“आगाशे की स्कीम बिल्कुल भी दमदार नहीं है और उसमें लेने के देने पड़ जाने की पूरी संभावना है लेकिन फिर भी मैं उसमें हिस्सा लेने को तैयार हूं क्योंकि मेरे पास वक्त का तोड़ा है । आर या पार जैसा कोई दांव जान का खतरा मोल लेकर भी मैं मौजूदा हालात से खेल सकता हूं।"
"स्कीम की जो खामियां तूने गिनाई, उनके अलावा भी कोई बात तेरे मन में है ।”
"है तो सही ।"
"क्या ?"
"वो चलीस किलोमीटर लम्बी घने जंगल से गुजरती पहाड़ी सड़क जो आगाशे की जानकारी में आई है, पुलिस वाले या मूर्तियों की सिक्योरिटी के लिए जिम्मेदार महकमे वाले क्या उससे बेखबर होंगे ? उन्हें भी तो वो इलाका खतरनाक लग सकता है । ऐसी सूरत में उस इलाके में बख्तरबन्द गाड़ी की स्पैशल प्रोटेक्शन की क्या उनकी कोई कोशिश नहीं होगी !"
"मसलन क्या ?"
" हो सकता है बख्तरबन्द गाड़ी चालीस किलोमीटर का वो फासला आसमान में उड़ते पुलिस या मिलिट्री के हैलीकॉप्टर की देखरेख में तय करे ।"
"
ओह नो !"
"फिर डकैती की बात आम होते ही मूर्तियों या डकैतों की चौतरफा तलाश शुरू हो जाएगी। जगह जगह पुलिस की नाकेबन्दी खड़ी हो जाएगी। ऐसे हालात में मूर्तियां साथ लिये फिरना खुद अपनी मौत को दावत देना होगा ।”
"यू आर राइट।"
"लूट का माल नकद रकम की सूरत में होता तो बात जुदा थी। फिर हम अपना-अपना हिस्सा बांटते और अपनी-अपनी राह लगते । फिर कोई माल के साथ पकड़ा जाता तो उसकी किस्मत, न पकड़ा जाता तो उसकी किस्मत ।"
"यू आर राइट अगेन ।"
"ऊपर से स्कीम की कामयाबी का सारा दारोमदार इस बात पर है कि बख्तरबंद गाड़ी का ड्राइवर और उसके साथी रास्ते में उलटी पड़ी कार को किनारे कराने के लिए गाड़ी से बाहर निकल जाएंगे। असल में उन्होंने ऐसा न किया या इमरजेंसी में कहीं खबर करने का या कहीं से मदद बुला लेने का उनके पास कोई जरिया हुआ तो बिल्कुल ही बेड़ागर्क हो जाएगा।"
"ओह ।"
"ऐंजो, बेलगाम से दिल्ली का उस बख्तरबंद गाड़ी का ये पहला सफर है इसलिए हम नहीं जान सकते कि कब क्या होगा, कैसे होगा ? ये कोई रैगुलर रन होता तो हम उसे स्टडी करके उसकी ऊंच-नीच और दुश्वारियां समझ सकते थे लेकिन मौजूदा हालात में ऐसी कुछ नहीं होने वाला । जबकि ऐसा कुछ भी हो सकता है जिसकी कि आगाशे ने या उसके कजन ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी ।"
"फिर तो ये बहुत डेंजर काम है, बॉस ।"
" और सबसे बड़ी मूर्खता उनकी ये है कि उन मूर्तियों का ग्राहक अभी उन्होंने तलाश करना है । वो दो कामयाब हो भी गए, कहीं किसी नाकेबंदी पर भी उन पर कोई आंच न आई तो अगर मूर्तियों का रोकड़ा खड़ा करने में महीनों लग गए तो वो रोकड़ा मेरे तो किसी काम का न हुआ न ?"
"हां । तेरे को तो टू वीक्स में रोकड़ा मांगता है।”
"फिर आगाशे की बीवी पर मेरा एतबार बहीं बैठ रहा । मुसीबत की जड़ मालूम हो रही है वो मुझे । आगाशे उससे कुछ छुपाता भी नहीं। वो औरत तो खतरे की गंभीर घंटी है । कोई निष्ठावान बीवी तो वो हरगिज नहीं है जो कि अपने पति की सलामती की खातिर ही कोई गलत हरकत करने से बाज आई रहेगी ।”
"
आगाशे उसे संभाल लेगा ।"
"बड़ी अच्छी बात है। लेकिन न संभाल पाया तो जो भुगतना पड़ेगा, अकेला वो ही नहीं भुगतेगा, हम सब भुगतेंगे ।”
"सब ठीक हो जाएगा। मैं गॉड आलमाइटी से खास तेरे वास्ते दुआ करेगा कि सब ठीक हो जाए, टू वीक्स से पहले तेरे को मिलियन रुपीज मिले ताकि तू मुहब्बत में अपनी मंजिल पा सके ।"
"आमीन ।”
"बॉस, मेरे को तो अभी भी विश्वास नहीं आ रहा कि तू केसीनो का वॉल्ट खोला ।"
"खोला भाई, उस नन्ही सी लड़की की वजह से खोला ।” "उसमें तो मिलियंस में रोकड़ा होगा ?"
"मिलियंस मुझे नहीं पता । लेकिन काफी माल था उसमें । सौ सौ और पांच-पांच सौ के नोटों की बेशुमार गड्डियां थीं उसमें ।"
"बॉस उसी में से रोकड़ा पार कर लिया होता ।"
"ऐसा ख्याल बार बार आया था मेरे मन में लेकिन दो वजह से ऐसा न कर सका।"
“क्या दो वजह ?”
"एक तो ये कि मैं वॉल्ट वाले कमरे में अकेला जरूर था लेकिन मुझे पूरा यकीन था कि वहां कहीं न कहीं कोई न कोई मेरे ऊपर निगाह रखे था । इसी अंदेशे की वजह से वॉल्ट में से दस लाख रुपया पार कर देने का हौसला न कर सका । दूसरे, कैसीनो के मालिक ने मार्सेलो ने मुझे बारम्बार ये कहा था कि वो मेरी खिदमत की मुझे मुंहमांगी उजरत देगा ।"
"तो मांगी क्यों नहीं मुंहमांगी उजरत ? वॉल्ट तो तूने खोल दिया था ।"
"मैंने मांगने की कोशिश की थी लेकिन मैं घबराहट में ठीक से कुछ कह न पाया, जो टूटा-फूटा कह पाया, उससे वो कुछ और ही समझा । कमबख्त ने दस हजार रुपये भी मुझे ये जता के दिए कि मैंने लालच में ज्यास्ती रकम बोल दी थी ।"
“दस हजार और ज्यास्ती रकम ? तू साला उसके डाटर का लाइफ बचाया और वो दस लाख को ज्यास्ती ... IN
"बड़े लोग ऐसे ही करते हैं। मतलब होता है तो खूब चिरोरी करते हैं, खुदा से दस हाथ ऊंचा उठा देते हैं। लेकिन मतलब निकलते ही नाशुक्रे हो जाते हैं । औकात जताने लगते हैं।"
"वो तो है । .. बॉस अगर तू वो वॉल्ट ही फिर खोल ले तो ?"
"क्या मतलब ?"
"जब तू उस एक बार खोल सकता है तो दोबारा भी तो खोल सकता है। "
"खोल सकता हूं लेकिन तेरे को क्या मालूम नहीं कि वो कैसीनो चौबीस घंटे चलता है । हर वक्त वहां जुए के शौकीनों की भीड़ रहती है । अब जरा सोच कि उन लोगों में से गुजरकर कैसे वॉल्ट तक पहुंचा जा सकता है और कैसे हासिल माल के साथ उनमें से गुजरकर वापिस लौटा जा सकता है !"
"ओह !" - वो मायूसीभरे स्वर में बोला, वो कुछ क्षण खामोश रहा और फिर बोला- "वॉल्ट में रोकड़े के अलावा और भी कुछ था ?”
“और कुछ क्या ?"
"तू बोल ।” "था तो सही कुछ ।”
"क्या ?"
"सुनेगा तो हैरान हो जाएगा। मैं तो दोपहर से हैरान हो ही रहा हूं।'
“अब कुछ बोलेगा भी ? और क्या था उसमें ?"
“ऐंजो, उसमें किन्नरियों की वैसी ही मूर्तियां थीं जिनका जिक्र हम आगाशे की कोठी पर सुनकर आए हैं।"
"क्या !" - ऐंजो भौचक्का सा बोला ।
"मैं खुद हैरान हूं।"
"सोने की ?"
"खालिस सोने की । चमचम करती हुई । "
"कितनी ?"
" मैंने उंगली लगा लगाकर तो नहीं गिनी थी लेकिन मेरे ख्याल से आठ थीं । "
"आठ ! आगाशे बोलता था कि आठ मूर्तियां गायब थीं लेकिन वो ये भी बोलता था कि वो किसी कलैक्टर के प्राइवेट कलैक्शन में इंडिया में ही मौजूद थीं। यानी कि कैसीनो ओनर मार्सेलो वो कलैक्टर है ।"
"मुझे नहीं मालूम । लेकिन उस वॉल्ट में कम से कम आठ किन्नरियां थीं जो मैंने अपनी आंखों से देखी थी । तब मुझे नहीं मालूम था कि तो क्या थीं लेकिन अब मालूम है ।"
“सान्ता मारिया ! आगाशे पांच मूर्तियां लूटने के लिए इतनी रिस्की स्कीम बनाए बैठा है, अगर उसे मालूम हो जाए कि वैसी आठ पणजी में ही हैं तो उसके तो छक्के छूट जाएंगे।"
"कसीनो वॉल्ट लूटना कोई हंसी खेल नहीं ।"
"पण उसे खोलना हंसी-खेल है । तेरे लिए । तू साबित करके दिखाया ।"
"मूर्तियां निकालना हंसी खेल नहीं । एक एक किलो की आठ मूर्तियों को कोई जेब में डाल के नहीं लाया जा सकता ।"
"वो तो है।" - ऐंजो के स्वर में फिर मायूसी का पुट आ गया “तू आगाशे को उनके बारे में बोलेगा ?"
"देखेंगे। जैसा माहौल होगा, वैसा कदम उठा लेंगे।"
"हूं।"
" अब हमारा प्रोग्राम क्या है ?"
"हम कल अर्ली मार्निंग इधर से चलेंगे। आगाशे आ के नया कुछ बोलेगा तो सुन लेंगे वर्ना बाटली मारकर रैस्ट करेंगे।"
"ठीक है । मार्सेलो ने मेरे को एक स्कॉच विस्की की बोतल दी थी । वो इधर मेरे पास गाड़ी में है । "
" बढ़िया । मैं साला आज स्कॉच पिएगा । अंग्रेज का माफिक । कर्टसी जीतसिंह, आलसो नोन ऐज बद्रीनाथ|"
" और हवाना सिगार । चार दिया मेरे को मार्सेलो ।"
"ग्रेट | ग्रेट | "
"ऐंजो, जो कुछ आगाशे ने हमें बताना है, वो वो आज ही मालूम न कर पाया तो ?"
"तो वो अपने आप हमें पणजी में खबर करेगा । हम इधर ज्यास्ती तो रुक नहीं सकते। कल को तेरे को भी वापिस पणजी में होना मांगता है और मेरे को भी । क्या !”
जीतसिंह ने सहमति से सिर हिलाया ।
दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।
जीतसिंह ने कसमसाकर आंखें खोलीं और वाल क्लॉक पर निगाह डाली । कमरे में एक नाईट लैम्प की वजह से नीमअंधेरा नहीं था जिसमें वो टाइम को बखूबी देख पाया।
साढ़े बारह बजे थे ।
शाम को अपेक्षित समय पर आगाशे वहां नहीं पहुंचा था । तो क्या वो अब आया था ! उसने उठकर अपने कपड़े पहने और दरवाजे के पहलू में बनी शीशे की बन्द खिड़की के करीब पहुंचा । खिड़की के पर्दे को जरा सा हटाकर उसने बाहर झाका ।
दरवाजे पर इला खड़ी थी ।
जीतसिंह के देखते देखते उसने फिर दरवाजे पर दस्तक दी।
जीतसिंह के चेहरे पर गहन वितृष्णा के भाव आए । आधी रात को उसकी वहां आमद की वजह समझ पाना उसके लिये कोई मुश्किल काम नहीं था ।
शुक्रगुजार होने आई हूं। कितने तरीके से तुमने बात संभाल ली थी वरना मेरा पति तो बस हड़कंप ही खड़ा कर देता । कितने समझदार हो तुम ! मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा न कर पाती तो मुझे अफसोस होता । वगैरह वगैरह ।
उसने बिजली का स्विच ऑन किया और दरवाजा खोलने का उपक्रम करने की जगह बीच के दरवाजे पर पहुंचा । उसने उसको एक बार खटखटाया और धक्का देकर खोला ।
“ऐंजो !" - वो तीखे स्वर में बोला- "ऐंजो ! उठ के खड़ा हो और कपड़े पहन । हम अभी पणजी चल रहे हैं । "
फिर दस्तक ।
जीतसिंह बाथरूम में पहुंचा। उसने अपने मुंह सिर पर पानी के छींटे मारे और तौलिया फिराया। फिर वहीं पड़ी कंघी उठाकर वो अपने बालों में फिराने लगा ।
तभी एकाएक बाहर से उसे एक नई हलचल का अहसास हुआ ।
एक कार की ब्रेकें चरचराई, जनाना सिसकारी की आवाज हुई । एक ऊंची मर्दाना आवाज सुनाई दी और फिर दरवाजा यूं जोर जोर से खटखटाया जाने लगा जैसे कोई उसे हथौड़े से पीट रहा हो ।
फिर उसे आगाशे की आवाज सुनाई दी । वो उसे नाम लेकर पुकार रहा था और मुतवातर दरवाजा पीट रहा था ।
जीतसिंह ने दरवाजा खोला ।
आगाशे झपटता हुआ भीतर दाखिल हुआ ।
जीतसिंह ने खुले दरवाजे से बाहर झांका तो उसने इला को अपनी एम्बैसेडर के पहलू से टेक लगाए खड़ा पाया । उस घड़ी उसके चेहरे पर गहरे आतंक के भाव थे ।
आगाशे अभी भी चीख चिल्ला रहा था और पता नहीं क्या वाही तबाही बक रहा था
"शट अप !" - जीतसिंह घुड़ककर बोला ।
आगाशे की बक- झक में अन्तर न आया ।
जीतसिंह ने पांव की ठोकर मारकर दरवाजे को बंद कर दिया और करीब आकर आगाशे के चेहरे पर एक जोरदार घूंसा रसीद किया ।
आगाशे भरभराकर पीछे पलंग पर जाकर गिरा । पीड़ा से डबडबा आई आंखों से वो हकबकाया सा जीतसिंह का मुंह देखने लगा ।
"ऐंजो !" - जीतसिंह उच्च स्वर में बोला- "अभी चलने को तैयार हुआ या नहीं ?"
“चलने को तैयार !" - आगाशे सकपकाया - "कहां चलने को तैयार ? "
"वहां चलने को तैयार जहां से हम आए और जहां से यहां आने की हमने गलती की ।"
"लेकिन" - आगाशे हड़बड़ाया सा उठता हुआ बोला “अभी हममें दोबारा बात कहां हुई है ? तुमने अपने सवालों का जवाब कहां सुना है ?"
"मेरा कोई सवाल नहीं है। मुझे कोई जवाब नहीं चाहिए।"
"लेकिन क्यों ?"
“क्योंकि तुम्हारी स्कीम में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं । "
"क... क्या ! क्या कहा ?"
"वही जो तुमने सुना ।"
"लेकिन.. .लेकिन... ऐसा कैसे हो सकता है ?"
"आराम से घर जा के सोचना ऐसा कैसे हो सकता है... कैसे हो गया है ।"
"अरे, तुम क्या कर रहे हो ? मैं कहता हूं ये महज एक गलतफहमी है । अभी यहां जो कुछ हुआ, महज एक गलतफहमी के तहत हुआ । मैं समझा था कि मेरी बीवी..... "
"एक हर्राफा औरत है जो तुम्हारे काबू में नहीं।"
"लेकिन.... लेकिन इस बात का हमारी स्कीम से क्या वास्ता है ?"
"जब तुम अपनी बीवी पर काबू नहीं पा सकते तो स्कीम पर क्या काबू पाओगे !”
"लेकिन..."
"तुम कामयाब भी हो गए तो तुम्हारी पोल खोलने के लिए ये अकेली औरत ही काफी होगी ! तुम्हारा धर लिया जाना महज वक्त की बात होगा। और गेहूं के साथ घुन की तरह पिसने का मेरा कोई इरादा नहीं ।"
"यार, तुम खामखाह..."
"ऐंजो !"
"आया । आया बॉस ।"
आगाशे को पूरी तरह से नजरअन्दाज कर के जीतसिंह बाहर निकला और अपनी कार के समीप पहुंचा ।
"बाजू हट।" - वो इला से बोला ।
उस हाल मे भी वो इठलाती हुई सीधी हुई ।
" जा रहे हो ?" - वो बोली ।
जीतसिंह ने जबाब देने की कोशिश न की । वो चुपचाप कार में सवार हो गया ।
तभी ऐंजो लपकता हुआ उसके करीब पहुंचा ।
"क्या हुआ ?" - वो हकबकाया सा बोला । टैक्सी में बैठ।" - जीतसिंह बोला- "घर चल के बताऊंगा । अब हिल।"
और कुछ क्षण बाद जीतसिंह की एम्बैसेडर और ऐंजो की टैक्सी मेन रोड पर आगे-पीछे दौड़ी जा रही थीं ।
***
मंगलवार रात को जीतसिंह दुकान बन्द करने की तैयारी कर रहा था कि एक जीप दुकान के ऐन सामने आकर रुकी। जीप पुलिस की थी और उसके वर्दीधारी ड्राइवर की बगल में इंस्पेक्टर गायककड़ बैठा था ।
किसी अज्ञात आशंका से जीतसिंह का दिल जोर से धड़का । वो मुंह बाए अपलक जीप की तरफ देखने लगा।
इंस्पेक्टर जीप में से उतरा और लापरवाही से चलता हुआ दुकान में दाखिल हुआ। उसने अपनी लाल-लाल, आंखों से जीतसिंह को घूरा ।
आशंकित जीतसिंह ने उसका अभिवादन किया ।
"अभी यहीं है ?" - इंस्पेक्टर सख्ती से बोला ।
"ज... जी ?" - जीतसिंह हकलाया ।
"मेरी सलाह पर अमल नहीं किया ?"
"स... सलाह ?"
“याद्दाश्त याददाश्त कमजोर है तेरी ? या नीयत बद है ? मैने तेरे को थाने बुलाकर सलाह दी थी कि जहां से आया है, वहीं वापिस चला जा । तू तो यहीं है अभी ।"
"साहब, मैंने कोई गलत कदम तो नहीं उठाया ।"
"अच्छा !"
"साहब, अब तो उस तिजोरीतोड़ की कहानी खत्म भी हो चुकी है जिसके धोखे में आप मेरे पीछे पड़े थे । छापे में छपा था कि वो तो कोई इमरान मिर्ची था जो पिछले हफ्ते...
"साले ! जुबान लड़ाता है ?"
जीतसिंह सहमकर चुप हो गया ।
"मेरे को धोखा खा जाने वाला बताता है ?"
जीतसिंह खामोश रहा । उसने जोर से थूक निगली ।
इन्स्पेक्टर काइयां निगाहों से उसे घूरता कुछ क्षण उसकी बेचैनी का आनंद लेता रहा और फिर कदरन नरम लहजे से बोला - "वैसे मेरे को खुशी है कि तेरा हुनर मेरे एक वाकिफकार के काम आया ।"
"जी !"
"मार्सेलो । डबल पुल कैसीनो का मालिक, शनिवार रात को जिसके कैसीनो का वॉल्ट तूने खोला था ।”
"क्या कह रहे हैं, हुजूर ? मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया था।”
"
अरे, चोरी की गरज से नहीं, मार्सेलो की खातिर । उसके कहने पर । उसकी लड़की वॉल्ट में बन्द हो गई थी। मैंने उसे तेरा नाम सुझाया था । उसने बुलाया होगा तुझे वॉल्ट खोलने को ।”
"मुझे तो किसी ने नहीं बुलाया था ।"
"किसी ने नहीं । मार्सेलो ने । डबल बुल के प्रोप्राइटर ने ।”
" उसने भी नहीं । जनाब | "
"उसके कहने पर तूने उसके कैसीनो का वॉल्ट नहीं खोला था ?"
"बिल्कुल भी नहीं । मैं तो कभी कैसीनो के करीब भी फटका ।”
"ठीक कह रहा है ?"
"कसम उठवा लीजिए, हुजूर ।"
"तो वॉल्ट कैसे खुला ? किसने खोला ?"
"मुझे क्या मालूम, जनाब ।”
"ठीक है । मैं मार्सेलो से बात करूंगा। लेकिन अगर उसने तेरा नाम लिया तो, साले, इस बात पर तुझे पछताने का भी मौका नहीं मिलेगा कि तूने मेरे से झूठ बोला ।"
जीतसिंह खामोश रहा ।
"मेरी वार्निंग याद है या सलाह की तरह उसे भी भूल गया है ?"
"याद है साहब।" - वो धीरे से बोला ।
"क्या याद है ?"
"मैंने एक भी कदम गलत उठाया तो अन्दर । सींखचों के पीछे ।"
“हां । सालोंसाल । मेरी तेरे पर नजर है । और रहेगी । समझ गया ?"
जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।
"सलाम कर ।"
मन ही मन इन्स्पेक्टर गायकवाड़ की सात पुश्तों को कोसते हुए जीतसिंह ने आदेश का पालन किया ।
इंस्पेक्टर वहां से रुख्सत हो गया ।
- तभी ऐंजो वहां पहुंचा।
"ये तो" वो आशंकित भाव से बोला- "पुलिस की जीप थी, बॉस ।”
"हां।" - जीतसिंह उखड़े खर में बोला- "इंस्पेक्टर गायकवाड़ आया था।"
"खुद एस एच ओ ! क्या मांगता था ?"
“धमकाना मांगता था । दहशत में डालना मांगता था ! चोर बहकाना मांगता था । ताकत दिखाना मांगता था।"
"बॉस, वर्दी का, कुर्सी का पावर हर कोई दिखाता ।"
"हां भई ।" - जीतसिंह गहरी सांस लेकर बोला- "अब बोल तू कैसे आया ! यूं ही या किसी वजह से ?"
"वजह से । खास वजह से । तेरे को मेरे साथ चलने का है।”
" कहां ?"
"वालपोई ।”
"वहां क्या है ?"
"वहां मैं तेरे को किसी से मिलवाने का है।"
"किसलिए ?"
"तेरे काम के लिए और किसलिए !"
"मेरा काम ?”
"अरे, दस लाख मांगता है या नहीं मांगता ?"
“मांगता है।”
"तो चल । टेम खोटी क्यों करता है ?"
जीतसिंह ने दुकान बन्द की और ऐंजो के साथ उसकी टैक्सी में सवार हो गया ।
***
वे वालपोई पहुंचे ।
वहां एक एकमंजिले मकान के सामने ऐंजो ने टैक्सी रोकी । दोनों टैक्सी में से उतरे । ऐंजो ने मकान की कॉलबैल बजाई ।
दरवाजा एक वृद्ध ने खोला । उसका चेहरा लाल भभूका था, बाल सफेद थे और उन्हीं जैसी सफेद फ्रैंचकट दाढी वो रखे था जो कि उसे बहुत जंच रही थी। उसने एक सरसरी निगाह जीतसिंह पर डाली, ऐंजो को देखकर सहमति में सिर हिलाया और दरवाजे से एक ओर हट गया ।
तीनों एक बैठकनुमा कमरे में पहुंचे ।
“ये मिस्टर एडुआर्डो हैं।" - ऐंजो बोला- “और सर, ये बद्रीनाथ है ।”
दोनों ने हाथ मिलाया ।
जीतसिंह को ऐंजो का वृद्ध के साथ इतना अदब से पेश आना बड़ा अजीब लग रहा था । पता नहीं उसमें कोई खास खूबी थी या वो उसकी बुजुर्गी को अदब से नवाज रहा था, उसे सर कह रहा था ।
एडुआर्डो ने बिना किसी से पूछे रम की एक बोतल निकाली और तीन जाम तैयार किए। तीनों ने चियर्स बोला।
"वॉल्ट खोल लिया !" - फिर एकाएक बिना किसी भूमिका के एडुआर्डो बोला ।
जीतसिंह ने हौले से सहमति में सिर हिलाया ।
"दोबारा फिर खोल लोगे ?"
"हां"
"पक्की बात ?"
"हां"
"मैं तुम्हारे आत्मविश्वास की दाद देता हूं। नौजवान आदमी में आत्मविश्वास होना ही चाहिए । खासतौर से जबकि वो हुनरमन्द हो ।”
जीतसिंह खामोश रहा ।
“इस बाबत ऐंजो से मैंने लम्बी गुफ्तगू की है। नौजवान, हम ये काम कर सकते हैं। "
"हम ?" - जीतसिंह की भवें उठीं ।
"सिर्फ हम नहीं । इस काम को अंजाम देने की जो स्कीम मैंने सोची है, उसमें हमें और लोगों की भी जरूरत होगी।"
“स्कीम सोच भी ली है आपने ?"
"हां"
"इस बात को मद्देनजर रखते हुए कि कैसीनो चौबीस घण्टे चलता है और वॉल्ट वाले कमरे तक पहुंचने का इकलौता रास्ता कैसीनो के आफिस से होकर है ? और ऑफिस का रास्ता कैसीनो से होकर है ?"
"उस कमरे में एक विशाल खिड़की भी है जो कि इमारत के पिछवाड़े में खुलती है ।"
"लेकिन वो भीतर से बन्द रहती है। मैंने खुद देखा था ।”
"
अगर वो भीतर से बन्द न हो तो उसके जरिए भीतर घुसा जा सकता है । "
"कैसे ? छत से लटककर ? या नीचे से सीढ़ी लगाकर ?"
"ये दोनों काम मुमकिन नहीं। दोनों तरफ सशस्त्र गार्ड्स का पहरा होता है।"
“तो ?"
मैं कल और आज दो बार कैसीनो का चक्कर लगाकर आया हूं और उसकी दूसरी मंजिल का बड़ी बारीकी से मुआयना करुके आया हूं।"
"अच्छा !"
"इमारत के पिछवाड़े में वॉल्ट वाले कमरे की खिड़की से कोई सौ फुट परे एक खिड़की है जो कि लेडीज टायलेट के पहलू में हैं । उधर लेडीज टायलेट के अलावा और कुछ नहीं है इसलिए जाहिर है कि उधर जो आवाजाही होगी वो लेडीज की ही होगी। उस खिड़की से बाहर कोई एक फुट का प्रोजैक्शन है जो सारी इमारत के गिर्द घूमा हुआ है और इसलिए वॉल्ट के कमरे की खिड़की के नीचे तक भी जाता है । प्रोजैक्शन पर चलकर वॉल्ट के कमरे की खिड़की तक पहुंचा जा सकता है। आजकल मौसम ऐसा है कि नौ बजे के बाद माहौल में धुंध छा जाती है जिसकी वजह से काले कपड़े पहने प्रोजैक्शन पर चलता कोई शख्स न ऊपर छत से दिखाई देगा और न नीचे कम्पाउंड से ।"
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