गोपाल मराठा ने पेट पर लिखे 'किवो' की तरफ इशारा करने के साथ कहा - - - - “ इसका क्या मतलब है विभा जी ?”
“फिलहाल तो एक ही मतलब समझ में आता है।"
“क्या?”
“यह कि रतन और इसका हत्यारा एक ही है ।”
“ और यह बात शायद वह हमें बताना भी चाहता है।" मराठा ने कहा ---- “मतलब खुलेआम चुनौती दे रहा है ।”
“ पर आंटी, क्यों का तो फिर भी एक मतलब निकलता है यानी वह एक लफ्ज होता है।” शगुन ने कहा ---- “लेकिन' किवो' का तो कोई मतलब ही समझ में नहीं आ रहा । ये तो कोई लफ्ज ही नहीं होता।"
“ और वे कपड़े !” मैंने कहा- “कपड़े किसके हैं? कम से कम अवंतिका के तो नजर नहीं आ रहे !”
“कपड़े रतन के हैं।” गिरजा प्रसाद बिड़ला के मुंह से दहशत में डूबी आवाज निकली ---- “उस रात वह यही पहने था । "
“यहां कैसे आ गए?” मेरे मुंह से निकला ।
“सीधी-सी बात है।” विभा बोली---- “हत्यारे ने रखे ।”
“पर क्यों?” मराठा ने सवाल उठाया-- “ऐसा करके यानी रतन के कपड़े यहां पहुंचाकर वह कहना क्या चाहता है ?”
“शायद वही जो 'किवो' लिखकर कहना चाहता है ।"
“कि मैं एक ही हूं! मैंने ही रतन को भी मारा !”
“लगता तो यही है कि वह हमें यही बताना चाहता है।" सपाट लहजे में कहती हुई विभा जिंदल अवंतिका की लाश पर झुक गई थी।
बहुत ही गौर से उसकी बॉडी पर उस वक्त जाने वह क्या देख रही थी जब गोपाल मराठा ने कहा ---- “चादर की सलवटें बता रही हैं विभा जी कि मरने से पहले यह तड़पी है । "
“ इंजेक्शन लगने के कारण ।”
“इंजेक्शन?”
“जो इसके दाएं बाजू में यहां लगाया गया है।” कहने के साथ उसने उंगली से एक खास स्थान की तरफ इशारा किया ---- “यहां सुंईं चुभने का निशान है जो नजदीक आने पर चमकता है। "
“ पर इंजेक्शन के जरिए इसे दिया क्या गया?”
विभा ने बारी-बारी से अवंतिका की दोनों आंखों को खोलकर देखने के बाद धमाका - सा किया - - - - " इंसुलिन ।”
“इंसुलिन ?” गोपाल मराठा उछल पड़ा।
“उम्मीद है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट मेरी संभावना की पुष्टि करेगी । ”
“लेकिन इंसुलिन तो डायबटीज के मरीज को तब दी जाती है जब उसकी ब्लड शुगर बहुत बढ़ जाती है । इंसुलिन ही ब्लड में शुगर के लेबल को कम करती है । "
“लेकिन यदि किसी को ब्लड शुगर हो ही नहीं और उसे इंसुलिन का इंजेक्शन लगा दिया जाए तो क्या होगा ! व्यक्ति के जिस्म में शुगर का लेबल इतना कम कर देगा वह कि वह बेहोश हो जाएगा, कोमा में चला जाएगा और इंसुलिन अगर उससे भी ज्यादा मात्रा में दे दी जाए तो वही होगा जो हुआ
“ये तो... ये तो वरदान से विनाश कर देने वाली बात हुई !”
“तभी तो कहा गया है कि विज्ञान वरदान भी है, विनाश भी । जो चीज हमें फायदा पहुंचाती है, हमारी जान बचाती है----उसी से जान ली भी जा सकती है।" विभा कहती चली गई -- “मेरे ख्याल से हत्यारे को, जो तुम्हारे ख्याल से कोई सेंडिल वाली लड़की थी, अवंतिका की इस आदत के बारे में अच्छी तरह मालूम था कि लंच के बाद वह एक घंटा आराम करती है । यह भी कि उस वक्त किचन लॉन की तरफ खुलने वाली यह खिड़की अंदर से बंद नहीं रहती । इसी का फायदा उठाकर वह आई और सोती हुई अवंतिका को इंजेक्शन लगाया । "
“पर इंजेक्शन लगने पर तो मुंह से चीख भी निकली होगी?”
“स्वाभाविक है। लेकिन उसे हत्यारे के दूसरे हाथ ने कुचल दिया होगा। मेरा ख्याल है कि इंजेक्शन में इंसुलिन के अलावा ऐनिस्थीसिया की मात्रा भी जरूर होगी जिसने अवंतिका को तुरंत ही बेहोश कर दिया होगा। तभी तो यह जरूरत से ज्यादा विरोध नहीं कर सकी !”
“मतलब ये हुआ कि इंजेक्शन लगने पर ये दो-चार पल के लिए जागी, तड़पी, कसमसाई और फिर सोती की सोती रह गई । ”
“लगता तो ऐसा ही है । "
मैंने 'किवो' की तरफ इशारा किया ---- “ये कब लिखा ?”
“जाहिर है कि अवंतिका के मरने या बेहोश होने के बाद।” विभा अब कमरे में चहलकदमी करने लगी थी---- “उसे अच्छी तरह से मालूम होगा कि डेढ़-दो घंटे से पहले इस कमरे में कोई आने वाला नहीं है। यह भी मुमकिन है कि उस दरम्यान सुरक्षा हेतु दरवाजे की चटकनी अंदर से चढ़ा ली हो । मगर ये तय है कि अपना काम उसने पूरी तसल्ली के साथ किया । एक-एक करके इसके कपड़े उतारे । पेट पर स्केच पेन से लिखा और फिर कंबल उढ़ा दिया ।”
“ पर कपड़े कहां हैं इसके ?" सवाल गिरजा प्रसाद ने उठाया ।
“मेरे ख्याल से हत्यारा अपने साथ ले गया ।”
“क... क्या ?” एकसाथ सबके हलकों से निकला ।
विभा ने गिरजा प्रसाद की तरफ पलटकर पूछा--- "क्या आप बता सकते हैं कि लेटने से पहले इसने क्या पहन रखा था ? ”
“ लंच के वक्त स्काई कलर की जींस और लाल रंग की टी-शर्ट पहने हुए थी।" गिरजा प्रसाद ने याद करते हुए बताया ----“हमें नहीं पता कि लेटने से पहले इसने उन्हें चेंज किया था या नहीं।"
“मराठा।” वह बोली----“उम्मीद तो नहीं है कि कपड़े मिलेंगे, फिर भी इस लिबास को तलाश करने की कोशिश करो।”
कोशिश की गई और ... भरपूर कोशिश की गई परंतु वह लिबास नहीं मिला। विभा का अनुमान सेंट- परसेंट खरा उतरा था।
उसी ने कहा-“हत्यारे की यह हरकत समझ से बाहर है। पता नहीं उसने रतन का लिबास यहां क्यों पहुंचाया और अब इसका लिबास किसकी लाश के पास से बरामद होने वाला है ?”
कमरे में ऐसी खामोशी छा गई जैसे कहने के लिए किसी के पास कुछ न रह गया हो। वह खामोशी तभी टूट सकी जब कुछ देर बाद वहां पोस्टमार्टम विभाग के लोग पहुंच गए।
विभा ने गिरजा प्रसाद से कहा ---- “मैं आपसे कुछ जानना चाहती हूं, क्या हम किसी और कमरे में बैठकर बातें कर सकते हैं।”
“आइए।"
गिरजा प्रसाद हमें ड्राईंगरूम में ले आए।
रास्ते में विभा ने यह भी कह दिया था कि जो कुछ मैं पूछने वाली उसके जवाब देने के लिए मिसेज गिरजा प्रसाद भी सामने होनी चाहिएं, हो सकता है जो बातें आपको न पता हों, उन्हें मालूम हों।
गिरजा प्रसाद ने एक नौकर से अपनी मिसेज को ड्राईंगरूम में भेजने के लिए कह दिया था। वे जब वहां पहुंचीं तो रोते-रोते आंखें सूजी हुई थीं । रह-रहकर उनमे अब भी आंसू भर आते थे।
“मेरे दिमाग में कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब अवंतिका से चाहती थी मगर यहां पहुंची तो वह मौजूद ही नहीं है।” विभा ने बारी बारी से दोनों की तरफ देखते हुए कहा----“अगर आप में से कोई मुझे उनमें से किसी सवाल का जवाब दे सकें तो बहुत अच्छा होगा।”
“आप पूछिए । " गिरजा प्रसाद ने अपनी मिसेज की तरफ देखते हुए कहा ---- “हमें कुछ मालूम होगा तो जरूर बताएंगे।”
“दो और तीन नवंबर की रात को रतन और अवंतिका कितने बजे घर आए थे और किस हालत में ? "
“ये बात तो एक महीने से भी ज्यादा पुरानी हो गई। इस तरह तारीख के साथ तो हम उनके लौटने का समय नहीं बता सकेंगे।"
“आप भूल रहे हैं।” मिसेज गिरजा प्रसाद ने गिरजा प्रसाद से कहा - - - - “उस दिन उनकी मेरिज ऐनीवर्सरी थी।”
“ओह !” गिरजा प्रसाद को जैसे याद आया ---- “हां ।”
“तो?” विभा को जैसे कोई काम की बात निकलने की उम्मीद बंधी ----“मेरिज ऐनीवर्सरी थी, तो?”
“ रतन मुझसे कहकर गया था कि अपनी मेरिज एनीवर्सरी की इस रात को वे दोनों अकेले राज पैलेस के कमरे में सेलीब्रेट करेंगे।”
“ओह, तो ये कारण था होटल राज पैलेस में कमरा लेने का !” विभा ने कहा----“अच्छा हुआ आपने यह बात मुझे बता दी । मेरे दिमाग में शुरू से ही यह सवाल अटका हुआ था कि इतना बड़ा बंगला होने के बावजूद रतन को दिल्ली की दिल्ली में, होटल का कमरा लेने की क्या जरूरत पड़ गई थी । अब वह पूरी स्टोरी फिट बैठती है ।”
“कौनसी स्टोरी ?”
“मत भूलिए, यह वह रात थी जिसमें बकौल खुद रतन के उसने होटल राज पैलेस के कमरे में चांदनी के साथ रेप किया था ।”
“उसने ऐसा कुछ किया था, यह बात तो हमें तब पता लगी जब इंस्पेक्टर जमील अंजुम ने यहां आकर रतन की मौत की सूचना दी और उसे सुनकर अवंतिका चांदनी को गालियां देने लगी। तब भी हमें उस घटना की डेट पता नहीं लगी थी । ”
“कोई कुछ भी कहे।” एक मां की ममता पुरजोर विरोध के साथ आग बनकर निकली थी ---- “मैं उसे रेप नहीं कहूंगी। अगर रतन नशे में था तो चांदनी भी तो पिए हुए थी । औरत अगर बहकाने पर आए तो अच्छे से अच्छा मर्द बहक जाता है और बाद में औरत मर्द पर यह इल्जाम लगा देती है कि उसने रेप किया है ।” |
“बहुत बढ़िया बात कही आपने।” विभा ने जरा भी देर किए बगैर बात पकड़ी ---- "इस मामले में यह भी एक पेंच है।”
“कैसा पेंच?” गिरजा प्रसाद ने पूछा ।
“इस मामले में औरत बड़ी चालाक होती है। अगर वह खुद भी बहककर गैरमर्द के साथ वैसा कुछ कर बैठे तो अपने बचाव हेतु बाद में उसे रेप का नाम दे देती है ।”
“वैसा ही हुआ है।” मिसेज गिरजा प्रसाद उत्साहित हुईं ।
“लेकिन मर्द भी कम चालाक नहीं होता।" विभा ने कहा--- "वह अगर गैर औरत के साथ रेप भी करे तो उसके बारे में जब पत्नी को बताता है तो यह नहीं कहता कि उसने रेप किया है । यही कहता है कि सामने वाली ने उसे बहकाया और नशे में होने के कारण वह बहक गया। सारे घटनाक्रम को वह इस तरह पेश करता है जिससे उसकी गलती नजर ही न आए या कम से कम नजर आए।”
मिसेज गिरजा प्रसाद चुप ।
“क्यों गिरजा प्रसाद जी, यह स्वाभाविक है या नहीं ?”
“यह तो मानव प्रवृति है ---- स्वाभाविक है । "
“पर ये स्वाभाविक बात रतन के मामले में क्यों नहीं हुई? उसने अवंतिका से साफ-साफ क्यों कहा कि उसने चांदनी से रेप किया है? अपनी करतूत पर ठीक वैसे पर्दा क्यों नहीं डाला जैसे सब डालते हैं?”
“ आप कैसे कह सकती हैं कि उसने पर्दा नहीं डाला?” गिरजा प्रसाद ने कहा----“आपने क्या उनके बीच होने वाली बातें सुनी थीं?”
“उनके बीच होने वाली बातें तो नहीं सुनीं लेकिन वो बातें सामने जरूर आई हैं जो अवंतिका ने उस वक्त कहीं जब जमील अंजुम ने यहां आकर यह बताया कि रतन की हत्या छंगा-भूरा ने की है और उन्हें सुपारी देने वाली चांदनी थी । आप भी गवाह हैं और मुझे जमील ने बताया है कि उस वक्त अवंतिका ने छूटते ही यह कहा था कि चांदनी नाम की चांडालनी ने अपने साथ हुए रेप का बदला ले लिया । ऐसा कब कहेगी वह? तभी न, जब रतन ने उससे साफ-साफ कहा हो कि उसने चांदनी के साथ रेप किया था!” ।
दोनों चुप ।
“मगर मुझे अब भी नहीं लगता कि रतन ने अवंतिका से ऐसा कहा होगा ।" विभा ही बोली---- - "मुझे ऐसा इसलिए नहीं लगता क्योंकि ऐसा होना स्वाभाविक नहीं है। प्राकृतिक नहीं है ।”
“कभी आप कुछ कहती हैं, कभी कुछ । हमारी समझ में नहीं आ रहा कि कहना क्या चाहती हैं?”
“मैं ये कहना चाहती हूं गिरजा प्रसाद जी कि अवंतिका ने यह बात अपनी तरफ से बनाकर कही थी।”
“पर अवंतिका ऐसा क्यों करेगी?”
“ताकि जमील अंजुम को तुरंत ही वह कारण मिल जाए जिसकी वजह से चांदनी ने छंगा - भूरा को रतन के मर्डर की सुपारी दी । ”
“आप कल्पनाएं कर रही हैं । "
“नहीं, मैं कल्पना नहीं कर रही । इसका सबूत आपको अभी मिल जाएगा।" विभा एक - एक शब्द को जमाती बोली- “अब मैं मर्डर वाली रात पर आती हूं। वह तारीख तो याद होगी आपको!”
“ऐसी मनहूस तारीख को भला कौन मां-बाप भूल सकते हैं? वह चार और पांच दिसंबर की रात थी जब इंस्पेक्टर जमील ने..
“उससे पहले अवंतिका आई होगी !”
“मतलब?”
“उसने रतन के किडनेप के बारे में बताया होगा!”
“हां । बताया था ।”
“उसके मुंह से किडनेपिंग की डिटेल सुनकर आपको लगा होगा कि रतन को किसी ने फिरौती के लालच में उठाया है !”
“हां । लगा तो यही था । और जिस वक्त इंस्पेक्टर आया, सच्चाई ये है कि उस वक्त हम किडनेप करने वालों के फोन का इंतजार कर रहे थे । दिलो-दिमाग को इस बात के लिए पूरी तरह तैयार कर चुके थे कि जो भी फिरौती मांगी जाएगी तुरंत ही चुकाकर अपने बेटे को वापस ले आएंगे लेकिन जमील तो खबर ही और लेकर आया ।” कुछ
“अवंतिका की बेवकूफी के लिए आपने उसे डांटा नहीं ?"
“डांटा ।” गिरजा प्रसाद ने कहा ----
“कौनसी बेवकूफी के लिए ?”
“बहुत डांटा । ”
“उसका थाने जाना बेवकूफी ही तो थी ! ”
“क्या कहा आपने?”
“यही कि वह थाने क्यों गई? रिपोर्ट क्यों लिखवाई? सीधी घर क्यों नहीं आई? ऐसे मामलों की खबर पुलिस को देने से अपहरण हुए व्यक्ति की जान को खतरा हो जाता है ।”
“उसने क्या कहा ?”
“ रो रोकर बस यही कहती रही कि उसने वही किया जो उस वक्त सूझा । उसे लगा कि पुलिस मदद कर सकती है ।”
“झूठ बोल रही थी वह, वह जानबूझकर पुलिस के पास गई।”
“क... क्या कह रही हैं आप?”
“ताकि पुलिस जल्द से जल्द रतन की लाश तक पहुंच जाए।”
“अ... आप पागल हो गई हैं क्या ? भला उसे क्या मालूम था कि किडनेपर्स ने रतन की हत्या कर दी है ?”
“मालूम था गिरजा प्रसाद जी, उसे सबकुछ अच्छी तरह मालूम था । उसे यह भी मालूम था कि आपका बेटा ग्यारह और साढ़े ग्यारह के बीच ही मर चुका था । ये रही पोस्टमार्टम रिपोर्ट ।” कहने के साथ उसने रिपोर्ट का कागज गिरजा प्रसाद के सामने पटक दिया।
गिरजा प्रसाद व उनकी पत्नी इस तरह आंखें फाड़े उस कागज को देखते रह गए जैसे कत्थक करती कुतुबमीनार को देख रहे हों।
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