विजय उसे भीड़ से दूर एकांत में ले गया—भीड़ की कौतूहल-भरी नजरें उस पर केंद्रित थीं, किंतु विजय को उनकी चिंता न थी—उसे चिंता थी तो सिर्फ इस बात की कि कहीं किसी पुलिस वाले की नजर वृक्षों पर छुपे डाकुओं पर न पड़ जाए या ऊपर सांस रोके छुपा कोई डाकू भी बेवकूफाना हरकत न कर दे।
एकांत में पहुंचने ही बजाज बोला— "कहिए?"
"मैं आपसे कुछ भी कहूं, क्या आप इस गांव से नहीं जाएंगे?"
"मजबूर हूं। गृह मंत्रालय का आदेश मेरे जैसे किसी भी अफसर के लिए भगवान के आदेश से कम नहीं है लेकिन...।" उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव उत्पन्न होते चले गए—"समझ में नहीं आता कि आप हमें गुमटी से क्यों हटाना चाहते हैं?"
"आप इस इलाके में किस उद्देश्य से आए हैं?"
"आपकी सुरक्षा और डाकुओं का उन्मूलन।"
"अगर इन दोनों उद्देश्यों में हम आपको मदद दें?"
"क्या मतलब?"
"साफ बात ये है बजाज साहब कि इस इलाके से डाकुओं का सफाया करने की स्कीम पर हम काम शुरू कर चुके हैं, बल्कि कहना चाहिए कि काम चल रहा है और इस वक्त आप एक बहुत बड़ी बाधा के रूप में यहां खड़े हैं, तो आप क्या करेंगे?"
"हम और बाधा?" बजाज ने चकित स्वर में कहा— "बात कुछ समझ में नहीं आई मिस्टर विजय, आप कहना क्या चाहते हैं?"
विजय ने बहुत धीमे-से कहा—"हालात ऐसे बन गए हैं कि आपको रहस्य की चंद बातें बताए बिना काम नहीं चलेगा।"
"रहस्य की बातें?"
"उनके शुरू होने से पहले एक रिक्वेस्ट है, यह कि जब मैं आपको हकीकत बताऊं तो मन-ही-मन भले ही चौंक लें, किंतु उसे प्रदर्शित न करें और जब मैं बोल रहा होऊं तो अपनी दृष्टि सिर्फ मेरे चेहरे पर रखें, इधर-उधर कहीं न देखें।"
अजीब पशोपेश में पड़े बजाज के मुंह से निकला—"आप कहना क्या चाहते हैं?"
"सिर्फ यह कि जो कुछ हम कहेंगे, उसे सुनकर आपका बल्लियों उछल पड़ना स्वाभाविक है, किंतु फिर भी आपको चौंकने का प्रदर्शन बिल्कुल नहीं करना है—साथ ही, मेरी पूरी बात सुनने से पहले किसी एक्शन में भी नहीं आना है, क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो गांव में खून-खराबा हो जाएगा।"
"खून-खराबा?"
"हां।"
"बात क्या है?"
"बात ये है कि इस वक्त गांव में बंतासिंह और उसका पूरा गिरोह मौजूद है। ”
"क...क्या?"
"न...न...मैंने आपसे पहले ही कहा है कि चौंकने की बात के बावजूद आपको बिल्कुल नहीं चौंकना है—सिर्फ मेरे चेहरे की तरफ देखते रहिए। हां—तो मैं ये कह रहा था कि बंतासिंह का पूरा गिरोह इस वक्त गांव में है।"
"कहां है?"
"प्लीज, सवाल नहीं—सिर्फ सुनते रहिए।" विजय बोला— "उनकी यहां मौजूदगी गांव के बच्चे-बच्चे की जानकारी में है, मगर इस संबंध में आपसे कोई कुछ कहेगा नहीं।"
"क्यों?" पूछते वक्त बजाज को लगा कि कहीं सामने खड़ा व्यक्ति पागल तो नहीं है।
"क्योंकि गिरोह गांव वालों की इच्छा से ही वो यहां हैं—अब आप पूछेंगे कि भला ऐसा कैसे हो सकता है—डाकू तो गांव वालों के दुश्मन हैं, खासतौर से मल्लाहों के गांव में ठाकुर डाकुओं का गिरोह—गांव वाले भला अपनी इच्छा से उन्हें यहां क्यों रखेंगे—आप यही सब सोच रहे हैं न?"
"हां ।"
"कल तक जो बात असंभव समझी जाती थी, आज उसे हमने संभव कर दिखाया है—आज गुमटी और बंतासिंह दोस्त हैं, एक हैं—गांव की मदद या हिफाजत के लिए ही बंता गिरोह यहां छुपा हुआ है।"
"किससे हिफाजत?"
"बापूजान और फूलो गिरोह से।"
"हमारी कुछ समझ में नहीं आ रहा है।"
"बात को यूं समझिए कि पिछले पांच-छः दिन में हमने यहां झक नहीं मारी है—बंतासिंह के दिमाग में यह डर बैठाया कि बापूजान और फूलो का गठजोड़ इस इलाके से उसका सफाया करने के लिए हुआ है। उधर, गांव वालों को समझाया कि फूलो गिरोह से उनकी सशक्त सुरक्षा केवल बंतासिंह कर सकता है—गिरोह इसी पैक्ट के साथ यहां है।"
"ओह!" बजाज की आंखें चमक उठीं।
"इलाके से डाकुओं का सफाया करने के लिए हमने वह रास्ता अपनाया है, जिसे कम-से-कम पुलिस इस्तेमाल नहीं कर सकती थी—यानि दोनों पर गिरोहों को आपस में टकराकर दोनों ही शक्ति खत्म करने के बाद बचे-खुचों से सुलटना—बंता गिरोह गांव में इस स्थिति में पोजीशन लिए छुप बैठा है कि जैसे ही फूलो गिरोह गुमटी में दाखिल हो, उस गोलियों की बारिश कर दी जाए।"
इस क्षण बजाज को यह आदमी दुनिया का सबसे ज्यादा चालाक और खतरनाक आदमी लगा। मुंह से केवल इतना ही निकला—"कमाल का चक्कर फैला रखा है आपने।"
“पुलिस दल को आता देख बंता गिरोह में हड़कंप और खलबली मच गई थी—उन्हें लगा कि फूलो ने किसी से उसके गिरोह के यहां होने की मुखबिरी कराई है और उनकी योजना आपके गांव में दाखिल होते ही फायरिंग की बन रही थी। मगर हमने उसे न सिर्फ रोका, बल्कि जो जहां है उसे वहीं छुपे रहने का निर्देश दिया—उसी निर्देश के कारण यहां शांति है, वरना इस वक्त उनके और आपके बीच गोलियां चल रही होतीं और वे ऐसे स्थान पर पोजीशन लिए हैं कि घाटे में पुलिस रहती—आपके रहते डाकू दल गांव में नहीं रह सकता—यूं समझिए कि गुमटी एक म्यान है, बंता और आप दो तलवारें—अब आप ही बताइए कि जो स्कीम मेरी चल रही है—उसमें आप बाधा हैं आ नहीं?"
"बाधा तो हैं।"
"तो बराय मेहरबानी अपने दल-बल सहित गांव से फूट लीजिए।"
"मगर?"
"क्या मगर?"
"हम जाएं कहां?"
"भले ही जहन्नुम में जाना पड़े मगर प्लीज, यहां से जाइए।"
"ल...लेकिन गृह मंत्रालय का आदेश...।"
"आदेश ऑफिस में बैठकर दिए जाते हैं बजाज साहब, उन्हें अपने दिलो-दिमाग से इतनी बुरी तरह चिपकाये भी नहीं चलना चाहिए कि फील्ड में काम ही न हो सके—फील्ड में वर्क करने वाले को अपने विवेक का भी इस्तेमाल करना पड़ता है—यानि फील्ड की स्थिति देखकर कोई भी अफसर अपनी पॉलिसी चेंज कर सकता है और गृह मंत्रालय को चाहिए क्या—इस इलाके से डाकू-उन्मूलन ही न—उस पर काम हो रहा है, ऑपरेशन पूरा होने के बाद गृहमंत्रालय यदि खुर्दबीन लेकर भी आ जाए तो उसे कहीं डाकू नजर नहीं आएगा—रही हमारी सुरक्षा की बात, मेरे ख्याल से आप समझ गए होंगे कि अपनी सुरक्षा हम बखूबी कर सकते हैं।"
"म...मगर फिर भी...।"
उसकी बात पुनः बीच में काटकर विजय ने पूछा— "क्या आपको यह ड्रामा पसंद नहीं आया जो हमने यहां फैला रखा है—क्या वह इस इलाके से डाकू-उन्मूलन का नायाब नुस्खा नहीं है?"
"जरूर है मगर...।"
"फिर मगर?"
"इस सारे झमेले में मैं आपकी जान को भी खतरा महसूस कर रहा हूं—और यदि आप लोगों में से किसी को कुछ हो गया तो विभाग में मुझे बचाने वाला कोई नहीं मिलेगा।"
"अगर आप यहां रहे तो सारी स्कीम चौपट है ही।"
"इसका एक तरीका है।"
"बोलिए।"
"जिस तरह आया हूं उसी तरह गांव से फोर्स को ले जाता हूं, मगर डिक्की नहीं जाऊंगा—गांव से ज्यादा दूर भी नहीं निकलूंगा—आप लोगों की जिम्मेदारी मुझ पर है—गांव के बाहर आसपास ही हम कहीं छुपाकर अपना टैंट लगा लेते हैं ताकि आपको खतरे में पाते ही पूरी ताकत के साथ हमला बोल सकें।"
विजय सोच में पड़ गया। सिर्फ एक मिनट सोचा उसने, फिर बोला— "ठीक है, आप गांव से बाहर अपना मोर्चा लगा लें, परंतु दो बातों का खास ध्यान रखें।"
"क्या?"
"पहली ये कि यहां के डाकू आपको जाता देखेंगे, अतः पहाड़ के इस तरफ सड़क के जो तीन हिस्से हैं, इन पर आप वापस जाते नजर आने चाहिए—यानि आपका टैंट ऊपर वाले मोड़ के पीछे से पहले नहीं होना चाहिए। करेक्ट?"
"ठीक है।"
"दूसरी ये कि अगर आपने दोनों दस्यु दलों के बीच चल रही जंग के वक्त दखल दिया तो सारा मामला क्लाइमैक्स पर पहुंचने से पहले ही बिगड़ जाएगा—योजना के अनुसार आपका काम तब शुरू होता है जब एक गिरोह दूसरे को पूरी तरह नेस्तनाबूद करने के बाद टूटा-फूटा रह जाए—इस टूटे-फूटे गिरोह का पूरी तरह सफाया कर देना ही आपका लक्ष्य होना चाहिए।"
"हमे ऊपर से कैसे पता लगेगा कि एक्शन में कब आएं?"
"जरूरी नहीं कि वह स्पॉट दस्यु दलों की एक ही मुठभेड़ के बाद आ जाए—दोनों दलों को उस वक्त तक आपस में टकराते रहना है जब तक एक-दूसरे को नेस्तनाबूद करने के चक्कर में अपनी ज्यादा-से-ज्यादा शक्ति न गंवा दें—भले ही इसके लिए उनके बीच चाहे जितनी मुठभेड़ं करनी पड़ें।"
"फिर?"
"एक्शन में आने के लिए आपको मेरे इशारे का इंतजार करना होगा—कृपया मेरे संकेत से पहले आप कोई भी ऐसा काम न कीजिए जिससे इन लोगों को भनक लगे कि आसपास कहीं पुलिस है।"
"आप किस तरह संकेत करेंगे?"
एक पल सोचने के बाद विजय ने कहा—"मैंने अच्छी तरह देखा है कि दोनों दस्यु-दलों में से किसी के पास भी हैंडग्रेनेड नहीं है, अतः इनके टकराव में इसका इस्तेमाल नहीं होगा—आप सब लोगों की नजरों से छुपाकर मुझे एक हैंडग्रेनेड दे दीजिए। मुझे जब आपकी मदद की जरूरत होगी मैं हैंडग्रेनेड फोड़ दूंगा।”
"ठीक है, मगर...।"
"फिर मगर?"
बजाज ने छुपाकर एक हैंडग्रेनेड उसे पकड़ाते हुए कहा—"मैं ये कहना चाहता था कि अपना और अपने साथियों का ख्याल रखना। अगर आपमें से किसी को कुछ हो गया तो...।"
"अपना ख्याल किसे नहीं रहता बजाज साहब, ये कोई कहने वाली बात नहीं है—खैर, अब आप जल्द-से-जल्द यहां से निकल लीजिए—किसी पुलिस वाले की नजर डाकुओं पर पड़ गई या कोई डाकू धैर्य खो बैठा तो अभी दीवाली मनने लगेगी।"
"एक आखिरी सवाल?"
"उसे भी पूछिए।"
"डाकू कहां छुपे हैं?"
"जवाब सुनने से पहले यह समझ लीजिए कि मेरे बताने पर आप चोर दृष्टि से भी उधर नहीं देखेंगे, क्योंकि यदि उन्हें जरा भी इल्म हो गया कि मैंने उनके बारे में आपको बता दिया है तो सबसे पहले भूखे भेड़िए की तरह चीर-फाड़कर मुझे डाल देंगे।"
"अब मैं पूरी सिचुएशन समझ चुका हूं, आप चिंता न करें।"
"वे गुमटी के पेड़ों पर पत्तों में छुपे हैं। हर पेड़ पर जो मचान बना है—अपने हथियार लिए वे उन्हीं पर तैनात हैं।"
"ओह!"
"अब आप जल्दी से मुझसे हाथ मिलाते हुए दोस्ताना अंदाज में हंसिए और उसके बाद मेरे साथ-साथ चलते हुए फोर्स तक पहुंचिए—वहां पुहंचकर आपको फोर्स से कहना है कि मिस्टर विजय से आपकी बात हो गई है—फोर्स को वहां डेरा डालने की कोई जरूरत नहीं है। जब जरूरत होगी तब खबर कर देंगे, अतः डिक्की वापस चलो।"
"आप मुझे इस तरह पढ़ा रहे हैं जैसे मैं बच्चा हूं।"
"साधु-संत के लिए तो सब 'बच्चे' ही होते हैं।”
बजाज के मुंह से स्वतः ठहाका निकल गया और यही क्षण था, जब विजय ने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया।
¶¶
बजाज ने जब फोर्स को वापस 'डिक्की' चलने का हुक्म दिया तो श्रीवास्तव सहित समूची फोर्स को ही नहीं बल्कि गांव वालों और विकास तथा नाहर को भी बेहद आश्चर्य हुआ—कोई यह कल्पना न कर सका कि अलग ले जाकर विजय ने एस.पी. को क्या घुट्टी पिलाई है?
फोर्स तो बजाज के आदेश की पाबंद थी।
सो, घोड़े वापस मुड़ गए।
फोर्स को वापस जाते देख बंतासिंह सहित सभी डाकुओं ने राहत की सांस तो ली, परंतु हैरानी के मारे उनका बुरा हाल था—देखते-ही-देखते फोर्स पहाड़ के पीछे गुम हो गई।
"क्या सुर्रा छोड़ा गुरु?" विकास ने पूछा।
"उसे सुर्रे के बारे में सुनने की तुमसे ज्यादा बेचैनी ठाकुर प्यारे को होगी।" कहने के साथ ही वह तेजी से उस पेड़ की तरफ बढ़ गया जिस पर बंतासिंह था।
विजय और नाहर के साथ गांव की भीड़ उसके पीछे लपकी। अब विजय उस गांव का हीरो बन गया था, जिसमें कदम रखते ही उस पर जानलेवा हमले होने शुरू हुए थे—सबको नीचे रुकने का इशारा करके जिस वक्त विजय बंतासिंह के पास पहुंचा, तब तक फोर्स एक बार सड़क पर नजर आने के बाद पुनः पहाड़ के पीछे गुम हो चुकी थी। बंतासिंह ने पहुंचते ही कहा— "तुमने तो कमाल कर दिया विजय बाबू!"
"हम तो धोती को फाड़कर रुमाल भी बना देते हैं प्यारे।"
"म...मगर ये चमत्कार हो कैसे गया?"
"हमारी बात मानते रहे तो ऐसे ही चमत्कार होते रहेंगे। अब जरा सोचो—अगर तुम भागते या पुलिस से टकराने की कोशिश करते तो इस वक्त यहां क्या हो रहा होता—याद रखो ठाकुर प्यारे, भैंस कभी बड़ी नहीं होती, बड़ी होती है अक्ल।"
"मगर अकेले में ले जाकर तुमने कहा के?"
"सिर्फ यह कि गांव वाले फोर्स की यहां मौजूदगी पसंद नहीं करेंगे।"
"हम समझे नाहिं?"
"इतना तो समझ ही गए होंगे कि वे किसी मुखबिरी के कारण नहीं आए थे।"
"वो तो जाहिर है। अगर उन्हें खबर होती कि हम लोग पेड़न पर हैं तो गांव में इस तरह न घुस आते, बल्कि पोजीशन लेकर फायर करते, पर ये समझ न आता कि फिर वे आए क्यूं थे?"
"वह एस ○ पी○ था—इस इलाके से डाकुओं का सफाया करने के लिए ही डिक्की थाने पर उसकी नियुक्ति हुई है। वह पुलिस टैंट डालकर गुमटी में रहने आया था।"
"फिर?"
"हमने दो बातें एक साथ कहीं। पहली ये कि गांव वाले पुलिस को अच्छी निगाह से नहीं देखते—उनकी नजरों और सोच में पुलिस डाकुओं से भी बड़ी डाकू है।"
"इसमें झूठ ही के है।"
"इसी का आधार बनाकर मैंने कहा कि गांव वाले उनका टैंट ड़ालकर यहां रहना पसंद नहीं करेंगे। दूसरे, उऩ्हें समझाया कि मेरे चक्कर में फूलो गिरोह जल्दी ही इस गांव पर हमला करने वाला है। सो, अगर पुलिस ने यहां टैंट डाल दिया तो डाकू गांव के आसपास भी नहीं फटकेंगे और हमारे पास उनसे निपटने का जो अच्छा-खासा मौका है, वह भी जाता रहेगा।"
"ये भी ठीक है, मगर इस पर तो उसने कहा होगा कि अगर डाकुओं का हमला होने वाला है तो क्यूं न फोर्स भी आसपास रहत?"
"कहा जरूर था ठाकुर प्यारे, मगर क्या तुम नहीं जानते कि ये पुलिस वाले कितने निकम्मे होते हैं?"
"के मतलब?"
मोटी अक्ल के इस भैंसे को चकमा देना विजय के लिए मुश्किल न था, सो बोला— "मैंने उससे कहा कि फूलो गिरोह का पहला झटका तो मैं और मेरे दोस्त ही गांव वालों के साथ मिलकर संभाल लेंगे और फिर जैसे ही दोबारा हमला होगा, मैं यहां से अपने साथी से डिक्की खबर भिजवा दूंगा, तुम फौरन मदद को आ जाना।"
"और वो कूढ़मगज मान गया?"
"मानता कैसे नहीं? उसे तो डिक्की में आराम से पैर फैलाकर सोना जो मिलना था। काम करने का इन निकम्मों का मन ही कहां होता है—उसका तो यहां रहने का खुद ही मन नहीं था, मेरी शह मिली तो फौरन लौट गया।"
"तुम सच कहते हो, ये निकम्मे न हुआ करते तो क्या हम लोगन यूं घूमा करते?"
"यही तो बात है।"
"मेरे बारे में कुछ कहवत था?"
"नहीं।" विजय ने बहुत ध्यान से एक-एक शब्द का चुनाव करते हुए कहा— "इस वक्त पुलिस का सारा ध्यान सिर्फ फूलो गिरोह पर अटका हुआ है, क्योंकि पुलिस का आई.जी. डाकू के रूप में उसके साथ है—दरअसल वे यह जानना चाहते हैं कि निर्भयसिंह इस रूप में फूलो के साथ कैसे हैं?"
"सच है, इस बख्त तो उनका ध्यान इसी बात पर होगा।"
विजय ने कहा— "अब तुम जरा सारी सिचुएशन अपने साथियों को बता दो।"
¶¶
रात के करीब नौ बजे! चारों ओर ऐसा अंधेरा और सन्नाटा जैसे मध्यरात्रि का समय हो!
आठ बजे ड्यूटी बदल चुकी थी, यानि दिन की ड्यूटी वाले लोग सोने की तैयारी कर रहे थे और रात के ड्यूटी वाले चार्ज संभाल चुके थे।
विजय का समूचा ग्रुप और बंतासिंह चौपाल की इमारत के एक कमरे में बैठे विचार-विमर्श कर रहे थे कि अचानक बाहर से शोर उठा। अपने-अपने हथियार संभालकर सब लोग उछलकर खड़े हो गए। नजदीक आती घोड़ों की टापों की आवाज स्पष्ट सुनाई देने लगी थी।
"लो ठाकुर प्यारे!" विजय चीखा—"वह टाइम शायद आ गया है, जिसका तुम्हें इंतजार था। अब देखना ये है कि क्या जौहर दिखाते हो।"
पूरी बात सुने बिना बंतासिंह बाहर जुप लगा चुका था।
"तुम सब अपनी-अपनी ड्यूटी का ख्याल रखना प्यारो !" कहने के साथ उसने भी बाहर जंप लगा दी। विकास, अशरफ, विक्रम और नाहर उसके पीछे थे। घोड़ों की टापों की आवाज अब नजदीक आती जा रही थी।
¶¶
मचानों पर बैठे डाकू सजग हो गए।
युवकों ने वही किया जैसा निर्देश दिया था यानि 'डाकू आ गए...डाकू आ गए' चिल्लाते हुए घरों की तरफ भागे। उन्हें ऐसा करने के लिए विजय ने आने वाले डाकुओं को इस भ्रम में रखने के लिए कहा था कि गांव में घुसने से पहले उऩ्हें किसी किस्म के अलग माहौल का इल्म न हो। चारों तरफ वैसा ही शोर उभरा जैसा डाकुओं के आने पर उभरता था।
मचानों पर तैनात डाकू घोड़ों की टापों की आवाज के साथ दूर से दौड़कर गांव की तरफ आ रहे घोड़ों के हुजूम को भी देख सकते थे। ट्रिगर दबाने के लिए उंगलियां मजलने लगीं। मगर उन्हें इंतजार था—गांव में दुश्मनों के प्रविष्ट होने का और फिर वह समय भी आ गया।
उधर घोड़े गांव की सीमा में दाखिल हुए, इधर वृक्षों पर बैठे डाकुओं ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।
घोड़ों के हिनहिनाकर गिरने और इंसानी चीखों की आवाजें गूंजने लगीं।
सारा वातावरण गोलियों से थर्रा रहा था।
बुरी तरह चीख-पुकार मच गई।
हाहाकार! चीत्कारें!
वृक्षों के ऊपर से जो एक बार गोलियां चलनी शुरू हुईं तो फिर रुकने का नाम ही न लिया। अभी इस स्थिति को सिर्फ पांच मिनट गुजरे थे कि घोड़ो के ठीक विपरीत दिशा से अचानक ढेर सारे शक्तिशाली बल्ब रोशन हो उठे और मजे की बात ये कि उनकी रोशनी का मुख्य केंद्र गुमटी के वृक्ष थे।
मचानों पर तैनात अधिकांश डाकू अभी कुछ समझ भी न पाए थे कि बल्बों के ठीक पीछे से गोलियों की वैसी ही बाढ़ मचानों पर झपटी, जैसी उन्होंने अपनी जानकारी में फूलो गिरोह के घुड़सवारों पर की थी।
बल्बों के पीछे से चलाई गई गोलियां मचानों पर मौजूद ज्यादातर डाकुओं की पीठों पर लगीं, क्योंकि अभी वे बल्ब की तरफ पलट भी न पाए थे।
जिन्होंने पलटने में जितनी फुर्ती दिखाई उनके सीने छलनी हो गए, क्योंकि तेज वॉट के बल्बों के सामने अभी वे आंखें ही मिचमिचा रहे थे। काफी रोशनी हो गई थी वहां।
और अब—यह भी देखा जा सकता था कि बचे हुए घोड़ों की, जो आतंकित से भागे फिर रहे थे, पींठें खाली थीं। उधर, जो मरे पड़े थे, उनके बीच एक भी इंसानी लाश न थी। हां, घोड़ों की जीन के साथ बंधे टेपों से निकलकर अभी भी इंसानी चीखों की आवाज फिजां में गूंज रही थीं।
परंतु—
अब उन चीखों का कोई महत्व नहीं था, क्योंकि गुमटी में वास्तविक चीखें गूंज रही थीं। ठाकुर बंतासिंह गिरोह के डाकुओं की चीखें। पके फलों की तरह वे जमीन पर गिर रहे थे।
जब तक विजय की समझ में असली माजरा आया, तब तक पहले मोर्चे को किसी हद तक निर्भयसिंह या फूलो का गिरोह फतह कर चुका था, मगर फिर भी वह चीखा—"कोई धोखे में न आए—असल में दुश्मन बल्बों के पीछे पहाड़ियों में हैं—हमला उधर ही बोला जाए—सब अपना ध्यान उधर ही केंद्रित करें।"
¶¶
अगर वास्तविक स्थिति लिखी जाए तो बल्बों के पीछे से किए गए पूर्व-नियोजित हमले के कारण पहले ही झटके में बंतासिंह गिरोह के आधे डाकुओं का सफाया हो चुका था और इस बात को बंता भी खूब समझ रहा था। शायद यही वजह थी कि उस पर खून सवार हो गया। स्वचालित राइफल संभाले वह बल्बों की तरफ दौड़ा।
बचे-खुचे डाकू भी।
गांव की धरती से करीब तीस गज ऊपर।
पहाड़ के एक हिस्से में पंक्तिबद्ध करीब पचास तेज वॉट वाले हैंडिल टॉर्चनुमा बल्ब लगे थे। दो बल्बों के बीच की दूरी मुश्किल से दो फीट थी। बड़ा जबरदस्त इंतजाम था।
खुद को एक किनारे वाली झोंपड़ी की बैक में छुपाए बंतासिंह ने स्वचालित राइफल की नाल बाहर निकाली। इस वक्त उसकी आंखों में लहू नहीं, लहू के कतरे तैर रहे थे। राइफल का रुख उसने बल्बों की पंक्ति की ओर किया।
जबड़े कसे और—
एक बार जब ट्रिगर पर उंगली का दबाव बढ़ाया तो फिर ढीला न पड़ने दिया—लगातार आग उगल रही नाल को उसने बल्बों की पंक्ति के साथ मूव किया।
"बल्ब बंद कर दो।" निर्भयसिंह की आवाज गूंजी।
एकदम ऑफ। जैसे सबका संबंध एक ही स्विच से था। घुप्प अंधेरा छा गया।
बंतासिंह और उस हर व्यक्ति को अपनी आंखों के सामने काजल-से अंधेरे के बीच रंगीन दायरे-से तैरते नजर आए, मगर फिर भी ऑफ होने से पहले काफी बल्बों का कांच झनझना कर बिखरने की आवाज गूंजी थी।
बल्बों के ऑफ होते ही बंतासिंह ने अपनी गन का रुख निर्भयसिंह की आवाज की तरफ मोड़ दिया था। गोलियों की बाढ़ उधर झपटी, परंतु कोई चीख नहीं।
जाहिर था कि निर्भयसिंह किसी पत्थर की बैक में था। बंतासिंह के जेहन में इस वक्त आग भरी हुई थी। शायद इसलिए दहाड़ा—"क्यों, अब इन्हें बंद क्यों करता है हरामजादे! जला—जला इन्हें, तेरी मर्दानगी हम देखें तो सही—बुझा क्यूं लिए, सामने आ।"
सामने से दागी गई गोलियां लकड़ी की उस दीवार में घुसकर रह गईं, जिसकी बैक में वह खड़ा था। तभी वातावरण में फूलो की आवाज गूंजी—"तूने उस शहरी लौंडे के फेर में पड़कर गुमटी के पेड़ों पर मोर्चा लगाया था बंता, हमारा मोर्चा उसी का जवाब है—तेरे किसी आदमी की तो बात दूर, आज तू खुद भी यहां से बचकर नहीं जा सकेगा।"
"हरामजादी-कमीनी!" बंतासिंह के मुंह से भद्दी गालियां निकलीं—"तू मुझे का मारेगी—तेरा कुछ ईमान नाहिं, सुच्चाराम के हत्यारन से समझौता करत रही—थू—थू है तुझ पर।"
सन्नाटा छाया रहा।
बंतासिंह पुनः चिंघाड़ा—"बोलती काहे नाहिं ससुरी, चुप क्यों हो गई?"
पुनः खामोशी।
"और तू ठाकुर...अरे जा, लानत है तुझ पर।" बंतासिंह किसी विकृत व्यक्ति की तरह दहाड़ रहा था—"ठाकुर के पूत तो औरतन की मदद से एक सांस भी न लेत और तू...तू तो मल्लाहिन की मदद लिए बैठा है—ठाकुरों के नाम को कलंक लगाय दियो तूने।"
उधर से हंसने की आवाज आई।
"हंसत है बेशरम?"
अंधेरा हुए काफी देर हो चुकी थी—यानि झोंपड़ियों की बैक में छुपे बंतासिंह के साथियों को अब कुछ दूर तक का अंधेरा साफ नजर आ रहा था। उनमें से कुछ जमीन पर लेटकर रेंगते हुए पहाड़ की तरफ बढ़े।
उनका प्रयत्न अंधेरे का लाभ उठाकर बल्बों के पीछे छुपे अपने दुश्मनों की छाती पर पहुंच जाना था। वे काफी तेजी से जा रहे थे। सबसे तेज रेंगने वाला था बंतासिंह।
ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे कोई मगरमच्छ सूखे में जाकर रेंग रहा हो और अभी वह पहाड़ पर करीब बीस गज ऊपर ही चढ़ पाया था कि—
बल्बों की पंक्ति एक बार फिर रोशन हो गई।
कई बल्ब फूटे हुए थे, किंतु रोशनी अब भी इतनी तेज थी कि पहाड़ पर चढ़ने का प्रयत्न कर रहे बंता सहित सभी न सिर्फ रोशनी से नहा गए, बल्कि आंखें भी बुरी तरह चुंधिया गईं। बुरी तरह बौखला गए वे।
इस बार रोशनी का केंद्र मचान नहीं, बल्कि पहाड़ के नीचे का हिस्सा था। उनके रोशनी में नहाते ही पंक्ति के पीछे से गोलियां चलीं।
एक बार फिर चीखों का संसार गर्म करते बंता के साथी लुढ़क गए।
अकेला बंतासिंह ऐसा था जिसने सख्ती से आंखें बंद करके गन का मुंह बल्बों की पंक्ति की ओर खोल दिया। कांच के झनझनाने के साथ उस तरफ से भी कई चींखें गूंजी। परंतु—
बंतासिंह की चीख उन सबसे ज्यादा हौलनाक थी।
बल्बों के पीछे से चलाई गई अनेक गोलियां उसके गैंडे जैसे जिस्म में धंस गईं। छलनी होने के बावजूद वह अपनी खंभे जैसी टांगो पर खड़ा हो गया। गन का मुंह अब भी खोल रखा था। कुछ गोलियां और लगीं।
गन हाथों से छूट गई, मुंह से गालियों का तूफान निकला। वह निर्भयसिंह और फूलो को भद्दी-भद्दी गालियां बक रहा था और ये गालियां बकते-बकते ही उसका पहाड़-सा भारी जिस्म 'धम्म' से गिरा। फिर अपने ही वजन जितने एक पत्थर को साथ लिए वह नीचे की तरफ लुढ़कता चला गया।
जब रुका तो साथ आने वाले पत्थर के नीचे दबा हुआ था। सारे बल्ब एक बार पुनः एकसाथ ऑफ।
¶¶
"मामला बिगड़ गया प्यारे झानझरोखे।" बंदूक संभाले एक पत्थर की बैक में छुपे विजय ने अशरफ से कहा— "बापूजान तो सचमुच हमारे बाप निकले—चार-पांच दिनों से जो रणनीति बनाए बैठे थे, वह पांच मिनट में तहस-नहस कर दी।"
"वाकई विजय, बंतासिंह भी मारा गया।"
"रणनीति तो सभी बनाते है प्यारे, मगर जंग में जीत उसकी होती है, वक्त पर जिसकी नीति कामयाब हो जाए—अब देखो न, हम मोर्चा जमाए चार दिन तक इनका इंतजार करते रहे—उधर ये यहां इंतजार कर रहे थे—इंतजाम भी कैसा अजीब! शायद ही जंग में पहले यहां रोशनी का इस्तेमाल हथियार की तरह हुआ हो।"
"हथियार?"
"ये हथियार नहीं तो कैसा क्या है? कभी दुश्मन की आंखों पर तेज रोशनी फेंककर अंधा बना दो तो कभी एकदम से घुप्प अंधेरा करके और खुद उसके पीछे बैठे सबकुछ देखते रहो—जो सामने पड़े, उसे छलनी कर दो। तुम देखना, जैसे ही हमारी आँखें अंधेरे में देखने की अभ्यस्त होंगी, वैसे ही तेज रोशनी वाले सारे बल्ब एकसाथ पुनः ऑन करके हमें अंधा बना दिया जाएगा।"
"कमाल की रणनीति है।"
"तभी तो बंता गिरोह का लगभग सफाया कर दिया।"
"हमें क्या फर्क पड़ता है, चाहे बंतासिंह गिरोह का सफाया हो या इनका, हमारे लिए तो बात एक ही है।"
"एक बात नहीं है प्यारे।"
"तुम्हीं ने तो कहा था कि...।"
"हमने यह नहीं कहा था कि डाकू दल का लगभग पूरा सफाया हो जाए और दूसरे दल को खास नुकसान न हो। सफाया भी बंता दल का, उसका जिसे हमने अपना दोस्त होने की भैरवी पिला रखी थी।"
"फिर क्या करें?"
"बापूजान इस वक्त हाथी हैं। उन पर काबू पाने की कोई तरकीब नजर नहीं आती—बंता गिरोह के बाद अब उनका निशाना हम और बेगुनाह ग्रामीण होंगे।"
"तो?"
"पुलिस-मदद लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।"
"तो देर किस बात की हैं, निकालो हैंडग्रेनेड और इस बार बल्बों के ऑन होते ही पंक्ति के पीछे उछाल दो—उन्हें काफी नुकसान भी पहुंचाएगा, साथ ही जंग में शामिल होने के लिए पुलिस को सिग्नल भी मिल जाएगा।"
"यह ठीक नहीं होगा।"
"क्यों?"
"बम-विस्फोट होते ही बजाज अपनी फौज लिए गांव में उतर आएगा और यदि ये बेवकूफी हो गई तो फोर्स का अंजाम भी वही होगा जो बंता दल का हुआ।"
कुछ सोचते हुए विजय ने कहा— "तुम्हें मैराथन की दौड़ दोहरानी होगी प्यारे।"
"मतलब ?"
"तुम्हें दौड़कर वहां जाना होगा, जहां फोर्स पड़ी है। अब ये तुम्हारे ऊपर है कि कितनी तेज दौड़ सकते हो—बस यूं समझ लो कि हमारे साथ-साथ सारे गांव की जान भी खतरे में है और उसे तुम बचा सकते हो—जितनी जल्दी वहां पहुंच जाओगे, हम लोग यहां उतने ही सुरक्षित हो जाएंगे।"
"करना क्या होगा?" अशरफ के समूचे जिस्म में तनाव उत्पन्न हो गया था।
"बजाज ऊपर से सारी स्थिति को वॉच कर रहा होगा।" विजय ने कहा— "यहां की स्थिति उसे विस्तार से बताने में समय बरबाद करने की जरूरत नहीं है, सिर्फ इतना कहना कि दुश्मन समय-समय पर ऑन होने वाले बल्बों की पंक्ति के पीछे है, अतः पुलिस को उस स्थान के पीछे पहुंचकर हमला करना है।"
"ओ○के○।"
"आज तुम्हारे तेज दौड़ने की परीक्षा है प्यारे।"
"चिंता मत करो।" इन शब्दों के बाद अशरफ आसपास नजर आया। वह छलावे की मानिंद अपने गतंव्य की ओर रवाना हो चुका था।
बल्ब पुनः एक झटके से ऑन हो गए।
¶¶
विकास ने खरगोश की तरह खुद को दो पत्थरों के बीच बने छोटे-से गैप में छुपा लिया—सांस तक रोक ली।
वह पहाड़ पर चढ़ रहा था।
उसी पहाड़ पर चढ़ पर जिस पर बल्बों की पंक्ति थी, जिसके पीछे से रह-रहकर गोलियां बरस रही थीं, परंतु इस कार्य को वह बंतासिंह या उसके साथियों की तरह मूर्खाना अंदाज में नहीं कर रहा था। दरअसल बल्बों के 'ऑन' होते ही वह स्वयं को पत्थरों के बीच बने गैप में छुपा लेता और ऑफ होते ही पुनः अपनी यात्रा शुरू कर देता। अब तक की यात्रा में दो बार बल्ब ऑन हुए थे। इस वक्त भी ऑन थे।
सांस रोके पड़ा रहा।
अपना लक्ष्य उसे पूरी तरह ध्यान था। लक्ष्य बांटते वक्त विजय ने अपने हिस्से में ठाकुर साहब को लिया और उससे कहा था—'तुम्हारा लक्ष्य फूलवती है दिलजले—अगर जिंदा गिरफ्तार कर सको तो 'वैल एण्ड गुड' वरना मार डालना, यानि जंग के दौरान तुम्हें अपना सारा ध्यान फूलवती पर केंद्रित रखना है।' और यही विकास ने किया।
विकास ने उसी क्षण फूलवती की दिशा का सही अनुमान लगा लिया था, जिस क्षण बंतासिंह के जवाब में वह बोली। तभी से फूलो की सीध में वह बल्बों के ऑन होने के अंतराल में पहाड़ पर चढ़ रहा था। नीचे से बल्बों पर गोलियां चलीं।
पंक्ति के पीछे से जवाबी गोलियां।
विकास पत्थरों की तरह खामोश पड़ा रहा। तब तक, जब तक कि बल्ब पुनः ऑफ न हो गए और उनके ऑफ होते ही पत्थरों पर किसी सर्प के समान रेंगकर अपनी यात्रा उसने फिर जारी कर दी।
कोई नहीं कह सकता था कि बल्ब किस क्षण ऑन हो उठेंगे। सो, वह ऐसे ढंग से ऊपर चढ़ रहा था कि प्रत्येक क्षण किसी-न-किसी गैप के समीप रहे। अच्छी तरह जानता था कि यदि ऊपर वालों को जरा-सी भी झलक मिल गई तो स्वयं भगवान भी उसे नहीं बचा पाएगा।
इस बार जब बल्ब ऑन हुए तो वह उस पत्थर के ठीक नीचे था, जिस पर एक बल्ब लगा था। पत्थर ज्यादा बड़ा भी नहीं था। उसके अनुमानुसार बल्ब के ठीक पीछे फूलो होनी चाहिए थी। अंतराल इतना था कि यदि हाथ में दबी बंदूक से चाहे तो फूलो के जिस्म को छू सके।
किंतु ऑन बल्बों के रहते यह आत्महत्या करने जैसा था, सो छुपा रहा।
"मैडम!" एकाएक उसे फुसफुसाहट सुनाई दी।
फूलो की आवीज—"हूं।"
"दुश्मन हमारी चाल से वाकिफ हो गया लगता है और पूर्व की भांति पहाड़ पर चढ़कर हम तक पहुंचने की कोशिश नहीं कर रहा—देखिए, नीचे बिना पोजीशन लिए कहीं कोई नजर नहीं आ रहा है। किसे निशाना बनाएं?"
"हमें अपनी रणनीति में कुछ चेंज लाना होगा।" फूलो की आवाज।
"क...क्या?"
"इसकी घोषणा अगर सरदार ही करें तो बेहतर होगा, क्योंकि यह सारी जंग उन्हीं के निर्देश पर लड़ी जा रही है। वे बहुत होशिया...।"
"धांय...धांय...धांय।"
अचानक एक बार फिर सारा वातावरण गोलियों की जबरदस्त आवाज से गूंज उठा। ऑन बल्बों की पंक्ति के पीछे से चीखों का शोर उभरा। कोई हलक फाड़कर चिल्लाया—"दुश्मन हमारे पीछे पहुंच चुका है।"
'धुम्म...धड़ाम!'
हैंडग्रेनेड के कर्णभेदी धमाके ने चीखों और गोलियों की आवाजों का दम घोंटकर रख दिया। जाने किस तरफ से आकर हैंडग्रेनेड बल्बों की पंक्ति के बाईं तरफ गिरा था। दुश्मनों में हड़कंप, चीख-पुकार और भगदड़ मच गई।
विकास को अपने समीप वाले बल्बों के पीछे एक साया लहराता नजर आया और यही क्षण था जब उसने अपने हाथ में दबी बंदूक का बट साये पर मारा।
एक जनानी चीख के साथ साया ऑन बल्ब पर गिरा।
पत्थर पर लुढ़का।
परंतु—
विकास ने हाथ बढ़ाकर उसके लंबे बाल पकड़ लिए। अगर ऐसा न किया होता तो पत्थरों पर लुढ़कती फूलो पहाड़ के निचले सिरे तक जानी थी और निश्चय ही यह उसकी अंतिम यात्रा होती, मगर इस वक्त स्थिति ये थी कि उसके बाल विकास की मुट्ठी में थे और बाकी शरीर नीचे लटक रहा था।
कदाचित् पीड़ा के कारण उसके मुंह से चीखें निकल रही थीं, किंतु ये चीखें गोलियों की गूंज और अब अच्छे स्तर पर हो रहे हैंडग्रेनेड के धमाकों के बीच फंसकर रह गई थी। दरअसल फूलो गिरोह की हालत इस वक्त फोर्स के सामने ठीक वैसी ही हो गई, जैसी कुछ देर पहले उसके सामने बंता गिरोह की थी। हमला ठीक पीछे से हुआ।
जान बचाने के लिए कुछ डाकू पहाड़ के इधर वाले हिस्से में कूदे। वे विजय, विक्रम, नाहर और ब्लैक ब्वॉय की गोलियों का निशाना बने।
फूलो को खींचकर विकास ने अपने साथ गैप में छुपा लिया। मुक्त होने के लिए वह छटपटा रही थी, परंतु यह गिरफ्त विकास की थी, किसी ऐरे-गैरे की नहीं।
¶¶
जंग मुश्किल से पंद्रह मिनट चली।
बजाज के नेतृत्व में फोर्स ऑन बल्बों के ठीक ऊपर पोजीशन लिए थी। उन्हीं के बीच था—अशरफ। और अशरफ ने भी एक सिपाही का पूरा फर्ज अदा किया।
फोर्स ने हैंडग्रेनेड तक का इस्तेमाल किया था, उनकी तरफ से हमला तब तक जारी रहा, जब तक सामने या नीचे से जवाब दिया जाता रहा और जब नीचे से जवाब आना बंद हो गया तो उनके हथियार भी खामोश हो गए।
पांच मिनट बाद एक छोटे माइक पर बजाज की आवाज गूंजी—"टॉर्च ऑन की जाएं।"
हुक्म का पालन हुआ।
एकसाथ कम-से-कम दस शक्तिशाली टॉर्चें ऑन हो गईं। प्रकाश-दायरे बल्बों की पंक्ति के इस तरफ छितराई पड़ी डाकुओं की लाशों पर मंडराने लगे।
उन्हें इंतजार था इस बात का कि शायद किसी टॉर्च पर गोली चले, मगर ऐसा नहीं हुआ।
दो मिनट बाद माइक पर पुनः बजाज की आवाज गूंजी—"अगर कोई जीवित है तो हाथ हवा में उठाकर खड़ा हो जाए, क्योंकि किसी भी किस्म की चालाकी का अर्थ अपने अधिकांश साथियों की तरह जान गंवाना होगा—तुम लोग इस वक्त चारों ओर से बुरी तरह घिरे हुए हो।"
इस तरह सारी स्थिति फोर्स और विजय ग्रुप के नियंत्रण में आ गई।
अधिकांश डाकू मारे गए। फूलो गिरोह के फूलो सहित यदि आठ डाकू गिरफ्तार हुए तो बंता के सिर्फ चार—हां, ठाकुर साहब का कहीं पता न था।
एक-एक लाश की बारीकी से शिनाख्त करने के बावजूद ठाकुर साहब का शव किसी को न मिला। गांव वालों को जब पता चला कि दोनों दस्यु दलों का लगभग सफाया हो गया है तो मारे खुशी के नाचने लगे।
इंस्पेक्टर श्रीवास्तव के साथ बजाज अभी युद्धस्थल का ही निरीक्षण कर रहा था, जबकि चौपाल से संबंधित इमारत के एक कमरे में विजय, विकास, अशरफ, ब्लैक ब्वॉय, विक्रम और नाहर फूलवती को घेरे खड़े थे। एक कुर्सी के साथ उसे रस्सियों से बांधा गया था। पूछताछ चल रही थी।
फूलवती वह सबकुछ बता न रही थी, जो वे जानना चाहते थे, बल्कि उल्टे गंदी-गंदी गालियां बक रही थी। विजय ने एक बार फिर प्यार से पूछा— "हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं मैडम कि तुमने बापूजान को पलक झपकते ही अपना सरदार कैसे बना लिया?”
"बता तो चुकी हूं, उल्ले के पट्ठे।" वह गुर्राई—"कितनी बार कहना होगा कि मेरे और उनके बीच एक समझौता हुआ था, यह कि...।"
"ये पट्टी तो हमने बंतासिंह को पढ़ाई थी।"
"तू यकीन क्यों नहीं मानता हरामजादे, यही सच है।"
विजय ने मोहक मुस्कान के साथ कहा— "समझौते का मतलब यह नहीं होता मेरी जान कि जिससे किया जाए उसे गिरोह का सरदार बना दिया जाए और फिर तुम्हारे और बापूजान के गुमटी आने से पहले ही संबंध थे—यह बात इसी से जाहिर है कि जब वे यहां से गए, तब मदद हासिल करने सीधे तुम्हारे अड्डे पर दौड़े गए—हम यह जानना चाहते हैं कि तुम्हारा ये याराना कितना पुराना है? भूल-भुलैया वाले रास्ते को पार करके वे तुम्हारे अडडे पर कैसे पहुंच गए?"
फूलवती ने इस बार कोई जवाब नहीं दिया। जबड़े कसे वह एकटक विजय को घूरती रही और जब इसी स्थिति को काफी देर हो गई तो एक कदम आगे बढ़कर विकास गुर्राया—"ये ऐसे नहीं बोलेगी गुरु—कितनी देर से कह रहा हूं कि इस पर मेरे तरीके कारगर सिद्ध होंगे।"
"लो प्यारे।" विजय हट गया—"अब तुम ही इसे अपने जलवे दिखाओ।"
फूलो बिल्कुल चुप रही।
विकास ने अशरफ से कहा— "आपके पास लाइटर होगा, अंकल!"
"हां।"
"जरा मुझे दीजिए।" उसने हाथ फैला दिया।
अशरफ ने जेब से लाइटर निकालकर उसके हाथ पर रखा ही था कि बजाज इंस्पेक्टर श्रीवास्तव के साथ अंदर दाखिल हुआ। श्रीवास्तव के हाथों में दो शक्तिशाली बैटरियां थी, जिनकी ओर इशारा करके बजाज ने बताया—"इनकी शक्ति से वे बल्ब ऑन होते थे मिस्टर विजय, सारे बल्बों का संबंध एक ही स्विच से था।"
"जाहिर है।"
"वे घोड़े भी बंतासिंह के थे जिनकी जींस के साथ इंसानी चीख-पुकास के टेप बांधकर प्रारम्भ में इन लोगो ने बंता-गिरोह को भ्रमित किया।"
"इनमें से कोई भी जानकारी ऐसी नहीं है एस.पी. साहब, जिसे हम पहले से न जानते हों। अगर कुछ नई बातें जानना चाहते हो तो चुप रहकर, सांस रोककर हमारे दिलजले के पैंतरे देखो। हां—तुम अटक क्यों गए दिलजले, आगे बढ़ो।"
विकास तो मानो था ही इस ताक में।
कुर्सी पर बंधी फूलो के नजदीक पहुंचते-पहुंचते लड़के के चेहरे पर हिंसक भाव उभर आए। कुछ ऐसे कि फूलो जैसी सख्त, बदतमीज और बदमिजाज और के जिस्म में भी सनसनी दौड़ गई। बड़ी मुश्किल से उसने थूक निगला, जबकि विकास के मुंह से किसी भेड़िए की-सी गुर्राहट निकली—"अभी जो तुझसे पूछताछ कर रहे थे, वे मेरे गुरु जरूर हैं, परंतु उनके और मेरे तरीके में जमीन-आसमान का अंतर है—सिर्फ एक बार पूछता हूं कि तू हमारे सवालों का जवाब देती है या नहीं?"
"न...नहीं।" उसने सख्त भाव से कहा।
"बस।" लड़के का चेहरा कुछ और वीभत्स हो उठा—"अब मैं कोई सवाल नहीं करूंगा, बल्कि तुझे बदसूरत करने की प्रक्रिया शुरू, करने वाला हूं और ये प्रक्रिया उस वक्त तक नहीं रुकेगी, जब तक कि तू खुद हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार नहीं होगी।"
फूलो चाहकर भी मुंह से गाली न निकाल सकी। 'क्लिक' की आवाज के साथ विकास के हाथ में दबा। लाइटर ऑन हो गया।
धड़कते दिल से वह 'लौ' को देखती रही, जबकि हाथ बढ़ाकर लाइटर की लौ फूलो की नाक से स्पर्श कर दी। मांस जलने लगा। फूलो चीखने लगी। विकास भला उनमें से कहां जो दुश्मन के मुंह से निकलने वाली चीखों की परवाह करे। फूलो ने यथासंभव अपना चेहरा हटाना चाहा, किंतु विकास के लाइटर की 'लौ' उसकी नाक से नीचे रही। गुर्राया—"मैं इस लाइटर से तेरा सारा चेहरा
जला डालूंगा और ये भी गारंटी रही कि मरने नहीं दूंगा...इतनी बदसूरत बना दूंगा तूझे कि...।"
आगे के शब्द फूलो की चीख-पुकार में दबकर रह गए। बजाज और श्रीवास्तव को लगा कि जिसे वे खूबसूरत, मासूम और भोला-भाला समझ रहे थे, वह लड़का नहीं जल्लाद है।
कमरे में गोश्त के जलने की दुर्गंध फैलने लगी। जलन कहिए या बदसूरत हो जाने से डरने वाली स्त्री-सुलभ कमजोरी कि फूलवती जल्दी ही टूट गई और उसने बताना शुरू किया।
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