उपसंहार
सबसे पहले औरतों को बस में जाकर कपड़े पहनने का मौका दिया गया।
मुबारक अली जैसे दुर्दान्त हत्यारे ने उनके सामने नाक से बस के फर्श पर लकीरें लगाकर अपने उस कुकृत्य की माफी मांगी।
फिर जिनकी मां बहन बेटियां थीं, उन सब को बस में सवार हो जाने दिया गया। सब एक दूसरे के गले लग लग कर रोने लगे। ऐसा दारुण दृश्य पैदा हुआ कि दर्शक भी पसीजे बिना न रह सके। फिर भाई बहनों से, बेटे माओं से, खाविंद बीवियों से कसमें खा खा कर कहने लगे कि वो गुनाह की उस जिन्दगी से हमेशा के लिये किनारा कर लेंगे। वो ठेला खींच लेंगे, रिक्शा चला लेंगे, भीख मांग लेंगे लेकिन आइन्दा फिर कभी किसी दादा, किसी मवाली, किसी गैंगस्टर की देहरी पर सिजदा करते नहीं दिखाई देंगे। उनकी उस घोषणा से औरतों के आंसुओं का आवेग और बढ़ गया लेकिन अब सब के चेहरों पर खुशी की चमक थी। आंखें गंगा जमना बहा रही थीं लेकिन होंठ हंस रहे थे।
जौहर ज्वाला से — जो विमल के लिये ही नहीं, उनके लिये भी प्रज्वलित थी — हर कोई कुन्दन बन कर निकला था।
उस दौरान विमल ने दो काम किये।
झामनानी से जबरन तहखाने का रास्ता कुबुलवाया।
पहाड़गंज थाने के एस.एच.ओ. नसीब सिंह को फोन किया और उससे हवलदार तरसेम लाल की जान का सदका देकर फौरन, अकेले झामनानी के फार्म पर आने के लिये हामी भरवाई।
“क्यों किया ये नापाक काम?” — फिर विमल ने मुबारक अली से पूछा।
“क्योंकि और कोई चारा नहीं था।” — मुबारक अली बोला — “हम सब जान पर खेल जाते तो भी तुझे न छुड़ा पाते। ये ही एक तरीका था जिसने कि हारी हुई बाजी जितवा दी।”
“सूझा कैसे ऐसा खुराफाती तरीका?”
“बाप, मैं चार दिन पहले फोन पर तेरे को क्या बोला? मैं बोला मैं अपने धोबियों से इन तमाम के तमाम दादाओं के तमाम के तमाम कारिन्दों, प्यादों की शिनाख्त कराना मांगता था क्योंकि जानकारी ताकत। मैं शिनाख्त करा के रखी जो कि आज वक्त पर काम आयी।”
“मेरी खबर कैसे लगी?”
“कल लूथरा तेरे को बोला था कि वो रात को फिर फोन करेगा। वो फोन किया तो तू उधर नहीं था। उसकी, वो क्या कहते हैं अंग्रेजी में, गुफ्तगू इरफान से हुई। इरफान बोला कि वो मुबारक अली से फौरन बात करना मांगता था। मैं बात किया तो मालूम हुआ कि कैसे तू निहत्था, अकेला दिल्ली को दौड़ पड़ा था?”
“लेकिन उसे ये तो नहीं मालूम था कि मैंने दिल्ली में कहां पहुंचना था?”
“पण तू पहुंचा तो उधर ही!”
“वो तो इसलिये क्योंकि मुझे और कोई जगह सूझी नहीं थी।”
“हमें बहुत जगह सूझीं, बाप, पण सबसे माकूल ये उजाड़ बियाबान जगह ही लगी। रात से ही मैं इधर निगरानी के लिये आदमी बैठायेला था पण तू जरूर निगरानी शुरू होने से पहले भीतर पहुंच गया था जो निगरानी पर लगे आदमियों को दिखाई न दिया। बाप, मैं रात भर ये सोचा कि तेरे को भीतर जान कर हम इधर हमला करें पण मेरे भांजे नक्को बोले। वो बोले कि तेरे भीतर होने की तसदीक के बिना वो कदम उठाना हिमाकत। ऊपर से अगर तू भीतर होता तो ऐसा कोई हमला होने पर झामनानी के कहर का पहला शिकार तू और तेरी बेगम ही बनती। पुलिस को खबर करने का भी सोचा पण उससे तेरी हालत आसमान से गिर कर खजूर में अटकने जैसी होती। झामनानी के चंगुल से निकलता और पुलिस के चंगुल में जा फंसता। इसी उधेड़बुन में रात से सुबह हो गयी। फिर मुझे, वो क्या कहते हैं अंग्रेजी में, इधर पिरेशर बनाने का वो तरकीब सूझा...”
“प्रैशर बनान का।”
“वही। वही बनाने का वो तरकीब सूझा जिससे मुबारक अली ने खुद अपनी दाढ़ी पेशाब से धोने जैसा काम किया, पैंतालीस खवातीन की बद््दुआयें झेलीं, लेकिन अल्लाह के फजल से नतीजा माकूल निकला।”
“दीन दयाल दयानिध दोखन, देखत हैं पर देत न हारै।”
“क्या बोला, बाप?”
“कुछ नहीं।”
तभी हाशमी वहां पहुंचा।
“वो पुलिस वाला आया है” — वो बोला — “लेकिन अकेला नहीं है।”
“साथ कौन है?” — विमल सशंक भाव से बोला।
“पुलिस वाला ही है। ए.सी.पी. की वर्दी पहने है।”
“ये गारन्टी है कि दो ही जने हैं?”
“हां। दूर तक दिखवाया। और कोई साथ नहीं हैं।”
“आने दो।”
“ठीक।”
“उनके यहां फार्म हाउस में पहुंचते ही बस को यहां से रुखसत कर दो। अपने दो चार खास आदमियों को छोड़ कर धोबियों को भी रुखसत कर दो। नीलम समेत सब लोग यहां से निकल जाओ और उन्हें यहां आने दो।”
सहमति में सिर हिलाता हाशमी चला गया।
एस.एच.ओ. नसीब सिंह और ए.सी.पी. प्राण सक्सेना वहां पहुंचे।
विमल पर निगाह पड़ते ही नसीब सिंह चौंका।
“वैलकम! वैलकम!” — विमल मुस्कराता हुआ बोला — “पहचान लिया जान पड़ता है आपने मुझे!”
“कौल!” — नसीब सिंह के मुंह से निकला।
“मैं कोई और सूरत भी अख्तियार कर सकता था लेकिन मैंने कौल ही बने रहना मुनासिब समझा ताकि आपको मुझे पहचानने में असुविधा न हो।”
“सोहल!”
“वही, लेकिन ये वक्त सोहल का नाम भजने का नहीं है। मैंने यहां आपको ऐसी थाली परोसने के लिये बुलाया है जिसके सामने सोहल की औकात आपको चटनी जितनी भी नहीं लगेगी।”
“फोन तुमने किया था?”
“हां।”
“तरसेम लाल को कैसे जानते हो?”
“मैं नहीं जानता था। उसी ने अपने आपको जनवाया। भला आदमी था।”
“तरसेम लाल?”
“हां। जब तक मन निर्मल हुआ तब तक चल चल का वक्त आ गया। खामखाह मारा गया बेचारा।”
“मारा गया! किसने मारा?”
“झामनानी के एक आदमी ने मारा। लाश यहीं कहीं होगी। बरामद हो जायेगी।”
“किस्सा क्या है?” — ए.सी.पी. प्राण सक्सेना बोला।
“मैंने आपको अकेले आने के लिये कहा था?” — विमल शिकायतभरे स्वर में नसीब सिंह से बोला।
“ये मेरे इमीजियेट बॉस हैं। इनके पूछने पर इन्हें बताना जरूरी था कि मैं कहां जा रहा था! झूठ बोलता, इनके बिना आने की कोशिश करता तो फौरन न आ पाता।”
“कोई बात नहीं। ये आप से ज्यादा जिम्मेदार अधिकारी हैं। आये हैं तो किसी काम ही आयेंगे।”
“तुमने खास मुझे क्यों फोन किया?”
“क्योंकि आपके सिवाय दिल्ली पुलिस में मैं किसी को नहीं जानता। दिल्ली में मेरी आखिरी मुलाकात आप ही से थी जो कि योगेश पाण्डेय और शिवशंकर शुक्ला की मौजूदगी में हुई थी।”
“तुम” — ए.सी.पी. कर्कश स्वर में बोला — “कुबूल करते हो कि तुम सोहल हो?”
“आप कुबूल करते हैं कि आप एक नम्बर के ईडियट हैं और उस वर्दी के काबिल नहीं हैं जो आप पहने हैं?”
ए.सी.पी. यूं हकबका कर एक कदम पीछे हटा जैसे मुंह पर तमाचा पड़ा हो।
“मैंने यहां आपको अपनी शक्ल पहचानवाने के लिये बुलाया है?”
“तो किस लिये बुलाया है?” — नसीब सिंह बोला।
“इसलिये बुलाया है कि आप इतनी बड़ी एक वारदात को अपने काबू में ले सकें जिसके लिये अच्छा तो ये होता कि आपका कमिश्नर यहां मौजूद होता। अभी भी मेरी राय यही है कि सारी बात सुन चुकने के बाद आप अपने कमिश्नर को यहां तलब कीजियेगा। इसलिये क्योंकि ये जगह आपके थाने की हद में नहीं आती। ए.सी.पी. साहब के तीन थाने की हद में भी नहीं आती।”
“फिर भी हम यहां हैं। कोई आला अफसर पूछेगा तो हम क्या जवाब देंगे?”
“जो जी में आये जवाब दीजियेगा। यही कह दीजियेगा कि तरसेम लाल ने आपको सब कुछ बताया था। वो यहां का भेद देकर मरा था।”
“भेद क्या है?” — इस बार ए.सी.पी. अपेक्षाकृत सभ्य स्वर में बोला।
“भेद ये है कि अभी थोड़ी देर पहले यहां ‘भाई’ मौजूद था।”
“भाई!” — ए.सी.पी. चौंका — “वही जो... जो...”
“वही। जो इन्डिया से फरार अपराधी घोषित है। जिसकी इन्डिया में गिरफ्तारी बहुत बड़ी इन्टरनेशनल घटना हो सकती है।”
“अब कहां गया?”
“एक हैलीकाप्टर पर बैठ कर यहां से निकल गया। उसके साथ रीकियो फिगुएरा नाम का उससे भी बड़ा इन्टरनेशनल अन्डरवर्ल्ड डॉन था। यहां आसपास के मुल्कों के छ: और टॉप के हेरोइन स्मगलर पहंुचने वाले थे लेकिन उनको इधर का रुख न करने की हिदायत दे दी गयी थी। ऐसा ऐन आखिरी मौके पर किया गया था इसलिये वो दिल्ली तक या उसके आसपास कहीं तक यकीनन पहुंच चुके होंगे। उन एशियन ड्रग लार्डस के नाम हैं जहांगीर खान कराची से, बुद्धिरत्न भट्टराई काठमाण्डू से, खलील-उर-रहमान ढाका से आंग सू विन रंगून से, नेविल कनकरत्ने कोलम्बो से और मुहम्मद कामिल दिलजादा काबुल से। ए.सी.पी. साहब, आपकी बैल्ट के साथ वायरलैस टेलीफोन बन्धा दिखाई दे रहा है। इसे किसी काम में लाइये और ऐसा व्यवस्था चक्र घुमाइये कि वो सब के सब नहीं तो उनमें से कुछ तो हिन्दोस्तानी जमीन पर गिरफ्तार हो जायें।”
“मैं... मैं...” — ए.सी.पी. हड़बड़ाता सा बोला — “कमिश्नर साहब से बात करता हूं।”
“जरूर कीजिये लेकिन फिलहाल इस जगह का नाम आपकी जुबान पर न आये।”
“मुझे बताना तो पड़ेगा कि मैं कहां से...”
“सुना आपने मैंने क्या कहा?”
“ओ.के.।”
“तब तक मैं बाकी बात एस.एच.ओ. साहब के साथ मुकम्मल करता हूं।”
“सहमति में सिर हिलाता ए.सी.पी. अपना वायरलेस फोन खड़खड़ाने लगा।”
“एस.एच.ओ. साहब” — विमल बोला — “यहां बगल के कमरे में दिल्ली के चार टॉप के दादा मुश्कें कसे बन्धे पड़े हैं। चारों से आप बाखूबी वाकिफ हैं कि वो बड़े गैंगस्टर हैं लेकिन सबूतों के अभाव में कभी गिरफ्तार न हो सके। वो हैं पवित्तर सिंह, भोगीलाल, माता प्रसाद ब्रजवासी और उन सब का बाप लेखूमल झामनानी। इन्हीं लोगों में से किसी ने लोटस क्लब में कुशवाहा और उसके जोड़ीदार द्विवेदी को शूट किया। इन्हीं लोगों ने शिवशंकर शुक्ला और जगत नारायण का कत्ल कराया। यही लोग सुमन वर्मा के पीछे पड़े जो कि इनसे बचकर मुम्बई भाग गयी लेकिन इन लोगों ने वहां भी उसका पीछा न छोड़ा। इन्हीं लोगों ने मुम्बई में सुमन वर्मा का कत्ल कराया और फिर उसकी लाश के जरिये छ: करोड़ रुपये की हेरोइन दिल्ली पहुंचाई। वो हेरोइन यहां के तहखाने में मौजूद है। तहखाने में और भी बहुत कुछ मौजूद है जिसे काबू में करके आप लोगों को फख्र होगा।”
नसीब सिंह के नेत्र फैले।
“अन्डरवर्ल्ड के इन चार महन्तों में से एक ब्रजवासी को खासतौर से मुम्बई भेजा गया था ताकि दिल्ली से शुरू हुआ कत्लेआम का सिलसिला मुम्बई में भी जारी रह पाता। वहां भी इन्होंने कई कत्ल खुद करवाये और कई उनकी वजह से हुए। मैक्सवैल इन्डस्ट्रीज का एक प्राइवेट प्लेन ब्रजवासी को पूना से दिल्ली लाया था। आप को इस बात की भी तफ्तीश करानी चाहिये कि क्यों वो दिल्ली के एक अन्डरर्ल्ड डॉन को उपलब्ध था!”
नसीब सिंह ने सहमति में सिर हिलाया।
“बाहर जो बन्दूकें, रायफलें, पिस्तौलें, स्टेनगनें आपने पड़ी देखीं, उन सब के लिये जवाबदेय इस फार्म का मालिक झामनानी है। आपको उसे और उसके साथियों को टाडा लगा कर या नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के अन्डर गिरफ्तार करना होगा। इनमें से एक की भी अगर जमानत हो पायी या आने वाले वक्त में उसे सख्त से सख्त सजा न मिली तो मैं इसके लिये पुलिस को जिम्मेदार ठहराऊंगा और सबसे पहले इस तरफदारी की सजा के तौर पर आपके कमिश्नर का सिर कलम करूंगा। मेरा ये पैगाम आप जरूर जरूर अपने कमिश्नर साहब के पास पहुंचा दीजियेगा। ओके?”
हड़बड़ाये नसीब सिंह की गर्दन सहमति में हिली।
“यहां शैलजा और अमरदीप नाम के दो शख्स हैं। उन्हें आपको वादामाफ गवाह बनाना होगा। आप ऐसा करेंगे तभी वो इन दादा लोगों की ऐसी पोलें खोल के दिखायेंगे कि आपकी आंखें फट पड़ेंगी। बहरहाल मेरी जो दो खास दरख्वास्त आप से हैं, उन्हें में फिर दोहरा रहा हूं। एक ये कि शैलजा और अमरदीप में से किसी का बाल भी बांका न हो और दूसरे ये कि झामनानी, ब्रजवासी, भोगीलाल और पवित्तर सिंह का बाल ही बांका होने से रह जाये तो रह जाये, और उनका कुछ सलामत न बचे। ये मेरी दिल्ली पुलिस के चीफ से दरख्वास्त ही नहीं, मांग भी है जिसे कि आप उस तक पहुंचायेंगे। मेरी दरख्वास्त या मांग मुकम्मल तौर से कुबूल न हुई तो इसका बहुत बड़ा खामियाजा कोताही करने वालों को भुगतना पड़ेगा।”
नसीब सिंह के शरीर में स्पष्ट झुरझुरी दौड़ती दिखाई दी।
“मेरा मकसद इन चार महन्तों को खुद शूट कर देने से भी हल होता है लेकिन जो दो बड़े मगरमच्छ यहां से खिसक गये, जो छ: बड़े खलीफा इधर का रुख करने से रोक दिये गये, उनको काबू करने की सलाहियात मेरे पास नहीं हैं। इसीलिये मैंने आप लोगों को यहां बुलाया है और वो सब कहा है जो कि आपने सुना। एस.एच.ओ. साहब, एक बहुत बड़े यश का भागी बनने का मौका आपके सामने है, अपने एक पुलिसकर्मी की नृशंस हत्या का बदला लेने को मौका आपके सामने है। क्या ये मौका चूकना आपको गवारा होगा?”
नसीब सिंह ने मजबूती से इनकार में सिर हिलाया।
“सोहल को गिरफ्तार करने के मौके आइन्दा भी कई आयेंगे लेकिन जो मौका इस वक्त आपके सामने है, वो आइन्दा कभी नहीं आयेगा।”
“मैं समझता हूं।” — नसीब सिंह धीरे से बोला।
“गुड। आई एम ग्लैड।”
तभी ए.सी.पी. ने वायरलैस फोन पर से सिर उठाया।
“आपकी काल हो गयी, जनाब?” — विमल बोला।
“हां।” — ए.सी.पी. बोला — “लेकिन खुद कमिश्नर साहब से बात न हो सकी। उनका वायरलैस फोन ऑफ मालूम होता है। मैंने उनके लिये मैसेज...”
“बड़े अच्छे कमिश्नर साहब हैं आपके! तत्काल सम्पर्क के लिये वायरलैस फोन पास रखते हैं लेकिन उस पर उनसे बात नहीं हो सकती!”
“आमतौर पर तो ऐसा नहीं होता...”
“खासतौर पर होता है। जब जरूरत हो तब होता है।”
“वो क्या है कि...”
“फोन इधर कीजिये।”
विमल ने उसके हाथ से वायरलैस फोन लेकर उसकी बैटरी निकाली और उसे अपनी जेब में डाल लिया। उसने फोन वापिस ए.सी.पी. को थमा दिया और बोला — “यहां की तमाम टेलीफोन लाइन कटी हुई हैं। इसलिये यहां से बाहर कम्यूनिकेशन का कोई जरिया अब आपको उपलब्ध नहीं है। दो घन्टे यही सिलसिला जारी रहेगा, उसके बाद आप जो जी में आये, कीजियेगा। शैलजा और अमरदीप सिर्फ दो घन्टे के लिये मेरे सगे हैं जो कि यहां आपके सिरहाने खड़े होंगे।”
“क्या करने के लिये?” — नसीब सिंह बोला।
“आपके हरकत में आने की कोशिश करने की सूरत में आपको शूट कर देने के लिये।”
नसीब सिंह और ए.सी.पी. हकबकाये।
“सिर्फ दो घन्टे के लिये आपको उनका ये रौद्र रूप देखना होगा, उसके बाद वो आपकी भेड़ बकरी होंगे।”
“दो घन्टे में क्या होगा?” — ए.सी.पी. बोला — “तुम फरार हो जाओगे?”
“कितने समझदार हैं आप! बहरहाल अब मैं आपकी कामयाबी की कामना करता हुआ आप से इजाजत लेता हूं।”
नीलम के साथ विमल निर्विघ्न मुम्बई पहुंच गया।
पीछे मुबारक अली और उसके भांजों का और धोबियों का वो तरीके से शुक्रगुजार भी न हो पाया।
शुक्ला की मौत का अफसोस करने के लिये विमल पंडारा रोड उसकी कोठी पर उसकी बीवी से मिलने जाना चाहता था लेकिन हालात ही ऐसे बन गये कि उसकी नौबत न आयी।
बहुत बाद में उसे मालूम हुआ कि जिस रोज सुमन सौ सौ के नोटों को पांच पांच सौ के नोटों में तब्दील करवाने के लिये शुक्ला के पास पहुंची थी, उसी दिन वो उसे एक वसीयत सौंप के गयी थी जो कि खुद शुक्ला की मौत हो जाने की वजह से तत्काल खोली नहीं जा सकी थी। उस वसीयत के मुताबिक सुमन वर्मा ने अपनी तमाम चल अचल सम्पति — जिसमें उसका फ्लैट, लॉकर, बैंक बैंलेस, प्राविडेंट फंड वगैरह आता था — का वारिस मिस्टर एण्ड मिसेज कौल की सरपरस्ती में सूरज को घोषित किया था। विमल ने उस वसीयत पर कोई अमल न किया और मुबारक अली की मार्फत डाक्टर प्रदीप बाहरी को कहलवाया कि सुमन के बाद सुमन की यादगार के तौर पर वो सब कुछ उसका था।
अपनी घोषणा के मुताबिक झामनानी एण्ड कम्पनी विमल को नंगा तो न कर सकी लेकिन उन्होंने नंगा करने में कोई कसर भी न छोड़ी थी। तुका की मौत पर विमल सबसे ज्यादा तड़पा था लेकिन सबसे ज्यादा अफसोस उसे फिरोजा की मौत का था। वो पति पत्नी तो जैसे पैदा ही विमल की खातिर बलि होने के लिये हुए थे।
बहरहाल अट्ठाईस हत्याओं के बाद वो दमनचक्र थमा, जो कि विमल की मुखालफत में उसके दुश्मनों द्वारा हरकत में लाया गया था, फिर भी दुश्मनों के मारे या मरवाये केवल बारह आदमी मरे जबकि विमल के मारे या मरवाये सोलह आदमियों की जान गयी जिनमें से नौ ‘कम्पनी’ के प्यादे थे और सात प्यादों जैसे या उनसे बेहतर हैसियत रखने वालों जैसे ‘भाई’ के या बिरादरीभाइयों के आदमी थे जिनमें सबसे बाहैसियत शख्स दाण्डेकर था। मरने वालों में से बीस को शूट किया गया, तीन का एक्सीडेंट कराया गया, दो को डुबो कर मारा गया, दो को बारूद से उड़ाया गया और एक का गला घोंटा गया। सब से ज्यादा खूंखार व्यक्ति ब्रजवासी निकला जिसने खुद या शिवांगी के साथ चार लाशें गिराईं। इरफान अपना इमेज ‘कम्पनी’ के जल्लादों जैसे किसी खूंखार हत्यारे का हरगिज नहीं बनाना चाहता था लेकिन फिर भी हालात अपने आप ही ऐसे बनते चले गये कि आठ प्यादों को खुद उसे शूट करना पड़ा था। जो दो पुलिसिये मरे, उन दोनों के ही हत्यारों का खुदाई इंसाफ अली, वली के हाथों हुआ। जो दो शख्स खामखाह मारे गये, वो ‘भाई’ का बाडीगार्ड और उसकी कार का ड्राइवर थे लेकिन गेहूं के साथ घुन तो पिसता ही था।
उस दौर में जिस वाहिद शख्स को सबसे ज्यादा दुश्वारियों से दो चार होना पड़ा, जिसकी सबसे ज्यादा — लाश की तो हद से ज्यादा — दुर्गति हुई, वो सुमन थी।
जाने या अनजाने बिरादरीभाइयों ने जो एक शरीफाना हरकत की थी, वो ये थी कि किसी ने नीलम की झामनानी के फार्म में गिरफ्तारी के दौरान उससे कोई बद्फेली करने की कोशिश नहीं की थी।
फिरोजा के बच्चों का — आदिल और यासमीन का — पूना के एक रेजीडेंशल स्कूल में एडमिशन का इंतजाम किया गया था।
स्कूल के रिकार्ड में बतौर उनके अभिभावक जो नाम दर्ज था, वो राजा गजेन्द्र सिंह था।
विमल के लिये एक गनीमत यह भी हुई थी कि राजा गजेन्द्र सिंह का राज जिन गलत लोगों पर फाश हुआ था, वो सब या तो मर खप गये थे या बिरादरीभाइयों की तरह मौत की राह पर थे।
सिवाय ‘भाई’ के।
समाप्त
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