बंसीलाल ने दोसा और बाटला को देखने के पश्चात् सिग्रेट सुलगा ली। दोनों एक साथ ही अभी आकर वहां खड़े हुए थे । बंसीलाल कुर्सी पर बैठा था।


“रात सुरेन्द्र पाल तुम्हें नहीं मिला बाटला?” बंसीलाल बोला । "मेरी तरफ से कोई लापरवाही नहीं हुई। मेरे आदमी भी सतर्क थे। इस पर भी सुरेन्द्र पाल नहीं मिल पायो तो यही हो सकता है कि वो पहले मुम्बई में प्रवेश कर गया हो या फिर बहुत देर से।" बंसीलाल ने कश लिया।


“वो इस वक्त मुम्बई में है। कुछ घंटे पहले उससे मेरी बात हुई थी - 1"


“आपकी बात ?”


“हां । तब वो मटके के नम्बर लगाने वाले ठिकाने पर मौजूद था।" बंसीलाल के होठों में कसाव आ गया ।


“वो वहां कैसे पहुंचा ?” दोसा ने मुंह खोला तो आगे के दो टूटे दांतों की वजह से वो भयानक-सा दिखने लगा।


“मैं नहीं जानता।" बंसीलाल एक-एक शब्द चबाकर कह उठा- “वहां मुरली मौजूद था । मुरली को खबर थी कि सुरेन्द्र पाल को ख़त्म करना है। सुरेन्द्र पाल मुझसे फोन पर बात कर रहा था । उसे इन्तजार था कि सुरेन्द्र पाल रिसीवर रखे और वो उसे शूट करे। लेकिन सुरेन्द्र पाल ने उसे शूट कर दिया।"


"मुरली को ?”


"हां - " दोसा और बाटला की नजरें मिलीं। “मुरली ने हमारे साथ कुछ बार काम किया है।" दोसा बोला- "वो लापरवाह आदमी नहीं था।" 


“निशानेबाज भी अच्छा था।” बाटला के माथे पर बल आ गये।


दोनों की निगाह पुनः बंसीलाल पर जा टिकी । “सुरेन्द्र पाल को साफ करना है।" दोसा का स्वर एकाएक क्रूरता

से भर गया । 


“मुझे पूरा विश्वास था कि मुरली उसे खत्म कर देगा।" बंसीलाल अपनी बात कह रहा था- “उसके बचने की कहीं भी गुंजाइश नहीं थी। ऐसे में जब उसने पूछा कि थापर कहां कैद है तो मैंने बता दिया कि मेरे बार एण्ड रैस्टोरैंट के बेसमैंट में कैद है ।”


“उसे कैसे मालूम हुआ कि थापर आपकी कैद में है?”


"मैंने बताया था।” बंसीलाल का चेहरा सख्त था- "अब हालात ये है कि सुरेन्द्र पाल थापर को छुड़ाने के लिये रैस्टोरैंट में अवश्य आयेगा।"


"कोई दिक्कत नहीं। थापर को वहां से हटाकर कहीं और रख देते हैं। "


“कोई फायदा नहीं। सुरेन्द्र पाल रैस्टोरैंट की निगरानी करता भी हो सकता है ?”


दोसा और बाटला की नजरें पुनः मिलीं।"


“वो अकेला तो नहीं हो सकता। उसके साथ और आदमी भी होंगे।"


“मालूम नहीं!" बंसीलाल ने सिर हिलाया- "मटके वाले ने वहां उसे अकेला ही देखा था।"


“जाहिर है उसके साथी बाहर मौजूद होंगे तब - " “कुछ भी हो सकता है।" बंसीलाल ने सिर हिलाया- "वैसे वो जो भी है। उसकी असलियत कुछ और है। वो सुरेन्द्र पाल नहीं है। ये नाम मैंने पहले कभी नहीं सुना और मामूली शख्स मेरा रास्ता काटने की चेष्टा कर नहीं सकता।"


“बात तो सही है।"


“अब मैं इस सुरेन्द्र पाल को कम नहीं समझता। जब से 

उसने मुरली को मारा है।" बंसीलाल दोनों को बारी-बारी देखता कह उठा- “ये आज किसी भी वक्त थापर को छुड़ाने के लिये रैस्टोरेंट में आ सकता है। उसका निशाना मैं हूं। वो मुझे खत्म करना चाहता है। मैं रेस्टोरेंट तुम दोनों के हवाले कर रहा हूं कि जब भी सुरेन्द्र पाल आये तो बिना किसी शोर-शराबे के उसे ख़त्म कर दो कि किसी को कानोंकान खबर भी न हो। रैस्टॉरेंट को साख नहीं बिगड़नी चाहिये। वैसे शाम को मैं भी रैस्टोरेंट में मौजूद रहूंगा।" 


“सुरेन्द्र पाल को हम पहचानेंगे कैसे?”


"मटके वाले ऑफिस से उसका हुलिया अच्छी तरह समझ लो ।” बंसीलाल ने कहा-“वैसे उस हुलिये पर निर्भर मत रहना । वो वेष बदलकर भी रैस्टोरैंट में आ सकता है। "


दोसा और बाटला उठे। बंसीलाल से इजाजत लेकर बाहर आ गये। 


"दोसा ।” बाटला बोला- “मुझे लगता है सुरेन्द्र पाल कोई मुसीबत खड़ी करेगा।"


"जिसने मुरली को खत्म कर दिया वो हमें मुसीवत के अलावा दे भी क्या सकता है।” कहकर दोसा मुस्कराया तो टूटे दांतों की वजह से खतरनाक नजर आने लगा- “लेकिन हम उसके लिये मुसीबत बन जायेंगे । ”


“बंसी भाई को डर है कि सुरेन्द्र पाल कहीं ज्यादा मुसीबत खड़ी है कर दे। तभी हम दोनों को आगे कर दिया।" “डर नहीं । बंसी भाई को पूरा यकीन है कि सुरेन्द्र पाल उसके लिये मुसीबतें खड़ी करेगा। तभी तो सारी मुसीबतों का टोकरा हमारे सिर पर रख दिया। अब टोकरे को भुगतना तो पड़ेगा ही।” दोसा का स्वर ठण्डा था ।


***

रुस्तम राव का नगीना से परिचय हो चुका था। रुस्तम राव के बारे में नगीना पहले ही जानती थी। अब एक और रिश्ते की बुनियाद पड़ गई। नगीना ने रुस्तम को अपना छोटा भाई मान लिया और जालिम छोकरे ने नगीना को दीदी का खिताब दे दिया। इसके बाद उनकी बातें शुरू हुईं।

“थापर साहब कां पे कैद हौवे छोरे?” बांकेलाल राठौर का चेहरा सख्त हो गया ।

“खार में बंसीलाल का बार-रैस्टोरैंट होएला। उसी के बेसमेंट में थापर साहब को कैद करेला बंसीलाल- ।" रुस्तम राव कह उठा- "उधर के वेटर को इस खबर के वास्ते बीस हजार देएला ।” 

“तब तो थापर को वहां से निकालना कठिन नहीं।" नगीना कह उठी।

“गलत मत बोएला दीदी।” रुस्तम राव कह उठा- "आपुन रैस्टोरैंट के भीतर का फेरा मारेला। उधर बोत सख्त पहरा होएला । कई वेटर भी बदमाश दिखेला ।”

“सबो को 'वड' देंगे। बांकेलाल तगड़ा इन्तजाम करेला ।" “पक्का उसे शक होएला कि कोई थापर साहब को छुड़ाने के वास्ते उधर को आएगा।" रुस्तम राव गम्भीर था- “तभी तो पहरा होएला ।” 

“छोरे । अंम थारी बातों से न डरो हो । चल्लो म्हारे साथ। अंम देखो बंसी..... ।”

“जल्दबाजी मत करो।" जगमोहन कहे उठा।

"क्या बोला बाप ?"

"मैंने कहा है, जल्दबाजी मत करो। बंसीलाल ने रैस्टोरैंट के बाहर और भीतर पक्का घेरा डलवा रखा होगा। यानि कि बंसीलाल सावधान है। ऐसे में हमें सोच-समझ कर कदम उठाना होगा।" 

“ईब सोचने को बचो ही क्या ?"

“बहुत कुछ है सोचने को।" जगमोहन ने बांकेलाल राठौर को देखा- "बार एण्ड रैस्टोरैंट जैसी जगह में दिन में इतनी भीड़ नहीं होती जितनी कि रात को होती है। रात को तो हम शायद नजरें बचोकर वहां अपना काम कर जायें। दिन में अगर कुछ करने की कोशिश की तो हम आसानी से उनकी नजरों में आ जायेंगे।”

“छोरे - बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया- "ये बात तो ठीको ही कहो ।”

रुस्तम राव ने सिर हिलाया ।

“जगमोहन की बात वास्तव में ठीक है कि रेस्टोरेंट में जब भीड़ होगी, तब हमें काम करने में आसानी होगी।” नगीना बोली । जगमोहन की निगाह नगीना की तरफ घूमी। “तुम्हारी बात से लग रहा है कि तुम्हारा साथ चलने का इरादा है।"

“मेरे साथ चलने में कोई हर्ज है क्या?" नगीना, जगमोहन को देखकर मुस्कराई ।

"नहीं भाभी । तुम साथ नहीं जाओगी।” जगमोहन कह उठा- “देवराज चौहान को ये बात अच्छी नहीं लगेगी। वो मुझे गुस्सा करेगा कि तुम्हें साथ लेकर वहां क्यों गया?” नगीना ने मुस्करा कर बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव को देखा।

"ओए जगमोहन !” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया- "म्हारी बहना को कुछ कहने का थारा कोई हक न हौवे, जब तक अंम पासो हौवे। नगीना म्हारे साथो ही जायो । जो भी म्हारी बहना को हाथ लगायो, अम उसो को 'वड' दयो । फिक्र मत करना बहनो। तम म्हारे साथो ही चल्लो।"

“बांके।" जगमोहन ने उखड़े स्वर में कहा- "देवराज चौहान इस बात को पसन्द नहीं - ।" 

"बाप-!" रुस्तम राव मुस्करा कर कह उठा- "देवराज चौहान की डांट आपुन खाएला। पण दीदी का साथ चलने को मन होएला तो वो आपुन के साथ चलेगा।" कहकर उसने बांकेलाल राठौर को देखा - "ठीक बोला बाप ?”

“छोरे, ईब तो तू अपनो लेन में चल्लो हो ।”

जगमोहन ने झल्ला कर नगीना को देखा।

नगीना मुस्करा कर कह उठी ।

“मेरे दो-दो भाई पास मैं है। मुझे कुछ कहने से पहले उनसे बात करो।” आखिरी शब्दों पर वो हौले से हंसी ।

“ये का बात करो हो । जरूरत पड़े तो अपणी बहना के बारो में अंम बात करो।”

जगमोहन ने रुस्तम राव को देखा।

"रेस्टोरेंट के बेसमैंट में जाने का रास्ता मालूम किया ?" जगमोहन ने पूछा ।

“हां। उसी वेटर से पूछेला बाप आपुन को मालूम है ।" रुस्तम । राव बोला- “अभ्भी रैस्टोरैंट का नक्शा और रास्ता समझायेला । तुम सोचेला कि कैसे शाम को उधर थापर साहब को छुड़ाएला ।”

देवराज चौहान जानता था कि बंसीलाल तक उसका हुलिया पहुंच गया होगा। ऐसे में चेहरा बदल कर ही उसके रैस्टोरैंट जाना होगा।

रास्ते में उसने मेकअप का सामान और कपड़े खरीदे। फिर एक सुनसान जगह पर कार रोककर मेकअप किया और कपड़े बदले। उसके बाद देवराज चौहान बंसीलाल के बार एण्ड रैस्टोरैंट में पहुंचा। चेहरा इस हद तक बदला हुआ था कि मटके के ऑफिस में बचे आदमी और युवती भी उसे देखते तो पहचान न पाते। दोपहर के दो बज रहे थे । शाम की अपेक्षा तो रैस्टोरैंट में बिल्कुल शान्ति थी ।

प्रवेश द्वार के बाद खूबसूरत सा सीटिंग रूम था । कुछ लोग वहां बातों में व्यस्त थे । एक तरफ छोटे से काउंटर के पार कुर्सी पर बैठी युवती मौजूद थी। काउंटर पर दो फोन रखे नजर आ रहे थे। सीटिंग रूम के पार कुछ फांसला रखे दो दरवाजे नजर आ रहे थे। एक दरवाजे पर बार लिखा था और दूसरे पर रैस्टोरेंट।

इतने में ही देवराज चौहान ने महसूस किया कि सीटिंग रूम में मौजूद तीन व्यक्ति उसे टिटोलने वाली निगाहों से देख रहे थे । उनकी तरफ ध्यान दिए बिना देवराज चौहान ने आगे बढ़कर रेस्टोरेंट लिखे दरवाजे को धकेला और भीतर प्रवेश कर गया दरवाजा खुद ही बंद हो गया।

रैस्टोरैंट आधे से ज्यादा भरा हुआ था। वहां मध्यम- सी आवाजें थीं । मध्यम-सा प्रकाश था। सजावट भी बहुत थी। वर्दी पहने वेटर और वेटर्स कस्टमर के ऑर्डर के साथ आ जा रहे थे। दिल को सकून पहुंचाने वाला अच्छा और शांतमय माहौल लग रहा था यहां का ।

हर तरफ नजरें दौड़ाता देवराज चौहान आगे बढ़ा और एक टेबल पर बैठ गया। कोने में चमकता स्टील का सजा हुआ लम्बा काउंटर था। जिसके पार दो वेटर और वैट्रेस मौजूद था। ऑर्डर लाने वाले वेटर्स उनसे ऑर्डर लेते और वो पीछे नजर आ रहे रैस्टोरैंट किचन में चले जाते।

तभी देवराज चौहान की निगाह दो-तीन ऐसी टेबलों पर पड़ी जहां दो और कहीं तीन व्यक्ति बैठे थे, परन्तु उनके बैठने का अंदाज बता रहा था कि वो रैस्टोरैंट में मौजूद लोगों पर नजर रख रहे हैं। इस वक्त उस पर, उनकी नजरें थीं। एक व्यक्ति कुछ दूर दीवार के साथ और एक लम्बे काउंटर से टेक लगाये रैस्टोरेंट में बैठे लोगों पर नजरें घुमा रहा था।

देवराज चौहान ने फौरन उन लोगों से खुद को लापरवाह कर लिया। वो समझ चुका था कि मुरली की मौत से बंसीलाल सतर्क हो चुका है और जानता है कि थापर को छुड़ाने यहां आयेगा या उसे खत्म करने यहां आयेगा। ऐसे में उसने पूरा जाल बिछा दिया कि अगर वो आये तो बचकर न जा सके।

देवराज चौहान निश्चित था कि मंटके के ऑफिस से मिले हुलिये के दम पर उसे पहचाना नहीं जा सकता। क्योंकि इस वक्त उसका हुलिया पूरी तरह बदला हुआ था। रैस्टोरैंट पर निगाह उसने मार ली थी। अब बार देखना बाकी था और वो जगह भी देखने की कोशिश करनी थी जहां बंसीलाल बैठता था, परन्तु सब कुछ बेहद सावधानी से करना था। बंसीलाल के आदमी उसकी तलाश में यहां फैले हुए थे। उसकी किसी हरकत पर उन्हें शक हुआ तो वो उसे घेरकर पकड़ भी सकते थे।

तभी एक वेटर्स उसके पास पहुंची और मुस्करा कर बोली। “ऑर्डर सर-।"

“लार्ज व्हिस्की ।” देवराज चौहान ने जानबूझकर कहा । 

"ओह, सॉरी सर।" वो कह उठी- "इसके लिये तो आपको बार में जाना पड़ेगा।"

“यही ऑर्डर सर्व करा दीजिये।" देवराज चौहान का लहजा सामान्य था ।

"रेस्टोरेंट में व्हिस्की सर्व नहीं की जाती। व्हिस्की सिर्फ बार रूम में मिल सकती है। ये यहां का नियम है। आपकी परेशानी के लिये मैं क्षमा चाहती हूं।" वो मुस्करा कर खेद भरे स्वर में बोली। 

"कोई बात नहीं।” देवराज चौहान शांत भाव में मुस्कराया- "मैं यहां पहली बार आया हूं। और मुझे नहीं मालूम था कि रैस्टॉरेंट में व्हिस्की सर्व नहीं की जाती।" इसके साथ ही वो उठा- “मैं अभी बार रूम से होकर आता हूं।" 

“श्योर सर ।”

देवराज चौहान और आगे बढ़ा और रैस्टोरेंट का दरवाजा धकेलकर बाहर निकला। और कुछ कदम चलकर बार वाला दरवाजा धकेल कर भीतर प्रवेश कर गया।

बार रूम भी रेस्टोरेंट के ही साईज का था। यहां इस वक्त सिर्फ दस-पन्द्रह लोग ही मौजूद थे। एक तरफ खूबसूरत सजा हुआ बार काउंटर मौजूद था। यहां भी सर्व करने के लिये वेटर और वेट्रेस मौजूद थे। देवराज चौहान एक टेबल पर बैठा वेटर वहां आ पहुंचा।

"क्या लेंगे सर ?” 

“व्हिस्की लार्ज- ।" देवराज चौहान ने कहा।

वेटर चला गया। 

व्हिस्की लेना जरूरी था कि अगर कोई हरकतों पर निगाह रखे रहा हो तो उसे शक न हो। वेटर व्हिस्की रख गया। देवराज चौहान छोटे-छोटे घूंट लेने लगा। चुप्पी के साथ उसकी निगाह घूम रही थी। बार काउंटर के पास हो दीवार में एक दरवाजा था। जहां स्टूल पर चपरासी बैठा था। स्टॉफ वाले एक-दो बार वो दरवाजा धकेल कर भीतर गये थे तो लम्बी गैलरी की भनक मिली थी। यानि कि उस गैलरी में बंसीलाल का बैठने वाला ऑफिस हो सकता था। इस सांच के साथ ही देवराज चौहान की निगाह घूमी तो कुछ दूरी पर मौजूद टेबल पर एक व्यक्ति का बैठा दिखा था। पाया स्ट 441 टेबल पर यानि कि उसके पीछे-पीछे यहां आया है। उस पर नजर रखी जा रही है?

देवराज चौहान ने धीरे-धीरे पैग समाप्त किया। इस दौरान तय कर चुका था कि इस वक्त यहां कुछ भी करना ठीक नहीं। भीड़ कम है। उसकी कोई हरकत छिपी नहीं रहेगी। बाबू भाई ने बताया था कि यहां तो ठीक-ठाक भीड़ होती है। बार और रैस्टोरैंट पूरी तरह भर जाता है। पेमेंट करके देवराज चौहान बार से निकला और वापस रैस्टोरैंट में जा पहुंचा। लंच लेना जरूरी था ताकि उस पर नजर रखने वाले को किसी तरह से शक का मौका ना लेले । मन में देवराज चौहान तय कर चुका था कि शाम को अंधेरा
होने पर यहां आयेगा । थापर को कैद से निकालने के लिये और बंसीलाल को खत्म करने के लिये।

***
लंच नगीना ने ही तैयार किया था। जालिम छोकरा रुस्तम राव लंच तैयार करने में नगीना की सहायता करता रहा। नगीना ने मना भी किया। लेकिन वो नहीं माना।

वो पक्का कर चुके थे कि शाम को बार एण्ड रेस्टोरेंट में जाकर थापर को छुड़ा लायेंगे।

इस बारे में उनकी पूरी योजना बन चुकी थी। लंच के बाद नगीना बैडरूम में आराम करने चली गई।

वो तीनों हाल में ही सोफों और दीवान पर कुछ देर पीठ सीधी करने के इरादे से लेट गये।

जगमोहन की आंखें बंद थीं। भी नींद में नहीं था वो कि कानों में फकीर बाबा का स्वर पड़ा।

"जग्गू - ।"

“जगमोहन फौरन हड़बडाकर उठ बैठा। इधर-उधर देखा। 

“पेशीराम- ।" उसके होंठों से निकला।

“हां जग्गू ।” फकीर बाबा का स्वर कानों में पड़ा-“तेरे से आशा तो नहीं, लेकिन सोचा एक बार बात कर लूं - " 

“बात? वो बंसीलाल वाली-?" जगमोहन के होंठ बरबस ही हिले ।

“ठीक कहा तूने। नगीना ने बताया तेरे को ?” 

“नगीना भाभी ने ही कहा था मुझसे।" जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता आ गई-“अगर तुम्हारी बात पर यकीन करूं तो एक बार फिर मुसीबत का वक्त शुरू होने वाला है।" कहने के साथ ही उसकी निगाह बांकेलाल राठौर पर पड़ी। जोकि वैसे ही लेटा हुआ था, परन्तु अब उसकी आंखें खुली थीं। वो एक टक जगमोहन को देख रहा था। 

"मुसीबत वाले वक्त को रोका जा सकता है जग्गू | तुम-।" 

“पेशीराम !” जगमोहन ने उसी स्वर में कहा- "तुम्हारा कहना गलत नहीं है कि मुसीबत वाले वक्त को रोका जा सकता है। लेकिन देवराज चौहान के उठ चुके कदमों को नहीं रोका जा सकता।"

“तुम देवा को रोकने की चेष्टा तो करो।" फकीर बाबा का बेचैन स्वर कानों में पड़ा।

"बेकार की बात है पेशीराम।" जगमोहन ने गहरी सांस ली-"मैं देवराज चौहान को अच्छी तरह जानता हूं। वो अब किसी की नहीं मानेगा। बंसीलाल को खत्म करके रहेगा। लेकिन बंसीलाल का मोना चौधरी से क्या वास्ता । वो इस मामले में कैसे आ सकती है। बंसीलाल उसे जानता है क्या ?”

“नहीं। मिन्नो का बंसीलाल से कोई वास्ता नहीं।” पेशीराम की आवाज में गम्भीरता थी ।

“तो देवराज चौहान के रास्ते में मोना चौधरी कैसे आयेगी ?" जगमोहन के चेहरे पर उलझन थी ।

फकीर बाबा की आवाज नहीं आई।

“इन हालातों में देवराज चौहान को नहीं रोका जा सकता।" जगमोहन बोला- “मेरी मानो तो पेशीराम तुम मोना चौधरी को रोकने की कोशिश करो। उसे कहो कि-।”

“तुम आने वाले वक्त से अन्जान हो और मुझे सब कुछ नजर आ रहा है। पेशीराम का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा -- “अगर तुम भी सब कुछ देख रहे हो तो मिन्नो को समझाने की बात न कहते।” 

“मैं समझा नहीं पेशीराम- ।”

“इस वक्त मैं तुम्हें ज्यादा नहीं बता सकता।" पेशीराम की आवाज में पहले जैसे भाव थे- “इतना ही कहने आया हूं कि देवा को रोक लो । वो जिस रास्ते पर जा रहा है, वो रास्ता मिन्नो पर जाकर रुकता है। जहां से जबर्दस्त टकराव शुरू हो जोयगा। कोई फायदा नहीं होगा झगड़े का रोक लो देवा को !” 

जगमोहन के होंठ हिले। कहा कुछ नहीं ।

"तुम्हारे चेहरे के भाव बता रहे हैं कि मेरी बात को तुम गम्भीरता से नहीं ले रहे।"

“गलत कह रहे हो पेशीराम।" जगमोहन कह उठा - "मैं तुम्हारी बात के प्रति पूरी तरह गम्भीर हूं। लेकिन देवराज चौहान पर एक हद तक ही मेरा कंट्रोल है। मैं उसकी टांगें बांधने की हिम्मत नहीं रखता। उसे रुकने को कह सकता हूं, परन्तु ऐसी कोई वजह नहीं कि जिसके दम पर देवराज चौहान को रुकने को कहूं ।”

“मिन्नो से देवा का टकराव हो जाना बहुत बड़ी वजह है ।" 

“हां। वास्तव में बहुत बड़ी वजह है। लेकिन वो वजह सामने नहीं है। वो वक्त आया नहीं। तुम्हारे मुताबिक आने वाला है।" 

"और जब वो वक्त आया तो फिर वक्त ठहरेगा नहीं। तब वक्त की आंधी में सब बह जाओगे। तब भेरी कश्ती भी तुम लोगों के साथ बंध जायेगी। अगर देवा या मिन्नो में से किसी की मौत हो गई तो मुझे मिले श्राप की अवधि एक जन्म और लम्बी हो जायेगीं। मुझे देवा और मिन्नो के अगले जन्म का इन्तजार करना होगा कि दोनों फिर पैदा हों। उनकी दोस्ती कराकर श्राप से मुक्त हो जाऊं। इस शरीर को त्याग कर नया जन्म पा सकूं। जन्मों से भटक रहा हूं। मुझे मुक्ति  दिलाने का कुछ तो ख्याल कर ले जग्गू- " स्वर में गम्भीरता थी। 

“मैं देवराज चौहान से बात करूंगा पेशीराम।" जगमोहन भी गम्भीर था ।

उसके बाद पेशीराम की आवाज नहीं आई।

जगमोहन ने दो-तीन बार पुकारा। कोई जवाब नहीं मिला। वो समझ गया कि पेशीराम जा चुका है। गहरी सांस लेकर उसने बांकेलाल राठौर को देखा।

जवाब में रुस्तम राव सोच भरी निगाहों से उसे देखता रहा।

“का बोलो हो पेशीराम?" बांकेलाल राठौर ने पुनः जगमोहन पर नजरें टिका दीं।

जगमोहन ने धीमे गम्भीर स्वर में पेशीराम की कही बात बताई। सुनते ही बांकेलाल राठौर भड़क उठा।

“बेशक पेशीराम ठीको बोले हो । पण अंम अब पीछे न हटो । थापर साहब को बंसीलाल पकड़ो कर रख लायो । थापर साहब को बचायो न क्या? बंसीलाल को खुला छोड़ो का जो कलो को म्हारी गर्दन रेत दयो। अंम तो बंसीलाल को 'वड' के रख दयो ।”

जगमोहन ने बांकेलाल राठौर को देखा। कहा कुछ नहीं।

“बोल दयो पेशीराम को। अंम उसो को बात नेई मानो हो । वो म्हारे से क्यों न बात करो। थारे से बातों कर के चल्लो गयो ।” बांकेलाल राठौर उठ खड़ा हुआ था।

“पेशीराम ने हम लोगों को नहीं रोका बल्कि देवराज चौहान को रोकने को कहा है।" जगमोहन बोला। 

“यो मतलब तो यो हुआ कि अंम बंसीलाल को 'वड' सको।" 

"हां ।"

“लेकिन बाप ।” रुस्तम राव गम्भीर स्वर में कह उठा-“देवराज चौहान को कैसे रोकेला आपुन लोगों को क्या मालूम वो किधर फिरेला।"

"मालूम भी हो जाये तो भी कुछ नहीं हो सकता। देवराज चौहान इस काम से पीछे नहीं हटेगा ।"

बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव की नजरें मिलीं। 

“बाप! मोना चौधरी से टक्कर होएला तो बोत गड़बड़ होएला । वो बरोबर मुकाबला करेला ।”

“अंम देवराज चौहान को रोको कुछो रास्ता तो सोचनो पड़ो-।" 

“जगमोहन ठीक कहेला देवराज चौहान रुकने वाली बात नेई मानेला बाप ।”

“वो म्हारे को मिल जाये तो अंम उसो को डण्डे की तरह सीधा कर दयो ।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया। 

“पेशीराम की बात गलत भी तो हो सकेला बाप - ।” रुस्तम राव कह उठा ।

जगमोहन के चेहरे पर गम्भीर-सी मुस्कान उभरी ।

“आज तक पेशीराम की कही बात गलत नहीं निकली।" जगमोहन बोला- "इस बार भी उसका कहना ठीक ही होगा। अगर उसका कहा गलत निकला तो मेरे लिये हैरानी की बात होगी।” 

बांकेलाल राठौर उठ खड़ा हुआ।

“तुम लोग बंसीलाल के रैस्टोरेंट में कितने बजे पहुंचो हो ?" 

“करीब आठ बजे। अंधेरा होने के कुछ बाद -।" जगमोहन ने कहा ।

“ठीको ।” बांकेलाल राठौर ने गम्भीर स्वर में कहा - "अंम तम सबो को वो ही पे मिलो ।”

“किधर चएला बाप ?"

“अंम देवराज चौहान को ढूंढो हो। म्हारे को मिल गयो तो उसो को डण्डे की तरह सीधो करो के साईड करो उसो को। बादो में अंम बंसीलाल को 'वडो ।" बांकेलाल राठौर का स्वर सख्त हो गया ।

“कोई फायदा नहीं।" जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा“देवराज चौहान मालूम नहीं इस वक्त कहां है। उसे ढूंढ पाना आसान हीं। मिल भी गया तो वो अपने काम से पीछे नहीं हटेगा।" 

“उसो को सामनो आने दो। अंम रोको उसो को।" बांकेलाल राठौर ने विश्वास भरे स्वर में कहा -“म्हारे को यो ही मोना चौधरी से झगड़ा करो के वक्त खराब न करो हो।" कहने के साथ ही वो बाहर की तरफ बढ़ गया।

बांकेलाल राठौर बाहर निकल गया तो रुस्तम राव ने जगमोहन को देखा।

“मोना चौधरी से टक्कर होएला तो बोत गड़बड़ हो जायेगा।" 

जगमोहन ने उसे देखा। कहा कुछ नहीं। आंखों में व्याकुलता भरी पड़ी थी ।

***