शाम के पांच बज रहे थे, जब रुस्तम राव ने सोहनलाल के घर के सामने कार रोकी। दरवाजा अधखुला था ईजन बंद करके उसने चाबी जेब में डाली और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।


दरवाजा धकेला रुस्तम राव ने भीतर प्रवेश किया।


सोहनलाल फोल्डिंग पर अधलेटा सा, गोली वाली सिगरेट के कश ले रहा था। रुस्तम राव को सामने पाकर, हैरान हुआ फिर जल्दी से उठ बैठा। 


"तू —।" सोहनलाल के होंठों से अजीब सा स्वर निकला- "यहां?"


जालिम मुस्कराया। उसके मासूम चहरे पर शांत मुस्कान उभरी। "सलाम बाप--" कहने के साथ ही रुस्तम राव कुर्सी खींचकर बैठ गया।


सोहनलाल जानता था कि सामने बैठा सोलह बरस का लड़का कितना खतरनाक है। इसकी उम्र या इसके चेहरे पर झलकती मासूमियत के चक्कर में वो धोखा नहीं खा सकता था। जो मोना चौधरी को धोखा देकर चक्कर में डाल सकता है, जो कालूराम जैसे दरिन्दे को अकेला खत्म कर सकता है। वो , वो हर बात कर सकता हैं, जो अभी तक उसके सामने नहीं हुई थी।


"तेरे को मेरे घर का कैसे पता चला?" सोहनलाल के होंठों से निकला।


"बाप। आपुन अक्खा मुंबई में सबकी खबर रखता है। ये तो मामूली बात है। "


सोहनलाल मुस्कराया। जेब से गोली वाली सिगरेट निकाली। "लेगा?" सोहनलाल ने मुस्कराते हुए ही उसकी तरफ सिगरेट बढ़ाई।


रुस्तम राव मुस्कराया।


"संभल जा बाप तेरकू मालूम है आपुन नशा नहीं करता। तू भी छोड़ दे। नेई तो जल्दी मरेला।


"जो काम तुमने कभी किया नहीं। " सोहनलाल ने सिंगरेट वापस जेब में डाली "उसे छोड़ने के लिए कहना गलत है। हो सकता है। इसमें तेरे को इतना मजा आए कि लगे जिंदगी इसी का नाम है। " 


"आपुन नशे पर लानत भेजेला है। तेरे को पैले भी समझाएला कि छोड़ इसे नेई मानेला तू। अभ्भी मेरे को बोएला है नशा करने का। बोत जल्द तू डूबेला बाप नशा तेरे को ले मरेला ।"


सोहनलाल मुस्कराया।


रुस्तम राव शांत निगाहों से सोहनलाल को देखता रहा। 


"तेरा इरादा तो मेरे को डुबोने का नहीं हैं। " सोहनलाल बोला । 


"डुबते को आपुन क्या डुबेला । " रुस्तम राव मुस्कराया। 


"फिर कोई चिंता नहीं। मेरे डूबने में अभी बोत वक्त है। 


"तेरे से काम होएला बाप।" रुस्तम राव ने कहा। 


“क्या?" सोहनलाल ने लड़के की नीली आंखों में देखा 


“एक तिजोरी खोलना है।"


"तेरे को इंकार नहीं। जल्दी बता तिजोरी कहां है। मेरे पास वक्त कम है। " सोहनलाल ने कहा।


"तिजोरी अम्भी इधर को नेई है। तेरे को पैले ही फिक्स करने के वास्ते आएला है। वो तिजोरी पांच-दस-बारह दिन बाद सामने को आएला। " रुस्तम राव बोला।



सोहनलाल ने गहरी सांस ली। 


"फिर तो किसी और से बात कर ले। " 


"क्यों बाप, मुझसे क्या खता होएला है?" 


"मैंने ये बोला।" सोहनलाल मुस्कराया। 


"नेई बाप। " लड़के ने अपने दोनों कान पकड़े। 


"मैं आज रात की ट्रेन से देवराज चौहान और जगमोहन के साथ हैदराबाद जा रहा हूं। मेरी वापसी कब होगी कह नहीं सकता। इसलिए मेरे भरोसे रहकर कुछ करना, नुकसान का सौदा होगा।" 


“समझेला बाप"


"बात क्या है? वो किसकी तिजोरी है, जो...।"


"बाप, जब तू मैदान से बाहर होएला तो, पूछेला क्यों । आपुन कोई और इंतजाम करेला।"


सोहनलाल ने फौरन सहमति में सिर हिला दिया।


रुस्तम राव उठ खड़ा हुआ।


“कालूराम, तेरे को भी मार सकता था।" सोहनलाल देखा—"तेरी किस्मत अच्छी थी कि जिस इंसान की बांह को टेड़ी करना कठिन था, उसे तूने हाथों से मार दिया। " 


कालूराम के बारे में जानने के लिए पढ़ें, अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित दो उपन्यास 'हमला' एवं 'जालिम' 


"आपुन तो बच्चा होएला बाप।" रुस्तम राव मुस्कराया।

वो तो गलती से हाथ कालूराम पर जा पड़ा था। नेई तो वो जिन्दा ही रहता। 


“किस्मत वाला है कि उसका हाथ तेरे पर नहीं पड़ा। सोहनलाल मुस्कराया।


लड़का भी मुस्कराया और बाहर निकलता चला गया।


***


शाम ढल चुकी थी। अंधेरा हो चुका था। देवराज चौहान और जगमोहन बंगले से चलने की तैयारी पर थे। हैदराबाद के लिए सवा घंटे बाद ट्रेन रवाना होनी थी। दोनों का सामान एक ही एयर बैग में था। 


"स्टेशन के लिए टैक्सी ले लेते। " जगमोहन ने कहना चाहा। । 


"कार ले चलो स्टेशन के पार्किंग में खड़ी रहेगी।" देवराज

चौहान बोला।


जगमोहन ने सिर हिलाया। “सोहनलाल अपने घर पर, हमारा इंतजार कर रहा होगा।" 


"निकल चलते हैं। वक्त भी ज्यादा नहीं रहा। " देवराज चौहान ने कहा और सिगरेट सुलगा ली। 


जगमोहन ने एयर बैग उठाया।


देवराज चौहान ने बंगले के मुख्यद्वार की चाबी उठाई। दोनों दरवाजे की तरफ बढ़े ही थे कि ठिठक गए। दोनों की निगाहें आपस में मिली फिर दरवाजे की तरफ देखने लगे।


दरवाजे पर फकीर बाबा खड़ा था।


"मुम्बई से बाहर जा रहे हो देवा?" फकीर बाबा ने शांत स्वर में कहा। 


"हां"


"मुझे खुशी है कि अब तुम्हारे और मिन्नो के बीच होने वाला झगड़ा टल जाएगा। मैं जानता था तू मेरी बात मानेगा। बे वजह झगड़ेगा नहीं। " कहने के साथ ही फकीर बाबा पलटकर आगे बढ़ गए।


जगमोहन जल्दी से आगे बढ़ा।


बाहर देखा।


फकीर बाबा कहीं भी नहीं था।


देवराज चौहान भी बाहर निकला। दरवाजा बंद करके लॉक किया।


"ये बाबा ऐसे गायब हो जाता है, जैसे हवा हो।" जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा।


जवाब में देवराज चौहान मुस्कराया। फिर बोला।


"वो बहुत शक्तियों का मालिक है। वो इंसानों की पहुंच से दूर है। ये शायद उसकी कोई मजबूरी है कि बार-बार उसे हम लोगों के सामने आना पड़ता है।" कहने के साथ ही देवराज चौहानं सामने पोर्च में खड़ी कार की तरफ बढ़ गया— "आओ, सोहनलाल को लेते, स्टेशन पहुंचना है। देर नहीं होनी चाहिए


***


तीन दिन बीत गए। रुस्तम राव, बांकेलाल राठौर के पास पहुंचा। 


"आ छोरे म्हारे को थारी बोत याद आ री थी। बै-जा। बै-जा। " बांकेलाल राठौर मुस्कराया। 


रुस्तम राव बैठा। उसके मासूम चेहरे पर मुस्कान थी। 


"फाइल वाले कामों का तन्ने का कियो छोरो। मामला कां तक बढो हो ?"


"कई नेई बाप उधर ही अडेला है। "


"का मतलब?" 


"फाइल को शंकर भाई के पास से खिसकाने का मामला बोत कठिन होएला है। वां।"


“यो तू बोले हो छोरे। " बांकेलाल राठौर का हाथ अपनी मूंछ पर पहुंच गया।


"बिल्कुल आपुन बोला है।"


"तू इंकार करके, म्हारे यार के सामने म्हारी आंख नीची करायो। 


"आपुन इंकार नेई करेला बाप-।"


"तो?" 


“शंकर भाई के उधर तगड़ा पहरा होएला। पण आपुन के दिमाग में शार्टकट रास्ता आएला है। "


"का रास्ता हीवे थारो पास।" बांकेलाल राठौर ने गंभीर निगाहों से उसे देखा।


रुस्तम राव ने कान मसला फिर कह उठा।


"आपुन ने शंकर भाई का वो बंगला चैक करेला तो मोना चौधरी को देखेला। आपुन पैले ही बोएला था कि मोना चौधरी इस चक्कर में होएला। पूरा चांस है। वो ही होएला।"


बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ गई। “थारे को देखो हो, मोना चौधरी ?" 


"नहीं। उसका नजर आपुन पर नेई पड़ेला।" रुस्तम राव ने होंठ सिकोड़े— "पण मामला आपुन की समझ में फिट बैठेला है कि फकीर बाबा ठीक बोएला देवराज चौहान को, कर्मे की बात नेई सुनना। काम नेई करना। मोना चौधरी से टक्कर हो जाएला बाप। आपुन का ख्याल है, मोना चौधरी भी फाइल के चक्कर में होएला बाप?"


“थारे को कैसे मालूम?"  


"अभ्भी भी मालूम होएला बाप तू कर्मों को फोन पर पूछेला कि उसका पार्टनर बंगाली मोना चौधरी को जानेला क्या ?" 


बांकेलाल राठौर ने कर्मपाल सिंह को फोन किया। दो मिला। बात हुई।


"बांके मेरा काम हुआ कि नहीं। वो फाइल...।" 


"पैले म्हारी बात सुन - "


"क्या?"


“थारा जो पार्टनर हौवे था। बंगाली, वो मोना चौधरी को जाने हो का?"


पल भर की चुप्पी के बाद कर्मपाल सिंह की आवाज आई। "वो तो नहीं जानता मोना चौधरी को। लेकिन उसने दो-चार बार इस बात का जिक्र किया था कि अगर कभी कोई बड़ा काम फंसा तो मोना चौधरी से करवाएगा। मोना चौधरी तक उसकी पहुंच है। " 


"बल्ले-बल्ले। फिर वो बंगाली मोना चौधरी के पास फाइल पानो वास्ते जा सको है का?"


"ओह। " कर्मपाल सिंह का बेचैन स्वर कानों में पड़ा—"बांके, बंगाली फाइल पाने के लिए, मोना चौधरी से ही मिला होगा। पक्का उसी के पास दिल्ली पहुंचा होगा। "


बांकेलाल राठौर ने गंभीर भाव में रिसीवर रखा।


“तंम ठीक कहो हो। बंगाली, मोना चौधरी से मिल्लो और मोना चौधरी फाइल पाने के फेर में हौवो हो ।


रुस्तम राव मुस्कराया।


‘‘अगर देवराज चौहान कर्मे का काम हाथ में लेता तो, देवराज चौहान मोना चौधरी में टकराव हो जाता।


“बात तो थारी चौखी हौवे। ईब तम का करो हो फाइल पानो, को?"


“आपुन सोचेला है कि मोना चौधरी को फाइल ले जाने दूं।"


“काये के वास्तो।" बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ी— "तंम उससे डरो हो। म्हारे होते हुए काणों फिक्र करो हो। वक्त आवे तो मोना चौधरी को 'वड' के रख दयो। "


“बाप । मोना चौधरी काम करेला । आपुन को विश्वास है कि वो फाइल ले लेगा। " रुस्तम राव बोला।


"थारे को तो पता ही हौवे, अंमने अपनो यार से वादा करो कि वो फाइल, उसो को "


"बांके।" रुस्तम राव मासूमियत से मुस्कराया—“शंकर भाई से इस वक्त फाइल लाने में दिक्कत आएला है। पण मोना चौधरी से फाइल लेने में कोई दिक्कत नहीं आएला। " बांकेलाल राठौर के माथे पर बल पड़े।


“थारा मतलब हौवे कि...कि...।"


"हां। आपुन का मतलब ये ई होएला बाप। इधर मोना चौधरी फाइल लेकर निकेला और उधर आपुन उससे ले लेगा। ये सबसे आसान रास्ता होएला बाप । "


"ये तो खतरों वाला काम हो गयो ?"


"कैसे बाप ?" 


"मोना चौधरी नागिन से को चीजो छीनना आसान हौवे का और फिर सीधो उससे टक्कर लेनो ठीक न हौवो। वो म्हारे से ज्यादा तेजो हौवे। " बांकेलाल राठौर के चेहरे पर गंभीरता आ गई। 


"आपुन के पास तो फाइल पाने का येई रास्ता बढ़िया होएला।" 


उन दोनों के बीच कई पलों तक चुप्पी रही। 


रुस्तम राव के चेहरे पर बराबर मुस्कान छाई हुई थी।


"ठीको।" बांकेलाल राठौर ने हौले से सिर हिलाया-"पण म्हारें को ये बतायो कि तम उससे फाइल नं ले सको तो?" 


"वो देखना आपुन का काम है बाप । "


बांकेलाल ने उसे गहरी निगाहों से देखा।


“थारे को कैसे मालूम हौवे कि मोना चौधरी फाइल पाने के वास्तो वहां कबो जायो।"


आपुन के दो आदमी बराबर मोना चौधरी पर नजर रखेला है बाप और मोबाइल पर हर एक घंटे में मोना चौधरी की हरकत की खबर आपुन को मिलता है। समझा बांके।"


“बांके तो सब समझो। पण मोना चौधरी के सामने जाना खतरो वाला काम हौवो। "


रुस्तम राव उठ खड़ा हुआ। 


"म्हारी जब जरूरत तो बता दयो। " बांकेलाल राठौर ने सिर हिलाकर कहा। 

“पक्का बाप। वक्त आने पर आपुन तेरे को बोलेगा।" कहने के साथ ही रुस्तम राव बाहर निकल गया।


***


उधर देवराज चौहान हैदराबाद में जगमोहन और सोहनलाल के साथ, नईमा प्राइवेट वाल्ट के लॉकर नंबर तीन सौ इक्यावन में से, दरिया-ए-नूर जैसा बेशकीमती हीरा पाने की योजना तैयार कर चुका था।


***

नौ दिन बीत गए। 

मोना चौधरी बाहरी काम निपटाकर जब उस मकान पर पहुंची तो पारसनाथ मिला। 

"आओ मोना चौधरी। " 

मोना चौधरी बैठी।

"बंगाली का फोन आ चुका है कई बार। " पारसनाथ बोला। 

"महाजन नहीं आया?" मोना चौधरी ने पूछा। 

"उसने आना था ?" 

"हां, वो...।"

"मैं आ गया।" 

इन शब्दों के साथ ही महाजन ने भीतर प्रवेश किया। 

दोनों की निगाह महाजन पर गई। महाजन ने पैंट में फंसी बोतल निकाली और आगे बढ़ कुर्सी पर बैठ गया।

"पाली से क्या बात हुई?" मोना चौधरी ने पूछा।

"दो दिन का काम और है उसे। उसके बाद उसे फुर्सत है। "- महाजन बोला।

"पाली?" पारसनाथ ने टोका- "वो जो हर ताला तोड़ने में मास्टर है?"

"हां। " महाजन ने पारसनाथ को देखा "शंकर भाई की तिजोरी वो खोलेगा। उसके हाथ में बहुत सफाई है। ताला-तिजोरी, लॉकर-वाकर खोलना उसके लिए मामूली काम है। "

"हां। " पारसनाथ ने सिर हिलाया- "उसके बारे में सुना तो यही है।"

"अगर दो दिन बाद भी वो खाली नहीं हुआ तो?" मोना चौधरी ने पूछा।

"बेवी।" महाजन मुस्कराया— "मैं एक सप्ताह से पाली के खाली होने का इंतजार कर रहा हूँ। वो किसी लंबे काम में हाथ डाले हुए है और पाली के साथ ये बात तय हो चुकी है कि दो दिन बाद मुझे पूरा हक है कि उसे रस्सा बांधकर खींच लाऊं। 

"उसकी तुम फिक्र मत करो। दो दिन के बाद पाली सिर्फ हमारे साथ होगा।" मोना चौधरी ने हौले से सिर हिलाया। 

तभी पारसनाथ बोला । 

"लंच का वक्त है। मैं बाहर से खाना पैक कराकर लाता हूं 

"लंच में मैं सिर्फ कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स लूंगी।" मोना चौधरी बोली।

पारसनाथ ने महाजन को देखा। 

"और तुम?"

मैं तो पूरा का पूरा लंच लूंगा। " महाजन मुस्कराया 

पारसनाथ वहां से जाने को हुआ कि महाजन बोला। 

"वो-।"महाजन ने पारसनाथ को देखा—"करोड़ कहां है?" 

"संभाल रखा है दिल्ली में " पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा। 

"कहीं, ज्यादा तो नहीं संभाल लिया कि निकालने में ज्यादा ही वक्त लग जाए। "महाजन बोला। 

पारसनाथ ने कुछ नहीं कहा और खामोशी से बाहर निकल गया। आधे घंटे में ही पारसनाथ लंच का सारा सामान ले आया।

लंच शुरू किया गया। महाजन बोला।

"शंकर भाई के बंगले के बारे में कोई खास बात मालूम हुई क्या ?" 

"वैसे तो आमतौर पर वो ही बातें हैं, जो बंगाली ने बताई थी। " मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा—"शंकर भाई के बंगले पर, करीब बारह गनमैन अक्सर मौजूद रहते हैं। यह सब मालूम करने में मुझे पांच दिन लगे। मतलब कि शंकर भाई ऐसा सख्त और उसूलो वाला इंसान है कि, उसके आदमी फालतू बात नहीं करते और शंकर भाई को पसंद नहीं कि उसकी बातें बाहर जाएं। " पल भर ठिठककर मोना चौधरी पुनः कहने लगी "दिन में आठ दस गनमैन होते हैं। परन्तु रात को बारह से कम नहीं। छः गनमैन बंगले की चारदीवारी के भीतर, शाम का अंधेरा होने से पहले ही फैल जाते हैं। आगे-पीछे दाएं-बाएं का, हर तरफ का हिस्सा कवर कर लेते हैं और दिन निकलने तक सतर्क रहते हैं। दो गनमैन बंगले के भीतर ग्राउंड फ्लोर के हॉल में मौजूद रहते हैं। उन्हें हर पल किसी आहट का इंतजार रहता है कि वो अपनी गन का इस्तेमाल कर सकें। इसी तरह दो गनमैन पहली मंजिल पर उस रास्ते पर मौजूद रहते हैं, जो रास्ता शंकर भाई के बेडरूम की तरफ जाता है और बाकी के दो बंगले की छत पर टहलते आसपास का ध्यान रखते हैं। उनके पास गनों की अपेक्षा लाइट मशीन गर्ने होती हैं ताकि नीचे हमलावर ज्यादा आ जाएं तो उन्हें सैकिंडों में भूना जा सके। " 

मोना चौधरी ने महाजन और पारसनाथ पर निगाह मारी।

"ये तो बहुत तगड़ा इंतजाम है। " पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहते कहा, अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा।"

"तगड़े से भी ज्यादा। " महाजन ने बोतल उठाकर घूँट भरा "पूछताछ से जो बातें सामने आई हैं, उस हिसाब से ये इंतजाम करना शंकर भाई की मजबूरी है। शंकर भाई अंडरवर्ल्ड का आधा रास्ता तय कर चुका है। अब उसके सामने हालात यह है कि उसके बराबर वाले या पीछे वाले, उसे निशाना बनाने में लगे रहते हैं कि वो तरक्की करके आगे क्यों बढ़ गया है। ऐसे में कई बार शंकर भाई के बंगले पर भारी तौर पर हमला हो चुका है कि उसे खत्म किया जा सके। परंतु वो हर बार बचा और उसके कदम आगे जिस तरफ बढ़ रहे हैं, वो मुसीबत खुद उसने पाल रखी है। "

"कैसे?"

"मैंने पहले ही कहा है कि शंकर भाई अंडरवर्ल्ड का आधा रास्ता तय कर चुका है और जो बाकी का आधा रास्ता अंडरवर्ल्ड डॉन तक जाता है, वो उस रास्ते को तय कर रहा है। "

"तुम्हारा मतलब है कि शंकर भाई अंडरवर्ल्ड डॉन बनना चाहता है। "महाजन के होंठों से निकला।

पारसनाथ की आंखें सिकुड़ीं।

मोना चौधरी ने सहमति भरे भाव में सिर हिलाया। 

“शंकर भाई के बारे में पूछताछ से जो बातें सामने आई हैं, उससे ये ही बात सामने आती है। शंकर भाई अंडरवर्ल्ड के उन पागल लोगों में से है, जो अपना मकसद हासिल करने के लिए कुछ भी कर देते हैं। किसी भी हद को पार करने का हौसला रखते हैं। " मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा--आज की तारीख में अंडरवर्ल्ड का डॉन जोगी बिन्दा है और शंकर भाई, जोगी बिन्दा को खत्म करके उसकी जगह लेना चाहता है। यह बात जग जाहिर हो चुकी है। ऐसे में जोगी विन्दा भी उसका दुश्मन बन चुका है और वो बड़े दादा भी जो है खुद को डॉन की कुर्सी का हकदार मानते हैं और जोगी बिन्दा को खत्म करके उसकी जगह लेना चाहते हैं। यानी कि अंडरवर्ल्ड की दुनिया इस वक्त ज्वालामुखी के उस मुहाने पर खड़ी है कि कभी भी शहर खून-खराबे से भर सकता है। यही वजह है कि शंकर भाई ने अपने आसपास की सिक्योरिटी जरूरत से भी ज्यादा सख्त कर रखी है और अंडरवर्ल्ड के हालात, हमारे लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। " मोना चौधरी गंभीर थी।

"वो कैसे?"

"इन हालातों के हिसाब से शंकर भाई ने अपने आदमियों को पक्का ऑर्डर दे रखा होगा कि जो भी बंगले में बिना इजाजत घुसने की कोशिश करे, उसे खत्म कर दिया जाए और हमें बंगले में जाना है। फ़ाइल लेने। यह सामान्य हालात नहीं हैं। यहां पहुंचकर हमें गनमैनों का ही मुकाबला नहीं करना, बल्कि उनके दिमाग में भरी उन खतरनाक सोचों का भी मुकाबला करना होगा कि जिन पर वे गोलियां चला रहे हैं वे किसी दूसरे दादा के भेजे लोग हैं। ऐसे में गनमैन और खतरनाक हो जाते हैं। भूखे शेर की तरह। वो सिर्फ सामने वाले को हर हाल में खत्म करते हैं। यानी कि बंगले में प्रवेश करने पर कोई आहट भी हुई, जोकि होगी ही, तो वहां मौजूद गनमैन भूखे शेर की तरह हमारा निशान लेने लगेंगे। वो हमें कोई वार्निंग नहीं देंगे। सीधा निशाना लेंगे।"

"ये तो बहुत खतरनाक बात बता रही हो। "महाजन ने गहरी सांस लेकर कहा—"फांसी देने से पहले तो कानून भी एक बार मन की इच्छा पूछ लेता है। "

"ये कानून नहीं, अंडरवर्ल्ड के लोग हैं।" मोना चौधरी अपने शब्दों पर जोर देकर बोली- "और हालात ऐसे हैं कि वहां कोई मामूली चोर भी घुस गया तो उससे कुछ भी पूछे बिना, उसे किसी बड़े दादा का आदमी मानते हुए फौरन गोलियों से भून देंगे।"

महाजन ने घूंट भरा।

"मुझे तो अंडरवर्ल्ड के भीतरी हालातों का पता नहीं था। यानी कि गलत वक्त पर बंगाली से मामला तय किया। ऐसे में तो शंकर भाई के बंगले की तरफ मुंह करना भी, गोली खाना हुआ।" 

बातों के दौरान उनका लंच करना जारी था।

"तो अब क्या किया जाए? " महाजन बोला। 

पारसनाथ का खुरदरा चेहरा सपाट था। 

मोना चौधरी ने स्नैक्स उठाकर, महाजन को देखा।

"हम वही करेंगे, जो करना है, हम में पहले तय हो चुका है। " मोना चौधरी का स्वर शांत था।

"मतलब कि शंकर भाई के बंगले में फाइल लेने जाना है।" महाजन ने होंठ सिकोड़े।

"हो सकता है, वहां से जिंदा वापस न लौटें।

"कोई बात नहीं।" मोना चौधरी ने महाजन को देखा "कभी तो, कहीं तो ऐसा होना ही है। जरूरी तो नहीं कि हर बार बाजी हमारी ही रहे। दूसरे का भी निशाना सही लग सकता है। " 

"लेकिन जहां पता हो कि जान का खतरा है, वहां—।"

"महाजन। " मोना चौधरी की आवाज में किसी तरह का भाव नहीं था— "खतरा, देखकर मैं जिस दिन पीछे हटी तो समझ लो कि वो मोना चौधरी की जिंदगी का आखिरी दिन होगा। हम खतरों का खेल की खेलते हैं। कभी काम में कम खतरा होता है तो कभी ज्यादा । ये इत्तफाक ही है अंडरवर्ल्ड, के बुरे हालातों की वजह से शंकर भाई के यहां सख्त पहरेदारी है। वरना इतना भारी खतरा न होता ।" 

महाजन सोच भरे ढंग से लंच में व्यस्त रहा। -

पारसनाथ अभी तक बीच में नहीं बोला था। धीमी रफ्तार से लंच ले रहा था।

"तुम चाहो तो इस काम से हट सकते—।"

"क्या बात करती हो बेबी। लंच का मजा खराब कर दिया— " महाजन ने तीखी निगाहों से मोना चौधरी को देखा"। मैं कभी इस तरह पीछे हटा हूं। जहां तुम जा सकती हो, वहां मैं क्यों नहीं जा सकता। तुम खतरा ले सकती हो तो मैं क्यों नहीं ले सकता। सोच-समझकर बात किया करो।"

मोना चौधरी के होंठों पर शांत मुस्कराहट उभरी।

तभी महाजन ने पारसनाथ को देखा।

"वो करोड़ कहां रखा है। बता देना। अगर तू मर खप गया और मैं बच गया तो करोड़ को कहां ढूंढता फिरूंगा।"महाजन कह उठा। 

"मुझे कुछ हो गया तो वो पैसा मोना चौधरी के पास पहुंच जाएगा।"

"अगर बेबी भी न रही तो?"

"तो तुम्हारे पास —।" "फिर ठीक है। " महाजन ने खुश होने वाले ढंग में कहा।

परंतु पाली, जिसे साथ ले जाना था। जिसने शंकर भाई की तिजोरी खोलनी थी। उसे दो दिन बाद भी फुर्सत न मिती ने उसे बहुत तलाशा पाली कहीं भी न मिला। ढूंढते-ढूंढते तेरहवें दिन पानी मिला। तंब वो फुर्सत में था और काम के लिए तैयार था। महाजन मोना चौधरी ने रात को ही, शंकर भाई के बंगले में प्रवेश करना, तय कर लिया।

हैदराबाद में देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल ने दसवें दिन, सशक्त योजना के साथ, नईमा प्राइवेट वाल्ट में डकैती की। 

वाल्ट के लॉकर नंबर तीन सौ इक्यावन को सोहनलाल ने खोला वहां काली थैली में मौजूद बेशकीमती हीरा दरिया-ए नूर मौजूद था। देवराज चौहान ने थैली को जेब में डाला। टमाटर का आकार का हीरा किसी तरह जेब में आ ही गया।

उसके बाद खामोशी से वहां से निकल गए

नईमा प्राइवेट वाल्ट में पड़ने वाली डकैती की वजह से हैदराबाद की पुलिस तेजी से हरकत में आ गई। निजाम के वारिसों ने बता दिया था कि लॉकर में बेशकीमती हीरा दरिया ए नूर था। पुलिस के लिए इतना ही बहुत था, तेजी से हरकत में आने के लिए। 

पुलिस की ऐसी भागदौड़ के बीच हैदराबाद से निकलना ठीक नहीं था। परंतु ज्यादा देर वे हैदराबाद में रह भी नहीं सकते थे। ऐसे में उन्होंने अलग-अलग होटलों में रहकर दो दिन निकाले और तेरहवें दिन वो ट्रेन में सवार हो गए, जिसने चौदहवें दिन रात तीन बजे के में करीब मुंबई पहुंच जाना था।

***