मुंबई
स्वर्ण भास्कर अपने ऑफिस में बैठा हुआ था कि उसके फोन पर वाइब्रेशन हुई। उसका स्टार संवाददाता समर्थ सिंह लाइन पर था।
“क्या खबर है समर्थ?” स्वर्ण भास्कर ने बिना किसी लाग लपेट के पूछा।
“खबर तो ऐसी है कि जैसे भूचाल आने वाला है।” समर्थ की उत्तेजना से भरी आवाज सुनाई दी।
“मतलब?”
“आज योगराज पासी एक प्रेस-कॉन्फ्रेंस करने जा रहा है। हो सकता है वह सरकार से समर्थन की वापसी की घोषणा कर दे।”
“कितनी देर में?”
“आज रात को उसकी प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग है जिसमें गृहमंत्री भी शायद मौजूद रहेंगे। उसके बाद ही कोई फैसला होगा।”
“ठीक है, इस वक्त कहाँ पर हो तुम?”
“मैं अपनी टीम के साथ प्रधानमंत्री के कार्यालय की तरफ जा रहा हूँ। वहीं से कुछ हलचल का पता लगेगा।”
“ठीक है तुम वहाँ पहुँचो। मैं भी पैनल में आने वालों को देखता हूँ कि आज किसको बुलाना है और कौन बंदा अवेलेबल है।”
“बिल्कुल, आपका मजमा सही जमेगा आज!”
इसके बाद दोनों के बीच संबंध-विच्छेद हो गया।
☸☸☸
प्रधानमंत्री के राजनैतिक सलाहकार गोविंद श्रीवास्तव की गाड़ी बड़ी तेजी से पीएम ऑफिस के बाहर जाकर रुकी। गेट पर संवाददाताओं का हुजूम उमड़ा पड़ा था। जिस बात की आशंका अभिजीत देवल ने जाहिर की थी वो सत्य प्रतीत होती दिखाई दे रही थी। उसकी गाड़ी को देखते ही सुरक्षा अधिकारियों ने रास्ता खुलवाने की पूरी कोशिश की फिर भी उसके ड्राइवर को कुछ समय के लिए रुकना पड़ा। इतनी देर में तो उसकी खिड़की के ऊपर सवालों का सैलाब आ गया।
‘आज की मीटिंग किस विषय में हैं।’
‘क्या सरकार का ‘जन विकास पार्टी’ के साथ गठबंधन टूटने वाला है।’
‘सरकार कितने दिनों तक इन बैसाखियों के सहारे चलेगी।’
‘योगराज पासी से क्या सौदेबाजी होगी।’
‘क्या सरकार पहली सरकारों की तरह ही इस अपहरण के मामले को सुलझाएगी।’
‘अपहरणकर्ताओं की क्या-क्या माँगे हैं।’
‘क्या यह अपहरण गृह मंत्रालय की विफलता नहीं है।’
‘क्या गृहमंत्री से इस्तीफ़ा माँगा जाएगा।’
इन अनगिनत सवालों को सुनकर गोविंद बस शीशे में से एक हल्की सी मुस्कान बिखेरता हुआ उनकी तरफ हाथ हिला कर रह गया। फिर उसकी कार आगे बढ़ चली।
गोविंद के मीटिंग रूम में पहुँचने के कुछ समय बाद गृहमंत्री और योगराज पहुँचे। निर्धारित समय पर प्रधानमंत्री ने कक्ष में प्रवेश किया। पीछे-पीछे उनके साथ ही अभिजीत देवल ने भी एंट्री ली। सब अपने स्थान पर खड़े हो गए। अभिजीत देवल को प्रधानमंत्री के साथ आते देख योगराज के माथे पर बल पड़ गए। अभिवादनों के परस्पर आदान-प्रदान के बाद सबने अपना स्थान ग्रहण किया।
“योगराज जी, आपके पुत्र नीलेश के बारे में जानकर हमें बड़ी चिंता हो रही है। हमारे लिए यह बड़े दुख की बात है कि हमारे एक साथी पर यह संकट की घड़ी आन पड़ी है। आप निश्चिंत रहिए हमारी सरकार कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखेगी। आप अपना मनोबल बनाए रखिए।” पीएम ने सांत्वना से भरे स्वर में कहा।
“जब आपकी इकलौती संतान इस तरह से संगीनों के साये में पहुँच जाए और उसके सामने मौत खड़ी दिखाई दे रही हो तो मनोबल बनाए रखना बड़ा मुश्किल काम है, प्रधानमंत्री महोदय।” योगराज ने हताशा और निराशा से भरे लहजे में कहा।
“आप चिंता मत करिए। यह समस्या हमारी प्राथमिकता है। हमारी ही नहीं पूरे भारतवर्ष की निगाहें अब इस पर लगी हुई हैं। हमें बड़े धैर्य से इस कठिनाई से पार पाना होगा और इस मामले से जुड़ी हर बात पर गौर करना होगा।” पीएम की धीर-गंभीर आवाज कक्ष में गूँजी।
“पीएम साहब, मुझे अपना बेटा हर कीमत पर वापस चाहिए। मैं चाहता हूँ कि इसके लिए लश्कर-ए-जन्नत की जो भी माँग है उसे मान लिया जाना चाहिए। और उनकी जो भी रुपए-पैसे की माँग है उसे भी पूरा किया जाए।”
“इन दोनों में से फिरौती की माँग से हमें कोई गुरेज नहीं, लेकिन उनकी दूसरी माँग जिसमें वह लोग कादिर मुस्तफा को छुड़वाना चाहते हैं, उससे हमारे देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हमारे देश को हमेशा से एक सॉफ्ट स्टेट के रूप में प्रचारित किया गया है। अगर हम उसे रिहा करते हैं तो इस बात पर मुहर लग जाएगी। उसके बारे में हमें बड़ी शांति से सोचना पड़ेगा।”
“मेरे बेटे के मामले में इतना गहन चिंतन करने की कोई जरूरत नहीं है, मिस्टर पीएम। मेरे लिए फिलहाल मेरे बेटे की जिंदगी अहम है। भारत सॉफ्ट स्टेट है या नहीं यह हम दुनिया को बाद में दिखा देंगे। पहले मेरे बेटे नीलेश की चिंता करिए।”
“आपकी बात जायज़ है। मैं जानता हूँ कि आपके लिए यह एक बड़ी विषम परिस्थिति है और हमारे लिए भी। आपको अब व्यक्तिगत स्तर से उठ कर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में सोचना होगा। आप राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं। पूरा देश आपकी तरफ...”
“भाड़ में गयी ऐसी राष्ट्रीय नेतागिरी...। अगर मैंने अपना बेटा ही खो दिया तो मेरे पास क्या रह जाएगा। अगर उसे कुछ हो गया तो वह बस कुछ दिनों की सुर्खियाँ बटोर कर गुमनामी के अँधेरों में डूब जाएगा। किसी को क्या फर्क पड़ता है। मेरी जिंदगी का क्या मकसद रह जाएगा? आखिर मैं जो कर रहा हूँ, वह किस काम का रह जाएगा अगर वह ही नहीं रहा तो?” आवेश में योगराज का गला भर्रा उठा।
“आप को मैं पूरा यकीन दिलाता हूँ कि उसे कुछ भी नहीं होगा। इस मामले के सभी पक्षों को देखकर और राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखते हुए निश्चित रूप से इसे सुलझाया जाएगा।”
“मैं ज्यादा इंतजार नहीं कर सकता, पीएम साहब। मुझे इस मामले में जल्दी एक्शन चाहिए। आप यह मत सोचिए कि मैं अनिश्चितकाल तक आप लोगों का मुँह देखता रहूँगा। मैं आपको चौबीस घंटे का समय देता हूँ। आप लोग मेरे बेटे की रिहाई के बदले कादिर मुस्तफा को छोड़ देने का फैसला जल्दी से करें, नहीं तो मुझे इस सरकार से अपना समर्थन वापस लेना पड़ेगा।”
कुछ देर के लिए वहाँ पर सन्नाटा छा गया। गृहमंत्री ने बेचैनी से अपनी कुर्सी पर पहलू बदला। अभिजीत देवल की कनपटियों पर खून की दस्तक बढ़ गयी। गोविंद श्रीवास्तव पीएम के चेहरे की तरफ देखने लगा। उनका चेहरा भाव शून्य था। हमेशा विराजमान रहने वाली दृढ़ता उनके चेहरे पर सदा की तरह मौजूद थी। पीएम की नजरें अभिजीत देवल पर जाकर टिकी।
“उससे क्या हो जाएगा, योगराज जी? वैसे तो सरकार को कोई आँच नहीं आएगी। इसमें सरकार को बहुमत साबित करने का अवसर मिलेगा और इस काम में बीस-पच्चीस दिन लग जाएँगे। अगर हमारी सरकार को बहुमत मिलता है तो वही परिस्थितियाँ होंगी जो आज हैं। अगर सरकार पर कोई संकट आता है तो फिर विपक्ष को मौका मिलेगा। उन्हें फिर से सरकार का गठन करने में इतना ही समय लगेगा। आप सोच लीजिये, क्या आपके पुत्र के पास जीने का इतना समय बचा होगा! जो लोग उसकी और उसके साथियों की जान का सौदा करना चाहते हैं, क्या उनके पास इतने दिन रुकने का सब्र होगा?” गृहमंत्री ने उस मौन की नीरवता को भंग करते हुए कहा।
योगराज एक दम से सकपकाया। गृहमंत्री की बात सही थी। अगर वो अपना समर्थन वापस ले लेता है तो भी वर्तमान सरकार मनचाहा समय निकाल सकती थी। इससे उसके बेटे की जान बचाने में कोई मदद नहीं मिलने वाली थी। उसके मुँह से बोल नहीं फूटा।
“अभी उन लोगों ने हमें तीन दिन का समय दिया है। हम लोग उन लोगों से ज्यादा से ज्यादा मोहलत लेने की पूरी कोशिश करेंगे। आपका बेटा नीलेश हर हालत में वापस आएगा। उसके साथी भी सकुशल लौट कर आएँगे। यह मेरा वादा है आपसे।” अभिजीत देवल ने योगराज की तरफ देखते हुए आश्वस्त अंदाज में कहा।
“मैं कुछ नहीं जानता। मुझे मेरा बेटा नीलेश सही सलामत वापस चाहिए। आप लोग इसके लिए चाहे कादिर मुस्तफा को छोड़ें या उनको फिरौती दें या उनको ख़तम कर के इस काम को अंजाम दें। वर्ना जो मैंने कहा है उसको पत्थर की लकीर समझिएगा। मैं अब और इंतजार नहीं कर सकता। नमस्कार।” इतना कहकर वह हाथ जोड़कर हवा के बगोले की तरह उस जगह से बाहर निकल गया।
उसके जाने के कुछ पल बाद तक स्तब्धता वातावरण में पसरी रही। उस खामोशी को पीएम की धीर-गंभीर आवाज ने भंग किया।
“योगराज जिस मनःस्थिति से गुजर रहें हैं, उस अवस्था को हम सभी को समझना चाहिए। एक पिता के रूप में उनका आवेश, चिंता और रोष जायज़ है लेकिन हमें इस समस्या के हर पहलू पर विचार करना पड़ेगा।”
“प्रधानमंत्री जी, सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी तो सरासर ब्लैकमेलिंग हुई। उन्हें जरा इस मामले की गंभीरता को भी समझना चाहिए। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि और भारत की सबसे बड़ी कंपनी के भविष्य और उसके कर्मचारियों की जान का मामला भी जुड़ा हुआ है।” गृहमंत्री ने प्रतिवाद से भरे हुए स्वर में कहा।
“राजनीति में हमेशा नये समीकरण और नयी संभावनाएँ बनती रहती है। योगराज ने अपनी बात कह दी और उस पर तुरंत प्रतिक्रिया न देकर हमें इस बात का हल निकालना पड़ेगा। यदि वह भावनाओं के अतिरेक में समर्थन वापसी की घोषणा करते हैं तो मैं इस कुर्सी पर एक पल भी नहीं बैठ पाऊँगा। उस परिस्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक बार फिर से पचास-साठ हजार करोड़ का चुनाव का बोझ पड़ जाएगा। आप लोगों के मन में अब यह प्रश्न उठ रहा होगा कि क्या हम इन परिस्थितियों में झुकेंगे। कदापि नहीं।” पीएम महोदय ने संतुलित शब्दों में स्थिति का आकलन करते हुए कहा और अपनी बात जारी रखी, “गृहमंत्री जी, आप कादिर मुस्तफा को छोड़ने की प्रक्रिया शुरू कीजिये और विश्वरूप रुंगटा को अपने विश्वास में लीजिये। पूरे देश में सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबन्द कीजिये।”
“पीएम सर, क्या हम उन आतंकवादियों के सामने घुटने टेकने जा रहें हैं?” अभिजीत देवल ने अविश्वास से भरे स्वर में कहा।
“नहीं, अभिजीत। मैं इतिहास में इस बात के लिए बिल्कुल दर्ज नहीं होना चाहता कि मेरे कार्यकाल में कादिर मुस्तफा जैसे अतिवादी को सरकार द्वारा डर कर या सत्ता के मोह में छोड़ दिया गया। तुम तो बहुत से ऐसे कारनामे कर चुके हो... तो निकालो उन छिपे हुए चूहों को अपने बिलों से बाहर और... वो तभी तो निकलेंगे जब कोई लालच उन्हें दिया जाएगा।” इतना कहकर उनके चेहरे पर मुस्कान तैर गयी और उनका हाथ मेज से उठा तो मुट्ठियाँ बंद लेकिन अँगूठा आसमान की और था।
उस बात को समझने में अभिजीत को कोई परेशानी नहीं हुई और उसका शरीर एक बार फिर विश्वास से भर गया।
गृहमंत्री के चेहरे पर भी संशय के बादल छट चुके थे और वे भी आश्वस्त नज़र आ रहे थे।
अभिजीत तुरंत अपनी सीट से उठा और मीटिंग रूम से बाहर आ गया।
“गोविंद जी, आप योगराज जी से मिलिए और उन्हें आश्वस्त करने की कोशिश कीजिये कि उनके बेटे नीलेश व बाकी कर्मचारियों के बचाव के लिए सरकार उनके सुझाए हुए हर संभव कदम को उठाने पर विचार कर रही है।”
गोविंद श्रीवास्तव मीटिंग रूम से बाहर आकर तुरंत अपने फोन पर उलझ गया और योगराज को फोन पर पीएम के निर्णय की जानकारी देने लगा।
इसके बाद पीएम महोदय और गृहमंत्री के बीच कुछ और विचारणीय मुद्दों पर बात हुई और फिर मीटिंग समाप्त हो गयी।
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मुंबई
अगले दिन सुबह पौने पाँच बजे रिंकू नाम का एक स्वीपर पटना से बांद्रा आने वाली ट्रेन में सफाई के लिए चढ़ा जो पटना से मुंबई के लिए चलती थी और वही उस ट्रेन का आखिरी स्टेशन था।
जब सफाई करते हुए वह स्लीपर नंबर आठ में पहुँचा तो बर्थ के नीचे एक चमड़े का बैग पड़ा था। उसने उसे हिलाने की कोशिश की तो वह उसे थोड़ा भारी मालूम हुआ। उसकी आँखों में लालच की चमक दौड़ गयी। उसने सोचा कि जरूर किसी पैसेंजर का छूट गया था। ऐसा पहले भी हो चुका था। इस तरह के मामले में कभी-कभी उसके हाथ कुछ अच्छा माल भी लग जाता था।
उसने वो बैग उठा कर अपनी खास जगह महफ़ूज रखने की सोची जहाँ से वह बाद में इत्मीनान से उस बैग को और उसमें मिलने वाले समान को ठिकाने लगा सकता था। इस वक्त उस बोगी में उसके सिवा कोई नहीं था। वो अपने हाथ लगने वाले माल की कल्पना करता हुआ उस बैग को खोलने से अपने आप को नहीं रोक सका। उस बैग पर मामूली सा ताला लगा हुआ था जो उसके पास ट्रैक में पड़े पत्थर की चोट से खुल गया।
जब रिंकू ने बैग खोला तो उसका कलेजा मुँह को आ गया और वह पागलों की तरह खून... खून... चिल्लाता हुआ बोगी से बाहर की तरफ भागा।
उसकी आवाज सुनकर रेलवे पुलिस का एक हवलदार रिंकू की तरफ आकर्षित हुआ और उसे पकड़कर वापस स्लीपर नंबर आठ में उस जगह पहुँचा जहाँ पर बैग रखा हुआ था। हवलदार का दिल भी उस बैग को देखकर काँप गया।
उस बैग में एक आदमी का जिस्म ठूस-ठूस कर भरा हुआ था जिसका कोई अंग साबुत नहीं था और एक कागज पॉलिथीन में लिपटा हुआ ऊपर ही पड़ा था जिस पर लिखा हुआ था –
मुंबई के पुलिस कमिश्नर के मार्फत हिंदुस्तान के हुक्मरानों को पहला तोहफ़ा। चौदह बाकी।
स्टेशन पर तैनात इंस्पेक्टर के जरिये यह सूचना मुंबई पुलिस के हेडक्वार्टर पर पहुँची। श्रीकांत वहाँ पर तुरंत सुधाकर के साथ पहुँचा। वहाँ पर पहुँचकर उसने उस बैग का जाँच पड़ताल की तो उस लाश की हालत देख कर सन्न रह गया। उस आदमी को बड़ी बेरहमी से किसी बकरे की तरह ज़िबह किया गया था और वहशत की सारी हदें पार कर दी गयी थी। उसकी निगाह कागज़ पर लिखी इबारत पर पड़ी।
‘…चौदह बाकी।’
इसका मतलब अभी मोहन डेयरी की घटना की खबर अपहरणकर्ताओं तक पहुँचना बाकी थी या ये वारदात शायद उससे पहले अंजाम दे दी गयी थी।
लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। उसकी पहचान जब विस्टा टेक्नोलॉजी के कर्मचारियों से की गयी तो उसका हुलिया एक सिस्टम इंजीनियर से मिलता जुलता पाया गया। कंपनी के एचआरएम पीयूष बत्रा को लाश की शिनाख्त के लिए फोन कर दिया गया।
मोहन डेयरी के बाहर हुई मुठभेड़ के बाद यह घटना इस पूरे मामले को खूनी जामा पहनाने वाली साबित हुई जिसमें विस्टा टेक्नॉलजी का एक अगुवा हुआ आदमी मारा गया था।
न्यूज़ मीडिया में इस बात को लेकर हाहाकार मच गया। सभी चैनल इस बात के लिए हायतौबा मचाने लगे कि लापता हुए बाकी सभी आदमियों का यही हाल होने वाला था।
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जिस वक्त श्रीकांत और सुधाकर बांद्रा रेलवे स्टेशन पर खड़े हुए उस हौलनाक मंजर से रूबरू हो रहे थे, उसी वक्त पुलिस कमिश्नर धनंजय रॉय के ऑफिस के फोन की घंटी बजी।
“हैलो, कमिश्नर ऑफिस।” कमिश्नर के स्टेनो ने तुरंत फोन उठाया।
“मालूम है हमें। फोन कमिश्नर को दे?”
“कौन... ”
“अगर अपनी नौकरी प्यारी है तो तुरंत फोन धनंजय रॉय को दे। बांद्रा स्टेशन की लाश की इन्फॉर्मेशन अभी पहुँची नहीं है क्या उसके पास? या उसका एक और लाश का दीदार करने का इरादा है।”
स्टेनो हड़बड़ाया और तुरंत उसने कॉल को कमिश्नर धनंजय रॉय के ऑफिस में ट्रांसफर किया।
“यस...” रॉय ने फोन रिसीव किया।
“सर, बांद्रा के स्टेशन से जो लाश...” स्टेनो की बात अधूरी रह गयी।
“बस, बस... बाकी की बात हम समझा देंगे।”
“कौन बोल रहा है?” कमिश्नर रॉय ने रोबदार अंदाज में पूछा।
“ये सही सवाल किया। तुम लोग शायद अभी तक समझ नहीं पाये कि तुम्हारी नाक के नीचे क्या खेल हो गया! क्या बांद्रा से कोई खबर नहीं मिली तुमको ?” उस अंजान आवाज़ ने पूछा।
“तो तुम उन वहशियों के साथी बोल रहे हो? एक बात ध्यान से सुन लो, तुम मुंबई में या भारत के किसी भी कोने में पहुँच जाओ, बच नहीं पाओगे।”
“कमिश्नर साहब, क्या तुम लोग सच में हमें यह धमकी दे सकते हो? तुम्हारी पुलिस को तो अब तक यह अंदाजा भी नहीं हुआ है कि ये हो क्या रहा है और ये सब कैसे हो गया ?” कहने के साथ ही बोलने वाला व्यक्ति कहकहा लगा कर हँसा।
“अगर तुम लोगों ने अगवा किए गए आदमियों में से ही किसी को कत्ल कर दिया है तो तुम लोगों ने अपनी जिंदगी की उम्मीद ख़तम कर ली है। तुम लोग बच नहीं पाओगे।” कमिश्नर ने खून का घूँट पीते हुए कहा।
“तुम लोग अब अपनी हेकड़ी दिखाने से बाज आओ। हमने जो माँग रखी हैं उन्हें पूरा करो। कादिर मुस्तफा कि रिहाई के इंतजाम करो और साथ में एक हजार करोड़ का। फिरौती की रकम कहाँ भिजवानी है, कैसे भिजवानी है, इसके बारे में तुम्हें बता दिया जाएगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अगले बारह घंटे के बाद तुम्हें ऐसा ही सुर्ख़ रंग से सराबोर एक तोहफ़ा और मिलेगा।” आततायी की कहर भरी आवाज फोन पर गूँजी।
“देखो, तुम मेरी बात समझो। मेरे पास तुम्हारी बातों पर कार्यवाही करने का कोई अधिकार नहीं है। मुझे अपने से ऊपर मौजूद लोगों से बात करनी होगी। फिर इस बात का क्या सबूत है कि तुम उन लोगों के साथी बोल रहे हो कोई... ”
“किसी की मजाल हो सकती है कि मुंबई की टॉप गन से ऐसा मज़ाक करे। हमें मालूम था कि तुम ऐसी ही कोई वाहियात बात करोगे। इसलिए सबूत के तौर पर तुम्हारी मेल पर एक वीडियो भेज दी है। जहाँ तक वक़्त की बात है, तीन घंटे बाद मैं तुमसे फिर... ”
“तीन घंटे कम समय है। इस बारे में केंद्र की सरकार का दखल रहेगा। हमारी ज्यूरिडिक्शन में यह सारी बातें नहीं आती। वहाँ से उनके किसी प्रतिनिधि को यहाँ आने में समय लगेगा।”
“मैं तीन घंटे बाद तुमसे बात करूँगा।”
इतना कहकर लाइन कट गयी।
धनंजय रॉय ने यह सूचना तुरंत राजीव जयराम को दी।
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दिल्ली
राजीव जयराम के सामने स्क्रीन पर फिर एक मेल झाँक रही थी जिसका मजमून वही था जो बांद्रा के स्टेशन पर मिली लाश के साथ मिला था। मेल के साथ एक वीडियो भी अटैच था जिसमें इस वारदात को अंजाम देते हुए दिखाया गया था।
उस हौलनाक मंजर को देख कर उसका मन उन लोगों के लिए घृणा से भर गया जो एक बेगुनाह को मार कर एक खूँखार आततायी को छुड़वाना चाहते थे जो हिंदुस्तान की धरती पर सैकड़ों लोगों की मौत का जिम्मेवार था।
इस बार की मेल में पिछली मेल की शर्ते बदल दी गयी थी और कादिर मुस्तफा को छोड़ने के साथ फिरौती की रकम को बढ़ा कर पंद्रह सौ करोड़ कर दिया गया था।
अभिजीत देवल से बात करने के बाद उसने शाहिद रिज़्वी को एक चार्टर्ड प्लेन से मुंबई रवाना कर दिया था।
शाहिद रिज़्वी एक बहुत ही ज़हीन निगोशिएटर था जिसका कश्मीर की घाटी में अपहरण की कई वारदातों को सुखद अंजाम तक पहुँचाने में बड़ा योगदान था। जितनी नफ़ासत से वह बात करता था उससे भी ज्यादा सफाई से निशाना भी लगाता था। उसका शिकार उसकी नफ़ासत के धोखे में कब काल के गाल में समा जाता था, पता ही नहीं चलता था।
तीन घंटे में शाहिद रिज़्वी मुंबई पुलिस कमिश्नर के ऑफिस में विराजमान था और अब उसे दूसरी तरफ से आने वाले फोन का इंतजार था।
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श्रीकांत और सुधाकर बांद्रा रेलवे स्टेशन पर स्टेशन मास्टर के ऑफिस में बैठे हुए थे। उनके साथ उस स्टेशन पर तैनात रेलवे पुलिस का सब-इंस्पेक्टर भी था। मेल-एक्सप्रेस 09272 के टाइम टेबल के अनुसार बांद्रा पहुँचने से पहले उस गाड़ी का ठहराव मुंबई में बोरीवली स्टेशन पर होता था। उन दोनों की निगाहें रेलवे स्टेशन की सीसीटीवी फुटेज दिखाने वाले मॉनिटर पर लगी हुई थी।
“इस फुटेज को देखने का अपने को कोई फायदा नहीं होने वाला। मुझे नहीं लगता कि किडनैपर्स ने इस आदमी को बांद्रा में ही कत्ल करने के बाद उसकी लाश को स्टेशन पर पहुँचाया होगा।” सुधाकर अपनी गर्दन हिलाते हुए बोला।
“इन सारी फुटेज को देखने से ऐसा ही लगता है। ऐसा भी तो हो सकता है कि कोई आदमी किसी दूसरी ट्रेन से आया हो और इस लाश को इस बोगी में छोड़ कर चलता बना हो।” श्रीकांत स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए बोला।
“जिस तरह का मामला यह हो गया है, सर। इस तरह का रिस्क वो लोग शायद ही उठाए।” सुधाकर के मुँह से निकला।
श्रीकांत उसकी बात सुनकर ठठा कर हँसा।
“सुधाकर, जिस तरह के लोगों से हमारा वास्ता पड़ा है, तुम्हें लगता है कि वो लोग किसी भी तरह से डरने वाले हैं।”
“बात तो आपकी सही है। लेकिन वो लोग सीधा सामने आकर पुलिस को चुनौती भी तो नहीं दे रहें है। इस चूहे बिल्ली के खेल में वे लोग हमसे दूर रहेंगे तभी तो उन्हें फायदा होगा।”
“हमसे दूर रहेंगे... दूर! अरे वाह सुधाकर! यह हो सकता है। यही हो रहा है। बल्कि ऐसा ही हो रहा है। वो लोग हमसे दूर जाने की कोशिश कर रहें है और हम उन्हें अपने आसपास ढूँढ रहें हैं। तुम फौरन आलोक देसाई को फोन लगाओ और उसे मुंबई से बाहर जाने वाली सारे नाकों की वीडियो फुटेज मँगवाने के लिए कहो।”
सुधाकर उसकी बात सुनकर अपने फोन पर उलझ गया। फिर श्रीकांत रेलवे पुलिस के सब-इंस्पेक्टर से मुखातिब हुआ।
“इंस्पेक्टर साहब, आप अपने किसी आदमी को तुरंत रवाना करें और मेल एक्सप्रेस के रास्ते में आने वाले ढाई सौ किलोमीटर तक के सभी स्टेशनों से इस गाड़ी के रूकने से पहले की वीडियो फुटेज तुरंत हासिल कर खुद अंधेरी के पुलिस स्टेशन में पहुँचाए। रेल का इंतजार मत करना। अपने आदमियों को रोड़ से रवाना करना।”
अचानक मिले इस ऑर्डर की वजह से और श्रीकांत के लहजे में बसी कठोरता को भाँपते हुए वह सब-इंस्पेक्टर तुरंत बाहर की तरफ़ लपका।
तब तक सुधाकर एसीपी आलोक देसाई को श्रीकांत का मैसेजट्रांसफर कर चुका था। इसके बाद दोनों उस हॉस्पिटल की तरफ रवाना हुए जहाँ उस लाश का पोस्टमार्टम होना था।
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बांद्रा रेलवे स्टेशन पर मिली लाश की विस्टा टेक्नोलॉजी के कर्मचारी के रूप में पहचान होते ही शेयर मार्केट में कोहराम मच गया। विस्टा टेक्नोलॉजी के शेयर बड़ी तेजी से नीचे लुड़कने लगे।
जयंत दसानी की आँखें ऑफिस में चल रहे टीवी की स्क्रीन पर लगी हुई थी। बिजनेस न्यूज़ चैनल विस्टा टेक्नोलॉजी के भविष्य और उसकी लड़खड़ाती हुई बैलेंस शीट की चर्चा कर रहे थे। उसकी मेज पर रखे कंप्यूटर स्क्रीन पर विस्टा के शेयर लाल निशान से बाहर ही नहीं आ रहे थे। विस्टा को हड़प कर जाने का ख्वाब देखने वाली ‘कॉसमॉस’ के लिए यह एक सुनहरा मौका था। वे लोग विस्टा के शेयर चुपचाप खरीदने में लगे थे।
जयंत दसानी ने अपने ऑफिस में काम करने वाली टीम को अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा जुआ खेलने के लिए कहा।
उसने पहले ‘कॉसमॉस’ के शेयरों में काफी नीचे के दामों में अपने क्लाइंटों के पोर्टफोलियो में बड़ी तादाद में स्टॉक मार्केट में ऑपशंस (options) की खरीददारी की।
उसके कुछ साथी बिजनेस न्यूज़ चैनलों पर अपनी प्रतिदिन की राय अलग-अलग न्यूज़ चैनलों पर देते थे। उनको कॉसमॉस के शेयरों में आने वाली गिरावट की खबर किसी न किसी माध्यम से पहुँचा दी गयी। यह खबर एसएमएस के माध्यम से अलग-अलग ब्रोकरों पर पहुँचने लगी।
फिर उसने अपने क्लाइंट्स के अकाउंट से कॉसमॉस के शेयरों को बाजार में नीचे के दामों पर बेचना शुरू किया। देखते ही देखते कॉसमॉस के शेयर विस्टा के शेयरों के साथ नीचे जाने लगे। इस गिरावट से कॉसमॉस में धुआँधार सेलिंग शुरू हो गयी और एक के बाद एक नीचे का सर्किट लगा।
जयंत दसानी का दाँव चल गया था। उसके क्लाइंट के नुकसान की संभावना न के बराबर थी। अगर उसने लोगों के शेयर नुकसान में बेचे थे तो ऑपशंस के बढ़ते भावों के चलते की गयी ख़रीदारी ने उनके नुकसान की भरपाई कर दी थी।
दूसरी तरफ विस्टा टेक्नोलॉजी के गिरते हुए दामों के चलते जयंत दसानी के साझीदारों ने उसकी बनायी हुई रणनीति के तहत विस्टा टेक्नोलॉजी के शेयर ओपन शेयर मार्केट से खरीदने शुरू कर दिये जिससे विस्टा के दामों को स्थिरता मिली और उसके दामों में सुधार आते ही गिरावट का सिलसिला काफी हद तक रुक गया था और दाम बढ़ने लगे थे।
‘कॉसमॉस’ पर दोहरी मार पड़ी। उसके हाथ पहले से विस्टा के शेयर लगातार खरीदने से पहले ही तंग हो गए थे। जयंत दसानी के दाँव से उसका शेयर अट्ठारह प्रतिशत तक गिरा। कॉसमॉस के गिरते दामों ने उसकी कई हजार करोड़ की मार्केट वैल्यू नीचे आ गयी। ‘कॉसमॉस’ के प्रोमोटेर्स के दोनों तरफ से हाथ जल गए थे।
दोपहर होते-होते विस्टा की तरफ से शेयर होल्डर्स से शेयरों की बाय-बैक की खबर की सुगबुगाहट न्यूज़ चैनल पर चलने लगी। इस बात के चलते अब विस्टा के शेयर फिर हरे निशान में दिखाई देने लगे और उसके शेयरों की खरीददारी वापस लौट आयी।
इसी बीच विश्वरूप रुंगटा का बयान भी आया कि पैसों की वजह से हम अपने किसी भी कर्मचारी की जान नहीं जाने देंगे। अपने एक कर्मचारी के मारे जाने पर उसने हार्दिक शोक प्रकट किया। इसके साथ उसने मारे गए कर्मचारी के परिवार को एक करोड़ रुपए की सहायता राशि, बच्चों की मुफ़्त शिक्षा और उसकी पत्नी को नौकरी की घोषणा की और साथ में केंद्रीय सरकार से अपने लोगों की जल्द से जल्द रिहाई करवाने की माँग की।
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