लगभग साढ़े नौ बजे ।
भरत सहित विक्रम उसके फ्लैट से निकला । स्नानादि के पश्चात् उसने भरत का सूट पहन लिया था । उसके क्लीन शेव चेहरे पर होंठों की दोनों कोरों से नीचे तक झुकी मूंछे और फ्रेंचकट दाढ़ी चिपकी हुई थीं । आंखों पर चौड़े फ्रेम की क्लीयर लैंस वाली ऐनक लगी थी और बालों का स्टाइल भी बदला हुआ था । इस तरह उसके व्यक्तित्व में खासा परिवर्तन आ गया था । उसके कन्धे पर झूलता कैमरा भी उसके शेष व्यक्तित्व से काफी हद तक मेल खा रहा था । एकाएक उसे पहचान पाना जितना मुश्किल था, उतना ही आसान था उसे देखकर उसके प्रेस रिपोर्टर होने का धोखा खा बैठना ।
लिफ्ट द्वारा नीचे पहुंचकर वे इमारत से निकले और भरत सिन्हा की मोटर साइकिल पर सवार होकर सिविल हास्पिटल की ओर रवाना हो गए ।
मुश्किल से दस मिनट बाद वे हास्पिटल के एमरजेंसी इंक्वायरी काउंटर पर जा पहुंचे ।
काउंटर क्लर्क और सादा लिबास में एक पुलिसमैन के अलावा पास ही कई समाचार-पत्रों के रिपोर्टर भी मौजूद थे । और वक्त गुजारने के लिए ताश खेल रहे थे । जाहिर था कि उन्हें किरण वर्मा के होश में आने का इंतजार था ।
भरत सिन्हा ने अपना प्रेस कार्ड निकालकर दिखाते हुए, काउंटर पर अधिकारपूर्वक अपना परिचय दिया । और किरण वर्मा से मिलने की इच्छा प्रगट की ।
पी. टी. आई. जैसी, प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी के संवाददाता के रूप में उसका समुचित प्रभाव तो पड़ा लेकिन किरण वर्मा से मिलने से साफ इन्कार कर दिया गया ।
बाकी रिपोर्टर्स ने भी सुनकर कहकहा लगाते हुए मजाक उड़ाया फिर वे पुन: अपने खेल में व्यस्त हो गए ।
लेकिन भरत सिन्हा निराश नहीं हुआ ।
उसने सादा लिबास वाले की बांह थामी और उसे तनिक अलग ले गया ।
"देखो, हो सकता है, वह वाकई बातें करने काबिल न हो । मगर हम खुद देखकर यकीनी तौर पर जानना चाहते हैं । यकीन मानो इसके अलावा हमने कुछ नहीं करना है ।"
"सॉरी, मिस्टर ! उससे किसी को मिलने देने की इजाजत नहीं है ।"
"यानी हमारा अंदाजा सही है ।"
सादा लिबास वाला सतर्क नजर आने लगा ।
"क्या मतलब ?"
"यही कि दाल में कुछ काला है ।"
"यह तुम कैसे कह सकते हो ?"
"सीधी-सी बात है, अखबारों में छपे पुलिस के बयान के मुताबिक, किरण वर्मा को एक सामान्य युवती बताया गया है । जो इत्तिफाक से शूटिंग के वक्त रेस्टोरेंट के बाहर मौजूद थी और बदकिस्मती से ही जख्मी हो गई थी ।" कह कर भरत सिन्हा रुका, फिर नाटकीय स्वर में पूछा-"अब सवाल यह पैदा होता है कि इत्तिफाक से जख्मी हुई कोई सामान्य युवती एकाएक इतनी महत्त्वपूर्ण कैसे हो गई कि पुलिस उसकी बराबर कड़ी निगरानी कर रही है और उसे देखने तक की इजाजत किसी को नहीं दी जा रही है ? आखिर क्यों एक मामूली बात को इस कदर गोपनीय बनाया जा रहा है ?"
सादा लिबास वाले के माथे पर बल पड़ गए ।
"सुनो... ।"
"हम लोगों का काम सुनना नहीं, लिखना है ।" भरत सिन्हा उसकी बात काटता हुआ बोला-"हमारा सिर्फ एक ही मकसद है-जनता को असलियत की जानकारी देना ।"
लेकिन पुलिसमैन ने विरोध करना चाहा । इस दफा उसका स्वर नर्म था ।
"पहले मेरी बात पूरी होने दो ।" भरत सिन्हा हाथ उठाकर उसे रोकता हुआ बोला-"तुम जान ही चुके हो, हम कोई ऐरे-गैरे नहीं बल्कि एक प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी के संवाददाता हैं । इतना और समझ लो कि हमारी कलम से निकली हुई बात इतना हंगामा मचाएगी कि तुम लोग सफाई नहीं दे सकोगे ।"
"आप लोग जरा देर यहीं ठहरो ।" सादा लिबास वाले ने नम्रतापूर्वक कहा और पलटकर काउंटर की ओर चला गया ।
विक्रम और भरत सिन्हा इंतजार करने लगे ।
सादा लिबास वाला फोन पर धीमी आवाज में बातें कर रहा था ।
करीब दो मिनट तक बातें करने के बाद उसने काउंटर क्लर्क से कुछ कहा फिर वापस लौट आया ।
"आप दोनों मेरे साथ आइए ।" कहकर वह ऊपर जाने वाली सीढियों की ओर बढ़ गया ।
विक्रम और भरत उसका अनुकरण करने लगे ।
"आप लोग उसे सिर्फ देख ही सकते हैं ।" सादा लिबास वाला कह रहा था-"वह बेहोश पड़ी है । और सुनो, आप लोगों का शक गलत है कि दाल में कुछ काला है । दरअसल उस लड़की की हिफाजत का खासतौर पर इंतजाम करने की वजह आफताब आलम का चक्कर है । बहुत मुमकिन है कि वह चश्मदीद गवाह है । उस काण्ड की, जो वहां हुआ था ।"
वह पुलिसमैन विक्रम के लिए सरासर अपरिचित था । इसलिए विक्रम को उससे बातें करने में कोई नुकसान नजर नहीं आया । इससे पहले कि भरत सिन्हा कुछ कहता, विक्रम ने बात पकड़ ली ।
"वहां हुए काण्ड से...तुम्हारा क्या मतलब है ?" उसने तुरन्त पूछा ।
सादा लिबास वाला बौखला-सा गया । अपनी बातों में वह खुद ही फंस गया था ।
"सॉरी !" वह सिर्फ इतना ही कह सका-"लेकिन...।"
इससे पहले कि वह आगे बढ़ता, विक्रम ने लपककर उसकी बांह थाम ली ।
"तुम कहना चाहते हो शूटिंग के अलावा भी वहां कुछ हुआ था ?"
इस बीच सादा लिबास वाला स्वयं को संयत कर चुका था । वह सीढ़ियों के दहाने के पास रुक गया ।
मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि वह लड़की चश्मदीद गवाह हो सकती है । और चश्मदीद गवाह किसे कहते हैं, यह आप भी जानते होंगे । बेहतर होगा कि और ज्यादा बहस में पड़ने की बजाय आप ऊपर जाकर एक मिनट के लिए उस लड़की को देख लें ।"
"ठीक है ।"
"लेकिन इस बारे में किसी को बताना नहीं । क्योंकि सिर्फ आप ही पहले लोग हैं जिन्हें उस लड़की से मिलने की इजाजत दी गई है । और सुनिए ।" वह कैमरे की ओर इशारा करके बोला-"उनकी कोई फोटो आपने नहीं खींचनी है ।" अचानक उसका स्वर तनिक कठोर हो गया-"अगर आपने हमारे इस सहयोग का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश की तो मजबूरन हमें भी आपके साथ सख्ती करनी पड़ेगी ।"
विक्रम ने आश्वासन दे दिया कि फिलहाल फोटो खींचने का कोई इरादा उनका नहीं था ।
वे सीढ़ियों द्वारा दूसरी मंजिल पर पहुंचे ।
कारीडोर में तीन हथियारबंद पुलिसमैन मुस्तैदी से खड़े थे ।
सादा लिबास वाला जिस ढंग से उनके बीच से गुजर रहा था उससे जाहिर था कि वह अफसर की हैसियत रखता था ।
वह एक बन्द दरवाजे के सम्मुख जा रुका । जिसक सामने एक पुलिसमैन चहलकदमी कर रहा था ।
तभी दरवाजा खुला और एक डॉक्टर बाहर निकला ।
"कृपया एक मिनट से ज्यादा देर अन्दर मत रुकना ।" वह बोला-"और किसी तरह का जरा-सा भी शोर न होने देना ।" उसने अन्दर मौजूद नर्स को इशारे में कुछ समझाया और उन्हें भीतर जाने का संकेत करके चला गया ।
सादा लिबास वाला बाहर ही रुक गया ।
विक्रम और भरत भीतर दाखिल हुए ।
वहां सिर्फ एक ही पलंग था । उस पर गरदन तक चादर डाले पीठ के बल किरण वर्मा लेटी हुई थी । उसकी आंखें बन्द थीं । सांसों के साथ उठते-गिरते वक्षस्थल के अलावा उसमें जीवन का अन्य कोई चिह्न नहीं था । उसके चेहरे का मेकअप साफ कर दिया गया था ।
विक्रम पहली बार उसे उसके असली रूप में देख रहा था । खून काफी बह जाने के कारण उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था । फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता था कि वह इंतिहाई खूबसूरत थी ।
पलंग के पास विक्रम और भरत की बगल में खड़ी नर्स ने चादर के अन्दर हाथ डालकर किरण वर्मा की नब्ज देखी फिर कलाई छोड़कर सन्तुष्टिपूर्वक पीछे हट गई ।
"यह वाकई गम्भीर रूप से घायल हुई थी ?" विक्रम ने जानना चाहा ।
"इसकी किस्मत अच्छी थी कि सिर्फ क्लीन फ्लैश वून्ड्स ही आए ।" नर्स ने धीमी आवाज में जवाब दिया-"और कोई भी गोली जिस्म के किसी नाजुक हिस्से में नहीं लगी ।"
विक्रम ने मन-ही-मन तनिक राहत महसूस की ।
"अब यह खतरे से बाहर है न ?" उसने पूछा ।
"यह तो डॉक्टर ही बता सकता है ।" नर्स ने कहा-"अब अगर आपको एतराज न हो तो...।" शेष वाक्य अधूरा छोड़कर वह दरवाजे के पास पहुंची और उसे खोल दिया ।
भरत सिन्हा ने भी उसका अनुकरण किया ।
लेकिन बैड के एकदम पास खड़ा और शांत पड़ी किरण वर्मा को ताकता विक्रम एक पल के लिए हिचकिचा गया ।
किरण वर्मा की पलकें तनिक फड़फड़ाई थीं । फिर उसने धीरे-धीरे आंखें खोलकर विक्रम की ओर देखा ।
विक्रम के पास ज्यादा वक्त नहीं था । उसने जो भी करना था, फौरन करना था । अपना परिचय देने के बाद वह सिर्फ इस बात की उम्मीद ही कर सकता था कि उस हालत में भी किरण वर्मा का मस्तिष्क सही ढंग से काम रहा था और वह तेजी से सोचकर सही जवाब ही देगी । विक्रम यह भी अच्छी तरह जानता था कि चेहरे पर मेकअप के कारण उसे पहचाना नहीं जा सकेगा । इसलिए उसे सब एक ही दफा में करना पड़ेगा । और इसका एक ही मुनासिब तरीका था कि किरण वर्मा पर उसी की तरकीब इस्तेमाल की जाए । यह सब उसने पलक झपकने जितनी देर में ही तय कर लिया था ।
फिर विक्रम ने कनखियों से दरवाजे की दिशा में देखा । भरत सिन्हा दरवाजे के पास पहुंचने ही वाला था । उस वक्त वह नर्स और विक्रम के बीच कुछ ऐसी स्थिति में था कि नर्स विक्रम को नहीं देख सकती थी ।
"उस कैपसूल में भरा वो पाउडर क्या चीज थी ?" उसने जरा भी होंठ हिलाए बगैर पूछा-"हेरोइन ?"
एक संक्षिप्त पल के लिए कोई जवाब नहीं मिला । फिर बगैर होंठ हिलाए ही बिस्तर से किरण वर्मा का फुसफुसाहट भरा स्वर उभरा ।
"नहीं ।" उसने जवाब दिया-"पिसी हुई चीनी ।" फिर उसकी आंखें पुन: बन्द हो गईं ।
विक्रम तेजी से दरवाजे की ओर बढ़ गया ।
सादा लिबास वाला, जो उन्हें साथ लेकर आया था, बाहर कारीडोर में खड़ा व्याकुलतापूर्वक इंतजार कर रहा था ।
"तसल्ली हो गई ?" उसने पूछा ।
भरत सिन्हा ने सिर हिलाकर हामी भर दी ।
"तकलीफ के लिए शुक्रिया । लेकिन हमारे लिए यकीनी तौर पर जानना जरूरी था ।"
"लड़की की हालत में सुधार होते ही प्रेस को ऑफिशियली सूचित कर दिया जाएगा । लेकिन इस बीच आप लोग अपनी इस विजिट या इसके आधार पर लगाए जाने वाले अनुमानों को अपने तक ही रखें तो बेहतर होगा ।"
"फिक्र मत करो हम ऐसा ही करेंगे ।" भरत सिन्हा ने कहा और एक बार फिर उसका शुक्रिया अदा करने के बाद विक्रम से बोला-"आओ, चलते हैं ।"
वे दोनों सीढ़ियों की ओर बढ़ गए ।
"बाकी रिपोर्टर्स से भी इस बारे में कुछ मत बताना ।" सादा लिबास वाले ने पीछे से हांक लगाई ।
भरत सिन्हा ने हाथ हिलाकर उसे आश्वासन दे दिया ।
वे सीढ़ियों द्वारा नीचे पहुंचे और बाकी रिपोर्टर्स की निगाहों से बचते हुए हास्पिटल की इमारत से बाहर आ गए ।
वे पाकिंग लॉट की ओर जा रहे थे, जहां भरत सिन्हा की मोटर साईकिल खड़ी थी ।
"सुनो ।" अचानक विक्रम उसकी बांह थामकर उसे रोकता हुआ बोला-"इस मामले में कोई घपला है । पुलिस ने जरूर कोई सनसनीखेज जानकारी हासिल कर ली है । तुम्हें याद है, उस सादा लिबास वाले ने शुरू में क्या कहा था ?"
"रेस्टोरेंट के बाहर हुए कांड के बारे में ?"
"हां ।"
"तो फिर क्या किया जाए ?"
"पता लगाना चाहिए ।" विक्रम ने कहा-"और मौजूदा हालात को देखते हुए यह काम तुम्हीं कर सकते हो ।"
"ठीक है, तुम यही ठहरो । मैं पुलिस विभाग में अपने कांटेक्ट्स को ट्राई करता हूं ।"
भरत सिन्हा पलटकर वापस हास्पिटल की इमारत में चला गया ।
विक्रम इंतजार करने लगा ।
आठ-दस मिनट बाद भरत सिन्हा वापस लौटा । उसके चेहरे पर गम्भीरता के भाव थे । आंखें चिन्तापूर्ण मुद्रा में सिकुड़ी हुई थीं । और वह बड़े ही नर्वस भाव से सिगरेट फूंक रहा था ।
"क्या रहा ?" विक्रम ने पूछा ।
"इस सवाल का सही जवाब तुम्हीं दे सकते हो, विक्रम !"
"कैसे ?"
"किरण वर्मा वाकई इन्टेलीजेंस ब्यूरो की फील्ड एजेंट है ।"
"यह तो तुम पहले भी बता चुके हो ।"
"उस वक्त तक मैं यकीनी तौरपर नहीं जानता था ।"
"पुलिस डिपार्टमेंट में अपने कांटेक्ट्स से सिर्फ यही पूछने गए थे ?"
उसने अपने सिगरेट का अवशेष नीचे फेंककर बूट के तले से कुचल दिया ।
"नहीं । दरअसल पुलिस को जो जानकारी हासिल हुई है वो सचमुच चौंकाने वाली है ।" वह बोला-"किरण वर्मा के जिस्म से जो गोलियां डॉक्टरों ने निकाली हैं । बैलास्टिक एक्सपर्ट द्वारा उनकी जांच की जा चुकी है । वे गोलियां न तो पुलिस के रिवॉल्वरों से चलाई गई थीं और न ही जहूर आलम या उसके आदमियों की पिस्तौलों से । एक और भी अजीब बात यह है कि जहूर आलम, कांती और मोती भी उन्हीं हैंडगन्स से चली गोलियों के शिकार हुए थे ।"
"वे गोलियां किसने चलाई थीं ?"
भरत सिन्हा ने कड़ी निगाहों से उसे घूरा ।
"इसी का जवाब तो तुमने देना है ।"
"मैं सिर्फ अनुमान लगा सकता हूं ।"
"लगाओ ।"
"जहूर आलम और उसके आदमी रेस्टोरेंट के बाहर घात लगाए मेरा इंतजार कर रहे थे । और जो लोग किरण वर्मा का पीछा कर रहे थे, वे भी वाहर ही कहीं सम्भवतया आड़ में रहकर घात लगाए उसका इंतजार कर रहे थे । फिर जब वह बाहर निकली तो उन लोगों ने फायरिंग आरम्भ कर दी । आफताब आलम के आदमी इस सबसे पूरी तरह अनजान थे । लेकिन उन्हें मजबूरन फंसना पड़ गया । उन्होंने समझा कि उस फायरिंग का मुझसे ताल्लुक था और इस तरह उन्हें डॉज देकर मैं रेस्टोरेंट से निकल भागना चाहता था । नतीजतन उन्होंने भी गोलियां चलानी शुरू कर दी । मगर दूसरे फायरकर्ताओं का मुकाबला वे नहीं कर सके और उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा । फिर चमनलाल और इकबाल रेस्टोरेंट से बाहर निकले और उन्होंने बाकी गैंग को ठिकाने लगा दिया । इसी दौरान, किरण वर्मा के पीछे लगे लोगों ने उसे नीचे गिरते देख लिया था । और वे यह सोचकर, कि अपने शिकार को ठिकाने लगा चुके थे, वहां से भाग गए । लेकिन इस तमाम सिलसिले को पुलिस इसी नजरिए से देखती रही कि आफताब आलम के आदमियों ने मेरी जान लेने की कोशिश की थी । इसके अलावा दूसरी बात उन्हें सूझ ही नहीं सकी ।"
"अब ऐसा नहीं है ।"
"तो फिर अब कौन-सा तीर वे चलाने वाले हैं ?"
"अभी वे कुछ नहीं कर सकते ।"
"क्यों ?"
"इसलिए कि किरण वर्मा की वजह से उनकी गाड़ी अटक गई है । जब तक वह कुछ बताने काबिल नहीं हो जाती, पुलिस कुछ नहीं कर पाएगी । उसने सारे मामले को बुरी तरह उलझा दिया है । मगर फिलहाल दो ही बातें ऐसी हैं जिन पर सारा दारोमदार है ।"
"क्या ?"
"किरण वर्मा जिन्दा है और तुम न सिर्फ जिन्दा हो बल्कि आजाद भी हो ।"
"लेकिन तुम तो मेरी अबीच्युरी पहले ही लिखवा चुके हो ?"
"अभी नहीं । अलबत्ता सोच जरूर रहा हूं ।" कहकर भरत सिन्हा ने पूछा-"बाई दी वे, अब तुम्हारा क्या प्रोग्राम है ?"
"सॉरी, यह तुम्हें नहीं बता सकता ।"
"सम्पर्क तो बनाए रखोगे ?"
"कोशिश करूंगा ।" कहकर विक्रम ने कैमरा कन्धे से उतारकर उसे थमाया और उधर बढ़ गया जहां दो ऑटोरिक्शा खाली खड़े थे । और उनके ड्राईवर सवारियां मिलने का इंतजार कर रहे थे ।
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