शाम के पांच बज रहे थे, जब रुस्तम राव ने सोहनलाल के घर के सामने कार रोकी। दरवाजा अधखुला था ईजन बंद करके उसने चाबी जेब में डाली और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
दरवाजा धकेला रुस्तम राव ने भीतर प्रवेश किया।
सोहनलाल फोल्डिंग पर अधलेटा सा, गोली वाली सिगरेट के कश ले रहा था। रुस्तम राव को सामने पाकर, हैरान हुआ फिर जल्दी से उठ बैठा।
"तू —।" सोहनलाल के होंठों से अजीब सा स्वर निकला- "यहां?"
जालिम मुस्कराया। उसके मासूम चहरे पर शांत मुस्कान उभरी। "सलाम बाप--" कहने के साथ ही रुस्तम राव कुर्सी खींचकर बैठ गया।
सोहनलाल जानता था कि सामने बैठा सोलह बरस का लड़का कितना खतरनाक है। इसकी उम्र या इसके चेहरे पर झलकती मासूमियत के चक्कर में वो धोखा नहीं खा सकता था। जो मोना चौधरी को धोखा देकर चक्कर में डाल सकता है, जो कालूराम जैसे दरिन्दे को अकेला खत्म कर सकता है। वो , वो हर बात कर सकता हैं, जो अभी तक उसके सामने नहीं हुई थी।
"तेरे को मेरे घर का कैसे पता चला?" सोहनलाल के होंठों से निकला।
"बाप। आपुन अक्खा मुंबई में सबकी खबर रखता है। ये तो मामूली बात है। "
सोहनलाल मुस्कराया। जेब से गोली वाली सिगरेट निकाली। "लेगा?" सोहनलाल ने मुस्कराते हुए ही उसकी तरफ सिगरेट बढ़ाई।
रुस्तम राव मुस्कराया।
"संभल जा बाप तेरकू मालूम है आपुन नशा नहीं करता। तू भी छोड़ दे। नेई तो जल्दी मरेला।
"जो काम तुमने कभी किया नहीं। " सोहनलाल ने सिंगरेट वापस जेब में डाली "उसे छोड़ने के लिए कहना गलत है। हो सकता है। इसमें तेरे को इतना मजा आए कि लगे जिंदगी इसी का नाम है। "
"आपुन नशे पर लानत भेजेला है। तेरे को पैले भी समझाएला कि छोड़ इसे नेई मानेला तू। अभ्भी मेरे को बोएला है नशा करने का। बोत जल्द तू डूबेला बाप नशा तेरे को ले मरेला ।"
सोहनलाल मुस्कराया।
रुस्तम राव शांत निगाहों से सोहनलाल को देखता रहा।
"तेरा इरादा तो मेरे को डुबोने का नहीं हैं। " सोहनलाल बोला ।
"डुबते को आपुन क्या डुबेला । " रुस्तम राव मुस्कराया।
"फिर कोई चिंता नहीं। मेरे डूबने में अभी बोत वक्त है।
"तेरे से काम होएला बाप।" रुस्तम राव ने कहा।
“क्या?" सोहनलाल ने लड़के की नीली आंखों में देखा
“एक तिजोरी खोलना है।"
"तेरे को इंकार नहीं। जल्दी बता तिजोरी कहां है। मेरे पास वक्त कम है। " सोहनलाल ने कहा।
"तिजोरी अम्भी इधर को नेई है। तेरे को पैले ही फिक्स करने के वास्ते आएला है। वो तिजोरी पांच-दस-बारह दिन बाद सामने को आएला। " रुस्तम राव बोला।
सोहनलाल ने गहरी सांस ली।
"फिर तो किसी और से बात कर ले। "
"क्यों बाप, मुझसे क्या खता होएला है?"
"मैंने ये बोला।" सोहनलाल मुस्कराया।
"नेई बाप। " लड़के ने अपने दोनों कान पकड़े।
"मैं आज रात की ट्रेन से देवराज चौहान और जगमोहन के साथ हैदराबाद जा रहा हूं। मेरी वापसी कब होगी कह नहीं सकता। इसलिए मेरे भरोसे रहकर कुछ करना, नुकसान का सौदा होगा।"
“समझेला बाप"
"बात क्या है? वो किसकी तिजोरी है, जो...।"
"बाप, जब तू मैदान से बाहर होएला तो, पूछेला क्यों । आपुन कोई और इंतजाम करेला।"
सोहनलाल ने फौरन सहमति में सिर हिला दिया।
रुस्तम राव उठ खड़ा हुआ।
“कालूराम, तेरे को भी मार सकता था।" सोहनलाल देखा—"तेरी किस्मत अच्छी थी कि जिस इंसान की बांह को टेड़ी करना कठिन था, उसे तूने हाथों से मार दिया। "
कालूराम के बारे में जानने के लिए पढ़ें, अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित दो उपन्यास 'हमला' एवं 'जालिम'
"आपुन तो बच्चा होएला बाप।" रुस्तम राव मुस्कराया।
वो तो गलती से हाथ कालूराम पर जा पड़ा था। नेई तो वो जिन्दा ही रहता।
“किस्मत वाला है कि उसका हाथ तेरे पर नहीं पड़ा। सोहनलाल मुस्कराया।
लड़का भी मुस्कराया और बाहर निकलता चला गया।
***
शाम ढल चुकी थी। अंधेरा हो चुका था। देवराज चौहान और जगमोहन बंगले से चलने की तैयारी पर थे। हैदराबाद के लिए सवा घंटे बाद ट्रेन रवाना होनी थी। दोनों का सामान एक ही एयर बैग में था।
"स्टेशन के लिए टैक्सी ले लेते। " जगमोहन ने कहना चाहा। ।
"कार ले चलो स्टेशन के पार्किंग में खड़ी रहेगी।" देवराज
चौहान बोला।
जगमोहन ने सिर हिलाया। “सोहनलाल अपने घर पर, हमारा इंतजार कर रहा होगा।"
"निकल चलते हैं। वक्त भी ज्यादा नहीं रहा। " देवराज चौहान ने कहा और सिगरेट सुलगा ली।
जगमोहन ने एयर बैग उठाया।
देवराज चौहान ने बंगले के मुख्यद्वार की चाबी उठाई। दोनों दरवाजे की तरफ बढ़े ही थे कि ठिठक गए। दोनों की निगाहें आपस में मिली फिर दरवाजे की तरफ देखने लगे।
दरवाजे पर फकीर बाबा खड़ा था।
"मुम्बई से बाहर जा रहे हो देवा?" फकीर बाबा ने शांत स्वर में कहा।
"हां"
"मुझे खुशी है कि अब तुम्हारे और मिन्नो के बीच होने वाला झगड़ा टल जाएगा। मैं जानता था तू मेरी बात मानेगा। बे वजह झगड़ेगा नहीं। " कहने के साथ ही फकीर बाबा पलटकर आगे बढ़ गए।
जगमोहन जल्दी से आगे बढ़ा।
बाहर देखा।
फकीर बाबा कहीं भी नहीं था।
देवराज चौहान भी बाहर निकला। दरवाजा बंद करके लॉक किया।
"ये बाबा ऐसे गायब हो जाता है, जैसे हवा हो।" जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा।
जवाब में देवराज चौहान मुस्कराया। फिर बोला।
"वो बहुत शक्तियों का मालिक है। वो इंसानों की पहुंच से दूर है। ये शायद उसकी कोई मजबूरी है कि बार-बार उसे हम लोगों के सामने आना पड़ता है।" कहने के साथ ही देवराज चौहानं सामने पोर्च में खड़ी कार की तरफ बढ़ गया— "आओ, सोहनलाल को लेते, स्टेशन पहुंचना है। देर नहीं होनी चाहिए
***
तीन दिन बीत गए। रुस्तम राव, बांकेलाल राठौर के पास पहुंचा।
"आ छोरे म्हारे को थारी बोत याद आ री थी। बै-जा। बै-जा। " बांकेलाल राठौर मुस्कराया।
रुस्तम राव बैठा। उसके मासूम चेहरे पर मुस्कान थी।
"फाइल वाले कामों का तन्ने का कियो छोरो। मामला कां तक बढो हो ?"
"कई नेई बाप उधर ही अडेला है। "
"का मतलब?"
"फाइल को शंकर भाई के पास से खिसकाने का मामला बोत कठिन होएला है। वां।"
“यो तू बोले हो छोरे। " बांकेलाल राठौर का हाथ अपनी मूंछ पर पहुंच गया।
"बिल्कुल आपुन बोला है।"
"तू इंकार करके, म्हारे यार के सामने म्हारी आंख नीची करायो।
"आपुन इंकार नेई करेला बाप-।"
"तो?"
“शंकर भाई के उधर तगड़ा पहरा होएला। पण आपुन के दिमाग में शार्टकट रास्ता आएला है। "
"का रास्ता हीवे थारो पास।" बांकेलाल राठौर ने गंभीर निगाहों से उसे देखा।
रुस्तम राव ने कान मसला फिर कह उठा।
"आपुन ने शंकर भाई का वो बंगला चैक करेला तो मोना चौधरी को देखेला। आपुन पैले ही बोएला था कि मोना चौधरी इस चक्कर में होएला। पूरा चांस है। वो ही होएला।"
बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ गई। “थारे को देखो हो, मोना चौधरी ?"
"नहीं। उसका नजर आपुन पर नेई पड़ेला।" रुस्तम राव ने होंठ सिकोड़े— "पण मामला आपुन की समझ में फिट बैठेला है कि फकीर बाबा ठीक बोएला देवराज चौहान को, कर्मे की बात नेई सुनना। काम नेई करना। मोना चौधरी से टक्कर हो जाएला बाप। आपुन का ख्याल है, मोना चौधरी भी फाइल के चक्कर में होएला बाप?"
“थारे को कैसे मालूम?"
"अभ्भी भी मालूम होएला बाप तू कर्मों को फोन पर पूछेला कि उसका पार्टनर बंगाली मोना चौधरी को जानेला क्या ?"
बांकेलाल राठौर ने कर्मपाल सिंह को फोन किया। दो मिला। बात हुई।
"बांके मेरा काम हुआ कि नहीं। वो फाइल...।"
"पैले म्हारी बात सुन - "
"क्या?"
“थारा जो पार्टनर हौवे था। बंगाली, वो मोना चौधरी को जाने हो का?"
पल भर की चुप्पी के बाद कर्मपाल सिंह की आवाज आई। "वो तो नहीं जानता मोना चौधरी को। लेकिन उसने दो-चार बार इस बात का जिक्र किया था कि अगर कभी कोई बड़ा काम फंसा तो मोना चौधरी से करवाएगा। मोना चौधरी तक उसकी पहुंच है। "
"बल्ले-बल्ले। फिर वो बंगाली मोना चौधरी के पास फाइल पानो वास्ते जा सको है का?"
"ओह। " कर्मपाल सिंह का बेचैन स्वर कानों में पड़ा—"बांके, बंगाली फाइल पाने के लिए, मोना चौधरी से ही मिला होगा। पक्का उसी के पास दिल्ली पहुंचा होगा। "
बांकेलाल राठौर ने गंभीर भाव में रिसीवर रखा।
“तंम ठीक कहो हो। बंगाली, मोना चौधरी से मिल्लो और मोना चौधरी फाइल पाने के फेर में हौवो हो ।
रुस्तम राव मुस्कराया।
‘‘अगर देवराज चौहान कर्मे का काम हाथ में लेता तो, देवराज चौहान मोना चौधरी में टकराव हो जाता।
“बात तो थारी चौखी हौवे। ईब तम का करो हो फाइल पानो, को?"
“आपुन सोचेला है कि मोना चौधरी को फाइल ले जाने दूं।"
“काये के वास्तो।" बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ी— "तंम उससे डरो हो। म्हारे होते हुए काणों फिक्र करो हो। वक्त आवे तो मोना चौधरी को 'वड' के रख दयो। "
“बाप । मोना चौधरी काम करेला । आपुन को विश्वास है कि वो फाइल ले लेगा। " रुस्तम राव बोला।
"थारे को तो पता ही हौवे, अंमने अपनो यार से वादा करो कि वो फाइल, उसो को "
"बांके।" रुस्तम राव मासूमियत से मुस्कराया—“शंकर भाई से इस वक्त फाइल लाने में दिक्कत आएला है। पण मोना चौधरी से फाइल लेने में कोई दिक्कत नहीं आएला। " बांकेलाल राठौर के माथे पर बल पड़े।
“थारा मतलब हौवे कि...कि...।"
"हां। आपुन का मतलब ये ई होएला बाप। इधर मोना चौधरी फाइल लेकर निकेला और उधर आपुन उससे ले लेगा। ये सबसे आसान रास्ता होएला बाप । "
"ये तो खतरों वाला काम हो गयो ?"
"कैसे बाप ?"
"मोना चौधरी नागिन से को चीजो छीनना आसान हौवे का और फिर सीधो उससे टक्कर लेनो ठीक न हौवो। वो म्हारे से ज्यादा तेजो हौवे। " बांकेलाल राठौर के चेहरे पर गंभीरता आ गई।
"आपुन के पास तो फाइल पाने का येई रास्ता बढ़िया होएला।"
उन दोनों के बीच कई पलों तक चुप्पी रही।
रुस्तम राव के चेहरे पर बराबर मुस्कान छाई हुई थी।
"ठीको।" बांकेलाल राठौर ने हौले से सिर हिलाया-"पण म्हारें को ये बतायो कि तम उससे फाइल नं ले सको तो?"
"वो देखना आपुन का काम है बाप । "
बांकेलाल ने उसे गहरी निगाहों से देखा।
“थारे को कैसे मालूम हौवे कि मोना चौधरी फाइल पाने के वास्तो वहां कबो जायो।"
आपुन के दो आदमी बराबर मोना चौधरी पर नजर रखेला है बाप और मोबाइल पर हर एक घंटे में मोना चौधरी की हरकत की खबर आपुन को मिलता है। समझा बांके।"
“बांके तो सब समझो। पण मोना चौधरी के सामने जाना खतरो वाला काम हौवो। "
रुस्तम राव उठ खड़ा हुआ।
"म्हारी जब जरूरत तो बता दयो। " बांकेलाल राठौर ने सिर हिलाकर कहा।
“पक्का बाप। वक्त आने पर आपुन तेरे को बोलेगा।" कहने के साथ ही रुस्तम राव बाहर निकल गया।
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उधर देवराज चौहान हैदराबाद में जगमोहन और सोहनलाल के साथ, नईमा प्राइवेट वाल्ट के लॉकर नंबर तीन सौ इक्यावन में से, दरिया-ए-नूर जैसा बेशकीमती हीरा पाने की योजना तैयार कर चुका था।
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