विपुल कैस्टो ने जब विलास डोगरा से फोन पर बात करके फोन बंद किया तो चेहरे पर कठोरता नाच उठी। वो नाइट सूट में था और चेहरा देखकर लग रहा था कि कुछ देर पहले ही सोकर उठा है। फोन हाथ में दबाये वो खिड़की के पास पहुंचा और उसे खोला। सूर्य की रोशनी उसके चेहरे पर आ पड़ी। बाहर लोगों पर नज़र पड़ी फिर दूर दिखाई दे रहे समन्दर को देखा। सुबह के इस वक्त समन्दर बिल्कुल शांत नज़र आ रहा था और सतह धूप में रह-रहकर चमक रही थी। कैस्टो कठोर नज़रों से समन्दर की तरफ देखता रहा। चेहरे पर सोचों के भाव थे। मस्तिष्क में डोगरा और माईकल नाच रहे थे। उसे माईकल की मौत का अफसोस था। वो पैन उसने ही माईकल को दिया था, जिसमें कि बम था। परन्तु बम के बारे में उसे पता नहीं था। उसने तो यूं ही सावधानी के नाते, पैन माईकल को दे दिया कि जो डोगरा ने खामख्वाह उसे दिया था। ऐसे में डोगरा का कुछ भी दिया, उसे अपने पास में नहीं रखना था।

पेन में बम फिट था। डोगरा उसकी जान लेना चाहता था। परन्तु मारा गया माईकल ।

ये खतरनाक बात थी कि डोगरा उसे खत्म कर देना चाहता है कि गोवा में उसी का ही ड्रग्स का धंधा चलता रहे। पैंतीस परसैंट उसे गोवा देना मात्र दिखावा था। वो मुलाकात तो महज इसलिये थी कि बम युक्त पैन उसे दे सके और उसकी जान चली जाये। डोगरा, ने उसके साथ जो खेल, खेला था उसका जवाब तो उसे वो रात को ही दे देता। उसके आदमी डी-गामा होटल में घुसकर उसकी जान ले लेते। बहुत बुरी मौत मारते डोगरा को परन्तु जार्ज ने रोक दिया था उसे ।

इस मामले में जार्ज अपना दिमाग इस्तेमाल करना चाहता था। कैस्टो को जार्ज पर पूरा भरोसा था कि वो जो भी करेगा, उसकी बेहतरी के लिए ही करेगा। जार्ज का कहना था कि अभी डोगरा को छेड़ो मत। उसके धंधे पर कब्जा करो और दोबारा डोगरा को गोवा में घुसने भी मत दो। गोवा आये वो तो उसे खत्म कर देंगे।

कैस्टो ने सब कुछ जार्ज के ऊपर छोड़ दिया था।

कैस्टो खिड़की से हटा और कुर्सी पर आ बैठा। उसने जोएल का नम्बर मिलाया।

"कैसा है जोएल ?” उसकी आवाज कानों में पड़ते ही, कैस्टो ने पूछा।

“बढ़िया भाई। सब कुछ शांत है?" जोएल का स्वर गम्भीर था।

"हां। जार्ज काम पर लगा होगा।"

"डोगरा गोवा से कब जायेगा ?"

"पता नहीं।"

"क्या ये बढ़िया नहीं होता कि हम डोगरा को खत्म कर देते।" जोएल का आने वाला स्वर कठोर हो गया था ।

"जार्ज जो कर रहा है, उसे करने दो। उसका सोचना भी गलत नहीं है। एक बार धंधा हमारे हाथ में आ गया तो गोवा में अपनी ही चलेगी। तब डोगरा अपने पांव यहां नहीं टिका पायेगा।"

“होटल डी-गामा में उसका हिस्सा है। ऐसा कई बार सुना है ।"

“उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पूरे धंधे पर हम कब्जा करके ही रहेंगे।" कैस्टो के दांत भिंच गये--- "डोगरा ने मुझे बम वाला पैन देकर जो खेल खेला, वो अब उसे बहुत महंगा पड़ने वाला है।"

"मैं डोगरा को खत्म करना...।"

"अभी कुछ भी नहीं। जार्ज को अपना काम करने दो। जहां हो, वहीं पर रहना। वहां से बाहर मत निकलना। बेहतर होगा कि अभी किसी को फालतू में फोन मत करो और लोगों के फोन रिसीव भी मत करो। हमें बिल्कुल शांत हो जाना है। हो सके तो जूली को भी कम से कम वहां आने को कहो। जब तक डोगरा गोवा में है, हमारे लिए खतरा है। समझ गये जोएल ।"

"ठीक है भाई---।"

कैस्टो ने फोन काटा और जार्ज के नम्बर मिलाने लगा। चेहरे पर कठोरता थी।

जार्ज से बात हो गई।

"कुछ देर पहले डोगरा का फोन आया था जार्ज ।” कैस्टो एक-एक शब्द को चबाकर कह उठा--- "वो मुझे टटोल रहा था कि मुझे पैन बम का पता लग पाया या नहीं। माइकल की मौत का भी उसने जिक्र किया। उसे आशा होगी कि मैं पैन बम के बारे में कुछ कहूंगा। जला-भुना बैठा होऊंगा। परन्तु मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। सामान्य ढंग से बात की।"

"ये अच्छा किया कैस्टो साहब।"

"वो मुझसे मीटिंग चाहता था।" कैस्टो उसी लहजे में बोला।

"क्यों?"

"वो लंच या डिनर का बुलावा दे रहा था। मेरे साथ दोस्ताना करने को कह रहा था। लेकिन मैं जानता हूं कि ऐसा कुछ नहीं होना था। एक बार तो मैं बच गया किस्मत से। अब की बार वो मेरा पक्का इन्तजाम करना चाहता होगा ।" कैस्टो के स्वर में खतरनाक भाव आ गये--- "मैंने बहुत प्यार से उसे बताया कि इस वक्त मैं सिंगापुर में हूं। वापसी में कुछ दिन लगेंगे।"

"पहले गोवा पर अपना अधिकार कर लें। उसके धंधे को उखाड़ दें।" जार्ज उधर से गुस्से से कह उठा--- “फिर साले को तसल्ली से देखेंगे। बहुत बुरी मौत मारेंगे डोगरा को हम।"

"मैं तुम्हारी वजह से रुक गया, वरना अब तक तो डोगरा जिन्दा ही ना होता।" कैस्टो दांत भींचे कह उठा।

"रुकना ही बेहतर है। आनन-फानन डोगरा को मार देने में कोई फायदा नहीं था। हमें खामोशी के साथ उसका धंधा गोवा से उठा देना चाहिये। अपने पाँव मजबूती से टिका लेने हैं। जब एक बार उसका ड्रग्स का धंधा गोवा से उठ गया तो फिर वो कुछ नहीं कर सकेगा। वो हमेशा याद रखेगा कि उस पैन ने गोवा से उसे भगा दिया। अगर वो कभी गोवा आता है तो हम उसे मार देंगे।"

"तुम क्या कर रहे हो?"

"तैयारी में लगा हूं। कल शाम से मैंने एक मिनट की भी फुर्सत नहीं ली और अपने लोगों को भी लेने नहीं दे रहा। मेरे कुछ लोग तो इस बात पर नज़र रखे हैं कि विलास डोगरा कब गोवा से कूच करता है। दूसरी तरफ मैं गोवा में, डोगरा के धंधे से ताल्लुक रखते हर एक आदमी के पीछे, एक आदमी खड़ा करता जा रहा हूं। जैसे कि गोवा में डोगरा का ड्रग्स का गोदाम कहाँ-कहाँ है, मेरे पास पूरी खबर है। वहाँ अपने आदमी लगा दिए हैं, जो नज़र रख रहे हैं। वो तब तक खामोशी से नज़र रखेंगे, जब तक कि मेरा इशारा नहीं मिलता।" जार्ज की आवाज कैस्टो के कानों में पड़ रही थी--- "जो लोग गोवा में आने वाली, डोगरा की ड्रग्स को रिसीव करके गोदाम तक पहुंचाते हैं, उन सब पर आदमी लग चुके हैं हमारे। अब जो लोग गोदामों से ड्रग्स उठाकर गोवा के डीलरों या दलालों को सप्लाई करते हैं, उन लोगों को अब एक-एक करके ढूंढा जा रहा है, वो नज़र आते हैं तो एक आदमी पक्के तौर पर उसके पीछे लग जाता है। फिर जो-जो डीलर है या उनके आदमी हैं उन्हें पक्के तौर पर कल तक अपनी नजरों में ले लिया जायेगा। परन्तु डीलरों की हमने हत्या नहीं करनी है। डोगरा के गोवा से कूच करते ही, मेरे इशारे पर ड्रग्स के धंधे पर लगे, डोगरा के आदमियों पर एक ही वक्त पर हमला होगा और दो घंटों में वो खत्म हो जायेंगे। गोदामों से ड्रग्स उठाकर हम अपने कब्जे में ले लेंगे। डीलरों को धमकी दे दी जायेगी कि वो आज के बाद डोगरा का माल ना तो खरीदेंगे, ना बेचेंगे। दो-चार डीलर हमारे विरोध में आवाज उठायेंगे, परन्तु हम उन्हें खत्म कर देंगे। ये देखकर दूसरे डीलर भी संभल जायेंगे। उन्हें बता देंगे कि गोवा में ड्रग्स का धंधा करना है तो हमसे ड्रग्स लेनी होगी। हम उसी भाव में ड्रग्स देंगे, जिस भाव में, विलास डोगरा उन्हें देता था। हमारे पच्चीस आदमी गोवा में डोगरा के आदमियों को ढूंढकर खत्म करते रहेंगे, जो डोगरा के लिए काम करते थे। अगर उन्हें जान बचानी होगी तो वो गोवा छोड़कर भाग जायेंगे, नहीं तो मारे जायेंगे। जब तक डोगरा के कानों तक गोवा की खबर पहुंचेगी, तब तक सब जगह पर हमारा कब्जा हो चुका होगा। डोगरा के पास करने को कुछ नहीं बचेगा।"

"इस योजना में बहुत मेहनत और बहुत आदमी लगेंगे।" कैस्टो ने गम्भीर स्वर में कहा।

"हमारे पास बहुत आदमी हैं। फिर भी हम किराये के लोगों को लेते जा रहे हैं। परन्तु अभी किसी को बताया नहीं है कि हमारा प्लॉन क्या है। काम शुरू करने से सिर्फ पन्द्रह मिनट पहले ही बताया जायेगा।"

"इसमें डोगरा के कितने आदमी मरेंगे?" कैस्टो ने पूछा।

“चालीस के करीब---।" जार्ज की आवाज कानों में पड़ी।

“चालीस लाशों को पुलिस कभी भी पसन्द नहीं करेगी जार्ज। वो हमारे लिए मुसीबत खड़ी कर... ।"

“आपको पुलिस को पहले ही सैट करना होगा।" जार्ज की गम्भीर आवाज आई।

"तब भी चालीस लाशें... ।"

"पुलिस अगर चाहेगी तो उसे एक लाश भी नज़र नहीं आयेगी।" इधर से जार्ज ने ठण्डे स्वर में कहा।

कैस्टों के होंठ सिकुड़ गये।

"चालीस लाशों को हमेशा के लिए ठिकाने लगा देना मामूली बात है। खासतौर से जब वो डोगरा के आदमी हों तो... । "

"ठीक है। मैं कमिश्नर से बात करूंगा। हमें उन खास पुलिसवालों को सब कुछ बता देना होगा कि हम क्या करने जा रहे हैं, जो कि हमारे काम आते रहे हैं। बात उनकी जानकारी में होगी तो तभी वे हमारे सहायता कर पायेंगे। कल तक मैं सबको सैट कर लूंगा। मैं उन्हें समझा दूंगा कि डोगरा के आदमियों की लाशें गिरेंगी, परन्तु हाथो-हाथ उन्हें गायब भी कर दिया जायेगा।" कैस्टो ने कहा।

"पुलिस का खर्चा काफी बैठ जायेगा। परन्तु हमें नुकसान नहीं होगा।" जार्ज की आवाज कानों में पड़ी--- “डोगरा की जो ड्रग्स हम अपने कब्जे में लेंगे, वो करोड़ों की होगी।"

"ये बात पुलिस को भी पता होगी और उसमें से भी पुलिस को हिस्सा देना होगा। हमने पुलिस को किसी भी तरफ से नाराज नहीं करना है। पुलिस खुश रहेगी तो तभी हम धंधा कर पायेंगे। पुलिस जानती है कि गोवा में ड्रग्स का धंधा कभी भी रुक नहीं सकता। क्योंकि ये बहुत बड़ा टूरिस्ट सपाट है। हर रोज हजारों सैलानी आते हैं। ऐसे में पुलिस की भी मजबूरी है कि हमारा साथ देना और गोवा में शान्ति बनाए रखना। पुलिस की तुम ज़रा भी फिक्र मत करो जार्ज। जिस ढंग से तुम काम को पूरा करने में लगे हो, तो लगे रहो। डोगरा जब गोवा से जाये तो फौरन मुझे बताना।"

"जी कैस्टो साहब---।"

“मुझे खबर देते रहना कि तुमने क्या-क्या काम पूरा कर लिया है।" कैस्टो ने खतरनाक स्वर में कहा और फोन बंद करते ही दांत भींचे बड़बड़ा उठा--- “तू तो गया डोगरा। मेरी जान लेने की कोशिश करना, तेरे को बहुत भारी पड़ने जा रहा है।"

■■■

मुम्बई ! सरबत सिंह का घर ।

सोहनलाल और रुस्तम राव हर समय बहुत व्यस्त रहते थे। क्योंकि आरु, गुंजन और अर्जुन के ध्यान रखने के अलावा पाटिल, हंसा, जंबाई और प्रेमी का भी ध्यान रखना पड़ता था। उनके खाने की जरूरतें पूरी करना। खाने का अधिकतर सामान वो बाजार से ही ले आते थे। घर पर बहुत कम बनाते थे। इतने लोगों का खाना बनाना आसान काम नहीं था, परन्तु बाजार से खाना लाने में वो सतर्कता बरतते। हमेशा अलग-अलग जगहों से खाना लाते कि किसी को उन पर शक ना हो जाये। देवेन साठी के आदमी उन्हें तलाश जो कर रहे थे। फिर इन सबको बाथरूम तक ले जाने का काम करना। एक के बंधन खोलना और बाथरूम से आने के बाद पुनः उसे बांधना। उसके बाद ही दूसरे को खोला जाता था। बाथरूम का दरवाजा बंद नहीं किया जाता था। सोहनलाल बंधन खोलने-बंद करने का काम करता था और रुस्तम राव तब तक सावधानी से हाथों में रिवॉल्वर लिए खड़ा रहता था। वे किसी को कुछ करने का मौका नहीं देना चाहते थे। दो दिन पहले हंसा ने वहां से भागने की कोशिश की थी, परन्तु रुस्तम राव ने उसके सिर पर रिवॉल्वर की चोटें मारकर बेहोश कर दिया था। सजा के तौर पर हंसा को चौबिस घंटे तक ना खोला गया और ना ही उसके घायल सिर की मरहम पट्टी की गई।

इस वक्त सुबह के बारह बज रहे थे।

सोहनलाल और रुस्तम राव एक-एक करके सबको खाना खिलाने और बांध देने के बाद फारिग होकर ड्राईंग रूम में आ बैठे थे। आरु, गुंजन, अर्जुन के चेहरे मुर्झाये हुये थे। इतने दिन बंद कमरे में रहने से उन्हें परेशानी हो रही थी। परन्तु उन्होंने उन्हें कोई तकलीफ नहीं दी थी। वे शराफत से कमरे में बंद रहते। उनकी सुबह-शाम देवेन साठी से बात करा दी जाती। नगीना का फोन सोहनलाल को आता और सोहनलाल फोन आरु को थमा देता और बात हो जाती।

इस वक्त कमरे में पाटिल, जंबाई, प्रेमी, हंसा बंधे हुए फर्श पर पड़े थे। चारों के चेहरे मुर्झा रहे थे। बांधे जाने की थकान थी चेहरों पर। वो उखड़े हुए और गुस्से में थे। परन्तु चाहकर भी उन्हें कैद से छुटकारा नहीं मिल रहा था। बंधे रहने से शरीर सुन्न से हो रहे थे।

"सरबत तो बड़ा मतलबी निकला।" जंबाई कलप कर बोला--- “उसने हमें यहां से निकालने की ज़रा भी कोशिश नहीं की।”

"कोशिश?" प्रेमी भड़क उठा--- "साला कहता है तुम यहीं ठीक हो। पाँच करोड़ की बात सुनकर उसके कानों पर जूं नहीं रेंगी। क्या पता पाँच करोड़ खुद ही हजम करने की सोच रहा हो।"

“ये बात नहीं है।” पाटिल कह उठा--- "अब तक तुम लोगों को बात समझ लेनी चाहिये थी।"

"हम सब समझ रहे हैं।"

"साठी साहब के खिलाफ वो देवराज चौहान के साथ मिलकर काम कर रहा है।"

"वो तो हमें पता है।" हंसा कह उठा--- "पर देवराज चौहान उसे क्या दे देगा।"

"क्या पता देवराज चौहान ने उसे दो-चार करोड़ देने का वादा कर रखा हो।" जंबाई बोला--- “तभी वो पाँच करोड़ की परवाह नहीं कर रहा कि हाथ तो सवा करोड़ ही आयेगा। कमीना। यहां हमारा हाल बुरा हो रहा है और खुद जाने कहां मजे कर रहा है।"

"अपने को देवराज चौहान जैसे डकैती मास्टर का दोस्त कहता है। देखना वो उसे लाख रुपया भी नहीं देगा।" हंसा बोला--- “दोस्ती तो अपने बराबर वाले से होती है। जैसे कि हम। देवराज चौहान उसे क्या दे देगा।"

"अब सरबत हमारा दोस्त नहीं रहा।" प्रेमी ने कहा--- "हमें यहां से छुड़ाने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं। उसने तो परवाह ही नहीं की कि हम यहां बंधे हैं। कहता है बंधे रहना ही ठीक है तुम लोगों का।"

"एक बात बार-बार क्यों कहता है?" जंबाई भड़का ।

"खून उबल रहा है मेरा।" प्रेमी ने गुस्से से कहा।

"इन बातों को छोड़ो और किसी तरह यहां से निकलने की सोचो।" हंसा कह उठा।

"हाथ-पांव खुले हो तो सोचें।" प्रेमी ने तीखी निगाहों से हंसा को देखा--- "मेरा तो शरीर सुन्न पड़ रहा है। ये कमीने लोग एक-दो पैग ही दे दें। अपने हाथों से पिला दें। बेशक हाथ ना खोलें। तीन दिन से मेरा गला सूख रहा है।"

“मेरा भी--।" जंबाई बोला।

"देख तो क्या जल्दी से बोला है, मेरा भी---जैसे वो दूध की बोतल में व्हिस्की डालकर मेरे मुंह से लगाने जा रहे हो।" प्रेमी व्यंग से कह उठा--- "हाथ-पांव बंधे हुए हैं और चैन तब भी नहीं।"

“तूने ही तो पैग की बात शुरू की।"

"मैंने तो बात शुरू की और तूने फट से मुंह खोल...।"

"पागलों की तरह भौंकते मत रहो।" पाटिल उखड़कर बोला--- “बंधनों से आजाद होने की सोची।"

"कोई चीज भी नहीं, जिसे बंधनों को काट सकें।"

"चीज हो भी तो क्या होगा। हाथ-पांव तो बंधे पड़े हैं।"

“मेरे पास चाकू है।" हंसा धीमें स्वर में कह उठा--- “पर हाथ बंधे होने की वजह से उसका कोई फायदा नहीं।"

"चाकू? कहां है?" पाटिल ने पूछा।

"मेरी जेब में। इन्होंने तलाशी नहीं ली थी इसलिए---।"

"उल्लू के पट्ठे जब तेरे हाथ-पांव खोलते हैं बाथरूम जाने के लिए, तब तू चाकू से उन्हें मारता क्यों नहीं?"

"उसने रिवॉल्वर पकड़ी होती है। वो गोली चला देगा।" प्रेमी बोला।

"उल्लू का पट्ठा।" पाटिल ने उसे खा जाने वाली निगाहों से देखा।

"ये तो मुझे गाली देता है।" हंसा ने जंबाई और प्रेमी को देखा।

"देख भाई---।" जंबाई कह उठा--- "हमारे दोस्त को गाली मत दे। माना तू साठी साहब का राइट हैंड है, पर हम भी कम नहीं है। अब तू इसे गाली दे रहा है। बाद में हमें भी देगा। क्यों प्रेमी ?”

“हाँ-हाँ।" प्रेमी कह उठा--- "गाली मत देना हमें।"

“गधों की औलादों चुप रहो। तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया कि तुम्हारे पास चाकू है।" पाटिल बोला।

"ध्यान नहीं रहा। वैसे भी क्या जरूरत थी जो---।"

"जरूरत ये थी कि अगर तूने पहले मुझे बताया होता तो अब तक हम यहां से निकल भी गये होते।" पाटिल गुर्रा उठा ।

"वो कैसे?" हंसा के माथे पर बल पड़े।

पाटिल ने कमरे के खुले दरवाजे की तरफ देखा। फिर बोला।

“धीरे बोलो। हमें कुछ करना होगा।"

"क्या?"

"चाकू कहां है?" पाटिल ने धीमें स्वर में कहा।

"मेरी पैंट की पीछे की जेब में।"

"छोटा है, बड़ा है। बटन वाला है, गरारी वाला है---चाकू का हुलिया बता ।"

“मीडियम साईज़ है। बटन वाला है।”

“ठीक है। तू खिसक-खिसककर मेरे पास आ। अपनी पिछली जेब मेरे हाथों से सटा दे। मैं चाकू निकालूंगा। उसे खोलकर अपने हाथ में पकड़ लूंगा। तू अपनी कलाइयों के बंधन चाकू पर रगड़कर काट लेना और फिर हम सबके बंधन काट देना। सावधानी से काम करना है हमें। उन दोनों कुत्तों को खबर ना लगे कि हम क्या कर रहे हैं ।"

हंसा, प्रेमी और जंबाई की आंखें चमक उठी।

तीनों की नज़रें मिली।

"ये बात तो मेरे दिमाग में आई ही नहीं थी।" हंसा कह उठा--- “मैं भी कितना बड़ा उल्लू का पट्ठा हूं।"

तभी दरवाजे पर आहट उभरी और रुस्तम राव ने भीतर प्रवेश किया। सबकी निगाह उसकी तरफ उठी। रुस्तम राव ने बारी-बारी सबको देखा फिर कह उठा।

"चाकू की बात क्या होईला ?"

दो पलों के लिए तो चुप्पी उभरी रही फिर जंबाई दांत फाड़कर बोला।

"हम प्लानिंग कर रहे थे।"

"क्या?" रुस्तम राव की शांत निगाह जंबाई पर जा टिकी थी।

"अगर हमारे पास चाकू होता तो हम किस तरह अपने बंधन काटने में कामयाब हो सकते थे।" जंबाई ने दांत दिखाते कहा--- “हमारा एक काम करोगे।"

"आराम से इसी तरह पड़ेला बाप। फालतू की बात नेई हांकने का---।" रुस्तम राव का स्वर शांत था ।

"तुम हमें एक चाकू ला दो। बाकी का काम हम निपटा लेंगे।" जंबाई पहले जैसे स्वर में कह उठा।

रुस्तम राव बिना कुछ कहे बाहर निकल गया।

चारों ने एक-दूसरे को देखा।

कुछ देर उनके बीच खामोशी रही।

"ये खतरे वाली बात है कि उन्होंने हमारी बात सुन ली। पर आधी ही सुनी।" पाटिल धीमे स्वर में कह उठा--- "अब हम काम की बात धीमी आवाज में करेंगे। वैसे बेशक ऊंचे में बातें करो। हमें बहुत सतर्कता से काम करना होगा।"

"सालों के कान बहुत पतले हैं। सब बातें सुन रहे हैं हमारी।" प्रेमी ने गहरी सांस ली।

"अब शुरू हो जाओ।" जंबाई धीमे से बोला--- “मैं जल्दी से आजाद होना चाहता हूं।"

“जल्दी मत करो।" प्रेमी ने कहा--- "हमे पहले पाटिल साहब से बात फिक्स कर लेनी चाहिये।"

“क्या?" जंबाई ने प्रेमी को देखा।

पाटिल की निगाह भी प्रेमी पर जा टिकी।

"पाटिल भाई।" प्रेमी की आवाज धीमी थी--- “पाँच करोड़ का क्या रहेगा?"

"क्या मतलब ?"

“मतलब कि हम यहाँ से निकलेंगे तो हमारे साथ देवेन साठी का परिवार होगा। हम तो उसी चक्कर में मारे-मारे फिर रहे हैं कि पाँच करोड़ कमा सकें। यहाँ से निकलने के बाद तुम साठी से कहोगे कि उसके परिवार को तुमने आजाद कराया है। पाँच करोड़ तुम ले लोगे। हम तो ऐसे ही रह जायेंगे।"

"ऐसा नहीं होगा।" पाटिल बोला।

"क्यों नहीं होगा, तुम ऐसा---।"

"ये पाँच करोड़ का इनाम मेरे लिए नहीं है। मैं साठी साहब का सबसे खास आदमी हूं। मैं क्या इनाम लूंगा ।" पाटिल ने कहा--- "ये इनाम तो दूसरे लोगों के लिए है, जो नीचे काम करते हैं या तुम जैसे लोगों के लिए।"

"पक्का?"

"भरोसा करो मेरा। पाँच करोड़ मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता।"

"बाद में मुकरोगे तो नहीं ?"

"मेरे एक बार कहने पर मान लिया करो। यहाँ मेरी बुरी गत बनी हुई है। वैसे मैं दमखम वाला बंदा हूं।"

"बात तो ये ठीक कहता है कि ये इनाम उसके लिए नहीं है।" हंसा कह उठा--- "ये साठी का राइट हैंड है।"

"राइट हो या लैफ्ट। हमें तो पाँच करोड़ से मतलब है।" जंबाई ने सोच भरे स्वर में कहा--- “साठी की पत्नी और बच्चे, यहां से निकलने के बाद हमारे कब्जे में रहेंगे। उन्हें हम ही साठी के हवाले करेंगे।"

"ये बात ठीक कही।" हंसा ने सिर हिलाया।

"क्यों पाटिल साहब, बात मंजूर है।"

“मुझे क्यों एतराज होगा। यहां से निकलकर मैं तुम लोगों को सुरक्षित ठिकाने पर ले जाऊंगा, जहां देवराज चौहान या उसके साथी नहीं पहुंच सकते। बस यहां से निकल जाये, उसके बाद कोई चिन्ता नहीं।" पाटिल ने गम्भीर स्वर में कहा।

तभी दरवाजे पर सोहनलाल दिखा।

"तो यहां से निकलने जा रहे हो तुम लोग।” सोहनलाल कड़वे स्वर में बोला।

"प्लानिंग तो कर रहे हैं।" जंबाई मुस्करा पड़ा।

"चाकू चाहिये?” सोहनलाल ने घूरा।

"चाकू होगा तो तभी प्लानिंग सफल होगी। तुम ला दो चाकू। सरबत सिंह का लाल चाकू किचन में पड़ा है वो।"

"जिससे पिछली बार हमने मुर्गा काटा था।" प्रेमी कह उठा ।

"वो ही।"

सोहनलाल आगे बढ़ा और झुककर जंबाई की तलाशी लेने लगा।

"क्या कर रहे हो?" जंबाई कह उठा ।

“देख रहा हूं तुम्हारे पास चाकू तो नहीं है। चाकू के सपने तुम्हें बहुत आ रहे हैं।" सोहनलाल बोला।

सोहनलाल की बात पर उन्हें सांप सूंघ गया।

अब तलाशी में हंसा के पास से चाकू बरामद हो जाना था।

पाटिल गहरी सांस लेकर रह गया।

जंबाई की तलाशी लेकर सोहनलाल पीछे हटा और बोला ।

"सलामती चाहते हो तो आराम से इसी तरह रहो। आजाद होने के ख्याली पुलाव मत बनाओ।"

"तुम हमारे सोचने पर पहरा नहीं लगा सकते।" प्रेमी ने मुंह बनाकर कहा--- “खामखाह, यहां आकर फंस गये।"

"साठी की पत्नी और बच्चों को तो तुम लोग ठीक से रख रहे हो ना?" पाटिल बोला।

"तुम्हें इससे क्या ?" सोहनलाल ने पाटिल को देखा।

"साठी को पसन्द नहीं आयेगा, अगर तुम लोगों ने उसके परिवार की देख-रेख में कोई लापरवाही की तो---।"

"तुम अपनी चिन्ता करो।" कहकर जगमोहन बाहर निकल गया।

खामोशी सी आ ठहरी वहां ।

“बच गये।” हंसा फुसफुसाकर बोला--- “अगर वो मेरी तलाशी लेता तो चाकू हाथ से निकल जाता।"

"चुप रहो।" पाटिल आहिस्ता से गुर्राया--- "तुम लोगों की इन्हीं बेवकूफियों से ये नौबत आई।"

"सरबत सिंह की गर्दन हाथ में आ जाये तो एक ही झटके में अलग कर दूं।" प्रेमी ने गुस्से से कहा।

"मैं तेरे पास आऊं क्या?" हंसा ने कम आवाज में कहा--- "तू मेरी जेब से चाकू निकालकर...।"

"वहीं रहो और चुप रहो।" पाटिल ने होंठ भींचकर कहा--- "जल्दी मत करो। अभी वो फिर इधर का चक्कर लगा सकते हैं। कुछ वक्त निकल जाने दो। मेरे ख्याल में रात को ये काम करना ठीक होगा, जब सब नींद में होंगे।"

■■■

चौथे दिन विलास डोगरा गोवा से कर्नाटक के शहर हवेरी के लिए रवाना हुआ। गोवा में उसका सारा वक्त वहुत शान्ति से बीता था। सारे काम आराम से निपटा लिए थे। ना तो देवराज चौहान की तरफ से कोई समस्या आई थी, ना विपुल कैस्टो की तरफ से । हालांकि इस सारे वक़्त के दौरान रमेश टूडे, डोगरा के आस-पास ही रहा था।

परन्तु सब ठीक रहा।

टूडे और डोगरा को भरोसा हो गया था कि देवराज चौहान मुम्बई वापस चला गया है और कैस्टो की तरफ से भी कुछ ना होने के कारण डोगरा को लगा कि उसे भ्रम हुआ होगा कि कैस्टो को बम वाले पैन का पता चल गया है। रमेश टूडे की कार, डोगरा की क्वालिस के पीछे लगी रही और वे छः घंटों का सफर करके, हवेरी जा पहुंचे। डोगरा के हवेरी स्थित आदमियों को उनके आज आने की खबर गोवा से चलते समय डोगरा ने दी थी। ऐसे में हवेरी में उनके स्वागत की तैयारी पूरी थी।

शाम पाँच बजे वे हवेरी के महंगे इलाके के एक बंगले में पहुंचे। हवेरी में गोवा की अपेक्षा गर्मी थी। मौसम मुम्बई जैसा ही था। बंगले में उनके पन्द्रह-बीस आदमी मौजूद थे। जिनमें से सात बंगले के पहरे पर लगे थे। डोगरा का हवेरी स्थित सबसे खास आदमी रामानन्द कुट्टी खुद वहाँ मौजूद था। टूडे वहाँ पहुँचने के बाद बंगले के भीतर-बाहर हर तरफ के हालात देखने लग गया। डोगरा ने कुट्टी से कहा कि नहा-धोकर घंटे बाद वो उसे चाय पर मिलेगा।

डोगरा और रीटा एक कमरे में जा पहुंचे।

“मुझे कर्नाटक पसन्द है डोगरा साहब---।" रीटा कह उठी--- "यहाँ का मौसम, पेड़-पौधे, यहां के लोग, सब कुछ मुझे जंचता है।"

“जो तुझे पसन्द, वो मुझे भी पसन्द है रीटा डार्लिंग।" डोगरा ने मुस्कराकर कहा।

“यहाँ हम ज्यादा रहेंगे।"

“अभी तो नहीं।” डोगरा ने उसकी कमर में हाथ डाला--- “यहाँ का काम निपटने के बाद मुझे चिकमंगलूर पहुँचना है। अगर तुम यहाँ रहना चाहती हो, तो रहो। वापसी पर तुम्हें ले लूंगा।"

"मैं तो आपके साथ रहूंगी।" रीटा इठलाकर कह उठी।

"मेरे साथ---?" डोगरा ने उसके होठों को चूमा।

“हाँ । आपके बिना मेरा दिल नहीं लगता।" रीटा मुस्करा पड़ी।

"तेरा भी मेरे जैसा हाल है।" डोगरा हंसा--- "तेरे बिना मेरे भी नहीं लगता। तू तो मेरी जान है ।"

उसके बाद डोगरा नहा-धो आया।

रीटा भी नहाई। और टॉवल लपेटे बाहर आकर डोगरा के पास पहुंचकर बोली।

"कुछ आराम कर लें डोगरा साहब?" रीटा ने अदा से कहा।

डोगरा ने रीटा को सिर से पांव तक देखा और आंखें नचाकर बोला ।

"जैसा आराम तू चाहती है वैसा तो रात को ही होगा। तेरा जलवा रात को देखूंगा।"

"वैसा ही करना, जैसा गोवा में किया था।"

"तू जो कहेगी रीटा डार्लिंग। वैसा ही होगा।" डोगरा कमीज डालता कह उठा--- "मैं तो तेरा गुलाम हूं। अब जल्दी से तैयार हो जा। कुट्टी मेरा इन्तजार कर रहा होगा। देर हुई तो वो नाराज हो जायेगा।"

रीटा तैयार होने में लग गई और बोली ।

"देवराज चौहान तो दुम दबाकर गोवा से भाग गया। लगता है जगमोहन की मौत ने उसकी हिम्मत तोड़ दी होगी।"

"मुझे तो उसके चले जाने का राज समझ नहीं आया।” डोगरा ने सोच भरे स्वर में कहा--- "करवार के समन्दर में जगमोहन मरा और अगले दिन सुबह देवराज चौहान गोवा से चलता बना। मेरे ख्याल में तो तब तक उसे जगमोहन की मौत की खबर भी नहीं मिली होगी।"

"आपका मतलब कि लापता जगमोहन को छोड़कर वो गोवा से चला गया?" रीटा बोली।

"लगता तो ऐसा ही है।"

"बात गले से नीचे नहीं उतरती डोगरा साहब ।"

"बोला तो---मुझे उसके गोवा से चले जाने का मतलब समझ नहीं आया। अजीब सा लगा।"

"और वो कैस्टो? लगता है पैन वाला मामला कैस्टो को समझ नहीं आया। जबकि हम सोच रहे थे कि वो नाराज होकर कुछ करेगा।"

"कैस्टो का कोई इन्तजाम करना होगा।"

"इन्तजाम तो कर ही दिया है आपने बॉब गोवा में आ चुका होगा कैस्टो को खत्म करने के लिए।"

“हाँ। अब जल्दी से चलो। कुट्टी के पास पहुंचना है।"

रामानंद कुट्टी ने एक बड़े से टेबल पर चाय का इन्तजाम किया था। कहने को तो चाय थी, परन्तु खाने-पीने का सामान बहुत ज्यादा था। सांभर, इडली, डोसा, बड़ा, उप्पम के अलावा और भी कई चीजें थी खाने को ।

रीटा खाने में व्यस्त हो गई।

डोगरा ने भी थोड़ा-बहुत खाया।

खाने में कुट्टी ने डोगरा का साथ दिया। जब चाय पीना शुरू की तो कुट्टी ने वहाँ खड़े अपने दोनों आदमियों को जाने का इशारा किया तो वे वहाँ से बाहर निकल गये। डोगरा ने चाय का घूंट भरकर कहा।

"क्या खबर है कुट्टी ?"

"नाथ को मैंने आपके आने के बारे में बताया। पर वो नहीं माना।" कुट्टी ने कहा।

डोगरा ने चाय का घूंट भरा।

"वो स्वामी से ही हथियार लेगा ।"

" वजह नहीं बताई उसने ?”

"नहीं। वो इस बारे में मुझसे ज्यादा बात नहीं करता। अचानक ही उसे कुछ हुआ है। वरना चार साल से वो हमारे से ही हथियार ले रहा था। सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक ही वो बदल गया। मैंने उसके बारे में कल ही कुछ सुना है।"

“क्या?" डोगरा ने कुट्टी को देखा।

"पता चला है कि स्वामी की बहन ने उसे अपने चक्कर में फंसा रखा है। वो उसकी बात मानता है।"

"धंधे में औरत का इस्तेमाल करता है स्वामी। वो भी बहन का। ये तो गलत बात है डोगरा साहब ।" खाते-खाते रीटा कह उठी।

"तो स्वामी ने अपनी बहन को आगे करके नाथ को फंसाया।" डोगरा ने चाय का घूंट भरा।

कुट्टी ने सिर हिला दिया।

“इससे हमें कितना नुकसान हो रहा है कुट्टी ?"

"हर साल बीस करोड़ का नुकसान होगा। बाजार में हमारी पकड़ भी कमजोर होगी। पाकिस्तान और चीन से आप हथियार लेते हैं और आगे देते हैं। दोनों देशों में आपकी पूछ खत्म हो जायेगी। चलती गाड़ी को ही सब सलाम करते हैं।" कुट्टी ने कहा।

"हमें नुकसान नहीं होना चाहिये।” डोगरा ने कहा -- “स्वामी की बहन हमारा काम बिगाड़ रही है। कहाँ रहती है वो ?"

"इधर ही, हवेरी के एक इलाके में।"

“नाथ से मेरा मिलने का वक्त कब का फिक्स है?"

"आज रात दस बजे पार्क होटल में आप नाथ से मिलेंगे। नाथ तो मिलना ही नहीं चाहता था। मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी, उसे मुलाकात के लिए तैयार करने में। यूं समझिये कि मैंने जबरदस्ती नाथ को इस मुलाकात के लिए खींचा है।"

डोगरा ने चाय का प्याला खत्म करके टेबल पर रखते कहा।

"स्वामी की बहन को आज रात नौ और दस बजे के बीच खत्म करवा देना---।"

कुट्टी फौरन सतर्क दिखने लगा।

"ठीक है डोगरा साहब।" वो बोला।

"इससे स्वामी से आपकी दुश्मनी हो जायेगी डोगरा साहब।" रीटा खाना छोड़ते कह उठी।

"ऐसा होगा कुट्टी ?" डोगरा ने पूछा।

"हो सकता है।" कुट्टी ने सिर हिलाया--- “स्वामी को बहुत खतरनाक समझा जाता है इधर।"

"तो उसकी बहन को इस तरह मारना कि स्वामी ये ना सोच सके कि हमने मारा है।" डोगरा ने कहा।

कुट्टी ने सिर हिलाया।

"ये आज रात नौ और दस बजे के बीच हो जाना चाहिये। जब मैं नाथ से मिलूं तो स्वामी की बहन जिन्दा ना हो।"

कुट्टी ने पुनः सिर हिलाया।

"बात छिपेगी नहीं कि स्वामी की बहन आपके इशारे पर मारी गई है।" रीटा कह उठी।

डोगरा ने कुट्टी को देखा तो कुट्टी ने कहा ।

"बात छिप जायेगी। स्वामी सोच भी नहीं सकेगा कि इसमें हमारा हाथ है।"

डोगरा ने सिग्रेट सुलगा ली।

"व्यास के बारे में अभी बात करूंगा...।"

"नाथ से मिलने के बाद ।" डोगरा ने हाथ उठाया--- “ये मामला हमारे लिए ज्यादा जरूरी है।"

■■■

हरीश खुदे उस वक्त, उसी बंगले के बाहर डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर, बारह बजे से मौजूद था। देवराज चौहान पहले से, विलास डोगरा का सारा प्रोग्राम जानता था। ये ही वजह थी कि वो आज बारह बजे बंगले पर नज़र रखने आ गया था। देवराज चौहान ने उसे बताया था कि आज विलास डोगरा हवेरी पहुंचेगा।

देवराज चौहान, खुदे, नगीना, देवेन साठी, बांकेलाल राठौर, सरबत सिंह, मोना चौधरी और पारसनाथ तीन दिनों से हवेरी में मौजूद थे। वे अलग-अलग ही हवेरी पहुंचे थे। परन्तु वो गोल्डन होटल में अलग-अलग ठहरे थे। थ्री स्टार होटल था और दूसरी मंजिल पर ही उन्होंने कमरे लिए थे। साठी के चार लोग गोकुल, शेखर, शिंदे और घंटा, अलग कमरे में उसी फ्लोर पर ठहरे थे। साठी, नगीना के साथ बहुत नाराजगी से पेश आ रहा था कि उसके परिवार को कैद कर रखा है और उसे इस प्रकार जगह-जगह घुमाया जा रहा है। परन्तु साठी खुद पर काबू रखे हुए था। वो भूला नहीं था कि उसका परिवार इनकी कैद में था। जगमोहन, महाजन के साथ, उसके दो दिन बाद हवेरी पहुंचा था। जगमोहन ठीक हाल में था परन्तु टूडे को वो बहुत याद करता था। जगमोहन इसी बात में सुलग रहा था कि टूडे ने पहले देवराज चौहान की जान लेने की चेष्टा की और फिर उसे मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। देवराज चौहान ने उसे होटल से बाहर ना निकलने की हिदायत दी कि उसे सलामत देखकर, डोगरा सतर्क ना हो जाये। वो खुद भी बहुत कम बाहर निकलता था।

इस वक्त खुदे उस बंगले पर नज़र रखे था और एक घंटा पहले उसने उसी क्वालिस में डोगरा को वहाँ पहुँचते देखा। पीछे-पीछे एक ओर कार देखी, जिसे कि रमेश टूडे खुद चला रहा था। वो बंगले में चले गये। घंटा भर उसने इन्तजार किया। बंगले से कोई बाहर नहीं निकला। पहरेदारी में टहलते लोग उसे दिख रहे थे। उसने देवराज चौहान को फोन किया।

“डोगरा आ पहुँचा है।" खुदे ने कहा।

“ये ठीक रहा।" देवराज चौहान की गम्भीर आवाज उसके कानों में पड़ी--- "क्या पोजीशन है?"

“वो बंगले में है। रमेश टूडे भी साथ है। वो मुझे दो बार नज़र आ चुका है। बंगले का हाल-चाल देखता घूम रहा है। यहाँ पर मैं पन्द्रह से ऊपर लोगों को देख रहा हूँ। पाँच-सात तो पहरे पर तैनात हैं।" हरीश खुदे की नज़रें, बात करते हुए भी घूम रही थी।

"तुम वहीं रहो। नज़र रखो। कोई खास बात हो तो बताना। अंधेरा होने पर मैं तुम्हारे पास आऊंगा। दुलेरा के बताये प्रोग्राम के मुताबिक डोगरा रात दस बजे, नाथ नाम के आदमी से मिलने पार्क होटल जायेगा।"

"तो क्या हमें उसके पीछे पार्क होटल जाना होगा?"

"तुम जाओगे। तब तुम उस पर नज़र रखोगे। मुझे बताते रहोगे कि डोगरा अभी वहाँ व्यस्त है। रात दस बजे तक मैं जगमोहन को वहाँ बुला लूंगा और बंगले में प्रवेश करेंगे। चूंकि डोगरा बंगले पर नहीं होगा। ऐसे में पहरा ना के बराबर ही होगा और जो पहरा होगा, वो भी लापरवाही से भरा होगा।" उधर से देवराज चौहान ने कहा।

"मतलब कि रात जब डोगरा वापस लौटेगा तो उसका शिकार करोगे।" खुदे बोला ।

"अभी तक तो प्रोग्राम यहीं है।"

"डोगरा को आसानी से पार्क होटल में मारा जा सकता है।"

"बेहतर होगा कि उसकी मुलाकात साठी से हो जाये।"

"ये भी जरूरी है।" खुदे ने फोन पर सिर हिलाया।

"बंगले में डोगरा काबू में आ गया तो उसे रिवॉल्वर के दम पर वहाँ से ले जायेंगे और साठी के सामने खड़ा करेंगे।"

"वहाँ रमेश टूडे भी होगा।" खुदे ने जैसे याद दिलाया।

"डोगरा कब्जे में होगा तो वो कुछ नहीं कर सकेगा। अंधेरा होने पर मिलेंगे।" कहकर देवराज चौहान ने उधर से फोन बंद कर दिया।

■■■

रात साढ़े नौ बजे तीन कारें बंगले से निकली। एक कार में डोगरा, रीटा और कुट्टी थे। आगे-पीछे की कारें आदमियों से भरी हुई थी। बंगले पर सिर्फ पाँच आदमी ही रह गये थे ।

"रीटा डार्लिंग।" विलास डोगरा कह उठा--- "जरा मालूम करो कि मुम्बई में साठी को, उसका परिवार मिला कि नहीं?"

रीटा ने तुरन्त फोन किया और आधा मिनट बात करके, फोन बंद करते कहा।

"नहीं मिला।"

"लगता है बढ़िया जगह देवराज चौहान ने उसके परिवार को रखा है।" डोगरा मुस्कराया--- "लेकिन देवराज चौहान हार जायेगा। देर-सवेर में साठी अपने परिवार को ढूंढ लेगा और देवराज चौहान को बुरी मौत मारेगा। कुट्टी---।"

“जी डोगरा साहब---।" कुट्टी ने गर्दन घुमाकर पीछे देखा ।

"वक्त क्या हुआ है?" डोगरा ने अर्थपूर्ण स्वर में कहा।

बात का मतलब समझते ही, कुट्टी विश्वास भरे स्वर में कह उठा।

"दस बजे से पहले ही स्वामी की बहन की जिन्दगी खत्म हो जायेगी।"

"तेरे को कैसे पता चलेगा?"

"फोन आयेगा।"

"पार्क होटल हम कितने बजे पहुँचेंगे ?”

"दस से पाँच मिनट पहले।"

डोगरा सिर हिलाकर रह गया।

कारें दौड़ती रही। दौड़ती कारें जब पार्क होटल के पोर्च में रुकी तो कुट्टी का फोन बज उठा।

“हाँ।" कुट्टी ने बात की।

कुछ सुनने और सिर हिलाने के बाद कुट्टी फोन बंद करता कह उठा ।

"काम हो गया डोगरा साहब।"

"कैसे?"

"उसने फाँसी लगा ली। गले में फंदा डाला और पंखे के साथ लटक गई।" कुट्टी बोला ।

“डोगरा साहब।” रीटा कह उठी--- “आजकल लोग फाँसी बहुत लगाने लगे हैं।"

"लम्बे रास्ते को, जल्दी से तय करने की कोशिश में लोग फांसी लगा बैठते हैं। सब्र नहीं रहा आजकल लोगों में रीटा डार्लिंग। अगर स्वामी ने मर्दों की तरह खेल, खेला होता तो उसकी बहन फाँसी ना लगाती।" डोगरा मुस्कराया।

"नाथ का क्या होगा उसकी महबूबा तो गई---।"

"उसे समझा दूंगा।" डोगरा कार से बाहर निकलता कह उठा--- "वो मेरी बात जल्दी समझ जायेगा।"

पार्क होटल की तीसरी मंजिल पर एक कमरे में नाथ से मिलने का प्रोग्राम रखा गया था। नाथ और डोगरा लगभग साथ-साथ ही उस कमरे में पहुँचे थे। डोगरा के साथ रीटा और कुट्टी थे तो नाथ के साथ चोंचदार नाक वाला, छोटे बालों वाला, सपाट-कठोर चेहरे वाला व्यक्ति था जो कि देखने में ही हत्यारा लगता था। नाथ चालीस बरस का, सांवले रंग वाला, गठे शरीर का मालिक था। वो क्लीन शेव्ड था। पाँच-दस लम्बाई थी। वो इस वक्त काली पैंट और सफेद रंग की चार खाने वाली कमीज पहने था। चेहरे पर गम्भीरता और उखड़ेपन के भाव फैले थे। डोगरा को देखकर वो अपने चेहरे पर जबरदस्ती की मुस्कान लाया और हाथ मिलाते वक्त कोई उत्साह नहीं दिखाया।

"कैसे हो डोगरा साहब?" नाथ बोला।

"मैं तो पहले की तरह जवान हूं। पर तुम भी वैसे ही हो। बढ़िया दिख रहे हो।" डोगरा कमरे में मौजूद सोफे पर बैठता कह उठा--- "दो सालों बाद हम मिल रहे हैं, पर लगता है जैसे कल की ही बात हो।"

नाथ भी बैठ गया। उसका आदमी कमरे में एक तरफ खड़ा हो गया।

“कुट्टी।" डोगरा बोला--- “वक्त कम है और काम बहुत करने हैं। तुम जाओ और डिनर यहाँ भिजवाने का इन्तजाम करो। कमरे में आने की जरूरत नहीं। मैं नहीं चाहता, मेरे और नाथ के बीच कोई तीसरा मौजूद हो।"

नाथ ने बेचैनी से पहलू बदला ।

"जी डोगरा साहब ।" कहने के साथ ही कुट्टी बाहर निकल गया।

हमेशा की तरह ऐसे मौके पर रीटा, डोगरा के पीछे खड़ी थी।

डोगरा ने नाथ को देखा फिर उसके आदमी को देखता कह उठा।

“क्या तुम्हारा आदमी हमारी बातों के बीच मौजूद रहेगा?" स्वर शांत था।

नाथ फौरन कुछ ना कह सका।

"मुझे कोई एतराज नहीं। पर तुम्हें परेशानी हो सकती है कि बात बाहर निकल गई।" डोगरा ने कहा।

ना चाहते हुए भी नाथ ने अपने आदमी को बाहर जाने का इशारा किया।

वो आदमी बाहर निकल गया। दरवाजा बंद हो गया।

विलास डोगरा एकाएक मुस्कराया। सिग्रेट निकाली और पैकिट नाथ की तरफ बढ़ाया।

नाथ ने इन्कार कर दिया।

डोगरा ने सिग्रेट सुलगाई और कश लेकर बोला।

"मैं आज ही, शाम को हवेरी पहुँचा। सबसे पहले तुमसे मिलना चाहता था।"

"मेरा मन नहीं था यहाँ आने का। कुट्टी ने मजबूर किया कि आप मिलना चाहते हैं।" नाथ बोला।

"तो क्या तुम नहीं मिलना चाहते थे?" डोगरा हंसा।

"हमारे मिलने की कोई जरूरत नहीं थी।" नाथ ने डोगरा को देखा ।

"बिजनेस तुम स्वामी के साथ कर रहे हो तो इसका ये मतलब तो नहीं कि तुम मेरे से मिलो ही नहीं। ये तो गलत है। हममें रिश्ते तो बने रहने चाहिये। क्या पता फिर कब, किसे, किसकी जरूरत पड़ जाये।"

"मैं बहुत व्यस्त रहता हूँ।"

"मुझे खुशी है कि तुमने अपनी व्यस्तता के बीच में से, मेरे लिए वक्त निकाला। स्वामी की बहन कैसी है नाथ ?"

नाथ पल भर के लिए चौंका। फिर सामान्य हो गया।

“ये मेरा व्यक्तिगत मामला है डोगरा ।" नाथ बोला--- "इस बात को अलग रहने दो।"

"उसका नाम क्या है?" डोगरा मुस्करा रहा था।

"मैंने कहा ना, उसकी बात मत करो।"

“मैं तुम्हें तुम्हारे काम की बात बताने वाला हूँ। नाराज होने की जरूरत नहीं। नाम क्या है उसका ?"

"सुमन।" नाथ होंठ भिंच गये।

"खूबसूरत भी बहुत होगी। तभी तो वो तुम्हें फाँस सकी ।" डोगरा ने सिर हिलाया--- "तुम।"

“डोगरा ।” नाथ का स्वर सख्त हो गया- - “हम लोगों में बिजनेस संबंध है। व्यक्तिगत बातों को हमारे बीच... ।"

“स्वामी ने तुम्हें अपनी तरफ खींचने लिए अपनी बहन को चारा बनाया कि तुम उससे हथियार लो और आतंकवादी संगठनों और दूसरे गिरोहों को सप्लाई करते रहो। तुमने एकदम मेरे से किनारा कर लिया। परन्तु सुमन भी---।”

“ये मेरा व्यक्तिगत मामला...।"

“परन्तु सुमन को तुम्हारे साथ अपना रिश्ता स्वीकार नहीं है। वो अपने भाई के इशारों पर ज्यादा नहीं चलना चाहती। उसे कोई और लड़का पसन्द है और वो उससे शादी करना चाहती है।" डोगरा मुस्करा रहा था।

नाथ एकटक डोगरा को देखने लगा।

"समझे मेरी बात को नाथ।"

"तुम्हें ये बात कैसे पता?" नाथ के होंठों से निकला।

“क्या सुमन ने तुमसे ये बात कही ?"

"ऐसा तो कुछ नहीं है। होता तो वो मुझसे कह देती। लेकिन...।" नाथ थम सा गया कहते-कहते ।

"लेकिन क्या ?”

“कुछ दिनों से मैं उसके व्यवहार में आया बदलाव महसूस जरूर कर रहा हूँ।" नाथ जैसे अपने आप से बोला। वो बहुत बेचैन हो उठा था।

"तो तुम समझ रहे हो ना कि मैं सच कह रहा हूँ।” डोगरा खुश था कि यूँ ही चलाया तीर निशाने पर जा लगा है।

“ऐसे रिश्ते ज्यादा चलते भी नहीं है डोगरा साहब।" रीटा कह उठी--- "ये तो स्वामी ने अपना उल्लू सीधा किया नाथ साहब को बेवकूफ बना कर। एक दिन तो सुमन को अकल आनी ही थी कि वो अपनी जिन्दगी देखे।"

"नहीं।" नाथ कह उठा--- "ऐसा कुछ नहीं है। सुमन मेरे से शादी करने वाली है।"

"वहम मत पालो।" डोगरा ने गम्भीर स्वर में कहा--- "सुमन किसी और को चाहती है। अब सीन ये है कि स्वामी, सुमन को इस बात के लिए तैयार करने पर लगा हुआ है कि तुम्हें फंसाये रखे। स्वामी जानता है कि सुमन तुम्हारे हाथ से गई तो तुम स्वामी के हाथ से निकल कर वापस मेरे पास आ जाओगे। कई दिनों से स्वामी और सुमन के बीच तगड़ा तनाव चल रहा है। सुमन अब तुम्हें छोड़ देना चाहती है। ये महसूस करके स्वामी ने अपनी बहन को धमकी दे दी कि अगर उसकी बात नहीं मानी तो उसे जान से मार देगा। ऐसे में तुम सोच ही सकते हो कि सुमन की मानसिक स्थिति किस हाल से गुजर रही होगी। अब वो तुम्हें पसन्द नहीं करती। अपने भाई को पसन्द नहीं करती। वो अपनी पसन्द के लड़के के साथ शादी कर लेना चाहती है परन्तु स्वामी उसकी इच्छा में दीवार बनकर खड़ा है। स्वामी को ये चिन्ता है कि कहीं तुम उससे हथियार लेना बंद ना कर दो। तुम ही बताओ नाथ ये जबरदस्ती का रिश्ता कब तक चलेगा।"

"तुम बकवास कर रहे हो डोगरा ।"

“सुना रीटा डार्लिंग।” डोगरा ने अपने कंधे पर पड़े रीटा के हाथ को थपथपाया--- "इसे मेरी बात का भरोसा नहीं हो रहा।"

"फिर तो बढ़िया ये ही है कि नाथ साहब, सुमन से सीधा-सीधा पूछ ले कि उसका भाई उसे क्यों परेशान कर रहा है। मुझे भरोसा है कि नाथ साहब प्यार से पूछेंगे तो सुमन सारी बात इनसे कह देगी।” रीटा सामान्य स्वर में कह उठी।

"ये बातें झूठ हैं। सुमन ने सप्ताह पहले ही मुझसे वादा किया है अगले महीने वो मुझसे शादी कर लेगी।"

"सप्ताह पहले।” डोगरा ने सिर हिलाया--- "सप्ताह बहुत लम्बा होता है किसी के भी विचार बदलने या जीवन में नया साथी आ जाने के लिए। वैसे स्वामी और सुमन के बीच ये सब कुछ पाँच-छः दिनों से चल रहा है।"

"सुमन आपको बेवकूफ बना रही है नाथ साहब ।" रीटा बोली--- "वो जल्दी ही अपनी शादी का कार्ड आपको भेज देगी।"

"क्या बकवास है। क्या हम इन्हीं बातों के लिए मिले हैं।" नाथ भड़क उठा--- "मेरा वक्त बरबाद कर---।"

“होश में आओ नाथ।” डोगरा शांत स्वर में बोला--- “ये जरूरी बातें हैं। तुम्हारी जिन्दगी में महत्वपूर्ण जगह रखती है सुमन। परन्तु तुम जिन बातों से अनजान हो, हम वो बातें तुम्हें बता रहे हैं। ये ठीक है कि मुझे पसन्द नहीं आया कि तुम स्वामी से हथियार लेने लगे। उसने अपनी बहन के द्वारा तुम्हें फांसा और तुम्हें, मुझसे छीन लिया। परन्तु तुम धोखे में हो। ये भाई-बहन का खेल है और वो तुम्हें बेवकूफ बनाकर अपना मतलब निकाल रहे हैं। परोसा सामान ज्यादा देर थाल में नहीं टिकता और सुमन परोसा माल ही है। सच बात मैंने तुम्हें बता दी है और तुम अच्छी तरह मालूम कर सकते हो कि मैंने गलत कहा या...।"

उसी पल नाथ उठ खड़ा हुआ।

"मैं चलूंगा डोगरा ।" नाथ गुस्से में और परेशान दिखा।

"ऐसे कैसे, अभी तो हमने डिनर करना...।"

“मैं माफी चाहता हूँ, इन बातों के बाद डिनर की इच्छा मन में नहीं...।"

तभी नाथ का मोबाइल फोन बज उठा। बात अधूरी रह गई। उसने फोन निकाल कर बात की। उधर से जो कहा जा रहा था, वो सुनने लगा। उसका चेहरे का रंग, हाव-भाव बदलने लगे। देखते ही देखते उसका चेहरा फक्क पड़ गया।

"क्या कहा ?" नाथ के होंठों से निकला--- "सुमन ने आत्महत्या कर ली।"

विलास डोगरा उसी पल खड़ा हो गया।

नाथ ने फोन कान से हटा लिया। चेहरे पर लुट जाने के भाव थे ।

"ये तो बहुत बुरा हुआ।” डोगरा ने दुःख भरे स्वर में कहा--- "स्वामी ने सुमन के लिए सब दरवाजे बंद कर दिए होंगे कि उसे हर हाल में तुम्हारे साथ ही रहना है। उस बेचारी को कोई रास्ता ना सूझा और उसने आत्महत्या कर ली।"

नाथ की आँखें भर आईं। वो धप्प से वापस सोफे पर जा बैठा।

डोगरा और रीटा उसे देखते रहे। चेहरों पर दुःख की छाप ओढ़ ली थी।

“ये क्या हो गया।” नाथ तड़प भरे स्वर में कह उठा--- “सुमन ने मुझसे कहा होता। स्वामी ने मेरे से बात की होती। मैं सुमन को आजाद कर देता। मैं सच में प्यार करता था सुमन से। वो बहुत अच्छी लड़की थी। ये ये क्या हो गया।" उसकी आँखों से आंसू निकल गये।

"मैं जानता हूं बहुत बुरा हुआ। स्वामी को तुमसे बात करनी चाहिये थी कि सुमन किसी और से शादी करना चाहती है। परन्तु स्वामी ये सोच कर चुप रहा कि तुम उससे हथियार लेना बंद कर दोगे। स्वामी सिर्फ अपने मतलब का है। उसने अपनी बहन की भी परवाह नहीं की।"

नाथ बैठा रहा। उसकी आँखों से आंसू बहते रहे।

तभी दरवाजा खुला और कुट्टी ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।

"डिनर हाजिर है।" उसके पीछे दो वेटर खाने की ट्राली लिए दिखे।

"डिनर वापस ले जाओ।" डोगरा ने हाथ उठाकर गम्भीर स्वर में कहा।

कुट्टी ने एक निगाह नाथ पर डाली फिर बाहर निकलते हुए दरवाजा बंद कर दिया।

कमरे में लम्बे पलों तक शान्ति रही।

नाथ के आंसू बहते रहे। वो सोफे पर पस्त हाल में अधलेटा सा था।

"कुछ कहिये डोगरा साहब।" रीटा अफसोस भरे स्वर में बोली--- “बेचारे नाथ साहब तो हिम्मत हार बैठे हैं।"

“अपने को संभालो नाथ। तुम तो मजबूत आदमी हो। अक्सर मैं तुम्हारी तारीफ करता हूँ।" डोगरा ने गम्भीर स्वर में कहा--- “अगर मुझे ज़रा भी इस बात का एहसास होता कि वो लड़की आत्महत्या कर लेगी तो मैं इस मुलाकात का इन्तजार नहीं करता तीन दिन पहले ही सारे हालात तुम्हें फोन पर बता देता। ताकि तुम स्वामी को समझाकर सुमन की सहायता करते। वो जिससे शादी करना चाहती है, उसे करने देते। परन्तु अब वक्त हाथ से निकल चुका है। सुमन जिन्दा नहीं रही। खेल खत्म हो गया। स्वामी को चाहिये था कि वक्त रहते वो तुमसे बात कर लेता तो सब ठीक हो जाता। तब शायद सुमन को तुम समझा पाते और वो तुमसे ही शादी करने को तैयार हो जाती। जो हुआ, उसका मुझे बड़ा अफसोस है नाथ साहब। तुमसे ये बात करने आया था कि स्वामी से हथियार मत लो। मेरे पास चीन के बनाये नये हथियार आये हैं जो कि आतंकवादियों को बहुत पसन्द आयेंगे। परन्तु अभी वक्त नहीं हैं ऐसी बातें करने का। मैं तुम्हारे दुःख में शामिल हूं। मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकता हूं तो बताओ।"

नाथ ने आंसू पोंछे । सीधा होकर बैठा। बेचैन दिखा वो ।

"सुमन मेरी जिन्दगी में बहुत ज्यादा जगह रखती थी।" भर्राये स्वर में बोला नाथ--- "स्वामी को मेरे से बात करनी चाहिये थी कि सुमन का इरादा कुछ और है। मेरे से बात ना करके स्वामी ने बहुत गलत किया।"

"डोगरा साहब।” रीटा कह उठी--- "नाथ साहब की कुछ समस्या तो मैं हल कर सकती हूं।"

"वो कैसे?"

"मेरी मुंह बोली बहन है। बीस साल की है और अभी तक उसने किसी से प्यार भी नहीं किया। नाथ साहब चाहें तो अपनी बहन का रिश्ता मैं नाथ साहब से जोड़ सकती हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी बहन लाजवाब है और नाथ साहब उसे जरूर पसन्द करेंगे ।"

"ये तो अब नाथ साहब की मर्जी पर है।" डोगरा ने शांत स्वर में कहा।

कुछ खामोशी के बाद, नाथ ने सिर उठाया और दोनों को देखकर कहा।

"ऐसी कोई बात नहीं। लड़कियों की कमी नहीं है मुझे। परन्तु सुमन के साथ मेरा मन लग गया था। स्वामी ने बहुत गलत किया। मैं उसे कभी भी माफ नहीं कर सकता।” नाथ उठ खड़ा हुआ--- "मेरा मन ठीक नहीं है डोगरा साहब। अब मैं चलूंगा।”

“मैं समझता हूँ।” डोगरा ने सिर हिलाया--- “इस वक्त तुमसे कोई बात नहीं हो सकेगी। भगवान ना करे रीटा को कुछ हो जाये तो मेरी हालत तुमसे भी बुरी हो जायेगी। शायद मैं अपने कामों को ठीक से संभाल भी ना सकूं। हम फिर मिलेंगे नाथ। नहीं तो फोन पर बात कर ही लेंगे। वैसे मेरा ख्याल है कि अब तुम स्वामी से कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहोगे। अगर उसने सुमन पर सख्ती ना की होती तो सुमन ने कभी भी आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाना था।"

नाथ चला गया।

दरवाजा बंद होते ही रीटा मुस्कराकर कह उठी ।

"आपने तो कमाल कर दिया डोगरा साहब। क्या ड्रामा किया है नाथ के सामने। मुझे तो नहीं लगता कि अब वो स्वामी से हथियार ले। वो तो स्वामी की शक्ल देखना भी पसन्द नहीं करेगा। सुमन की आत्महत्या को, स्वामी के गले में डाल दिया।”

"मेरे ख्याल में अब नाथ सीधा हो जायेगा।"

“ख्याल में क्या, पक्का सीधा हो जायेगा एक बात तो बताइये डोगरा साहब---।

"कहो।"

"वो आपने सच कहा था कि मुझे कुछ हो गया तो आपकी हालत बुरी हो जायेगी।”

डोगरा ने मुस्कराकर रीटा को देखा।

रीटा करीब आ गई। डोगरा ने कमर में हाथ डाला और उसे अपने से सटा लिया।

"रीटा डार्लिंग तुम तो मेरी जान हो। नाथ के लिए सुमन क्या अहमियत रखती होगी, जो तुम मेरे लिए रखती हो। तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं और आशा करता हूं कि तुम्हारे साथ सौ साल की जिन्दगी बिताऊंगा।"

"सच डोगरा साहब---।"

"अपनी जान के टुकड़े की कसम।" डोगरा ने प्यार से रीटा के गाल को मसला ।

रीटा ने गहरी सांस ली।

डोगरा ने उसकी कमर से हाथ हटाया तो रीटा कह उठी।

"आपके बिना तो मर ही जाऊंगी डोगरा साहब।"

"जानता हूं।"

"क्या?"

"पहले जमाने में जब औरतें अपने पति के मरने पर, जलती चिता में कूदकर जान दे देती थी, मेरे मरने पर तू भी ऐसा ही करेगी।"

"आपको कैसे पता?"

"मुझे पता है तू मुझे कितना चाहती है। लेकिन घबरा मत। मुझे कुछ नहीं होगा। सौ साल की उम्र तक हम इकट्ठे रहेंगे।”

"बच्चे भी होंगे हमारे ?"

"नहीं। बच्चे होते ही हमारा प्यार बंट जायेगा। तेरे को बच्चों की चिन्ता होने लगेगी। बच्चों की जरूरत नहीं है रीटा डार्लिंग। तेरा-मेरा साथ बना रहे, ये ही शानदार रहेगा। हम दोनों बहुत खुश रहेंगे।"

"आप कितनी अच्छी बातें करते हैं डोगरा साहब---।"

“तू सामने हो तो ऐसी बातें खुद-ब-खुद ही मुंह से निकलती है।" डोगरा ने कहा और सिग्रेट सुलगा ली--- "नाथ को हमने अच्छी तरह संभाला। वो स्वामी का मुंह भी नहीं देखेगा अब। नाथ मेरे हाथों से निकल जाये। ये बात मुझे पसन्द नहीं आई थी।"

रीटा कुछ कहने लगी कि तभी दरवाजा खुला और कुट्टी ने भीतर प्रवेश किया।

■■■

रात के 11.35 हो रहे थे।

डोगरा की कार पार्क होटल से चली तो आदमियों से भरी दो कारें आगे-पीछे लग गई। पीछे वाली सीट पर डोगरा और रीटा मौजूद थी। आगे सीट पर कुट्टी था। एक अन्य आदमी कार चला रहा था। रात के वक्त कर्नाटक के हवेरी शहर में ट्रैफिक कम हो गया था फिर भी मुख्य सड़कों पर वाहन दौड़ते दिखाई दे रहे थे। सड़क के किनारे लगी लाइटें सड़कों को रोशन किए हुए थी।

"क्या कहता है कुट्टी?" डोगरा ने एकाएक पूछा।

"वो ड्रग्स का काम छोड़ना चाहता है।" कट्टी ने कहा।

"क्यों?"

"कहता है थक गया है। बाकी की जिन्दगी आराम से बितायेगा। अब नोटों की कमी नहीं रही उसके पास ।"

“साउथ इंडिया में मेरे ड्रग्स के धंधे को 10 सालों से व्यास ही संभाल रहा है। अब वो धंधे से अलग कैसे हो सकता है। तुमने उसे समझाया नहीं कि धंधे से अलग हो जाने का क्या मतलब होता है ।" डोगरा ने नाराजगी से कहा।

“मैंने उसे कुछ नहीं कहा। सोचा आप ही उससे बात करें तो बेहतर है।" कुट्टी बोला ।

"कहाँ है व्यास?"

“कोहरू गया है। अपने गाँव। बूढ़े माँ-बाप से मिलने। परिवार तो उसका हवेरी में रहता है।"

"उसे बोला नहीं कि मैं आने वाला हूँ।"

“सब पता था उसे। दो दिन पहले कोडुरू चला गया। मुझे तो बाद में पता चला। उसने फोन भी बंद कर रखा है।"

"ये तो गलत कर रहा है व्यास ।" डोगरा ने सिर हिलाया।

कुट्टी कुछ नहीं बोला।

"कोडुरू कितनी देर का रास्ता है?" डोगरा ने पूछा।

"दो-ढाई घंटे लगेंगे, वहाँ पहुंचने में।"

“कोडुरू चलो। व्यास से मिलना जरूरी है।"

कुट्टी ने ड्राइवर को कोडुरू चलने को कहा फिर आगे-पीछे आने वाली कारों को बताया कि अब हम कोडुरू जा रहे हैं। डोगरा ने फोन निकाला और अलग कार में पीछे आते रमेश टूडे से बात की।

"हम कोडुरू जा रहे हैं टूडे। दो-ढाई घंटे का रास्ता है।"

“ठीक है। वहाँ क्या काम पड़ गया डोगरा साहब ?"

"व्यास उधर है। मेरे आने की खबर पाकर दो दिन पहले ही अपने गाँव कोडुरू चला गया। वो धंधा छोड़ना चाहता है।"

“समझ गया। मैं आपके पीछे ही आ रहा हूँ।”

बातचीत खत्म हुई तो रीटा कह उठी।

"डोगरा साहब। व्यास काम का आदमी है। दस सालों से बखूबी साउथ इंडिया के ड्रग्स का काम संभाले हुए है और आपको हमेशा ही तगड़ा फायदा कमाकर दिया है। उससे आराम से बात करनी पड़ेगी।"

डोगरा न मुस्कराकर बगल में बैठी रीटा को देखा और बोला।

"तू कितना ध्यान रखती है मेरा रीटा डार्लिंग, अगर तू न होती तो मैं कहीं का नहीं होता। तूने मुझे संभाल रखा है।"

"कट्टी बैठा है। उसका तो ख्याल कीजिये।"

"गलत तो मैंने कुछ भी नहीं कहा।" डोगरा ने प्यार से रीटा की टांग थपथपाई।

"व्यास को संभालना जरूरी है। वरना साऊथ इंडिया में ड्रग्स का काम हल्का हो जायेगा।" रीटा पुनः कह उठी।

"वो मान जायेगा मेरी बात।" डोगरा ने विश्वास भरे स्वर में कहा--- "व्यास मेरी इज्जत करता है।"

कार तेजी से दोड़े जा रही थी।

तभी कुट्टी कह उठा ।

"नाथ से अच्छी बात हुई डोगरा साहब?"

“हाँ। मैंने उसे बता दिया कि सुमन उसे नहीं किसी और से प्यार करती थी। परन्तु स्वामी चाहता था कि उसकी बहन, उसे ही फंसाये रखे। इस बात का उस पर दबाव बना रहा था जिसकी वजह से वो हताश हो चुकी है। तभी नाथ को फोन आ गया कि सुमन ने आत्महत्या कर ली है। मतलब कि मेरी बात पर मुहर लग गई कि मैं सही कह रहा हूँ। अब जो हालात पैदा हुए हैं उसकी वजह से नाथ, स्वामी से हथियार नहीं लेगा। वो स्वामी को ही दोषी मानेगा सुमन की मौत का। सुमन की मौत ने उसे हिला दिया है।"

"नाथ ने हमसे हथियार लेने को कहा ?"

"वो जरूर फोन करेगा। चार महीने से नाथ, स्वामी से हथियार ले रहा है। इतने वक्त में तुमने क्या किया कुट्टी ?"

"मैंने कई आतंकी संगठनों से सम्पर्क किया है कि वो हमसे हथियार लें। इसके लिए मुझे दूर-दूर तक जाना पड़ा। परन्तु ज्यादा सफलता नहीं मिली। कुछ को ही थोड़े-बहुत हथियार सप्लाई कर सका। ये संगठन सीधे सम्पर्क नहीं चाहते। दलाल के द्वारा ही हथियार लेना पसन्द करते हैं। इस तरह वो खुद को सुरक्षित समझते हैं। यूं सीधे उनके पास जाना, खतरा उठाने वाली बात है।"

“गोदाम की क्या हालत है?"

“पूरा गोदाम हथियार की पेटियों से भरा पड़ा है। माल हमारे पास पहुंच रहा है। परन्तु आगे नहीं जा रहा।"

"स्वामी की चालाकी से हमारा काम रुक गया। परन्तु अब सब ठीक हो जायेगा।"

"नाथ अगर अब भी हमारे पास नहीं आया तो?" कुट्टी बोला।

"तो स्वामी को खत्म करना पड़ेगा। नाथ पर हम दबाव नहीं बना सकते कि वो हमारा माल ही आतंकवादियों को सप्लाई करे। इस तरह नाथ उखड़ जायेगा। परन्तु उसके सब रास्ते बंद कर सकते हैं कि वो हमसे ही हथियार ले ।” डोगरा ने गम्भीर स्वर कहा।

■■■

कोडुरू !

कर्नाटक की एक छोटी सी जगह, जहाँ खेती-बाड़ी को ही ज्यादा तजरीह दी जाती थी। कोडुरू कस्बा गाँव से चार किलोमीटर दूर था। शहर कितने भी बदल गये हों, परन्तु कोडुरू नहीं बदला था। वो ही खेती-बाड़ी। वो ही गाय-भैंसे। मिट्टी से भरी कच्ची सड़कें। आठ बजे सो जाना और सुबह चार बजे उठकर गाय-भैंसों का काम करना फिर उजाला होते ही खेती में चले जाना।

रात के सवा दो बज रहे थे जब वो कारें कोडुरू गाँव की कच्ची सड़कों पर धूल उड़ाती आगे बढ़ती हुई, कुट्टी के इशारे पर एक जगह कारें रुकती चली गईं। ये गाँव के भीतर का खुला इलाका था। कहीं-कहीं बल्ब जल रहा था, नहीं तो अंधेरा ही था। कुत्तों के भौंकने की आवाजें सुनाई दे रही थी या कभी गाय-भैंस की आवाज सुनाई दे जाती। ठण्डी हवा चल रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। ऐसे गाँव आजकल कम ही देखने को मिलते थे।

सब कारों से बाहर निकलने लगे ।

"कुट्टी ।" डोगरा बोला--- “मैं व्यास को डराना नहीं चाहता। सब आदमी यहीं रहेंगे और सिर्फ तुम ही मुझे व्यास के पास छोड़कर वापस आ जाओगे। कहाँ है उसका घर ?"

“सामने वाला।” कुट्टी ने एक घर की तरफ इशारा किया।

“उसके माँ-बाप वहीं रहते हैं।"

“जी ।"

तभी रमेश टूडे पास आया तो डोगरा कह उठा ।

"अभी तुम्हारी जरूरत नहीं टूडे। मैं उस घर में व्यास से मिलने जा रहा हूं। घंटा भर तो लग ही जायेगा।"

डोगरा, रीटा और कुट्टी उस घर के बंद दरवाजे पर पहुँचे।

कुट्टी ने दरवाजा खटखटाया। तीन-चार बार दरवाजा खटखटाने पर भीतर लाइट जली और एक बूढ़े से व्यक्ति ने दरवाजा खोला। डोगरा ने इन्सानों की भांति उस बूढ़े के पाँव छुए और कहा कि वो व्यास का दोस्त है। बे-वक्त आने के लिए माफी चाहता हूं। उसने भीतर चलने और सामने वाले कमरे में जाकर बैठने को कहा।

कुट्टी वापस चला गया।

डोगरा और रीटा सामने दिखाई दे रहे कमरे में जा बैठे। तीन कुर्सियां थी और एक चारपाई थी।

तीन मिनट भी नहीं बीते कि नींद भरी आंखों से व्यास वहाँ आया उसने कुर्ता-पायजामा पहन रखा था। वो पैंतालिस बरस का था। सांवले रंग का सामान्य सेहत का व्यक्ति था। क्लीन शेव्ड चेहरा था ।

"आप यहाँ डोगरा साहब---।" व्यास डोगरा को वहाँ देख चौंका।

"आना पड़ा। तू जो मेरे से मिलना नहीं चाहता था। हवेरी दो दिन पहले ही यहाँ आ गया ।" डोगरा मुस्कराकर बोला।

"ये बात नहीं, मुझे कुछ काम था।" व्यास बैठता हुआ कह उठा।

"काम भी तो पड़ सकता है डोगरा साहब। बूढ़े माँ-बाप यहाँ हैं। आप गलत ना सोचा करें।"

"मैंने तो जरा भी गलत नहीं सोचा रीटा डार्लिंग ।" डोगरा बराबर मुस्करा रहा था फिर व्यास से कहा--- “अभी मेरे पास वक्त था तो सोचा मैं कोडुरू घूम आता हूँ। तेरे से मुलाकात भी हो जायेगी। सब ठीक है ना?"

"बढ़िया है डोगरा साहब।" व्यास कुछ सतर्क था।

"धंधा कैसा चल रहा है?"

“एकदम बढ़िया।"

"तू सब कुछ बढ़िया संभाला हुआ है। याद है, जब तू इस धंधे में मेरे साथ लगा था तो तेरे पास खाने को रोटी तक नहीं थी। अब तूने अपनी मेहनत से इतनी तरक्की कर ली कि नोट ही नोट हैं तेरे पास। तेरे को इस हाल में देखकर मुझे बहुत खुशी होती है और तूने भी मेरे को तगड़े नोट कमा कर दिए। मैं तो तेरी तारीफ रीटा से हमेशा करता रहता हूँ।" डोगरा ने अपनेपन से कहा ।

"डोगरा साहब सही कह रहे हैं।" रीटा फौरन कह उठी।

कुर्सी पर खामोशी से बैठा रहा व्यास ।

"कट्टी कह रहा था कि तू मेरा काम छोड़ने की सोच रहा है। ऐसा कुछ है क्या ?" डोगरा प्यार से बोला ।

“हाँ।" व्यास के होंठों से निकला

"तो क्या करेगा?"

"कुछ भी नहीं। अपने परिवार को गाँव ले आऊंगा। आराम से जिन्दगी बिताऊँगा ।" व्यास ने धीमें स्वर में कहा।

"ये अच्छी बात है क्या जो तू मेरा काम छोड़ देगा। मुझे तेरी ये बात अच्छी नहीं लगी व्यास।"

“काम कर-करके मैं थक गया हूँ।"

“ऐसा है तो तीन महीने आराम कर ले। मेरा काम क्यों छोड़ता है। साऊथ इंडिया में तू ही तो ड्रग्स फैलाता है मेरी। सबसे तेरे बढ़िया कांटैक्ट हैं। तू धंधे से हट गया तो मेरा धंधा बैठ जायेगा। कुछ तो सोच के बात कर। मेरा नुकसान करता है तू। वो दिन भूल गया कि जब तू पेट भरने को तरस रहा था और मैंने तेरे कंधे पर हाथ रखा था।"

“भूला नहीं हूँ।" व्यास ने बेचैनी से कहा।

"तो ऐसा क्यों बोलता है कि तू धंधे से अलग होना चाहता है। ये ऐसा धंधा तो है नहीं कि तू हट गया तो कोई दूसरा इसे संभाल लेगा। ये धंधा तो आवाज पहचान कर चलता है। शक्ल देख कर चलता है। तू पुराना है। तेरे दम पर ही ये सब चलेगा। तू हटा तो काम खत्म। मेरा नुकसान करायेगा तू। कोई दूसरा मैदान में उतर आयेगा।"

व्यास ने सिर उठाकर डोगरा को देखकर कहा।

"पर मैं अब आराम से जिन्दगी बिताना चाहता हूँ। थक गया हूँ ।"

डोगरा ने सोच भरी निगाहों से व्यास को देखा।

“डोगरा साहब।” रीटा कह उठी--- "ये ठीक है कि नुकसान होगा आपको! साऊथ इंडिया हाथ से निकल जायेगा। परन्तु आपको व्यास के बारे में भी कुछ सोचना चाहिये। वो दस साल से काम कर रहा है। थक गया है।"

“तो मुझे क्या करना चाहिये?" डोगरा गम्भीर स्वर में बोला।

"अपने किसी खास आदमी को व्यास के साथ लगा दीजिये, जो कि बाद में व्यास की जगह ले लेगा। चार-पाँच साल व्यास अपनी तरफ से उसे मैदान में रखेगा। लोगों से मिलवा देगा। इस तरह लोग उसे भी जानने लगेंगे। फिर व्यास धीरे-धीरे पीछे हटता जायेगा और वो आदमी व्यास की जगह पर आता जायेगा और व्यास की जगह वो टिक जायेगा।"

“गुड आइडिया रीटा डार्लिंग। तू ना होती तो मेरा काम कैसे चलता।" डोगरा मुस्करा पड़ा।

“मैं तो सौ साल की उम्र तक आपके साथ हूँ।"

डोगरा ने व्यास से कहा।

"ऐसा करना ठीक रहेगा व्यास?"

"ये ठीक होगा।"

“मैं तेरे पास किसी को भेजूंगा। चुन लूंगा कि किस आदमी को भेजना है। कुट्टी से भी सलाह लूंगा। तू धीरे-धीरे अपनी जगह उसे देते जाना। मार्किट में उसको अपने परिवार के तौर पर परिचित करवाना। उसे हर जगह पर अपने साथ रखना कि ड्रग्स लेने वाली पार्टियां तेरी ही तरह, उस पर भी विश्वास करने लगे...।"

"मैं समझ गया डोगरा साहब।"

"इसमें लम्बा वक्त लगेगा। ये जल्दी का काम नहीं है। चार-पाँच साल लगेंगे।" डोगरा बोला।

"आपके लिए मैं ये करूँगा। चार-पाँच साल और काम कर लूंगा।" व्यास ने कहा।

"तो, बात बन गई डोगरा साहब।” रीटा कह उठी।

"तुमने तो मुझे डरा ही दिया था व्यास। ये सुनकर मैं हिल गया कि तू ड्रग्स के काम से हट जाना चाहता है।" डोगरा ने गहरी सांस लेकर कहा--- "पर अब ठीक हैं। चार-पाँच साल तू और काम करेगा तू और तब तक दूसरे आदमी को अपनी जगह लेने के लिये तैयार कर देगा। तेरे को कोई भी समस्या हो तो सीधा मुझे फोन कर। सोचने की भी जरूरत नहीं है। मेरे से भाइयों की तरह सलाह-मशवरा कर। मैं तेरी बहुत इज्जत करता हूँ। तेरी हर बात पर मैं ध्यान दूंगा।"

“शुक्रिया डोगरा साहब।" व्यास अब तनाव मुक्त दिखा।

"तू कुछ महीने आराम कर ले। दो-तीन महीने यहीं रह, गाँव में काम तो चलता ही रहेगा।"

“आप फिक्र ना करें। मैं सब संभाल लूंगा।" व्यास मुस्कराया।

"बस, ऐसे ही मुस्कराते रहना।" डोगरा हौले से हंसा--- "इसी महीने मैं तेरे पास किसी को भेज दूंगा। उसको धंधे में ट्रेंड कर देना और बाजार में जान-पहचान करवा देना। अपना बोझा धीरे-धीरे उसके हवाले करते जाना। ये तो कोई समस्या ही नहीं थी। फोन पर ही बात कर लेता तो हल निकल आता। अब मैं चलता हूँ। इधर अभी बोत काम करने हैं।" डोगरा उठ खड़ा हुआ।

व्यास से विदा लेकर दोनों बाहर निकले और सामने खड़ी कारों की तरफ बढ़े।

"काम बन गया डोगरा साहब।" रीटा बोली--- "वो अभी धंधा नहीं छोड़ेगा।"

“हाँ। पाँच साल तो और करेगा। उसके बाद फिर तैयार कर लूंगा कि मेरा काम करता रहे। पर किसी को व्यास के पास भेजना होगा जो कि पार्टनर के तौर पर मार्किट से मिल ले। ताकि कभी समस्या आये तो साऊथ इंडिया संभालने वाला कोई तो हो।"

वे दोनों कार की पिछली सीट पर जा बैठे।

वो काफिला वापस हवेरी की तरफ चल पड़ा।

"सब ठीक है कुट्टी व्यास काम करता रहेगा।"

"ये तो अच्छी बात रही।" कट्टी ने सिर हिलाया--- "व्यास समझदार इन्सान है।"

"पर किसी को व्यास के साथ काम पर लगाना है कि उसे साऊथ इंडिया में होने वाले धंधे, लोगों की, पार्टियों की पूरी जानकारी रहे। तुम मुझे सलाह देना कि किसे इस काम के लिए व्यास के साथ लगाऊँ ?"

“सोच कर बताऊँगा। क्या व्यास उसके लिये तैयार है?” कुट्टी ने पूछा

“हाँ। ऐसा करने से वो खुश है, तुम...।"

तभी डोगरा का फोन बजने लगा।

"हैलो।" डोगरा ने तुरन्त फोन निकाल कर बात की।

"विलास डोगरा ।" ये आवाज नई थी डोगरा के लिए।

“हाँ।” डोगरा के होंठ सिकुड़े।

"तुमने नाथ के क्या कान भर दिए हैं।" इस बार लहजे में गुर्राहट आ गई।

"नाथ के ?" डोगरा फौरन संभला--- "तुम कौन हो?"

"स्वामी ।"

“ओह स्वामी। माफ करना मैंने तुम्हें पहचाना नहीं। शाम को ही नाथ ने तुम्हारा जिक्र किया...।"

“तुमने क्या कहा नाथ को कि मेरी बहन किसी और से प्यार करती...।"

“गलत क्या कह दिया?" डोगरा ने शांत स्वर में कहा।

"हरामजादे। तूने नाथ को मेरे खिलाफ क्यों भड़काया। तूने...।"

“ऐसी भाषा मत बोल स्वामी ।"

“तू इसी लायक है।" उधर से स्वामी के दाँत किटकिटाने की आवाज आई--- "ये सब तेरी चाल है। मैं समझ चुका हूँ। तू शाम को ही हवेरी पहुँचा और आनन-फानन मेरी बहन की हत्या का इन्तजाम कर दिया। उधर नाथ से मुलाकात की और उसे झूठी कहानी सुनाई। तभी उसे खबर मिल गई कि सुमन मर गई तो वो तेरी बात को सच मान गया।"

"सच मान गया?  क्या बात करता है स्वामी मैंने उसे सब ही तो बताया।"

"बकवास मत कर।" उधर से स्वामी की गर्राहट कानों में पड़ी--- "तेरे को ये बात ज़रा भी पसन्द नहीं आ रही थी कि नाथ मेरे से हथियार लेने लगा है। तूने शातिर चाल चली। सब कुछ तूने सोच समझ कर किया। मेरी बहन की हत्या...।"

"पर मुझे तो नाथ ने बताया कि सुमन ने आत्महत्या की है।"

"बकवास ।" उधर से स्वामी चीखा--- "वो आत्महत्या नहीं कर सकती थी। उससे आधा घंटा पहले ही उसने फोन पर मेरे से बात की थी। वो खुश थी कि नाथ से शादी करने वाली हैं। नाथ को वो पसन्द भी करती थी। उसे जिन्दा ही फंदे में फंसाकर पंखे के साथ लटका दिया गया। फिर आत्महत्या का नाम दे दिया। मैं इस बात को कभी ना समझ पाता, अगर नाथ ने मुझे तुम्हारी झूठी कहानी ना सुनाई होती। तुम्हें इस मामले में पाकर मैं समझ गया कि तुम्हारे इशारे पर सुमन को मारा गया है। क्योंकि सुमन की वजह से ही नाथ मेरे करीब आया और मुझसे हथियार लेने लगा। तुम्हें ये बात पसद कहाँ से आती और ।"

"तू झूठ बोल रहा है स्वामी।" डोगरा को लगा कहीं स्वामी ये बातें फोन पर नाथ को ना सुना रहा हो--- “तीन दिनों से मैं तुम्हारी बहन के बारे में खबर सुन रहा था कि वो नाथ से नहीं, किसी और से शादी करना चाहती है, परन्तु तुमने उसे मजबूर कर रखा है कि वो नाथ से ही शादी करे, ताकि नाथ तुमसे हथियार लेता रहे और तुम्हें करोड़ों का फायदा होता रहे। परन्तु सुमन ने फैसला कर लिया था कि वो अब तुम्हारी बात और नहीं मानेगी। तुमने उसे देख लेने की भी धमकी दी। वो तुम्हारी वजह से बुरे हालातों में इस तरह फंस गई कि उसे आत्महत्या कर लेनी पड़ी।"

"वो मेरी बहन थी। मैं उस पर जान देता था। उसकी खुशी में ही मेरी खुशी...।”

"ये बातें मुझे क्यों बता रहा है।" डोगरा ने शुष्क स्वर में कहा।

"तेरी सारी बातें झूठी हैं। तूने नाथ को मेरे खिलाफ भड़काया...।"

"मैंने जो कहा, पूरी तरह सच कहा है।" डोगरा ने कठोर स्वर में कहा।

“बकवास मत कर हरामजादे। अगर तेरी बातें सच हैं तो तुझे सुमन की बातें किसने बताई?"

"मेरे अपने सोर्स है।"

“नाम बता सोर्स का।"

"नहीं। नाम नहीं बताया जाता। ऐसे लोगों को पीछे ही रखा जाता है।" डोगरा ने तीखे स्वर में कहा--- “तूने नाथ को अपनी बहन की आड़ में बहुत बेवकूफ बना लिया। अब अगर वो ज़रा भी समझदार हुआ तो तेरी तरफ देखेगा नहीं। सुमन को नाथ से ज़रा भी प्यार नहीं था। पर तेरे दबाव की वजह से उसने नाथ को फाँस रखा था और आगे उसके सब करने को पता लगा तो तूने ।"

“हरामजादे, मैं तेरी जान ले लूंगा।" उधर से स्वामी चीखा--- "झूठे-मक्कार। तेरे ही इशारे पर सुमन को फाँसी पर लटकाया गया है। उस वक्त बंगले पर कोई आया था। एक नौकर को सिर के पीछे चोट करके बेहोश कर दिया गया था और... ।”

“बहुत खूब स्वामी।” डोगरा जहरीले स्वर में कह उठा--- “अब आई तेरी समझ में बात कि क्या हुआ था। ये नौकर वाली बात तूने पहले क्यों नहीं बताई। हुआ ये था कि तेरी और सुमन की तकरार बढ़ गई थी। सुमन तेरे काबू में नहीं रही थी। तेरे को इस बात का एहसास हो गया था कि सुमन अपनी करके ही रहेगी और नाथ को छोड़कर दूसरे से शादी कर लेगी। ऐसे में तेरे शैतानी दिमाग में ये योजना आई कि सुमन को खत्म कर दिया जाये। इससे नाथ की सहानुभूति तेरे को मिलेगी और वो तेरे से हथियार लेता रहेगा। परन्तु मेरे बीच में आ जाने से तेरी योजना बेकार हो गई। असल बात नाथ तक पहुँच गई कि...।"

"तू बहुत जलील इन्सान है जो इतना बड़ा सफेद झूठ बोल रहा है और मेरे पर ही मेरी बहन की हत्या का इल्जाम लगा रहा है। मैं तेरे को नहीं छोडूंगा। हवेरी में तेरे को कुत्ते की मौत... ।

तभी डोगरा को लगा जैसे उधर से नाथ की आवाज भी आई हो। नाथ की आवाज, स्वामी की आवाज के साथ मिल गई थी। ठीक से नहीं सुन पाया डोगरा, परन्तु उसे वो नाथ की आवाज ही लगी थी। इसका मतलब वो फोन पर होने वाली बातचीत नाथ को भी सुना रहा था। ऐसे में उसने ठीक जवाब दिए स्वामी को ।

उधर से फोन बंद हो गया।

डोगरा के होंठों पर जहरीली मुस्कान नाच उठी। उसने फोन कान से हटाया।

"स्वामी क्या कह रहा था डोगरा साहब?"

"चालाक बन रहा था। वो इस बातचीत को, नाथ को सुना रहा था।" डोगरा हंसा ।

"फिर तो अच्छा हुआ, आपने वो ही कहा, जो नाथ से कहा था। नाथ अब समझ गया होगा कि आप सच्चे हैं।”

"स्वामी अभी बच्चा है मेरे सामने ।" डोगरा व्यंग से बोला-- “डोगरा को वो जानता ही कितना है।"

"ओह ।" रीटा डोगरा की बाँह पकड़ कर कह उठी--- "आपको तो अभी मैं भी नहीं जानती डोगरा साहब।"

"रीटा डार्लिंग। तेरे लिए तो मैं खुली किताब हूँ। तेरे से ज्यादा मुझे जानता ही कौन है। कुट्टी।"

"जी।" कुट्टी ने फौरन कहा।

“स्वामी हारा हुआ लग रहा था। उसकी बहन ने आत्महत्या कर ली। नाथ ने भी शायद उसके लिए कोई परेशानी खड़ी कर दी। ऊपर से उसकी ये चाल भी सफल नहीं रही कि मेरी बातें नाथ को सुनाकर सच सामने ला सके। क्योंकि मैंने उसे भी फोन पर वो ही कहा, जो नाथ से कहा था। अब नाथ को यकीन हो गया होगा कि मैं सच कह रहा हूँ। बाजी अपने हाथ से निकलते पाकर हो सकता है स्वामी मुझे खत्म करवाने की कोशिश करे।"

"रहने के लिए किसी और ठिकाने का इन्तजाम करूँ डोगरा साहब।" कट्टी फौरन कह उठा।

"ये ही मैं कहना चाहता था।" डोगरा ने सिर हिलाया--- "हम उस बंगले पर नहीं जायेंगे।"

"ओह, आप कितनी दूर की सोचते हैं डोगरा साहब।" रीटा डोगरा का कंधा चूमते कह उठी।

"बंगले पर हमारे कितने लोग मौजूद हैं ?" डोगरा ने पूछा।

“पाँच हथियार बंद लोग ।" कुट्टी कह उठा।

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