सीढ़ियां उतरते ही बेदी भरे-पूरे बाजार में था। उसने शुक्रा की तरफ निगाह मारी। जो उसे देख चुका था और सड़क पार करके, उसकी तरफ बढ़ना शुरू कर दिया था।

"क्या हुआ?" शुक्रा ने पास पहुंचते ही पूछा।

बेदी ने आगे बढ़ना शुरू किया तो शुक्रा भी साथ चलने लगा ।

"शांता कह रही है, मुझे खाना खिला ।”

"क्या मतलब?" शुक्रा के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।

"मैं उसके लिये खाना लेने जा रहा हूं। वो वास्तव में भूखी है। घर में अकेली है, शायद वो खाना नहीं बना रही।" बेदी बोला।

"तू वहां उसको खाना खिलाने गया था या आस्था के बारे टोह लेने कि...।"

"मैंने पूछना चाहा था आस्था के बारे में, लेकिन उसने बातें बाद में, पहले उसे खाना खिला दूं। बोली बाद में वो हर बात का जवाब देगी। ऐसे में में क्या करता, क्या उसे खाना खिलाने को मना कर देता।"

"वो शांता बहन है। उसका भला करके, तेरे को कुछ नहीं मिलने वाला ।" शुक्रा ने झल्लाकर कहा।

"बात भला करने की नहीं है।" बेदी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "खाना खिलाये बिना वह बात नहीं करेगी। यह महसूस करके मैं चुप ही रहा। ज्यादा बहस नहीं की।"

"हो सकता है डॉक्टर की बेटी को उसने अपने घर में ही कहीं।"

"नहीं, पूरा घर देखा मैंने, आस्था घर में कहीं नहीं है।"

"उसकी बातों से लगा कि आस्था को उठाने में उसका हाथ है।" शुक्रा ने उसके साथ चलते-चलते पूछा।

"उसने कोई बात नहीं करी। बोली, जो भी बात करनी हो खाने के बाद करना।"

"खाना कहां से पैक करायेगा ?"

"कोई अच्छा-सा होटल देख लेते हैं।"

तभी पीछे से कोई उन दोनों के बीच घुसा। अपने दोनों हाथ उनके कंधे पर इस तरह रख लिये कि वो पीछे भी हटना चाहें तो हट न सके। सख्त पकड़ थी। देखने वाले यही समझते कि वो तीनों दोस्त हैं और दोस्तों की तरह सड़क पर चल रहे हैं। ऐसा होते ही बेदी और शुक्रा फौरन ठिठके ।

दोनों ने गर्दन घुमाकर बीच में घुसे व्यक्ति का चेहरा देखना चाहा। चेहरा देखा तो दोनों ही हक्के-बक्के रह गये। सब-इंस्पेक्टर जय नारायण को पहचानने में एक पल की भी देरी न लगी।

वह कोई हरकत कर पाते, जय नारायण का कठोर स्वर कानों में पड़ा ।

"इसी तरह सीधे चलते रहो। मेरी जेब में सर्विस रिवॉल्वर है और गोली मारने की वजह भी मेरे पास है। तुम लोगों ने पिशोरीलाल, हेमन्तलाल और डॉक्टर वधावन का अपहरण किया, अपने पास उन्हें कैद रखा। पिशोरी लाल की तिजोरी से दो करोड़ निकालकर ले भागे और अब तुम लोगों ने डॉक्टर वधावन की बेटी आस्था का अपहरण कर रखा है। कानून की निगाहों में तुम खतरनाक मुजरिम हो।"

"तु-तुम यहां कैसे?" बेदी के होंठों से निकला।

"मैं-मैं नहीं, कानून का हाथ हूं और कानून का लम्बा हाथ मुजरिम को पाताल से भी खींच निकालता है और तुम तो अभी धरती पर हो।" सब-इंस्पेक्टर जय नारायण का स्वर बेहद कठोर था।

"म-मैंने कुछ नहीं किया।" बेदी के होंठों से निकला--- "मैं बेकसूर हूं।"

"तुम जैसे बेकसूरों की तलाश ही कानून को रहती है।" सब- इंस्पेक्टर जय नारायण ने कड़वे स्वर में कहा--- “तुमने सेठ पिशोरीलाल का अपहरण किया। सच बोलना ।"

"ह-हां।"

"रॉयल सेफ कम्पनी के जनरल मैनेजर हेमन्त लाल का अपहरण किया। जिस कम्पनी में तुम सेल्समैन थे।"

"हां।" बेदी के होंठों में से गहरी सांस निकली।

"तुमने डॉक्टर वधावन का भी अपहरण करके अपने पास उसे कैद रखा ताकि तुम उससे दिमाग का ऑपरेशन कराकर वहां फंसी गोली निकलवा सको ।" जय नारायण ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।

"ठीक कहा ।"

"सेठ पिशोरीलाल की तिजोरी से करीब डेढ़ करोड़ या फिर दो करोड़ ले उड़े और अब मजे कर रहे हो।"

"यह गलत है। वो पैसे अंजना और राघव लेकर भाग गये थे। मेरे पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं।"

"झूठ बोलता है। पुलिस वाले से झूठ बोलता है ।"

"विजय।” शुक्रा तीखे स्वर में कह उठा--- "यह पुलिस वाला है, जो कहता है मान जा। नहीं तो डण्डा घुमाकर तेरे को हां के लिये राजी कर लेगा।"

बेदी होंठ भींचकर रह गया।

"फिर तुमने डॉक्टर वधावन की बेटी आस्था का अपहरण किया। जो अब तुम्हारे कब्जे में है।"

"मेरे नहीं शांता के...।"

"जहां से तुम आ रहे हो।"

चलते-चलते बेदी और शुक्रा की निगाहें मिलीं।

"आस्था का अपहरण करके भी, जब वधावन तुम्हारे हत्थे नहीं चढ़ा, उसने तुम्हारा ऑपरेशन नहीं किया तो फिर तुमने शांता बहन जैसी खतरनाक गैंगस्टर से वास्ता बनाकर, आस्था को उसके हवाले कर दिया। वैसे क्या सौदा किया तुमने शांता के साथ ?”

बेदी ने कुछ नहीं कहा।

“थाने चलकर जवाब दे देना। राह चलते पूछताछ करने की तो वैसे भी मेरी आदत नहीं है।" जय नारायण दांत भींचकर बोला ।

"तुमने जो-जो कहना है, कह लो।" बेदी ने भिंचे स्वर में कहा--- "जब कह चुको तो बता देना, फिर मैं अपनी कहूंगा।"

"कहो।"

"इस तरह राह चलते मैं भी बात नहीं कर सकूंगा। न ही तुम्हें समझा सकता हूं, कहीं रुककर बात करो।"

चलते-चलते जय नारायण ने इधर-उधर निगाहें दौड़ाई। कुछ आगे जाने पर उसे चाय की दुकान नजर आई तो वह दोनों को उसी तरफ लेकर उधर को बढ़ा।

“मैं फिर कहता हूं भागने की कोशिश मत करना। तुम्हें गोली मारने की कई वजहें मेरे पास हैं। गोली मारने के बाद कई वजहें और भी तैयार हो जायेंगी।" जय नारायण ने चेतावनी भरे स्वर में कहा।

रेस्टोरेंट के बाहर पहुंचते ही बेदी ठिठका, सामने ही खाने का होटल था।

"मैं अभी आया।"

"क्यों?"

"उस होटल तक जाना है। खाना पैक करने के लिये बोलना है।"

जय नारायण ने बेदी को घूरा।

"क्यों, बहुत भूख लगी है क्या ?"

“मुझे नहीं, शांता को। उसने खाना मंगवाया है।" बेदी ने जय नारायण के चेहरे पर निगाह मारी।

जय नारायण की आंखें सिकुड़ीं।

"शांता बहन ने तेरे को बोला कि तू खाना ला?"

"हां, वो ही लेने निकला था।"

"चक्कर क्या है?"

“यही बातें करने के लिये हम चाय की दुकान पर बैठने जा रहे हैं।" बेदी ने गम्भीर स्वर में कहा--- “पहले मुझे होटल पर खाने का आर्डर दे आने दो। हमारी बातों के दौरान वो खाना तैयार करके पैक कर देंगे।"

“तूने कैसे सोच लिया कि मैं तेरे को जाने दूंगा।" जय नारायण दांत भींचकर कड़वे स्वर में कह उठा।

“जाने दिया तो ठीक है, नहीं तो तुम्हारी मर्जी। आर्डर दे आने में क्या हर्ज है?" बेदी ने कहा।

जय नारायण ने शुक्रा से कहा।

"जा, खाने का आर्डर तू देकर आ।"

"मैं?"

"हां, सीधा जाना और सीधा आना। खिसकने की कोशिश मत करना।" जय नारायण का स्वर कठोर था।

शुक्रा ने बेदी को देखा तो बेदी ने सिर हिलाकर कहा।

"बढ़िया खाने का आर्डर देना। कम-से-कम ढाई बन्दों का। खाना कम नहीं पड़ना चाहिये।"

"शुक्रा पलटकर होटल की तरफ बढ़ गया।

"ये भी हर काम में तेरे साथ रहा था?" जय नारायण ने कहा ।

"हां। तुमने मुझे इसलिये नहीं जाने दिया कि कहीं मैं भाग न जाऊं। वो भी तो भाग सकता है।"

"मुझे उससे ज्यादा तेरी जरूरत है। यहीं खड़ा रह।"

तीसरे मिनट ही शुक्रा लौट आया।

तीनों चाय की दुकान के भीतर पहुंचे। दुकान की अधिकतर टेबलें खाली थीं। उन्होंने कोने वाली टेबल सँभाली और चाय का आर्डर दिया, जय नारायण ने। उसके बाद जय नारायण ने कठोर निगाहों से दोनों को देखा।

■■■

"डॉक्टर वधावन की बेटी को तुमने उठाया। तुम डॉक्टर को फोन करके दबाव डाल रहे थे कि वो तुम्हारा ऑपरेशन कर दे। ऐसे में वधावन की लड़की शांता बहन के पास कैसे पहुंच गई ?"

"इसका मतलब डॉक्टर वधावन ने पुलिस को खबर कर दी थी कि....!" शुक्रा ने कहना चाहा।

"क्या हुआ, क्या नहीं, इस बात को छोड़ो। जो मैं पूछ रहा हूं, उसका जवाब दो।" जय नारायण का स्वर कठोर था--- "जैसे मैं अभी पुरानी बातें नहीं कर रहा। इस वक्त मैं सिर्फ आस्था के बारे में ही बात करना चाहता हूं।"

बेदी और शुक्रा के चेहरे पर गम्भीरता थी। यह बात उनके दिभाग में अच्छी तरह थी कि सामने पुलिस वाला बैठा है और कानून को उनकी तलाश है।

"इंस्पेक्टर, सच बात तो यह है कि अभी हम भी नहीं जानते, आस्था शांता के ही पास हैं।" बेदी ने गम्भीर स्वर में कहा--- “यही जानने, शांता को टटोलने मैं उसके पास गया था कि वो बोली, बातें बाद में, पहले खाना ।"

"शांता तक पहुंचना भी आसान नहीं। उससे बात करना तो दूर, शांता जैसी गैंगस्टर यूं ही किसी को खाना लाने को कहने से रही। कोई भी उसके खाने में जहर मिला सकता है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम्हारा उसके साथ कोई खास रिश्ता।है। मेरे से झूठ बोलने की कोशिश मत करना। जब तक तुम मेरे हाथ नहीं लगे तो नहीं लगे। अब लग गये तो बचने वाले नहीं। कोई कहानी सुनाकर मुझे बहलाने की चेष्टा मत करना। बुरा हाल कर दूंगा।" जय नारायण ने दांत भींचकर कहा--- "रही बात आस्था की तो वो शांता के कब्जे में है। इस बात की मेरे पास पूरी खबर है।"

बेदी और शुक्रा की निगाहें मिलीं।

"मतलब कि तुम इस मामले पर शुरू से ही नजर...।"

"अपनी बात करो।” जय नारायण ने उन्हें घूरा।

छोकरा तीन गिलासों में चाय टेबल पर रख गया।

“मैं तुम्हें सारी बात बताता हूं। तुमसे कुछ नहीं छिपा। इसलिये झूठ बोलने का तो कोई मतलब ही नहीं। शांता से मेरी पहचान कैसे बनी। आस्था, मेरी कैद से निकल कर शांता के पास कैसे पहुंच गई। मेरी बताई बात से तुम्हें सारी बातों का जवाब मिल जायेगा।" बेदी ने सोच भरे स्वर कहा।

"जो कहना, सच कहना?"

"मैंने पहले ही कहा है कि झूठ नहीं कहूंगा। यह तुम पर है कि विश्वास करो या न करो।" बेदी ने कहा और शांता से वास्ता रखती सारी बातें जय नारायण को बताने लगा।

सब-इंस्पेक्टर जय नारायण का पूरा ध्यान बेदी की कही बातों पर था।

दस मिनट में, कम शब्दों में बेदी ने अपनी बात खत्म की।

जय नारायण के चेहरे पर अजीब से भाव नजर आ रहे थे।

“मुझे विश्वास नहीं आ रहा कि शांता तुमसे शादी करना चाहती है।" जय नारायण ने उलझन से भरे स्वर में कहा।

"मैंने जो बात भी कही है, सच कही है।" बेदी ने गम्भीर स्वर में कहा--- “जाने क्यों उसका दिल मुझ पर आ गया है। मैंने उसकी बात नहीं मानी तो उसने अपने आदमी भेजकर आस्था को उठा लिया, क्योंकि वह जानती है मैं वधावन से हर हाल में ऑपरेशन कराना चाहता हूं। उसकी बेटी मेरे पास नहीं होगी तो मैं उसके पास जाऊंगा, उसकी शादी वाली बात मानूंगा।"

“तो तुम शांता के साथ शादी करने जा रहे हो?" जय नारायण ने शब्दों को चबाकर कहा।

"नहीं।" बेदी ने दृढ़ स्वर में कहा--- "वह मेरी तो क्या किसी की भी बीवी नहीं बन सकती। नामी-गरामी, बदमाश औरत से शादी करके मैं अपनी जिन्दगी का चैन नहीं खोना चाहता । ऑपरेशन के लिये तो वधावन को किसी तरह तैयार कर ही लूंगा। लेकिन इस वक्त मेरे लिये सबसे बड़ी परेशानी है कि वधावन जानता है कि मैंने उसकी बेटी का अपहरण किया है। वो मेरे पास है। मेरी इस बात को कोई नहीं मानेगा कि शांता के आदमी, आस्था को मेरे हाथों से छीनकर ले गये हैं। आस्था को कुछ हो गया तो सारे हुए का इलजाम मेरे सिर पर आयेगा और वधावन कभी भी मेरे दिमाग का ऑपरेशन करके, वहां फंसी गोली को नहीं निकालेगा। इसलिये जैसे भी हो, मैं आस्था को शांता की कैद से निकालकर उसे अपने कब्जे में लेना चाहता हूं।" जय नारायण के चेहरे पर गम्भीर भाव थे।

“अपने कब्जे की बात तो भूल जाओ। आस्था को अपने कब्जे में लेने की सोचना भी नहीं।" जय नारायण ने कठोर स्वर में कहा--- "मैं अभी तुम दोनों को पकड़कर लॉकअप में बंद कर देता। लेकिन तुम दोनों की बातें सुनकर वक्ती तौर पर मैं तुम्हें इसलिये ढीला छोड़ रहा हूं कि तुम दोनों को खासतौर से तुम्हें आगे करके मैं आस्था को पा सकता हूं। शांता के पास रहने से आस्था की जान को खतरा है।"

"मैं इसमें क्या कर सकता हूं?" बेदी के होंठों से निकला।

"शांता तुम पर विश्वास करती है।"

"शायद ।"

“उसी विश्वास की आड़ में जानने की कोशिश करो कि उसने आस्था को कहां रखा है।"

बेदी और शुक्रा की आंखें मिलीं।

“और यह बात मालूम करके विजय, तुम्हें बता दे।" शुक्रा बोला।

"हां।"

“इसमें तो विजय को नुकसान हुआ। आस्था को तुम ले गये । उधर शांता इसके पीछे पड़ जायेगी। वधावन ऑपरेशन नहीं करेगा।"

"फायदा नजर नहीं आ रहा?" जय नारायण ने खा जाने वाले स्वर में कहा।

"फायदा ?"

"हां, फायदा भी सुन लो।" जय नारायण की सख्त निगाह दोनों पर गई—- “वही तुम्हारे वाली बात, आस्था को कुछ हो गया तो सारा इल्जाम तुम दोनों पर, शांता की तरफ किसी की उंगली उठाने की हिम्मत नहीं होगी कि इस मामले में कहीं, उसका हाथ है। अगर मेरी बात नहीं मानोगे तो पिछले जुर्मों की वजह से अभी तुम दोनों को लॉकअप में बंद कर दूंगा। इस वायदे के साथ कि कम-से-कम उम्र कैद जेल में बिताओगे, क्योंकि चार-चार का अपहरण तुम लोग कर चुके हो। विष्णु को गोली मारी, इस बात का गवाह तो नहीं है, फिर भी मैं कोशिश करूंगा कि यह बात भी साबित हो। पिशोरीलाल का दो करोड़ रुपया जो दबाए बैठे हो, वह... ।"

"मैं कह चुका हूं कि वो दो करोड़ अंजना और राघव...।"

"बेकार की कहानी मुझे मत सुनाओ।" जय नारायण की आवाज कठोर हो गई।

"तुम खुद ही सोचो इंस्पेक्टर अगर दो करोड़ पास में होता तो मैं बारह लाख वधावन को देकर अपना ऑपरेशन करा लेता। उसकी बेटी को उठाकर, उस पर दबाव नहीं डालता कि वह मेरा ऑपरेशन करे।" बेदी ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।

"इसमें तुम्हारी कोई मजबूरी रही होगी कि...।"

“विजय!” शुक्रा ने जय नारायण को घूरते हुए कहा--- "सफाई देने का कोई फायदा नहीं, इसे अपनी ही कहने दो।"

"अपनी बातें छोड़ो, मेरी बात करो, शांता से आस्था के बारे में, मेरे लिये पूछोगे, ईमानदारी से मेरा साथ दोगे तो कुछ दिन और आजादी से घूम लोगे। वरना मैं अभी तुम्हें लॉकअप में डालने जा रहा हूं।"

एकाएक बेदी की आंखों में आंसू चमक उठे।

"क्या हुआ ?" एकाएक जय नारायण के होंठों से निकला।

"विजय ।" शुक्रा ने अपना हाथ उसके कंधे पर रख कर दबाया--- "अपने आप को संभाल ।"

जय नारायण भारी तौर पर उलझन में था।

“इंस्पेक्टर।" बेदी आंखों में आये आंसू साफ करता हुआ बोला--- “तुम मुझे क्या गिरफ्तार करोगे। मेरी जिन्दगी के सिर्फ अड़तीस दिन बाकी पड़े हैं। उसके बाद तो ऊपर वाले ने ही मुझे फांसी दे देनी है। मेरी प्यारी जिन्दगी को छीन लेगा वह।"

“क्या मतलब?” जय नारायण की निगाह शुक्रा पर भी गई।

“इंस्पेक्टर।" शुक्रा परेशान स्वर में कह उठा--- "डॉक्टर ने कहा था कि अगर दो महीने तक दिमाग में फंसी गोली न निकाली गई तो उसके बाद यह जिन्दा नहीं रहेगा। उन दो महीनों में से बाईस दिन बीत चुके हैं।"

"ओह!"

"अब ऐसे में तुम मुझे गिरफ्तार भी कर लो तो कानून को कोई फायदा नहीं होगा, नहीं गिरफ्तार हुआ तो बाहर रहकर जैसे-तैसे कोशिश करके, शायद ऑपरेशन करवाकर दिमाग में फंसी गोली निकलवाकर अपनी जान बचा सकूं।" बेदी ने भारी स्वर में कहा।

"डॉक्टर वधावन फीस ज्यादा लेता है, तुम किसी दूसरे डॉक्टर से...।"

"नहीं!” बेदी एकाएक दृढ़ स्वर में कह उठा--- “मैं वधावन से ही ऑपरेशन कराऊंगा। उसने गारण्टी ली है कि ऑपरेशन के दौरान मेरी जान को खतरा पैदा नहीं होगा। ऑपरेशन सफल रहेगा। किसी दूसरे डॉक्टर से ऑपरेशन कराकर मैं मरना नहीं चाहता।"

"तुम्हारी यह सोच वहम की निशानी है, तुम...।" जय नारायण ने कहना चाहा।

"जो भी हो, डॉक्टर वधावन से ही मैं ऑपरेशन कराऊंगा ।"

जब नारायण ने गम्भीरता से सिर हिलाया।

"तुम कानून के मुजरिम हो। लेकिन कानून जल्लाद नहीं है। मैं भी इन्सान हूं। इन्सान होने के नाते मैं तुम्हें गिरफ्तार नहीं करूंगा। अड़तीस दिन तक तुम अपनी कोशिश जारी रख सकते हो, ऑपरेशन करवाकर, दिमाग में फंसी गोली निकलवाने की। उन्तालीसवें दिन मैं तुम्हें गिरफ्तार करने से पीछे नहीं हटूंगा। जो जुर्म तुमने किए हैं। उनकी सजा तो तुम्हें मिलेगी ही। वैसे मैं खुद ऑपरेशन के बारे में वधावन से बात करूंगा।"

बेदी और शुक्रा कुछ नहीं बोले।

"जानते हो शांता ने आस्था को वापस करने के लिये, फिरौती में क्या मांगा।"

"क्या ?"

"वधावन की आधी जायदाद । "

"आधी जायदाद ?" बेदी के होंठों से निकला।

शुक्रा हैरान-सा जय नारायण को देखने लगा ।

"हां और न देने पर या कम देने पर वो आस्था को खत्म कर देगी। ऐसा शांता ने स्पष्ट कहा और शांता से हर किसी बात की आशा की जा सकती है कि वह कुछ भी कर सकती है।" जय नारायण ने होंठ भींचकर कहा।

“विजय।” शुक्रा बोला— “जल्दी दिखा, वरना शांता बहन, आस्था के साथ गड़बड़ कर देगी।"

बेदी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते, हौले से सिर हिलाया।

"मालूम करो कि शांता ने आस्था को कहां रखा है? मालूम होते ही मुझे बताओ।" जय नारायण ने कहा--- "उसके बाद मैं सब कुछ संभाल लूंगा। आस्था को कुछ हो गया तो कानून की नजरों में खूनी भी बन जाओगे। ऑपरेशन की फिक्र मत करो। मैं पूरा जोर लगा दूंगा कि वधावन तुम्हारा ऑपरेशन कर दे, लेकिन उससे पहले उसकी बेटी उसे मिलनी चाहिये।"

बेदी और शुक्रा की निगाहें मिलीं।

“कोशिश करूंगा कि आस्था के बारे में मालूम कर सकूं।” बेदी ने कहने के बाद शुक्रा को देखा--- “खाना पैक हो गया होगा, जल्दी लेकर आ। शांता मेरा इन्तजार कर रही होगी।"

■■■

"देर लगा दी आने में।" शांता ग्रिल खोलते हुए बोली।

"खाना पैक करवाने में वक्त लग गया।" बेदी भीतर प्रवेश करता हुआ बोला।

"अपनी पसन्द का लाया है ना?" शांता ग्रिल बंद कर ताला लगाते हुए बोली।

"हां।"

"वो जो छोकरी थी, जो तेरे को धोखा देकर भाग गई। हां वो अंजना, उसके लिये भी कभी खाना पैक कराकर लाया था?"

"हां।"

"जो उसे खिलाया, वो चीजें इसमें भी हैं क्या?"

"हां, सब हैं।"

शांता पलटते हुए बोली।

"आ, तेरे को किचन दिखाती हूं।" बेदी उसके पीछे चलकर किचन में पहुंचा।

किचन काफी बड़ी थी, अच्छी थी। एक तरफ ताजे-ताजे धोकर बर्तन रखे थे। जाहिर था कि उन बर्तनों को शांता ने धोकर रखा था।

"ये रहे बर्तन ।" शांता शांत स्वर में बोली--- "शांता ने कभी बर्तन नहीं धोए, दूसरे के लिये। तेरे लिये धो दिए, खाना डालना आता है बर्तनों में?"

"हां।" बेदी हाथ में पकड़ा बड़ा-सा लिफाफा शैल्फ पर रखता हुआ बोला।

"तो डाल, अंजना को भी कभी इसी तरह डालकर खिलाया था?"

"हां।" बेदी ने शांत स्वर में कहा और वहां पड़े बर्तनों में खाना डालने लगा।

वह नहीं जानता था कि क्या खाना है। शुक्रा ने ही आर्डर दिया था। जब बेदी ने सारा खाना ढंग से बर्तनों में डाल दिया तो शांता बर्तन उठाकर ड्राइंगरूम में ले जाने लगी। सब सामान उसने ड्राइंगरूम में मौजूद टेबल पर पहुंचा दिया। बेदी वहां पहुंचा। उसके पीछे से ड्राइंगरूम अच्छी तरह साफ कर दिया था। अब वहां की हर चीज अच्छी लग रही थी। इधर-उधर बिखरी चीजें करीने से पड़ी थीं।

शांता ने टेबल को खिसकाया और पास ही सोफे पर बैठती हुई, दुपट्टा ठीक करते बोली।

"बैठ ।"

बेदी बैठने लगा तो शांता ने टोका।

"उधर नहीं, इधर, मेरे पास।"

बेदी शांता के पास जा बैठा।

शांता की निगाह बेदी पर जा टिकी।

"कैसा लग रहा है?" शांता ने पूछा।

बेदी खामोश रहा।

"बोल, जवाब दे।"

"ठीक-ठीक लग रहा है।" और क्या जवाब देता बेदी ।

"मेरे पास आ, और पास।"

बेदी सरक कर और पास आया।

शांता ने रोटी उठाई। तोड़ी, सब्जी लगाकर बेदी की तरफ बढ़ाई।

बेदी उसे देखता रहा ।

“देखता क्या है, मुंह खोल ।" शांता बोली।

बेदी ने किसी मशीनी मानव की तरह मुंह खोला तो शांता ने रोटी उसके मुंह में ठूंस दी।

"खा।"

बेदी का मशीनी मुंह चलने लगा। शांता उसे देखती रही । मशीनी मुंह चलना बंद हुआ तो शांता बोली ।

"वो भी तेरे को ऐसे कभी खिलाती थी ?"

"हां।"

"ठीक है, अब तू मुझे खिला।" शांता ने कहा।

बेदी जाने क्या सोचता उसे देखता रहा ।

"खिला, सुना नहीं तूने?"

बेदी के हाथ हिले, रोटी तोड़ी सब्जी के साथ लगाकर शांता की तरफ किया।

शांता ने मुंह खोला। बेदी ने रोटी उसके मुंह में डाली तो वह खाने लगी। इस सारे काम के दौरान उसकी निगाह बेदी के चेहरे पर थी।

"मेरे को खिलाना कैसा लगा?"

"अच्छा लगा।"

“दिल से कहता है, शांता से झूठ नहीं बोलना ।"

"हां।" बेदी के होंठ हिले।

“अभी तू दिल से नेई बोला। कोई बात नहीं, सब ठीक होगा। मैं तेरे को खिलाऊंगी, तू मेरे को खिला, जितना खाना तू लाया है, वो सारा हमने इसी तरह खत्म करना है। तेरी लाई चीज की मैं कद्र करती हूं। बेकार नहीं जाने दूंगी।" शांता ने रोटी तोड़ी और दूसरी सब्जी लगाकर बेदी के मुंह में डाली।

बेदी का मशीनी मुंह चलने लगा।

"तेरे को पता है तू मुझे बहुत अच्छा लगता है।"

"तुमने बताया था।"

"तो याद रहा तेरे को, शांता को पहली बार कोई अच्छा लगा है, बोत किस्मत वाला है तू, खिला मुझे।"

बेदी ने उसके मुंह में खाना डाला।

"तू मुझे खिलाता है। मैं तेरे को खिलाती हूं। बोत अच्छा लगता है। तेरे को लगता है क्या?"

"हां।"

"मालूम है मेरे को, अभी नेई लगता, लेकिन लगेगा। शांता पहचान लेगी कि तेरे को अच्छा लगा, ले खा ।"

बेदी शांता के प्यार करने के अनोखे ढंग को देख रहा था। यही अन्दाज था शांता का प्यार करने का। जो नहीं जानती प्यार क्या होता है और कैसे किया जाता है? डण्डे के जोर पर यह प्यार करने का दम भरती है। यही सब करना तो उसके बस का है। जो हमेशा प्यार से कोसों दूर, खून-खराबे में रहा हो। वो प्यार करेगा तो इसी तरह आर्डर देने वाले अन्दाज में करेगा। बेशक ये दिल से प्यार कर रही हो, लेकिन ढंग मवालियों जैसा ही था, प्यार में भी।

इसी तरह की खींचा-तानी में उन्होंने खाना खाया।

बेदी ने बेहद सब्र के साथ इस वक्त को टपाया।

"बोत मजा आया खाने का।" शांता सपाट स्वर में बोली--- "तेरे को आया क्या?"

"हां।"

"चल उठ किचन में बर्तन रखते हैं। दोनों मिलकर काम करेंगे। शांता ने दूसरे के तो क्या कभी अपने भी बर्तन नहीं उठाये। लेकिन तेरे बर्तन उठायेगी। जब उन बर्तनों को फुर्सत में साफ करूंगी तो और भी अच्छा लगेगा।"

दोनों उठे और बर्तन उठाकर किचन में रखे। यह काम दो-तीन चक्कर में पूरा हुआ। उसके बाद हाथ-मुंह साफ करके, दोनों ड्राइंग रूम में पहुंचकर बैठे। शांता ने सिगरेट सुलगाई।

“दिन में एक चक्कर लगा लिया कर, तेरे साथ बैठकर अच्छा लगता है।" शांता ने भावहीन स्वर में कहा।

"मैं तुम्हारे से बात करने आया था।" बेदी ने धीमे स्वर में कहा।

"कर।" शांता ने कश लिया।

“वो, डॉक्टर वधावन की लड़की आस्था को मुझे दे दो। मुझे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।"

शांता की निगाह बेदी पर जा टिकी।

“तेरे को किसने बोला छोकरी मेरे पास है?"

"मैं जानता हूं उसे तुम्हारे भेजे आदमी ही उठाकर ले गये हैं और किसी को उसकी जरूरत नहीं थी।"

शांता खामोश रही।

"कहां रखा है आस्था को ?"

"तेरे को उस छोकरी की बहुत जरूरत है?" शांता ने उसे देखा।

"हां।"

"मेरे को तेरी बहुत जरूरत है। बोल, तू मेरी जरूरत पूरी कर । मैं तेरी जरूरत पूरी कर देती हूं।" शांता का स्वर शांत था ।

उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर उससे प्यार करने का दम भर रही थी।

"मेरे से तेरे को क्या चाहिये?" बेदी व्याकुल हो उठा।

"सब जानता है तू, भूला नहीं है। फिर सुनना है तो सुन ले । तू मेरे को अच्छा लगा। मैं तेरे से शादी करूंगी। बोल करता है क्या ? मेरे से शादी करके तेरे सारे दुख-दर्द दूर हो जायेंगे। ऑपरेशन से तेरे दिमाग में फंसी गोली भी निकल जायेगी। वो वधावन ही तेरा ऑपरेशन करेगा। हां बोल, अभी शादी कर, अभी वधावन को फोन मारती हूं। चौबीस घंटों में वो तेरा ऑपरेशन करेगा।"

बेदी उसे देखता रहा।

शांता की निगाह भी उस पर थी।

"तुम मुझसे प्यार करती हो?" बेदी नें होंठों पर जीभ फेर कर कहा।

"हां, शक है कोई तो बता, वो भी कर देती हैं।"

“तुम्हें मालूम है कि मेरे दिमाग के ठीक बीचोंबीच गोली फंसी हुई है। जो कभी भी मेरी जान ले सकती है। तू मेरे साथ प्यार करने का दम भरती है। जो प्यार करते हैं वो शर्तें नहीं रखते। अगर तेरे को मेरे साथ सच्चा प्यार होता तो तू बिना शर्त मेरा ऑपरेशन कराती। ऐसे प्यार और शादी का क्या फायदा जो सौदेबाजी से की जाये।"

"ये शांता के प्यार करने का स्टाइल है। तू ठीक होकर किसी दूसरी छोकरी से शादी कर लेगा। इसलिये मैं पहले तेरे से शादी करके फिर तेरे दिमाग में फंसी गोली निकलवाऊंगी। मैं बहुत अच्छी तेरी बीवी बनूंगी। तेरे अच्छे-अच्छे बच्चों को पैदा करूंगी। खाना बनाना सीख कर तेरे को बहुत खिलाऊंगी।"

बेदी ने मुंह फेर लिया।

“मैं खूबसूरत हूं, हसीन हूं, जवान हूं, तेरी पहले वाली छोकरी से कहीं ज्यादा अच्छी हूं। वो तेरे को धोखा देकर तेरे दोस्त के साथ भाग गई। लेकिन शांता तेरे पर जान दे देगी। जुबान की एकदम पक्की है शांता। मुझे सहारे की जरूरत है और तेरे से अच्छा सहारा और कहां मिलेगा, तू मुझे बहुत प्यारा लगता है ।"

"सहारा भी चाहिये और वह भी जबरदस्ती ।" बेदी के होंठो से निकला।

"तू एक बार मेरे साथ लगकर देख, फिर तू मेरे से अलग होने का नाम नहीं लेगा, बोल करता है शादी?"

बेदी खामोश रहा।

"शादी-ब्याह के लिये मेरे को पण्डित की जरूरत नहीं, बस तू एक बार मुंह से बोल दे, कर ली शादी, उसके बाद बाकी का काम मेरा है। मैं सब संभाल लूंगी, सब सैट हो जायेगा।"

बेदी ने शांता को देखा।

"तो तुम डॉक्टर की बेटी को मुझे वापस नहीं दोगी?" बेदी ने कहा।

"शादी कर, ले जा, सब कुछ ले जा, अपनी शांता को भी ले जा।" शांता ने हाथ हिलाकर कहा।

बेदी उठ खड़ा हुआ, चेहरे पर उखड़ापन था।

"मैं तेरे साथ शादी नहीं करूंगा।" बेदी ने दांत भींचकर एक-एक शब्द चबाकर कहा ।

शांता उठी, उसके पास पहुंची, दोनों हाथों से उसका सिर पकड़कर अपनी तरफ किया। पंजों के बल वह ऊपर हुई और उसके होंठों पर होंठ रख दिए।

बेदी मशीनी मानव की तरह खड़ा रहा।

शांता ने उसे छोड़ा और शांत स्वर में कह उठी।

“जा, शांता तेरे को रोकेगी नहीं। मेरे को मालूम है तू फिर आयेगा, जल्दी आयेगा।" शांता के स्वर में विश्वास था ।

बेदी ने शांता को घूरा फिर पलटकर बाहर निकलता चला गया। शांता उसके पीछे ग्रिल के पास पहुंची और ताला खोलते हुए शांत स्वर में कह उठी ।

"अब जब भी आये तो खाना भी लेते आना। तेरे साथ बैठकर खाना अच्छा लगता है।"

ग्रिल खुलते ही बेदी बाहर निकला और तेजी से सीढ़ियां उतरता चला गया। पीछे से ग्रिल बंद करने और जंजीर चढ़ाने की आवाज उसके कानों में पड़ रही थी।

■■■

बेदी ने व्याकुलता से भरी निगाह शुक्रा और जय नारायण पर मारी। तीनों उसी चाय की दुकान में कोने वाली टेबल पर मौजूद थे। बेदी को न बोलते पाकर शुक्रा ने ही पूछा।

"क्या हुआ?"

"कुछ नहीं।" बेदी की आवाज में झल्लाहट थी।

शुक्रा समझ गया कि बात वहीं-की-वहीं है।

"तुम करीब दो घंटे भीतर रहे।" जय नारायण बोला--- "और इतने लम्बे वक्त में कुछ भी नहीं हुआ ?"

"क्या करोगे सुनकर कि क्या हुआ ?"

"शांता तुम्हें बैड पर ले गई?" जय नारायण ने सीधे-सीधे कहा।

"नहीं।"

"तो फिर बताने में क्या हर्ज है, जो भी हुआ बताओ।"

"उसने मुझे अपने हाथों से खाना खिलाया। उसके आर्डर पर मैंने उसे खाना खिलाया।" बेदी ने तीखे स्वर में कहा।

"फिर?"

"उसने मुझे शादी के लिये कहा कि मैं उसके साथ शादी कर लूं। बोली शादी करने पर वह मुझे आस्था को वापस कर देगी। साथ में मेरा ऑपरेशन करा देगी। मेरे को सारे सुख देगी।" कहते हुए बेदी के दांत भिंच गये थे।

"तूने क्या कहा?" जय नारायण की निगाहें उसके चेहरे पर जा टिकीं।

"मैंने मना कर दिया।"

"बेवकूफ हो तुम।" जय नारायण के होंठों से निकला।

शुक्रा गहरी सांस लेकर रह गया।

"मैं तुम्हें बता चुका हूं कि शांता जैसी के साथ मैं शादी नहीं कर सकता।" बेदी ने सख्त स्वर में कहा।

“मैं नकली शादी की बात कर रहा हूं।"

"नकली शादी?"

"हां, तुम शादी के लिये तैयार हो जाओ, जरूरत पड़े तो कर लो शादी। तुमने कौन-सा सारी उम्र उसके साथ रहना है। यह सब तो तुम सिर्फ आस्था को पाने के लिये कर रहे हो।"

"शांता तो कहती है, मैं मुंह से हां कह दूं, वह समझ लेगी, शादी हो गई।" बेदी बोला।

"तो कह दो।"

"झूठ कह दूं।"

"क्या सच, क्या झूठ, हमें तो अपना काम निकालना है। उसके हाथों से आस्था को लेना है।"

"बाद में वो मेरे साथ क्या सलूक करेगी, जब मैं शादी वाली बात से पीछे हटूंगा। वो शांता है, समझे इंस्पेक्टर। मेरा जीना हराम कर देगी। वो जुबान देती है, मेरी जुबान पर विश्वास करती है। ऐसा करके उसे धोखा दूं?"

"तुम्हें ईमानदारी प्यारी है या अपनी जान ?"

"जान।"

"तो फिर धोखे वाली बात भूल जाओ। तुमने अपनी जान बचानी है। उसके लिये जरूरी है कि आस्था को वधावन के हवाले किया जाये। बाद में मैं उसे तुम्हारे ऑपरेशन के लिये वधावन को तैयार करूंगा।"

"वो तैयार हो जायेगा ।"

"कोशिश करूंगा।"

“तुम्हारी कोशिश सफल न हुई तो मेरी जान किस खाने में फिट होगी।" बेदी ने कड़वे स्वर में कहा।

शुक्रा, जय नारायण को घूर रहा था।

"मुझे विश्वास है वो तैयार हो जायेगा।"

"मैं पूछता हूं अगर वो तैयार न हुआ तो क्या होगा। जिस जान को बचाने की चेष्टा कर रहा हूं, वह तो नहीं बचेगी।"

"विश्वास भी आखिर कुछ होता है। जैसे भी हो मैं डॉक्टर वधावन को तैयार कर लूंगा कि वह तुम्हारा ऑपरेशन कर दे।"

"मान लिया, वो तैयार हो गया, ऑपरेशन करके मेरे दिमाग में फंसी गोली निकाल दी। तो उसके बाद मेरी क्या स्थिति होगी।"

"क्या मतलब?"

“शांता को धोखा देकर, उसे झूठ बोलकर, मैंने उससे आस्था को लिया होगा। जब मैं उसे शादी के लिये इन्कार करूंगा। उससे दूर भागूंगा। तो क्या वह मुझे छोड़ेगी। वो मेरा सांस लेना दूभर कर देगी। अभी तक मैंने उसे जितना जाना है, उससे स्पष्ट है कि वो पक्के इरादों वाली खतरनाक युवती है। मैंने उसकी खूबसूरती के पीछे छिपे, उसके जहरीले फन को देखा है। शांता वास्तव में बेहद खतरनाक है। पहले मैं नहीं मानता था। लेकिन अब मुझे इस बात का एहसास होने लगा है। जिस तरह वो मुझे अपने शिकंजे में कसना चाहती है। वो ढंग कोई राह चलती युवती नहीं इस्तेमाल कर सकती। पास बैठने को बोलती है। लेकिन हाथ पकड़कर नहीं बिठाती। प्यार ऐसे करती है कि मैं इन्कार नहीं कर पाता। मेरे इन्कार पर मुझे रोकती नहीं। बोलती है जाओ लेकिन फिर आओगे। मैं किसी भी सूरत में उसका मुकाबला नहीं कर सकता, जबकि शांता मेरे साथ कोई भी सलूक कर सकती है।" कहते हुए बेदी का चेहरा गुस्से में सुर्ख हो गया था--- "बहुत कमजोर हूं उसके सामने ।”

जय नारायण ने गम्भीर सोच में डूबे सिगरेट सुलगाई।

“इंस्पेक्टर।” शुक्रा बोला--- “तुम्हारे सामने मसला है डॉक्टर की बेटी आस्था का, तुम आस्था को हासिल करके, उसे उसके बाप के हवाले करके, अपनी ड्यूटी पूरी करना चाहते हो। तुम खुद को हमारी जगह रखकर सोचो, हमारे सामने मसला है शांता का। जोकि खतरनाक गैंगस्टर है। वो पेड़ है। हम तिनके, विजय ने उसे झूठ बोलकर उससे आस्था को हासिल कर लिया तो फिर शांता बहन किसी तरह विजय को छोड़ने वाली नहीं। तब तुम भी नजर नहीं आओगे कि कहां गये। फंसा कौन, विजय ।"

जय नारायण ने शुक्रा को देखकर गम्भीरता से सिर हिलाया।

"शायद तुम लोग ठीक कहते हो।"

"शांता, विजय के इस धोखे को बर्दाशत नहीं कर सकेगी।" शुक्रा ने कहा।

“मानी तुम्हारी बात।" जय नारायण बोला--- "लेकिन तुम लोग क्या करोगे, बिना शादी के शांता, आस्था को विजय के हवाले करेगी नहीं। आस्था तुम लोगों के हाथ नहीं लगेगी तो वधावन तुम्हारा ऑपरेशन नहीं करेगा। उधर शांता फिरौती मांग रही है, वधावन से। वो मिल गई तो भी तुम्हारा खेल खत्म, फिर तुम्हारा ऑपरेशन कैसे होगा ?"

बेदी ने होंठ भींचकर बेचैनी से पहलू बदला ।

“मतलब कि शांता को धोखा देते हो तो फंसते हो। नहीं देते तो जिन्दगी से तुम्हें हाथ धोना पड़ेगा। यानी कि दोनों तरफ खाई है। इस करवट गिरो या उस करवट। अगर धोखा देकर आस्था को शांता से हासिल कर लेते हो तो शायद बाद में कोई रास्ता निकल आये, जिससे शांता से बचा जाये और शायद वधावन तुम्हारा ऑपरेशन भी कर दे।"

"इंस्पेक्टर ।" शुक्रा कह उठा--- "डॉक्टर वधावन को मैंने जितना जाना है। उसके हिसाब से इतना तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वो बिना अपनी फीस लिए ऑपरेशन नहीं करेगा। इसलिये झूठी तसल्ली मत दो।"

"मैं अपनी कोशिश... ।"

“कोशिश, कोशिश होती है। गारण्टी नहीं ।" शुक्रा कह उठा ।

जय नारायण होंठ भींचकर रह गया। सच बात तो यह थी कि उसे खुद विश्वास नहीं था कि डॉक्टर वधावन, बिना फीस के ऑपरेशन कर देगा। यह जुदा बात थी कि उसने सोचा था कि वह अपनी पूरी कोशिश करेगा।

छोकरे की रखी चाय घूंट-घूंट कर पीते रहे। चाय खत्म होने को आ गई।

आखिरकार जय नारायण सोच भरे स्वर में कह उठा।

“तुम शांता से शादी के लिये झूठी हां या फिर झूठी शादी इसलिये नहीं करना चाहते कि बाद में वो तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगी। तुम्हें अपना पति मानकर अपने पास बांध लेगी।"

"जबरदस्ती बांध लेगी।" बेदी दांत भींचकर कह उठा।

"हूं।" जय नारायण ने सिर हिलाया । चेहरे पर सख्ती के भाव थे--- "शांता हर तरफ से हमारे सामने, इस मामले में दिक्कत बन कर खड़ी हो रही है। अगर यह रास्ते से हट जाये तो सब काम संवर जाये।"

"रास्ते से हट जाये ?" बेदी के होंठों से निकला।

“हां, अब वो अकेली रह गई है । उसकी ताकत, परिवार टूटते ही खत्म हो चुकी है।" जय नारायण बोला।

“मतलब कि तुम उसका खून करोगे ?" बेदी के माथे पर बल पड़े।

जय नारायण ने बेदी की आंखों में झांका।

"पुलिस वाले खून नहीं करते। इस बात को अपने दिमाग में रखना।"

"तुमने मुझे अड़तीस दिन की छूट दी है। उसके बाद मुझे गिरफ्तार करोगे। अपनी जुबान पर कायम हो।"

"हां।" जय नारायण ने गम्भीर स्वर में कहा।

"तो मुझे इजाजत दो।" बेदी ने कहा फिर शुक्रा को देखा--- "मैं बाहर हूं, आ जाओ।" कहने के साथ ही वह दुकान से बाहर निकलता चला गया।

शुक्रा और जय नारायण की नजरें मिली।

"शुक्रा है ना तुम्हारा नाम?" जय नारायण बोला ।

"हां।"

"तुम्हारा दोस्त दिमाग में फंसी गोली की वजह से परेशान है। इसलिये हालातों को समझ नहीं रहा या फिर समझना नहीं चाहता। इसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात है कि दिमाग में फंसी गोली निकल जाये। वधावन ऑपरेशन कर दे। लेकिन यह सब कैसे होगा। यह नहीं समझने की कोशिश कर रहा।" जय नारायण एक-एक शब्द पर जोर देकर कह रहा था--- “कभी-कभी ऐसा वक्त आता है कि अपनी जान बचाने के लिये, दूसरे की जान लेनी पड़ती है।"

शुक्रा, जय नारायण को देखे जा रहा था।

"मैं पुलिस वाला हूं। परिवार है मेरा, बच्चे हैं। हत्यारा- खूनी नहीं हूं। पुलिस सर्विस के दौरान मैंने चार लोगों को सिर्फ इसलिये शूट किया कि वो मुझे मारने जा रहे थे। मतलब कि आत्मरक्षा के लिये, किसी की जान लेना गलत बात नहीं है। ऐसे में तुम किसी की जान नहीं ले रहे, बल्कि अपनी जान बचा रहे हो। अदालत में भी अगर साबित कर दिया जाये कि अपनी जान बचाने के लिये खून किया गया तो वह भी खून करने वाले को बरी कर देती है।"

शुक्रा कुछ नहीं बोला।

"ठीक इसी तरह अगर विजय बेदी, आस्था के बारे में जानने के बाद, उसे शूट कर देता है तो वह कोई गलत काम नहीं करेगा। जनता के लिये, अपने लिये, कानून के लिये ठीक काम होगा। वरना शांता जब तक जिन्दा रहेगी। गलत काम ही करती रहेगी । लोगों को सताती ही रहेगी।"

"लगता है तुम अभी विजय को समझ नहीं पाये।" शुक्रा बोला।

"क्या मतलब?"

"विजय किसी की जान नहीं ले सकता।" शुक्रा ने गम्भीर स्वर में कहा।

"झूठ क्यों बोलते हो, उसने शांता के भाई विष्णु को भी गोली मारी थी। बच गया, वरना वह मर भी सकता था।"

"विजय ने गोली नहीं मारी।" शुक्रा अपने शब्दों पर जोर देकर बोला--- “गलती से ट्रेगर दब गया था।"

"गलती से एक बार फिर ट्रेगर दब सकता है, जब शांता सामने हो।"

"नहीं दब सकता, मैं विजय को अच्छी तरह जानता हूं। किसी की जान लेने की हिम्मत उसमें नहीं है।"

जय नारायण दांत भींचकर शुक्रा को घूरने लगा।

"तुम चाहते हो कि तुम्हारे दोस्त की जान बच जाये।" जय नारायण की आवाज कठोर हो गई।

"हां। यह बात तो मैं अपने दोस्त से भी ज्यादा चाहता हूं।" शुक्रा के होंठों से निकला।

“तो विजय बेदी को दो में से एक बात के लिये तैयार करो।" जय नारायण ने शब्दों पर जोर देकर कहा।

"कौन-सी बातें ?"

"एक तो यह कि वह यूं ही शांता के साथ शादी करके, उससे आस्था को हासिल करे।"

“और दूसरी ?"

"आस्था को हासिल करने के बाद उसे गोली मार दे। सारे झंझट दूर हो जायेंगे और..।"

"शांता के साथ शादी करने की हां करके वो फंस जायेगा । शांता से पीछा नहीं छुड़ा पायेगा।" शुक्रा ने कहा।

"तो फिर यही रास्ता है कि शांता को शादी के लिये हां करे, बेशक शादी कर ले। आस्था को उससे ले ले। उसके बाद उसे गोली मार दे, इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है।" जय नारायण ने कहा।

"मैं कितनी बार तुम्हें समझाऊं कि विजय किसी की जान नहीं ले सकता।"

"तो फिर यह बात अपने दिमाग में बिठा लो कि आस्था को कुछ हुआ तो उसका इल्जाम विजय बेदी के सिर पर आयेगा और वधावन उसके दिमाग का ऑपरेशन करके वहां फंसी गोली नहीं निकालेगा ! जैसा कि विजय कहता है कि वह अड़तीस दिन में मर जायेगा। तो समझो मर जायेगा। खुद को बचाना है तो उसे शांता को शूट करना होगा।"

शुक्रा ने कुछ नहीं कहा।

“तुम लोग आजकल कहां रह रहे हो ?" एकाएक जय नारायण ने पूछा ।

"क्यों ?"

"जरूरत पड़ने पर तुम लोगों से मिल सकूं, कोई बात हो तो...।"

"उस जगह के बारे में, तुम्हें नहीं बताया जा सकता।” शुक्रा ने बात काट कर कहा।

"क्यों ?"

“हम किसी के पास रह रहे हैं। तुम्हारा क्या भरोसा, कल को विजय या मैं हाथ न लगे तो तुम उसे पकड़ लो जिसके पास हम रह रहे...।"

"ऐसा नहीं होगा।"

"सब कुछ हो जाता है, जब वक्त आता...।"

“मेरा विश्वास करो, अगर मैं जुबान वाला पुलिस वाला न होता तो आज विजय को और तुम्हें इस तरह जाने न देता । तुम जिसके पास रह रहे हो, उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। मेरा विजय के साथ सम्बन्ध बनाये रखना बहुत जरूरी है। उसके ही फायदे की कोई बात हो तो मैं उसे कैसे बताऊंगा ।" जय नारायण ने समझाने वाले अन्दाज में कहा।

"तुम इस जानकारी का बेजा इस्तेमाल नहीं करोगे।” शुक्रा ने गम्भीर स्वर में कहा।

"वायदा करता हूं।"

शुक्रा ने बताया कि वे उदयवीर के गैराज पर हैं और बताया कि गैराज कहां है?

"अच्छी बात है।" जय नारायण उठता हुआ बोला--- "जो मैंने तुम्हें समझाया है वो विजय बेदी को समझाने की चेष्टा करना । इसमें उसका ही भला है। वरना वह हर तरफ से फंसेगा।" इतना कहकर जय नारायण चाय की दुकान से निकल गया।

करीब दो मिनट तक शुक्रा वहीं बैठा सोचता रहा। जय नारायण ने जो-जो कहा था। उसकी हर बात पर गौर किया। उसके ख्याल से जय नारायण ने हालात के मुताबिक ठीक सलाह दी थी। परन्तु इस सलाह पर विजय चलेगा। इस बात का शक था शुक्रा को। सोचों में डूबे शुक्रा उठ खड़ा हुआ। चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी।

चाय की दुकान से जरा हटकर बेदी उसके इन्तजार में खड़ा नजर आया। जय नारायण कहीं भी नहीं था। वह जा चुका था। शुक्रा बेदी के पास पहुंचा।

बेदी चेहरे पर परेशानी लिये, उसे देखने लगा।

"अब...?" शुक्रा ने पूछा।

"क्या अब ?"

“शांता बहन के घर के बाहर की निगरानी करनी है या....।"

"कोई फायदा नहीं ।" बेदी ने सिर हिलाया--- "शांता सावधान है। वो हमें मौका नहीं देगी, आस्था तक पहुंचने का ।"

"गैराज पर चलें ?" शुक्रा ने आस-पास जाते लोगों पर नजर मारते हुए कहा ।

"वहां पर जाकर भी क्या होगा। सब कुछ वहीं-का-वहीं है। हमारा कीमती वक्त खराब हो रहा है।" बेदी ने गहरी सांस ली।

"गैराज पर कुछ आराम तो मिलेगा, ठण्डे दिमाग से सोचने का मौका तो मिलेगा, शायद कोई रास्ता निकाल लें ।”

■■■

इंस्पेक्टर महेन्द्र यादव ने तीखी निगाहों से जय नारायण को देखा ।

“हाथ आये विजय बेदी को तुमने छोड़ दिया, दिमाग तो खराब नहीं हो गया तुम्हारा ।"

“अपनी सोच के मुताबिक मैंने ठीक किया है सर।" जय नारायण ने गम्भीर स्वर में कहा।

"कैसी सोच?"

“सर, हमारा पहला मकसद, डॉक्टर की लड़की को आजाद करवाना है। जो कि इस वक्त शांता बहन के पास है और शांता बहन से किसी चीज को हासिल कर पाना आसान काम नहीं, बेशक उसकी ताकत खत्म ही क्यों न हो गई हो। लेकिन आस्था को शांता बहन से विजय बेदी हासिल कर सकता है।" जय नारायण ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा--- "शांता बहन उस पर पूरी तरह से फिदा है। उससे शादी करना चाहती है। वो कहती है विजय बेदी से, तू मेरे साथ शादी कर, मैं तेरी हर बात मानूंगी। परन्तु विजय बेदी तैयार नहीं हो रहा। मैंने उसके दिमाग में यह बात बिठाने की कोशिश की है कि अपना मतलब निकालने के लिये उसे जो भी करना पड़े, वह कर दे। उसके दोस्त शुक्रा को भी समझाया है। वो फुर्सत में मेरी कही बातों पर गौर करेंगे, जो बातें मैंने उन्हें कहीं हैं। उनके अलावा उसके पास और कोई चारा भी नहीं। उधर मैं शांता बहन पर नजर रखवा रहा हूं। हवलदार रामसिंह आने-जाने वालों पर नजर रख रहा है। किसी और को भी उसके पास भेजता... ।"

“तुम्हारी बातें मैं समझ रहा हूं।" इंस्पेक्टर महेन्द्र यादव ने उसकी बात काटी--- “अगर विजय बेदी कोई कदम उठाता है तो तुम्हें कैसे मालूम होगा ?"

“मैं जानता हूं वह कहां मिलेगा, मैंने मालूम कर लिया है।" जय नारायण ने कहा।

“मतलब कि तुम्हारी सारी बाजी विजय के कंधे पर ही है। उसके बिना तुम कुछ भी कर गुजरने के काबिल नहीं हो।"

"आपने ठीक सोचा सर ।"

महेन्द्र यादव ने गम्भीर स्वर में कहा।

"संभलकर चलना। कहीं ऐसा न हो कि डॉक्टर की लड़की भी हाथ न लगे और विजय भी तुम्हारी पहुंच से दूर हो जाये।"

"मैं ध्यान रखूंगा सर ।"

"खास बात, जो पहले भी कह चुका हूं। शांता को छेड़ने की कोशिश मत करना।"

“मुझे आपकी बात याद है सर। शांता जैसी खतरनाक गैंगस्टर के सामने पड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं है।" जय नारायण ने शांत स्वर में कहा।

■■■

शाम के छः बज रहे थे

गैराज के केबिन में बेदी, शुक्रा और उदयवीर बैठे एक-दूसरे को देख रहे थे। आज की सारी बातों से उदयवीर वाकिफ हो चुका था और उनकी बातों का मुद्दा शांता ही थी।

उदयवीर ने चुप्पी तोड़ी।

“विजय।” उदयवीर ने गम्भीर स्वर में कहा--- “इंस्पेक्टर जय नारायण की बातों में दम है।"

"क्या दम है?" बेदी झल्ला उठा।

“वो ठीक कहता है कि झूठ ही शांता से शादी कर ले। आस्था को उससे ले लो। बाद की बाद में देखी जायेगी।"

बेदी ने खा जाने वाली निगाहों से उसे देखा।

“तेरे दिमाग में गोली लगी है।" बेदी ने दांत भींचकर कहा।

उदयवीर उसे देखता रहा।

"मेरे को शांता से, आस्था से कुछ नहीं लेना देना। मैं ठीक होना चाहता हूं। वधावन से ऑपरेशन करवाकर गोली निकलवा कर जीना चाहता हूं। ये फालतू के चक्कर खामखाह ही मेरे गले पड़ रहे हैं।"

"ये फालतू के चक्कर नहीं हैं।" उदयवीर ने सिर हिलाकर कहा— “ये वो सीढ़ियां हैं जिन्हें तय करने के बाद ही तुम लम्बी जिन्दगी की सीढ़ियों तक पहुंचोंगे। कुछ पाने के लिये मेहनत करनी पड़ती है। अगर आस्था को कुछ हो गया तो सारा जुर्म तुम पर। उसके बाद वधावन, अपनी बेटी के हत्यारे का ऑपरेशन करके यानी कि तुम्हारी जान क्यों बचायेगा।"

"आस्था को कुछ होता है तो उसकी जिम्मेवार शांता होगी, मैं नहीं ।"

"यह बात हम समझ सकते हैं। जय नारायण समझ सकता है लेकिन वधावन को कोई नहीं समझा सकता। वह सिर्फ यही जानेगा कि तुमने उसकी बेटी का अपहरण किया और बाद में उसे बेटी का मरा मुंह देखने को मिला।"

बेदी ने होंठ भींच लिए।

खामोशी-सी छा गई वहां पर ।

"मेरे ख्याल में जय नारायण ने जो कहा है, ठीक कहा है।" शुक्रा ने चुप्पी तोड़ी।

बेदी ने शुक्रा को देखा।

“शांता से नकली शादी कर ले। शादी कर मन में यही सोच कि यह चंद घंटों की शादी है। उसके बाद जैसा कि वो कहती है कि आस्था को तेरे हवाले कर देगी, आस्था को उससे ले और मार दे गोली शांता को ।"

“गोली मार दूं। जान ले लूं उसकी, जबकि तू अच्छी तरह जानता है कि मैं किसी की जाने लेने का दम नहीं रखता।"

बेदी खींझ भरे स्वर में कह उठा---

“यूं ही उससे शादी करके, अपनी जान बचाने के लिये, शांता को धोखा तो एक बारगी दे दूंगा। जैसे भी हो यह काम कर दूंगा। लेकिन जान नहीं ले सकता और अगर जान नहीं लेता तो शांता किसी भी हालत में मेरे को नहीं छोड़ेगी। अपना पति बना, साथ रखकर मेरी जिन्दगी बरबाद कर देगी। मतलब कि कुछ नहीं हो सकता। मेरी जान नहीं बच सकती। मैं मर जाऊंगा।" बेदी की आवाज में दर्द भर आया।

शुक्रा ने उदयवीर को देखा ।

"उदय, तू ही बता क्या किया जाये।"

"मैं क्या कह सकता हूं। विजय ही हिम्मत दिखाये तो कुछ हो सकता है।" उदयवीर ने गम्भीर स्वर में कहा।

शुक्रा ने बेदी को देखा।

"विजय, तू शांता के साथ शादी करने को तैयार है। नकली शादी। कुछ देर के लिये, शांता को बहलाने के लिये शादी ?"

"मैं इस तरह की शादी करने को तैयार भी हो जाऊं तो क्या फायदा, क्योंकि मैं शांता की या किसी की भी जान नहीं ले सकता। तू या उदय यह काम कर सकते हैं तो बता। मैं तुम लोगों को शांता के पास ले चलूंगा। तुम लोग उसे गोली मार देना ।"

शुक्रा और उदयवीर की निगाहें मिलीं। दोनों ही चुप रहे । कुछ नहीं कहा उन्होंने । बेदी का क्रोध से भरा चेहरा देखने के बाद मुँह घुमा लिया।

“मैं सब समझ रहा हूं।" एकाएक बेदी की आवाज भर्रा उठी।

“क्या?" शुक्रा के होंठों से निकला

"मैं नहीं बच सकता । दिमाग में फंसी गोली मेरी जान ले लेगी। मैं... मैं मर जाऊंगा।" बेदी की आंखों में पानी चमक उठा।

शुक्रा के चेहरे पर दुख के भाव नजर आने लगे ।

उदयवीर चिन्ता भरे अन्दाज में सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया।

"उदय।" शुक्रा धीमें स्वर में बोला--- “सब कुछ तेरे सामने है। बता क्या हो सकता है।"

"मैं कुछ नहीं समझ पा रहा। कुछ नहीं जानता, न ही कह सकता हूं कि क्या होगा।" उदयवीर दांत भींचकर कह उठा।

बेदी गीली आंखों से दोनों को देखे जा रहा था। चेहरे पर फीकापन नजर आने लगा।

■■■

सारी रात इसी कशमकश में बीती कि क्या किया जाये ? अब क्या होगा?

सुबह करीब आठ बजे ही सब-इंस्पेक्टर जय नारायण सादे कपड़ों में गैराज पर वहां आ पहुंचा। शुक्रा, बेदी उस वक्त नहा-धोकर हटे ही थे। उदयवीर रात को घर, मां-बहन के पास चला गया था और उस वक्त उनके लिये नाश्ता लेकर आया था। जय नारायण को गैराज पर आया देखकर वह परेशान-सा हो उठा।

"तुम यहां?" उसे देखते ही बेदी के होंठों से निकला।

जय नारायण ने हौले से सिर हिलाया ।

"तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि हम यहां हैं?” बेदी के माथे पर बल पड़े।

"जय नारायण ने शुक्रा पर निगाह मारी तो शुक्रा ने मुंह फेर लिया। वह समझ गया कि शुक्रा ने विजय को नहीं बताया कि उसने ही यहां का पता दिया है।

"मैं पुलिस वाला हूं।" जय नारायण बात टालने वाले लहजे में कह उठा--- "कभी-कभी कोई बात यूं ही मालूम हो जाती है। तुम बताओ कल मैंने जो सलाह दी थी, उस पर सोचा, मेरी कोई बात पसन्द आई?"

"नहीं।" बेदी ने उखड़े स्वर में कहा और उदयवीर से बोला--- "नाश्ता दे, भूख लगी है।"

"तुम लोगे?" उदयवीर ने गम्भीर स्वर में जय नारायण से पूछा।

"नहीं, मैं लेकर आया हूं।"

"तुमने कहा था अड़तीस दिन मुझे कुछ नहीं कहोगे, उसमें से अभी सिर्फ एक दिन बीता है।" बेदी की आवाज में नापसन्दगी के भाव थे--- "तब तक तुम्हें मुझ पर नजर नहीं रखनी चाहिये। मेरे पास नहीं आना चाहिये।”

"इस वक्त मैं दोस्त बनकर, तुम्हारे पास यहां पर आया हूं।"

"तुम्हारा यहां आना, मुझे अच्छा नहीं लगा।" बेदी ने स्पष्ट कहा।

"इतनी बेरुखी मत दिखाओ।" जय नारायण मुस्कराकर बोला और कुर्सी पर बैठ गया— “दो बातें करके चला जाऊंगा तो।"

"इंस्पेक्टर ।" शुक्रा एकाएक उठता हुआ बोला--- “तुम मेरे साथ आओ।"

जय नारायण ने उलझन भरी निगाहों से शुक्रा को देखा ।

बेदी और उदयवीर की निगाहें भी शुक्रा पर गई।

शुक्रा केबिन से बाहर निकल गया।

जय नारायण ने मुस्कराकर बेदी और उदयवीर को देखा।

"कोई प्राइवेट बात होगी। मैं अभी सुनकर आता हूं।" कहने के साथ ही जय नारायण कुर्सी से उठा और केबिन से बाहर निकलकर गैराज के हॉल में टहलते शुक्रा के पास पहुंचा। शुक्रा ने ठिठक कर बेचैन निगाहों से जय नारायण को देखा।

“कहो।" जय नारायण की खोजभरी निगाह शुक्रा के चेहरे पर थी।

"तुम शांता बहन को शूट कर सकते हो ?" शुक्रा ने सीधे-सीधे कहा।

"मैं?" जय नरायण चौंका।

"हां, तुमसे ही कह रहा हूं।"

जय नारायण कई पलों तक शुक्रा को देखता रहा फिर गम्भीर स्वर में कह उठा।

"तुम्हारी बात मैं पूरी तरह समझा नहीं। फिर भी जवाब में यह कहूंगा कि शांता के हाथों से डॉक्टर की बेटी को निकाल लिया जाये और शांता को खत्म करने की जरूरत हो तो शांता जैसी गैंगस्टर को शूट करने में मुझे कोई हिचक नहीं।"

“समझो कि विजय, शांता के साथ शादी करके उसके कब्जे से आस्था को निकाल लेता है। उसके बाद शांता, विजय के लिये जी का जंजाल न बने। इस वास्ते तुम्हें शांता को शूट करना पड़ेगा।" शुक्रा व्याकुल था ।

“समझा।" जय नारायण ने शुक्रा के चेहरे पर निगाहें टिकाये कहा— “कल जो मैंने कहा था, उसी लाइन पर चल रहे हो, फर्क सिर्फ यह है कि विजय शांता को शूट नहीं करना चाहता और...।”

"चाहता नहीं, उसमें इतना हौसला नहीं है कि वो किसी की जान ले सके।" शुक्रा ने उसकी बात काटकर कहा।

जय नारायण का चेहरा सपाट हो गया।

"ठीक है। मैं शांता को शूट कर दूंगा।" जय नारायण की आवाज में दृढ़ता थी--- "लेकिन शांता सामने वाले को इतना मौका नहीं देती कि वो उस पर गोली चला सके।"

“मेरे दिमाग में कुछ है कि तुम्हें मौका मिल जायेगा।” शुक्रा दांत भींचकर कह उठा--- "मतलब कि तुम तैयार हो।"

"हां।"

"आओ, मैं विजय से बाकी की बात करता हूं। तुम बीच में नहीं बोलोगे ।" शुक्रा ने पहले वाले स्वर में कहा ।

“नहीं बोलता, चलो।"