जन्मजात दुष्ट
‘क्या कोई जन्मजात दुष्ट हो सकता है?’ लोबो ने मिस रिप्ली-बीन को नींबू पानी का गिलास थमाते हुए पूछा। वे लोग होटल रॉयल के बरामदे में धूप में बैठे थे। ‘जन्म से जवानी तक और फिर बूढ़ा होने तक - पूरी तरह दुष्ट। कोई ऐसा जिसकी अंतरात्मा ही न हो, जो बिना परेशानी के दूसरों के साथ निर्मम व्यवहार कर सकता हो, जिसे इस बात की परवाह ही न हो कि दुनिया उसके बारे में क्या सोचेगी। कोई हिटलर जैसा?’
‘हिटलर शाकाहारी था,’ मिस रिप्ली-बीन ने प्लेट से बिस्कुट उठाकर अपने तिब्बती कुत्ते फ़्लफ़ को देते हुए कहा। फ़्लफ़ ने लपककर बिस्कुट खा लिया। होटल के सभाकक्ष में लगे नोटिस पर लिखा था ‘कुत्तों को साथ लाना मना है।’ लेकिन मिस रिप्ली-बीन आराम-से उस नोटिस की अनदेखी कर देती थीं। आख़िरकार, फ़्लफ़ साधारण कुत्ता नहीं था!
‘इसका मेरी बात से क्या संबंध है?’ लोबो ने उत्सुक होकर पूछा। ‘शाकाहारी होने का?’
‘शायद हिटलर पशुओं के प्रति दयालु था। वह पशुओं के मारने और उन्हें खाने के पक्ष में नहीं था। पर हाँ, वह यहूदियों, रूसियों और जिप्सी और काले रंग के लोगों से घृणा करता था।’
‘और उन्हें बिना संकोच के मार डालता था, या अपने नौकरों से मरवा देता था। उसे लगता था कि यह उसका दायित्व है। या शायद, उसकी कोई नीति।’
‘और यह मत भूलिए कि उसका यह व्यवहार घृणा से प्रेरित था।’
‘तो क्या आप यह कहेंगे कि वह जन्मजात दुष्ट था?’
‘मुझे लगता है दुष्टता उसके भीतर बाद में उत्पन्न हुई,’ मिस रिप्ली-बीन ने फ़्लफ़ को एक और बिस्कुट देते हुए कहा। बिस्कुट की प्लेट जल्द ही ख़ाली होने वाली थी।
मिस रिप्ली-बीन और लोबो, दोनों ही होटल के मेहमान नहीं थे। मिस रिप्ली-बीन के पिता ने आज़ादी के समय, नंदू के पिता को वह होटल इस शर्त पर बेचा था कि उनकी पुत्री मिस रिप्ली-बीन वहाँ आजीवन रह सकेगी। उसके कुछ ही समय बाद उनकी मृत्यु हो गई। लोबो, होटल में पियानोवादक था। वह कुछ वर्षों से वहाँ रहता था। वह रोज़ शाम को होटल के बरामदे में बैठ जाता और मेहमानों के लिए उनकी पसंद के या फिर अन्य चर्चित गानों की धुनें बजाया करता था। 1960 के दशक में पर्वतीय इलाक़ों की माँग में गिरावट आई थी और इसके चलते रॉयल जैसे अच्छे होटलों पर भी इसका बुरा असर पड़ा था।
मिस रिप्ली-बीन और लोबो में अनूठी मित्रता थी। मिस रिप्ली-बीन लगभग सत्तर वर्ष की थीं और लोबो की आयु चालीस थी। दोनों में से किसी ने विवाह नहीं किया था। लोबो को मिस रिप्ली-बीन के मुँह से पुराने मसूरी शहर एवं दून घाटी के किस्से सुनना पसंद था और मिस रिप्ली-बीन को लोबो द्वारा पियानो पर वियना के संगीत और पुरानी फ़िल्मों के रोमांटिक गानों की धुनें सुनना अच्छा लगता था। मिस रिप्ली-बीन को फ़िल्मों का बहुत शौक़ था। वह एडी कैंटर, एल जोल्सन, फ़्रेड एस्टेयर, नेल्सन एडी और ग्रेटा गार्बो की प्रशंसक थीं, किंतु यह 1930 और 1940 के दशक की बात है, जब सिनेमा जगत में विदेशी फ़िल्मों की बाढ़ आई हुई थी। उसके बाद के सालों में मिस रिप्ली-बीन की नज़र कमज़ोर हो गई थी और अब उन्हें रिक्शा चलाने और दुकान पर बैठने वाले लड़कों के साथ सबसे आगे की पंक्ति में बैठकर ही कुछ दिखाई पड़ता था। इसके अतिरिक्त, सिनेमाघर में फ़्लफ़ को ले जाना संभव नहीं था; इस बात का डर रहता था कि वह किसी के पैर पर पेशाब कर देगा।
‘मैं ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानता, जो पूरी तरह दुष्ट हो,’ लोबो ने सोच-विचार करने के बाद कहा। ‘यहाँ तक कि हिटलर भी कुछ मामलों में दयालु था। उसने ईवा ब्रौन से प्यार किया और उसी के साथ मर गया। क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानती हैं जो पूरी तरह दुष्ट हो? जो जन्मजात दुष्ट हो और अंत समय तक दुष्ट रहा हो?’
‘दुष्टता, मनुष्य के व्यक्तित्व की एक आसामान्य अवस्था है, जो जन्म के समय से ही मस्तिष्क में अंतर्निहित होती है,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा।
‘आपका आशय है कि यह आनुवांशिक गुण है - इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता?’
‘मैं पूरे विश्वास से तो नहीं कह सकती। मैं एक दंपति को जानती थी। वे दोनों अच्छे लोग थे, फिर भी उनका एक बेटा था जो अपराध ऐसे करता था, जैसे बतख पानी में तैरती है।’
‘अपराध करने की यह प्रवृत्ति बहुत पीछे, हमारे पूर्वजों तक जा सकती है।’
‘हाँ, यह काफ़ी सीमा तक संभव है। यह युवक, बल्कि कहें, लड़का बहुत ही आकर्षक और भोला-भाला दिखता था। वह देवदूत जैसा लगता था। सब लोग उससे प्रभावित थे - बूढ़ी महिलाएँ, युवा औरतें, कड़क हेडमास्टर, चिड़चिड़े फौजी अफ़सर, बड़े लड़के, छोटे लड़के, स्कूल की लड़कियाँ। वह सबको देखकर मुस्कराता था। वह कितना विनम्र और सदाचारी था! परंतु वह सबसे घृणा करता था - उसे हरेक से नफ़रत थी!’
‘लेकिन क्यों? क्या इसके पीछे कोई कारण था?’
‘कुछ नहीं। बस, वह ऐसा ही था। उसके लिए इंसानों का कोई महत्त्व नहीं था। वे सब उसके लिए खिलौने जैसे थे। वह उनसे खेलता और फिर उन्हें छोड़ देता था। परंतु छोड़ने से पहले, वह उन्हें थोड़ा अथवा ज़्यादा नुक़सान अवश्य पहुँचा देता था।’
‘यह दुष्टता का आदर्श उदाहरण कौन था? लगता है आप उसे अच्छी तरह जानती थीं।’
मिस रिप्ली-बीन ने फ़्लफ़ को एक और बिस्कुट दिया। ‘उसका नाम एलेक्ज़ेंडर था। हाँ, मैं उसे जानती थी, पर ठीक से नहीं जानती थी। उसे कोई नहीं जानता था। वह एक तरह से, अपनी ही बनाई दुनिया में रहता था। वह कुछ भी कर सकता था। जैसे, किसी की मोटरसाइकिल की पेट्रोल-टंकी में माचिस की तीली फेंककर उसे जलते हुए देखना या फिर, दीपावली में हेडमास्टर के शयन-कक्ष की खुली खिड़की के अंदर रॉकेट छोड़कर उसके बिस्तर में आग लगा देना!’
‘वह अवश्य ही सनकी रहा होगा,’ लोबो ने कहा।
‘हाँ, लेकिन मामूली सनकी नहीं,’ यह कहकर मिस रिप्ली-बीन ने एक और बिस्कुट फ़्लफ़ को दे दिया, जिसे उसने तुरंत लपक लिया। ‘वह दिमाग़ से सनकी था, लेकिन दुष्ट था - राजा नीरो की तरह, जिसे भूखे शेरों द्वारा अपने ग़ुलामों को चीरकर खाते देखना अच्छा लगता था। एलेक्ज़ेंडर को आग देखकर उत्तेजना होती थी। उसे अग्निकांड पसंद थे! यदि उसे कहीं से पता लगता कि मसूरी या देहरादून आदि किसी स्थान पर किसी इमारत में आग लगी है, तो वह उसे देखने पहुँच जाता था। वह आग बुझाने वालों की सहायता करने का ढोंग भी करता और उनके साथ मिलकर काम करता, किंतु उसे असली मज़ा, आग को फैलते देखने तथा आग में फँसे, या छतों पर दौड़ते और खिड़कियों से नीचे कूदते लोगों की चीख़-पुकार सुनने में आता था।
‘1940 के दशक के अंत में एक बार होटल ग्रीन में आग लग गई। उसकी नृत्यशाला जल रही थी। एलेक्ज़ेंडर उस समय स्कूल में पढ़ता था। उसका परिवार भी उसी होटल के एक हिस्से में रहता था। होटल के बाहरी भाग में नृत्यशाला थी, जो युद्ध के दिनों में बनी थी। अमेरिकी और अंग्रेज़ सैनिक शाम के समय वहाँ आते और आंग्ल-भारतीय लड़कियों के साथ नृत्य किया करते थे। वे लड़कियाँ बहुत सुंदर थीं और बड़ा अच्छा नृत्य करती थीं। उन्हें लेकर झगड़े भी हो जाते थे। अमेरिकी सैनिकों के पास निस्संदेह ख़र्च करने के लिए अधिक पैसा था और यही झगड़े का कारण बनता था।’
‘उस समय एलेक्ज़ेंडर चौदह वर्ष का था। उसे उन बातों की समझ नहीं थी किंतु उसे जिम्मी कॉटन और उसके बैंड को सुनना पसंद था। वह बैंड दिल्ली के होटल इम्पीरियल से ख़ास तौर पर, होटल ग्रीन में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करने आता था।’
‘किसी को नहीं पता आग कैसे लगी। कोई सोच भी नहीं सकता था कि एलेक्ज़ेंडर का उस आग से कुछ संबंध था। वह बहुत आकर्षक और भोला लड़का था और बैंड के पीछे बैठकर, उत्साह-से चमकती आँखों से सिर्फ़ बैंड को देखता और टैंगो की धुन पर थिरकता या रुंबा की ताल पर झूमता था। हवा में सिगरेट का धुआँ इतना फैला हुआ था कि किसी का ध्यान आले से निकलते धुएँ की तरफ़ नहीं गया। क्या किसी ने कालीन पर जलती सिगरेट फेंकी थी? हालाँकि, यह लापरवाही है किंतु पार्टियों में ऐसी घटना होना आम बात है। कालीन गंदे हो ही जाते हैं, लेकिन यहाँ कालीन, मिट्टी के तेल से भीगा हुआ था। शायद दीपक से तेल नीचे गिरा और कालीन ने पलक झपकते आग पकड़ ली तथा पूरी नृत्यशाला धुएँ से भर गई।
‘आग! आग!’ एलेक्ज़ेंडर चिल्लाया।
‘जल्द ही, पर्दों ने भी आग पकड़ ली, नृत्य रुक गया और बैंड बजना बंद हो गया। हाँ, नृत्य रुक गया था, लेकिन अब एलेक्ज़ेंडर नाच रहा था। वह अपनी ही किसी धुन पर नृत्य कर रहा था और उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी।’
‘नृत्यशाला में घबराहट फैल गई। लड़कियाँ, सैनिक, संगीतकार, वेटर - सब निकास-द्वार की ओर भागने लगे। बाहर निकलने का केवल एक द्वार था और इस भगदड़ में दो लड़कियाँ नीचे गिर गईं तथा भीड़ द्वारा कुचले जाने से मारी गईं। दमकल के पहुँचने तक आग पूरी तरह बेक़ाबू हो चुकी थी। एलेक्ज़ेंडर ने आग बुझाने वाले लोगों की सहायता का भरपूर दिखावा किया। उसने उन्हें निर्देश दिए, पानी के पाइपों को दिखाया। सबने उसकी प्रशंसा की। हालाँकि, वह सब नाटक था। किसी को इस बात का पता ही नहीं लगा कि वही असली अपराधी है!’
‘दुष्ट!’ लोबो ने कहा।
‘बिलकुल। देवदूत जैसा चेहरा और राक्षस जैसा दिमाग़। तुम्हें पता है, दुनिया अपराधियों से भरी है और उनमें से बहुत-से जेल में इसलिए बंद हैं ताकि बाक़ी समाज सुरक्षित रह सके। परंतु ये लोग, अधिकांश तौर पर, आम इंसानों जैसे होते हैं - मेरे और तुम्हारे जैसे - जो राह भटक गए, जिन्होंने मर्यादा की सीमा लाँघी, जो अपनी पशु-वृत्ति का शिकार हो गए अथवा लोभ में फँस गए और फिर उसकी क़ीमत चुकाई। परंतु एलेक्ज़ेंडर लगातार दुष्टताएँ करता था। वह एक दुष्कर्म करके, निर्लज्जता से दूसरे कृत्य की ओर बढ़ जाता था और हर बार सुरक्षित बच निकलता था।’
‘उसके बाद क्या हुआ?’
‘कुछ छिट-पुट घटनाएँ हुईं। किसी सिनेमाघर में, फिर किसी रेलवे स्टेशन पर आग लगी, परंतु समय रहते उनका पता लग गया और स्थिति पर नियंत्रण पा लिया गया। एलेक्ज़ेंडर के स्कूल की व्यायाम-शाला में बहुत रहस्यमय ढंग से आग लगी थी। उसने सोलह वर्ष की आयु में अपने माता-पिता के घर में भी आग लगा दी थी। वे लोग उस समय राजपुर में रहते थे। वह इतना बड़ा और शानदार बंगला था कि एलेक्ज़ेंडर के माता-पिता उसके एक हिस्से को अतिथि-गृह की तरह प्रयोग करते थे। परंतु एलेक्ज़ेंडर के रहते, अतिथि वहाँ अधिक देर नहीं टिक पाते थे। वह उनके कमरों में साँप, बड़ी छिपकलियाँ अथवा अपने हाथ से बनाए बदबूदार बम रख देता था। अतिथि अपने बिल का भुगतान करके अन्यत्र चले जाते थे। यहाँ तक कि वह अपनी छोटी बहन को भी सताता था। एक दिन, वह जब सो रही थी, तो एलेक्ज़ेंडर ने उसके सिर के बीच-बीच के कुछ बाल छोड़कर अधिकांश बाल काट डाले। इसके लिए, एलेक्ज़ेंडर के पिता ने उसकी जमकर पिटाई की थी।’
‘वह बदला लेने के लिए बेचैन था। एक दिन जब वे सब लोग रविवार को चर्च गए थे, तो उसने घर के रसोइए और माली को किसी काम से बाहर भेज दिया और फिर बैठक के फ़र्नीचर को एक जगह इकट्ठा करके उसमें आग लगा दी।’
‘मैं आज गाय फ़ॉक्स बन गया हूँ,’ एलेक्ज़ेंडर ने अदृश्य दर्शकों को सुनाते हुए घोषणा की। गाय फ़ॉक्स, जिसने एक बार ब्रिटेन की संसद में आग लगाने का प्रयास किया था, एलेक्ज़ेंडर के लिए इतिहास का नायक था।
‘घर के फ़र्नीचर की ज़ोरदार होली जली। एलेक्ज़ेंडर द्वारा लगाई आग सोफ़ा और मेज़ से, महँगे कालीनों तक और फिर पर्दों से होती हुई एक कमरे से दूसरे कमरे में फैलने लगी। वह भीषण आग ऊपर-नीचे, पूरे घर में सब जगह फैल गई।’
‘रसोइया जब काम करके वापस लौटा तो उसने देखा कि रसोई जल चुकी थी और आग की लपटें शयन-कक्ष की खिड़की से बाहर निकल रही थीं। क्या बाबा सुरक्षित हैं? वह भला व्यक्ति था और उसे घर के शैतान बच्चे एलेक्ज़ेंडर की चिंता थी। वह सोच भी नहीं सकता था कि स्वयं एलेक्ज़ेंडर ने ही घर में आग लगाई थी। वह बाबा - एलेक्ज़ेंडर को घर के नौकर इसी नाम से बुलाते थे - का नाम पुकारता हुआ भीतर भागा। तभी कालिख से भरा एलेक्ज़ेंडर, घर के एक हिस्से से बाहर निकल आया।
‘घर में आग लग गई,’ उसने धीमे-से कहा। ‘बेहतर है कि दमकल को पुकारो।’
‘परंतु राजपुर में कोई दमकल नहीं थी। रसोइया, माली और पड़ोसी मिलकर भी पानी की बाल्टियों से अधिक कुछ नहीं कर पाए। एलेक्ज़ेंडर के माता-पिता और उसकी बहन चर्च से वापस लौटे तो उनके सामने उनके घर के जले हुए अवशेष रह गए थे। और उनका पालतू अल्सेशियन कुत्ता आग की लपटों में ग़ायब हो गया था।’
लोबो ने मिस रिप्ली-बीन को नींबू पानी का एक गिलास और दिया, तो बदले में मिस रिप्ली-बीन ने भी फ़्लफ़ को एक बिस्कुट खिलाया।
‘तो फिर एलेक्ज़ेंडर का क्या हुआ? क्या उन्होंने उसे सुधार-गृह भेज दिया?’
‘अरे नहीं, वह उससे बहुत प्यार करते थे। उनके लिए यह स्वीकार करना संभव ही नहीं था कि एलेक्ज़ेंडर यह सब कर सकता है, हालाँकि, उन्हें शायद इस बात का एहसास रहा होगा कि वह शैतान का अवतार था। हम अपने बच्चों की दुष्टता पर कभी विश्वास नहीं कर सकते, है न?’
‘मुझे नहीं पता,’ लोबो ने, जो पक्के तौर पर अविवाहित था, उत्तर दिया।
‘मैं भी नहीं जानती,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘लेकिन मैंने इतने वर्षों में ऐसे बहुत-से लोग देखे हैं जो अपने प्यारे टॉम, देव या डैनी द्वारा जघन्य अपराध किए जाने के बावजूद, उनकी सफ़ाई में दौड़े आते हैं। इसी तरह, एलेक्ज़ेंडर के माता-पिता भी अपने दुष्ट बेटे को बचाते रहे हालाँकि, उसने स्वयं अपना ही घर जला डाला था!’
‘एलेक्ज़ेंडर कॉलेज नहीं जा सका। उसे पहले ही दो स्कूलों से निकाला जा चुका था। इसलिए उसके माता-पिता ने उसे लण्ढोर के एक बाइबल स्कूल में भेज दिया, जिसे कुछ साधारण अमेरिकी धर्म-प्रचारक चलाते थे। उन शिक्षकों का कहना था, “बेचारे एलेक्ज़ेंडर के साथ बहुत बुरा हुआ - इसके माता-पिता और अध्यापकों ने इसे हमेशा ग़लत समझा। हम लोग इसे ईश्वर के बताए मार्ग पर चलाएँगे और कौन जाने, यह किसी दिन एक अच्छा धर्म-प्रचारक बन जाए!” उन लोगों ने एलेक्ज़ेंडर को सामुदायिक पुस्तकालय का प्रभारी बना दिया।
‘ऐसा करने से वह अवश्य सुधर गया होगा।’
‘बिलकुल नहीं। क़िताबें! इतनी सारी क़िताबें। उन्हें देखकर नन्हें जुगनू को लालच आ गया। जलाने के लिए इससे बेहतर क्या होगा? क़िताबें बहुत बढ़िया ढंग से जलती हैं और वैसे भी, इनकी ज़रूरत किसे है। कम-से-कम एलेक्ज़ेंडर तो ऐसा ही सोचता था क्योंकि वह हर वस्तु के महत्त्व को उसकी ज्वलनशीलता से मापता था। उसने सुना था कि संसार के कई महान पुस्तकालय आग में जलकर नष्ट हो चुके हैं, तो उसने सोचा क्यों न इस छोटे-से पुस्तकालय को भी जलाकर उसी सूची में शामिल कर दिया जाए। वैसे भी, इनमें अधिकतर धार्मिक पुस्तकें हैं और इन्हें कोई नहीं पढ़ता। कबाड़ी इनमें से छाँटकर पुरानी क़िताबें ख़रीद लेता है और फिर उनसे काग़ज़ के लिफ़ाफ़े बनाता है।’
‘इस तरह एक ज़बरदस्त अग्निकांड हो गया। हालाँकि, समीप के पाइनवुड स्कूल के बच्चे बड़ी संख्या में पानी की बाल्टियाँ लेकर आए, किंतु वे आग को नहीं बुझा सके। इस बीच, एलेक्ज़ेंडर पहाड़ के पास बैठकर बचपन में सीखा मल्लाहों का एक गीत गुनगुना रहा था:
नाव में आग लगी, नीचे भी आग है,
बच्चों, पानी की बाल्टी लाओ,
नीचे आग है,
ऊपर आग है, नीचे भी आग है,
बच्चों, पानी की बाल्टी लाओ,
नीचे आग है।
‘उसने किसी धर्म-प्रचारक महिला को यह कहते भी सुना था कि यह दुष्ट संसार “आग और गंधक” की भेंट चढ़ रहा है, और तब एलेक्ज़ेंडर को लगा कि उसने जो किया, वह एक अच्छी शुरुआत थी।’
‘इस बार भी, एलेक्ज़ेंडर पर कोई दोष नहीं लगा। निस्संदेह, लोगों ने यही सोचा कि आग शॉर्ट-सर्किट के कारण लगी होगी या फिर, किसी लापरवाह इंसान ने सिगरेट जलती छोड़ी होगी। और एलेक्ज़ेंडर तो सिगरेट पीता नहीं था!’
‘पुस्तकालय नष्ट होने के बाद एलेक्ज़ेंडर के लिए कोई अन्य कार्य देने पर विचार किया गया। यह सोचा गया कि चूँकि एलेक्ज़ेंडर को बाहर घूमना पसंद है, तो क्यों न उसे पाइनवुड स्कूल के संपदा प्रबंधक, राजन का सहायक बना दिया जाए। कुछ ही महीनों में राजन सेवानिवृत्त होने वाला था। धर्म-प्रचारक उस स्कूल के निदेशक थे और उनके लिए इसका प्रबंध करना बहुत सरल था। वह संपदा, पूरे पहाड़ी इलाक़े और चीड़ के जंगल के बड़े हिस्से में फैली थी। राजन के लिए उसे अकेले सँभालना मुश्किल होता था क्योंकि रात के समय पास के गाँववाले जंगल में चुपके-से घुसकर ईंधन के लिए लकड़ी काट लेते थे। राजन को सहायता की आवश्यकता थी।’
‘एलेक्ज़ेंडर राजन के लिए अच्छा सहायक सिद्ध हुआ। वह हाथ में भरी हुई बंदूक लेकर घूमता और कभी-कभी उसे हवा में दाग भी देता था। इससे गाँववाले उस इलाक़े से दूर रहते थे। शरद-काल के समय, चीड़ के काँटे ज़मीन पर फैले रहते थे तथा दिसंबर के महीने में ज़मीन चीड़ के शंकुफल से ढँक जाती थी।’
‘स्कूल के लोग चीड़ के शंकुओं का आग जलाने के लिए उपयोग करते थे और एलेक्ज़ेंडर उन्हें वह फल भरपूर मात्रा में देता था। एलेक्ज़ेंडर ने यह भी देखा कि चीड़ के शंकु जलने पर बहुत सुंदर दिखते हैं। सर्दियों में स्कूल बंद होने को था कि अचानक एक दिन जंगल में आग लग गई। कई सप्ताह से वर्षा नहीं हुई थी, जिसके कारण वहाँ की घास पीली पड़ गई थी तथा चीड़ के काँटे सूखकर भुरभुरे हो गए थे। एलेक्ज़ेंडर ने केवल अपने निजी मनोरंजन के लिए चीड़ के शंकुओं की होली जलाई थी, किंतु वह ख़ुद को आग फैलते हुए देखने से रोक नहीं सका।’
‘एक लड़के ने छात्रावास की खिड़की से बाहर झाँका तो वह चिल्लाया, “देखो! जंगल में आग लग गई है!” शीघ्र ही सब आग को देखने के लिए इधर-उधर भागे। उन्होंने अनुमान लगाया कि वह आग स्कूल की इमारत तक पहुँचेगी या नहीं।’
‘स्कूल से अधिक ख़तरा गाँव को था क्योंकि पेड़, खेतों के बहुत समीप थे। परंतु तेज़ हवा के कारण जलती हुई पत्तियाँ और अंगारे एक पेड़ से दूसरे को जलाते गए तथा आग, स्कूल की दिशा में आगे बढ़ने लगी। घास ने मानो आग के कालीन का रूप ले लिया था। गाँव की ओर लौटता भेड़ों का एक झुंड आग और धुएँ की चपेट में आ गया। उनके रखवाले दो युवक सौभाग्य से बच निकले। स्कूल के नौकर तथा कुछ बड़े लड़के पानी और रेत की बाल्टियाँ लेकर दौड़े। चीड़ के जंगल में रहने वाले बहुत-से नेवले, काकड़, उड़ने वाली गिलहरियाँ और कुछ बड़े, भूरे उल्लू घबराकर जंगल से भाग गए।’
‘एलेक्ज़ेंडर इस तरह के कामों में बहुत चुस्त था क्योंकि वह आग बुझाने वालों की सहायता करता था। वह बिना किसी उद्देश्य के इधर-उधर दौड़ता रहता था। वह एक सीधी चट्टान के छोर पर खड़ा दर्शकों की भीड़ को देखकर हाथ हिला रहा था कि तभी उसका पैर फिसला और वह ढाल पर से लुढ़कता हुआ, नीचे जलते हुए झाड़-झंकाड़ में जा गिरा। उसके कपड़ों में आग लग गई। वह सहायता के लिए पुकारता यहाँ-वहाँ भागने लगा, लेकिन आग और धुएँ ने उसे पूरी तरह ढँक लिया था, जिसके कारण वह किसी को दिखाई नहीं दिया।’
‘आख़िर, हवा का रुख़ बदला और आग धीरे-धीरे अपने आप बुझ गई। राजन और उसके सहयोगी, एलेक्ज़ेंडर की खोज में गए तो उन्हें कुछ समय बाद जंगल के एक छोर पर उसकी जली हुई लाश मिली।’
‘तो हर बुरी चीज़ का अंत होता है,’ लोबो ने कहा। ‘बस, इसमें समय लगता है और समय बीत ही जाता है…’
‘समय के पास और कोई विकल्प भी नहीं है, उसे बीतना ही है,’ मिस रिप्ली-बीन ने व्यंग्य करते हुए कहा। ‘और रही बात एलेक्ज़ेंडर की, तो उसे नायक का दर्जा मिल गया। चूँकि वह मर चुका था, तो उसे खलनायक में बदलना संभव नहीं था। उन लोगों ने शानदार ढंग से उसकी अंत्येष्टि की तथा उसकी क़ब्र के पत्थर पर लिखा गया कि वह बहुत बहादुर था और उसने स्कूल को जंगल की आग से बचाया। उसकी क़ब्र लण्ढोर क़ब्रिस्तान में है।’
मिस रिप्ली-बीन ने फ़्लफ़ को आख़िरी बिस्कुट दिया और जाने के लिए खड़ी हो गईं। ‘यह मेरा आराम करने का समय है,’ वह बोलीं। ‘लोबो, तुमसे बात करके हमेशा अच्छा लगता है।’
उस दिन शाम को लोबो काफ़ी दूर तक टहलते हुए लण्ढोर क़ब्रिस्तान तक पहुँच गया। कुछ देर घूमने के बाद उसे एलेक्ज़ेंडर की क़ब्र मिल गई। वह होटल लौटा तो शाम ढलने को थी और पश्चिमी दिशा का आकाश सूरज के स्वागत के लिए लाल हो गया था। लोबो ने मिस रिप्ली-बीन का दरवाज़ा खटखटाया तो उसके चेहरे पर चिंता व्याप्त थी। उस समय मिस रिप्ली-बीन पुदीना वाली शराब की चुस्की ले रही थीं। वह उस शराब को स्वयं बनाती थीं और रोज़ शाम को दो गिलास अवश्य पीती थीं।
‘लोबो, थोड़ी पुदीना शराब ले लो। मेरे पास और कुछ नहीं है,’ मिस रिप्ली-बीन ने लोबो का स्वागत करते हुए कहा।
‘नहीं, धन्यवाद,’ लोबो ने कहा। उसे पुदीना शराब पसंद नहीं थी। ‘मैं रुकूँगा नहीं। मैं आपको सिर्फ़ यह कहने आया हूँ कि मैं लण्ढोर क़ब्रिस्तान गया था।’
‘तुम्हें एलेक्ज़ेंडर की क़ब्र मिली?’
‘हाँ, मिल गई। उसके पत्थर पर वही सब लिखा है। वहाँ उसका पूरा नाम भी है। जॉन एलेक्ज़ेंडर बीन। क्या यह सही है?’
‘हाँ, यही उसका पूरा नाम था,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘वह मेरा भाई था।’
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