बदले की सोच निकालकर, शैतान से किए वायदे को पूरा करना है। जबकि मतलब उन्हें खत्म करने से ही है।”
“तुम ठीक कहती हो। मैं उन सबको खत्म कर दूंगा।”
प्रेतनी चंदा ने घूंट भरा और द्रोणा को देखने लगी।
टेबल के पास पहुंच कर द्रोणा ने गिलास उठाकर एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया।
“द्रोणा-।”
शैतान के अवतार यानि कि द्रोणा ने प्रेतनी चंदा को देखा।
“ये काम तुम अकेले करना चाहोगे?”
“क्या मतलब?”
“हम दोनों की मंजिल एक है। रास्ते एक हैं। हम मिलकर काम करें तो अच्छा रहेगा।”
“मैं अकेला ही बहुत हूं इस काम के लिये।” द्रोणा ने प्रेतनी चंदा को घूरा-“तुम अगर मेरे साथ इस काम पर रहना चाहती हो तो मुझे कोई एतराज नहीं।”
“मतलब कि तुम्हें मेरी जरूरत नहीं।”
“नहीं। उन्हें खत्म करना मेरे लिए मामूली काम है।”
“मामूली काम तो पहले भी था।” प्रेतनी चंदा कड़वे ढंग से मुस्कराई।
“तब मैं धोखा खा गया था।” द्रोणा के दांत भिंच गये।
“धोखा अब भी खा सकते हो द्रोणा। सोच लो-।”
“तुम कहना क्या चाहती हो?”
“यही कि अगर तुम्हें मेरी जरूरत नहीं तो इस काम में मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी।” प्रेतनी चंदा ने कहा।
लम्बे पलों तक द्रोणा, प्रेतनी चंदा को देखता रहा।
“मेरी शक्ति से तुम अच्छी तरह वाकिफ हो।” द्रोणा कह उठा-“शैतान का अवतार मैं यूं ही नहीं बन गया था।”
“मैं तो इतना जानती हूं कि एक बार उनके हाथों अपनी जान गंवा चुके हो।”
“तुम्हें मेरी फिक्र करने की जरूरत नहीं है।”
प्रेतनी चंदा के होंठों पर मुस्कान उभरी।
“अगर तुमसे पहले मैं कामयाब रही तो हो सकता है मुझे शैतान का अवतार बना दिया जाये।”
“बेकार की बात मत करो।” द्रोणा ने खा जाने वाले स्वर में कहा-“शैतान का अवतार मैं ही बनूंगा।”
“शैतान ने चाहा तो तुम अवश्य सफल रहोगे।” कहने साथ ही प्रेतनी चंदा ने अपना गिलास खाली कर दिया-“मिन्नो के पास मेरा शैतानी खंजर है। मेरी जबर्दस्त शैतानी शक्तियां हैं उस खंजर में। उस खंजर की वजह से तुम्हारी मौत हुई। इस बार बचकर रहना। वो खंजर दो बार तुम्हारी जान ले सकता है। मेरे उस खंजर के प्रति लापरवाह मत होना।”
“मेरे पास वो शक्ति हैं जो उस खंजर पर काबू पा लें।”
“द्रोणा।” प्रेतनी चंदा का स्वर जहरीला हो गया-“पांच सौ बरस से मैं जो शैतानी ताकतें इकट्ठी करती आ रही थी, वो सब उसी खंजर में हैं। जो मिन्नो के पास हैं। ऐसे में उस खंजर के सामने तुम्हारी शक्तियां बेकार भी हो सकती हैं। इसी से सोचो कि उस खंजर में कितनी जबर्दस्त शैतानी शक्तियां हैं कि उसी खंजर से मेरी जान गई और उसी से तुम्हारी। ये बात मैं तुम्हारे भले के लिये बता रही हूं। समझना या न समझना तुम्हारा काम है। मैं चलती हूं। लेकिन एक बात ध्यान रखना कि मैं उन मनुष्यों को रोकूंगी। शैतान की निगाहों में ऊंचा उठने के लिये, मुझे पीछे करके, उन्हें पहले खत्म करने की कोशिश मत करना। जिसका वार चल गया, वो ही हम दोनों में से श्रेष्ठ माना जायेगा।”
“मुझे विश्वास है कि तुमसे पहले उन मनुष्यों पर मेरा ही वार चलेगा।” द्रोणा ने दांत भींचकर कहा।
“देखते हैं।” प्रेतनी चंदा कहकर शांत भाव से हंसी। दूसरे ही पल वो गायब हो गई। उस कुर्सी पर चिड़िया बैठी नजर आई। जो देखते ही देखते उड़ान भरते हुए कमरे के रोशनदान से बाहर निकल गई।
द्रोणा उर्फ शैतान का अवतार कठोर निगाहों से खाली कुर्सी को घूरने लगा। फिर दरवाजे की तरफ बढ़ा और बाहर निकलता चला गया।
☐☐☐
“मोना चौधरी तो म्हारे को ले करो, गली-गली घूमो हो।”
“बाप।” रुस्तम राव बोला-“आपुन मोना चौधरी के संग होएला। वो आपुन को ले के न घुमाईला।”
“तो सड़को की लम्बाई नापनो का, क्या फायदा हौवे?”
“मंजिल का न पता हो तो फिर यूं ही भटकना पड़ता है।” साथ चलते पारसनाथ ने कहा।
“चल्लो-चल्लो।” म्हारे को का-।”
सोहनलाल ने जगमोहन से कहा।
“इस तरह कब तक चलते रहेंगे?”
“देख रहे हैं।” जगमोहन गम्भीर था-“शैतान की तलाश में हैं हम। शायद उसके ठिकाने का पता चल सके।”
“शैतान की जमीन पर, शैतान तक पहुंच पाना असम्भव है।”
सोहनलाल का स्वर गम्भीर था।
“शैतान इस तरह सामने आ जायेगा। मेरा दिल नहीं मानता।” दो कदमों के फासले पर चलती मोना चौधरी ने कहा।
जगमोहन ने मोना चौधरी को देखा और होंठ भींचकर रह गया।
“नीलू-।” राधा, महाजन की बांह पकड़े चल रही थी-“तुम शैतान की गर्दन पकड़ कर तोड़ दो।”
“मैं?”
“हां। तुम तो बहादुर हो। सब कुछ कर सकते हो।” “
महाजन ने चलते-चलते राधा को तीखी निगाहों से देखा।
“तू किसी को ये मत कहा कर कि मैं बहादुर हूं।” महाजन बोला।
“क्यों?”
“मैं कोई काम न कर सका तो लोग समझेंगे कि मैं बहादुर नहीं।”
“ओह! ये तो मैंने सोचा नहीं।”
“तुम किसी के सामने मेरी तारीफ मत किया करो। जो कहना हो, अकेले में कह दिया करो।”
“हां ये बात ठीक है।” राधा ने गर्दन हिलाई-“फिर धीरे से बोली-“बहुत दिन हो गये।”
“क्या? क्या दिन हो गये?”
“हमें प्यार किए-।” राधा ने कहा-“कोई मौका देख प्यार करने का।”
“अभी ऐसी बात मत कर।”
“क्यों?”
“शैतान की धरती पर हम सब मुसीबत में हैं। ऐसे में प्यार करेंगे तो दूसरे क्या सोचेंगे।”
“हमें दूसरो से क्या लेना-देना। ये हमारा पर्सनल मामला है कि हम प्यार करते हैं। एक बार करते हैं। सौ बार करते हैं। एक बात तो बता नीलू, लोग जब मुसीबत में होते हैं तब प्यार नहीं करते?”
“करते हैं।” महाजन ने गहरी सांस ली-“अब तू चुप रह। जब मौका मिला जब प्यार कर।”
“छोरे!” तभी बांकेलाल राठौर का ऊंचा स्वर सबने सुना-“वो देखो-।”
सबकी नजरें उधर उठीं।
वे ठिठक गये।
काले स्याह रंग की इमारत थी वो। अजीब-से ढंग की बनी थी। लोहे की काली लम्बी मीनारें, इमारत के कोनों से और बीच में से निकली, बहुत ऊपर तक जा रही थीं।
“ऐसी इमारत यहां पहले नजर नहीं आई-।” सोहनलाल ने कहा।
“ये बहुत हद तक उस जैसी लग रही है, जैसे काले समन्दर से उभरे जंजीरे पर, वो मीनारों वाला महल बना हुआ था जिस पर सवार होकर हम सब, शैतान के अवतार की जमीन पर जा पहुंचे थे।” मोना चौधरी के होंठों से निकाला-। उसकी आंखें
सिकुड़ी हुई थीं।
“ठीक कहती हो।” जगमोहन कह उठा-“इसका मतलब ये शैतान की कोई खास जगह है।”
उनकी नजरें कभी काली इमारत पर जातीं तो कभी एक-दूसरे पर।
सबके चेहरों पर सोचें उभरी पड़ी थीं।
“मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं कि ये शैतान की कोई खास जगह है।” मोना चौधरी ने कहा।
आसपास से लोग गुजर रहे थे। हर कोई अपने काम में व्यस्त नजर आ रहा था, परन्तु कोई भी काली इमारत के रास्ते की तरफ नहीं जा रहा था।
“क्या करेला बाप?” रुस्तम राव ने अपने सिर के बालों पर हाथ फेरा।
“नीलू देख तो। कोई भी उधर नहीं जा रहा।” राधा कह उठी-“उधर जाने वाला रास्ता सुनसान पड़ा है। मुझे तो लगता है, वो भूतिया इमारत है या शैतान का दफ्तर वगैरह होगा वहां-।”
“बेबी-!” महाजन की आंखें सिकुड़ चुकी थीं-“हो सकता है, वहां शैतान रहता हो।”
मोना चौधरी की नजरें काली इमारत पर जा टिकीं। होंठ भिंचे हुए थे।
“महाजन की बात सच हो सकती है।” जगमोहन के होंठों से निकला।
“मेरा नीलू बहुत समझदार है। हमेशा पते की बात कहता है।”
“तंम का सोचो हो मोना चौधरी?” बांकेलाल राठौर बोला।
“मुझे नहीं लगता कि शैतान इतनी आसानी से हमें मिल सकेगा।”
“क्या मालूम, वो मिल जाये।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।
पलों के लिये वहां चुप्पी छा गई।
तभी रुस्तम राव वहां से हटा और कुछ दूर जाते एक व्यक्ति के पास जा पहुंचा।
“बाप!”
उस व्यक्ति ने ठिठक कर रुस्तम राव को देखा।
“क्या है?”
“बाप-!” रुस्तम राव मुस्कराता हुआ उसके बेहद करीब आ गया-“वो काली इमारत क्या होएला बाप?”
“तुम्हें नहीं मालूम?”
“तम्भी तो पूछेला बाप-।”
“नया आया है यहां?”
रुस्तम राव ने सहमति में सिर हिलाया।
“वहां से शैतानी शक्तियों से भरे हथियार मिलते हैं।”
“शैतानी शक्तियों से भरेले हथियार-?” रुस्तम राव की आंखें सिकुड़ीं।
“हां।”
“वो कैसे मिएला बाप?”
“मालूम नहीं। मैंने कभी नहीं लिए। शैतान के आदमी जिसे भेजते हैं, उसे ही हथियार देते हैं काली इमारत से-।”
“कोई दूसरा शैतानी हथियार लेने चला जाये बाप तो क्या होएला?”
“मालूम नहीं। भीतर शैतान के आदमी हैं। वो शायद उसे मार देते हैं।”
रुस्तम राव सोच भरे ढंग से उसे देखने लगा।
“कुछ और भी पूछना है?” वो बोला।
“एक बात बाप-।”
“क्या?”
“शैतान किधर मिएला?”
“तुमने शैतान से क्या लेना?”
“अपन शैतान से हैलो करेला बाप-।”
उसने रुस्तम राव को घूरा।
“शैतान के बारे में ऐसी बात मत कह। उसकी इज्जत कर।” कहने के साथ ही वो पुनः आगे बढ़ गया।
रुस्तम राव उसे जाता देखता रहा फिर पलट कर अपने साथियों के पास वापस पहुंचा।
“छोरे! का गप्पो मारो के आयो हो?” बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ी हुई थीं।
“काली इमारत के बारे में मालूम करेला बाप।” रुस्तम राव ने गम्भीर स्वर में कहा-“वहां पर शैतानी हथियार मिएला बाप। वो हथियार उसे ही मिएला जिसे शैतान के आदमी भेजेला। वो ही इमारत से हथियार पाएला। कोई दूसरा हथियार पाने की चेष्टा करेला तो पहरेदार भीतर होएला। वो उसे खत्म करेला।”
“थारो मतलब कि अंम भीतर जायो तो वो म्हारे को ‘वडो’ हो।”
“वो आदमी ये ही कहेला बाप-।”
बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया। दांत भिंच गये।
“छोरे! अंम अम्भी भीतर जायो। पहरेदारों को ‘वडो’ और शैतानी शक्तियों वाले हथियार ले आओ और शैतानों को ढूंढो, उनो को ‘वडो’ के पूरी दुनिया में अंम सुख-शान्ति फैलायो?”
“कोई भी अपनी मर्जी से काम नहीं करेगा।” पारसनाथ शब्दों को चबाकर सपाट खुरदरे स्वर में कह उठा-“जो भी काम किया जायेगा वो मिल-मिलाकर किया जायेगा। हम में से किसी को भी ये बात नहीं भूलनी चाहिये कि इस वक्त हम शैतान की धरती पर हैं। यहां शैतान की ही चल सकती है। क्योंकि वो यहां का मालिक है। वो यकीनन इस ताक में होगा कि हमें खत्म कर सके। दोनों हमारा एक साथ रहना जरूरी है। अगर हम अलग-अलग हो गये। कोई यहां रहा, कोई इमारत में चला गया तो जुदा-जुदा होने में हमारी शक्ति कम हो जायेगी। ऐसे में हम जो भी काम करेंगे। सबकी सहमति के साथ, एक साथ रहकर किया जायेगा।”
“तो क्या किया जाये?” महाजन होंठ भींचकर कह उठा।
उनकी निगाहें काली इमारत पर जा टिकीं।
“हम सबको उस इमारत में चलना चाहिये।” जगमोहन कह उठा-“अगर शैतानी शक्तियों वाले हथियार हमारे हाथ लग गये तो हम खुद को शैतान और उसके आदमियों के हाथों से बचाने की चेष्टा ही नहीं, बल्कि उन्हें खत्म भी करने की कोशिश कर सकेंगे।”
“ये काम इतना आसान नहीं है।” महाजन ने जगमोहन को देखा-“काली इमारत के भीतर पहरेदार भी हैं। वो हमारे हाथों से या सामान्य ढंग से नहीं मरेंगे। उन्हें खत्म करने के लिये शैतानी हथियार की जरूरत पड़ेगी।”
“मेरे पास प्रेतनी चंदा का शैतानी शक्तियों वाला खंजर है।” मोना चौधरी कह उठी-“उसमें शक्तिशाली शैतानी शक्तियां हैं।”
“माना! लेकिन हमारे पास एक ही हथियार है। एक हथियार किस-किसका मुकाबला करेगा।” सोहनलाल ने कहा-“दूसरों पर जब वहां के पहरेदार हमला करेंगे तो वो मारा जायेगा। बेशक बाद में पहरेदार खत्म हो जायें, लेकिन हमारे साथी भी तो मरेंगे।”
एकाएक किसी ने जवाब नहीं दिया।
मोना चौधरी, ने खंजर निकालकर, उसे देखा। चेहरे पर कठोरता आ ठहरी थी
“तुम लोग बाहर रहोगे। मैं काली इमारत के भीतर जाकर, पहरेदारों को खत्म करूंगी।”
“यो तो थारो वास्ते खतरनाक बातो हुई। का मालूम वां पे कित्ते पहरेदारो हौवें। वो थारो को ‘वड’ दयो मोना चौधरी-।”
“ये खतरा तो उठाना ही पड़ेगा।” मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा।
“फिर भी। तुम्हारा अकेले जाना ठीक नहीं।” जगमोहन ने शब्दों को चबाकर कहा।
“नीलू-।” राधा धीमे से महाजन से बोली-“माना कि तू बहादुर है। तू बड़े-बड़े शैतानों को मार सकता है। लेकिन बुरे लोगों के मुंह लगने का क्या फायदा। तू मत जाना मोना चौधरी के साथ-।”
“चुप कर-।” महाजन दांत भींचकर धीमे स्वर में गुर्राया।
“मैंने गलत कह दिया क्या?” राधा के होंठों से हड़बड़ाया-सा स्वर निकला।
महाजन उसे घूरता रहा।
“ठीक है। मैं कुछ नहीं कहती।” राधा ने जल्दी से कहा-“मुंह
बंद रखूँगी।”
तभी जगमोहन पुनः बोला।
“मोना चौधरी के साथ मैं भीतर जाऊंगा।”
“तुम-।” महाजन ने कहना चाहा।
“मैं जाऊंगा मोना चौधरी के साथ काली इमारत के भीतर-।”
जगमोहन ने दृढ़ स्वर में कहते हुए महाजन को देखा।
महाजन के चेहरे पर असहमति के भाव उभरे।
“किसी को तो जाना ही है।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा-“ऐसे में ये मुद्दा उठाना ठीक नहीं कि कौन जायेगा। जो भी साथ चला जाये।”
“छोरे-!”
“बाप-!”
“अंम काली इमारत के बार ही रहो हो। बार जो भी खतरो आवे, अंम उसो को वडो हो।”
“आपुन तेरे साथ होएला बाप-।”
“आओ।” पारसनाथ ने सामने नजर आ रही काली इमारत की तरफ बढ़ते हुए कहा-“उधर चलें।”
सब उधर बढ़ गये।
तीसरे ही मिनट वो इमारत के बाहर गेट के पास पहुंच गये।
लोहे का विशाल और ऊंचा गेट था वो। वहां पर कोई पहरेदार न दिखा। भीतर झांका तो वहां भी कोई नजर नहीं आया। भीतर सारी जगह, सारे रास्ते साफ-सुथरे नजर आ रहे थे।
“इधर तो कोई भी नेई दिखेला बाप-।”
“यां-वां छिप्पे हो। बोत चालाक हौवे शैतान की औलादो-। हरामीपन दिखाते हो-।”
शैतानी शक्तियों से भरा खंजर मोना चौधरी के हाथ में दबा था।
मोना चौधरी ने वहां से नजरें हटाकर सबको बारी-बारी देखा।
“आओ।” मोना चौधरी की निगाह जगमोहन पर जा टिकी दांत भींचे जगमोहन आगे बढ़ा और गेट के भीतर लगी कुंडी को हाथ डालकर भीतर से खोलने लगा।
“ध्यान रखना बेबी।” महाजन ने बेचैन स्वर में कहा।
“कहो तो मैं भी साथ चलूं-।” पारसनाथ ने खुरदरे स्वर में कहा।
“नहीं। जितने ज्यादा मेरे साथ जायेंगे। खतरा उतना ज्यादा होगा।”
“तम्भी तो हमने पैले ही बाहरो रहनो का प्रोग्राम बना लयो।”
“आपुन भी तो इधर ही टिकेला बाप-।”
“हम बाहर का ध्यान रखेंगे।” राधा ने कहा-“शैतान ने आकर भीतर जाने की कोशिश की तो हम उसे गर्दन से पकड़ लेंगे।”
तभी मध्यम से सायरन की आवाजें होने लगीं।
ऐसा तब हुआ जब जगमोहन ने कुंडा हटाकर, गेट के पल्ले को धकेल कर खोला। मध्यम से सायरन के साथ ही काली इमारत के कई हिस्सों में लगी लाईटें जल-बुझने लगीं।
“यो का हुओ छोरे-।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।
“सिग्नल बजेला है बाप-। गेट खुएला और ये बजेला।”
सब की निगाह भीतर तरफ फिर रही थी।
मध्यम सा सायरन और बल्बों का जलना-बुझना जारी था।
तभी इमारत के मुख्य द्वार से कोई निकला और इस तरफ आने लगा। उसने काले कपड़े पहने हुए थे। चार फीट से ज्यादा की लम्बाई नहीं थी।
“ये तो ठिगने जैसा लग रहा है नीलू-।” राधा के होंठों से निकला।
“ठिगना कौन?” सोहनलाल के होंठ सिकुड़े-“मोगा?”
“हां।”
“उसे तो मुद्रानाथ ने अपनी शक्तियों से भरी तलवार के दम पर जलाकर राख कर दिया था।” पारसनाथ ने कहा। मोगा और इन अन्य बातों को जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित उपन्यास (1) पहली चोट, (2) दूसरी चोट।
“मोगा ही है ये-।” मोना चौधरी दांत भींचे कह उठी।
“ये जिन्दा कैसे हो गया?”
तब तक मोगा पास पहुंच चुका था और आदत के मुताबिक हंस कर बोला।
“स्वागत है आप सबका। एक बार पहले भी मैंने आप सब लोगों का स्वागत किया था, जब आप लोग शैतान के अवतार की धरती पर पहुंचे थे। अब फिर स्वागत करता हूं शैतान की धरती पर-।”
“ठिगने तू-।” राधा ने खा जाने वाले स्वर में कहा-“तू मर गया था फिर जिन्दा कैसे हो गया?”
“शैतान के आशीर्वाद से। मैं शैतानी धर्म-कर्म करने में कभी भी पीछे नहीं हटा। शैतान की हर आज्ञा का पालन किया। कोई भी काम अधूरा नहीं छोड़ा। मेरी मौत मुद्रानाथ की पवित्र शक्तियों से भरी तलवार से हुई थी। यही वजह थी कि मेरी आत्मा शैतान से दूर कहीं और पहुंचकर, पुनः किसी शरीर में प्रवेश कर जाती। परन्तु शैतान मेरे जैसा सेवक खोना नहीं चाहता था। उसने पहले वाले शरीर का निर्माण सेकेंडों में किया और मेरी आत्मा को उसमें डाल दिया। ये शैतान की महानता है कि उसने पुनः मुझे अपनी सेवा में ले लिया।”
“यहां पर क्या कर रहा है?” सोहनलाल ने पूछा।
“पहरेदारी-।” मोगा हंसा और सबको देखते हुए बोला-“नगीना कहां है?”
“तेरे को क्या?” राधा ने तीखे स्वर में कहा।
“यूं ही पूछ रहा था। बहुत हिम्मत वाली है। तलवार का इस्तेमाल करने में उसका मुकाबला नहीं।” मोगा के होंठों पर मुस्कान फैली हुई थी-“तलवार से उसने बहुत अच्छे ढंग से प्रेतनी तवाली का मुकाबला किया और उसकी टांग काट दी। अगर उसकी टांग नहीं कटती तो उसने तुम सबको खत्म कर देना था।” प्रेतनी तवाली के बारे में जानने के लिये पढ़ें “दूसरी चोट”।
“तू अपनी सोच ठिगने। शैतान तुझे कब तक बार-बार जन्म देता रहेगा।” राधा हाथ नचाकर कह उठी।
“शैतान महान है।”
“ठिगने को तो हम भी महान, ही लगेंगे। क्योंकि तेरे से ऊंचे हैं हम। इस बार तू फिर मरेगा।”
मोगा, राधा को देखते हुए मुस्करा रहा था।
“तुम्हारी बात का मैंने कभी बुरा नहीं माना।” मोगा बोला।
“बड़ी बहनों की बात का बुरा नहीं मानते।”
आदत से मजबूर मोगा हंस पड़ा।
“छोरे! यो तो शैतानों के शार्गिदों को भाई मानो हो।” बांकेलाल राठौर बोला।
“इस पर शैतान का असर शुरू होएला बाप। आपुन...।”
तभी मोना चौधरी मोगा से बोली।
“हम भीतर आना चाहते हैं।”
“स्वागत-।” मोगा ने कहा और मुस्कराकर सिर झुकाया-“आईये-।”
पहले जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया और फिर मोना चौधरी ने। कुछ कदमों बाद दोनों ठिठक गये।
मोगा ने अन्यों को देखा।
“आप लोग भी आईये।”
“अंम या पे ई अच्छो लगो हो। दूसरो भी न जायो। पैले तम मेहमानों की खातिरो करो।”
“जैसी आप सबकी मर्जी-।” मोगा ने कहा और आगे बढ़ता हुआ मोना चौधरी और जगमोहन से बोला-“आईये।”
मोगा उन्हें लेकर काली इमारत के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गया।
मोना चौधरी के हाथ में शैतानी शक्तियों से भरा खंजर दबा था।
“शैतान के अवतार की नगरी में काम करने से ज्यादा मजा आता था। वहां भागदौड़ ज्यादा थी। आजादी थी।” मोगा मुस्कराकर कह उठा-“यहां वो चीजें नहीं हैं। शैतान को आसमान पर हर काम कायदे से करना पड़ता है। कई-कई दिन तक लगातार करना पड़ता है। आराम करने की मनाही होती है।”
“शैतान से कहो कि यहां भी होली-दीवाली की छुट्टी कर दिया करे। मेरी सलाह मानों तो नारेबाजी शुरू कर दो। आराम करने का मौका मिल जायेगा।” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा।
“अपनी दुनिया के रंग-ढंग बता रहे हो।”
“समझा रहा हूं।”
“यहां कोई काम से जी नहीं चुराता। जो ऐसा करता है, शैतान उसकी आत्मा को हमेशा के लिये आग में डाल देता है।” मोगा बोला।
“मैं तो तेरे भले की बात कर रहा था-।”
मोगा ने जगमोहन और मोना चौधरी को शांत निगाहों से देखा।
“यहां क्यों आये हो?”
“काम है।”
“मुझे बताओ।”
“हमारी सहायता करने का इरादा है।”
“नहीं।” मोगा ने इन्कार में सिर हिलाया-“मैं जो भी काम करूंगा, शैतान के हक में करूंगा।”
“पहले तू शैतान के अवतार के हक में काम करता था।” मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा-“उसका अन्जाम देखा।”
“शैतान महान है। शैतान का अंजाम कभी भी बुरा नहीं होता।” एकाएक मोगा हंस कर कह उठा।
वे इमारत के मुख्य दरवाजे के पास पहुंचकर ठिठके।
“इस इमारत के भीतर क्या है?” मोना चौधरी ने कहा।
“मिन्नो! यहां शैतानी शक्तियों से भरे हथियार हैं। शैतान के बड़े ओहदेदारों के आदेश पर ये हथियार दिए जाते हैं।”
“मतलब कि तुम लोगों को हथियार देने का आदेश न हो तो नहीं देते-।”
“नहीं।”
“आदेश के बारे में तुम्हें पता कैसे चलता है?”
“पता चल जाता है।”
“तुम जानते हो हम यहां आये हैं?” जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा।
“खबर है।” हंसा मोगा-“तुम दोनों यहां से शैतानी शक्तियों से भरे हथियार लेने आये हो।”
“ये जानते हुए भी तुम हमें भीतर ले जा रहे हो।”
“हां। मेहमानों का हम स्वागत करते हैं। जब तुम लोग हथियार पाने की चेष्टा करोगे, तब हम रोकेंगे।”
“हम-?”
“भीतर चलो। जवाब खुद ही मिल जायेगा।”
मोना चौधरी और जगमोहन की निगाहें मिलीं।
“मिन्नो! तुमने प्रेतनी चंदा का खंजर ले रखा है। इसी से शैतान के अवतार को खत्म किया। प्रेतनी चंदा की जबर्दस्त शैतानी शक्तियां मौजूद हैं खंजर में।” मोगा खंजर पर निगाह मारने के बाद, मोना चौधरी को देखने लगा-“एक बढ़िया खबर खासतौर से तुम्हें देना चाहता हूं मिन्नो।”
“बढ़िया खबर और तुम्हारे मुंह से-”। जगमोहन जहरीले स्वर में कह उठा।
“गुस्सा क्यों करता है जग्गू-।” मोगा हंसा फिर पुनः मोना चौधरी को देखा-“बढ़िया खबर दूं मिन्नो।”
“बोल-बोल-।”
“शैतान के अवतार और प्रेतनी चंदा को तुमने खत्म कर दिया
था। शैतान की किलेबंदी को तुमने तगड़ा झटका दिया, इन दोनों को खत्म करके।” कहकर मोगा हंसा-“लेकिन शैतान के अवतार और प्रेतनी चंदा को शैतान ने पुनः जीवन दे दिया है।”
“क्या?” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी-“द्रोणा फिर से जिन्दा हो गया?”
“हां और प्रेतनी चंदा भी-।” मोगा पुनः हंसा।
मोना चौधरी और जगमोहन की नजरें मिलीं।
“उन्हें जीवन क्यों दिया?”
“अपने मन को समझाने के लिये शैतान ने बहाना बनाया कि तुम सब मनुष्यों को खत्म करने के लिये उन दोनों को पुनः जीवन दान दिया गया है। और-।”
“शैतान को बहाने की क्या जरूरत है किसी को जीवन दान देने के लिये। वो तो मालिक है।” जगमोहन ने कहा।
“जग्गू-।” मोगा के स्वर में गम्भीरता आ गई-“शैतान मालिक है, इसमें कोई शक नहीं। परन्तु कोई उसके भी ऊपर है। वे शैतान से जगमोहन के कर्मों का हिसाब लेती-।”
“शैतान से भी ऊपर?”
“हां। महामाया है वो। शैतान को उसकी माननी पड़ती है। कोई और भी हैं, जिसे महामाया अपने कर्मों का हिसाब देती है। बहुत कुछ है आगे। मुझे भी पूरा ज्ञान नहीं-।” मोगा गम्भीर था।
“ओह-!”
“शैतान के अवतार और प्रेतनी चंदा को क्यों पुनः जीवन दिया, महामाया को वजह बतानी जरूरी है शैतान के लिए। और शैतान ने वजह ये रखी कि धरती के मनुष्यों ने इन दोनों को खत्म किया है। इसलिये वो इन्हीं के हाथों उन मनुष्यों को खत्म कराना चाहते हैं।” मोगा ने दोनों को देखा-“वो दोनों अपनी शक्तियों के साथ पुनः जिन्दा हो चुके हैं। उनका पहला लक्ष्य तुम लोगों को खत्म करना है।”
जगमोहन ने आंखें सिकोड़कर मोना चौधरी को देखा।
“इसका मतलब भारी मुसीबत आने वाली है।”
“द्रोणा और प्रेतनी चंदा के शैतानी वारों से बचने के लिये हमें शैतानी शक्तियों वाले हथियारों की सख्त जरूरत है।” मोना
चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी-“और ऐसे हथियार हमें यहां, इस इमारत में मिल सकते हैं।”
“हां-।” जगमोहन के दांत भिंच गये।
मोगा के चेहरे पर गहरी मुस्कान फैल गई।
“अवश्य। यहां पर तो शैतानी हथियारों का जखीरा जमा है। ऐसी-ऐसी शैतानी शक्तियों से भरे हथियार हैं कि बहुत भारी तबाही फैला देंगे। उन हथियारों से शैतान के अवतार और प्रेतनी चंदा का मुकाबला आसानी से किया जा सकता है। आसानी से तुम लोग खुद को शैतानी वारों से बचा लोगे। लेकिन असम्भव है उन शैतानी हथियारों तक पहुंच पाना।”
“क्यों?” जगमोहन के दांत भिंचे।
“क्योंकि हम पहरेदारी कर रहे हैं।” मोगा हंस पड़ा-“आओ बाकी पहरेदारों से भी मुलाकात करवाता हूं। उनमें से किसी न किसी को तो जानते ही होंगे।”
“हम जानते होंगे?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
“आओ। भीतर तो आओ।” कहने के साथ ही मोगा भीतर प्रवेश कर गया।
मोना चौधरी और जगमोहन की नजरें मिलीं।
“मोगा एक नम्बर का चालाक और खतरनाक है।” जगमोहन दांत भींचकर कह उठा-“मेरे ख्याल में अगर इसे खत्म कर दिया जाये तो आने वाली मुसीबतें हमारे लिये कम हो सकती हैं। क्योंकि वो हमें पहले से जानता-।”
“भीतर चलते हैं।” मोना चौधरी खतरनाक स्वर में कह उठी-“जैसे हालात आयेंगे वैसे ही करेंगे। मौका मिला तो मैं मोगा को इस खंजर से खत्म करूंगी, परन्तु हमारे लिये सबसे अहम काम है शैतानी शक्तियों को हासिल करना, ताकि द्रोणा और प्रेतनी चंदा का मुकाबला किया जा सके। वरना वो हम सबको खत्म कर देंगे।”
जगमोहन की आंखों में खतरनाक भाव मचल रहे थे।
“मुझे खत्म करने की योजना पर बातचीत हो रही है।” मोगा की खिलखिलाहट की भारी आवाज उनके कानों में पड़ी।
दोनों चौंक कर पलटे।
पांच कदमों के फासले पर खड़ा मोगा, मुस्करा रहा था।
“कोई बात नहीं। अभी तो जाने क्या-क्या होगा।” मोगा कह उठा-“भविष्य में होने वाली घटनाओं की खबर मुझे नहीं रहती। खैर छोड़ो-चलो भीतर। दरवाजे पर ज्यादा देर खड़े रहना ठीक नहीं। हमें सेवा का मौका दो। एक बात का ध्यान रखना कि जब तक तुम दोनों हमें कुछ नहीं कहोगे। हम भी कुछ नहीं कहेंगे। बेशक वापस जाना चाहो तो जा सकते हो। हम रोकेंगे नहीं। कोई गड़बड़ की तो हम छोड़ने वाले नहीं।”
“धमकी दे रहे हो।” जगमोहन गुर्रा उठा।
“नहीं। समझा रहा हूं। बता रहा हूं। आओ भीतर चलें।”
मोगा आगे और मोना चौधरी, जगमोहन उसके पीछे-पीछे भीतर प्रवेश कर गये।
☐☐☐
दरवाजे के भीतर जाते ही उन्होंने खुद को बेहद खूबसूरत कमरे
में पाया। वहां पर अधिकतर चीजें काले रंग की ही थीं। स्याह के अलावा दूसरा रंग, जहां बहुत ही आवश्यक था, वहीं था।
कमरे में एक तरफ सोफा चेयर सजी हुई थी। एक रास्ता किसी तरफ जा रहा था और कमरे के बीचो-बीच घुमावदार सीढ़ियां थीं, जो ऊपर कमरे की छत के पार जा रही थीं।
मोना चौधरी और जगमोहन की निगाहें हर तरफ घूमी।
“यहाँ तो और कोई भी नहीं है।” जगमोहन की नजरें मोगा पर टिकीं।
“परहेदारों की बात कर रहा है जग्गू-।” मोगा मुस्कराया।
“हां।”
“पहरेदार तो हैं, लेकिन तेरे को नजर नहीं आयेंगे।” मोगा हंस पड़ा।
“क्या मतलब?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
“छोड़ो इन बातों को। बताओ मैं तुम्हारी क्या सेवा करूं? खान-पीना हो तो, बता दो। मैं सेवा-सत्कार के मामले में दोस्तों और दुश्मनों में फर्क नहीं रखता। जो कहोगे वहीं सेवा करूंगा।”
“क्या सेवा करोगे?”
“तुम्हारी सेवा में क्या-क्या आता है?”
जगमोहन ने पूछा।
“सब कुछ, जो मेरी पहुंच में हो और उससे शैतान की दुनिया को नुकसान न हो।”
“फिर तो तुम हमें शैतानी शक्तियों से भरे शैतानी हथियार दिखा सकते हो। जो इस इमारत में है।” मोना चौधरी कह उठी।
“अवश्य-।” मोगा ने मुस्कराहट भरे अन्दाज में सिर हिलाया-“उन हथियारों को दिखाना मेरे लिये मामूली काम है। मेरे ऐसा करने से शैतान की दुनिया को कोई नुकसान नहीं। कमरे के बीचो-बीच जो सीढ़ियां हैं, उन्हें चढ़कर ऊपर पहुंचो।”
“वहां क्या है?” मोना चौधरी ने उसे देखा।
“ज्यादा सवाल मत करो। तुम दोनों को वहां तक पहुंचा रहा हूं, जहां शैतानी हथियार हैं।” मोगा ने कहा।
तभी जगमोहन दांत भींचकर कह उठा।
“मोगा बहुत चालाक है। जो करेगा शैतान के हक में करेगा। ये इतनी आसानी से हमें शैतानी शक्तियों वाले हथियार क्यों दिखा रहा है।”
मोना चौधरी की नजरें मोगा पर टिकी थीं।
“तुम ठीक कह रहे हो जगमोहन। ये कभी भी हमारे हक में अच्छा नहीं सोच सकता। हम इसे पहले भी भुगत चुके हैं। ऐसे में एक बार फिर देख लेते हैं कि ये क्या करना चाहता है हमारे साथ-।”
“शक में मत पड़ो।” मोगा मुस्कराकर बोला-“मैं तुम लोगों को सच में शैतानी शक्तियों वाले हथियारों के पास ले जा रहा हूं।”
“मुझे विश्वास है कि तुम ठीक कह रहे हो। आओ जगमोहन।” मोना चौधरी खंजर हाथ में थामे सीढ़ियों की तरफ बढ़ी।
जगमोहन ने मोगा को घूरा फिर मोना चौधरी के साथ चल पड़ा।
मोगा अपनी जगह पर खड़ा शांत मुस्कान के साथ उन्हें देखने लगा।
मोना चौधरी और जगमोहन ने घुमावदार सीढ़ियों पर पांव रखे और ऊपर चढ़ने लगे।
“तुम नहीं आओगे?” सीढ़ियां चढ़ते जगमोहन ने मोगा को देखा।
“मिनट से भी कम का वक्त लगेगा तुम दोनों को वहां तक पहुंचने में और मैं तुम्हें वहीं मौजूद मिलूंगा।”
दोनों सीढ़ियां चढ़ते जा रहे थे।
खंजर को सावधानी और सख्ती से थामे मोना चौधरी आगे थी।
सीढ़ियां कमरे की छत से होती हुई ऊपर चली गईं। तब उन्होंने खुद को तीव्र रोशनी में चमकते कमरे में पाया। रोशनी इतनी तेज थी कि रह-रहकर आंखों को बंद करना पड़ रहा था। सामने ही टेबल पर छोटे-छोटे डिब्बे पड़े थे। उनके मुंह खुले थे और कई डिब्बों से चमकती रोशनी फूट रही थी।
“डिब्बों में से किरणों जैसी रोशनी फूट रही है?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
दोनों फौरन टेबल के पास पहुंचे और डिब्बों के भीतर देखा।
डिब्बों में चमकते मोती पड़े हुए थे। हर डिब्बे में अलग-अलग रंग के मोती थे। किसी में नीला तो किसी में पीला। हरा-लाल-गुलाबी, भूरा, काला, चमकता तो कोई दूधिया। किसी डिब्बे में सोने की चमक जैसा मोती था तो किसी में चांदी की चमक जैसा मोती था।
इस तरह के मोतियों को देखकर दोनों के चेहरों पर अजीब-से भाव आ ठहरे थे।
“ये सब क्या है। कैसे मोती हैं। कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
“मैं खुद हैरान हूं कि ये मोती...।” कहते-कहते जगमोहन ठिठका फिर नीचे झुका और डिब्बों के बाहरी हिस्से को देखने लगा। वहां लिख हुआ था:
इस डिब्बे के मोतियों में सामने वाले का दिमाग घुमाने के लिये, शैतानी ताकत मौजूद है।
दूसरे पर लिखा था-इस डिब्बे में मौजूद मोती में सामने वाले को बेहोश करने की ताकत है।
तीसरे पर लिखा था-इस डिब्बे में रखे मोतियों में से एक मोती कपड़ों में रख लिया जाये तो कोई भी बाहरी शक्ति आसानी से अपने इरादे में सफल नहीं हो सकेगी।
चौथे पर-इस डिब्बे का मोती अगर मुंह से निगल लिया जाये तो घायल होने और खून बह जाने की स्थिति में भी, आत्मा शरीर का साथ नहीं छोड़ेगी।
इस तरह हर डिब्बे पर, डिब्बे में मौजूद मोतियों के बारे में जानकारी दी गई थी।
“यहां तो बहुत करामाती मोती हैं।” जगमोहन के होंठों से निकला।
“सच में।” मोना चौधरी मोतियों वाले डिब्बों पर नजरें घुमाती
कह उठी-“इन मोतियों का इस्तेमाल करके शैतानी ताकतों से खुद को बचाया जा सकता है लेकिन सामने वाले पर वार करने के लिये यहां पर कोई हथियार नहीं है।”
दोनों की नजरें पुनः कमरे में घूमी। कोई हथियार नहीं था।
“हथियार भी है।” मोगा का स्वर उनके कानों में पड़ा।
दोनों की निगाह घूमी।
मोगा एक तरफ खड़ा था।
“मैं अभी तुम दोनों को हथियारों तक पहुंचने का रास्ता बताता हूँ।” मोगा के चेहरे पर मुस्कान थी-“क्या तुम लोग डिब्बों में से मोतियों को नहीं लोगे। इन मोतियों के शैतानी गुण जान ही चुके हो। फायदा नहीं उठाओगे इनका-।”
मोना चौधरी और जगमोहन की नजरें मिलीं।
“हम मोती लेंगे तो तुम हमें रोकोगे नहीं?” मोना चौधरी ने पूछा।
“नहीं। मैं नहीं रोकूँगा।”
“इन मोतियों का इस्तेमाल कैसे करना है?”
“जिस गुण वाला मोती चाहिये, वो डिब्बे में से निकाल कर अपनी जेब में रख लो। मोती का शैतानी असर तुम पर हो जायेगा।”
ये सुनते ही जगमोहन आगे बढ़ा और हर डिब्बे में से एक मोती निकालता और अपनी जेब में डाल लेता। मोना चौधरी ने मोगा को देखा फिर वो भी मोती जेब में डालते हुए कह उठी।
“मोगा, तुम इतने शरीफ तो नहीं कि शैतानी शक्तियों वाले मोती इतनी आसानी से हमें लेने दो।”
“ठीक कहती हो मिन्नो।” मोगा मुस्करा पड़ा-“पहले मोतियों
को ले लो। फिर मेरी सुनना।”
मिनट भर में ही मोना चौधरी और जगमोहन हर डिब्बे का एक-एक मोती अपनी जेब में डाल चुके थे।
“मोना चौधरी-!” जगमोहन कह उठा-“बाहर हमारे साथी मौजूद हैं। उनके लिये भी मोती ले लेते हैं।”
“जग्गू-!” मोगा कह उठा-“जो यहां आकर खुद मोती लेगा, मोती का असर उसे ही मिल सकेगा। तुम यहां से मोती उठाकर किसी को देते हो तो उसके लिये वो साधारण मोती बन जायेगा।”
जगमोहन होंठ भींचकर रह गया।
“तुमने हमें मोती लेने से रोका क्यों नहीं?” मोना चौधरी ने पूछा।
“क्योंकि जब तक तुम दोनों यहां हो, इन मोतियों के गुणों का फायदा नहीं उठा सकते। इन मोतियों में मौजूद शैतानी माया इस काली इमारत से बाहर जाकर ही अपना असर दिखाना शुरू करती है।”
“तो ये बात है।” जगमोहन कड़वे स्वर में कह उठा।
“कोई बात नहीं।” मोना चौधरी चुभते स्वर में कह उठी-“यहां से बाहर जाकर ही-।”
“कोशिश करना कि यहां से बाहर निकल सको।” मोगा हंस
पड़ा।
मोना चौधरी और जगमोहन की नजरें मिलीं।
“मैंने पहले ही कहा था कि ये कोई हरामीपना जरूर दिखाएगा।” जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली।
“देख लेंगे।” मोना चौधरी की आंखों में वहशी चमक उभर आई-“शैतानी शक्तियों वाले हथियार कहां हैं?”
“उधर देखो। यो दरवाजा। उस दरवाजे में चले जाओ। वहां सब तरह के हथियार हैं।” मोगा ने कहा।
चंद पलों के लिये वहां खामोशी ही रही।
“जगमोहन!” मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा-“मालूम नहीं
आने वाले वक्त में क्या होगा जैसा कि मोगा ने कहा है कि अब
यहां से बाहर निकलना आसान नहीं। यकीनन वो सच कह रहा
होगा। लेकिन यहां से जाने की चेष्टा तो करनी ही है। शैतानी शक्तियों वाले हथियार ले लेते हैं। अगर बाहर निकल गये तो उस स्थिति में ये हथियार बहुत काम आयेंगे।”
जगमोहन के होंठ भिंच गये। उसने मोगा को देखा।
“तुमने इशारा दिया कि हम यहां से बाहर नहीं निकल सकेंगे।” जगमोहन बोला।
“हां।”
“हमारे साथी ज्यादा देर इन्तजार नहीं करेंगे। वो भीतर आ जायेंगे।” जगमोहन के माथे पर बल भी उभरे।
अपनी आदत के मुताबिक मोगा हंसा।
“वो भीतर नहीं आ सकेंगे। मैंने रास्ता बंद कर दिया है अपनी शक्ति से। गेट बंद हो चुका है। वो भीतर नहीं आ पायेंगे। गेट नहीं खोल सकेंगे। फलांग नहीं लगा सकेंगे। फलांगने की चेष्टा करेंगे तो ऊपर मेरी शैतानी शक्ति मौजूद है। वो उन्हें फलांगने नहीं देगी।” मोगा ने हंसी रोकते हुए कहा।
“ये तो अच्छी बात बताई तुमने।” जगमोहन के चेहरे पर मुस्कान उभरी-“मुझे इस बात की चिन्ता थी कि वो सब भीतर
आ गये तो फंस जायेंगे। लेकिन अब मैं निश्चिन्त हूं।”
“आओ जगमोहन-।” कहने के साथ ही मोना चौधरी दरवाजे की तरफ बढ़ी।
जगमोहन साथ हो गया।
दोनों दूसरे कमरे में प्रवेश करते ही वे ठिठके।
ये सामान्य साईज का कमरा था और दीवारों पर तरह-तरह के हथियार लगा रखे थे। हर हथियार के साथ उसके गुण भी साथ ही लिखे हुए थे। दोनों ठिठके से हथियारों पर निगाह दौड़ाते रहे। हथियारों के नाम पर तलवारें, कटार, खंजर, धनुष-बाण, चाकू, भाले और इसी ही तरह के अन्य हथियार थे।
“मैं अपनी पसन्द के हथियार ले रहा हूं।” कहने के साथ ही जगमोहन आगे बढ़ गया-।
मोना चौधरी वहीं खड़ी रही। एकाएक पलट कर देखा तो दरवाजे के बीचो-बीच शांत सा मोगा खड़ा था।
दोनों की नजरें मिलीं।
मोगा की आंखों में शैतानी चमक थी।
“आगे बढ़ मिन्नो। हथियार ले। शैतानी शक्तियों से भरे हथियार शैतान की जमीन पर तेरे को सुरक्षित करेंगे।” मोगा मुस्कराकर मीठे स्वर में कह उठा-“शैतान के अवतार से अभी तूने मुकाबला करना है। प्रेतनी चंदा तेरे को नहीं छोड़ेगी। ये भी हो सकता है कि शैतान या महामाया क्रोध में आकर अपनी कोई शक्ति तुम लोगों पर लगा दे। तब इन शैतानी ताकतों से भरे हथियारों की तुम लोगों की बहुत जरूरत पड़ेगी। ये मौका है ले लो।”
“तुम तो कहते हो कि हम यहां से बाहर नहीं निकल सकेंगे।” “सो तो है।”
“फिर हमें हथियारों का क्या करना। वैसे भी मेरे पास प्रेतनी चंदा का शैतानी शक्तियों से भरा खंजर है। जो ताकत इन शैतानी हथियारों में है। उससे कहीं ज्यादा ताकत प्रेतनी चंदा के खंजर में है।”
“अवश्य है परन्तु-।”
“तुम्हें मेरी इतनी फिक्र क्यों हो रही है मोगा।” मोना चौधरी व्यंग्य से कह उठी।
“मुझे तो सबकी फिक्र रहती है। किसी को जिन्दा रखना होता है तो किसी को मौत देनी होती है। हर तरह की परेशानियां हमें घेरे रहती हैं।” मोगा ने गहरी सांस ली-“शैतान की सेवा में रहकर, कभी भी आराम नहीं होता। कर्म ही हमारा धर्म है।” जगमोहन ने अपनी पसंद के हथियारों में तलवार और खंजर के अलावा एक कटार ले ली। कटार को उसने कमर में फंसा लिया। खंजर को जेब में डाल लिया। तलवार हाथ में थाम ली। तीनों हथियारों में शैतानी शक्तियां कौन-सी हैं और उनसे क्या-क्या काम लिया जा सकता है? ये लिखा पढ़ लिया था जगमोहन ने। इसके बाद जगमोहन मोना चौधरी की तरफ पलटने को हुआ कि ठिठक गया।
उसकी निगाह एक टेबल पर जा टिकी। जहां छोटी-सी कटोरी में मोती जैसा छोटा-सा गोल चमकता हीरा रख हुआ था। जगमोहन के होंठ सिकुड़े। वो पास जा पहुंचा। कटोरी में पड़े हीरे को देखा फिर पास ही रखे कागज को देखा, जिस पर लिखा था-सर्वविदित है कि हीरा निगलने से मौत हो जाती है, परन्तु ये हीरा निगलने पर आप अदृश्य हो जायेंगे। कोई आपको देख नहीं सकेगा। जब आप चाहें कि सब सामान्य रूप से आपको देख सकें तो हीरे को याद कीजिये। हीरे का नाम गुल्लू है। गुल्लू हीरा कहिये तो ये आपके गले से निकलकर, वापस होंठों में आ फंसेगा और आसपास मौजूद लोगों को आप सामान्य ढंग से दिखने लगेंगे।
जगमोहन ने बिना पलों की देरी के वो हीरा उठाया और जेब
में रख लिया।
मोना चौधरी ने शैतानी शक्तियों से भरी एक तलवार दीवार
पर से उतारी और अपनी कमर से बांध ली। शैतानी हथियारों और अपने बचाव की चीजों को लेकर दोनों फारिग हो गये।
मोगा अभी तक भीतरी दरवाजे पर ही खड़ा था।
“मिल गई फुर्सत।” मोगा मुस्कराया-“अब आगे का क्या प्रोग्राम है?”
“यहां के बाकी पहरेदार कहां हैं। तुमने कहा था कि उनसे हमारी मुलाकात करवाओगे।” मोना चौधरी ने कहा।
“यहां का पहरेदार मैं ही हूं। किसी दूसरे पहरेदार की जरूरत ही क्या है।” मोगा हंसा।
“हम यहां से बाहर जाना चाहते हैं।” जगमोहन बोला।
“नहीं जा सकते।” मोगा हंसा-“तुम दोनों को यहां शैतानी दुनिया के लोगों ने, शैतानी हथियार लेने भेजा होता तो मैं बाहर जाने का रास्ता देता। अब तुम दोनों यहीं रहोगे। जब भी चाहो, अपना शरीर त्याग सकते हो। रास्ता मैं बता दूंगा। चाहूं तो मैं तुम दोनों को खत्म कर सकता हूं। परन्तु तुम सब मनुष्यों को खत्म करने का अधिकार शैतान का अवतार और प्रेतनी चंदा ले चुके हैं। ऐसे में मेरे सामने कोई मजबूरी आई तो तभी तुम दोनों की जान लूंगा।”
तभी दांत भींचे मोना चौधरी दरवाजे की तरफ बढ़ी।
दरवाजे के बीचो-बीच खड़ा मोगा पीछे हटकर, दूसरे कमरे में पहुंच गया। मोना चौधरी भी दरवाजा पार करके दूसरे कमरे में पहुंची। जहां टेबल पर मौजूद डिब्बों में मोती थे।
मोगा एक तरफ कोने में खड़ा था। चेहरे पर मुस्कान थी।
जगमोहन भी वहां आ पहुंचा था। हाथ में तलवार थाम रखी थी।
“तलवार को कमर में लटका लो।” मोना चौधरी बोली-“यहां से हासिल शैतानी हथियार यहां पर काम नहीं करेंगे। बाहर निकलने पर यही शैतानी शक्तियां हथियारों में आ पायेंगी।”
जगमोहन दांत भींचकर रह गया।
मोना चौधरी हाथ में खंजर दबाये उस तरफ बढ़ी जहां से वो ऊपर आये थे। सीढ़ियां सामने नजर आ रही थीं। मोना चौधरी ज्यों ही सीढ़ियों के पास पहुंची तो उसके शरीर को ऐसा झटका
लगा जैसे किसी दीवार से जा टकराई हो।
मोगा की हंसी वहां गूंजी।
“अदृश्य दीवार है मिन्नो! तुम इसे पार नहीं कर पाओगी। तुम दोनों के बाहर जाने के रास्ते बंद हो चुके हैं।”
मोना चौधरी ने पलट कर मोगा को घूरा।
“तुमने बंद किए-।” मोना चौधरी गुर्राई।
“हां।”
“हमें रास्ता कैसे मिल पायेगा मोगा?” मोना चौधरी की आवाज में सर्द भाव थे।
“तब, जब मैं ये अदृश्य दीवार हटा दूं।” मोगा मुस्कराया-“या फिर मेरी मौत होते ही, ये अदृश्य दीवार हट जायेगी। तुम लोग जा सकोगे यहां से। आजाद हो जाओगे। परन्तु यहां से मिलने
वाले शैतानी हथियार, यहां पर तुम लोगों को लिये बेकार हैं।”
मोना चौधरी के चेहरे पर मौत से भरी कड़ी मुस्कान उभरी।
“मेरे हाथ में दबे प्रेतनी चंदा के खंजर को तुम भूल गये मोगा।” मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी-“इस खंजर में मौजूद शैतानी शक्तियां आसानी से तुम्हारी जान ले लेंगी।”
“हां। भूला नहीं हूं मैं इस खंजर को।” मोगा ने सिर हिलाकर कहा-“खंजर के प्रति मैं पूरी तरह सतर्क हूं। मुझे पूरा विश्वास है
कि तुम चाहकर भी इस खंजर का इस्तेमाल मुझ पर नहीं कर
पाओगी।”
मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
तभी जगमोहन मुस्करा कर कह उठा।
“इन बातों को छोड़ मोगा। खाने-पीने का इन्तजाम हो सकता है तो बता।”
“क्यों नहीं।” मोगा मुस्कराया-“मेहमानों की सेवा करना मेरे कर्म में आता है।”
“बातें ही करता रहेगा। या खाने का इन्तजाम भी करेगा।”
“खाना हाजिर है। पीछे पलट कर तो देख जग्गू-।”
जगमोहन के साथ-साथ मोना चौधरी भी पलटी।
फर्श पर खूबसूरत बर्तनों में तीन-चार तरह की सब्जियां, चपातियां, अन्य और सामान, खाने के बर्तन और फर्श पर चटाईयां बिछी हुई थीं।
“मुझे विश्वास है कि खाना तुम दोनों को पसन्द आयेगा।” मोगा ने कहा।
“तू बहुत कमीना है।” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा-“फिर भी तेरा खाना हम खा लेते हैं।”
मोगा मुस्करा कर रह गया।
जगमोहन और मोना चौधरी की नजरें मिलीं। वो आगे बढ़े और चटाईयों पर बैठने के पश्चात बर्तनों में खाना डाला और खाने लगे। जगमोहन ने मोगा की तरफ निगाह मारी तो मोगा को वहां नहीं पाया। वो जा चुका था।
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“मोना चौधरी!” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“मोगा इस वक्त हमारे लिये समस्या बन गया है। ज्यादा देर यहां कैद रहे तो हमारा दम घुटने लगेगा। मोगा हमें बाहर जाने का रास्ता कभी नहीं देगा। समझ में नहीं आता कि इसे कैसे खत्म किया जाये?”
“मेरे ख्याल में हम मोगा को खत्म कर सकते हैं।” खाते हुए मोना चौधरी सोचों में डूबी कह उठी।
“कैसे?”
“प्रेतनी चंदा का शैतानी शक्तियों वाला खंजर है मेरे पास। खुद प्रेतनी चंदा ने ये बात मुझसे कहीं थी कि इस खंजर में उसकी ऐसी-ऐसी शक्तियां हैं, कि इन्हें पाने के लिये उसने बहुत मेहनत की।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह रही थी-“मैं नहीं जानती कि खंजर मैं कैसी शक्तियां हैं और इस्तेमाल कैसे की जाती हैं। फिर भी ऐसी शक्तियों को इस्तेमाल कैसे किया जाता है, कुछ-कुछ मालूम है। कोशिश करूंगी कि प्रेतनी चंदा के खंजर में मौजूद शैतानी शक्ति को सफलता से मोगा पर इस्तेमाल कर सकूं।” कहते हुए मोना चौधरी की निगाह कमर में फंसे खंजर पर गई।
“मोगा भी शैतानी शक्तियों का मालिक है। उस पर शायद शैतानी शक्ति का असर न हो।”
“जो शैतानी शक्ति बड़ी होगी वो असर कर जायेगी।” मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा-“इस खंजर से अपना वार करके देखेंगे। अगर हम सफल रहे तो बहुत खुशकिस्मत समझेंगे खुद को।”
जगमोहन का चेहरा गम्भीरता से भर उठा।
“मोगा बहुत चालाक और खतरनाक है।” जगमोहन ने गहरी सांस ली-“इस बार शायद ही खुद को बचा पाये।”
मोना चौधरी धीरे-धीरे खाने में व्यस्त रही। चेहरे पर सोच के भाव नजर आ रहे थे।
उन्होंने खाना समाप्त किया। पानी पिया। वे उठे।
एकाएक जगमोहन उन सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया, जिनसे वे ऊपर आये थे। सीढ़ियों के करीब पहुंचते ही, सीढ़ी पर पांव रखने से पहले ही उसका सिर-छाती किसी अदृश्य चीज से टकराया। जो कि दीवार जैसी महसूस हुई। जगमोहन का आगे बढ़ना थम गया। टकराने की वजह से उसे किसी तरह की चोट या दर्द का एहसास नहीं हुआ। जगमोहन कई पलों तक सीढ़ियों को देखता रहा फिर हाथ आगे किया तो जैसे किसी अदृश्य दीवार से टकरा गया हो। रुक गया हो।
दांत भींचे जगमोहन ने पलटकर मोना चौधरी को देखा।
मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान उभरी।
“तुमने क्या सोचा कि मोगा यहां नहीं हो तो रास्ता खुला मिल जायेगा।” मोना चौधरी कह उठी।
“मैं यहां से बाहर निकलना चाहता हूं।”
“अब तू यहां से बाहर नहीं निकल सकता जग्गू। तुझे और मिन्नो को यहीं मरना होगा। जब भी कैद की इस जिन्दगी से तंग आ जाओ। शरीर छोड़ना चाहो तो बता देना। प्राण त्यागने का रास्ता बता दूंगा।” मोगा का स्वर वहां गूंजा।
दोनों ने देखा। होंठों पर मुस्कान समेटे मोगा एक तरफ खड़ा था।
कई पलों तक मोगा मोना चौधरी और जगमोहन को देखता रहा।
“फंस गये। मौत से छुटकारा मिलेगा, शरीर त्याग कर।”
“मोगा!” जगमोहन गुर्रा उठा-”तू पहले भी बहुत चालाक बनता था। लेकिन मारा गया।”
“उसमें मेरी कोई गलती नहीं थी। मुद्रानाथ ने अपनी पवित्र शक्तियों से मुझे जला दिया था।” मुस्कराकर कह रहा था मोगा-“लेकिन शैतान की जमीन पर अव पवित्र शक्तियां काम नहीं करेंगी।”
मोना चौधरी की खतरनाक निगाह मोगा पर थी। उसने कमर में फंसा खंजर हाथ में लिया।
मोगा की नजरें मोना चौधरी पर टिकी। फिर उसके हाथ में दबे खंजर पर गई।
“क्या सोच रहो हो मिन्नो-।” मोगा बोला।
“तेरे बारे में सोच रही हूं। कैसे मारूं तेरे को-।”
आदत के मुताबिक मोगा हंसा।
“सपनों जैसी बात मत कर मिन्नो।” मोगा ने हंसी रोकते हुए कहा-“तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती-।”
“मैं तेरा बिगाड़ने की नहीं सोच रही-।” मशीनी अंदाज में मोना चौधरी के होंठ हिले।
“तो?”
“तेरे को खत्म करने की सोच रही हूं।” मोना चौधरी ने पूर्ववतः स्वर में कहा।
मोगा हंस पड़ा।
“कोशिश करने में क्या हर्ज। हिम्मत नहीं हारनी चाहिये।”
मोना चौधरी का हाथ खंजर की मूठ पर कस गया।
“हे शैतानी शक्तियों के मालिक, प्रेतनी चंदा के खंजर!” मोना
चौधरी बड़बड़ाई-“यहां से बाहर निकलने के लिये हमारे लिये रास्ता बना। मोगा की अदृश्य दीवार को रास्ते से हटा दे।” मोगा की निगाह मोना चौधरी पर ही थी।
“तुमने होंठों ही होंठों में बड़बड़ाकर क्या कहा?” मोगा के माथे पर बल दिखे।
मोना चौधरी मुस्कराई।
“अपने भगवान को याद कर रही थी-।”
“झूठ कह रही हो तुम।” मोगा ने पूर्ववतः स्वर में कहा।
मोना चौधरी उसी मुस्कराहट भरे अंदाज में सीढ़ियों की तरफ बढ़ी। मोगा की सतर्क और समझने वाली निगाह उस पर थी। जगमोहन के चेहरे पर भी उलझन के निशान नजर आने लगे।
तभी मोना चौधरी के जिस्म को झटका लगा। देखने वालों को स्पष्ट एहसास हुआ कि जैसे वो किसी चीज से टकराकर रुक
गई हो। यानि कि मोगा की अपनी शक्ति द्वारा खड़ी कर रखी दीवार अपनी जगह पर थी।
मोना चौधरी ने जो कोशिश की थी वो सफल नहीं हो सकी थी। प्रेतनी चंदा के शैतानी खंजर में ये शक्ति नहीं थी कि वो अदृश्य चीजों को खत्म कर सके।
मोगा अभी तक मोना चौधरी को घूरे जा रहा था।
“क्या कर रही हो तुम?” मोगा ने पुनः कहा।
“तुम तो खामख्वाह घबरा रहे हो मोगा। भला यहां पर मेरी कहां चलेगी।” मोना चौधरी कड़वे स्वर ढंग से मुस्कराई।
“तुम्हारे पास प्रेतनी चंदा का खंजर है।”
“डरते हो प्रेतनी चंदा के खंजर से-।” मोना चौधरी का स्वर जहर भरा हो उठा।
मोगा के दांत भिंच गये। कहा कुछ नहीं।
मोना चौधरी ने हाथ में दबे खंजर को देखा फिर बड़बड़ा उठी।
“हे शैतानी शक्तियों के मालिक, प्रेतनी चंदा के खंजर! तेरे को शैतान का वास्ता, मेरा हुक्म मान। मोगा ने अपनी शैतानी शक्ति से मुझे और जगमोहन को यहां कैद कर लिया है। तेरे में मोगा से ज्यादा बड़ी शैतानी शक्ति है। प्रेतनी चंदा की पांच सौ बरस की मेहनत से तुमने शक्तियों को हासिल किया है। तेरे को उन शैतानी शक्तियों का वास्ता। मोगा को खत्म कर शैतानी खंजर! प्रेतनी चंदा की इज्जत का सवाल है।”
मोना चौधरी की बड़बड़ाहट खत्म ही हुई थी कि उसके हाथ को तीव्र झटका लगा। मुट्ठी में दबा खंजर तीव्रता के साथ हाथ से निकला और कमरे में कमान से निकले तीर की तरह लहराकर इधर-उधर होने लगा। धीरे-धीरे खंजर के हवा में घूमने की तीव्रता बढ़ती जा रही थी।
मोगा के चेहरे पर अजीब-से भाव फैल गये। हवा में घूमते खंजर के साथ-साथ उसकी आंखों की पुतलियां भी घूम रही थीं। जगमोहन अजीब-सी स्थिति में अपनी जगह पर स्थिर खड़ा था।
“तु-तुमने-प्रेतनी चंदा की शैतानी शक्तियां इस्तेमाल की हैं।” एकाएक मोगा चीख उठा।
“तुम्हें क्या फर्क पड़ता है।” मोना चौधरी दांत भींचकर कह
उठी-“प्रेतनी चंदा की शक्तियों को अपनी शक्तियों से खत्म कर दो। तुम्हारे लिये तो ये मामूली बात है।”
“मेरी शैतानी ताकतें, प्रेतनी चंदा की ताकतों का मुकाबला नहीं कर सकती मिन्नो।” मोगा चीखा-“मैं तुम्हें कैद नहीं
बुला लो। मैं तुम्हारी हर सहायता करूंगा।”
“तू शैतान का सेवक है।” मोना चौधरी व्यंग्य से बोली-“शैतान के अलावा तू किसी की सेवा नहीं करेगा।”
“मैं तेरी सेवा करूंगा। तेरे चरणों में रहूंगा और-।”
“इस कमीने की बात का यकीन मत करना।” जगमोहन तेज स्वर में कह उठा।
“ये जलती आग में बैठकर कसम खाये तो मैं तब भी इसका यकीन न करूं।” मोना चौधरी की आवाज में नफरत के भाव थे।
“मिन्नो तुम-।”
तभी हवा में तीव्र रफ्तार से लहराता खंजर, मोगा के पास पहुंचा। मोगा को कुछ भी समझने का मौका नहीं मिला। समझा भी होता तो भी कुछ नहीं कर पाता। प्रेतनी चंदा की शक्तियों को वश में करना उसकी शक्तियों के बस में नहीं था। दूसरे ही पल खंजर पूरा के पूरा मोगा के गले में जा धंसा।
मोगा का मुंह खुल गया।
आंखें फैल गईं।
वो कई पलों तक बुत की तरह खड़ा रह गया। फिर उसके शरीर को तीव्र झटका लगा। जोरों से हिला वो और पेट के बल नीचे गिरने के पश्चात निश्चल हो गया।
ऐसा लगा जैसे छोटा-सा तूफान गुजरा हो और थम गया हो।
मोगा मर चुका था।
उसकी गर्दन से बहता खून फर्श को सुर्ख करने लगा।
जगमोहन होंठ और मुट्ठियां भींचे एकटक मोगा को देखे जा रहा था।
तभी मोना चौधरी आगे बढ़ी। नीचे पड़ी मोगा की लाश को सीधा किया और उसके गले में फंसा खंजर निकालकर, मोगा के कपड़ों से साफ करने के पश्चात सीधी खड़ी हुई और बोली।
“सच में।” मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान उभरी-“प्रेतनी चंदा के इस खंजर में बहुत ही जबर्दस्त शैतानी शक्तियों का वास है। प्रेतनी चंदा ने अपने खंजर की तारीफ ठीक की थी। गलती उसकी ये रही कि उसने खंजर मुझे थमा दिया।”
जगमोहन अपनी चुप्पी से बाहर निकला।
“शैतानी शक्तियों वाले इस खंजर को इस्तेमाल करना आ गया तुझे?” जगमोहन बोला।
“कुछ-कुछ-।”
“मोगा की मौत के साथ ही हमारी कैद की अदृश्य दीवारें हट गई होंगी।” कहने के साथ ही जगमोहन आगे बढ़ा और सीढ़ियों के पास पहुंचकर पांव नीचे रखा, दूसरे ही पल वो सीढ़ी पर खड़ा था।
उन्हें कैद करने के लिये मोगा ने जो रुकावटें डाली थीं, वो हट गई थीं।
जगमोहन ने गर्दन घुमाकर मोना चौधरी को देखा।
“अब हम आजाद हैं बाहर अपने साथियों के पास जा सकते हैं।” जगमोहन ने कहा।
“निकल चलते हैं।” मोना चौधरी आगे बढ़ती हुई बोली-“कहीं कोई नई मुसीबत न आ जाये।”
दोनों तेजी से सीढ़ियां उतरने लगे।
☐☐☐
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