धनुषटंकार को कमरे से बाहर निकालने के बाद विजय ने दरवाजा अन्दर से बंद किया और अपने जूते की एड़ी पर फिरकनी के समान घूम गया। उससे नजर मिलते ही बेट पर लेटा विकास धीमें से मुस्करा उठा।

मुस्कराता हुआ ही विजय भी उसके नजदीक पहुंचा और एक कुर्सी खींचकर उसके बेड़ के बहुत समीप बैठ गया, बोला—"कहो प्यारे दिलजले।"
"एक्टिंग कैसी रही, गुरू?"
"एक्टिंग तो ठीक रही बेटे, लेकिन अब तुम जरा असलियत पर आ जाओ।"
चौंकते हुए विकास ने पूछा—"कैसी असलियत?"
"ब्रिटेन जाने का मूल कारण, इर्विन की हत्या का वास्तविक कारण और यह हकीकत तो इन सबसे छुपानी आवश्यक थी ही कि ब्रिटेन हम भी तुम्हारे साथ गए थे—बताने के लिए इर्विन की हत्या का कोई ठोस कारण तुम्हारे पास नहीं था, और कारण न बताने की जिद पकड़कर तुमने यकीनन काबिलें—तारीफ होशियारी की हैं, मगर...।"
"मगर क्या गुरू?"
"जब तुमने इर्विन की हत्या की, क्या उस वक्त तुम सचमुच यह समझते थे कि अपना लूमड़ इर्विन से बिल्कुल प्यार नहीं करता है?"
“यदि मुझे इस बात में जरा भी शक होता तो क्या मैं हत्या करता?”
"अब तुम्हें क्या लगता है?"
थोड़ा हिचकते हुए विकास ने कहा—"यदि बुरा न माने गुरू, तो हकीकत कह दूं?"
"जरूर कहो प्यारे।"
"अब लगता हैं कि उस स्पॉट पर अलफांसे गुरू को समझने में भूल हो गई थी, सिर्फ मुझसे ही नहीं, बल्कि आपसे भी—आपका ख्याल भी तो यही था कि क्राइमर अंकल इर्विन से बिल्कुल प्यार नहीं करते हैं—मगर इर्विन की हत्या के बाद उनका जो रूप सामने आया है, उससे लगता है कि हम चूक गए थे, अलफांसे गुरू निश्चय ही किसी-न-किसी स्तर तक इर्विन से प्यार जरूर करते थे।"
"अब हमें भी ऐसा ही लग रहा है, प्यारे।"
"क्या मतलब?"
"लगता है कि सच वही है, जो लूमड़ ने सुरंग में हमसे कहा था, इर्विन की शादी उसका एक ड्रामा ही था, परन्तु बाद में धीरे-धीरे वह ड्रामा हकीकत की मुहब्बत में बदल गया, यह बात हालांकि उसी समय जाहिर हो गई थी जब इर्विन के लिए हमारे जबड़े के कई दांत हिला दिए थे और उसका वही रूप हमें विश्वास दिला रहा है कि बदला लेने लूमड़ यहां आएगा जरूर।"
लड़के ने मोहक मुस्कान के साथ पूछा—"क्या आप क्राइमर अंकल से आतंकित हैं, गुरू?"
विजय चुप रह गया, कुछ देर बाद बोला—"स्थिति सांप-छुछूंदर वाली बन गई है बेटे, अब छुछूंदर को न तो उगला जा सकता है, न निगल सकते हैं—खैर, जब वक्त आएगा तब देखा जाएगा—फिलहाल हम लूमड़ को तुमसे दूर ही रोकने के लिए इंतजाम करते हैं।"
"कोई जरूरत नहीं है गुरू, अपने बेटे को इतना कायर भी मत बनाओ।"
"बस प्यारे, यही तो तुम्हें हम समझाना चाहते हैं कि किसी प्रकार की अतिरिक्त बहादुरी दिखाने की जरूरत नहीं है—चुपचाप यहीं लेटे रहना। यदि तुमने हमारे और बापूजान से तैयार किया गया घेरा तोड़कर बाहर निकलने की मूर्खता की तो ऐसा होगा कि लूमड़ को तुम तक पहुंचने के लिए इस घेरे को भी तोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी और इस बात को अच्छी तरह समझ लो कि यदि तुम उसके सामने पड़े तो वह तुम्हारे जिस्म के किसी भी पीस को इतना बड़ा नहीं छोड़ेगा, जिसे यार लोगों को श्मशान में जाकर फूंकने की जरूरत पड़े।"
जवाब में विकास के होंठो पर एक मोहक-सी मुस्कान उभरकर रह गई थी।
विजय उठा और फिर खामोशी के साथ कमरे से बाहर निकल गया—बाहर आते ही रैना, रघुनाथ और धनुषटंकार ने उसे घेर लिया। विजय ने धनुषटंकार को आज्ञा दी कि वह हर पल विकास पर नजर रखे और किसी भी कीमत पर उसे कोठी के बाहर न निकलने दे।
धनुषटंकार कमरे के अन्दर चला गया।
रैना और रघुनाथ के सवालों के जवाब में विजय ने कहा—"दिलजला अड़ियल टट्टू की तरह अड़ा हुआ है, वह अन्य सब प्रश्नों का जवाब देता हैं, किन्तु मुख्य प्रश्न पर चुप हो जाता है।"
रैना और रघुनाथ के चेहरों पर आतंक के साथ निराशा के भी भाव फैलते चले गए।
अलफांसे से टकराने की तैयारी करने के लिए विजय ने फिलहाल उनसे विदाई मांगी।
¶¶
सीक्रेट फोन पर विजय ब्लैक ब्वॉय से पूछ रहा था—"तुमने अशरफ, विक्रम, नाहर, आशा और परवेज आदि को उनके मोर्चो पर तैनात कर दिया है न प्यारे, काले लड़के?"
"यस सर।" दूसरी तरफ से ब्लैक ब्वॉय ने कहा।
"और कोई विशेष सूचना?"
"जी हां, विभिन्न देशों से भारतीय जासूसों कि रिपोर्ट मिली हैं—इन रिपोर्टस से मालूम पड़ता है कि लगभग सारे विश्व में कोहिनूर, इर्विन के कत्ल और अलफांसे से खाई गई कसम की चर्चा है—प्रत्येक मुल्का का टॉप जासूस अलफांसे ने विरुध्द विकास की मदद करने के लिए भारत आना चाहता है। रुस से रिपोर्ट मिली है कि बागारोफ विकास की मदद करने के लिए भारत आने के सवाल पर अपने चीफ से ही टकरा बैठा हैं। यही स्थिति चीन के हुचांग और पाकिस्तान के नुसरत—तुगलक की हैं—बंग्लादेश से रिपोर्ट मिली हैं कि भारत आने की इजाजत लेने के लिए रहमान अपने राष्ट्रपति से मिला।"
"पता नहीं काले लड़के, आज तक हम खुद नहीं समझ सके कि इस जल्लाद लडके में ऐसी क्या खास बात है, जिसकी वजह से इसके दुश्मन भी इससे बेइंतहा मोहब्बत करते हैं—इसका कट्ट-से-कट्टर दुश्मन भी कम्बख्त की मौत नहीं चाहता।"
"ब्रिटेन के अलावा लगभग सभी देशों से ऐसी ही रिपोर्टस मिली हैं, बल्कि न्यूयॉर्क में स्थित हमारे जासूस ने तो यह सूचना भेजी है कि हैरी आर्मस्ट्रांग भारत के लिए रवाना हो चुका है।"
"लगता है प्यारे कि यह लफड़ा लंबा ही फैलेगा।"
"क्या इतनी मदद के बाद भी अलफांसे विकास से बदला लेने के लिए अपने फैसले पर पुर्नविचार नहीं करेगा सर?"
"लूमड़ पर किसी बात का कोई फर्क नहीं पड़ता है प्यारे, खैर—ब्रिटेन की और विशेष रूप से बॉण्ड के सम्बन्ध में क्या रिपोर्ट है?"
"वहां से अभी तक कोई रिपोर्ट नहीं मिली है, सर।"
कुछ देर तक विजय चुप रहा, जैसे कुछ सोच रहा हो, फिर बोला—"फिलहाल गुप्त—भवन में तुम्हारी सीट हम संभालते हैं प्यारे, तुम रैना बहन के पास जाओ, उसे सांत्वना दो—वह बहुत ज्यादा आतंकित है—सांकेतिक ढ़ंग से तुम उसे यह भी बता देना कि सारी दुनिया का जासूस विकास की मदद के लिए भारत पहुंचने ही वाला है, शायद यह जानकर रैना को कुछ ढांढस बंधे।"
"ओ○के○ सर।"
¶¶
विजय उस वक्त गुप्त भवन में ब्लैक ब्वॉय की कुर्सी पर बैठा राजनगर के विभिन्न स्थानो पर तैनात सीक्रेट सर्विस के जासूसों को रिपोर्ट ले रहा था—अभी तक उनमें से किसी की भी रिपोर्ट में कोई खास बात नजर नहीं आ रही थी।
एकाएक ही वह उस वक्त चौंका, जब वह ट्रांसमीटर स्पार्क करने लगा, जिस पर दुनिया के किसी भी कोने से संपर्क स्थापित किया जा सकता था। उस ट्रांसमीटर पर दुनिया के विभिन्न देशो में फैले भारतीय जासूस संपर्क स्थापति करते थे।
आवाज सिंगही की थी—"हैलो, मिस्टर चीफ ऑफ इंड़ियन सीक्रेट सर्विस।"
"कौन है आप, और क्या बक रहे हैं?" आवाज बदलकर विजय गुर्रा उठा।
दूसरी तरफ से व्यंग्य में डूबी सिंगही के हंसने की आवाज गूंजी, बोला—"बनने की कोशिश न करें, क्योंकि मैं जानता हूं कि आप वही हैं, जो मैं कह रहा हूं—आपसे पहले भी इस तरह कई राष्ट्रो के सीक्रेट सर्विस के चीफ्स से बात कर चुका हूं।"
"आप कौन हैं?"
"सिंगही।"
"कौन सिंगही?"
"दुनिया में आज शायद ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सिंगही के नाम से परिचित न हो, हां—आपकी तरह अक्सर लोग मुझे न जानने का बहाना जरूर करते हैं, खैर—आज सुबह प्रसारित होने वाले बी.बी.सी. बुलेटिन में यह तो आपने सुन ही लिया होगा कि कोहिनूर इस वक्त मेरे पास है?"
"फिर?"
"मैं उसे बेचना चाहता हूं।"
"हमें उससे क्या मतलब?"
"क्या भारत कोहिनूर को खरीदने का इच्छुक नहीं है?"
एक मिनट सोचने के बाद विजय ने पूछा—"तुम कोहिनूर की क्या कीमत चाहते हो?"
दूसरी तरफ से व्यंग्य में डूबी सिंगही की भयानक हंसी की आवाज गूंज उठी, बोला—"मुसीबत यह है जनाब कि कोहिनूर एक है और उसे खरीदने के लिए वही राष्ट्र तैयार हो जाता है जिससे भी मैं संपर्क स्थापित करता हूं, अतः उलझन में फंस गया हूं कि कोहिनूर किसे दूं? खैर—इस उलझन से बचने का रास्ता मैंने निकाल लिया हैं—टैंड़र सिस्टम।"
"क्या मतलब?"
"सीधी-सी बात है कि कोहिनूर मैं उस राष्ट्र को बेचूंगा जो मुझे इसकी सबसे ज्यादा कीमत देगा, अतः मेरे अगली बार संपर्क स्थापित करने तक आप अच्छी तरह निर्णय करके रख लें कि कोहनूर की क्या कीमत दे सकते हैं?"
विजय ने कुछ कहने के लिए मुहं खोला ही था कि दूसरी तरफ से सम्बन्ध विच्छेद हो गया और विजय को अपना दिमाग किसी बजरबट्टू की तरह हवा में नाचता-सा महसूस होने लगा।
ट्रांसमीटर ऑफ करके वह ब्लैक ब्वॉय के आने तक सिंगही और उससे कही गई बातों में ही डूबा रहा, लौटकर आने पर ब्लैक ब्वॉय ने बताया कि—यह जानने के बाद रैना अब काफी सामान्य है कि विकास की मदद के लिए दुनिया के महान जासूस बेताब हैं और हैरी आ रहा है।
तब, विजय ने उसे ट्रांसमीटर पर ही सिंगही से हुई बातों का विवरण सुना दिया, सुनने के बाद ब्लैक ब्वॉय ने पूछा—"इस सम्बन्ध में आपकी क्या राय है, सर?"
"हमारी राय तो प्यारे, फिलहाल तेल लेने चली गई है।"
"क्या मतलब?"
"हमारा देश बहुत गरीब हैं, जब तक दुनिया में अमेरिका, रूस, चीन और ब्रिटेन जैसे अमीर देश मौजूद हैं, तब तक यह बात तो ख्वाब में भी नहीं सोची जा सकती कि उनके मुकाबले में कोहिनूर को हम खरीद लेंगे, फिर भी तुम सरकार से बात कर लो।"
"ओ○के○ सर।"
¶¶
आंतकित रैना ने बड़ी मुश्किल से रात गुजारी।
सारी रात जागती रही थी वह, उसके साथ ही रघुनाथ भी जागा था और अभी, मुश्किल से एक घंटे पहले यानि पांच बजे वह रैना के काफी अऩुरोध के बाद सोया था।
सारी रात हल्की-सी आहट पर भी उन्हें यूं लगता कि जैसे अलफांसे आ गया हो।
उस वक्त सवा छह बजे थे जब रैना ने किचन में जाकर चाय बनाई और पंद्रह बाद ही वह हाथ में बेड़—टी लिए विकास के कमरे के बंद दरवाजे पर दस्तक दे रही थी।
अन्दर से किसी ने दरवाजा नहीं खोला, हल्की-सी प्रतिक्रिया तक नहीं हुई।
पहले तो रैना ने यही समझा कि शायद विकास और धनुषटंकार गहरी नींद में थे, परन्तु जब काफी देर तक भी स्थिति यही रही तो रैना का माथा ठनका।
दरवाजे को पीटने लगी वह।
समय के साथ ही कप-प्लेटें उसके हाथ से छूट गईं और वह पागलों की तरह दरवाजे की पीटती हुई 'विकास-विकास' चिल्लाने लगी।
यहां तक कि रघुनाथ उठकर वहां आ गया।
रैना की बात सुनने के बाद वह भी पागलों की तरह दरवाजे को पीटने और विकास-विकास चीखने लगा—हजार तरह की आंशकाओ से घिरी रैना अब फूट-फूटकर रोने लगी थी।
रघुनाथ ने दराजा तोड़ दिया।
अन्दर का दृश्य देखते ही वे दोनो भौंचक्के रह गए।
बेड बिल्कुल खाली था, फर्श पर धनुषटंकार का जिस्म बेहोश अवस्था में पड़ा था, कमरे में विकास का कहीं नामो-निशान न था।
एक खिड़की के तीन सरिए फर्श पर मुडे पड़े थे।
रघुनाथ उधर लपका, स्पष्ट था कि दरवाजे के स्थान पर यही रास्ता अपनाया गया हैं—बौखलाई-सी रैना सारे कमरे में अपने लाल को ढूंढ रही थी। दृष्टि पलंग पर मौजूद एक कागज पर पड़ी।
रैना ने झपटकर उसे उठा लिया—पढ़ा—लिखा था।
आदरणीय विजय गुरू,
चरण स्पर्श,
बड़े दु:ख की बात है कि आपने मुझे जयद्रथ बना दिया है, मेरे चारों तरफ आपने और नानाजी ने कुछ वैसी ही व्यूह—रचना कर डाली हैं जैसी अर्जुन से बचाने के लिए कौरवों ने जयद्रथ के चारों तरफ की थी। यह सब व्यूह—रचना इसलिए की गई है कि क्राइमर अंकल मुझ तक न पहुंच सकें—यह व्यूह-रचना मेरे प्रति आपके दिलो में भरे प्यार की परिचायक है और मैं आप लोगों के इस प्यार की कद्र करता हूं।
मगर, प्लीज गुरू—अपने बच्चे को जयद्रथ मत बनाओ, अभिमन्यु ही रहने दो—जयद्रथ कायर था, डरपोक और बुजदिल था जो अर्जुन के डर से उस व्यूह के बीच छुपा रहा—विकास सब कुछ हो सकता है गुरू, मगर डरपोक नहीं हो सकता—क्राइमर अंकल से टकराने के लिए मैं खुद आपके इस व्यूह से बाहर जा रहा हूं—लोग अगर कहें कि अलफांसे के डर से विकास सहमें हुए चूहे की तरह अपने बिल में छुप गया, तो यह विकास की नहीं, आपकी और क्राइमर अंकल की तौहीन होगी गुरू—और ये बच्चा अभी इतना नालायक नहीं हुआ है कि अपने गुरू की तौहीन होने दे।
आप का बेटा
विकास।
¶¶
जिस प्रकार रघुनाथ की कोटी के बाहर तैनात नाहर ने विजय को यह सूचना दे दी कि कोठी के अन्दर से किसी दरवाजे को तोड़े जाने और रैना—रघुनाथ के चीखने की आवाज आ रही है, उसी तरह कोठी के बाहर नियुक्त फोर्स ने भी ठाकुर साहब को कोठी के अन्दर की असामान्य स्थिति की सूचना दे दी थी।
लगभग एक साथ ही वे दोनों कोठी पर पहुंचे।
पुलिस के ढेर सारे अफसर कमरे के अन्दर घुस आए थे, ठाकुर साहब उन पर गर्म हो रहे थे—एक कोने में मुंह छुपाए रैना फूट-फूटकर रो रही थी।
विजय ने एक सिपाही को धनुषटंकार को होश में लाने का आदेश दिया ही था कि उसका लॉकेट रुपी ट्रांसमीटर स्पार्क करने लगा। वह तेजी से साथ बाथरूम के अन्दर प्रविष्ट हो गया।
दरवाजा अन्दर से बंद करके जब उसने ट्रांसमीटर ऑन किया तो दूसरी तरफ से अशरफ की आवाज उभरी—" हैलो, अशरफ रिपोर्टिंग, सर।"
"हम बोल रहे है।" विजय ने पवन के-से भर्राए हुए स्वर में कहा।
"अमेरिका से अभी-अभी आने वाले विमान से हैरी उतरा है सर, इस वक्त मैं उसे बिल्कुल स्पष्ट देख सकता हूं, कस्टम पर उसका सामान चैक किया जा रहा है।"
"उसे आने दो और सुनो, अब तुम्हें अपनी ड्यूटी को कुछ और ज्यादा मुस्तैदी के साथ निर्वाह करना है, क्योंकि कल रात किसी समय विकास अपनी कोठी से निकल गया हैं—संभव है कि वह राजनगर या भारत से ही बाहर जाने की कोशिश करे।"
"य...यह आप क्या कह रहे हैं सर, विकास...।"
मगर अशरफ का पूरा वाक्य सुने बिना ही विजय से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया—लॉकेट को गले में डालकर वह बाहर निकला—किसी से फोन पर बातें करने के बाद ठाकुर साहब ने रिसीवर अभी-अभी क्रेड़िल पर रखा था, रघुनाथ की तरफ घूमकर वो बोले—
"हमें अभी-अभी एयरपोर्ट से सूचना मिली है कि हैरी आ चुका हैं, हमने उसे यहां ले आने के आदेश दिए हैं।"
उधर, होश में आने पर धनुषटंकार अपनी डायरी में लिखकर केवल इतना ही बता सका कि रात के तीन बजे के करीब फर्श पर बैठे-बैठे अनायास ही उसे नींद आ गई और तब से वह अभी जागा है—यानि उसकी रिपोर्ट पूरी तरह निराशापूर्ण थी।
काफी देर तक कोठी में कोहराम-सा मचता रहा, मगर अब इस कोहराम से होना क्या था?
एक कोने में बैठी रैना इस तरह आंसू बहा रही थी जैसे अब उसके दिल में विकास के बचने की कोई उम्मीद शेष न रह गई हो और लगभग यही समय था जब हैरी ने वहां कदम रखा।
सबसे पहले ठाकुर साहब, रघुनाथ और फिर विजय के चरण-स्पर्श किए उसने—तब, वह कोने में बैठी रो रही रैना के नजदीक पहुंचा, बोला—"म...मैं आ गया हूं मौसी।"
आंसुओं से भीगा चेहरा एक झटके के साथ रैना के ऊपर उठाया, रोते-रोते आंखें गूंज गई थी उसकी, हैरी को खड़ा देखकर उसकी रुलाई कुछ और जोर से फूट पड़ी।
लड़का झुका, पूर्ण श्रध्दापूर्वक रैना के चरण—-स्पर्श किए उसने और फिर दोनों हाथो से रैना के कंधे पकड़कर बोला—"छिः मौसी तुम रोती हो, विकास की मां होकर रोती हो—वह कोई रसगुल्ला नहीं कि कोई भी खा जाए।” रैना की हिंचकिया रुकी नहीं।
कंधे मजबूती के साथ पकड़कर हैरी ने रैना को ऊपर उठाया, अपने सामने खड़ी करके बोला—"मैं आ गया हूं रैना मां, तेरा दूसरा बेटा—मेरे जीते-जी अगर विकास को एक खरोंच भी जाए तो मेरा नाम हैरी नहीं।" भावावेश में हैरी को खींचकर अपने कलेजे से
लगा लिया रैना ने और रुलाई कुछ और ज्यादा जोर से फूट पड़ी, विजय विचित्र निगाहों से हैरी को देख रहा था।
¶¶
अब अकेली रैना ही कोठी में रह गई थी—विजय, ठाकुर साहब, रघुनाथ और यहां तक कि धनुषटंकार भी विकास की खोज में निकल गए था।
हैरी बाथरूम में नहा रहा था।
नहाने के बाद उसे भी विकास की तलाश में निकल जाना था, किसी को नहीं मालूम था कि विकास को आखिर ढूंढना कहां हैं, मगर फिर भी दीवानों की तरह वे सभी राजनगर की सड़कों पर निकल गए थे।
रैना उस वक्त भी एक कोने में उदास और गुमसुम-सी बैठी थी। एकाएक ही जोर से बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की और रैना ने बरबस की चेहरा ऊपर उठाकर उस तरफ देखा।
देखते ही रैना उछल पड़ी—ठीक यूं जैसे अचानक बिच्छू ने डंक मार दिया हो।
उसके मुंह से चीख-सी निकली—"त...तुम?"
"हां, मैं—ठाकुर साहब और विजय के जाल के बीच से गुजरता हुआ यहां पहुंचा हूं।"
"म...मगर अलफांसे भइया, तुमने अच्छा ही किया जो सीधे यहां आ गए, मेरे पास—मुझे तुमसे बहुत-सी बातें करनी हैं।"
वह अंतराष्ट्रीय मुजरिम ही था, सचमुच अलफांसे।
यहां हैरी बनकर आया था वह, किन्तु इस वक्त उसके चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था, किसी पत्थर की तरह सख्त और खुरदरे चेहरे वाला अलफांसे।
उसकी आंखें यूं भभक रही थीं जैसे अंगारे भभक रहे हों।
उसे ध्यान से देखने के बाद एक बार तो रैना के समूचे जिस्म में सिहरन-सी दौड़ गई और फिर अलफांसे को उसने किसी भेड़िये की तरह गुर्राते सुना—"वह कुत्ता तो मेरे यहां पहुंचने से पहले ही भाग चुका है, चाहता तो उसके सामने आने तक हैरी ही बना रहता—मगर नहीं, मैंने ऐसी नहीं किया—जानती हो क्यों?"
"क...क्यो?"
"मुझे तुझसे कुछ बात करनी है।"
"क...किस तरह बोल रहे हो, अलफांसे भइया? मुझे तू कहकर तो शायद तुम कभी नहीं बोले।"
"शुक्र करो रैना कि तुझे, तेरी कोख को गाली नहीं दे रहा हूं।"
"इतना गुस्सा ठीक नहीं, अलफांसे भइया।"
"मैं जानता हूं क्या ठीक है और क्या नहीं।" कहने के बाद दहकता चेहरा लिए अलफांसे ने खून से सना नाइट गाउन रैना की तरफ बढ़ा दिया, बोला—"यह लो।"
"यह क्या है, अलफांसे भइया?" रैना ने कंपित स्वर में पूछा।
"कफन तेरे बेटे का।"
"भ...भइया।" रैना चीखकर पीछे हटी, नाइट गाउन फर्श पर गिर गया।
दांत पीसते हुए अलफांसे ने गाउन पर अपना जूता रखा, उसे कुचलता हुआ गुर्राया—"यह मेरी इर्विन का नाइट गाउन है, देख—इस पर मेरी इर्वि के खून के धब्बे है—जिस वक्त तेरे लाड़ले ने उसे मारा था तब इर्वि यही पहने थी—मैं बख्शूंगा नहीं रैना—खून का बदला खून है, तेरे लाल के परखच्चे न उड़ा दिए तो मेरा नाम अलफांसे नहीं।"
"य...यह तुम क्या कह रहे हो भइया, तुम विकास को मारोगे!"
"उस कुत्ते को सिर्फ मार डालने से कलेजा ठंडा नहीं होगा मेरा, बोटी-बोटी काटकर फेंक दूंगा रैना, कतरे-कतरे करके चील-कौओ को खिला दूंगा उस हरामजादे के।"
"ऐसा मत कहो भइया, प्लीज—ऐसा मत कहो। ऐसी क्या गली हो गई है मेरे विकास से?"
"हूं—गलती पूछती है—क्या तुझे नहीं मालूम?"
"स...सच मानो भइया, विकास नहीं जानता था तुम इर्विन से इतना प्यार करते हो—वह तो यह समझे था कि तुमने सिर्फ किसी मकसद को पूरा करने के लिए इर्विन से शादी की, यदि उसे मालूम होते कि तुम इर्विन से सचमुच प्यार करते हो, इस कदर गुस्सा करोगे तो वह इर्विन को कभी न मारता, वह तो बस—छोटी-सी गलतफहमी की वजह से...।"
"तो उन्हें तेरा बेटा मारता फिरेगा, जिन्हें कोई प्यार नहीं करता?"
निरुत्तर-सी हो गई रैना, शायद इसलिए विषय बदलकर बोली—"प...पता तो लगे भइया कि तुम्हारे और विकास के बीच में आखिर हुआ क्या है?"
"उसी से नहीं पूछा?"
"हजार बार पूछने पर भी उसने यह नहीं बताया।"
अलफांसे के होंठों पर मुस्कान उभर आई, बहुत ही जहरीली मुस्कान—वैसी ही जैसे अपने शिकार को डसने से पहले विषकन्या के होंठों पर उभरती हैं—किसी सर्प के समान ही फुंफकारा वह—"बताता तो तभी जब ऐसा कोई षड़्यन्त्र मैं रच रहा होता।"
" त...तो क्या विकास ने झूठ बोला था?"
" नहीं, वह भला झूठ क्यों बोलेगा—तेरा बेटा जो है वह, तेरा लाड़ला—तेरे कलेजे का टुकड़ा—झूठ तो मैं बोल रहा हूं—मैं—क्योंकि मैं गैर हूं।"
"ऐसा क्यों कहते हो भइया? क्या मैं तुम्हारी नहीं, क्या इस घर से तुम्हें कभी कोई प्यार नहीं मिला और फिर क्या विकास खुद तुम्हारे अब उस हरामजादे की मौत के साथ ही ठंड़ा होगा?"
"अगर ये ज्वालामुखी खून से ही ठंड़ा होगा तो लो अलफांसे भइया, मैं खड़ी हूं तुम्हारे सामने, निकालो चाकू और बहा दो मेरा खून—म...मगर मेरे बेटे को बख्श दो।"
"मैं तेरे बेटे की तरह कायर नहीं हूं, जो औरतों के खून से अपना चाकू रंगता फिरुं, मेरा चाकू उस पर झपटता है, जिसने जुर्म किया हो।"
"ऐसा मत कहो भइया, ऐसा मत कहो—देखो, मैं अपना आंचल फैला रही हूं—भीख मांग रही हूं तुमसे—मेरे बेटे को बख्श दो, तुम्हें मेरी राखी की कस्म।”
"थू।" अलफांसे ने रैना के फैले हुए आंचल में थूक दिया।
"भ...भइया।" रैना दहाड़े मार-मारकर रो पड़ी।
"उस वक्त कहां था तेरा यह आंचल, जब वह दरिंदा मेरी इर्वि पर वार कर रहा था—तब कहां थी तेरी राखी की सौन्गध, जब उसने मेरा घर उजाड़ दिया—अलफांसे को प्यार करना नहीं आता था, रैना—उस अभागी इर्विन ने प्यार करना सिखा दिया था मुझे—अलफांसे ने जिसे जान से बढ़कर चाहा, उसी को खत्म कर दिया तेरे बेटे ने—यूं, जैसे वह कोई गाजर-मूली हो—धिक्कार है उस अलफांसे पर, जो इर्वि की मौत का बदला न ले—फर्श पर पड़े इस गाउन को उठा ले रैना, यह कफन है तेरे बेटे का—वादा रहा, उस बुजदिल के जिस्म की सैंकड़ों बोटियां करके मैं तेरे पास भिजवा दूंगा, इस गाउन में बांधकर उन बोटियों को किसी चिता के हवाले कर देना।"
एकाएक ही रैना का चेहरा सख्त हो गया, जैसे समझ गई हो कि अलफांसे पर उसके गिडगिड़ाने का कोई असर नहीं होगा, थोड़े कठोर स्वर में बोली वह—"हिंसा से सिर्फ हिंसा को जन्म होता है, भइया। क्या विकास को मारकर तुम खुद बच सकोगे?"
व्यंग्य में डूबी गुर्राहट—"क्यों, मुझे कौन मारेगा?"
"विजय भइया, ठाकुर साहब, अजय भइया और दुनिया के वे सारे जासूस, जो उसकी मदद के लिए निकल चुके हैं या निकलने वाले हैं—क्या वे तुम्हें छोड़े देंगे? तुम अकेले हो—उधर वे सब हैं। कल सिंगही और जैक्सन भी विकास की मदद के लिए आ सकते हैं।"
"तू भूल गई रैना, अलफांसे एक शेर का नाम है—एक जंगल में केवल एक ही शेर हुआ करता है। जंगल में और सैंकड़ों जानवर होते हैं, मगर वे सब जंगल के बादशाह के इशारे पर नाचते हैं, किसी के इशारे पर शेर नहीं।"
"शेर भी नाचता हैं लूमड़ मियां, शेर भी नाचता है।" विजय की आवाज ने उन दोनों ही को चौंका दिया।
अलफांसे फिरकनी की तरह घूमा।
चीखती हुई रैना दौड़कर विजय से लिपट गई।
"तुम?" अलफांसे का चेहरा कनपटियों तक सुर्ख हो गया।
"हमें रिंग मास्टर कहते हैं, प्यारे।" विजय ने अपने हाथ में दबे हंटर को फटकारा—"जरा सोचकर बताओ, रिंग मास्टर के कोड़े पर आदमखोर शेर को भी नाचना पड़ता है कि नहीं?"
बड़े ही खौफनाक ढंग से मुस्करा उठा अलफांसे, बोला—"रिंग मास्टर केवल उसी शेर को नचा सकता हैं जो पालतू हो, सर्कस के पिंजरे में कैद कर दिया गया हो जिसे—जंगल में घुसकर कोई रिंग मास्टर अपने हंटर को फटकारकर तो देखे।"
"लो प्यारे, तुम्हें भी पिंजरे में बंद किए देते हैं हम।" कहने के साथ ही विजय ने कमरे का वह एकमात्र दरवाजा बंद कर दिया जिसके माध्यम से वह स्वयं अन्दर आया था।
चटकनी चढ़ाकर वह घूमा।
"पिंजरे में शेर के साथ कैद होने वाले रिंग मास्टर बेवकूफ होते है, अगर तुम शेर की आदतों से परिचित होते तो जरूर जानते कि ऐसे रिंग मास्टर को शेर फाड़कर खा जाता हैं।"
"देखना तो अब यही है कि मेरी जान कि तुम हमें फाड़कर खाते हो या हम तुम्हें अपने इस हंटर पर नचाते हैं।" कहने के साथ ही उसने रैना को एक तरफ हटा दिया।
उन्हें आमने-सामने देखकर जाने क्यों रैना की टांगें कांप रही थीं। विजय के हाथ में कांटेदार हंटर था, ऐसा कि जो अपने हर वार के साथ शिकार की खाल और गोश्त तक नोंच लाए। अलफांसे निहत्था ही था, मगर टकराने के लिए बिल्कुल तैयार—चिंगारियां बरसा रही थीं उसकी आंखें।
"हम तुम्हें उसी क्षण पहचान गए थे लूमड़ मियां, जिस क्षण हैरी के रूप में इस कमरे में कदम रखा था, रैना बहन को क्या डराते-धमकाते हो, इस हंटर के सामने गुर्राओ।"
"अपनी बात करो बेटे, तुम कितनी देर तक मेरे सामने ठहर सकोगे?"
"वही समझाने आया हूं, लूमड़ प्यारे।" कहने के साथ ही विजय ने सांयं से उस हंटर का वार किया—मगर वह अलफांसे था—जबरदस्त फुर्ती के साथ झुकाई देकर उसने न सिर्फ खुद को बचा लिया, बल्कि शेर की तरह ही विजय पर झपटा।
बिजली-सी कौंधी।
विजय के नुकीले बूट की ठोकर उसके चेहरे पर पड़ी।
एक चीख के साथ अलफांसे पीछे उलट गया, बिना अवसर दिए विजय ने उस पर हंटर का वार किया, सांय की जोरदार आवाज के साथ हंटर अलफांसे के जिस्म से टकराया।
कमीज के कतरो के साथ कांटे उसकी खाल और गोश्त भी नोच ले गए।
अलफांसे के चेहरे पर पीड़ा के असीमित भाव उभरे—मगर विजय ने उसे संभलने का मौका नहीं दिया, क्योंकि जानता था कि अलफांसे को ऐसा कोई भी मौका देना शिकस्त को आंमत्रित करने जैसा है—कमरे में सांय-सांय की आवाज गूंजती रही।
साथ ही गूंजने लगी थी अलफांसे के मुंह से निकली चीखें।
एक कोने में सहमी-सी खड़ी रैना सांस रोके उन दो टक्कर के जांबाजों का खूनी युध्द देख रही थी, तभी—कुछ व्यक्तियों ने कमरे का बंद दरवाजा खटखटाया, रैना का ध्यान उधर गया।
दरवाजा खोलने की मंशा से अभी उसने उस तरफ पहला कदम बढ़ाया ही था कि विजय चीख पडा—"दरवाजा मत खोलना रैना, तुम्हें मेरी कसम हैं।”
रैना यूं ठिठक गई जैसे संगमरमर की मूर्ति में बदल गई हो।
अब, बाहर की तरफ से दरवाजे को तोड़ने की कोशिश की जाने लगी थी और यहां, यानि कमरे के अन्दर निर्विवाद रूप से उस वक्त विजय हावी था, उसके हंटर के कांटे अलफांसे की कमीज के कतरों, खून और गोश्त के जर्रो से लिसड़े पड़े थे।
अलफांसे फर्श पर गिर चुका था और विजय पागलों की तरह उस पर हंटर बरसा रहा था और फिर एक क्षण ऐसा आया जब अलफांसे ने झपटकर हंटर का कांटेदार अग्रिम सिरा पकड़ लिया।
विजय ने झटका दिया।
अलफांसे के हाथों से खून की बूंदे टपक पड़ीं।
मगर हंटर छोड़ा नहीं जालिम ने, बल्कि उस हंटर को पकड़कर वह खड़ा भी हो गया और फिर उसने एक इतना तेज झटका दिया कि विजय के हाथ से न केवल हंटर छूट गया, बल्कि वेग के साथ विजय दीवार से जा टकराया।
दीवार से उसका सिर टकराया था, अतः आंखों के सामने रंग-बिरंगे तारे नाच गए—संभलने में उसे एक पल जरूर लगा और इस एक पल में ही पासे पलट चुके थे।
अब हंटर अलफांसे के हाथ में था और जिस्म था विजय का।
विजय के कण्ठ से चीखे निकलने लगी—अलफांसे पर मानो जुनून सवार था, विजय हल्की-सी मात्र एक चूक हुई थी और फिर संभलने का एक भी अवसर नहीं दिया अलफांसे ने।
पासो को इस तरह पलटते देखकर रैना बौखला गई।
दरवाजा टूटने ही वाला था।
अलफांसे ने विजय को बुरी तरह जख्मी कर दिया, इस कदर कि विजय बेहोश हो गया।
जब रैना ने महसूस किया कि विजय हिल-डुल नहीं रहा था, अब उसके कण्ठ से कोई चीख भी नहीं निकल रही है तो वह एकदम घबरा गई।
उधर, हाथ में हंटर लिए हिंसक पशु-सा लग रहा अलफांसे रैना की तरफ घूमा और इधर हड़बड़ाकर रैना बंद दरवाजे की तरफ लपकी, एक जम्प लगाकर अलफांसे ने उसे बीच में ही पकड़ लिया।
यही क्षण था जबकि भड़ाक की जोरदार आवाज के साथ दरवाजा टूट गया।
मगर तब तक अलफांसे न केवल रैना को जकड़ चुका था, बल्कि जेब से रिवॉल्वर निकालकर उसकी कनपटी पर भी रख चुका था।
दरवाजे पर बहुत-से पुलिस अफसरों के साथ स्वयं ठाकुर साहब भी मौजूद थे। कमरे के अन्दर का दृश्य देखकर वे सब न केवल ठिठक गए, बल्कि चेहरे सफेद पड़ गए थे उनके।
अलफांसे के मुंह से सचमुच किसी जख्मी और हिंसक शेर की-सी गुर्राहट निकली—"अगर किसी ने एक कदम भी आगे बढ़ाया तो मैं रैना को गोली मार दूंगा।"
रिवॉल्वर हाथ में लिए ठाकुर साहब दांत पीस रहे थे।
"रास्ता छोडो, मुझे जाना है।" अलफांसे गुर्राया।
एक-एक शब्द को चबाते हुए ठाकुर साहब बोले—"तुम राजनगर से बचकर नहीं निकल सकोगे अलफांसे। भलाई इसी में है  कि सरेंडर कर दो।"
"मैं जानता हूं ठाकुर साहब कि मेरी भलाई किसमें है, सामने से हट जाओ वर्ना...।"
उसका वाक्य पूरा होने से पहले ही रैना चीख पड़ी—"तुम्हें मेरी कसम ड़ैडी, इसे रास्ता मत देना, अगर यह यहां से निकल गए तो मेरे विकास को नहीं छोड़ेंगे—अगर यह मुझे गोली मारते हैं तो मारने दीजिए, इन्हें पकड़ लीजिए।"
शेष अफसरों ने आदेश के लिए ठाकुर साहब की तरफ देखा।
दुविधा में फंसे ठाकुर साहब गुस्से की अधिकता के कारण खड़े-खड़े कांप रहे थे, उनके चेहरे और आंखों में ऐसे भाव थे, जिनसे महसूस होता था कि यदि उनका मौका लगे तो अभी, इसी वक्त अलफांसे को कच्चा चबा जाएं।
उनकी इस अवस्था पर अलफांसे ठहाका लगाकर हंस पड़ा, बोला—"कानून और पुलिस के यह नुमाइंदे पत्थरदिल होते हैं रैना, एक मां-एक पति के जज्बातों की कद्र करना ये क्या जाने।"
"यह सब कुछ तुम ठीक नहीं कर रहे हो अलफांसे।"
"ठीक तो उसने किया था जिसे बचाने के लिए सारी दुनिया इक्ट्टी हो गई है।" अलफांसे का एक-एक अल्फाज जहर में बुझा-सा था, बोला—"रास्ता दो ठाकुर, यदि मेरा इस चेतावनी के बाद भी रास्ता नहीं दिया गया तो कसम से, रैना की लाश पड़ी होगी
यहां।"
पुलिस काई की तरह फट गई।
मुस्करा उठा अलफांसे और रैना को कवर किए उस रास्ते पर बढ़ता हुआ बोला—"अगर चिड़िया के एक बच्चे ने भी मेरा पीछा करने की कोशिश की तो मेरे साथ उसे रैना की लाश भी मिलेगी।"
रैना चीख-चीखकर कहती रह गई कि वे उसके मरने की फिक्र न करें।
¶¶
एक बहुत बड़ा हॉल था, सीमेंट के पांच मजबूत और गोल थम्बों पर इस हॉल की विशाल छत टिकी थी और उन पांच में से एक के साथ इस वक्त बंधी हुई थी—रैना।
उसके अतिरिक्त हॉल में केवल दो शख्स थे।
अलफांसे और राजनगर में स्थित उसका शार्गिद मांगे खां।
राजनगर में अलफांसे के लिए उस हॉल का प्रबंध मांगे खां ने ही किया था—रैना को साथ लिए अलफांसे रघुनाथ की कोठी से ठाकुर साहब की गाड़ी में भागा था—उसकी चेतावनी के कारण किसी ने भी उसका पीछा करने की कोशिश नहीं की थी, मगर वायरलेस से यहर जरूर प्रसारित किया जाता रहा था कि वह किधर जा रहा था।
ठाकुर साहब की गाड़ी में लगे वायरलेस की वजह से यह बात अलफांसे की जानकारी में भी थी और अंत में उसने उसी वायरलेस के जरिए ठाकुर साहब को चेतावनी दी थी कि यदि उस पर नजर रखी गई तो वह रैना को मार डालेगा।
इस चेतावनी के परिणामस्वरूप वायरलेस पर मौत का-सा सन्नाटा छा गया था। फिर उसने रैना को बेहोश कर दिया था।
ठाकुर साहब की गाड़ी एक ऐसे स्थान पर रोकी थी, जहां एक कार लिए मांगे खां पहले से खड़ा था, वहां से इस हॉल तक का सफर उसी कार से किया गया था।
पुलिस को अभी तक नहीं मालूम था कि अलफांसे वहां था।
होश में आने पर रैना ने खुद को इसी थम्ब के साथ बंधी पाया था। उस वक्त अलफांसे मांगे खां से कह रहा था—"मैं विकास को चेतावनी देने टी.वी. स्टेशन जा रहा हूं मांगे, रैना का ख्याल रखना।"
"म...मगर?"
दरवाजे की तरफ बढता हुआ अलफांसे ठिठका, पलटकर बोला—"क्या कहना चाहते हो?"
"क्या मैं पूछ सकता हूं कि टी○वी○ पर आप क्या कहोगे?"
"उस बुजदिल को सामने आने के लिए ललकारूंगा, कहूंगा कि यदि किसी शेरनी का दूध पिया है तो सामने आए, कहां—इस हॉल का पता दूंगा उसे।"
"म...मगर मास्टर इस तरह तो पुलिस को भी यहां का पता मिल जाएगा।"
"फिक्र मत करो मांगे, जब तक रैना हमारे कब्जे में है तब तक पता लगने के बावजूद भी पुलिस हमारा कुछ नहीं कर सकेगी—उस कायर को तो यहां बुलाना ही होगा।"
"मैं हाजिर हूं गुरू।" अचनाक ही उस हॉल में विकास की आवाज गूंजी।
उन दोनों के साथ ही एक झटके से रैना ने भी दरवाजे की तरफ देखा और उस मां के कण्ठ से एक बहुत ही डरावनी-सी चीख निकल गई। मांगे खां के सारे बदन में झुरझुरी-सी दौड़ गई और अलफांसे के चेहरे पर साक्षात् मौत नाचने लगी।
दरवाजे के बीचो-बीच खड़े लड़के के गुलाबी होंठों पर मंद-मंद मुस्कान थी। रैना ने चीखकर उसे यहां से भाग जाने के लिए कहा, विकास बोला—"प...प्लीज मम्मी, सिर्फ देखती रहो।"
"त...तू—हरामजादे, यहां कैसे पहुंच गया?"
"आपके पास दुनिया के हर बड़े शहर में यदि मांगे खां जैसे वफादार शार्गिद है तो कम-से-कम राजनगर में हमारे पास गुलफाम अंकल है गुरू, जो गुंड़ो की दुनिया का हिसाब रखते है।"
"खैर, अच्छा ही किया जो यहां आ गए।"
"आप मुझे ढूंढ रहे थे गुरू और मैं आपको—फिर इस मुलाकात में किसी किस्म की देर होने का सवाल ही नहीं उठता था, मगर यकीन कीजिए, मेरे साथ गुलफाम भी नहीं आया है।"
"मरने के लिए तैयार हो जा।" कहने के साथ ही अलफांसे ने अपने पेट पर बंधा हुआ कांटेदार हंटर खोल लिया जिसके कांटे अभी तक विजय और अलफांसे के खून से सराबोर थे।
बेहिचक लड़का कमरे में दाखिल हुआ और मुस्कराता हुआ बोला—"यदि मैंने ऐसा कोई काम किया है गुरू तो सचमुच मरने के लिए तैयार होकर ही यहां आया हूं।"
"तूने मेरी इर्वि को मार डाला और अब कहता है कि...।"
"सच यही है गुरू कि इर्विन को मैंने केवल इसलिए मार डाला क्योंकि मैं समझता था कि आप उससे कतई प्यार नहीं करते हैं, अगर मेरी सोच गलत थी, अगर मेरे उस कृत्य से आपकी भावनाओं को कोई ठेस पहुंची है तो हाजिर हूं मैं—इस जिस्म की बोटी-बोटी नोंच डालिए।"
"तुम जानते हो कि इस किस्म की कोई ड्रामेबाजी कम-से-कम अलफांसे के सामने नहीं चलेगी।"
फीके ढंग से मुस्करा उठा विकास, बोला—"मुझे दुख है गुरू कि सच्चाई को आप ड्रामेबाजी समझ रहे हैं, मां-कसम—यह सच्चाई है कि विकास यहां आपसे टकराने नहीं, आपका मुकाबला करने नहीं, बल्कि उस गुनाह की सजा भोगने आया है जो गलतफहमी का शिकार होकर मैंने कर दिया।"
"तो यह ले—भोग उसकी सजा।" इन शब्दों के साथ ही अलफांसे का हाथ बिजली की-सी गति से चला और सांय की जोरदार आवाज उबल पड़ी।
हंटर विकास के जिस्म पर लगा था और चीख रैना के हलक से उबल पड़ी।
हंटर का यह वार विकास की कमीज के रेशो के साथ ही खाल और गोश्त के रेशे भी नोंच ले गया, मगर चीखता तो दूर—हल्की-सी सिसकारी नहीं निकली लड़के के मुहं से—किसी चट्टान की तरह आड़िग, अपने स्थान पर खड़ा वह मुस्कराता रहा।
उसे यूं मुस्कराते देखकर अलफांसे की नसों में दौड़ने वाला खून मानो दूने जोश के साथ उबल पड़ा—जुनून—सवार हो गया उस पर—हंटर वाला हाथ बिजली की-सी गति से चलने लगा—सांय-सांय की आवाज के साथ हंटर विकास के जिस्म पर पड़ा रहा था।
एकाएक ही विकास चीख पड़ा—"म..मारो गुरू, जोर से, और जोर से मेरी खाल उतार लो, खून की एक-एक बूंद बहा दो—गोश्त का जर्रा-जर्रा बिखेर दो इस हॉल में—यह सब, यह सारा जिस्म—इस जिस्म में भरा एक-एक करतब आपकी ही देन हैं—अगर अपने से तैयार किए गए विकास का आपको यही अंजाम करना था तो मारो, खत्म कर दो मुझे।"
एक पल ठहरकर अलफांसे चीख पड़ा—"म...मुझे भावुक कर देना चाहता है, कुत्ते—मेरी भावनाओं से खेलकर खुद को बचाना चाहता है तू—अरे इस जिस्म में वो सारे करतब मैंने इसलिए तो नहीं भरे थे कमीने कि एक दिन तू मेरी ही बीवी कि हत्या कर दे—उस इर्वि को मार डाले जो अलफांसे के जीने का अंदाज बदलने वाली थी?"
"आप रो रहे हो गुरू!"
"कौन हरामजादा रो रहा है?" आंखों में आंसू भरे, दांत भींचकर अलफांसे चीख पड़ा—"इन आंखों में तो खून है, खून—और कि अपने ही गाए हुए पेड़ को काटते वक्त भला कौन नहीं रो पडेगा, मगर जब पेड़ आदमखोर बन जाए तो उस काटना भी जरूरी हो जाता है...ले...ले...ले...।"
बार-बार चीखते हुए अलफांसे ने इतने हंटर मारे कि अब लाख चाहरकर भी विकास फर्श पर खड़ा न रह सका—रैना के चीखने की परवाह किए बिना अलफांसे उस पर हंटर बरसाता ही रहा—न चाहते हुए भी विकास के कण्ठ से अब चीखे निकल रही थी।
उसके आस-पास फर्श पर खून की बूंदे और गोश्त के जर्रे छितराए से पड़े थे—रैना यूं चीख रहा थी, जैसे सचमुच पागल हो गई हो। मांगे खां थरथर कांप रहा था।
हंटर मारता-मारता जब अलफांसे थक गया और जब उसने यह महसूस किया कि अब चाहकर भी विकास फर्श पर खड़ा नहीं हो सकेगा तो खून में डूबा हंटर एक तरफ फेंक दिया उसने।
जेब में हाथ डाला, चाकू निकाला, क्लिक की आवाज के साथ चाकू खुल गया।
रैना दहाड़ उठी—"बख्श दो भइया, मेरे लाल को बख्श दो।"
रैना की उस पुकार का अलफांसे पर लेशमात्र भी फर्क नहीं पड़ा। जो चाकू उसके हाथों में था, उसकी फल पहले ही से खून में सना था। पशु-सा अलफांसे गुर्राया —"पहचान इस चाकू को और इस पर लगे खून को, यह वही चाकू है कुत्ते, जिससे तूने मेरी इर्वि और उसके पेट में पल रहे बच्चे का मारा था, इस चाकू पर लगा खून मेरी इर्वि और बच्चे का है—अलफांसे के कानून के मुताबिक खून का बदला खून है विकास, इसी चाकू से तेरा अंत होगा—मरने के लिए तैयार हो जा।"
दर्द से बिलबिलाता, बुरी तरह जख्मी विकास किसी कीड़े की तरह फर्श पर रेंगता हुआ चीखा—"म...मुझे मार डालो गुरू—मुझे मार डालो, यह कैसा इंसाफ है तुम्हारा कि मुझे तड़पा रहे हो—मैंने तो तम्हारी इर्वि को इतना नहीं तड़पाया था। अब यह दर्द, यह कसक सहन नहीं होती गुरू—अगर अपने बेटे से जरृभी प्यार है तो प्लीज, जल्दी से मुझे मार डालो।"
बुरी तरह ठहाका लगाकर हंस पड़ा अलफांसे।
दांत भींचकर रैना चीख पड़ी—"उठ विकास, अरे यदि मां का दूध पीया है तो खड़ा होकर मुकाबला कर इस दरिंदे का—यूं बिना मुकाबला किए, घिसट-घिसटकर मरकर अपनी मां के दूध को मत लजा। मैं कहती हूं—तेरी मां कहती है मेरे लाल—उठ—वही जौहर दिखा दे अपने, जिनसे इस देश का हर दुश्मन कांपता है।"
"न...नहीं मम्मी, नहीं—जो जुर्म मैंने किया है उसकी सजा भोगने आया हू मैं—देखते क्या हो अलफांसे गुरू, क्या यह आखिरी विनती भी नहीं मानोगे मेरी—मैं कहता हूं आगे बढ़ो।"
चाकू लिए अलफांसे उसकी तरफ बढा।
फर्श पर किसी कीड़े की तरह गिजबिजाता विकास अलफांसे की तरफ बढ़ा।
नजदीक पहुंचकर अलफांसे ने अपना चाकू वाला हाथ ऊपर उठाया, विकास के होंठों पर अंतिम मुस्कान उभरी, रैना ने कसकर अपनी आंखें बंद कर लीं, मगर तभी अलफांसे को ऐसा लगा, जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसके जबड़े पर घूंसा मारा हो।
घूंसा बहुत ही शक्तिशाली था, अतः चीखता हुआ अलफांसे दूर जा गिरा, चाकू उसके हाथ से निकलकर एक थम्ब से टकराया था। ऐसा होते ही अकेला अलफांसे ही नहीं, बल्कि विकास, रैना और मांगे खां भी चमत्कृत रह गए।
हॉल में कोई पांचवां व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था।
अलफांसे फुर्ती के साथ उछलकर खड़ा हो गया और बौखलाया-सा अपने चारों तरफ देखने लगा—तभी हॉल में सिंगही की आवाज गूंजी—"तुम कोई बहुत बड़ी बहादुरी नहीं दिखा रहे थे, अलफांसे।"
"त...तू—हरामजादे, इस कुत्ते का हिमायती बनकर तू आया हैं—मेरी इर्वि को बदनाम करने की कोशिश तूने ही की है, हिसाब तो तुझसे भी चुकता करना है मुझे—यूं अदृश्य रहकर क्या वार करता है, मर्द का बच्चा है तो सामने आ, देखूं तो सही कि इस हॉल से बचकर कैसे निकलेगा?"
"किसी ने सच ही कहा है कि खूबसूरत औरत समझदार-से-समझदार मर्द की आंखों पर अपने जादू की पट्टी बांध देती हैं, दिमाग को अपनी खूबसूरत से इस कदर जकड़ लेती हैं कि जो बिल्कुल साफ होता है, मर्द उसे भी नहीं समझ पाता—खूबसूरत नागिन के कैरेक्टर को भी नहीं।"
अलफांसे गुर्राया—"मैं इर्वि के लिए गाली बर्दाश्त नहीं करूंगा, सिंगही।"
"लो, इन्हें देखो।" सिंगही के इन शब्दो के साथ ही बहुत-से फोटो हवा में उछलकर अलफांसे के चेहरे से टकारए, हरेक फोटो में चैम्बूर के साथ इर्विन  थी—हरेक फोटो एक से बढ़कर एक आपत्तिजनक। सिंगही कि आवाज फिर गूंजी—"यह है तुम्हारी इर्वि, वह—जिसका लिए तुम पागल हुए जा रहे हो—जिसके लिए, इस बच्चे की यह हालत बना दी तुमने।"
रैना आंखें फाड़-फाड़कर फर्श पर पड़े उन फोटुओं को देख रही थी। जबकि अलफांसे कह उठा—"यह ट्रिक फोटोग्राफी से बनाए गए फोटो मुझे धोखा नहीं दे सकते सिंगही, मैं नहीं मान सकता कि इर्वि ऐसी थी।"
"जानता हूं कि फिलहाल तुम नहीं मानोगे, किसी ने गलत नहीं कहा है कि खूबसूरत लड़की का जादू सिर पर चढ़कर बोलता है—मगर तुम्हारे इस पागलपन की भेंट मैं विकास को नहीं चढ़ने दूंगा—कुछ—न—कुछ ऐसा जरूर करूंगा, जिससे तुम्हारे सिर पर चढे भूत को उतार सकूं।"
"तेरे फरिश्ता भी नहीं रोक सकेंगे मुझे।" कहने के साथ ही अलफांसे ने एक कोने में पड़े चाकू पर जम्प लगाई, मगर अभी वह हवा में ही था कि जबड़े पर एक ठोकर पड़ी।
एक चीख के साथ अलफांसे उलट गया।
फिर अदृश्य सिंगही ने उसे होश नहीं लेने दिया—हालांकि मांगे खां भी अलफांसे की मदद करने लगा था, मगर अदृश्य सिंगही के सामने भला उनकी कहां चलती?
अतः कुछ ही देर बात दोनों बेहोश हो चुके थे।
इधर, पीड़ा की अधिकता के कारण शायद विकास भी बेहोश हो गया था।
चेहरे पर चमत्कृत रह जाने के भाव लिए थम्ब के साथ बंधी रैना बौखलाई-सी शून्य में निहार रही थी, एकाएक ही उसके बहुत समीप से सिंगही की आवाज उभरी—"ठाकुर साहब को देख लिया रैना बैटी और विजय को भी, एड़ी-चोटी का जोर लगाने के                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                           बावजूद वे अलफांसे को नहीं रोक सके—यदि मैं सही वक्त पर न पहुंच जाता तो अगले पल कुछ बाकी नहीं रह जाना था।"
"म...मैं किस मुंह से आपका शुक्रिया अदा करूं महान सिंगही?" रैना कांपते स्वर में कह उठी।
"शुक्रिया की कोई बात नहीं है बेटी, विकास को बचाने में भी मेरा स्वार्थ हैं।"
"स...स्वार्थ?"
"यह मेरी कमजोरी रही हैं, विकास जैसे बहादुरो की ऐसी मौत नहीं देख सकता मैं।"
पूरी श्रध्दा के साथ कह उठी रैना—"आप सचमुच महान हैं।"
"इस बेवकूफ के सिर से पागलपन अभी उतरा नहीं है और विकास को तुरंत ही अच्छे डॉक्टर की जरूरत है, अतः में इसे अपने साथ ले जा रहा हूं बेटी, डरना नहीं—सिंगही वादा करता है कि तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं होगा और बहुत जल्दी वैसी ही अवस्था में तुम्हारे सामने खड़ा होगा जैसा यह इस हॉल में आया था।"
रैना चाहकर भी विरोध न कर सकी।
फिर, उसने धीरे-धीरे फर्श पर पड़े विकास के जिस्म को गायब होते देखा और देखते—ही—देखते विकास का जिस्म भी अदृश्य हो गया।
¶¶
"उसके बाद क्या हुआ बेटी?" ठाकुर साहब ने पूछा।
"सिंगही के जाने के बाद करीब डेढ घंटे बाद अलफांसे को होश आया, मैंने उस पर व्यंग्य करे, परन्तु मेरी बात का जवाब देना तो दूर, उसने मेरी तरफ ध्यान तक नहीं दिया और मांगे खां को होश में लाने का प्रयत्न करने लगा—मांगे खां के होश में आते ही वहां से वे दोनो चले गए और अब आप सब आ गए हैं।"
"क्या जाते वक्त उनमें से किसी ने तुमसे कुछ नहीं कहा?"
"नहीं।"
"कमाल है!"
"म...मगर आप लोग यहां कैसे पहुंच गए?"
"अभी, मुश्किल से पंद्रह मिनट पहले खुद अलफांसे ने फोन पर मुझे यहां का पता देकर कहा था कि तुम यहां मिलोगी।" रघुनाथ बोला—"मैंने तुरंत ही यह सूचना ठाकुर साहब को दी और पूरी फोर्स लेकर हम यहां आ गए।"
"इसका मतलब यह जगह उन्होंने हमेशा के लिए छोड़ दी है।"
"वह तो ठीक है, मगर यह तो वही बात हुई रैना बेटी कि हम कुएं से बचे तो खाई में जा गिरे हैं, इस वक्त विकास सिंगही के कब्जे में है और सिंगही अलफांसे से कही ज्यादा बड़ा और खतरनाक अपराधी है—जाने वह विकास के साथ...।"
"मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं, डैडी।"
चौंकते हुए ठाकुर साहब ने पूछा—"क्या मतलब?"
"राजनगर में या दुनिया के किसी भी कोने में, किसी के भी संरक्षण में विकास इतना महफूज न रहता जितना वह अब है, मैं
जानती हूं कि अब विकास को दुनिया की कोई ताकत नहीं मार सकती।"
स्वयं रघुनाथ, ठाकुर साहब और उनके साथ आए पुलिस के अन्य अफसर चौंककर रैना की तरफ देखने लगे और उसके चेहरे पर मौजूद संतुष्टि के भाव देखकर कुछ और चौंक पड़े।
¶¶
वह एक फाइव स्टार का शानदार कमरा था, जिसमें उस वक्त अलफांसे और मांगे खां मौजूद थे, एक मेज पर विराम घड़ी रखी थी और वे बहुत ध्यान से हरकत करती हुई उस विराम घड़ी की सुइयों को देख रहे थे। विराम घड़ी में दो सुइयां थीं।
एक बड़ी, एक छोटी—बड़ी सुई दिशा बताती थी, छोटी—दूरी। उनका सारा ध्यान इसी विराम घड़ी पर केंद्रित था कि कमरे के बंद दरवाजे पर किसी ने हल्के से दस्तक दी—वे दोनों ही एक साथ चौंके, परन्तु अगले ही पल अलफांसे के चेहरे पर सामान्य भाव बिखरते चले गए, बोला—"ओह, कॉफी बोली थी, वेटर होगा—दरवाजे पर से ही उससे ट्रे ले लो—अन्दर मत आने देना।"
मांगे खां उठकर दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
अलफांसे पुनः विराम घड़ी की सुइयों में खो गया, परन्तु अभी उनमें खोए ज्यादा देर नहीं हुई थी कि सारा कमरा मांगे खां की चीख से गूंज उठा, अलफांसे ने एक झटके से दरवाजे की तरफ देखा।
"त...तुम?" अलफांसे गुर्रा उठा।
"हां, हम ही हैं, लूमड़ प्यारे—तुम्हारे आशिक।" कमरे में दाखिल होते हुए विजय ने कहा।
उधर मांगे खां न सिर्फ फुर्ती के साथ उछलकर फर्श पर खड़ा हो चुका था, बल्कि इशारे के इंतजार में अलफांसे की तरफ देख रहा था। विजय को यहां देखते ही अलफांसे का चेहरा पुनः पत्थर की तरह सख्त होता चला गया, गुर्राया—"मैं तुम्हें जिंदा...।"
"न...न...लूमड़ प्यारे।" उसकी बात को बीच में ही काटते हुए विजय ने हाथ उठाकर कहा—"अब इस एंग्रीमैन वाली एक्टिंग की क्या जरूरत है, तुम्हारी और दिलजले की संयुक्त योजना सफल हो गई है, चचा साला दिलजले को ले गया है और अब यह विराम घड़ी बता रही है कि चचा का अड़्डा कहां है?"
"क...क्या मतलब?" अलफांसे बौखला-सा गया—"क...क्या तुम यह सब जानते हो?"
"हम सब जानते है प्यारे, त्रिकालदर्शी जो ठहरे।"
"तुम्हें विकास ने बताया होगा?"
"नहीं प्यारे...तुम दोनों ने तो खुद को तीसमारखां समझा था, मगर हम पूरे चालीसमारखां हैं, यदि हम तुम्हारी मदद न करते तो अपने इस षड़्यन्त्र में तुम कभी कामयाब न होते।"
"तुमने भला हमारी क्या मदद की है?"
"इस गलतफहमी में मत रहना लूमड़ प्यारे कि अपने तुलाराशि की कोठी से तुम हमें सचमुच ही शिकस्त देकर रैना के साथ निकल आए थे, हम उस वक्त तक इतने नहीं पिटे थे कि बेहोश हो जाएं, हां—बेहोशी का नाटक जरूर कर रहे थे—वैसे भी विकास के चारों तरफ जो जाल हमने बिछाया था, वह दिखावटी था—अपने सब आदमियों को निर्देश दे दिया था कि उन्हें तुमसे विकास को बचाने का सिर्फ नाटक करना है, वास्तव में बचाना नहीं है।
"क्यों?"
"क्योंकि यदि हम बचाने की वास्तविक कोशिश करते तो हालात इतने न बिगड़ते कि विकास की मदद के लिए चचा को आना पड़ता और यदि ऐसा न होता तो तुम्हारी स्कीम फुसफुस हो जाती।"
"तम वाकई जीनियस हो, लेकिन यह तो बताओ कि यह अहसास तुम्हें कब हुआ कि मैं विकास के खून का प्यासा होने का सिर्फ नाटक कर रहा हूं?"
"इर्विन का कत्ल करने का कारण विकास तुम्हारा उस घर से सम्बन्ध विच्छेद करना बता रहा था, यह बहाना तब तक तो ठोस था जब तक कि तुमने कंट्रोल रूम वाला काम नहीं निपटा लिया था, मगर उसके बाद बेकार था, उस काम के निकलने के बाद उस घर से तुम्हारा संपर्क तोड़ देने से कोई लाभ नहीं था और भले ही अपना दिलजला बुध्दि से चाहे जितना पैदल हो, ऐसा वह कोई काम नहीं करता जिसमें कोई लाभ न हो या जो तर्को की कसौटी पर खरा न उतरे।"
"वैल!" अलफांलसे प्रशंसा कर उठा।
"उधर, जब सुरंग में तुम हमें मिले तो हमारे बीच से दिलजले को गायब देखकर तमने एक बार भी यह स्वाभाविक प्रश्न नहीं किया कि दिलजला कहां है—फिर जब हमने इर्विन के बारे में कहा जो हमें बोगान ने बताया था तो पता लगा कि वह सब चचा तुम्हें पहले ही बता चुका हैं—विदा होते समय तुमने यह भी कहा कि तुम्हें सिंगही के वर्तमान ठिकाने की कोई जानकारी नहीं हैं—इन सब बातों से हमारा माथा ठनक गया था, बाद में जब विकास ने बताया कि उसने इर्विन की हत्या कर दी हैं तो तुम दोनों शैतानो की सारी स्कीम खुली किताब की तरह हमारे भेजे में घुस गई।"
"क्या तुम बता सकते हो कि हमारी क्या स्कीम थी?"
"सिंगही के हमले के बाद तुम मुश्किल से पंद्रह या बीस मिनट बेहोश रहे होगे, होश में आते ही तुम्हें वे सब बातें याद आईं जो सिंगही ने कही थीं यानि सारे केस के दौरान उसका सुदर्शन चक्र किस-किस तरह घूमता रहा, तुम्हें उसी वक्त यकीन हो गया होगा कि इर्विन वाकई चरित्रहीन थी, क्योंकि बिना उस धुरी के सिंगही का चक्र घूम नहीं सकता था—उसी क्षण तुमने सिंगही से कोहिनूर वापिस प्राप्त करने की योजना बना ली, पहले यह पता लगाना जरूरी था कि सिंगही का ठिकाना कहां है, इसके लिए तुमने ट्रांसमीटर पर दिलजले से सम्बन्ध स्थापित किया, सारे हालात उसे बताए और स्कीम समझा दी।"
"यह स्कीम क्या थी?"
"यह कि दिलजला इर्विन की हत्या कर देगा, तुम इर्विन के हत्यारे ब्रिटेन में अमल करना बहुत मुश्किल होगा, क्योंकि वहां बॉण्ड और ब्रिटिश पुलिस भी आड़े आती, अतः सुविधा के लिए हम विकास को भारत ले आए, यहां ड्रामा जरा ज्यादा ही सशक्त रहा।"
"अगर तुम पहले ही सब कुछ समझ गए थे तो विकास पर स्पष्ट क्यों नहीं किया?"
"तुम और दिलजला अगर सवा सेर हो प्यारे तो हम डेढ़ सेर हैं।" विजय ने अजीब-से अंदाज में छाती फुलाते हुए कहा—"जब तुम्ही अपने सारे पत्ते हमसे छुपाकर खेल रहे थे तो हम अपने पत्ते क्यों खोलते—हां ब्लैक ब्वॉय को वह अटपटा-सा आदेश देकर हमने
सांकेतिक अंदाज में सब कुछ जरूर बता दिया था—मगर शायद वह समझा नहीं था।"
"खैर, अब क्या इरादा है?"
"दोनों यार मिलाकर चचा की टांगे तोड़ने चलेंगे।"
"बैठो, जरा देखे तो ले कि वह विकास को कहां लेकर जा रहा है?" कहने के साथ ही अलफांसे ने विजय को अपने बराबर में बैठने का इशारा किया और दृष्टि विराम घड़ी पर जमा दी—विजय भी बहुत ध्यान से उसकी सुइयो को देखने लगा था।
¶¶
मिस्टर एम के ट्रांसमीटर पर सिंगही की आवाज उभरी—"एक बार आपसे फिर पूछ रहा हूं, कोहिनूर की आप मुझे क्या कीमत देंगे?"
"हम पहले भी कह चुके हैं, उस कीमत से एक करोड़ ब्रिटिश पाउंड़ ज्यादा, जो दुनिया के किसी भी राष्ट्र ने ज्यादा-से-ज्यादा लगाई हो।"
"मैं बड़ी दुविधा में फंस गया हूं, मिस्टर एम।"
"कहिए।"
"जो बात आप कह रहे हैं वही अमेरिका भी कह रहा हैं, उनका कहना हैं कि दुनिया का जो भी राष्ट्र कोहिनूर की सबसे ज्यादा कीमत लगाए, वे उससे एक करोड़ अमेरिकी पाऊण्ड ज्यादा देंगे।"
"दुविधा तुम्हारी है सिंगही, हल भी तुम्हें ही करनी है।" सामने बैठे बॉण्ड को देखते हुए एम ने कहा।
“तो सुनो, चीन और रूस के पश्चिमी बॉर्डर से डेढ़ हजार किलोमीटर दूर पूर्व में एक पत्थरों का जंगल है, नाम शायद आपने भी सुना होगा—इस जगह का नाम 'स्टोन फॉरेस्ट' है—यह नाम शायद किसी ने सोच-समझकर इसीलिए रखा है, क्योंकि वहां मीलों दूर-दूर तक पत्थरों के अलाव कुछ नहीं है—छोटे-बड़े, हर किस्म के पत्थर हैं वहां—कमाल की बात यह है कि वह इलाका पथरीला नहीं है, खैर—वहां सबसे ज्यादा विशाल और ऊंचा जो पत्थर है वह पूरा पहाड़ है—इतना ज्यादा विशाल और ऊंचा है कि आज तक उसके टॉप तक कोई नहीं चढ़ सका है—हजारों फीट ऊंचा है वह, बहुत ही खुरदरा और काला पत्थर—इसके निचले और ऊपरी सिरे उतने ही बड़े हैं, जितना स्टेडियम में खेल का मैदान होता है, कमाल यह है कि पत्थर जमीन के साथ जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि जमीन पर सिर्फ रखा है—मगर हजारों हाथियों की ताकत भी उसे टस-से-मस नहीं कर सकती!”
"आप तो पत्थर की खूब बयान करने लगे।"
"अपने किसी प्रतिनिधि को आपको इसी पत्थर को टॉप पर भेजना होगा।"
"किसलिए?"
"वहीं पर मैने अमेरिकी प्रतिनिधि को भी बुलाया है, हम स्वयं भी वहीं मिलेगे—दोनों पार्टियां हमारे सामने बैठकर फैसला कर लेंगी कि कोहिनूर किसे चाहिए।"
"हमें मंजूर है।"
"एक हफ्ते बाद, आज ही दिन के दिन—इसी समय।"
"ठीक है, मगर प्रतिनिधि उस पत्थर की शीर्ष तक पहुंचेगा कैसे?"
"आप हैलिकॉपटर की सेवाएं ले सकते हैं।"
"ओ○के○।"
"किसे भेज रहे है, आप?"
मिस्टर एम ने कहा—"जेम्स बॉण्ड को।"
"ठीक है, मगर याद रखें—कोहिनूर की कीमत भले ही वहां तय हो, मगर प्रतिनिधि पेशगी के रूप में कुछ—न—कुछ लेकर पहुंचना चाहिए, ताकि दोनों पार्टियों में निर्णय होने के बाद सौदा पक्का किया जा सके और यह भी ध्यान रखे कि यह पेशगी कोहिनूर की होगी।"
"हम समझ रहे हैं।"
दूसरी तरफ से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया, मिस्टर एम ने ट्रांसमीटर ऑफ करते हुए अपने माथे पर उभर आई पसीने को बूंदों को पोंछा और बोले—"सौदा तय करने के लिए भी अजीब जगह तलाश की है जालिम ने, क्या तुम यह समझते हो बॉण्ड कि वह इसका अड्डा होगा?"
"सिंगही इतना बेवकूफ नहीं है कि इतनी आसानी से अपने ठिकाने का पता बता दे और न ही इस प्रकार खुले आकाश के नीचे उसका अड्डा हो सकता है।"
“यानि सिंगही ने वह जगह केवल मुलाकात के लिए चुनी है।”
"यस सर।"
"हो सकता है।" एम ने कहा—"तुम्हारी राय के मुताबिक सिंगही से इतने आगे तक की बात हमने कर तो ली है, मगर तुम जानते हो कि अमेरिका हर हालत में हमसे अमीर देश है—उससे ज्यादा तो क्या, कोहिनूर की हम उतनी कीमत भी नहीं दे सकते जितनी अमेरिका दे देगा।"
रहस्यमय और कटु मुस्कान के साथ जेम्स बॉण्ड ने कहा—"अपने ही कोहिनूर को डबल ओ सेविन यदि कीमत देकर लाया, तो फिर वह डबल ओ सेविन ही कहां रहेगा?"
¶¶
ट्रांसमीटर पर एक पत्थर का जिक्र विकास लगभग उसी अंदाज में करता चला गया, जिस अंदाज में सिंगही ने एम से किया था, जब विकास रुका ही नहीं तो विजय ने कहा—"बस...बस प्यारे दिलजले, बोर क्यों कर रहे हो—हमने तुमसे किसी पत्थर की तारीफ करने के लिए नहीं कहा है—बल्कि ये पूछा है कि चचा के अड्डे की पोजिशन क्या है?"
"दिशा और दूरी तो विराम घड़ी से आपको मालूम हो ही गई होगी, गुरू?"
"बिल्कुल हो गई है, प्यारे।"
"तो मैंने जो एड्रेस दिया है, यानि स्टोन फॉरेस्ट विराम घड़ी से बताई गई दूरी और दिशा से टैली करता है या नहीं?"
"सेंट-परसेंट टैली करता है।"
"इस जंगल में सबसे ज्यादा क्षेत्रफल वाला पत्थर...।"
"फिर वही पत्थर—अमां तुम इस पत्थर के दाएं-बाएं भी बढ़ोगे या नहीं?"
"इस पत्थर के दाएं-बाएं बढना बेकार है, गुरू—क्योंकि दरअसल यह पत्थर ही सिंगही दादा का अड्डा है और इस वक्त मैं उसी पत्थर के अन्दर से बोल रहा हूं।"
"क्या मतलब?" चौंकते हुए विजय ने पूछा।
"दरअसल यह विशाल पत्थर अन्दर से खोखला है गुरू, क्योंकि सदियों से पत्थर यहीं और इसी स्थिति में पड़ा हैं इसलिए किसी को गुमान भी नहीं हो सकता कि पत्थर अन्दर से खोखला हैं और यह खोखला स्थान ही अड्डा है।"
"कमाल है प्यारे!"
"इस अड्डे में आने-जाने का केवल एक ही रास्ता है और वह पत्थर की शीर्ष से है, मैं कह ही चुका हूं कि पत्थर पर चढ़ना किसी अच्छे—खासे पहाड़ पर चढने जैसा कठिन है, आज तक जमीन से शायद कोई भी इस पत्थर पर चढ़ा है।"
"इतनी मेहनत करके बिना वजह तो पत्थर के शीर्ष पर वही चढ़ेगा प्यारे जिसमें सिर में फोड़ा हो, जब किसी को पत्थर की विशेषता मालूम नहीं है तो पत्थर के शीर्ष पर क्या कोई धार देने जाएगा?"
"शीर्ष के बीचो-बीच का कोई दस गज वर्गीकार हिस्सा एक तरफ सरक जाता है और फिर उस स्थान से पत्थर के अन्दर नीचे तक एक लिफ्ट से जाया जाता हैं—पत्थर के अन्दर से इन्होंने बहुत-सी मंजिलों में बांट रखा हैं, जिस मंजिल पर चाहो लिफ्ट रुक जाती हैं।"
"और?"
"सिंगही का ऑफिस बिल्कुल निचली मंजिल पर है, इसी ऑफिस में ढेर सारी स्क्रीनें लगी हैं, इन स्क्रीनों के जरिए सिंगही पत्थर के चारों तरफ का दृश्य देख सकता है।"
"यानि पत्थर के पास फटकना खतरे से खाली नहीं है?"
"जी हां।"
"और?"
"ज्यादा विस्तारपूर्वक मैं आपको नहीं बता सकूंगा, क्योंकि अड्डे में बहुत कुछ है और यदि किसी गार्ड़ को यह शक हो गया कि इतनी देर तक मैं टॉयलेट में क्या कर रहा हूं तो गड़बड़ हो जाएगी, आप समझ ही सकते हैं कि यहां पग—पग पर खतरा है।"
"सो तो है प्यारे, मगर तुम यह तो बताओ कि कोहिनूर तक पहुंचे या नहीं?"
"विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कह सकता गुरू—मगर हां, अनुमान है कि कोहिनूर सिंगही के ऑफिस में ही कही है और वहां लगभग हमेशा सिंगही रहता है।"
"यानि दांव लगना मुश्किल है?"
"बहुत ज्यादा कठिन है, फिर भी मैंने एक दिन चुना है, आज से चौथा दिन।"
"इस दिन में क्या खास बात है, प्यारे?"
"कोहिनूर खरीदने के सिलसिले के माइक और बॉण्ड आ रहे हैं वार्ता पत्थर के शीर्ष पर होगी और उन्हें यह नहीं बताया गया है कि इसी पत्थर के अन्दर हैड़क्वार्टर है, पत्थर के शीर्ष पर उन्हें कुछ ऐसी भाषा में बुलाया गया है कि वे इस स्थान को सिर्फ मिलने का स्थान ही समझे होंगे।"
"हम समझ गए, प्यारे।"
"सुबह दस बजे का समय निश्चित हुआ है, जाहिर है कि उस समय सिंगही दादा अपने ऑफिस में नहीं होंगे और इसलिए मैंने वह समय चुना है।"
"वैरी गुड।"
"मेरी मदद के लिए यदि आप ठीक उसी समय वहां पहुंचे तो उचित होगा।"
"बिल्कुल पहुंच जाएंगे प्यारे। फिक्र मत करो।"
"ओ○के○ गुरू, ओवर एंड़ ऑल।" दूसरी तरफ से उभरने वाली विकास की इस आवाज के साथ ही सम्बन्ध विच्छेद हो गया और ट्रांसमीटर ऑफ करते हुए विजय ने अलफांसे से कहा—"अब बोलो लूमड़ भाई।"
"क्या बोलूं?"
"इस बार चचा साला पत्थर के अन्दर घुसकर बैठा है, अब सोचना यह है मियां कि उस पत्थर को जिसकी अपने दिलजले ने इतनी तारीफ की है, फतह कैसे करना है?"
"कुछ सोचते हुए अलफांसे ने कहा—"स्क्रीनों के जरिए सिंगही पत्थर के चारों तरफ देख सकता है, इसका मतलब यह कि पत्थर के नजदीक तक पहुंचना ही एक समस्या है।"
"उसके शीर्ष पर तो केवल हैलिकॉप्टर से ही पहुंचा जा सकता है, प्यारे।"
"हैलिकॉप्टर तो खुद ही इतनी आवाज करेगा कि हमारा वहां तक पहुंचना गुप्त नहीं रहेगा।"
एकाएक ही अलफांसे के दिमाग में कोई आइडिया आया, चुटकी बजाता हुआ वह बोला—"गुड, स्क्रीनों पर उसे रात के समय कुछ दिखाई नहीं देगा विजय, वहां चारों तरफ अंधेरा रहता होगा और हम भी अंधेरे का ही हिस्सा होंगे।"
"चलो मान लिया प्यारे कि रात का लाभ उठाकर हम पत्थर के नजदीक पहुंच गए, फिर हम उस पर चढेंगे कैसे—मान लिया जाए कि खूंटी इत्यादि गाड़कर उस पर पर्वतरोहियों की तरह चढ़ना शुरु कर भी दें तो दिलजले के बताए मुताबिक पत्थर इतना ऊंचा है कि एक रात में चढ़कर शीर्ष पर चढना नामुमकिन है, खूंटियां गाडते हुए चढने में तो वैसे ही बहुत समय लगता है, जहां सूरज निकला कि हम किसकी स्क्रीन के दायरे में आए।"
"वाकई, पत्थर के शीर्ष पर पहुंचना एक समस्या होगी।"
"मगर फिर भी हमारे भेजे में एक आइडिया आ रहा है, प्यारे।"
"क्या?" अलफांसे ने उत्सुक्तापूर्वक पूछा।
"हमारे पास एक बंदर हैं और बंदर बिना खूंटियों का उपयोग किए आदमी के मुकाबले कहीं ज्यादा फुर्ती से इस किस्म के पत्थर पर चढ सकता हैं।"
"व...वैरी गुड. क्या आइड़िया हैं।" अलफांसे उछल पड़ा—"वाकई विजय, तुम्हारे साथ जितने क्षण गुजारो, उतनी ही बार तुम्हारे भेजे को चूम लेने के लिए दिल चाहता है।"
¶¶
माचिस चार दिन से विकास यहीं था, चमत्कारिक उपचार के बाद अब वह पूर्ण स्वस्थ था—उसके सभी जख्म भर चुके थे, उनमें अब कोई पीड़ा नहीं थी—हां, जख्मों के दाग अभी बाकी थे।
इन दागों के बारे में सिंगही ने आज सुबह ही उससे कहा था—"फिक्र मत करो बेटे, तुम्हारे जिस्म पर भी जख्म् का कोई निशान नहीं रहेगा—डॉक्टर कोटासो जो मरहम और खाने की दवाएं इस्तेमाल कर रहा है, वह खुद उसी से ईजाद की गई और आजमाई हुई दवा हैं, दो या ज्यादा—से—ज्यादा तीन दिन बाद तुम पूर्ण स्वस्थ हो जाओगे।"
और इसमें कोई शक नहीं था कि डॉक्टर कोटासो के नाम से पुकारे जाने वाले उस व्यक्ति की दवाएं वाकई चमत्कारी थीं—चार दिन में जख्मों का पूरी तरह भर जाना चमत्कार ही तो था।
वह जानता था कि कम-से-कम सिंगही के अड्डे पर सिंगही को धोखा देना नामुमकिन-सी बात थी, मगर जिन परिस्थियों में सिंगही उसे यहां लाया था, शायद उन्हीं के कारण सिंगही के दिमाग में एक पल के लिए भी यह विचार नहीं आया था कि वह यहां किसी योजना के अंतर्गत आया था। इसीलिए उन दो गार्ड्स के अतिरिक्त उस पर कोई विशेष नजर नहीं रखी जा रही थी।
फिर भी विकास ने इतनी सावधानी बरती थी कि चार दिन में आज पहली बार उसने अलफांसे से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए ट्रांसमीटर का उपयोग किया था।
दूसरी तरफ अलफांसे के स्थान पर विजय को पाकर वह चौंका था, किन्तु सारा मामला विजय ने उस संक्षेप में बता दिया था।
सिंगही को उसके वहां पड़े रहने से किसी तरह का शक न हो, इसी मकसद से आज सुबह उसने वहां से जाने की इच्छा प्रकट की थी, जिसे यह कहकर सिंगही ने बड़े आराम से ठुकरा दिया था कि वह उसे तब तक वहां बाहर नहीं जाने देगा, जब तक कि अलफांसे के सिर पर चढ़ा इर्विन के प्यार का भूत उतर न जाए।
विकास चुप रह गया था। कोहिनूर, माइक और बॉण्ड से सम्बन्धित बातें उसे स्वयं सिंगही ने बताई थीं।
इस बात पर खुश होता हुआ वह धीरे-धीरे आगे बढ रहा था कि उसने ट्रांसमीटर पर बातें भी कर ली थीं और किसी को कानोकान खबर नहीं थी।
हमेशा की तरह दोनो गार्ड्स इस वक्त भी उसके पीछे थे।
वे एक गैलरी से गुजर रहे थे, दूधिया प्रकाश से भरी ऐसी शानदार गैलरी जैसी केवल फाइव स्टार होटलो में ही देखी जा सकती थी। विकास यह सोच-सोचकर चकित था कि बाहर से कितने भद्दे और खुरदरे नजर आने वाले उस विशाल पत्थर के अन्दर कितना शानदार अड्डा बनाया गया था।
गैलरी पार करके वह एक हॉल में पहुंचा, हॉल के बीचो-बीच एक गद्देदार डबल बेड था और पिछले चार दिन का अधिकांश समय उसने इसी बेड पर गुजारा था।
बीमार-सा वह पुनः बेड़ पर लेट गया।
¶¶
उस वक्त नौ बजे थे, जब उन्हें स्टोन फॉरेस्ट में वह विशालतम पत्थर नजर आया, जिसकी उन्हें तलाश थी—दूर ही से, दो हाथियों की ऊंचाई वाले एक पत्थर की बैक से उन्होंने उसे देखा—उसे, जो रात के इस अंधेरे में, सन्नाटे की बीच खड़ा डरावना राक्षस-सा महसूस हो रहा था—पत्थर सचमुच उनकी कल्पनाओं से कही ज्यादा विशाल और ऊंचा था।
हालांकि इतने ऊंचे पहाड़ मिल जाना एक साधारण-सी बात है, मगर पहाड़ क्योंकि पहाड़ होता है, इसलिए उसे देखकर कोई आश्चर्य नहीं होता, मगर इतने विशाल और ऊंचे पहाड़ को देखकर विजय और अलफांसे जैसे व्यक्तियों की आंखों में भी हैंरत उभर आई। पहाड़ ढलवा होते हैं, इसलिए उन पर चढने की कल्पना की जा सकती है, मगर पत्थर तो पत्थर ही था, यानि बिल्कुल खडा, अतः चढकर इस पत्थर की शीर्ष पर पहुंचने की शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।
और उस पत्थर पर चढने का दुःसाहसिक कार्य करना था धनुषटंकार को। एकाएक ही अलफांसे ने पुकारा—"विजय।"
"फरमाओ प्यारे।"
"इस पत्थर के अन्दर सिंगही से सबसे बसने के आइडिए की भी दाद देनी होगी—अगर विकास ट्रांसमीटर पर हमें मूल स्थिति न बताता और हम केवल इस विराम घड़ी के आधार पर ही यहां आए होते तो विराम घड़ी इस पत्थर की तरफ संकेत करके रुक जाती, तब हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि यह पत्थर खोखला होगा, बल्कि यह समझकर कि विराम घड़ी खराब हो गई है, हम इसे इसी पत्थर पर पटककर चूर-चूर कर देते।"
"तुम्हारी बात सोलह आने सही हैं लूमड़, भाई।" विजय ने कहा—"मगर समय कम है और अब अगर हम इस पत्थर और चाच के दिमाग की दाद देने के स्थान पर उस तरफ बढ़े तो हमारी सेहत के लिए कुछ ज्यादा ही ठीक होगा।"
"चलो।" अलफांसे आगे बढ़ता हुआ बोला।
हालांकि वहां से पत्थर उन्हें काफी नजदीक नजर आ रहा था, परन्तु फिर भी उसकी जड़ तक पहुंचते-पहुंचते उन्हे तीस मिनट लग गए। विजय के कंधे पर बैठा धनुषटंकार रह-रहकर अपना चेहरा उठाकर सारे रास्ते पर उस पर पत्थर के शीर्ष को ही देखता रहा था, शायद मन में उठ रही इस भावना के अधीन कि इस विशालतम पत्थर पर उसे विजय प्राप्त करनी थी। मन-ही-मन कई बार उसे डर लगता कि शायद एक रात में वह शीर्ष तक नहीं पहुंच सकेगा।
जड़ में बैठकर जब उन्होंने पत्थर के शीर्ष को देखना चाहा तो लगभग उलट ही जाना पड़ा।
विजय बोला—"अब सारा दारोमदार तुम्हारे ऊपर है, गांड़ीव प्यारे।"
अन्दर से भले ही धनुंषटंकार की हिम्मत जवाब दे रही हो, किन्तु प्रत्यक्ष में उसने खुद को तैयार ही दर्शाया, तब विजय ने कहा—"तो प्यारे, हो जाओ शुरु, समय खराब करने से क्या लाभ?"
धनुषटंकार ने अपने कोट की जेब से अध्दा निकाला—हां, इस अभियान पर चलते समय वह पव्वे के स्थान पर अध्दा ही लेकर चला था। ढक्कन खोलकर उनसे दो-तीन घूंट चढ़ाए।
इस बीच विजय ने अपने कंधे से रस्सी का गुच्छा उतारकर न केवल खोल लिया था, बल्कि उसका एक सिरा धनुषटंकार की छोटी-सी पतलून में बंधी बैल्ट के साथ बांध दिया था।
बड़ी ही श्रध्दा के साथ विजय के चरण स्पर्श किए, उसे प्यार करते हुए विजय ने कहा—"संभलकर चढ़ना गांड़ीव प्यारे, चूकते ही नीचे तुम्हारी लाश आकर गिरेगी।"
जब उसने अलफांसे के पैर छुए तो अलफांसे ने कहा—"तुम जरूर सफल होगे मोण्टो।"
फिर धनुषटंकार ने अपनी साहसिक यात्रा शुरु कर दी थी।
¶¶
जो रस्सी वह अपने साथ लेकर आए थे, वह विकास से बताई गई पत्थर की ऊंचाई से बीस गज ज्यादा ही थी। एक ही पत्थर पर वे दोनो गुमसुम-से आमने-सामने बैठे, अपने बीच पड़े रस्सी के गुच्छे को देख रहे थे—उस गुच्छे को, जो धीरे-धीरे कम हो रहा था। इसके कम होने की गति धनुषटंकार के पत्थर पर चढने की गति से सम्बन्धित थी—शुरु-शुरु में रस्सी काफी तेज गति से कम हुई थी, मगर अब गति सामान्य थी।
बीच-बीच में वे अपनी रेडियम डायल वाली रिस्टवॉचों में समय देख लेते थे। उनके दिल केवल इस आशंका से धड़क रहे थे कि सही समय तक धनुषटंकार शीर्ष पर पहुंच भी जाएगा या नहीं, जबकि पत्थर पर चढते हुए धनुषटंकार का दिल जबरदस्त शारीरिक श्रम करने के कारण बुरी तरह धक-धक कर रहा था।
सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं उसकी।
हाथ और टांगे दु:खने लगी थीं।
पत्थर खुरदरा था, इसीलिए वह चढ़ भी पा रहा था, यदि चिकना होता तो शायद चढ़ा ही न जाता। बहुत ही ध्यान से वह एक के बाद दूसरा कदम आगे बढाता था।
जहां वह होता, पहले हाथ बढ़ाकर वहां से ऊपर के किसी उभरे और खुरदरे भाग को पकड़ता—तब उस पर चढता—इतनी सावधानी के बावजूद भी कई बार उसके हाथ-पांव फिसले थे।
गिरने से अऩेक बार बचा था।
ऐसी स्थिति अनेक बार आ रही थी कि हाथ बढ़ाने पर उसे कोई भी खुरदरा और उभरा हुआ भाग न मिलता, ऐसे प्रत्येक अवसर पर उसे जम्प लेनी होती।
जब वह बुरी तह थक जाता, सांसें और टांगे आगे बढ़ने से इन्कार कर देतीं—उसे लगने लगता कि अब और ज्यादा ऊपर वह नहीं चढ़ सकेगा तो सुस्ताने लगता।
एकाएक ही उसकी नजर रिस्टवॉच पर पड़ती।
समय को अपने से कहीं ज्यादा तेज भागते देखकर वह अध्दा निकालता, कुछ घूंट उतारकर हलक को तर और दिमाग को नशे में करके पुनः चढने लगता।
एक समय ऐसा आया, जब उसने उभरे हुए एक गड्डे में हाथ डाला तो अचानक ही दो कबूतरो के उड़ने की आवाज सन्नाटे में दूर तक गूंज गई—फड़फड़ाने के बाद कबूतरों के उडने से अचानक ही उत्पन्न होने वाली आवाज इतनी डरावनी थी कि धनुषटंकार गिरने से बाल-बाल बचा।
सहमकर खुद को उनसे एकदम पत्थर के साथ चिपका लिया था।
यह बात कुछ देर में उसकी समझ में आई थी कि वहां कबूतर के इस जोडे ने अपना निवासस्थान बना रखा था और वे उससे डरकर उड़े थे—यह सोचकर मन-ही-मन मुस्करा उठा था मोण्टो कि ऐसे संवेदनशील समय में फड़फड़ाकर कबूतरों के उड़ने की आवाज भी कितनी भयानक लग सकती है।
संक्षेप यह कि इस किस्म के जाने कितने खतरो को पार करता हुआ वह अंत में तीन बजे के करीब इस पत्थर के शीर्ष पर पहुंच ही गया, ऊपर पहुंचने के बाद उसने एक सेंकड़ के लिए भी आराम नहीं किया, क्योंकि योजना के मुताबिक वह पहले ही एक घंटा लेट था। जेब से एक मोटी कील निकालकर उसने शीर्ष पर ठोकी—अपनी बैल्ट से रस्सी का सिरा खोलकर उस कील में बांधा, मजबूती को परखा और फिर जिस हथौड़ी से उसने कील गाड़ी थी, वही पत्थर से नीचे फेंक दी।
¶¶
दो बजने के बाद जितना भी समय गुजर रहा था, वह विजय और अलफांसे पर बहुत भारी पड़ रहा था—दिल कुछ ज्यादा ही असामान्य गति से धड़क रहे थे और व्यग्रतापूर्वक वे उस कम होती हुई रस्सी को देख रहे थे—क्योंकि तीन बजे तक का समय गुजारना उनके लिए मुश्किल हो गया।
उस वक्त वे उछलकर खड़े हो गए, जब उनके आसपास ही किसी पत्थर से हथौड़ी के टकराने की जोरदार आवाज गूंजी।
यह संकेत था मोण्टो की यात्रा के खत्म और उनकी यात्रा के शुरु होने का।
अब वे दोनों तेजी के साथ उस रस्सी पर चढने लगे—हालांकि इतनी ऊंचाई तक रस्सी से चढना भी कोई हंसी—खेल नहीं था, किन्तु फिर भी जितना खतरनाक और दुःसाहस से भरा काम मोण्टो ने किया था, उसके मुकाबले यह काम पासंग भा नहीं था। शीर्ष पर पहुंचने में उन्हें तीन घंटे लगे।
यानि सुबह के छह बजे वे पत्थर के शीर्ष पर थे—वहां हवा बहुत तेज थी, झक्कड़-से चल रहे थे—जिस्म पर मौजूद कपड़े चुस्त होने के बावजूद भी फड़फड़ा रहे थे।
उधर पूर्व में गगन सुर्ख होने लगा था।
पत्थर के शीर्ष से उन्हें सूर्य का ऊपरी सिरा भी चमक रहा था—अलफांसे तेजी के साथ रस्सी को खींचकर उसका गुच्छा बनाने लगा—विजय पत्थर के चारो तरफ दूर-दूर तक फैले स्टोन फॉरेस्ट को देख सकता था—जहां वे थे, यहां सूर्य की रश्मियां पहुंचने लगी थीं, जबकि नीचे, स्टोन फॉरेस्ट में अभी तक सुरमई अंधेरा था। विजय ने धनुषटंकार से पूछा—"यहां छुपाने की कोई जगह तलाश की गांड़ीव प्यारे?"
धनुषटंकार ने बाईं तरफ इशारा किया।
यह देखकर विजय चकित रह गया कि वहां एक छोटा-सा अंतरिक्ष रॉकेट आसमान की तरफ मुंह उठाए अपनी तीन टांगों पर खड़ा था—बस, बाकी पत्थर का समूचा शीर्ष एक मैदान जैसा था।
यानि छुपाने की कहीं जगह नहीं थी।
शायद इसलिए धनुषटंकार ने उस यान की तरफ इशारा किया था। यान के अन्दर छुप जाने के अलावा वहां कोई जगह नहीं थी। धनुंषटंकार ने जेब से डायरी निकालकर लिखा—"मैंने अपने साइलेंसरयुक्त रिवॉल्वर से यान के दरवाजे का लॉक तोड़ डाला है।"
"अरे जियो मेरे प्यारे।" पढ़ते हुए विजय ने कहा और फिर धनुषटंकार को गोद में उठाकर प्यार से चूमने लगा। इस बीच अलफांसे ने न केवल सारी रस्सी खींच ली थी, बल्कि धनुंषटंकार के द्वारा गाढ़ी गई कील भी उखाड़कर जेब में डाल ली।
अब वे लगभग दौड़ते हुए यान की तरफ बढ़े।
पत्थर के शीर्ष पर पूरी तरह धूप फैल गई थी—यान के अन्दर पहुंचकर उन्होने दरवाजा सख्ती के साथ बंद कर लिया।
यान संपूर्ण आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण था।
बहुत-सी टीo वीo स्क्रीनें भी थी—अच्छी तरह समझने के बाद अलफांसे ने एक स्क्रीन ऑन की तो यह देखकर उनकी आंखें चमक उठी कि इससे वे पत्थर के शीर्ष को देख सकते थे।
धनुषटंकार ने जेब से सिगार की डिब्बी निकाली और उसे विजय को दिखाते हुए याचना के-से भाव उत्पन्न कर लिए, जैसे कह रहा हो—"प्लीज, एक सिगार।"
"पिओ गांडीव प्यारे, लंबे-लंबे सुट्टे खींचकर पिओ।"
¶¶
"व...वो देखो विजय, अड्डे के अन्दर जाने के एकमात्र रास्ता।" जोश की अधिकता के कारण अलफांसे लगभग चीख ही पड़ा।
स्क्रीन पर सचुमुच पत्थर के शीर्ष पर एक बहुत बड़ा वर्गाकार हिस्सा हटा नजर आ रहा था—वह दरवाजा ठीक बीच में था—तीनों की दृष्टि उस पर चिपक गई।
विजय ने समय देखा—पौने दस।
अचानक ही पत्थर के गर्भ से एक गडगड़ाता हुआ हैलिकॉप्टर बाहर निकला—उसकी गड़गड़ाहट की आवाज उन्हें यान के अन्दर तक आई थी—पत्थर के गर्भ से निकलने के बाद हैलिकॉप्टर बहुत ही तेजी से आकाश की तरफ उड़ा। पत्थर का एक चक्कर लगाया उसने और फिर पत्थर के शीर्ष पर ही लैंड़ कर गया।
उसके अन्दर से सिंगही को निकलने उन्होने स्प्ष्ट देखा।
तभी दरवाजे को पार करके पत्थर के गर्भ से एक लिफ्ट बाहर निकली—लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही पांच हरी वर्दी वाले सशस्त्र गाडर्स बाहर निकले। उन्होंने तीन फोल्डिंग कुर्सियां और एक मेज लिफ्ट से निकाली। लिफ्ट वापस चली गई। रास्ता बंद।
अब कोई नहीं कह सकता था कि पत्थर के अन्दर जाने के लिए वहां कोई रास्ता था।
सिंगही उन गार्ड्स को बोल-बोलकर कुछ समझा रहा था। यान के अन्दर छुपे ये तीनों उसकी आवाज को तो नहीं सुन सकते थे, मगर जो कार्यवाही हो रही थी, उसे देख भली-भांति सकते थे।
बीच में मेज और उसके चारों तरफ तीनो कुर्सियां डाल दी गईं। पांचो सशस्त्र गार्ड़स पत्थर के शीर्ष पर चारों तरफ बिखर गए और सिंगही आराम से उन तीन में से एक कुर्सी पर बैठ गया।
विजय बड़बड़ाया—"बॉण्ड और साइकिल चेन का इंतजार है।"
"म...मगर विजय, अड्डे के अन्दर से सिंगही हैलिकॉप्टर से यहां क्यों आया है?"
"चचा बहुत चालात है प्यारे, बॉण्ड और साइकिल चेन पर वह यही जताना चाहता है कि खुद भी उन्हीं की तरह यहां आया है।"
अभी विजय का वाक्य पूरा हुआ ही न था कि यान के अन्दर पुनः हल्की-सी ग़ड़गड़ाहट की आवाज ने प्रवेश किया और स्क्रीन पर एक नहीं, बल्कि दो हैलीकॉप्टर चकराते नजर आए।
"लो प्यारे।" विजय बोला—"कोहिनूर के दोनों खरीददार आ पहुंचे हैं।"
उनके देखते-ही-देखते दो मिनट के अंतराल से दोनों हैलिकॉप्टर लैंड़ हुए—बॉण्ड और माइक हैलिकॉप्टर से बाहर निकले।
उन दोनो के ही हाथो में भारी अटैचियां थीं।
उन अटैचियों को देखकर अलफांसे की आंखों में जाने क्यों चमक उत्पन्न हो गई, जबकि विजय कह रह था—"बॉण्ड की अटैची कुछ ज्यादा ही भारी मालूम पड़ती हैं लूमड़ भाई, उसे लेकर बॉण्ड पर ठीक से चला भी नहीं जा रहा है।"
अलफांसे चुपचाप स्क्रीन पर नजर आने वाली कैफियत को देखता रहा।
¶¶
पौने दस बजते ही पिछले तीन दिनों की तरह विकास ने कहा—"ब्रेकफास्ट।"
"स...सॉरी सर।" दो में एक गार्ड़ ने रिस्टवॉच देखते हुए रटे-रटाए स्वर में कहा—"अभी समय नहीं हुआ है, सिर्फ पौने दस बजे हैं—ब्रेकफास्ट का समय साढ़े दस है।"
"प्लीज रॉबिन।" उसका नाम लेकर विकास ने याचना-सी की—"बहुत भूख लगी हैं, कभी तो नियम तोड़ दिया करो यार, किसी को भूखा मारने में क्या तुम्हें खुशी मिलती हैं?"
"सॉरी, महामहिम का आदेश है कि...।"
मगर विकास ने उसका वाक्य पूरा नहीं होने दिया, शब्द बदलकर पुनः वही याचना करने लगा—जब हद ही हो गई और विकास ने यह कहा कि यदि इसी वक्त उसे नाश्ता नहीं मिला तो भूख से वह मर जाएगा, फिर उसकी लाश को ब्रेकफास्ट कराते रहना—तो वे दोनो गार्डस एक—दूसरे की तरफ देखकर मुस्कराए, तरस खाकर दूसरे ने कहा—"आज तो इनकी बात मान ही लो, रॉबिन।"
मुस्कराता हुआ रॉबिन मुड़ा, हॉल का ढुलका हुआ दरवाजा खोलकर वह बाहर निकल गया, विकास जानता था कि नाश्ता लेकर लौटने में उसे सिर्फ पांच मिनट लगेंगे, अतः इन पांच मिनटों में ही उसे अपना-अपना काम कराना था। रॉबिन को हॉल से बाहर गए तीन सेकण्ड ही गुजरे होंगे कि ढुलके हुए दरवाजे की तरफ देखते हुए विकास ने कहा—"अरे, तुम अभी तक गए नहीं रॉबिन?"
झोंक में गार्ड़ ने पलटकर दरवाजे की तरफ देखा और पलंग पर पड़े विकास ने किसी गोरिल्ले की तरह उस जम्प लगा दी—गार्ड़ हड़बड़ा गया, मगर चूक उससे हो चुकी थी—विकास का एक हाथ उसके मुंह पर ढक्क्न बनकर चिपका और दूसरे की कराट गर्दन पर पड़ी।
एक घुटी-घुटी-सी चीख के साथ वह फर्श पर लंबा हो गया।
विकास ने फुर्ती से उसे खींचकर एक कोने में डाला, दौड़ा और हॉल के दरवाजे के समीप वाली दीवार से चिपककर हांफने लगा, उसे रॉबिन का इंतजार था।
अपने बाएं जूते की एड़ी से छोटा-सा रिवॉल्वर निकालने के बाद उसने कोट की सीक्रेट सर्विस पॉकिट से छोटा-सा साइलेंसर निकाला और उसे रिवॉल्वर की नाल पर अभी फिक्स किया ही था कि दरवाजा खुला। हाथ में ट्रे लिए रॉबिन अन्दर दाखिल हुआ।
कमरे से अपने साथी को गायब और बेड़ को खाली देखकर अभी वह चौंका ही था कि रिवॉल्वर ताने विकास उसके सामने आ गया। रॉबिन के चेहरे पर हैरत के असीमित भाव उभरे ही थे कि दांत भींचकर विकास गुर्राया—"न...न...चीखना मत, वर्ना मैं तुम्हें गोली मार दूंगा और तुम इस रिवॉल्वर की नाल पर लगे साइलेंसर को देख ही रहे हो।"
हक्का-बक्का-सा खड़ा रह गया रॉबिन!
उसकी गन कंधे पर लटक रही थी, विकास ने आदेश दिया—"ट्रे को आराम से मेज पर रख दो।"
आदेश का पालने करने के अलावा ऐसी अवस्था में रॉबिन बेचारा और कर भी क्या सकता था—आगे बढ़कर उसने ट्रे मेज पर रख दी और उसने ट्रे मेज पर रखी ही थी कि सिर पर मौजूद कैप के ऊपर से ही रिवॉल्वर के दस्ते का इतना सख्त वार किया गया कि उसकी आंखों के सामने आतिशबाजी नाच उठी।
मुंह पर ढक्कन बने एक हाथ ने उसकी चीख को हलक से बाहर भी नहीं निकलने दिया।
उसे बेहोश करने के बाद विकास ने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और दस मिनट बाद वह एक गार्ड़ ही नजर आ रहा था।
कैप का छज्जा अपने मस्तक पर उसने अंतिम सीमा तक झुका लिया, दरवाजा खोलकर गैलरी में आया और सिर झुकाए तेजी के साथ गैलरी पार करने लगा।
अब उसका लक्ष्य सिंगही का ऑफिस था।
ऑफिस उसने देखा था और कम-से-कम योजना बनाते समय उसे बिल्कुल नहीं लगा था कि वह वर्दी पहनने के बाद वहां तक पहुंचने में उसे कोई दिक्कत होगी—वह पिछले एक हफ्ते से यहां था और इस बीच विशेष रूप से उसने यह वाच किया था कि सिंगही के यह गार्ड आपसे से ज्यादा घुले—मिले नहीं थे, अनावश्यक रूप से बात भी नहीं करते थे—और यह भी आवश्यक नहीं है कि वे सभी एक दूसरे के चेहरे पहचानते हो।
गैलरी के बाद उसे एक हॉल पार करना पड़ा।
इस हॉल में बहुत-से गार्ड़ विभिन्न मशीनों पर काम कर रहे थे, सिर झुकाए—उनके बीच से विकास तेजी के साथ कुछ ऐसे अंदाज में गुजरता चला गया, जैसे किसी स्थान विशेष पर पहुंचने की जल्दी हो—ऐसा करने के पीछे उसकी दो भावनाएं थीं।
पहली यह कि वह जल्दी मंजिल पर पहुंचे और दूसरी, उसे इस कदर व्यस्त देखकर अनावश्यक रूप से कोई टोके भी नहीं।
वह उस गैलरी में पहुंच गया, जिसमें सिंगही का ऑफिस था।
यह देखकर उसकी बांछें खिल उठीं कि गैलरी उस वक्त सुनसान पड़ी थी—ऑफिस के बंद कमरे के समीप वह ठिठका, हैंडिल पकड़कर दरवाजा खोलना चाहा तो पता चला कि लॉक्ड था।
एक क्षण भी व्यर्थ किए बिना विकास ने जेब से साइलेंसरयुक्त रिवॉल्वर निकालकर लॉक पर एक नहीं, दो गोलियां मारी।
पिट...पिट...की आवाज के बाद लॉक टूट गया।
विकास तीर की तरह अन्दर पहुंचा।
अब बड़ी तेजी से कमरे की तलाशी लेने में जुट गया वह—उसे मालूम था कि ठीक साढ़े दस बजे डॉक्टर और नर्स उसका हाल देखने आएंगे—कमरे की स्थिति ही उन्हें सारी कहानी बात देगी।
अतः साढे दस तक वह लिफ्ट में पहुंच जाना चाहता था।
मगर कोहिनूर मिले तब न?
बिना कोहिनूर के तो उसका यह सारा मिशन ही बेकार था।
बीस मिनट की भरपूर कोशिश के बावजूद भी उसे कोहिनूर नहीं मिला-साढ़े दस बजने में केवल पांच मिनट शेष रह गए थे—सिंगही की मेज के समीप खड़ा वह हड़बड़ाया-सा अपने चारों तरफ देख रहा था कि अचानक ही उसकी दृष्टि मेज पर रखे पेपरवेट पर पड़ी।
आह। वह पेपरवेट नहीं, कोहिनूर था।
मेज पर रखे कुछ कुछ कागज दबे हुए थे उससे।
यह सोचकर विकास रोंमांचित-सा हो उठा कि अपने इस ऑफिस में सिंगही कोहिनूर से आजकल पेपरवेट का काम ले रहा था, उसने झपटकर कोहिनूर उठाया, जांचा—संतुष्ट होते ही दरवाजे की तरफ दौड़ा नहीं वह, बल्कि झपट-सा पड़ा।
¶¶
कोहिनूर की नीलामी-सी हो रही थी पत्थर के शीर्ष पर।
मुकाबला था माइक और बॉण्ड के बीच।
अपनी कुर्सी पर बैठे सिंगही धीमें-धीमें मुस्कराता हुआ उनके बीच चल रहे मुकाबले का आनन्द उठा रहा था।
जेम्स बॉण्ड वही कर सकता था, जो सोचकर आया था यानि माइक जो भी कहता बॉण्ड उससे एक करोड़ पाऊण्ड ऊपर कह देता। स्थिति यह आ गई कि वह रकम बहुत पीछे छूट गई थी। जितने में अमेरिकी सरकार ने उसे कोहिनूर खरीदने की इजाजत दी थी।
फिर जब बॉण्ड ने चरम सीमा के बाद भी हजार डॉलर ऊपर बोल दिए तो माइक अजीब-सी अविश्वसनीय द़ृष्टि से बॉण्ड को देखने लगा। बॉण्ड के होंठो पर विजयी मुस्कान थी।
सिंगही ने कहा—"बोलो मिस्टर माइक?"
"कोहिनूर इसे ही दे दीजिए।" माइक ने झुंझलाए से अंदाज में कहा।
"वाकई कोहिनूर की कद केवल ब्रिटेन जानता है, इसलिए वह नायाब हीरा ब्रिटेन के पास ही रहना चाहिए, मुबारक हो मिस्टर
बॉण्ड।"
"थैंक्यू।" कहते हुए बॉण्ड ने अपनी अटैची उठाकर मेज पर रख दी, बोला—"यह पेशगी रखिए मिस्टर सिंगही और सौदा पक्का कीजिए, आप इसे खोलकर देख सकते हैं।"
अटैची को खोलने के लिए सिंगही अभी हाथ बढ़ाया ही था कि उसकी रिस्टवॉच स्पार्क करने लगी। सिंगही चौक पड़ा।
रिस्टवॉच का सम्बन्ध अड्डे के अन्दर स्थित कंट्रोल रूम से था और उसके इस प्रकार स्पार्क होने का अर्थ था—खतरा।
पत्थर के अन्दर कोई गड़बड़ थी। सिंगही के दिमाग में बड़ी तेजी से विचार कौंधा—मगर क्यों?
पत्थर के गर्भ में भला क्या गड़बड़ हो सकती हैं और उस वक्त उसे पहली बार ख्याल आया कि अड्डे के अन्दर विकास है, एकमात्र वही है, जो कुछ गड़बड़ कर सकता है, मगर फिलहाल वह इस गड़बड़ को चैक नहीं कर सकता था, क्योंकि ऐसा करने के लिए दरवाजा खोलना जरूरी था और सिंगही नहीं चाहता था कि माइक और बॉण्ड को उस पत्थर के खोखलेपन का पता लगे।
अतः उन्हें जल्दी से टरकाने के लिए सिंगही ने अटैची के दोनो लॉक्स को खोलने के लिए दबाव बनाया और उसका ऐसा करना ही मानो गजब हो गया।
अटैची के दाएं-बाएं एक साथ इस्पात के बने दो हाथ न केवल निकले, बल्कि झट से सिंगही की गर्दन पर आ जमें—बौखलाकर सिंगही कुर्सी समेत पीछे उलट गया, मगर उसकी गर्दन से इस्पाती हाथ नहीं हटे, बल्कि अटैची भी उसके सीने और पेट पर चिपक गई।
वहां मौजूद सारे गार्ड़स अभी कुछ समझ भी नहीं पाए थे कि रिवॉल्वर निकालकर बॉण्ड गरजा—"कोई भी मुझ पर हमला करने की कोशिश न करे, क्योंकि अब यह अटैची मेरे हुक्म के बिना सिंगही को नहीं छोड़ेगी, मेरी मौत के साथ ही तुम्हारा महामहिम भी खत्म हो जाएगा।"
पांचों गार्ड्स किंकर्तव्यविमूढ़—से खड़े रह गए।
माइक का हाथ अपनी जेब की तरफ जा ही रहा था कि बॉण्ड रिवॉल्वर का रुख उसकी तरफ घूमाकर गुर्राया—"डोंट मूव मिस्टर माइक, हाथ ऊपर उठा लो।"
माइक ने आदेश का पालन किया और वह भी दिलचस्प दृष्टि से सिंगही की तरफ देखने लगा, उस वक्त अजीब स्थिति में था वह दुनिया का मानतम अपराधी—अटैची किसी चमगादड़ की तरह उसके जिस्म से चिपटी हुई, बंद अटैची के फौलादी हाथ सिगंही की गर्दन पर थे।
अपने हाथों से सिंगही अटैची के हाथों को हटाने की भरपूर कोशिश कर रहा था।
उस दिलचस्प दृश्य को देखकर जहां सभी चमत्कृत-से थे, वहीं बॉण्ड ठहाका लगा उठा। अपनी जेब से एक छोटा-सा ट्रांसमीटर निकालते हुए उसने कहा—"अब वह अटैची तुम्हें नहीं छोडेंगी सिंगही, तुम्हारे करेंटयुक्त और अदृश्य आदि होने के सारे आर्ट बेकार हैं—वह उन यानों का छोटा रूप है, जो बिना मानव के दूसरे ग्रहो पर भेजे जाते हैं।"
सिंगही निरन्तर अपने से चिपटी अटैची से जूझ रहा था।
बॉण्ड ने आगे कहा—"इस अटैची को लंदन को कंट्रोल किया जा रहा है, यह वहीं से हट सकती है और वहां से तब हटेगी, जब मैं इस ट्रांसमीटर पर उन्हे ऐसी करने का आदेश दूंगा और ऐसा आदेश मैं तब दूंगा, जब तुम कोहिनूर मुझे सौंप दोगे।"
गाडर्स की समझ में नहीं आ रहा था कि उस अवसर पर वे क्या करें?
"यह अटैची अपने आप में एक बहुत ही विनाशाकारी बम भी है, मेरे आदेश देते ही—वहां, लंदन के कंट्रोल रूम में बैठा व्यक्ति एक बटन दबाएगा और बम फट जाएगा।"
विजय आदि यान के अन्दर स्क्रीन पर ही यह दृश्य देख रहे थे।
"बोलो सिंगही, कोहिनूर मेरे हवाले कर रहे हो या नहीं?"
सिंगही कुछ बोला नहीं, केवल अटैची से जूझता रहा।
ट्रांसमीटर ऑन करके बॉण्ड ने कहा—"हैलो...हैलो जॉन, बॉण्ड हीयर—हाथों का प्रेशर बढ़ा दो।"
इस आदेश के तुरंत बाद ही सिंगही ने महसूस किया कि अटैची के फौलादी हाथों का दबाव उसकी गर्दन पर बढ़ रहा था—उसका गला भिंचने लगा।
अब सांस लेने में भी कठिनाई हो रही थी उसे।
बॉण्ड ने चेतावनी-सी दी—"बोलो सिंगही, बोलो—कोहिनूर देते हो या...।"
वाक्य अधूरा ही रहा गया, क्योंकि तभी हॉल का दरवाजा सर्र से खुला और एक लिफ्ट शीर्ष पर आ खड़ी हुई—दरवाजा खुलते ही उसके अन्दर से विकास ने बाहर जम्प लगाई।
"त...तुम!" बॉण्ड चकित—"इस पत्थर के गर्भ से!"
"य...यह पत्थर खोखला है बॉण्ड, दादा का अड्डा यही है।"
गार्ड्स की गनें अभी विकास की तरफ घूमी ही थी कि।
"रेट...रेट...रेट।"
सारा वातावरण एक नहीं, कई गनों की गर्जना कांप उठा और एक ही पल में वे पांचो गार्ड्स चीखकर शहीद हो गए।
सिंगही के अलावा सभी ने चौंककर यान की तरफ देखा।
विजय, अलफांसे और धनुषटंकार को देखकर जहां माइक और बॉण्ड भौचक्के रह गए, वही विकास चीख पड़ा—"क...कोहिनूर मिल गया है गुरू।"
गनें संभाले वे तीनों यान के दरवाजे से कूदकर उस तरफ भागे, जबकि विकास का वाक्य सुनते ही बॉण्ड के कान खड़े हो गए थे, ट्रांसमीटर पर बोला—"जॉन—तुमने विकास का वाक्य सुना होगा—क्विक जॉन—सिंगही को छोड़कर विकास को पकड़ो!”
एक झटके से अटैची ने सिंगही को छोड़ दिया।
सिंगही आजाद हुआ ही था कि विजय ने गन के बैरल की जोरदार चोट उसकी कमर में की—एक चीख के साथ सिंगही मुंह के बल गिरा।
अलफांसे का घूंसा माइक के चेहरे पर पड़ा था।
अपने बाजू फैलाए हवा में तैरती अटैची विकास की तरफ लपटी—मुट्ठी में कोहिनूर दबाए उससे बचने के लिए विकास भागा और साथ ही चीखा—"उसे रोको बॉण्ड, कोहिनूर तुम्हारा है और वादा करता हूं, तुम्हीं को मिलेगा।"
"मुझे वादा नहीं विकास, कोहिनूर चाहिए।"
"लो।" दौड़ते हुए विकास ने कोहिनूर बॉण्ड की तरफ उछाल दिया—कोहिनूर बड़ी सफाई से लपककर बॉण्ड ने जेब के हवाले करते हुए कहा—"थैंक्यू।"
तब, विकास ने चीखकर कहा—"अगर सचमुच यह अटैची बम का काम भी कर सकती है बॉण्ड तो इसे जल्दी से दरवाजे के अन्दर दाखिल कर दो—नीचे से गाडर्स यहां पहुंच गए तो बचना मुश्किल हो जाएगा।"
ट्रांसमीटर पर जॉन को बॉण्ड कुछ ऐसे ही आदेश देने लगा।
वही वे क्षण था, जब वहां एक हैलीकॉप्टर के स्टार्ट होने की आवाज गूंजी, जब तक दौड़ता हुआ माइक उसके नजदीक पहुंचा, तब हैलीकॉप्टर ऊपर उठ चुका था।
इधर, मौका लगते ही सिंगही भी यान की तरफ भागा।
विजय और धनुषटंकार उसके पीछे लपके।
यान के करीब पहुंचकर विजय ने उसके शरीर पर जम्प भी लगा दी, किन्तु उसे एक तीव्र झटका लगा और वह वापस आ गिरा।
कदाचित् भागते हुए सिंगही ने अपने जिस्म को करेंटयुक्त कर लिया था।
उनके देखते-ही-देखते एक जोरदार धमाके के साथ यान तीर की तरह सनसनाता हुआ आकाश की तरफ चला गया।
इधर विकास ने चीखकर माइक से कहा था—"हैलिकॉप्टर संभालो अंकल।"
इस प्रकार, एक हैलिकॉप्टर माइक ने तथा दूसरा विकास ने संभाल लिया, फिर विजय और धनुषटंकार दौड़कर माइक के हैलिकॉप्टर में चढ़ गए—बॉण्ड विकास के।
एक साथ दोनो ने पत्थर की शीर्ष छोड़ दिया।
विजय ने माइक से पूछा—"पाऊण्ड्स से भरी तुम्ही वह भारी-सी अटैची कहा गई साइकिल चेन?"
"उसे कम्बख्त अलफांसे ले उड़ा हैं।"
सुनकर धनुषटंकार खी-खी करके हंस पड़ा, विजय ने तुरंत ही उसे कड़ी दृष्टि से घूरा और धनुषटंकार ने तुरंत अपने होंठ कसकर बंद कर लिए, जैसे भविष्य में इस प्रकार खिलखिलाकर कभी न हंसने की प्रतिज्ञा कर रहा हो।
उधर, दूसरे हैलिकॉप्टर में विकास कह रहा था—"यह मत समझना बॉण्ड अंकल कि मैंने तुम्हारी उस करामाती अटैची से डरकर कोहिनूर दिया है।"
"नहीं तो क्या समझूं?" बॉण्ड व्यंग्यपूर्वक मुस्कराया।
"भारत के प्रधानमंत्री पर हमारी पोल खुल गई थी यानि उन्हें मालूम हो गया था कि हम अवैध ढंग से कोहिनूर को हासिल करने लंदन गए थे और उसी झमेले में कोहिनूर सिंगही दादा के हाथ लग गया है।"
गंभीर होते हुए बॉण्ड ने पूछा—"फिर?"
"उन्होंने हमें बहुत लताड़ा, कहा कि बेशक कोहिनूर भारत का है, मगर उसे प्राप्त करने का यह तरीका बहुत शर्मनाक है, ब्रिटेन से कोहिनूर राजनैतिक स्तर पर वार्ता के जरिए ही लिया जाएगा—उन्होंने हमसे यह भी कहा कि सिंगही से कोहिनूर प्राप्त करके ब्रिटेन
के हाथो में सौंपना हमारी नैतिक डयूटी है।"
"और तुमने वही नैतिक ड्यूटी निभाई है?"
"हां।"
"चलो यूं ही सही, मगर बॉण्ड हारा नहीं है।"
"अब जरा उस अटैची का कमाल तो दिखा दो।" कहते हुए विकास ने झांककर नीचे उस विशालतम पत्थर को देखा, शीर्ष पर मौजूद दरवाजा अभी तक खुला पड़ा था, मगर अटैची वहां कही नजर नहीं आ रही थी, बोला—"वह अटैची पत्थर के शीर्ष पर कहीं नजर ही नहीं आ रही।"
बॉण्ड सीधा विकास को जवाब देने के स्थान पर ट्रांसमीटर पर बोला—"हैलो जॉन।"
"यस सर।" दूसरी तरफ से आवाज उभरी।
"यान कहां है?"
"खोखले पत्थर के अन्दर, इस वक्त वह पत्थर के बीचो-बीच है।"
"गुड, उसे ब्लास्ट कर दो, जॉन।"
बॉण्ड के इन शब्दों की तीस सैकंड़ के बीद ही स्टोन फॉरेस्ट में एक कर्णभेदी धमाका गूंजा, बॉण्ड तथा विकास ने उस विशालतम पत्थर के परखच्चे उड़ते देखे।
अपने हैलिकॉप्टर से माइक, विजय और धनुषटंकार ने भी उस विशाल पत्थर को खंड-खंड होते देखा और खिलखिलाकर हंसने के चक्कर में धनुंषटंकार पुनः खी-खी कर उठा। विजय ने कठोर दृष्टि से उसे घूरा। इस बार धनुषटंकार ने होंठ बंद नहीं किए, खी-खी करता ही रहा।
समाप्त