सुनील ने कार रोक ली। जयनारायण नीचे उतर गया ।


"एक बात और मिस्टर जयनारायण । पुलिस ने कभी आपको चैक नहीं किया ?"


"किस सिलसिले में ?"


"यही कि आप दो सौ रुपये के इन्स्पेक्टर थे, लेकिन अब आपके पास कोठी है, कार है, अच्छा-खासा चलता हुआ पैट्रोल पम्प है- देखिए मेरी बात का कोई गलत अर्थ न लीजिएगा ।"


"मिस्टर सुनील" - जयनारायण ने स्वाभाविक स्वर में कहा- "पुलिस ने मेरी एक-एक गतिविधि पर दृष्टि रखी है, सब जानते हैं कि मैंने यह रुपया मेहनत से कमाया है । "


"ओ के सर।" - सुनील ने कार स्टार्ट करने का उपक्रम करते हुए कहा - "आई एम सारी इफ आई हैव हर्ट ऐनी आफ योर सैंटीमैन्ट्स ।”


"क्या" जयनारायण ने विस्मित स्वर में कहा" भीतर नहीं चलियेगा ?" -


"देखिए काफी रात हो गई है, बारह बजने को हैं। अब मैं..."


"आइये भी।" - जयनारायण ने बेतकल्लुफी से सुनील को खींचते हुए कहा- "जहां इतनी देर हुई, कुछ देर और सही।"


सुनील कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर कार से उतर आया ।


जयनारायण सुनील को ड्राइंगरूम में ले आया और बोला- "आप क्या पीना पसंद करेंगे ?"


"ये तो बड़ा कठिन प्रश्न है।" - सुनील ने प्रफुल्ल स्वर में कहा - "आप क्या पीयेंगे ?"


"देखिये, मैं तो वृद्ध हूं, इस समय हल्की-सी स्काच लूंगा।"


"ठीक है, मुझे भी यही दीजिये ।"


जयनारायण उठकर किचन की ओर चला गया ।


जयनारायण की दृष्टि से ओझल होते ही सुनील ने अपनी जेब से नोटों वाला वह लिफाफा निकाला जो सुबह उसे रमाकांत ने दिया था। उसने हजार का नोट निकालकर उसका नम्बर देखा । वह था 000151 |


सुनील क्षण भर के लिए घबरा गया, फिर उसने एक बार किचन के दरवाजे की ओर देखा और सड़क की ओर पड़ने वाली एक खिड़की की ओर लपका। खिड़की में खींचकर गिराए जाने वाला लोहे का दरवाजा लगा हुआ था । उसने दरवाजा लगभग दो फुट नीचे खींचा। उसके एक फोल्ड में सारे नोट रखे और दरवाजा फिर ऊपर उठा दिया ।


अभी वह लौटकर अपने स्थान पर लौटा ही था कि जयनारायण हाथ में दो गिलास थामे हुए आया। उसने एक गिलास सुनील को थमा दिया।


"बाई दी वे, मिस्टर जयनारायण" - सुनील ने घूंट सिप करने के बाद कहा - "क्या आप डाक्टर बी एन स्वामी को जानते हैं ?"


"स्वामी हमारे बैंक का आफिशियल डॉक्टर था और शायद अब भी है। स्वामी और खोसला बड़े अच्छे मित्र थे, दोनों के स्टेटस में इतना अन्तर होने के बावजूद भी स्वामी ने खोसला को बचाने के लिए बहुत जोर लगाया था। उन दिनों स्वामी के क्लीनिक की एक नर्स एक पैटीशन लेकर खोसला की जानकारी के दायरे में साइन करवाती फिरती थी। मैंने भी और बैंक के कई और लोगों ने भी खोसला से सहानुभूति दिखाने के लिए साइन किए थे हालांकि उन उपक्रमों से खोसला को कोई लाभ नहीं हुआ था। पुलिस तब तक खोसला को छोड़ने वाली नहीं जब तक वह उससे चोरी गए धन का खासा भाग वसूल न कर ले ।"


"हूं।" - सुनील ने गिलास का आखिरी घूंट पीकर गिलास मेज पर रख दिया ।


"एक और बात याद आ गई मुझे, सुनील, यह डाक्टर

स्वामी की नर्स सरोज ही थी जिसने मुझे टिप दी थी कि उस रोज मेरे वाला घोड़ा जीतने वाला है।"


"उसको कहां से पता लगा था ?"


"डाक्टर के क्लीनिक में कोई मरीज जिक्र कर रहा था।"


“अच्छा, अब आज्ञा दीजिए।" - सुनील ने उठते हुए कहा- "आपको असमय कष्ट दिया।"


"अभी रुकिये न, एक ड्रिंक और लीजिये ।"


"अब नहीं, धन्यवाद ।"


"अच्छा ।" - जयनारायण ने हाथ मिलाते हुए कहा ।


सुनील ने बाहर आकर कार ड्राइव की और मेन रोड की ओर मोड़ दी। अभी वह जयनारायण की कोठी से बाहर ही निकला था कि न जाने कहां से पुलिस का एक सिपाही कार के सामने आ गया और उसे कार रोकने का इशारा किया |


सुनील ने कार रोक दी।


"सुनील कुमार चक्रवर्ती ?" - सिपाही ने कार का दरवाजा खोलते हुए प्रश्न किया ।


"क्यों, क्या बात है ?" - सुनील ने कड़वे स्वर में पूछा


"आपके नाम सम्मन है।" - सिपाही ने एक कागज उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा "कल दस बजे आप अदालत में हाजिर हो जाइए और रमा खोसला से आपको यदि कोई रुपया, चैक, लिखित पत्र या इस प्रकार की कोई वस्तु मिली है तो उसे भी साथ ले आइये, यहां साइन कर दीजिये।"


सुनील ने साइन करके कागज ले लिया ।


"लेकिन तुम्हें पता कैसे लगा कि मैं यहां हूं ?" सुनील ने पूछा ।


"इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल ने पता लगाया था आपके विषय में।"


"इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल ।" - सुनील ने दांत पीसे और एक झटके से गाड़ी स्टार्ट कर दी। प्रभूदयाल और सुनील में ईट-कुत्ते का बैर था ।


प्रभू सदा ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सुनील के काम में कोई न कोई अड़चन खड़ी कर देता था। सुनील को उसके नाम से चिढ़ थी ।


सुनील ने रास्ते में एक टूटी-फूटी दुकान से एक कप चाय पी। दुकान से पब्लिक टेलीफोन बूथ तक पहुंचने तक वह चाय के स्वाद पर मुंह बिगाड़ता रहा । उसने यूथ क्लब का नम्बर डायल कर दिया ।


" रमाकांत है या गया ?" - उसने पूछा ।


"है, मिस्टर सुनील।" - दूसरी ओर से उत्तर मिला - "आज क्लब में बाल का स्पेशल प्रोग्राम है, शोर-शार कम से कम दो बजे तक चलेगा। बुलाऊं उन्हें ?"


"हां, फौरन । "


"हल्लो" दूसरी ओर से रमाकांत की आवाज़ आई“अच्छा हुआ तुमने फोन कर दिया। मैं भी तुम्हारी तलाश कराने ही वाला था।" -


"क्यों, कोई विशेष घटना हो गई है क्या ?”


"हां, वो बैंक के इन्सपेक्टर के विषय में बताया था न मैंने तुम्हें ।"


"जयनारायण की बात कर रहे हो ?"


"हां"


"मैं अभी-अभी..." - सुनील एकदम चुप हो गया ।


"क्या ?"


'कुछ नहीं, तुम अपनी बात पूरी करो।" "जयनारायण भगवान के घर पहुंच चुका ।”


"क्या ?" - सुनील आश्चर्य चकित होकर चिल्लाया ।


"हां भई । वह मर गया है। अगर तुमने अभी तक उससे बात नहीं की है तो अब कभी नहीं कर सकोगे।"


सुनील हैरान था। अभी उसे जयनारायण के पास से आए हुए एक घन्टा भी नहीं हुआ ।


"पुलिस को कहीं से रिपोर्ट मिली थी" - रमाकांत कह- रहा था "कि रमा खोसला से जयनारायण को कुछ रुपए मिले थे। इसी सिलसिले में पुलिस का एक सिपाही जयनारायण की कोठी पर गया था । कोठी का मेन गेट खुला था। उसने घन्टी बजाई लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला । सिपाही कुछ सन्दिग्ध हुआ और भीतर घुस गया। वहां उसे किचन के फर्श पर जयनारायण मरा हुआ मिला। शायद उसी समय उमके पास कोई मेहमान आया हुआ था और वह उसके लिये ड्रिंक तैयार कर रहा था। किचन में सिंक के पास तीन गिलास, एक स्काच की बोतल और बर्फ पड़ी थी । मेहमानों के एक से अधिक होने को भी सम्भावना है। उसी समय शायद जयनारायण को किसी ने पीछे से दबोच लिया और छुरे से तीन-चार वार किए और उसकी जान निकल जाने पर छुरा पीठ में ही धंसा छोड़कर चलता बना। पुलिस बड़ी सरगर्मी से खोजबीन कर रही है । "


"पुलिस ने कोई फिंगर प्रिंट निकाले हैं ?" - सुनील ने अपने स्वर की घबराहट छुपाने की चेष्टा करते हुए पूछा ।


“अभी कुछ पता नहीं लगा है। मेरे आदमी काम कर रहे हैं, तुम एक घन्टे बाद फिर फोन करना ।"


"ओके।" - सुनील रिसीवर पटककर बाहर आ गया।


इस बार फंस गये बेटा सुनील वह कार में बैठता हुआ बड़बड़ाया - और बनो एक्टिव और फंसाओ दूसरे के फटे में टांग साले जासूसी करने चले थे । 


ब्लास्ट के आफिस के सामने पहुंचने तक वह इसी प्रकार बड़बड़ाता रहा। उसने कार को पार्किंग में खड़ा किया और भीतर घुस गया ।