वही खतरनाक लड़का इस समय अपनी साइकिल पर विजय की कोठी की ओर जा रहा था। उसके मस्तिष्क में इस समय एक ऐसी योजना थी, जिससे वह विजय को पागल बना सकता था। और वह अपने अंकल को बोर ही करने जा रहा था।
तब, जबकि विकास विजय की कोठी से अधिक दूर नहीं था, अचानक वह बुरी तरह चौंक पड़ा। वह लड़का इतना दक्ष था कि आवाज सुनते ही उसने अनुमान लगा लिया कि ये गोलियां उसके झकझकिए अंकल को कोठी में ही चल रही हैं।
इस विचार के मस्तिष्क में आते ही उसने दो-तीन पैर पैडिल पर कसके मारे।
उसने काफी दूर से ही देखा कि विजय की कोठी के आगे खलबली-सी फैली हुई है।
इस समय विकास कोठी के पीछे से गुजरने वाली सड़क पर था।
एकाएक वह चौंक पड़ा।
उसने आज तक ऐसा विचित्र दृश्य नहीं देखा था।
उसने साफ देखा कि एक व्यक्ति विजय के कमरे की नाली से क्षणमात्र में पार होकर बाहर आ गया। एक ही नजर में विकास ने उसे पहचान लिया। टुम्बकटू को उसने कल ही अपनी बर्थ-डे पर देखा था और आज सुबह अखबार में भी पढ़ा था।
उसके छोटे, किंतु कुशाग्र मस्तिष्क ने एक साथ कई कार्य किए। क्षणमात्र में विकास के मस्तिष्क में आ गया कि गोली चलने का कारण क्या है। और अगले ही पल उस खतरनाक लड़के रूपी शैतान ने भयानक फुर्ती का परिचय दिया।
पल-भर में उसने अपनी साइकिल सड़क के एक ओर खड़ी के झाड़ियों में इस सतर्कता के साथ लुढ़का दी कि टुम्बकटू को इसका आभास भी न हो सका। लिखने की आवश्यकता नहीं कि वह तेरह वर्षीय शैतान भी पूर्णतया झाड़ियों के पीछे छुप गया था।
उसने देखा कि टुम्बकटू का ध्यान लेशमात्र भी उसकी ओर नहीं गया। उसका समूचा ध्यान शायद विजय, रघुनाथ और पुलिस इत्यादि पर था।
विकास उसकी फुर्ती देखकर आश्चर्यचकित था।
टुम्बकटू ने एक पल भी कुछ नहीं सोचा और फिर अगले
ही पल विकास ने जो करिश्मा देखा, वह उतना ही आश्चर्यजनक था, जितना देखते ही देखते दो मिनटों में सागर का जलरहित हो जाना। -
विकास रूपी यह शैतान स्वयं अपने अंदर कम खतरनाक नहीं था, किंतु टुम्बकटू की यह हरकत वास्तव में ऐसी थी कि उसे इंसान कहने के लिए मन नहीं करता। एक पल के लिए तो विकास आंखें फाड़े हैरत के साथ उसे देखता रह गया।
विजय की कोठी की यह दीवार अत्यधिक चिकनी और सपाट थी, जिस पर टुम्बकटू बिना किसी आधार के इस प्रकार ऊपर रेंगता जा रहा था मानो वो छिपकली रहा हो।
वास्तव में वह गजब की फुर्ती के साथ निरंतर चिकनी दीवार पर तीव्र वेग से ऊपर की ओर रेंगता जा रहा था! उसके हाथों की बीसों उंगलियां ठीक जोंक की भांति चिकनी दीवार से चिपकी हुई थीं और उंगलियों से भी लंबे नाखून ऐसा लगता था, जैसे चिकनी दीवार में धंस गए हों। उसका कोई भी अंग ऐसा नहीं था, जिसका चिकनी दीवार से स्पर्श न हो ! वह ठीक किसी छिपकली की भांति ऊपर रेंगता चला जा रहा था!
एक पल के लिए तो विकास इस आश्चर्यजनक दृश्य को देखकर जैसे सब कुछ भूल गया, किंतु अगले ही पल उस शैतान में जैसे हरकत हुई।
वह लड़का किसी भी प्रकार किसी शातिर से कम नहीं था !
उसने टुम्बकटू को गिरफ्तार करने का दृढ़ निश्चय कर लिया और फिर वह खूबसूरत लड़का अपनी पूर्ण भयानकता लेकर मैदान में उतर आया।
वह भी तेजी के साथ दौड़ा और अगले ही पल वह टुम्बकटू के पीछे-पीछे किसी दक्ष जासूस की भांति फुर्ती के साथ गंदे पानी के एक पाइप के जरिए ऊपर बढ़ता जा रहा था। इस कार्य में उसने इतनी सतर्कता का परिचय दिया था कि टुम्बकटू जैसा व्यक्ति भी आभास न पा सका था कि शातिरों का शातिर तेरह वर्षीय खतरनाक शैतान मौत बनकर उसके ऊपर मंडरा रहा है। विकास के प्यारे मुखड़े पर किसी भी खतरे से टकराने हेतु सख्त भाव थे।
टुम्बकटू तो था ही अपने नाम का एक छलावा अपराधी, लेकिन विकास उससे भी कहीं अधिक बढ़कर खौफनाक भूत था!
टुम्बकटू फुर्ती के साथ रेंगता हुआ विजय की कोठी की छत पर पहुंच गया, ऊपर पहुंचते ही उसने एक दृष्टि नीचे की ओर मारी ----- परंतु तब तक विकास पाइप के पीछे इस प्रकार हो चुका था कि टुम्बकटू उसे देख न सका। टुम्बकटू ने तो नीचे देखा था, उसे तो स्वप्न में भी ख्याल न था कि तेरह वर्षीय वह खतरनाक शैतान उसके निकट मंडरा रहा है ।
जैसे ही टुम्बकटू छत की ओर से गायब हुआ, विकास फुर्ती के साथ पाइप पर चढ़ता हुआ उसके पीछे छत पर पहुंच गया। उस्ने देखा कि उस समय तक टुम्बकटू छत के दूसरे सिरे पर पहुंच गया। टुम्बकटू अपनी ओर से पूर्णतया सतर्क था, उसने एक बार और पीछे मुड़कर देखा, किंतु इसका क्या किया जाए कि उस समय वह किशोर शैतान छत पर रखे एक ड्राम के पीछे था।
जहां टुम्बकटू खड़ा था, वहां विजय की कोठी की छत समाप्त हो गई थी और सड़क के पार ऐसी कोठी थी, जो अक्सर खाली पड़ी रहती थी।
यूं उस सड़क को पार करके दूसरी छत पर पहुंचना, कोई अधिक हैरत की बात न थी, लेकिन जिस ढंग से उसे टुम्बकटू ने पार किया, वह अवश्य ही आश्यर्चजनक बात थी। सड़क इतनी चौड़ी थी कि उसके पार जंप लगाने में थोड़ा रन अवश्य लेना पड़ता था, किंतु उस भयानक छलावे अपराधी ने कोई रन न लिया। वह तो बस विजय की कोठी की मुंडेर पर था।
किंतु अगले ही पल विकास ने उसे दूसरी कोठी की मुंडेर पर देखा। इस बीच उसने सिर्फ ऐसा महसूस किया था कि जैसे टुम्बकटू का जिस्म हवा में तैर रहा हो ।
विकास अभी तक उस ड्राम के पीछे ही छिपा हुआ था। निकला इसलिए नहीं था ----- क्योंकि इसके अतिरिक्त कोई ऐसा स्थान न था, जहां वह स्वयं को उस खौफनाक छलावे की नजरों से बचाता। कुछ ही देर में टुम्बकटू दूसरी छत के दूसरी ओर की एक दीवार के पीछे विलुप्त हो गया।
विकास के जिस्म में जैसे एकाएक विद्युत का संचार हुआ।
वह फुर्ती के साथ ड्राम के पीछे से निकला और भयानक जिन्न की भांति दौड़ता हुआ वह बीच की सड़क पार करके दूसरी छत के उस किनारे पर पहुंचा, जहां टुम्बकटू विलुप्त हुआ। वहां आकर उसने नीचे झांका तो एक तीव्र झटके के साथ उसे अपनी गरदन वापस खींच लेनी पड़ी। उसी छिपकली की भांति रेंगता हुआ टुम्बकटू सपाट दीवार के माध्यम से नीचे जा रहा था।
विकस फुर्ती के साथ दौड़ता इस इमारत के पिछवाड़े पहुंचा और फिर अगले ही पल वह भयानक फुर्ती के साथ एक पाइप के माध्यम से नीचे उतर रहा था ।
खूबसूरत और भयानक किशोर शैतान कुछ ही देर बाद नीचे था। न सिर्फ नीचे, बल्कि उस दिशा में दौड़ता चला जा रहा था, जिधर टुम्बकटू उतर रहा था।
जब वह उस स्थान पर पहुंचा तो उसने टुम्बकटू को बड़े इत्मीनान के साथ एक पतली-सी गली में प्रविष्ट होते हुए देखा। परंतु वह शैतान भला इतना शरीफ कहां था कि छलावे का पीछा छोड़ दे वह भी सड़क के उस मोड़ तक आया।
विकास ने गरदन घुमाकर विजय की कोठी की ओर देखा तो पाया कि वहां लोगों की भीड़ में उसी प्रकार खलबली मची हुई है। किंतु विकास ने इस ओर कोई विशेष ध्यान न दिया और टुम्बकटू के पीछे अपनी पूर्ण फुर्ती व सतर्कता के साथ गली में लपका।
अब टुम्बकटू एक बार भी पीछे घूमकर नहीं देख रहा था। वह तंग गली में बड़े इत्मीनान के साथ बढ़ता जा रहा था। हालांकि उसकी चाल में कोई तीव्रता न थी, किंतु उसकी लंबी सिगरेट जैसी टांगों के कदम कुछ इतने लंबे पड़ रहे थे कि विकास को उसका पीछा करने हेतु काफी तीव्र वेग से चलना पड़ रहा था।
गली में चलते-चलते ही टुम्बकटू ने अपने रंग-बिरंगे कोट की जेब से एक कैप निकाली और सिर पर रख ली । यह देखकर विकास के नन्हे, प्यारे और गुलाबी अधर मुस्कराए बिना न रह सके क्योंकि कैप भी कोट की ही भांति रंग-बिरंगी थी।
कुछ ही देर में वे इसी प्रकार एक अन्य सड़क पर पहुंच गए।
उस समय विकास चौंके बिना न रह सका, जब टुम्बकटू उसी प्रकार शाही ठाट से चलता हुआ फुटपाथ पर खड़ी एक कार की ओर ऐसे बढ़ा मानो वह कार उसके बाप-दादा की कोई जायदाद रही हो। किंतु चौंकने में विकास ने कोई अधिक समय नहीं गंवाया, उसने फुर्ती और सतर्कता के साथ इधर-उधर देखा और सबकी दृष्टि से बचता हुआ, वह कार की डिक्की में समा गया।
उधर टुम्बकटू कार का दरवाजा खोलकर उसकी ड्राइविंग सीट पर बैठने में तनिक भी तो नहीं हिचका, अगले ही पल उसने जेब से 'मास्टर की' निकाली और फिर कार एक झटके के साथ आगे बढ़ गई।
विकास ने डिक्की की झिरी में से देखा कि तभी पीछे से कार वाले ने शोर मचाया, वहां खलबली-सी मची और इससे पूर्व कि विकास कुछ और देख सके ----- कार एक मोड़ परं मुड़ चुकी थी। और अब तो वह हवा से बातें कर रही थी ।
विकास डिक्की में बैठा आराम से दिलजली गुनगुना रहा था और झिरी से उन सभी मार्गों को अपने मस्तिष्क में सुरक्षित करता जा रहा था, जिनसे कार पास हो रही थी। एकाएक विकास के मस्तिष्क में एक धमाका-सा हुआ। उसका पैर किसी पतले-से धागे में उलझ गया था। उसने हाथ से टटोलकर देखा तो पाया कि यह रेशम की एक मजबूत डोरी है। डोरी को देखते ही उस नन्हे शैतान के मस्तिष्क में एक भयानक योजना किसी जहरीले कीड़े की भांति कुलबुला उठी और वह रेशम की डोरी को अपने हाथ में लपेटता हुआ धीमे-धीमे कुछ सोचने लगा।
क्रम इसी प्रकार चलता रहा।
उसने देखा कि कार हवाई अड्डे के निकट से गुजरती हुई उस सड़क पर घूम गई, जो राजनगर से बाहर की ओर जाती थी।
अधिक नहीं, थोड़ी ही देर बाद कार एक झटके के साथ रुक गई।
विकास किसी चतुर सांप की भांति रेंगता हुआ कार से बाहर आया। डिक्की बंद करने में उसने इतनी सावधानी तो अवश्य बरती थी कि टुम्बकटू का ध्यान उस ओर आकर्षित न हो। इस समय विकास कार के नीचे सड़क पर लेटा हुआ था।
इस समय उसे टुम्बकटू की लंबी-लंबी टांगें दीख रही थीं, जो कार को बीच सड़क पर छोड़कर लापरवाही के साथ सड़क के एक ओर बढ़ रहा था।
विकास का टुम्बकटू का पीछा करने का उद्देश्य सिर्फ यह था कि वह उस स्थान तक पहुंच सके, जहां वह छलावा रहता है, इसलिए विकास फुर्ती के साथ कार के नीचे से निकलकर टुम्बकटू के पीछे लपका।
टुम्बकटू ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा था। शायद उसे विश्वास था कि कोई उसका पीछा नहीं कर सकता।
अब वे एक जंगल से गुजर रहे थे।
उसके चारों ओर वृक्ष थे। धरती पर वृक्षों के सूखे पत्ते पड़े थे जिन पर टुम्बकटू के चलने के कारण विचित्र-सी ध्वनि आसपास के मौंन वातावरण में गूंज रही थी। जबकि विकास इस सतर्कता के साथ चल रहा था कि उसके चलने से उसकी दृष्टि में लेशमात्र भी ध्वनि नहीं हो रही थी। पीछा यूं ही जारी था।
अपनी ओर से विकास ने पूर्ण सतर्कता का परिचय दिया था किंतु... ।
." बेटे विकास!" एकाएक ही विकास के कानों में टुम्बकटू की थरथराती-सी आवाज पड़ी । विकास इस तरह चौंका, मानो समीप ही कहीं भयानक अणु विस्फोट हुआ हो। इस बात की उसे कतई आशा नहीं थी । वह तो यह सोच रहा था कि टुम्बकटू उसकी उपस्थिति से पूर्णतया अनभिज्ञ है-----किंतु यहां तो परिस्थिति बिल्कुल ही विपरीत थी। उसने चौंककर आगे जाते टुम्बकटू की ओर देखा तो पाया कि वह उसी प्रकार इत्मीनान के साथ चल रहा था । उसे देखने से बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगता था, जैसे टुम्बकटू ने ये शब्द कहे हों। विकास को लगा कि कहीं यह उसका भ्रम तो नहीं है ।
इस अजीब-सी गुत्थी में उलझकर उसके कदम एक ही स्थान पर ठहर गए। टुम्बकटू उसी प्रकार बिना एक कदम भी रुके आराम से बढ़ रहा था। एकाएक वीरान सन्नाटे को चीरती हुई टुम्बकटू की आवाज फिर विकास के कानों से टकराई!
."क्यों? ठहर क्यों गए?"
इस बार विकास जान गया कि यह उसका भ्रम नहीं है ।
परंतु इससे पूर्व कि वह कुछ कर पाए, टुम्बकटू उसकी ओर घूम गया। टुम्बकटू के होंठो पर वही चिर स्थायी मुस्कान थी। जबकि विकास इस प्रकार सकपकाया मानो उसे पिता ने जेब से पैसे चुराते रंगे हाथों पकड़ लिया हो।
उधर टुम्बकटू ने इत्मीनान से अपनी विचित्र सिगरेट सुलगाई और एक कश लगाकर बोला-----"बच्चों को बड़ों के बीचमें आना शोभा नहीं देता।"
परंतु इस समय में तो वह शैतान अपनी सकपकाहट पर
प्रभुत्व जमा चुका था, तभी तो वह बिना घबराए संयत स्वर में बोला।
"लंबू अंकल... आपके पास शिष्टाचार नाम की कोई चिड़िया नहीं है। "
-----''वह क्यों?'' टुम्बकटू भी हरा धुआं निकालता हुआ आराम से बोला।
. "सबसे पहले आपको ये पूछना था कि मैं आपके पीछे क्यों आ रहा हूं?"
"चलो।" टुम्बकटू लापरवाही के साथ बोला-----"वह भी पूछ लेते हैं। "
"मैंने एक दिलजली बनाई है। "
"तुम उसे सुनाना चाहते हो । "
"मैं जानता हूं कि आप समझदार हैं।" वह शैतान टुम्बकटू को फंसाने का सामान जुटा रहा था।
-" लेकिन मुझे नहीं सुननीं।" उसी प्रकार मुस्कराता हुआ टुम्बकटू बोला ।
."क्यों अंकल?'' विकास एकदम इस प्रकार बोला मानो अभी रो पड़ेगा- -"क्या आप मेरा दिल तोड़ देंगे?"
-----"क्या बक्ते हो?" इस बार विकास की इस हरकत पर टुम्बकटू उलझकर रह गया।
.-''सच अंकल!'' विकास उसी प्रकार रुआंसे स्वर में बोला- -"अगर आपने मेरी दिलजली नहीं सुनी तो मेरा दिल उसी तरह टूट जाएगा, जैसे पत्थर मारने से शीशा । "
विकास के ढंग और कहने की हरकत पर टुम्बकटू बिना मुस्कराए न रह सका, जबकि उसके दिमाग में यह बात भी आ गई थी कि कहीं यह लड़का आवश्यकता से अधिक खतरनाक न हो-----किंतु फिर भी वह अपने ही लहजे में बोला----- "अच्छा तो सुनाओ।" टुम्बकदू आराम से कश लेकर बोला ।
. "वो मारा साले कल्लू के ताऊ को।" विकास के नारा लगाते ही टुम्बकटू यह सोचकर मुस्करा उठा कि विकास पर विजय का कितना प्रभाव है। उसके कहने का ढंग ठीक विजय जैसा ही था। वह खतरनाक लड़का अजीब ढंग से उछलता हुआ कह रहा था।
-"हां तो लंबू अंकल... आपको देखकर मेरा फर्ज होता है कि मैं आपसे बिना कर्ज लिए एक असली मिट्टी के तेल में तली हुई दिलजली अर्ज करू।" कहने के साथ उसने जो दिलजली पेश की वह कुछ इस प्रकार थी।
"जंगल में मंगल होगा, गाने का दंगल होगा।
आएंगे सियार चाचा, गाएगी कुतिया रानी ।।
बंदर बजाए बाजा, नाचे बंदरिया रानी |
इतने में खबर मिली कि मर गई उसकी नानी ।।
गधे की टांग टूटी, बंदर की ताल टूटी ।
कौए का राग टूटा, लोमड़ी ने माल लूटा।।
शेर को रह गया जूठा, उसने जूठा ही सूता। चील उड़कर भागी, चूहा पैदल ही भागा ।। बिल्ली ने उसे दबाया, कुत्ता भी भागा आया।
भागकर वह पछताया, सब कुछ खाली जो पाया। दुख बहुत हुआ उसको, लक्स से क्यों नहीं नहाया ।।
जंगल में मंगल होगा, गाने का दंगल होगा।
आए सियार चाचा, गाती कुतिया रानी । '
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