विकास तुरन्त वापिस घूमा और विपरीत दिशा में चलने लगा ।
योगिता ने उसे तुरन्त पुलिस के आगमन की सूचना किस भावना से प्रेरित होकर दी थी यह तो वही जानती थी लेकिन यह हकीकत थी कि पुलिस के फन्दे से उसी ने उसे बचाया था ।
अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या वह विकास के होटल से फूट गया होने के बारे में किसी को कुछ बताती ? आखिर होटल का बिल भी तो वह अदायगी के बिना ही छोड़ आया था । उसका अपनी नौकरी के प्रति निष्ठा उसे इस बात के लिए मजबूर कर सकती थी कि वह उसके होटल से खिसक जाने की बात मैनेजमेंट को बता देती ।
अगले चौराहे पर पहुंचने तक उसे टैक्सी मिल गई ।
टैक्सी पर सवार होकर वह होटल से बहुत दूर नगर के मध्य में पहुंच गया । वहां एक दुकान से उसने एक टोपी खरीदी और उसे अपने सिर पर इस प्रकार पहना कि वह उसकी भवों तक पहुंच गई । थोड़ा आगे से उसने एक अखबार खरीदा । और आगे पटरी पर एक कपड़ों की दुकान लगी हुई थी । वहां एक और हैंगर पर एक चमड़े की जैकेट टंगी हुई थी। उसने वह जैकेट खरीद ली । एक सुनसान गली में जाकर उसने अपना कोट उतार कर अखबार में लपेट लिया और उसकी जगह जैकेट पहन ली। अपनी टाई उतारकर उसने जैकेट की जेब में रख ली। अपनी तीखी क्रीज वाली पतलून की प्रैस उसने हाथ से मसल कर बिगाड़ दी।
अब उसे उम्मीद थी कि उसके मौजूदा लिबास में कोई उसे खामखाह नहीं पहचान सकता था।
अब वह अपने रहने के ठिकाने की तलाश में आगे बढा|
एक स्थान पर उसे एक खस्ता हाल इमारत दिखाई दी जिस पर लगे बोर्ड पर लिखा था स्टार होटल । -
वह भीतर दाखिल हुआ ।
वहां अपना नाम शिवकुमार बताकर उसने तीस रुपये रोज का एक कमरा हासिल किया ।
उसे कमरे का नम्बर और मंजिल बता दी गई थी । किसी ने उसे कमरे तक पहुंचाने की कोशिश नहीं की थी ।
कमरे को देखकर उसके नाक तो चढाया लेकिन वहां रहना उस वक्त उसकी मजबूरी थी । उस वक्त वैसा ही कमरा उसके लिए सुरक्षित साबित हो सकता था ।
कमरे में दो गुण फिर भी थे जिन्होंने उसे बहुत हैरान किया।
बिस्तर बहुत साफ-सुथरा था । और कमरे में टेलीफोन था। अखबार में लिपटा अपना कोट उसने बिस्तर के नीचे रख दिया फिर उसने फोन का रिसीवर उठाया ।
आपरेटर का उत्तर मिलने पर उसने होटल रिवर व्यू में 238 नम्बर कमरे में सम्पर्क कराये जाने की मांग की।
एक मिनट बाद उसके कान में शबनम की आवाज पड़ी "हल्लो !" - वह बोली ।
"हल्लो डार्लिंग | "
"विकास" - वह प्रसन्न भाव से बोली- "कहां हो, बच्चा ? अपने कमरे में ?"
"नहीं । मुसीबत में ।"
शबनम तुरन्त गम्भीर हो गई ।
"कोई गड़बड़ ?" - वह बोली ।
"बहुत गड़बड़ !" - विकास बोला- "मुझ पर एक मेहरबानी करोगी ?"
"क्यों नहीं ? तुम्हारे लिए तो जान हाजिर है । "
"सुनो । तुम्हारे होटल की चौथी मंजिल पर एक सफाई का सामान रखने की अलमारी है । उसे तलाश करने में तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी। सारे फ्लोर पर वही एक दरवाजा है जिस पर कोई नम्बर नहीं लगा हुआ। सुन रही हो ?"
"हां, हां ।”
"उस अलमारी में मेरा सूटकेस पड़ा है। उस सूटकेस को वहां से निकालकर तुम अपने कमरे में ले जाओ । उसमें से थोड़ा जरूरत का सामान जैसे पहनने के दो चार कपड़े, अन्डरवियर, बनियान, तौलिया, शेविंग सैट वगैरह, किसी बैग में डाल कर बैग मुझे यहां दे जाओ।"
“यहां कहां ?"
“कमरा नम्बर 105, स्टार होटल, सुभाष रोड । मुझे उम्मीद नहीं कि मेरे पास आने तक कोई तुम्हें टोके । कोई रोके तो कह देना तुमने शिवकुमार से मिलना है। और ज्यादा तड़क-भड़क के साथ मत आना । यह बहुत मामूली होटल है |"
"ठीक है । एक घन्टे में मैं वहां पहुंचती हूं।"
"ओ के ।”
विकास ने रिसीवर रख दिया ।
शबनम ने यह नहीं पूछा था कि वह किस मुसीबत में फंस गया था । वह बिना कुछ जाने-बूझे भी उसकी मदद करने को तैयार हो गई थी ।
वह कमरे से निकला ।
होटल में रेस्टोरेन्ट नहीं था ।
उसने उसी सड़क पर एक रेस्टोरेन्ट तलाश किया और वहां खाना खाया ।
फिर वह कमरे में आकर शबनम का इन्तजार करने लगा ।
एक घण्टे से कुछ पहले ही शबनम वहां पहुंच गई ।
वह बहुत सादे कपड़े पहन कर आई थी ।
अपने साथ लाया बैग उसने एक ओर रख दिया और फिर कमरे में चारों तरफ निगाह दौड़ाई ।
"बैठो।" - विकास बोला ।
वह उसकी बगल में पलंग पर बैठ गई ।
“क्या हो गया ?” - उसने पूछा- "बकरा नहीं फंसा ? अक्ल आ गई उसे ?"
"मौत आ गई उसे ।" - वह धीरे से बोला ।
"क्या ?"
"कत्ल हो गया उसका । "
शबनम के नेत्र फैल गये ।
"तुमने... तुमने... उसका...'
"नहीं-नहीं। मैंने नहीं" - वह जल्दी से बोला - "मैंने कत्ल नहीं किया उसका । लेकिन पुलिस यही समझ रही है कि कत्ल मैंने किया है । "
“ओह !”
विकास खामोश रहा ।
"सिगरेट पिलाओ।" - शबनम बोली ।
विकास ने सिगरेट का पैकेट निकाला । उसने एक सिगरेट शबनम को दिया, एक खुद लिया और फिर दोनों सिगरेट सुलगा दिये ।
शबनम ने सिगरेट का लम्बा कश लगाया, नथुनों से धुंये की दोनाली छोड़ी और फिर बड़ी गम्भीरता से पूछा - "क्या हुआ ?"
विकास ने उसे सिर्फ महाजन के कत्ल की ही कहानी नहीं सुनाई। उसने उसे उस शहर में कदम रखने से लेकर उस क्षण तक की एक-एक बात सविस्तार बताई । अपनी ठगी की योजना की भी कोई बारीकी उसने शबनम से नहीं छुपाई ।
जब वह खामोश हुआ तो उसने शबनम के चेहरे पर चिन्ता से ज्यादा प्रशंसा के भाव पाये ।
"वाह !" - वह प्रशंसात्मक स्वर में बोली- "बहुत शानदार स्कीम सोची तुमने तो । मनोहर क्या खलीफा है । खलीफा तो तुम हो । तुम जीनियस हो, विकी।"
विकास खामोश रहा ।
"लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई ।" - वह बोली।
"क्या ?"
"स्कीम को इतने फुंदने लगाने की क्या जरूरत थी ?”
"कैसे फुंदने ?”
"देखो, तुम्हारा प्लॉट यह था कि लोग यह समझें कि तुम कोई बोगस चैक चलाने की कोशिश कर रहे थे और तुम्हें गिरफ्तार करवा दें । ठीक ? उसके बाद सोमवार को जब बैंक खुलता तो मालूम होता कि चैक बोगस नहीं था और फिर तुम उन लोगों पर फाल्स अरैस्ट, डिफेमेशन ऑफ कैरेक्टर और पर्सनल इनडिग्निटी के आधार पर हरजाने का दावा ठोक देते ।”
"करैक्ट । मेरी स्कीम फेल हो ही नहीं सकती थी ।”
"न सिर्फ फेल नहीं हो सकती थी बल्कि इसकी खूबसूरती यह भी थी कि इसको कार्यान्वित करने में तुमने कोई कानून भंग नहीं किया था । अगर किसी वजह से स्कीम फिर भी फेल हो जाती तो तुम्हारे पर कोई हर्फ नहीं आने वाला था । इस सीधी-सादी स्कीम में तुमने फुंदने क्यों लगाये ? तुम सरदार प्रीतम सिंह के पास क्यों गये और उसके साथ नदी किनारे के काटेज क्यों देखते फिरे ? तुमने बैंक में यह दाना क्यों डाला कि तुम मकान खरीदने के लिए कर्जा हासिल करने के इच्छुक थे? क्यों नहीं तुमने एक जगह से कार खरीदकर दूसरी जगह उसे सस्ते में बेचने की कोशिश की ? गिरफ्तार तो तुम इतने से भी हो जाते ।”
“ गिरफ्तार तो मैं ऐसे भी हो जाता" - विकास असहमति में सिर हिलाता हुआ बोला- "लेकिन अदालत में मेरा मानहानि का केस न टिक पाता । वह यूं" - विकास ने चुटकी बजाई - "डिसमिस हो जाता ।”
“क्यों ? तब क्या तुम्हारी नाजायज गिरफ्तारी जायज हो जाती ?"
"नहीं । लेकिन तब यह अन्धे को भी दिखाई दे जाता कि मामला ठगी का था । एक बार पुलिस को यह सूझ जाता तो वे लोग मेरी पिछली जिन्दगी के बखिये उधेड़ने से बाज न आते । फिर उन्हें यह बात मालूम हुए बिना न रहती कि मैं एक पेशेवर ठग था और दर्जनों लोगों को ठग चुका था । तब क्या मैं किसी से अपनी मानहानि का हर्जाना हासिल कर पाता ? मेरा बकरा कोई मूर्ख से मूर्ख वकील भी करता तो वह अदालत में यह स्थापित करके दिखा देता कि मैंने मानहानि का दावा ठोकने के लिए जानबूझ कर अपने आप को गिरफ्तार करवाया था ।"
“ओह !"
"जिस ढंग से मैंने काम किया था, उससे कोई विशालगढ से बाहर मेरी पड़ताल न करता । सरदार प्रीतम सिंह मेरे हक में गवाही देता कि मैं विशालगढ में कोई मकान खरीदकर यहां सैटल होने के बारे में बहुत संजीदा था । बैंक मैनेजर स्वरूप दत्त इस बात की तसदीक करता कि मैंने उससे मकान खरीदने के लिए कर्जा हासिल करने की बात की थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि मैं खूब अच्छी तरह स्थापित कर चुका था कि स्पोर्टस कार का मुझे बड़ा शौक था । मेहतानी के सेल्समैन को कबूल करना पड़ता कि वास्तव में मैं वहां कोई स्पोर्टस कार खरीदने की ही नीयत से गया था लेकिन उसने मुझे यह विश्वास दिला दिया था कि विशाल गढ में मुझे कोई स्पोर्टस कार नहीं मिलने वाली थी और फिर अपनी लफ्फाजी में फंसा कर उसने मुझे फियेट बेच दी थी । मेरा फियेट खरीदते ही नुकसान उठाकर उसे बेचना इसीलिए जायज था क्योंकि मुझे महाजन के यहां एक स्पोर्टस कार, जिसके बारे में मुझे कहा गया था कि वह विशालगढ में मिल ही नहीं सकती थी, दिखाई दे गई थी।"
"तुम ठीक कह रहे हो ।" - वह प्रभावित स्वर में बोली
"अपने इस तरीके से काम करके मैं ज्यादा डैमिजिज क्लेम कर सकता था । आखिर मैं इस शहर में सैटल होने के इरादे से आया था लेकिन आते ही मुझे यहां जलील होना पड़ा था, बदनाम होना पड़ा था, रुसवा हो जाना पड़ा था । अब मैं इस शहर में इज्जतदार ढंग से भला कैसे रह सकता था जिसमें कदम रखते ही मुझे खामखाह गिरफ्तार करवा दिया गया था ? फिर मैं महाजन और मेहतानी दोनों पर एक-एक लाख रुपये का मानहानि का दावा ठोकता । दोनों ही बड़ी खुशी से पच्चीस-पच्चीस हजार रुपये में मुझसे अदालत से बाहर ही फैसला करने को तैयार हो जाते और समझते कि वे सस्ते छूटे थे। मुझे आराम से पचास हजार की कमाई हो जाती ।”
"बड़ी कुत्ती चीज हो, यार ।”
"हां" - विकास वितृष्णापूर्ण स्वर में बोला- "तभी तो इस वक्त ऐसे बेहूदे झमेले में फंसा हुआ हूं।"
“अब तुम करोगे क्या ?" - शबनम तुरन्त फिर गम्भीर हो गई - "क्या यहां से भाग जाओगे ?"
"ऐसा मैं नहीं कर सकता । भाग खड़ा होना मेरे गुनहगार होने का सबूत होगा। आज तक पुलिस मेरे खिलाफ कोई केस नहीं बना सकी है। मैं नहीं चाहता कि मैं फरार अपराधी घोषित कर दिया जाऊं और फिर उम्र भर के पुलिस के बखेड़े में फंस जाऊं ।”
"तो क्या करोगे तुम ? अपने आपको निर्दोष साबित करने की कोशिश करोगे ?"
"हां । लेकिन गिरफ्तार होकर, अदालत में पेश होकर नहीं । इस शहर में गिरफ्तार हो जाने का मतलब होगा, न मरते हुए भी मरना । कल रात तुमने खुद ही इस बारे में मुझे बहुत कुछ बताया था ।"
"तो ?"
"शबनम, मेरी गति इसी बात में है कि मैं असली हत्यारे को तलाश करू ।”
"तुम ऐसा कर सकोगे ?"
"करना ही होगा ।"
"मैं इसमें तुम्हारी कोई मदद कर सकती हूं ?"
"शायद कर सको । बाई दि वे, पहले तुम यह बताओ कि तुम महाजन के बारे में क्या जानती हो ? जानती तो तुम उसके बारे में जरूर काफी कुछ होगी । तुमने कहा था न कि तुमने और मनोहर ने पहले वही बकरा चुना था ।"
"हां । लेकिन मैंने बताया ही था कि हमने लगभग फौरन ही उससे हाथ खींच लिया था । विकी, ऐसी कोई बात नहीं है जो हम उसके बारे में जानते थे और जो मैं तुम्हें पहले ही नहीं बता चुकी ।"
"याद करो । शायद ऐसी कोई बात हो जो तुम उसके बारे में जानती हो लेकिन जिसका जिक्र तुमने मेरे सामने न किया हो। मैं तुम्हें जानता हूं शबनम । मुझे मालूम है लोग तुम्हारे सामने अपना कलेजा निकालकर रखने लगते हैं ।"
"इतनी नौबत नहीं आई थी, विकी। हमने बहुत जल्दी उस से हाथ खींच लिया था । होटल के बार में ही मेरी उससे एक दो मुलाकातें हुई थीं और मुझे मालूम हुआ था कि वह
रईस आदमी था, और हमारे हाथों बकरा बनने के सरासर काबिल था । अधेड़ उम्र के मर्दों द्वारा औरत फंसाने में इस्तेमाल की जाने वाली वही स्टैण्डर्ड पुड़िया उसने मुझे दी थी कि उसकी बीवी उसे समझती ही नहीं थी। इसके अलावा उसने अपनी जिन्दगी की कोई खास बात मुझे नहीं बताई थी । खुद अपनी जुबान से तो उसने यह भी नहीं कहा था कि वह स्थानीय अपराध निरोधक कमेटी का चेयरमैन था । यह बात तो मनोहर को अगले दिन तब पता लगी थी जब उसने उसे चैक करना शुरू किया था। तब हम इसी नतीजे पर पहुंचे थे कि ऐसे आदमी पर हाथ डालना हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकता था । हमने तभी उसका ख्याल छोड़ दिया था और फौरन कोई दूसरा बकरा तलाश करना आरम्भ कर दिया था । उसके बाद मैंने महाजन की कभी सूरत तक नहीं देखी थी ।"
"हूं । खैर कोई बात नहीं । मैं कहीं और कोशिश करूंगा।"
"लेकिन ऐसी कोशिश के लिए तो तुम्हें यहां से बाहर निकलना पड़ेगा ।”
"तो क्या हुआ ?"
"तुम पहचान नहीं लिए जाओगे ? कल के अखबार में तुम्हारा हुलिया तो जरूर छपेगा । तुम सरे आम शहर में कैसे घूम सकोगे ?"
लंच से लौटने के बाद विकास ने अपनी चमड़े की जैकेट और टोपी उतार कर अलमारी में रख दी थी। उसने उठकर दोनों चीजें निकालीं और उन्हें दोबारा पहन लिया । फिर उसने अपने हाथ जैकेट की जेबों में घुसा लिए और कन्धे झुका कर और सिर नीचा करके कमरे में इधर-उधर घूमने लगा ।
शबनम मुंह बाये उसे देखने लगी ।
फिर एकाएक उसने जोर का अट्टहास किया ।
विकास ठिठक गया ।
उसने प्रश्न सूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
“पास ।” - शबनम बाली - "पास, मेरे बच्चे | पूरे नम्बरों से पास ।”
विकास ने जैकेट और टोपी उतार कर फिर अलमारी में रख दी और शबनम के पास आ बैठा।
"तुम्हारे और मनोहर के अलावा" - वह बोला - "आधी दर्जन से ज्यादा ऐसे लोग नहीं हैं जो मुझे सूरत से पहचानते हैं । अगर मैं उनसे आमना-सामना होने से बचा रहूं तो मेरे ख्याल से मैं यहां सेफ हूं।"
"मैं और मनोहर हर लिहाज से तुम्हारे साथ हैं । "
"थैंक्यू ।”
"कुछ रुपये-पैसे की जरूरत है ?"
"नहीं । फिलहाल लगभग दो हजार रुपये हैं मेरे पास । वैसे तो मेरा पजास हजार रुपया यहां बैंक में भी जमा है। लेकिन फिलहाल तो मैं बैंक के पास भी फटकने की हिम्मत नहीं कर सकता । बैंक खुलेगा सोमवार को जबकि मुझसे सम्बन्धित खबर ढेर सारे मिर्च-मसाले के साथ कल के ही अखबार में छप जाएगी । कहने का मतलब यह है कि सोमवार को मुझसे पहले मेरी महिमा बैंक में पहुंची होगी ।"
"ओह !"
"लेकिन फिलहाल पैसे की वजह से मेरी कोई काम नहीं अटकने वाला ।"
"अटकने लगे तो बताना ।"
“जरूर ।”
"कोई भाग-दौड़ से हो सकने वाला काम हो तो हमें बता दो।"
"तुम्हारे पास कहां वक्त होगा ? तुमने अपना बकरा नहीं हलाल करना ? फिर बाद में तुम्हें आनन-फानन यहां से खिसकना भी होगा।"
"बकरा इन्तजार कर सकता है । वह हमारे हाथ से नहीं जाने वाला ।"
"फिर भी ।"
“फिर भी कुछ नहीं । और तुम्हारी जानकारी के लिए इस शहर में पैंतीस हजार रुपये का धन्धा हम पहले ही कर चुके हैं।"
"क्या ?"
“यस सर । इसलिये तवज्जो की कमी की वजह से काटजू अगर हमारे हाथ से निकल भी जायेगा तो हमें अफसोस नहीं होगा।"
" "लेकिन मेरी वजह से...'
“अब छोड़ो यह किस्सा | विकी ।" - शबनम ने उसका हाथ थाम लिया - "तुम ऐसा क्यों समझते हो कि इस संकट की घड़ी में मैं और मनोहर तुम्हारा साथ छोड़कर भाग जाने की कल्पना भी कर सकते हैं ? कल को हमें भी तो तुम्हारी मदद की जरूरत पड़ सकती है। एक बकरा न भी जिबह हुआ तो क्या हुआ ? धन्धा तो यही करना है उम्र भर हमने । "
"लेकिन अगर बात और बिगड़ गई तो मेरे साथ तुम लोग भी फंस जाओगे ।"
"मुझे परवाह नहीं ।"
"लेकिन मनोहर को परवाह हो सकती है।"
"मुझे मनोहर की भी परवाह नहीं । "
"मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूंगा । मेरी वजह से..."
"तुम्हारी वजह से कुछ नहीं होने वाला । तुम्हारी वजह भी मेरी ही वजह है ।"
"मतलब ?"
"विकी, तुम पागल हो ।"
"क्या ?"
"तुम अक्ल के अन्धे हो । कुछ नहीं समझते हो ।”
"क्या नहीं समझता हूं मैं ?"
" कि मैं तुमसे मुहब्बत करती हूं।"
विकास अपलक शबनम को देखने लगा । किसी औरत का उसकी मुहब्बत का ऐसा इजहार उसके लिए कोई नई बात नहीं थी । वह फिकरा वह अपनी तीस साला जिन्दगी में दर्जनों बार सुन चुका था । आज तक एक बार भी उसने किसी सुन्दर से सुन्दर औरत की जुबान से निकले उस फिकरे का रोब नहीं खाया था। लेकिन इस बार वह तटस्थ न रह सका । शबनम ने वह बात इतनी ज्यादा संजीदगी से कही थी कि वह प्रभावित हुए बिना न रह सका। आज तक उसने जब कभी भी शबनम के बारे में सोचा था, एक शारीरिक रूप से आकर्षक युवती के रूप में ही सोचा था । अब उसे अपनी उस विचारधारा पर शर्म आने लगी ।
"मैं प्यार के बदले में प्यार की उम्मीद नहीं करती ।" वह सिर झुकाये धीरे-से बोली- "मैं जानती हू तुम एक औरत के होकर रहने वाले नहीं हो। फिर मेरी बात सुनकर तुमने यूं उल्लू-सा नक्शा क्यों तान लिया है ? तुम्हारी शक्ल पर बारह क्यों बज गये हैं ?"
"नहीं तो।" - वह बौखला कर बोला ।
"कैसे नहीं तो ? तुम्हारी दिली तसल्ली के लिए बता रही हूं कि कल रात हम होनों के बीच जो कुछ हुआ, उसका मेरी इस बात से कोई रिश्ता नहीं है कि मैं तुमसे प्यार करती हूं | मेरी यह बात कल हमारे बीच जो कुछ हुआ उसका नतीजा नहीं है ।"
वह एक क्षण ठिठकी और फिर बोली- "मुझे पहली निगाह में ही तुम से प्यार हो गया था । चार साल पहले जब मनोहर ने पहली बार मेरा परिचय तुमसे करवाया था, मैं तभी तुम पर अपना दिल लुटा बैठी थी । पहले मैं समझती थी कि वह नौजवानी के सम्मोहन का हल्ला था जिसने जल्दी ही गुजर जाना था लेकिन वास्तव में ऐसा न हुआ । मेरे दिल से तुम्हारी चाह न निकली। पिछली रात मैंने जो हरकत की थी उसने और भी साबित कर दिया था कि मैं दिल के हाथों बेहद मजबूर हो चुकी थी ।"
"तुमने पहले तो मुझे कभी नहीं बताया था ।"
"मुझे उम्मीद थी कि तुम मेरे बताये बिना ही सब कुछ समझ जाओगे । लेकिन तुम कभी न समझे । तुमने कभी समझने की कोशिश तक न की ।”
वह खामोश रहा ।
“आज भी पता नहीं किस अज्ञात भावना से प्रेरित होकर यह बात मैं अपनी जुबान पर लाई हूं। लेकिन जो कुछ मैंने कहा है, तुम पर किसी तरह का कोई दबाव डालने की नीयत से नहीं कहा है । मेरा दिल रखने के लिए भी तुम्हारा यह कहना जरूरी नहीं है कि तुम भी मुझसे प्यार करते हो । यह बखेड़ा खतम हो जाये तो तुम अपनी राह लगना और मै अपनी राह लगूंगी । वह नौबत आने से पहले मैं यह जरूर चाहती हूं कि तुम मेरे साथ ऐसे पेश आओ जैसे किसी पुरुष को किसी स्त्री के साथ पेश आना चाहिये । "
"मतलब ?"
"तजुर्बेकार आदमी हो । क्या इतना भी मतलब नहीं समझते ?"
विकास मुस्कराया, फिर हंसा । फिर उसने शबनम को अपनी तरफ खींच कर अपनी बांहों में भर लिया ।
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