वह कमसिन, सुन्दर और मासूम औरत, जो अभी-अभी बूढ़े गुरु के मेकअप में थी... और जिसने अभी... अभी नकली दाढ़ी-मूंछ और सिर के सफेद बाल अपने चेहरे से हटाकर हाथ में ले लिये थे—–— अब वह बेहोश माधोसिंह को लखलखा सुंघाकर होश में लाने की चेष्टा कर रही थी ।
माधोसिंह को होश आया तो वह अपने सामने उस औरत को देखकर एकदम उठकर खड़ा हुआ और बोला — “अरे ! मायादेवी आप ?”
— " हां... हम ही हैं मूर्ख।" मायादेवी नामक वह स्त्री बोली – “तुम क्या खाक ऐयारी करते हो...मैं ना होती तो तुम आज फंस गए थे।"
-“लेकिन आप...!" माधोसिंह को इस चमत्कार पर गहनतम आश्चर्य हो रहा था ।
- "हां... मैं गौरवसिंह और वन्दना के गुरु, गुरुवचनसिंह के रूप में यहां थी और मैंने गौरवसिंह बने गणेशदत्त को खूबसूरत धोखा दिया है । "
-“ओह... !" माधोसिंह समझकर बोला— “आपने तो कमाल कर दिया ।
– “यह समय बातों में गंवाने का नहीं है।" मायादेवी
बोली – "मेरी बात कान लगाकर सुनो और तुरन्त ही अमल करो।"
इसके बाद मायादेवी ने माधोसिंह के कान में कुछ कहा। माधोसिंह स्वीकृति के अन्दाज में गरदन हिलाता रहा । हम नहीं कह सकते कि मायादेवी ने उसके कान में क्या कहा क्योंकि हम स्वयं भी नहीं सुन पाए । खैर... देखा जाएगा।
वो... देखो, मायादेवी की बात सुनकर माधोसिंह जंगल में एक तरफ बढ़ गया है। कदाचित कहीं जा रहा है।
क्यों पाठको...क्या राय है ? किसके पीछे चलते हो ? माधोसिंह के अथवा मायादेवी की कार्यवाही देखना चाहते हो ?
हम जानते हैं कि हमारे साथ कुछ मनचले पाठक भी हैं।
हर हालत में वे मायादेवी के पीछे ही जाने का निर्णय लेंगे। वो देखें... मायादेवी भी एक तरफ को चल दी है। आइए... इसके पीछे चलकर हम इसकी कार्यवाही देखते हैं। मायादेवी जंगल में बढ़ती जा रही है । उसकी चाल में काफी तेजी है ।
उस समय सूर्यदेव आकाश पर काफी ऊपर आ चुके हैं—जब मायादेवी उसी खण्डहर में प्रविष्ट होती है जिसमें कभी बलवंत को बख्तावरसिंह के लड़के गुलबदनसिंह ने कैद कर रखा था। इस खण्डहर की भौगोलिक स्थिति हम पहले लिख आए हैं। अतः अब व्यर्थ ही उसे दोहराकर हम नीरस बातों में नहीं उलझना चाहते। यहां पर हम केवल इतना लिखेंगे कि मायादेवी कमन्द लगाकर उस कोठरी की छत पर पहुंच गई और उसने भी छत के दाएं कोने में खड़ी लोहे की छोटी-सी गुड़िया को घुमाया।
छत में रास्ता बन गया ।
मायादेवी ने नीचे कोठरी में झांककर देखा —–— किन्तु उसे कुछ भी नजर नहीं आया। रास्ता इतना बड़ा था कि एक बार में केवल एक ही आदमी इसमें से नीचे कूद सकता था। चारों ओर से बन्द उस कोठरी में इस मोखले से दिन के समय भी इतना प्रकाश नहीं पहुंच रहा था कि ऊपर से पूरी कोठरी को भली प्रकार से देखा जा सकता । मायादेवी बेखटके कोठरी में कूद गई।
नीचे पहुंचने के कुछ देर बाद उसकी आंखें कोठरी की स्थिति देखने की अभ्यस्त हो पाईं।
यह देखकर मायादेवी आश्चर्यचकित रह गई कि कोठरी में कोई कैदी तो क्या प्राणी के नाम पर वहां चिड़िया का बच्चा भी नहीं था । मायादेवी ने घूम-घूमकर सारी कोठरी भली प्रकार से देखी। हां एक तरफ वे जंजीरें तो अवश्य पड़ी थीं, जिनमें बलवंतसिंह बंधा होना चाहिए था। मायादेवी उन्हीं जंजीरों को देखती देखती कुछ सोच रही थी कि एकाएक मायादेवी की दृष्टि जंजीर के पास पड़े कागज के एक पुर्जे पर पड़ी। उसने आगे बढ़कर वह कागज उठा लिया। कागज तह किया हुआ था...उसने जल्दी से उसकी सारी तहें खोलीं, लिखा था :
मायादेवी,
हमें लगता है कि तुम खुद को ही सबसे बड़ी ऐयार समझती हो । हम तुम्हें बता दें कि यह तुम्हारे दिल की बहुत बड़ी भूल है, बेगम बेनजूर बेशक तुम्हें अव्वल दर्जे की ऐयार मानती है, लेकिन हमारे लिए तुम ऐसी हो जैसे एक भोली-भाली लड़की । बेशक तुमने गुरुवचनसिंह बनकर माधोसिंह को खूबसूरत धोखा दिया है ―― लेकिन हमारी नजर में यह कोई काम नहीं है। माधोसिंह अभी ऐयारी सीख रहा है... पूरी तरह ऐयार नहीं है। उसे धोखा देना कोई खास कारीगरी का काम नहीं है। अगर उसके स्थान पर कोई चतुर, चालाक और बुद्धिमान ऐयार होता तो उसी समय समझ जाता कि तुम गुरुवचन नहीं, बल्कि कोई ऐयार हो—जब तुमने उसे अर्थात् गणेशदत्त को केवलसिंह समझा । गुरुवचनसिंह के सारे ऐयार अच्छी तरह जानते हैं कि गुरुवचनसिंह कभी इस प्रकार की नादानी-भरी भूल नहीं कर सकते। एक बेवकूफी माधोसिंह ने ये की कि तुम्हें बोलने का अवसर दिए बिना ही वह खुद अपने साथ घटित घटनाओं को बताता चला गया । तुमने मूर्ख को मूर्ख बनाया है, अतः कोई इनाम का काम नहीं किया है। अब कोई खास काम करके दिखाओ तो हम तुम्हारी ऐयारी को मानें, लेकिन एक बात के प्रति हम तुम्हें सावधान कर देना चाहते हैं — और वह यह कि तुमने जिस आदमी के रूप में माधोसिंह को धोखा दिया है, यानी गुरुवचनसिंह को तो तुम भी अच्छी तरह जानती होंगी। वे हम-तुम जैसे हजारों ऐयारों के गुरु हैं। उनके मुकाबले का ऐयार आज तक कोई देखने में नहीं आया। हम समझते हैं कि गुरुवचनसिंह तुम्हें ऐयारी का जवाब ऐयारी से अवश्य देंगे... और ये भी तुम्हें मालूम होगा कि गुरुवचनसिंह की ऐयारी में फंसा व्यक्ति प्यास लगने पर भी पानी नहीं मांगता । तुम यहां से बलवंतसिंह को प्राप्त करना चाहती थीं, लेकिन अब देखो यहां तुमने कितना खूबसूरत धोखा खाया । बलवंतसिंह ही तो एक ऐसा आदमी है, जिसे ये पता है कि मुकरन्द कहां है और मैं समझता हूं कि इस समय हर ऐयार मुकरन्द की तलाश में है, क्योंकि जिसे मुकरन्द मिल गया... | अच्छा, अब ऐयारी के किसी भी मोड़ पर अवश्य मिलेंगे ।
--काला चोर
मायादेवी ने पूरा पत्र पढ़ लिया और फिर कुछ सोचने लगी। कदाचित् वह यह सोचने का प्रयत्न कर रही थी कि आखिर ये काला चोर कौन हो सकता है ? यह तो वह नहीं सोच पाई कि ये कौन हो सकता है, अलबत्ता यह अवश्य सोच लिया कि यह जो कोई भी है, शीघ्र ही पुनः मुलाकात होगी, क्योंकि इस पत्र में उसे ऐयारी के लिए खास चुनौती दी गई थी। उसने पत्र की तह करके अपने बटुए में रख लिया। उस कोठरी से कमंद द्वारा बाहर आई और गुड़िया द्वारा पुनः छत पर बना रास्ता बंद कर दिया। अब वह जंगल में से होती हुई भरतपुर की तरफ बढ़ गई । भरतपुर से बाहर ही उसने अपने बटुए की मदद से अपना चेहरा बदला और उसने अपना भेष किसी मर्दाने व्यापारी जैसा बना लिया। इसके बाद वह भरतपुर में दाखिल हो गई । भरतपुर में मुख्य विशाल द्वार पर उसे किसी ने रोकने की कोशिश नहीं की। बस्ती और बाजारों में से गुजरती हुई वह जिस महल में पहुंची, उस समय सूर्यदेव अस्ताचल में डूबते हुए विदाई बिगुल बजा रहे थे । वह महल के द्वार पर पहुंची।
महल के द्वार पर अनेक सिपाही और चोबदार पहरा दे रहे थे।
-"महाराज दलीपसिंह तक हमारा पैगाम ले जाओ—कहना कि एक व्यापारी खास शिकायत लेकर हाजिर हुआ है।"
- "इस समय महाराज का आम दरबार लगा है।" एक चोबदार तुम ने कहा – “इस समय कोई रोक-टोक नहीं है। जो शिकायत है, महाराज से कह सकते हो। हमारे साथ आओ।"
इतना कहकर एक चोबदार उसे महल के अन्दर ले गया। कुछ ही देर में मायादेवी दलीपसिंह के दरबार में थी। सबसे ऊंचे सोने से जड़े सिंहासनों पर राजा दलीपसिंह बैठे थे। उनके इर्द-गिर्द सम्मानित सिंहासन पर दलीपसिंह के खास-खास आदमी, जैसे ऐयार, ज्योतिषी और विशेष सलाहकार बैठे हुए थे ! जनता नीचे धरती पर बिछे फर्श पर बैठी थी। एक-एक करके सभी दलीपसिंह से अपनी शिकायतें कह रहे थे । मायादेवी भी चुपचाप जहां स्थान मिला, बैठ गई।
तब, जबकि उसका नम्बर आया, उसने सम्मान के साथ कहा – “महाराज मेरी शिकायत तखलिये ( अकेले) में कहने योग्य है । फिलहाल मेरी यही विनती है कि जब सब चले जाएं तो मेरी शिकायत पूछी जाए । " यह कहते हुए उसने एक दृष्टि दलीपसिंह की सबसे समीप वाली कुर्सी पर बैठे ऐयार बलवंतसिंह पर डाली थी। स्वीकार कर ली ।
राजा दलीपसिंह ने उसकी बात उस समय रात का प्रथम पहर आरम्भ हो गया था, जब प्रजा विदा हो गई और वहां केवल सिपाही व ऐयार आदि रह गए ।
-“अब तुम अपनी शिकायत हमसे कह सकते हो ।”
—“मेरा मतलब पूर्णतया तखलिये से था महाराज | " मायादेवी ने मर्दाने स्वर में कहा—“बात कुछ ऐसी है कि केवल आप ही को बताई जा सकती है। कृपा करके आप एक सायत (क्षण) के लिए मुझे अपने विशेष कक्ष में ले चलें । "
—"बिल्कुल नहीं । " एकदम बलवंतसिंह ने विरोध किया— "जो कहना है सबके सामने कहो महाराज, यह दुश्मनों की ऐयारी भी हो सकती है।”
-"हमें तो ऐसा नहीं लगता ।" दलीपसिंह ने कहा – “और अगर वास्तव में ये आदमी ऐयार है तो यहां दरबार के अन्दर आप सब लोगों के बीच ऐयारी करके जाएगा कहां हम इसकी बात सुन लेने में किसी प्रकार का हर्ज नहीं समझते।"
फिर किसका साहस था कि राजा दलीपसिंह की इच्छा का विरोध करता ।
अपने विशेष कक्ष में ले जाकर राजा दलीपसिंह ने पूछा – “कहो, क्या कहते हो ?”
–“महाराज, मेरा नाम बनारसीदास है। मैं आपके ही राज्य का व्यापारी हूं मैं जंगल से गुजर रहा था कि मुझे ऐयार बलवंतसिंह दिखा। मैं उस समय दूर ही था, जब मैंने बलवंतसिंह को गुलबदनसिंह से बातें करते देखा । ”
— "गुलबदनसिंह और बलवंतसिंह साथ-साथ !" दलीपसिंह चौंककर बोले – “ये तुम क्या कह रहे हो ?”
– “आप मेरा यकीन कीजिए महाराज, मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं।” मायादेवी ने उसी पुरुष स्वर में कहा – “मैं भी तो यही देखकर चौंका था कि हमारे महाराज का ऐयार गौरवसिंह के गुरु, गुरुवचनसिंह के साथ कैसे हैं—अतः मैंने भी सोचा कि आज क्यों न मैं भी महाराज के लिए ऐयारी का काम करूं ? मैंने खुद एक पेड़ के तने के पीछे छुपकर उन दोनों की बातें सुनीं, उनकी बातें सुनकर मुझे पता लगा कि वास्तव में ये आदमी जो इस समय दरबार में है, असली बलवंतसिंह नहीं है, बल्कि हमारा ऐयार असली बलवंतसिंह तो कहीं कैद में है और यह गौरवसिंह का ऐयार गणेशदत्त यहां बलवंतसिंह की सूरत बनाकर आया है।"
—"ये तुम क्या कह रहे हो ?” बुरी तरह चौंका दलीपसिंह।
–"मैं बिल्कुल सत्य फरमा रहा हूं हुजूर ।” मायादेवी ने किसी साधारण व्यापारी की भांति ही सहमकर कहा।
-"तुम्हारे पास कुछ सुबूत है ?" दलीपसिंह ने उसे घूरते हुए पूछा ।
"सुबूत !" वह इस प्रकार बोली, जैसे सोचने का प्रयास कर रही हो, फिर जैसे एकदम याद आया हो — “अरे... हां, याद आ गया !"
-“बोलो।'
"मेरे ख्याल से गौरवसिंह इन दिनों आपके यहां कैद है।" उसने कहा ।
— "गौरवसिंह का हमारी कैद में रहने से इस बात का क्या सम्बन्ध ?” दलीपसिंह ने कठोर स्वर में पूछा।
-"कृपया आप मुझे बता दीजिए — गौरवसिंह इन दिनों आपकी कैद में है या नहीं ?”
—“हां है । "
—" तो अब ये सोचिए कि यह बात हमें कैसे पता लगी ?”
–“बोलो ?" "गुरुवचनसिंह और नकली बलवंतसिंह की बातचीत से । " मायादेवी ने कहा – “अब आप कृपा करके बिना बीच-बीच में रोक-टोक डाले मेरी वह सारी जानकारी सुन लीजिए जो मुझे पता है । यह मैं पहले ही बता दूं कि मुझे यह जानकारी उन दोनों की बातचीत से ही हुई है। मुझे पता लगा कि मुकरन्द नाम की कोई चीज है, जिसे आसपास के सब राजा और गौरवसिंह इत्यादि भी प्राप्त करना चाहते हैं। वह कोई बहुत ही महत्त्वपूर्ण वस्तु है, क्योंकि आप खुद भी उसकी तलाश में हैं। लेकिन यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि वह वस्तु आपके खास ऐयार बलवंतसिंह पर है और वह आपको भी नहीं बताता कि मुकरन्द उसके पास है। कदाचित वह अकेला ही उससे कुछ लाभ उठाना चाहता था कि किसी बख्तावरसिंह ऐयार को यह मालूम हो गया कि मुकरन्द बलवन्तसिंह के पास है। उसने असली बलवन्तसिंह को गिरफ्तार कर लिया और बख्तावरसिंह ने अपने लड़के गुलबदनसिंह को यहां बलवंतसिंह बनाकर भेज दिया। एक दिन वह यहां रहा — उधर असली बलवंतसिंह से मुकरन्द का पता पूछा जा रहा था, लेकिन बलवंतसिंह किसी भी प्रकार बता नहीं रहा था। बख्तावर को यह सन्देह था कि मुकरन्द बलवंतसिंह ने महल में ही कहीं छुपा रखी होगी, अतः उसी की खोज में उसका लड़का गुलबदनसिंह यहां बलवंतसिंह बनकर रहा । पिछली रात यहां मुकरन्द चुराने गौरवसिंह आया होगा । "
– "हां आया था, लेकिन बलवंतसिंह ने उसे गिरफ्तार कर लिया था।"
-" और जबकि असलियत ये है कि न तो गिरफ्तार होने वाला गौरवसिंह ही असली था और न ही गिरफ्तार करने वाला बलवंतसिंह असली था । "
-"क्या मतलब ?" एक बार पुनः चौंक पड़े दलीपसिंह —“गौरवसिंह भी असली नहीं था ?”
—“जी हां, गिरफ्तार करने वाला बख्तावरसिंह का लड़का
गुलबदनसिंह था और गौरवसिंह के रूप में गिरफ्तार होने वाला गौरवसिंह का ऐयार केवलसिंह है। आपके चारों ओर एक जबरदस्त षड्यंत्र रचा जा रहा है । "
"तुम्हारा मतलब है कि इस समय महल में जो बलवंतसिंह है वह गुलबदनसिंह है ?"
–“जी नहीं । " मायादेवी ने उसी प्रकार का अभिनय करते हुए कहा — "गुलबदन को गुरुवचनसिंह ने गिरफ्तार कर लिया है और उसके स्थान पर एक ऐयार गणेशदत्त को बलवंत बना दिया है, ताकि वह आज रात को महल से केवलसिंह को निकालकर ले जाए, क्योंकि वे लोग आप पर ये रहस्य प्रकट नहीं होने देना चाहते कि वह गौरवसिंह नहीं केवलसिंह है... दूसरी तरफ आज रात ये दोनों महल में मुकरन्द भी खोजने का प्रयास करेंगे । आपको यह भी बता देना मैं अपना धर्म समझता हूं कि इस समय असली बलवंतसिंह भी गुरुवचनसिंह की कैद में है। "
-“अगर तुम्हारी ये सब बातें झूठ हुईं ?" दलीपसिंह ने उसे घूरते हुए कहा ।
-" तो आप जो सजा दें... मुझे मंजूर होगी ।" मायादेवी ने कहा ।
“आओ हमारे साथ | " इस प्रकार दलीपसिंह उसे लेकर पुनः दरबार में आ गए। उनके सभी ऐयार और मुलाजिम व्यग्रता से उनके बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। बाहर आते ही दलीपसिंह ने सबसे गहरी दृष्टि बलवंतसिंह के चेहरे पर डाली।
-“बलवंतसिंह को गिरफ्तार कर लिया जाए।" उन्होंने बुलन्द आवाज में सिपाहियों को हुक्म दिया । —
बलवंतसिंह अभी कुछ समझ भी न पाया था कि उसे चारों ओर से सिपाहियों ने घेर लिया ।
–“मैं इसका सबब पूछ सकता हूं महाराज ?" बलवंत बिना विचलित हुए बुलन्द स्वर में बोला ।
— "हम जान चुके हैं कि तुम गौरवसिंह के ऐयार गणेशदत्त हो । असली बलवंत तुम्हारी कैद में है । ”
– "मैं समझता हूं कि यह सब आपसे इसने कहा है।" बलवंतसिंह मायादेवी को घूरते हुए बोला ।
"बेशक !"
–“मैं पहले ही कहता था महाराज कि ये आदमी साधारण व्यापारी नहीं, बल्कि दुश्मनों का ऐयार है, जो व्यापारी का भेष बनाकर यहां अपने किसी खास मकसद से आया है। यह आपके और हमारे बीच सन्देह की दीवार खड़ी करके अपना कार्य सिद्ध करना चाहता है।"
- " तुम अपनी बेगुनाही किस प्रकार साबित कर सकते हो ?” दलीपसिंह ने कहा ।
– इसका और हमारा दोनों का चेहरा धुलवाया जाए, जिस चेहरे पर मेक-अप होगा सामने आ जाएगा । "
अभी दलीपसिंह कुछ कहना ही चाहते थे कि एक आवाज उभरी — "ठहरो... दलीपसिंह के शासन में यह कैसा अनर्थ हो रहा है?"
सबने पलटकर उस तरफ देखा – एक नकाबपोश अन्दर दाखिल हो रहा था । सब उसे देखते ही चौंके और सोचने लगे कि यह कौन है जो दाल-भात में मूसरचन्द बनकर प्रकट हुआ... आखिर दलीपसिंह ने पूछ ही लिया — "कौन हो तुम ?"
- "काला चोर ।" उसने जवाब दिया !
मायादेवी का पूरा जिस्म कांप उठा
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