पुलिस हेड क्वार्टर के एक कमरे में इन्स्पेक्टर ख़ालिद मेज़ पर बैठा अपनी डाक खोल रहा था। वह तन्दुरुस्त और नौजवान आदमी था। पहले फ़ौज में था और जंग ख़त्म होने के बाद गुप्तचर विभाग में ले लिया गया था। आदमी ज़हीन था, इसलिए उसे इस महकमे में कोई परेशानी पेश नहीं आयी थी। अपने काम के कारण वह सबको पसन्द था। चेहरे की बनावट सख़्त दिल आदमियों की-सी थी, मगर उसके तौर-तरीक़ों से सख़्ती ज़ाहिर नहीं होती थी।

अपनी डाक देखने के बाद उसने कुर्सी से टेक लगायी ही थी कि मेज़ पर रखे हुए फ़ोन की घण्टी बज उठी।

‘येस,’ उसने रिसीवर उठा कर माउथपीस में कहा, ‘ओह...अच्छा! मैं अभी हाज़िर हुआ।’

वह अपने कमरे से निकल कर विभाग के डी.एस. के कमरे की तरफ़ रवाना हो गया। उसने दरवाज़े की चिक हटायी।

‘आ जाओ!...’ डी. एस. ने कहा। फिर उसने कुर्सी की तरफ़ इशारा किया।

इन्स्पेक्टर ख़ालिद बैठ गया।

‘मैंने एक प्राइवेट काम के लिए तुम्हें बुलाया है।’

‘फ़रमाइए!’

‘फ़ेडरल डिपार्टमेंट के कैप्टन फ़ैयाज़ का एक निजी ख़त मेरे पास आया है।’

‘कैप्टन फ़ैयाज़!’ ख़ालिद कुछ सोचता हुआ बोला, ‘जी हाँ, शायद मैं उन्हें जानता हूँ।’

‘उनका एक आदमी यहाँ आया हुआ है। वे चाहते हैं कि उसे जिस क़िस्म की मदद की ज़रूरत है, दी जाये। उसका नाम अली इमरान है और वह कर्नल ज़रग़ाम के घर ठहरा हुआ है।’

‘किस सिलसिले में आया है?’

‘यह भी उसी आदमी से मालूम हो सकेगा। यह रहा उसका फ़ोटो।’ डी. एस. ने मेज़ के दराज़ से एक तस्वीर निकाल कर ख़ालिद की तरफ़ बढ़ायी।

‘बहुत अच्छा!’ ख़ालिद तस्वीर पर नज़र जमाये बोला, ‘मैं ख़याल रखूँगा।’

‘अच्छा, दूसरी बात...’ डी. एस. ने अपने पाइप में तम्बाकू भरते हुए कहा, ‘शिफ़्टेन के केस में क्या हो रहा है?’

‘यह एक सिरदर्द है।’ ख़ालिद ने लम्बी साँस ले कर कहा, ‘मेरा ख़याल है कि इसमें जल्दी कामयाबी नहीं होगी!’

‘क्यों?’

‘हम यह भी नहीं जानते कि शिफ़्टेन कोई एक फ़र्द है या गिरोह। इस शिफ़्टेन की तरफ़ से जितने लोगों को भी धमकी-भरे ख़त मिले हैं, वे अब तक तो ज़िन्दा हैं और उनमें से अभी तक किसी ने यह ख़बर नहीं दी कि उनसे कोई रक़म वसूल कर ली गयी है। मैं सोचता हूँ कि शायद कोई शातिर आदमी ख़ामख़ा सनसनी फैलाने के लिए ऐसा कर रहा है। क़रीब-क़रीब शहर के हर बड़े आदमी को इस क़िस्म के ख़त मिले हैं और इन सब में किसी बड़ी रक़म की माँग की गयी है।’

‘कोई ऐसा भी है, जिसने इस क़िस्म की कोई शिकायत न की हो?’ डी. एस. ने मुस्कुरा कर पूछा।

‘मेरा ख़याल है कि शायद ही कोई बचा हो!’ ख़ालिद ने कहा।

‘ज़ेहन पर ज़ोर दो।’

‘हो सकता है कि कोई शायद रह ही गया हो!’

‘कर्नल ज़रग़ाम!’ डी. एस. ने मुस्कुरा कर कहा, ‘उसकी तरफ़ से अभी तक इस क़िस्म की कोई ख़बर नहीं मिली और फ़ेडरल डिपार्टमेंट का सुपरिन्टेंडेण्ट एक ऐसे आदमी के लिए हमसे मदद माँग रहा है जो कर्नल ज़रग़ाम ही के यहाँ ठहरा है। क्या समझे?’

‘तब तो ज़रूर कोई बात है।’

‘बहुत ही ख़ास!’ डी.एस ने मुँह से पाइप निकाल कर कहा, ‘मेरा ख़याल है कि तुम ख़ुद ही...उस आदमी से...क्या नाम...अली इमरान से मिलो।’

‘मैं ज़रूर मिलूँगा!...मगर मालूम नहीं वह कौन और किस क़िस्म का आदमी है।?

‘बहरहाल...यह तो मिलने पर मालूम हो सकेगा...’ डी. एस. ने कहा और अपनी मेज़ पर रखे हुए काग़ज़ों को देखने लगा।