जीतसिंह ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला, उसने बाहर बरामदे में कदम रखा और अपने पीछे दरवाजा बन्द कर दिया । उसने नोट किया आगन्तुक उसे अपलक देख रहा था ।


शायद कोई डोर टू डोर सेल्समैन था - जीतसिंह ने मन ही मन सोचा ।


“मिस्टर आगाशे ।” - फिर आगंतुक तनिक मुस्कराता हुआ बोला ।


यानी कि वो उसे नहीं जानता था - जीतसिंह ने सोचा - वर्ना वो उसे आगाशे के नाम से न पुकार रहा होता । और जरूर खुद उसका भी ये वहम ही था कि उसने पहले उस शख्स को कहीं देखा था ।


"नहीं" - जीतसिंह बोला "वो घर पर नहीं है । "


"उनकी मिसेज होगी ?"


"वो भी नहीं हैं ।”


"घर पर नहीं होगी लेकिन अगर आसपास कहीं गई हैं तो..."


"बोला न नहीं है ।" - जीतसिंह बेसब्रेपन से बोला और उसने घूमकर बंगले में वापिस दाखिल होने के उपक्रम में दरवाजे का हैंडल थामा ।


“जीतसिंह !"


जीतसिंह सकपकाया, ठिठका, वापिस घूमा। उस शख्स को देखा । घूमा । उसने घूरकर


"अभी क्या नाम लिया तुमने ?" - वो सख्ती से बोला ।


“जीतसिंह ।”


"वो कौन है ?"


"तुम हो । और कौन है ?"


" तुम्हें गलतफहमी हुई है। मेरा नाम बद्रीनाथ है ।"


"यहां होगा लेकिन इंदौर में तुम्हारा नाम जीतसिंह था जहां से कि तुम एक चोरी के मामले में बेल जम्प करके भागे हुए हो ।


कुछ याद आया ?”


जीतसिंह से जवाब देते न बना ।


"मैं और याद दिलाता हूं । जब पुलिस तुम्हारी तलाश में थी तो एक नौजवान लड़की ने तुम्हें अपने घर में पनाह दी थी । पुलिस की दौड़-धूप ठंडी हो जाने के इन्तजार में दो दिन तुम उस घर में छुपे रहे थे । वो नौजवान लड़की मेरी साली थी । तुम्हारी वहां मौजूदगी के दूसरे दिन मैं भी उसी घर में ठहरा था । रात को हमने इकट्ठे बैठ कर चियर्स बोला था और एक बोतल खत्म कर के उठे थे। अब कुछ याद आया ?"


"नाम कैसे मालूम है ? मैंने उस लड़की को अपना नाम नहीं बताया था ।”


"बताया।"


"ये नाम नहीं बताया था जो तुमने अभी लिया।"


"ब्रह्मदत्त बताया था लेकिन तुमने वहां से बम्बई किसी को फोन किया था जो शायद तुम्हें एक ही नाम से जानता था इसलिए तुम्हें अपना असली नाम फोन पर लेना पड़ा था । जीतसिंह । जो कि मेरी साली ने सुना था जो कि बाद में उसने मुझे तब बताया था जब कि तुम मुंह अंधेरे उस घर से खिसक भी चुके हुए थे। कितना नाशुक्रापन था तो तुम्हारा ! उस बेचारी ने खुद रिस्क लेकर तुम्हे पुलिस से छुपाकर रखा और तुमने जाती बार उसे एक सिम्पल थैंक्यू कहकर जाना भी जरूरी न समझा ।"


"तुम्हारा नाम वालसन है।" - जीतसिंह एकाएक बोला ।


"शुक्र है, आखिरकार तुम्हारी याददाश्त की मोम पिघली तो सही ।"


"तब तुम किसी फाइनांस कम्पनी के इनवैस्टिगेटर थे ।”


" अब भी वही हूं।"


"अब किस फिराक में हो ?"


"मैं गोविन्द पचौड़ी नाम के एक आदमी की फिराक में हूं।"


"वो कौन है ? आगाशे का कोई वाकिफकार है ?"


"पहले उसका था । अब बीवी का है । और" - वो एक आंख तनिक बंद करके बड़े धूर्त भाव से बोला - "आगाशे को नहीं पता । जीतसिंह, मेरी यहां आमद का आगाशे के किसी प्लान से कुछ लेना देना नहीं "


"प्लान ! कैसा प्लान ?"


"कैसा भी ।”


जीतसिंह का मन निराशा से भर उठा । लगता था जैसै पहले फिगारो आइलैंड पर देवरे के का टपकने से खीर में मक्खी पड़ी थी, वैसा ही अब वहां उस वालसन नाम के शख्स के आगमन से होने वाला था । जो विघ्नकारी काम वहां फरताद की मौत ने किया था वो अब यहां इला की किसी करतूत की वजह से होने वाला था ।


यानी कि वहां पहुंचते ही जो वो उस औरत से आशंकित हुआ था तो ठीक ही हुआ था ।


एकाएक उसने दरवाजे को थोड़ा-सा खोला और उसमें गर्दन डालकर आवाज लगाई - "इला, मिसेज आगाशे ?"


असाधारण देर लगाकर उसने बाहर कदम रखा । उस घड़ी वो बहुत व्याकुल और आंदोलित लग रही थी ।


"ये पचौड़ी को पूछ रहा है ।" - जीतसिंह वालसन की तरफ इशारा करता हुआ बोला - "कहां है वो ?"


"कौन पचौड़ी ?" - वो तीखे स्वर में बोली । "तुम्हें मालूम है कौन पचौड़ी ।"


"मुझे क्या पता कहां है वो ? मैंने तो तब से उसकी देखी जब से कि...' सूरत नहीं


"मैं आगाशे को बाहर बुलाता हूं।"


"बत्तीस, सरकुलर रोड ।" - तत्काल वो फुसफुसाती सी बोली ।


जीतसिंह ने वालसन की तरफ देखा । वालसन ने इन्कार में सिर हिलाया तो वो फिर इला से संबोधित हुआ - "क्या बोला ?"


“बत्तीस, सर्कुलर रोड । यही उसका पता है । मैं सच कहती हूं।"


"सच ही कहना चाहिए । कहो सच ।"


"श.. शायद इसे पचौड़ी की गर्लफ्रेंड का पता चाहिए । वो मिशन कम्पाउंड में... तीसरा माला, फ्लैट नंबर तीन सौ नौ । मिशन रोड... "


इस बार वालसन के चेहरे पर संतोष के भाव आए । उसका सिर सहमति में हिला ।


"लड़की का नाम ?" - वो बोला ।


"नहीं मालूम । ऑनेस्ट । लेकिन पता यही है जो मैं...." "भीतर जाओ।" - जीतसिंह ने आदेश दिया ।


क्षण भर को इला के परेशानहाल चेहरे पर क्रोध के भाव आए लेकिन फिर वो घूमी और वापिस भीतर चली गयी ।


जीतसिंह वालसन की तरफ घूमा ।


"कारों को क्यों ताड़ रहे थे ?" - वो सख्ती से बोला ।


"जिस मतलब से ताड़ रहा था, वो अब हल हो गया इसलिए डोंट वरी ब्रदर ।"


"कोई नम्बर नोट किया हो तो..."


"मेरे पास न कागज है न पेंसिल । "


"जुबानी याद..."


"बहुत कमजोर है मेरी याददाश्त । मतलब की बात याद नहीं रहती, बेमतलब की कहां याद रहेगी !"


"हूं।"


"राजी ?"


जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया और फिर वालसन को बरामदे में खड़ा छोड़कर वापिस बंगले में दाखिल हो गया ।


ड्राइंगरूम में पहुंचकर उसने पाया कि इला का रंग फक था, आगाशे का चेहरा लाल था और ऐंजो और नवलानी उनके करीब खड़े बार-बार बेचैनी से पहलू बदल रहे थे ।


"मैं कहती हूं" - इला कह रही थी- "उसे कोई गलतफहमी हुई थी । वो किसी मुगालते में यहां आ गया था ।”


आगाशे ने उसकी बात की ओर ध्यान न दिया । जीतसिंह को वहां पहुंचा पाकर वो उसकी तरफ घूमा और भुनभुनाता सा बोला- "क्या किस्सा है ? क्या बात थी ?"


"वही जो तुम्हारी बीवी ने कही।" - जीतसिंह बोला - "वो वालसन नाम का एक फाइनांस कम्पनी का इन्वैसटीगेटर है जिससे कि मैं बहुत अरसा पहले इन्दौर में मिला था । वो एक ऐसी औरत की तलाश में था जिसने कि उसकी फाइनांस कम्पनी से कार खरीदने के लिये कर्जा लिया था और फिर कर्जे की कुछ ही किश्तें चुकाने के बाद शहर छोड़ गई थी और कार समेत कहीं गायब हो गई थी। उस आदमी को कहीं से ये गलत टिप मिल गई थी कि वो औरत आजकल यहां रहती थी । अभी तुम्हारी बीवी से बात करके उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था और वो सॉरी बोलकर यहां से चला गया था।"


"ओह !" - आगाशे बोला ।


तब इला के चेहरे पर जीतसिंह के प्रति ऐसी गहन कृतज्ञता के भाव आए कि उस घड़ी अगर आगाशे उसकी शक्ल देख लेता तो जरूर फिर महाभारत शुरू हो जाता ।


फिर वो एकाएक घूमी और वहां से निकलकर बंगले के पिछवाड़े में कहीं चली गई ।


"हमारे बीच क्या बात हो रही थी ?" - जीतसिंह बोला ।


"कब ?" - आगाशे सकपकाया ।


"वो विघ्न आने से पहले जो कि अभी आया था ।"


" "ओह । तब मैं कह रहा था किए अभी मैंने तुम्हें स्कीम का मोटा-मोटा खाका ही बताया था । अंदेशों और खामियों पर हम इत्मीनान से गौर कर सकते थे।"


“वो तुम करना लेकिन कुछ बातें मैं भी तुम्हारी तवज्जो में लाना चाहता हूं जिन पर कि रोशनी फौरन पड़नी चाहिए।”


"मसलन क्या ?"


“मसलन हमें ये बात निश्चित रूप से मालूम होनी चाहिए कि बख्तरबंद गाड़ी का कोई अपना सिन्नल या वायरलैस सिस्टम है या नहीं । उसमें कोई खास, ऐन मौके पर दुश्वारी पैदा करने वाला कोई अलार्म है या नहीं।"


"मालूम पड़ जाएगा।" - आगाशे बड़े इत्मीनान से बोला "आज शाम को ही मालूम पड़ जाएगा ।" 


"आज कैसे मालूम पड़ जाएगा ? इतवार को क्या आर्ट गैलरी की छुट्टी नहीं होती ?”


"होती है लेकिन जानकारी तो मैने अपने कजन से हासिल करनी है जिसकी छुट्टी हो न हो, क्या फर्क पड़ता है ।"


"बढ़िया ।"


" और बोलो ।"


"ये मालूम करो कि किसी अनहोनी घटना की बाबत बख्तरबंद गाड़ी के स्टाफ को कोई खास हिदायत तो नहीं !"


"खास हिदायत ?”


"मसलन उन्हें ये ही हिदायत हो कि भले ही तबाही आ जाए, उन्होंने बख्तरबंद गाड़ी से बाहर नहीं निकलना था।"


"ओह !"


“उन्हें ऐसी कोई हिदायत हुई तो वहां पहाड़ी रास्ते पर उनके सामने सड़क पर की गई तुम्हारी सारी ड्रामेबाजी बेकार चली जाएगी।"


"मैं मालूम करूंगा।"


“अगर हम कामयाब हो गए तो मूर्तियों को जितनी ज्यादा दूर ढोयेंगे उतना ही ज्यादा खतरा वो हमारे लिए बनेंगी । इसलिए ये भी जरूरी है कि मूर्तियां हाथ लग जाने के बाद हमें वहां कोई करीबी मुकाम हासिल हो जो कि उन्हें छुपाकर रखने के लिए महफूज हो ।"


"साई" - नवलानी प्रभावित स्वर में बोला- "पुटड़ा लक्ख रुपये की बात बोला है । "


"मैंने नोट कर ली है बात ।" - आगाशे बोला ।


“एक इस बात पर भी गौर करके रखना कि पुलिस की जीप हथियाने के दौरान या बाद में बख्तरबंद गाड़ी वालों की खातिर वहां सड़क पर जो हाई टेंशन ड्रामा हो, अगर उस दौरान किसी तरफ से कोई दूसरा वाहन वहां पहुंच गया तो क्या होगा ? हम कैसे उसे हैंडल करेंगे या कैसे उसे वहां पहुंचने से रोकेंगे ?"


"इसका तो मुझे ख्याल ही नहीं आया था ।" - आगाशे के मुंह से निकला ।


"कोई वान्दा नहीं । वक्त रहते ख्याल आ जाना भी एक बराबर कारआमद होता है ।"


"स्कीम में इस्तेमाल हाने वाले प्रॉप्स और साजोसामान का इंतजाम कौन करेगा ?"


"उसकी तुम फिक्र न करो। वो सब गाड़ी, हथियार वगैरहमैं और नवलानी मुहैया कराएंगे।"


"बढ़िया । एक इस बात पर भी गौर करके रखना कि क्या काम छ: जनों से कम के किए हो सकता है ?"


"नहीं हो सकता ।"


"जितने मेम्बर कम होंगे, उतना ही हर किसी के हिस्से में इजाफा होगा ।”


"बोला न नहीं हो सकता।"


"फिर भी सोच के रखना । "


"सोच के ही रखा है.."


"सोचेंगे, साई" - नवलानी बोला- "फिर सोचेंगे ।"


" और अब आखिरी बात खरीददार के एडवांस इन्तजाम की ।"


“वो हम करेंगे" - आगाशे बोला- "लेकिन इस बाबत मेरी एक दरखास्त है । "


"क्या ?"


"मैं चाहता हूं कि इस काम का सिर्फ हमें ही ठेकेदार न मान लिया जाए । इस सिलसिले में तुम्हें भी कोई कोशिश करनी चाहिए।"


"मंजूर । हम करेंगे। इसके लिये हमें उन मूर्तियों की कोई आफिशियल और प्रमाणिक जानकारी चाहिए होगी ।"


“हो जाएगा । तुम रात यहां रुको, मैं तुम्हें तुम्हारे तकरीबन सवालों का जवाब देकर भेजूंगा ।"


जीतसिंह ने ऐंजो की तरफ देखा ।


"क्या हर्ज है ?" - ऐंजो धीरे से बोला । "ठीक है।" - जीतसिंह बोला ।


“गुड ।” - आगाशे बोला- "मैं तुम्हें आश्वासन देता हूं कि मेरे बंगले पर रात गुजारने में तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी । मैं अभी सारा इंतजाम..."


"हमारा यहां रहने का कोई इरादा नहीं ।"


"लेकिन तुम्हारे यहां रहने से...."


"तुम्हारे काम में, तुम्हारी मूवमंट में विघ्न पड़ेगा।"


"लेकिन..."


“आती बार हाइवे पर मैंने एक टूरिस्ट रिजार्ट देखा था । हम वहां ठहर जाएंगे। वहां इमें कोई दिक्कत हुई तो हम तुम्हें खबर कर देंगे, फिर जैसा तुम चाहो, करना । ठीक ?"


आगाशे ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिला दिया ।


***

हाईवे का टूरिस्ट रिजोर्ट सी के आकार में बनी एक इमारत थी जिसके बैरकनुमा कमरे एक विशाल मैदान में काफी दूर-दूर तक फैले हुए थे । सी के बाएं बाजू में वहां का आफिस था जहां कि कमरों के लिए बुकिंग होती थी और उसी के साथ जुड़ा हुआ एक बार कम रेस्टोरेंट था ।


उन्होंने दाएं बाजू में दाएं बाएं दो ऐसे कमरे लिये जिनके बीच में उन्हें आपस में जोड़ने वाला दरवाजा भी था ।"


"दो कमरे क्यों ?" - ऐंजो बाद में बोला ।


"क्या वान्दा है ?"


"रोकड़ा ज्यास्ती चार्ज होता है । "


"रोकड़े की कोई कमी नहीं । मेरे पास बाईस हजार रुपया है ।”


ऐंजो के नेत्र फैले ।


जीतसिंह हंसा ।


"कहां से आया ?"


जीतसिंह ने बताया ।


"तू...तू" - ऐंजो भौचक्का सा बोला- "कैसीनो का वॉल्ट खोल लिया !"


"आराम से । वो साला मार्सेलो किचकिच न मचाता तो और जल्दी खोल लेता ।”


" और दादा लोगों से भी भिड़ गया । गन छीन लिया उनका |"


"सुबह लौटा दी रिवॉल्वर ।"


"तू तो बहुत जिगरे वाला आदमी है । ऊपर से तो ऐसा लगता !"


"कैसे लगूं ? हूं ही नहीं मैं जिगरे वाला आदमी ।" “बंडल मारता है । अपने फिरेंड से बंडल मारता है ।” "मजबूरी सब कुछ करा देती है, ऐंजो ।”


"मजबूरी ! क्या मजबूरी है तेरी ?"


“है कोई मजबूरी ।”


"जिसको नक्की करने का वास्ते तेरे को दस लाख रुपया मांगता है ।”


"न सिर्फ मांगता है, बहुत जल्द मांगता है।"


"बॉस, तू बहुत बार मेरे को बोला वो किस्सा फिर कभी, वो किस्सा फिर कभी । आज हमारे पास टेम है । आज बोल क्या किस्सा है ?"


"सुनेगा ?"


"हां । और ये भी बोल कि असल में तू कौन है।"


"असल में भी वही हूं जो नकल में हूं । चोर । उचक्का उठाईगिरा । तालातोड़ । तिजोरीतोड़ । घटिया इन्सान । सोसायटी का नासूर । मोरी का कीड़ा । अलबत्ता नाम मेरा बद्रीनाथ नहीं, जीतसिंह है । "


"जीतसिंह !"


"मेरी मां ने जब मेरा ये नाम रखा होगा तो इसी उम्मीद में रखा होगा कि एक दिन ऐसा आएगा जब मैं सारी दुनिया जीत लूंगा । लेकिन कभी न कुछ न जीता। हमेशा हारा । अब तो जीत का सपना भी देखने की कोशिश करता हूं तो हार पहले दिखाई देती है ।"


"हाथ में हुनर कैसे आया ?"


"किसी की शागिर्दी करता था । हुक्का भरता था उसका । देखा-देखी सीख गया । सीखते-सीखते सीख गया ।"


"लेकिन हुनर का कभी स्पेशल इस्तेमाल नहीं किया ?"


"एक बार किया था । इन्दौर में । एक लोकल आदमी के साथ मिलकर किसी के घर में चोरी की कोशिश की थी । अभी तिजोरी तक पहुंचे ही थे कि घर में जाग हो गई थी । साथी भाग गया था लेकिन मैं घर से बाहर सड़क पर पकड़ा गया था । बड़ी मुश्किल से जमानत हुई थी । तब आजाद होते ही इन्दौर से ऐसा भागा कि आज तक उधर का रुख करने का हौसला नहीं हुआ।"


"यानी कि आज तक कोई बड़ा हाथ नहीं मारा ?"


"नहीं । हिम्मत ही न हुई ।"


"कभी भी नहीं ?”


"हाल ही में की थी ऐसी हिम्मत । बम्बई में चार साथियों के साथ पपड़ी, चुनिया, देवरे और ख्वाजा नाम के चार साथियों के साथ । एक जौहरी के शोरूम की सेफ खोली साला अस्सी लाख रुपया नकद और ढेर सारे जेवर हाथ लगने की उम्मीद थी । लगा सिर्फ बारह लाख रुपया । फिर उसका हिस्सा हाथ न लगा ।"


"क्यों ?"


"रुपया चुनिया के पास था। दो दिन बाद उसकी खोली में उसका कत्ल हो गया और रुपया वहां से गायब हो गया । अब मैं समझता हूं कि रुपया मेरे साथियों में से कोई हड़प गया और मेरे साथियों में से खास देवरे ये समझता है कि रुपया मैंने पार कर दिया जो कि झूठ है । आज की तारीख में वो मेरे खून का प्यासा है। फिगारो आइलैंड पर तो उसने मुझे मार ही दिया था लेकिन लेकिन तकदीर थी कि मैं बच गया ।"


"ओह ! तो रिकार्डो के बंगले पर इसलिए तेरे पर हमला हुआ था ?"


"हां । "


"ऐसा हमला फिर हो सकता है । "


" बराबर हो सकता है। इसीलिए मैंने हमलावर पर हमला करने की जुर्रत की लेकिन कामयाब न हो सका ।"


" ऐसा कब किया तूने ?”


“कल रात । वास्कोडिगामा में । बम्बई से आया परदेसी का जो मैसेज तूने मेरे को दिया था, वो देवरे की ही बाबत था । वो साला उधर पहुंचा भी था लेकिन बच गया । भाग निकला ।"


"कैसे ?"


जीतसिंह ने बताया ।


“बॉस, तेरे को पोंडा में उसकी टूरिस्ट लॉज के कमरे में उसका और वेट करना चाहिए था ।”


"कोई फायदा न होता । देवरे इतना मूर्ख नहीं कि ये न समझ पाता कि मैं उस औरत से - मिसेज अचरेकर से उसका पता कुबुलवा सकता था । जैसे मिसेज अचरेकर ने फोन पर उसे खबरदार करने की कोशिश की थी, वैसे ही वो भी उसे फोन करके पूछ सकता था कि पीछे क्या बीती ! फिर क्या वो अपने लॉज के कमरे मैं कदम रखता ?"


"यू आर राइट । यानी कि वो गोवा में ही है।"


"कल तक तो यकीनन था ।"


" और तेरी ताक में है । "


"जाहिर है । लेकिन वो मेरी ताले की दुकान की नौकरी की बाबत नहीं जानता और ये नहीं जानता कि यहां मेरा नाम जीतसिंह नहीं है । तालों की दुकान के नौकर को सूरत में वो मेरी कल्पना नहीं कर सकता, इसी बात ने मुझे बचाया हुआ है। "


“लेकिन माई डियर फिरेंड जब तेरी और उसकी क्रिमिनल किमिनत बिरादरी एक है तो कभी तो उसे मालूम पड़ ही सकता है कि तू कहां है और किस फिराक में है। "


"पड़ सकता है। जैसा हमारा पहले रिकार्डो से वास्ता पड़ा और अब आगाशे से पड़ रहा है, जैसे रिकार्डो की टोली का एक शख्स - फरताद- हमारे में शरीक होने के लिये देवरे को पकड़ लाया था वैसे ही आगाशे या कोई भी देवरे तक पहुंच सकता है जिसे कि बाद में पता चल सकता है कि का जो तिजोरीतोड़ है, वो वही शख्स जीतसिंह है जिसकी उसे तलाश है । ऐंजो, मेरी तलाश के लिये वो वही तरीका इस्तेमाल कर रहा है । उसने दूर दूर तक फैला के रखा मालूम होता है कि कहीं कोई वाल्ट खोलने वाला काम हो तो बतौर गनमैन उसमें वो भी शरीक हो सकता है। अब मेरे जैसे वॉल्ट खोलने वाले कोई दर्जनों में तो हैं नहीं इसलिए उसकी मेरे से टकरा जाने की पूरी संभावना है ।” -


"ये बहुत डेंजर बात है, बॉस । यूं तो कभी कोई तेरी मुखबिरी कर देगा और वो तेरे सिर पर आ खड़ा होगा ।"


"बिल्कुल । फिगारो आइलैंड पर यही तो हुआ था । ऐसा फिर न हो, इसकी गारंटी मुझे एक ही तरीके से हो सकती है कि उसके मेरे सिर पर आन खड़ा होने से पहले मैं उसके सिर पर जा खड़ा होऊं । मेरे भी कुछ हिमायती हैं जो मुझे उम्मीद है कि मुझे आगे भी देवरे की कोई अता-पता बता सकेंगे।”


"तू मेरे को बोल वो किधर पाया जाता है, फिर मैं ही उसे खलास करता है ।'


"यही तो मालूम नहीं । जब मालूम होगा तो मैं भी यही करूंगा । बिना एक सेकंड भी जाया किये ।"


"दस लाख की क्या स्टोरी है ? तू ऐसा क्यों बोलता है कि, दस लाख न मिले तो तेरी दुनिया उजड़ जायेगी।”


जीतसिंह खामोश रहा ।


"बोल न । मैं तेरा फिरेंड है। मेरे से नहीं बोलेगा तो किस से बोलेगा ?"


"ठीक है । बोलता हूं । सुन । बम्बई में चिंचपोकली में जहां मेरा घर है, उधर मेरे पड़ोस में एक लड़की रहती है। सुष्मिता नाम है । ग्रांट रोड पर एक चार्टर्ड एकाउन्टेंट के आफिस में काम करती है । इतनी खूबसूरत है कि बस क्या बोलूं ! ये समझ ले कि उसके सामने फिल्म स्टार्स शर्मिंदा हो जाएं । "


"वो इतनी खूबसूरत हो या न हो, ये पक्की है कि तेरे को इतनी खूबसूरत लगती है। जिससे मुहब्बत हो, वो ऐसी ही लगती है।"


"वो है ही ऐसी ।"


"आगे बढ़ ।"


"वो पढ़ी लिखी सलीके की लड़की है । मैं साला अनपढ़ टपोरी । मेरा उसका कोई मेल नहीं । इसलिए मैं कभी उससे ये न बोल पाया कि मैं उससे मुहब्बत करता था । बस छोटी-मोटी बातचीत से ही खुश होता रहता था । कभी उसके किसी काम आने का मौका मिल जाता था तो निहाल हो जाता था । लेकिन इस एकतरफा प्यार से भी मैं कम खुश नहीं रहता था ।"


"मैं समझता है ।”


- "सुष्मिता की एक बड़ी बहन है । उससे नौ साल बड़ी । अश्मिता नाम है । तीन बच्चे हैं लेकिन विधवा है । वो एक डिपार्टमैंट स्टोर में सेल्सगर्ल की नौकरी करती है। ऐंजो, हाल ही में उसे पता चला है कि उसको कैंसर है । ऐसा जानलेवा कैंसर है जिसका हिन्दोस्तान में कोई इलाज नहीं लेकिन जर्मनी में उसका इलाज है । उस इलाज के लिए जो रकम दरकार है वो दस लाख है जबकि उन दोनों बहनों के पास तो दस हजार रुपये भी नहीं हैं और न वो रकम हासिल करने का, उनके पास कोई जरिया है । सुष्मिता ने ये बात मुझे बताई तो मैं जोश में बोल बैठा कि मैं उसके लिए दस लाख रुपये का इंतजाम करूंगा । ऐंजो, मैं इतना बड़ा बोल बोल दिया तो सुष्मिता भी जज्बाती हो गयी । बोली अगर मेरी वजह से उसकी बहन की जिंदगी बच गई तो वो उम्र भर मेरे पांव धो धोकर पीयेगी । यूं मुझे अपनी मुहब्बत का कोई हासिल दिखाई देने लगा तो मैं और भी जूनून में आ गया । सुष्मिता ने मेरे को तीन महीने का टाइम दिया जो कि तब मुझे बहुत काफी लगा । लेकिन जब असल में कुछ करने की कोशिश की तो कुछ होकर ही न दिया। एक महीना बर्बाद हो जाने के बाद वो जौहरी की सेफ खोली तो पहले तो माल ही उम्मीद से कहीं कम निकला, फिर जो निकला वो भी हाथ न आया । ऊपर से जिस स्टाइल से सेफ खोली गयी थी, उसकी अंडरवर्ल्ड में इतनी पब्लिसिटी हो गई कि पुलिस के भी कान खड़े हो गए। नतीजतन बम्बई छोड़ के भाग जाना पड़ा । यहां फिगारो आईलैंड पर दांव लगाया तो पहले ही कदम पर स्कीम की टांग टूट गई और ऊपर से जान पर आ बनी ।"


"ओह !"


“अब पोगीशन ये है ऐंजो, कि मुझे मिले तीन महीनों में से सिर्फ दो हफ्ते का वक्त बाकी है और मैं अभी भी भटक ही रहा हूं।"


"तीन महीने का क्या मतलब है ! क्या उस कैंसर वाली बाई का तीन महीने का लाइफ बाकी है ?"


"नहीं, ऐसा नहीं है । ऐसा होता तो फिर तीन महीने बाद मिला पैसा किस काम आना है ! सुष्मिता कहती है कि डॉक्टर उसकी लाइफ का सेफ टाइम छ-सात महीने का बताता है । उसके बाद उसे कभी भी, कुछ भी हो सकता है । वो छ: महीने और भी काट सकती है और अगले दिन भी मर सकती है।"


" यानी कि उसके सेफ पीरियड में से तीन महीने का टेम तेरे को मिला ?”


“हां।”


" और उस टेम में से अब सिर्फ टू वीक्स बाकी हैं । "


"हां"


" और दस लाख मैं से तू अभी सिर्फ बाइस हजार रुपये कमा पाया है !"


"वो भी इत्तफाक से।"


"सांता मारिया !" - ऐंजो झुरझुरी सी लेता हुआ बोला ।