मृतक का भतीजा
मेज़र बलवन्त और इन्स्पेक्टर धर्मवीर ने राजेश के कमरे में प्रवेश किया तो राजेश ने नाक-भौं चढ़ाई। उसकी आंखें अंगारों की तरह दहक रही थीं।
"आखिर आप मुझसे क्या पूछना चाहते हैं ?"
"हम आपसे यह पूछना चाहते हैं कि क्या आपको यह मालूम था कि इस घर में अफीम के पाउडर का डिब्बा मौजूद है ? हमें पता चला है कि अफीम के पाउडर का -डिब्बा आप खरीदकर लाए थे ? "
"क्या आपको यह बात रजनी ने बताई है ? " राजेश ने पूछा ।"
"किसी ने भी बताई हो आप हमारे सवाल का जवाब दीजिए ।"
"हां, डाक्टर साहब ने मुझसे अफीम का पाउडर मंगवाया था।"
“क्या वह डिब्वा आपके कमरे में था ? "
“नहीं ..हां।"
“क्या मतलब ? " मेजर वोला ।"
"आपसे यह किसने कहा है कि वह डिब्बा मेरे कमरे में था.?"
मेजर ने जरा तीखे स्वर में कहा, "सवाल का जवाब सवाल से न दीजिए । कल सुबह किचन में आप कब गए थे ?”
"पौने छः बजे ।"
"जब रजनी और आप किचन से निकलकर जा चुके थे, तो क्या किचन में फिर लौट आए थे ?”
"नहीं मुझे याद नहीं है । "
"सुनिए, मैं अब आपसे एक बहुत ही सीधा सवाल पूछने वाला हूं।" मेजर ने कहा। राजेश चुप रहा तो मेजर ने पूछा, "क्या आपको रजनी से प्रेम है ?"
राजेश 'भौचक्का रह गया। वह चुप रहा ।
"अच्छा छोड़िए । इस सवाल का जवाब देने की जरूरत नहीं। हमें पता चला है कि दीवान साहब अपनी वसीयत के अनुसार आपको काफी जायदाद सौंप गए हैं । आप इस बात का जवाब दीजिए कि अगर डॉक्टर बनर्जी आपसे कहें, तो क्या आप -कश्मीर में खुदाई के लिए उनकी मुहिम में धन लगाने को तैयार हो जायेंगे ?"
“अगर डाक्टर साहब न भी कहें तो भी मैं इस मुहिम में अपनी सारी पूंजी लगा दूंगा- लेकिन इसके लिए मुझे रजनी की स्वीकृति लेनी होगी।"
"क्यों ? क्या आपके ख्याल में रजनी स्वीकृति नहीं देगी ?"
"नहीं, मुझे ऐसी कोई शंका नहीं है। मैं जानता हूं कि वह डाक्टर साहब की किसी भी इच्छा को टाल नहीं सकती।" “एक पतिव्रता पत्नी जो है...!"
“जी हां । "
"सिद्दीकू के बारे में आपकी क्या राय है ? "
"सिद्दीकू एक भला आदमी है ।"
"सिद्दीकू डाक्टर साहब से रजनी की शादी पर अप्रसन्न है ?'
" उसने इस शादी को पसन्द नहीं किया था।"
"अगर यह बात है तो सिद्दीकू डाक्टर साहब को हत्यारा सिद्ध करने के लिए पूरा जोर लगा सकता है। प्रतिशोध की देवी जूम्बी की मूर्ति और मेराम्यू जाति के सरदार वोरगेवो की मुहर का टाई पिन इस बात का इशारा करते हैं कि हत्या उस व्यक्ति ने की है जो अंधविश्वासों पर यकीन रखता था और मनुष्य की इन भावनाओं को उभारंकर यह भ्रम पैदा करना चाहता था कि दीवाने की हत्या देवी जूम्दी ने की थी । फिर वह यह भी चाहता था कि हत्या का अभियोग डाक्टर साहब पर लगाया जाए।"
“ऐसा कभी नहीं हो सकता | सिद्दीकू दीवान साहब को भगवान के बाद दूसरा दर्जा देता था और मैं पहले भी कह चुका हूं कि सिद्दीकू एक वफादार कुत्ते से भी ज्यादा वफादार है । "
"अच्छी बात है | आप यह बताइए कि कल डाक्टर साहब के कहने पर वाहर जाने से पहले आप अजायबघर में गए थे ?”
"हां, मैं नाश्ते से पहले अक्सर वहां जाता हूं, यह मेरी आदत बन चुकी है । मुझे इस अजायबघर का संरक्षक समझा जाता है । मैं सुबह-सवेरे यह देखने जाता हूं कि हर मूर्ति अपने स्थान पर ठीक रखी है या नहीं।" ।
"कल सुबह आप कितने बजे अजायबघर में गए थे ?
“सवा सात वजे । मैं पौने नौ बजे बाहर चला गया था ।"
“क्या आपको किसी ने अजायबघर में दाखिल होते देखा था ?"
"किसी ने नहीं।"
"क्या बाहर जाने से पहले आपको मालूम था कि आपके चाचा अजायबघर में मौजूद हैं ?"
"नहीं, वे अपने कमरे से बाहर नहीं आए थे । वे अपने कमरे से निकले भी थे तो मैं देख नहीं पाया था।"
" सुनिए मिस्टर राजेश, मैं समझता हूं कि दीवान साहब की हत्या करने के लिए इस कमरे में हत्यारे की मौजूदगी जरूरी नहीं थी। हत्वारा अपनी अनुपस्थिति में भी उनकी हत्या कर सकता था, क्योंकि वह हत्या की योजना बना चुकने के बाद इस घर से जा चुका था।”
"हूं ! " राजेश ने घृणा से नाक सिकोड़ते हुए कहा, "आप समझते हैं कि मैंने अपने चाचा की हत्या करने की साजिश की?"
यह कहकर वह मुट्ठियां भींचकर मेजर की ओर बढ़ा । उसके इस अन्दाज से स्पष्ट था कि वह आक्रमण करने के लिए बिल्कुल तैयार हो चुका था। राजेश ने निकट आकर जोर से अपना बाजू लहराया और मेजर के मुंह पर मुक्का मारने की कोशिश की। लेकिन मेजर तेजी से पहले ही झुक चुका था और राजेश की पीठ की ओर पहुंचकर उसका बायां बाजू अपने बायें बाजू में लपेटकर दायें बाजू से उसकी गर्दन दबोच चुका था | पीड़ा से राजेश के होंठ खुल गए थे और उसके नैन-नक्श खिंच गए थे ।
इन्स्पेक्टर धर्मवीर आश्चर्य से यह सारा दृश्य देख रहा था। वह मेजर की फुर्ती की दाद दे रहा था। राजेश एक तगड़ा नवयुवक था, लेकिन मेजर ने पलक झपकते ही उसे जिस तरह अपनी पकड़ में लेकर विवश कर दिया था उससे मेजर के दांव-पेच की श्रेष्ठता का प्रमाण मिलता था | मेजर ने राजेश को सोफे पर गिरा दिया और उसके सामने बैठते हुए बोला, "सुनिए मिस्टर, राजेश, अगर आप आराम से हमारे सवालों के जवाब नहीं देंगे तो आपको और मिसेज रजनी को दीवान सुरेन्द्रनाथ की हत्या के अभियोग में गिरफ्तार कर लिया जाएगा। आप पर दूसरा अभियोग यह लगाया जाएगा कि आपने हत्या के बाद एक निर्दोष व्यक्ति को हत्यारा सिद्ध करने की कोशिश की और इस तरह उसे भी अपने रास्ते से हटाने की साजिश की ।”
राजेश बौखलाकर बुरी तरह हांफ रहा था, "रजनी " राजेश ने परेशान स्वर में कहा, "रजनी का कोई दोष नहीं। अगर आप उस पर संन्देह करते हैं तो मैं हत्या का अपराध स्वीकार करता हूं।"
"ऐसी बहादुरी दिखाने की जरूरत नहीं, मिस्टर राजेश ! " मेजर बोला, "कल सुबह जब आप अजायबघर में गए थे, तो वहां आप क्या कुछ करते रहे थे ?”
राजेश क्षण-भर के लिए मौन रहा, फिर बोला, "मैंने वहां जाकर एक पत्र लिखा था ।"
“वह पत्र आपने किसको लिखा था ?”
"मैं यह बताना नहीं चाहता।"
"आपने वह पत्र किस भाषा में लिखा था ?"
"आप यह सवाल मुझसे क्यों पूछ रहे हैं ? मैं अंग्रेजी, लैटिन, रोमन, संस्कृत और सुआहिली में पत्र लिख सकता हूं।"
" मुझे मालूम है कि आप बहुत-सी भाषाएं जानते हैं। पुरातत्त्व विशेषज्ञ को कई भाषाओं पर अधिकार होना ही चाहिए और मेरा ख्याल है कि आपने अफ्रीका की सुआहिली भाषा में पत्र लिखा था।"
"ओह मेरे भगवान !" राजेश के मुंह से निकला, लेकिन फिर तुरन्त ही संभलते हुए उसने कहा, "आप यह कैसे कह सकते हैं कि मैंने सुआहिली भाषा में पत्र लिखा था ?"
“यह अनुमान लगाना विल्कुल कठिन नहीं है। आपने रजनी के नाम पत्र लिखा था और मिसेज रजनी भी सुआहिली भाषा अच्छी तरह जानती हैं । "
"मैं समझता हूं कि अब आपसे झूठ बोलने का कोई लाभ नहीं है | आपका अनुमान बिल्कुल ठीक है। मैंने रजनी को पत्र लिखा था और सुआहिली भाषा में लिखा था ।"
“क्या मैं पूछ सकता हूं कि आपने उस पत्र में क्या लिखा था ?"
" मैं आपसे कुछ नहीं छिपाऊंगा। वह एक संक्षिप्त - सा पत्र था, और मैंने लिखा -एक जिन्दगी हमारे रास्ते में बाधा डाले हुए है। हमारी प्रसन्नता में रुकावट बनी | यह रुकावट दूर होनी चाहिए। बस, यह तीन पंक्तियों का पत्र था।"
"इससे तो प्रकट होता है कि आप कोई खतरनाक कदम उठाना चाहते थे।" मेजर ने कहा ।
"वह एक मूर्खतापूर्ण पत्र था और भावनाओं में बहकर लिखा गया था। मैंने वह पत्र रजनी को नहीं दिया था।"
“अब वह पत्र कहां है ?
"अजायबघर की मेज की दराज में। मैं उस पर पुनः विचार करना चाहता भा, उसके बाद रजनी को देना चाहता था ।"
"क्या आप वह पत्र लाकर मुझे दिखा सकते हैं ?
राजेश उठकर तेजी से बाहर निकल गया और कुछ क्षण बाद ही वापस लौट आया। उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था ।
"पत्र मेज की दराज में नहीं है।" उसने कहा ।
मेजर तिलमिला और कसमसा रहा था, "आपने वह पत्र कैसे कागज पर लिखा था ?"
"वह हरे रंग का पैड़ का कागज था । "
"आपने वह पत्र कलम से लिखा था या पेन्सिल से ?
"कलम से।"
"बस, इतना काफी है। अब आप आराम कर सकते हैं । " मेजर ने कहा ।
मेजर और इन्स्पेक्टर कमरे से बाहर निकल आए । अजायबघर में आकर मेज़र अपनी पीठ के पीछे अपने दोनों हाथ बांधकर गहरी सोच में डूब गया । फिर उसने इन्स्पेक्टर से कहा, “इन्स्पेक्टर साहब, राजेश के कमरे पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। रजनी, सिद्दीकू और राजेश के बीच कोई पत्र-व्यवहार या बातचीत नहीं होनी चाहिए । उनको एक-दूसरे के कमरे में भी नहीं जाने देना चाहिए।"
“मैं अभी इसका प्रबन्ध किए देता हूं।" इन्स्पेक्टर धर्मवीर ने इतना कहा और बाहर निकल गया ।
मेजर ने कलाई पर बंधी हुई घड़ी की ओर देखा । दोपहर के खाने का समय हो चुका था | सोनिया, लक्ष्मी और रजनी से मिलने गई थी। वह अभी तक नहीं लौटी थी । इन्स्पेक्टर वापस आया तो मेजर फिर कलाई की घड़ी की ओर देखने लगा ।
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