प्रमोद आत्माराम के साथ ड्राइंगरूम में आ गया ।


आत्माराम निराश दिखाई दे रहा था ।


'अच्छा, साहब ।" - वह बोला "तकलीफ माफ । लेकिन क्या करें, पुलिस की नौकरी ही ऐसी है। आपके फ्लैट की तलाशी लेने का इरादा करते ही जो पहला खयाल मेरे मन में आया वह यही था कि एक पुलिस अफसर की ड्यूटी भी कितनी अप्रिय होती है, कितने अप्रिय काम करने पड़ते हैं उसे लेकिन क्या करें साहब, नौकरी तो करनी ही है |"


"अब आप सन्तुष्ट हैं ?"


"जी हां । बिल्कुल मेरी किसी बात का बुरा मत मानिएगा।”


"नहीं, नहीं । मैं भला बुरा क्यों मानूंगा । आप तो अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं । आपकी जगह मैं होता तो शायद मैं भी यही करता ।”


"थैंक्यू । थैंक्यू । अब मुझे इजाजत दीजिए | "


“जी हां । "


प्रमोद उसे दरवाजे तक छोड़ने गया ।


फ्लैट के एक अन्य दरवाजे से मायूस सूरत बनाये सो हा बाहर निकली । वह अपने हाथ में एक मेजपोश में बंधी एक कपड़ों की गांठ लटकाये थी जिसमें निश्चय ही उसकी कीमती सैंडिलें, स्टाकिंग्ज वगैरह और सुषमा का कोट था । उस समय वह अपने नाप से कहीं बड़े चीनी ढंग के पुराने स्लीपर पहने थी जो शायद उसे यांग टो ने दिए थे ।


आत्माराम चला गया ।


प्रमोद ने सोचा, अच्छा ही था सो हा आत्माराम के साथ ही बाहर निकली थी । अब अगर कोई सो हा को टोकता तो आत्माराम खुद उसे बता देता कि वह महज एक नौकरानी थी जो प्रमोद के फ्लैट में काम करती थी।


प्रमोद एक खिड़की पर आ खड़ा हुआ ।


उसने सो हा को इमारत से निकलकर एक ओर बढते देखा ।


आत्माराम कुछ क्षण अपनी कार के पास ठिठका खड़ा रहा । फिर उसने सो हा को आवाज दी । सो हा रुकी । आत्माराम उसके समीप पहुंचा । इन्स्पेक्टर ने उसे कुछ कहा, सो हा ने नकारात्मक ढंग से सिर हिलाया, इन्स्पेक्टर फिर कुछ बोला, फिर सो हा झिझकती, पुलिस कार में बैठ गई। आत्माराम भी कार में सवार हुआ। कार सड़क पर दौड़ गई ।


शायद आत्माराम सो हा को लिफ्ट दे रहा था ।


पुलिस कार मार्शल स्ट्रीट के पहले ही मोड़ से बांये घूम गई। 


प्रमोद चिन्तित हो उठा ।


शायद पुलिस इन्स्पेक्टर आत्माराम उतना सीधा नहीं था जितना वह स्वयं को जाहिर करने की कोशिश करता था ।


जिस रास्ते पर पुलिस कार मुड़ी थी, वह चायना टाउन को नहीं जाता था ।


प्रमोद ने अपने सामने राजनगर का नक्शा फैलाया हुआ था और वह यह निर्धारित करने की कोशिश कर रहा था कि अगर जोगेन्द्र की जगह वह गोदाम से भागा होता तो वह क्या करता ।


जिस टैक्सी पर वह सवार था, वह उस समय वहां खड़ी थी जहां पुलिस के अनुसार गोदाम की खिड़की से कूदकर भागे आदमी के कदमों के निशान आकर खत्म हुए थे। उसने टैक्सी ड्राइवर को टैक्सी धीमी रफ्तार से आगे बढाने को कहा ।


एक स्थान पर उसे एक रेस्टोरेन्ट दिखाई दिया । पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि वह रेस्टोरेन्ट नौ-साढे नौ बजे बन्द हो जाता था । लेकिन वेटर ने दो ब्लाक आगे स्थित एक और रेस्टोरेन्ट के बारे में उसे बताया जो रात के बारह एक बजे तक खुला रहता था ।


प्रमोद उस रेस्टोरेन्ट में पहुंचा ।


उसने एक कप कॉफी का ऑर्डर दिया ।


वेटर कॉफी ले आया ।


“सुनो ।” - प्रमोद बोला- "तुम रेस्टोरेन्ट बन्द होने तक यहीं रहते हो ?"


"जी हां । "


“पिछली रात को रेस्टोरेन्ट बन्द होने तक तुम यहां थे?"


“जी हां । "


"कॉफी कितने की है ?"


"डेढ रूपये की ?"


प्रमोद ने एक दस का नोट निकाल कर उसे दिया । "यह लो ।" - वह बोला- "बाकी पैसे तुम रख लो ।” वेटर हैरानी से उसका मुंह देखने लगा । 


" और मेरे एक-दो सवालों का जवाब दो।" 


"जी, फरमाइये ।"


जब जोगेन्द्र सावंत के कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार हुआ था तो अखबार में उसकी तस्वीर छपी थी । प्रमोद ने वह तस्वीर पुराने अखबार में छपी देखी थी । उसी के आधार पर उसने जोगेन्द्र का हुलिया बयान किया और वेटर से पूछा - "कल रात बारह बजे से पहले किसी समय ऐसा कोई आदमी यहां आया था ?"


“जी हां, आया था । उस समय रेस्टोरेन्ट लगभग खाली था इसलिए मुझे वह आदमी खूब याद है। बड़ा घबराया हुआ सा लग रहा था वह... आप क्यों पूछ रहे हैं उसके बारे में ?"


"यूं ही । यहां आकर क्या किया था उसने ?"


"उसने एक कॉफी मंगाई थी और फिर टेलीफोन करने की इच्छा प्रकट की थी। उसने कहीं फोन किया था तो उसे जवाब नहीं मिला था । फिर वह अपनी मेज पर वापिस आकर कॉफी पीने लगा था । कॉफी खत्म करके वह फिर फोन के पास गया था । उसने फिर एक नम्बर डायल किया था।”


"पहले वाला ही ?"


"मेरा खयाल तो यही है । "


"फिर ?"


“उस बार भी उसे उस नम्बर से जवाब नहीं मिला । वह फिर आकर मेज पर बैठ गया । उसने एक और कॉफी मंगाई । कॉफी समाप्त करके वह फिर टेलीफोन पर पहुंचा । इस बार उसने कोई नया नम्बर डायल किया । वहां से उसे तुरन्त उत्तर मिला । उसने थोड़ी देर फोन पर बात की और फिर मेज पर आकर बैठ गया । कोई दस मिनट बाद एक कार बाहर आकर रुकी। कार का हॉर्न बजा । वह आदमी उठा । उसने मेज पर एक पांच का नोट फेंका और लगभग भागता हुआ रेस्टोरेन्ट से बाहर निकला गया ।"


“तुमने कार देखी थी ?"


"जी हां ।”


"कैसी थी कार ? "


"दोरंगी एम्बैसेडर थी । काले और हरे रंग की ।”


"कार का नम्बर ?"


"वह तो मुझे दिखाई नहीं दिया था। मैंने रेस्टोरेन्ट की शीशे की खिड़की में से ही कार देखी थी । कार ऐसी पोजीशन में खड़ी थी कि नम्बर पर निगाह नहीं पड़ सकती थी।"


“कार का ड्राइवर दिखाई दिया था तुम्हें ?"


“जी हां । ड्राइवर की तो एक झलक मिली थी मुझे । कार के भीतर तो अन्धेरा था लेकिन उसी समय विपरीत दिशा से एक मोटरसाइकल वहां पहुंची थी जिसकी हैडलाइट्स की रोशनी एक क्षण के लिए ड्राइवर के चेहरे पर पड़ी थी । साहब, वह कोई नौजवान औरत थी ।"


" हुलिया ?"


"मैं इस हद तक उसे नहीं देख सका था कि हुलिया बयान कर पाऊं ।"


"हूं।"


"एक बात है, साहब ।”


"क्या ?"


"आप बारह बजे से पहले के किसी समय की बात पूछ रहे हैं लेकिन वह आदमी तो कोई साढे दस बजे के करीब यहां आया था ।”


"साढे दस बजे के करीब ?"


"जी हां । और वह पौने ग्यारह तक यहां ठहरा था । मैंने बहुत ठीक से घड़ी देखी थी ।"


"तुम्हें मालूम है उसने नम्बर क्या डायल किया था ?" 


"जी नहीं ।”


"ठीक है। बहुत मेहरबानी तुम्हारी । "


वेटर हट गया ।


प्रमोद कॉफी की चुस्कियां लेता हुआ सोचने लगा ।


जोगेन्द्र वहां बड़ा घबराया हुआ पहुंचा था। इसका मतलब था कि वह गोदाम से भागकर सीधा वहां पहुंचा था, वह पुलिस की तफ्तीश के नतीजे से मेल नहीं खाता था । इसका मतलब था कि अगर वह दोरंगी एम्बैसेडर वाली महिला के साथ काफी अरसा रहा था तो उसकी गवाही यह सिद्ध कर सकती थी कि जीवन गुप्ता के कत्ल के समय जोगेन्द्र उसके साथ था ।


लेकिन वह महिला कौन हो सकती थी ?


सुषमा तो वह हो नहीं सकती थी ।


तो फिर कविता ?


रेस्टोरेन्ट से ही प्रमोद ने कविता को फोन किया ।


"हल्लो ।" - वह उत्तर मिलते ही बोला- " प्रमोद बोल रहा हूं।"


"कहां हो ?" - कविता ने पूछा ।


"तुमसे बहुत दूर ।"


"वह तो हमेशा से ही हो ।"


"मेरा यह मतलब नहीं था । मेरा मतलब है इस वक्त मैं नगर के एकदम दूसरे कोने से बोल रहा हूं।"


"सुषमा मिली ?"


"हां"


"कैसी है ?"


“इस वक्त तो मेरा उससे सम्पर्क नहीं है लेकिन वह जहां है, ठीक है ।"


"ओह !"


"कविता, तुम्हारे पास कार कौन-सी है ?"


"क्यों, क्या बात है ?"


"ऐसे ही पूछ रहा हूं । "


“शेवरलेट । कल देखी तो थी तुमने । तुम्हीं ने ड्राइव की थी।" 


"कोई दोरंगी एम्बैसेडर भी है तुम्हारे पास ? काले और हरे रंग की ?" 


"नहीं । क्यों ?"


“तुम अपनी जानकारी के दायरे में किसी को जानती हो जिसके पास दोरंगी एम्बैसेडर हो ?"


"हां । एक काले और हरे रंग की एम्बैसेडर वत्सला के पास है ।"


"वत्सला कौन ?"


"वत्सला टन्डन । राकेश टन्डन की बीवी ।"


"नौजवान है ?"


"कड़क ।"


“कार उसकी है या उसके पति की ?"


"उसकी । उसके पति के पास अपनी अलग कार है । वह दोरंगी एम्बैसेडर तो सिर्फ वत्सला ही चलाती है । "


"कल तुमने वत्सला से उसकी कार उधार तो नहीं ली थी ?" 


"मैं भला क्यों लेती ? मेरी अपनी कार सही-सलामत है।"


“ओह !”


"तुम क्यों पूछ रहे हो ?"


"कुछ नहीं, यूं ही ।"


"फिर भी ?"


“फिर बताऊंगा । अच्छा, मैं फोन बन्द कर रहा हूं ।"


"सुनो सुनो ।"


"हां ।” 


"यहां कब आओगे ?"


"जल्दी । बहुत जल्दी ।”


प्रमोद ने रिसीवर रख दिया ।


तो जोगेन्द्र को लेने के लिए वहां राकेश टन्डन की बीवी आई थी । और इस मामले में मदद हासिल करने के लिए जोगेन्द्र ने उसे तभी चुना था जब पहले नम्बर से उसे कोई जवाब नहीं मिला था ।


वह वापिस अपनी मेज पर आ बैठा ।


उसने अपनी जेब से अपना बाल प्वायन्ट पैन निकाला


उसकी सहायता से उसने मेज पर पड़े मीनू की पीठ पर एक लगभग एक इंच व्यास का एक वृत्त खींचा, उस वृत्त के भीतर उसने एक और वृत्त खींचा, और भीतर वृत्त के केन्द्र बिन्दु के स्थान पर उसने बाल प्वायन्ट से एक बिन्दु बना दिया । फिर उसने एक गहरी सांस ली और अपनी निगाह उस बिन्दु पर टिका दी । तुरन्त उसकी सारी मानसिक शक्तियां उस बिन्दु पर फोकस हो गई और उसके लिए सिवाय इन बातों के जिन पर वह विचार करना चाहता था, सारे संसार का अस्तित्व समाप्त हो गया।


जोगेन्द्र गोदाम की खिड़की से क्यों कूदा ? क्या इसलिए क्योंकि वहां जीवन गुप्ता पहुंच गया था ? अगर ऐसा था तो इस का मतलब था गुप्ता गोदाम में साढे दस से पहले पहुंचा था । लेकिन उसे तो उसने ग्यारह के बाद फोन किया था ।


और फिर जोगेन्द्रपाल का क्या हुआ ?


वत्सला उसे कहां ले गई ?


जोगेन्द्र फांसी की सजा पाया मुजरिम था । वह फरार था और उस पर एक और कत्ल का अपराधी होने का संदेह किया जा रहा था । ऐसे आदमी की तलाश में तो पुलिस सारे शहर को उधेड़ कर रख सकती थी । ऐसे आदमी को वत्सला ने कहां छुपाया होगा ! एयरपोर्ट पर, बस टर्मिनल पर, रेलवे स्टेशन पर ! नगर से बाहर जाने वाले रास्ते पर तो पुलिस की कड़ी निगरानी होगी इसलिए वह नगर से तो भाग नहीं सकता था । होटल जैसी जगहों पर भी उसके बारे में पुलिस का निर्देश पहले ही पहुंच चुका होगा । तो फिर कहां छुपा होगा जोगेन्द्र ? ।


क्या राकेश टन्डन के घर में ?


यह तो मुमकिन नहीं । अगर जोगेन्द्र को रेस्टोरेन्ट से टन्डन लेने आया होता तो इस बारे में सोचा भी जा सकता था


फिर उसे इस समस्या का एक हल सूझा ।


उसका ध्यान भंग हुआ ।


"साहब ।" - वेटर की घबराई हुई आवाज उसके कानों में पड़ी - "आपकी तबियत तो ठीक है ?"


"हां ।" - प्रमोद ने गहरी सांस ली और सहज स्वर में बोला - "क्यों ?"


"यकायक मुझे यूं लगा था जैसे आपकी आखें पथरा गई हों।"


"मैं ठीक हूं । मैं कुछ सोच रहा था ।”


प्रमोद उठा और रेस्टोरेन्ट से बाहर निकल आया ।


वह टैक्सी पर सवार होकर राकेश टन्डन की कोठी पर पहुंचा ।


कम्पाउन्ड में एक हरे और काले रंग की एम्बैसेडर खड़ी थी । विंड शील्ड कोहरे की नमी से अभी भी धुंधलाई थी । केवल वह स्थान अपेक्षाकृत साफ था जहां पर कार के वाइपर अधवृत्त में चलते रहे थे ।


उसने देखा, सामने ही एक पैट्रोल पम्प था जिस पर सार्वजनिक टेलीफोन का बोर्ड लगा हुआ था ।


प्रमोद फोन बूथ में घुस गया। उसने डायरेक्ट्री में राकेश टण्डन का नम्बर देखा और उसे डायल कर दिया ।


अब अगले कदम की कामयाबी इस बात पर निर्भर करती थी कि फोन का जवाब वत्सला देती ।


दूसरी ओर से किसी ने रिसीवर उठाया । प्रमोद ने जल्दी से कायन बाक्स में सिक्के डाले फिर जानबूझ कर आवाज बिगाड़ कर बोला- "वत्सला ?"


“हां ।" - उत्तर मिला - "कौन ?"


“जोगेन्द्र ।” - प्रमोद अपने स्वर को घबराहट का पुट देता हुआ बोला - "भगवान के लिए फौरन मेरे पास पहुंचो ।”


"क्यों ?"


“बाकी बात यहां आने पर होगी ।"


"लेकिन तुम्हारी आवाज को क्या हुआ है ?"


"आवाज को कुछ नहीं हुआ । टेलीफोन खराब है। वत्सला, प्लीज जल्दी आओ। जहां मेरे लिए इतनी तकलीफ उठाई है, थोड़ी और सही ।"


"लेकिन...


प्रमोद ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।


वह वापिस आकर टैक्सी में बैठ गया ।


कोई पांच मिनट बाद इमारत में से एक सुन्दर महिला निकली और आकर दो रंगी एम्बैसेडर में सवार हो गई। उसने कार को गियर में डाला और उसे बाहर सड़क पर ले आई।


फिर कार तेज रफ्तार से सड़क पर आगे बढ़ गई ।


“उस दोरंगी एम्बैसेडर के पीछे चलो।" - प्रमोद टैक्सी ड्राइवर से बोला ।


टैक्सी ड्राइवर जो अभी तक प्रमोद की अजीबो-गरीब हरकतों का आदी हो चुका था, एम्बैसेडर के पीछे लग गया ।


नगर की कई विभिन्न सड़कों से गुजरती हुई दोरंगी एम्बैसेडर उस घुमावदार सड़क पर पहुंची जो नेपियन हिल के ऊपर तक चढ जाती थी ।


अन्त में एम्बैसेडर एक बंगले के कम्पाउन्ड में दाखिल हो गई ।


प्रमोद ने अपनी टैक्सी सड़क के बाहर रूकवाई और बाहर निकल आया ।


"सुनो" - वह ड्राइवर से बोला - “यहां से थोड़ा और आगे एक पैट्रोल पम्प है । वहां टेलीफोन है । तुम वहां से पुलिस हैडक्वार्टर फोन कर दो और कहो कि प्रमोद ने कहा है कि पुलिस फौरन नेपियन हिल के पांच नम्बर बंगले पर पहुंचे।"


"अच्छा ।" - ड्राइवर बोला ।


"फोन करके तुम वापिस यहीं आ जाना।"


“अच्छा ।”


टैक्सी आगे बढ़ गई । प्रमोद बंगले के कम्पाउन्ड की ओर लपका। वत्सला उस समय बंगले की ओर बढ़ रही थी । “वत्सला !" - प्रमोद ने दबे स्वर में आवाज लगाई । वत्सला ठिठकी । उसने घूमकर देखा ।


प्रमोद लपक कर उसके पास पहुंचा ।


"पुलिस यहां किसी भी क्षण पहुंचने वाली है" - वह फुसफुसाता हुआ बोला- "अपनी खैरियत चाहती हो तो फौरन यहां से खिसक जाओ।"


वत्सला के चेहरे का रंग उड़ गया ।


"तु... तुम... क... कौन हो ?"


"मेरा नाम प्रमोद है । जोगेन्द्र यहीं है न ?”


वत्सला जल्दी-जल्दी नकारात्मक ढंग से सिर हिलाने लगी।


"झूठ मत बोलो । यह कोई झूठ बोलने का वक्त है ?" वत्सला ने जल्दी से हामी भर दी ।


तभी प्रमोद के कानों में सायरन बजने की बड़ी पद्धम सी आवाज पड़ी ।


"फूटो ।" - प्रमोद बोला - "पुलिस आ चुकी है।" "लेकिन जोगेन्द्र..."


"इस वक्त अपनी फिक्र करो।"


वत्सला लपक कर अपनी कार पर सवार हो गई । अगले ही क्षण कार तोप से छूटे गोले की तरह वहां से भागी जा रही थी ।


प्रमोद लपककर बंगले के बरामदे में पहुंचा। उसने दरवाजे पर दस्तक दी ।


"कौन है ?" - भीतर से एक सावधान स्वर सुनाई दिया


"मुझे वत्सला बीबी जी ने भेजा है, साहब ।" - प्रमोद बोला - "कुछ सामान लाया हूं ।”


"ठहरो ।" - आवाज आई।


दरवाजे में कोई एक इन्च चौड़ी झिरी पैदा हुई ।


प्रमोद ने दरवाजे के साथ कन्धा लगाया और पूरी शक्ति से उसे भीतर की ओर ठेला ।


दरवाजा भड़ाक से खुल गया । दरवाजा खोलने वाला छलांग लगाकर दरवाजे से परे हट गया था । अपने उस हल्ले की रवानी में प्रमोद भीतर जाकर पड़ा । वह जब सम्भला तो उसने पाया कि एक 38 कैलीबर की रिवाल्वर उसकी ओर तनी हुई थी ।


“मेरा नाम प्रमोद है ।" - प्रमोद शान्ति से बोला "तुमने मेरे बारे में ओबेराय बहनों से सुना होगा । तुम जोगेन्द्र हो न ?"


“वापिस आ गए तुम ?"


"हां ।”


"मुझ तक कैसे पहुंच गए ?"


"बस पहुंच गया किसी तरीके से । यह लम्बी कहानी है । अभी तुम्हारे पास इसे सुनने का वक्त नहीं ।"


"क्यों ?"


"क्योंकि पुलिस किसी भी क्षण यहां पहुंचने वाली है ।"


"पुलिस को तुम बुलाकर लाए हो ?"


“यही समझ लो । अब तुम्हारी भलाई इसमें है कि बड़ी शराफत से तुम पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दो ।"


"हरगिज नहीं। मैं मर जाना पसन्द करूंगा।"


"मूर्खों जैसी बात मत करो । मेरे पास तुम्हें निरपराध सिद्ध करने के लिए पर्याप्त प्रमाण हैं । तुम यह रिवॉल्वर फेंको, अपने हाथ सिर के ऊपर उठाकर यहां से निकलो और समर्पण के लिए पुलिस के सामने पेश हो जाओ।”


"तुम तो ऐसा कहोगे ही । तुमने मुझे अपने रास्ते से जो हटाना है। बड़े अच्छे मौके पर लौटे विदेश से । पहले तो सुषमा को मंझधार में धक्का देकर भाग गए और अब उसे वापस हासिल करना चाहते हो ?"


"अक्ल से काम लो, जोगेन्द्र । मैं..."


"मैं अक्ल से ही काम ले रहा हूं । इसीलिए तो तुम्हारे वाग्जाल में नहीं फंस रहा हूं।"


तभी कम्पाउन्ड में कई गाड़ियां दाखिल होने की आवाज आई । कुछ क्षण बाद भारी बूटों के जमीन पर पड़ने की आवाज आई।


“जोगेन्द्र, पुलिस बंगले को घेर रही है।" - प्रमोद तीव्र स्वर से बोला - "भगवान के लिए अपनी जिद छोड़ो। इस रिवाल्वर के दम पर पुलिस से भिड़ना आत्महत्या करने जैसा है।"


"मैं आत्महत्या ही करना चाहता हूं। मैं मरना चाहता हूं


तभी दरवाजे पर जोर-जोर से दस्तक होने लगी । साथ ही पुलिस इन्स्पेक्टर आत्माराम की ऊंची आवाज आई"दरवाजा खोलो । जल्दी दरवाजा खोलो ।" -


"इन्स्पेक्टर साहब" - प्रमोद चिल्लाकर बोला - "जोगेन्द्र यहां है ।”


"शट अप ।" - जोगेन्द्र गला फाड़ कर चिल्लाया "वर्ना गोली मार दूंगा ।”


- “जोगेन्द्र" - आत्माराम की आवाज आई "हमें पता लग गया है तुम भीतर हो । फौरन बाहर निकल आओ।"


"आकर ले जाओ मुझे।" - जोगेन्द्र गर्जा - "और जिसे अपनी जान प्यारी हो वह दरवाजे से परे रहे ।"


बाहर शान्ति छा गई ।


कई क्षण सन्नाटा रहा ।


"जोगेन्द्र" - प्रमेाद बोला- "अगर तुमने पुलिस पर गोली चलाई तो यह तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी भूल होगी । उस सूरत में अगर तुम सावंत की हत्या के अपराध से बच भी गए तो भी तुम्हें एक लम्बी सजा जरूर हो जाएगी । "


"बकते रहो।" - जोगेन्द्र नफरत भरे स्वर में बोला ।


"जिस किसी ने भी तुम्हें पुलिस की गिरफ्तारी से रिहा करवाया था, उसने तुम्हारा भारी अहित किया था। उसने तुम्हारी गर्दन में फांसी का..."


एक झनाक की आवाज हुई । एक शीश टूटा, कोई भारी चीज भीतर आकर गिरी और लुढकती हुई कमरे के मध्य में पहुंच गई । फिर एक छोटा सा धमाका हुआ ।


कमरे में धुआं फैलने लगा ।


"यह आंसू गैस का बम है।" - प्रमोद चिल्लाया - "तुम खिड़की से परे रहो वर्ना भून कर रख दिए जाओगे।"


लेकिन जोगेन्द्र ने उसकी चेतावनी की परवाह न की । वह रिवाल्वर ताने खिड़की की दिशा में लपका जैसे खिड़की के पार जो भी आदमी मौजूद हो, वह उसे भून कर रख देना चाहता हो ।


प्रमोद ने उस पर छलांग लगा दी। उसकी दोनों बाहें जोगेन्द्र की कमर के इर्द-गिर्द लिपट गई और वह उसे लिए फर्श पर आ गिरा । गैस अब सारे कमरे में फैल गई थी और प्रमोद की आंखों से आंसू बहने लगे थे। प्रमोद ने एक हाथ से जोगेन्द्र का रिवाल्वर वाला हाथ दबोचा हुआ था और वह बड़ी मजबूती से उसे अपने शरीर के नीचे दबाए हुए था ।


कुछ लोग धुएं को भेदते हुए भीतर घुस आए । किसी ने जोगेन्द्र के हाथ से रिवाल्वर निकाल ली ।


"अरे" - फिर प्रमोद को इन्स्पेक्टर आत्माराम की हैरानी-भरी आवाज सुनाई दी- "यह तो सचमुच ही प्रमोद साहब हैं।"


***