लीना की जगह बैडरूम में एक अपरिचित युवक, बालकनी की ओर पीठ किए खड़ा, मुस्करा रहा था। ऊंचे कद, इकहरे जिस्म और आकर्षक व्यक्तित्व वाले करीब बत्तीस वर्षीय युवक के चेहरे पर आत्मविश्वास और सक्षमता की गहरी छाप थी।
–"गुड मॉर्निंग, अजय।" वह बड़ी बेतकल्लुफी से बोला–"मेरा नाम अविनाश है।"
अजय ने ऐसा जाहिर किया मानो उसकी मौजूदगी से जरा भी ताज्जुब उसे नहीं हुआ था।
–"तुम आ ही गए हो।" उसने लापरवाही से कहा–"तो आराम से बैठो।" फिर पूछा–"लीना कहां है?" और आगे आकर कपड़े पहनने लगा।
अजय को पूर्णतया सामान्य पाकर युवक यानी अविनाश चकित था। एकाएक वह जवाब नहीं दे सका।
–"कमाल है।" अजय ने कहा–"हैरान तुम हो रहे हो जबकि हैरान मुझे होना चाहिए जरा सी देर में ही एक हसीन लड़की खूबसूरत लड़के में तब्दील हो गई।"
–"लीना नीचे गई है।" अविनाश स्वयं को सामान्य बनाने की कोशिश करता हुआ बोला।
तभी प्रवेश द्वार पर दस्तक दी गई।
अजय ने दरवाजा खोल दिया।
भरी हुई ट्रे उठाए एक बेयरा बाहर खड़ा था।
–"ब्रेकफास्ट, सर।"
–"हां, ले आओ।" कहकर अजय एक तरफ हट गया।
बेयरा भीतर दाखिल हुआ। उसने सर झुका कर अविनाश का अभिवादन किया और मेज पर नाश्ता लगाकर चला गया।
अजय कपड़े पहन चुका था। अविनाश को सरासर नजर अंदाज करके, एक बार और हैरान होने का मौका देते हुए वह नाश्ता करने बैठ गया।
नाश्ता खत्म करने के बाद उसने ट्रे से पैकेट उठाकर इत्मिनान से सिगरेट सुलगाई और अविनाश की ओर देखा।
–"फरमाइए?" वह बोला।
अविनाश के तनावपूर्ण चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई।
–"मेरा विचार है, हम साथ मिलकर काम कर सकते हैं।" उसने पलंग पर बैठते हुए कहा।
अजय कुछ नहीं बोला।
–"तुम अपनी बीवी के लिए परेशान हो।" अविनाश ने कहा–"तो मैं बताना चाहता हूं वह मजे में है।"
–"यह बात उसके खत में भी लिखी है।"
–"तुम छुपा रहे हो–" अविनाश उसे घूरता हुआ बोला–"लेकिन मैं जानता हूं तुम अपने लिए भी काफी परेशान हो।"
–"अच्छा?" अजय सिगरेट का गहरा कश लेकर ढेर सारा धुआं छोड़ने के बाद बोला–"मेरे परेशान होने की वजह क्या है?
अविनाश की आंखों में उपहासपूर्ण चमक उभरी।
–"शायद तुम याद करने की कोशिश कर रहे हो पिछली रात कहां थे?" वह बोला।
–"कोशिश करने की जरूरत नहीं, मुझे अच्छी तरह याद है।"
–"तब तो मानना पड़ेगा सुमेरचन्द दीवान की गैर मौजूदगी में उसके निवास स्थान पर जाकर तुमने बड़ा ही अच्छा काम किया था।"
–"सच?"
–"लेकिन सेंधमारी की वजह से वह बहुत ही ज्यादा कुपित होगा।"
–"अच्छा?"
–"और यह जानने के बाद कि उसके कई बेशकीमती जवाहरात चुरा लिए गए हैं।" अविनाश बोला–"वह यकीनन गुस्से से पागल हो जाएगा। उस जैसे आदमी के लिए यह बड़ी शर्म की बात है।"
–"पता नहीं तुम क्या कह रहे हो।"
–"मैं हकीकत बयान कर रहा हूं।" अविनाश ने कहा–"तुम्हारे चले जाने के बाद मैं भी वहां गया था। जिस खिड़की को तुमने काटा था उससे गुजरने में कोई दिक्कत पेश नहीं आई। और फिर इस बात का पता भी आसानी से चल गया कि तुम स्ट्रांग रूम खोलने में कामयाब हो गए थे–" वह मुस्कराया–"स्ट्रांग रूम की जानकारी तो मुझे थी लेकिन उसे खोल पाना मेरे लिए नामुमकिन था। मानना पड़ेगा तुम लाजवाब सेंधमार हो।"
–"तुम मुझे सेंधमार कह रहे हो?" अजय गुर्राया।
–"हा, और मैं यह भी कह रहा हूं 'कनकपुर कलैक्शन' को स्ट्रांग रूम से चुराकर तुमने कहीं छुपा दिया है। मैं और लीना तुम्हारी और तुम्हारी पत्नी की निगरानी कर रहे थे फिर तुम्हें अकेले 'दीवान पैलेस' में दाखिल होते हुए भी हमने देखा।" कह कर अविनाश रुका फिर विजयी स्वर में पूछा–"क्या तुम अब भी इंकार करते हो सुमेरचन्द दीवान का स्ट्रांग रूम तोड़कर चोरी नहीं की?"
–"हां।" अजय ने जवाब दिया।
–"तुम्हारे इंकार करने से हकीकत नहीं बदल सकती।" अविनाश विचारपूर्वक बोला–"और हकीकत वही है जो मैंने बयान की है। लेकिन मेरी समझ में नहीं आता तुम जानबूझकर इंकार क्यों करते चले जा रहे हो। क्या तुम इस बात से भी इंकार करते हो कि तुम 'थंडर' के मशहूर रिपोर्टर अजय कुमार हो और जिस लड़की को अपनी पत्नी जाहिर कर रहे हो वास्तव में वह तुम्हारी कुलीग नीलम कपूर है?"
अजय ने जवाब नहीं दिया। वह जानता था कि ये बातें, मामूली थीं और आसानी से इनका पता लगाया जा सकता था।
–"तुम्हारे यहां आने की वजह की जानकारी मुझे और मेरे दोस्तों को है।" अविनाश ने सामान्य स्वर में कहना जारी रखा–"तुम कनकपुर कलैक्शन का पता लगाने आए हो तुम समझते हो इस तरह, मौत की सजा पाए और फांसी के फंदे की ओर खिसकते, अपने एक दोस्त की मदद कर सकते हो। तुम्हारे उस दोस्त से मुझे भी हमदर्दी है। काश मैं उस बेचारे की कोई मदद कर सकता होता।"
अजय अभी भी कुछ नहीं बोला।
–"लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता।" अविनाश का कथन जारी था–"बड़ी दुखदायी बात है। लेकिन यह तो अपनी–अपनी किस्मत है। तुम्हारे उस दोस्त ने कम से कम अपनी जिंदगी के तीस–पैंतीस साल तो ऐश के साथ गुजारे हैं। जबकि इसी मुल्क में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो पिछली कई पुश्तों से गरीबी और भुखमरी की चक्की में पिसते आ रहे हैं और उनकी आने वाली पुश्तों ने भी यही सब झेलना है। इतना ही नहीं हर रोज विभिन्न शहरों में नए लोगों की भीड़ भी उन लोगों में शामिल होती जा रही है। जिसका सबूत है महानगरों में झुग्गियों में और फुटपाथ पर जिंदगी बसर करने वालों की रोजाना बढ़ती जा रही तादाद। क्या तुम इस बात। से भी इंकार करते हो कि तुम्हारे उस दोस्त के मुकाबले नारकीय जिंदगी जीते उन लोगों की मुसीबतें और मुश्किलात कहीं ज्यादा है?"
अजय खामोश ही रहा। वह समझ नहीं पा रहा था अविनाश की कम्युनिस्टों जैसी बातों का वास्तविक आशय क्या था?
–"तुम्हारी खामोशी से जाहिर है, तुम मेरी बातों से सहमत तो हो मगर स्वीकारने में हिचकिचा रहे हो।" अविनाश कह रह, था–"तुम दीवान पैलेस में गए थे जहां तुमने जवाहरात तथा अन्य बहुमूल्य वस्तुएं देखी थीं। जो कि चोरी की है और वहां नहीं होनी चाहिए।" वह मुस्कुराया–"लेकिन 'दीवान पैलेस' में सेंध लगाकर तुमने भी कम संगीन जुर्म नहीं किया है। और इस बात को मद्दे नजर रखते हुए तुम्हारी कुलीग नीलम की परेशानी को जरा दी भी तरजीह नहीं दी जा सकती, क्योंकि सेंधमारी जैसे जुर्म में वह भी तुम्हारे साथ रही थी।"
–"आगे जो भी कहना हो सोच समझकर कहना–"अजय खामोशी तोड़ता हुआ बोला–"मैं और ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकूंगा।"
–"मत भूलो मेरे पास भी पिस्तौल है।" अविनाश ने कहा। उसका लहजा बदलकर राजदाराना हो गया था–"और तुम्हारे बारे में खासी जानकारी भी मैं रखता हूं। कानून का मजाक उड़ाना और कानून के हिमायतियों को बेवकूफ समझना तुम्हारी खास आदतें हैं। लेकिन इस बार तुम बड़ी भारी चूक कर बैठे। कानून का मुंह चिढ़ाने के चक्कर में सेंधमारी के लिए गलत वक्त पर गलत स्थान चुनकर।" वह तनिक रुककर बोला–"तुम नहीं जानते जो जवाहरात तुमने चुराए हैं वे उन जरूरतमन्दों की मदद के लिए थे जिन्हें न तो भरपेट रोटी मयस्सर होती है और न ही तन ढकने को कपड़ा मिलता है। सुनो, मेरे अंकल सुमेरचन्द दीवान हीरे. जवाहरात वगैरा के जितने बड़े संग्रहकर्ता हैं उतने ही वह गरीबों के मसीहा भी हैं।"
–"अच्छा।"
–"मेरे अंकल उन दौलतमन्दों में से नहीं हैं जो अपने ऐश और अय्याशी पर तो लाखों खर्च करते हैं लेकिन किसी गरीब को एक वक्त पेट भर खाना भी नहीं खिला सकते। मेरे अंकल हर जरूरत मन्द की मदद करते हैं और लाखों लोगों की मदद के लिए कभी कभार अगर वह थोड़े गैर कानूनी ढंग से कोई चीज हांसिल करते हैं तो न तो यह गुनाह है और न ही कोई बहुत बड़ा जुर्म। आखिरकार, वे चीजें होती तो गरीबों के लिए ही हैं।" कहकर अविनाश ने अर्थपूर्ण निगाहों से उसकी ओर देखा, लेकिन उसे कुछ कहता न पाकर बोला–"अब मैं असली मतलब की बात पर आता हं। अपने इस नेक काम के लिए मेरे अंकल को वे तमाम जवाहरात चाहिए जो तुमने चुराएं हैं। बदले में तुम्हें नीलम वापस मिल जाएगी–"वह तनिक रुका, फिर बोला–"अगर तुम इस मामले में पुलिस के पास जाने की सोच रहे हो तो याद रखना तुम मेरे अंकल के खिलाफ कुछ साबित नहीं कर सकोगे, जबकि हम आसानी से साबित कर सकते हैं तुमने 'दीवान पैलेस' में सेंध लगाई थी। इसलिए बेहतर होगा तमाम जवाहरात मेरे हवाले कर दो अभी और इसी वक्त।
–"पहले तुम नीलम को...।" अजय ने कहना शुरू किया, फिर एकाएक चुप हो गया।
अविनाश पलंग से उठकर खड़ा हो गया। अचानक उसका चेहरा कठोर हो गया था और आंखों में व्याप्त भावों से साफ नजर आने लगा वह खतरनाक भी साबित हो सकता है।
–"इस मामले में तुम्हें मेरी शर्तें माननी होंगी, अजय।" वह ठोस स्वर में बोला–"याद रखो, मरहूम काशीनाथ के अलावा सिर्फ तुम्हीं दूसरे व्यक्ति हो जिसने कनकपूर कलैक्शन' को आखिरी मर्तबा देखा था–कलैक्शन की फोटो खींचते वक्त। फिर उसी रात तिजोरी तोडकर कलैक्शन चुरा लिया गया और काशीनाथ की हत्या कर दी गई। मान लो, मैं पुलिस को बता दूँ तुम कल मेरे पास 'कनकपुर कलैक्शन' तथा अन्य जवाहरात बेचने आए थे। मगर मुझे शक हो गया वे सब चोरी के थे इसलिए मैंने उन्हें खरीदने से इन्कार कर दिया।"
–"इस बात पर कोई यकीन नहीं करेगा।" कहकर अजय ने सिगरेट सुलगाई, फिर बोला–"वैसे, क्या तुम जानते हो मैं बड़ी आसानी से तुम्हारी गरदन चटका सकता हूं?"
–"बको मत।" अविनाश तीव्र स्वर में बोला और जेब से पिस्तौल निकाल ली।
–"कान खोलकर सुन लो।" अजय उसके हस्तक्षेप की परवाह किए बगैर बोला–"काशीनाथ की हत्या 'कनकपुर कलैक्शन' की वजह से की गई थी और मैंने उसके हत्यारे का पता लगाना है। और खड़ा होकर मेज से अलग हट गया।
–"काशीनाथ का हत्यारा पकड़ा जा चुका है, उसे मौत की सजा सुना दी गई है और।"
–"उसके मामले में पुलिस और कानून से गलती हुई है।" अजय ने कहा–"और तुम भी एक गलती कर चुके हो...।" अचानक वह तेजी से आगे झपटा। अविनाश फौरन पीछे हट गया। लेकिन उसने गोली चलाने की जरा भी कोशिश नहीं की।
अजय भांप गया। अविनाश उसे बस डराना चाहता है। पिस्तौल इस्तेमाल करने का कोई इरादा उसका नहीं है। अजय ने उसका पिस्तौल वाला हाथ एक ओर झटककर उसकी कपनटी पर घूँसा जमा दिया। अविनाश खड़ा नहीं रह सका। पिस्तौल थामे वह नीचे जा गिरा। लेकिन शूट करने का अभी भी कोई उपक्रम उसने नहीं किया।
–"नीलम कहां है?" अजय ने गुर्राकर पूछा।
अविनाश अपनी कपनटी सहलाता हुआ खड़ा होकर बोला–"तुम हद से आगे बढ़ रहे हो, अजय।"
–"अगर नीलम को जल्दी वापस नहीं भेजा गया तो मैं पुलिस के पास जाऊंगा और...।"
–"तुम ऐसा नहीं करोगे।" अविनाश ने कहा–"अभी तक नीलम को किसी प्रकार की तकलीफ नहीं पहुंचाई गई है। अगर तुमने कोई भी उल्टी–सीधी हरकत की तो नतीजा उस बेचारी को भुगतना पड़ेगा।" उसने अपनी पिस्तौल जेब में डाल ली–"हम शरीफ और अमन पसंद लोग हैं, अजय। लेकिन अपने मिशन की खातिर सब–कुछ कर सकते हैं। जरूरत पड़ने पर बेरहमी से काम लेना भी हमें बखूबी आता है। वैसे हम आखिर तक कोशिश करेंगे नीलम को तकलीफ न पहुंचानी पड़े। इसका सीधा–सा तरीका है, जवाहरात वापस लौटाओ और हमें पूरा यकीन दिलाओ हमेशा अपनी जुबान बंद रखोगे। इस बारे में सोचकर फैसला करने का आखिरी मौका मैं तुम्हें दे रहा हूं।"
अजय कुछ नहीं बोला।
अविनाश ने पलटकर दरवाजा खोला और बाहर निकल गया।
* * * * * *
अजय ने उसे रोकने की जरा भी कोशिश नहीं की थी। उसने सिगरेट सुलगाई और बालकनी में आ गया।
नीचे टैरेस पर, उसे लीना बैठी दिखाई दी।
चन्द क्षणोपरांत अविनाश भी उसके पास आ पहुंचा और वे दोनों परस्पर विचार–विमर्श करते नजर आने लगे।
अजय वापस बैडरूम में लौट आया। वह स्वयं को एकाकी और निराश–सा महसूस कर रहा था। नीलम की सलामती उसे खतरे में पड़ गई नजर आ रही थी। मदन मोहन के लिए भी अब उसकी चिंता में वृद्धि हो गई थी। उसे लगा वह कुछ नहीं कर पाएगा और नौ दिन बाद मदनमोहन को सचमुच फांसी लगा दी जाएगी, क्योंकि इसका कोई ठोस सबूत उसके पास नहीं है कि हत्यारा मदन मोहन नहीं था। हालांकि 'कनकपुर कलैक्शन' से इस मामले में मदद मिल सकती है लेकिन नीलम को दांव पर लगाने का रिस्क वह नहीं ले सकता।
उसने रहमान स्ट्रीट पर उन्नीस नंबर कोठी के बारे में सोचा, जहां अंधेरा होने के बाद जाने का फैसला कर चुका था। लेकिन क्या उसके अलावा कोई नहीं जानता उसे उस कोठी की जानकारी है? क्या नीलम वास्तव में वहीं है? क्या अभी भी वहीं होगी? यह जानने का कोई तरीका उसके पास नहीं है।
इसके अलावा एक और एंगिल था क्या पुलिस भी कुछ जानती थी?
अविनाश और दीवान पैलेस में रहने वाले दूसरे लोग सेंधमारी की वारदात को छुपा नहीं सकते, इसलिए पुलिस भी जल्दी ही जोर–शोर से चोर की तलाश शुरू कर देगी।
एकाएक अजय को बहुत ज्यादा घुटन महसूस होने लगी।
वह बाहर निकला। सुइट लॉक करके लिफ्ट द्वारा नीचे जाते समय वह अविनाश के बारे में सोच रहा था। अविनाश के रंग–ढंग से जाहिर था वह 'कनकपुर कलैक्शन' हासिल करना चाहता है। इसीलिए उसने नीलम को किडनेप किया था। साथ ही यह भी तय बात थी कि वह खुद ही इस मामले को हैंडिल करना चाहता है। पुलिस के पास जाने लायक हौसला उसमें नहीं है।
अजय होटल से बाहर आ गया। लीना टैरेस पर ही थी। लेकिन अविनाश जा चुका था। लीना ने उसकी ओर देखा। मगर अजय उसे नजरअंदाज करके सड़क पर आ गया और पैदल ही एक तरफ चल दिया।
थोड़ी देर बाद वह समझ गया उसका पीछा किया जा रहा है। सफाई से मुड़कर देखने के बाद वह भी यह जान गया पीछा करने वाली लीना है और अनुमानतः तीस–चालीस गज से ज्यादा दूर नहीं थी।
अजय ने अपनी चाल तेज कर दी लेकिन लीना को डाज देने की कोशिश नहीं की।
करीब दस मिनट बाद वह एक पार्क के पास पहुंचकर रुका सिगरेट सुलगाई और यूं चारों ओर निगाहें दौड़ाई मानों आस–पास का निरीक्षण कर रहा है।
इस प्रयत्न में लीना भी उसे आती दिखाई दे गई। बुरी तरह हांफती हुई तेजी से चली आ रही थी। उसने हाथ द्वारा अजय को रुके रहने का संकेत किया।
अजय वहीं खड़ा रहा।
–"इतनी तेज क्यों चल रहे थे?" लीना ने, पास आकर अपनी सांसों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए शिकायती लहजे में पूछा।
जवाब देने के बजाय अजय ने मुस्कराकर पूछा–"मुझे किसलिए रोका था तुमने?"
–"मैं थक गई हूँ। आओ, बैठते हैं।"
दोनों पार्क में बैंच पर जा बैठे।
–"बताओ।" अजय ने पूछा–"क्या कहना चाहती हो?"
–"अगर तुम खुद को नीलम की परेशानी से दूर रखना चाहते हो।" लीना ने कहा–"तो मुझे बता दो जवाहरात कहां हैं?"
अजय कुछ नहीं बोला।
–"तुम्हारे पास यह बताने के अलावा और चारा भी नहीं है।" लीना गंभीरतापूर्वक कह रही थी–"अविनाश सख्ती भी कर सकता है।
–"अविनाश से कहना नीलम के वापस आने के बाद मैं इस बारे में सोचूंगा।"
–"लेकिन, जब तक जवाहरात नहीं मिल जाते वह नीलम को नहीं भेजेगा। अब यह तुम पर निर्भर करता है नीलम को आराम से रहने देना चाहते हो या नहीं।" लीना ने कहा, फिर इंतजार करने के बाद भी अजय को कुछ न कहता पाकर बोली–"मैं एक बार फिर कहती हूं बेहतर होगा बेचारी नीलम को परेशानी में मत पड़ने देना।"
–"तुम नीलम के लिए इतनी फिक्रमंद क्यों हो?"
–"औरत होने की वजह से मुझे उससे हमदर्दी है।"
अजय मुस्कराया।
–"और मुझसे कुछ नहीं?"
लीना खड़ी हो गई।
–"आओ, चलते हैं।"
अजय भी खड़ा हो गया।
–"तुमने अकेले ही मेरा पीछा किया था?" अचानक उसने पूछा।
–"नहीं।" लीना ने जवाब दिया–"मेरे साथ दो आदमी और भी हैं।" और पार्क के गेट के पास खड़े दो आदमियों की ओर संकेत कर दिया।
अजय को याद आया, उन दोनों आदमियों को उसने होटल अलंकार के सामने भी खड़े देखा था। हालांकि उस वक्त उनकी ओर खास ध्यान उसने नहीं दिया था।
वह लीना के साथ पार्क से बाहर आकर होटल की ओर चल दिया।
वे दोनों आदमी भी उनका पीछा करने लगे।
–"अपने सुइट में जाकर इत्मीनान से सोचना।" थोड़ी देर बाद लीना बोली–"जब जवाहरात देने के लिए तैयार हो जाओ तो मुझे बता देना। होटल में तुम्हारे सुइट के बगल वाले सुइट में ही ठहरी हुई हूं।" संक्षिप्त मौन के बाद चेतावनी देने वाले लहजे में बोली–"नीलम कहां है? यह पता लगाने की कोशिश करने जैसी गलती मत करना।"
–"नहीं करूंगा।"
शेष रास्ता दोनों ने खामोशी के साथ तय किया।
अपने सुइट में पहुंचकर विभिन्न पहलुओं से सोचने के बाद अजय ने नतीजा निकाला। उसके लिए बड़ी होशियारी से जाल बिछाया गया है और उसके पास सिर्फ एक तुरुप का पत्ता है। कनकपुर कलैक्शन। उसमें भी सबसे बड़ी दिक्कत है अगर 'कलैक्शन' उसके पास से बरामद हो गया तो उसके खिलाफ भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
हालात को देखते हुए जरूरी है पहले नीलम सही सलामत वापस लाई जाए। फिर वह दीवान पैलेस जाकर सुमेरचन्द और अविनाश सबको चुनौती दे सकता है।
वह बालकनी में आ गया। जिन दो आदमियों के बारे में लीना ने बताया था वे टैरेस पर एक सन अम्ब्रेला के नीचे बैठे थे।
करीब एक घंटे बाद अजय लंच के लिए नीचे पहुंचा। लिफ्ट से निकलकर उसने लॉबी में पांव रखा ही था कि थमक कर रुक गया।
रिसेप्शन काउन्टर पर, अपने तीन मातहतों सहित एक बावर्दी पुलिस इंस्पैक्टर, रिसेप्शनिस्ट से पूछताछ कर रहा था।
अचानक रिसेप्शनिस्ट ने लिफ्ट की दिशा में देखा और हाथ। से संकेत कर दिया।
इंस्पैक्टर ने तुरन्त पलटकर देखा, फिर अपने दो मातहतों सहित तेजी से अजय की ओर बढ़ गया।
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